तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-28

कुरआन मजीद
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सूरऐ मुजादला
सूरऐ मुजादला मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 22 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) जो औरत (खूला) तुम से अपने शौहर (औस) के बारे में तुम से झगड़ती और गिले शिकवे करती है ख़ुदा ने उसकी बात सुन ली और ख़ुदा तुम दोनों की गुफ़्तगू सुन रहा है बेशक ख़ुदा बड़ा सुनने वाला देखने वाला है तुम में से जो लोग अपनी बिबियों के साथ ज़हार करते(2) हैं (अपनी बीब को मां कहते हैं) वह कुछ उनकी माँए नहीं (हो जाती) उन की माँए तो बस वही हैं जो उन को जनती हैं और वह बेशक एक नामाकूल और झूटी बात कहते हैं और ख़ुदा बेशक माफ़ करने वाला और बड़ा बख़्शने वाला है
और जो लोग बीबियों से ज़हार कर बैठें फिर अपनी बात वापस लें तो दोनों के हमबिस्तर होने से पहल (कफ़्फ़ारा में) एक गुलाम का आज़ाद करना (ज़रूर) है उस की तुम को नसीहत की जाती है और तुम जो कुछ भी करते हो ख़ुदा उस से आगाह है- फिर जिस को गुलान न मिले तो दोनों की मक़ारबत के क़ल्ब दो(2) महीने के लिए पै दर पै रोज़े रखे और जिस को उस की भी कुदरत न हो तो साठ (60) मोहताजों को खाना खिलाना फ़र्ज़ है
ये (हु्कम इस लिए है) ताकि तुम ख़ुदा और उसके रसूल की (पूरी) तस्दीक़ करो और ये ख़ुदा की मुक़र्रर हदें है और काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है बेशक जो लोग ख़ुदा की और उसके रसूल की मुख़ालिफ़त करते हैं वह (इसी तरह) ज़लील किए जाएंगे जिस तरह उन से पहले लोग किए जा चुके हैं और हम तो अपनी साफ़ और सरीही आयतें नाज़िल कर चुके और काफ़िरों के लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है जिस दिन ख़ुदा उन सब को दोबारा उठाएगा तो उन के आमाल से उन को आगाह कर देगा ये लोग (अगर चे) उनको भूल गए हैं मगर खुदा ने उनको याद रखा है और ख़ुदा तो हर चीज़ का गवाह है क्य तुमको मालूम नहीं कि जो कुछ आसमानों में है
और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) खुदा जानता है जब तीन (आदमियों) का ख़ुफ़िया मश्विरा होता है तो वह (ख़ुदा) उन का ज़रुर चौथा और और जब पांच का मश्वरा होता है तो वह उन का छठा है और उस से कम हो या ज़्यादा और चाहे जहां कहीं हो वह उन के साथ ज़रुर होता है फिर जो कुछ वह (दुनियां में) करते रहे क़यामत के दिन उकनो उससे आगाह कर देगा बेशक वह हर चीज़ से खूब वाक़िफ़ हैं क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन को सरगोशियाँ करने से मना(1) किया गया था ग़रज़ जिस काम की उनको मना की गई थी उसी को फिर करते हैं और (लुत्फ तो ये है) गुनाह और (बे जा) ज़्यादती और रसूल की नाफ़रमानी की सरगोशियाँ करते हैं
जब तुम्हारे पास आते हैं तो जिन लफ़्ज़ों से ख़ुदा ने भी तुम को सलाम नहीं किया उन लफ़ज़ों से सलाम(2) करते हैं और अपने जी मे कहते हैं कि (अगर ये वाक़ई पैग़म्बर हैं तो) ज कुछ हम कहते हैं ख़ुदा हमें उसकी सज़ा क्यों नहीं देता (ऐ रसूल) उन को दोज़ख़ ही (की सज़ा) काफ़ी है जिस में ये दाख़िल होंगे तो वह (क्या) बुरी जगह है एक ईमानदारों जब तुम आपस में सरगोशी करो तो गुनाह और ज़्यादती और रसूल की नाफ़रमानी की सरगोशी न करो बल्कि नेको कारी और परहेज़गारी की सरगोशी करो और ख़ुदा से डरते रहो जिस के सामने (एक दिन) जमा किए जाओगे (बुरी बातों की) सरगोशी तो बस एक शैतानी काम है (और उस लिए करते हैं) ताकि ईमानदारों को उससे रन्ज पहुंचा हालाँकि ख़ुदा की तरफ़ से आज़ादी दिए बगै़र सरगोशी उन का कुछ बिगाड़ नहीं सकती- और मोमिनीन को तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए
ऐ ईमानदारों। जब(3) तुमसे कहा जाए कि मजलिस में जगह कुशादा करो वह तो कुशादा कर दिया करो ख़ुदा तुम को कुशादिगी अता करेगा- और जब तुम से कहा जाए कि उठ खड़े हो तो उठ खड़े हुआ करो जो लोग तुम से ईमानदार हैं और जिन को इल्म अता हुआ है ख़ुदा उनके दर्जे बुलन्द करेगा और ख़ुदा तुम्हारे सब कामों से बाख़बर है, ऐ ईमानदारों। जब पैग़म्बर से कोई बात कान में कहनी चाहो तो कुछ ख़ैरात अपनी सरगोशी से पहले दे दिया करो(1) यही तुम्हारे वास्ते बेहतरस और पाकीज़ा बात है पस अगर तुम को उस का मक़दूर न हो तो बेशक ख़ुदा बडा़ बख़्शने वाला मेहरबान है
(मुसलमानों) क्या तुम उस बात से डर गए कि (ऱसूल के) कान में बात कहने से पहले ख़ैरात कर लो तो जब तुम लोग (इतना सा काम) न कर सके और ख़ुदा ने तुम्हें माफ़ कर दिया तो पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो- और ज़कात देते रहो और ख़ुदा और उसके रसूल स0 की ऐताअत करो, और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से बाख़बर है क्या तुम ने उन(2) लोगों की हालत पर ग़ौर नहीं किया जो उन लोगों से दोस्ती करते हैं जिन पर ख़ुदा ने ग़ज़ब ढ़ाया है तो अब वह न तुममे हैं और न उन में ये लोग जान बूझ कर झूटी बातों पर क़स्मे खाते हैं और वह जानते है ख़ुदा ने उन के लिए सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है,
उस में शक नहीं कि ये लोग जो कुछ करते हैं बहुत ही बुरा है उन लोगों ने अपनी क़समों को सिपर बना लिया है और (लोगों को) ख़ुदा की राह से रोक दिया तो उन के लिए रुसवा करने वाला अज़ाब है खुदा के सामने हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएगा और न उनकी औलाद ही काम आएगी यही लोग जहन्नुमी हैं कि हमेशा उस में रहेंगे जिस दिन खुदा उन सबको दोबारा उठा खड़ा करेगा तो ये लोग जिस तरह तुम्हारे सामने खाते हैं उसी तरह उस के सामने भी क़स्में खाएंगे और ख़्याल करते हैं कि वह रासे सवाब पर हैं आगाह रहो ये लोग यक़ीनन झूटे हैं, शैतान ने उन पर क़ाबू पा लिया है और ख़ुदा की याद उन से भुला दी है
ये लोग शैतान के गिरोह है सुन रखो कि शैतान का गिरोह घाटा उठाने वाला है- जो लोग ख़ुदा और उस के रसूल से मुख़ालिफ़त करते हैं वह सब ज़लील लोगों में हैं, ख़ुदा ने हुक्म नातिक़ दे दिया है कि मैं और मेरे पैग़म्बर ज़रुर(1) ग़ालिब रहेंगे, बेशक ख़ुदा बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है जो लोग(2) ख़ुदा और आख़ेरत पर ईमान रखते हैं तुम उन को ख़ुदा और उसके रसूल के दुश्मनों से दोस्ती करते हुए ने देखोगे अगर चे वह उनके बांप या बेटे या भाई या ख़ानदान ही के लोग (क्यों न हो) यही वह लोग हैं जिन के दिलों में ख़ुना ने ईमान को साबित कर दिया है और ख़ास अपने नूर से उनकी ताकीद की है और उनको (बेहिश्त में) उन (हरे भरे) बागों में दाख़िल करेगा जिन के नीचे नहरें जारी है (और वह) हमेशा उस में रहेंगे, ख़ुदा उन से राज़ी और वह खुदा से खुश यही ख़ुदा का गिरोह है सुन रखो कि ख़िदा के गिरोह के लोग दिली मुरादें पाएंगे।
सूरऐ हशर
सूरऐ हशर मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 24 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीन में है (सब) खॉुदा की तस्बीह करती है और वही ग़ालिब हिकमत वाला है वही तो है जिस ने कुफ़्फ़ार(2) अहले किताब (बनी नज़ीर) को पहले हशर (जलाए वतन) में उन के घरों से निकाल बाहर किया
(मुसलमानों) तुमको तो ये वहम भी न था कि वह निकल जाएंगे और वह लोग ये समझे हुए थे कि उनके क़िलए उन को ख़ुदा (के अज़ाब) से बचा लेंगे मगर जहां से उनको ख़्याल भी न था ख़ुदा ने उन को आलिया और उनके दिलों में (मुसलमानों) का रोब डाल दिया कि वह लोग खुदा अपने हाथो से और मोमिनीन के हाथों से अपने घरों को उजाड़ने लगे तो ऐ आँख वालों इबरत हासिल करो और ख़ुदा ने उन की क़िस्मत में जिला वतनी न लिखा होता तो उन पर दुनियां में भी (दूसरी तरह) अज़ाब करता है
और आख़ेरत में तो उन पर जहन्नुम का अज़ाब है ही यह इसलिए कि उन लोगों ने ख़ुदा और उस के रसूल की मुख़ालिफत की और जिसने ख़ुदा की मुख़ालिफ़त की तो (तो याद रहे कि) ख़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब देने वाला है (मोमिनों) खजूर का दरख़्त जो तुम ने काट डाला या जों का त्यो उन की ज़ड़ों पर खड़ा रहने दिया तो खु़दा ही के हुक्म से और मतलब ये था कि वह नाफ़रमानों को रूसवा करे (तो) जो माल ख़ुदा ने अपने रसूल को उन लोगों से बे लड़े(1) दिलवा दिया उस में तुम्हारा हक़ नहीं क्योंकि तुमने उसके लिए कुछ दौड़ धूप तो की नही, न घोड़ों से न ऊँटों से, मगर ख़ुदा अपने पैग़म्बरों को जिस पर चाहता है ग़ल्बा अता फ़रमाता है
और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है, तो जो माल(2) ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है, तो जो माल(2) ख़ुदा ने अपने रसूल को देहात वालों से बे लड़़े दिलवाया है वह ख़ास ख़ुदा और रसूल और (रसूल के) क़राबत दारों और यतीमों और मोहताजों और परदेसियों(1) का है ताकि जो लोग तुम में से दौलतमन्द हैं हिर फिर कर दौलत उन्हीं में न रहे, हां जो तुम को रसूल दे दे वह ले लिया करो और जिस से मना करे उस से बाज़ रहो और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा सख़्त अज़ाब देने वाला है (उस माल में) उन मुफ़लिस मुहाजिरों का हिस्सा भी है जो अपने घरों से और मालों से निकाले (और अलग किए) गए (और) खु़दा के फ़ज़्ल व ख़ुशनुदी के तलबगार हैं और ख़ुदा की और उसके रसूल की मदद करते हैं यही लोग सच्चे ईमानदार हैं
और (उन का भी हिस्सा है) जो लोग मुहाजेरीन से पहले (हिजरत के) घर (मदीने) में मुक़ीम हैं और ईमान में मुस्तक़िल रहे और जो लोग हिजरत करके उन के पास आए उन से मुहब्बत करते हैं और जो कुछ उनको मिला उसकी अपने दिलों में कुछ ग़रज़ नहीं पाते और अगर चे अपने ऊपर तंगी ही क्यों न हो दूसरों को अपने नफ़्स पर तरजीह(2) देते हैं
और जो शख़्स अपने नफ़्स को हिरस से बचा लिया गया तो ऐसे ही लोग अपनी दिली मुरादें पाएंगे और (उनका भी हिस्सा ही है) जो लोग उन (मुहाजेरीन) के बाद आए (और) दुआ करते हैं कि परवरदिगार हमारी और उन लोगों की जो हम से पहले ईमान ला चुके मग़फ़िरत करस और मोमिनों की तरफ़ से हमारे दिलों में किसी तरह का कीना न आने दें परवदिगार बेशक तू बड़ा शफ़ीक़ निहायत रहम वाल है क्या तुम ने उन(1) मुनाफ़िकों की हालत पर नज़र नहीं कि जो अपने काफिर भाइयों अहले किताब से कहा करते हैं कि अगर कहीं तुम (घरों से) निकाले गए तो यक़ीन जानों कि हम भी तु्म्हारे साथ ज़रुर निकल खड़े होंगे
और तुम्हारे बारे में कभी किसी की ऐताअत न करेंगे और अगर तुम से ल़ड़ाई होगी तो ज़रुर तुम्हारी मदद करेंगे, मगर ख़ुदा बयान किए देता है कि ये लोग यक़ीनन झूठे हैं, अगर कुफ़्फ़ार निकाले भी जाएं तो ये मुनाफ़क़ीन उन के साथ न निकलेंगे और अगर उन से लड़ाई हुई तो उन की मदद भी न करेंगे और उन की मदद करेंगे भी तो पीठ फेर कर भाग जाएंगे फिर उन को कही से कुमक भी न मिलेगी (मोमिनों) तुम्हारी हैबत उन दिलों में ख़ुदा से भी बढ़ कर है, ये इस वजह से कि ये लोग समझ नहीं रखते ये सब के सब मिलकर भी तुम से (सर मख़) नहीं लड़ सकते,
मगर हर तरफ़ से महफूज(1) बस्तियों में या (शहर पनाह की) दीवारों की आड़़ में उन की आपस में तो बडी धांक है कि तुम ख़्याल करोगे कि सब के सब एक जान है मगर उन के दिल एक दूसरे से फटे हुए हैं ये इस वजह से कि ये लोग बे अक़ल हैं उन का हाल उन लोगों का(2) सा है जो उनसे कुछ ही पेशतर अपने कामों की सज़ा का मज़ा चख चुके हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है कि इंसान से कहता रहा कि काफिर हो जाओ, फिर जब वह काफिर हो गया तो कहने लगा मैं तुझ से बेज़ार हूं मैं सारे जहान के परवरदिगार से डरता हूं तो दोनों का नतीजा ये हुआ कि दोनों दोज़ख में (डाले) जाएंगे और उसी में हमेशा रहेंगे और यही तमाम ज़ालिमों की सज़ा है
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो, और हर शख़्स को ग़ौर करना चाहिए कि कल (क़यामत) के वास्ते उस ने पहले से क्या भेजा है और ख़ुदा से डरते रहो बेशक जो कुछ तुम करते हो, खु़दा उससे बाख़बर है और उन लोगों के जैसे न हो जाओ जो खु़दा को भुला बैठे तो ख़ुदा ने उन्हें ऐसा कर दिया कि अपने आपको भूल गए यही लोग त बद किरदार हैं जहन्नुमी और जन्नती किसी तरह बराबर नहीं हो सकते जन्नती ही लोग तो कामयाबी हासिल करने वाले हैं, अगर हम इस कुरआन को किसी पहाड़ पर (भी) नाज़िल करते तो तुम सो को देखते कि खु़दा के डर से झुका और फट जाता है ये मिसालें हम लोगों (के समझाने) के लिए बयान करते हैं ताकि वह गौ़र करें वही ख़ुदा है जिस के सिवा कोई माबूद नहीं, पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला वही बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है,
वही वह ख़ुदा है जिस के सिवा कोई क़ाबिल इबादत नहीं (हक़ीक़ी) बादशाह, पाक ज़ात (हर एैब से0 बरी अमन देने वाल निगेहबान, ग़ालिब ज़बरदस्त बड़ाई वाला ये लोग जिसको (उस का) शरीक ठहराते हैं उस से पाक है वही ख़ुदा (तमाम चीज़ों का ख़ालिक़) मौजिद सूरतों का बनाने वाला उसी के अच्छे-अच्छे नाम हैं जो चीज़ें सारे आसमान व ज़मीन में हैं सब उसी की तस्बीह करती है, और वही ग़ालिब हिकमत वाला है।
सूरऐ मुम्तहिना
सूरऐ मुम्तहिना मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 13 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ ईमानदारों अगर तुम राह मे जिहाद करने और मेरी ख़ुशनूदी की तमन्ना में (घर से) निकलते हो तो मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त न बनाओ तुम तो उन के पास दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो और जो दीने हक़ तुम्हारे पास आया है उस से वह लोग इंकार करते हैं वह लोग रसूल को और तुम को इस बात पर (घर से) निकालते हैं कि तुम अपने परवरदिगार ख़ुदा पर ईमान ले आए हो (और) तुम हो कि उन के पास छुप-छुप कर दोस्ती के पैग़ाम भेजते हो(1) हालांकि ख़ुदा कुछ भी छिपा कर या बिल एलान करते हो मैं उस से ख़ूब वाक़िफ हूं
और तुम में से जो शख़्स ऐसा करे तो वह सीधी राह से यक़ीन भटक गया अगर ये लोग तुम पर क़ाबू पा जाएं तो तुम्हरे दुश्मन हो जाएं और ईज़ा के लिए तुम्हारी तरफ़ अपन हाथ भी बढ़ाएंगे और अपनी ज़बाने भी और चाहते हैं कि काश तुम भी काफ़िर हो जाओ, क़यामत के दिन न तुम्हारे रिश्ते नाते ही कुछ काम आएंगे और न तुम्हारी औलाद (उस दिन) तो वही फ़ैसला करेगा और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है (मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते तो इब्राहीम और उन के साथियों (के क़ौल व फ़ेल का अच्छा नमूना मौजूद है) कि जब उन्होंने अपनी क़ौस से कहा कि हम तुम से और उन (बुतों) से जिन्हें तुम ख़ुदा के सिवा पूजते हो बेज़ार हैं
हम तो तुम्हारे (दीन के) मुनकर हैं और जब मुकम्मल तुम यकता खुदा पर ईमान न लाओ हमारे तुम्हारे दरमियान ख़ुल्लम ख़ुल्ला अदावत व दुश्मनी क़ाएम हो गई मगर (हां) इब्राहीम ने अपने (मुंह बोले) बांप से ये (अलबत्ता) कहा कि मैं आप के लिए मग़फ़िरत की दुआ ज़रुर करूंगा और ख़ुदा के सामने तो मैं आपके वास्ते कुछ इख़्तेयार नहीं रखता-ऐ हमारे पालने वाले (ख़ुदा) हमने तुझी पर भरोसा कर लिया है और तेरी ही तरफ़ हम रुजूं करते हैं और तेरी तरफ़ हमें लौट कर जाना है ऐ हमारी पालने वाले तू हम लोगो को काफ़िरों की आज़माइश(1) (का ज़रिया) न क़रार दे- और परवरदिगार तू हमं बख़्श दे, बेशक तू ग़ालिब (और) हिकमत वाला है
(मुसलमानों) उन लोगों (के काम) का तुम्हारे वास्ते जो ख़ुदा और रोज़े आख़िरत की उम्मीद रखता हो अच्छा नमूना(2) है, और जो (उससे) मुंह मोड़े तो ख़ुदा भी यक़ीनन बे परवा (और) सज़ावारे हम्द है, क़रीब है कि खुदा तुम्हारे और उन में से तुम्हारे दुश्मनों के दरमियान दोस्ती पैदा करे दे(1) और ख़ुदा तो क़ादिर है, और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है जो लोग(2) तुम से (तुम्हारे) दीन के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाला उन लोगों के साथ अहसान करने और उन के साथ इंसाफ़ से पेश आने से ख़ुदा तुम्हें मना नहीं करता- बेशक ख़ुदा इंसाफ़ करने वालों को दोस्त रखता है
ख़ुदा तो बस उन लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है जिन्होंने तुमसे दीन के बारे में लड़ाई और तुमको तुम्हारे घरसों से निकाल बाहर किया, और तुम्हारे निकालने में (औरों की) मदद की और जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे वह लोग ज़ालिम हैं ऐ ईमानदारों जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें(3) वतन छोड़ कर आएं तो तुम उन को आज़मा लो, ख़ुदा तो उन के ईमान से वाक़िफ़ है ही- पस अगर तुम भी उन को ईमानदार समझो तो उन्हें काफ़िरों के पास वापस न फेरो न ये औरतें उन के लिए हलाल हैं और न वह कुफ़्फ़ार उन औरतों के लिए हलाल है और उन कुफ़्फ़ार ने जो कुछ (उन औरतों के मेहर में) ख़र्च किया हो उन को दे दो
और जब(1) उनके मेहर उन्हें दे दिया करो तो उसका तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि तुम उनसे निकाह कर लो और काफिर औरतों की आबरू (जो तुम्हारी बीबियां हो) अपने क़ब्ज़े में न रखो (छोड़ दो कि कुफ़्फ़ार से जो मिलें) तुम ने जो कुछ (उन पर) ख़र्च किया हो (कुफ़्फ़ार से) लो, और उन्होंने भी जो कुछ ख़र्च किया हो तुमसे मांग ले यही खुदा का हुक्म है कि जो तुम्हारे दरम्यान सादिर करता है, और ख़ुदा वाक़िफ़क़ार हकीम है
और अगर तुम्हारी बीबियों में से कोई औरत तु्म्हारे हात से निकल कर काफिरों के पास चली जाए (और ख़र्च न मिले) और तुम (उन काफ़िरों से लडों और लूटो तो माल ग़नीमत से) जिनकी औरतें चली गयी हैं, उनको इतना दे दो जितना उनका ख़रच् हुवा है, और जिस ख़ुदा पर तुम लोग ईमान लाए हो उस से डरते रहो, (ऐ रसूल) जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें तुमसे इस बात पर बैअत करने आएं कि वह न किसी को ख़ुदा का शरीक बनाएंगी और न चोरी करेंगी, और न ज़िना करेंगी, और न अपनी औलाद को मार डालेंगी और न अपने हाथ(2) पांव के सामने कोई बोहतान (लड़के का शौहर पर) गढ़ के लाएंगी, और न किसी नेक काम में तुम्हारी नाफ़रमानी करेंगी तो तुम उनसे बैअत(3) ले लो ख़ुदा से उन के मग़फ़िरत की दुआ मांगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है ईमानदारों जिन लोगों पर ख़ुदा ने अपना ग़ज़ब ढ़ाया उन से दोस्ती न करो (क्योंकि) जिस तरह काफ़िरों को मुरदों (के दुबारा ज़िन्दा होने) की उम्मीद नहीं उसी तरह आख़ेरत में भी ये लोग नाउम्मीद हैं।
सूरऐ सफ़
सूरऐ सफ़ मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 14 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जो चीज़े आसमानों में और जो चीज़े ज़मीन में हैं (सब) ख़ुदा की तसबीह करती हैं और वह ग़ालिब हिकमत वाला है, ऐ ईमानदारों तुम ऐसी(2) बातें क्यों कहा करते हो जो किया नहीं करते, खुदा के नज़दीक ये ग़ज़ब की बात है कि तुम ऐसी बात को जो करो नहीं ख़ुदा तो उन लोगों से उलफ़त रखता है जो उसी राह में उस तरह परा बांध लडते हैं कि गोया वह सीसा पिलाई हुई दीवारें हैं
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि भाइयों, तुम मुझे क्यों अज़ीयत देते हो हालांकि तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे पास ख़ुदा का (भेजा हुआ) रसूल हूं तो जब वे टेढ़े हुए तो ख़ुदा ने भी उन के दिलों को चेढ़ा ही रहने दिया और ख़ुदा बदकार लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता और (याद करो) जब मरयम के बेटे ईसा ने कहा ऐ बनी इस्राईल मैं तुम्हारे पास ख़ुदा का भेजा हुवा (आया) हूं और जो किताब तौरैत मेरे सामने मौजूद है उस की तसदीक़ करता हूं
और एक पैग़म्बर जिन का नाम अहमद(1) होगा (और) मेरे बाद आएंगे उन की ख़ुशख़बरी सुनाता हूं तो जब वह (पैग़म्बर अहमद) उन के पास वाज़े व रौशन मोजिज़े ले कर आया तो कहने लगे ये तो खुला हुवा जादू है- और जो शख़्स इस्लाम की तरफ़ बुलाया जाए (और) वह (कुबूल के बदले उल्टा) ख़ुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़े उस से बढ़ के ज़ालिम और कौन होगा और ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मंज़िल मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता
ये लोग अपने मुंह से (फूंक मार कर) ख़ुदा के नूर को बुझाना चाहते हैं हालांकि ख़ुदा अपने नूर को पूरा करके रहेगा अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा ही (क्यों न) माने-वह वही है जिस ने अपन रसूल को हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा ताकि उसे और तमाम दीनों पर ग़ालिब करे अगर चे मुश्ऱक़ीन बुरा ही (क्यों न) माने ऐ ईमानदारों क्या मैं तुम्हें तिजारत बता दूं जो तुम को (आख़ेरत के) दर्दनाक अज़ाब से निजात दे (वह ये है कि) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और अपने माल व जान से ख़ुदा की राह में जिहाद करो- अगर तुम समझो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (ऐसा करोगे) तो वह भी उसके एवज़ तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें उन बाग़ों में दाख़िल करेगा जिन के नीचे नहरे जारी हैं और पाकीज़ा मकानात में (जगह देगा) जो जावेदानी बेहिश्त में है यही तो बड़ी कामयाबी है
और एक चीज़ जिस के तुम दिलदादाह हो (यानी तुम को) ख़ुदा की तरफ़ से मदद (मिलेगी) और अनक़रीब फ़ताह (होगी) और (ऐ रसूल) मोनीनी को ख़ुशख़बरी बन जाओ जिस तरह मरयम के बेटे ईसा ने हवारियों से कहा था कि (भला) ख़ुदा की तरफ़ (बुलाने में) मेरे मददगार कौन लोग हैं तो हवारीन बोल उठे ते कि हम ख़ुदा के अंसार हैं तो बनी इस्राईल में से एक गिरोह (उन पर) ईमान लाया और एक गिरोह काफिर (रहा) तो जो लोग ईमान लाए हमने उन को उन के दुश्मनों के मुक़ाबले में मदद दी तो आख़िर वही ग़ालिब रहे।
सूरऐ जुमा
सूरऐ जुमा मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 14 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीन में है (सब) खु़दा की तस्बीह करती है जो (हक़ीक़ी) बादशाह पाक ज़ात ग़ालिब हिकमत वाला है
वही तो है जिस ने जाहिलों में उन ही मे का एक रसूल (मुहम्मद) भेजा जो उन के सामने उस की आयतें पढ़ते और उनको पाक करते और उन को किताब और अक़ब की बातें सिखाते(3) हैं अगर चे उस के पहले तो ये लोग सरीही गुम्राही में (पड़े हुए) थे और उन लोगों की तरफ़(3) (भेजा) जो अभी तक उन से मुलहिक़ नहीं हुए और वह तो ग़ालिब हिकमत वाला है
ये खुदा का फ़ज़ल है जिस को चाहता है अता फरमाता है और खु़दा तो बड़ा फ़ज़्ल (व करम) का मालिक है- जिन लोगों (के सरों) पर तौरैत लदवाई गई है उन्होंने उस (के बार) को न उठाया उनकी मसल गधे की सी है- जिस पर बडी-बड़ी किताबें लदी हों जिन लोगों ने खुदा की आयतों को झुठलाया उन की भी क्या बुरी मिसाल है और खु़दा ज़ालिम लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ यहूदियों अगर तुम ये ख़्याल करते हो- कि तुम ही ख़ुदा के दोस्त हो और लोग नहीं तो अगर तुम (अपने दावे मे) सच्चे हो तो मौत की तमन्ना(1) करो- और ये लोग उन अमाल के सबस जो ये पहले कर चुके हैं कभी उसक आरजू न करेगं और ख़ुदा तो ज़ालिमों को जानता है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मौत जिस से तुम लोग भागते हो वह तो ज़रुर तुम्हारे सामने आएगी फिर तुम पोशीदा और ज़ाहिर के जानने वाले (ख़ुदाक) की तरफ़ लौटा दिए जाओगे फिर जो कुछ भी तुम करते थे वह तुम्हे बता देगा ऐ ईमानदारों जब जुमे के दिन नमाज़ (जुमा) के लिए अज़ान दी जाए तो खु़दा कि याद (नमाज़) की तरफ़ दौड़ पड़ो और (ख़रीद) फ़रोख़्त छोड़ दो अगर तुम समझते हो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है
फिर जब नमाज़ हो चुके तो ज़मीन में (जहां चाहो) जाओ और ख़ुदा के फ़ज़्ल (अपनी रोज़ी) की तलाश करो और ख़ुदा को बहुत याद करते रहो ताकि तुम दिली मुरादे पाओ- और उन के हालत तो ये है जब(1) ये लोग सौदा बिकता या तमासा होता देखे तो उस की तरफ़ टूट पडे़ं और तुम को खड़ा हुआ छोड़ दें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जो चीज़ ख़ुदा के यहां है वह तमाशे और सौदे से कहीं बेहतर है- और ख़ुदा सब से बेहतर रिज़क देने वाला है।
सूरऐ मुनाफ़िकून
सूरऐ मुनाफ़िकून मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 11 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) जब तुम्हारे पास मुनाफ़क़ीन आते हैं तो कहते हैं कि हम तो इक़रार करते हैं कि आप यक़ीनन ख़ुदा के रसूल हैं और ख़ुदा भी जानता है कि तुम यक़ीनी उस के रसूल हो मगर ख़ुदा ज़ाहिर किए देता है कि ये लोग (अपने ऐतक़ाद के लिहाज़ से) ज़रुर झूठे हैं(3) उन लोगों ने अफिी क़समो को सिपर बना रखा है तो (उसी के ज़रिए से) लोगों को ख़ुदा की राह से रोकते हैं- बेशक ये लोग जो काम करते हैं बुरे हैं उस सबब से कि (ज़ाहिर में) ईमान लाए फिर काफ़िर हो गये तो उन के दिलों पर (गोया) मुहर लगा दी गई है तो अब ये समझते ही नहीं-
और जब तुम उन को देखोगे तो (तनासुब अज़ा की वजह की) उन का क़द व क़ामत(1) तुम्हें बहुत अच्छा मालूम होगा और अगर गुफ़्तगू करेंगे तो ऐसी कि तुम तवज्जा से सुनों (मगर अक़ल ख़ाली) गोया दिवारों से लगाई हुई बेकार लकडि़यां हैं हर चीज़ की आवाज़ काो समझते हैं कि उन ही पर आ पड़ी- ये लोग (तुम्हारे) दुश्मन हैं तुम उन से बचे रहो ख़ुदा उन्हें मार डाले ये कहां बहके फिरते हैं
और जब उन से कहा जाता है कि आओ रसूल अल्लाह तुम्हारे वास्ते मग़फिरत की दुआ करें तो वह लोग अपने सर फेर लेते हैं और तुम उन को देखोगे कि तकब्बुर करते हुए मुंह फेर लेते हैं तुम उन के मग़फ़िरत की दुआ मांगो या न मांगो उन के हक़ में बराबर है (क्योंकि) खुदा तो उन्हें हरगिज़ बख़्शेगा नहीं खु़दा तो हरगिज़ बदकारों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता ये वही लोग तो हैं जो (अंसार से) कहते हैं कि जो (मुहाजरीन) रसूल ख़ुदा के पास रहते हैं उन पर ख़र्च न करो यहां तक की ये लोग खुद तितर बितर हो जाएं हालांकि सारे आसमान और ज़मीन के ख़ज़ाने ख़ुदा ही के पास हैं मगर मुनाफ़क़ीन नहीं समझते
ये लोग कहते हैं कि अगर हम लौट (रूसल) को ज़रुर निकाल बाहर कर देंगे- हालांकि इज़्ज़त तो ख़ास खुदा और उस के रसूल और मोमीनीन के लिए है मगर मुनाफ़क़ीन नहीं जानते-(1) ऐ ईमानदारों तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुम को खुदा की याद से ग़ाफ़िल न करे और जो ऐसा करेगा तो वही लोग घाटे में रहेंगे
और हमने जो कुछ तुम्हें दिया है उस में से क़ब्ल उस के (ख़ुदा की राह में) ख़र्च कर डालो कि तुम में से किसी की मौत आ जाए तो (उसकी नौबत न आए कि) कहने लगे कि परवरदिगार तूने मुझे थोड़ी सी मोहलत और क्यों न दी तीकि ख़ैरात करता और नेकूकारसों से हो जाता- और जब किसी की मौत आ जाती है तो ख़ुदा उस को हरगिज़ मोहलत नहीं देता और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है।
सूरऐ तग़ाबुन
सूरऐ तग़ाबुन(1) इसमें इख़्तेलाफ़ है कि मक्के में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 18 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीनमें है (सब) ख़ुदा ही की तस्बीह करती है उसी की बादशाहत है और तारीफ़ उसी के लिए सज़ावर है और वही हर चीज़ पर क़ादिर है वही तो है जिसने तुम लोगों को पैदा किया कोई तुममे काफ़िर है और कोई मोमिन- और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसको देख रहा है- उसी ने सारे आसमान और ज़मीन को हिकमत व मसलहत से पैदा किया है और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनाई तो सबसे अच्छी सूरतें बनाई और उसी की तरफ़ लौट कर जाना है जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है वह (सब जानता है)
और जो कुछ तुम छिपा कर या ख़ुल्म ख़ुल्ला करेत हो उससे (भी) वाक़िफ़ है और ख़ुदा तो दिल के भेदों तक से आगाह है- क्या तुम्हें उसकी ख़बर नहीं पहुंची जिन्होंने (तुमसे) पहले कुफ्र किया तो उन्होंने अपने काम की सज़ा का (दुनिया में) मज़ा चखा और (आख़ेरत में तो) उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है ये इस वजह से की उनक पास उनके पैग़म्बर वाज़े व रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके थे तो कहने लगे कि क्या आदमी हमारे हादी बनेंगे।
ग़रज़ ये लोग काफ़िर हो बैठे और मुंह फेर बैठे और खु़दा ने भी (उनकी) परवाह न की-और ख़ुदा तो बेपरवाह सज़ावार हम्द है- काफ़िरों का ख़्याल यह है कि ये लोग दुबारा न उठाए जाएंगे
(ऐ रसूल) तुम कह दो हाँ अपने परवरदिगार की क़सम तुम ज़़रुर उठाए जाओगे फिर जो-जो काम तुम करते रहे वह तुम्हे बता देगा और ये तो ख़ुदा पर आसान है- तो तुम ख़ुदा और उसके रसूल पर और उसी नूर पर ईमान लाओ जिस को हमने नाज़िल किया और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है जब वह क़यामत के दिन तुम बसको जमा करेगा फिर यही हार जीत का दिन होगा
और जो शख़्स ख़ुदा पर ईमान लाए और अच्छा काम करसे और वह उससे उसकी बुराईयां दूर कर देगा और उसको (बेहिश्त के) उन बाग़ों मे दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरे जारी हैं वह उनमें अब्द-अल आबाद हमेसा रहेगा यही तो बड़ी कामयाबी है और जो लोग काफ़िर हैं और हमारी आयतों को झुठलाते रहे यही लोग जहन्नुमी हैं कि हमेशा उसी में रहेंगे और वह क्या बुरा ठिकाना है
जब कोई मुसीबत आती है तो ख़ुदा के इज़्न से और जो शख़्स ख़ुदा पर ईमान लाता है खुदा उसके क़ल्ब की हिदायत करता है और ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब आगाह है और ख़ुदा की एताअत करो और रसूल की एताअत करो फिर अगर तुम मुँह फेरो तो हमारे रसूल स0 पर सिर्फ़ पैग़ाम का वाज़ेह करके पहुँचा देना फ़र्ज़ है
(ख़ुदा (वह है कि) उसके सिवा कोई माबूद नहीं और मोमिनों को ख़ुदा ही पर भरोसा करना चाहिए- ऐ ईमानदारों(1) तुम्हारी बिबियों और तुम्हारी औलद मे से बाज़ तुम्हारे दुश्मन हैं तो तुम उनसे बचे रहो और अगर तुम माफ़ कर दो और दरस गुज़रस करो और बख़्श दो तो ख़ुदा बड़ा बख़्श्ने वाला मेहरबान है- तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद बस आज़माईश है और ख़ुदा के यहां तो बडा़ अज्र (मौजूद) है तो जहां तक तुमसे हो सके ख़ुदा से डरते रहो
और (उसके एहकाम) सुनों और मानो और अपनी बेहतरी के वास्ते (उसकी राह में) ख़र्च करो और जो शख़्स अपने नफ़्स ही हिर्स से बचा लिया गया तो ऐसे ही लोग मुरादें पाने वाले हैं अगर तुम ख़ुदा को क़र्ज़ हस्ना दोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते दो गुना कर देगा और तुमको बख़्श देगा और ख़ुदा तो बड़ा क़द्रदान व बुर्दबार है- पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला ग़ालिब हिकमत वाला है।
सूरऐ तलाक़
सूरऐ तलाक़ मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 12 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ रसूल (मुसलमानों से कह दो) जब तुम अपनी बीबियों को तलाक़(3) दो तो उनकी इद्दत (पाकी) के वक़्त तलाक़ दो और इद्दे का शुमार रखो और अपने परवरदिगार ख़ुदा से डरो और (इद्दे के अन्दर) उनके घर से उन्हें न निकालो और वह ख़ुद भी घर से न निकलें मगर जब वह कोई सरीही बेहयाई का काम कर बैठें (तो निकाल देने में मुज़ाएक़ा नहीं) और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें है और जो ख़ुदा की हदों-से तजावुज़ करेगा तो उसने अपने ऊपर आप जुल्म किया तो तू नहीं जानता शायद ख़ुदा उसके बाद कोई बात पैदा करे (जिससे मर्द पचताए रहे और मेल हो जाए) तो जब ये अपना इद्दा पूरा करने के क़रीब पहुंचे तो या तो तुम उन्हें उन्वान शाईस्ता से रोक लो या अच्छी तरह रुख़सत ही कर तदो और (तलाक़ के वक़्त) अपने लोगों में से दो आदिलों को गवाह क़रार दे लो और (गवाहों) तुम ख़ुदा के वास्ते ठीक-ठीक गवाही देना उन बातों में उस शख़्स को नसीहत की जाती है जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखता हो
और जो ख़ुदा से डरेगा तो ख़ुदा उसके लिए निजात की सूरत निकाल देगा और उसको ऐसी जगह से रिज़्क़ देगा जहं से वहम भी हो(2) और जिसने ख़ुदा पर भरोसा किया तो वह उसके लिए काफ़ी है बेशक ख़ुदा अपने काम को पूरा करके रहता है ख़ुदा ने हर चीज़ का एक अंदाज़ा मुक़र्रर कर रखा है- और जो औरतें हैज़ से मायूस हो चुकी अगर तुमको उनके इद्दे में शक(3) होवे तो उनका इद्दा तीन महीने है और (इस हिसाब से) वह औरतों जिनको हैज़(1) हुवा ही नहीं और हामला औरतें का इद्दा उनका बच्चा जन्ना है और ख़ुदा से डरता है ख़ुदा उसके काम में सहुलियत पलैदा करेगा- यह ख़ुदा का हुक्म है जो ख़ुदा ने तुम पर नाज़िल किया है और जो ख़ुदा से डरता रहेगा तो वह उसके गुनाह उससे दूर कर देगा और उसे बड़ा दर्जा देगा
मुतल्लक़ा औरतों को (इद्दा तक) अपने मक़दूर मुताबिक़ वहीं रखों जहां तुम खुद रहते हो और उनको तंग करने के लिए उनको तकलीफ़ न पहुंचाओ और अगर वह हामला होती बच्चा जन्ने तक उनका खर्च देते रहो फिर (जन्ने के बाद) अगर वह बच्चे को तुम्हारी ख़ातिर से दूध पिलाए तो उन्हें उनकी (मुनासिब) उजरत दे दो बाहम सलाहियत से दस्तूर के मुताबिक़ बातचीत करो और अगर तुम बाहम कशमकश करो तो बच्चे को उसके (बाप की) ख़ातिर से खूब कोई और औरत दूध पिला देगी गुंजाइश वाले को अपनी गुंजाइश के मुताबिक़ खर्च करना चाहिए और जिसकी रोज़ी तंग हो वह जितना ख़ुदा ने उसे दिया है उसी में ख़र्च करे ख़ुदा ने जिसको जितना दिया है बस उसी के मुताबिक़ तकलीफ़ दिया करता है।
ख़ुदा अनक़रीब ही तंगी के बाद फिराख़ी अता करेगा और बहुत सी बस्तियों (वाले) ने अपने परवरदिगार और उसके रसूलों के हुक्म से सरकशी की त हमने उनका बड़ी सख़्ती से हिसाब लिया और उन्हें बुरे अज़ाब की सज़ा दी- तो उन्होंने अपने काम की सज़ा का मज़ा चख लिया- और उनके काम का जाम घाटा ही था ख़ुदा ने उनके लिए सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है तो ऐ अक़ल मंदों जो ईमान ला चुके हो ख़ुदा से डरते रहो ख़ुदा ने तुम्हारे पास (अपनी) याद (कुरआन) और अपना रसूल भेज दिया है जो तुम्हारे सामने वाज़े आयते पढ़ता है ताकि जो लोग ईमान लाएं और अच्छे अच्छे काम करते रहें उनको (कुफ्र की) तारीकियों से (ईमान की) रौशनी की तरफ़ निकाल लाए
और जो ख़ुदा पर ईमान लाए और अच्छे-अच्छे काम करे तो ख़ुदा उसको (बेहिश्त के) उन बागों में दाख़िल करेगा जिनके नूचे नहरें जीरी हैं और वह उसमें अब्दअल आबाद तक रहेंगे ख़ुदा ने उनको अच्छी-अच्छी रोज़ दी है- ख़ुदा ही तो है जिसने सात आसमान पैदा किये और उन्ही के बराबर ज़मीन को भी उनमें ख़ुदा का हुक्म नाज़िल होता रहता है- ताकि तुम लोग जान लो कि ख़ुदा हर चीज़ पर का़दिर है और बेशक ख़ुदा अपने इल्म से हर चीज़ पर हावी है।
सूरऐ तहरीम
सूरऐ तहरीन मदीने में नाज़िल हुआ या मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 12 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ रसूल जो चीज़ ख़ुदा ने तुम्हारे लिये हलाल की है(2) तू उससे अपनी बीबियों की खुशनूदी क लिये क्यों किनारा कशी करो- और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
ख़ुदा ने तुम लोगों के लिये(3) क़समों को तोड़ डालने का कफ़्फ़ारा मुक़र्रर कर दिया है और ख़ुदा ही तुम्हारा कारसाज़ है और वही वाक़िफ़कार हिकमत वाला है- और जब पैगम्बर ने अपनी बाज़ बीवी (हफ़सा) से चुपके से कोई बात कीह फिर जब उसने (बावजूद मुमानेअत) उस बात की (आयशा को) बाज़ बात (क़िस्साए मारिया) जता दी और बाज़ बात (क़िस्सा शहद) टाल दी ग़रज़ जब रसूल ने उस वाक़ये (हफ़सा के अफ़शाए राज़) की उस (आयशा) को ख़बर दी तो हैरत से बोल उठी आपको इस बात (अफ़सोस राज़) की किसने ख़बर दी
रसूल ने कहा मुझे बड़े वाक़िफ़कार ख़बरदार (ख़ुदा) ने बता दिया (तो ऐ हफ़सा व आयशा) अगर तुम दोनों (उस हरकत से) तौबा करो तो ख़ैर क्योंकि तुम दोनों के दिल टेढे हैं
और अगर तुम दोनों रसूल की मुख़ालेफ़त में एक दूसरे की अयानत करती रहोगी तो कुछ परवा नहीं (क्योंकि) खुदा और जि़ब्राईल और तमाम ईमानदारों में(4) नेक शख़्स उनेक मददगार हैं और उनके अलावा कुल फ़रिश्ते मददगार हैं अगर रसूल तुम लोगों को तलाक दे दें तो अनक़रीब ही उनका परवरदिगार तुम्हारे बदले उनको तुमसे अच्छेी बीबियां अता करे जो फ़रमा बरदार ईमानदार(1) (ख़ुदा और रसूल) की मतीअ (गुनाहों से) तौबा करने वालियां, इबादत गुज़ार रोज़ा रखने वालियां ब्याही हुई बिन ब्याही कुवारियां हों
ऐ ईमानदारों अपन आप को और अपन लड़के वालों को (जहन्नुम की) आग से बचाओ जिसके ईँधन आदमी और पत्थर होंगे और उन पर वह तुंद खूसख़्त मिजाज़ फ़रिश्ते (मुक़र्रर) हैं ख़ुदा जिस बात का हुक्म देते है उसकी नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म उन्हें मिलता है उसे बजा लाते हैं (जब कुफ़्फ़ार दोज़ख़ के सामने आयेंगे तो कहा जाएगा) काफिरों आज बहाने न ढूंढो- जो कुछ तुम करते थे तु्म्हें उसी की सज़ा दी जाएगी
ऐ ईमानदारों। ख़ुदा की बारगाह में साफ़ ख़ालिस दिल(2) से तौबा करो तो (उसकी वजह से) उम्मीद है तुम्हारा परवरदिगार तुम से तुम्हारे गुनाह दूर कर दें और तुमको (बेहिश्त के) उन बागों में दाख़िल करे जिनके नीचे नहरे जारी हैं- उस दिन जब ख़ुदा रसूल को और उन लोगों को जो उनके साथ ईमान लाए हैं रूसवा नहीं करेगा (बल्कि) उनका नूर उनके आगे-आगे और दाहिनी तरफ़ (रौशनी करता) चल रहा होगा- और यह लोग(1) यह दुआ करते होंगे परवरदिगार हमारे लिये हमारा नूर पूरा कर और हमें बख़्श दे बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है
ऐ रसूल काफ़िरों और मुनाफ़िकों से जेहाद करो और उइन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है- ख़ुदा ने काफ़िरों (की इबरत) के वास्ते नूह की बीवी (वाएला) और लूत की बीवी (वाहिला) की मिसाल की बयान की है कि यह दोनों हमारे बंदों की तसर्रूफ़ में थीं- दोनो ने अपने शौहरो से(2) दग़ा की तो उनको शौहर ख़ुदा के मुक़ाबले में उनके कुछ भी काम न आए और उनको हुक्म दिया गया कि और जाने वालों के साथ जहन्नुम में तुम दोनों भी दाख़िल हो जाओ और ख़ुदा ने मोनीनीन (की तसल्ली) के लिये(3) फिरऔन की बीवी (आसिया) की मिसाल बयान फ़रमाई कि जब उसने दुआ की परवरदिगार मेरे लिये अपने यहां बेहिश्त में एक घर बना
और मुझे फिरऔन और उसकी कारस्तानी से निजात दे और और मुझे ज़ालिम लोगों (के हाथ) से छुटकारा अता फ़रमा- और (दूसरी मिसाल) इमरान की बेटी मरयम जिसने अपनी शर्मगाह को महफूज़ रखा-तो हमने उसमें अपनी रूह फूक दी और उसने अपने पवररदिगार की बातों की और उसकी किताबों की तसदीक़ की और फ़रमा बरदारों में थी।

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