तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-30

कुरआन मजीद
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सूरऐ नबा
सूरऐ नबा मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 40 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ये लोग आपस में किस चीज़ का हाल पूछते हैं एक(2) बड़ी ख़बर का हाल जिस में लोग इख़्तेलाफ़ करस रहे हैं देखो उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा फिर उन्हे अनक़रीब ही ज़रूर मालूम हो जाएगा क्या हमने ज़मीन को बिछौना और पहाड़ को (ज़मीन की) मेख़ें नहीं बनाया और हमने तुम लोगों को जोड़ा-जोड़ा पैदा किया
और तुम्हारी नींद को आराम (का बाएस) क़रार दिया और रात को पर्दा बनाया और हम ही ने दिन को (कसब) माअश (का वक़्त) बनाया और तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत (आसमान) बनाए और हम ही ने (सूरज) को रौशन चिराग़ बनाया और हम ही ने बादलों से मूसलाधार पानी बरसाया ताकि उस के ज़रिए से दाने और सब्ज़ी और घने-घने बाग़ पैदा करें बेशक फ़ैसला का दिन मुक़र्रर है जिस दिन सूर फूंका जाएगा और तुम लोग गिरोह-गिरोह हाजि़र होंगे और आसमान खोल दिए जाएंगे तो (उसमें) दरवाज़े हो जाएंगे और पहाड़ (अपनी जगह से) चलाये जाएंगे तो रेत होकर रह जाएंगे बेशक जहन्नुम घात में है सरकशों का (वही) ठिकाना है उसमें मुद्दतों झीकते पडे रहेंगे न वहां ठंडक का मज़ा चखेंगे और न खौलते हुए पानी और बहती हुई पीप के सिवा कुछ पीने को न मिलगा (ये उन की कारस्तानियों का) पूरा-पूरा बदला है बेशक ये लोग आख़ेरत के हिसाब की उम्मीद ही न रखते थे और उन लोगों ने हमारी आयतों को बुरी तरह झुठलाया
और हम ने हर चीज़ को लिख कर मज़बूत कर रखा है तो अब तुम मज़ा चखो हम तो तुम पर अज़ाब ही बढ़ाते जाएंग बेशक परहेज़गारों ही के लिए बड़ी कामयाबी है (यानी बेहिश्त के) बाग़ और अंगूर और वह औरतें जिन की उगती हुई जवानियां और बाहम हमजोलियां हैं और शराब के लबरेज़ सागर वहांन बेहूदा बात सुनेंगे और न झूठ (ये) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से काफ़ी इनाम और सिला है जो सारे आसमान और ज़मीन और जो उन दोनों के बीच में है सब का मालिक है बड़ा मेहरबान लोगों को उस से बात करने का यारा न होगा
जिस दिन जिब्राईल(1) और फ़रिश्ते (उस के सामने) परा बांध कर खड़े होंगे (उस दिन) उस से कोई बात न कर सकेगा मगर जिसे ख़ुदा इजाज़त दे और वह ठिकाने की बात कहे वह दिन बरहक़ है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की बारगाह में (अपना) ठिकाना बनाए हम ने तुम लोगों को अनक़रीब आने वाले अज़ाब से डरा दिया जिस दिन आधमी अपने हाथों पहेल से भेजे हुए (आमाल) को देखेगा और काफ़िर कहेगा काश में ख़ास हो जाता।
सूरऐ नाज़िआ़त
सूरऐ नाज़िआ़त मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 46 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
उन (फ़रिश्तों) की क़सम जो (कुफ़्फ़ार की रूह) डूब कर सख्ती से खींच लेते है और उनकी क़सम जो (मोमिनीन की जान) आसानी से खोल देते हैं
और उन की क़सम जो (आसमान ज़मीन के दरमियान) पैरते फिरते हैं फिर एक के आगे बढ़ते हैं फिर (दुनियां के) इन्तेजा़म करते हैं (उनकी क़सम कि क़यामत होकर रहेगी) जिस दिन ज़मीन को भूंचाल आएगा फिर उस के पीछे और ज़लज़ला आएगा उस दिन दिलों को धड़कन होगी उन की आँखें (निदामत से) झुकी हुई होंगी कुफ़्फ़ार कहते हैं कि क्या हम उल्टे पांव (जि़न्दगी की तरफ़) फिर लौटेंगे क्या जब हम खोखल हड्डियां हो जाएंगे कहेत हैं कि ये लौटना बडा नुकसानदेह है वह (कयामत) तो (गोया) बस एक सख़्त चीख़ होगी और लोग यकबारगी एक मैदान(1) (हश्र) में मौजूद होंगे (ऐ रसूल) क्या तुम्हारे पास मूसा का क़िस्सा भी पहुँचा है जब उन को उन के परवरदिगार ने तोले के मैदान में पुकारा कि फिरऔन के पास जाओ वह सरकश हो गया है और उस से कहो कि क्या तेरी ख़्वाहिश है कि (कुफ्र से) पाक हो जाए और मैं तुझे तेरे परवरदिगार की राह बता दूं तो तुझ को ख़ौफ़ (पैदा) हो ग़रज़ मूसा ने उसे असा का बड़ा मोजिज़ा दिखाया तो उसने झुठला दिया और न माना, फिर पीठ फेर कर (ख़िलाफ़ की) तदबीर करने लगा, फिर (लोगों को) जमा किया और बुलन्द अवाज़ से चिल्लाया, तो कहने लगा मैं तुम लोगों का सब से बड़ा परवरदिगार हूं,
तो ख़ुदा ने उसे दुनियां और आख़ेरत (दोनों) के अज़ाब में गरिफ़्तार किया, बेशक जो शख़्स (खुदा से) डरे है उस के लिए इस (क़िस्से) में इबरत है, भला तुम्हारा पैदा करना ज़्यादा मुश्किल है या आसमान का, कि उसी ने उसको बनाया उस की छत को खूब ऊँचा रखा फिर उसे दुरुस्त किया, और उसकी रात को तारीक बनाया और (दिन को) धूप निकाली और उसके बाद ज़मीन को फैलाया, उसी में से उस का पानी और उस का चारा निकाला और पहाड़ों को उसमें गाड़ दिया, (ये सब सामान) तुम्हारे और तुम्हारे चार पाँवों के फ़ाएदे के लिए हैं तो जब बड़ी सख़्त मुसीबत (क़याम) आ मौजूद होगी, जिस दिन इंसान अपने कामो को खुद याद करेगा और जहन्नुम देखने वालों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी, तो जिस ने (दुनियां में) सर उठाया था और दुनियावी ज़िन्दगी को तरजीह दी थी उसका ठिकाना तो यकीनन दोज़ख है, मगर जो शख़्स अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता और जी को नाजाएज़ ख़्वाहिशों से रोकता रहा तो उसका ठिकाना यक़ीनन बेहिश्त है (ऐ रसूल) लोग तुम से क़यामक के बारे में पूछते हैं, कि उस का कहीं थल बेडा भी है तो तुम उस के ज़िक्र से किस फ़िक्र में हो उस (के इल्म) की इन्तेहा तुम्हारे परवरदिगार ही तक है तो तुम बस जो उस से डरे उसको डराने वाले हो जिस दिन वह लोग उस को देखेंगे तो (समझेंगे कि दुनियां में) बस एक शाम या सुबह ठहरे थे।
सूरऐ अ़-ब-स
सूरऐ अ़-ब-स मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 42 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
वह (2) इतनी बात पर चीं व जबीं हो गया और मुंह फेर बैठा कि उसके पास नाबीना आ गया और तुम को क्या मालूम शायद वह (तालीम से) पाकीज़गी हासिल करता या वह नसीहत सुनता तो नसीहत उसके काम आती तो जो कुछ परवा नहीं करता उसके तो तुम दर-पै हो जाते हो हालांकि अगर वह न सुधरे तो तुम ज़िम्मेदार नहीं और जो तुम्हारे पास लपकता हुआ आता है और (ख़ुदा से) डरात है तो तुम उस से बेरूख़ी करते हो- देखो ये (कुरआन) तो सरासर नसीहत है तो जो चाहे उसे याद रखे (लौहे महफूज़ के) बहुत मौअज़जिज़ औराक़ मे (लिखा हुआ) है बुलंद मर्तबा और पाक है (ऐसे) लिखने वालों के हाथों में है जो बुजुर्ग नेकूकार है इन्सान(1) हलाक हो जाए वह कैसा नाशुक्रा है
(ख़ुदा ने) उसे किस चीज़ से पैदा किया नुतफ़े से पैदा किया फिर उस का अंदाज़ा मुक़र्रर किया फिर उस का रास्ता आसान कर दिया फिर उसे मौत दी फिर उसे क़ब्र में दफ़्न कराया फिर जब चाहेगा उठा खड़ा करेगा सच तो यह है कि ख़ुदा ने जो हुक्म उसे दिया उसने उसको पूरा न किया तो इन्सान को अपने घाटे ही की तरफ़ गौर करना चाहिए कि हम ही ने (बादल) से पानी बरसाया फिर हम ही ने ज़मीन (दरख़्त उगा कर) चीरा फ़ाडा फिर हमने उस में अनाज उगाया और अंगूर और तरकारियां और ज़ैतून और खजूरें और घने-घने बाग़ और मेवे और चारा (ये सब कुछ) तुम्हारे और तुम्हारे चारपायों के फ़ाएदे के लिये (बनाया) तो जब कानों के परदे फ़ा़ड़ने वाली (क़यामत) आ मौजूद होगी उस दिन आदमी अपने भाई और माँ और अपने बाप और अपन लडके वालों से भागेगा उस दिन हर शख़्स (अपनी निजात की) ऐसी फिक्र में होगा जो उसके (मशगूल होने के) लिये काफ़ी हो बहुत से चेहरे तो उस दिन चमकते होंगे ख़ुदा शादमां (यही नेकूकार हैं) और बहुत से चेहरे ऐसे होंगे जिन पर गर्द पड़ी होगी उस पर स्याही छाई हुई होगी यही कुफ़्फ़ार बदकार है।
सूरऐ तकवीर
सूरऐ तकवीर मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 26 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(जिस वक़्त आफ़ताब की चादर को) लपेट लिया जाएगा और जिस वक़्त तारे गिर पडेंगे और जब पहाड़ चलाए जाएंगे और जब अंक़रीब जनने वाली और ऊँटनियाँ बेकार(2) कर दी जाएंगी और जिस वक़्त वहशी जानवर इकट्ठा किये जाएंगे
और जिस वक़्त दरया आग हो जाएंगे और जिस वक़्त रूहें (हड्डियों से) मिला दी जाएंगी और जिस वक़्त ज़िन्दा दरगोर लड़की से पूछा जाएगा कि वह किस गुनाह के बदले मारी गई और जिस वक़्त (आमाल के) दफ़्तर खोले जाएंगे और जिस वक़्त आसमान व छिलका उतारा जाएगा और जब दोज़ख़ (की आग) भड़काई जाएगी और जब बेहिश्त क़रीब कर दी जाएगी तब हर शख़्स मालूम करेगा कि वह क्या (आमाल) लेकर आया तो मुझे उन सितारों की क़सम जो चलते-चलते पीछे हट जाते(1) और ग़ाएब होते हैं
और रात की क़सम जब ख़त्म होने को आए और सुबह की क़सम जब रौशऩ हो जाए कि बेशक ये (कुरआन) एक मुअज़जिज़ फ़रिश्ता (जिब्राईल) की ज़बान का पैग़ाम है जो बड़ा कवी अर्श के मालिक की बारगाह में बुलंद रूतबा है वहा (सब फ़रिश्तों का) सरदार अमानतदार है, और (मक़्के वालों) तुम्हारे साथी (मुहम्मद) दीवाने नहीं हैं(2) और बेशक उन्होंने जिब्राईल को (आसमान के) खुले (शरक़ी) किनारे पर देखा है और वह ग़ैब की बातों के ज़ाहिर करने में बख़ील होंगे और न यह मरदूद व शैतान ाक क़ौल है फिर तुम कहाँ जाते हो ये सारे जहान के लोगों के लिये बस नसीहत है (मगर) उसी के लिये जो तुम में सीधी राह चले और तुम तो सारे जहां के पालने वाले ख़ुदा के चाहे बगै़र कुछ भी चाह नहीं सकते।
सूरऐ इन्फ़ितार
सूरऐ इन्फ़ित़ार मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 16 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जब आसमा तरख़ जएगा औ जब तारे झड़ पड़ेंगे और जब दरया बह (कर एक दूसरे से मिल) जाएंगे और जब क़ब्रें उखेड़(1) दी जाएंगी तब हर शख़्स को मालूम हो जाएगा किउसने आगे क्या भेजा था और पीछे क्या छोड़ा था
ऐ इन्सान तुझे अपने क़रीम परवरदिगार के बारे में सकिस चीनज़ ने उझे पैदा किया तो मुझे दोस्त बनाया और मुनासिब अअज़ा दिये और जिस सूरत में उसने चाहा तेरे जोड़ बंद मिलाए हाँ बात ये हैं कि तुम लोग जज़ा (के दिन) को जुटलाते हो हालांकि तुम पर निगेहबान मु़क़र्रर हैं बुजुर्ग़ (फ़रिश्ते सब बातों के) लिखने वाले (क़रामन कातेबीन( जो कुछ तुम करते हो वह सब जानते हैं बेशक नेकूकार (बेहिश्त की) नेमतों में होंगे और बदकार लोग यक़ीनन जहन्नुम में जज़ा के दिन उसी में झोंके जाएंगे और वह लोग उससे छिप न सकेंगे और तुम्हें कया मालूम कि जज़ा का दिन क्या है फिर तुम्हें ्कय मालूम कि जज़ा क्या चीज़ है उस दिन कोई शख़्स किसी शख़्स की भलाई न कर सकेगा और उस दिन हुक्म सिर्फ़ ख़ुदा का होगा।
सूरऐ मुत़फ़्फ़िफ़ीन
सूरऐ मुतफ़्फ़िफ़ीन मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 36 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
नाप तौल में कमी करने वालों की ख़राबी है जो औरों से नाप कर लें तो पूरा लें और जब उनको नाप(1) या तोल कर दें तो कम कर दे क्या ये लोग इतना भी ख़याल नहीं करते कि एक बड़े (सख़्त) दिन (क़यामत) में उठाएं जाएंगे जिस दिन तमाम लोग सारे जहान के परवरदिगार के सामने खड़े होंगे सुन रखो कि बदकारसों के नामा-ए-आमाल सेजीन में है और तुम को क्या मालूम कि सेजीन क्या चीज़ है एक लिखा हुवा दफ़्तर है जिस में शयातीन के आमाल (दर्ज हैं) उस दिन झुटलाने वालों की ख़राबी है जो लोग रोज़े जज़ा को झुटलाते हैं हालांकि उसको हद से निकल जाने वाले गुनाहगार के सिवा कोई झुठलाता जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो कहता है कि ये तो अगलों के अफ़साने हैं
नहीं नहीं ये बात ये हैं कि ये लोग जो आमाल (बद) करते हैं उनका उनके दिलों पर जंग बैठ गया है बेशक ये लोग उस दिन अपने पवरदिगार (की रहमत से) रोक दिये जाएंगे फिर ये लोग ज़रुर जहन्नुम वासिल होंगे फिर उनसे कहा जाएगा कि यह वही चीज़ है जिसे तुम झुठलाया करते थे ये भी सुन रखो के नेकी के नामा-ए-आमाल एलेयीन में होंगे और तुम को क्या मालूम की एलयीन क्या है वह एक लिखा हुवा दफ़्तर है जिस में नेकों के आमाल दर्ज हैं उस के पास मुक़र्रब (फ़रिश्ते) हाज़िर हैं बेशक नेक लोग नेमतों में होंगे तख़तों पर बैठे नज़ारे करेंगे तुम उन के चेहरों ही से राहत की ताज़गी मालूम कर लोगे उनको सर-ब-मोहर ख़ास शराब पिलाई जाएगी जिस की मोह मुश्क की होगी
और उसी की तरफ़ अलबत्ता शाएक़ीन को रग़बत करनी चाहिए और उस (शराब) में तसनीम(1) के पानी की आमेजि़श होगी वह एक चश्मा है जिस में मुक़र्रबीन पियेंगे बेशक जो गुनाहगार मोनिनों से हंसी किया करते थे और जब उन के पास से गुज़रते तो उन पर चश्मक करते थे(3) और जब अपने लड़के बालों की तरफ़ लौट कर आते थे तो इतराते हुए और जब उन मोमिनीन को देखते तो कह बैठते थे कि ये तो यकी़नी गुमराह हैं हालांकि ये लोग उन पर कुछ निगरां बनाकर तो भेजे नहीं गये थे तो आज (क़यामत में) ईमानदार लोग काफ़िरों से हंसी करेंगे (और) तख़्तों पर बैठे नज़ारा करेंगे कि अब तो काफ़िरों को उनके किये का पूरा पूरा बदला मिल गया
सूरऐ इन्शिक़ाक़
सूरऐ इन्शिक़ाक़ मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 25 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जब आसमान फट जाएगा और अपने परवरिदगार का हुक्म बजा लाएगा और उसे वाजिब भी यही है और जब ज़मीन (बराबर करके) तान दी जाएगी और जो कुछ उस में है उगल देगी और बिल्कुल ख़ाली हो जाएगी और अपने परवरदिगार का हुक्म बजा लाएगी और उस पर लाज़िम भी यही है (तो क़यामत आ जाएगी)
ऐ इन्सान तू अपने परवरदिगार की हजूरी की कोशिश करता है तो तू (एक न एक दिन) उसके सामने हाजि़र होगा फिर (उस दिन) जिस का नामा ऐ अमल उसके दाहिने हाथ में दिया जाएगा उससे तो हिसाब आसान(2) तरीक़ा से लिया जाएगा और (फिर) वह अपने (मोमिनीन के) क़बीले की तरफ़ खुश ख़ुश पलटेगा लेकिन जिस शख़्स को उस का नामा ऐ आमाल उसकी पीठ के पीछे से दिया जाएगा वह तो मौत की दुआ करेगा और जहन्नुम वासिल होगा ये शख़्स तो अपने लड़के वालों में मस्त रहता था और समझता था कि कभी (ख़ुदा की तरफ़) फिर कर जाएगा ही नहीं, हाँ उस का परवरदिगार यक़ीनी उसी को देख भाल कर रहा है तो मुझे शाम की सुखी की क़सम और रात की और उन चीज़ों की जिन्हें ढांक लेती है और चांद की जब पूरा जाए कि तुम लोग ज़रुर एक सख़्ती के बाद दूसरी सख़्ती में फ़सोगे तो उन लोगों को क्या हो गया है कि ईमान नहीं लाते और जब उनके सामने कुरआन पढ़ा जाता है तो (ख़ुदा का) सजदा नहीं करते बल्कि काफ़िर लोग तो (और उसे) झुटलाते हैं और जो बातें ये लोग अपने दिलों में छिपाते हैं ख़ुदा तो उसे खूब जानता है तो (ऐ रसूल) उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो मगर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे काम किये उन के लिये बे इन्तेहा अज्र (व सवाब) है
सूरऐ बुरूज
सूरऐ बुरूज मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 22 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
बुर्जों(2) वाले आसमान की क़सम और उस दिन की जिस का वादा किया गया है और गवाह(3) की और जिसकी गवाही दे दी जाएगी उस की (कि कुफ्फ़ार मक्के हलाक हुए) जिस तरह ख़न्दक़(4) वाले हलाक करस दिये गये जो ख़न्दक़े आग की थी जिसमें (उन्होंने मुसलमानों के लिये) ईंधन झोंक रखा था वह उन (ख़न्दक़) पर बैठे हुए और जो सुलूक ईमानदारों के साथ करते थे उस के सामने देख रहे थे और उन को मोमिनीन की यही बात बुरी मालूम हुई कि वह ख़ुदा पर ईमान लाए थे जो ज़बरदस्त (और) सज़ावार हम्द है वह (खुदा) जिस कीा सारी आसमान ज़मीन में बादशाहत है और ख़ुदा हर चीज़ से वाक़िफ़ है बेशक जिन लोगों ने ईमानदार मर्दों औरतों को तकलीफ़ दी फिर तौबा न कि उनके लिये जहन्नुम का अज़ाब तो है ही (उसके अलावा) जलने का भी अज़ाब होगा बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम करते रहे उन के लिये वह बाग़ात हैं जिस के नीचे नहरें जारी हैं यही तो बड़ी कामयाबी है बेशक तुम्हारे परवरदिगार की पकड़ बहुत सख़्त है वही पहली दफ़ा पैदा करता है और वही दुबारा (क़यामत में जि़न्दा) करेगा और वही बड़ा बख़्शने वाला मुहब्बत करने वाला है अर्श का मालिक बड़ा अलीशान है जो चाहता है करता है क्या तुम्हारे पास लश्करों की ख़बर पहुंची है (यानी) फिरऔन व समूद की (ज़रुर पहुंची है) मगर कुफ़्फार तो झुटलाने ही (की फ़िक्र) में हैं और ख़ुदा उनको पीछे से घेरे हुए है (ये झुटलाने के क़ाबिल नहीं) बल्कि ये तो कुरआन मजीद है जो लौह महफूज़ में हुवा है
सूरऐ त़ारिख़
सूरऐ तारिक मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 17 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
आसमान और रात को आने वाले की क़सम और तुम को क्या मालम रात को आने वाला क्या है (वह) चमकता हुवा तारा है (उस बात की क़सम) कि कोई शख़्स ऐसा नहीं जिस पर निगेहबान मुक़र्रर नहीं तो इंसान को देखना चाहिये कि वह किस चीज़ से पैदा हुवा है वह उबलते हुए पानी (मनी) से पैदा हुवा है जो पीठ और सीने की हड्डियों के बीच में निकलता है(1) बेशक ख़ुदा उस के दुबारा (पैदा) करने पर ज़़रुर कुदरत रखता है जिस दिन दिलों के भेद जांचे जाएंगे (उस दिन) उसका न कुछ ज़ोर चलेगा और न कोई मददगार होगा चक्कर (खाने) वाले आसमान की क़सम और फटने वाली (ज़मीन की क़सम) बेशक ये कुरआन क़ौल फ़ैसल है और लगो नहीं है बेशख ये कु़फ़्फार अपनी तदबीर कर रहै हैं और मैं अपनी तदबीर कर राह हूँ तो क़ाफिरों को मोहलत दो बस उन को थोड़ी सी मोहलत दो
सूरऐ अअ्ला
सूरऐ अअ्ला मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 16 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ रसूल अपने आलीशान परवरदिगार के नाम की तसबीह करो जिस ने (हर चीज़ को) पैदा किया और दुरुस्त किया और जिसने (उसका) अंदाज़ा मुक़र्रर किया फिर राह बताई और जिस ने (हैवानात के लिये) चारा उगाया फिर ख़ुश्क उसे स्याह रंग कूड़ा दिया हम तुम्हें (ऐसा) पढ़ा देंगे कि कभी भूलों ही नहीं मगर(3) जो ख़ुदा चाहे (मंसूख़ कर दे) बेशक वह खुली बात को भी जानता है और छिपे को भी और हम तुम को आसान तरीक़े की तौफ़ीक़ तो जहां तक समझना मुफ़ीद हो समझाते रहो जो खौफ़ रखता हो वह तो फ़ौरी समझ जाएगा और बदबख़्त उस से पहलू तही करेगा जो (क़यामत में) बड़ी (तेज़) आग में दाख़िलो होगा फिर न वहां मरेगा ही न जियेगा वह यक़ीनन मुराद दिली को पहुंचा जो (शिर्क से) पाक(1) और अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र करता और नमाज़ पढ़ता रहा मगर तुम लोग तो दुनियांवी ज़िन्दगी को तरजीह देते हो हालांकि आख़ेरत कहीं बेहतर और देरपा हैं बेशक यही बात अगले सहीफ़ों(2) इब्राहीम और मूसा के सहीफ़ों में भी हैं
 सूरऐ ग़ाशिया
सूरऐ ग़ाशिया मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 26 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
भला तुम को ढांप लेने वाली मुसीबत (क़यामत) का हाल मालूम हुवा है उस दिन बहुत से चेहरे ज़लील रुसवा होंगे (तौक़ व ज़ंजीर से) मशक़्क़त करने वाले थक मांदे से दहकती हुई आग मां दाख़िल होंगे उन्हें एक खौलते हुए चश्मे का पानी पिलाया जाएगा खारदार(4) झांडी के सिवा उनके लिये कोई खाना नहीं जो न मोटाई पैदा करे न भूख में काम आएगा (और) बहुत से चेहरे उस दिन तरो ताजा़ होंगे अपनी कोशिश (के नतीजे) पर शादमों एक आलीशान बाग़ में वहां कोई लोग बात सुनेंगे ही नहीं, उस में चश्मे जारी होंगे- उस में ऊँचे ऊँचे तख़्त बिछे होंगे और (उनके किनारे) गिलास रखे होंगे और गाव तकये़ क़तार की क़तार लगे हुए और नफ़ीस मसनदें बिछी हुई तो क्या ये लोग ऊँट की तरफ़ गौ़र नहीं करते कि कैसा अजीब पैदा किया गया है और आसमान की तरफ़ कि कैसा बुलंद बनाया गया है और पहाड़ों की तरफ़ कि किस तरह खड़े किये गये हैं और ज़मीन की तरफ़ कि किस तरह बिछाई गई है तो तुम नसीहत करते रहो तुम तो बस नसीहत करने वाले हो तुम कुछ उन पर दरोग़ा तो हो नहीं हां जिस ने मुंह फेर लिया और न माना तो ख़ुदा उस को बहुत बड़े अज़ाब की सजा़ देगा बेशक उन को हमारी तरफ़ लौटा कर आना है, फिर उन का हिसाब हमारे ज़िम्मे है
सूरऐ फ़ज्र
सूरऐ फज्र मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 30 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
सुबह(2) की क़सम और दस(3) रातों की और जुफ़त(4) व ताक़ की और रात की जब आने लगे, अक्लनदों के वास्ते ये ज़रुरी बड़ी क़सम है (कि कुफ़्फ़ार पर ज़रुर अज़ाब होगा) क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे परवरदिगार ने आद के साथ क्या किया यानी इरम वाले दराज़ क़द जिन का मिस्ल(1) तमाम (दुनिया के) शहरों मे कोई पैदा ही नहीं किया गया, और समूद के साथ (क्या किया) जो वादी अफ़री है पत्थर तराश (कर घर बनाते थे) और फ़िरऔऩ के साथ (क्या किया) जो (सज़ा के लिये) मेख़ें रखता था ये लोग मुख़तलिफ़ शहरों में सरखस हो रहे थे और उनमें बहुत से फ़साद फ़ैला रखे थे, तो तुम्हारे परवरदिगार ने उन पर अज़ाब का कोड़ा लगाया, बेशक तुम्हारा परवरदिगार ताक में है लेकिन इन्सान जब उसको उस का परवरदिगार (उस तरह) आज़माता है कि उसको इज़्ज़त व नेमत देता है, कहता है कि मेरे परवरदिगार ने मुझे इज़्ज़त दी है, मगर जब उसको (उस तरह) आज़माता है कि उस पर रोज़ी को तंग कर देता है बोल उठता है कि मेरे परवरदिगार ने मुझे ज़लील किया, हरगिज़ नहीं बल्कि तुम लोग न यतीम की ख़ातिरदारी करते हो और न मोहताज को खाना खिलाने की तरगी़ब देते हो और मीरास के माले (हलाल व हराम) को समेट कर चख जाते हो और माल को बहुत ही अजीज़ रखते हो, सुन रखो कि जब ज़मीन कूट-कूट कर रेज़ा-रेज़ा कर दी जाएगी और तुम्हारे परवरदिगार का हुक्म और फ़रिश्ते क़तार के क़तार आ जाएंगे और उस दिन जहन्नुम सामने कर दी जाएगी उस दिन इंसान चीकेगा मगर अब चीकना कहा (फ़ाएदा देगा) (उस वक़्त) कहेगा कि काश मैंने अपनी (उस) ज़िन्दगी के वास्ते कुछ पहले भेजा होता तो उस दिन ख़ुदा ऐसा अज़ाब करेगा कि किसी ने वैसा अज़ाब न किया होगा और न कोई उसके जकड़ने की तरह जक़डेगा (और कुछ लोगों से कहेगा (ऐ)(1) इत्मेनान पाने वाली जान अपने परवरदिगार की तरफ चल तो उस से ख़ुश वह तुझ से रोज़ी तो मेरे (ख़ास) बंदों में शामिल हो जा और मेरे बेहिश्त में दाख़िल हो जा,
सूरऐ बलद
सूरऐ बलद(2)मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 20 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
मुझे उस शहर (मक्के) की क़सम और तुम उसी शहर में तो रहते हो और (तुम्हारे) बाप (आदम) और उस की औलाद की क़सम हमने इन्सान को मशक़्क़त में (रहने वाला) पैदा किया है क्या वह ये समझता है कि उस पर कोई काबू न पा सकेगा, वह कहता(3) है कि मैंने अलग़ीरो माल उड़ा दिया क्या वह यह ख़्याल रखता है कि उस को किसी ने देखा ही नहीं, क्या हमने उसे दोनों आँखों और ज़बान और दोनों लब नहीं दिये (ज़रुर दिये) और उस को (अच्छी बुरी) दोनों राहें भी दिखा दी, फिर वह घाटी पर से होकर (क्या) नहीं गुज़रा, और तुम को क्या मालूम कि घाटी क्या है, किसी (कि) गर्दन का (गुलामों या क़र्ज़ से) छु़ड़ाना, या भुख के दिन रिश्तेदार, यतीम, खासकार मोहताज को खाना खिलाना फिर तो उन लोगों में (शामिल) हो जाता जो ईमान लाये और सब्र की नसीहत और तरस खाने की वसीयत करते रहे, यही लोग खुश नसीब हैं और जिन लोगों ने हमारी आयतों से इंकार किया है यही लोग बदबख़्त हैं कि उनको आग में डाल कर हर तरफ़ से बंद कर दिया जायेगा
सूरऐ शम्स
सूरऐ शम्स मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 15 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
सूरज(2) की क़सम और उसकी रौशनी की और चांद की जब उसके पीछे निकले, और दिन की जब उसे चमका दे, और रात की जब उसे ढाक ले, और आसमान की और जिसने उसे बनाया, और ज़मीन की जिसने उसे बिछाया और जान की और जिसने उसे दुरुस्त किया फिर उसकी बदकारी अदब परहेज़गारी को उसे समझा दिया (क़सम है) जिसने उस (जान) को (गुनाह से) पाक रखा वह तो कामयाब हुआ और जिसने उसे (गुनाह करके) दबा दिया वह नामुराद राह, कौ़म समूद ने अपनी सरकशी से (सालेह पैग़म्बर को) झुठलाया, जब उनमें का एक बडा़ बदबख़्त उठ खड़ा हुआ, तो ख़ुदा के रसूल (सालेह) ने उन(3) से कहा कि ख़ुदा की ऊँटनी और उसके पानी पीने से ताअरूज़ नव करना, मगर उन लोगों ने पैगम़्बर को झुठलाया और उशकी कूंचे कांट डाली तो ख़ुदा ने उनके गुनाहों के सबब से उन पर अज़ाब नाज़िल किया (फिर हलाक करके) बरबाद कर दिया और उसको उनके बदले का कोई ख़ौफ़ तो है नहीं
सूरऐ लैल
सूरऐ लैल मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 21 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
रात की क़सम जब (सूरज को छिपा ले) और दिन की क़सम जब ख़ूब रोशन हों और उस (ज़ात) की जिसने नर व मादा को पैदा किया कि बेशक तुम्हारी कोशिश तरह(2) तरह की हैं तो जिसने सख़ावत की और अच्छी बात (इस्लाम) की तसदीक़ की तो हम उसके लिये राहत व आसानी (जन्नत) के असबाब मुहेय्या कर देंगे और जिसने बुख़ल किया, और बेपरवाही की और अच्छी बात को झुठलाया तो हम उसे सख़्ती (जहन्नुम) में पहुँचा देंगे और जब वह हलाैक होगा तो उसका माल उसके कुछ भी काम न आयेगा, हमें राह दिखाना ज़रूरी है तो हमने तुम्हें भड़कती हुई आग से डरा दिया, उसमें बस वही दाख़िल होगा जो बड़ा बदबख़्त है, जिसने झुठलाया और मुंह फेर लिया और जो बड़ा परहेज़गार है वह उससे बचा लिया जायेगा, जो अपना माल (ख़ुदा की राह) मे देता है ताकि पाक हो जाये और (लुत्फ़ यह है कि) किसी का उस पर कोई एहसान नहीं जिसका उसे बदला दिया जाता है बल्कि (वह तो) सिर्फ़ अपने आलीशान परवरदिगार की खुशनूदी हासिल करने के लिये (देता है) और वह अनक़रीब भी खुश ही जायेगा
सूरऐ ज़ुहा
सूरऐ ज़ुहा मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 11 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) पहर दिन चढ़े की क़सम और रात की जब (चीज़ं को) छिपा ले की तुम्हारा परवरदिगार तुम को छोड़ बैठा, और न (तुमसे) नाराज हुआ और तुम्हारे वास्ते आख़ेरत दुनिया से यक़ीनी कहीं बेहतर है-और तुम्हारा परवरदिग़ार(2) अनक़रीब उस क़दर अता करेगा की तुम खुश हो जाओ क्या उसने तुम्हें यतीम पाकर (अबू तालिब की) पनाह न दी (ज़रुरी) और तुम को एहकाम से वाक़िफ़ देखा तो मंज़िले मक़सूद तक पहुँचा दिया और तुम को तंगदस्त देखकर गनी कर दिया तो तुम भी यतीम सितम न करना, और मांगने वाले को झिड़की न देना और अपने परवरदिगार की नेमतों का ज़िक्र करते रहना ़
सूरऐ इन्शिराह
सूरऐ इन्शिराह मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 8 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) क्या हमने तुम्हारा सीना (इल्म से) कुशादा नहीं कर दिया (ज़रुर किया) और तुम पर से वह बोझ उतार दिया जिसने तुम्हारी करम तोड़ रखी थी और तुम्हारा ज़िक्र भी बुलंद कर दिया तो (हां) पस बेशक दुश्वारी के साथ ही आसानी है यक़ीनन दुश्वारी के साथ आसानी है तो जब तुम फ़ारिग हो जाओ तो मकु़र्रर कर्दा(1) और फिर अपने परवरदिगार की तरफ़ रग़बत करो
सूरऐ तीन
सूरऐ तीन मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 8 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
अंजीर(3) और ज़ैतून की क़सम तूर सनीन की और उस अमन वाले शहर (मक्का) की हमने इन्सान को बहुत अच्छे कैंड़े का पैदा किया, फिर हमने उसे (बूढ़ा करके रफ़्ता रफ़्ता) पस्त से पस्त हालत की तरफ़ फेर दिया मगर जो लोग ईमान लाये और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे उनके लिये तो बेइंतहा अज्र व सवाब है (तो ऐ रसूल) उन दलीलों के बाद तुम को (रोज़) जज़ा के बारे में कौन झुठला सकता है क्या ख़ुदा सबसे बड़ा हाकिम नहीं है (हां ज़रूर)
सूरऐ अलक़
सूरऐ अलक़ मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 16 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) अपने परवरदिगार का नाम लेकर पढ़ो जिसने (हर चीज़ को) पैदा किया उसी ने इन्सान को जमे हुए ख़ून से पैदा किया पढ़ो, और तुम्हारा परवरदिगार करीम है जिसने क़लम के जरिये तालीम दी, उसी ने इन्सान को वह बातें बतायीं जिनको वह कुछ जानता ही न था सुन रखो बेशक इंसान जब अपने को ग़नी देखता है तो सरकश हो जाता है बेशक तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ (सब को) पलटना है भला तुम ने उस शख़्स को भी देखा जो एक बंदे को भी जब नमाज़ पढ़ता है तो वह रोकता है भला देखो तो कि अगर यह राहे रास्त पर हो य परहेज़गारी का हुक्म करे (तो रोकना कैसा) भला देखो तो कि अगर उसने (सच्चे को) झुठलाया और (उसने) मुंह फेरा (तो नतीजा क्या होगा) क्या उसको यह मालूम नहीं कि ख़ुदा यकीनन देख रहा है देखो अगर वह बाज़ न आयेगा तो हम पेशानी के पटे पकड़ के घसीटेंगे(1) झूठे खतावार की पेशानी के पट्टे तो वह अपने यारान जलसा को बुलाये, हम भी जल्लाद फ़रिश्तों को बुलायेंगे (ऐ रसूल) देखो हरगिज़ उनका कहना न माना और सजदे करते रहो, और कुरब हासिल करो,
सूरऐ क़द्र
सूरऐ क़द्र मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 5 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हमनें (उस कुरान) को शबे क़द्र में नाज़िल (करना शुरू) किया और तुम को क्या मालूम शबे क़द्र क्या है शबे क़द्र (मरतबा और अमल में) हज़ारों महीनों से बेहतर(3) है (उस रात) में फ़रिश्ते और जिब्राइल (साल भर की) हर बात का हुक्म लेकर अपने परवरदिगार के हुक्म से नाज़िल होते हैं, यह रात सुबह के तुलू होने तक (अज़ सर ता पा) सलामती है
सूरऐ बय्येना
सूरऐ बय्येना मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 8 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
अहले किताब(2) और मुश्रिकों से जो लोग काफ़िर थे जब तक उनके पास खुली हुई दलील न पहुंचे वह (अपने कुफ़्र से) बाज़ आने वाले न थे (यानि) ख़ुदा के रसूल जो पाक और औराक़ पढ़ते हैं (आये और) उनमें (जो) पुरज़ोर और दुरूस्त बाते लिखी हुई हैं (सूनायी) राहिल किताब मुतफ़रिक़ हुए भी तो जब उनके पास खुली हुई दलील आ चुकी (तब) और उन्हें तो बस यह हुक्म दिया गाय था कि निरा ख़ुश उसी का एतक़ाद रख के बातिल से कतरा के ख़ुदा की इबादत करें और पाबंदी से नमाज़ पढ़ें और ज़कात अदा करते रहे यही सच्चा दीन है बेशक अहले किताब और मुशरकीन से जो लोग (अब तक) काफ़िर हैं वह दोज़ख़ की आग मे (होंगे) हमेशा उसी में रहेंगे यही लोग बदतरीन ख़लाक़ हैं बेशक जो लोग ईमान लाये और अच्छे काम करते रहे यही लोग बेहतरीन(3) ख़लायक़ होंगे, उनकी जज़ा उनके परवरदिगार के यहां हमेशा रहने सहने के बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह अब्दल आबाद हमेशा उसी में रहेगें, ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़ुदा से खुश यह जज़ा ख़ास उस शख़्स की है जो अपने परवदिगार से डरे
सूरऐ ज़िल्ज़ाल
सूरऐ ज़िल्ज़ाल मदीने में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 8 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जब ज़मीन बड़े ज़ोरों के साथ ज़लज़ले में आ जायेगी और ज़मीन अपने अन्दर के बोझे (मादनियात मुर्दे वग़ैरह) निकाल डालेगी और(2) एक इन्सान कहेगा की उसको क्या हो गया है- उस रोज़ वह अपने सब हालात बयान कर देगी क्योंकि तुम्हारे परवरदिगार ने उसको हुक्म दिया होगा उस दिन लोग गिरोह-गिरोह (अपनी क़ब्रों से) निकलेंगे ताकि अपने आमाल को देखें तो जिस शख़्स ने जर्रा बराबर नेकी की वह उसे देख लेगा जिस शख़्स ने ज़र्रर बराबर बदी की तो उसे देख लेगा
सूरऐ आदियात
सूरऐ आदियात मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 11 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ग़ाज़िया के) सरपट दौड़ाने वाले घोड़ों की क़सम जो नथनों से फर्राटे लेते हैं फिर पत्तर पर टाप मार कर चिंगारियां निकालते हैं ,फिर सुबह को छापा मारते हैं (तो दौड़ धूप से) बुलंद कर दिये हैं फिर उस वक़्त (दुश्मन के ) दिल में घुस जाते हैं (ग़रज़ क़सम है) बेशक इन्सान अपने परवदिगार का न शुकरा है, और वह यक़ीनी ख़ुद भी उससे वाक़िफ़ है और बेशक हव माल का सख़्त हरीस है तो क्या हव यह नहीं जानता कि जब मुर्दे क़ब्रों से निकाले जायेंगे और दिलों के भेद ज़ाहिर कर दिये जायेंगे बेशक उस दिन उनका परवरदिगार उनसे ख़ूब वाक़िफ़ होगा
सूरऐ क़ारिअः
सूरऐ क़ारिया मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 11 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
खड़़ख़ड़ाने वाली, वह खड़ख़ड़ाने वाली क्या है और तुम को क्या मालूम कि वह खड़खड़ाने वाली क्या है जिस दिन लोग (मैदान हश्र में) टिड्ड्यों की तरह फैले होंगे और पहाड़ धुनकी हुई रुऊ के से हो जायेंगे तो जिसके (नेक आमाल) के पल्ले भारी होंगे वह मनभाते ऐश में होंगे और जिनके आमाल के पल्ले हल्के होंगे तो उनका ठिकाना न रहा और तुमको क्या मालूम हाविया क्या है, वह दहेकती हुई आग है
सूरऐ तकासुर
सूरऐ तकासुर मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 8 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
फ़सल(4) व माल की बहतायत ने लोगों को ग़ाफ़िल रका यहां तक कि तुम लोगों ने क़ब्रें देखीं (मर गये) देखो तुम को अनक़रीब ही मालूम हो जायेगा, फिर देखो तुम्हें अनक़रीब मालूम हो जायेगा देखो अगर तुमको यक़ीनी तौर पर मालूम होता तो (हरगिज़ ग़ाफ़िल न होते) तुम लोग ज़रुर दोज़ख को देखोगे फिर तुम लोग यक़ीनी देखोगे, फिर तुम से नेमतों के बारे में ज़रुर बाज़पुर्स की जायेगी,
सूरऐ अस्र
सूरऐ अस्र मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 3 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
नमाज़ अस्र की क़सम बेशक(2) इन्सान घाटे में है मगर जो लोग ईमान लाये, और अच्छे अच्छे काम करते रहे और आपस में हक़ का हुक्म और सब्र की वसीयत करते रहे
सूरऐ हु-म-ज़ः
सूरऐ हु-म-ज़ः मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 6 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हर ताना देने वाले चुग़लख़ोर की ख़राबी है जो माल को जमा करता है और निनगिन कर रखता है वह समझता है कि उसका माल हमेशा ज़िन्दा(4) बाक़ी रहेगा, हरगिज़ नहीं वह तो जरुर हुतमा में डाला जाएगा और तुम को क्या मालूम हुतमा क्या है वह ख़ुदा की भड़कायी हुई आग है जो (तलवे से लगी तो) दिलों तक चढ़ जाएगी, यह लोग आग के लंबे लंबे सतूनों में डाल कर बंद कर दिये जायेंगे
सूरऐ फ़ील
सूरऐ फ़ील मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 5 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) क्या तुम ने नहीं देखा कि तुम्हारे परवरदिगार ने हाथी(2) वालों के साथ क्या किया क्या उसने उन की तमाम तदबीरे ग़लत नहीं कर दी (ज़रूर) और उन पर झुंड की झुंड चिडियां भेज दीं जो उन पर खरंजों की कंकरियां फेंकती थी तो उन्हें चबाए हुए भुस की तरह (तबाह) कर दिया
सूरऐ कुरैश
सूरऐ कुरैश मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 4 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
चूंकि क़ुरैश को सर्दी और गरमी के सफ़र से मानूस कर दिया तो उन को मानूस कर देने की वजह से उस घर (काबा) के मालिक की इबादत करनी चाहिए जिसने उनको भूक में खाना दिया, और उनको ख़ौफ़ से अमन अता किया।
सूरऐ माऊन
सूरऐ माऊन मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 7 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
क्या तुमने उस शख़्स(5) को भी देखा है जो रोज़े जज़ा को झुटलाता है ये तो वही कमबख़्त है जो यतीम को धक्के देता है और मोहताजों को खिलाने के लिये (लोगों को) आमादा नहीं करत तो उन नमाज़यों की तबाही है जो अपनी नमाज़ से ग़ाफ़िल रहते हैं जो दिखाने के वास्ते करते हैं और रोज़ मर्रा की मामूली(1) चीज़ें भी आरीयतन नही देते।
सूरऐ कौसर
सूरऐ कौसर मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 3 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) हमने तुम को कौसर(3) अता किया, तुम तो अपने परवरदिगार की नमाज़ पढ़ा करो और कुरबानी दिया करो बेशक तुम्हारा दुश्मन बे औलाद रहेगा।
सूरऐ काफ़िरून
सूरऐ काफ़िरून (4) मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 6 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ काफ़िरों। तुम जिन चीज़ों को पूजते हो, मैं उनको नहीं पूजता, और जिस (ख़ुदा) की मैं इबादत करता हूं उसकी तुम इबादत नहीं करते और जिन्हें तुम पूजते हो मैं उनका पूजने वाला नहीं और जिस की मैं इबादत करता हूं तुम उसकी इबादत करने वाले नहीं तुम्हारे लिये(5) तुम्हारा दीन मेरे लिये मेरा दीन।
सूरऐ नस्र
सूरऐ नस्र (6) मदीने में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 3 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) जब ख़ुदा की मदद आ पहुँचेगी और फ़तह (मक्का) हो जाएगा और तुम लोगों को देखोगे कि ग़ोल के ग़ोल ख़ुदा के दीन में दाख़िल हो रहे हैं, तो तुम अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करना और उसी से मग़फेरत की दुआ मांगना वह बेशक बड़ा माफ़ करने वाला है।
सूरऐ लहब
सूरऐ लहब(1) मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 5 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
अबू लहब(2) के हाथ टूट जाएं और वह ख़ुद सत्यानास हो जाए (आख़िर) न उस का माल ही उसके हाथ आया और (न) उनसे कमाया, वह बहुत भड़कती हुई आग में दाख़िल होगा, और उस की जोरू भी जो सर पर ईंधन उठाए फिरती है और उसके गले में बटी हुई रस्सी बंधी है।
सूरऐ इख़्लास
सूरऐ इख़्लास(3) मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 4 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा एक है ख़ुदा बरहक़ बे नियाज़ है न उस ने किसी को जना न उस को किसी ने जना, और उस का कोई हमसर नहीं।
सूरऐ फ़लक़
सूरऐ फ़लक़ मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 5 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं सुबह के मालिक की हर चीज़ की बुराई से जो उस ने पैदा की पनाह मांगता हूं और अंधेरी रात की बुराई से जब उस का अंधेरा छा जाए और गंड़ों पर फूंकने वालियों की बुराई से (जब फूंके) और हसद करने वाले की बुराई है।
सूरऐ सूरऐ नास
सूरऐ नासः(1) मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 6 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) तुम कहो में लोगों के परवरदिगार, लोगों के बादशाह लोगों के माबूद की (शैतानी) वस्वसों की बुराई से पनाह मांगता हूं जो (ख़ुदा के नाम से) पीछ हट जाता है जो लोगों के दिलों मे वस्वसी डाला करता है, जिन्नात में से हो ख़्वाह आदमियों मे से।
दुआए ख़त्मे कुरआन
ऐ ख़ुदा। मेरी क़ब्र से मेरी परेशानी को दूर फर्मा और कुरआन अज़ीम के वासीले से मुझ पर रहम फ़र्मा और कुरआन को मेरे लिये पेशवा बायसे नूर और सब्बे हिदायत व रहमत फ़र्मा और कुरआन में जो कुछ मैं भूल गया हूं याद दिला और जो कुछ कुरआन में से मैं नहीं जानत वह सिखला दे और रात दिन मुझे उसकी तिलावत नसीब कर और क़यामत के रोज़ उसको मेरे लिये दलील बना, ऐ आलम के परवरिश करने वाले।

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