रहमत (से बेहिश्त) में दाख़िल करेगा- यही तो सरीही कामयाबी है
और जिन्होंने कुफ्र इख्तेयार किया (उन से कहा जाएगा) तो क्या तु्म्हारे सामने हमारी आयतें नहीं पढ़ी जाती थी (जरुर) तो तुम ने तकब्बुर किया और तुम लोग तो गुनाहगार हो गये और जब (तुम से) कहा जाता था कि ख़ुदा का वादा सच्चा है और क़यामत (के आने) में कुछ शुबा नहीं तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते कि क़यामत क्या चीज़ है- हम तो बस (उसे) एक ख़याली बात समझते हैं और हम तो (उसका) यक़ीन नहीं रखते-और उन के करतूतों की बुराइयां उस पर ज़ाहिर हो जाएगी- और जिस (अज़ाब) की ये हंसी उड़ाया करते थे उन्हें (हर तरफ़ से) घेर लेगा और (उन से) कहा जाएगा कि जिस तरह तुम ने अपने उस दिन के आने को भुला दिया था उसी तरह आज हम तुमको अपनी रहमते से अमदन भुला देंगे(1) और तुम्हारा ठिकाना दोज़ख़ है और कोई तुम्हारा मददगार नहीं
तब इब्राहीम ने पूछा कि ऐ (ख़ुदा) के भेजे हुए फ़रिश्तों आख़िर तुम्हें क्या मुहिम दरपेश है वह बोले हम तो गुनाहगारों (क़ौमै लूत) की तरफ़ भेजे गये हैं ताकि उन पर मिट्टी के पथरीले खरंजे बरसायें जिन पर हद से बढ़ जाने वालों के लिये तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से निशान लगा दिया गये हैं ग़रज़ वहां जितने लोग मोमनीन से थे उनको हमने निकाल दिया
और वहां तो हमने एक के(1) सिवा मुसलमानों का कोई घर पाया भी नहीं, और जो लोग दर्दनाक अज़ाब से डरते हैं उनके लिए वहां (इबरत की) निशानी छोड़ दी और मूसा (के हाल) में भी (निशानी है) जब हमने उनको फिरऔन के पास खुला हुआ मौजिज़ा देकर भेजा तो उसने अपने लश्कर के बिरते पर मुंह मोज़ लिया और कहने लगा यह तो (अच्छा ख़ासा) जादूगर या सौदाई है, तो हमने उसको और उसके लश्कर को ले डाला फिर और सबको दरिया में पटक दिया और वह तो क़ाबिले मलामत काम करता ही था, और आद की क़ौम (के हाल) में भी निशानी है, हमने उन पर एक बेबरकत(3) आंधी चलायी कि जिस चीज़ पर चलती उसको बोसीदा हड्डी की तरह रेज़ा-रेज़ा किये बग़ैर न छोड़ती और समूद (के हाल) में भी (कुदरत की निशानी) है जब उससे कहा गया कि एक ख़ास वक़्त तक ख़ूब चैन कर लो, तो उन्होंने अपने परवरदिगार के हुक्म से सरकशी की तो उन्हें एक रोज़ कड़क और बिजली ने ले डाला और देखते ही रह गये फिर न वह उठने की ताक़त रखते थे और न बदला ही ले सकते थे
और (उनसे) पहले (हम) नूह की क़ौम को (हलाक कर चुके थे) बेशक वह बदकार लोग थे और हमने आसमानों को अपने बल बूते से बनाया और बेशख हम में सब कुदरत है और ज़मीन को भी हमीं ने बिछाया तो हम कैसे अच्छे बिछाने वाले हैं और हम ही ने हर चीज की दो-दो क़िस्में(1) बनायी ताकि तुम लोग नसीहत हासिल करो तो ख़ुदा ही की तरफ़ भागों मैं तुम को यकीनन उसी की तरफ़ से खुल्लम ख़ुल्ला डराने वाला हूं और ख़ुदा के साथ दूसरा माबूद न बनाओ मैं तुमको यक़ीनन उसकी तरफ से ख़ुल्लम ख़ुल्ला डराने वाला हूं इसी तरह उन से पहले लोगों के पास जो पैग़म्बर आता तो वह उसको जादूगर कहते या सिड़ी दिवाना (बनाते) यह लोग एक दूसरे को ऐसी बात की वसीयत करते आते हैं (नहीं) बल्कि यह लोग हैं ही सरकश- (तो ऐ रसूल) तुम उनसे मुंह फेर लो तुम पर तो कुछ इल्ज़ाम नहीं है और नसीहत(2) किये जाओ क्योंकि नसीहत मोमेनीन को तो फ़ायदा देती है
और मैंने जिनों और आदमियों को उसी ग़रज़ से पैदा किया कि वह मेरी इबादत करें(1) न तो मैं उनसे रोज़ी का तालिब हूं और न यह चाहता हूं कि मुझे खाना खिलाएं- ख़ुदा ख़ुद बड़ा रोज़ी देने वाला ज़ोर आवर (और) ज़बरदस्त है- तो (उन) ज़ालिमों के वास्ते भी अज़ाब का कुछ हिस्सा है जिस तरह उनके साथियों के लिये हिस्सा था तो उनको हमसे जल्दी न करना चाहिए तो जिस-दिन का उन काफ़िरों से वादा किया जाता है उससे उनके लिये ख़राबी है।
सूरऐ तूर
सूरऐ तूर मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 46 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(कोह) कतूर की क़सम और उसकी किताब (लोह महफूज़) की जो कुशादा औराक़ में लिखी हुई है और बैते मामूर की (जो काबे के सामने फ़रिश्तों का क़िबला है) और ऊँची छत (आसमान) की और जोश व ख़रोश वाले समन्दर की तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब बेशक(3) आकर रहेगा (और) उसका कोई रोकने वाला नहीं जिस दिन आसमान चक्कर खाने लगेगा और पहाड़ उड़ने लगेंगे तो उस दिन झुढलाने वालों का ख़राबी है जो लोग बातिल में पड़े खेल रहे हैं, जिस दिन जहन्नुम की आग की तरफ़ उनको ढ़केल-ढ़केल कर ले जायेंगे (और उनसे कहा जायेगा) यह वह जहन्नुम है जिसे तुम झुठलाया करते थे तो क्या यह जादू है या तुमको नज़र नहीं आता उसी मे घुसो फिर सब सब्र करो या बेसब्री करो (दोनों) तुम्हारे लिये यकसां हैं
तुम्हें तो बस उन्हीं कामों का बदाल मिलेगा जो तुम किया करते थे बेशक परहेज़गार लोग बागों और नेमतों मे होंगे जो (जो नेमतें) उनके परवरदिगारस ने उन्हें दी हैं उनेक मज़े ले रहे हैं, और परवरदिगारस उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचायेगा जो- जो कारगुज़ारियां तुम कर चुके हो उनके सिले में (आराम से) तख़्तों पर जो बराबर बिछे हुए हैं तकिये लगा कर खूब मज़े से खाओ पियो और हम बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरों से उनका बियाह रचायेंगे और जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और उनकी औलाद ने भी ईमान में उनका साथ दिया तो हम उनकी औलाद को भी उनके दर्जे तक पहुँचा देंगे और हम उनकी कारगुज़िरयों में से कुछ भी कम न करेंगे हर शख़्स अपने आमाल के बदले में गिरवी है(1)
और जिस क़िस्म के मेवे और गोश्त को उनका जी चाहे हम उन्हें और बढ़ा कर अता करेंगे वहां एक दूसरे से शराब का जाम ले लिया करेंगे जिसमें न कोई बेहूदगी और न गुनाह (और खिदमत के लिये) नौजवान ल़ड़के उनके पास चक्कर लगाया करेंगे वह (हुस्न व जमाल में) गोया ऐहतियात से रखे हुए मोती हैं(1) और एक दूसरे की तरफ रुख करस के (लुत्फ़ की) बातें करेंगे (उनमें से कुछ) कहेगे कि हम उससे पहले अपन घर में (खुदा से बहेत) डरा करते थे तो ख़ुदा ने हम पर बड़ा एहसान किया और हम को (जहन्नुम की) लूँ के अज़ाब से बचा लिया उससे क़ब्ल हम उइससे दुआएं किया करते थए बेशक वह एहसान करने वाल मेहरबान है तो (ऐ रसूल) तुम नसीहत किये जाओ तुम तो अपने परवरदिगार के फ़ज़्ल से
ना काहिन हो और न मजनून क्या (तुमको) यह लोग कहते हैं कि (ये) शाएर हैं (और) हमको उसके बारे में ज़माने की हवादिस का इंतेज़ार कर रहे हैं तुम कह दो कि (अच्छा) तुम भी इन्तेजा़र करो मैं भी तुम्हारे साथ इन्तेज़ार करता हूँ क्या उनकी अक़्लें उन्हें यह बातें बताती हैं या ये लोग हैं हीं सरकश, क्या ये लोग कहते हैं कि उसने कुरान खुद गढ़ लिया है बात यह है कि यह लोग ईमान ही नहीं रखते, तो अगर यह लोग सच्चे हैं तो ऐसा ही कलाम बना तो लायें- क्या यह लोग किसी के (पैदा किये) बग़ैर ही पैदा हो गये हैं या यही लोग (मख़लूक़ात के) पैदा करने वाले हैं या उन्होंने ही सारे आसमान व ज़मीन पैदा किये हैं (नहीं) बल्कि यह लोग यक़ीनन ही नहीं रखते क्या तुम्हारे परवरदिगार के खज़ाने उन्हीं के पास हैं या यही लोग हाकिम हैं या उनके पास कोई सीढ़ी है जिस पर (चढ़ करस आशमान से) सुन आते हैं जो सुन आया करता हो तो वह कोई सरीही दलील पेश करे क्या ख़ुदा के लिये बेटियां(1) हैं और तुम लोगों के लिये बेटे या तुम उन से (तब्लीग़ रिसालत की) उजरत मांगते हो कि यह लोग क़र्ज़ के बोझ से दबे जाते हैं या उन लोगों के पास ग़ेब (का इल्म) है कि वह लिख लेते(2) हैं
या खुदा के सिवा उनका कोई (दूसरा) माबूद है जिन चीज़ों को यह लोग (ख़ुदा का) शरीक बताते हैं वह उससे पाक और पाकीज़ा हैं और अगर यह लोग आसमान से कोई (अज़ाब का) टुकड़ा गिरते हुए देखें तो बोल उठेंगे यह तो दलदार बादल है- तो (ऐ रसूल) तुम उनको उनकी हालत पर छोड़ दो हां तक कि वह दिन जिसमें यह बेहोश हो जायेंगे उकने सामने आ जायें जिस दिन न उन की मक्कारी ही कुछ काम आएगी और न उनकी मदद ही की जाएगी और उसमें शक नहीं कि ज़ालिमों के लिए इस के अलावा और भी अज़ाब है मगर उन में बहुतेरे नहीं जानते हैं
और (ऐ रसूल) तुम अपने परवरदिगार के हुक्म से इन्तेज़ार में सब्र किये रहो तुम तो बिल्कुल हमारी निगेहदाश्त में हो तो जब तुम(1) उठा करसो तो अपने परवरदिगार की हम्द की तस्बीह किया करो और कुछ रात को भी और सितारों के ग़रूब होने के बाद तस्बीह किया करो।
सूरऐ नज्म
सूरऐ नज्म मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 62 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
तारे की क़सम जब टूटा कि तुम्हारे रफ़ीक़ (मुहम्नद) न गुमराह हुए और न बहके और वह तो अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते हये तो बस वही है जो भेजी जाती है उनको निहायत ताक़तवर (फ़रिश्ता जिब्राईल) ने तालीम दी है जो बड़ा ज़बरदस्त है और जब ये (आसमान के) ऊँचे (मश्रीक़ी) किनारे पर थे तो वह (अपनी असली सूरत में) सीधा खड़ा हुवा फिर क़रीब हुवा (और आगे) बढ़ा (फिर जिब्राईल व मुहम्मद में) दो कमान का फ़ासला रह गया बल्कि उससे भी क़रीब था ख़ुदा ने अपने बंदे की तरफ़ भेजी से भेजी तो जो कुछ उन्होंने देखा उन के दिल ने झूट न जाना तो क्या वह (रसूल) जो कुछ देखता है तुम लोग उसमें उसेस झगड़ते हो
और उन्होंने तो उस (जिब्राईल) को एक बार (शबे मेराज) और देखा है सिदरतुल मुन्तहा(1) के नज़दीक उसी के पास तो रहने की बेहिश्त है जब ला रहा था सिदराह पर जो छा रहा था (उस वक़्त भी) उन की आँख न तो और तरफ़ माएल हुई और न हद से आगे बढ़ी और उन्होंने यक़ीनन अपने परवरदिगार (के कुदरत) की बड़ी-बड़ी निशानियां देखी तो भला तुम लोगों ने लात व उज़्ज़ा और तीसरे(2) पिछले मनात को देखा (भला ये ख़ुदा हो सकता है) क्या तुम्हारे तो बेटे हैं और उस के लिये बेटियां ये तो बहुत बे इंसाफ़ी की तक़सीम है ये तो बस सिर्फ़ नाम ही नाम है जो तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने गढ़ लिया है,
ख़ुदा ने तो उसकी कोई सनद नाज़िल नहीं कि ये लोग तो बस अटकल और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश के पीछे चल रहे हैं हलांकि उनके पास उन के परवरदिगार की तरफ़ से हिदायत भी आ चुकी है क्या जिस चीज़ की इंसान तमन्ना करे वह उसे ज़रुर मिलती है आख़ेरत और दुनिया तो ख़ास ख़ुदा ही के इख़्तेयार में है और आसमानों में बहुत से फ़रिश्ते हैं जिनकी साफ़ारिश कुछ भी काम नहीं आती, मगर ख़ुदा जिस के लिये चाहे इजाज़त दे और पसंद करे उस के बाद (सिफ़ारिश कर सकते हैं) जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते
वह फ़रिश्तों के नाम रखते हैं औरतों के से मान, हालांकि उन्हें उस की कुछ ख़बर नहीं, वह लोग तो बस गुमान (ख़्याल) के पीछे चल रहे हैं, हालांकि गुमान यक़ीन के मुक़ाबले में कुछ भी काम नहीं आया करता, तो जो हमारी याद से रूगरदानी करे और सिर्फ़ दुनियावी ज़िन्दगी ही का तालिब हो तुम भी उस से मुंह फेर लो, उन के इल्म की यही इन्तेहा है- तुम्हारा परवरदिगार, जो उस के रास्ते से भटक गया उसको भी खूब जानता है, और जो राहे रास्त पर है उस से भी खूब वाक़िफ है और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है, ताकि जिन लोगों ने बुराई की है उनको उन की कारस्तानियों की सज़ा दें और जिन लोगो ने नेकी की है उनको उनकी नेकी की जज़ा दे जो सग़ीरा गुनाहों के सिवा कबीरा(1) गुनाहों से और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं,
बेशक ख़ुदा तुम्हारा परवरदिगार बड़ी बख़्शिश वाला है वही तुम को खूब जानता है- जब उस ने तुम को मिट्टी से पैदा किया और जब तुम अपनी माओं के पेट में बच्चे थे, तो (तकब्बुर से0 अपने नफ़्स की पाकीज़गी न जताया करो(1) जो परहेज़गार हैं उस को वह खूब जानता है- भला (ऐ रसूल) तुम ने उस शख़्स को भी(2) देखा जिसने रुगरदानी की और थोड़ा सा (ख़ुदा की राह में) दिया और (फिर) बंद कर दिया-क्या उस के पास इल्म ग़ैब है कि वह देख रहा है-क्या उसको उन बातों की ख़बपरर नहीं पहुंची जो मूसा के सहीफ़ों में है और इब्राहीम के (सहीफ़ों में) जिन्होंने (अपना हक़) पूरा (पूरा अदा) किया (उन सहीफ़ों में यह है) कि कोई शख़्स दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा और ये कि इंसान को वही मिलता है जिसकी वह कोशिश करता है और ये कि उसकी कोशिश अंक़रीब हैी (क़यामत में) देखी जाएगी-फिर उस को उसका पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा और ये कि (सब को आख़िर) तुम्हारे परवरदिगार ही के पास पहुंचना है और यह कि वही हंसता और रूलाता है और ये कि वही मारता और जिलाता है
और ये कि वही नर और मादा दो क़िस्म (के हैवान) नुतफ़ा से जब (रहम में) डाला जाता है पैदा करता है- और ये हक उसी पर (क़यामत में) दुबारा उठना लाज़िम है- और ये कि वही मालदार बनाता है और सरमाया अता करता है, और यह कि वही शोअरा(1) का मालिक है और यह कि उसी ने पहले(2) (कौ़म) आद को हलाक किया और समूद को भी, ग़रज़ किसी को बाकी़ न छोड़ा और (उसके) पहले नूह की कौ़म को-बेशक ये लोग बड़े ही ज़ालिम और बड़े ही सरकश थे- और उसी ने (क़ौम लूत की) उल्टी हुई बस्तियों को दे पटका (फिर उनपर) जो छाया जो छाया-तो तू (ऐ इंसान आख़िर) अपने परवरदिगार की कौन सी नेमत पर शक किया करेगा ये (मुहम्मद) भी अगले डराने वालों में से एक डराने वाल (पैग़म्बर) है- क़यामत क़रीब आ गई- ख़ुदा के सिवा उसे कोई टाल नहीं सकता- तो क्या तुम लोग उस बात से ताज्जुब करते हो- और हंसते हो और रोते नहीं हो-और तुम उस क़द्र ग़ाफि़ल हो तो ख़ुदा के आगे सजदे किया करो-और (उसी के) इबादत करो।
सूरऐ क़मर
सूरऐ क़मर मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 55 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
क़यामत क़रीब आ गई और चाँद(4) दो टुकडे हो गया और अगर ये कुफ़्फ़ार कोई मोजिज़ा देखते हैं, तो मुंह फ़ेर लेते हैं, और कहते हैं कि ये तो बड़ा ज़बरदस्त जादू है और उन लोगों ने झुटलाया और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिशों की पैरवी की, और हर काम का वक़्त मुक़र्रर है और उन के पास तो वह हालात पहुंच चुके हैं जिन में काफ़ी तमबीह थी, और इन्तेहा दरजे की दानाई मगर (उन को तो) डराना कुछ फ़ाएदा नहीं देता, तो (ऐ रसूल) तुम भी उन से किनारा कश हो, जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा तो (नदामत से) आँखे नीची किये हुए क़ब्रों से निकल पड़ेंगे, गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं (और) बुलाने वाले की तरफ़ गरदने बढ़ाए दौ़ड़ते जाते होंगे,
कुफ़्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख्त दिन है, उन से पहेल नूह की क़ौम ने भी झुटलाया था, तो उन्होंने हमारा (ख़ास) बंदने (नूह) को झुटलाया, और कहने लगे ये तो दीवाना है, और उन को झिड़कियाँ भी दी गई, तो उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (बारे इलाहा) मैं (उकनो मुक़ाबले में) कमज़ोर हूं तो अब तू ही (उन से) बदला ले-तो हम ने मूसलाधार पानी से आसमान के दरवाज़े ख़ोल दिये और ज़मीन से चश्मे जारी कर दिये, तो एक काम के लिये जो मुक़दर हो चुका था (दोनों) पानी मिल कर एक हो गया, और हम ने एक कश्ती पर जो तख़्तियों और कीलों से तैयार की गई थी सवार किया, और वह हमारी निगरानी में चल रही थी (ये) उस शख़्स (नूह) का बदला लेने के लिये जिस को लोग न मानते थे और हम ने उस को एक इबरत बना छोड़ा तो कोई है
जो इबरत हासिल करे तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था और हमने तो कुरआन को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे- आद (की क़ौम) ने (अपने पैगम़्बर) को झुटलाया तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था, हम ने उन पर बहुत सख़्त मंहूस दिन में बड़े ज़न्नाटे की आँधी चलाई जो लोगों को (अपनी जगह से) इस तरह उख़ाड़ फेंकती थी गोया वह उख़ड़े हुवे ख़जूर के तने हैं तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था
और हमने तो कुरआन को नसीहत करने के वास्ते आसान कर दिया तो कोई है जो नसीहत हासिल करे, (क़ौम) समूद ने डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुटलाया तो कहने लगे कि भला एक आदमी कतो जो हम ही में से हो उसकी पैरवी करें ऐसा करे तो गुमराही में पड़ गये, क्या हम में से बस उसी पर वही नाज़िल हुई है (नहीं) बल्कि ये तो बड़ा झूटा ताअल्ली करने वाला है उनको अंक़रीब कल(1) ही मालूम हो जाएगा कि कौन बड़ा झूटा तकब्बुर करने वाला है (सालेह) हम उन की आज़माइश के लिए ऊँटनी भेजने वाले हैं तो तुम उनको देखते रहो और (थोड़ा) सब्र करो-और उनको ख़बर करस दो कि उनमें पानी की बारी मुक़र्रर कर दी गई है हर (बारी वाले को अपनी) बारी पर हाज़िर होना चाहिए तो उन लोगों ने अपने रफ़ीक़ (क़दार) को बुलाया तो उसने पकड़ कर (ऊँटनी की) कूचें काट डाली तो (देखो) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था- हमने उन पर एक सख़्त चिंघाड़ (का अज़ाब) भेज दिया तो वह बाड़े(1) वाले के सूखे हुए चूर-चूर भूसे की तरह हो गये- और हम ने कुरआन को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे-
लूत की क़ौम ने भी डराने वालों (पैग़म्बरों) को झुटलाया तो हमने उन पर कंकर भरी हुई हवा चलाई-मगर लूत के लडके बाले कि हम ने उकनो अपने फ़ज़्ल व करम से पिछले ही को बचा लिया-हम शुक्र करने वाले को ऐसा ही बदला दिया करते हैं और लूत ने उनको हमराी पकड़ से भी डराया था मगर जो उन लोगों ने डराते ही में शक किया और उनसे उनके मेहमान (फ़रिश्ते) के बारे मे नाजाएज़ मतलब की ख़्वाहिश की तो हमने उनकी आँखे अंधी कर दी- तो मेरे अज़ाब और डराने का मज़ा चखो- और सुबह सवरे ही उन पर अज़ाब आ गया जो किसी तरह टल नहीं सकता था- तो मेरे अज़ाब और डराने के (पड़े) मज़े चखो
और हमने तो कुरआन को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया तो कोई है जो नसीहत हासिल करसे और फिरऔऩ के लोगों के पास भी डराने वाले (पैग़म्बर) आए तो उन लोगों ने हमारी कुल निशानियों को झुटलाया तो हमने उनक को इस तरह सख़्त पकड़ा जिस तरह एक ज़बरदस्त साहबे कुदरत पकड़ा करता है (ऐ अहले मक्का) क्या उन लोगों से भी तुम्हारे कुफ़्फ़ार बढ़ करस हैं या तुम्हारे वास्ते (पहली) किताबेों मे माफ़ी (लिखी हुई) है क्या ये लोग कहते हैं कि हम बहुत क़ौमी जमाअत हैं- अंक़रीब ही ये जमाअत शिकस्त खाएगी और ये लोग पबीठ फेर-फेर कर भाग जाएंगे-बात ये है कि उनके वादे का वक़्त क़यामत है और क़यामत बड़ी सख़्त और बड़ी तल्ख़ (चीज़) है-
बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवांगी में (मुबतिला) हैं उस रोज़ ये लोग अपने-अपने मुंह के बल (जहन्नुम की) आग में घसीटे जाएंगे (और उन से कहा जाएगा) अब जहन्नुम की आग का मजा चखो-बेशक हम ने हर चीज़ एक मुकर्रर अंदाज़ से पैदा की है और हमारा हुक्म तो बस आँख के झपकने की तरह एक बात होती है और हम तुम्हेर हम मशरबों को हलाक कर चुके हैं, तो कोई है जो सीहत हासिल करे और अगर ये लोग जो कुछ कर चुके हैं (उनके) आमाल नामो में (दर्ज) है (यानि) हर छोटा और बड़ा काम लिख दिया है- बेशक परहेज़गार(1) लोग (बेहिश्त के) बागों और नहरों में (यानि) पसंदीदा मका़म में हर तरह की क़ुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में (मुक़र्रब) होंगे।
सूरऐ रहमान
सूरऐ रहमान मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 78 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
बड़ा मेहरबान (ख़ुदा) उसी ने कुरआन की तालीम फ़रमाई, उसी ने इंसान को पैदा किया उसी ने उसको (अपना मतलब) बयान करना सिखाया, सूरज और चाँद एक मुक़र्रर हिसाब से (चल रहे हैं) और बूटियां बेलें, और दरख़्त उसी को सज्दा करते हैं ,और उसी ने आसमान बुलंद किया और तराज़ू(3) (इंसाफ़) को क़ायम किया ताकि तुम लोग तराजू (से तोलने) में हद से तजावुज़ न करो और इंसाफ़ के साथ ठीक तोलो और तोल कम न करो और उसी में लोग के नफ़ा के लिये ज़मीन बनायी कि उसमें मेवे और खजूर के दरख़्त हैं जिसके खोशों में ग़लाफ़ होते हैं
और अनाज जिस के साथ भुस होता है और ख़ुशबूदार फूल तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नेमतों को न मानोंगे
उसी मे इंसान को ठेकरी की तरह खनख़नाती हुई मिट्टी से पैदा किया और उसी ने जिन्नात को आग के शोले से पैदा किया तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम(1) अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नेमतों मे मुकरोगे वही जाड़े गर्मी के दोनों मुशरिकों(2) का मालिक है और दोनों मग़रिबों का (भी) मालिक है तो (ऐ जिनों और आदमियों) तुम अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत से इंकार करोगे
उसी ने दरिया(3) बहाये औजो बाहम मिल जाते हैं दो के दरमियान एक हद फ़ासिल (आड़) है जिसेस तजावुज़ नहीं कर सकते )ऐ जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत को न मानोंगे और जहाज़ जो दरिया में पहाड़ों की तरह ऊँचे खड़े रहते हैं उसी के हैं तो (ऐ जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत को झुठलाओगे
जो (मख़लूक़) ज़मीन पर है सब फ़नाह होने वाली है और सिर्फ़ तुम्हारे परवरदिगार की ज़ात जो अज़मत और करामत वाली है बाक़ी रहेगी तो तुम दोनों अपने मालिक की किन-किन नेमतों से इंकार करोगे और जितने लोग सारे आसमान व ज़मीन में है (सब) उसी से मांगते हैं वह हर रोज़ (हर वक़्त) मख़लूक के एक न एक काम में है तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की कौन कौन सी नेमत से मुकरोगे
ऐ दोनों गिरोहों हम अनकरीब ही तुम्हारी तरफ़ मुतावज्जा होंगे तो तुम दोनों अपने-अपने पालने वाले की किस-किस नेमत को न मानोगे,
ऐ गिरोह जिन व इन्स अगर तुममें कुदरत है आसमानों और ज़नीन के किनारों से (होकर कहीं) निकल (कर मौत या अज़ाब से भाग) सको तो निकल जाओ (मगर) तुम तो बगै़र कुव्वत और ग़लबे के निकल ही नहीं सकते (हालांकि तुममं ने तो कुव्वत है न ग़ल्बा) तो तुम अपने परवरदिगार की किस-किस नेमक तो झुठलाओगे
(गुनाहगार जिनों और आदमियों जहन्नुम में) तुम दोनों पर आग का सब्ज़ शोला और सिवा धूँआ छोड़ दिया जायचेगा तो तुम दोनों (किस तरह) रोक नहीं सकोगे फिर तुम अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत से इंकार करोगे फिर जब आसमान फट कर (क़यामत में) तेल की तरह लाल हो जायेगा तो तुम अपने परवरदिगार की किन-किन नेमतों से मुकरोगे तो उस दिन न तो किसी इंसान से उसके गुनाह के बारे में पूछे जायेगा(1) न किसी जिन से तो तुम दोनों अपने मालिक की किस-किस नेमत को न मानोगे गुनाहगार लोग तो अपने चेहरों ही से पहचान लिये जायेंगे तो पेशानी के पट्टे और पांव पकड़े (जहन्नुम में डाल दिये) जायेंगे आख़िर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत से इंकार करोगे
(फिर उनसे कहा जायेगा) यही वह जहन्नुमहै जिसे गुनाहगार झुठलाया करते थे यह लोग दोज़ख़ और हद दरजा खौलते हुए पानी के दरमियान (बेकरार दौड़ते) चक्कर लगाते फिरेंगे तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत को न मानोंगे और जो शख़्स अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता रहै उसके लिये दो-दो बाग हैं तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नेमत से इंकार करोगे दोनों बाग़ (दरख़्तों की टहनियों से) हरे भरे (मेवे लदे हुए) फिर तुम दोनों अपने सरपरस्त की किन-किन नेमतों को झुठलाओगे उन दोनों में दो चश्में भी जारी होंगे जो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत से मुकरोगे उन दोनों बागों में सब मेवे दो-दो(1) क़िस्म के होंगे तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत से इंकार करोगे-यह लोग उन फ़रशों पर जिनके असतर अतलस के होंगे तकिये लगाये बैठें होंगे दोनों बागों के मेवे (इस क़द्र) क़रीब होंगे
(कि अगर चाहे तो लगे हुए खां लें) तो तुम दोनों अपने मालिक की किस-किस नेमत को न मानोंगे इसमे (पाक दामन) ग़ैर की तरफ़ आँख उठाकर न(2) देखने वाली औरतें होंगी जिनको उनसे पहले न किसी इंसान न हाथ लगाया होगा और न जिन्न ने, तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेमत को झुठलाओंगे (ऐसी हसीन) गोया वह (मुजस्सिम) याकूत व मूंगे हैं तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन-किन नेमतों से मुकरोगे भला नेकी का बदला(3) नेकी के सिवा कुछ और भी है फिर तुम दोनो अपने मालिक की किस-किस नेमतों को झुठलाओगे उन दो बाग़ों के अलावा दो बाग़ और हैं तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस-किस नेमत से इंकार करोगे दोनों निहायत गहरे सब्ज़ व शादाब तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की किन-किन नेमतों को न मानोगे
उन दोनों बाग़ों में दो चश्में जोस मारते होंगे तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस-किस नेमत से मुकरोगे उन दोनों में मेवे और खुरमें और अनार तो तुम दोनों अपने मालिक की किन-किन नेमतों को झुठलाओगे
उन बाग़ों में ख़ुश ख़ल्क और ख़ूबसूरत औरतें होंगी तो तुम दोनों अपने मालिक कि किन-किन नेमतों को झुठलाओगे वह हूरें हैं जो ख़ेमों में छिपी बैठी हैं फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन-कौन सी नेमत से इंकार करोगे उनसे पहले उनको किसी इंसान ने छुआ तक नहीं और न जिन्न ने फिर तुम दोनों अपने मालिक कि किस-किस नेमत से मुकरोगे यह लोग सब्ज़ क़ालीनों और नफ़ीस व हसीन मसन्दों पर तकिये लगाये (बैठे) होंगे फिर तुम दोनों अपने परवरदिगारस की किन-किन नेमतों से इंकार करोगे (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार जो साहिबे जलाल व करामत है उसका नाम बड़ा ब बरकत है।
सूरऐ वाकिआ
सूरऐ वाक़्या मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 66 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जब क़यामत बरपा होगी (और) उस के वाक़ेअ होने में ज़रा झूट नहीं (उस वक़्त लोगों में फ़र्क़ ज़ाहिर होगा कि) किसी को परस्त करेगी किसी को बुलंद जब ज़मीन बड़े जो़रों में हिलने लगेगी और पहाड़ (टकरा कर) बिल्कुल चूर-चूर हो जाएंगे फिर ज़र्रे बन कर उड़ने लगेंगे और तुम लोग तीन क़िस्म हो जाओगे तो अपने दाहिने हाथ (में अमाल लेने) वाले (वाह) दाहिने हाथ वाले क्या (चैन में) हैं और बाएं हाथ (में नामा आमाल लेने) वाले (अफ़सोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं और जो आगे बढ़ जाने(1) वाले हैं
(वाह क्या कहना) वह आगे ही बढ़ने वाले थे यही लोग (ख़ुदा के) मुक़र्रब हैं आराम व आसाइश के बाग़ों में बहुत से तो अगले लोगों में से होंगे और कुछ थोड़े से पिछले लोगों में से मोती और याकूत से जड़े हुए सोने के तारों से बने हुए तख़्तों पर एक दूसरे के सामने तकिये लगाए (बैठे) होंगे नौजवान लड़के जो (बेहिश्त में) हमेशा (लड़़के ही बने) रहेंगे (शरबत वग़ैरह के) साग़र और चमकदार टोंटीदार कंटर और शफ़ाफ़ शराब के जाम लिये हुए उन के पास पास चक्कर लगाते होंगे जिस के (पीने) से न तो उनको (ख़ुमार से) दर्द सर होगा
और न वह बद हवास मदहोश होंगे और जिस क़िस्म के मेवे पसंद करेंगे और जिस क़िस्म के परिन्द का गोश्त उनका जी चाहे (सब मौजूद है) और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें जैसे इहतेयात से रखे हुए मोती ये बदला है उनके (नेक) आमाल का वहां न तो बेहूदा बात सुनेंगे और न गुनाह की बात (फ़ोहश) बस उनका कलाम सलाम ही सलाम होगा
और दाहिने हाथ वाले (वाह) दाहिने हाथ वालों का क्या कहना है बे कांटे की बेरियों और लदे गुथे हुए केलों और लम्बी-लम्बी छांव और झरने के पानी और अलग़ारों मेवों मे होंगे जो न कभी ख़त्म होंगे और न उनकी कोई रोक टोक और ऊँचे-ऊँचे (नरम गब्भों के) फ़रशों में (मज़े करते) होंगे (उनको वह हूरे मिलेंगी) जिसको हम नित नया पैदा किया है तो हमने उन्हें कुवांरियाँ प्यारी-प्यारी हमजोलियां बनाया (यह सब सामान) दाहिने ङाथ (में नामा आमाल लेने) वालों के वास्ते है (उनमें) बहुत से तो अगले लोगों में से और बहुत से पिछले लोगों में से और बाएं हाथ (में नामा आमाल लेने) वाले (अफ़सोस) बाए हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं (दोज़ख़ की) लौ और खौलते हुए पानी और काले स्याह धुएँ के साये में होंगे जो न ठंडा है और न खुश आईऩ्दा ये लोग इससे पहले (दुनिया में) खूब ऐश उड़ा चुके थे और बड़े गुनाह (शिर्क) पर अड़े रहते थे
और कहा करते थे कि भला जब हम मर जाएंगे और (सड़ गल कर) मिट्टी और हड़्डियां (ही हड्डियां) रह जाएंगे तो क्या हमें या हमारे अगले बाप दादाओं को फिर उठना है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगले और पिछले सब के सब रोज़े मोअय्यन की मियाद पर ज़रुर इकट्ठे किये जाएंगे फिर तुम को बेशक ऐ गुमराहों के झुटलाने वालों यक़ीनन (जहन्नुम में) थोहड़ के दरख्तों में से खाना होगा तो तुम लोगों को उसी से (अपना) पेट भरना होगा फिर उस के ऊपर खौलता हुवा पानी पीना होगा और पियोगे भी तो प्यासे(1) ऊँट का सा (डगड़गा के) पीना क़यामत के दिन यही उन की मेहमानी होगी तुम लोगों को (पहली बार भी) हम ही ने पैदा किया है फिर तुम लोग (दुबारा की) क्यों नहीं तसदीक़ करते तो जिस नुत्फ़े को तुम (औरतों के) रहम में डालते हो क्या तुम ने देख भाल लिया है
क्या तुम उस से आदमी बनाते हो या हम बनाते हैं हम ने तुम लोगों में मौत को मुक़र्रर कर दिया है और हम उस रोज़ आजिज़ नहीं है कि तुम्हारे ऐसे और लोग बदल डालें और तुम लोगों को उस (सूरत) में पैदा करें जिसे तुम मुतलक़ नहीं जानते और तुम ने पहली पैदाइश तो समझ ही ली है (कि हम ने की) फिर तुम ग़ौर क्यों नहीं करते भला देखो तो कि जो कुछ लोग बोते हो क्या तुम लोग उसे(1) उगाते हो या हम उगाते हैं
अगर हम चाहते तो उसे चूर-चूर कर देते तो तुम बातें ही बनाते रह जाते कि (हाए) हम तो (मुफ़त) तावान में फंसे (नहीं) हम तो बदनसीब हैं ही तो क्या तुम ने पान पर भी नज़र ड़ाली जो (दिन रात) पीते हो क्या उस को बादल से तुम ने बरसाया है या हम बरसाते हैं- अगर हम चाहें तो उसे ख़ारी बना दें तो तुम लोग शुक्र करो क्यों नहीं करेत तो क्या तुम ने आग पर भी ग़ैर किया जिसे तुम लोग लकड़ी(2) से निकालते हो क्या उस के दरख़्त को तुम ने पैदा किया या हम पैदा करेत हैं हमने आग को (जहन्नुम की) याद दहानी और मुसाफ़िरों के नफ़ा के वास्ते पैदा किया तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तसबीह करो तो मैं तारो(3) के मनाज़िल की क़सम खाता हूं और अगर तुम तो ये बड़ी(4) क़सम है कि बेशक ये बड़े रूतबे का कुरआन है जो किताब (लौहे) महफूज़ में (लिखा हुवा) है उस को बस वही लोग(5) छूते हैं जो पाक हैं सारे जहां के परवरदिगार की तरफ़ से (मुहम्मद) पर नाज़िल हुवा है तो क्या तुम लोग इस कलाम से इंकार करते हो
और तुम(1) ने अपनी रोज़ी ये क़रार दे ली है कि (उसको) झुटलाते हो तो क्या जब जान गले तक आ पहुँचती है और तुम उस वक़्त (की हालत) पड़े देखा करते हो और हम उस (मरने वाले) से तुम से भी ज़्यादा नज़दीक होते हैं लेकिन तुम को दिखाई नहीं देता अगर तुम किसी के दबाव में नहीं हो तो अगर (अपने दावे में) तुम सच्चे हो तो रूह को फ़ेर क्यों नहीं देते पस अगर वह (मरने वाला ख़ुदा के) मुक़रेबीन से है तो (उस के लिेये) आराम व आसाइश है और खुशबूदार फूल और नेमत के बाग़ और अगर वह दाहिने हाथ वालों में से है तो (उस से कहा जाएगा कि) तुम पर दाहिने हाथ वालों की तरफ़ से सलाम हो और अगर झुटलाने वाले गुमराहों में से हैं तो (उस की) मेहमानी खौलता हुवा पानी है और जहन्नुम में दाख़िल कर देना बेशक ये (ख़बर) यक़ीन सही है तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तसबीह करो।
सूरऐ हदीद
सूरऐ हदीद मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 26 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जो जो चीज़ सारे आसमान व ज़मीन में है सब ख़ुदा की तसबीह करती है और वही ग़ालिब हिकमत वाला है सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही उसी की है वही जिलाता है और वही मारता है और वही हर चीज़ पर क़ादिर है वही सब से पहले और सब से आख़िर है और (अपनी कु़दरतों से) सब पर ज़ाहिर और (निगाहों से) पोशीदा(1) है
और वही सब चीज़ों को जानता है वह वही तो है जिस ने सारे आसमान व ज़मीन छः दिन में पैदा किये फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ जो चीज़ जमीन में दाख़िल होती है और जो उस से निकलती है और जो चीज़ आसमान से नाज़िल होती है और जो उस की तरफ़ चढ़ती है (सब) उस को मालूम है और तुम (चाहे) जहां कहीं रहो वह तुम्हारे साथ है और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही ख़ास उसी की है और ख़ुदा ही की तरफ कुल रुजूअ होती है वही रात को (घटा कर) दिन में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है) और दिन को (घटा कर) रात में दाख़िल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिलों के भेदों तक से खूब वाक़िफ़ है
(लोगों) खुदा और उस के रसूल पर ईमान लाओ और जिस (माल) में उसने तुम को अपना नाएब बनाया है(1) उस मे से कुछ (खुदा की राह में) ख़र्च करो तो तुम में से जो लोग ईमान लाए और (राह ख़ुदा में) ख़र्च करते रहे उन के लिये बड़ा अज्र है और तुम्हें क्या हो गया है कि खु़दा पर ईमान नहीं लाते हो हालांकि रसूल तुम्हें बुला रहे हैं कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ और अगर तुम को बावर हो तो (यक़ीन करो कि) ख़ुदा तुम से (उस का) इक़रार ले(1) चुका वही तो है जो अपने बन्दे (मुहम्मद) पर वाज़ेह व रौशन आयतें नाज़िल करता है ताकि तुम लोगों को (कुफ़्र की) तारीकियों से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में ले जाए और बेशक ख़ुदा तुम पर बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है और तुम को क्या हो गया है कि (अपना माल) खुदा की राह में ख़र्च नहीं करते हालांकि सारे आसमान व ज़मीन का मालिक व वारिस ख़ुदा ही है तुममें से जिस शख़्स ने फ़तेह (मक्का) के पहले (अपना माल) ख़र्च किया और जेहाद किया (और जिसने बाद में किया) व बराबर नहीं उन का दरजा उन लोगों से कहीं(3) बढ़ कर है
जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और जेहाद किया और (यूं तो) ख़ुदा ने नेकी और सवाब का वादा तो सब से किया है और जो कुछ तुम करते हो खुदा उस से ख़ूब वाक़िफ़ है कौन ऐसा है जो खु़दा को खालिस नीयत रसे क़र्जे(1) हसना दे तो ख़ुदा उसके लिये (अज्र को) दूना कर दे और उस किे लिये बहुत मुअजिज़ सिला (जन्नत) तो ही है
जिस दिन तुम मोमिन मरदों और मोमिना औरतों को देखोगे कि उन (के ईमान) का नूर(2) उन के आगे और दाहिनी तरफ़ चल रहा होगा तो उन से कहा (जाएगा) तुम को बशारत हो कि आज तुम्हारे लिये वह बाग़ है जिनके नीचे नहरें जारी हैं उन में हमेशा रहोगे यही तो बड़ी कामयाबी है उस दिन मुनाफ़िक़ मर्द और मुमाफ़िक़ औरतें ईमानदारों से कहेंगे एक नज़र (शफ़क़्क़त) हमारी तरफ भी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रोशनी हासिल करें तो (उन से) कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे (दुनिया में) लौट जाओ और (वही) किसी और नूर की तलाश करो फिर उनके बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिस में एक दरवाज़ा होगा (और) उसके अन्दर की जानिब तो रहमत और और बाहर की तरफ़ अज़ाब तो मुमाफ़क़ीन मोमिनीन से पुकार कर कहेंगे
(क्यों भाई) क्या हम कभी तुम्हारे साथ न थे मोमीनीन कहते थे तो ज़रुर मगर तुमने तो ख़ुद अपने आप को बला में डाला और (हमारे हक़ में गरदिशो के) मुन्तज़िर रहे और (दीन में) शक किया और एक बड़े दग़बाज़ (शैतान) ने ख़ुदा के बारे में तुम को फ़रेब दिया तो आज न तो तुम से कोी मुआवज़ा लिया जाएगा और न काफ़िरों से तुम सब का ठिकाना (बस) जहन्नुम है वही तुम्हारे वास्ते सज़ावार है और (क्या) बुरी जगह है
क्या ईमानदारों के लिये अभी तक उस का वक़्त नहीं आया कि खुदा की याद और कुरआन के लिटये जो (ख़ुदा की तरफ़ से) नाज़िल हुवा है उनके दिल नरम हों और वह उन लोगों के से न हो जाए जिन को उन से पहले किताब (तौरैत व इंजील) दी गई थी तो (जब) एक ज़माना दरज़ गुज़र गया तो उन के दिल सख़्त हो गये(1) और उन मे से बहुतेरे बदकार है जान रखो कि खु़दा ही जमीन गको उस के मरने (अफ़तादा होने) के बाद ज़िन्दा (आबाद) करता है हम ने तुम से अपनी (कुदरत की) निशानियां खोल-खोल कर बयान कर दी हैं ताकि तुम समझो बेशक ख़ैरात देने वाले मर्द और ख़ैरात देने वाली औरतें और (जो लोग) ख़ुदा को नीयते ख़ालिस से क़र्ज़ देते हैं उन को दुगना (अज्र) दिया जाएगा और उन का बहुत मुअज़ज्जि़ सिला (जन्नत) तो ही है
और जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाए यही लोग अपने परवरदिगार के नज़दीक सिद्दीकों(2) और शहीदों के दरजे में होंगे उन के लिये उन ही (सिद्दीक़ी और शहीदों) का अज्र और उन्हीं का नूर होगा और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुटलाया वही लोग जहन्नुमी हैं जान रखो कि दुनियावी ज़िन्दगी महज़ खेल और तमाशा और ज़ाहिरी ज़ीनत (व आराईश) और आपस में एक दूसरे पर फ़क्र करना और माल औलाद की एक दूसरे से ज़्यादा ख़्वाहिश है (दुनियावी ज़िन्दगी की मिसाल तो) बारिश की सी मिसाल है जिस (की वजह) से किसानों की खेती (लहलहाती और) उनको खुश कर देती फिर सूख जाती है तो तू उसको देखता है कि ज़र्द हो जाती है फिर चूर-चूर हो जाती है
और आख़ेरत में (कुफ़्फ़ार के लिए) सख़्त अज़ाब है और (मोमिनों के लिए) ख़ुदा की तरफ से बख़्शिश और खुश नूदी और दुनियावी ज़िन्दगी तो बस फ़रेब का साज़ व सामान है तो तुम अपने परवरदिगार के (सबब) और ज़मीन के अरज़ के बराबर है जो उन लोगों के लिए तैयार की गई है जो खु़दा पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं ये ख़ुदा का फ़ज़्ल है जिसे चाहे अता करे और ख़ुदा का फ़ज़्ल (व करम) तो बहुत बड़ा है- जिनती मुसीबतें रूए ज़मीन पर और ख़ुद तुम लोगों पर नाज़िल होती है (वह सब) क़ब्ल उसके कि हम उन्हें पैदा करें किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी हुई) है तुम उसका रंज न किया करो और जब कोई चीज (नेमत) ख़ुदा तुमको दे उस पर ना इतराया करो और ख़ुदा किसी इतराने वाले शेख़ी बाज़ को दोस्त नहीं रखता जो ख़ुद भी बुख़ल करते और दूसरे लोगों को भी कंजूसी करना सीखाते हैं
जो शख़्स (इन बातों से) रूगरदानी करे तो ख़ुदा भी बेपरवाह सजा़वार हम्द व सना है हमने यक़ीनन अपने पैग़्बरों को वाज़े व रौशन मोजिज़े देकर भेजा और उनके साथ किताब और (इंसाफ की) तराजू नाज़िल की ताकि लोग इंसाफ़ पर क़ाएम रहें और हम ही ने(1) लोहे को नाज़िल किया जिसके ज़रिए से सख़्त ल़डाई और लोगों के बहुत से नफ़ा (की बातें) में और ताकि ख़ुदा देख ले कि बे देखे भाले ख़ुदा और उसके रसूलों की कौन मदद करता है बेशक ख़ुदा बहुत ज़बरदस्त ग़ालिब है और बेशक हम ही ने नूह और इब्राहीम को (पैग़म्बर बना कर) भेजा और उन ही दोनों की औलाद मे नबूवत और किताब मुक़र्रर की तो उनमें के बाज़ हिदायत याफ़्ता हैं और उनके बहुतेरे बदकार हैं फिर उनके पीछे है
उनके क़दम ब क़दम अपने और पैग़म्बर भेजे और उनके पीछे मरियम के बेटे ईसा को भेजा और उनको इंजील अता की और जिन लोगों ने उनकी पैरवी की उन के दिलों में शफ़्फ़ाफियत और मेहरबानी डाल दी और रहबानियत (लज़्ज़ात से किनाराकशी) उन लोगों ने खुद एक नई बात निकाली थी हमने उनको उसका हुक्म नहीं दिया था मगर (उन लोगों ने) ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (ख़ुद आजाद किया) तो उसको भी जैसा निबाहना चाहिए था न बना सके तो जो लोग उनमें से ईमान लाए उनको हमने उनका अज्र दिया और उनमें के बहुतेरे तो बदकार ही है
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और उसके रसूल (मुहम्मद) पर ईमान लाओ तो ख़ुदा तुमको अपनी रहमत के दो हिस्से अता फरमाएगा और तुमको ऐसा नूर इनायत फ़रमाएगा जिस (की रौशनी) में तुम चलोगे और तुमको बख़्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (ये इसलिए कहा जाता है) ताकि अहले किताब ये न समझे कि ये मोमीनीन खु़दा के फ़ज़्ल (व करम) पर कुछ भी क़ुदरत नहीं रखते और ये तो यकी़नी बात है कि फ़ज़्ल खु़दा ही के क़ब्ज़े में है वह जिसको चाहे अता फरमाए और ख़ुदा तो बड़े फज़्ल (व करम) का मालिक है।
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