और मुझे क्या (ख़ब्त) हुआ है कि जिसने मुझे पैदा किया है उस की इबादत न करो हालांकि तुम सब के सब (आख़िर) उसी की तरफ़ लौट कर जाओगे
क्या मैं उसे छोड़ कर दूसरों को माबूद बना लूं अगर ख़ुदा मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो उन की सिफ़ारिश ही मेरे कुछ काम आएगी और न ये लोग मुझे (उस मुसीबत से) छुड़ा सकेंगे (अगर ऐसा करूं) तो उस वक़्त में यक़ीनी सरीही गुम्राही में हूं मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूं
मेरी बात सुनो(1) (और मानों मगर उन लोगं ने उसे संगसार कर डाला) तब (उसे खुदा का हुक्म हुवा) कि बेहिश्त में जा (उस वक़्त भी उस को क़ौम का ख़्याल आया तो कहाः मेरे परवरदिगार ने जो मुझे बख़्श दिया और मुझे बुजुर्ग लोगों में शामिल कर दिया काश उस को मेरी क़ौम के लोग जान लेते (और ईमान लाते)
और हमने उसके मरने के बाद उसकी क़ौम पर (उनकी तबाही के लिए) न तो आसमान से कोई लश्कर उतारा और न हम कभी (इतनी सी बात के वास्ते लश्कर) उतारने वाले थे वह तो सिर्फ़ एक चिंघाड़ थी (जो कर दी गई बस) फिर तो वह फ़ौरन (चिराग़ सहरी की तरह) बुझ कर रह गये- हाए अफ़सोस बंदों के हाल पर कि कभी उन के पास कोई रसूल नहीं आया- मगर उन लोगों ने उस के साथ मसख़्ररापन ज़रुर किया क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर नहीं किया कि हम ने उन से पहले कितनी उम्मतों को हलाक करस डाला
और वह लोग उन के पास हरगि़ज़ पलट कर नहीं आ सकते (हां) अलबत्ता सब के सब इकट्ठा होकर हमारी बारगाह में हाज़िर किये जाएंगे और उनके (समझने) के लिए (मेरी कुदरत की) एक निशानी मुरदा (पड़़ती) ज़मीन है कि हम ने उस को (पानी से) ज़िन्दा कर दिया और हम ही ने उससे दाना निकाल तो उसे ये लोग ख़ाया करते हैं
और हम ने ज़मीम ने छुहारों और अंगूरों के बाग़ लगाए और हम ने ही उस में पानी के चश्में जारी किये ताकि लोग उस के फ़ल खाएं और कुछ उन के हाथों ने उसे नहीं बनाया (बल्कि ख़ुदा ने) तो क्या ये लोग (उस पर भी) शुक्र नहीं करते
वह (वह हर ऐब से) पाक साफ़ है जिस ने ज़मीन से उगने वाली चीज़ों और ख़ुद उन लोगों के और उन चीज़ों के जिन की उन्हें ख़बर नहीं सब के जोड़े पैदा किये और (मेरी कु़दरत की) एक निशानी रात है जिस से हम दिन को खींच कर निकाल लेते (ज़ाएल कर देते) हैं तो उस वक़्त ये लोग अंधेरे में रह जाते हैं और (ऐ निशानी) आफ़ताब है जो अपने एक ठिकाने परर चल रहा है ये (सब से) ग़ालिब वाक़िफ़क़ार (ख़ुदा) का (बांधा हुवा अंदाज़ा है और हम ने चाँद के लिए मंजि़ले मुक़र्रर कर दी हैं यहां तक कि हिर फिर के (आख़िर माह में) खजूर की पुरानी टहनी का सा (पतला टेढ़ा) हो जाता है
न तो आफ़ताब ही से ये बन पड़ता है कि वह माहताब को जा ले(1) और न रात ही(2) दिन से आगे बढ़ सकती है (चाँद सूरज सितारे) हर एक (अपने-अपने) आसमान (मदार) में चक्कर लगा रहे हैं और उन के लिए (मेरी कुदरत) को एक निशानी यह है कि उन के बुज़ुर्गों को (नूह की) भरी हुई कश्ती में सवार िकया और उस कश्ती के मिस्ल उन लोगों के वास्ते भी वह चीज़ें (कश्तियां जहाज़) पैदा कर दी जिन पर ये लोग ख़ुद सवार हुवा करते हैं और अगर हम चाहे तो उन सब लोगों को जुबा मारें फिर न कोई उन का फ़रयाद-रस होगा और न वह लोग छुटकारा ही पा सकते हैं मगर हमारी मेहरबानी से और चूंकि एक (ख़ास) वक़्त तक (उनको) चैन करने देना (मंजूर) है
और जब उन कुफ़्फ़ार से कहा जाता है कि उस (अज़ाब से) बच्चो (हर वक़्त तुम्हारे साथ) तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे (मौजूद) है ताकि तुम पर रहम किया जाए (तो परवा नहीं करते) और उनकी हालत ये है कि जब उन के परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उन के पास आई तो यह लोग मुंह मोड़े बग़ैर कभी नहीं रहे और जब उन (कुफ़्फार) से कहा जाता है कि (माल दुनिया से) जो ख़ुदा ने तुम्हें दिया है उस में से कुछ (ख़ुदा की राह में) खर्च करो तो (यह) कुफ़्फ़ार ईमानदारों से कहते हैं कि भला हम उस शख़्स को खिलाए जिसे (तुम्हारे ख़याल के मुवाफ़िक़) ख़ुदा चाहता तो उसको ख़ुद खिलाता ताकि तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो
और कहते हैं कि (भला) अगर तुम लोग अपने वादे में सच्चे हो तो आख़िर ये (क़यामत का) वादा कब पूरा होगा (ऐ रसलू) ये लोग एक सख़्त चिंघाड़ (सूर) के मुन्तजि़र हैं जो उन्हें (उस वक़्त) ले डालेंगी जब ये लोग बाहम झगड़ रहे होंगे फळिर न तो ये लोग वसीयत ही करने पाएंगे और न अपने लड़के बालों ही तरफ़ लौट कर जा सकेंगे
और फिर (जब दुबारा) सूर फूका जायेगा तो उसी दम ये बस लोग (अपनी-अपनी) क़बरों से (निकल-निनकल) के अपने परवरदिगार की (बारगाह) की तरफ़ चल खड़े होंगे और (हैरान होकर) कहेंगे हाए अफ़सोस (हम तो पहले सो रहे थे) हमें हमारी ख़्वाबगाह से किस ने उठाया (जवाब आएगा) कि ये वही (क़यामत का) दिन है जिस का ख़ुदा ने (भी) वादा किया था और पैग़म्बरों ने भी सच कहा था (क़यामत तो) बस एक सख़्त चिंघाड होगी फिर एकाएकी लोग सब के सब हमारे हजूर में हाज़िर किये जाएंगे
फिर आज (क़यामत के दिऩ) किसी शख़्स पर कुछ भी जुल्म न होगा- और तुम लोगों को तो उसी का बदला दिया जाएगा जो तुम लोग (दुनिया में) किया करते ते- बेहिश्त के रहने वाले आज (रोज़ क़यामत) एक न एक मशग़ल में जी बहला रहे हैं
वह अपनी बीवियों के साथ (ठंडी) छाओं में लगाए तख़्तों पर (चैन से) बैठे हुए हैं- बेहिश्त में उन के लिए (ताज़ा) मेवे (तैयार ) है और जो वह चाहें उन के लिए (हाज़िर) है मेहरबान परवरदिगार की तरफ़ से सलाम का पैग़ाम आएगा और (एक आवाज़ आएगी कि) ऐ गुनाहगारों तुम लोग (उन से) अलग हो जाओ
ऐ आदम की औलाद क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की इबादत न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है और ये कि (देखो) सिर्फ़ मेरी इबादत करना यही (निजात की) सीधी राह है और (बावजूद उस के) उसने तुम में बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे ये वही जहन्नुम है जिस का तुम से वादा किया गया था तो अब चूंकि तुम कुफ्र करते थे ये वही उस वजह से आज उस में (चुपके से) चले जाओ आज हम उनको मुहों पर मोहर लगा देंगे
और जो (जो) कारस्तानियों ये लोग (दुनिया में) कर रहे थे ख़ुद उन के हाथ हम को बता देंगे और उनके पावं गवाही देंगे- और अगर हम चाहे तो उन की आँखं पर झाड़ू फेर दें तो यह लोग राह को पकड़ चक्कर लगाते ढूंढ़ते फिरे मगर कहां देख पाएंगे और अगर हम चाहे तो जहां ये हैं (वहीं) उन की सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दैं फिर न तो उन में आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें और हम जिस शख़्स को (बहुत) ज़्यादा उम्रे देते हैं तो उस ख़िलकत में उलट(1) (कर बच्चें की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझता नहीं
और हम ने उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उस शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ़-साफ़ कुरआन है ताकि तजो ज़िन्दा (दिल आक़िल) हो उसे (अज़ाब से) ड़राए- काफ़िरों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे) क्या उन लोगों ने उस पर ग़ौर नहीं किया कि हम ने उन के फ़ाएदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किये जिसे हमारी ही कुदरत ने बनाया तो ये लोग उनके (ख़्वाह मख़्वाह) मालिक बन गये और हम ही ने चारपायों को उनका मुतीअ बना दिया तो बाज़ उन की सवारियां है और बाज़ को खाते हैं और चारपायों में उन के (और) बहुत से फ़ाएदे हैं
और पीने की चीड़ (दूध) तो क्या ये लोग (उस पर भी) शुक्र नहीं करते और लोगों ने ख़ुदा को छोड़ कर (फ़रजी) माबून बनाए हैं- ताकि उन से कुछ मदद मिले हालांकि वह लोग उन की किसी तरह मदद ही नहीं कर सकते और यह कुफ़्फ़ार उन माबूदों के लश्कर हैं (और क़यामत में) उन सब की हाज़री ली जाएगी तो (ऐ रसूल) तुम उन की बातों से आज़ुरदा ख़ातिर न हो जो कुछ ये लोग छिपा कर करते हैं और जो कुछ खुल्लम ख़ुल्ला करते हैं हम सब को यक़ीनी जानते हैं- क्या आदमी(1) ने उस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने उस को एक (ज़लील) नुतफ़े से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है और हमारी निस्बत बातें बनाने लगा और अपनी ख़िलक़त (की हालत) भूल गया (और) कहने लगा कि भला जब ये हड्डियां (सड़ गलकर) ख़ाक हो जाएंगी तो (फिर) कौन (दुबारा) ज़िन्दा कर सकता है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि उस को वही ज़िन्दा करेगा जिसने उन को (जब वह कुछ न थे) पहली मर्तबा ज़िन्दा कर (रखा) वह हर तरह की पैदाइश से वाक़िफ़ हैं जिस ने तुम्हारे वास्ते (मरख़ और अफ़ार के) हरे(2) दरख़्त से आघ पैदा कर दी- फिर तुम उस से (और) आग खुलगा लेते हो (भला) जिस (ख़ुदा ) ने सारी आसमान और ज़मीन पैदा की मिस्ल (दुबारा) पैदा कर दे- हां (ज़रुर क़ाबू रखता है) और वह पैदा करने वाला वाक़िफ़दार है उस की शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि हो जाओ तो (फ़ौरन) हो जाती है तो वह ख़ुदा (हर नफ़्स से) पाक साफञ है जिस के कब्ज़ कुदरत में हर चीज़ की हुकूमत है और तुम लोग उसी की तरफ़ लौट कर जाओगे।
सूरऐ स़ाफ़्फ़़ात
सूरऐ साफ़्फ़ात मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 182 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(इबादत या जिहाद में) परा बान्धन वालो की (क़सम) फिर (बंदों की बुराई से) झिड़क कर डाटने वालों की (क़सम) फिर कुरआन के पढ़ने वालों की क़सम है कि तुम्हारा माबूद यक़ीनी एक ह है जो सारे आसमान ज़मीन और जो कुछ उन दोनों के दरमियान है (सब का) परवरदिगार है और (चांद सूरज तारे के) तूलु व (गुरूब) के मक़ामात का भी मालिक है
हम ही ने नीचे वाले आसमान को तारों की आराईश (जगमगाहट) से आरास्ता किया और (तारों को) हर सरकश शैतान से हिफ़ाज़त के वास्ते (भी पैदा किया) कि अब शैतान आलमे बाला की तरफ़ कान भी नहीं लगा सकते और (जहां सुन गुन लेना चाहा तो) हर तरफ़ से ख़दे़ड़ने के लिए शहाब फेके जाते हैं और उन के लिए पाएदार अज़ाब है कि मगर जो (शैतान शज़ो नादिर दर फ़रिश्ता की) कोई बात उचक(2) ले भागता है तो आग का दहेकता हुआ तीर उस का पीछा करता है तो (ऐ रसूल) तुम उन से पूछों तो कि उन का पैदा करना ज़्यादा दुश्वार है या उन (मज़कूरा) चीज़ों का जिन को हमने पैदा किया हमने तो उन लोगों को लसदार मिट्टी से पैदा किया बल्कि तुम तो (उन कुफ़्फ़ार के इंकार पर) ताजुब करते हो और वह लोग (तुम से) मस्ख़रापन करते हैं- और जब उन्हें समझाया जाता है तो समझते नहीं है और जो किसी मोजिज़ें को देखते हैं तो (उस से) मसख़रापन करते हैं
और कहते हैं कि ये तो बस खुला हुआ जादू है- भला जब हम मर जाएंगे और ख़ाक़ और हड्डियां रह जाएंगे तो क्या हम या हमारे आगले बाप दादा (फिर दोबारा क़ब्रों से) उठा खड़े किए जाएंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हां (ज़रुर उठाये जाओगे) और तुम ज़लील होंगे और वह (क़यामत) तो एक ललकार होगी फिर तो वह लोग फ़ौरन ही (आँखें फ़ाड़-फाड़ के) देखने लगेंगे और कहेंगे हाए अफ्सोस ये तो क़यामत का दिन है (जो अब आएगा) ये वही फ़ैसलों का दिन है जिस को तुम लोग (दुनियां में) झूठ समझते थे (और फ़रिश्तें को हुक्म होगा कि) जो लोग (दुनियां में) सरकशी कर जिन की इबादत करते हैं
उन को (सब को) इकट्ठा करो फिर उन्हें जहन्नुम की राह दिखाओ और (हां ज़रुर) उन्हें ठहराओ तो उन वैसे कुछ पूछना(1) है (अरे कम्बख़्तों) अब तुम्हें क्या हो गया कि एक दूसरे की मदद नहीं करते (जवाब क्या देंगे) बल्कि वह तो आज गर्दन झुकाए हुए हैं और एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जा होकर बाहम पूछ पाछ करेंगे (और इंसान शयातीन से) कहेगे कि तुम ही तो हमारी दाहनी तरफ से (हमें बहकाने को) चढ़ आते थे और वह जवाब देंगे- (हम क्या जाने) तुम तो ख़ुद ईमान लाने वाले न थे और (साफ़ तो ये हो कि) हमारी तुम पर कुछ हुकूमत तो थी नहीं बल्कि तुम ख़ुद सरकश लोग थे
फिर अब तो लोगों पर हमारे परवरदिगार का (अज़ाब का) कौ़ल पूरा हो गया कि अब हम सब यक़ीनन अज़ाब का मज़ा चखेंगे हम खुद गुमराह थे तो तुम को भी गुम्राह किया-ग़रज़ ये लोग सब के सब उस दिन अज़ाब में शरीक होंगे- और हम तो गुनाहगारों के साथ यूं ही किया करते हैं ये लोग ऐसे (शरीर) थे कि जब उन से कहा जाता था कि खु़दा के सिवा कोई माबूद नहीं तो अक़ड़ा करते थे और ये लोग कहते थे कि क्या एक पागल शाएर के लिए हम अपने माबूदों को छोड़ बैठेंगे (ऐ कम्बख़्तों ये शाएर या पागल नहीं) बल्कि ये तो हक़ बात लेकर आया है और (अगले) पैग़म्बर की तस्दीक़ करता है तुम लोग (अगर न मानोंगे) तो ज़रुर दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखोगे और तुम्हें तो उसी का बदला दिया जाएगा
जो (दुनियां में) करते रहै मगर ख़ुदा के बरगुज़ीदह बन्दे के वास्ते (बेहिश्त में) एक मुक़र्रर रोज़ी होगी (और वह भी ऐसी वैसी नहीं) हर क़िस्म के मेवे और वह लोग बड़ी इज़्ज़त से नेअमत के (लदे हुए) बागों में तख़्तों पर (चैन से) आमने सामने (बैठे) होंगे उन में साफ़ सफेद बराक़ शराब के जाम का दौर चल रहा होगा जो पीने वालों को बड़ा मज़ा देगी (और फ़िर) न उस शराब में (ख़ुमार की वजह से) दर्द सर होगा और न वह उस (के पीने) से मतवाले होंगे और उन के पहलै मे (शर्म से) नीची निगाह करने वाली बड़ी-बड़ी आँखों वाली (परिया) होंगी (उनकी गोरी-गोरी रंगतों में हल्की सी सुर्ख़ी ऐसी झलकती होगी) गोया वह अंड़े हैं जो छिपाए हुए रखे हों फिर एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जा पाकर बाहम बात चीत करते करते उन में से एक कहने वाला बोल उठेगा कि (दुनिया में) तस्दीक़ करने वालों में हो (भला जब हम मर जाएंगे और सड़ गल कर) मिट्टी और हड्डी (होकर) रह जाएंगे तो क्या हमको (दोबारा ज़िन्दा करके हमारे आमाल का) बदला दिया जाएगा
(फिर अपने बेहिश्त के साथियों से कहेगा) तो क्या तुम लोग भी (मेरे साथ) उसे झांक कर देखोगे- गरज़ झांका तो उसे बीच जहन्नुम में (पड़ा हुआ) देखा (ये देख कर बेसाख़्त) बोल उठेगा कि ख़ुदा की क़सम तुम तो मुझे भी तबाह करने ही को थे और अगर मेरे परवरदिगार का अहसान न होता तो मैं भी उस वक़्त तेरे साथ जहन्नुम में गिरफ़्तार किया गया होता (अब बताओ) क्या (मैं तुम से न कहता था कि) हम को इसी पहली मौत के सिवा फिर मरना नही है और न हम पर (आख़रत) में अज़ाब होगा
(तो तुम्हें यक़ीन न होता था) ये यक़ीनी बहुत बड़ी कामयाबी है ऐसी (ही कामयाबी) के वास्ते काम करने वालों को कारगुज़ारी करनी चाहिए भला मेहमानी के वास्ते ये (सामान) बेहतर है या थूहड़ का दरख़्त (जो जहन्नुमियों के वास्ते होगा) जिसे हमने यक़ीनन ज़ालिमों की आज़माइश(1) के लिए बनाया है- ये वह दरख़्त है जो जहन्नुम की तह में उगता है उस के फल ऐसे (बदनुमा) हैं गोया (हूं ब हू) सांप के फन जिसे छूते दिल डरे फिर ये (जहन्नुमी लोग) यक़ीनन उश में से खाएंगे फिर उसी से अपने पेट भरेंगे फिर उसके ऊपर से उन को खूब खौलता हुआ पानी (पीप वग़ैरह में) मिला मिला कर देने को दिया जाएगा फिर (खा पीकर) उनको जहन्नुम की तरफ़ यक़ीनन लौट जाना होगा उन लोगों ने अपने बाप दादा को गुम्राह पाया था तो ये लोग भी उन के पीछे दौडे चले जा रहे हैं
और उनके क़ब्ल अगलों में से बहुतेरे गुमराह हो चुके हालांकि हमने उन लोगों के डरानेवाले (पैग़म्बरों) को भेचा था ज़रा देखों तो कि जो लोग डराए जा चुके थे उन का कैसा बुरा अंजाम हुआ मगर (हां) ख़ुदा के निरे-ख़ुरे बन्दे (महफूज रहे)
और नूह(1) ने (अपनी कौ़म से मायूस होकर) हम को ज़रुर पुकारा था (देखो हम) क्या खूब जवाब देने वाले थे और हमने और उनके ल़के वालों को बड़ी (सख़्त) मुसीबत से निजात दी और हमने (उनमें वह बरकत दी कि) उनकी औलाद को (दुनिय में) बरक़रार रखा और बाद को अपने वाले लोगों में उनका अच्छा चर्चा बाक़ी रखा कि सारी ख़ुदाई में (हर तरफ़ से) नूह पर सलाम (ही) सलाम है हम नेकी करने वालों को यूं जजा़ए ख़ैर अता फ़रमाते हैं इसमें शक नहीं कि नूह हमारे (ख़ालिस) ईमानदार बंदों से थे फिर हमने बाक़ी लोगं को डुबा दिया
और यक़ीनन उसी के तरीक़े पर चलने वालों में इब्राहीम (भी) ज़रुर थे जब वह अपने परवरदिगार (कि इबादत) की तरफ़ (पहलू में) ऐसा दिल लिये हुए बड़े जो (हर एैब से( पाक था- जब उन्होंने अपने (मुंह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग किसी चीज़ की इबादत करते हो क्या ख़ुदा को छोड़ कर दिल से गढ़े हुए माबूदों की तमन्ना रखते हो कि सारी ख़ुदाई के पालने वाले के साथ तुम्हारा क्या ख़्याल है फिर (एक ईद में उन लोगों ने चलने को कहा) तो इब्राहीम ने सितारों की तरफ़ एक नज़र देखा और कहा कि में (अनक़रीब)(2) बीमार पड़ने वाला तो वह लोग इब्राहीम के पास से पीठ फेर-फ़ेर कर हट गये (बस) फिर तो इब्राहीम चुपके से उनके बुतों की तरफ़ मुतवज्जा हुए और (तानसे) कहा (तुम्हारे सामने इतने चढ़ावे रखे हैं) आख़िर तुम क्यों नहीं (अरे) तुम्हें क्या हो गया है कि तुम बोलते तक नही फिर तो इब्राहीम दाहिने हाथ से मारते हुए उन पर पिल पड़े (और तोड़ फोड़ कर एक बडे़ बुत के गले में कुल्हाड़ी डाल दी) जब उन लोगों को ख़बर हुई तो इब्राहीम के पास दौड़ते हुए पहुंचे इब्राहीम ने कहा (अफ़सोस) तुम लोग उसकी इबादत करते हो जिसे तुम लोग खुद तराशते कर बनाते हो हालांकि तुम को और जिसको तुम लोग बनाते हो (सब को) ख़ुदा ही ने पैदा किया है
(यह सुनकर) वह लोग (आपस में कहने लगे उसके लिए भट्टी की सी) एक इमारत बनाओ और (उसमें आग सुलगा कर उसी दहकती हुई आग में इसको डाल दो) फिर उन लोगों ने इब्राहीम के साथ मक्कारी करनी चाही तो हमने (आग सर्द गुलज़ार करके) उन्हें नीचा दिखाया और जब (आज़र ने) इब्राहीम को निकाल दिया तो बोले मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ जाता हूं वह अनक़रीब ही मुझे रू बराह कर देगा
(फिर अर्ज़ की) परवरदिगार मुझे एक नेकोकार (फ़रज़न्द) इनायत फ़रमा तो हमने उनको एक बड़े नर्म दिल लड़के (के पैदा होने की) ख़ुशख़बरी दी फिर जब इस्माईल अपने बाप के साथ दौड़ धूप करने लगा तो (एक दफ़ा) इब्राहीम ने कहा बेटा। ख़्वाब(1) में (वही के ज़रिये क्या) देखता हूं कि मैं ख़ुद तुम्हें ज़बह कर रहा हूं तो तूम भी ग़ौर करो तुम्हारी इसमें क्या राय है- इस्माईल ने कहा अब्बा जान। जो आफको हुक्म हुवा है उसको (बे-ताअम्मुल) कीजिए अगर ख़ुदा ने चाहा तो मुझे आप सब्र करने वालों में से पाएगा-फिर जब दोनों ने यह ठान ली और बाप ने बेटे को (ज़बह करने के लिए) माथे के बल लिटाया और हमने (आमादा देखकर) आवाज़ दी ऐ इब्राहीम तुम ने अपने ख़्वाब को सच कर दिखाया (अब तुम दोनों को बड़े मर्तबे मिलेंगे हम नेकी) करने वालों को यूं जज़ाए ख़ैर देते हैं- इसमें शक नहीं कि यह यक़ीनी बड़ा (सख़्त और) सरीही इम्तेहान था और हमने इस्माईल का फ़िदया एक(1) जिब्हे अज़ीम (बड़ी कुरबानी) क़रार दिया
और हमने उनका (अच्छा चर्चा को बाद को आने वालों मे बाक़ी रखा कि सारी ख़ुदाई में) इब्राहीम पर सालम (ही सलाम) है- हम यूं नेकी करने वालों को जज़ाए ख़ैर देते हैं बेशक इब्राहीम हमारे (खास) ईमानदार बन्दों में थे और हमने इब्राहीम को इसहाक़ (कै पैदा होने) की (भी) ख़ुशख़बरी दी थई जो एक नेकोकार नबी थे और हमने ख़ुद इब्राहीम पर और असहाक़ पर अपनी बरकत नाज़िल की
और उन दोनों की नस्ल में बाज़ तो नेकोकार और बाज़ (नाफ़रमानी करके) अपनी जान पर सरीही सितम ढाने वाला-और हमने मूसा और हारून(2) पर बहुत से अहसानाता किये हैं और खुद उन दोनों को और उनकी क़ौम को बड़ी (सख़्त) मुसीबत से निजात दी और (फ़िरऔन के मुक़ाबले में) हमने उन की मदद की तो (आख़िर) यही लोग ग़ालिब रहे- और हमने उनदोनों को एक वाज़ेअल मतालिब किताब (तौरैत) अता की और दोनों को सीधी राह कि हिदायत फ़रमाई और बाद को आपने वालों में उनाक ज़िक्र ख़ैर बाक़ी रखा कि (हर जगह) मूसा और हारून पर सलाम (ही सलाम) है- हम नेकी करने वालों को यू जज़ाए ख़ैर अता फ़रमाते हैं- बेशक ये दोनों हमारे (ख़ालिस) ईमानदार बंदों में से थे
और उसमें भी शक नहीं कि इल्यास(1) यक़ीनन पैग़म्बरों से थे- जब उन्होंने अपनी क़ौम स कहा कि तुम लोग (खुदा से) क्यों नहीं डरते क्या तुम लोग बाअल (बुत) की इबादत करते हो और ख़ुदा को छोडे बैठो हेो जो सब से बेहतर पैदा करने वाला है और (जो) तुम्हारा परवरदिगार और तुम्हारे अगले बाप दादाओं का (भी) परवरदिगार है तो उसे लोगों ने झुटला दिया तो यह लोग यक़ीनन (जहन्नुम) में गिरफ़्तार किये जाएंगे- मगर खु़दा के निरे खुरे बंदे (महफूज़ रहेंगे) हमने उनका ज़िक्रे ख़ैर बाद को आने वालों में बाक़ी रखा कि (हर तरफ़ से) आले यासीन(2) पर सलम (ही सलाम) है- हम यक़ीनन नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं बेशक वह हमारे (ख़ालिस) ईमानदार बंदों में थे और इस में भी शक नहीं कि लूत यक़ीनी पैग़म्बरों में से थे जब हमने उनको और उनके लड़के वालों सब को निजात दी-मगर एक (उनकी) बूढ़ी बीवी जो पीछे रह जाने वालों में थी- फिर हमने बाक़ी लोगों को तबाह व बरबाद कर दिया
और ऐ अहले मक्का तुम लोग उन पर से (कभी) सुबह को और (कभी) शाम को (आते जाते) गुज़रते हो तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते और उसमें शक नहीं की यूनुस (भी) पैग़म्बरों में थे
(वह वक़्त याद करो) जब यूनूस भाग कर एक भरी हुए कश्ती के पास पहुंचे तो (अहले कश्ती ने) कुरा डाला तो (उन का ही नाम) निकला यूनुस ने ज़क उठाई (और दरिया में गिर पड़े) तो उनको एक मछली निगल गई और यूनुस ख़ुद (अपनी मलामत कर रहे थे फिर अगर यूनुस (ख़ुदा की) तस्बीह (व ज़िक्र) न करते तो रोज़े क़यामत तक मछली ही के पेट में रहते फिर हमने उनको (मछली के पेट से निकाल कर) एक खुले मैदान में डाल दिया और (वह थोड़ी देर में) बीमार निढाल हो गए थे और हमने उन पर (साए के लिए) एक कद्दू(1) का दरख़्त उगा दिया और (उसके बाद) हमने एक लाख बल्कि (एक हिसाब से) ज़्यादा आदमियों(2) की तरफ़ (पैग़म्बर बना कर भेजा) तो वह लोग (उन पर) ईमान लाए फिर हमने (भी) एक ख़ास वक़्त तक उनको चैन से रखा तो (ऐ रसूल) उन कुफ़्फ़ार से पूछो कि क्या तुम्हारे परवरदिगार के लिए बेटियां हैं और उनके लिए बेटे (क्या वाक़ई) हमने फ़रिश्तों को औरतें बनाया है और ये लोग (उस वक़्त) मौजूद थे
ख़बरदार (याद रखो की) ये लोग यकीनी अपने दिल से गढ़ गढ़ के कहते हैं कि ख़ुदा औलाद वाला है और ये लोग यक़ीनी झूठे हैं- क्या ख़ुदा ने (अपने लिए) बेटियों को बेटों पर तरजीह दी है (अरे कम्बख़्तों) तुम्हें क्या जूनुन हो गया है तुम लोग (बैठे-बैठे) कैसा फ़ैसला करते हो तो क्या तुम (इतना भी) ग़ौर नहीं करते या तुम्हारे पास (उसकी) कोई वाज़े व रौशन दलील है तो अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो अपनी किताब पेश करो
और उन लोगों ने ख़ुदा और जिन्नात के दरमिया रिश्ता नाता मुक़र्रर किया है- हालांकि जिन्नात बख़ूबी(1) जानते हैं कि वह लोग यक़ीनी (क़यामत में बन्दों की तरह) हाज़िर किए जाएंगे ये लोग जो बाते बनाया करते हैं उनसे ख़ुदा पाक साफ है मगर खु़ाद के निरे ख़ुरे बन्दे (ऐसा नहीं कहते) गरज़ तुम लोग ख़ुद और तुम्हारे माबूद उसके ख़िलाफ़ (किसी को) बहका नहीं सकते मगर उसको जो जहन्नुम में झोंका जाने वाला है और (फ़रिश्ते या आइम्मा तो ये कहते हैं कि) हममे(2) से हर एक का एक दर्जा मुक़र्रर है और हमको यक़ीनन (उसकी इबादत के लिए) सफ़ बांधे खड़े रहेत हैं और हम तो यक़ीनी (उसकी) तस्बह पढ़ा करते हैं- अगर चे ये कुफ़्फ़ार (इस्लाम के क़ब्ल) कहा करते थे कि अगर हमारे पास भी अगले लोगों का तज़किरा (किसी कितबा ख़ुदा मे) होता तो हम भी ख़ुदा के निरे खुरे बन्दे ज़रुर हो जाते (मगर जब किताब आई) तो उन लोगों ने उससे इंकार किया
ख़ैर अनक़रीब (उसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा और अपने ख़ास बन्दों पैग़म्बरों से हमारी बात पक्की हो चुकी है- कि उन लोगों को (हमारी बारगाह से) यक़ीनी मदद की जाएगी और हमारा लश्कर तो यक़ीनन ग़ालिब होगा- तो (ऐ रसूल) तो उनसे एक ख़ास वक़्त तक मुंह फेरे रहो- और उनको देकते रहो तो यह लोग खुद अनक़रीब ही (अपना नतीजा) देख लेंगे तो क्या यह लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं फिर जब (अज़ाब) उनकी अंगनाई में उतर पड़ेगा तो जो लोग डराए जा चुके हैं उनकी भी क्या बुरी सुबह(1) होगी और उन लोगों से एक ख़ास वक़्त तक मुँह फेरे रहो और देखत रहो यह लोग तो ख़ुद अनक़रीब ही (अपना अंजाम) देख लेंगे यह लोग जो बातें (ख़ुदा के बारे में) बनाया करते हैं उनसे तुम्हारा परवरदिगार इज़्ज़त का मालिक ापक साफ़ है और पैग़म्बरों पर (दुरूद) सलाम हो- और कुल तारीफ़े खुदा ही के लिए सज़ावार हैं जो सारे जहान का पालने वाला है।
सूरऐ स़ाद
सूरऐ स़ाद मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 88 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
सुवाद नसीहत करने वाले कुरआन की क़सम (तुम बरहक़ नबी हो) मगर ये कुफ़्फ़ार (ख़्वाह मख़्वाह) तकब्बुर और अदावत में (प़ड़े अंधे हो रहे) हैं- हमने उनसे पहले कितने गिरोह हलाकर कर डाले तो (अज़ाब के वक़्त) यह लोग चीख उठे मगर छुटकारे का वक़्त ही न रहा था और उन लोगों ने उस बात से ताजुब किया कि उन ही का मैं (अज़ाब खु़दा से) एक डराने वाला (पैगम़्बर) उकने पास आया और काफिर लोग कहने लगे कि यह तो बड़ा (ख़िलाड़ी) जादूगर और पक्का झूटा है भला (देखो तो) उसने तमाम माबूदों को (मलयामेट करक बस) एक ही माबूद(1) क़ाएम रखा यह तो यकीनी बडडी ताज्जुब वाली बात है
और उनमें से चंद रुदार लोग (मजलिस वाज़ से) यह (कहकर) चल खड़े हुए कि (यहां से) चल दो और अपने माबूदों की इबादत पर जमे रहो यक़ीनन उसमें (उसकी) कुछ (ज़ाती) ग़रज़ है हम लोगों ने तो यह बात पिछली दीन में कभी सुनी भी नहीं-हो न हो यह उसकी मन गढ़ंत है क्या हम सब लोगों में बस (मुहम्मद ही क़ाबिल था कि) उशी पर कुरआन नाज़िल हुवा, नहीं बात यह है कि उनको (सिरे से) मेरे कलाम ही में शक है कि मेरा है या नहीं बल्कि असल यह है कि उन लोगों ने अभी तक अजड़ाब के मज़े नहीं चखे (इस वजह से यह शरारत है) या
(ऐ रसूल) तुम्हारे ज़बरदस्त फ़य्याज़ परवरदिगार की रहमत के ख़ज़ाने उनके पास है- या सारे आसमान व ज़मीन और उन दोनों के दरम्यान की सल्तनत उनीहं की ख़ास है तब उनको चाहिए कि रस्से या सिढ़ियां लगा कर (आसमान पर) चढ़ जाएं और इन्तेज़ाम करें (ऐ रसूल उन पैग़म्बरों के साथ झगड़ने वाले) गिरोहों में से यहां तुम्हारे मुक़ाबले में भी एक लश्कर है जो शिकस्त खाएगा- उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और फिरऔन मेखों वाला और समूद और लूत की क़ौम और जंगल के रहने वाले (क़ौम शुएब ये सब पैग़म्बरों को) झुठला चुकी है यही वह गिरोह है (जो शिकस्त खा चुके) सब ही ने तो पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमारा अज़ाब ठीक आ नाज़िल हुआ और ये (काफिर) लोग बस एक चिंघाड़ (सूर) के मुन्तजि़र हैं जो (फिर उन्हें) चश्मे-ज़दन(1) की मोहतल न देगी-और ये लोग (मज़ाक़ से कहते हैं कि परवरदिगार हिसाब के दिन (कयामत के) क़ब्ल ही (जो) हमारी क़िस्मत का लिखा (हो) हमें जल्दी से दे दें
(ऐ रसूल) जैसी-जैसी बातें ये लोग करते हैं उन पर सब्र करो और हमेर बन्दे दाऊद को याद करो जो बड़े कुवत वाले थे (मगर सब्र किया) बेशख वह (हमारी बारगाह में) बड़े रुजूअ करने वाले थे हमने पहाड़ों को भी ताबदार बना दिया था कि उन के साथ सुबह और शाम (ख़ुदा की) तस्बीह करते थे और परिन्द भी (याद खुदा के वक़्त सिमट) आते (और) उन के फ़रमा बरदार थे और हमने उन की सल्तनत को मज़बूत(2) कर दिया और हमने उन को हिकमत और बहस(2) के फ़ैसले की कुवत अता फ़रमाई थी
(ऐ रसूल) क्या तुम तक उन दावेदारों की भी ख़बर पहुंची है कि जब वह हुजराह (इबादत) की दीवार फांद पड़़े (और) जब दाऊद के पास आ खड़े हुए तो वह उन से डर गए उन लोगों ने कहा कि आप डरे नहीं (हम दोनों) एक मुक़दमा के फ़रक़ीन हैं कि हम में से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है तो आप हमारे दरमियान ठीक ठीक फैसला कर दीजिए और इंसाफ़ से न गुज़रिए और हमें सीधी राह दिखा दीजिए (रूदाद ये है कि) ये (शख़्स) मेरा(1) भाई है और उसके पास निनावे दु्म्बिया हैं और मेरे पास सिर्फ़ एक दुम्बी है उस पर ये मुझ से कहता है कि ये दुम्बी भी मुझी को दे दे और बातचीत में मुझ पर सख्ती करता है- दाऊद ने (बग़ैर उसके मुद्दा अलैह (मुलज़िम) से कुछ पूछे) कह दिया कि ये जो तेरी दुम्बी मांग कर अपनी दुम्बियों में मिलाना चाहता है तो ये तुझ पर जुल्म करता है और अक़्सर शोरका (पार्टनर्स) (की) यक़ीन (ये हालत है कि) एक दूसरे पर जुल्म किया करते हैं मगर जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) ईमान क़बूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसा नहीं करते) औरऐसे लोग बहुत ही कम हैं (ये सुनकर दोनों चल दिए) और अब दाऊद ने समझा कि हमने उनका इम्तेहान लिया (और वह नाकामयाब रहे) फिर तो अपने परवरदिगार से बख़्शिश की दुआ मांगने लगे और सज्दे में गिर पड़े और (मेरी तरफ़) रुजूअ की तो हमने उन की वह लग़ज़िश माफ़ कर दी और उस में शक नहीं कि हमारी बारगाह में उनका तक़र्रूब और अंजाम अच्छा है हम ने फ़रमाया)
ऐ दाऊद हमने तुम को ज़मीन में (अपना) नाएब क़रार दिया तो तुम लोगों के दरमियान बिल्कुल ठीक फ़ैसला किया करो और नफ़्सानी ख़्वाहिश की पैरवी न करो-वरना ये पैरवी तुम्हें ख़ुदा की राह से बहका देगी उस में शक नहीं कि लोग ख़ुदा की राह से भटकते हैं उन की बड़ी सख़्त सज़ा होगी क्योंकि उन लोगों ने हिसाब के दिन (क़यामत) को भुला दिया और हम ने आसमान और ज़मीम और जो चीज़े उन दोनों के दरमियान हैं बेकार नहीं पैदा किया ये उन लोगों का ख़्याल है जो काफ़िर हो बैठे
तो जो लोग दोज़ख़ के मुन्क़र हैं उन पर अफ़्सोस है क्या जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए उनको हम (उन लोगों के बराबर) कर दें जो रुए ज़मीन में फ़साद फैलाया करते हैं या हम परहेज़गारों के मिस्ल बदकारों के बना दें (ऐ रसूल) किताब (कुरआन) जो हमने तुम्हारे पास नाज़िल की है (बड़ी) बरकत वाली है ताकि लोग उसकी आय़तों में गौ़र करें और ताकि अक़्ल वाले नसीहत हासिल करें
और हमने दाऊद को सुलेमान (सा बेटा) अता किया (सुलेमान भी) क्या अच्छे बन्दे थे बेशक वह (हमारी तरफ़) रुजूअ करने वाले थे इत्तेफ़ाकन एक दफ़ा तीसरे पहर को ख़ासे के असील घोड़े उनके सामने पेश किए गए तो देखने में उल्झे कि नवाफिल में देर हो गुए जब याद आया तो बोले कि मैंने अपने परवरदिगार की याद पर माल की उल्फ़त को तरजीह दी यहां तक कि आफ़ाताब (मग़रिब के) पर्दे में छिप गया (तो बोले अच्छा) उन घोड़ों को मेरे पास वापस लाओ (जब आए) तो (देर के कफ़्फ़ार में) घोड़ों की टांगों और गर्दनों पर हाथ फेर(2) (काटने) लगे
और हमने सुलेमान का इम्तेहान लिया और उनके तख़्त पर एक बेजान(2) धड़ लाकर गिरा दिया फिर (सुलेमान ने मेरी तरफ़) रुजू किया (और) कहा परवरदिगार मुझे बख़्श दे और मुझे वह मुल्क अता फ़रमा जो मेरे बाद किसी के वास्ते शायान न हो इसमें तो शक ही नहीं कि तू बड़ा बख़्शने वाला है तो हमने हवा को उनका ताबेअ कर दिया कि जहां वह पहुँचना चाहते थे उनके हुक्म के मुताबिक़ धीमी चाल चलती थी और (उसी तरह) जितने शयातीन (देव) इमारत बनाने वाले और ग़ोता लगाने वाले थे सबको (ताबेअ कर दिया और उसके अलावा) दूसरे देवों को भी जो जंज़ीरों में जकड़े हुए थे ऐ सुलेमान ये हमारी बे हिसाब अता है पस (उसे लोगों को दे कर) अहसान करो या (सब) अपने ही पास रखो-और इसमें शक नहीं कि सुलेमान की हमारी बारगाह में कुब्र मंज़ीलत और उम्दा जगह है
और (ऐ रसूल) हमारे (ख़ास) बन्दें अय्यूब को याद करो जब उन्होंने अपने परवरदिगार से फ़रयाद की कि मुझ को शैतान ने बहुत अज़ीयत और तकलीफ़ पहुंचा रखी है तो हमने कहा कि अपने पांव से (ज़मीन को) ठुकरा दो (और चश्मा निकला तो हमने कहा कि ऐ अय्यूब) तुम्हारे नहाने और पाने के वास्ते ये ठंडा पानी (हाज़िर) है और हमने उनको और उनके लड़के बाले और उनके साथ इतने ही और अपनी ख़ास मेहरबानी ने अता किए और अक़लमन्दों के लिए इबरत व नसीहत (क़रार दी) और हमने कहा ऐ अय्यूब तुम अपने हाथ से सीकों का मुट्ठा लो (और उससे अपनी बीवी को) मारो अपनी क़सम में झूठे न बनो हमने अय्यूब को यक़ीनन साबिर पाया वह क्या अच्छे बन्दे थे बेशक वह (हमारी बारगाह में) बड़े झुकने वाले थे
और (ऐ रसूल) हमारे बन्दों में इब्राहीम और इसहाक़ और याकूब को याद करो जो कुव्वत और बसीरत वाले थे हमने उन लोगों को एक ख़ास सिफ़त आख़ेरत को याद से मुमताज़ किया था और इसमें शक नहीं कि ये लोग हमारी बारगाह में बुरगुज़ीदा और नेक लोगों में हैं और (ऐ रसूल) इस्माईल और अलयसा और जुलक़िफ़ल को (भी) याद करो(1) और (यह) सब नेक बंदों में हैं ये एक नसीहत है और उमसें शक नहीं कि परहेज़गारों के लिए (आख़ेरत में) यक़ीनी अच्छी आरामगाह है (यानी) हमेशा रहने के (बेहिश्त के) सदा बहार बाग़ात जिन के दरवाज़े उन के लिए (बराबर) खुले होंगे और ये लोग वहां तकये लगाए हुए (चैन से बैठे) होंगे वहां (ख़ुद्दाम बेहिश्त से) क़सरत से मेवे और शराब मंगवायेंगे और उनके पहलू में नीची नज़रों वाली (शरमीली) हमसिन बीबियां होंगी (मोमिन) ये वह चीज़ें हैं जिन का हिसाब के दिन (क़यामत) के लिये तुम से वादा किया जाता है बेशक ये हमारी (दी हुई) रोज़ी है जो कभी तमाम न होगी ये (परहेज़गारों का अंजाम) है और सरकशों का तो यक़ीनी बुरा ठिकाना है
जहन्नुम जिस में उन को जाना पड़ेगा तो वह क्या बुरा ठिकाना है- ये खौलता हुवा पानी और पीप और उसी तरह अनवाअ अक़साम की दुसरी चीज़ें हैं तो ये लोग उन्हें पड़े चका करें (कुछ लोगों के बारे में बड़ों से) कहा जाएगा ये (तुम्हारी चीलों की) फौज भी तुम्हारे साथ ही ठूंसी जाएगी उनका भला न हो(2) ये सब भी दोज़ख को जाने वाले हैं (तो चलिए) कहेंगे (हम क्यों) बल्कि तुम (जहन्नुमी हों) तुम्हारा ही भला न हो तुम ही लोगों ने तो इस (बला) से हमारा सामना करा दिया तो जहन्नुम भी क्या बुरी जगह है (फिर वह) अर्ज़ करेंगे परवरदिगार जिस शख़्स ने हमारा इस (बला) से सामना करा दिया तो उस पर से हम पर जहन्नुम में दोगुना अज़ाब कर और (फिर) खुद भी कहेंगे हमें क्या हो गया है कि हम जिन(1) लोगों को (दुनियां में) शरीऱ शुमार करते थे हम उन को (यहां दोज़ख़ में) नहीं देखते क्या हम उन से (ना हक़) मसख़रापन करते थे या उन (की तरफ़) से (हमारी) आँखें पलट गई हैं
इसमें शक नहीं कि जहन्नुमयों का बाहम झगड़ना यह बल्किलु यक़ीनी ठीक है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस (अज़ाबे खु़दा से) डराने वाला हूं और यकता कहार ख़ुदा के सिवा कोई माबूद क़ाबिल इबादत नहीं सारे आसमान और ज़मीन का और जो चीज़ उन दोनों के दरम्यान है (सबका) परवरदिगार ग़ालिब बख़्शने वाला है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये (क़यामत) एक बहुत बड़ा वक़या है जिस से तुम लोग (ख़्वाह मख़्वाह) मुंह फ़ेरते हो आलमे बाला के रहने वाले (फरिश्ते) जब बाहम बहस करते थे उस की मुझे भी ख़बर न थी मेरे पास तो बस वही की गई कि मैं (ख़ुदा के अज़ाब से) साफ़ साफ़ डरने वाला हूं
(वह बहस यह थी कि) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं गीली मिट्टी से एक आदमी बनाने वाला हूं तो जब मैं उस को दुरुस्त कर लूं और उस में अपनी (पैदा की हुई) रूह फूंक दूं तो तुम सब के सब उस के सामने सज्दे में गिर पड़ना तो सब के सब कुल फ़रिश्तों ने सज्दा किया मगर (एक) इबलीस ने कि वहह शेखी में आ गया और काफ़िरों में हो गया-ख़ुदा ने (इबलीस से) फ़रमाया कि ऐ इबलीस जिस चीज़ को मैंने अपनी ख़ास कुदरत से पैदा किया (भला) उस को सजदा करने से तुझे किस ने रोका क्या तूने तकब्बुर किया क्या वाक़ई तू बडे दरजे वालों में है
इबलीस बोल उठा कि मैं उस से बेहतर हूं तूने मुझे आग से पैदा किया और उसको तूने मिट्टी से पैदा किया (कहाँ अघ कहां मिट्टी) खुदा ने फ़रमाया कि तू यहां से निकल (दूर हो) तू तो यक़ीनी मरदूद है और तुझ पर रोज़ जज़ा (क़यामत) तक मेरी फ़टकार पड़ा करेगी शैतान ने अर्ज़ की परवरदिगार तू मुझे उस दिन तक की मोहलत अता कर जिस में सब लोग (दुबारा) उठ खड़े किये जाएंगे- फ़रमाया तुझे एक वक़्त मुअय्यन के दिन तक की मोहलत दी गई- वह बोला तेरे ही इज़्ज़त (व जलाल) की क़सम उन में से तेरे ख़ालिस बंदों के सिवा सब के सब को ज़रुर गुमराह करूंगा ख़ुदा ने फ़रमाया तो (हम भी) हक़ बात (कह देते है) और मैं तो हक़ ही कहा करता हूं कि मैं तुझ से और जो लोग तेरी ताबदारी करेंगे उन सब से जहन्नुम को ज़रुर भर दूंगा
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो तुम से न इस (तबलीग़े रिसालत) की मज़दूरी मांगता हूं और न मैं (झूट मूट) बनावट करने वाला हूं- ये (कुरआन) तो बस सारे जहान के लिए नसीहत है और कुछ दिनों बाद तुम को उस की हक़ीक़त मालूम हो जाएगी
सूरऐ जुमर
सूरऐ जुमर मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 75 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
(इस) किताब (कुरआन) का नाज़िल करना उस ख़ुदा की बारगाह से है जो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (ऐ रसलू) हमने किताब (कुरआन) को बिल्कुल ठीक नाज़िल किया है तो तुम इबादत को उसी के लिए निरा खरा करके ख़ुदा की बंदगी किया करो आगाह रहे कि इबादत तो ख़ास ख़ुदा ही के लिए है और जिन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (औरों को अपने) सरपरस्त बना रखा है (और कहते हैं कि) हम तो उन की इबादत सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि यह लोग ख़ुदा की बारगाह में हमारा तक़र्रुब बढ़ाएंगे
इसमें शक नहीं कि जिस बात में यह लोग झगड़ते हैं (क़यामत के दिन) ख़ुदा उनके दरम्यान उसमें फ़ैसला कर देगा बेशक खुदा झूटे नाशुक्रे को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता अगर खु़दा किसी को (अपना) बेटा बनाना चाहता है तो अपने मख़लूकात में से जिसे चाहता हे मुनतख़िब कर लेता (मगर) वह तो उससे पाक व पाकीज़ा है वह तो यक्ता बड़ा ज़बरदस्त अल्लाह है उसी ने सारे आसमान और ज़मीन को बजा (दुरुस्त) पैदा किया वही रात को दिन पर ऊपर तले लपेटता है और वही दिन को रात पर तह-ब-तह लपेटता है और उसी ने आफ़ताब और महताब को अपने बस में कर लिया है और यह सबके सब अपने (अपने) मुक़र्रर वक़्त चलते रहेंगे
आगाह रहे कि वही ग़ालिब बड़ा बख़्शने वाला है उसी ने तुम सबको एक ही शख़्स से पैदा किया फिर उस (क वाक़ी मिट्टी) से उसकी बीवी (हव्वा) को पैदा किया और उसी ने तुम्हारे लिए आठ क़िस्म के(1) चार पाए पैदा किए वही तुमको तुम्हारी माओं के पेट में एक क़िस्म की पैदाइश के बाद दूसरी कि़स्म (नुत्फ़ा जमा हुआ खून लोथड़ा) की पैदाइश से तेहरे तेहरे अंदेंरों (पेट रहम और झिल्ली) में पैदा करता है वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसी की बादशाही के उसके सिवा माबूद नहीं तो तुम लोग कहा फिरे जाते हो अगर तुमने उसकी नाशुक्री की तो (याद रखो कि) ख़ुदा तुमसे बिल्कुल बेपरवाह है और अपने बन्दों से कुछ और(2) नाशुक्री को पसन्द नहीं करता और अगर तुम शुक्र करोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते पसन्द करता है और (क़यामत में) कोई किसी (के गुनाह) का बोझ (अपनी गर्दन पर) नहीं उठाएगा फिर तुमको अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटना है तो दुनियां में तुम जो कुछ (भला बुरा) करते थे वह तुम्हें सुना देगा वह तो यक़ीन दिलों के राज़ (तक) से काबू वाक़िफ़ है
और आदमी(2) (की हालत तो यह है कि) जब उसको कोई तकलीफ़ पहुंचाती है तो उसी की तरफ़ रुज़ू करके अपने परवरदिगार से दुआ करता है (मगर) फिर जब खुदा अपनी तरफ़ से उसे नेअमत अता फ़रमा देता है तो जिस काम के लिए पहले उससे दुआ करता था उसे भुला देता है और (बल्कि) खुदा का शरीक बनाने लगता है ताकि (उस ज़रिए से और लोगों को भी) उसकी राह से गुमराह करदे (ऐ रसलू ऐसे शख़्स से) कह दो कि थोड़े दिनों और अपने कुफ़्फ़ार (की हालत) में चैन कर लो (आख़िर) तो यक़ीनी जहन्नुमियों में होगा क्या जो शख़्स रात(4) के औक़ात में सज्दा कर करके और खड़े-खड़े (ख़ुदा की) इबादत करता हो और आख़ेरत से डरता हो अपने परवरदिगार की रहमत का उम्मीदवार (नाशुक्रे) काफ़िर के बराबर हो सकता है
(ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि भला कहीं जानने वाले और न जानने वाले लोग बराबर हो सकते हैं (मगर) नसीहत इबरत तो बस इक़लमन्द ही लोग मानते हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे ईमानदार बन्दों अपने परवरदिगार (ही) से डरते रहो (क्यों) जिन लोगों ने उस दुनियां में नेकी की उन ही के लिए (आख़ेरत में) भलाई है और ख़ुदा की ज़मीन तो कुशादा है (जहां इबादत न कर सको उसे छोड़ दो) सब्र करने वाले ही को तो उनका भरबूर बे हिसाब बदला लिया जाएगा
(ऐ रसूल) तम कह दो कि मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं इबादत को उसी के लिए ख़ालिस करके ख़ुदा ही की बन्दगी करूं और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं सब से पहला मुसलमान हूं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी करूं तो मैं एक बड़े (सख़्त) दिन (कयामत) के अज़ाब से डरता हूं
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं अपनी इबादत को उसी के वास्ते ख़ालिब करके खुदा ही की बन्दगी करता हूँ (अब रहे तो तुम) तो उस के सिवा जिन को चाहो पूजो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि फ़िल हक़ीक़त घाटे में वही लोग हैं जिन्होंने(1) अपना और अपने लड़के वालों को क़यामत के दिन घाटा किया-अगह रहो क सरीही (खुल्लम खुल्ला) घाटा यही है कि उन के लिए उन के ऊपर(2) से आग ही के ओढ़ने होंगे और उन के नीचे भी (आग ही के) बिछौने ये वह अज़ाब है जिस से खुदा अपने बन्दों को डराता है तो ऐ मेर बन्दों मुझी से डरते रहो और जो लोग(3) बुतों से उन के पूजने से बचे रहे और ख़ुदा ही की तरफ़ रुजू की उनके लिए (जन्नत की) खुश ख़बरी है तो (ऐ रसूल) तुम मेरे (ख़ालिस) बन्दों को ख़ुशख़बरी दे दो जो बात को जी लगा कर सुनते हैं और फिर उस में से अच्छी बात पर अमल करते हैं वही वह लोग है जिन की ख़ुदा ने हिदायत की और यही लोग अक़लमन्द हैं
तो (ऐ रसूल) भला जिस(1) शख़्स पर अज़ाब का वादा पूरा हो चुका हो तो क्या तुम उस शख़्स को खलासी दे सकते हो जो आग में (पड़ा) हो मगर जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे उन के ऊंचे-ऊंचे महल (और) बालख़ानों पर बालाख़ानें बने हुए हैं जिन के नीचे नहरें जारी हैं (ये) ख़ुदा का वादा है (और) ख़ुदा वादा ख़िलाफ़ी नहीं किया करता
क्या तुम ने उस पर ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में चश्में बना कर जारी किया फिर उस के ज़रिए से रंग बिरंगे(2) (के ग़ला) की खेती उगाता है फिर (पकने के बाद) सूख जाती है तो तुम को वह ज़र्द दिखाई देती है फिर ख़ुदा उसे चूर-चूर (भूसा) कर देता है बेशक इसमें अक़्लमन्दों के लिए (बड़ी इबरत व नसीहत है तो क्या वह शख़्स जिसके सीने को खु़दा ने (क़बूल) इस्लाम के लिए कुशादा कर दिया है तो वह अपने परवरदिगार (की हिदायत) की रौशनी(2) पर (चलता) है गुम्राहों के बराबर हो सकता है अफ़्सोस तो उन लोगों पर है जिन के दिल खुदा की याद से (ग़ाफ़िल होकर) सख़्त हो गए हैं ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े) हैं।
खुदा ने बहुत ही अच्छा कलाम (यानी ये) किताब नाज़िल फरमाई (जिस की आयतें) एक दूसरे से मिलती जुलती(3) हैं (एक बात कई कई बार) दोहराई गई है उसके सुनने से उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने परवरदिगार से डरते हैं(1) फिर उन के जिस्म नर्म हो जाते है और उन के दिल ख़ुदा की याद की तरफ़ बइत्मीनान मुतवज्जा हो जाते हैं ये ख़ुदा की हिदायत है उसी से जिस की चाहता है हिदायत करता है और ख़ुदा जिस को गुम्राही में छोड़ दे तो उस को कोई राह पर लाने वाला नहीं तो क्या जो शख़्स क़यामत के दिन अपने मुंह को बुरे अज़ाब की सिपर बनाएगा (नाजी)(2) (के बराबर हो सकता है)
और ज़ालिमों से कहा जाएगा कि तुम (दुनियां में) जैसा कुछ करते थे अब उस के मज़े चखो जो लोग उन से पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया तो उन पर अज़ाब उस तरह आ पहुँचा कि उन्हें ख़बर न हुई तो ख़ुदा ने उन्हें (इसी) दुनियां की ज़िन्दगी में रुसवाई (की ज़िल्लत) चखा दी और आख़ेरत का अज़ाब तो यक़ीनी इस से कहीं बढ़ कर है काश ये लोग (ये बात) जानते और हमने तो इस कुरआन में लोगों के (समझाने के) वास्ते हर तरह की मसल बयान कर दी है ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें (हमने तो साफ और सलीस) एक अरबी कुरआन (नाज़िल किया) जिस में ज़रा भी कजी (पेचेदगी) नहीं ताकि ये लोग (समझ कर) ख़ुदा से डरें
खुदा ने एक मसल बयान की है कि एक शख़्स (गुलाम) है जिस में कई झगडालू साजी है और एक गुलाम है कि पूरा एक शख़्स का है(3) क्या उन दोनों की हालत यकसां हो सकती है (हरगिज़ नहीं) अल्हम्दो लिल्लाह मगर उन में के अक्सर इतना भी नहीं जानते (ऐ रसूल) बेशक तुम भी मरने वाले हो और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं फिर तुम लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में बाहम झगडेंगे।
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