सूरऐ मुल्क
सूरऐ मुल्क मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 30 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जिस (ख़ुदा) के क़ब्जे में (सारे जहान की) बादशाहत है वह बड़ी बरकत वाला है और वह हर ची़ज़ पर क़ादिर है जिसने मौत और ज़िन्दगी पैदा किया ताकि तुम्हें आज़माये(2) कि तुममे से काम में सबसे अच्छा कौन है और वह ग़ालिब (और) बड़ा बख़्शने वाला है जिसने सात आसमान तले ऊपर बना डाला भला तुझे ख़ुदा की आफ़रीनश में कोई कसर नज़र आती है तो फिर आँख उठा कर देख भला तुझे कोई शगाफ़ नज़र आता है
फिर दुबारा आँख उठा कर देख (हर बार तेरी) नज़र नाकाम और थक कर तेरी तरफ़ पलट आयेगी और मने नीचे वाले (पहले) आसमान को (तारों के) चराग़ों से ज़ीनत दी है और हमने उनको शैतानों(3) के मारने का आला बनाया और हमने उनके लिये दहकती हुई आग का अज़ाब तैयार कर रखा है और जो लोग अपने परवरदिगार के मुनकर हैं उनके लिये जहन्नुम का अज़ाब है और यह (बहुत) बुरा ठिकाना है जब यह लोग उसमें डाले जायेगे तो उसकी बड़ी चीख़ सुनेंगे और वह जोश मार रही होगी- बल्कि गोया मारे जोश के फट पड़ेगी जब उसमें (उनका) गिरोह डाला जायेगा तो उनसे दरोगा़ जहन्नुम पूछेगा क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला (पैग़म्बर नहीं आया था वह कहेंगे, हां हमारे पास डराने वाला तो ज़रुर आया था मगर हमने उसको झुठला दिया और कहा कि खुदा ने तो कुछ नाज़िल नहीं किया तुम तो बड़ी (गहरी) गुमराही में (पड़े) हो
और (यह भी) कहेंगे कि अगर (उनकी बात) सुनते या समझते तब तो (आज) दोज़ख़ियों में न होत- ग़र्ज वह अपने गुनाह का इक़रार कर लेंगे(1) तो दोज़ख़ियों को खु़दा की रहमत से दूरी है बेशक जो लोग अपने परवरदिगार से बे देखे भाले डरते हैं उनके लिये मग़फ़िरत और बड़ा भारी अज्र है- और तुम लोग अपनी बात छिपा कर(2) कहो या ख़ुल्लम ख़ुल्ला वह तो दिल के भेदो तक से खूब वाक़िफ़ है- भला जिसने पैदा किया वह बेख़बर है और वह तो बड़ा बारीकबीन वाक़िफ़कार है वही तो है जिसने ज़मीन को तुम्हारे लिये नर्म (व हमवार) कर दिया तो उसके अतराफ़(3) व जवानिब मे चलो फिरो और उसकी (दी हुई) रोज़ी खाओ और फिर उसी की तरफ़ कब्र से उठ कर जाना है
क्या तुम उस शख़्स से जो आसमान में (हुकूमत करता) है उस बात से बेख़ौफ़ हो कि तुम को ज़मीन में धंसा दे फिर वह यक बारगी उलट-पुलट करने लगे या तुम उस बात से बेख़ौफ़ हो कि जो आसमान मे (सलतन करता हो) है कि तुम पर पत्थर भरी आँधी चलाये तो तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जायेगा कि मेरा डराना कैसा है और जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने झुठलाया था तो (देखो) कि मेरी ना-खुशी कैसी थी क्या उन लोगों ने अपने सरों पर चिडियों को उड़ते नही देखा जो परो को फैलाये रहतेी है और समेट लेती है कि खु़दा के सिवा उन्हें कोई रोक नहीं रह सकता बेशक वह हर चीज़ को देख रहा है भला ख़ुदा के सिवा ऐसा कौन है जो तुम्हारी फौज़ बन कर तुम्हारी मदद करे- काफिर लोग तो धोखे ही (धोखे) मे हैं भला ख़ुदा अगर अपनी (दी हुई) रोज़ी रोक ले तो कौन ऐसा है जो तुम्हें रिज़्क दे मगर यह कुफ्फ़़ार तो सरकशी और नफ़रत (के भंवर) में फंसे हुए हैं भला जो शख़्स अँधा अपने मुंह के बल चले वह ज्यादा हिदायत याफ़्ता होगा या वह शख़्स जो सीधा(1) बराबर राहे रास्त पर चल राह हो
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा तो वही है जिसने तुम को नित नया पैदा किया और तुम्हारे वास्ते कान और आँखे और दिल बनाये (मगर) तुम तो बहुत कम शुक्र अदा करते हो कह दो कि वही तो है जिसने तुम को ज़मीन में फैला दिया और उसी के सामने जमा किये जाओगे और कुफ़्फ़ार कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) यह वादा कब (पूरा) होगा- (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (उसका) इल्म तो बस ख़ुदा को ही है और मैं तो सिर्फ़ साफ़-साफ़ (अज़ाब से) डराने वाला हूं- तो जब यह लोग उसे क़रसीब देख लेगें तो (ख़ौ़फ़ के मारे) काफिरों के चेहरे बिगड़ जायेंगे और उनसे कहा जाएगा यह वही है जिसके तुम ख़्वास्तदार थे
(ऐ रसूल) तुम कह दो भला देखो तो कि अगर ख़ुदा मुझ को और मेरी साथियों को हलाक कर दे या हम पर रहम फ़रमाये तो काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब से कौन पनाह देगा तुम कह दो कि वही (खुदा) बड़ा रहम करने वाला है जिस पर हम ईमान लायें हैं और हमने तो उसी पर भरोसा कर लिया है तो अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जायेगा कि कौन सरीही गुमराही में (पड़ा) है- (ऐ रसूल) तुम कहो दो कि भला देखो तो कि अगर तुम्हारा पानी ज़मीन के अंदर चला जाये कौन ऐसा है जो तुम्हारे लिये पानी का चश्मा बहा लाये।
सूरऐ क़लम
सूरऐ क़लम मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 52 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
नून-क़लम(2) की और उस चीज़ की जो लिखते हैं (उसकी) क़सम है कि तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़्ल (व करम) से दीवाने नहीं हो और तुम्हारे वास्ते यक़ीनन वह अज्र है जो कभी ख़त्म नहीं हो और तुम्हारे वास्ते यकीनन वह अज्र है जो कभी ख़त्म नहीं होगा और बेशक तुम्हारे इख़लाक़(3) बड़े आला दर्जे के हैं तो अनक़रीब ही तुम भी देखोगे और यह कुफ़्फार भी देख लेंगे कि तुम में दीवाना कौन है बेशक तुम्हारा परवरदिगार उनसे खूब वाक़िफ़ है जो उसकी राह से भटकते हुए हैं और वह हिदायत याफ़्ता को भी खूब जानता है तो तुम झुठलाने वाों का कहना न मानना वह लोग यह चाहते हैं कि अगर तुम नरमी इख़्तेयार करो तो वह भी नर्म हो जायें और तुम (कहीं) ऐसे के कहने में न आना जो क़स्में खाता ज़लील औक़ात ऐबजू आला दर्जे का जुग़लख़ोर माल का बहुत बख़ील हद से बढ़ने वाला गुनाहगार तुंद मिज़ाज और उसके अलवा बदज़ात(1) (हरामज़ादा) भी है क्योंकि माल और बहुत से बेटे रखता है
जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो बोल उठता है कि यह तो अगलो के अफ़सानें हैं हम अनकरीब उसकी नाक पर दाग़ लगायेंगे जिस तरह हमने एक(2) बाग़ वालों का इम्तेहान लिया था उसी तरह का इम्तेहान लिया जब उन्होंने क़स्में खा-खा कर काह कि सुबह होते हम उसका मेवा ज़रुर तोड़ डालेंगे और इंशा अल्लाह न कहा तो लोग पड़े सो ही रहे थे कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (रातों रात) एक बला चक्कर लगा गयी तो वह (सारा बाग़ जल कर) ऐसा हो गया जैसे बहुत काली रात-फिर यह लोग नूर के तड़के लगे बाहम गुल मचाने की अगर तुम को फल तोड़ना है तो अपने बाग़ में सवेरे से चलो- गर्ज़ वह लोग चले और आपस में चुपके-चुपके कहते जाते थे कि आज यहां तुम्हारे पास फ़क़ीर न आने पाए तो वह लोग रोक थाम के एहतमाम के साथ फ़ल तोड़ने की ठाने हुए सवेरे ही जा पहुंचे फिर जब उसे (जला हुवा स्याह) देखा तो कहने लगे हम लोग भटक गये (यह हमारा बाग़ नहीं फिर सोच कर बोले) बात ये है कि हम लोग बड़े मदनसीब हैं जो उन में मुन्सिफ़(1) मिज़ाज था कहने लगा क्यों मैं न तुम से नहीं कहा था कि तुम लोग (खुदा की) तसबीब क्यों नहीं करते वह बोले हमारा परवरदिगार पाक है
बेशक हम ही कुसूरवार हैं फिर लगे एक दूसरे के मुंह दर मुंह मलामत करने (आख़िर) सब ने इक़रार किया कि हाए अफ़सोस बेशक हम ही ख़ुद सरकश थे- उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें उससे बेहतर(2) बाग़ इनायत फ़रमाए- हम अपने परवरदिगार की तरफ़ रुजूअ करते हैं- (देखो) यू अज़ाब होता है और आख़ेरत का अज़ाब तो उस से कहीं बढ़ कर है अगर ये लोग समझते हों बेशक परहेज़गार लोग अपने परवरदिगार के यहां ऐश व आराम के बागों में होंगे
तो क्या हम फ़रमाबरदारों को नाफ़रमान के बराबर कर देंगे (हरगिज़ नहीं) तुम्हें क्या हो गया है तुम कैसा हुक्म लगाते हो या तुम्हारे पास कोई ईमानी किताब है जिस में तुम पढ़ लेते हो कि जो चीज़ पसन्द करोगे तुम को वह ज़रुर मिलेगी या तुम ने हम से क़स्में ले रखी हैं जो रोज़ क़यामत चली जाएगी कि जो कुछ तुम हुक्म दोगे वही तु्म्हारे लिये ज़रुर हाज़िर होगा उनसे पूछो तो कि उन में उस का कौन ज़िम्मेदार है या (उस बाब में) उनके और लोग भी शरीक हैं तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो अपन शीकों को सामने लाए जिस दिन पिंड़ली खोल(1) दी जाए और (काफिर) लोग सजदे के लिये बुलाए जाएंगे तो (सजदा) न कर सकेंगे- उन की आँखे झुकी हुई होंगी रूसवाई उन पर छाई होगी और (दुनियां में) ये लोग सजदे के लिये बुलाए जाते और हट्टे कट्टे तन्दरूस्त थे तो मुझे इस कलाम के झुटलाने वाले से समझ लेने दो हम उनको आहिस्ता आहिस्ता इस तरह पकड़ लेंगे कि उनको ख़बर भी न होगी और मैं उनको मोहतल दिये जाता हूं बेशक मेरी तदबीर मज़बूत है
(ऐ रसूल) क्या तुम उन से (तबलीग़ रिसालत का) कुछ सिला मांगते हो कि उन पर तावान का बोझ पड़ रहा हो या उनके पास ग़ैब (की ख़बर) है कि ये लोग लिख लिया करते हैं तो तुम अपने पवरदिगार के हुक्म के इन्तेज़ार में सब्र करो और मछली(2) (का निवाला होने) वाले (युनूस) के ऐसे न हो जाओ कि जब वह गुस्से से भरे हुए थे और अपने परवदिगा को पुकारा अगर तुम्हेर परवरदिगार की मेहरबानी उनकी यावरी न करती तो चटयल मैदान में डाल दिये जाते औ उनका बुरा हाल होता तो उनके परवरदिगार ने उनको बरगुज़ीदा करके नेकूकारों से बना दिया और कुफ़्फ़ार जब कुरआन को सुनते हैं तो मालूम होता है कि ये लोग तुम्हें घूर-घूर कर (राहे रास्ते से) ज़रुर फ़िसला देंगे और कहते हैं कि ये तो सिड़ी है और ये (कुरआन) तो सारे जहाँ की नसीहत है।
सूरऐ हाकका
सूरऐ हाकका मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 52 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
सचमुच होने वाली(क़यामत) और सचमुच होने वाली क्या चीज़ है और तुम्हें क्या मालूम कि वह सचमुच होने वाली क्या है (वही) ख़ड़खड़ाने वाली (जिस) को आद व समूद ने झुठलाया ग़रज़ समूद तो चिंघाड़ से हलाक कर दिये गये, रहे आद तो वह बहुत शदीद तेज़ आँधी से हलाक किये गये ख़ुदा ने उसे सात रात और आठ दिन लगातार उन पर चलाया तो लोगों को उस तरह ढै (मुरदे) पड़े देखता कि गोया वह खजूरी के खोखले तने हैं तो क्या उनमें से किसी को भी बचा खुचा देखता है
और फ़िरऔन और जो लोग उससे पहले थे और वह लोग (क़ौमे लूत) जो उल्टी हुई बस्तियों के रहने वाले थे सब गुनाह के काम करते थे तो उन लोगों ने अपने परवरदिगार के रसूल की नाफ़रमानी की तो खुदा ने भी उन की बड़ी सख़्ती से ले दे कर डाली जब पानी चढ़ने लगा तो हम ने तुम को कशती पर सवार किया ताकि हम उसे तुम्हारे लिये यादगार बनायें और उसे याद रखने वाले कान(1) सुन कर याद रखें फिर जब सूर में एक (बार) फूंक मार दी जाएगी और ज़मीन और पहाड़ उठा कर एकबारगी (टकरा कर) रेज़ा-रेज़ा कर दिये जाएंग तो उस रोज़ क़यामत आ ही जाएगी और आसमान फट जाएगा तो वह उस दिन बहुत फुस फुसा होगा
और फ़रिश्ते उसके किनारे पर होंगे और तुम्हारे परवरदिगार के अर्श को उस दिन आठ(2) फ़रिश्ते अपने सरों पर उठाए होंगे उस दिन तुम सब के सब (ख़ुदा के सामने) पेश किये जाओगे और तुम्हारी कोई पोशीदा बात छुपी नहीं रहेगी तो जिस को (उसका नामाए आमाल) दाहिने हात में दिया जाएगा तो वह (लोगों से) कहेगा- लीजिये मेरसा नामाए आमाल पढ़िये तो मैं तो जानता था कि मुझे मेरा हिसाब (किताब) ज़रुर मिलेगा फिर वह दिलपसंद ऐश में होगा बडे़ आलीशान बाग़ में जिनके फल बहुत झुके हुए क़रीब होंगे जो कारगिज़ारियां तुम गुज़श्था अय्याम में कर के आगे भेज चुके हो उस के सिले में मज़े से खाओ पियो(3) और जिसका नामाए आमाल उसके बाएं हाथ मे दिया जाएगा तो वह कहेगा ऐ काश मुझे मेरा नामा-ए-आमाल न दिया जाता और मुझे न मालूम होता कि मेरा हिसाब क्या है ऐ काश मौत ने (हमेशा के लिये मेरा) काम तमाम कर दिया होता (अफ़सोस) मेरा माल मेरे कुछ भी काम न आया
(हाए) मेरी सलतनत ख़ाक में मिल गयी(फिर हुक्म होगा) उसे गिरफ़्तार कर के तौक़ पिन्हा दो फिर उसे जहन्नुम में झोंक दो फिर एक जंज़ीर में जिस की नाप सत्तर(70) गज की है उसे खूब जकड़ दो (क्योंकि) यह न तो बुजुर्ग ख़ुदा पर ही ईमान लाता था और न मोहताज के खिलाने पर आमादा (लोगों को) करता था तो आज न उसका कोई ग़म ख़्वार है और न पीप के सिवा (उसके लिये) कुछ खाना है जिस को गुनाहगारों के सिवा कोई नहीं खाएगा तो मुझे उन चीज़ों की क़सम है जो तुमको दिखाई देती है और तुम्हें नहीं सुझायी देती कि बेशक यह (कुरान) एक माअज़िज्ज़ फ़रिश्ते का लाया हुआ पैगाम है और यह किसी शायर की तुक बन्दी नहीं तुम लोग तो बहुत कम ईमान लाते हो और न किसी काहन की (ख़याली) बात है तुम लोग तो बहुत कम ग़ौर करते हो, सारे जहान के परवरदिगार का नाज़िल किया हुआ (कलाम) है।
अगर रसूल हमारी निसबत कोई झूठ बात बना लाते तो हम उनका दाहिन हाथ पकड़ लेते फिर हम ज़रुर उनकी ग़र्दन उडा़ देते तो तुममें से कोई उनसे मुझे रोक न सकता यह तो परहेज़गारों के लिये नसीहत है और हम खूब जानते हैं कि तुममे से कुछ लोग (उसके) झुठलाने वले हैं और उसमें शक नहीं कि यह काफिरों की हसरत का बाएस है और उसमें शक नहीं कि यह यक़ीनन बरहक है तो तुम अपने बुजुर्ग परवरदिगार की तसबीह करो।
सूरऐ मआरिज़
सूरऐ मआिरज़ मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 44 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
एक मांगने वाले ने काफिर के लिये होकर रहने वाले अज़ाब(2) को मांगा, जिसको कोई टाल नहीं सकता, जो दरजे वाले खुदा की तरफ़ से (होने वाला) था जिसकी तरफ़ फ़रिश्ते और रूहउल-अमीन चढ़ते हैं (और यह) एक दिन में इतनी समाफ़त तय करते हैं जिसका अंदाज़ा पचास हज़ार बरस का होगा तो तुम अच्छी तरह उन तकलीफ़ों को बरदाश्त करते रहो (क़यामत) उनकी निगाह में बहुत दूर है और हमारी नज़र में नज़दीक है
जिस दिन आसमान पिघले हुए तांबे का सा हो जाएगा और पहाड़ धुनके हुए ऊन का सा-बावजूद यह कि एक दूसरे को देखते होंगे, कोई किसी दोस्त को न पूछेगा गुनाहगार तो आरजू करेगा कि काश उस दिन के अज़ाब के बदले उसके बेटों और उसकी बीवी और उसके भाई और उसके कुनबे को जिसमें वह रहता था और जितने आदमी रूए ज़मीन पर हैं सबको ले लें और उसको छुटकारा दे दें (मगर) यह हरगिज़ न होगा (जहन्नुम की वह भड़कती आग) है कि खाल को उधेड़ कर रख देगी (और) उन लोगों को अपनी तरफ़ बुलाती होगी जिन्होंने (दीन से) पीठ फेरी और मुहं मोड़ा और (माल) जमा किया और बंद कर रखा बेशक इंसान बड़ा लालची पैदा हुआ है जब उसे तकलीफ़ छू ही गयी तो घबरा गया और जब उसे फ़राख़ी हासिल हुई तो बख़ील बन बैठा,
मगर जो(1) लोग नमाज़ें पढ़ते हैं जो अपनी नमाज़(1) का इलतेज़ाम रखते हैं और जिनके माल मे मांगने वाले और न मांगने वाले के लिये एक मुकर्रर हिस्सा है, और जो लोग रोज़े जज़ा की तसदीक़ करते हैं और जो लोग अपने परवरदिगार के अज़ाब से डरते रहते हैं बेशक उनके परवरदिगार के अज़ाब से बेख़ौफ़ न होना चाहिेये और जो लोग अपनी शर्मगाहों की अपनी बीबियों और अपनी लौंडियों के सिवा से हिफ़ाज़त करते हैं तो उन लोगों की हरगिज़ मलामत नही की जायेगी तो जो लोग उनके सिवा और के ख़्वास्तगार हों तो यही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं और जो लोग अपनी अमानतों और ओहदे का लिहाज़ रखते हैं
और जो लोग अपनी शहादतों पर क़ायमत रहते हैं और जो लोग अपनी नमाज़ों(1) का ख़याल रखते हैं यही लोग (बेहिश्त के) बाग़ों में इज़्ज़त से रहेंगे तो (ऐ रसूल) काफ़िरों को क्या हो गया है कि तुम्हारे पास गिरोह-गिरोह दाहिने से बायें दौड़े चले आ रहे हैं क्या उनमें से हर शख़्स उसी का मुतमन्नी है कि चैन के बाग़ (बेहिश्त) में दाख़िल होगा हरगिज़ नही हमने उनको जिस (गन्दी) चीज़ से पैदा किया यह लोग जानते हैं तो मैं मशरिकों(2) और मग़रिबों के परवरदिगार की क़समत खाता हूं कि हम ज़रुर उस बात की कुदरत रखते हैं कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ल (बसायें) और हम आजिज़ नहीं है तो तुम उन को छोड़ दो कि बातिल में प़ड़े खेलते रहें- यहां तक कि जिस दिन का उनसे वादा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो, उसी दिन यह लोग कब्रों से निकल कर उस तरह दौडेंगे गोया वह किसी झन्डे की तरफ़ दौड़े चले जाते हैं (नदामत से) उनकी आँखें झुकी होंगी उन पर रुसवाई छायी हुई होगी यह वही दिन है जिसका उनसे वादा किया जाता था।
सूरऐ नूह
सूरऐ नूह मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 28 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हमने नूह को उसकी क़ौम के पास (पैगम़्बर बना कर) भेजा कि क़ब्ल उसके कि उनकी क़ौम पर दर्दनाक अज़ाब आये उनको उसेस डराओ तो नूह (अपनी क़ौम से) कहने लगे ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुम्हें साफ़-साफ़ डराता (और समझाता) हूँ कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो और उसी से डरो और मेरी एताअत करो ख़ुदा तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा
और तुम्हें (मौत के) मुक़र्रर वक़्त तक बाक़ी रखेगा, बेशक जब ख़ुदा का मु़क़र्रर किया हुआ वक़्त आ जाता है तो पीछे हटाया नहीं जा सकता अगर तुम समझते होते कि (जब लोगों ने माना तो) अर्ज़ की परवरदिगार मैं अपनी क़ौम को (ईमान की तरफ़) बुलाता रहा लेकिन वह मेरे बुलाने से और ज़्यादा गुरेज़ ही करते रहे और मैंने जब उनको बुलाया कि (यह तौबा करें औ) तू उन्हें माफ़ कर दे तो उन्होंने अपने कानों में उंगलियां दे ली और मुझ से छिपने को कपड़ ओढ़ लिये और अड़ गये और बहुत शिद्दत से अक़ड बैठे फिर मैंने उनको बिल एलान(2) बुलाया फिर उनको ज़ाहिर व ज़ाहिर समझाया और उनकी पोशीदा भी फहमाइश की कि मैंने उनसे कहा अपने परवरदिगार से मग़फ़़िरत की दुआ मांगों बेशक वह ब़ड़ा बख़्शने वाला है
(और) तुम पर आसमान से मूसलाधार पानी बरसायेगा, और माल और औलाद मे तरक्की देगा, और तुम्हारे लिये बाग़ बनायेगा, और तुम्हारे लिये नहरे जारी करेगा तुम्हें क्या हो गया है कि तुम ख़ुदा की अज़मत का ज़रा भी ख़याल नहीं करते हालांकि उसी ने तुमको तरह-तरह का पैदा किया, क्या तुमने ग़ौर नही किया कि ख़ुदा ने सात आसमान ऊपर तले कर बनाये और उसी ने उन में चाँद को नूर बनाया और सूरज को रौशन चिराग़ बना दिया और खुदा ही ने तुमको ज़मीन से पैदा किया(2)
फिर तुम को उसी में दुबारा ले जायेगा और (क़यामत में उसी से) निकाल खड़ा करेगा और ख़ुदा ही ने ज़मीन को तुम्हारे लिये फ़र्श बनाया ताकि तुम उसके बड़े-बड़े कुशादा रास्तों में चलो फिरो (फिर) नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार उन लोगों ने मेरी नाफ़रमानी की उस शख़्स के ताबेदार बन के जिसने उनके माल और औलाद में नुकसान के सिवा फ़ायदा न पहुंचाया और उन्होंने (मेरे साथ) बड़ी मक्कारिया की और (उल्टे) कहने लगे कि अपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न दो को और सवा को और न यगूस व यऊक़ व नस्र को छोड़ना और उन्होने बुहेतेरों को गुमराह करस छोड़ा और तो (उन) ज़ालिमों की गुमराही को और बढा दे
(आख़िर) वह अपने गुनाहों की बदौलत (पहले तो) डुबाये गये फिर जहन्नुम में झोके गये तो उन लोगों ने खुदा के सिवा किसी को अपना मददगार न पाया, और नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार (उन) काफि़रों मे स रूए ज़मीन पर किसी को बसा हुआ न रहन दे, क्योंकि अगर तू उनको छोड़ देगा तो यह (फिर) तेरे बन्दों को गुमराह करेंगे और उनकी औलाद भी गुनाहगार और कट्टी काफिर होगी, परवरदिगार मुझ को और मेरे मां-बाप को और जो मोमीन मेरे घर में आये उसको और तमाम ईमानदार मर्दों और मोमिना औरतों को बख़्श दे और (इन) ज़ालिमों की बस तबाही को और ज़्यादा कर।
सूरऐ जिन्न
सूरऐ जिन्न मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 28 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल लोगों से) कह दो कि मेरे पास वही आई है कि जिनों की एक जमाअत ने (कुरआन को) जी लगा कर सुना तो कहने लगे कि हम(2) ने एक अजीब कुरआन सुना है जो भलाई की राह दिखाता है तो हम उस पर ईमान ले आए और अब तो हम किसी को अपने परवरदिगार का शरीक न बनाएंगे और ये कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बड़ी है उस ने न (किसी को) बीवी बनाया और न बेटा बेटी और ये कि हम में से बाज़ बेवकूफ़ ख़ुदा के बारे में हद से ज़्यादा(1) लगों बातें बका करते थे और ये कि हमारा तो ख़याल था कि आदमी और जिन ख़ुदा की निस्बत झूटी बात नहीं बोल सकते और ये कि आदमियों में से कुछ लोग जिन्नात में से बाज़ लोगों को पनाह पकड़ा करते थे तो (उससे) उन की सरकशी और बढ़ गई
और ये कि जैसा तुम्हारा ख़याल है वैसा ही उन का भी एतका़द था कि ख़ुदा हरगिज़ किसी को दुबारा नहीं ज़िन्दा करेगा और ये कि हम ने आसमान को टटोला तो उस को भी बहुत क़वी निगेबानों और शोलों से भरा हुवा पाया और ये कि पहले हम वहां बहुत से मक़ामात में (बातें) सुनने के लिये बैठा करते थे मगर अब कोई सुनना चाहे तो अपने लिये शोला तैयार पाएगा और ये कि हम नहीं समझते कि इस से एहले ज़मीन के हक़ में मुराई मक़सूद है या उनके परवरदिगार ने उन की भलाई का इरादा किया है और ये कि हम में से कुछ लोग तो नेकूकार हैं और कुछ लोग और तरह के हम लोगों के भी तो कई तरह के फिरके हैं और ये कि हम समझते थे कि हम ज़मीन में (रहकर) ख़ुदा को हरगिज़ हरा नही सकते हैं और न भाग कर उस को आजिज़ कर सकते हैं और ये कि जब हम ने हिदायत (की किताब) सुनी तो उन पर ईमान लाए तो जो शख़्स अपने परवरदिगारस पर ईमान लाएगा तो उस को न नुक़सान का ख़ौफ़ है और न जुल्म का और ये कि हम में से कुछ लोग तो फ़रमा बरदार हैं
और कुछ लोग नाफ़रमान तो जो लोग फ़रमाबरदार हैं तो वह सीधे रास्ते पर चले और रहे नाफ़रमान तो वह जहन्नुम के कुंदे बने और (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर ये लोग सीधी राह पर क़ाएम रहते हैं तो हम ज़रुर उनको अलग़ारों पानी से सेराब करते ताकि उन से उन की आज़माइश करें और जो शख़्स अपने परवरदिगार की याद से मुंह मोडे़गा तो वह उसको सख़्त अज़ाब में झोंक देगा और ये कि मस्जिदें ख़ास(1) ख़ुदा की हैं तो लोगों ख़ुदा के सात किसी की इबादत न करना और ये कि जब उस का बांदा (मुहम्मद) उस की इबादत को खड़ा होता है तो लोग उसके गिर्द हुजूम करके गिरे पड़ते हैं
(ऐ रसूल) तुम कहो दो(2) कि मैं तो अपने परवरदिगार की इबादत करता हूं और उस का किसी को शरीक नहीं बनाता (यह भी) कह दो कि मैं तुम्हारे हक़ में न बुराई ही का इख़्तेयार रखता हूं और न भलाई का (ये भी) कह दो कि मुझे ख़ुदा (के अज़ाब) से कोई भी पनाह नहीं दे सकता और न मैं उस के सिवा कहीं पनाह की जगह देखता हूं ख़ुदा की तरफ़ से (अहकाम के) पहुंचा देने और उसके पैग़ामों के सिवा (कुछ नहीं कर सकता) और जिस ने ख़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की तो उस के लिये यक़ीनन जहन्नुम की आग है जिस में वह हमेशा और अबद तक रहेगा यहां तक कि जब ये लोग उन चीज़ों को देख लेंगे जिन का उन से वादा किया जाता है तो उन को मालूम हो जाएगा कि किस के मददगार कमज़ोर और किस का शुमार कम है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस दिन का तुम से वादा किया जाता है क़रीब है येा मेरे परवरदिगार ने उस की मुद्दत दराज़ कर दी है (वही) गै़बदां है और अपनी गैब की बात किसी पर ज़ाहिर नहीं करता मगर जिस पैग़म्बर को पसंद फ़रमाए तो उस के आगे और पीछे निगेहबान फ़रिश्ते मुक़र्रर कर देता है ताक देख ले कि उन्होंने अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुंचा दे और (यूं तो) जो कुछ उनके पास है वह सब पर हावी है और उस ने तो एक-एक चीज़ गिन रखी है।
सूरऐ मुज़म्मिल
सूरऐ मुज़म्मिल मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 20 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ (मेरे) चादर(2) लपेटने (रसूल) रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं) थोड़ी रात आधी रात या उससे भी कुछ कम कर दो या उस से कुछ बढ़ा दो(3) और कुरआन को बाक़ाएदा ठहर-ठहर(4) कर पढ़ा करो हम अंक़रीब तुम पर एक भारी हुक्म नाज़िल करेंगे इस में शक नहीं की रात को उठना खूब (नफ़्स का) पामाल कुन और बहुत ठिकाने से ज़िक्र का वक़्त है दिन को तो तुम्हारे और बहुत से बड़े-बड़े अशग़ाल हैं तो तुम अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र कर और सब से टूट कर उसी के हो रहो (वही) मशरिक़ और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उस को कारसाज़ बनाओ और जो कुछ लोग बका करते हैं उस पर सब्र करो और उन से बा-उनवाने शाइस्ता अलग थलग रहो और मुझे उन झुटलाने वालों से जो दौलत मंद है समझ लेने दो और उन को थोड़ी सी मोहलत दे दो बेशक हमारे पास बेडियां (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी) जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीलों से भुरे भुरे हो जाएंगे
(ऐ मक्के वालों) हम ने तुम्हारे पास (इसी तरह) एक रसूल (मुहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फ़िरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था तो फ़िरऔन ने उस रसूल की नाफ़रमानी की तो हम ने भी (उस की सज़ा में) उस को बहुत सख़्त पकड़ा तो अगर तुम भी न मानोगे तो उस दिन (के अज़ाब) से क्योंकर बचोगे जो बच्चे को बूढ़ा न बना देगा जिस दिन आसमान फ़ट पड़ेगा (ये) उस का वदा पूरा होकर रहेगा बेशक ये नसीहत है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की राह इख़्तेयार करे (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार चाहता है कि तुम और तुम्हारे चंद साथ के लोग (कभी) दो तेहाई सात के क़रीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात (नमाज़ में) खड़े रहते हो
और ख़ुदा ही रात और दिन का अच्छी तरह अंदाज़ा कर सकता है उसे मालूम है कि तुम लोग उस पर पूरी तरह से हावी(1) नहीं हो सकते तो उस ने तुम पर मेहरबानी की तो जितना आसानी से हो सके उतना (नमाज़ में) कुरआन पढ़ लिया करो और वह जानता है कि अन्क़रीब तुम में बाज़ बीमार हो जाओगे और बाज़ ख़ुदा के फ़ज़्ल की तलाश में रूए जमीन पर सफ़र इख़्तेयार करोगे और कुछ लोग ख़ुदा की राह में जेहाद करोगे तो जितना तुम आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबंदी से पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा को क़र्जे हस्ना दो और जो नेक अमल अपने वास्ते (ख़ुदा के सामने) पेश करोगे उस को ख़ुदा के यहां बेहतर और सिला में बुजुर्ग तर पाऔगे और ख़ुदा से मग़फ़िरत की दुआ मांगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
सूरऐ मुदस्सिर
सूरऐ मुदस्सिर मदीने में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 56 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ (मेरे) कपड़ा(2) ओढ़ने वाले (रसूल) उठो और लोगों को (अज़ाब से) डराओ और परवरदिगार की बड़ाई करो और अपने कपड़े(3) पाक रखो और गन्दगी(4) से अलग रहो और उसी तरह अहसान(5) न करो कि ज़्यादा से ख़्वास्तगार बनो और अपने परवरदिगार के लिए सब्र करो फिर जब सूर फूंका जाएगा तो वह दिन काफ़िरों पर सख़्त दिन होगा आसान नहीं(6) होगा
(ऐ रसूल) मुझे और उस शख़्स को छोड़ दो जिसे मैंने अकेला पैदा किया और उसे बहुत सा माल दिया और नज़र के सामने रहने वाले बेटे (दिए) और उसे हर तरह के सामान में वुसअत दी फिर उस पर भी वह तमआ रखता है कि मैं और बढ़ाऊ ये हरगिज़ न होगा ये तो मेरी आयतों का दुश्मन तथा तो मैं अनक़रीब उसे सख़्त अज़ाब में मुब्तिला करूंगा उस ने फिक्र की और ये तजवीज़ की तो ये (कम्बख़्त) मार डाला जाए उसने क्योंकर तजवीज़ की फिर ग़ौर किया फिर त्योरी चढ़ाई और मुंह बना लिया फिर पीठ फेर कर चला गया और अकड़़ बैठा फिर कहने लगा ये तो बस जादू है जो (अगलों से) चला आता है ये चो बस आदमी का कलाम है (ख़ुदा का नहीं) मैं उसे अनक़रीब जहन्नुम में झोंक(1) दूंगा और तुम क्या जानों जहन्नुम क्या है वह न बाक़ी रखेगी न छोड़ देगी और बदन को जला कर स्याह कर देगी उस पर उन्नीस (फ़रिश्ते मोअय्यन) हैं और हमने जहन्नुम का निगेहबान तो बस फ़रिश्तों को बनाया है
और उन का ये शुमार भी काफ़िरों को आज़माइश के लिए मुक़र्रर किया ताकि अहले किताब (फ़ौरन) यक़ीन कर ले और मोमीनीन का ईमान और ज़्यादा हो और अहले किताब और मोनीनीन (किसी तरह) शक न करें और जिन लोगों के दिल में (नफ़ाक़ का) मर्ज़ है (वह) और काफ़िर लोग कह बैठे कि इस मसल (के बयान करन) से ख़ुदा का क्या मतलब है यूं ख़ुदा जिसे चाहता है गुम्राही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत करता है और तुम्हारे परवरदिगार के लश्करों को उसके सिवा कोई नहीं जानता और ये तो आदमियों के लिए बस नसीहत है सुन रखो (हमें) चाँद की क़सम और रात की ज जाने लगे और सबह की जब रौशन हो जाए कि वह (जहन्नुम) भी एक बड़ी (आफ़त) है (और) लोगो की डराने वाली है (सब के लिए नहीं बल्कि) तुम में से जो शख़्स (नेकी की तरफ़) आगे बढ़ना और (बुराई से) पीछे हटना चाहे हर शख़्स अपने आमाल के बदले गिर्द है मगर दाहिने हाथ (में नामाए आमाल लेने) वाले (बेहिश्त के) बागों में गुनाहगारसों से बाहम पूछ रहे होंगे कि आख़िर तुम्हें दोज़ख में कौन सी चीज़ (घसीट) लाई
वह लोग कहेंगे कि हम न तो नमाज़ पढ़ा करते थे और न मोहताजों को खाना खिलाते थे और अहले बातिल के साथ हम भी बड़े बुरे काम में घुस पड़े थे- और रोज़े जज़ा को झुठलाया करते थए और यूं ही रहे यहां तक कि हमें मौत आ गई तो (उस वक़्त) उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश कुछ काम न आएगी और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुंह मोड़े हुए है गोया वहशी गदे ह शेर से (दुम दबा कर) भागते हैं असल ये है कि उन में हर शख़्स उस का मुतमनी है कि उसे खुली हुई (आसमानी) किताबें(2) अता की जाए ये तो हरगिज़ न होगा कि बल्कि ये तो आख़िरत ही से नहीं डरते हां हा बेशक ये (कुरआन सरासर) नसीहत है तो जो चाहे उसे याद रखे और खु़दा की मशीअत बगै़र तो ये लोग याद रखने वाले नही वही (बन्दों के) डराने के क़ाबिल और बख़्शिश का मालिक है।
सूरऐ क़यामत
सूरऐ क़यामत मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 40 आयतें हैं।
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
मैं रोज़े क़यामत की क़सम खाता हूं(2) और (बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूं (कि तुम सब दोबारा) ज़िन्दा किए जाओगे क्या इन्सान ये ख़्याल करता है कि हम उसकी हड्डियों को बोसीदा होने के बीद जमा न करेंगे हां (ज़ुरर करेगे) हम उस पर क़ादिर हैं कि हम उसकी पोर-पोर(3) दुरुस्त करेंगे मगर इन्सान तो ये चाहता है अपने आगे भी (हमेशा) बुराई करता जाए पूछता है कि क़यामत का दिन कब होगा तो जब आँखे चकाचौंध में आ जाएंगी और चांद गहन में लग जाएगा और सूरज और चांद इकट्ठा कर दिए जाएंगे तो इंसान करहेगा आज कहीं भाग कर जाऊँ यक़ीन जानों कहीं पनाह नहीं उस रोज तुम्हारे परवरदिगार ही के पास ठिकाना है उस दिन आदमी को जो कुछ उस ने आगे पूछे बता दिया जाएगा बल्कि इंसान तो अपने ऊपर गवाह है अगर चे वह अपने गुनाहों की हज्रो माज़रत पड़ा करता रहे
(ऐ रसूल) वही के जल्दी याद करने के वास्ते अपनी ज़बान को हरकत न दो(4) उसका जमा कर देना और पढ़वा देना तो यक़ीनी हमारे ज़िम्मे है तो जब हम उस को (जिब्राईल की ज़बानी) पढ़े तो तुम भी (पूरा सुनने के बाद) उसी तरह पढ़ा करो फिर उस (के मुश्कीलात) का समझा देना भी हमारी ज़िम्मे है मगर (लोगों) हक़ तो ये है कि तुम लोग दुनियां को दोस्त रखते हो और आख़ेरत को छोड़े बैठे हो उस रोज़ बहुत से चेहरे तो तरो ताज़ा बश्शाश होंगे (और) अपने परवरदिगार(1) (की नेअमत) को देख रहे होंगे और बहुतेरे मुह उस दिन उदास होंगे समझ रहे हैं कि उन पर मुसीबत पड़ने वाली है कि कमर तोड़ देगी सुन लो जब जान (बदन से खींच के) पंसली तक आ पहुँचेगी और कहा जाएगा कि (उस वक़्त) कोई झाड़ फूंक करने वाला है
और मरने वाले ने समझा कि अब (सब से) जुदाई है और (मौत की तकलीफ़ से) पिंडली से पिंडली लिपट जाएगी उस दिन तुझ को अपने परवरदिगार की बारगाह में चलना है तो उस ने (ग़फ़लत मे) न (कलाम ख़ुदा की) तस्दीक़ की न नमाज़ पढ़ी मगर झुठलाया और (ईमान से) मुंह मोड़ा फिर अपने घर की तरफ़ इतराता हुआ चला अफ़सोस है तुझ पर फिर अफ़सोस है फिर तुफ़ है तुझ पर फिर तुफ़ है क्या इंसान ये समझता है कि वह यूं ही छोड़ दिया जाएगा क्या वह (इब्तेदा) मनी का एक क़तरह न था जो रहम में डाली जाती है फिर लोथड़ा हुआ फिर खुदा ने उसे बनाया फिर उसे दुरुस्त किया फिर उस की दो क़िस्में बनाई (एक) मर्द और (एक) औरत क्या उस पर क़ादिर नहीं (क़यामत में) मुर्दों को ज़िन्दा कर दें।
सूरऐ दहर
सूरऐ दहर मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 31 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
बेसख इन्सान पर एक ऐसा वक़्त आ चुका है कि वह कोई चीज़ क़ाबिल जिक्र न था हमने इन्सान को मख़लूत(2) नुत्फ़े से पैदा किया कि उसे आज़माएं तो हमने उसे सुनता देखता बनाया और उस को रास्ता भी दिखा दिया (अब वह) ख़्वाह शुक्र गुज़ार हो ख़्वाहा नाशुक्रा हम ने काफिरों के लिए जंज़ीरे-तौक़ और दहकती हुई आग तैयार कर रखी है बेशक नेकूकार लोग शराब के वह साग़र पीयेंगे जिस में काफूर की आमेज़िश होगी ये एक चश्मा है जिस में से खु़दा के (ख़ास) बन्दे पीएगे और जहां चाहेंगे बहा ले जाएंगे ये वह लोग हैं जो नजरें पूरी करते हैं और उस दिन से जिस की सख़्ती हर तरह फैली होगी डरते हैं और उस की मुहब्बत मे मोहताज और यतीन और असीर को खाना खिलते हैं (और कहते हैं कि) हम तो तुम को बस ख़ालिस खु़दा के लिये खिलाते हैं हम न तुम से बदले के ख़्वास्तगार है और न शुक्रगुज़ारी के, हम तको तो अपने परवरदिगार से उस दिन का डर है जिस में मुँह बन जाएंगे (और) चहरे पर हवाइयां उड़ती होंगी तो खुदा उन्हें उस दिन की तकलीफ़ से बचा लेगा और उन को ताज़गी और खुशादिली अता फ़रमाएगा
और उन के सब्र(1) के बदले (बेहिश्त के) बाग़ और रेशम (की पोशाक) अता फ़रमाएगा वहां वह तखतों पर तकिये लगाए (बैठे) होंगे न वहां (आफ़ताब की) धूप देखें और न शिद्दत की सर्दी और घने दरख्तों के साए उन पर झुके हुए होंगे और मेवे के गुच्छे उन के बहुत क़रीब हर तरह उन के इख़्तेयार में और उन के सामने चाँदी के साग़र और शीशे के निहायत शफ़ाफ़ गिलास का दौर चल रहा होगा और शीशे भी (कांच के नहीं) चांदी के जो ठीक अंदाजे के मुताबिक़ बनाए गये हैं और वहां उन्हें ऐसी शराब पिलाई जाएगी जिस में जंजबील (के पानी) की आमेज़िश होगी ये बेहिश्त में एक चश्मा है जिस का नाम सलसबील है और उनके सामने एक हालत पर रहने वाले नौजवान लड़के चक्कर लगाते होंगे कि जब तुम उन को देखो तो समझो कि बिख़रे हुए मोती हैं
और जब तुम वहां निगाह उठाओगे तो हर तरह की नेमत और अज़ीमुल शान सल्तनत देखोगे उनके ऊपर सब्ज़ करेग और अतलस की पोशाक होगी और उन्हें चांदी के कंगन पहनाए जाएंगे और उनका परवरदिगार उन्हें निहायत पाकज़ा शराब पिलाएगा ये यकी़नी तुम्हारे लिये होगा तुम्हारी (कारगुज़ारियों के सिले में और तुम्हारी कोशिश क़ाबिल शुक्रगुज़ारी(1) है (ऐ रसूल) हम ने तुम पर कुरआन को रफ़्ता रफ़्ता करके नाज़िल किया तो तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इनतेज़ार में सब्र किये रहो और उन लोगों में से गुनाहगार और नाशुक्रे की पैरवी करना सुबह शाम अपने परवरदिगार का नाम लेते रहो
और कुछ रात गये उस का सजदा करो और बड़ी रात तक उस की तसबीह करते रहो ये लोग यक़ीनी दुनिया को पसंद करते हैं और बडे़ भारी दिन को अपने पसे पुश्त छोड़ बैठे हैं हम ने उस को पैदा किया और उन के आज़ा को मज़बूत बनाया और अगर हम चाहे तो उन के बदले उन ही के ऐसे लोग ले आँये बेशक ये कुरआन सरासर नसीहत है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की रसाह ले और जब तक ख़ुदा को मंजूर न हो तुम लोग कुछ भी चाह नहीं सकते बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार है जिस को चाहे अपनी रहमत में दाख़िल करे और ज़ालिमों के वास्ते उस ने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है।
सूरऐ मुर्सलात
सूरऐ मुर्सलात मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 50 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हवाओं की क़सम जो (पहले) धीसी चलती हैं फिर ज़ोर पकड़ के आँधी हो जाती हैं और (बादलों को) उभार कर फ़ैला देती हैं फिर (उन को फाड़कर जुदा कर देती हैं- फिर फ़रिश्तों की क़सम जो वही लातेहैं ताकि हुज्जत तमाम हो और डरा दिया जाए कि जिस बात का तुम से वादा किया जाता है वह ज़रुर होकर रहेगा फिर जब तारो की चमक जाती रहेगी और जब आसमान फट जाएगा और जब पहाड़ (रोई की तरह) उड़े-उड़े फिरेंगे और जब पैगम्बर लोग एक मुअय्यन वक़्त पर जमा किये जाएंगे (फिर) भला उन (बातों) में किस दिन के लिये ताख़ीर की गई है फ़ैसले के दिन के लिये और तुम को क्या मालूम कि फ़ैसले के दिन क्या है उस दिन झुटलाने वालों की मिट्टी ख़राब है- क्या हम ने अगलों को हलाक नहीं किया फिर उन के पीछे पीछे पिछलो को भी चलता करसेंगे हम गुनाहगारों के साथ ऐसा ही किया करते हैं उस दिन झुटलाने वालों की मिट्टी ख़राब है
क्या हमने तुम को ज़लील पानी (मनी) से पैदा नहीं किया फिर हमने उस को एक मुअय्यन वक़्त तक एक महफूज़ मक़ाम (रहम) में रखा फिर (उसका) एक अंदाज़ा मुक़र्रर किया तो हम क्या अच्छा अंदाज़ा मुक़र्रर करने वाले हैं उस दिन झुटलाने वालों की ख़राबी है क्या हम ने ज़मीन को ज़िन्दों और मुरदों को समेटने(1) वाली नहीं बनाया और उस में ऊँचे ऊँचे अटल पहाड़ रख दिये और तुम लोगों को मीठा पानी पिलाया उस दिन झुटलाने वालों की ख़राबी है जिस चीज़ को तुम झुटलाया करते थे अब उस की तरफ़ चलो (धुऐं के) सारे की तरफ़ चलो जिस के तीन हिस्से(2) है जिस में न ठंडक है और न जहन्नुम की लपक से बचाएगा उस से इतने बड़े-बडे अंगारे बरसते होंगे जैसे महल गोया जर्द रंग के ऊँट हैं उस दिन झुटलाने वालों की ख़राबी है यह वह दिन होगा कि लोग लब तक न हिला सकेंगे और न उनको इजाज़त दी जाएगी कि कुछ उज्र माज़रत कर सकें उस दिन झुटलाने वालों की तबाही है यही फ़ैसले का दिन है (जिस में) हम ने तुम को और अगलों को इकट्ठा किया है तो अगर तुम्हें कोई दावें करना हो तो आओ चल चुको उस दिन झुटलाने वालों की ख़राबी है
बेशक परहेज़गार लोग (दरख़्तों की) घनी छांव में होंगे और चश्मों और मेवों में जो उन्हें मरगूब हो (दुनिया में) जो अमल करते ते उस के बदले में मज़े से खाओ पियो मुबारक हम नेकूकारों को ऐसा ही बदला दिया करते है उस दिन झुटलाने वालों की ख़राबी है (झुटलाने वाले) चंद दिन चैन से खा पी लो तुम बेशक गुनाहगार ही उस दिन झुटलाने वालों की मिट्टी ख़राब है और जब उनसे कहा जाता है कि रूकूअ करो तो रूकूअ नहीं करते उस दिन झुटलाने वालों की ख़राबी है अब उसके बाद ये किस बात पर ईमान लाएंगे।
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