तो उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जो खुदा पर झूट (बोहतान) बांधे और जब उसके पास(1) सच्ची बात आए तो उस को झुटला दे क्या जहन्नुम में काफिरों का ठिकाना नहीं है (ज़रुर है) और याद रखो कि जो शख़्स (रसूल) सच्ची बात लेकर आया वह और जिस ने उस की तसदीक़(2) की यही लोग जो चाहेंगे उन के लिये परवरदिगार के पास (मौजूद) है, ये नेकी करने वालों की जज़ाए खैर है ताकि ख़ुदा उन लोगों की बुराईयों को जो उन्होंने की है दूर कर दे और उनके अच्छे कामों के एवज़ जो वह कर चुके थे उस का अज्र (व सवाब) अता फ़रमाए
क्या खु़दा अपने बन्दों (की मदद) के लिये काफ़ी नहीं है (ज़रुर) और (ऐ रसूल) तुम को लोग ख़ुदा के सिवा (दूसरे माबूदों) से डराते हैं और ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे तो उस का कोई राह पर लाने वाले नहीं है और जिस शख़्स की हिदायत करे तो उस का कोई गुमराह करने वाला नहीं, क्या ख़ुदा ज़बरदस्त और बदला लेने वाला नहीं है (ज़रुर है)
और (ऐ रसूल) और तुम उन से पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किस ने पैदा किया तो यह लोग कहेंगे कि ख़ुदा ने, तुम कह दो कि तो क्या तुम ने ग़ौर किया है कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन लोगों की तुम इबादत करते हो अगर ख़ुदा मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो क्या वह लोग उस के नुक़सान को (मुझ से) रोक सकते हैं या अगर ख़ुदा मुझ पर मेहरबानी करना चाहे तो क्या वह लोग उस की मेहरबानी रोक सकते हैं(1)
(ऐ रसूल) तुम कहो कि ख़ुदा मेरे लिए क़ाफ़ी है उसी पर भरोसा करने वाले भरोसा करते है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) अमल किये जाओ मैं भी (अपनी जगह) कुछ कर रहा हूं फिर अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर वह आफ़त आती है जो उस को (दुनिया में) रुसवा कर देगी और (आख़िर में) उस पर दाएमी अज़ाब (भी) नाज़िल होगा
(ऐ रसूल) हम ने तुम्हारे पास (ये) किताब (कुरआन) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है, पस जो रसाह पर आया तो अपने ही (भले के) लिये और जो गुमराह हुवा तो उसी की गुमराही का बवाल भी उसी पर है और तुम फिर कुछ उन के ज़िम्मेदार तो नहीं(2) ख़ुदा ही लोगों के मरने के वक़्त उन की रहें (अपनी तरफ़) खींच बुलाता है और जो लोग नहीं मरे (उन की रूंहे) उन की नींद में(3) (खींच ली जाती हैं) बस जिनके बारे में खुदा मौत का हुक्म दे चुका है उन की रूहों को रोके रखता है और बाक़ी (सोने वालों की रूहों) को फिर एक मु़क़र्रर वक़्त तक के वास्ते भेज देता है
जो लोग (ग़ौर व) फ़िक्र करते हैं उन के लिए (कुदरत ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियां हैं क्या उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (दूसरे) सिफ़ारिशी बना रखे हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगरचे वह लोग न कुछ इख़्तेयार रखते हों(1) न कुछ समझते हों (तो भी सिफ़ारशी बनाओगे) तुम कह दो कि सारी सिफ़ारिश खुदा के लिए ख़ास है- सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत उसी के लिये ख़ास है, फिर तुम लोगों को उस की तरफ़ लौट कर जाना है
और जब सिर्फ़ अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते उन के दिल मुतनफ़्फ़िर हो जाते हैं और जब ख़ुदा के सिवा (और माबूदों) का ज़िक्र किया जाता है तो बस फ़ौरन उन की बाछें खिल जाती हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ ख़ुदा (ऐ) सारे आसमान और ज़मीन पैदा करने वाले, ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले जिन बातों मे तेरे बन्दे आपस में झगड़ रहे हैं, तू ही उन के दरम्यान फैसला कर देगा और अगर नाफ़रमानों के पास रूऐ ज़मीन की सारी काएनात मिल बल्कि उस के साथ इतनी ही और भी हो तो क़यामत के दिन ये लोग यक़ीनन सख़्त अज़ाब का फ़िदया दे निकलेंगे (और अपना छुटकारा करना चाहे) और (उस वक़्त) उन के सामने ख़ुदा की तरफ़ से वह बात पेश आएगी जिस का उन्हें पहम व गुमान भी न था
और जो बदकारियां उन लोगों ने की थी (वह सब) उन के सामने ख़ुल जाएगी और जिस (आज़ाब) पर ये लोग कहक़हा लगाते थे वह उन्हें घेरेगा, इन्सान को तो जब कोई बुराई छू गई बस वह लोग हम से दुआएं मांगने, फिर जब हम उसे अपनी तरफ़ से कोई नेमत अता करते हैं तो कहने लगता है कि ये तो सिर्फ़ (मेरे) इल्म ज़ोर से मुझे दिया गया है (यह ग़ल्ती है) बल्कि ये तो एक आ़माइश है(1) मगर उन में के अक्सर नहीं जानते हैं जो लोग उन से पहले थे वह भी ऐसी बाते बका करते थे फिर (जब हमारा अज़ाब आया) तो उनकी कारस्तानियां उन के कुछ भी काम न आई ग़रज़ उन के आमाल के बुरे नतीजे उन्हें भुगतने पड़े और उन (कुफ़्फ़ार मक़्का) में से जिन लोगों ने नाफ़रमानियां की हैं उन्हें भी अपने-अपने आमाल की सज़ाएं भुगतनी पड़ेगी और यह लोग (ख़ुदा को) आजिज़ नहीं कर सकते
क्या उन लोगों को इतनी बात भी मालूम नहीं कि खु़दा ही जिस के लिये चाहता है रोज़ी फ़राख़ करता और (जिस के लिए चाहता है) तंग करता है इस में शक नहीं कि उसमें ईमानदार लोगों के लिए (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि एक मेरे (ईमानदार) बन्दों जिन्होंने (गुनाह करके) अपनी जानों पर ज़्यादिीयां की हैं तुम लोग खु़दा की रहमत से ना उम्मीद न हा होना(2) बेशक ख़ुदा (तुम्हारे) कुल गुनाहों को बख़्श देगा-वह बेशक बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और अपने परवरदिगार की तरफ़ रूजुअ करो और उसी के फ़रमाबरदार बन जाओ (मगर) उस वक़्त के क़ब्ल ही कि तुम पर अज़ाब आ नाज़िल हो (और) फिर तुम्हारी मदद न की जा सके और जो-जो अच्छी बातें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल हुई है उन पर चलो (मगर) उस के क़ब्ल कि तुम पर एक बारगी अज़ाब नाज़िल हो और तुम को (उसका) कोई ख़बर भी न हो
(कहीं ऐसा न हो कि तुम में से) कोई शख़्स कहने लगे कि हाय अफ़सोस मेरी इस कोताही पर जो मैंने खुदा (की बारगाह) का तर्क़रुब(1) हासिल करने में की और मैं तो बस उन बातों पर हंसता ही रहा या यह कहने लगे कि अगर ख़ुदा मेरी हिदायत करता तो मैं ज़रुर परहेज़गारों में से होता, या जब अज़ाब को (आते) देके तो कहने लगे कि काश मुझे (दुनिया में) फिर दुबारा जाना मिले तो मैं नेकोकारों से हो जाऊं- (उस वक़्त खुदा कहेगा हां) हां तेरे पास मेरी आतें पहुंची तो तूने उन्हें झुटला दिया और शेख़ी कर बैठा और तू भी काफिरों में से था (अब तेरी एक न सुनी जाएगी) और जिन लोगों ने ख़ुदा पर झूटे बोहतान बांधे-तुम क़यामत के दिन देखोगे- उनके चेहरे स्याह होंगे क्या गुरूर(1) करने वालों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है (ज़रुर है) और जो लोग परहेज़गार है ख़ुदा उन्हें उन की क़ामयाबी (और सआदत) के सबब निजात देगा कि उन्हें तकलीफ़ छुएगी भी नहीं और न ये लोग (किसी तरह) रन्जीदा दिल होंगे, खु़दा ही हर चीज़ का जानने वाला है और वही हर चीज़ का निगेहबान है, सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियां उसी के पास है, और जो लोग उस की आयतों से इन्कार कर बैठे वही घाटे में रहेंगे
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि नादानों भला तुमसे ये कहते हो कि मैं खुदा के सिवा (किसी दूसरे) की इबादत करो और (ऐ रसूल) तुम्हारी तरफ़ और उन (पैग़म्बरों) की तरफ़ जो तुम से पहले हो चुके हैं यक़ीनन यह वही भेजी जा चुकी है कि अगर (कहीं) शिर्क किया तो यक़ीनन तुम्हारे सारे अमल अकरात हो जाएंगे और तुम ज़रुर घाटे में आ जाओगे- बल्कि तुम ख़ुदा ही की इबादत करो और शुक्रगुज़ारों में हो और उन लोगों ने ख़ुदा की जैसी क़दर करनी चाहिए थी उसकी (कुछ भी) क़द्री न की हालांकि (वह ऐसा क़ादिर है कि) क़यामत के दिन सारी ज़मीन (गोया) उस की मुट्टी में होगी और सारे आसमान (गोया) उस के दाहिने हाथ में लिपटे हुए हैं(1) जिसे यह लोग उस का शरीक बताते हैं वह उस से पाकीज़ा और बरतर है
और जब (पहली बार) सूर फूका जाएगा तो जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं (मौत से) बेहोश होकर गिर पडेंगे, (हां) जिस को खुदा चाहे (वह) (अलबत्ता बच जाएगा) फिर (जब) दुबारा सूर फूका जाएगा तो फ़ौरन सब के सब खड़े होकर देखने लगेंगे, और ज़मीन अपने परवरदिगार के नूर से जगमगा उठेगी और (आमाल की) किताब (लोगों के सामने) रख दी जाएगी और पैग़म्बर और गवाह ला हाज़िर किये जाएंगे और उन में इंसाफ़ के साथ फ़ैसला कर दिया जाएगा और उन पर (ज़र्रा बराबर) जुल्म नहीं किया जाएगा और जिस शख़्स ने जैसा किया हो उसका पूरा पूरा बदला मिल जाएगा, और जो कुछ ये लोग करते हैं वह उससे खूब वाक़िफ़ है और जो लोग काफ़िर थे उनके ग़ौल के ग़ौल जहन्नुम की तरफ़ हकाए जाएंगे, यहां तक कि जब जहन्नुम के पास पहुंचेंगे तो उस के दरवाज़े खोल दिये जाएंगे और उस के दरोग़ा उन से पूछेंगे कि क्या तुम लोगों में पैग़म्बर तुम्हारे पास नहीं आए थे जो तुम को तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़ कर सुनाते और तुम को इस रोज़े (बद) के पेश आने से डराते वह लोग जवाब देंगे कि हां (आए तो थे) मगर (हमने न माना) और अज़ाब का हुक्म काफ़िरों के बारे में पूरा हो कर रहा (तब उन से) कहा जाएगा कि जहन्नुम के दरवाज़ों में धंसों और हमेशा उसी में रहो, ग़रज़ तकब्बुर करने वाले का (भी) क्या बुरा ठिकाना है
और जो लोग अपने परवरदिगार से डरते थे वह गिरोह गिरोह बेहिश्त की तरफ़ (एजाज़ व एकराम से) बुलाए जाएंगे, यहां तक कि जब उसके पास पहुँचेगे और बेहिश्त के दरवाज़े खोल दिए जाएंगे और उसके निगेहबान उन से कहेंगे सलाम अलैकुम तुम अच्छे रहे, तुम बहिश्त में हमेशा के लिए दाख़िल हो जाओ- और ये लोग कहेंगे खुदा का शुक्र जिसने अपना वादा हम से सच्चा कर दिखाया और हमें (बेहिश्त की) सर ज़मीन का मालिक बनाया कि हम बेहिश्त में जहां चाहें रहेंतो नेक चलन वालों की भी क्या ख़ूब (ख़री) मज़दूरी है और (उस दिन) फ़रिश्तों को देखेंगे कि अर्श के गिर्दा गिर्द घेरे हुए डटे(1) होंगे और अपने परवरदिगार की तारीफ़ की (तस्बीह) कर रहे होंगे और लोगों के दरमियान ठीक फ़ैसला कर दिया जाएगा और (हर तरफ़ से यही) सदा बुलन्द होगी अलहम्दो लिल्लाह रब्बुल आलमीन।
सूरऐ मौमीन
सूरऐ मौमीन मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 85 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हा मीम (इस) किताब (कुरआन) का नाज़िल करना (ख़ास बारगाह) खु़दा से है जो (सब से) ग़ालिब ब़ड़ा वाक़िफ़ कार गुनाहों का बख़्शने वाला और तौबा क़बूल करने वाला सख़्त अज़ाब देने वाला साहिबे फ़ज़्ल व करम है उसके सिवा कोई माबूद नहीं उसी की तरफ़ (सब को लौट कर जाना है खुदा की आयतों(2) में बस वही लोग झगड़े पैदा करते हैं जो काफ़िर हैं तो (ऐ रसूल) उन लोगों का शहरों (शहरों) शहरों घूमना फिरना (और माल हासिल करना) तुम्हे उस धोके में न डाले (कि उन पैग़म्बरों को झुठलाया) और हर उम्मत ने अपने पैग़म्बरों के बारे में यही ठान लिया कि उन्हें गिरफ़्तार कर डालें और बेहूदा बातों की आड़ पकड़ कर लड़ने लगें- ताकि उस के ज़रिए से हक़ बात को उठा फेंके, तो मैंने उन्हें गरिफ़्तार कर लिया, फिर देखा उन पर (मेरा अज़ाब कैसा सख़्त हुआ)
और उसी तरह तुम्हारे परवरदिगार का (अज़ाब का) हुक्म (उन) काफिरों पर पूरा हो चुका है कि ये लोग यक़ीनी जहन्नुमी हैं जो (फरिश्ते) अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के गिर्दो गिर्द (तैनात) हैं (सब) अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तस्बीह करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिनों के लिए बख़शिश की दुआए मांगा करते हैं कि परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ पर अहाता किए हुए है, तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उन को बख़्शिश दे और उन को जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले, ऐ हमारे पालने वाले उन को सदाबहार बागों में जिन का तूने उन से वादा किया है दाख़िल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीबियों और उनके औलाद में से जो लोग नेक हों उन को (भी बख़्श दे) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है और उन को हर क़िस्म की बुराईयों से महफूज़ रख और जिस को तूने उस दिन (क़यामत) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया और यही तो बड़ी कामयाबी है
(हां) जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उन से पुकार कह दिया जाएगा- कि जितना तुम (आज) अपनी जान बेजा़र हो उस से बढ़ कर ख़ुदा तुम से बेज़ार था जब तुम ईमान की तरफ़ बुलाए जाते थे तो कुफ्र करते थे वह लोग कहेंगे कि हमारे परवरदिगार तू हमको दुबारा(2) मार चुका और दुबारा ज़िन्दा कर चुका तो अब हम अपने गुनाहों का इकरार करते हैं तो क्या (यहां से) निकलने की भी सबील है यह इसलिये कि जब तन्हा ख़ुदा पुकारा जाता था तो तुम इंकार करते थे और अगर उस के साथ शिर्क किया जाता था तो तुम मान लेते थे तो (आज) ख़ुदा की हुकूमत है जो आली बशान (और) बुजुर्ग है वही तो है
जो तुम को (अपनी कुदरत की) निशानियां दिखाता है और तुम्हारे लिए आसमान से रोज़ी नाज़िल करता है और नसीहत तो बस वही हासिल करता है जो (उस की तरफ़) रूजू करता है, पस तुम लोग ख़ुदा की इभादत को ख़ालिस करके उसी को पुकारो अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा माने, खु़दा तो बड़ा आली मर्तबा अर्श का मालिक है, वह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है अपने हुक्म से वही नाज़िल करता है ताकि (लोगों को) मुलाक़ात (क़यामत) के दिन से डराए जिस दिन वह लोग (क़ब्रों) से निकल पड़ेंगे (और) उन की कोई चीज़ खु़दा से पोशिदा नहीं रहेगी (और निदा आएगी) आज किस की बादशाहत है (फिर ख़ुदा खुद कहेगा) ख़ास ख़ुदा की जो अकेला (और) ग़ालिब है आज हर शख़्स को उस के किए का बदला दिया जाएगा, आज किसी पर कुछ भी जुल्म न किया जाएगा बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब(1) लेने वाला है
और (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उस दिन से डराओ जो अन क़रीब आने वाला है-जब लोगों के कलेजे घुट-घुट(1) के (मारे डर) के मुंह को आ जाएंगे (उस वक़्त) न तो सरकशो का कोई सच्चा दोस्त होगा और न कोई ऐसा सिफ़ारशी जिस की बात मान ली जाए ख़ुदा तो आँखों की दज़दीदाह(2) निगाह को भी जानता है और उन बातों को भी जो (लोगों के) सीनों में पोशीदा है और ख़ुदा ठीक ठीक हुक्म देता है, और उस के सिवा जिन की ये लोग इबादत करते हैं वह तो कुछ भी हुक्म नहीं दे सकते, इस में शक नहीं कि ख़ुदा सुनने वाला देखने वाला है- क्या इन लोगों ने रूए ज़मीन चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उन से पहले थे उनका अंजाम क्या हुवा (हालांकि) वह लोग (शान और उम्र सब) में और ज़मीन पर अपनी निशानियां (यादगारें ईमारतें) वग़ैरह छो़ड़ जाने में भी उन से कहीं बढ़ चढ़ के थे तो ख़दा ने उन गुनाहों की वजह से उन की ले दे की, और खु़दा (के ग़ज़ब से) उन का कोई बचाने वाला भी न था
ये इस सबब से कि उन के पैग़म्बर उन के पास वाजे व रौशऩ मौजिज़े ले कर आए उस पर भी उन लोगों ने माना तो ख़ुदा ने उन्हें ले डाला इस में तो शक ही नहीं कि वह क़वी (और) सख़्त अज़ाब वाला है और हम ने मूसा को अपनी निशांनिया(1) और रौशन दलीलें देकर फ़िरऔन और हामान और क़ारून के पास भेजा तो वह लोग कहने लगे कि (यह तो) एक बड़ा झूठा (और) जादूगर है
गरज़ जब मूसा उन लोगों के पास हमारी तरफ़ से सच्चा दीन लेकर आये तो वह बोले की जो लोग उनके साथ ईमान लाये हैं उनके बेटों को मार डालो, और उनकी औरतों को (लौंडियां बनाने के लिये) ज़िन्दा रहने दो- और क़ाफिरों की तदबीरें तो बेठिकाना होती ही और फ़िरऔन कहने गा मुझे छोड़ दो कि मैं मूसा को क़त्ल कर डालूं, और (मैं देखूं) अपने परवरदिगार को तू अपनी मदद के लिये बुला ले (भाइयों) मुझे अंदेशा है कि (मबादा) तुम्हारे दीन को उलट-पुलट कर डाले या मुल्क में फ़साद पैदा कर दे, और मूसा ने कहा कि मै तो हर मुतकब्बिर से जो हिसाब के दिन (क़यामत) पर ईमान नहीं लाता अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह ले चुका
और फ़िरऔन के लोगों में एक ईमानदार शख़्स (हिज़क़ील)(2) ने जो अपने ईमान को छुपाये रहता था (लोगों से कहा) क्या तुम लोग ऐसे शख़्स के क़त्ल के दर पै हो जो (सिर्फ़) यह कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है हालांकि वह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आया और अगर (बिलफ़र्ज़) यह शख़्स झूठा है तो उसके झूठ का बवाल उसी पर पड़ेगा, और अगर यह कहीं सच्चा हुआ(1) तो जिस (अज़ाब की) तुम्हें यह धमकी देता है उसमें से कुछ तो तुम लोगों पर ज़रुर वाजेह होकर रहेगा- बेशक ख़ुदा उस शख़्स की हिदायत नहीं करता जो हद से गुजरने वाला (और) झूठा हो- ऐ मेरी क़ौम आज तो (बेशक) तुम्हारी बादशाहत है (और) मुल्क में तुम्हारा ही बोलबाला है- लेकिन कल अगर ख़ुदा का अज़ाब हम पर आ जाये तो हमारी कौन मदद करेगा
फिरऔन ने कहा मैं तो वही बात समझता हूं जो मैं खुद समझता हूं और वही राह दिखाता हूं जिसमें भलाई है तो जो शख़्स (दरपरदा) ईमान ला चुका था कहने लगा, भाइयों। मुझे तो तुम्हारी निसबत भी और आयतों की तरह रोज़ (बद) का अंदेशा है (कहीं तुम्हारा भी वही हाल न हो) जैसा कि नूह की क़ौम और आद और समूद और उनके बाद वाले लोगों का हाल हुआ और ख़ुदा तो बन्दों पर जुल्म करना ही नहीं चाहता और ऐ हमारी क़ौम मुझे तो तुम्हारी निस्बत क़यामत(2) के दिन का अंदेशा है जिस दिन तुम पीठ फेर कर (जहन्नुम) की तरफ़ चल खड़े होंगे तो ख़ुदा के अज़ाब से तुम्हारा कोई बचाने वाला न होगा, और जिस को खु़दा गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई रास्ता दिखाने वाला नहीं और (उससे) पहले यूसुफ(1) भी तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आये थे तो जो- जो लाये थे तो तुम लोग उसमें बराबर शक ही करते रहते यहां तक कि जब उन्होंने वफ़ात पायी तो तुम कहने लगे कि अब उनके बाद ख़ुदा हरगिज़ कोई रसूल नहीं भेजेगा जो हद से गुज़रने वाला और शक करने वाला हो ख़ुदा उसे यूं ही गुमराही में छोड़ देता है
जो लोग बगै़र उसके के उसके पास कोई दलील आयी हो खु़दा की आयतों में (ख़्वाह मख़्वाह) झगड़े किया करते हैं वह ख़ुदा के नज़दीक और ईमानदारों के नज़दीक सख़्त नफ़रत खेज़ है यूँ ख़ुदा हर मुताकब्बर सरकश के दिल पर अलामत मुक़र्रर कर देता है, और फ़िरऔन ने कहा ऐ हामान। हमारे लिये एक महला बनवा दे ताकि (उस पर चढ़ कर) रास्तों पर पहुँच जाऊँ (यानि) आसमानों के रास्तों पर फिर मूसा के ख़ुदा को झांक कर (देख) लूं और मैं तो उसे यक़ीनी झूटा(2) समझता हूं और इसी तरह फ़िरऔन की बदकारियां उस को भली करके दिखायी गई थी और वह राहे रास्त से रोक दिया गया था और फिरऔन की तदबीर तो बस बिल्कुल ग़ारत ग़ुल्ला ही थी
और जो शख़्स (दरेपरदा) ईमानदार था कहने लगा भाईयों मेरा कहा मानो मैं तुम्हें हिदायत के रास्ते दिखा दूंगा, भाईयों यह दुनियावी ज़िन्दगी तो बस (चंद रोज़ा) फ़ायदा है और आख़ेरत ही हमेशा रहने का घर है, जो बुरा काम करेगा तो उस बदला भी वैसा ही मिलेगा, और जो नेक काम करेगा मर्द हो या औरत मगर ईमानदार हो तो ऐसे लोग बेहिश्त में दाखिल होंगे वहां उन्हें बेहिसाब रोज़ी मिलेगी और ऐ मेरी क़ौम मुझे क्या हुआ है कि मैं तुम को निजात की तरफ़ बुलाता हूं और तुम मुझे दोज़ख़ की तरफ़ बुलाते हो कि मैं ख़ुदा के साथ कुफ़्र करूं और उस चीज़ को उसका शरीक बनाऊं जिसका मुझे इल्म भी नहीं, और मैं तुम्हें ग़ालिब (और) बड़े बख़्शने वाले ख़ुदा की तरफ़ बुलाता हूं
बेशक तुम जिस चीज़ की तरफ़ मुझे बुलाते हो वह न तो दुनिया ही मे पुकारे जाने के क़ाबिल है और न आख़िरत में और आख़िर में हम सब को ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है और इसमें तो शक नहीं कि हद से बढ़ जाने वाले जहन्नुमी हैं तो जो मैं तुमसे कहता हूं अन करीब ही उसे याद करोगे और मैं तो अपना कम खुदा ही को सौंपे देता हूं कुछ शक नहीं खुदा बन्दों (के हाल) को खूब देख रहा है(1) तो खुदा ने उसे उनकी तदबीरों की बुराई से महफूज़ रखा और फिरऔनियों को बड़े अज़ाब ने (हर तरफ़़) से घेर लिया (और अब तो) क़ब्र में दोज़ख़ की आग है कि वह लोग (हर) सुबह व शाम उसके सामने ला खड़े किये जाते हैं और जिस दिन क़यामत बरपा होगी (हुक्म होगा) फिरऔन के लोगों को सख़्त से सख़्त अज़ाब में झोक दो
और वह लोग जिस वक़्त जहन्नुम में बाहम झगड़ेंगें तो कम हैसियत लोग बड़े आदमियों से कहेंगे कि हम तुम्हारे ताबे थे तो क्या तुम उस वक़्त (दोज़ख़) की आग का कुछ हिस्सा हम से बटा सकते हो तो बडे लोग कहेंगे (अब तो) हम (तुम ) सब के सब आग में पड़े हैं- (ख़ुदा (को) तो बंदों के बारे में (जो कुछ) फ़ैसला (करना था) कर चुका और जो लोग आग में (जब रहे) होंगे- जहन्नुम के दरोग़ाओं से दरख़्वास्त करेंगे कि अपने परवरदिगार से अर्ज़ करो कि एक दिन तो हमारे अज़ाब में कमी कर दे
वह जवाब देंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे पैग़म्बर साफ़ व रौशन मोजिज़े ले कर नहीं आए थे वह कहेंगे (हां) आए तो थे, तब फ़रिश्ते कहेंगे तो फिर खुदा (क्यों) न दुआ करो, हालांकि काफ़िरों की दुआ तो बस बेकार ही है हम अपने पैग़म्बरों की और(1) ईमान वाली की दुनिया की ज़िन्दगी मे भी ज़रुर मदद करेंगे-और जिस दिन गवाह (पैगम़्बर फ़रिश्ते गवाही को) उठ खड़े होंगे (उस दिन भी) जिस दिन ज़ालिमों को उन की माज़रत कुछ भी फ़ाएदा न देगी और और उन पर फिटकार (बरसती) होगी और उनके लिए बहुत बड़ा घर (जहन्नुम) है, और हम ही ने मूसा को हिदायत (की किताब तौरैत) दी और बनी इस्राईल को (उस) किताब का वारिस बनाया जो अक़लमन्दों के लिए (सरतापा) हिदायत व नसीहत है तो (ऐ रसूल) तुम (उन की शरारत) पर सब्र करो- बेशक ख़ुदा का वादा सच्चा है
और अपने (उम्मत की) गुनाहों की माफ़ी(2) मांगो और सुबह व शाम अपने परवरदिगार की हम्द व सना के साथ तसबीह करते रहो, जिन लोगों के पास (ख़ुदा की तरफ़ से) कोई दलील तो आई नहीं और (फ़िर) वह ख़ुदा की आय़तों में (ख़्वाब मख़्वाह) झगड़े निकालते हैं, उन के दिन में बुराई (की बेजा हवस) के सिवा कुछ नहीं हालांकि वह लोग उस तक कभी पहुंचने वाले नहीं तो तुम बस अपने ख़ुाद की पनाह मांगते रहो बेशक वह बड़ा सुनने वाला और देखने वाला है सारे आसमान और ज़मीन का पैदा करना, लोगों के पैदा करने की ब निसबत यक़ीनी(1) बड़ा (काम) है मगर अक्सर लोग (इतना भी) नहीं जानते
और अंधा और आँख वाला (दोनों) बारबर नहीं हो सकते और न मोमिनीन जिन्होंने अच्छे काम किए और न बदकार (ही) बराबर हो सकते हैं
बात यह है कि तुम लोग बहुत कम ग़ौर करते हो, क़यामत तो ज़रुर आने वाली है उस में किसी तरह का शक नहीं मगर अक़्सर लोग (उस पर भी) ईमान नहीं रखते और तुम्हारा परवरदिगार इरशाद फरमाता है कि तुम मुझ से(2) दुआए मांगों मैं तुम्हारी (दुआ) कुबूल करूंगा जो लोग हमारी इबादत से अकड़ते हैं वह अनक़रीब ही ज़लील व ख़्वाह होकर यक़ीनन जहन्नुम वासिल होंगे, खु़दा ही तो है जिस ने तुम्हारे वास्ते (रात) बनाई ताकि तुम उस में आऱाम करो और दिन को रौशन (बनाया) ताकि काम करो बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा फ़ज़्ल व करम वाला है, मगर अक़्सर लोग (उस का) शुक्र नहीं अदा करते
यही ख़ुदा तुम्हारा परवरदिगार है जो हर चीज़ का ख़ालिक़ है, उस के सिवा कोई माबूद नहीं, फिर तुम कहां बहके जा रहे हो जो लोग ख़ुदा की आयतों से इंकार रखते थे वह इसी तरह भटक रहे थे, अल्लाह ही तो है जिस ने तुम्हारे वास्ते ज़मीन को ठहरने की जगह और आसमा को छत बनाया और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनाई तो अचछी सूरतें बनाई और उसी ने तुम्हें साफ़ सुथरी चीज़ें खाने को दी यही अल्लाह तो तुम्हार परवरदिगार है तो ख़ुदा बहुत ही मुताबरिक है जो सारे जहान का पालने वाला है वही (हमेशा) ज़िन्दा है और उसके सिवा कोई माबूद नही तो नहिरी खुरी उसी की इबादत कर के उस से दुआ मांगों, सब तारीफ़ ख़ुदा ही को सज़ावार है और जो सारे जहान का पालने वाला है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि जब मेरे पास मेरे परवरदिगार की बारगाह से खुले हुए मोजिज़े आ चुके तो मुझे उश बात की मनाही कर दी गई है कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन को तुम पूजते हो मैं उस की इबादत करूँ और मुझे तो ये हुक्म हो चुका है कि मैं सारे जाहान के पालने वाले का फ़रमाबरदार बनूं, वही वह ख़ुदा है जिसने तुम को पहले (पहल) मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फ़े से, फिर जमे हुए ख़ून फिर तुम को बच्चा बनाकर (मां के पेट) से निकालता है (ताकि बढ़ो) फिर (ज़िन्दा रखता है) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो फिर और ज़िन्दा रखता है ताक तुम बूढ़े हो जाओ और तुम में से कोई ऐसा भी है जो (उससे) पहले मर जाता है ग़रज़ )तुम को उस वक़्त तक ज़िन्दा रखता है) कि तुम (मौत के) मुक़र्रर वक़्त तक पहुँच जाओ और ताकि तुम (उस की कुदरत को समझ) वह वही (ख़ुदा) है जो जिलाता और मारता है
फिर जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस उससे कह देता है कि हो जा वह फ़ौरन हो जाता है (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (की हालत) पर ग़ौर नहीं किया जो ख़ुदा की आयतों में झगड़े निकाला करते हैं, क्या कहां भटके चले जा रहे हैं, जिन लोगों ने किताब (ख़ुदा) और उन बातों को जो हमने पैग़म्बरों को दे कर भेजा था झुठलाया तो बहुत जल्द (उसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा जब (भारी-भारी) तौक़ और ज़ंज़ीरे उन की गर्दनों में होगी (और पहले) खौलते हुए पानी में घसीटे जाएंगे (जहन्नुम की) आग में झोक दिए जाएंगे
फिर उन से पूछा जाएगा कि खु़दा के सिवा जिनको (उसका) शरीक बनाते थे (इस वक़्त) कहां है वह कहेंगे अब तो वह हम से जाते रहे ब्लिक (सच यूं है कि) हम तो पहले ही से (ख़ुदा के सिवा) किसी चीज़ की इबादत न करते थे यूं खुदा काफिरों को बौखला देगा (कि कुछ समझ में न आएगा) ये उस की सज़ा है कि तुम दुनियां में नाहक़ (बात पर) निहाल थे और उसकी सज़ा है कि तुम इतराया करते थे, अब जहन्नुम के दरवाज़ों में दाख़िल हो जाओ (और) हमेशा उसी में (पड़े रहो) गरज़ तकब्बुर करने वालों का भी (क्या) बुरा ठिकाना है तो (ऐ रसूल) तुम सब्र करो खु़दा का वादा यकीनी सच्चा है तो (अज़ाब) की हम उन्हें धमकी देते हैं अगर हम तुम को उससे कुछ दिखादे या तुम ही को (उस के क़ब्ल) दुनियां से उठा लें तो (आख़िर फ़िर) उन को हमारी तरफ़ लौट कर आना है
और तुम से पहले भी हमने बहुत से पैग़म्बर भेजे उन में से कुछ तो ऐसे हैं जिन के हालात हम ने तुम से बयान कर दिए, और कुछ ऐसे हैं जिन के हालात तुम से नहीं, दोरहाए, और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि ख़ुदा के इख़्तेयार दिए बग़ैर कोई मोजिज़ा दिखा सके- फिर जब ख़ुदा का हुक्म (अज़ाब) आ पहुंचा तो ठीक-ठीक फ़ैसला कर दिया गया और अहले बातिल ही उस घाटे में रह, खुदा ही तो वह है जिसने तुम्हारे लिए चार पाए पैदा किए ताकि तुम उन में से किसी पर सवार होते हो और किसी को खाते हो और तुम्हेर लिए उन में (और भी) फ़ाएदे हैं और ताकि तुम उन पर (चढ़ कर) अपने दिली मक़सद तक(1) पहुँचों और उन पर और (नीज़) कश्तियों पर सवार फिरते हो और वह तुम को अपनी (कुदरत की) निशानियां दिखाता है तो तुम ख़ुदा की किन-किन निशानियों को न मानोंगे
तो क्या ये लोग रुए ज़मीन पर चले फिरे नहीं, तो देखते कि जो लोग उन से पहले थे उन का क्या अंजाम हुआ, जो उन से (तादाद में) कहीं ज़्यादा थे और कुव्वत और ज़मीन पर (अपनी) निशानियां (यादगारें) छोड़ने में भी कहीं बढ़-चढ़ के थे तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया था उन के कुछ भी काम न आया, फिर जब उनके पैग़म्बर उन के पास वाज़ेह व रौशन मोजिज़े लेकर आए तो जो इल्म(2) (अपने ख़्याल में) उन के पास था उस पर नाज़ा हुए और जिस (अज़ाब) की ये लोग हंसी उड़ाते थे उसी ने उन को चारों तरफ़ से घेर लिया तो जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब को देख लिया तो कहने लगे हम यकता खुदा पर ईमान लाए और जिस चीज़ को हम उस का शरीक बनाते थे अब हम उन को नहीं मानते तो जब उन लोगों ने हमारा अज़ाब (आते) देख लिया तो अब उन का ईमान लाना कुछ भी फ़ाएदे मन्द नहीं हो सकता(1) (ये) ख़ुदा की आदत (है) जो अपने बन्दों के बारे में (सदा से) चली आती है और क़ाफ़िर लोग उस वक़्त घाटे में(2) रहे।
सूरऐ हामीम सजदा
सूरऐ हमीम(3) मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 54 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हामीम (ये किताब) रहमान न रहीम ख़ुदा की तरफ़ से नाज़िल हुई है ये (वह) किताब अरबी कुरआन है जिस की आयतें समझदार लोगों के वास्ते तफ़्सील के साथ बयान कर दी गई हैं (नेक करों को) ख़ुशख़बरी देने वाली और (बदकारों को) डराने वाली हैं उस पर भी उन में से अक्सर ने मुंह फेर लिया और वह सुनते ही नहीं और कहने लगे जिस चीज़ की तरफ़ तुम हमें बुलाते हो उस से तो हमारे दिल पर्दों में है (कि दिल को नहीं लगती) और हमारे कानों में गिरानी (बहरापन है) कि कुछ सुनाई देता और हमारे तुम्हारे दरमियान एक पर्दा (हाएल) है तो तुम अपना काम करो हम (अपना) काम करते हैं
(ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी तुम्हारा ही सा आदमी हूं (मगर फ़र्क ये है कि) मुझ पर वही आती है कि ये तुम्हारा माबूद बस (वही) यकता ख़ुदा है तो सीधे उस की तरफ़ मुतवज्जा रहो और उसी से बख़शिश की दुआ मांगो, और मुशरिकों पर अफ़्सोस है जो ज़कात नहीं देते और आख़ेरत के भी क़ाएल नहीं बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे-अच्छे काम करते रहो और उनके लिए वह सवाब है- जो कभी ख़त्म होने वाला(1) नहीं
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम उस (ख़ुदा) से इंकार करते हो जिस ने ज़मीन को दो दिन में पैदा किया और तुम (औरों को) उस का हमसर बनाते हो यही तो सारे जहां का सरपरस्त है और उसी ने ज़मीन में उस के ऊपर से पहाज़ पैदा किए और उसी ने उस में बरकत अता की और उसी ने एक मुनासिब अंदाज़ पर उस में समान माईशत का बन्दोबस्त किया (ये सब कुछ) चार दिन(2) में तमाम(3) तलबगारों के लिए बराबर है
फिर आसमान की तरफ़ मुतवज्जा हुआ और वह (उस वक़्त) धुआ (का सा) था तो उसने उस से और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों आओ खुशी से ख़्वाह कराहत से, दोनों ने अर्ज़(4) की हम खुशी कुशी हाज़िर हैं (और हुक्म के पाबन्द हैं) फिर उन दोनों मे उस (धुए) के साथ आसमान(1) बनाए और हर आसमान में उस के (इन्तेज़ाम) का हुक्म (कार कुनान कज़ा व क़दर के पास) भेज दिया और हम ने नीचे वाले आसमान को (सितारों के) चराग़ों से मुज़य्यन किया और (शैतानों से महफूज़)(2) रखा ये वाक़िफ़कार ग़ालिब (ख़ुदा) के (मुक़र्रर किए हुए) अंदाज़े हैं
फिर अगर उस पर भी ये कुफ़्फ़ार मुंह फेरें तो कह दो कि मैं तुम को ऐसी बजली गिरने(3) (के अज़ाब से) डराता हूं जैसी क़ौम आद व समूद की बिजली की कड़क कि जब उन के पास उन के आगे से और पीछे से पैग़म्बर (ये ख़बर ले कर) आए कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार चाहता तो फ़रिश्ते नाज़िल करता और जो (बातें) दे कर तुम लोग भेजे गए हो हम तो उसे नहीं मानते, तो आद नाहक़ रूऐ ज़मीन में गरुर करने लगे और कहने लगे कि हम से बढ़ के कुव्वत में कौन है, क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर न किया कि ख़ुदा जिस ने उन को पैदा किया है वह उन से कुव्वत में कहीं बढ़ के है, ग़रज़ वह लोग हमारी आयतों से इन्कार ही करते रहे तो हम ने भी (तो उनके) नहूसत के दिनों में उन पर बड़ी ज़ोरों की आँधी चलाई ताकि दुनिया की ज़िन्दगी में भी उन को रूसवाई के अज़ाब का मज़ा चखा दें और आख़ेरत का अज़ाब तो और ज़्यादा रूसवा करने वाला ही होगा
और (फिर) उनको कहीं से मदद भी न मिलेगी और रह समूद तो हम ने उन को सीधा रास्ता दिखाया, मगर उन लोगों ने हिदायत के मुक़ाबले में गुमराही को पसंद किया तो उन के करतूतों की बदौलत ज़िल्लत के अज़ाब की बिजली ने उनको ले डाला, और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते थे उनको हम ने (उस) मुसीबत से बचा लिया, और जिस दिन खुदा के दुश्मन दोज़ख़ की तरफ़ हकाए जाएंगे तो ये लोग तरतीबदार खज़े किए जाएंगे यहां तक कि जब सब के सब जहन्नुम के पास जाएंगे तो उनके कान और उन की आँखें और उनके (गोश्त पोस्त) उनके ख़िलाफ़ उनेक मुक़ाबले में उनकी कारस्तानियों की गवाही(1) देंगे और यह लोग अपने आज़ा से कहेंगे कि तुम ने हमारे ख़िलाफ़ क्यों गवाही दी तो वह जवाब देंगे कि जिस खुदा ने हर चीज़ को गोया किया उसने हमको भी (अपनी कुदरत से) गोया किया
और उसी ने तुमको पहली बार पैदा किया था और (आख़िर) उसी की तरफ़ लौट कर जाओगे और (तुम्हारी तो ये हालत थी कि) तुम लोग इस ख़्याल से (अपने गुनाहों) की) परदादारी भी तो नहीं करते थे कि तुम्हारे कान और तुम्हारी आँखें और तुम्हारे आज़ा तुम्हारे बरख़िलाफ़ गवाही देंगे बल्कि इस ख़्याल में (भूले हुए) थे कि ख़ुदा को तुम्हारे बहुत से कामों की ख़बर ही नहीं(1) और तुम्हारी इस बदख़याली ने जो तुम अपने परवरदिगार के बारे में रखते थे
तुम्हें तबाह कर छोड़ा आख़िर तुम घाटे में रहे फिर अगर ये लोग सब्र भी करें तो भी उनका ठिकाना दोज़ख़ ही है और अगर तौबा करं तो उनकी तौबा क़ुबूल न की जाएगी और हम ने (गोया ख़ुद शैतानों को) उनका हम नशीन मु़क़र्रर करस दिया था तो उन्होंने उन के अगले पिछले तमाम उमूर उनकी नज़रों में भले कर दिखाए तो जिन्नात और इन्सानों की उम्मते जो उनसे पहले गुज़र चुकी थीं उनके साथ में (अज़ाब का) वादा उनके हक़ में भी पूरा होकर रहा बेशक ये लोग अपने घाटे के दरपे थे
और कुफ़्फ़ार कहने लगे(2) कि इस कुरआन को सुनो ही नहीं और जब पढ़ो (तो) उसके (बीच) में गुल मचा दिया करो ताकि (उस तरकीब से) तुम ग़ालिब आ जाओ, तो हम भी काफिरों को सख़्त अज़ाब के मज़े चखाएंगे और उनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा ये दोज़ख़ ही ख़ुदा के दुश्मनों का बदला है कि वह जो हमारी आयतों से इन्कार करते थे उस की सज़ा में उनके लिए उस में हमेशा (रहने) का घर है, और (क़यामत के दिन) कुफ़्फ़ार कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार जिनों और इन्सानों में से जिन लोगों ने हम को गुमराह किया था (एक नज़र) उनको हमें दिखादे कि हम उन को पांव तले (रौंद) डालें ताकि वह खूब ज़लील हों और जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) कहा कि हमारा परवरदिगार तो (बस) ख़ुदा है, फिर वह उसी पर क़ाएम भी रहे उन पर मौत के वक़्त (रहमत के) फ़रिश्ते नाज़िल होंगे (और कहेंगे) कि कुछ खौफ़ न करो और न ग़म ख़ाओ और जिस बेहिश्त का तुम से वादा किया था उसकी खुशियां मनाओ
हम दुनिया की ज़िन्दगी में तुम्हारे दोस्त थे और आख़ेरत में भी (रफीक़) हैं और जिस चीज़ को भी तुम्हारा जी चाहे बेहिश्त में तुम्हारे वास्ते मौजूद है और जो चीज़ तलब करोगे वहां तुम्हारे लिये (हाज़िर) होगी (ये) बख़्शने वाले मेहरबान (ख़ुदा) की तरफ से (तुम्हारी) मेहमानी है और उस से बेहतर किस की बात हो सकती है जो (लोगों को) ख़ुदा की तरफ़ बुलाए(1) और अच्छे अच्छे काम करे और कहे कि मैं भी यक़ीनन (खुदा के) फ़रमा बरदारों मे हूं और(2) भलाई बुराई (कभी) बारबर नहीं हो सकती तो (सख्त कलामी का) ऐसे तरीक़े से जवाब दो जो निहायत अच्छा हो (ऐसा करोगे) तो (तुम देखोगे) जिस में और तुम में दुश्मनी थी गोया वह तुम्हारा दिल सोज़ दोस्त है, ये बात बस उन्हीं लोगों को हासिल हुई है जो सब्र करने वाले हैं और उन्हीं लोगो को हासिल होती है जो बड़े नसीबवर हैं
और अगर तुम्हें शैतान की तरफ़ से वसवसा पैदा हो तो ख़ुदा की पनाह मांग लिया करो बेशक वह (सब की) सुनता जानता है और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और अगर तुम को ख़ुदा ही की इबादत करनी मंजूर है तो बस उसी को सजदा करो जिसने उन चीजडों को पैदा किया है- पस अगर ये लोग सरकशी करें तो (ख़ुदा को भी उनकी परवाह नहीं) जो लोग (फ़रिश्ते) तु्म्हारे परवरदिगार की बारगाह में हैं वह रात दिन उश की तस्बीह करते रहते हैं और वह लोग उकताते भी नहीं उस की कुदरत की निशानियों में से एक ये भी है कि तुम ज़मीन को खुश्क और बे-गियाह देखते हो फिर जब हम उस पर पानी बरसाते हैं तो लहलहाने लगती है और फूल जाती है- जिस (ख़ुदा) ने (मुर्दो) ज़मीन को ज़िन्दा किया वह यक़ीनन मुर्दों को भी जिलाएगा
बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है जो लोग हमारी आयतों में हेर फेर(1) पैदा करते हैं वह हरगिज़ हम से पोशीदा नहीं है- भला जो शख़्स दोज़ख़ में डाला जाएगा बह बेहतर है या वह शख़्स जो क़यामत के दिन बे ख़ौफ़ व ख़तर आएगा (ख़ैर) जो चाहो सो करो (मगर) जो कुछ तुम करते हो वह (ख़ुदा) उस को देख रहा है जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उन के पास आई न माना (वह अपना नतीजा देख लेंगे) और ये कुरआन तो यक़ीनी एक आली रूत्बा किताब है कि झूठ न तो उसके आगे ही फटक सकता है और न उस के पीछ से(2) और खूबियों वाले दाना (ख़ुदा) की बारगाह से नाज़िल हुई है
(ऐ रसूल) तुम से भी बस वही बातें कही जाती हैं जो तुम से और रसूलों से कही जा चुकी हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख़्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है और अगर हम इस कुरआन को अबरी जबान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करें तो ये लोग ज़रुर कह न बैठते कि उस की आयतें (हमारी ज़बान में) क्यों तफ़्सीलदार ब्यान नहीं की गई क्या (ख़ूब कुरआन तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कुरआन सर से पैर तक) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उन के कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कुरआन) उन के हक़ में नाबिनाई (का सबब) है, (तो गिरानी की वजह से गोया कि) वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते हैं (और नहीं सुनते)
और हम ही ने मूसा को भी किताब (तौरैत) अता की थी तो उसमें भी इख़्तेलाफ़ किया गया और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक बात पहले न हो चुकी होती तो उन में कब का फ़ैसला कर दिया गया होता, और ये लोग ऐसे शक में पड़े हुए हैं जिस ने उन्हें बैचैन कर दिया है जिस ने अच्छे-अच्छे काम किए तो अपने नफ़ा के लिए और जो बुरा काम करे उस का बवाल भी उसी पर है और तुम्हारा परवरदिगार तो बन्दों पर (कभी) ज़ुल्म करने वाला नहीं।
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