तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-11

कुरआन मजीद
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जब(1) तुम इनके पास (जेहाद से लौट कर) वापस आओगे तो ये (मुनाफ़ेक़ीन) तुम से (तरह तरह) की माज़ेरत करेंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बातें न बनायें हरगिज़ तुम्हारी बात बावर न करेंगे (क्योंकि) हमें तो ख़ुदा ने तुम्हारे हालात से आगाह कर दिया हे अनक़रीब ख़ुदा और उस का रसूल तुम्हारी कारस्तानों को गुलाहेज़ा फ़रमायेंगे फ़िर तुम ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले (ख़ुदा) की हुजूरी में लौटा दिए जाओगे तो जो कुछ तुम (दुनियां में) करते थे (ज़र्रा ज़र्रा) बता देगा जब तुम उन के पास (जेहाद से) वापस आओगे तो तुम्हारे सामने ख़ुदा की क़स्में खाएंगे ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो तो तुम इन की तरफ़ से मुंह फेर लो बेशक ये लोग नापाक है और इन का ठिकाना जहन्नुम है (ये) सज़ा है उस की जो ये (दुनियां में) किया करते थे तुम्हारे सामने ये लोग क़स्में खाते हैं ताकि तुम इन से राज़ी हो जाओ अगर तुम इन से राज़ी हो (भी) जाओ तो ख़ुदा बदकार लोगों से हरगिज़ कभी राज़ी नहीं होगा।
(ये) अरब के गवार(3) देहाती कुफ्र नेफ़ाक़ में बड़े सख़्त हैं और उसी क़ाबिल है कि जो किताबे ख़ुदा ने अपने रसूल पर नाज़िल फरमाई है इसके अहकाम न जाने और ख़ुदा तो बड़ा दाना हकीम है और कुछ गवार देहाती (ऐसे भी हैं कि जो कुछ ख़ुदा की) राह में खर्च करते हैं उसे तावान समझते हैं और तुम्हारे हक़ में (ज़माने की) गर्दिशों के मुन्तज़िर है उन्हीं पर (ज़माने की) बुरी गर्दिश पड़े और ख़ुदा तो सब कुछ सुनता जानता है और कुछ देहाती तो ऐसे ही हैं जो खुदा और आख़ेरत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ खर्च करते हैं उसे ख़ुदा की (बारगाह में) नज़दीकी और रसूल की दुआओं का ज़रिया समझते हैं आगाह रहे वक़ई ये (ख़ैरात) ज़रुर उन के तक़रूब का बाएस है ख़ुदा उन्हें बहुत जल्दी अपनी रहमत में दाख़िल करेगा बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और मुहाजेरीन(1) व अंसार में से (ईमान की तरफ़) सबक़त करने वाले और वह लोग जिन्होंने नेक नियती से क़बूल ईमान में उन का साथ दिया ख़ुदा उन से राज़ी और वह ख़ुदा से ख़ुश और उन के वास्ते ख़ुदा ने (वह हरे भरे) बाग़ जिन के नीचे नहरें जारी हैं तैयार कर रखे हैं वह हमेशा तक उन में रहेंगे यही तो बड़ी कामयाबी है।
और (मुसलमानों) तु्म्हारे एतराफ़ के गवार देहातियों में से बाज़ मुनाफ़िक (भी) हैं और ख़ुद मदीने के रहने वालों से भी (बाज़ मुनाफिक़ हैं) जो नेफ़ाक़ पर अड़ गए हैं (ऐ रसूल) तुम उन को नहीं जानते (मगर) हम उन को (ख़ूब) जानते हैं। अन्क़रीब हम (दुनियां ही में) उन की दोहरी सज़ा करेंगे फिर ये लोग (क़यामत में) बड़े अज़ाब की तरफ लौटाये जाएंगे और कुछ लोग हैं जिन्होंने अपने गुनाहों का (तो) इक़रार किया (मगर) उन लोगों ने भले काम को और कुछ बुरे काम को मिला जुला (के गोल माल) कर दिया क़रीब है के ख़ुदा उन की तौबा(1) क़बूल करले (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनी बड़ा बख़्शने वाला है मेहरबान है।
(ऐ रसूल) उन से माल की ज़कात लो (और) उसकी बदौलत उन को (गुनाहों से) पाक़ साफ़ कर दो और उनके वास्ते दुआए ख़ैर करो क्योंकि तुम्हारी दुआ उन लोगों के हक़ में इतमिनान (का बाएस है) और ख़ुदा तो (सब कुछ) सुनता (और) जानता है क्या उन लोगों ने इतना भी नहीं जाना के यक़ीनन ख़ुदा ही अपने बन्दों की तौबा कबूल करता है और वही ख़ैरात (भी) लेता है और उसमें शक नहीं है के वही तौबा का बड़ा क़बूल करने वाल मेहरबान है और (ऐ रसूल) तुम कह दो के तुम लोग अपने अपने काम किए जाओं अभी तो ख़ुदा और उस का रसूल और मोमीनीन तुम्हारे कामों को देखेंगे और बहुत जल्द (क़यामत में) ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले (ख़ुदा) की तरफ़ लौटाएं जाओगे तब वह जो कुछ भी तुम करते थे तुम्हें बता देगा और कुछ और लोग हैं जो हुक्म खञुदा के उम्मीद वार किये गये हैं (उस को इख़्तेयार है) ख़्वाह उन पर अज़ाब करे या उन पर मेहरबानी करे और खुदा (तो) बड़ा वाक़िफ़दार हिकमत वाला है।
और (वह लोग भी मुनाफ़िक़ हैं) जिन्होंने(1) (मुसलमानों के) नुक़सान पहुँचाने और कुफ़्र करने वाले और मोमिनीन के दरम्यान तफ़रेक़ा डालने और उस शख़्स की घात में बैठऩे वास्ते मस्जिद बना कर खड़ी की है जो ख़ुदा और उस के रसूल से पहले लड़ चुका है (और लुत्फ़ तो ये है के) ये लोग ज़रुर क़स्में खाएंगे के हम ने भलाई के सिवा कुछ और इरादा नहीं किया और ख़ुदा ख़ुद गवाही देता है के ये लोग यक़ीनन झूठे हैं।
(ऐ रसूल) तुम इस (मस्जिद) में कभी खड़े भी न होना वह मस्जिद(2) जिस की बुनियाद अव्वल रोज़ से परहेज़गारी पर रखी गयी है वह ज़रुर उसकी ज़्यादा हक़दार है के तुम उसमें खड़े होकर (ऩमाज़ पढ़ो क्योंकि) उस में वह लोग हैं हो पाक पाकीज़ा रहने को पसंद करते हैं ख़ुदा भी पाक व पाकीज़ा रहने वालों को दोस्त रखता है जिस शख़्स ने ख़ुदा के खौफ़ और खुशनुवदी पर अपनी इमारत की बुनियाद डाली हो वह ज़्यादा अच्छा है या वह शख़्स खुशनुदी पर अपनी इमारत उस बाद कनारे लब पर रखी हो जिसमें दराड़ पड़ चुकी हैं और अगर चाहता हो फ़िर वह उसे ले दे के जहन्नुम की आग में फट पड़े और ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मंज़िले मक़सूद (तक नही पहुँचाया करता) (ये इमारत की) बुनियाद जो उन लोगों ने क़ायम की उसके सबब से उनके दिलों में हमेशा धकड़ पकड रहेगा यहां तक के उनके दिलों के परखच्चे फड़ जाएंगे और ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार हकीम है इसमें तो शक ही नहीं के ख़ुदा ने मोमीनीन से उनकी जाने और उनके माल इस बात पर ख़रीद लिये हैं कि (उनकी क़ीमत) उनके लिए बेहिश्त है (उसी वजह से) ये लोग ख़ुदा की राह में लड़ते हैं तो (कुफ़्फ़ार को) मारते हैं और ख़ुदा भी मारे जाते हैं (ये) पक्का वादा है (जिस का पूरा करना) ख़ुदा पर लाज़िम है (और ऐसा पक्का है कि) तौरेत और इंजील और कुरआन (सब) में (लिखा हुआ है) और अपने अहद का पूरा करने वाला ख़ुदा से बढ़कर और कौन है तुम तो अपनी (ख़रीद) फ़रोख़्त से जो तुम ने ख़ुदा से की है खुशियां मनाओ यही तो बड़ी कामयाबी है (ये लोग) तौबा करने वाले इबादत गुज़ार (ख़ुदा की) हमदों सना करने वाले (उसकी राह में) सफ़र करने वाले रुकूअ करने वाले सजदाह करने वाले नेक काम करने वाले और बुरे काम से रोकने वाले और ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदों के निगाह रखने वाले हैं।
और (ऐ रसूल) उन मोमिनीन को (बेहिश्त की) ख़ुशख़बरी दे दो नबी और मोमिनीन पर जब ज़ाहिर हो चुका के मुशरकीन जहन्नुमी हैं तो उसके बाद मुनासिब नहीं कि उनके लिए मग़फ़िरत की दुआएं मांगे अगर चे वह मुशरकीन उनके क़राबदतदार ही (क्यों न) हों और इब्राहीम का अपने पाप के लिए मग़फिरत की दुआ मांगना सिर्फ उस वादे की वजह से था जो उन्होंने अपने बाप से कर लिया था फइर जबह उनको मालूम हो गया कि वह यक़ीनी ख़ुदा का दुश्मन है तो उससे बेज़ार हो गये बेशक इब्राहीम यक़ीनन बड़े दर्दमन्द बुर्दबार थे।
ख़ुदा की ये शान नहीं कि(1) किसी क़ौम को जब उनकी हिदायत कर चुका हो उसके बाद उन्हें गुमराह कर दे हत्ता कि वह उन्हीं चीज़ों को बता दे जिससे वह परहेज़ करे बेशक ख़ुदा हर चीज़ से वाक़िफ़ है इसमें तो शक ही नहीं के सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़ुदा ही के लिए ख़ास है वही (जिसे चाहे) जलाता है और (जिसे चाहे) मारते है और तुम लोगों का ख़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त है और न मददगार अलबत्ता ख़ुदा ने नबी और उन मुहाजेरीन व अंसार बर बड़ा फज़ल किया जिन्होंने तंगदस्ती के वक़्त में रसूल का साथ दिया और वह भी उसके बाद के क़रीब था के उनमें से कुछ लोगों के दिल डगमगा जाएं फिर ख़ुदा ने उम पर (भी) फज़्ल किया उसमें शक नहीं के वह उन लोगों पर बड़ा तरस खाने वाला मेहरबान है।
और उन तीनों(1) पर (भी फज़्ल किया) जो (जेहाद से पीछे रह गए थे और उन पर सख़्ती की गई) यहां तक कि ज़मीन बावजूद उस वुसअत के उन पर तंग हो गई और उन की जानें (तक) उन पर तंग हो गई और उन लोगों ने समझ लिया के ख़ुदा के सिवा और कोई पनाह की जगह नहीं फिर ख़ुदा ने उन को तौबा की तौफ़ीक दी ताकि वह (ख़ुदा की तरफ) रुजु करें बेशक ख़ुदा ही बड़ा तौबा कबूल करने वाला मेहरबान है।
ऐ ईमानदारों। ख़ुदा से डरो और सच्चों(2) के साथ हो जाओ मदीने के रहने वालों और उन के गिर्द व नवाह देहातियों को ये जायज़ न था कि रसूल ख़ुदा का साथ छोड़ दें और न ये (जाएज़ था) के रसूल की जान से बेपरवाह होकर अपनी जानों के बचाने की फि़क्र करें ये हुक्म उसी सबब से था कि उन (जेहाद करने वालों) को ख़ुदा की राह में जो तकलीफ़ प्यास की या मेहनत या भूख की शिद्दत की पहुँचती है या ऐसी राह चलते हैं जो कुफ़्फ़ार के गैज़ व गज़ब का बाएस हो या किसी दुश्मन से कुछ ये लोग हासिल करते हैं तो बस उसके एवज़ में (उन के नामा ए आमाल में) एक नेक काम लिख दिया जाएगा बेशक ख़ुदा नेकी करने वालों का अज्र (व सवाब) बरबाद नहीं करता और ये लोग (ख़ुदा की राह में) थोड़ा या बहुत माल नहीं खर्च करते और किसी मैदान को नहीं क़ताअ करते मगर फ़ौरन (उनके नाम ए आमाल में) उन के नाम लिख दिया जाता है ताकि ख़ुदा उनकी कारगुज़ारियों का उन्हें अच्छे से अच्छा बदला अता फ़रमाए।
और ये भी मुनासिब नहीं के मोमीनीन कुल के कुल (अपने घरों से) निकल खड़ें हों और उनमें से हर गिरोह की एक जमाअत (अपने घरों से) क्यों नहीं निकलती ताकि इल्मे दीन(1) हासिल करे और जब अपनी क़ौम की तरफ़ पलट कर आये तो उनको (अज़ाब ए आख़ेरत से) डराएं ताकि ये लोग डरें ऐ ईमानदारों कुफ़्फ़ार में से जो लोग तुम्हारे आस पास के हैं उन से डरो और (उस तरह लड़ना) चाहिए के वह लोग तुम में करारपन महसूस करें और जान रखों के बेशुब्हा ख़ुदा परहेज़गारों के साथ है और जब कोई सूरा नाज़िल किया गया तो उन मुनाफ़ेक़ीन में से (एक दूसरे से) पूछता है के भला उस सूरेः ने तुम में से किस का ईमान बढ़ा दिया तो जो लोग ईमान ला चुके हैं उनका तो सूरेः ने ईमान बढ़ा दिया और वह (उस की) ख़ुशियां मनाते हैं मगर जिन लोगों के दिल में (निफ़ाक़ की) बिमारी है तो उन (पिछली) ख़बासत पर इस सूरे ने एक ख़बासत और बड़ा दी और ये लोग कुफ्र ही की हालत में मर गए।
क्या वह लोग (इतना भी) नहीं देखते कि वह हर साल एक मर्तबा या दो मर्तबा बला में मुब्तिला किए जाते हैं फिर भी न तो ये लोग तौबा ही करते हैं और न नसीहत ही मानते हैं और जब कोई सूरा नाज़िल किया गया तो उसमें से एक की तरफ एक देखने लगा (और ये कह कर के) तुम को कोई मुसलमान देखता तो नहीं है फिर (अपने घर) पलट जाते हैं।
(ये लोग क्या पलटेंगे गोया) ख़ुदा ने उनके दिलों को पलट दिया है के उस सबब से के ये बिल्कुल ना समझ लोग हैं लोगों तुम ही में से (हमारा) एक रसूल तु्म्हारे पास आ चुका (जिसकी शफ़ाक़्क़त की ये हालत है के) उस पर शाक़ है के तुम तक्लीफ उठाओ और उसे तुम्हारी बेहबूदी का हौका है ईमादारों पर हद दर्जा शफ़क़ मेहरबान हैं- ऐ रसूल अगर इस पर भी ये लोग (तुम्हारे हुक्म से) मुंह फेरे तो तुम कह दो के मेरे लिए क़ाफ़ी है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मैंने उस पर भरोसा रखा है वही अर्श (ऐसे) बुज़ुर्ग (मख़्लूक़ का) मालिक है।
सूरे: यूनूस


सूरे: युनूस(1) मक्के में नाज़िल हुआ और इसमें 106 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
अलिफ़-लाम-रा ये आयतें उस किताब की हैं जो (सर से पैर तक) हिकमत से भरा है क्या लोगों को इस बात से बड़ा ताज्जुब हुआ कि हमने उन्हीं लोगों में से एक आदमी के पास वही भेजी कि (वे ईमानदार) लोगों को डराओ और ईमानदारों(2) को उसकी खुशख़बरी सुना दो के उन के लिए उन के परवरदिगार की बारगाह में बुलंद दर्जा है।
(मगर) कुफ़्फ़ार (उन आयतों को सुनकर) कहने लगे के ये (शख़्स) तो यक़ीनन सरीही जादूगर है उसमें तो शक ही नहीं के तुम्हारा परवरदिगार वही खुदा है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को छः दिन में पैदा किया फिर उसने अर्शे को बुलंद किया वही हर काम का इंतेज़ाम करता है (उस के सामने) कोई (किसी का) सिफ़ारशी नहीं (हो सकता) मगर उसकी इजाज़त के बाद वही ख़ुदा तो तुम्हारा परवरदिगार है तो उसी की इबादत करो तो क्या तुम अब भी ग़ौर नहीं करते तुम सबको (आख़िर) उसी की तरफ़ लौटना है ख़ुदा का वादा सच्चा है वही यक़ीनन मख़लूक को पहले मर्तबा पैदा करता है फिर (मरने के बाद) वही दुबारा ज़िन्दा करेगा ताकि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किये उन को इंसाफ के साथ जज़ाए(ख़ैर) अता फ़रमाएगा और जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उनक के लिए उन की कुफ़्र की सज़ा में पीने को खोलता हुआ पानी और दर्दनाक अज़ाब होगा।
वह (ख़ुदा क़ादिर) है जिसने आफ़ताब को चमकदार और महताब को रौशन बनाया और उसकी मंज़िले(1) मुक़र्रर की ताकि तुम लोग बरसों की गिनती और हिसाब मालूम करो ख़ुदा ने उसे हिक़मत व मसलहेत से बनाया है वह (अपनी) आय़तों को वाक़िफ़दार लोगों के लिए तफ़सीलदार बयान करता है उस में ज़रा भी शक नहीं कि रात दिन के उलट फ़ेर में और जो कुछ ख़ुदा ने आसमानों और ज़मीन में बनाया है (उसमें) परहेज़गारों के वास्ते बहुतसी निशानियां है उसमें भी शक नहीं के जिन लोगों को (क़यामत में) हमारी (बारगाह की) हुजूरी का ठिकाना नहीं और दुनिया की (चंद रोज़ा) जि़न्दगी से निहाल हो गये और उसी पर चैन से बैठे हैं और जो लोग हमारी आयतों से ग़ाफ़िल हैं यही वह लोग हैं जिन का ठिकाना उन की करतूत की बदौलत जहन्नुम है।
बेशक जिन लोगों ने ईमान कूबूल किया और अच्छे अच्छे काम किये उन्हें उनका परवरदिग़ार उन के ईमान के सबब से मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा देगा कि आराम व आसाइश के बागों में (रहेंगे)
और उनके नीचे नहरें जारी होंगी उन बाग़ों मे उन लोगों का बस ये क़ौल होगा ऐ ख़ुदा तू पाक व पाकीज़ा है और उन्हें उनकी बाहमी ख़ैर सलामी सलाम से होगी और उनका आख़िरी क़ौल ये होगा कि सब(1) तारीफ़ ख़ुदा ही को सज़ावार है जो सारे ज़हान का पालने वाला है।
और जिस तरह लोग अपनी भलाई के लिए जल्दी कर बैठे हैं उसी तरह अगर ख़ुदा उनकी शरारतों की (सज़ा में) बुराई में जल्दी कर बैठता है तो उनकी मौत उनके पास की आ चुकी होती मगर हम तो उन लोगों को जिन्हें (मरने के बाद) हमारी हुजूरी की खटका नहीं छोड़ देते हैं कि वह अपनी सरकशी में आप सरगदों रहे
और इंसान को जब कोई नुक़सान छू भी गया तो अपने पहले पर (लेटा हुआ) या बैठा हुआ या खड़ा (गरज़ हर हालत में) हम को पुकारता है फ़िर जब हम उससे उसकी तकलीफ़ को दूर कर देते हैं तो ऐसा (आहिस्ता) ख़िसक जाता है कि गोया उसने तकलीफ़ के (दफ़ा करने के) लिये जो उसको पहुंची थी हमको पुकारा ही न था जो लोग ज़्यादती करते हैं उनकी कारस्तानियों ही उन्हें अच्छी कर दिखाई गई हैं।
और तुमसे पहली उम्मत वालों को जब उन्होंने शरारत की तो हम ने उन्हें ज़रुर हलाक कर डाला हालाँकि उनके (वक़्त के) रसूल वाज़ेह व रोशन मोजज़ात लेकर आ चुके थे और वह लोग ईमान (न लाना था) न लाए हम गुनाहगार लोगों की यूं ही सज़ा दिया करते हैं।
फिर हमने उनके बाद तुमको ज़मीन में (उनका) जानाशीन बनाया ताकि हम (भी) देखें कि तुम किस तरह काम करते हो और जब उन लोगों के सामने हमारी रोशन आयतें पढ़ी जाती हैं जो जिन लोगों को (मरने के बाद) हमारी हुजूरी का खट्का नहीं है वह कहते हैं कि हमारे सामने उसके अलावा कोई दूसरा कुरआन लाओ या इसको रद्दो बदल कर डालो।
(ऐ रसूल) कह दो के मुझे ये इख़्तेयार नहीं कि मैं उसे अपनी जी से बदल डालूं मैं तो बस उसी का पाबन्द हूं जो मेरी तरफ वही की गई है मैं तो अगर अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी करूं तो बड़े (कठिन) दिन के अज़ाब से डरता हूं
(ऐ रसूल) कह दो के अगर खु़दा चाहता तो मैं न तुम्हारे सामने उसको पढ़ता और न वह तुम्हें उससे आगह करता क्योंकि मैं तो (आख़िर) तुम में उससे पहले मुद्दतों रह चुका हूं (और कभी वही का नाम भी न लिया) तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते तो जो शख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बांधे या उसकी आयतों को झुठलाए उससे बढ़ कर और ज़ालिम कौन होगा उसमें शक नहीं कि (ऐेसे) गुनाहगार कामयाब नहीं हुआ करते ये लोग ख़ुदा को छोड़ कर ऐसी चीजों की परस्तिश करते हैं जो उनको नुक़्सान ही पहुंचा सकती है न नफ़ा और कहते हैं कि ख़ुदा के हां यही लोग हमारे सिफ़ारशी होंगे
(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कहो(1) तो क्या तुम ख़ुदा को ऐसी चीज़ की ख़बर देते हो जिसको वह न तो आसमानों में (कहीं) पाता है और न ज़मीन में ये लोग जिस चीज़ को उसका शरीक बनाते हैं उससे वह पाक साफ़ और बरतर है और सब लोग तो (पहले) एक ही उम्मत थे और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक बात (क़यामत का वादा) पहले न हो चुकी होती जिसमें ये लोग इख़्तेलाफ़ कर रहे हैं उसका फ़ैसला उनका दरम्यान (कब न कब) कर दिया गया होता
और कहते हैं कि उस पैग़म्बर पर कोई मोजज़ा (हमारी ख़्वाहिश के मुवाफ़िक़) क्यों नहीं नाज़िल किया गया (ऐ रसूल) तुम कह दो के ग़ैब (का जानना) तो सिर्फ ख़ुदा के वास्ते ख़ास है तो तुम भी इन्तेज़ार करो और तुम्हारे साथ मैं यक़ीनन इन्तेज़ार करने वालों मे हूँ और लोगों को जो तकलीफ़ पहुँची उसके बाद जब हमने अपनी राहमत का ज़ाएक़ा चखा दिया तो यकायक उन लोगों ने हमारी आयतों में जल्द बाज़ी शुरु कर दी।
(ऐ रसूल) तुम कह दो के तद्बीर मैं ख़ुदा सब से(2) ज्यादा तेज़ है तुम जो कुछ मक़्कारी करते हो वह हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) लिखते जाते हैं वह वही ख़ुदा है जो तुम्हें खु्श्की और दरिया में सैर करता फिरता है यहां तक कि जब (कभी) तुम कश्तियों पर सवार होते हो और वह उन लोगों को बाद मुवाफ़िक़ की मदद से ले कर चली और लोग उस (की रफ़्तार) से खुश हुए (यकायक) कश्ती पर हवा का एक झोका आ पड़ा और (आना था कि) हर तरफ से उस पर लहरें (बढ़ी चली) आ रहीं हैं उन लोगों ने समझ लिया के अब गिर गए (और जान न बचेगी) तब अपने अक़ीदे को उसी के वास्ते निरा खुश करके खुदा से दुआएं मांगने लगते हैं कि (खु़दाया) अगर तुम ने उस (मुसीबत) से हमे निजात दे तो हम ज़रुर बड़े शुक्रगुज़ार होंगे फिर जब खुदा ने उन्हें निजात दी तो वह लोग ज़मीन पर (क़दम रखते ही) फ़ौरन नाहक़ सरकशी करने लगते हैं।
ऐ लोगों तुम्हारी सरकशी का (बवाल) तो तुम्हारी ही जान पर है (ये भी) दुनियांवी (चन्द रोज़ा) ज़िंदगी का फायदा है फ़िर आख़िर हमारी (ही) तरफ़ तुम को लौट कर आना है तो (उस वक़्त) हम तुमको जो कुछ (दुनियां में) करते थे देंगे दुनियावी जि़न्दगी की मसल तो बस पानी की सी है कि हमने उसको आसमान से बरसाया फिर ज़मीन के साग पात जिसको लोग और चोपाए खा जाते हैं उसके साथ मिल जुल कर निकले यहां तक कि जब ज़मीन ने (फ़सल की चीज़ों से) अपने बनाव सिंगार कर लिया और (हर तरह) आरास्ता हो गई और खेत वालों ने समझ लिया अब वह उस पर यक़ीनन क़ाबू पा गये (जब चाहेंगे काट लेंगे) यकायक हमारा हुक्मे अज़ाब रात था दिन को आ पहुंचा तो हमने उस खेत को ऐसा साफ़ कटा हुआ बना दिया कि गोया कल उस पर कुछ था ही नहीं जो लोग ग़ौर व फ़िक्र करते हैं उनके वास्ते हम आयतों को तफ़सीलदार बयान करते हैं और ख़ुदा तो आराम के घर (बेहिश्त) की तरफ़ बुलाता है और जिसको चाहता है सीधे रास्ते की हिदायत करता है जिन लोगों ने दुनिया में भलाई की उनके लिए (आख़रत में भी) भलाई है (बल्कि) और कुछ बढ़ कर और न (गुनाहगारों की तरफ़) उनके चेहरों पर कालिख़ लगी होगी और न (उन्हें) जि़ल्लत होगी यही लोग जन्नती हैं कि उसमें हमेशा रहा सहा करेंगे।
और जिन लोगों ने बुरे काम किये हैं तो गुनाह की सज़ा उसके बराबर है और उन पर रुसवाई छाई होगी ख़ुदा (के अज़ाब) से नका कोई बचाने वाला न होगा (उनके मुंह ऐसे काले होंगे) गोया उनके येहरे शबे देजोर के टुकड़े से ढक गये हैं यही लोग जहन्नुमी है कि ये उसमें हमेशा रहेंगे (ऐ रसूल उस दिन से डराओ) जिस दिन हम सबको इकट्ठा करेंगे-फ़िर मुशरेकीन से कहेंगे कि तुम और तुम्हारे (बनाए हुए ख़ुदा के) शरीक ज़रा अपनी जगह ठहरो फ़िर हम बाहम उनमें फूट डाल देंगे और उनके शरीक उनसे कहेंगे कि तुम तो हमारी परस्तिश करते न थे तो (अब) हमारे और तुम्हारे दरम्यान गवाही के वास्ते ख़ुदा ही काफ़ी है हमको तुम्हारी परस्तिश की कुछ ख़बर ही न थी (गरज़) वहां हर शख़्स जिसने पहले (दुनियां में) किया है जान लेगा और वह सब के सब अपने सच्चे मालिक खुदा की बारगाह में लौटा कर लाए जाएंगे और (दुनिया मे) जो कुछ इफ़़तेरा परदाज़िया करते थे सब उनके पास से चल चंपत हो जाएंगे।
ऐ रसूल तुम (उन से ज़रा) पूछो तो कि तुम्हे आसमान व ज़मीन से कौन रोज़ी देता है या (तुम्हारे) कान और (तुम्हारी) आँखों का कौन मालिक है और कौन शख़्स मुरदे से ज़िन्दा को निकालता है और ज़िन्दा से मुर्दे को निकालता है और हर अम्र का बंदोबस्त कौन करता है तो फ़ौरन बोल उठोगे कि ख़ुदा
(ऐ रसूल) तुम कहो तो क्या उस पर भी (उससे) नहीं डरते हो फ़िर वही ख़ुदा तो तुम्हारा सच्चा मुरब्बी है फ़िर हक़ बात के बाद गुम्राही के सिवा और क्या है फिर तुम कहां फिरे चले जा रहे हो यूं तुम्हारे परवरदिगार को बात बदचलन लोगों पर साबित होकर रही कि ये लोग हरगिज़ ईमान न लाएंगे (ऐ रसूल) उन से पूछो कि तुमने उन लोगों को (ख़ुदा का) शरीक बनाया है कोई भी ऐसा है जो मख़लूक़ात को पहली बार पैदा करे फिर उनको (मरने के बाद) दोबारा ज़िन्दा करे (तो क्या जवाब देंगे) तुम्हीं कहो कि ख़ुदा ही पहले भी पैदा करता है फिर वही दूबारा ज़िन्दा करता है तो किधर तुम उल्टे जा रहे हो।
(ऐ रसूल उन से) कहो तो कि तुम्हारे (बनाए हुए) शरीकों में से कोई ऐसी भी है जो तुम्हें (दीन) हक़ की राह दिखा सके तुम ही कह दो कि (ख़ुदा) दीने हक़ की राह दिखता है तो जो(1) तुम्हें दीने हक़ राह दिखाता है क्या वह ज़्यादा हक़दार है कि उसके हुक्म की पैरवी की जाए क्या वह शख़्स (दूसरे) की हिदायत तो दरकिनार ख़ुदी ही जब तक दूसरा उसको राह न दिखाए राह नहीं देख पाता तो तुम लोगों को क्या हो गया है तुम कैसे हुक्म लगाते हो और उनमें के अक्सर(2) तो बस अपने गुमान पर चलते हैं (हालांकि) गुमान यक़ीन के मुक़ाबले में हरगिज़ कुछ भी काम नहीं आ सकता बेशक वह लोग जो कुछ (भी) कर रहे हैं, ख़ुदा उसे खूब जानता है, और ये कुरआन ऐसा नहीं है कि ख़ुदा के सिवा कोई अपनी तरफ से झूट झूट बना डाले बल्कि (ये तो) जो (किताबें) पहले की उसके सामने मौजूद हैं उसकी तस्दीक़ और (उन) किताबों की तफ़्सील है उसमें कुछ भी शक नहीं के सारे जहान के परवरदिगार की तरफ़ से है क्या ये लोग कहते हैं कि उसको रसूल ने ख़ुदा झूट मूट बना लिया है।
(ऐ रसूल) तुम कहो कि (अच्छा) तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (भला) एक ही सूराः उसके बराबर का बना लाओ और ख़ुदा कि सिवा जिस को तुम्हें (मदद के वास्ते) बुलाते बन पड़े बुला लो (ये लोग लाते तो क्या) बल्कि (उल्टे) जिस के जानने पर उन का दस्तरस न हो लगे उसको झुठलाने हालांकि अभी तक उनके ज़हन में उसके माअनी नहीं आए उसी तरह उन लोगों ने भी झुठलाया था जो उनके पहले थे- तब ज़रा गौर तो करो कि (उन) ज़ालिमों का कैसा (बुरा) अंजाम हुआ और उन में से बाज़ तो ऐसे हैं कि इस कुरआन पर आइन्दा ईमान लाएंगे और बाज़ ऐसे हैं जो ईमान लाएंगे ही नहीं और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार तो फ़सादियों को ख़ूब जानता है और अगर वह तुम्हें झुठलाए तो तुम कह दो कि हमारे लिए हमारी कारगुज़ारी है और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारस्तानी जो कुछ मैं करता हूँ उसके तुम ज़िम्मेदार नहीं और जो कुछ तुम करते हो उससे मैं बुरी हूँ और उनमें से बाज़ ऐसे हैं कि तुम्हारी ज़बानों की तरफ़ कान लागाए रहते हैं तो (क्या वह तुम्हारी सुन लेंगे हरगि़ज़ नहीं) अगर चे वह कुछ समझ भी न सकते हो तुम कहीं बहरों को कुछ सुना सकते हो और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो तुम्हारी तरफ़ (टकटकी बांधे) देखते हैं तो (क्या वह ईमान लाएंगे हरगिज़ नहीं) अगर ये उन्हें कुछ न सूझता तो तुम अंधे को रारे रास्त दिखा दोगे
खुदा तो हरगिज़ लोगों पर कुछ भी ज़ुल्म नहीं करता मगर ख़ुद अपने ऊपर (अपनी करतूत से) जुल्म किया करते हैं और जिस दिन ख़ुदा उन लोगों को (अपनी बारगाह में) जमा करेगा तो गोया ये लोग (समझेंगे के दुनियां में) बस घड़ी दिन भर ठहरे और आपस में एक दूसरे को पहचानेंगे जिन लोगों ने ख़ुदा की बारगाह में हाज़िर होने को झूठलाया वह ज़रुर घाटे में हैं और हिदायत याफ़्ता न थे ऐ रसूल हम जिस जिस (अज़ाब) का उन से वादा कर चुके हैं उनमें से बाज़ ख्वाह तुम्हें दिखा दें या तुमको (पहले ह दुनियां से) उठा लें फिर (आख़िर) तो उन सब को लौटना ही है फिर जो कुछ ये लोग कर रहे हें ख़ुदा तो उस पर गवाह ही है और हर उम्मत का ख़ास (एक) एक रसूल हुआ है।
फिर जब उनका रसूल (हमारी बारगाह में) आएगा तो उनके दरमियान इंसाफ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा और उन पर ज़र्रा बराबर जुल्म न किया जाएगा ये लोग कहा करते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये (अज़ाब का वादा) कब पूरा होगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं खुद अपने वास्ते न नुक़सान पर क़ादिर हूँ न नफ़े पर जो खुदा चाहे, हर उम्मत (के रहने) का (उसके इल्म में) एक वक़्त मुकर्रर रहे जब उन का वक़्त आ जाता है तो ये एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो के क्या तुम समझते हो कि अगर उसका अज़ाब तुम पर रात को या दिन को आ जाए तो (तुम क्या करोगे) फिर गुनाहगार लोग (आख़िर) काही की जल्दी मचा रहे हैं फ़िर क्या जब (तुम पर) आ चुकेगा तब उस पर ईमान लाओगे (हां) क्या अब (ईमान लाएं) हालाँकि तुम तो उसकी जल्दी मचाया करते थे (क़यामत के दिऩ) ज़ालिम लोगों से कहा जाएगा कि अब हमेशा के अज़ाब के मज़े चखो (दुनिया में) जैसी तुम्हारी करतूतें थी (आख़ेरत में) वैसा ही बदला लिया जाएगा।
(ऐ रसूल) तुम से लोग(1) पूछते हैं कि क्या (जो कुछ तुम कहते हो) वह सब ठीक है तुम कह दो हां (हा) अपने परवरिदगार की क़सम ठीक है और तुम (ख़ुदा को) हरा नहीं सकते और (दुनियां मे) जिस जिस ने (हमारी नाफ़रमानी करके) ज़ुल्म किया है (क़यामत के दिन) अगर तमाम ख़ज़ाने जो ज़मीन में हैं उसे मिल जाएं तो अपने गुनाह के बदले ज़रुर फ़िदया दे निकले और जब वह लोग अज़ाब को देखेंगे तो अज़्हार(2) नदामत करेंगे और उनमें बाहम इंसाफ के साथ हुक्म किया जाएगा और उन पर (ज़र्रा बराबर) जुल्म न किया जाएगा आगाह रहो के जो कुछ आसमानों में और ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है आगाह रहे कि ख़ुदा का वादा यक़ीनी ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते वही ज़िन्दा करता है और वही मारता है और तुम सब के सब उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे-लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत (क़िताब ख़ुदा) आ चुकी और जो (अमराज़ शिर्क वग़ैरह) दिल में है उनकी दवा और ईमानदारों के लिए हिदायत और रहमत
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि (ये कुरआन) ख़ुदा के फज़्ल (व करम) और उसकी रहमत से तुमको मिला (दी) तो उन लोगों को उस पर खुश होना चाहिए और जो कुछ वह जमा कर रहे हैं उससे वह कहीं बेहतर है (ऐ रसूल) तु कह दो के तुम्हारा क्या ख़याल है कि ख़ुदा ने तुम पर रज़ी नाज़िल की अब उसमें से बाज को हराम बाज़ को हलाल बनाने लगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या ख़ुदा ने तुम्हें इजाज़त दी है या तुम ख़ुदा पर बोहतान बांधेते हो और जो लोग ख़ुदा पर झूट मूट बोहतान बाँधा करते हैं वह रोज़े क़यामत को क्या ख़याल करते हैं उसमें शक नहीं कि ख़ुदा तो लोगों पर बड़ा साहिबे फ़ज़्ल व (करम) है मगर उन में से बहुतसे शुक्र गुज़ार नहीं है (और ऐ रसूल) तुम (चाहे) किसी हाल में हों और कुरआन की कोई सी भी आयत तिलावत करते हो और (लोगों) तुम कोई सा भी अमल कर रहे हो हम (हमा वक़्त) जब तुम उस काम में मशगूल होते हो तुम को देखते रहते हैं और तुम्हारे परवरदिगार से ज़र्रा भर भी कोई चीज़ ग़ायब नहीं रह सकती न ज़मीन में और न आसमान में और न कोई चीज़ ज़र्रे से छोटी है और न उससे बड़ी चीज़ मगर वह रोशन किताब (लौहे महफूज़) में ज़रुर है आगाह रहो उसमें शक नहीं कि दोस्तान(1) ख़ुदा पर (क़यामत में) न तो कोई ख़ौफ़ होगा और न वह आजूदा ख़ातिर होगे।
ये वह लोग हैं जो ईमान लाए और (ख़ुदा से) डरते थे उन ही लोगों के वास्ते दुनियावी ज़िन्दगी में भी और आख़ेरत में (भी) ख़ुशख़बरी(2) है ख़ुदा की बातों में अदल बदल नहीं हुआ करता यही तो बड़ी कामयाबी है- और (ऐ रसूल) उन (कफ्फ़ार) की बातों का तुम रंज न किया करो उसमें तो शक नहीं कि जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) ख़ुदा ही के हैं और जो लोग ख़ुदा को छोड़ कर (दूसरों को) पुकारते हैं वह तो (ख़ुदा की फ़रज़ी) शरीकों की राह पर भी नहीं चलते बल्कि वह तो सिर्फ़ अपनी अटकल पर चलते हैं और वह सिर्फ़ वहमी और ख़याली बातें करते हैं वह वही (ख़ुदा ए क़ादिर व तवाना) हैं जिसने तुम्हारे नफ़ा के वास्ते रात को बनाया ताकि तुम उसमें चैन करो और दिन को (बनाया) कि उसकी रौशऩी में देखो भलो उसमें शक नहीं जो लोग सुन लेते हैं उनके लिए उसमें कुदरत की बहुतसी निशानियां हैं लोगों ने तो कह दिया कि ख़ुदा ने बेटा बना लिया है ये महज़ लोग है वह (तमाम नक़ाएस से) पाक व पाक़ीज़ा हैं वह (हर तरह) बेपरवाह हैं जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन है (सब) उसी का है (जो कुच तुम कहते हो) उसकी कोई दलील(1) तो तुम्हारे पास है नहीं क्या तुम ख़ुदा पर( यूं ही) बेजाने बूझे झूठ बोला करते हो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बेशक जो लोग झूठ मूट ख़ुदा पर बोहतान बांधते हैं वह कभी कामयाब न होंगे (ये) दुनियां के (चन्द रोज़ा) फ़ायदे हैं फिर तो आख़िर हमारी ही तरफ़ लोट कर आना है तब उनके कुफ़्र की सज़ा में हम उनको सख़्त अज़ाब के मज़े चखाएंगे और (ऐ रसूल) तुम उनके सामने नूह का हाल पढ़ दो जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मेरा ठिकाना और ख़ुदा की आयतों का चर्चा करना तुम पर शाक़ व गराँ गुज़रता है तो मैं सिर्फ़ ख़ुदा ही पर भरोसा रखता हूँ तो तुम और तुम्हारे शरीक सब मिल कर अपना काम ठीक कर लो फिर तुम्हारी बात तुम (में से किसी) पर मख़फ़ी न रहे फ़िर (जो तुम्हारा जी चाहे) मेरे साथ कर गुज़रो और मुझे (दम मारने को भी) मोहलत न दो फिर अगर तुम ने (मेरी नसीहत से) मुंह मोडा तो मैं ने तुम से कुछ मज़दूरी तो न मांगी थी मेरी मज़दूरी तो सिर्फ़ ख़ुदा ही पर है और (उसी की तरफ़ से) मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं उसके फ़रमा बरदार बन्दों में से हो जाऊँ उस पर भी उन लोगों ने उनको झुठलाया तो हम ने उनको और जो लोग उनके साथ कश्ती में (सवार) थे (उनको) निजात दी और उनको (अगलों का) जांनाशीन बनाया और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उनको डुबा मारा फिर ज़रा ग़ौर तो करो कि जो (अज़ाब से) डराए जा चुके थे उनका क्या (ख़राब) अंजाम हुआ
फिर हमने नूह के बाद और रसूलों को अपनी क़ौम के पास भेजा तो वह पैग़म्बर उनके पास वाज़े व रौशन मोजज़े ले कर आए उस पर भी जिस चीज़ को ये लोग झुठला चुके थे उस पर ईमान (न लाना था) न लाए हम यूं ही हद से गुज़र जाने वालों के दिलों पर (गोया) खुद मोहर कर देते हैं।
फिर हम ने उन पैग़म्बरों के बाद मूसा व हारुन को अपनी परेशानियां (मोजज़े) लेकर फ़िरऔन और उस (की क़ौम) के सरदारों के पास भेजा तो वह लोग इकट्ठे बैठे और ये लोग थे ही कुसूरवार फिर जब उन के पास हमारी तरफ़ से हक़ बात (मोजिज़े) पहुंच गए तो कहने लगे कि ये तो यक़ीनी खुल्लम खुल्ला जादू है मूसा ने कहा क्या जब (दीन) हक़ तुम्हारे पास आया तो उस के बारे में कहने लगते हो कि क्या ये जादू है और जादूगर लोग कभी कामयाब न होंगे वह लोग कहने लगे कि (ऐ मूसा) क्या तुम हमारे पास उस वास्ते आए हो के जिस दीन पर हम ने अपने बाप दादाओं को पाया उस से तुम हमें बहका दो और सारी रुए ज़मीन में बस तुम ही दोनों की बड़ाई हो और ये लगो तो तुम दोनों पर ईमान लाने वाले नहीं
और फ़िरऔन ने हुक्म दिया कि हमारे हुजूर में तमाम ख़िलाड़ी (वाक़िफ़कार) जादूगर तो ले आओ फिर जब जादूगर लोग (मैदान में) आ मौजूद हुए तो मूसा ने उन से कहा कि तुम जो कुछ फेंकना हो फेंकों फिर जब वह लोग (रस्सियों को सांप बना कर) डाल चुके तो मूसा ने कहा जो कुछ तुम (बना कर) लाए हो (वह तो सब) जादू है- उस में तो शक ही नहीं कि ख़ुदा उसे फ़ौरन मलियामेट कर देगा (क्योंकि) ख़ुदा तो हरगिज़ मुफ़सिदों का काम दुरुस्त नहीं होने देता- और ख़ुदा सच्ची बात को अपने कलाम की बरकत से साबित कर दिखाता है अगर चे गुनाहगारों को नागवार हो अल ग़र्ज मूसा पर उन की क़ौम की नस्ल के चन्द आदमियों के सिवा फ़िरऔनऔर उस के सरदारों के उस ख़ौफ़ से कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत डाल दे, कोई ईमान न लाया और उस में शक नहीं कि फ़िरऔन रोऐ ज़मीन में बहुत बढ़ा चढ़ा था और उसमे भी शक नहीं कि यक़ीनन ज़्यादती करने वालों में से था
और मूसा ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर तुम (सच्चे दिल से) ख़ुदा पर ईमान ला चुके तो अगर तुम फ़रमाबरदार हो तो बस उसी पर भरोसा करो उस पर उन लोगों ने अर्ज़ किया कि हम ने तो ख़ुदा ही पर भरोसा कर लिया है (और दुआ कि है) कि ऐ हमारे पालने वाले तू हमें ज़ालिम लोगों का (ज़रिया) इम्तेहान न बना और अपनी रहमत से हमें उन काफ़िर लोगों (के पन्जे) से निजाद तदे और हम ने मूसा और उन के भीई (हारुन) के पास वही भेजी के मिस्र में अपनी क़ौम के (रहने सहने के) लिए घऱ बना डालो और अपने अपने घरों को ही मस्जिदे(1) तो क़रार दे कर पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और मोमीनीन को (निजात की) ख़ुश ख़बरी दे दो और मूसा ने अर्ज़ की ऐ हमारे पालने वाले तूने फ़िरओन और उस के सरदारों को दीनवी ज़िन्दगी में (बड़ी) आराइश और दौलत दे रखी है (क्या तूने ये सामान उस लिए अता किया है) ताकि ये लोग तेरे रास्ते से लोगों को बहकाएं परवरदिगार तो उनके माल(1) (दौलत) को ग़ारत कर दे और उनके दिलों पर सख़्ती कर (क्योंकि) जब तक ये लोग तक़लीफ़ व अज़ाब न देख लेंगे ईमान न लाएंगे (खु़दा ने) फ़रमाया तुम दोनों की दुआ कुबूल की गई तो तुम दोनों साबित क़दम रहो और नादानों की राह पर न चलो।
और हमने बनी इस्राईल को दरिया के उस पार कर दिया फ़िर फ़िरऔन और उसके लश्कर(2) ने सरकशी की और शरारत से उनका पीछा किया यहां तक के जब वह डूबने लगा तो कहने लगा के जिस ख़ुदा पर बनी इस्राईल ईमान लाएं हैं मैं भी उस पर ईमान लाता हूं उसके सिवा कोई माबून नहीं है और मैं फ़रमा बरदार बन्दों से हूँ अब मरने के वक़्त ईमान लाता है हालांकि तू उससे पहुले तो नाफ़रमानी कर चुका और तू तो फ़सादियों में से थे तो हम आज तेरी रुह को तो नहीं (मगर) तेरे बदन को (हत्ते नशीन होने से) बचाएंगे ताकि तू अपने बाद वालों के लिए इबरत का (बाएस) हो और उसमें तो कोई शक नहीं के बहुतसे लोग हमारी निशानियों से यक़ीनन बेख़बर हैं और हमने बनी इस्राईल को (मुल्क शाम में) बहुत अच्छी तरह बसाया और उन्हें अच्छी अच्छी चीज़े ख़ाने को दी तो उन लोगों के पास जब तक इल्म (न) आ चुका उन लोगों ने इख्तेलाफ़ नहीं किया उसमें तो शक ही नहीं के जिन बातों में ये (दुनियां में) बाहम झगड़ रहे हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार उसमें फ़ेसला कर देगा पस जो कुरआन हम ने तुम्हारी तरफ़ नाज़िल किया है अगर उसके बारे में तुमको(1) कुछ शक हो तो जो लोग तुमसे पहले से किताब (ख़ुदा) पढ़ा करते हैं उनसे पूछ देखों तुम्हारे पास यक़ीनन तुम्हारे परवरिदगार की तरफ से जो हक़ किताब आ चुकी तो तुम न हरगिज़ शक करने वालों से होना और न हरगिज़ उन लोगों से होना जिन्होंने ख़ुदा की आयतों को झुठलाया (वरना) तुन भी घाटे उठाने वालों से हो जाओगे।
(ऐ रसूल) उसमें शक नहीं कि जिन लोगों के बारे में तुम्हारे परवरदिगार की बातें पूरी उतर चुकी हैं (कि ये मुस्तहक़ अज़ाब है) वह लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब देख (न) लेंगे ईमान न लाएंगे अगर चे उनके सामने सारी (खुदाई के) मोजिज़े आ मौजूद हो कोई बस्ती ऐसी क्यों न हुई कि ईमान क़बूल करती तो उसको उसका ईमान फ़ायदेमन्द होता हैं।
युनूस की क़ौम जब (अज़ाब देख कर) ईमान लाई तो हम ने दुनियां की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी मे उनसे रुसवाई का अज़ाब दफ़ा कर दिया और हमने उन्हें एक ख़ास वक़्त तक चैन करने दिया और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुऐ ज़मीन पर हैं सब के सब ईमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बर्दस्ती करना चाहते हो ताकि सब के सब ईमानदार हो जाएं हालाँकि किसी शख़्स को ये इख़्तेयार नहीं कि बगै़र इज़्ने ख़ुदा ईमान ले आए और जो लोग (उसूले दीन में) अक़्ल से काम नहीं लेते उन्हीं लोगों पर ख़ुदा (कुफ्र की) गन्दग़ी डाल देता है।
(एक रसूल) तुम कह दो कि ज़रा देखों तो सही कि मुसलमानों और ज़मीन में (ख़ुदा की निशानियाँ क्या) क्या कुछ हैं (मगर सच तो ये है) और जो लोग ईमान नहीं क़बूल करते उनको हमारी निशानियां और डरा दें कुछ भी मुफ़ीद नहीं तो ये लोग भी उन्ही रज़ाओं के मुन्तज़िर हैं जो उनसे क़ब्ल वालों पर गुज़र चुकी हैं (ऐ रसूल उन से) कह दो कि अच्छा तुम भी इन्तेज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ यक़ीनन इन्तेज़ार करता हूं फिर (नुजूल अज़ाब के वक़्त) हम अपने रसूलों को और जो लोग ईमान लाएं उन को (अज़ाब से) बचा लेते हैं यूं ही हम पर लाज़िम है कि हम ईमान लाने वालों को भी बचा लें।
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर तुम लोग मेरे दीन के बारे में शक में पडते हो तो (मैं भी तुम से साफ़ कहे देता हूं कि) ख़ुदा के सिवा तुम भी जिन लोगों की परस्तिश करते हो मैं तो उन की परस्तिश नहीं करने का मगर (हां) मैं ख़ुदा की इबादत करता हूँ जो तुम्हें (अपनी कुदरत से दुनियां से) उठा लेगा और मुझे तो ये हुक्म दिया गा है कि मैं मोमिन हूं और (मुझे) ये भी (हुक्म हे) कि (बातिल) से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ क़ाएम रख और मुशरेकीन से हरगिज़ न होना और ख़ुदा को छोड़ कर ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुझे नफ़ा ही पहुँचा सकती है न नुक़सान ही पहुंचा सकती तो अगर तुम ने (कहीं ऐसा) किया तो उस वक़्त तुम भी ज़ालिमों में (शुमार) होंगे और (याद रखो कि) अगर ख़ुदा की तरफ़ से तुम्हें कोई बुराई छू भी गई तो फिर उसके सिवा कोई उस का दफ़ा करने वाला नहीं होगा और अगर तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे तो फ़िर उस के फज़्ल व करम का पलटने वाला भी कोई नहीं वह अपने बंदो में से जिस को चाहे फ़ाएदा पहुँचाए और वह तो ब़ड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ लोगों तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे पास हक़ (कुरआन) आ चुका फ़िर जो शख़्स सीधी राह पर चलेगा तो वह सिर्फ़ अपने ही दम के लिये हिदायत इख़्तेयार करेगा और जो गुमराही इख़्तेयार करेगा वह तो भटक कर कुछ अपना ही खोएगा और मैं कुछ तुम्हारा ज़िम्मेदार तो हूं नहीं और (ऐ रसूल) तुम्हारे पास जो वही भेजी जाती है तुम बस उसी की पैरवी करो और सब्रे करो यहां तक कि (तुम्हारे और क़ाफ़िरों के दरमयान) फ़ैसला फ़रमाए और वह तो तमाम फ़ैसला करने वालों से बेहतर है।


 सूरे: हूद


सूरे: हूद(1) मक्के में नाज़िल हुआ और इसमें 123 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
अलिफ़-लाम-रा (ये कुरआन) वह किताब है जिस की आयतें एक वाक़िफ़कार हकीम की तरफ से (दलाएल से) ख़ूब मुसतहकम कर दी गई-फ़िर तफ़सीलदार बयान कर दी गई है ये कि ख़ुदा के सिवा उसकी परस्तिश न करो मैं तो उसी की तरफ़ से तुम्हें (अज़ाब से) डराने वाला और (बेहिश्त की) ख़ुशख़बरी देने वाला (रसूल) हूं और ये भी कि अपने परवरदिगार से मग़फ़िरत की दुआ माँगू फिर उसकी बारगाह में (गुनाहों से) तौबा करो-वही तुम्हें एक मुक़र्रर मुद्दत तक अच्छे लुत्फ़ के फ़ाएदे उठाने देगा और वही हर साहिबे बुज़र्गी(2) को उस की बुजुर्गी (की दाद) अता फ़रमाएगा।
और अगर तुम ने (उस के हुक्म से) मुंह मोड़ा तो मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़ी (खौफ़नाक) दिन के अज़ाब का डर है (याद रखो) तुम सब को (आख़िरकार) खु़दा की तरफ़ लौटना है और वह हर चीज़ पर (अच्छी तरह) क़ादिर है (ऐ रसूल) देखो ये कुफ़्फ़ार (तुम्हारी अदावत में) अपने सीनों को (गोया) दोहरा किये डालते हैं ताकि ख़ुदा से (अपनी बातों को) छिपाए रहें (मगर) देखो जब य लोग अपने कपड़े खूब लपेटतें है (तब भी तो) खुदा (उन की बातों को) जानता है जो छिपा कर करते हैं और ख़ुल्लम खुल्ला करते हैं उस में शक नहीं कि वह सीनों के भेद तक खूब जानता है-

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