तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-25

कुरआन मजीद
Typography
  • Smaller Small Medium Big Bigger
  • Default Helvetica Segoe Georgia Times

क़यामत के इल्म का जवाला उसी की तरफ़ है (यानी वही जानता है) और बग़ैर उस के इल्म व (इरादा) के न तो फ़ल अपने पोरों से निकलेत हैं और न किसी औरत को हमल रहता है और न वह बच्चा जानती है और जिस दिन (ख़ुदा) उन (मुश्रकीन) को पुकारेगा और पूछेगा कि मेरे शरीक कहा हैं- वह कहेंगे हम तो तुझ से अर्ज़ कर चुके हैं कि हम में से कोई (उन से) वाक़िफ़ ही नहीं और उस से पहले जिन माबूदों की इबादत करते थे वह ग़ाएब (ग़ला) हो गये- और ये लोग समझ जाएंगे कि उन के लिए अब मुख़लिसी नहीं- इन्सान(1) भलाई का दुआएं मांगने से तो कभी उकताता नहीं
और अगर उस को कोई तक़लीफ़ पहुंच जाए तो (फ़ौरन) ना उम्मीद और बे आस हो जाता है और अगर उसको कोई तकलीफ़ पहुँच जाने के बाद हम उस को अपनी रहमत का मज़ा चखाए तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिये ही है और मैं नहीं ख़याल करता का कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिये यक़ीनन उसके यहां(2) भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उन को (क़यामत में) ज़रुर बता देंगे और उसको सख़्त अज़ाब का मज़ा चखाएंगे (वह अलग) और जब हम इन्सान पर अहसान करते हैं तो (हमारी तरफ़ से) मुंह फेर लेता है और मुंह बदल कर चल देता है- और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चौड़ी दुआएं करने लगता है
(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि- अगर ये (कुरआन) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो (और) फिर तुम उस से इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दरजे की मुख़ालेफ़त में (पड़ा) हो उस से बढ़ कर और कौन गुमराह हो सकता है
हम अनक़रीब ही अपनी (कुदरत) की निशानियां अतराफ़ (आलम) में और खुद उन में भी दिखा देंगे यहां तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है-क्या तुम्हारा परवरदिगार उसके लिए काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ पर काबू रखता है देखो ये लोग अपने परवरदिगार के रू बरू हाज़िर होने से शक में (पड़े) हैं सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है।

सूरऐ शूरा

सूरऐ शूरा मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 53 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हा मीम(2) अैन-सीन-क़ाफ़ (ऐ रसूल) ग़ालिब व दाना ख़ुदा तुम्हारी तरफ़ और जो (पैग़म्बर) तुम से पहले गुज़रे उन की तरफ़ यूं ही वही भेजता रहता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है-गरज़ सब कुछ उसी का है और वह तो (बड़ा) आलीशान (और) बुजुर्ग है (उनकी बातों से) क़रीब है कि सारे आसमान (उसकी हैबत के मारे) अपने ऊपर वार से फ़ट(3) पड़े
और फरिश्ते तो अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और जो लोग ज़मीन में हैं उन के लिए (गुनाहों की) माफ़ी मांगा करते हैं- सुन रखो कि ख़ुदा ही यक़ीनन बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है- और जिन लोगों ने ख़ुदा को छोड़ कर (और-और) अपने सर परस्त बना रखे हैं ख़ुदा उनकी निगरानी कर रहा है- और (ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो और हम ने तुम्हारे पास अरबी कुरआन यू भेजा ताकि मक्के वालों को और जो लोग उस के इर्द गिर्द रहते हैं उन को डराओ और (उनको) क़यामत के दिन से भी डराओ जिस (के आने) में कुछ भी शक नहीं (उस दिन) एक फ़री़क़ (मानने) वाला जन्नत में होगा और फ़रीक़ (सानी) दोज़ख में-और अगर खु़दा चाहता तो उन सब को एक ही गिरोह बना देता मगर वह तो जिस को चाहता है (हिदायत करके) अपनी रहमत में दाख़िल कर लेता है और ज़ालिमों का तो (उस दिन) न कोई यार है और न मददगार क्या उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (दूसरे) कारसाज़ बनाए हैं, तो कारसाज़ बस ख़ुदा ही तो है
और वही मुरदों को ज़िन्दा करेगा- और वही हर चीज़ पर कुदरत रखता है- और तुम लोग जिस चीज़ में बाहम इख़्तेलाफ़ रखते हो उस का फ़ैसला ख़ुदा ही के हवाले है वही ख़ुदा तो मेरा परवरदिगार है-मैं उसी पर भरोसा रखता हूं और उसी की तरफ़ रुजूअ करता हूं सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही) है उसी ने तुम्हारे लिये तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और चारपांव के जोड़े भी (उसी ने बनाए) उस (तरफ़) मै तुम को फ़ैलाता रहता है- कोई चीज़ उस की मिस्ल नहीं
और वह हर चीज़ को सुनता देखता है- सारे आसमान वे ज़मीन की कुन्जियां उसी के पास है- जिस के लिए चाहता है रोज़ी को फ़िराक़ कर देता है (जिस के लिये) चाहता है तंग कर देता है-बेशक वह हर चीज़ से खूब वाक़िफ़ है उस(1) ने तुम्हारे लिये दीन का वही रास्ता मुक़र्रर किया-जिस (पर चलने का) नूह को हुक्म दिया था
और (ऐ रसूल) उसी की हम ने तुम्हारे पास वही भेजी है और उसी का इब्राहीम और मूसा और ईसा को भी हुक्म दिया था (वह) ये (है कि) दीन को क़ाएम रखना और उसमें तफ़रक़ा न डालने जिस दीन की तरफ़ तुम मुशरकीन को बुलाते हो वह उन पर बहुत शाक़ गुज़रता है- ख़ुदा जिस को चाहता है अपनी बारगाह का बरगुज़ीद कर लेता है और जो उस की तरफ़ रुजू करे (अपनी तरफ़ पहुँचने) का रास्ता दिखा देता है और ये लोग मुतफ़र्रिक़ हुए भी तो इल्म (हक़) आ चुकने के बाद और (वह भी) महज़ आपस को ज़िद से और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक वक़्त मुक़र्रर तक के लिए (क़यामत का) वादा न हो चुका होता तो उन में (कब का) फ़ैसला हो चुका होता
और जो लोग उन के बाद (ख़ुदा की) किताब के वारिस हुए वह उसकी तरफ़ से बहुत सख़्त शुबहे में (पड़े हुए) हैं तो (ऐ रसूल) तुम (लोगों को)(1) उसी (दीन) की तरफ़ बुलाते रहे जो और जैसा तुम को हुक्म हुआ है उसी पर क़ाएम रहो और उन की नफ़्सानी ख़्वाहिशों की पैरवी न करो और (साफ़-साफ़) कह दो कि जो किताब खुदा ने नाज़िल की है उस पर मैं ईमान रखता हूं और मुझे हुक्म हुआ है कि मैं तुम्हारे (इख़्तेलाफ़ात के दरमियान) इंसाफ़ (से फ़ैसला) करूं खुदा ही हमारा भी परवरदिगार और (वही तुम्हारा भी परवरदिगार है हमारी कारगुज़ारियां हमारे ही लिए हैं) और तुम्हारी कारस्तानी तुम्हारे वास्ते हम में और तुम में तो कुछ हुज्जत (व तकरार की ज़रुरत) नहीं ख़ुदा ही हम सब को (क़यामत मे) इकट्ठा करेगा और उसी की तरफ़ लौट जाना है
और जो लोग उस के मान लिए जाने के बाद(2) खुदा के बारे में (ख़्वाह मख़्वाह) झगड़ा करते हैं उन के परवरदिगार के नज़दीक उन की दलील लग़ो बातिल है और उन पर (ख़ुदा का) ग़ज़ब और उन के लिए सख़्त अज़ाब है- ख़ुदा ही तो है जिस ने सच्चाई के साथ किताब नाज़िल की और अदल (व इंसाफ़ भी नाज़िल किया) और तुम को क्या(2) मालूम शायद क़यामत करीब ही हो (फिर ये ग़फ़लत कैसी) जो लोग उस पर ईमान नहीं रखते वह तो उस के लिए जल्दी कर रहे और जो मोमिन है वह उस से डरते हैं और जानते हैं कि क़यामत यक़ीनी बरहक़ है आगाह रहो कि जो लोग क़यामत के बारे में शक किया करते हैं वह बड़े परले दर्जे की गुमराही में हैं
और ख़ुदा अपने बन्दों (के हाल) पर बड़ा मेहरबान है जिस को (जितनी) रोज़ी चाहता है देता है वह रोज़ी वाला ज़बरदस्त है जो शख़्स(1) आख़ेरत की खेती का तालिब हो हम उस के लिए उस की खेती में अफ़जाइश करेंगे और दुनियां की खेती का ख़्वास्तगार हो तो हम उस को उसी में से देंगे मगर आख़ेरत में फिर उस का कुछ हिस्सा न होगा-क्या उन लोगं के (बताए हुए) ऐसे शरीक हैं जिन्होंने उन के लिए ऐसा दीन मुक़र्रर किया है जिस की ख़ुदा ने इजाज़त नहीं दी और अगर फ़ैसला (के दिन) का वादा न होता तो उन में यक़ीनी अब तक फ़ैसला हो चुका होता और ज़ालिमों के वास्ते ज़रुर दर्दनाक अज़ाब है (क़यामत के दिन) देखोगे कि ज़ालिम लोग अपने अमाल (के वबाल) से डर रहे होंगे और वह उन पर पड़ कर रहेगा
और जिन्होंने ईमान कुबूल किया और अच्छे काम किए वह बेहिश्त के बागों में होंगे-वह जो कुछ चाहेंगे उन के लिए-उन के परवरदिगार की बारगाह में (मौजूद) है तो (ख़ुदा का) बड़ा फज़ल है-यही (इनाम) है- जिस की खु़दा अपने उन बन्दों को खुशख़बरी देता है- जो ईमान लाए- और नेक काम करते हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं इस (तबलीग़े रिसालत) का अपने क़राबत दारों (अहलेबैत) की मुहब्बत(1) के सिवा तुम से कोई सिला नहीं मांगता और जो शख़्स नेकी हासिल करे(2) गा हम उसके लिए उस की ख़ूबी में इज़ाफ़ा कर देंगे-बेशक खुदा बड़ा बख्शने वाला क़द्रदान है क्य ये लोग (तुम्हारी निस्बत कहते हैं)(2) कि उस (रसूल) ने ख़ुदा पर झूठ बोहतान बांधा है तो अगर (ऐसा होता तो) ख़ुदा चाहता तो तुम्हारे दिल पर मोहर लगा देता (कि तुम बात ही न कर सकते) और ख़ुदा तो झूठ को नेस्त न नाबूद-और अपनी बातों से हक़ को साबित करता है
वह यक़ीनी दिलों के राज़ से भी ख़ूब वाक़िफ़ है और वही तो है जो अपने बन्दों की तौबा(4) कुबूल करता है और गुनाहों को माफ़ करता है- और तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह जानता है और जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे उन की (दुआ) कुबूल करता है और फज़्ल व करम से उन को बढ़ कर देता है और काफिरों के लिए सख़्त अज़ाब है
और अगर ख़ुदा ने अपने बन्दों की रोज़ी में फ़राख़ी कर दें तो वह लोग ज़रुर (रूए) ज़मीन में(1) सरकशी करने लगें- मगर वह तो बकद्र मुनासिब जिस की रोज़ी (जितनी) चाहता है नाज़िल करता है- वह बेशक अपने बन्दों से ख़बरदार (और उन को) देखता है और वह वही तो है जो लोगों के नाउम्मीद हो जाने के बाद मेंह बरसता है और अपनी रहमत (बारिश की बरकतों) को फैला देता है और वही कारसाज़ (और) हम्दो व सना के लाएक़ है और उसी की क़ुदरत की निशानियों से सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करना और उन जानादारसों का भी जो उस ने आसमान व जम़ीन में फ़ैला रखे हैं और वह जब चाहे उन के जमा कर लेने पर (भी) क़ादिर है और जो मुसीबत तुम पर पड़ती है वह तुम्हारे अपने ही हाथों(2) की करतूत से और (उस पर भी) वह बहुत कुछ माफ़ कर देता है और तुम लोग ज़मीन में (रह कर) तो ख़ुदा को किसी तरह हरा नहीं सकते और ख़ुदा के सिवा तो तुम्हारा न कोई दोस्त है और न मददगार और उसी की (कुदरत) की निशानियों से समन्दर में (चलने वाले) बादबानी जहाज़ हैं जो गोया पहाड़ हैं
अगर ख़ुदा चाहे तो हवा को ठहरा दे तो जहाज़ भी समन्दर की सतह पर (खड़े के खड़े) रह जाएं बेशक तमाम सब्र और शुक्र करने वालों के वास्ते उन बातों में (ख़ुदा की कुदरत की) बहुत सी निशानियां हैं या वह (चाहे तो) उन को उन के आमाल (बद) के सबब तबाह कर दे और वह बहुत कुछ माफ़ करता है और जो लोग हमारी निशानियों में (ख़्वाह मख़्वाह(1) झगड़ा करते हैं वह अच्छी तरह समझ लें कि उन को किसी (अज़ाब से) झुटकारा नहीं (लोगों) तुम को तो जो कुछ माल मताअ दिया गया है वह दुनिया की ज़िन्दगी का (चंद रोज़ा) साज़ व सामान है और जो कुछ ख़ुदा के यहाँ है वह कहीं बेहतर और पाएदार है (मगर ये) ख़ास उन ही लोगों के लिए है जो ईमान लाए और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं
और जो लोग बड़े-बड़े(2) गुनाहों और बे हयाई की बातों से बचते रहते हैं और जब गुस्सा आ जाता है तो माफ़ कर देते हैं और जो अपने परवरदिगार का हुक्म मानते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं और उन के कुल काम आपस के मशवरे से होते हैं और जो कुछ हम ने उन्हें अता किया उस में से (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते हैं और (वह ऐसे हैं) कि जब उन पर किसी क़िस्म की ज़्यादती है तो वह बस वाज़बी बदला लेते हैं और बुराई का बदला तो वैसी ही बुराई है उस पर भी जो शख़्स(3) माफ़ कर दे और (मामला की) इसलाह कर दे तो उस का सवाब ख़ुदा के ज़िम्मे है बेशक वह जुल्म करने वालों को पसन्द नहीं करता और जिस पर जुल्म हुवा हो अगर वह उस के बाद मे इन्तेक़ाम ले तो ऐसे लोगों पर कोई इल्ज़ाम(1) नहीं-इल्ज़ाम तो बस उन्ही लोगों पर होगा जो लोगों पर जुल्म करते हैं और रूए ज़मीन में नाहक़ ज़्यादतियां करते फिरते हैं उन ही लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है

और जो सब्र करे और कुसूर माफ़ कर दे तो बेशक ये बड़े हौसले के काम है और जिस को ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उस के बाद उस का कोई सरपरस्त नहीं औ    र तुम ज़ालिमों को देखोग कि जब (दोज़ख) का अज़ाब देखेंगे तो कहेंगे कि भला (दुनिया में) फिर लौट जाने के कोई सबील है और तुम उनको देखोगे कि दोज़ख के सामने लाए गए हैं (और) ज़िल्लत के मारे कटे जाते हैं (और) कनख़ियों से देखे जाते हैं और मोमिनीन कहेंगे कि हक़ीक़त में वही बड़े घाटे में है जिन्होंने क़यामत के दिन अपने आप को और अपने घर वालों को ख़सारे में डाला- देखो जुल्म करने वाले दाएमी अज़ाब में रहेंगे और ख़ुदा के सिवा न उनके सरपरस्त होंगे जो उन की मदद को आएं और जिस को ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उस के लिए (हिदायत की) कोई राह नहीं
(लोगों) उस दिन के पहले जो ख़ुदा की तरफ़ से आएगा और किसी तरह (टाले) न टलेगा-अपने परवरदिगार का हुक्म मान लो (क्योंकि) उस दिन न तुम को कहीं पनाह की जगह मिलेगी और न तो तुम से (गुनाह का) इन्कार हो बन पड़ेगा- फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हम ने तुमको उनका निगेहबान बना कर नहीं भेजा- तुम्हारा काम तो सिर्फ़ (अहकाम को) पहुंचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उस से खुश हो जाता है और अगर उन को उन ही को हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ़ पहुंची तो (सब अहसान भूल गये) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है
सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़ास ख़ुदा ही की है जो चाहता है पैदा करता है (और) जिसे चाहता है (फक़त) बेटियां(1) देता है और जिसे चाहता है (महज़) बेटे अता करता है या उन को बेटे बेटियां (औलाद की) दोनों क़िस्में इनायत करता है और जिस को चाहता है बांझ बना देता है बेशक वह बडा़ वाक़िफ़कार क़ादिर है- और किसी आदमी के लिए ये मुम्किन नहीं कि ख़ुदा, उस से बात कर सके मगर वही के ज़रिये से (जैसे) दाऊद परदे के पीछे से जैसे (मूसा) या कोई फ़रिश्ता भेज दे (जैसे मुहम्मद) ग़रज़ वह अपने इख़्तेयार से जो चाहता है पैग़ाम भेजता है- बेशक वह आलीशान हिकमत वाला है
और उसी तरह हम ने अपने हुक्म की रूह(1) (कुरआन) तुम्हारी तरफ़ वही के ज़रिये भेजे तो तुम तो न किताब ही को जानते थे कि क्या है और न ईमान को मगर उस (कुरआन) को एक नूर बनााय है- कि उस से हम अपने बन्दों में से जिस को चाहते हैं हिदायत करते हैं और उस में शक नहीं कि तुम (ऐ रसूल) सीधा ही रास्ता दिखाते हो (यानि) उस का रास्ता कि जो आसमानों में है- और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है सुन रखो-सब काम ख़ुदा ही तरफ़ रुजूअ होंगे और वही फ़ैसला करेगा।

सूरऐ ज़ुख़्ररूफ़़

सूरऐ ज़ुख़्ररूफ़़ मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी 86 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हामीम- रौशन किताब (कुरआन) की क़सम कि हम ने इस किताब को अरबी ज़बान कुरआन ज़रुर बनाया है- ताकि तुम समझो और बेशक ये (कुरआन) असली किताब (लौह महफूज़) में (भी जो) मेरे पास है लिखी हुई है- (और) यक़ीनन वो बड़े रूतबे (और) बड़ा हिकमत वाला है भला इस वजह से कि तुम ज़्यादी करने वाले लोग हो-हम तुम को नसीहत करने से मुंह मोड़ेंगे (हरगिज़ नहीं)
और हमने अगले लोगों में बहुत से पैग़म्बर भेजे थे और कोई पैग़म्बर उन के पास ऐसा नहीं आया जिससे उन लोगों ने ठठ्ठे नहीं किए हो तो उनमें से जो ज़्यादा ज़ोर-आवर थे उनको हमने हलाक कर मारा और (दुनियां में) अगलों के अफ़साने जारी हो गए(1) और ऐ रसूल अगर तुम उन से पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो ज़रुर कह देंगे(2) कि उन को बड़े वाक़िफ़कार ज़बरदस्त (ख़ुदा ने पैदा किया है- जिसने तुम लोगों के वास्ते ज़मीन का बिछौना बनाया और (फिर) उस में तुम्हारे नफ़ा के लिए रास्ते बनाए ताकि तुम राह मालूम करो
और जिस ने एक (मुनासिब) अंदाज़ के साथ आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने उस के (ज़रिए) से मुर्दा (पड़ती) शहर को ज़िन्दा (आबाद) किया इसी तरह तुम भी (क़यामत के दिन क़ब्रों से) निकाले जाओगे और जिस ने हर क़िस्म की चीज़े पैदा की और तुम्हारे लिए कश्तियां बनाई और चार पाए पैदा किए जिन पर तुम सवार होते हो- ताकि तुम उस की पीठ पर चढ़ो और जब उस पर (अच्छी तरह) सीधे हो बैठो तो अपने परवरदिगार का अहसान याद करो और कहो कि वह (ख़ुदा हर एैब से) पाक है जिसने उस को हमारा ताबेदार बनाया हालांकि हम तुम ऐसे (ताक़तवर) न थे कि उस पर क़ाबू पाते और हम को तो यक़ीनन अपने परवरदिगार की तरफ़ लौट कर(1) जाना है और उन लोगों ने उस के बन्दों में से उसके लिए औलाद क़रार दी है- उसमें शक नहीं कि इन्सान ख़ुल्ल्म ख़ुल्ला बडा़ ही नाशुक्रा है
क्या उसने अपनी मख़लूकात में से खुद तो बेटियां ली हैं और तुम को चुन कर बेटे दिए हैं- हालांकि जब उनमें किसी शख़्स को इस चीज़ (बेटी) की ख़ुशख़बरी दी जाती है जिसकी मसल उसने ख़ुदा के लिए बयान की है तो वह (गुस्से के मारे) स्याह हो जाता है और ताव पेच खाने लगता है क्या वह (औरत) जो ज़ेवरों में पाली पोसी जाए और झगड़े में (अच्छी तरह) बात तक(1) न कर सके (ख़ुदा की बेटी हो सकती है) और उन लोगों ने फ़रिश्तों को कि वह भी ख़ुदा के बन्दे हैं (ख़ुदा की) बेटियां बनाई हैं- लोग फ़रिश्तों की पैदाइश क्यों खड़े देख रहे थे अभी उन की शहादत क़ल्म बन्द कर ली जाती है और (क़यामत) में उन से बाज़परस की जाएगी
और कहते हैं कि अगर ख़ुदा चाहता तो हम उन की इबादत न करते उन को उस की कुछ ख़बर नहीं ये लोग तो बस अटकल पच्चू बात किया करते हैं या हमने उनको उस से पहले कोई किताब दी थी कि ये लोग उसे मज़बूत थामे हुए हैं बल्कि ये लोग तो ये कहते हैं कि हमने अपने बाप दादाओं को एक तरीक़ पर पाया और हम उनके क़दम ब क़दम ठीक रास्ते पर चलते जा रहे हैं
और (ऐ रसूल) इसी तरह हमने तुम से पहले किसी बस्ती में कोई डराने वाला (पैग़म्बर) नहीं भेजा, मगर वहां के खुशहाल लोगों ने यही कहा कि हमने अपने बाप दादाओं को एक तरीक़े पर पाया और हम यक़ीनी उनके क़दम बक़दम चले जा रहे हैं (उस पर) उन के पैग़म्बर ने कहा भी जिस तरीक़े पर तुम ने अपने बाप दादाओं को पाया अगरचे मैं तुम्हारे पास उस से बेहतर राह रास्त पर लाने वाला दीन लेकरस आया हूं (तो भी न मानोगे) वह बोले (कुछ हो मगर) हम तो उस दीन को जो तुमको देकर भेजा गया हो मानने वाले नहीं तो हमने उन से बदाल लिया (तो ज़रा) देखो तो कि झुठलाने वालों का क्या अंजाम हुवा
(और वह वक़्त याद करो) जब इब्राहीम ने अपने (मुंह बोले) बाप (आज़र) और अपनी क़ौम से कहा कि जिन चीज़ों को तुम लोग पूजते हो मैं यक़ीनन उस से बेज़ार हूं मगर उस की इबादत करता हूं जिसने मुझे पैदा किया तो वही बहुत जल्द मेरी हिदायत करेगा और उसी (ईमान को इब्राहीम अपनी औलाद में हमेशा बाक़ी) रहने वाली बात छोड़ गए ताकि वह (ख़ुदा की तरफ़ रुजू) करे बल्कि में उन को और उन के बाप दादाओं को फ़ायदा पहुँचाता रहा- यहां तक कि उन के पास (दीन) हक़ और साफ़-साफ़ बयान करने वाला रसूल आ पहुँचा और जब उन के पास (दीन) हक़ आ ही गया तो कहने लगे ये तो जादू है और हम तो हरगिज़ मानने वाले नहीं
और कहने लगे कि ये कुरआन उन दो बस्तियों (मक़्का ताएफ़)(1) में से किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं नाज़िल किया गाय ये लोग तुम्हारे परवरदिगार की रहमत को (अपने तौर पर) बांटते हैं- हमने तो उन क दरमियान उइन की रोज़ी दुनियावी ज़िन्दगी में बांट दी है और एक दूसरे पर दर्जे बुलन्द किए हैं ताकि उन में का एक दूसरे से ख़िदमत ले और जो माल (मताअ) ये लोग जमा करते फिरते हैं- ख़ुदा की रहमत (पैग़म्बर) उस से कहीं बेहतर है
और अगर(2) ये बात न होती कि (आख़िर) सब लोग एक ही तरीक़े के हो जाएंगे तो हम उन के लिए जो ख़ुदा से इंकार करते हैं उन के घरों की छतें और वही सीढियां जिन पर चढ़ते हैं (उतरते हैं) और उनके घरों के दरवाज़े और वह तख़्त जिन पर तकिए लगाते हैं चाँदी और सोने के बना देते ये सब साज़ व सामान तो बस व दुनियावी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ा) साज़ व समान है (जो मिट जाएंगे) और आख़ेरत (का सामान) तो तुम्हारे परवरदिगार के यहां ख़ास परहेज़गारों के लिए है
और जो शख़्स ख़ुदा की याद से अंधा बनता है हम (गोया ख़ुदा) उस के वास्ते शैतान(1) मुक़र्रर कर देते हैं तो वही उस का (हर दम का) साथी है और वह (शयातीन) उन लोगों को (ख़ुदा की) राह से रोकते रहते हैं बावजूद इस के वह इसी ख़याल में हैं कि वह यक़ीनी राह रास्त पर है यहां तक कि जब (क़यामत में) हमारे पास आएगा तो (अपनी साथी शैतान से) कहेगा काश मुझ में और तुझ में पूरब पश्चिम का फ़ासला होता-गरज़ (शैतान भी) क्या ही बुरा रफ़ीक़ है और जबह तुम नाफ़रमानियां कर चुके तो (शयातीन के साथ) तुम्हारा अज़ाब में शरीक(2) होना भी आज तुम को (अज़ाब की कमी में) फ़ाएदा नहीं पहुंचा सकता-तो (ऐ रसूल) क्या तुम बहरो को सुना सकते हो-या अंधे को और उस शख़्स को जो सरीही गुमराही में प़ड़ा हो रास्ता दिखा सकते हो (हरगिज़ नहीं) तो अगर हम तुम को (दुनिया से) ले भी जाँए तो भी हम को उन से बदला लेना(3) ज़रुर है
या (तुम्हारी ज़िन्दगी ही में) जिस अज़ाब का हम ने उन से वादा किया है तुम को दिखा दें तो उन पर हर तरह क़ाबू रखते हैं तो तुम्हारे(4) पास जो वही भेजी गई है तुम उसे मज़बूत पकड़े रहो इसमें शक नहीं कि तुम सीधी राह पर हो-और ये (कुरआन) तुम्हारे लिये और तुम्हारी क़ौम के लिए नसीहत है और अनक़रीब ही तुम लोगों से (उस की) बाज़ पुरस की(5) जाएगी और हम ने तुम से पहले अपने जितने पैग़म्बर भेजे हैं उन सब से दरयाफ़्त कर देखो क्या हम ने ख़ुदा के सिवा और माबूद बनाए थे कि उन की इबादत की जाए और हम ही ने यक़ीनन मूसा को अपनी निशानियां दे कर फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास (पैग़म्बर बना कर) भेजा था तो मूसा ने कहा कि मैं सारे जहान के पालने वाले (ख़ुदा) का रसूल हूं तो जब मूसा उन लोगों के पास हमारे मोजिज़े ले कर आए तो वह लोग उन मोजिज़ों की हंसी उड़ाने लगे- और हम जो मोजिज़ा उनको दिखाते थे वह दूसरे से बढ़ कर होता था- और आख़िर हम ने उन को अज़ाब में गिरफ़्तार किया ताकि ये लोग बाज़ आए
और (जब) अज़ाब में गिरफ़्तार हुए तो (मूसा से) कहने लगे(1) ऐ जादूगर उस अहद के मुताबिक़ जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम से किया है- हमारे वास्ते दुआ कर (अगर अबकी छूट) तो हम ज़रुर ऊपर आ जाएंगे फिर जब हम ने उन से अज़ाब को हटा दिया तो वह फ़ौरन (अपना) अहद तोड़ बैठे(1) और फ़िरऔऩ ने अपने लोगों में पुकार कर कहा(2) ऐ मेरी क़ौम क्या (ये) मुल्क मिस्र हमारा नहीं और (क्या) ये नहरे जो हमारे (शाही महल के) नीचे बह रही हैं (हमारी नहीं) तो क्या तुम को इतना भी नहीं सूझता या (सूझाता है कि) मैं उस शख़्स (मूसा) से जो एक ज़लील आदमी है और (हकले पन की वजह से) साफ़ गुफ़्तगू भी नहीं कर सकता कहीं बहुत बेहतर हूं (मगर ये बेहतर है तो उस के लिए) सोने के कंगन (ख़ुदा के यहाँ से) क्यों नहीं उतारे गये- या उस के साथ फरिश्ते जमा होकर आते(1) ग़रज़ फ़िरऔन नई-नई (बातें बनाकर) अपनी क़ौम की अक़ल मारदी और वह लोग उसके ताबेदार बन गये- बेशक वह लोग बदकार थे ही
ग़रज़ जब उन लोगों ने हम को झुंझला दिया तो हमने भी उन से बदला लिया- तो हमने उन सब (के सब) को डुबो दिया0 फिर हम ने उनको गया गुज़रा और पिछलों के वास्ते इबरत बना दिया और (ऐ रसूल) जब मरयम के बेटे (ईसा) की मिसाल(2) बयान की गई तो उस से तुम्हारी क़ौम के लोग खिलख़िला कर हंसने लगे और बोल उठे कि ला हमारे माबूद अच्छे हैं या वह (ईसा) उन लोगों ने जो ईसा की मिसाल तुम से बयान की है तो सिर्फ़ झगड़ने को-बल्कि (हक़ तो यह है कि) ये लोग हैं ही झगड़ालू ईसा तो बस हमारे एक बंदे थे जिन पर हम ने अहसान किया (नबी बनाया और मोजिज़े दिये) और उन को हम ने बनी इस्राईल के लिये (अपनी कुदरत का) नमूना बनाया- और हम चाहते तो तुम ही लोगों में से (किसी को) फ़रिश्ते बना देते जो तुम्हारी जगह ज़मीन में रहते और वह तो यक़ीनन क़यामत की एक रौशऩ दलील(3) है तुम लोग उस में हरगिज़ शक न करो- और मेरी पैरवी करो- यही सीधा रास्ता है
और (कहीं) शैतान तुम लोगों को (उस से) रोक न दे- वह यक़ीनन तुम्हारा ख़ुल्लम ख़ुल्ला दुश्मन है और जब ईसा वाज़ेह व रौशन मोजिज़े लेकर आए तो (लोगों से कहा मैं तुम्हारे पास दानाई (की किताब) लेकर आया हूं और ताकि बाज़ बातें जिन मे तुम लोग इख़्तेलाफ़ करते थे तुम को साफ़-साफ़ बता दूं तो तुम लोग ख़ुदा से डरो- और मेरा कहना मानों- बेशक ख़ुदा ही मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है तो उसी की इबादत करो- यही सीधा रास्ता है तो उन में से कई फ़िरक़े (उन से) इख़्तेलाफ़ करने लगे- तो जिन लोगों ने जुल्म किया उन पर दर्दनाक दिन के अज़ाब से अफ़सोस है
क्या ये लोग बस क़यामत ही के मुन्तज़िर हैं कि अचानक ही उन पर आ जाए और उन को ख़बर तक न हो- (दिली) दोस्त उस दिन (बाहम) एक दूसरे के दुश्मन होंगे- मगर परहेज़गार(1) (कि वह दोस्त ही रहेंगे और ख़ुदा उन से कहेगा) ऐ मेरे बन्दों आज न तो तुम को कोई ख़ौफ़ है और न तुम ग़मगीन होंगे
(ये) वह लोग हैं जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और (हमारे) फ़रमाबरदार थे, तो तुम अपनी बीबियों समेत एज़ाज़ व अकराम से बेहिश्त में दाख़िल हो जाओ- उन पर सोने की रकाबियों और प्यालों का दौर चलेगा और वहां जिस चीज़ को जी चाहे और जिस से आँखे लज्जत उठाएं (सब मौजूद हैं) और तुम उस में हमेशा रहोगे और ये जन्नत जिस के तुम वारिस(1) (हिस्से दार) कर दिए गए हो तुम्हारी कारगुज़ारियों का सिला है- वहां तुम्हारे वास्ते बहुत से मेवे हैं जिन को तुम खाओगे
(गुनाहगार कुफ़्फ़ार) तो यक़ीनन जहन्नुम के अज़ाब में हमेशा- रहेगे जो उन से कभी नाग़ा न किया जाएगा और वह उसी अज़ाब मे ना उम्मीद हो कर रहेंगे और हमने उन पर कोई जुल्म नहीं किया ब्लकि वह लोग ख़ुद अपने ऊपर जुल्म कर रहे हैं, और (जहन्नुमी) पुकारेंगे कि ऐ मालिक (दरोग़ा जहन्नुम कोई तरकीब करो) तुम्हारा परवरदिगार हमें मौत ही दे दो वह जवाब देगा कि तुम को इसी हाल में रहना है
(ऐ कुफ़्फ़ारे मक्का) हम तो तुम्हारे पास हक़ लेकर आए हैं मगर तुम में से बहुतेरे हक़ (बात) से चिढ़ते हैं क्या उन लोगं ने कोई बात ठान ली है हमने भी (कुछ ठान लिया है) क्या ये लोग कुछ समझते हैं कि हम उन के भेद और उन की सरगोशियों को नहीं सुनते-हां (हां ज़रुर सुनते हैं) और हमारे फ़रिश्ते उनके पास हैं और उनकी सब बातें लिखते जाते हैं- (ऐ रसूल तुम कह दो कि अगर ख़ुदा की कोई औलाद होती तो मैं सब से पहले (उसकी) इबादत को तैयार हूं
ये लोग जो कुछ बयान करते हैं- सारे आसमान व ज़मीन का मालिक अर्श का मालिक (ख़ुदा) उस से पाक व पाकीज़ा है तो तुम उन्हें छोड़ दो कि पड़े बक-बक करते और खेलते रहते है- यहां तक कि जिस दिन उन से वादा किया जाता है उन का सामने आ मौजूद हो और आसमान में भी उसी की इबादत की जाती है और (वही) ज़मीन में भी माबूद है- और वही वाक़िफकार हिकमत वाला है- और वही बहुत बा बरकत है- जिस के लिए सारे आसमान व जमीन और उन दोनों के दरमियान की हुकूमत है और क़यामत की ख़बर भी उसी को है और तुम लोग उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे
और ख़ुदा की सिवा जिन की ये लोग इबादत करते हैं वह तो सिफ़ारिश का भी इख़्तेयार नहीं रखते मगर (हां) जो लोग समझ बूझ कर हक़ बात (तौहीद) की गवाही दें (तो ख़ैर) और अगर तुम उनसे पूछोगे कि उनको किस ने पैदा किया तो ज़रुर कह देंगे अल्लाह ने फिर (बावजूद उसके) ये कहां बहके जा रहे हैं और (उसी को) रसूल के उस क़ौल का भी इल्म है कि परवरदिगार ये लोग हरगिज़ ईमान न लाएंगे-तो तुम उनसे मुह फेर लो और कह दो कि तुम को सलाम-तो उन्हें अनक़रीब हैी (शरारत का नतीजा) मालूम हो जाएगा।
सूरऐ दुख़ान
सूरऐ दुख़ान मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 56 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हामीम- वाज़ेह व रौशन किताब (कुरआन) की कि़स्म हमने उस को मुबारक(2) रात (शब क़द्र) में नाज़िल किया- बेशक हम (अज़ाब से) डरान वाले थे- उसी रात को तमाम दुनियां के हिकमत व मसलहेत के (साल भर के) काम फैसले किये जाते हैं- यानी हमारे यहां से हुक्म होकर (बेशक) हम ही (पैगम़्बरों के) भेजने वाले हैं ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है, वह बेशक बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है
सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों के दरमियान है सब का मालिक अगर तुम में यक़ीन करने की सलाहियत है (तो करो) उसके सिवा कोई माबूद नहीं- वही जिलात है वही मारता है तुम्हारा मालिक और तुम्हारे अगले बाप दादाओं का भी मालिक है- लेकिन ये लोग तो शक में पड़े खेल रहे हैं तो तुम उस दिन का इन्तेज़ार करसो कि आसमान से ज़ाहिर ब ज़ाहिर(3) धुआ निकलेगा (और) लोगों को ढांक लेगा-ये दर्दनाक अज़ाब है (कुफ़्फ़ार भी) घबरा के कहेंगे कि परवरदिगार हम से अज़ाब को दूर दफ़ा कर दे हम भी ईमान लाते हैं (उस वक़्त) भला क्या उनको नसीहत होगी जब उनके पास पैगम्बर आ चुके जो साफ़ साफ़ बयान कर देते थे उस पर भी उन लोगों से उस से मुंह फेरा और कहने लगे ये तो (सिखाया) पढ़ाया हुआ दिवाना है (अच्छा ख़ैर) हम थोड़े दिन के लिए अज़ाब को टाल देते है (मगर हम जानते हैं) तुम ज़रुर फिर कुफ़्र करोगे, हम बेशक (उन से) पूरा बदला तो बस उस दिन लेंगे जिस दिन सख़्त पकड़ पकड़ेंगे
और उन से पहले हम ने क़ौम फिरऔन की आज़माइश की और उन के पास एक आली क़दर पैग़म्बर (मूसा) आए (और कहा) कि ख़ुदा के बंदों (बनी इ्स्राईल) को मेरे हवाले करो, मैं (ख़ुदा की तरफ़ से) तुम्हारा एक अमानतदार(1) हूं और ख़ुदा के सामने सरकशी न करो मैं तुम्हारे पास एक वाज़ेह व रौशन दलील लेकर आया हूं और उस बात से कि तुम मुझे संगसार करो- मैं अपने परवरदिगार (ख़ुदा) की पनाह मांगता हूं और अगर मुझ पर ईमान नहीं लाए तो तुम मुझसे अलग हो जाओ (मगर वह सताने लगे) तब मूसा ने अपने परवरदिगार से दुआ कि कि ये बड़े शरीर लोग हैं तो ख़ुदा ने हुक्म दिया कि तुम मेरे बंदों (बनी इस्राईल) को रातों रात लेकर चले जाओ और तुम्हारा पीछा भी ज़रुर किया जाएगा- और दरिया को अपनी हालत पर ठहरा हुवा छोड़ कर (पार हो) जाओ (तुम्हारे बाद) उनका सारा लश्कर डुबो दिया जाएगा
वह लोग (ख़ुदा जाने) कितने बाग़ और चश्मे और खेतीया और नफ़ीस मकानात और आराम की चीज़े जिस में वह ऐश और चैन किया करते थे छोड़ गये यूं ही हुवा-और उन तमाम चीज़ों का दूसरे लोगों को मालिक बना दिया तो उन लोगों पर आसमान व ज़मीन को भी रोना(2) न आया और न उन्हें मोहलत ही दी गयी- और हमने बनी इस्राईल को ज़िल्लत के अज़ाब से फिरऔऩ (के पंजे) से निजात दी- और हमने बनी इस्राईल को बूझ कर सारे जहान से बरगुज़ीदा किया था और हमने उनको ऐसी निशानियां दी थीं जिनमें (उनकी) सरीही आज़माइश थी
ये (कुफ़्फ़ारे मक्का) (मुसलमानों से) कहते हैं कि हमें तो सिर्फ़ एक बार मरना है और फिर हम दुबारा (ज़िन्दा करके) उठाए न जाएंगे-तो अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (ज़िन्दा करके) ले आओ-भला ये लोग (कूव्वत में) अच्छे हैं या तवाअ की क़ौम और वह लोग जो उनसे पहले हो चुके हमने उन सब को हलाक कर दिया (क्योंकि) वह ज़रुर गुनाहगार थे
और हमने सारे आसमान व ज़मीन और जो चीज़ें उन दोनों के दरम्यान में हैं- उनको खेलते हुए नहीं बनाया उन दोनों को हमने बस ठीक (मसहलत से) पैदा किया-मगर उनमें के बहुतेरे लोग नहीं जानते- बेशक फ़ैसला (क़यामत) का दिन उन सब (के दुबारा ज़िन्दा होने) का मुक़र्रर वक़्त है- जिस दिन कोई दोस्त किसी दोस्त के कुछ काम न आएगा- और न उनकी मदद की जाएगी मगर जिस पर ख़ुदा हम रहम फ़रमाए बेशक वह (ख़ुदा) सब पर ग़ालिब बड़ा रहम करने वाला है (आख़ेरत में) थोहड़ का दरख़्त ज़रुर गुनाहगार का खाना होगा- जैसे पिघला हुआ तांबा वह पेटों मे इस तरह उबाल खाएगा जैसे खौलता हुवा पानी उबाल खाता है (फ़रिश्तों को हुक्म होगा) उसको पकड़ो और घसीटते हुए दोज़ख़ के बीचों बीच में ले जाओ फिर उसके सर पर खौलते हुए पानी का अज़ाब डालो (फिर उस से ताने के तौर पर कहा जाएगा) अब मज़ा चखो-बेशक तू तो बड़ी इज़्ज़त वाला सरदार है- ये वही दोज़ख तो है जिस में तुम लोग शक किया करते थे
बेशक परहेज़गार लोग अमन की जगह (यानी) बाग़ों और चश्मों में होंगे-रेशम की कभी बारीक और कभी दबीज़ पोशाकें पहने हुए एक दूसरे के आमने सामने बैठे होंगे-ऐसा ही होगा और हम बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरों से उन के जोड़े लगा देंगे- वहां इत्मेनान से हर क़िस्म के मेवे मंगवा (कर खाएंगे) वहां पहले दफ़ा की मौत के सिवा उन को मौत की तलख़ी चख़नी ही न पड़ेगी- और ख़ुदा उन को दोज़ख़ के अज़ाब से महफूज़ रखेगा- (ये) तुम्हारे परवरदिगार का फ़ज़ल है- यही तो बड़ी कामयाबी है तो हम ने इस कुरआन को तुम्हारी जबान में (इसलिए0 आसान कर दिया है ताकि ये लोग नसीहत पकड़े तो (नतीजे के) तुम भी मुन्तज़िर रहो ये लोग भी मुन्तज़िर हैं।

सूरऐ जासिया

सूरऐ जासिया मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 37 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हामीम- ये किताब (कुरआन) खुदा की तरफ़ से नाज़िल हुई है जो ग़ालिब (और) दाना है- बेशक आसमान और ज़मीन में ईमान वालों के लिए (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं और तुम्हारी पैदाएश में (भी)- और जिन जानवरों को वह (ज़मीन पर) फ़ैलाता रहता है (उन में भी) यक़ीन करने वालों के वास्ते बहुत सी निशानियां हैं
और दिन के आने जाने में और ख़ुदा ने आसमान में जो (ज़रिए) रिज़्क़ (पानी) नाज़िल फिर उस से ज़मीन को उस के मर जाने के बाद ज़िन्दा किया (उसमे) और हवाओं के फेर बदल में अक़लमन्द लोगों के लिए बहुत सी निशानियां हैं- ये ख़ुदा की आयतें हैं जिन को हम ठीक (ठीक) तुम्हारे सामने पढ़ते हैं, तो ख़ुदा और उस की आय़तों के बाद कौन सी बात होगी जिस पर ये लोग ईमान लाएंगे हर झूठे गुनाहगार पर अफ़सोस है कि ख़ुदा की आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं और वह सुनता है फिर ग़रुर से (कुफ्र पर) अड़ा रहता है गोया उस ने उन (आयतों) को सुना ही नहीं तो (ऐ रसूल) तुम उसे दर्दनाक अज़ाब की ख़ुश ख़बरी दे दो और जब हमारी आयतों में से किसी आयत पर वाक़िफ़ हो जाता है तो उस की हंसी उड़ाता है- ऐसे ही लोगों के वास्ते ज़लील करने वाला अज़ाब है
जहन्नुम तो उन के पीछे ही (पीछे) है और जो कुछ वह आमाल करते रहे न तो वही उन के कुछ काम आएंगे और न वह जिनको उन्होंने ख़ुदा को छोड़करस (अपने) सरपरस्त बनाए थे और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है- ये (कुरआन) है और जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की आयतों से इंकार किया उन के लिए सख़्त क़िस्म का दर्दनाक अज़ाब होगा- खुदा ही तो है जिसने दरया को तुम्हारे काबू में कर दिया ताकि उसके हुक्म से उस में कश्तियां चलें और ताकि उस के फ़ज़्ल (व करम) से (माश की) तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब को अपने (हुक्म) से तुम्हारे काम में लगा दिया है- ग़ौर करते हैं उन के लिए उस में (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं
(ऐ रसूल) मोमिनों से कह दो कि जो लोग ख़ुदा के दिनों कि (जो जज़ा के लिए मुक़र्रर है) उम्मीद नहीं ऱखते उनसे दरगुज़र करें ताकि वह लोगों के अमाल का बदला दे- जो शख़्स नेक काम करता है तो ख़ास अपने लिए और बुरा काम करेगा तो उस का बवाल उसी पर होगा फिर (आख़िर) तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाए जाओगे
और हमने बनी इस्राईल को किताब (तौरैत) और हुकूमत और नबूवत अता की और उन्हे उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दी और उन को सारे जहान पर फज़ीलत(1) दी और उन को दीन की खुली हुई दलीले इनायत की- तो उन लोगों ने इल्म आ चुकने के बाद बस आपस की ज़िद में एक दूसरे से इख़्तेलाफ़ किया कि ये लोग जिन बातों से इख़्तेलाफ़ कर रहे हैं- क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार उन में फैसला कर देगा- फिर (ऐ रसूल) हम ने तुम को दीन के खुले रास्ते पर क़ाएम किया है तो उसी (रास्ते) पर चले जाओ और नादानों की ख़्वाहिशों की पैरवी न करो- ये लोग ख़ुदा के सामने तुम्हारे कुछ भी काम न आएंगे
और ज़ालिम लोग एक दूसरे के मददगार हैं और ख़ुदा तो परहेज़गारों का मददगार है- ये (कुरआन) लोगों (की) हिदायत के लिए बसीलों का मजमुआ है और बातें करने वाले लोगों के लिए (अज़सरे ता पा) हिदायत व रहमत है- जो लोग बुरे काम किया करते हैं वह ये समझते हैं कि हम उन को उन लोगों के बराबर कर देंगे जो ईमान लाए और अच्छे-अच्छे काम भी करते रहे और उन सब का जीना मरना एक सा होगा ये लोग (क्या) बुरे हुक्म लगाते है- और ख़ुदा न सारे आसमान व ज़मीन को हिकमत व मसलहत से पैदा किया और ताकि हर शख़्स को उस के किये का बदला दिया जाए और उन पर (किसी तरह का) जुल्म नहीं किया जाएगा
भला तुम ने उस शख़्स को भी देखा जिस ने अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश को माबूद(1) बना ऱखा है और (उसकी हालत) समझ बूझ कर ख़ुदा ने उसे गुमराही में छोड़ दिया है और उसके कान और दिल पर अलामत मु़र्रर कर दी है (कि ये ईमान न लाएगा) और उस की आँख पर परदा डाल दिया है- फिर ख़ुदा के बाद उस की हिदायत कौन कर सकता है तो क्या तुम लोग (इतना भी) ग़ौर नहीं करते- और वह लोग कहते हैं कि हमारी ज़िन्दगी तो बस दुनिया ही की है (यहीं) मरते है और (यहीं) जाते हैं और हम को बस ज़माना ही (जिलाता) मारता है और उनको कुछ ख़बर तो है नहीं- ये लोग तो बस अटकल की बातें करते हैं
और जब उनके सामने हमारी खुली-खुली आयतें पढ़़ी जाती हैं तो उनकी कट हुज्जती बस यही होती है कि वह कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (जिला कर) ले तो आओ (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा ही तुम को ज़िन्दा (पैदा) करता है और वही तुम को मारता है फिर वही तुम को क़यामत के दिन जिस (के होने) में किसी तरह का शक नहीं जमा करेगा मगर अकसर लोग नहीं जानते और सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत ख़ास ख़ुदा ही की है और जिस रोज़ क़यामत बरपा होगी उस रोज़ अहले बातिल बड़े घाटे में रहेगे
और (ऐ रसूल) तुम हर उम्मत को देखोगे (फ़ैसले की मुन्तज़र अदब से) घुटने के बल बैठी होगी और हर उम्मत अपने नाम ऐ आमाल की तरफ़ बुलाई जाएगी जो कुछ तुम लोग करते थे आज तुम को उस का बदला दिया जाएगा- ये हमारी किताब (जिस में आमाल लिखे हैं) तुम्हारे मुक़ाबले में ठीक-ठीक बोल रही है जो कुछ भी तुम करते थे हम लिखवाते जाते हैं- ग़रज़ जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किये तो उनको उनका परवरदिगार अपनी रहमत (से बेहिश्त) में दाख़िल करेगा- यही तो सरीही कामयाबी है
और जिन्होंने कुफ्र इख्तेयार किया (उन से कहा जाएगा) तो क्या तु्म्हारे सामने हमारी आयतें नहीं पढ़ी जाती थी (जरुर) तो तुम ने तकब्बुर किया और तुम लोग तो गुनाहगार हो गये और जब (तुम से) कहा जाता था कि ख़ुदा का वादा सच्चा है और क़यामत (के आने) में कुछ शुबा नहीं तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते कि क़यामत क्या चीज़ है- हम तो बस (उसे) एक ख़याली बात समझते हैं और हम तो (उसका) यक़ीन नहीं रखते-और उन के करतूतों की बुराइयां उस पर ज़ाहिर हो जाएगी- और जिस (अज़ाब) की ये हंसी उड़ाया करते थे उन्हें (हर तरफ़ से) घेर लेगा और (उन से) कहा जाएगा कि जिस तरह तुम ने अपने उस दिन के आने को भुला दिया था उसी तरह आज हम तुमको अपनी रहमते से अमदन भुला देंगे(1) और तुम्हारा ठिकाना दोज़ख़ है और कोई तुम्हारा मददगार नहीं
ये सबब कि तुम लोगों ने ख़ुदा की आयतों को हंसी ठठा बना रखा था और दुनियावी ज़िन्दगी ने तुम को धोके में डाल दिया था- ग़रज़ ये लोग न तो आज दुनिया से निकाले जाओगे और न उन को उस का मौक़ा दिया जाएगा कि (तौबा करके ख़ुदा को) राज़ी कर लें- पस सब तारीफ़ ख़ुदा ही के लिये सज़ावार है जो सारे आसमान का मालिक और ज़मीन का मालिक (ग़रज़) सारे जहान का मालिक है- और सारे आसमान व ज़मीन में उसी के लिये बड़ाई है- और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है।

सूरऐ अहकाफ़

सूरऐ अहकाफ़ मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 35 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।

Comments powered by CComment