तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-26

कुरआन मजीद
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हामीम (ये) किताब ग़ालिब (व) हकीम ख़ुदा की तरफ़ से है नाज़िल हुई है- हम ने तो सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों के दरम्यान है, हिकमत ही से एक ख़ास वक़्त तक के लिये पैदा किया है- और कुफ़्फ़ार जिन चीज़ों से डराए जाते हैं- उन से मुंह फ़ेर लेते हैं- (ऐ रसूल) तुम पूछो कि ख़ुदा को छोड़कर जिन की तुम इबादत करते हो क्या तुम ने उनको देखा है- मुझे भी दिखाओ कि तुम लोगों ने ज़मीन में क्या चीज़ पैदा की है(2) या आसमानों (के बनाने) में उन की शिरकत है- तो अगर तुम सच्चे हो तो इससे पहले कि कोई किताब (या अगलों के) इल्म का बक़या हो तो मेरे सामने पेश करो- और उस शख़्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ख़ुदा के सिवा ऐसे शख़्स को पुकारे जो इसे क़यामत तक जवाब ही न दे(2)
और उन को पुकारने की ख़बरे तक न हो- और जब लोग (क़यामत) में जमा किए जाएंगे तो वह (माबूद) इन के दुश्मन(1) हो जाएंगे और इन की इबादत से इंकार करेंगे- और जब हमारी ख़ुली-खुली आयते उन के सामने पढ़ी जाती हैं तो जो लोग काफ़िर हैं हक के बारे में जब इन के पास आ चुका तो कहते हैं ये तो सरीही जादू है
क्या ये कहते हैं कि इसने इस को ख़ुद गढ़ लिया है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं इस को (अपने जी से) गढ़ लेता तो तुम ख़ुदा के सामने मेरे कुछ भी काम(2) न आओगे- जो जो बातें तुम लोग उस के बारे मे करते रहते हो वह ख़ूब जानता है मेरे और तुम्हारे दरमियान वही गवाही को काफ़ी है और वही बड़ा बख़्शने वाला है मेहरबान है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल(3) तो आया नहीं है और मैं(4) कुछ नहीं जानता कि आइन्दा मेरे साथ क्या किया जाएगा- और न यह कि तुम्हारे साथ क्या किया जायेगा मैं तो बस उसी का पाबन्द हूं जो मेरे पास वही आई है और मैं तो बस ऐलानिया डराने वाला हूं
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर ये (कुरआन) ख़ुदा की तरफ़ से हो और तो तुम इस से इंकार कर बैठे हालांकि (बनी इस्राईल में से) एक गवाह(5) इस के मसल की गवाही भी दे चुका-और ईमान भी(1) ले आया और तुमने सरकशी की (तो तुम्हारे ज़ालिम होने में क्या शक है) बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाता
और काफ़िर लोग(2) मोमिनों के बारे में कहते हैं कि अगर ये (दीन) बेहतर होता तो ये लोग उसकी तरफ़ हमसे पहले न दौड़ पड़ते- और जब कुरआन के ज़रिए शे उन की हिदायत न हुई तो अब भी कहेंगे ये तो एक क़दीमी झूठ है
और इस के क़ब्ल मूसा कि किताब पेशवा और (सरासर) रहमत थी और ये (कुरआन) वह किताब है जो अरबी ज़बान में (उसकी) तस्दीक करती है ताकि (इस के ज़रिए से0 ज़ालिमों को डराये और नेकूकारों के िलए (अज़़सरतापा) ख़ुश ख़बरी है- बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा परवरदिगार ख़ुदा है फिर वह उस पर क़ाएम रहे तो (क़यामत में) उनको न कुछ ख़ौफ़ होगा न वह ग़मगीन होंगे—यही तो अहले जन्नत है हमेशा उसमें रहेंगे (ये) इसका सिला है जो ये लोग (दुनियां में) किया करते थे- और हमने इंसान को अपने मां बाप के साथ भलाई करने का हुक्म दिया (क्योंकि) उसकी मां ने रन्ज ही की हालत में उसको पेट में रखा और रंज ही से उसको जना और उसका पेट में रहना और उसको दूध बढ़ाई के तीस(3) महीने हुए- यहां तक कि जब अपने पूरी जवानी को पहुंचता और चालीस बरस (के सिन) को पहुंचता है तो (ख़ुदा से) अर्ज़ करता है- परवरदिगार तू मुझे तौफ़ीक़ अता फरमा कि तूने जो अहसानात मुझ पर और मेरे वालदैन पर किए हैं- मैं उन अहसानों का शुक्रिया अदा करूं और ये (भी तो तौफ़ीक दे) कि मैं ऐसा नेक काम करूं जिसे तू पसन्द करे और मेरे लि मेरी औलाद में सलाह व तक़वा पैदा कर में तेरी तरफ़ रूजू करता हूं- और मैं यक़ीनन फ़रमाबरदारों में हूँ(1) यही वह लोग हैं जिन के नेक़ अमल हम कुबूल फ़रमाएंगे और बेहिश्त (के जाने) वालों में हम उन के गुनाहों से दर गुज़र करेंगे- (ये वह) सच्चा वादा है जो उन से किया जाता था- और जिस ने अपने मां बाप से कहा कि तुम्हारे बुरा हो क्या तुम मुझे धमकी देते हो कि मैं दूबारा (कब्र से) निकाला जाऊंगा हालांकि बहुत से लोग मुझ से पहले गुज़र चुके (और कोई ज़िन्दा न हुआ) और दोनों फ़रयाद कर रहे थे कि तुझ पर वाए हो ईमान ले आ- ख़ुदा का वादा ज़रुर सच्चा है तो वह बोल उठा कि ये तो बस अगले लोगों के अफसाने हैं- ये वही लोग हैं कि जिन्नात और आदमियों की (दूसरी) उम्मतें जो इन से पहल गुज़र चुकी है इन ही के शमूल में इन पर अज़ाब का वादा मुस्तहक़ हो चुका है- ये लोग बेशक घाटा उठाने वाले थे- और लोगों ने जैसे काम किए होंगे उसी के मुताबिक़ सब के दर्जे होंगे और ये इस लिए कि ख़ुदा इन के आमाल का इन को पूरा-पूरा बदला दें और इन पर कुछ भी जुल्म न कया जाए और जिस दिन कुफ़्फ़ार जहन्नुम के सामने लाए जाएंगे (तो उन से कहा जाएगा कि) तुम तो अपनी दुनियां की ज़िन्दगी में अपने मज़े उड़ा चुके और इस में खूब चैन कर चुके तो आज तुम पर ज़िल्लत का अज़ाब किया जाएगा इसलिए कि तुम अपनी ज़मीन में अकड़ा करते थे और इसलिए कि तुम बदकारियां करते थे- और (ऐ रसूल) तुम आद के भाई (हूद) को याद करो जब उन्होंने अपनी कौ़म को (सरज़मीन) अहक़ाफ़(2) मैं डराया- और इन के पहले और इन के बाद भी बहुत से डराने वाले पैग़म्बर गुज़र चुके थे (और हूद ने अपनी क़ौम से कहा) कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो क्योंकि तुम्हारे बारे में एक बडे सख़्त दिन के अज़ाब से डराता हूं- वह बोले क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हम को हमारे माबूदों से फेर दो तो अगर तुम सच्चे हो तो जिस अज़ाब की तुम हमें धमकी देते हो ले आओ- हूद ने कहा (इस का) इल्म तो बस ख़ुदा के पास है और (मैं जो अहकाम देकर भेजा गया हूं) वह तुम्हें पहुँचाए देता हूं मगर मैं तुम को देखता हूं कि तुम ज़ाहिल लोग हो- तो जब उन लोगों ने इस (अज़ाब) को देखा कि बादल की तरह उन के मैदानों की तरफ़ उड़ा आ रहा है तो कहने लगे ये तो बादल है जो हम पर बरस कर रहेगा (नहीं) बल्कि ये वह (अज़ाब) है जिस की तुम जल्दी मचा रहे थे (ये) वह आँधी है जिस में दर्दनाक (अज़ाब) है जो अपने परवरदिगार के हुक्म से हर चीज़ को तबाह व बरबाद कर देगी तो वह ऐसे (तबाह) हुए कि उन के घरों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता था- हम गुनाहगार लोगों की यूं ही सज़ा किया करते हैं- और हम ने उन को ऐसे कामों में मक़दूर दिये थे जिन में तुम्हें (कुछ भी) मक़दूर नहीं दिया और उन्हें कान और आँख और दिल (सब कुछ दिये थे) तो चूंकि वह लोग ख़ुदा की आयतों से इंकार करने लगे तो न उन के कान ही कुछ काम आए और न उनकी आँखें और न उन के दिल और जिस (अज़ाब) की ये लोग हंसी उड़ाया करते थे उस ने उन को हर तरफ़ से घेर लिया
और (ऐ अहले मक़्का) तुम ने तुम्हारे इर्द गिरद् की बस्तियों को(1) हलाक कर मारा और (अपनी कुदरत की) बहुत सी निशानियां तरह-तरह से दिखा दें ताकि ये लोग बाज़ आए (मगर कौन सुनता है) तो खुदा के सिवा जिनको उन लोगों ने तक़र्रब (ख़ुदा) के लिये माबूद बना रखा था उन्होंने (अज़ाब के वक़्त) उन की क्यों न मदद की बल्कि वह तो उन से ग़ाएब हो गये और उन के झूट और उन की अफ़तरा परदाज़ियों की ये हक़ीक़त थी
और जब हम ने जिनों में से कोई शख़्सों को तुम्हारी तरफ़ मुतवज्जा किया कि वह दिल लगा कर कुरआन सुने तो जब इसके पास हाज़िर हुए तो एक दूसरे से कहना लगे ख़ामोश बैठे (सुनते) रहो फि़र जब (पढ़ना) तमाम हुवा तो अपनी क़ौम की तरफ़ वापिस गये कि (उनको अज़ाब से) डराएं तो उन से कहना शुरू किया कि ऐ भाईयों हम एक किताब सुन आए है जो मूसा के बाद नाजिल हुई है (और) जो (किताब) पहले (नाज़िल हुई) है उन की तसदीक़ करती है सच्चे (दीन) और सीधी राह की हिदायत करती है
ऐ हमारी क़ौम ख़ुदा की तरफ़ बुलाने वाले की बात मानों और ख़ुदा पर ईमान लाओ वह तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और (क़यामत) में तुम्हें दर्दनाक अजाब से पनाह में रखेगा- और जिस ने ख़ुदा की तरफ़ बुलाने वाले की बात न मानी तो (याद रहे कि) वह (ख़ुदा को रुए ) ज़मीन में आजिज़ नहीं कर सकता और न उन इसके सिवा कोई सरपरस्त होगा- यही लोग गुमराही में हैं- क्या इन लोगों ने यह नहीं गौर किया कि जिस ख़ुदा ने सारे आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उन के पैदा करने से ज़री भी थमा नहीं- वह इस बात पर क़ादिर है कि मुरदों को ज़िन्दा करेगा- हां (ज़रुर) वह यक़ीनन हर चीज़ पर क़ादिर है- और जिस दिन कुफ़्फ़ार (जहन्नुम की) आग के सामने पेश किये जाएंगे (तो उन से पूछा जाएगा) क्या अब भी ये बरहक़ नहीं है- वह लोग कहेंगे अपने परवरदिगार की क़स्म हां (हक़ है) ख़ुदा फ़रमाएगा तो लो अब अपने इंकार और कुफ़्र के बदले अजाब के मज़े चखो तो (ऐ रसूल) पैग़म्बरों में जिस तरह(1) और ऊलुल अज़्म (आली हिम्मत) सब्र करते रहे तुम भी सब्र करो और उनके लिये (अज़ाब) की ताजील की ख़्वाहिश न करो- जिस दिन ये लोग इस (क़यामत) को देखेंगे जिस का उन से वादा किया जचाता है तो (उनको मालूम होगा कि) गोया ये लोग (दुनिया में) बहुत रहे होंगे तो सारे दिन में से एक घड़ी भर तो बस वही लोग हलाक होंगे जो बदकार थे।

सूरऐ मुहम्मद

सूरऐ मुहम्मद मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 38 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और (लोगों को) ख़ुदा के रास्ते से रोका ख़ुदा ने उन के आमाल अकारत कर दिये और जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किये (और जो किताब) मुहम्मद पर उन के परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई है और वह बरहक़ है इस पर ईमान लाये तो ख़ुदा ने उनके गुनाह उनसे दूर कर दिये और उनकी हालत सवार दी- यह इस वजह से की काफ़िरों ने झूची बात की पैरवी की और ईमान वालों ने अपने परवरदिगार का सच्चा दीन इख़्तियार किया- यूं ख़ुद लोगों के समझाने के लिये मिसालें बयान करता है
तो जब तुम काफ़िरों से भिड़ो तो (उनकी) गरदनें मारो यहां तक कि जब उन्हें जख़्मों से चूर कर डालो तो उनके मुश्कें कस लो फिर उसके बाद या तो एहसान रख (कर छोड़ देना) या मुआवज़ा लेकर न यहां तक कि (दुश्मन) लड़ाई के हथियार(1) रख कर दें यह (याद रखो) और अगर खुदा चाहता तो (और तरह) उनसे बदला ले लेता अगर उसने चाहा कि तु्म्हारी आज़माईश(2) एक दूसरे से (लड़वाकर) करें और जो लोग ख़ुदा की राह में शहीद किये गये उनकी कारगुज़ारियों को ख़ुदा हरगिज़ अकारता ना करेगा उन्हें अन क़रीब मंज़िले मक़सूद तक पहुंचायेगा और उनकी हालत संवार देगा और उनको बेहिश्त में दाख़िल करेगा जिस का उ्न्हें (पहले से) शानासा कर रखा है
ऐ ईमानदारों। अगर तुम खुदा (के दीन) की मदद करोगे तो वह भी तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें(3) साबित क़दम रखेगा- और जो लोग काफ़िर हैं उनके लिये तो डगमगाहट(1) है और खुदा (उनके) आमाल को बरबदाद कर देगा- यह इसलिये कि ख़ुदा ने जो चीज़ नाज़िल फ़रमायी उन्होंने उसको (नापसंद किया) तो ख़ुदा ने उनकी कारस्तानियों को अकारत कर दिया तो क्या यह लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं तो देखते कि जो लोग उनसे पहले थे उनका अंजाम कैसा (ख़राब) हुआ कि ख़ुदा ने उन पर तबाही डाल दी और इसी तरह (उन) काफ़िरों को भी (सज़ा मिलेगी) यह इस वजह से की ईमानदारो का ख़ुदा सरपरस्त है और काफ़िरों का हरगिज़ कोई सरपरस्त नही
ख़ुदा उन बागों में जा पहुंचायेगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं और इसी तरह (बेफ़िक्री से) ख़ाते (पीते) हैं वह (दुनिया में) चैन करते हैं और इसी तरह (बेफ़िक्री से) खाते (पीते हैं) जैसे चारपाये खाते पीते हैं आख़िर उनका ठिकाना जहन्नुम है और जिस बस्ती में तुमको लोगों ने निकाल दिया(2) इस से जो़र में कीहं बढ़ चढ़ के बहुत सी बस्तियां थी जिनको हमने तबाह व बरबाद कर दिया तो उनका कोई मददगार भी नहीं हुआ तो क्या जो शख़्स अपने परवरदिगार की तरफ़ से रोशन दलील पर हो उस शख़्स के बराबर हो सकता है जिसकी बदकारियां उसे भली कर दिखायी गयी हों- और अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशों पर चलते हो- जिस बेहिश्त का परहेज़गारों से वादा किया जाता है उस की सिफ़त यह है कि उसमें पानी की नहरें जिनमें ज़रा बू नहीं और दूध की नहरें हैं जिसका मज़ा तक नहीं बदला और शराब की नहरें हैं जो पीने वालों के लिये (सरासर) लज़्ज़त है और साफ़ सफ़ाफ़ शहद की नहरें हैं और वहां उनके लिये हर ख़िस्म के मेवे हैं और उनकी परवरदिगार की तरफ़ से बख़शिश है
(भला यह लोग) उनके बराबर हो सकते हैं जो हमेशा दोज़ख़ में रहेगें और उनको ख़ौलता हुआ पानी पिलाया जायेगा तो वह आतों के टुकड़े-टुकड़े कर डालेगा और (ऐ रसूल) उनमें से बाज़ ऐसे भी हैं जो तुम्हारी तरफ़ कान लगाये रहते हैं यहां तक कि सब सुन सुना कर जब तुम्हारे पास से निकलते हैं तो जिन लोगों को इल्म (कुरान) दिया गया है उनसे कहते हैं (क्यों भाई) अभी इस शख़्स ने किया था यह वही लोग हैं जिनके दिलों पर ख़ुदा ने (कु़फ़्र की) अलामत मुक़र्रर कर दी है और यह अपनी नफ़सीयानों ख़्वाहिशों पर चल रहे हैं- और जो लोग हिदायत याफ़्ता हैं उनको ख़ुदा (कुरान के जरिये से) मज़ीद हिदायत करता है और उन को परहेज़गारी अता फ़रमाता है- तो क्या यह लोग बस क़यामत ही के मुनतज़िर है कि उन पर एक बारगी आ जाये तो उसकी निशानियां(1) आ चुकी हैं तो जिस वक़्त कयामत उन (के सर) पर आ पहुँचेगी फिर उन्हें नसीहत कहां मुफ़ीद हो सकती है- तो फिर समझ लो कि ख़ुदा के सिवा कोई नहीं और (हमसे) अपने(1) और ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों के गुनाहों की माफ़ी मांगते रहो- और ख़ुदा तुम्हारे चलने फिरने और ठहरने से (ख़ूब) वाक़िफ़ है
और मोमेनीन कहते हैं कि (जेहाद के बारे में) कोई सूरा क्यों नहीं नाज़िल होता- लेकिन जब कोई साफ़ सरीह मानों का सूरा नाज़िल हुवा और उसमें जेहाद का बयान हो तो जिन लोगों के दिल में (नफ़ाक़) का मर्ज़ है तुम उनको देखोगे कि तुम्हारी तरफ़ इस तरह देखते हैं जैसे किसी पर मौत की बेहोशी (छायी) हो (कि उसकी आंखे पथरा जायें) तो उन पर वाए हो (उनके लिये अच्छा काम तो) फ़रमाबरदारी और पसंदीदा बात है- फिर जब लड़ाई ठन जाये तो अगर यह लोग ख़ुदा से सच्चे रहें तो उनके हक़ में बहुत-बेहतर है- (मुनाफ़क़ो) क्या तुम से कुछ दूर है कि अगर तुम हाकिम हो तो रूए ज़मीन में फ़साद फैलाने और अपने रिश्ते-नातों को तोड़ने लगो- यह वही लोग हैं जिन पर ख़ुदा ने लानत की है- और (गोया ख़ुदा उसने) उन (के कानों) को बहरा और उनकी आँखों को अंधा कर दिया है तो क्या यह लोग कुरान में (ज़रा भी) ग़ौर नहीं करते या (उनके) दिलों पर ताले (लगे हुए) हैं बेशक जो लोग राहे हिदायत साफ़-साफ़ मालूम होने के बाद उल्टे पांव (कुफ्र की तरफ़) फिर(1) गये शैतान ने उन्हें (तबे देकर) ढील दे रखी है और उनकी (तमन्नाओं) की रस्सियां दराज़ कर दी हैं यह इसिलये कि जो लोग ख़ुदा की नाज़िल की हुई (किताब) से बेज़ार हैं यह उनसे कहते हैं कि बाज़ कामों में हम तुम्हारी ही बात मानेंगे और ख़ुदा उनके पोशीदा मश्विरों से वाक़िफ़ हैं- तो जब फ़रिश्ते उसकी जान निकालेंगे उस वक़्त उनका क्या हाल होगा कि उनके चेहरों पर और उनकी पुश्त पर मारते जायेंगे
 यह इस सबब से कि जिस चीज़ों से ख़ुदा नाखुश है उसकी तो यह लोग पैरवी करते हैं और जिसमें(2) ख़ुदा की खुशी है उससे बेज़ार हैं तो ख़ुाद ने भी उनकी कारस्तानियों को अकारत कर दिया- क्या वह लोग जिनके दिलों में (नफ़ाक़ का) मर्ज़ है यह ख़्याल करते हैं कि ख़ुदा दिल के कीनों को कभी ज़ाहिर न करेगा- और अगर हम चाहते तो हम तुम्हें उन लोगों को दिखा देते तो तुम उन की पेशानी ही से उनको पहचान लेते और तुम उन्हें उनके अन्दाज़े गुफ़्तगू ही से ज़रुर पहचान लोगे और ख़ुदा तो तुम्हारे अमाल से वाक़िफ़ है- और हम तुम लोगों को ज़रुर आज़मायेंगे ताकि तुम में जो लोग जेहाद करने वाले और (तकलीफ़) झेलने वाले हैं उनको देख लें और तुम्हारे हालात जांच लें- बेशक जिन (1) लोगों पर (दीन की) सीधी राह साफ़ ज़ाहिर हो गयी उसके बाद इन्कार कर बैठे और (लोगों को) ख़ुदा की राह से रोका और पैगम़्बर स0 की मुख़ालेफ़त की तो ख़ुदा का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे और वह उनका सब किया कराया अकारत कर देगा- ईमानदारों ख़ुदा का हुक्म मानो और रसूल की फ़रमाबरदारी करो और अपने आमाल को ज़ाया न करो- बेशक जो लोग काफ़िर हो गये हैं और लोगों को ख़ुदा की राह से रोका, फिर काफ़िर ही मर गये तो ख़ुदा उनको हरगिज़ नही बख़्शेगा तो तुम हिम्मत न हारो और (दुश्मनों को) सुलह की दावत दो- तुम ग़ालिब हो ही और ख़ुदा तो तुम्हारे साथ है और हरगिज़ तुम्हारे आमाल (के सवाब को कम न करेगा) दुनियावी ज़िन्दगी तो बस खेल तमाशा है अगर तुम (ख़ुदा पर) ईमान रखोगे और परहेज़गारी करोगे तो वह तुम को तुम्हारे अज्र इनायत फ़रमायेगा और तुम से तुम्हारे माल नहीं तलब करेगा और अगर वह तुमसे माल तलब करे और तुम से चिमट कर मांगे भी तो तुम (ज़रुर) बुख़्ल करने लगो और ख़ुदा तुम्हारे कीना को ज़रुर जाहिर करके रहेगा- देखों तुम लोग वही तो हो कि ख़ुदा की राह में ख़र्च के लिये बुलाये जाते हो तो बाज़ तुम में ऐसे भी हैं जो बुख़ल करते हैं और (याद रहे कि) जो बुख़्ल करता है तो ख़ुद अपने ही से बुख़्ल करता है और ख़ुदा तो बेनियाज़ है और तुम (उसके) मोहताज हो और अगर तुम (ख़ुदा के हुक्म से) मु्ंह फेरोगे तो ख़ुदा (तुम्हारे सिवा) दूसरों को बदल देगा- और वह तुम्हारे ऐसे (बख़ील) न होंगे।

सूरऐ फ़त्ह

सूरऐ फ़त्ह मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 26 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(ऐ रसूल) यह हुदैबिया की सुलह नहीं बल्कि हमने हक़क़तन तुम को खु्ल्लम खुल्ला फ़तह अता की ताकि ख़ुदा तुम्हारी उम्मत के अगले और पिछले गुनाह माफ़ कर दे(2)
और तुम पर अपनी नेयमत पूरी करे और तुम्हें सीधी राह पर साबित क़दम रखे- और ख़ुदा तुम्हारी(2) ज़बरदस्त मदद करे- वह वही (ख़ुदा) तो है जिसने मोमनीन के दिलों में तसल्ली नाज़िल फ़रमायी ताकि अपने (पहले) ईमान के साथ और ईमान को बढ़ाये और सारे आसमान व ज़मीन के लश्कर तो ख़ुदा ही के हैं और ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़क़ार हकीम है ताकि मोमिन मर्द और मोमिना औरतों को (बेहिश्त) के बागों में जा पहुँचाये जिनके नीचे नहरें जारी हैं और यह वहां हमेशा रहेंगे और इनके गुनाहों को इनसे दूर कर दैगा और वह ख़ुदा के नज़दीक बड़ी कामयाबी है और मुनाफ़िक़ मर्द और मुमाफ़िक़ औरतों और मुशरिक मर्द और मुशरिक औरतों पर जो ख़ुदा के हक में बुरे-बुरे ख़्याल रखते हैं अज़ाब नाज़िल करे उन पर (मुसीबत की) बड़ी गरदिश है और ख़ुदा उन पर गज़बनाक है और उसने उस पर लानत की है और उनके लिये जहन्नुम को तैयार कर रखा है और वह (क्या) बुरी जहगह है और सारे आसमान व ज़मीन के लश्कर ख़ुदा ही के हैं और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफ़कार (और) ग़ालिब है
(ऐ रसूल) हमने तुम को (तमाम आलम का) गवाह और ख़ुशख़बरी देने वाला और धमकी देने वाला (पैग़म्बर बना कर) भेजा ताकि के (मुसलमानों) तुम लोग ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसकी मदद करो और उसको बुजुर्ग समझो और सुबह और शाम उसकी तस्बीह करो- बेशक जो लोग तुम से बैअत करते हैं- ख़ुदा की कुव्वत व क़ुदरत तो सब की कुव्वत पर ग़ालिब है तो जो अहद को तोडेगा तो अपने नुक़सान के लिये अहद तोड़ता है और जिसने इस बात को जिस का उसने ख़ुदा से अहद किया है पूरा किया तो उसको अनक़रीब ही अर्जे अज़ीम अता फ़रमायेगा- (जो गवार)(1) देहाती (हुदैबिया से) पीछे रह गये- अब वह तुम से कहेंगे कि हम को हमारे माल और लड़े वालों ने रोक रखा, तो आप हमारे वास्ते (ख़ुदा से) मग़फ़िरत की दुआ मांगिये, यह लोग अपनी ज़बान से ऐसी बातों कहते हैं जो उनके दिल में नहीं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर ख़ुदा तुम लोगों को नुकसान पहुँचाना चाहे या तुम्हें फ़ायदा पहुंचाने का इरादा करे तो ख़ुदा के मुक़ाबले में तुम्हारे लिये किस का बस चल सकता है बल्कि जो कुछ तुम करते हो ख़ुाद उससे ख़ूब वाक़िफ़ है यह फ़क़त तुम्हारे हीले हैं बात यह है कि तुम यह समझे बैठ थे कि रसूल और मोमेनीन हरगिज़ कभी अपने लड़के बालों में पलट कर आने ही के नहीं (और सब मार डाले जायेंग) और यही बात तुम्हारे दिलों में खप गयी थी
(इसी वजह से) तुम तरह-तरह की बदगुमानियां करने लगे थे (आख़िर कार) तुम लोग आप बरबाद हुए और जो शख़्स ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान न लाये तो हमने (ऐसे) काफ़िरों के लिये जहन्नुम की आग तैयार कर रखी है- और सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत ख़ुदा ही की है- जिसे चाहे बख़्श दे और जिसे चाहे सज़ा दे और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (मुसलमानों) अब जो तुम (ख़ैबर की) ग़नीमतों के लेने को जना लगोगे तो जो लोग (हुदैबिया से) पीछे रह गये थे तुम से कहेंगे कि हमें भी अपने साथ चलने दो- या चाहते हैं कि ख़ुदा के क़ौल के बदल दें तुम (साफ़) कह दो कि तुम हरगिज़ हमारे साथ नहीं चलने पाओगे ख़ुदा ने पहले ही से ऐसा फ़रमा दिया है तो ये लोग कहेंगे कि तुम लोग तो हम से हसद रखते हो (ख़ुदा ऐसा क्या कहेगा) बात ये है कि ये लोग बहुत ही कम समझते हैं कि जो गँवार पीछे रह गए थे कि इन से कह दो कि अनक़रीब ही तुम एक सख़्त जंगजू क़ौम के (साथ लड़ने के लिए) बुलाए(1) जाओगे कि तुम (या तो) इन से लडते ही रहोगे या मुसलमान ही हो जाएंगे- पस अगर तुम (ख़ुदा का) हुक्म मानोगे तो ख़ुदा तुम को अच्छा बदला देगा और अगर तुम ने जिस तरह पहली दफ़ा सरताबी की थी अब भी सरताबी करोगे तो वह तुम को दर्दनाक अज़ाब की सज़ा देगा- (जिहाद से पीछे रह जाने का) न तो अंधे ही पर कुछ गुनाह है और न लंगड़े पर गुनाह है और न बीमार पर गुनाह है और जो शख़्स ख़ुदा और उसके रसूल का हुक्म मानेगा तो वह इस को (बेहिश्त के) उन सदाबहार बाग़ों में दाख़िल करेगा जिन के नीचे नहरें जारी होंगी और जो सरताबी करेगा वह इस को दर्दनाक अज़ाब की सज़ा देगा- जिस वक़्त मोमिन तुम से दरख़्त के नीचे (लड़ने मरने) की बेअत कर रहे थे-
तो ख़ुदा इन से (इस बात पर) ज़रुर ख़ुश हुआ (2)-ग़रज़ जो कुछ इन के दिलों मे था ख़ुदा ने उसे देख लिया फिर उन पर तसल्ली नाज़िल फ़रमाई और उन्हें इस के एवज़ में बहुत जल्द फ़ताह इनायत की और (इसके अलावाह) बहुत सी ग़नीमते (भी) जो उन्होंने हासिल की (अता फरमाई) और ख़ुदा को ग़ालिब (और) हिकमत वाला है ख़ुदा ने तुम से बहुत सी ग़नीमतों का वादा फ़रमाया था, कि तुम इन पर काबिज़ होंगे तो उसने तुम्हे ये (ख़ैबर की ग़नीमतें) जल्दी से दिलवा दी और (हुदैबिया से) लोगों की दराज़ी को तुम से रोक दिया और ग़र्जड ये थी कि मोमीनीन के लिए (कुदरत) का नमुना(2) हो- और ख़ुदा तुम को सीधी राह पर ले चले और दूसरी(3) (ग़नीमतें भी दी) जिन पर तुम कुदरत नहीं रखते थे (और) ख़ुदा ही इन पर हावी था और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर है
और अगर कुफ़्फ़ार तुम से लड़ते तो ज़रुर पीठ फेर कर भाग जाते फिर वह न (अपना) किसी को सरपरस्त ही पाते न मददगार यही ख़ुदा की आदत है जो पहले ही से चली आती है और तुम ख़ुदा की आदत को बदलते न देखोंगे- और वही तो है जिसने तुम को इन कुफ़्फ़ार पर फ़ताह(4) देने के बाद मक्का की सरहद पर उनके हाथ तुम से और तुम्हारे हाथ उन से रोक दिए और तुम लोग जो कुछ भी करते थए ख़ुदा उसे देख रहा था ये वही लोग तो हैं जिन्होंने कुफ़्र किया है तुम को मस्जिदुल हराम (में जाने) से रोका- और कुरबानी के जानवरों को भी (न आने दिया) कि वह अपनी (मुक़र्रर) जगह (में) पहुँचने से रुके रहे और अगर(1) कुछ ऐसे ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें न होती जिन से तुम वाक़िफ़ न थे कि तुम इन को (लडाई में कुफ़्फ़ार के साथ) पामाल कर डालते- तुम को इन की तरफ़ से बे ख़बरी में नुक़सान पहुंच जाता (तो उसी वक़्त तुम को फ़ताह हुई मगर ताख़ीर से) इसलिए (हुई) कि ख़ुदा जिसे चाहे अपनी रहमत में दाख़िल करे और अगह वह (ईमानदार कुफ़्फार से) अलग हो जाते तो उनमें से जो लोग काफ़िर थे हम उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ज़रुर सज़ा देते (ये वह वक़्त) था जब काफिरों ने अपने दिलों में ज़िद ठान ली थी और ज़िद भी जाहेलियत की सी तो ख़ुदा ने अपने रसूल स0 और मोमीनीन (के दिलों) पर अपनी तरफ़ से तस्कीन ना़ज़िल फरमाई और उन को परहेज़गारी की बात पर क़ाएम रखा- और ये लोग उसी के सज़ावार और अहल भी थे और ख़ुदा तो हर चीज़ से ख़बरदार है
बेशक ख़ुदा ने अपने रसूल स0 को सच्चा मुताबिक़ वाक़ेअ ख़्वाब दिखाया था कि तुम लोग इंशा अल्लाह मस्जिदुल हराम में अपने सर मुंडवा कर और अपने थोड़े से बाल कतरवा कर बहुत अमन व अमान दाख़िल होगे (और) किसी तरह का ख़ौफ़ न करोगे तो जो बात तुम नहीं जानते थे इस को मालूम थी तो उसने फ़ताह मक्का से पहले ही बहुत जल्द फ़ताह (ख़ैबर) अता की वह वही तो है जिसने अपने रसूल की हिदायत और सच्चा दीन देकर भेजा ताकि इस को तमाम दीनों पर ग़ालिब रखे और गवाही के लिए तो बस ख़ुदा की काफ़ी है- मुहम्मद स0 ख़ुदा के रसूल हैं और जो लोग(1) उन के साथ हैं काफि़रों पर बड़े सख़्त और आपस में बड़े रहम दिल हैं तो उनको देखेगा (कि ख़ुदा के सामने) झुके सर बावजूद हैं ख़ुदा के फ़ज़्ल और उसकी खुशनूदी के ख़्वास्तगार हैं कसरत सजूद के असर से उनकी पेशानियों में घट्टे पड़े हुए हैं यही औसाफ़ उनके तौरैत में भी हैं और यही हालात इन्जील में (भी मज़कूर ) हैं वह गोया एक ख़ेती है जिस ने (पहले ज़मीन से) अपनी सुई निकाली फ़िर (अज़माए जमीन को ग़िज़ा बना कर) इसी सूई को मज़बूत किया तो वह मोटी हुई फ़िर अपनी जड़ पर सीधी खड़ी हो गई और अपनी ताज़गी से किसानों को ख़ुश करने लगी (और इतनी जल्दी तरक्की इस लिये दी) ताकि उनके ज़रिये काफ़िरों का जी जलाए जो लोग(2) ईमान लाए और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे ख़ुदा ने उन से बख़्शिश और अज्रे अज़ीम का वादा किया है।

सूरऐ हुजरात

सूरऐ हुजरात मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 18 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
ऐ ईमानदारों। ख़ुदा और उसके रसूल के सामने किसी बात में आगे न बढ़ जाया-करो और ख़ुदा से डरते रहो- बेशक ख़ुदा बड़ा सुने वाला वका़फ़िकार है- ऐ ईमानदारों (बोलने में) तुम अपनी आवाज़े पैग़म्बर की आवाज़ से ऊँची(1) न किया करो और जिस तरह तुम आपस में एक दूसरे से ज़ोर (ज़ोर) से बोला करते हो उन के रूबरू ज़ोर से न बोला करो (ऐसा न हो कि) तुम्हारा किया कराया सब अकारत हो जाए और तुम को ख़बर भी न हो- बेशक जो लोग रसूल ख़ुदा स0 के सामने अपनी आवाज़े धीमी कर लिया करते हैं
यही लोग हैं जिनके दिलों को ख़ुदा ने परहेज़गारी के लिये जांच लिया है उन के लिए (आख़ेरत में) बख़्शिश और बड़ा अज्र है- (ऐ रसूल) जो लोग तुम को हुजरों के बाहर से आवाज़े देते हैं उन में के अक्सर बेअक़ल हैं और। अगर ये लोग इतना तअम्मुल करते कि तुम ख़ुद निकल कर उन के पास आ जताे (तब बात करते) तो ये उनके लिए बेहतर था और ख़ुदा तो बड़ा ब़ख़्शने वाला मेहरबान(2) है ऐ ईमानदारों अगर कोई बदकिरदार तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो खूब तहक़ीक़ कर लिया(3) करो (ऐसा न हो) कि तुम किसी क़ौम को नादानी से नुक़सान पहुँचाओ-फिर अपने किये पर नादिम हो- और जान रखों कि तुम में ख़ुदा के पै़ग़म्बर (मौजूद) हैं बहुतेरी बातें ऐसी हैं कि अगर रसूल उनमें तुम्हारा कहा मान लिया करें तो (उल्टे) तुम ही मुश्किल में पड जाओ लेकिन ख़ुदा ने तो तुम्हें ईमान की मुहब्बत दे दी है
और उसको तुम्हारे दिलों में उम्दा कर दिखाया है- और कुफ़्र और बदकारी और नाफ़रमानी से तुमको बेज़ार करस दिया है- यही लोग ख़ुदा के फ़ज्ल व अहसान से राहे हिदायत पर हैं और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफ़कार हिकमत वाला है- और अगर मोमिनीन(1) में से दो फ़िरके आपस में लड़ पडे़ं तो उन दोनों में सुलह करा दो- फ़िर अगर उनमें से एक (फ़रीक़) दूसरे पर ज़्यादती करे तो जो (फ़िरक़ा) ज़्यादती करे तुम (भी) उस से ल़़ो-यहां तक कि वह ख़ुाद के हक्म की तरह़ रुजूअ करे, फिर जब रूजुअ करे तो फ़रीक़ैन में मसावात के साथ सुलह करा दो- और इंसाफ़ से काम लो, बेशक खु़दा इंसाफ करने वालों को दोस्त रखता है- मोमिनीन तो आपस में बस भाई-भाई हैं तो अपने दो भाइयों में मेल-जोल करा दिया करो
और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाए-ऐ ईमानदारों (तुम में से किसी क़ौम का) कोई मर्द (दूसरी क़ौम के) मरदों की हंसी(1) न उड़ाओ-मुमकिन है कि वह लोग (ख़ुदा के नज़दीक) उन से अच्छे हों और न औरतें(2) औरतों से (तमस्ख़ुर करें) क्या अजाब है कि वह उनसे अच्छी हों और तुम आपस में एक दसूरे को मिलने न दो- न एक दूसरे को बुरा नाम धरो- ईमान लाने के बाद बदकारी(का) नाम ही बुरा है और जो लोग बाज़ न आए तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं- ऐ ईमानदारों। बहुत से गुमान (बद) स बचे रहो क्योंकि बाज़ बदगुमानी गुनाह हैं और आपस मे एक दूसरे के हाल की टोह में न रहा करो- और ना तुममें से एक दूसरे की ग़ीबत(3) करे क्या तुम में से कोई इस बात को पसंद करेगा कि अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाए तो तुम उससे (ज़रुर) नफ़रत करोगे और खुदा से डरो,
बेशक ख़ुदा बड़ा तौबा कुबुल करने वाला मेहरबान है लोगों हमने तुम सब को एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और हम ही ने तुम्हारे क़बीले और बिरादरियाँ बनाई ताकि एक दूसरे को शिनाख़्त कर लें इसमें शक नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक तुम सब में बड़ा इज़्जतदार वही है जो बड़ा परहेज़गार हो- बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार ख़बरदार है- अरब के देहाती कहते हैं कि हम ईमान लाए (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम ईमान नहीं लाए बल्कि (यूँ) कहो कि इस्लाम लाए हालाँकि ईमान का अभी तक(1) तुम्हारे दिलों में गुज़र हुवा ही नहीं और अगर तुम ख़ुदा की और उसके रसूल की फ़रमाबरदारी करोगे तो ख़ुदा तुम्हारे आमाल में से कुछ कम नहीं करेगा बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबानर है- (सच्चे मोमिन) तो बस वही है जो ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए फ़िर उन्होंने इसमें किसी तरह का शक व शुबह न किया और अपने माल से और अपनी-अपनी जानों से खुदा का राह में जिहाद किया वो ही लोग (दावा ऐ ईमान में) सच्चे हैं
(ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि क्या तुम ख़ुदा को अपनी दीनदारी जताते हो और खु़दा तो जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़र्ज़ सब कुछ) जानता है और ख़ुदा हर चीज़ से ख़बरदार है- ऐ रसूल तुम पर ये लोग (इस्लाम लाने का) अहसान जताते हैं तुम (साफ़) कह दो कि तुम अपने इस्लाम का मुझ पर अहसान न जताओ (बल्कि) अगर तुम (दावाए ईमान में) सच्चे हो तो (समझो कि) ख़ुदा ने तुम पर अहसान किया(2) कि उसने तुम को ईमान का रास्ता दिखाया- बेशक कुदा तो सारे आसमानों और ज़मीन की छिपी हुई बातों को जानता है- और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है।

सूरऐ क़ाफ़

सूरऐ क़ाफ़ मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 45 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
क़ाफ़- कुरआन मजीद की क़सम (मुहम्मद पैगम़्बर है) लेकिन उन (क़ाफ़िरों) को ताजुब है कि उन ही में एक (अज़ाब से) डराने वाला (पैग़म्बर) उन के पास आ गया तो कुफ़्फ़ार कहने लगे ये तो एक अजीब बात है- भला जब हम मर जाएंगे और (सड़ गल कर) मिट्टी हो जाएंगे तो फिर ये दुबारा ज़िन्दा होना (अक़ल से) बईद (बात है) उन के जिस्मों से ज़मीन जिस चीज़ को (ख़ा-ख़ा कर) कम करती है वह हम को मालूम है और हमारे पास तो तहरीरी याद्दाश्त किताब (लौह) महफूज़ (मौजूद) है मगर जब उकने पास दीने हक़ आ पहुंचा तो उन्होंने इसे झुटलाया तो वह लोग एक ऐसी बात में (उलझे हुए) हैं जिसे क़रार नहीं तो क्या उन लोगों ने अपने ऊपर आसमानों की तरफ़ नज़र नहीं की कि हम ने उस को क्यों कर बनाया और उस को (कैसी ज़ीनत) दी और इस में कहीं शिगाफ़ तक नहीं
और ज़मीन को हम ने फ़ैलाया और इस पर बोझल पहाड़ रख दिये और इस में हर तरह की खुशनुमा चीज़ें उगाएं- ताकि तमाम रुजूअ लाने वाले (बंदे) हिदायत और इबरत हासिल करें- और हमने आसमान से बरकत वाला पानी बरसाया तो इस से बाग़ (के दरख़्त) उगाए और खेती का अनाज और लम्बी-लम्बी खजूरें जिस का बौर बाहम गुतहा हुआ होता है (ये सब कुछ) बन्दों की रोजी देने के लिए (पैदा किया) और पानी ही से हमने मुर्दा शहर (उफ़्तादाह ज़मीन) को ज़िन्दा किया उसी तरह (क़यामत में मुर्दो को) निकलना होगा
इन से पहले नूह की क़ौम और ख़न्दक़ वालों(1) और (क़ौम) समूद ने अपने पैग़म्बर को झुठलाया और (कौ़म) आद और फ़िरऔऩ और लूत की क़ौम और बन के रहने वालों (क़ौम शुएैब) और तबअ की क़ौम (इन) सब ने (अपने अपने) पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमारा (अज़ाब का) वादा पूरा होकरस राह तो क्या हम पहली बार पैदा करके थक गए हैं (हरगिज़ नहीं) मगर ये लोग अज़सरसे नौ (दोबारा) पैदा करने की निस्बात शक में पड़ते हैं- और बेशक हम ही ने इन्सान को पैदा किया और जो ख़्यालात दिल में गुज़रते हैं हम उनको जानते हैं और हम तो उसकी शै रग से भी ज़्यादा क़रीब हैं जब (वह कोई काम करता है तो दो(2) लिखने वाले (करामन कातेबीन) जो (इसके) दाहिने बाएं बैठे हैं लिख लेते हैं- कोई बात उसकी ज़बान पर नहीं आती मगर एक नीगेहबान इस के पास तैयार रहता है
मौत की बेहोशी यक़ीनन तारी होगी (तो हम बता देंगे कि) यही तो वह (हालत) है जिस से तू भागा करता था- और सूर फूंका जाएगा- यही (अज़ाब) के वादा का दिन है और हर शख़्स (हमारे सामने इस तरह) हाज़िर होगा- कि इस के साथ एक (फ़रिश्ता) हंका लाने वाला होगा- और एक (आमाल का) गवाह (उस से कहा जाएगा कि इस दिन) से तो ग़फ़लत में पड़ा था तो हमने तेरे सामने से पर्दा को हटा दिया तो आज तेरी निगाहें बड़ी तेज़ हैं और उसका साथी (फ़रिश्ता) कहेगा ये (इस का अमल) जो मेरे पास है हाज़िर है (तब हुक्म होगा कि) तुम दोनों(1) हर सरकश नाशुक्र को दोज़ख़ में डाल दो- जो (वाजिब हकूक़ से) माल में बुख़्ल करने वाला- हद से बढ़ने वाला (दीन में) शक करने वाला था- जिस ने ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद बना कर रखे थे- तो अब तुम दोनों इस को सख़्त अज़ाब में डाल ही दो (उस वक़्त) उस का साथी (शैतान) कहेगा परवरदिगार हमने उस को गुम्राह नहीं किया था बल्कि ये तो ख़ुद सख़्त गुम्राही में मुब्तेला था
(इस पर) ख़ुदा फ़रमाएगा- हमारे सामने झगड़े न करो मैं तो तुम लोगों को पहले ही (अज़ाब से) डरा चुका था- मेरे यहां बात बदला नहीं करती और न मैं बन्दों पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म करने वालो हूं उस दिन हम दोज़ख से पूछेंगे कि तू भर चुकी और वह कहेगा क्या कुछ और भी है- और बेहिश्त परहेज़गारों के बिल्कुल क़रीब कर दी जाएगी- यही तो वह बेहिश्त है जिस का तुम में से हर एक (ख़ुदा की तरफ़) रूजू करने वाला (हदूद की) हिफ़ाज़त करने वाले से वादा किया जाता है तो जो शख़्स ख़ुदा से बे देखे डरता रहा और ख़ुदी की तरफ़ रुजू करने वाला दिल ले कर आया (इस को हुक्म होगा कि) इसमें सही सलामत दाख़िल हो जाओ- यही तो हमेशा रहने का दिन है- इस मे ये लोग जो चाहेंगे इन के लिए हाज़िर है और हमारे यहां तो (इस से भी) ज़्यादा है
और हम ने तो इन से पहले कितनी उम्मतें हलाक कर डालीं जो इनसे कुव्वत में कहीं बढ़ कर थी तो इन लोगों ने (मौत के ख़ौफ़ से) तमाम शहरों को छान मारा कि भला कीहं भी भागने का ठिकाना है- इस में शक नहीं कि जो शख़्स (आगाह) दिल रखता है या कान लगा कर हुजूरे क़ल्ब से सुनता है इश के लिए इस में (काफ़ी) नसीहत है- और हम ने ही यक़ीनन सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ दोनों के बीच में है छः दिन में पैदा किए और तकान तो हम को छू कर भी नहीं गई तो (ऐ रसूल) जो कुछ ये (काफ़िर) लोग बका करते हैं इस पर तुम सब्र करो और आफ़ताब(1) के निकलने से पहले और (इसके) ग़रूब होने से पहले अपने परवरदिगार के हम्द की तस्वीह किया करो और थोड़ी देर रात क भी नमाज़ के दाब भी इस की तस्बीह(2) करो और कान लगा कर सुन रखो कि जिस दिन पुकारने वाला (इस्राफ़िल) नज़्दीक ही की जगह से आवाज़(3) देगा (कि उठो) जिस दिन लोग एक सख़्त चीख़ को बखूब सुन लेंगे
वही दिन (लोगों) के क़ब्रों से निकलने का होगा- बेशक हम ही (लोगों को) ज़िन्दा करते हैं और हम ही मारते हैं- और हमारी ही तरफ़ फिर कर आना है जिस दिन ज़मीन (उन के ऊपर से) फट जाएगी और ये झटपट निकल खड़े होंगे ये हैं उठाना और जमा करना-और हम पर बहुत आसान है (ऐ रसूल) ये लोग जो कुछ कहते हैं हम उसे खूब जानते हैं और तुम इन पर जब्र तो देते नहीं हो तो जो हमारे (अज़ाब के) वाअदे से डरें उस को तुम कुरआन के ज़रिए नसीहत करते रहो।

सूरऐ ज़ारियात

सूरऐ ज़ारियात मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 60 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
उन (हवाओं कि क़स्म) जो (बादलों को) उड़ा कर तितर बितर कर देती है फिर (पानी का) बोझ उठाती है फिर आइस्ता आइस्ता चलती है फिर एक ज़रूरी चीज़ (बारिश) को तक़सीम करती है कि तुम से जो वादा किया जाता है ज़रुर बिल्कुल सच्चा है- और (आमाल की) जज़ा (सज़ा) ज़रुर होगी- और आसमान की क़सम जिस में रहे तैं कि (ऐ अहले मक़्का) तुम लोग ऐसी मुख़तलिफ़(1) बे जो़ बात में पड़े हो कि इश से वही फेरा जाएगा (गुमराह होगा) जो (ख़ुदा के इल्म में) फेरा जा चुका है अटकल दौड़ाने वाले हलाक हो
जो ग़फ़लत मे भूले हुए (पड़े) हैं पूछते हैं कि जज़ा का दिन कब होगी इस दिन (होगा) जब उन को (जहन्नुम की) आग में अज़ाब दिया जाएगा- (और इन से कहा जाएगा) अपने अज़ाब का मज़ा चखो ये वही है- जिस की तुम जल्दी मचाया करते थे- बेशक परहेज़गार लोग (बेहिश्त के) बागों और चश्मों में (ऐश करते) होंगे जो उन का परवरदिगार उन्हें अता करता है ये (ख़ुश-खुश) ले रहे हैं ये लोग इस से लहले (दुनिया में) नेकूकार थे (इबादत की वजह से) रात को बहुत ही कम सोते थे और पिछले पहर को अपनी मग़फिरत की दुआएं करते थे और उन के माल में मांगने वाले और न मांगने वाले (दोनों) का हिस्सा था और यक़ीन करने वालों के लिए ज़मीन में (क़ुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं और खुद तुम में भी है तो क्या तुम देखते नहीं और तुम्हारी रोज़ी और जिस चीज़ड का तुम से वादा किया जाता है आसमान(1) में है- तो आसमान और ज़मीन के मालिक की क़सम ये (कुरआन) बिल्कुल ठीक है
जिस तरह तुम बातें करते हो- क्या तुम्हारे पास इब्राहीम के मुअज़जिज़ मेहमानों (फ़रिश्तें) की भी ख़बर पहुंची है कि जब वह लोग उकने पास आए तो कहने लगे (सलाम अलैकुम) तो इब्राहीम ने (अलैकुम) सलाम किया (देखो तो) ऐसे लोग जिन से जान न पहचान फिर अपने घर जाकरस जल्दी से (भुना हुआ) एक मोटा ताज़ा बछड़ा ले आए और उसे उनके आगे रख दिया- (फिर) कहने लगे आप लोग तनावल क्यों करते (इस पर भी न खाया) तो इब्राहीम उनसे जी ही जी मे डरे वह लोग बोले आप अंदेशा न करे- और इन को एक दानिश मन्द लड़के की ख़ुशख़बरी दी- तो (ये सुनते ही) इब्राहीम की बीवी (साराह) चिल्लाती हुई उनके सामने आइ और अपने मुंह पीठ लिया कहने लगी (ऐ है) एक तो (मैं) बुढिया (इस पर) बांझ लड़का क्यों कर होगा
फ़रिश्ते बोले तुम्हारे परवरदिगार ने यूं ही फ़रमाया है- वह बेशक हिकमत वाला वाक़िफ़कार है।

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