"बस हकीकत में ईद उसकी है"

महीने की मुनासबते
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जिसने लोगों में इत्तेहाद किया,

हर नफ़स अपने रब को याद किया,

हर बुरे काम से जिहाद किया,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

वो जो मक्कारियों से बाज़ रहा,

सजदागाहो को जिसपे नाज़ रहा,

वक्त पर शामिले नमाज़ रहा,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

जिसने मिस्कीनों का ख़याल किया,

काम जो भी किया हलाल किया,

कोई शर बोया न बवाल किया,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

राहे हक पर रहे कदम जिसके,

कल्ब ओ जाँ पेशे रब थे खम जिसके,

सब थे आमाल मोहतरम जिसके,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

जिसने कुरआन को समझ के पढ़ा,

कर दिये खुम्स और ज़कात अदा,

जिससे वाजिब न कोई तर्क हुआ,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

जो ख़ताओं से दूर दूर रहा,

पूरे रमज़ान बाशऊर रहा,

जिसकी बातों में सच का नूर रहा,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

जिसने बीमारों की अयादत की,

पूरी मजबूरों की ज़रुरत की,

बुग्ज़ दिल में रखा न गीबत की,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

जिसने लोगों का अहतराम किया,

हर भले फ़रद को सलाम किया,

जिससे रब खुश हो बस वो काम किया,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

जिसने रोज़ा रखा निगाहों का,

छोड़ आया सफ़र गुनाहों का,

जो मुसाफ़िर था हक की राहों का,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

जिसको रोज़े का अपने पास रहा,

पहन कर तकवे का लिबास रहा,

जिससे शैतान बदहवास रहा,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

वो जो शिकवे गिले भुला के मिला,

दिल से बुग्जो हसद मिटा के मिला,

मिला जिससे भी मुस्कुरा के मिला,

बस हकीकत में ईद उसकी है...

 

बात सच है नहीं अजब "सलमान",

तेरे आमाल ऐसे कब "सलमान",

देखकर तुझको कहदें सब "सलमान",

 

"बस हकीकत में ईद उसकी है"

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