इमाम अली अ.स. अहले सुन्नत के ख़ुल्फ़ा और इमामों की निगाह में

इतिहासिक शख्सीयते
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 इमाम अली अ.स. ने कुछ इस प्रकार जीवन बिताया कि आज भी पूरा इस्लामी जगत आप के जीवन को याद करता है,


 इमाम अली अ.स. ने कुछ इस प्रकार जीवन बिताया कि आज भी पूरा इस्लामी जगत आप के जीवन को याद करता है, वह बातें जो आप इस लेख में पढ़ेंगे वह अहले सुन्नत के ख़ुल्फ़ा और उन के इमामों और बड़े विद्वानों द्वारा कही गयीं हैं। ...
अबू बकर
 जो किसी ऐसे इंसान को देखना चाहता हो जो पैग़म्बरे इस्लाम स.अ.स. की निगाह में महान, आपका सबसे क़रीबी, आपकी हर समय मदद को तैयार और जीवन में किसी का मोहताज न रहा हो तो वह इस इंसान यानी अली अ.स. को देख ले। (कन्ज़ु-ल-उम्माल, जिल्द 13, पेज 115)
 उमर इब्ने ख़त्ताब
वह (इमाम अली अ.स.) मेरे मौला हैं, इसलिए कि पैग़म्बर ने आदर और सम्मान को अली अ.स. की विलायत में रखा है, इसीलिए वह कहा करता था कि, शरीफ़ और सम्मानित लोगों से मोहब्बत और दोस्ती रखो, और अगर अपना सम्मान बचाना हो तो दुष्ट लोगों से दूरी बनाया रखो । याद रखना अली अ.स. की विलायत के बिना कोई आदर और सम्मान नही पा सकता। (अल-मनाक़िबुल ख़वारज़मी, पेज 97) अली अ.स. की तरह किसे हक़ है कि वह अपने आप पर गर्व करे, अल्लाह की क़सम अगर उनकी तलवार न होती तो इस्लाम की बुनियादों में मज़बूती न आती, और आप इस उम्मत में न्याय क्षेत्र के सब से बड़े विद्वान थे मतलब आप इस्लामी क़ानून के सबसे बड़े जानकार थे । (तबक़ात इब्ने सआद, जिल्द 2, पेज 337) तलहा ( रसूले ख़ुदा का सहाबी)
अल्लामा ख़्वारज़मी ने अबू आमिर अंसारी से हदीस नक़्ल की है कि, मैं जंगे जमल में तलहा के जीवन के अंतिम क्षणों में उसके पास पहुँचा, उसने मुझ से पूछा तुम कौन हो? मैंने कहा अमीरुल मोमेनीन के चाहने वालों में से हूँ, उसने मुझ से हाथ बढ़ाने को कहा, मैंने हाथ बढ़ाया, उसने कहा मैं तुम्हारे हाथ के द्वारा अमीरुल मोमेनीन की बैअत करता हूँ। (मनाक़िबुल-ख़्वारज़मी, पेज 112)
अब्दुल्लाह इब्ने उमर
 मुझे इस दुनिया से इसके अलावा कोई शिकायत और किसी प्रकार का अफ़सोस नहीं है कि मैंने अली अ.स. के साथ दुष्ट टोले (माविया की फ़ौज) के ख़िलाफ़ जंग क्यों नहीं लड़ी। (अल-मुस्तदरक, जिल्द 3, पेज 115) एक व्यक्ति ने इमाम अली अ.स. के बारे में कहा कि मैं अली अ.स. को दुश्मन समझता हूँ, तो अब्दुल्लाह इब्ने उमर ने कहा कि, अल्लाह भी तुझे अली अ.स. की दुश्मनी के कारण अपना दुश्मन समझता है। (अल-मुसनदु-ल-जामेअ, जिल्द 10, पेज 771)
इमाम अबू हनीफ़ा
 अली अ.स. और विरोधियों के बीच जंग में हक़ अली अ.स. के साथ था। (अल-इसाबह, जिल्द 2, पेज 50)
इमाम शाफ़ेई
 एक शख़्स ने किसी मामले में इमाम शाफ़ेई और इमाम अली अ.स. के बीच मतभेद होने की बात कही तो इमाम शाफ़ेई ने जवाब में कहा कि, इस मामले को ख़ुद इमाम अली अ.स. से पता करो, अगर मैंने उनकी बात के विरुध्द कोई बात कही होगी तो मैं अपना माथा ज़मीन पर रगड़ते हुए अपनी ग़लती को मानूँगा और अपनी बात से पलटते हुए इमाम अली अ.स. की बात को मानूँगा। (अल-अइम्मतु-ल-अरबआ, जिल्द 4, पेज 114)
 इमाम अहमद इब्ने हम्बल
अहमद इब्ने हम्बल का बेटा अब्दुल्लाह अपने वालिद से नक़्ल करता है कि, अली इब्ने अबी तालिब अ.स. अहलेबैत में से हैं, और किसी की आप से तुलना नहीं की जा सकती। वह नक़्ल करता है कि, अली अ.स. की फ़ज़ीलत और महानता में यह कहना चाहूँगा कि ख़िलाफ़त और हुकूमत ने अली अ.स. की गरिमा नहीं बढ़ाई बल्कि अली अ.स. ने ख़िलाफ़त क़ुबूल कर के ख़िलाफ़त की गरिमा को बढ़ा दिया। (अल-अइम्मतु-ल-अरबआ, जिल्द 4, पेज 117)
 इमाम बुख़ारी
 बुख़ारी ने अपनी सहीह में इमाम अली अ.स. की फ़ज़ीलत और गुणों को विस्तारपूर्वक बयान किया है, जैसे आप की कुन्नियत, ख़ैबर की जंग में आपके हाथ में अलम देने के बारे में हदीसों को नक़्ल किया है। इसने उमर से हदीस नक़्ल की है कि, निधन के समय पैग़म्बरे इस्लाम, इमाम अली अ.स. से संतुष्ट थे। (सहीह बुख़ारी, जिल्द 5, पेज 22-24)
 इमाम मुस्लिम
इसने भी अपनी किताब सहीह मुस्लिम में इमाम अली अ.स. की फ़ज़ीलत और आपके गुणों के बारे बहुत सारी हदीसें पौग़म्बर से नक़्ल की हैं।  मुस्लिम ने ख़ैबर में इमाम अली अ.स. को अलम देने वाली हदीस को कई रावियों से नक़्ल किया है, तथा रसूले ख़ुदा के अहलेबैत के आदर और सम्मान पर केन्द्रित हदीसों को भी नक़्ल किया है। (सहीह मुस्लिम, जिल्द 7, पेज 120-124)

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