लेखकः आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी
हमे हम इस बात को याद रखना चाहिये कि सिवाऐ अइम्मा मासूमीन (अ) सभी इंसान गलती कर सकते हैं और विभिन्न प्रकार की बुराई से दो चार हो सकते हैं?
उसी तरह शैतान भी एक बहुत बड़े गुनाह का शिकार हुआ, वह हिकमते इलाही को हल्का और आदम को सज्दा करने को ग़ैर हकीमाना माना और इस मुकाबले मे अपनी जिद और नाफरमानी को आखिर तक पहुंचा दिया, अगर तास्सुब और हट धर्म का परदा इस की आँखों पर न पड़ा होता और गुरूर और तकब्बुर की सवारी पर सवार न होता, तो पश्चाताप और माफी के दरवाजे इसके लिए खुल गए होते? लेकिन उसके गुरूर और जिद्द ने उसे तन्हा तौबा ही नहीं रोका बल्कि सभी ताकत किसी मे नहीं है!
यही कारण है कि हमारे का मौला अमीरुल मोमेनीन अली बिन अबी तालिब (अ) ने नहजुल बलाग़ा के खुत्बाऐ कासेआ में इसे तकब्बुर और तास्सुब करने वालो के इमाम के नाम से याद फ़रमाया है और हमें नसीहत फ़रमाई है कि हम इसके हाल से सबक हासिल करें कि कैसे हजारों साल इबादत और बन्दगी को एक पल के गुरुर और जिद्द ने खत्म कर दिया और उसे फरीश्तो की सफ से निकाल कर असफला साफेलीन की मनज़िल तक पहुंचा दिया।
हां मेरे प्रिय! अगर तुमसे कोई गुनाह या गलती हो जाऐ तो हिम्मत और हौसले के साथ अपने रब के सामने उसे कुबुल करो और साफ साफ कहो कि परवरदिगारा मुझसे गलती हुई है मुझे माफ और मेरे बहाने को कुबुल कर। मुझे शैतान के बिछाए हुए जाल और बुरे नफ्स रिहाई इनायत कहा, तू सबसे बड़ा रहम करने वाला और गुनाहो को माफ करने वाला है।
इस तरह तुम्हारी यह ऐतेराफ और दुआ तुम्हारे दिल में इतमीनान की कैफियत, सुधार और नज़दीकी ऐ इलाही का रास्ता पैदा करेगी। इसके बाद पिछली गलतीयो के सुधार और जुबरान के बारे में कोशिश करो। याद रखो यह काम इन्सान के मक़ाम को कम नहीं करता बल्कि इसके उलट इसकी कीमत में इज़ाफा करता है।
नज़दीकीऐ इलाही का रास्ता वह है जहां तकब्बुर और मुखालेफत का गुज़र ही नहीं है। कई लोगों ने इस रास्ते पर अपनाने की कोशिश की लेकिन लेकिन अखलाकी जिल्लत ”गुरुर और तकब्बुर“ की बजह से इस रास्ते पर न चल सके और गुमराहीयो के अंधेरे में खो गऐ?
तकब्बुर और मुखालेफत सिर्फ खुद को बनाने के रास्ते में रूकावट नहीं हैं बल्कि ऊँचे इल्मी मकामात, राजनीतिक और सामाजिक सफलता की राह में भी रुकावट साबित होते हैं। ऐसे लोग वहम और ख्यालो की दुनिया में रहते हैं और इसी में दुनिया से विदा हो जाते हैं! आश्चर्य की बात यह है कि वे अपनी विफलता और हार के कारणों को बाहरी जिन्दगी में तलाशते हैं जब कि बदबख़्ती के असली कारण खुद उनके अंदर मोजूद होते हैं?
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