हमने ईश्वरीय दूतों की उपस्थिति की आवश्यकता और उस पर कुछ शंकाओं पर चर्चा की किंतु जब हम यह कहते हैं कि मानव ज्ञान सीमित है और मनुष्य केवल अपने ज्ञान के बल पर ही ईश्वरीय अर्थों की पूर्ण रूप से जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता और उसके लिए ईश्वरीय संदेश आवश्यक है तो एक अन्य विषय सामने आता है कि साधारण मनुष्य में वह क्षमता नहीं होती है जिसके द्वारा वह ईश्वरीय संदेश को सीधे रूप से प्राप्त कर सके अर्थात ईश्वरीय संदेश मानव ज्ञान को ईश्वरीय शिक्षाओं तक पहुंचाने के लिए आवश्यक है इस पर हम चर्चा कर चुके हैं किंतु यह भी स्पष्ट सी बात है कि हर मनुष्य में यह योग्यता नहीं होती कि वह ईश्वरीय संदेश स्वंय प्राप्त कर सके क्योंकि ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने के लिए कुछ विशेषताओं की आवश्यकता होती है जिससे अधिकांश लोग वंचित होते हैं।
तो फिर ऐसी स्थिति में यदि सारे लोग ईश्वरीय संदेश प्राप्त नहीं कर सकते किंतु ईश्वरीय संदेश की आवश्यकता सबको है तो फिर एक ही दशा रह जाती है और वह यह कि कुछ विशेष लोग ईश्वरीय संदेश प्राप्त करें और फिर दूसरे लोगों तक उसे पहुंचाए और ताकि सब लोग उससे लाभ उठाएं और यह विशेष ही वास्तव में ईश्वरीय दूत होते हैं किंतु इस स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि इस बात की क्या ज़मानत है कि ईश्वरीय दूतों या उन विशेष लोगों ने ईश्वरीय संदेश सही रूप से प्राप्त किया है और फिर सही रूप से उसे लोगों तक पहुंचाया है?
फिर यह भी प्रश्न है कि यदि ईश्वरीय दूतों तक ईश्वर का संदेश किसी माध्यम द्वारा पहुंचा है तो वह माध्यम सही है और उसने पूरी सच्चाई के साथ ईश्वरीय संदेश ईश्वरीय दूतों तक पहुंचाया है इसकी क्या ज़मानत है?
यह एक तथ्य है कि ईश्वरीय संदेश मानव जीवन में पूरक की भूमिका निभाता है क्योंकि उसकी उपयोगिता ही यही है किंतु उसकी यह भूमिका उसी समय हो सकती है जब उसकी सच्चाई में किसी भी प्रकार का संदेश न हो अर्थात ईश्वरीय संदेश को मुख्य स्रोत से एक साधारण मनुष्य तक पहुंचने के लिए जो व्यवस्था हो वह ऐसी हो कि उसके बारे में किसी को किसी भी प्रकार का संदेह न हो। अर्थात यह व्यवस्था ऐसी हो कि कोई यह न सोचे कि हो सकता है ईश्वरीय संदेश कुछ और रहा हो और ईश्वरीय दूत ने जान बूझकर या ग़लती से उसमें कोई फेरबदल कर दी है। यदि ईश्वरीय संदेश के बारे में इस प्रकार की शंका उत्पन्न हो जाएगी तो उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाएगी क्योंकि लोगों का उस पर से विश्वास उठ जाएगा और लोग हर आदेश के बारे में शंका में पड़ गये जाएगें कि यह आदेश ईश्वर का है या फिर उसमें कोई फेर- बदल कर दी गयी है? तो प्रश्न यह उठता है कि यह विश्वास कैसे प्राप्त किया जाए? स्पष्ट सी बात है कि यह विश्वास प्राप्त करना भी कठिन है क्योंकि यह संदेश उन लोगों तक पहुंचाया जाएगा जिनमें उस संदेश को सीधे रूप से प्राप्त करने की योग्यता नहीं होगी और जब उनमें इस प्रकार की योग्यता नहीं होगी तो स्पष्ट है कि उन्हें ईश्वरीय संदेश के सही प्रारूप का भी पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं होगा और जब उन्हें ईश्वरीय संदेश के सही प्रारूप का ज्ञान नहीं होगा तो यह निर्णय भी अंसभव होगा कि संदेश सही प्रारूप में उन तक पहुंचा है या फिर उसमें कोई फेर- बदल की गयी है?
यह भी हम बता चुके हैं कि साधारण मनुष्य को परलोक के कल्याण के लिए ईश्वरीय ज्ञान की आवश्यता इसलिए होती है क्योंकि उसकी बुद्धि की सीमा होती है इसीलिए वह ईश्वरीय संदेशों को अपनी बुद्धि पर भी परख नहीं सकता तो फिर आम मनुष्य को यह विश्वास कैसे हो कि ईश्वरीय दूत, ईश्वरीय संदेश के नाम पर जो कुछ उनसे कह रहे हैं वह वास्तव में ईश्वरीय संदेश है और उसमें किसी प्रकार की कोई फेर- बदल नहीं की गयी है? इस शंका का उत्तर इस प्रकार से दिया जा सकता है कि हम यह सिद्ध कर चुके हैं हमारी बुद्धि कुछ बौद्धिक तर्कों के आधार पर इस बात को आवश्यक समझती है कि मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए ईश्वरीय संदेश का होना आवश्यक है। इसी प्रकार हमारी बुद्धि यह बात बड़ी सरलता से समझ सकती है कि ईश्वरीय कृपा व ज्ञान के अंतर्गत यह आवश्यक है कि उसका संदेश सही रूप और प्रारूप में लोगों तक पहुंचे क्योंकि यदि सही रूप में नहीं पहुंचेगा या संदिग्ध होगा तो उससे लोगों का विश्वास उठ जाएगा और विश्वास उठने से उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाएगी और हम इस पर चर्चा कर चुके हैं कि ईश्वर के तत्व ज्ञान के दृष्टिगत इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वह ऐसा कोई काम करे जो निरर्थक हो।
दूसरे शब्दों में जब यह ज्ञान हो गया कि ईश्वरीय संदेश एक या कई माध्यमों से जनता तक पहुंचते हैं ताकि मनुष्य पूर्णरूप से अपने अधिकार से लाभ उठा सके जो वास्तव में ईश्वर का उद्देश्य है तो फिर ईश्वर और उसके गुणों के संदर्भ में हमारी जो विचार धारा है और उसके तत्वज्ञान के आधार पर हमें यह भी मानना होगा कि यह ईश्वर अपने संदेश को सुरक्षित रूप से आम लोगों तक पहुंचाने की व्यवस्था करेगा क्योंकि यदि उसने इसकी कोई व्यवस्था नहीं की कि उसका संदेश उसके बंदो तक सुरक्षित रूप में और बिना किसी हेर- फेर के पहुंचें तो यह उसके तत्वज्ञान से दूर और दूरदर्शिता से ख़ाली काम होगा क्योंकि यदि हम यह मान लें कि ईश्वरीय संदेशों में फेर- बदल हो सकती है तो इसका अर्थ यह होगा कि ईश्वर अपने संदेश को गलत लोगों द्वारा फेर-बदल से बचाने में सक्षम नहीं है और हम चर्चा कर चुके हैं कि ईश्वर हर काम में सक्षम है और विवशता उसके निकट फटक भी नहीं सकती अर्थात ईश्वर कभी भी किसी भी दशा में विवश नहीं हो सकता बल्कि यह सोचा भी नहीं जा सकता कि वह विवश हो सकता है क्योंकि विवशता सीमा के कारण होती है और ईश्वर की कोई सीमा नहीं है। इन सब विषयों पर हम चर्चा कर चुके हैं।
इसके अतिरिक्त हम इस बात को भी तर्कों द्वारा स्वीकार कर चुके हैं कि ईश्वर को हर वस्तु और हर विषय का ज्ञान है बल्कि वह स्वंय ज्ञान है तो फिर इस विचार के साथ यह नहीं सोचा जा सकता कि वह अपने इस ज्ञान के होते हुए भी अपने संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए ऐसे माध्यम का चयन करेगा जिससे ग़लती हो सकती हो या जो भूल कर संदेश में उलट- फेर कर सकता हो या उसे उसके असली प्रारूप में लोगों तक पहुंचाने में सक्षम न हो।
इस प्रकार से ईश्वर ऐसे साधन का चयन करेगा जो हर प्रकार से संतोषजनक हो क्योंकि अविश्वस्त साधन का चयन करने का अर्थ यह होगा कि उसे साधन के बारे में पूर्ण ज्ञान नहीं था और यह संभव नहीं है क्योंकि ईश्वर को हर वस्तु का ज्ञान है। तो इस प्रकार से बौद्धिक तर्कों से यह सिद्ध हो गया कि हमने ईश्वर के लिए जिन विशेषताओं को प्रमाणित किया है उनके आधार पर यह आवश्यक है कि उसके द्वारा चुने गये संदेशवाहक विश्वस्त हों और यह बात हमें बौद्धिक तर्कों के आधार पर स्वीकार करनी पड़ेगी और यह वह विषय है जिस पर स्वंय ईश्वरीय संदेशों में भी अत्यधिक बल दिया गया है।
ईश्वर और उसका ज्ञान
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