और जान लो कि जो कुछ तुम (माल ल़कर) लूटो उन में का पांचवां हिस्सा मख़सूस खुदा और रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों(1) और मिसकीनों और परदेसियों का है अगर तुम ख़ुदा पर और उस (ग़ैबी इमदाद) पर ईमान ला चुके हो जो हमने अपने ख़ास बंदे (मुहम्मद) पर फ़ैसले के दिन (जंगे बदर में) नाज़िल की थी जिस दिन(2) (मुसलमानों और काफ़िरों की) दो जमाअतें बाहम गुथ गई थी और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है।
(ये वह वक़्त था) जब तुम (मैदान जंग में मदीने के) क़रीब के नाके पर थे और वह कुफ़्फ़ार बईद के नाके पर और (क़ाफ़िले के) सवार तुम से नशेब में थे और अगर तुम एक दूसरे से (वक़्त की तक़रुरी का) वादा कर लेते हो तो और वक़्त पर गड़बड़ कर देते मगर (ख़ुदा ने अचानक) तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया ताकि जो बात करनी थी वह पूरी कर दिखाए ताकि जो शख़्स हलाक (गुमराह) हो वह (हक़ की) हुज्जत तमाम होने के बाद हलाक हो और जो ज़िन्दा रहे वह हिदायत की हुज्जत तमाम होने के बाद जि़न्दा रहे और ख़ुदा यक़ीनी सुनने वाला ख़बरदार है (ये वह वक़्त था) जब ख़ुदा ने तुम्हें ख्वाब में कुफ़्फ़ार को कम करके दिखाया था और अगर उन को तम्हें ज़्यादा करते दिखलाता तुम यक़ीनन हिम्मत हार देते और लड़ाई के बारे में आपस में झगड़ने लगते मगर ख़ुदा ने उस (बदनामी से बचाया) उस मे तो शक ही नहीं के वह दिली ख़यालात से वाक़िफ है।
(ये वह वक़्त था) जब तुम लोगों ने मुठभेड़ की तो ख़ुदा ने तुम्हारी आँखों में कुफ़्फ़ार को बहुत कम करके दिखलाया और उन की आँखों में तुम को थोड़ा कर दिया ताकि ख़ुदा को जो कुछ करना मंजूर(1) था वह पूरा हो जाए और कुल बातों का दारोमदार तो ख़ुदा ही पर है ऐ ईमानदारों जब तुम किसी फ़ौज से मुठभेड़ करो तो ख़बरदार अपने क़दम जमाए रहो और ख़ुदा को बहुत याद करते रहो ताकि तुम फ़लाह पाओ और ख़ुदा की और से उसके रसूल की एताअत करो और आपस में झगड़ा न करो वरना तुम हिम्मत हार दोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी और (जंग की तकलीफ़ को) झेल जाओ (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन सब्र करने वालों का साथी है और उन लोग ऐसे न हो जाये जो इतराते हुए और लोगों को दिखलाने के वास्ते अपने घरों से निकल खड़े हुए और लोगों को खुदा की राह से रोकते हैं और जो कुछ भी वह लोग करते हैं ख़ुदा उस पर (हर तरह से अहाता किये हुए हैं
और जब शैतान ने(2) उनकी कारस्तानियों को उमदा कर दिखाया और उन के कान में फूंक दिया के लोगों में आज कोई ऐसा नहीं जो तुम पर ग़ालिब आ सके- और मैं तुम्हारा मददगार हूँ फिर जब दोनों लश्कर मुक़ाबिल हुए तो अपने उलटे पाओं भाग निकला और कहने लगा कि न तो तुम से बिल्कुल अलग हूं मैं तो वह चीज़े देख रहा हूँ जो तम्हें नहीं सूझती मैं तो ख़ुदा से डरता हूँ और ख़ुदा बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।
(ये वह वक़्त था) जब मुनाफ़ेक़ीन और जिन लोगों के(1) दिल में (कुफ़्र का) मर्ज़ है कर रहे थे के उन मुसलमानों को उनके दीन ने धोके में डाल रखा (के इतराते फ़िरते हैं) हालाँकि जो शख़्स ख़ुदा पर भरोसा करता है (वह ग़ालिब रहता है क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन ग़ालिब और हिकमत वाला है और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफ़िरों की जान निकाल लेते थे और उन के रुख़ और पुश्त पर (कोड़े) मारते जाते थे और (कहते थे के) अज़ाब जहन्नुम के मज़े चखो ये सज़ा उसकी है जो तुम्हारे हाथों ने पहले किया कराया है और ख़ुदा बंदों पर हरगिज़ जुल्म नहीं किया करता (उन लोगों की हालत) क़ौमे फि़रऔन और उनके लोगों की सी है जो उनसे पहले थे और ख़ुदा की आय़तों से इंकार करते थे तो ख़ुदा ने भी उनको गुनाहों की वजह से उन्हें ले डाला बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त और बहुत सख़्त अज़ाब देने वाला है यह सज़ा इस वजह से (दी गयी) कि जब कोई नेअमत ख़ुदा किसी क़ौम को देता है तो वक़्ते के वह लोग ख़ुद अपनी क़ल्बी हालत (न) बदले ख़ुदा भी उसके नहीं बदलेगा और ख़ुदा तो यक़ीनी (सबकी सुनता) और सब कुछ जानता है (उन लोगों की हलत) क़ौमे फिरऔन और उन लोगों की सी है जो उनसे पहले थे और अपने परवरदिगार की आयतों को झुटलाया था तो हमने भी उनके गुनाहों की वजह से उनको हलाक कर डाला और फ़िरऔन की क़ौम को डुबा मारा और (ये) सब के सब ज़ालिम थे इसमें शक नहीं के ख़ुदा के नज़दीक जानवरों1) मे कुफ़्फ़ार सबसे बदतरीन तो (बावजूद उसके) फिर ईमान नहीं लाते।
ऐ रसूल जिन लोगों(2) से तुमने अहदो पैमान किया था फिर वह लोग अपने अहद को हर बार तोड़ डालते हैं और (फिर खु़दा से) नहीं डरते तो अगर वह लड़़ाई में तुम्हारे हत्थे चढ़ जाए तो (ऐसी शख़्स गोशुमली दो के) उनके साथ साथ उन लोगों को भी तितर बितर कर दो जो उनके पुश्त पर हो ताकि ये इबरत हासिल करे और अगर तुम्हें किसी क़ौम की ख़यानत (अहद शिक्नी) का ख़ौफ़ हो तो तुम भी बराबर उनका अहद उन्हीं की तरह से फै्क़ मोर अहद शिकन के साथ अहद शिकनी कर दिया ख़ुदा हरगिज़ दग़ाबाज़ों को दोस्त नहीं रखता और कुफ़्फ़ार ये न ख़्याल करें के वह (मुसलमानों से) आगे बढ़ निकले (क्योंकि) वह हरगिज़ (मुसलमानो को) हरा नहीं सकते और मुसलमानों उन कुफ़्फार के (मुक़ाबले के) वास्ते जहा तक तुम से हो सके (अपने बाज़ू के) ज़ोर से बंधे हुए घोड़े से (लड़ाई का सामान) मोहय्या करो उससे ख़ुदा के दुश्मन और अपने दुश्मन और उसके सिवा दूसरे लोगों पर भी अपनी धाक बिठा लोगे जिन्हें तुम नहीं जानते हो मगर ख़ुदा तो उनको जानता है और खु़दा की राह में तुम जो कुछ भी खर्च करोगे वह तुम पूरा पूरा भर पाओगे और तुम पर किसी तरह ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।
और अगर ये कुफ़्फ़ार सुलाह की तरफ़ माएल हो तो तुम भी उसकी तरफ माएल हो और ख़ुदा पर भरोसा रखो (क्योकि) वह बेशक (सब कुछ) सुनता जानता है और अगर वह लोग तुम्हें फ़रेब देना चाहे तो (कुछ परवाह नहीं) ख़ुदा तुम्हारे वास्ते यक़ीनी काफी है।
(ऐ रसूल) वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी ख़ास(1) मदद् और मोमीनीन से तुम्हारी ताईद की और उसी ने उन मुसलमानों के दिलों में बाहम ऐसी उल्फ़त पैदा कर दी के अगर तुम जो कुछ भी ज़मीन में है सब का सब खर्च कर डालते हैं तो भी उनके दिलों में ऐसी उल्फ़त पैदा न कर सकते मगर ख़ुदा ही था जिसने उनमें बाहम उल्फ़त पैदा की बेशक वह ज़बरदसस्त हिक़म वाला है।
ऐ रसूल तुमको बस ख़ुदा और जो मोमीनीन तुम्हारे ताबे फ़रमान है काफ़ी है ऐ रसूल तुम मोमीनीन को जेहाद के वास्ते अमादा करो (वह घबराए नहीं ख़ुदा उनसे वादा करता है के) अगर तुम लोगों में साबित क़दम रहने वाले बीस भी होंगे तो वह दो सौ (क़ाफ़िरों) पर ग़ालिब आ जाएंगे और अगर तुम लोगों में से (ऐसे) सौ होगे तो हज़ार (काफ़िरों) पर ग़ालिब आ जाएंगे इस सबब से के ये लोग नासमझ हैं अब खुदा ने तुम से (अपने हुक्म की सख़्ती तख़फ़ीफ़ कर दी और देख लिया के तुम में यक़ीनन कमज़ोरी है तो अगर तुम लोगों में से साबित कदम रहने वाले सौ होगें तो दो सौ (काफ़िरों) पर ग़ालिब रहेंगे और अगर तुम लोगों में से (ऐसे) एक हज़ार होंगे तो ख़ुदा के हुक्म से दो हज़ार (काफ़िरों) पर ग़ालिब रहेंगे और (जंग की तक्लीफ़ों को) झेल जाने वालों का खु़दा साथी है कोई(1) नबी जब के रुअ ज़मीन पर (काफिरों का) खून न बहाए उसके यहां क़ैदियों का रहना मुनासिब नहीं तुम लोगों तो दुनियां के साज़ व समान के ख़्वाहा हो और ख़ुदा (तुम्हारे लिए) आख़ेरत की (भलाई) का ख़्वाहा है और ख़ुदा ज़बर्दस्त हिकमत वाला है।
और अगर ख़़ुदा की तरफ़ से पहले ही (उसकी) माफ़ी का हुक्म न आ चुका होता तो तुम ने जो (बदर के क़ैदियों के छोड़ देने के बदले) फ़िदया(1) लिया था उस की सज़ा में तुम पर बड़ा अज़ाब नाज़िल होकर रहता तो (ख़ैर जो हुआ सो हुआ) अब तुमने जो माले ग़नीमत(2) हासिल किया है उसे खाओ (और तुम्हारे लिचे) हलाल तय्यब है और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है ऐ रसूल जो क़ैदी तुम्हारे कब्ज़े में हैं उनसे कह दो के अगर तुम्हारे दिलों में नेकी देखेगा तो जो (माल) तुम से छीन लिया है उससे कहीं बेहतर तुम्हें(3) अता फरमाएगा और तुम्हें बख़्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
और अगर ये लोग तुमसे फ़रेब करना चाहते हैं ख़ुदा से पहले ही फ़रेब कर चुके हैं तो (उसकी सज़ा में) ख़ुदा ने उन पर तुम्हें क़ाबू दे दिया और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफ़दार हिकमत वाला है जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और हिज़रत की और अपने अपने जान व माल से ख़ुदा की राह मे जेहाद किया और जिन लोगों ने हिजरत करने वालों को जगह दी और हर (तरह) उन की ख़बरगीरी की यहीं लोग एक(4) दूसरे के (बाहम) सरपरस्त दोस्त हैं और जिन लोगों ने ईमान तो कूबूल किया और हिजरत नहीं की तो तुम लोगों को इतनी सरपरस्ती से कुछ सरोकार नहीं यहां तक के वह हिज़रत इख़्तयार करें और (हां) मगर दीनी अम्र में तुमसे मदद के ख़्वाहा हो तो तुम पर (उनकी) मदद करनी लाज़िम व वाजिब है मगर उन लोगों के मुक़ाबले में (नही) जिन में और तुममें बाहम (सुलह का) अहदो पैमान है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा (सबको) देख रहा है और जो लोग काफ़िर है वह भी (बाहम) एक दूसरे के सरपरस्त हैं अगर तुम (इस तरह) मदद न करोगे तो रुए ज़मीन पर फ़ितना बरपा हो जाएगा और बड़ा फ़साद होगा हिजरत की और ख़ुदा की राह में बड़े भिड़े और जिन लोगों ने (ऐसे नाजुक वक़्त में मुहाजेरीन) को जगह दी और उन को हर तरह ख़बरगीरी की यही लोग सच्चे ईमानदार हैं उन्हीं के वास्ते मग़फ़ेरत और इज़्ज़त व आबरू वाली रोज़ी है।
और जिन लोगों ने (सुलह हुदैबिया के) बाद ईमान कुबूल किया और हिजरत की, और तुम्हारे साथ मिलकर जेहाद किया वह लोग भी तुम्हीं में से हैं और साहेबाने क़राबात ख़ुदा की किताब में बाहम एक दूसरे के (बनिस्बत औरों के) ज़्यादा हक़दार हैं बेशक ख़ुदा हर चीज़ से खूब वाक़िफ़ है।
सूरे: तौबा
सूरे: तौबा (1) मदीने में नाज़िल हुआ और इसमें 126 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
(ऐ मुसलमानों)(2) जिन मुशरिकों से तुम लोगों ने सुलह का अहदो पैमान किया था अब ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ़ से उनसे (एकदम) बेज़ारी(3) है तो (ऐ मुशरिकों) बस तुम चार महीने (ज़ी क़अदाह़, ज़िलहिज़ मुहर्रम, रजब) तो (च़ैन से बे-ख़तर) रूए ज़मीन में सैर व सियाहत कर लो और ये समझे रहो के तुम (किसी तरह) ख़ुदा को आज़िज़ नहीं कर सकते और ये भी के ख़ुदा काफ़िरों को ज़रुर रुसवा करके रहेगा और ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ़ से(4) हज्जे अकबर के दिन (तुम) लोगों को मनादी की जाती है कि ख़ुदा और उसका रसूल मुशरिकों से बेज़ार (और आलम) है तो (मुशरकों) अगर तुम लोगों ने (अब भी) तौबा की तो तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है और अगर तुम लोगों ने (उससे भी) मुंह मोड़ा तो समझ लो के तुम लोग ख़ुदा को हरगिज़ आजिज़ नहीं कर सकते।
और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनकी दर्दनाक अज़ाब की खुशख़बरी दे दो मगर (हां) जिन मुशरिकों से तुमने अहदो पैमान किया था फ़िर उन लोगों ने भी कभी कुछ तुमसे (वफ़ाए अहद में) कभी नहीं की और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो तो उन के अहदे पैमान को जितनी मुद्दत के वास्ते मुक़र्रर किया है पूरा कर दो ख़ुदा परहेज़गारों को यक़ीनन दोस्त रखता है फ़िर जब हुरमत के चारों महीने गुज़र जाएं तो मुशरिकों को जहां पाओ (वे ताअम्मुल) क़त्ल करो और उनको गिरफ़्तार कर लो और उनको क़ैद करो और पर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आए और नमाज़ पढ़ने लगे और ज़कात दें तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन(1) में से कोई तुम से पनाह मांगे तो उसको पनाह दो यहां तक के वह ख़ुदा का कलाम सुन ले फ़िर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुंचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं (जब मुशरिकीन) ने खुद अहद शिकनी की तो उन का कोई अहदो पैमान ख़ुदा के नज़दीक और उसके रसूल के नज़दीक क्योंकर (क़ायम) रह सकता है मगर जिन लोगों से तुमने ख़ाना ए काबा के पास मोआहेदा किया था तो वह लोग (अपना अहद व पैमान) तुम से क़ायम रखना चाहे तो तुम भी उन से (अपना अहद) क़ायम रखो बेशक ख़ुदा (बद एहदी से) परहेज़ करने वालों को दोस्त रखता है (उनका क्योंकर (रह सकता है) जब (उनकी ये यह हालत है) कि अगर तुम पर ग़ल्बा पा जाए तो तुम्हारे में ना तो रिश्ता नाते ही का लिहाज़ करेंगे और न अपने क़ौल व इक़रार का ये लोग तुम्हें अपनी ज़बानी (जमा ख़र्च से) खुश कर देते हैं हालाँकि उनके दिल नहीं मानते और उनमें के बहुतसे तो बदचलन हैं और उन लोगों ने ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फ़ायदे) हासिल करके (लोगों को) उसकी राह से रोक दिया बेशक ये लोग जो कुछ भी करते थे बहुत ही बुरा है ये लोग किसी मोमिन के बारे में न तो रिश्ता नाते ही का लिहाज़ करते हैं और न क़ौल व इक़रार का और (वाक़ई) यही लोग ज़्यादती करते हैं तो तुम्हारी देनी भाई है और हम अपनी आयतों को वाक़िफकार लोगों के वास्ते तफ़्सीलन बयान करते हैं और अगर ये लोग अहद कर चुकने के बाद अपनी क़स्में तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुम को ताना दें तो तुम कुफ़्र के सर बर आवराह लोगों से ख़ूब लड़ाई करो(1) उनकी क़स्मों का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी शरारत से) बाज़ आऐं
(मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़स्मों को तोड़ ड़ाला और रसूल को निकाल बाहर करना (अपने दिल में) ठान लिया था और तुम से पहले पहल छेड़ भी उन्हों ही ने शुरू की थी क्या तुम उनसे डरते हो तो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा उन से कहीं बढ़कर तुम्हारे डरने के क़ाबिल हैं उनसे (वे ख़ौफ़ व ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रुसवा करेगा और तुम्हें उन पर फ़तेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे ठंडे करेगा और उन मोमिनों के दिल की कुदुरतें जो (कुफ़्फ़ार से पहुंची है) दफ़ा कर देगा और ख़ुदा जिस की चाहे तौबा कुबूल करे और ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़दार (और) हिकमत वाला है क्या तुमने ये समझ लिया है कि तुम (यूं ही) छोड़ दिए जाओगे और अबी तक तो ख़ुदा ने उन लोगों को मुमताज़ किया ही नहीं जो तुम में के (राहे ख़ुदा में) जिहाद करते हैं और ख़ुदा और उसके रसूल और मोमीनीन के सिवा किसी को अपना राज़दार दोस्त नहीं बनाते और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उससे बाख़बर है मुश्रकीन(1) का ये काम नहीं के जब वह अपने कुफ़्र का खुद इक़रार करते हैं तो ख़ुदा की मस्जिदों को (जाकर) आबाद करें यही वह लोग हैं जिनका किया कराया सब अकारत हुआ और ये लोग हमेशा जहन्नुम में रहेंगे ख़ुदा की मस्जिदों को बस सिर्फ़ वही शख़्स (जाकर) आबाद कर सकता है जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान लाए और नमाज़ पढ़ा करे और ज़कात देता रहे और ख़ुदा के सिवा (और) किसी से न डरे तो अंक़रीब यही लोग हिदायत याफ़्ता लोगों के से हो जाएंगे।
क्या तुम(1) लोगों ने हाजियों की सक़्काई और मस्जिद उल हराम ख़ाना ए काबा की आबादी को उस शख़्स के हमसर बना दिया है जो खुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान लाया और ख़ुदा की राह में जेहाद किया ख़ुदा के नज़दीक तो ये लोग बराबर नहीं और ख़ुदा ज़ालिम लोगों की हिदायत नहीं करता है जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और (ख़ुदा के लिये) हिजरत इख़्तेयार की और अपने मालों से और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जेहाद किया वह लोग ख़ुदा के नज़दीक दर्जे में कहीं पढ़ कर हैं और यही लोग (आला दरजे पर) फ़ाएज़ होने वाले हैं उनका परवरदिगार उन को अपनी मेहरबानी और खुशनूदी और ऐसे (हरे भरे) बागों की ख़ुशख़बरी देता है।जिसमें उनके लिये दाएमी ऐश व (आराम) होगा और ये लोग उन बाग़ों में हमेशा अबद अल आबाद तक रहेंगे बेशक ख़ुदा के पास तो बड़ा अज्र (व सवाब) है
ऐ ईमानदारों अगर तुम्हारे (मां) बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र को तरजीह देते हो तो तुम उन को (अपना) ख़ैर ख्वाह न समझो और तुम में जो शख़्स उन से उल्फ़त रखेगा तो यही लोग ज़ालिम हैं (ऐ रसूल) तुम कहदो(1) के तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बंद और तुम्हारी बीवियाँ और तुम्हारे कुन्बे वाले और वह माल जो तुम ने कमा के रख छोड़े हैं और यह तिजारत के जिस के मन्दा पड़ जाने का तुम्हे अन्देशा है और वह मकानात जिन्हें तुम पसंद करते हो अगर तुम्हें ख़ुदा से और उस के रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादा अज़ीज़ है तो तुम ज़रा ठहरो यहां तक कि ख़ुदा अपना हुक्म (अज़ाब) मौजूद करे और ख़ुदा नाफ़रमान लोगों की हिदायत नहीं करता।
(मुसलमानों) ख़ुदा ने तुम्हारी बहुतसे मक़ामात पर (ग़ैबी) इमदाद की और (ख़ास कर) जंगे हुनैन(2) के दिन जब तुम्हें अपनी कसरत (तादाद) ने मग़रूर कर दिया था फ़िर वह कसरत तुम्हे कुछ भी काम न आई और (तुम ऐसे घबराये के) ज़मीन बावजूद इस वुसअत के तुम पर तंग हो गई तुम पीठ फेरकर भाग निकले तब ख़ुदा ने अपने रसूल पर और मोमिनीन पर अपनी (तरफ़ से) तसकीन नाज़िल फरमाई और (रसूल की ख़ातिर से) फ़रिश्तों के लश्कर भेजे जिन्हें तुम देखते भी नहीं थे और कुफ़्फ़ार व अज़ाब नाज़िल फ़रमाया और काफ़िरों की यही सज़ा है फिर उसके बाद ख़ुदा जिसकी चाहे तौबा(1) कुबूल करे और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है ऐ ईमानदारों मुशरिकीन तो(2) निरे नजिस हैं तो अब वह इस साल के बाद मस्जिदे हराम (ख़ाना ऐ काबा) के पास फ़िर न फ़टकने पाएं और अगर तुम (उन से जुदा होने में) फ़क़रों फ़ाक़ा(3) से ड़रते हो तो अंक़रीब ही ख़ुदा तुमको अगर चाहेगा तो अपने फ़ज़्ल से (व क़रम) से ग़नी कर देगा बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़ कार हिकमत वाला है।
अहले किताब में जो लोग न तो (दिल से) ख़ुदा ही पर ईमान रखते हैं और न रोज़े आख़ेरत पर और न ख़ुदा और उसके रसूल की हराम की हुई चीज़ों को हराम समझते है और न सच्चे दीन ही को इख़्तेयार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहां तक के वह लोग ज़लील होकर (अपने) हाथ से जज़या दे यहूद तो कहते हैं कि उज़ैर ख़ुदा के बेटे हैं और नसारा कहते हैं कि मसीह (ईसा) ख़ुदा के बेटे हैं ये तो उनकी बात है और (वह खुद उन्हीं के मुंह से ये लोग भी उन्हीं काफ़िरों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं ख़ुदा उसको क़त्ल (तहस नहस) करके (देखो तो) कहा से कहा भटक जा रहे हैं उन लोगों ने तो अपने ख़ुदा को छोड़ कर अपने आलिमों(1) को और अपने ज़ाहिदों को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालाँकि उन्हें सिवाए उसके और हुक्म ही नहीं दिया गया के खुदाए यक्ता की इबादत करे उसके सिवा और कोई क़ाबिल परस्तिश नहीं।
जिस चीज़ को ये लोग उसका शरीक बनाते हैं वह उससे पाक व पाकीज़ा हैं ये लोग चाहते हैं कि अपने मुंह से (फूंक मार कर) ख़ुदा के नूर को बुझा दें और ख़ुदा उसके सिवा कुछ मानता ही नहीं के अपने नूर को पूरा ही कर रहे अगर चे क़ुफ़्फ़ार बुरा माना करें तो वही तो (वह ख़ुदा) है कि जिस ने अपने रसूल (मुहम्मद) को हिदायत और सच्चे दीन के साथ (मबऊस करके) भेजा ताकि उसको तमाम(2) दीनों पर ग़ालिब करें अगर ये मुशरकीन बुरा माना करें ऐ ईमानदारों इमसें शक नहीं के (यहूद व नसारा के) बहुतसे आलिम ज़ाहिद लोगो के माले नहक़ (नाहक़) चख जाते हैं और (लोगों को) ख़ुदा की राह से रोकते हैं और जो लोग सोना और चांदी(1) जमा करते जाते हैं और उसको ख़ुदा की राह में खर्च नहीं करे तो (ऐ रसूल उन को दर्दनाक अज़ाब की खुशख़बरी सुना दो जिस दिन वह (सोना चांदी) जहन्नुम की आग मे गर्म (और लाल) किया जाएगा फिर उससे उनकी पेशानियां और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएगी (और उनसे कहा जाएगा) ये वह हैं जिसे तुम ने अपने लिए (दुनियां में) जमा करके रखा था तो (अब) अपने जमा किए का मज़ा चखो
इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा ने जिस दिन आसमान व ज़मीन को पैदा किया (उसी दिन से) ख़ुदा के नज़दीक ख़ुदा की किताब (लौहे महफूज़) में महीनों की गिनती बारह महीने हैं उनमें से चार महीने (अदब व) हुरामत के हैं यही दीन सीधी राह है तो उन चार महीनों में तुम अपने ऊपर (कुश्त व ख़ून करके) ज़ुल्म न करो और मुशरेकीन जिस तरह तुमसे सब के सब मिल कर लड़ते हैं तुम भी उसी तरह सब के सब मिल कर उन से ल़ड़ो और ये जान लो के खुदा तो यक़ीनन परहेज़गारों के साथ है।
महीनों(2) का आगे पीछे कर देना भी कुफ्र ही की ज्यादती है के उनकी बदौलत कुफ़्फार (और) बहक जाते हैं एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं ताकि ख़ुदा ने जो (चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और खुदा की हराम की हुई चीज़ को हलाल कर लें उन की बुरी (बुरी) कारस्तानियां उन्हें भली कर दिखाई गई हैं और ख़ुदा काफिर लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता ऐ(1) ईमानदारों तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि ख़ुदा की राह में (जिहाद के लिए) निकलो तो तुम लध्धड़ हो के ज़मीन की तरफ़ झुक पड़ते हो क्या तुम आख़ेरत के ब-निस्बत दुनियां की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी को पसन्द करते हो तो (समझ लो के) दुनियावीं ज़िन्दगी का साज़ व सामान (आख़ेरत के) ऐश व आराम के मुक़ाबले में बहुत ही थोड़ा है अगर (अब भी) तुम न निकलोगे तो ख़ुदा तुम पर दर्दनाक अज़ाब नाज़िल फरमाएगा और (ख़ुदा कुछ मजूबर तो है नहीं) तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है।
अगर तुम इस रसूल की मदद न करोगे तो (कुछ परवाह नहीं ख़ुदा मददगार है) उसने तो अपने रसूल की उस वक़्त मदद की जब उसकी कुफ़्फ़ार (मक्का) ने (घर) से निकाल बाहर किया उस वक़्त सिर्फ़ (दो आदमी थे) दूसरे रसूल थे जब(1) वह दोनों ग़ारे (सूर) मे थे जब अपने साथी को (उसकी गिरया व ज़ारी पर) समझा रहे थे कि घबराओ नहीं ख़ुदा यक़ीनन हमारे साथ है तो ख़ुदा ने उन पर अपनी (तरफ से) तकसीन नाज़िल फरमाई और (फ़रिश्तों के) ऐसे लश्कर से उन की मदद की जिन को तुम लोगों ने देखा तक नही और खुदा ने काफ़िरों की बात नीची कर दिखाई और खुदा ही का बोल बाला है और ख़ुदा तो ग़ालिब हिकमत वाला है
(मुसलमानों)(2) तुम हलके फुलके (नहत्थे) हो या भारी भरकम (मोसल्लह) बहरहाल जब तुमको हुक्म दिया जाए फ़ौरन चल खड़े हो और अपनी जानों से और अपने मालों से ख़ुदा की राह में जेहाद करो अगर तुम (कुछ जानते हो तो) समझ लो कि यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है।
(ऐ रसूल) अगर सरेदस्त फ़ाएदा और सफ़र आसान होता तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते मगर उन पर मसाफ़त की मशक़्कत तूलानी हो गयी और अगर पीछे रह जाने की (वजह पूछोगे) तो यह लोग फ़ौरन ख़़ुदा की क़समें खायेंगे कि अगर हम में सकत होती तो हम भी ज़रुर तुम लोगों के साथ ही चल ख़ड़े होते (ये लोग झूटी कसमें ख़ाकर अपनी जान हलाक किये डालते हैं और ख़ुदा तो जानता है कि ये लोग बेशक झूटे(1) हैं।
(ऐ रसूल) ख़ुदा तुम से दरगुजर फ़रमाए तुमने उन्हें पीछे रह जाने की इजाज़त ही क्यों दी ताकि (तुम अगर ऐसा न करते तो) तुम पर सच बोलने वाले (अलग) ज़ाहिर हो जाते और तुम झूटों को (अलग) मालूम कर लेते (ऐ रसूल) जो लोग (दिल से) खुदा और रोज़े आख़रत पर ईमान रखते हैं वह तो अपने माल से और अपनी जानों से जेहाद (ऩ) करने की इजाज़त मांगने के नहीं (बल्कि वह खुद जाएंगे) और ख़ुदा परहेज़गारों से खूब वाकि़फ़ है (पीछे रह जाने की) इजाज़त तो बस वही लोग मांगेगे जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते और उनके दिल (तरह तरह) के शक कर रहे हैं तो वह अपने शक में डावाँडोल हो रहो हें (कि क्या करें क्या न करें) और अगर ये लोग (घर से) निकलने की ठान लेते तो कुछ न कुछ सामान तो करते मगर (बात ये है) के ख़ुदा ने उन के साथ भेजने को नापसंद किया तो उनको काहिल बना दिया और (गोया) उन से कह दिया गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे (मक्ख़ी मारते) रहो अगर ये लोग तुममे (मिलकर) निकलते भी तो बस तुम में फ़साद ही बरपा कर देते और तुम्हारे हक़ में फ़ितना अंगेज़ी की गरज़ से तुम्हारे दरमियान (इदर उधर) घो़ड़े दौडते फ़िरते और तुम में से उनके जासूस भी हैं (जो तुम्हारी उन से बातें बयान करते हैं) और खुदा शरीरों से खूब वाक़िफ़ है।
(ऐ रसूल) उसमें तो शक नहीं के उन लोगो ने पहले(1) ही फ़साद डालना चाहा था और तुम्हारी बहुत सी बातें उलट पूलट की यहां तक कि हक़ आ पहुंचा और ख़ुदा ही का हुक्म ग़ालिब रहा और उनको नागवार होता ही रहा उन लोगों में से बाज़ ऐसे भी है जो साफ़ कहते हैं के मुझे तो (पीछे रह जाने की) इजाज़त दीजिए और मुझे बला में न फऱसाइये (ऐ रसूल) आगाह होके ये लोग खुद बला में (औंधे मुंह) गिर पड़े और जहन्नुम तो काफ़िरों को यक़ीनन घेरे हुए ही है तुम को कोई फ़ाएदा(2) पहुँचा तो उनको बुरा मालूम होता है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो यह लोग कहते हैं के (उसी वजह से) हमने अपना काम पहले ही ठीक कर लिया था और (यह कह कर) खुश (तुम्हारे पास से उठकर) वापस लौटते हैं
(ऐ रसूल) तुम कह दो के हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नहीं सकती मगर वही जो ख़ुदा ने हमारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है वही हमारा मालिक है और ईमानदारों को चाहिए भी के खु़दा ही पर भरोसा रखें (ऐ रसूल) तुम मुनाफ़िकों से कह दो के तुम हमारे वास्ते (फताह या शहादत) दो भलाईयों में से एक के (ख़्वाह मख़्वाह) मुन्तज़िर ही हों और हम तुम्हारे वास्ते उस के मुन्तज़िर हैं के ख़ुदा तुम पर (ख़ास) अपने यहाँ से कोई अज़ाब नाज़िल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ (साथ) इन्तेज़ार करते हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो के तुम लोग ख़्वाह खुशी से ख़र्च करो या मजबूरी से तुम्हारी ख़ैरात तो कभी क़बूल की नहीं जाएगी तु्म यक़ीनन बदकार लोग हो और उन की ख़ैरात के क़बूल किया जाने में और कोई वजह माने नहीं मगर यही के उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की और नमाज को आते भी हैं तो अलकसाए हुए ख़ुदा की राह में ख़र्च करते भी हैं तो बददिली से
(ऐ रसूल) तुम को न तो उनके माल हैरत में डाले और न उनकी औलाद (क्योंकि) ख़ुदा तो ये चाहता है के उनको आल व माल की वजह से दुनियां की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी (ही) में मुब्तेलाए अज़ाब करें और जब उनकी जाने निकले तब भी वह काफ़िर (के काफ़िर ही) रहे और (मुसलमानों) ये लोग ख़ुदा की क़स्में खाएंगे कि वह तुम ही के हैं हालाँकि वह लोग तुम में के नहीं हैं ये लोग बुज़दिल के अगर कहीं ये लोग पनाह की जगह (क़िला) या (छिपने के लिए) क़ार या घुस बैठने की कोई (और) जगह पा जाए तो उसी तरह रस्सियाँ तोड़ते हुए भाग जाएं
(ऐ रसूल) उन में से कुछ तो ऐसे(1) भी हैं जो तुम्हें ख़ैरात (की तक़सीम) में (ख़्वाह मख़्वाह) इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उन में से उन्हें कुछ (माकूल मिक़दार) दे दिया गया तो ख़ुश हो गए और अगर (उनकी मर्जी़ के मुवाफ़िक़) उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फ़ौरन ही बिगड़ बैठे और जो कुछ ख़ुदा ने और उस के रसूल ने उन को अता फ़रमाया था अगर ये लोग उस पर राज़ी रहते और कहते के ख़ुदा हमारे वास्ते काफ़ी है (उस वक़्त नहीं तो) अन्क़रीब ही ख़ुदा हमें अपने फ़ज़्ल व करम से और उस का रसूल ही देगा हम तो यक़ीनन अल्लाह की ही तरफ़ लौ लगाऐ बैठे है।
(तो उनका क्या कहना था) ख़ैरात तो बस ख़ास फ़कीरों का हक़ है और मुहताजों का और उस (ज़कात वग़ैरह) के कारिन्दों का और जिन की तालीफ़ क़ल्ब की गई है (उन का) और (जिन की) गर्दनों में (गुलामी का फंदा पड़ा है उन का) और कर्ज़दारों का (जो ख़ुद से अदा नहीं कर सकते) और ख़ुदा की राह (जेहाद) में और परदेसियों की किफ़ालत में (खर्च करना चाहिए ये हकूक) ख़ुदा की तरफ़ से मुक़र्रर किए हुए हैं और ख़ुदा बड़ा वाकिफ़दार हिक्मत वाला है।
और उन में से बाज़ ऐसे भी हीं जो (हमारे) रसूल को सताते हैं और कहते हैं के बस ये कान ही (कान) है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (कान तो हैं मगर) तुम्हारी भलाई सुनने के कान हैं कि ख़ुदा पर ईमान रखते हैं और मोमीनीन को (बातों) का यक़ीन रखते हैं और तुम मे से जो लोग ईमान ला चुके हैं उन क लिए रहमत और जो लोग रसूले ख़ुदा को सताते हैं(1) उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
(मुसलमानों) ये लोग तुम्हारे सामने ख़ुदा की क़स्में ख़ाते हैं ताकि तुम्हें राज़ी कर लें हालाँकि अगर ये लोग सच्चे ईमानदार है तो ख़ुदा और उस का रसूल कही ज़्यादा हक़दार है के उस को राज़ी रखे क्या ये लोग ये भी नहीं जानते के जिस शख़्स ने ख़ुदा और उस के रसूल की मुख़ालेफ़त की तो उस में शक ही नहीं कि उसके लिए जहन्नुम की आग (तैय्यार रखी) है जिस में वह हमेशा (जल्ता भुनता) रहेगा यही तो बड़ी रुसवाई है।
मुनाफ़ेक़ीन उस बात से डरते हैं के (कहीं ऐसा न हो) उन मुसलमानों पर (रसूल की मारेफत) कोई सूरः नाज़िल हो जाए जो उन को जो कुछ उन मुनाफ़ेक़ीन के दिल में है बता दे (ऐ रसूल) तुम कह दो के (अच्छा) तुम मस्ख़रापन किए जाओ जिस से तुम डरते हो ख़ुदा उसे ज़रुर जाहिर कर देगा और अगर तुम उन से पूछो (के ये हरकत थी) तो ज़रुर यूं ही कहेंगे के हम तो यूं ही बातचीत (दिल्लगी) बाज़ी कर रहे थे तुम कहो कि हाए क्या तुम ख़ुदा से और उस की आयतों से और उस के रसूल से हंसी कर रहे थे अब बातें न बनाओ हक़ तो ये है कि तुम ईमान लाने के बाद काफ़िर हो बैठे अगर हम तुम में से कुछ लोगों से दरगुज़र भी करे तो हम कुछ लोगों को सज़ा ज़रुर देंगे इस वजह से के ये लोग कुसूरवार ज़रुर हैं मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक औरतें एक दूसरे के बाहम जिन्स हैं कि (लोगों को) बुरे काम का तो हुक्म करते हैं और नेक कामों से रोकते हैं और अपने हाथ (राहे ख़ुदा में खर्च करने से) बंद रखते हैं (सच तो यूं है के) ये लोग ख़ुदा को भूल बैठे तो ख़ुदा ने भी (गोया) उन्हें भुला दिया बेशक मुनाफ़ेक़ीन बदचलन हैं।
मुनाफ़िक़ मरदों और मुनाफ़िक़ औरतों और काफ़िरों से ख़ुदा ने जहन्नुम की आग का वादा किर लिया है कि ये लोग हमेशा उसी में रहेंगे और यही उन के लिये काफ़ी है और ख़ुदा ने उन पर लानत की है और उन्हीं के लिय दाएमी अज़ाब है (मुनाफिक़ों तुम्हारी तो) उन की मस्ल है जो तुम से पहले थे वह लोग तुम से कुव्वत में (भी) ज़्यादा थे और माल औलाद में (भी) कहीं बढ़ कर थे तो वह अपने हिस्से से भी बहरायाब हो चुके तो जिस तरह तुम से पहले लोग अपने हिस्से से फ़ाएदा उठा चुके हैं उसी तरह तुम ने अपने हिस्से से फ़ाएदा उठा लिया और जिस तरह वह बातिल में घुसे रहे उसी तरह तुम भी घुसे रहे ये वह लोग हैं। जिन का सब किया धरा दुनिया और आख़ेरत (दोनों) में अकारत हुआ और यही लोग घाटे में हैं।
क्या उन मुनाफ़िकों को उन लोगों की ख़बर नहीं पहुंची है जो उन से पहले ही गुज़रे हैं नूह की क़ौम और आद और इब्राहीम की क़ौम और मदाएन वाले और उलटी हुई बस्तियों के रहने वाले के उनके पास उनके रसूल वाज़ेह (और रोशन) मोजज़े लेकर आए तो (वह मुबतिलाए अज़ाब हुए) और ख़ुदा ने उन पर ज़ुल्म नहीं किया मगर ये लोग ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म करते थे और ईमानदार मर्द(1) और ईमानदार औरतें उन में से बाज़ के बाज़ रफीक़ हैं लोगों को अच्छे काम का हुक्म देते हैं और बुरे काम से रोकते हैं और नमाज़ पाबंदी से पढ़ते हैं और ज़क़ात देते हैं और ख़ुदा और उस के रसूल की फ़रमाबरदारी करते हैं यही लोग हैं जिन पर ख़ुदा अन्क़रीब रहम करेगा बेशक ख़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है ख़ुदा ने ईमानदार मरदों और ईमानदार औरतों से (बेहिश्त के) उन बागों का वादा कर लिया है जिन के नीचे नहरे जारी हैं और वह उन में हमेशा रहेंगे (बेहिश्त) अदन के बाग़ों में उमदा उमदा मकानात का (भी वादा फ़रमाया) और ख़ुदा की खुशनुदी उन सब से बालातर है यही तो बड़ी (आला दरजे की) कामयाबी है(1)
ऐ रसूल कुफ़्फ़ार के साथ (तलवार से) और मुनाफ़िकों के साथ (ज़बान से) जेहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उन का ठिकाना तो जहन्नुम ही है और वह (क्या) बुरी जगह है ये मुनाफ़क़ीन ख़ुदा की क़समें खाते हैं के (कोई बुरी बात) नहीं कही हालाँकि उन लोगों ने कुफ्र का कलमा ज़रुर कहा और अपने इस्लाम के बाद काफ़िर हो गये और जिस बात पर क़ाबू न पा सके उसे ठान बैठे और उन लोगों ने (मुसलमानों से) सिर्फ़ इस वजह से अदावत की कि अपने फ़ज़्ल व करम से खुदा और उसके रसूल ने दौलत मन्द बना दिया है तो उन के लिए उसी में ख़ैर है कि ये लोग अब भी तौबा कर लें और अगर ये न मानेंगे तो ख़ुदा उन पर दुनिया और आख़ेरत में दर्दनाक अज़ाब नाज़िल फ़रमाएगा और तमाम दुनिया में उन का न कोई हामी होगा और न मददगार
और उन (मुनाफ़िक़ीन) में से बाज़ ऐसे(1) भी हैं जो खुदा से क़ौल व क़रार कर चुके थे के अगर हमें अपने फज़्ल (व करम) से (कुछ माल) देगा तो हम ज़रुर ख़ैरात किया करेंगे और नेकीकार बन्दे हो जाएंगे तो जब खुदा ने अपने फ़ज़्ल व (करम) से उन्हें अता फ़रमाया तो उस में से बुख़ल करने और कतरा कर मुंह फेरने फिर उन से उन के ख़मियाज़े में अपनी मुलाकात के दिन (क़यामत) तक उन के दिल में (गोया ख़ुद) नेफाक़ डाल दिया उसी वजह से उन लोगों ने जो ख़ुदा से वादा किया था उस के ख़िलाफ़ किया और उस वजह से झूट बोला करते थे क्या वह लोग इतना भी न जानते थे कि ख़ुदा (उन के) सारे भेद और उन की सरगोशी (सब कुछ) जानता है और ये कि ख़ुदा ग़ैब की बातों से ख़ूब आगाह है जो लोग दिल ख़ोल कर ख़ैरात करने वाले मोमीनीन पर (रियाकारी का) और उन मोमिनीन पर जो सिर्फ़ अपनी मशक़्क़त की मज़दूरी पाते (शेख़ी का) इल्ज़ाम(1) लगाते हैं फिर उन से मसख़रापन करते तो ख़ुदा भी उन से तमसखुर करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
(ऐ रसूल) ख़्वाह तुम उन (मुनाफ़िक़ों) के लिये मग़फ़िरत की दुआ मांगों या उनके लिए मग़फिरत की दुआ मांगो (उनके लिये बराबर है) तुम उनके लिये(2) सत्तर बार भी मग़फेरत की दुआ मांगोगे तो भी ख़ुदा उन को हरगिज़ न बख़्शेगा ये (सज़ा) उस सबब से है कि उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और ख़ुदा बदकार लोगों को मंजि़ल मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता (जंगे तबूक में न जाने) से खुश हुए और अपने माल और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जेहाद करना उन को मक़रुह मालूम हुआ और कहने लगे (उस) गर्मी में (घर से) निकलो (ऐ रसूल) तुम कहदो कि जहन्नुम की आग (जिस में तुम जलोगे) उस से कहीं ज़्यादा गर्म है अगर वह कुछ समझे जो कुछ वह किया करते थे उस के बदले उन्हें चाहिए के वह बहुत कम हसें और बहुत रोए तो (ऐ रसूल) अगर ख़ुदा तुम उन मुनाफ़िक़ीन के किसी गिरोह की तरफ (जेहाद से सहीह सालिम) वापस लाए फिर तुम से (जेहाद के वास्ते) निकलने की इजाज़त मांगे तो तुम साफ़ कह दो कि तुम मेरे साध (जेहाद के वास्ते) हरगिज न निकलने पाओगे और न हरगिज दुश्मन से मेरे साथ लड़ने पाओगे।
जब तुमने पहली मर्तबा (घर में) बैठा रहना पसन्द किया तो (अब भी) पीछे रह जाने वालों के साथ (घर में) बैठे रहो और (ऐ रसूल) उन मुनाफ़ेक़ीन में से जो मर जाए तो कभी किसी पर नमाज़ जनाज़ा(1) पढ़ना और न उस की कब्र पर (जाकर) खड़े होना उन लोगों ने यक़ीनन ख़ुदा और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और बदकारी ही की हालत में मर (भी) गए और उनके माल और उनकी औलाद (की कस्रत) तुम्हें ताअज्जुब (हैरत) में न डालें (क्योंकि) खुदा तो बस यह चाहता है कि दुनियां में भी उनके माल व औलाद की बदौलत उनको अज़ाब में मुब्तिला करे और उनकी जान निकलने लगे तो उस वक़्त भी ये काफ़िर के काफ़िर (ही) रहें और जब कोई सूरा: उस बारे में नाज़िल हुआ कि ख़ुदा को मानो और उसके रसूल के साथ जेहाद करो तो जो उन में से दौलत वाले हैं वह तुमसे इजाज़त मांगते हैं(2) और कहते हैं के हमें (यहीं छोड़ दीजिए) के हम यही (घऱ बैठने वालों के साथ) (बैठे) रहे ये उस बात से खुश हैं कि पीछे रह जाने वाली औरतों बच्चों बीमारों के साथ बैठे रहे और (गोया) उनके दिल पर मोहर कर दी गई है तो ये कुछ नहीं समझते
मगर रसूल और जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उन लोगों ने अपने अपने माल और अपनी अपनी जानों से जेहाद किया यही वह लोग हैं जिनके लिए (हर तरह की) भलाईयां हैं और यही लोग कामयाब होने वाले हैं ख़ुदा ने उनके वास्ते (बेहिश्त) के वह (हरे भरे) बाग़ तैय्यार कर रखे हैं जिन के (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी हैं (और ये) उमसें हमेशा रहेंगे यही तो बड़ी कामयाबी है और (तुम्हारे पास) कुछ हीला करने वाले गंवार(1) देहाती (भी) आ मौजूद हुए ताकि उनको भी (पीछे रह जाने की) इजाज़त दी जाए और जिन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल से झूठ कहा था वह (घर में) बैठे रहे (आए तक नहीं) उनमें से जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया अन्क़रीब ही उन पर दर्दनाक अज़ाब आ पहुँचेगा (ऐ रसूल जेहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरी पर कुछ गुनाह है न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करे बशर्ते के ये लोग खुदा और उसके रसूल की ख़ैरख़्वाही करें
नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की) कोई सबील नहीं और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और(1) न उन्हीं लोगों पर कोई इल्ज़ाम है जो तुम्हारे पास आए कि तुम उनके लिए सवारी बाहम पहुंचा दो और तुमने कहा के मेरे पास (तो कोई सवारी) मौजूद नहीं के तुम को उस पर सवार करूं तो वह लोग (मजबूरन) फ़िर गये और हसरत व (अफ़सोस) उसे उस ग़म में उन को ख़र्च मैयस्सर न आया सबील तो सिर्प़ उन्हीं लोगों पर है जिन्होंने बावजूद मालदार होने के तुम से (जेहाद में न जाने की) इजाज़त चाही और उनको पीछे रह जाने वाले, औरतों बच्चों के साथ रहना पसंद आया और खुदा ने उनके दिलों पर (गोया) मोहर कर दी है तो ये लोग कुछ नहीं जानते।
तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-10
Typography
- Smaller Small Medium Big Bigger
- Default Helvetica Segoe Georgia Times
- Reading Mode
Comments powered by CComment