आप का शिशु जब जन्म लेता है तो उसका मस्तिष्क सीखने के लिए तैयार होता है। जब वो आंखें खोलता है, उसकी बुद्धि अपने चारों ओर की चीज़ों को समझने के लिए तैयार हो जाती है। अब आप यह देखें कि इसमें आप उसकी किस प्रकार सहायता कर सकते हैं। शिशु का मस्तिष्क हर समय से अधिक पहले दो वर्षों में विकास करता है और आप की ओर से हर प्रकार का प्रोत्साहन उसके विवास में अधिक सहायक होगा। आप उसकी सहायता करते हैं कि आप के शिशु के स्नायु तन्ज की कोशिकाएं आपस में जुड़ जाएं और उसके जीवन में याद करने की शक्ति में वृद्धि हो। परन्तु वो आप को किसी कठिनाई में डालना नहीं चाहता, उसे केवल आप के प्यार की आवश्यकता होती है।
यहां पर हम बच्चों के मानसिक विकास के लिए कुछ आवश्यक बातों का वर्णन करना चाहें गे।
अपने बच्चे से बातें कीजिए और उसके साथ सम्पर्क स्थापित कीजिए। बच्चे की स्मरण शक्ति में वृद्धि करने वाली सबसे महत्वपूर्ण चीज़ आंखों का सम्पर्क तथा उससे बात करना है। यहां तक कि आप का नवजात शिशु भी आप की बात करने की शैली को सीखता है और बाद में अपनी बोली में उसका अनुसरण करता और अपने मस्तिष्क में उसे संजोकर रखता है।
उससे थोड़ा रुक - रुक कर बात कीजिए ताकि आप का बच्चा बात करने की शैली सीख सके। इस प्रकार वो शीघ्र ही अपने गले से निकली हुई आवाज़ों द्वारा आप की बातों का जवाब देने लगगे गा। आप उससे बातें करते समय जो ध्वनि निकालते हैं उससे वो प्रेम करता है उसे आभास होता है कि आप ने उसे समय दिया। उसके साथ बात करने में आपको आनन्द प्राप्त होता है और यह उसमें आत्म विश्वास की भावना को उजागर करने के लिए बहुत आवश्यक होता है।
अपने शिशु को गोद में उठाइए
जी हां यह बिल्कुल स्वाभविक है कि नवजात शिशु रोए, परन्तु न तो शिशु इस काम से आनन्द प्राप्त करता हैं और न आप ही। इसलिए जब आप यह देखें कि आप का शिशु बहुत अधिक रो रहा है तो उसे गोद में उठा लिजिए, इसप्रकार वो तुरन्त यह समझ लेता है कि उसके परेशान होने से आप भी परेशान होते हैं और इसी कारण वो चुप हो जाता है।
बच्चेके लिए उचित खिलोना ख़रीदिए
खिलौने ख़रीदते समय उसपर लिखी हुई आयु सीमा पर अवश्य ध्यान दीजिए। उसके विकास के चरण के लिए उपयुक्त खिलौने ख़रीदने का बहुत महत्व है। क्योंकि यह खिलौने उसके लिए ख़तरनाक नहीं हैं और इनसे वो अधिक सीखता है। उदाहरण स्वरुप एक ५ महीने के बच्चे के लिए ऐसा खिलौना जो दबाने पर बजता या बोलता हो बेकार है क्योंकि बच्चा उसे दबा नहीं सकता परन्तु इस बच्चे के लिए कपड़े के या बुने हुए रंगारंग खिलौने अत्यधिक उपयुक्त हैं और वो उसे बहुत अच्छे लगते हैं।
अपने बच्चे को सुन्दर चित्रों वाली किताब दिखाइए
बहुत छोटे बच्चे भी किताबों में रंगबिरंगे पशु - पक्षी या वो खिलौने जिनसे वो परिचित है देख कर ख़ुश होते हैं। मोटे गत्रे की या कपड़े की बनी किताबें इसके लिए उपयुक्त हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा बनाया जाता है जिसे बच्चा छू सके या मुहं में डाल सके।
बच्चे को नई चीज़ें दिखाएं
प्रतिदिन उसे घर से बाहर ले जाइए, दुकानों, पार्कों या ऐसे स्थानों पर जहां अन्य माता - पिता अपने बच्चों को ले जाते हैं आप भी उसे ले जाइए। अपने मित्रों के घर मिलने जाइए, बच्चे के साथ बाहर जाइए ताकि वो नई - नई चीज़ें देखे और उनसे परिचित हो सके।
आइए अब थोड़ा सा बड़े बच्चों की बात भी करें। कभी - कभी घर से बाहर बच्चे को किसी आप्रिय घटना का सामना होता है। वो परेशान होता है और जब घर आता है तो माता - पिता उसकी यह दशा देख कर उसपर प्रश्नों की बोछार कर डालते हैं। परन्तु ऐसी स्थिति में अधिक प्रश्न न केवल यह कि बच्चे की परेशानी कम नहीं करते बल्कि स्थिति को और अधिक जटिल बना देते हैं और उस प्रकार बच्चा माता - पिता के सम्मुख प्रतिरोधक स्थिति में आ जाता है। हमें चाहिए कि ऐसी स्थिति में बच्चे को कुछ समय के लिए उसके हाल पर छोड़ दें।
अपने को परिस्थितयों के साथ सन्तुलित करने के लिए हर बच्चे को अलग - अलग समय अवधि की आवश्यकता होती है। क्योंकि हर बच्चे की भावनाएं तथा व्यक्तित्व उसी से विशेष होता है। यह अत्यन्त आवश्यक है कि जिस समय बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा हो कदापि उसका मज़ाक़ न उड़ाएं। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो फिर बच्चा अपने मन की बात आपको नहीं बताएगा।
इस बात को समझ पाना थोड़ा कठिन होता है कि कब बच्चे का बिगड़ा हुआ मूड मज़ाक़ करने से बदल जाएगा।
बातोंमें व्यंग के दो लाभ हैं। पहली बात यह कि बड़े अधिक सन्तोष या बिना तनाव के परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं। दूसरे यह कि बच्चे ऐसी स्थिति में कम प्रतिरोध दिखाते हैं। जब भी इस पद्धति का प्रयोग किया जाए तो ध्यान रखें कि व्यक्ति की मनोदशा के परिवर्तन का प्रयास हो न कि उसके व्यक्तित्व का। बच्चों को नियंजित करने की शक्ति, सदैव माता - पिता को सुरक्षित रखनी चाहिए। इसलिए मज़ाक़ में केवल परिस्थिति को बदलने का प्रयास होना चाहिए और थोड़ी सी अवधि के लिए ही हमें अपनी भूमिका बदलनी चाहिए, इससे माता - पिता की शक्ति को आघात नहीं लगना चाहिए। इसी प्रकार कभी कभी हम ऐसी बातों से बच्चों को दुखी कर देते हैं जिनका हमारे लिए कोई महत्व नही होता है।
अपनेबच्चों के लालन - पालन के प्रति हमें संदैव सर्तक रहना चाहिए और ऐसी कोई बात नहीं करनी चाहिए जो उसके नन्हें से हद्दय को ठेस पहुंचाए। यदि आप चाहते हैं कि आप का बच्चा बड़ा होकर समाज का एक शिष्ट और योग्य नागरिक बने तो जन्म के बाद से ही उसके प्रशिक्षण पर ध्यान देना होगा। वैसे भी हर माता - पिता की कामना यहीं होती है कि अपने बच्चों के विकास को देखें, तो इसके लिए उन्हें भी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
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