तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-9

कुरआन मजीद
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तो उन की क़़ौम में से जिन लोगों को (अपनी हशमत दुनिया पर) बड़ा घमंड था कहने लगे के ऐ शुऐब हम तुम्हें और तुम्हारे साथ ईमान लाने वालों को अपनी बस्ती से निकाल बाहर कर देंगे मगर जबकि तुम भी हमारे इसी मज़हब व मिल्लत में लौट कर आ जाओ (तो ख़ैर) शुएैब ने कहा क्या हम अगरचे तुम्हारे मज़हब से नफ़रत ही रखते हों (तब भी लौट जाएं मआज़ अल्लाह) जब तुम्हारे बातिल दीन से ख़ुदा ने मुझे निजात दी उस के बाद भी अब अगर हम तुम्हारे मज़हब में लौट जाएं तब तो हम ने ख़ुदा पर बड़ा झूटा बोहतान बांधा (ना) और हमारे वास्ते तो किसी तरह जाएज़ नहीं कि हम तुम्हारे मज़हब की तरफ़ लौट जाए मगर हां जब मेरा परवरदिगार, अल्लाह चाहे तो (अलबत्ता मज़ाएक़ा नहीं) हमारा परवरदिगार तो (अपने) इल्म से तमाम (आलम की) चीज़ों को घेरे हुए है हम ने तो खुदा ही पर भरोसा कर लिया ऐ हमारे परवरदिगार तू ही हमारे और हमारी क़ौम के दरमियान ठीक ठीक फ़ैसला कर दे और तू तो सब से बेहतर फ़ैसला करने वाला है।
और उन की क़ौम के चन्द सरदार जो काफ़िर थे (लोगों से) कहने लगे के अगर तुम लोगों ने शुएैब की पैरवी की तो इस में शक ही नहीं के तुम सख़्त घाटे में रहोगे- ग़रज़ उन लोगों को ज़ल्ज़ला ने ले डाला(1) बस तो वह अपने घऱों में आँधे पड़े रह गये जिन लोगों ने शुएैब को झुटलाया था वह (ऐसे मर मिटे के) गोया उन बस्तियों में कभी आबाद ही न थे, जिन लोगों ने शुएैब को झुटलाया वही लोग घाटे में रहे तब शुएैब उन लोगों के सर से डल गए और (उन से मुख़ातिब हो कर) कहा ऐ मेरी क़ौम मैंने अपने परवरदिगार के पैगा़म तुम तक पहुँचा दिये और तुम्हारी ख़ैरख़़्वाही की थी, फिर अब में काफ़िरों पर क्यों कर अफ़सोस करूं और हमने किसी बस्ती में कोई नबी नहीं भेजा मगर वहां के रहने वालों का (कहना न मानने पर) सख़्ती और मुसीबत में मुबतिला किया ताकि वह लोग (हमारी बारगाह में) गिड़गिड़ाएं फिर हम ने तकलीफ़ की जगह आराम को बदल दिया यहाँ तक कि वह लोग बढ़ निकले और कहने लगे कि इस तरह की तकलीफ़ व आराम तो हमारे बाप दादाओं को पहुंच चुका है तब हम ने उस बड़ा हाँकने की सज़ा में (अचानक उनको अज़ाब में) गिरफ़्तार किया और वह बिल्कुल बेख़बर थे
और अगर उन बस्तियों के रहने वाले ईमान लाते और परहेज़गार बनते तो हम उन पर आसमान व ज़मीन की बरकतों (के दरवाज़े) खोल देते मगर (अफ़सोस) उन लोगों ने (हमारे पैग़म्बरों को) झुटलाया तो हमने भी उन के करतूतों की बदौलत उनको (अज़ाब में) गिरफ़्तार किया (उन) बस्तियों के रहने वाले इस बात से बेख़ौफ़ हैं के उन पर हमारा अज़ाब रातों रात आ जाए जबकि वह बड़े बेख़बर सोते हों या उन बस्तियों वाले उस से बेख़ोफ़ है कि उन पर दिन दहाड़े हमारा अज़ाब आ पहुंचे जब के वह खेल कूद में मशगूल हों तो क्या यह लोग ख़ुदा की तदबीर से ढ़ीट हो गये हैं तो (याद रहे कि) ख़ुदा के दाओ से घाटा उठाने वाले ही निडर हो बैठते हैं क्या जो लोग अहले ज़मीन के बाद ज़मीन के वारिस (व मालिक) होते हैं उन्हें ये मालूम नहीं कि अगर हम चाहते तो उनके गुनाहों की बदौलत उनको मुसीबत में फंसा देते (मगर ये लोग ऐसे नासमझ हैं के गोया) उनके दिलों पर हम ख़ुद मोहर कर देते हैं कि ये लोग कुछ सुनते ही नहीं
(ऐ रसूल) ये चन्द बस्तियां हैं जिनके हालात हम तुमसे बयान करते हैं और उसमें तो शक ही नहीं के उनके पैग़म्बर उनके पास बहुत वाज़ेह व रौशन मोजज़ लेकर आए मगर ये लोग जिसको पहले झुटला चुके थे उस पर भला काहे को ईमान लाने वाले थे ख़ुदा यूं काफ़िरों के दिलों पर अलामत मुक़र्रर कर देता है (कि ये ईमान न लाएंगे) और हमने तो उसमें से अक्सरों का अहद(1) (ठीक) न पाया और हमने उनमें से अक्सरों को बदकार ही पाया फिर हमने (उन पैग़म्बरान) मज़कूरीन के बाद) मूसा को फ़िरऔन(1) और उसके सरदारों के पास मोजज़े अता करके (रसूल बनाकर) भेजा तो उन लोगों ने उन मोजज़ात के साथ (बड़ी बड़ी) शरारत की-पस ज़रा ग़ौर तो करे कि आख़िर फ़सादियों का अंजाम क्या हुआ और मूसा ने (फ़िरऔन से) कहा ऐ फ़िरऔन में यक़ीनन परवरदिगारे आलम का रसूल हूं मुझ पर वाजिब है कि ख़ुदा पर सच के सिवा (एक हरफ़ भी झूट) न कहूं मैं यक़ीनन तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वाज़ेह व रौशन मोजिज़ा लेकर आया हूँ तो तू बनी इस्राईल को मेरे हमराह कर दे फ़िरऔन कहने लगा अगर तुम सच्चे हो और वाक़ई कोई मोजिज़ा लेकर आए हो तो उसे दिखाओ
(यह सुनते ही) मूसा ने अपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दी पस वह यकायक (अच्छा ख़ासा) ज़ाहिर व ज़ाहिर अज़दहा बन गयी और अपना हाथ बाहर निकाला तो क्या देखते हैं कि वह हर शख़्स की नज़र में जगमगा रहा है तब फ़िरऔन की क़ौम के चन्द सरदारों ने कहा ये तो अलबत्ता बड़ा माहिर जादूगर है ये चाहता है के तुम्हें तुम्हारे मुल्क से निकाल बाहर कर दे तो अब तुम लोग इसके बारे में क्या सलाह देते हो (आख़िर) सबने मुत्ताफ़िकुल लफ़्ज़ कहा के (ऐ फ़िरऔन) उनको और उनके भाई (हारून) को चंदे मुक़य्यद रखिये और (अतराफ़ के) शहरों में हरकारों को भेजिए कि तमाम बड़े बड़े जादूगरों को जमा करके आप के पास दरबार में हाज़िर करे ग़रज़(1) जादूगर सुबह फ़िरऔन के पास हाजिह़ होकर कहने लगे के अगर हम (मूसा से) जीत जाए तो हम को बड़ा भारी इनआम ज़रुर मिलना चाहिए
फ़िरऔन ने कहा (हां इनआम ही नहीं) बल्कि फिर तो तुम हमारे दरबार के नुक़रबीन में से होंगे और मुक़र्रर वक़्त पर सब जमा हुए तो बोल उठे के ऐ मूसा या तो तुम्हें (अपने मंतर) फेंके या हम ही (अपने अपने मंतर) फेंके मूसा ने कहा (अच्छा पहले) तुम ही फेक़ो (के अपना हौसला निकाल) लो तब ज्यों ही उन लोगों ने (अपनी रस्सियां) डाली तो लोगों की नज़र बंदी कर दी (के सब सांप मालूम होने लगे) और लोगों को डरा दिया और उन लोगों ने बड़ा भारी जादू दिखा दिया और हमने मूसा के पास वही भेजी के (बैठे क्या हो) तुम भी अपनी छड़ी डाल दो तो क्या देखते हैं के वह छड़ी उनके बनाए हुए (झूटे साँपों को) एक एक करके निगल रही है अलक़िस्सा हक़ बात तो जम के बैठी और उन की सारी कारस्तानी मलयामेट हो गयी पस फ़िरऔन और उस के तरफ़दार सब से सब उस अख़ाड़े में हारे और ज़लील व रुसवा होके पलने और जादूगर सब (मूसा के सामने) सजदे में गिर पड़े और (आजिज़ों से) बोले हम सारे जहान के परवरदिगार पर ईमान लाए जो मूसा व हारून का परवरदिगार है फ़िरऔन ने कहा (हाए) तुम लोग मेरी अजाज़त के क़ब्ल उस पर ईमान ले आए, ये ज़रुर तुम लोगों की मक़्कारी है जो तुम लोगों ने उस शहर में फैला रखी है ताकि उसके बाशिंदों को यहां से निकाल कर बाहर करो पस तुम्हें अनक़रीब ही इस शरारत का मज़ा मालूम हो जाएगा, मैं तो यक़ीनन तुम्हारे (एक तरफ़ के) हाथ और दूसरी तरफ़ के पावों कटवा डालूंगा फिर तुम सब के सब को सूली दे दूंगा जादूगर कहने लगे हमको तो (आख़िर एक रोज़) अपने परवरदिगार की तरफ़ लौट कर जाना (मर जाना) है और तू हमसे उसके सिवा और काहे की अदावत रखता है कि जब हमारे पास ख़ुदा की निशानियां आईं तो हम उन पर ईमान लाए (और अब तो हमारी ये दुआ है के) ऐ हमारे परवरदिगार हम पर सब्र (का बादल बरसा) और हमें अपनी फ़रमाबरदारी की हालत में दुनियां से उठा लें (1)
और फ़िरऔन की क़ौम के चंद सरदारों ने (फ़िरऔन) से कहा के क्या आप मूसा और उसकी क़ौम को उनकी हालत पर छोड़ देंगे कि मुल्क में फ़साद करते फिरें आपको और आप के ख़ुदाओं (की परिस्तिश) को छोड़ बैठे, फ़िरऔन कहले लगा (तुम घबराओ नहीं) हम अनक़रीब ही उनके बेटों को क़त्ल करते हैं और उनकी औरतों को (लौंडिया बनाने के वास्ते) ज़िन्दा रखते हैं और हमने उन पर हर तरह क़ाबू रखते हैं (ये सुन कर) मूसा ने अपनी क़ौम से कहा के (भाइयों) ख़ुदा से मदद मांगो और सब्र करो सारी ज़मीन तो ख़ुदा ही क है वह अपने बन्दों में जिस को चाहे उस का वारिस (व मालिक) बनाए और ख़ात्मा बख़ैर तो बस परहेज़गारों ही का है वह लोग कहने लगे के (ऐ मूसा) तुम्हारे आने के क़्बल ही से और तुम्हारे आने के बाद भी हम को तो बराबर तकलीफ़ ही पहुंच रही है (आख़िर कहां तक सब्र करें) मूसा ने कहा अनक़रीब ही तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे दुश्मन को हलाक करेगा और तुम्हें (उस का जानाशीन) बनाएगा फिर देखेगा कि तुम कैसा काम करते हो और बेशक हम ने फ़िरऔन के लोगों को बरसों से क़हत और फलों की कमी पैदावार (के अज़ाब) में गिरफ़्तार किया ताकि वह लोग इबरत हासिल करें तो जब उन्हें कोई राहन मिलती तो कहने लगते कि ये तो हमारे लिये सज़ावार है और जब उन्हें कोई मुसीबत पहुंचती तो मूसा और उन के साथियों की मदशगूनी समझते देखो उन की बदशगूनी तो ख़ुदा के यहां (लिखी जा चुकी) थी मगर बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं।
और फ़िरऔन के लोग मूसा से एक मर्तबा कहने लगे के तुम हर मर जादू करने के लिये चाहे जितनी निशानियां लाओ मगर हम तुम पर किसी तरह ईमान नहीं लाएंगे, तब हम ने उन पर (पानी के) तूफ़ान और टिड्डियों और जूओं और मेंढ़कों और खून (का अज़ाब) भेजा के सब जुदा जुदा (हमारी कुदरत की) निशानियां थी उस पर भी वह लोग तकब्बुर ही करते रहे और वह लोग गुनाहगार तो थे ही और(1) जब उन पर अज़ाब आ पड़ता तो कहने लगते कि ऐ मूसा तुम से जो खुदा ने (कूबूल दुआ का) अहद किया है उसी की उम्मीद पर अपने ख़ुदा से दुआ मांगों और अगर तुम ने हम से अज़ाब को टाल दिया तो हम ज़रुर तुम पर ईमान लाएंगे और तुम्हारे साथ बनी ईस्राईल को भी ज़रुर भेज देंगे फ़िर जब हम उन से उस वक़्त के वास्ते जिस तक वह ज़रुर पहुंचते अज़ाब को हटा लेते फिर फ़ौरन बंद अहदी करने लगते तब (आख़िर) हम ने उन से (उन की शरारतों का) बदला लिया तो चूँकि वह लोग हमारी आयतों को झुटलाते थे और उन से ग़ाफ़िल रहते थे हम ने उन्हें दरिया में डुबो दिया और जिन बेचारों को ये लोग कमज़ोर समझते थे उन्हीं को (मुल्के शाम की) ज़मीन का जिस में हम ने (ज़रखेज़ होने की) बरकत दी थी उस के पूरब पश्चिम (सब) का वारिस (व मालिक) बना दिया और चूँकि बनी इस्राईल ने (फिरऔन के जुल्मों) पर सब्र किया था इसलिये तुम्हारे परवरदिगार का नेक वादा (जो उसने बनी इस्राईल से किया था) पूरा हो गया
और जो कुछ फ़िरऔन और उस की क़ौम के लोग करते थे और जो ऊँची ऊँची इमारतें बनाते थे सब हम ने बरबाद कर दी और हम ने बनी इस्राईल को दरिया के उस पार उतार दिया तो एक ऐसे (1) लोगों पर से गुज़रे जो अपने (हाथों से बनाए हुए) बुतों की इबादत पर जमें बैठे थे (तो उन को देख कर बनी इस्राईल मूसा से) कहने लगे ऐ मूसा जैसे उन लोगों के माबूद (बुत) हैं वैसा ही हमारे लिये भी एक माबून बनाओं मूसा ने जवाब दिया के तुम बड़े ज़ाहिल लोग हो (अरे कमबख़्तों) ये लोग जिस मज़हब पर हैं वह यक़ीनी बरबाद हो कर रहेगा और जो अमल ये लोग कर रहें है वह सब मलयामेंट हो जाएगा (मूसा ने ये भी) कहा क्या (तुम्हारा ये मतलब है) के खु़दा को छोड़कर मैं दूसरे को तु्म्हारा माबूद तलाश करूँ हालाँकि उस ने तुम को सारी ख़ुदाई पर फ़ज़ीलत दी है।
(ऐ बनी इस्राईल वह वक़्त याद करो) जब हम ने तुम को फ़िरऔन के लोगों से निजात दी जब वह लोग तु्म्हें बड़ी बड़ी तकलीफ़ें पहुँचाते थे तुम्हारे बेटों को तो (चुन-चुन कर) क़त्ल कर डालते थे और तुम्हारी औरतों को लौडिया बनाने के वास्ते ज़िन्दा रख छोड़ते थे और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे (सब्र की) सख़्त आज़माइश थी और हमने मूसा से तौरेत देने के लिए तीस(2) रातों का वादा किया और हमने उसमे दस रोज़ (बढ़ाकर) पूरा कर दिया ग़रज़ उसके परवरदिगार का वादा चालिस रात में पूरा चिल्ला हो गया और (चलते वक़्त) मूसा ने अपने भाई हारून से कहा कि तुम मेरी क़ौम में मेरे जानशीन(3) रहो और उनकी इसलाह करना और फ़साद करने के तरीक़े पर न चलना
और जब मूसा हमारा वादा पूरा करने (कोहेतूर पर) आए और उन का परवरदिगार उनसे हम कलाम(1) हुआ तो मूसा ने अर्ज़ किया के ख़ुदाया तू मुझे अपनी एक झलक दिखा दे कि मैं तुझे देखूं ख़ुदा ने फ़रमाया तुम मुझे हरगिज़ नहीं देख सकते मगर हां उस पहाड़ की तरफ़ देखो (हम उस पर अपनी तजल्ली डालते हैं) पस अगर (पहाड़) अपनी जगह पर क़ायम रहे तो समझ़ना के अनक़रीब मुझे भी देख लोगे (वरना नहीं) फिर जब उनके परवरदिगार ने पहाड़ पर तजल्ली डाली तो उसको चकनाचूर कर दिया और मूसा बेहोश होकर गिर पड़े फिर जब होश में आए तो कहने लगे ख़ुदा वन्दा तू (देखने दिखाने से) पाक पाकीज़ा है मैने तेरी बारगाह में तौबा की और मैं सबसे पहले तेरे न दिखने का यक़ीन करता हूँ खुदा ने फ़रमाया ऐ मूसा मैंने तुमको तमाम लोगों पर अपनी पैग़म्बरी और हमकलामी (का दर्जा देकर) बरगुज़िदा किया है तब जो (किताब तौरेत) हमने तुमको अता की है उसे लो और शुक्रगुज़ार रहो और हमने (तौरेत की) तख़तियों मे मूसा के लिए हर तरह की नसीहत और हर चीज़ क तफ़्सीलदार बयान लिख दिया था तो (ऐ मूसा) तुम उसे मज़बूती से लो (अमल करो) और अपनी क़ौम को हुक्म दे दो के उसमें की अच्छी बातों पर अमल करें और बहुत जल्द तुम्हें बदकारों का घर दिखा दूंगा (कि कैसे उजड़ते हैं)
जो लोग (ख़ुदा की) ज़मीन पर नाहक़ अकड़ते फ़िरते हैं उनको अपनी आयतों से बहुत जल्द भर दूंगा और (मैं क्या करूँगा ख़ुदा उसका दिल ऐसा सख़्त है के) अगर (दुनियां जहान के) सारे मोजज़े भी देख लें तो भी ये उन पर ईमान ल लाएंगे और (अगर) सीधा रास्ता भी देख पाए तो भी अपनी राह न बनाएंगे और अगर गुमराही की राह देख लेंगे तो झटपट उसको अपना तरीक़ा बना लेंगे ये कजरवी उस सबब से हुई के उन लोगों ने हमारी आयतों को और आख़रत के हुजूरी झुटलाया उनका सब किया कराया अकारत हो गया, उनको बस उन्हीं आमाल की जज़ा या सज़ा दी जाएगी जो वह करते थे।
और मूसा की क़ौम ने (कोहेतूर पर) उनके जाने के बाद अपने ज़ेवरों को (गला कर) एक बछड़े(1) की मूरत बनाई (यानी) एक जिस्म जिस में गाय की सी आवाज़ थी (अफ़्सोस) क्या उन लोगों ने इतना भी न देखा के वह न तो उन(2) से बात ही कर सकता और न किसी तरह की हिदायत ही कर सकता है (ख़ुलासा) उन लोगों ने उसे (अपना माबूद) बना लिया और आप अपने ऊपर ज़ुल्म करते थे और जब वह पछताए और उन्होंने अपने को यक़ीनी गुमराह देख लिया तब कहने लगे के अगर हमारा परवरदिगार हम पर रहम करेगा, और हमारा कुसूर ना माफ़ करेगा तो हम यक़ीनी घाटा उठाने वालों में हो जाएंगे और जब मूसा पलट कर अपनी क़ौम की तरफ़ आए तो (यह हालत देख कर) रन्ज व गुस्से में (अपनी क़ौम से) कहने लगे कि तुम लगों ने मेरे बाद बहुत बुरी हरकत की-तुम लोग अपने परवरदिगार के हुक्म (मेरे आने में) किस क़दर जल्दी कर बैठे और (तौरेत की) तख़्तियों को (1) फेंक़ दिया और अपने भाई (हारून) के सर (के बालों) को पकड़ कर अपन तरफ़ खींचने लगे (उस पर हारुन ने) कहा ऐ मेरे माजाए मै क्या करता क़ौम ने मुझे हक़ीर समझा और (मेरा कहना न माना बल्कि) क़रीब था कि मुझे मार डालें तो मुझ पर दुश्मनों को न हंसवाइये और मुझे उन ज़ालिम लोगों के साथ न क़रार दीजिए
(तब) मूसा ने कहा ऐ मेरे परवरदिगार मुझे और मेरे भाई को बख़्श दे और हमें अपनी रहमत में दाख़िल कर और तू सबसे बढ़ के रहम करने वाला है बेशक जिन लोगों ने बछड़े को (अपना माबूद) बना लिया उन पर अनक़रीब ही उनके परवरदिगार की तरफ़ से अज़ाब नाज़िल होगा और दुनियावी ज़िन्दगी में ज़िल्लत (उसके अलावा) और हम बोहतान बांधने वालों की ऐसी ही सज़ा किया करते हैं और जिन लोगों ने बुरे काम किए फिर उसके बाद तौबा कर ली और ईमान लाए तो बेशक तुम्हारा परवरदिगार तौबा के बाद ज़रुर बख़्शने वाला मेहरबान है और जब मूसा का गुस्सा ठंडा हुआ तो (तौरेत) की तख़्तीयो को (ज़मीन से) उठा लिया और तौरेत के नुस्ख़े में जो लोग अपने परवरिदगार से डरते हैं उन के लिए हिदायत और रहमत है।
और मूसा ने अपनी क़ौम से(1) हमारा वादा पूरा करने को (कोहेतूर पर ले जाने के वास्ते) सत्तर आदमियों को चुना फिर जब उनको ज़लज़ले ने आ पकड़ा तो हज़रत मूसा ने अर्ज़ किया परवरदिगार अगर तू चाहता तो मुझ को और उन सब को पहले ही हलाक कर डालता क्या हममे से चन्द बेवाकूफ़ों की करनी की सज़ा में हम को हलाक करता है ये तो सिर्फ़ तेरी आज़माईश थी तू जिसे चाहे उसे गुम्राही में छोड़ दे और जिस की चाहे हिदायत करे तू ही हमारी मालिक है तू ही हमारे क़सूर को माफ़ कर और हम पर रहम कर और तू तो तमाम बख़्शने वालों से कहीं बेहतर है और तू ही इस दुनियां (फ़ानी) और आख़रत में हमारे वास्ते भलाई को लिख ले हम तेीर ही तरफ़ रुजू करते हैं ख़ुदा ने फ़रमाया जिस को मैं चाहता हूं (मुस्तहक़ समझ कर) अपना अज़ाब पहुंचाता हूँ और मेरी रहमत हर चीज़ पर छाई हुई है मैं तो उसे बहुत जल्द खा़स उन लोगों के लिए लिख दूंगा (जो बुरी बातों से) बचते रहेंगे और ज़कात दिया करेंगे और जो हमारी बातों पर ईमान रखा करेंगे (यानी) जो लोग हमारे नबी उम्मी(1) पैग़म्बर के क़दम व क़दम चलते हैं जिस (की बशारत) को अपने यहां तौरेत और इंजील में लिखा हुआ(2) पाते हैं।
(वह नबी) जो अच्छे काम का हुक्म देता है और बुरे काम से रोकता है और जो पाक व पाकीज़ा चीज़े तो उन पर हलाल और नापाक गन्दी चीज़ें उन पर हराम कर देता है और वह (सख़्त अहकाम का) बोझ जो उनकी गर्दन पर था और वह फ़न्दे जो उन पर (पड़े हुए) थे उनसे हटा देते है पस (याद रखो कि) जो लोग इस (नबी मुहम्मद) पर ईमान लाए और उसकी इज़्ज़त की और उसकी मदद की और उस नूर (कुरआन) की पैरवी की जो उसके साथ नाजि़ल हुआ है तो यही लोग अपनी दिली मुरादें पाएंगे (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) कह दो के लोगों में तुम सब लोगों के पास उस ख़ुदा का भेजा हुआ (पैग़म्बर) हूं जिस के लिए ख़ास सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत (हुकूमत) है उसके सिवा और कोई माबूद नहीं वही ज़िन्दा करता है वही मार डालता है पस (लोगों) ख़ुदा और उसके रसूल नबी उम्मी पर ईमान लाओ जो (खुद भी) ख़ुदा पर और उसकी बातों पर (दिल से) ईमान रखता है और उसी के क़दम व क़दम चलो ताकि तुम हिदायत पाओ और मूसा की क़ौम के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हक़ बात की हिदायत भी करते हैं और हक़ ही हक़ (मामलात में) इंसाफ़ करते हैं और हमें ये बनी इस्राईल के एक एक दादा की औलाद को जुदा जुदा बारह गिरोह बना दिए।
और जब मूसा की क़ौम ने उन से पानी मांगा तो हम ने उन के पास वही भेजी के तुम अपनी छड़ी पत्थर मारो (छ़ड़ी का मारना था) के उस पत्थर से (पानी के) बारह चश्में फूट निकले और (ऐसे साफ अलग अलक थे) हर क़बीले ने अपना अपना घाट मालूम कर लिया और हमने बनी इस्राईल पर अब्र का साया किया और उन पर मन व सलवा (सी नेअमत) नाजिल की (लोगों) जो पाक व पाकीज़ा चीज़ें तुम्हें दी हैं उन्हें (शौक़ से खाओ पियो) और उन लोगों ने (नाफ़रमानी करके) कुछ हमारा नहीं बिगाड़ा बल्कि अपना आप ही बिगाड़ते हैं और जब उनसे कहा गया के उस गांव में जाकर रहो सहो और उस (के मेवों) से जहां तुम्हारा जी चाहे (शौक़ से) खाओ (पियो) और मुंह से हत्ता कहते और सज्दा करते हुए दरवाज़े में दाख़िल हो तो हम तुम्हारी ख़तएं बख़्स देगें और नेकी करने वालों को हम कुछ ज़्यादा ही देंगे तो ज़ालिमों ने जो बात उनसे कही थी उसे बदल कर कुछ और कहना शुरू किया तो हमने उनकी शरारतों की बदौलत उन पर आसमान से अज़ाब भेज दिया,
और (ऐ रसूल) उन से ज़रा उस गांव का हाल तो पूछे जो दरिया के किनारे वाक़िअ था जब ये लोग उन के बुर्ज़ग शंबा(1) के दिन ज़्यादती करने लगे के जब उनका शबा (वाला इबादत का) दिन होता तब तो मछलियां सिमट कर उनके सामने पानी पर उभर के आ जाती और जब उनका शब (वाला इबादत का) दिन न होता तो मछलियां उनके पास ही न फटकती और चूंके ये लोग बदचलन थे इस वजह से हम भी उनकी यूं ही आज़माइश किया करते थे।
और जब उन में से एक जमाअत ने (उन लोगों में से जो शंबा के दिन शिकार को मना करते थे) कहा के जिन्हें खु़दा हलाक करना या सख़्त आज़ाब में मुब्तिला करना चाहता है उन्हें (बे फ़ायदा) क्यों नसीहत करते हो तो वह कहने लगे के फ़क़त तुम्हारे परवरदिगार ने (अपने को) इल्ज़ाम से बचाने के लिए और उस लिए के शायद ये लोग परहेज़गारी इख्तेयार करें फिर जब वह लोग जिस चीज़ की उन्हें नसीहत की गई थी उसे भूल एग तो हमने उनको तो निजाअत दे दी जो बुरे काम से लोगों को रोकते थे और जो लोग ज़ालिम थे उन को उन की बदचलनी की वजह से बड़े अज़ाब में गिरफ़्तार किया फिर जिस बात की उन्हें मोमामेआत की गई थी जब उन लोगों ने उस में सरकशी की तो हम ने हुक्म दिया कि तुम ज़लीन और रान्दे हुए(1) बंदर बन जाओ (और वह बन गये) (ऐ रसूल वह वक़्त याद दिलाओ) जब तुम्हारे परवरदिगार ने हांक पुकार के बनी इस्राईल से कह दिया था कि वह क़यामत तक उन पर ऐसे हाकिम को मुसल्लत रखेगा जो उन्हें बुरी बुरी(2) तक़लीफें देता रहे क्योंकि इसमे तो शक ही नहीं के तु्म्हारा परवरदिगार बहुत जल्द अज़ाब करने वाला है, और इसमें भी शक नहीं के वह बड़ा बख़्शने वाला (मेहरबान भी) है और हम ने उन को रुए ज़मीन में गिरोह तितर बितर कर दिया उन में के कुछ लोग तो नेक हैं।
और कुछ लोग और तरह के (बदकार) हैं और हम ने उन्हें सुख और दुख (दोनों तरह) से आज़माया ताकि वह (शरारत से) बाज़ आए फिर उन के बाद कुछ न ख़लफ़ जा नशीन हुए जो किताब (खुदा तौरेत) के (तो) वारिस बने (मगर लोगों के कहने से) अहकाम ख़ुदा को बदल कर (उसके एवज़) नापाक कमीनी दुनिया के सामान ले लेते हैं (और लुत्फ़ तो ये है) कहते हैं के हम तो अन्क़रीब बख़्श दिये जाएंगे (और जो लोग उन पर तान करते हैं) अगर उनके पास भी वैसा ही दूसरा सामान आ जाए तो उसे ये भी (न छोड़े और ले ही लें क्या उनसे किताब (ख़ुदा तौरेत) का अहद व पैमान नहीं लिया गया था के ख़ुदा पर सच के सिवा (झू़ट कभी) नहीं कहेंगे और जो कुछ उस किताब में है उसे उन्होंने (अच्छी तरह) पढ़ लिया है और आखरत का घर तो उन ही लोगों के वास्ते ख़ास है जो परहेज़गार हैं तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते।
और जो लोग किताब (ख़ुदा) को मज़बूती से पकड़े हुए हैं और पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं (उन्हें उसका सवाब ज़रुर मिलेगा क्योंकि) हम हरगिज़ नेकूकारों का सवाब बरबाद नहीं करते तो (ऐ रसूल यहूद को याद दिलाओ) जब हमने उन (के सारों) पर पहाड़ को इस तरह टिका दिया के गोया साएबान था और वह लोग समझ चुके थे के उन पर अब गिरा (अब गिरा) और हम नो उनको हुक्म दिया के जो कुछ हम ने तुम्हें अता किया है, उसे मज़बूती से पकड़ लो और जो कुछ उस में लिखा है याद रखो ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ और ऐ रसूल(1) वह वक़्त भी याद (दिलाओ) जब तुम्हारे परवरिदगार ने आदम की औलाद से पुश्तों से (बाहर निकाल कर) उन की औलाद से खुद उन के मुक़ाबले में इक़रार करा लिया (पूछा) के क्या मैं तुम्हारा परवरदिगार नहीं हूं तो सब के सब बोलो हां हम उस के गवाह हैं ये हमने इसलिये कहा कि ऐसा न हो कहीं तुम क़यामत के दिन बोल उठो कि हम तो उस से बिल्कुल बेख़बर थे या ये कह बैठो के (हम क्या करें) हमारे तो बाप दादाओं ने पहुले शिर्क किया तआ और हम तो उन की औलाद थे (के) उनके बाद (दुनियां में आए) तो क्या हमें उन लोगों के जुमे की सज़ा में हलाक करेगा जो पहुले बी बातिल कर चुके और हम यू अपनी आयतों को तफ़सील वार बयान करते हैं और ताकि वह लोग (अपनी ग़ल्ती से) बाज़ आए।
और (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उस शख़्स का हाल(1) पढ़ कर सुना दो जिसे हम ने अपनी आयतें अता की थी फ़िर वह उन से निकल भागा तो शैतान ने उस का पीछा पकड़ा और आख़िरकार वह गुमराह हो गया और अगर हम चाहते तो हम उसे उन्हीं आयतों की बदौलत बुलन्द मर्तबा कर देते मगर वह तो खुद ही पसती की तरफ़ झुक पड़ा और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश का ताबेदार बन बैठा तो उस की मिसल उस कुत्ते की मिसल है कि अगर उस को धुत्कार दो तो भी ज़बान निकाले रहे और उस को छोड़ दो तो भी ज़बान निकाले रहे ये मिसल उन लोगों की है जिन्होंने हमारी आयतों को झुटलाया तो (ऐ रसूल) ये क़िस्से उन लोगों से बयान कर दो ताकि ये लोग ख़ुद भी गौ़र करें जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुटलाया है उन की भी क्या बुरी मिसल है और अपनी ही जानों पर सितम ढ़ाते रहे
राह पर बस वही शख़्स है जिस की ख़ुदा हिदायत कर ले और जिस को गुमराही में छोड़ दे तो वही लोग घाटे में है और गोया हम ने (खु़द) बहुत से जिन्नात और आदमियों को जहन्नुम ही के वास्ते पैदा किया और उन के दिल तो हैं (मगर क़स्दन) उन से समझते ही नहीं और उन की आँखे हैं (मगर क़सदन) उन से देखते ही नहीं और उन के कान भी हैं बल्कि उन से भी कहीं गए गुज़रे हुए यही लोग (औमूरे हक़) से बिल्कुल बे ख़बर हैं और अच्छे (अच्छे) नाम ख़ुदा ही के ख़ास हैं तो उसे उन्हीं नामों से पुकारो और जो लोग उस के नाम(1) में कुफ़्र करते हैं उन्हें (उन के हाल पर) छोड़ दो और वह बहुत जल्द अपने करतूत की सज़ाएं पाएंगे और हमारी मख़्लूकात से कुछ(2) लोग ऐसे भी हैं जो दीने हक़ की हिदायत करते है और हक़ ही (हक़) इन्साफ भी करते हैं और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया हम ने उन्हें बहुत जल्द इस तरह आहिस्ता आहिस्ता (जहन्नुम में) ले जाएंगे कि उन्हे ख़बर भी न होगी और मैं उन्हें (दुनियां में) ढील दूंगा बेशक मेरी तद्बीर बहुत (पुख्त और) मज़बूत है।
क्या उन लोगों ने इतना भी ख़्याल न किया कि आख़िर उन के रफ़ीक़ (मुहम्मद स0) को कुछ जुनून तो नहीं, वह तो बस खुल्लम खुल्ला (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाले हैं क्या उन लोगों ने आसमान व ज़मीम की हुकूमत और ख़ुदा की पैदा की हुई चीज़ों में ग़ौर नहीं किया और न उस बात में कि शायद उनकी मौत क़रीब आ गयी हो फिर इतना समझाने के बाद (भला) किस बात पर ईमान लाएंगे जिसे ख़ुदा गुम्राही में छोड़ दे फिर उसका कोई रहबर नहीं और उन्ही की सरकशी (व शरारत) में छो़ड़ देगा के सर गिर्दा रहे (ऐ रसूल) तुम से लोग क़यामत के बारे में पूछा करते हैं कि कहीं उसका थल बेड़ा भी है तुम कह दो कि उसका इल्म सब परवरदिगार ही को है वहीं उसके वक़्ते मोअय्यन पर उसको ज़ाहिर कर देगा, वह सारे आसमान व ज़मीन में एक कठिन वक़्त होगा वह तुम्हारे पास बस अचानक आ जाएगी तुम सो लोग इस तरह पूछते हैं गोया तुम उनसे बाखूबी वाक़िफ़ हो तुम (साफ) कह दो कि उसका इल्म बस ख़ुदा ही को है मगर बहुतसे लोग नहीं जानते (ऐ रसूल) तुम कह दो के मैं खुद अपना आप तो इख्तेयार रखता ही नहीं न नफ़ा का नज़रे का मगर बस वही ख़ुदा जो चाहे और अगर (बगैर ख़ुदा के बताए) ग़ैब को जानता होता तो यक़ीनन मैं अपना बहुत सा फ़ाएदा कर लेता और मुझे कोई तकलीफ़ भी न पहुँचाती मैं तो सिर्फ़ ईमानदार लोगों को (अज़ाब से) डराने वाला (और बेहिश्त की) ख़ुशख़बरी देने वाला हूं।
वह ख़ुदा ही तो है जिसने तुमको एक शख़्स (आदम) से पैदा किया और उस (की बची हुई मिट्टी) से उसका जोड़ा भी बना डाला ताकि उसके साथ रहे सहे फिर जब इंसान अपनी बीबी से हमबिस्तरी करता है तो बीवी एक हलके से हमल से हामला हो जाती है फ़िर उसे लिये चलती फिरती है फिर जब वह ज़्यादा दिन होने बोझल हो जाती है तो दोनों (मिंया बीवी) अपने परवरिदगार ख़ुदा से दुआ करने लगे के अगर तू हमें नेक फ़रज़न्द अता फ़रमाए तो हम ज़रुर तेरे शुक्र गुज़ार होंगे फ़िर जब खुदा ने उनको (फ़रज़न्द) सालेह अता फ़रमा दिया जो (औलाद) ख़ुदा ने उन्हें अता किया था लगे उसमें ख़ुदा का शरीक(1) बनाने तो ख़ुदा (की शान) शिर्क से बहुत ऊँची है क्या वह लोग ख़ुदा का शरीक ऐसों को बनाते हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह (ख़ुद ख़ुदा के) पैदा किये हुए हैं और न उनकी मदद की कुदरत रखते हैं और न आप अपनी मदद कर सकते हैं और अगर तुम उन्हें हिदायत की तरफ़ बुलाओगे भी तो ये तुम्हारी पैरवी नहीं करने के तुम्हारे वास्ते बराबर है ख़्वाह तुम उनको बुलाओं या तुम चुपचाप बैठे रहो बेशक वह लोग जिनकी तुम ख़ुदा को छोड़ कर इबादत करते हो वह (भी) तुम्हारी तरह (ख़ुदा के) बंदे हैं भला तुम उन्हें पुकार के देखो तो अगर तुम सच्चे हो तो वह तुम्हारी कुछ सुन लें क्या उनके ऐसे पावों भी हैं जिनसे चब सकें या उनके ऐसा हाथ भी हैं जिनसे (किसी चीज़ को) पकड़ सकें या उनकी ऐसी आँखें भी जिनसे देख सकें या उनके ऐसे कान हैं जिनसे सुन सकें।
(ऐ रसूल उन लोगों से कह दो के तुम अपने बनाए हुऐ शरीकों को बुलाओ फ़िर सब मिल्र मुझ पर दाँव चलो फिर (मुझे) मोहलत न दो (फ़िर देखो मेरा क्या बना सकते हो) बेशक मेरा मालिक व मुख़तार तो बस ख़ुदा है जिसने क़िताब कुरआन को नाज़िल फ़रमाया और वही (अपने) नेक बंदों का हामी है और वह लोग (बुत) जिन्हें तुम ख़ुदा के सिवा (अपनी मद्द को) पुकारते हो न तो वह तुम्हारी मदद की क़ुदरत रखते हैं और न ही अपनी आप मदद कर सकते हैं और अगर तू उन्हे हिदायत की तरफ़ मुलाएगा भी तो यह सुन ही नहीं सकते और तू तो समझता है के वह तुझे (आँखे खोल) देख रहें हैं हालाँकि वह देखते नहीं (ऐ रसूल) तुम दरगुज़र करना इख्तेयार करो और अच्छे काम का हुक्म दो और जाहिलों की तरफ से मुंह फेर लो और अगर शैतान की तरफ़ से तुम्हारी (उम्मत के) दिल में किसी तरह का तग़तगा़ पैदा हो तो ख़ुदा से पनाह मांगो (क्यों के) इस में मैं तो शक ही नहीं के वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़दार है बेशक लोग परहेज़गार हैं जब कभी उन्हें शैतान का ख़याल छू भी गया तो चौक पड़ते हैं फ़िर फ़ौरन उनकी आँखे खुल जाती हैं उन काफ़िरों के भाई बन्द शैतान उनको (धर पकड़े) गुमराही की तरफ़ घसीटे जाते हैं फ़िर किसी तरह की कोताही (भी) नहीं करते और जब तुम उनके पास कोई (ख़ास मोजज़ा नही लाते तो कहते हैं कि तुमने उसे क्यों नहीं बना लिया
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस उसी वही का पाबंद हूं जो मेरे परवदिगार की तरफ़ से मेरे पास आती है ये (कुरआन) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (हक़ीक़त) की दलीलें हैं और ईमानदार लोगों के वास्ते हिदायत और रहमत है (लोगों) जब कुरआन पढ़ा जाए तो कान(1) लगा कर सुनो और चुपचाप रहो ताकि (इसी बहाने) तुम पर रहम किया जाए और अपने परवरदिगार को अपने जी ही में गिड़गिड़ा के और डर (डर) के और बहुते चीख़ के नहीं (धीमी) आवाज़ से सुबह व शाम याद किया करे और (उसकी याद से) ग़ाफ़िल बिल्कुल न हो जाओ बेशक जो लोग(2) (फ़रिश्ते वग़ैरह) तुम्हारे परवरदिगार के पास मुक़र्रब हैं और वह उसकी इबादत से सरकशी नहीं करते और उसकी की तसबीह करते हैं और उसी का सज़्दा करते हैं।

सूरे: अन्फ़ाल

सूरे: अन्फ़ाल(1) मदीने में नाज़िल हुआ और इसमें 75 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
(ऐ रसूल) तुमसे लोग अन्फ़ाल(3) (माले ग़नीमत) के बारे में पूछा करते हैं तुम कह दो के अन्फ़ाल मख़सूस(3) ख़ुदा और रसूल के वास्ते हैं तो ख़ुदा से डरो (और) अफने बाहमी मामलात की इस्लाह करो और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो ख़ुदा की और उसके रसूल की इताअत करो सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) ख़ुदा का ज़िक्र किया जाता है तो उनके दिल हिल जाते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं तो उने ईमान को और भी ज़्यादा कर देती हैं और वह लोग बस अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और जो हमने उन्हे दिया है उसमें से (रारे ख़ुदा में) खर्च करते हैं यही लोग तो सच्चे ईमानदार हैं उन ही के लिए उनके परवरदिगार के यहां (बड़े बड़े) दरजे हैं और बख़्शिश और इज्ज़त व आबरू के साथ रोज़ी है (ये माले ग़नीमन का झगड़ा वैसा ही है) जिस तरह तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें बिल्कुल ठीक (मसलहत से) तुम्हारे घर से (जंगे ए बदर) में निकाला था और मोमीनीन का एक गिरोह उसमें नाखुश(1) था के वह लोग हक़ के ज़ाहिर होने के बाद भी तुमसे (ख़्वाह मख़्वाह) सच्ची बात में झगड़ते थे और इस तरह (करने लगे) गोया वह (ज़बरदस्ती) मौत के मुंह में ढकेले जा रहे हैं और उसे (अपनी आँखों से) देख रहे हैं और (ये वक़्त था) जब ख़ुदा तुमसे वादा कर रहा था।
(कुफ़्फ़ार मक्का) दो जमाअतों में से एक तुम्हारे लिए ज़रुरी है और तुम ये चाहते थे कि कमज़ोर जमाअत तुम्हारे हाथ लगे (ताकि बग़ैर लड़े भिड़े माले ग़नीमत हाथ आ जाए) और ख़ुदा ये चाहता था के अपनी बातों से हक़ को साबित (क़ायम) करे और काफ़िरों की ज़ड काट डाले ताकि हक़ को (हक़) साबित कर तदे और बातिल का मलियामेट कर दे अगर परवरदिगार से फ़रयाद कर रहे थे उसमे तुम्हारी सुन ली और जवाब दे दिया के तुम्हारी लगातार हज़ार फ़रिश्तों से मदद करूँगा और (ये इमदाद ग़ैबी) ख़ुदा ने सिर्फ़ तुम्हारी ख़ातिर (ख़ुशी) के लिए की थी ताके तु्म्हारे दिल मुतमईन हो जाए और (याद रखो) मदद ख़ुदा के सिवा और किसी के यहां से (कभी) नहीं होता बेशक ख़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है वह वक़्त था जब अपनी तरफ़ से इत्मीनान देने के लिए तुम पर नींद को ग़ालिब कर रहा था और तुम पर आसमान से पानी(1) बरस रहा था ताकि उससे तुम्हे पाक व पाकीज़ा कर दे और तुम से शैतान की गन्दगी दूर कर दे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे और पानी से (बालू जम जाए) और तुम्हारे क़दम (अच्छी तरह) जमाए रहे
(ऐ रसूल ये वह वक़्त था) जब तुम्हारा परवरदिगार फ़रिश्तों से फ़रमा रहा था कि मैं यक़ीनन तुम्हारे साथ हूं तुम ईमानदारो को साबित क़दम रखो मैं बहुत जल्द काफ़िरों के दिलों में (तुम्हारा सब) डाल दूंगा (पस फिर क्या है अब) तो उन कुफ़्फार की गर्दनों पर मारो और उनकी पोर पोर को चीटीली कर दो ये (सज़ा) इसलिए है के उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त की और जो शख़्स (भी) ख़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त करेगा तो (याद रहे के) ख़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब करने वाला है (काफ़िरों दुनियां में तो) लो फिर उस सज़ा का मज़ा चखो और (फिर आख़ेरत में तो( काफ़िरों के वास्ते जहन्नुम का अज़ाब ही है ऐ ईमानदारों जब तुम से कुफ़्फ़ार से मैदान जंग के मुक़ाबला हुआ तो (ख़बरदार) उनकी तरफ़ पीठ न करना और (याद रहे के) उस शख़्स के सिवा जो लड़ाई के वास्ते कतराए या किसी जमाअत के पास (जाकर) मौक़ा पाए (और) जो शख़्स भी उस दिन उन कुफ़्फ़ार की तरफ पीठ करेगा वह यक़ीनी (हिर फिर के) ख़ुदा के ग़ज़ब में आ गया और उस का ठिकाना जहन्नुम ही है और वह क्या बुरा ठिकाना है और (मुसलमानों) उन कुफ़्फ़ार को कुछ तुम ने तो क़त्ल किया नहीं बल्कि उनव को तो ख़ुदा ने क़्तल किया।
और (ऐ रसूल) जब तुम ने तीर मारा तो कुछ तुम ने नहीं मारा बल्कि ख़ुद ख़ुदा ने तीर मारा और ताकि अपनी तरफ से मोमीनीन पर खूब अहसान करे बेशक ख़ुदा (सब की) सुनता और (सब कुछ) जानता है ये तो ये ख़ुदा तो काफ़िरों की मक़्कारी को कमज़ोर कर देने वाला है (क़ाफ़िरों) अगर तुम(1) ये चाहते हो (कि जो हक़ पर हो उस की) फ़तेह हो (मुसलमानों की) फ़तेह भी तुम्हारे सामने आ मौजूद हुई (अब क्य उज्र बाकी है और अगर तुम (अब भी मुख़ालिफ़तें इस्लाम) से बाज़ रहो तो तुम्हारे वास्ते बेहतर है और अगर कहीं तुम पलट पड़े तो (याद रहे0 हम भी पलट पड़ेगे (और तुम्हें तबाह कर छोड़ेंगे) और तुम्हारी जमाअत अगर ये बहुत ज़्यादा भी हो हरगिज़ कुछ काम न आएगी, और ख़ुदा तो यक़ीनी मोमीनीन के साथ है ऐ ईमानदारों ख़ुदा और उस के रसूल की एताअत करो और उस से मुंह न मोड़ो जब तुम समझ रहे हो और उन लोगों के ऐसे न हो जाओ जो (मुंह से तो) कहते थे के हम सुन रहे हैं हालाँकि वह सुनते (सुनाते ख़ाक) न थे इस में शक नहीं है कि ज़मीन पर चलने वाले तमाम हैवानात से बदतर ख़ुदा के नज़दीक वह बहरे गूंगे (कुफ़्फ़ार) है जो कुछ नहीं समझते और अगर ख़ुदा उन में नेकी (की भी) देखता तो ज़रुर उन में सुनने की क़ाबिलयत अता करता मगर (ये ऐसे बद सरशत हैं कि) अगर उनमें सुनने की क़ाबलियत भी देता तो मुंह फेर कर भागते ऐ ईमानदारों जब तुम को (हमारा रसूल मुहम्मद) ऐसे काम के लिए बुलाए जो तुम्हारी रुहानी ज़िन्दगी का बाएस(1) हो तो तुम ख़ुदा और रसूल का हुक्म दिल से कुबूल कर लो और जान लो के ख़ुदा (वह क़ादिरे मुतलक़ है के) आदमी और उसके दिल (इरादे) के दरम्यान(2) उस तरह आ जाता है और ये भी (समझ लो) के तुम सब के सब उस के सामने हाज़िर हो जाओगे और उस फ़ित्ना से डरते रहो(3) जो ख़ास उन्हीं लोगों पर नहीं पड़ेगा(4) जिन्होंने तुम में से जुल्म किया (बल्कि तुम सब के सब उस में पड़ जाओंगे) और यक़ीन जानों के ख़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब करने वाला है।
(मुसलमानों वह वक़्त याद करो) जब तुम सर ज़मीन (मक्का) में बहुत कम और बिल्कुल बेबस थे उस से सहमे जाते थे के कहीं लोग तुमको उचक न ले जाए तो ख़ुदा ने तुम को (मदीने में) पनाह दी और ख़ास अपनी मदद से तुम्हारी ताईद की और तुम्हें पाक व पाकीज़ा चीज़ें ख़ाने को दी ताकि तुम शुक्रगाज़ारी करो ऐ (1) ईमानदारों न तो ख़ुदा और रसूल की (आमानत मे) ख़यानत करो और न अपनी आमानतों में ख़यानत करो हालाँकि तुम समझते बूझते हो और यक़ीन जानों के तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुम्हारी आज़माईश की चीज़ें(2) हैं कि जो उनकी मुहब्बत में भी खुदा को न बूले और वह (दीदार है) और यक़ीनन ख़ुदा के यहां बड़ी मज़दूरी है ऐ ईमानदारों अगर तुम ख़ुदा कसे डरते रहोगे तो वह तुम्हारे वास्ते इम्तेयाज़ पैदा कर देगा और तुम्हारी तरफ़ से तुम्हारे गुनाह का कुफ़्फारा क़रार देगा और तुम्हे बख़्श देगा और ख़ुदा बड़ा साहिबे फ़ज़्ल (व करम) है।
और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब कुफ़्फ़ार(3) तुमसे फरेब कर रहे थे ताकि तुमको क़ैद कर लें या तुमको मार डालें या तुम्हें (घर से) निकाल बाहर करे, वह तो ये तदबीर कर रहे थे और ख़ुदा भी (उन के खिलाफ़) तदबीर कर रहा था और ख़ुदा तो सब तदबीर करने वालों से बेहतर है, और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो बोल उठते हैं कि हमने सुना तो लेकिन अगर हम चाहें तो यक़ीनन ऐसा ही (कुरआन) हम भी कह सकते हैं ये तो बस अगली ही के क़िस्से हैं और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब उन काफ़िरों ने दुआएं मांगी थी कि ख़ुदा वंदा अगर ये (दीने इस्लाम) हक़ है और तेरे पास से (आया है) तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा(1) या हम पर कोई और दर्दनाक अज़ाब ही नाज़िल फ़रमा हालाँकि जब तक तुम उनके दरम्यान मौजूद(2) हो ख़ुदा उन पर अज़ाब नहीं करेगा और अल्लाह ऐसा भी नहीं के लोग तो उससे अपने गुनाहों की माफ़ी मां रहे हैं और खुदा उन पर अज़ाब नाज़िल फ़रमाएं
और जब ये लोग लोगों को मस्जिद उल हराम (ख़ान ए काबा की इबादत) से रोकते हैं तो फ़िर उनके लिए कौन सी बात बाक़ी है कि उन पर अज़ाब न नाज़िल करे और ये लोग तो ख़ाना ए काबा के मुतावल्ली भी नहीं (फिर क्यों रोकते हैं) उसके मुतावल्ली तो सिर्फ परहेज़गार लोग हैं मगर उन काफ़िरों में से बहुतसे नहीं जानते और ख़ानाए काबा के पास सीटियां और तालियां बजाने के सिवा उनकी नमाज़ ही क्या थी तो (ए काफ़िरों) जब तुम कुफ़्र किया करते थे उसकी सज़ा में (पड़े) अज़ाब के मज़े चखो उसमें शक नहीं के ये कुफ़्फ़ार अपने माल महज़ उस वास्ते खर्च करते हैं कि लोगों को रुहे खुदा से रोक दें तो ये लोग उसे अनक़रीब ही खर्च करेंगे फि़र उसके बाद उनकी हसरत का बाएस होगा फ़िर आख़िर ये लोग हार जाएंगे और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया (क़यामत में) सब के सब जहन्नुम की तरफ़ हांके जाएंगे ताकि ख़ुदा पाक को नापाक से जुदा कर दें और नापाक लोगों को एक दूसर पर रख के ढेर बनाए फ़िर सबको जहन्नुम में झोंग दें यही लोग घाटा उठाने वाले हैं।
(ऐ रसूल) तुम काफ़िरों से कह दो कि अगर वह लोग (अब भी अपनी शरारतों से) बाज़ रहें तो उनके पिछले क़ुसूर माफ़ कर दिये जाएं और अगर फि़र कहीं पलटे तो यक़ीनन अगलों के तरीक़े गुज़र चुके (जो उनकी सज़ा हुई वही उनकी भी होगी) मुसलमानों काफ़िरों से लड़़े जाओ यहां तक के कोई फ़साद (बाकी) न रहे और (बिल्कुल सारी ख़ुदाई में ख़ुदा का दीन ही दीन हो जाए फिर अगर ये लोग (फ़साद से) न बाज़ आएं तो ख़ुदा उनकी कार्रवाईयाँ को कूब देखता है और अगर सरताबी करें तो (मुसलमानों) समझ लो कि ख़ुदा यक़ीनन तुम्हारा मालिक है और वह क्या अच्चा मालिक है और क्या अच्छा मददगार है।

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