फिक्रो नज़र का बाब खुला है ग़दीर मे
आगाज़ एक सफर का हुआ है ग़दीर में।
दस्ते नबी पे दस्ते खुदा है ग़दीर में
बुत खुदसरी का टूट गोया है ग़दीर में।
मौलाऐ कुल जो मौला बना है ग़दीर में
इब्लीसियत के ज़ख्म लगा है ग़दीर में।
देखो ज़बाने खत्मे रोसुल है गौहर फिशा
कुरआन मुँह से बोल रहा है ग़दीर में।
खैरूल बशर ने अपनी नियाबत के वास्ते
मामूर मुर्तज़ा को किया है ग़दीर में।
महबूबे हक़ ने आयऐ बल्लिग़ की तेग़ से
बातिल की रग को काट दिया है ग़दीर में।
तकमीले दीं की खाब की ताबीर है ग़दीर
ये राज़ आशकार हुआ है ग़दीर में।
कोई अगर नही है हकाएक से आशना
बख्खिन की फिर से कैली सदा है ग़दीर में।
वासिफ हमे खुदा ने इमामत के नाम से
एक मौतबर निज़ाम दिया है ग़दीर में।
लेखकः शायरे अहलैबैत मरहूम जनाब वासिफ आबदी सहारनपुरी
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