इमाम अली की बेटी जनाबे उम्मे कुलसूम

अन्य
Typography
  • Smaller Small Medium Big Bigger
  • Default Helvetica Segoe Georgia Times

बेशक रसूले अकरम (स.अ.व.व) तथा आपका कुटुम्ब ही सर्वगुण सम्पन्न एवं अनुसरण योग्य है तथा जनाबे उम्मे कुलसूम भी उसी कुटुम्ब की एक महान हस्ती हैं।

 

जन्मतिथि

हज़रते फातेमा ज़हरा (स.अ.) के इस अनमोल रतन की जन्मतिथि के बारे मे कोई ठोस सबूत नही मिलते किन्तु रिवायात तथा खुद जनाबे उम्मे कुलसूम के कथनो से इस बात की पुष्टी होती है कि  आपका जन्म  हिजरत के सातवे साल मे हुआ था।

  

माता-पिता

ईश्वर की असीम क्रपा जनाबे उम्मे कुलसूम पर थी कि हज़रते फातेमा ज़हरा (स.अ.) की चार औलादो मे से एक होने का सम्मान आपको दिया तथा इमाम अली (अ.स.) जैसे महान बाप की बेटी होने की अज़मत दी।

  

नामकरण

हांलाकि हज़रते उम्मे कुलसूम के नामकरण का कही उल्लेख नही मिलता परंतु ये बात सिध्द है कि हज़रते फातेमा ज़हरा (स.अ.) की तमाम संतानो का नामकरण परमेश्वर के दूत हज़रते मोहम्मदे मुसतफा (स.अ.व.व) ने ही किया है तथा आपही ने जनाबे ज़हरा की इस चौथी संतान का नामकरण ज़ैनबे सुग़रा एवं उम्मे कुलसूम के रूप मे किया।

  

सर्वगुण सम्पन्न

ज्ञात हो कि आप भी अपने खानदान की तरह ज्ञानी, महान, वीर, चतुर, सुशील एवं स्रष्टी के तमाम गुणो से परिपूर्ण महीला थी।

 

विवाह 

जनाबे उम्मे कुलसूम का विवाह आपके ताऊ के पुत्र औन बिन जाफर बिन अबुतालिब से हुआ था तथा उमर से जो आपके विवाह की बात कही जाती है उसके जवाब मे यही कहना काफी होगा कि रसूले अकरम (स.अ.व.व) की शहादत के बाद इमाम अली (अ.स.) तथा उमर के बीच कभी ऐसे सम्बंध नही रहे कि इमाम अली (अ.स.) अपनी बेटी का विवाह उमर से करें।

  

उम्मे कुलसूम करबला मे

अल्लामा मामक़ानी लिखते है कि जनाबे उम्मे कुलसूम अपने भाई इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ करबला आई थी तथा इमामे हुसैन (अ.स.) की शहादत के बाद आपने अपने भतीजे इमाम सज्जाद (अ.स.) के साथ कुफा व शाम की मुसीबतो को भी बरदाश्त किया ।

इब्ने ज़ियाद मलऊन के दरबार मे आपका खुतबा आज भी किताबो मे मिलता है।

  

स्वर्गवास

रिवायात से मालूम होता है कि जनाबे उम्मे कुलसूम करबला व शाम से लौटने के बाद चार माह एवं दस दिन तक ज़िन्दा रही।

इस हिसाब से आपकी तारीखे वफात तीस जमादी उस्सानी होती है।

 
 

Comments powered by CComment