तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-22

कुरआन मजीद
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और तुम में से जो (बीवी) ख़ुदा और उसके रसूल की ताबेदारी और अच्छे (अच्छे) काम करेगी उसको हम उस का सवाब भी दोहरा अता करेंगे और हमने उस के लिए (जन्नत में) इज़्ज़त की रोज़ी तैयार कर रखी है ऐ नबी की बीबियों तुम और मामूली औरतों की सी तो हो नहीं (पस) अगर तुम को परहेज़गारी मंजूर है तो (अजनबी आदमी से) बात करने में नर्म नर्म (लगी लिपटी) बात न करो ताकि जिसके दिन में (शहवत ज़मा का) मर्ज़ है वह (कुछ और) आरजू (न) करे (साफ़-साफ़) उन्वान शाएस्ता से बात किया करो और अपने घरों में निचली(1) बैठी रहो और अगले ज़माने जाहेलियत की तरह अपना बनाओ सिंगार न दिखाती फिरो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो-और (बराबर) ज़कात दिया करो और ख़ुदा और उस के रसूल की ऐताअत करो-ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत(2) ख़ुदा तो बस ये चाहता है कि तुम को (हर तरह की) बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है वैसा पाक पाकीज़ा रखे और (ऐ नबी की बीबियों) तुम्हारे घरों में जो ख़ुदा की आयतें और (अक़्ल व) हिकमत (की बातें) पढ़ी जाती हैं
उन को याद रखो बेशक ख़ुदा बड़ा बारीक-बीन है वाक़िफ़दार है (दिल लगा के सुनों) मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें और ईमानदार भाई और ईमानदार औरतें और फ़रमाबरदार मर्द और फ़रमाबरदार औरतों और रास्तबाज़ मर्द और औरतें और सब्रे करने वाली औरतें और ख़ैरात करने वाले मर्द और ख़ैरात करने वाली औरतें और रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द और हिफ़ाज़त करने वाली औरतें और खुदा को बकसरत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें बेशक उन सब लोगों के वास्ते ख़ुदा ने मग़फिरत और बड़ा (बड़ा) सवाब मुहय्या कर रखा है और न किसी ईमानदार मर्द को ये मुनासिब है और न किसी ईमानदार औरत को कि जब ख़ुदा और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें तो उन को अपने उस काम (के करने न करने) का इख़्तेयार हो
और (याद रहे कि) जिस शख़्स ने ख़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की वह यक़ीनन ख़ुल्लम ख़ुल्ला गुमराही में मुब्तेला हो चुका और (ऐ रसूल वह वाक़ेआ याद करो) जब तुम उस शख़्स(1) (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर ख़ुदा ने अहसान (अलग) किया था और तुमने उस पर (अलग) अहसान किया था कि अपनी बीवी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौजियात में रहने दे और ख़ुदा से डर और ख़ुद तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिस को (आख़िरकार) ख़ुदा ज़ाहिर करने वाला था और तुम लोगों से डरते थे हालांकि ख़ुदा इस का ज़्यादा हक़दार था कि तुम उससे डरो गरज़ जब ज़ैद अपनी हाजत पूरी कर चुका (तलाक दे दी) तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह(1) तुम से कर दिया ताकि आम मोमीनीन को अपने ले पालक लड़कों की बीबियों (से निकाह करने) में जब वह अपना मतलब उन औरतों से पूरा कर चुके (तलाक़ दे दें) किसी तरह की तंगी न रहे और ख़ुदा का हुक्म तो किया कराया कतई) होता है जो हुक्म ख़ुदा ने पैग़म्बर पर फ़र्ज कर दिया उसके करने में उस पर कोई मज़ाएक़ा नहीं जो लोग (उनसे) पहले गुज़र चुके हैं उन के बारे में भी ख़ुदा का (यही) दूसर (जारी) रहा है (कि निकाह में तंगी न की) और ख़ुदा का हुक्म तो (ठीक अंदाज़े से) मुक़र्रर किया हुआ होता है- वह लोग जो ख़ुदा के पैग़ामों को (लोगों तक जों का तों) पहुंचाते थे और उस से डरते थे और ख़ुदा के सिवा किसी से नहीं डरते थे (फिर तुम क्यों डरते हो) और हिसाब लेने के वास्ते तो ख़ुदा काफ़ी है
(लोगों) मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से (हक़ीक़तन) किसी के बाप नहीं है (फिर जै़द की बीवी क्यों हराम होने लगी) बल्कि अल्लाह के रसूल और नबियों की महर (यानी ख़त्म करने वाले) हैं और ख़ुदा तो हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ़ है ऐ ईमानदारों ब-कसरत ख़ुदा की याद किया करो और सुबह व शाम उसी की तस्बीह करते रहो वह वही तो है जो ख़ुद तुम पर दुरूद(1) (रहमत) भेजता है और उसके फ़रिश्ते (भी) ताकि तुम को (कुफ़्र की) तारीकियों से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में ले जाए और ख़ुदा तो ईमानदारों पर बड़ा मेहरबान है
जिस दिन उसकी बारगाह में हाज़िर होंगे (उस दिन) उनकी मदारात (उसकी तरफ़ से हर क़िस्म की) सलामती होगी और ख़ुदा ने तो उनके वास्ते बहुत अच्छा बदला (बेहिश्त) तैयार कर रखा है ऐ नबी हमने तुमको (लोगों का) गवाह और (नेकों को बेहिश्त की) ख़ुशख़बरी देने वाला और बंदों को अज़ाब से डराने वाला और ख़ुदा की तरफ़ उसी के हुक्म से बुलाने वाला और (ईमान व हिदायत का) रौशन चिराग़ बना कर भेजा और तुम मोमिनीन को ख़ुश ख़बरी दे दो कि उनके लिए ख़ुदा की तरफ़ से बहुत बड़ी (मेहरबानी और) बख़शिश है और (ऐ रसूल) तुम (कहीं) काफ़िरों और मुनाफ़िकों की ऐताअत न करना और उनकी इंज़ा रसानी का ख़्याल छोड़ दो और ख़ुदा पर भरोसा रखो और कारसाज़ी में ख़ुदा काफ़ी है
ऐ ईमानदारों जब तुम मोमिना औरतों से (बगै़र महर मुक़र्रर किए) निकाह करो उसके बाद उन्हें अपने हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो तो फिर तुमको उन पर कोई हक़ नहीं कि (उनसे इद्दा पूरा कराओ उनको तो कुछ (कपड़े रूपये वगैरह) देकर उनवाने शाइस्ता से रुख़सत कर दो ऐ नबी हमने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी उन बीबियों को हलाल कर दिया है जिन को तुम महर दे चुके हो और तुम्हारी उन लौंडियों को (भी) जो ख़ुदा ने तुमको (बग़ैर लडे भिड़े) माल ग़नीमत में अता की हैं और तुम्हारे चचा की बेटियां और तुम्हारी फुफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामू की बेटियाँ और तुम्हारी खालाओं की बेटियाँ जो तुम्हारे साथ हिजरत कर के आई हैं हलाल कर दीं और हर ईमानदार औरत(1) (भी हलाल कर दी) अगर वह अपने को (बगै़र महर) नबी को दे दें और नबी भी उससे निकाह करना चाहते हो मगर (ऐ रसूल) ये हुक्म सिर्फ तुम्हारे वास्ते ख़ास है और मोमिनीन के लिए नहीं
और हमने जो कुछ (महर या क़ीमत) आम मोमीनीन पर उनकी बीबियों पर और उनकी लौंडियों के बारे में मुक़र्रर कर दिया है हम ख़ूब जानते हैं और (तु्म्हारी रियायत इस लिए है) ताकि तुम को (बिबियों की तरफ़ से) कोई दिक़्क़त न हो और ख़ुदा तो बड़ा बशख़्शने वाला मेहरबान है उनमें से जिसको (जब) चाहो अलग कर दो और जिसको (जब तक) चाहो अपने पास रखो और जिन औरतों को तुमने अलग कर दिया था अगर फिर तुम उनके ख़्वाह हो तो भी तुम पर कोई मुज़ाएक़ा नहीं है ये (इख़्तयार जो तुमको दिया गया है) ज़रुर उस क़ाबिल है कि तुम्हारी बीबियों की आंखे ठंडी रहे और आज़ूदा ख़ातिर न हों और जो कुछ तुम उन्हें दे दो सब की सब उस पर राज़ी रह और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है ख़ुदा उस को ख़ूब जानता है और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफदार बुर्दबार है
(ऐ रसूल) अब उन (नो) के बाद (और) औरतें तुम्हारे वास्ते हलाल नहीं और न ये जाएज़ है कि उन के बदले (उन में से किसी को छोड़ कर) और बीबियां कर लो अगरचे तुम को उन का हुस्न कैसा ही भला (क्यों न) मालूम हो मगर तुम्हारी लौंडियां (उस के बाद भी जाएज़ हैं) और खु़दा तो हर चीज़ का निगरा है- ऐ ईमानदारों तुम लोग पैग़म्बर के घरों में न जाया करो मगर जब तुम को खाने के वास्ते (अन्दर आने की) इजाज़त दी जाए (लेकिन) उनेक पकने का इन्तेज़ार (नबी के घर बैठ कर) न करो मगर जब तुम को बुलाया जाए तो (ठीक वक़्त पर) जाओ और फिर जब खा चुको तो (फ़ौरन अपनी अपनी जगह) चले(1) जाया करो और बातों में न लग जाया करो क्योंकि उस पैग़म्बर को आज़ीयत होती है तो वह तुम्हार लिहाज़ करते हैं और खुदा तो ठीक-(ठीक कहने) से झेंपता नहीं
और जब(2) पैगम्बर की बिबीयों से कुछ मांगना हो तो पर्दे के बाहर से मांगा करो यही तुम्हारी दिलों और उन के दिलों के वास्ते बहुत सफ़ाई की बात और तुम्हारे वास्ते ये जाएज़ नहीं कि रसूले ख़ुदा को (किसी तरह) अज़ीयत दी और न ये जाएज़ है(1) के तुम उस के बाद कभी उस की बिबियों से निकाह करो बेशक ये खुदा के नज़दीक बुरा (गुनाह ) है चाहे किसी चीज़ को तुम ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ ख़ुदा तो (बहरहाल) हर चीज़ से यक़ीनी खूब आगाह है औरतों पर न अपने बाप दादाओं (के सामने होने) में कुछ गनाह और न अपने बेटों के और न अपने भाइयों के और न अपने भतीजों के और न अपने भांजों के और न अपनी (क़िस्म की) औरतों के और न अपनी लौडियों के सामने होने में कुछ गुनाह है
(ऐ पै़गम्बर की बीबियों) तुम लोग ख़ुदा से डरती रहो इसमें शक नहीं कि ख़ुदा (तुम्हारे आमाल में) हर चीज़ से वाक़िफ है उस में शक नहीं कि ख़ुदा और उस के फ़रिश्ते पै़गम्बर (और उन की आल) पर दुरूद(2) भेजते हैं तो ऐ ईमानदारों तुम भी दुरूद भेजते रहो और बराबर सलाम करते रहो बेशक जो लोग खुदा को और उस के रसूल को अज़ीयत देते हैं उन पर ख़ुदा ने दुनिया और आख़ेरत (दोनों) में लानत की है और उन के लिए रूसवाई का अज़ाब तैयार कर रखा है
और जो लोग ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतों को बगै़र कुछ किये धरे (तोहमत दे कर) अज़ीयत देते हैं तो वह एक बोहतान और सरीही गुनाह (का बोछ अपनी गरदन पर) उठाते हैं(1) ऐ नबी अपनी बीबियों और अपनी लडकियों और मोमिनीन की औरतों से कह दो कि (बाहर निकालते वक़्त्) अपने (चेहरों और गरदनों) पर अपनी चादरों(2) का घूंघट लटका लिया करो ये उनकी (शराफ़त की) पहचान के वास्ते बहुत मुनासिब है तो उन्हें कोई छेड़ेगा नहीं और ख़ुदा तो ब़डा बख़्शने वाला मेहरबान है
(ऐ रसूल) मुनाफ़िक़ीन और वह लोग(3) जिन के दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ है और जो लोग मदीने में बुरी ख़बरें उड़ाया करते हैं- अगर ये लोग (अपनी शरारतों से) बाज़ न आएंगे तो हम तुम ही को (एक न एक दिन) उन पर मसलत कर देंगे फिर वह तुम्हारे पड़ोस में चंद रोजो़ं के सिवा ठहरने (ही) न पाएंगे लानत के मारे जहां कहीं हत्ते चढ़ पकड़े गये और फिर बुरी तरह मार डाले गये जो लोग पहले गुज़र गये उन के बारे में (भी) ख़ुदा की (यही) आदत (जारी) रही और तुम ख़ुदा की इबादत में हरगिज़ तग़य्युर तबदीली न पाओगे
(ऐ रसूल) लोग तुम से क़यामत के बारे में पूछा करेत हैं (तुम उन से) कह दो कि उस का इल्म तो बस ख़ुदा को है और तुम क्या जानों शायद क़यामत क़रीब ही हो ख़ुदा ने तो काफ़िरों पर यक़ीनन लानत की है और उनके लिए जहन्नुम को तैय्यार कर रखा है जिस में वह हमेशा अबद अलाबाद रहेंगे और न किसी को अपना सरपरस्त पाएंगे न मददगार जिस दिन उनके मुंह जहन्नुम की तरफ़ फ़ेर दिये जाएंगे तो (तो उस दिन अफ़सोसनाक लहजे में) कहेंगे ऐ काश हम ने ख़ुदी की ऐताअत की होती और रसूल का कहना माना होता और कहेगे कि परवरदिगार हम ने अपने सरदारों और अपने बड़ों का कहना माना तो उन्होंने ही ने हमें गुमराह कर दिया परवरदिगार (हम पर तो अज़ाब है ही मगर) उन लोगों पर दोहरा अज़ाब नाजि़ल कर और उन पर बड़ी से बड़ी लानत कर
ऐ ईमान वालो (ख़बरदार कहीं) तुम लोग भी उनके(1) से न हो जाना जिन्होंने मूसा को तकलीफ़ दी तो ख़ुदा ने उन की तोहमतों से मूसा को बरी कर दिया और मूसा ख़ुदा के नज़दीक (ऐ रोबदार पैग़म्बर) थे ऐ ईमान वालों ख़ुदा से डरते रहो और (जब कहो तो) दुरुस्त बात कहा करो तो ख़ुदा तुम्हारी कारगुज़ारियों को दुरुस्त कर देगा तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और जिस शख़्स ने खुदा और उस के रसूल की ऐताअत की वह तो अपनी मुराद को खूब अच्छी तरह पहुंच गया
बेशक हम ने (रोज़ अज़ल) अपनी अमानत (ऐताअत इबादत) को सारे आसमान और(1) ज़मीन पहाड़ों के सामने पेश कियचा तो उन्होंने उस के (बार) उठाने से इंकार किया और उससे डर गये और आदमी ने उसे (बे ताअम्मुल) उठा लिया बेशक इन्सान (अपने हक़ मे) बड़ा ज़ालिम (और) नादान है उसका) नतीजा ये हुवा कि ख़ुदा मुनाफ़िक़ मरदों और मुनाफ़िक़ औरतों और मुश्रिक मर्दों और मुश्रिक औरतों को (उनके किये की) सज़ा देगा और ईमानदार मरदों और ईमानदार औरतों की (तक़सीर अमानत की) तौबा कुबूल फ़रमाएगा- और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है

सूरऐ सबा

सूरऐ सबा मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 54 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हर क़िस्म की तारीफ़ उसी ख़ुदा के लिए (दुनिया में भी) सजावार है कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में हैं (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और आख़ेरत में (भी हर तरफ़) उसी की तारीफ़ है और वही वाक़िफ़कार हकीम है (जो) जो चीज़ें (बीज वग़ैरह) ज़मीन में दाखि़ल हुई हैं और जो चीज़ें (दरख़्त वगैरह) उस में से निकलती हैं और जो चीज़ (पानी वग़ैरह) आसमान से नाज़िल हुई हैं और चीज़ (बुख़ारात फ़रिश्ते वग़ैरह) उस पर चढ़ती हैं (सब को) जानता है और वही बड़ा बख्शने वाला है
और कुफ़्फ़ार कहने लगे कि हम पर तो क़यामत आए ही गी नही (ऐ रसूल) तुम कह दो (हां) मुझको अपने उस आलिम-उल ग़ैब परवरदिगार की क़सम है जिस से ज़र्रा बराबर (कोई चीज़) ने आसमान में छिपी हुई है और न ज़मीन मे कि क़यामत ज़रुर-ज़रुर आएगी और ज़र्रा से छोटी चीज़ और ज़र्रा से बड़ी (ग़रज़ जितनी चीज़ें हैं सब) वाज़े व रौशन किताब (लौह महफूज़) में महफूज़ है ताकि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और (अच्छे) काम किये उन को खु़दा जज़ाए ख़ैर दे यही वह लोग हैं जिन के लिए (गुनाहों की) मग़फिरत और (बहुत ही) इज़्ज़त की रोज़ी है और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के तोड़) में मुक़ाबले की दौड़ धूप की उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब की सज़ा होगी
और (ऐ रसूल) जिन लोगों को (हमारी बारगाह से) इल्म अता किया(1) गया है वह जानते हैं कि जो (कुरआन) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल हुआ है बिल्कुल ठीक है और सज़ावार हम्द (व सना) ग़ालिब (ख़ुदा) की राह दिखाता है और कुफ़्फ़ार है और सज़ावार हम्द (व सना) ग़ालिब (ख़ुदा) की राह दिखाता है और कुफ़्फ़ार (मस्ख़रापन से बाहम) कहते हैं कि कहो तो हम तुम्हें ऐसा आदमी (मुहम्मद) बता दें जो तुम से बयान करेगा कि जब तुम (मर कर सड़ गल जाओगे और) बिल्कुल रेज़ा-रेज़ा हो जाओगे तो तुम यक़ीनन एक नए जहन्नुम में आओगे
क्या उस शख़्स (मुहम्मद) ने ख़ुदा पर झूट तूफ़ान बांधा हैं या उससे जनून (हो गया) है (न मुहम्मद झूटा है न उसे जूनून है) बल्कि ख़ुद वह लोग जो आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते अज़ाब और पल्ले दरजे की गुमराही में प़डे हुए हैं तो क्या उन लोगों ने आसमान और ज़मीन की तरफ़ भी जो उन के आगे और उनके पीछे (सब तरफ़ से घेरे) हैं ग़ौर नहीं किया कि अगर हम चाहे तो उन लोगों को ज़मीन में धंसा दे या उन पर आसमान का कोई टुकड़ा ही गिरा देगे इस में शक नहीं कि इस में हर रुजूअ करने वाले बंदे के लिए यक़ीनी बड़ी इबरत है और हम ने यक़ीनन दाऊद को(1) अपनी बारगाह से बुजूर्गी इनायत की थी (और पहाड़ो को हुक्म दिया) कि ऐ पहाड़ों तसबीह करने में उनका साथ दो और परिन्दों को (ताबेअ कर दिया) और उनके वास्ते लोहे को (मोम की तरह) नरम कर दिया था कि फ़िराख़ व कुशादा ज़िरहें है बनाओ और (कड़ियो के) जोड़ने में अंदाज़े का ख़याल रखो और तुम सब के सब अच्छे (अच्छे) काम करो जो कुछ तुम लोग करते हो मैं यक़ीन देख रहा हूं और हवा को(2) सुलेमान का (ताबेअदार बना दिया था) कि उस की सुबह की रफ़्तार एक महीने (मसाफ़त) की थी और उसी तरह उस की शाम की रफ़्तार एक महीने (के मसाफ़त) की थी
और हमने उनके लिए तांबे (को पिघला कर) उसका चश्मा जारी कर दिया था और जिन्नात (को उनका ताबा कर दिया था कि उन) में कुछ लोग उनके परवरदिगार के हुक्म से उनके सामने काम काज करते थे और उनमें से जिसने हमारे हुक्म से इनहेराफ़ किया है उसे हम (कय़ामत में) जहन्नुम के अज़ाब का मज़ा चखाएंगे (ग़रज़) सुलेमान को जो बनवाना मंजूर होता ये जिन्नात उनके लिए बनाते थे (जैसे) मस्जिदें(1) महल क़िले (फ़रिश्ते अम्बियां की) तस्वीरें(1) और हौज़ों के बराबर प्याले और (एक जगह) गड़ी हुई (बड़ी-बड़ी) देगे (कि एक हजा़र आदमी का खाना पक सके)
ऐ दाऊद की औलाद शुक्र करते रहो और मेरे बन्दों में से शुक्र करने वाले (बन्दे) थोड़े से हैं फिर सब हमने सुलेमान(2) पर मौत का हुक्म जारी किया तो (मर गए मगर लकड़ी के सहारे खड़े थे और) जिन्नात को किसी ने उन के मरने का पता ने बताया मगर ज़मीन की दीमक ने कि वह सुलेमान के असा को खा रहीं थी फिर (जब खोलखला होकर टूट गया और) सुलेमान (की लाश) गिरी तो जिन्नात ने जाना कि अगर वह लोग ग़ैबदा होते हो (उस) ज़लील करने वाली (काम करने की) मुसीबत न मुब्तेला रहते
और (क़ौमे) सबा के लिए तो यक़ीनन ख़ुद उन ही के घरों में (कुदरत ख़ुदा की) एख बड़ी निशानी थी (कि उन के शहर के दोनों तरफ़) दाहिनें बायें (हरे भरे) बाग़ात थे (और उन को हुक्म था) कि उपने परवरदिगार की दी हुई चीज़ो को खाओ (पियो) और उस का शुक्र अदा करो (दुनियां में) ऐसा पाकीज़ा शहर और (आख़ेरत में) परवरदिगार सा बख़्शने वाला उस पर भी उन लोगों ने मुंह फेर लिया (और पैग़म्बरों का कहा न माना) तो हमने (एक ही बन्द तोड़ कर) उन पर बड़े ज़ोरों का सेलाब भेजा दिया (और उनको तबाह करके) उनके दोनों बाग़ों के बदले ऐसे दो बाग़ दिए जिनके फल बदमज़ा थे और उन में झाव था और कुछ थोड़ी सी बेरियां थी ये हमने उनकी नाशु्क्री की सज़ा दी और हम तो बड़े नाशुक्रो ही की सज़ा किया करते हैं
और हम अहले सबा(1) और (शाम) की उन बस्तियों के दरमियान जिनमें हमने बरकत अता की थी और चन्द बस्तियां (सरे राह) आबाद की थी जो बाहम नुमाया थी(2) और हमने उनमें आमद व रफ़्त की राह मुक़र्र की थी कि उनमे रातो को दिनों को (जब जी चाहे) बे खटके चलो फिरों तो वह लोग ख़ुद कहने लगे परवरदिगार (क़रीब के सफ़र में लुत्फ़ नहीं) तू हमारे सफ़रों में दूरी पैदा कर दे और उन लोगों ने खुद अपने ऊपर(3) जुल्म किया तो हमने भी उनको (तबाह करके उनके) अफ़्साने बना दिए- और (उनकी धज्जियां उड़ा के) उनको तितर बितर कर दिया बेशक उनमें हर सब्र शुक्र करने वाले के वास्ते बड़ी इबरतें हैं
और शैतान ने अपने ख़्याल को जो उनके बारे मे किया था सच कर दिखाया तो उन लोगों ने उसकी पैरवी की मगर ईमानदारों का एक गिरोह (न भटका) और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) की हम उन लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे में शक में (पड़़े) हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हर चीज़ का निगरां हैं
(ऐ रसूल उनसे) कह दो कि जिन लोगों को तुम ख़ुद ख़ुदा के सिवा (माबूद) समझते हो पुकारो (तो मालूम हो जाएगा कि) वह लोग ज़र्रा बराबर न आसमानों में कुछ इख़्तेयार रखते हैं और न ज़मीन में और न उनकी उन दोनों में शिरकत है और न उनमें से कोई ख़ुदा का (किसी चीज़ में) मददगार है जिसके लिए वह खुदा इजाज़त अता फ़रमाए उसके सिवा किसी सिफ़ारिश उसकी बारगाह में काम न आएगी (उसके दरबार की हैबत) यहाँ तक (है) कि जब (शफ़ाअत का हुक्म होता है तो शफ़ाअत करने वाले बेहोश हो जाते हैं फिर जब उनके दिलों की घबराहट दूर कर दी जाती है तो पूछते हैं कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या हुक्म दिया तो मुक़र्रब (फ़रिश्ते) कहते हैं कि जो वाजिबी था (ऐ रसूल) तुम (उनसे ) पूछो तो की भला तुमको सारे आसमान और ज़मीन में से कौन रोज़ी देता है (वह क्या कहेंगे) तुम ख़ुद कह दो कि ख़ुदा और मैं(1) या तुम (दोनों में से एक तो) ज़रूर राहे रास्त पर है
(और दूसरा गुमराह) था वह सरीही गुम्राही में पड़ा है (और दूसर राहे रास्ते पर ऐ रसूल) तुम (उन से) कह दो न हमारे गुनाहो की तुम से पूछ गझ होगी और न तुम्हारी कारस्तानियों की हम से बाज़पुर्स (ऐ रसूल) (तुम उन से) कह दो कि हमारा परवरदिगार (क़ायमत मे) हम सब को इकट्ठा करेगा फिर हमारे दरमियान (ठीक) फ़ैसला कर देगा और वह तो बड़ा ठीक फैसला करने वाला वाक़िफ़कार है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि जिनको तुमने ख़ुदा का शरीक बना कर ख़ुदा के साथ मिलाया है ज़रा उन्हें मुझे भी तो दिखा दो (हरगिज़ कोई उसका शरीक) नहीं बल्कि ख़ुदा ग़ालिब हिकमत वाला है, (ऐ रसूल) हमने तुमको तमान (दुनिया के) लोगों के लिये (नेकों को बेहिश्त की) खुशखबरी देने वाला और (बंदों को अज़ाब से) डराने वाला (पैग़म्बर) बना कर भेजा मगर बहुतेरे लोग (इतना भी) नहीं जानते और (उल्टे) कहते हैं कि अगर तुम (अपने वादे में) सच्चे हो तो (आख़िर) यह क़यामत का वादा कब पूरा होगा (ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो(1) कि तुम लोगों के वास्ते एक ख़ास दिन की मियाद मुक़र्रर है कि न तुमन उससे एक घड़ी पीछे रह सकते हो और न आगे ही बढ़ सकते हो और जो लोग काफ़िर(2) हो बैठे थे
कहते हैं कि हम तो न उस कुरान पर हरगिज़ ईमान लायेंगे और न उस (किताब) पर जो उससे पहले नाज़िल हो चुकी और (ऐ रसूल तुम को बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखोगे कि जब ये ज़ालिम (क़यामत के दिन) अपने परवरदिगार के सामने खड़े किये जायेंगे (और) उनमें एक (सरकश) लोगों से कहते होंगे कि अगर तुम (हमें) न (बहकाये) होते तो हम ज़रुर ईमानदार होते (इस मुसिबत में न पड़ते) तो सरकश लोग कमज़ोरी से (मुख़ातिब होकर) कहेंगे कि जब तुम्हारे पास (ख़ुदा की तरफ़ से) हिदायत आयी तो थी तो क्या उसके आने के बाद हमने तुम को (ज़बरदस्ती अमल करने से) रोका था (हरिगज़ नहीं) बल्कि तुम तो ख़ुद मिजरिम थे और कमज़ोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे (कि ज़बरदस्ती तो नहीं की मगर हम ख़ुद भी गुमराह नहीं हुए) बल्कि (तुम्हारी) रात दिन की फ़रेबदारी (गुमराह किया कि) तुम लोग हमको ख़ुदा के न मानने और उसका शरीक ठहराने का बराबर हुक्म देते रहे (तो हम क्या करते) और जब यह लोग अज़ाब को (अपनी आँखों से) देख लेंगे तो दिल ही दिल में पछतायेंगे
और जो लोग काफ़िर हो बैंठे हम उनकी गर्दनों में तौक़ डलवा देंगे जो-जो कारसतानियां यह लोग (दुनिया में) करते थे उसी के मुआफ़िक़ तो सज़ा दी जायेगी मगर वहा के बड़े लोग यह ज़रुर बोल उठे़ कि जो अहकाम दे कर तुम भेजे गये हो हम उनको नहीं मानते और (यह भी) कहने लगे कि हम (तो ईमानदारों से) माल और औलाद में कहीं ज़्यादा हैं और हम पर (आख़ेरत में) अज़ाब भी नहीं किया जायेगा (ऐ रसूल) तुमन कह दो कि मेरा परवरदिगार जिस के लिये चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है (और जिसके लिये चाहता है) तंग कर देता है मगर बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं
और (याद रखो) तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद की यह हस्ती नहीं कि तुम को हमारी बारगाह में मुक़रिब बना दे मगर (हां) जिसने ईमान कूबुल किया और अच्छे (अच्छे) काम किये उन लोगों के लिये तो उनकी कारगुज़ारियों की दोहरी जज़ा है और वह लोग (बेहिश्त के) झरोंकों में इतमिनान से रहेंगे और जो लोग हमारी आयतों (की तोड़) में मुक़ाबले कि नियत से दौड़-धूप करते हैं वही लोग (जहन्नुम के) अज़ाब में झोंक दिये जायेंगे
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार अपने बन्दों में से जिसके लिये चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिये जाहता है) तंग कर देता है और जो कुछ भी तुम लोग (उस की राह में) ख़र्च करते हो वह उसका एवज देगा और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देने वाला है और (वह दिन याद करो0 जिस दिन सब लोगों को इकट्ठा करेगा फिर फ़रिश्तों से पूछेगा कि क्या ये लोग तुम्हारी परिस्तिश करते थे- फ़रिश्ते अर्ज़ करेंगे (बारे इलाही) तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है तू ही हमारा मालिक है न यह लगो (हमारी नहीं) बल्कि जिन्नात (ख़बाएएस भूत)(1) (परेत) की इबादत करते थे कि उनमें के अक्सर लोग उन्हीं पर ईमान रखते थे तब (ख़ुदा फ़रमायेगा) आज तो तुम में से कोई न दूसरे के फ़ायदे को ही पहुँचाने का इख़्तेयार रखता है और न ज़र का और हम सरकशों से कहेंगे कि (आज) उस अज़ाब के मज़े चखो जिसे तुम (दुनियां में) झुठलाया करते थे
और जब उनसे सामने हमारी वाज़े व रौशन आयतें पढ़ी जाती थी तो बाहम करते थे कि यह (रसूल) भी तो बस (हमारा ही सा) आदमी है यह चाहता है कि जिन चीज़ों को तुम्हारे बाप दादा पूजते थे (उनकी इबादत) से तुम को रोक दे और कहने लगे कि यह (कुरान) तो बस निरा झूठ और अपने जी का गढ़ा हुआ है और जो लोग क़ाफ़िर हो बैठे जब उनके पास हक़ बात आयी तो उसके बारे में कहने लगे कि यह तो बस ख़ुला हुआ जादू है
(ऐ रसूल) हमने तो उन लोगों को न (आसमानी) किताबें अता की थी जिन्हें यह लोग पढ़ते और न तुम से पहले उन लोगों के पास कोई डराने वाला (पैग़म्बर) भेजा (ऊस पर भी उन्होंने न की) और जो लोग उनसे पहले गुज़र गये उन्होंने ये भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया थआ हालांकि हमने जितना उन लोगों को दिया था यह लोग (अभी) उस के दसवें हिस्से को (भी) नहीं(1) पहुंचे उस पर उन लोगों ने मेरे पैग़म्बरों को झुठलाया तो (तुमने देखा कि मेरा(2) (अज़ाब उन पर) कैसा (सख़्त) हुआ (ऐ रसलू) तुम कह दो कि मैं तुम से नसीहत की बस एक बात कहता हूं (वह) यह (है) कि तुम लोग बाज़ खुदा के वास्ते एक-एक और दो-दो उठ खड़े हो और अच्छी तरह ग़ौर करो तो (देख लोगे कि) तुम्हारे रफ़ीक (मोहम्मद) को किसी तरह का जुनून नहीं वह तो बस तुम्हें एक सख़्त अज़ाब (क़यामत) के सामने (आने) से डराने वाला है
(ऐ रसूल) तुम (ये भी) कह दो कि (तबलीग़ रिसालत की) में ने तुम से कुछ उजरत मांगी हो तो वह तुम्ही को (मुबारक) हो मेरी उजरत तो बस खु़दा पर है और वही (तुम्हारे आमाल अफ़ाल) हर चीज़ से ख़ूब वाक़ि़फ़ है (ऐ रसूल) तुम (उनसे कह दो कि मेरा बड़ा ग़ैबदाँ परवरदिगार (मेरे दिल में) दीने हक़ को बराबर ऊपर से उतारता है (अब उन से) कह दो दीने हक़ आ गया और (इतना भी तो समझो कि) बातिल (माबूद) न शुरू शुरू(1) कुछ पैदा कर सकता है न (मरने के बा) दोबारा ज़िन्दा कर सकता है
(ऐ रसूल) तुम (ये भी) कह दो कि अगर मैं गुमराह हो गयचा हूं तो अपनी ही जानपर मेरी गुमराही (का बवाल) है और अगर मैं राहे रास्त पर हूं तो उस वही के तुफ़ैल से जो मेरा परवरदिगार मेरी तरफ़ भेजता है बेशक वह सुनने वाल (और बहुत) क़रीब है-और(2) (ऐ रसूल) काश तुम देखते (तो सख़्त ताज्जुब करते) जब ये कुफ़्फ़ार (मैदाने हश्र में) घबराए-घबराए फिरते होंगे तो भी छुटकारा न होगा और आस ही पास से (या आसानी) गिरफ़्तार कर लिए जाएगी और (उस वक़्त बेबसी मेँ) कहेंगे कि अब हम रसूल पर ईमान लाए और इतनी दूर दराज़ जगह से (ईमान पर) उनका दस्तरस(2) कहा मुमकिन है हालांकि ये लोग उससे पहले ही (जब उनका दस्तरस था) इंकार कर चुके और (दुनियां में तमाम उम्र) बे देख भाले (अटकल के) तुक्के बड़ी-बड़ी दूर से चलाते रहे और अब तो उनके और उनकी तमन्नाओं के दरमियान (उसी तरह) पर्दा डाल दिया गया है जिस तरह उनसे पहले उनके हम रंग लोगों के साथ (यही बर्ताव) किया जा चुका इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बेचैन करने वाले शक में पड़े हुए थे।

सूरऐ फ़ातिर

सूरऐ फ़ातिर मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 45 आयतें हैं।
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
हर क़िस्म की तारीफ़ उसी ख़ुदा के लिए (मख़सूस) है जो सारे आसमान और ज़मीन का पैदा करने वाला फ़रिश्तों को (अपना) क़ासिद बनाने वाला है जिन के दो-दो और तीन-तीन और चार-चार पर होते हैं (मख़लूक़ात की) पैदाइश में जो (मुनासिब) चाहता है बढ़ा देता है बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर (व तवाना) है लोगों के वास्ते जब (अपनी) रहमत (के दरवाज़े) खोल दे तो कोई उसे रोक नहीं सकता और जिस चीज़ को रोक ले उसके बाद उसे कोई जारी नहीं कर सकता और वही (हर चीज़ पर) ग़ालिब (व दाना व बीना) हकीम है
लोगों ख़ुदा के एहसानात को जो उसने तुम पर किए हैं याद करो क्या ख़ुदा के सिवा कोई और ख़ालिक़ है जो आसमान और ज़मीन से तुम्हारी रोज़ी पहुंचाता है-उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिल इबादत नहीं फिर तुम किधर बहके चले जा रहे हो-और (ऐ रसूल) अगर ये लोग तुम्हे झुठलाए तो (कुढ़ो नहीं) तुम से पहले बहुतेरे पैग़म्बर (लोगों के हाथों) झुठलाए जा चुके हैं और (आख़िर) कुल उमूर का रूजू तो ख़ुदा ही की तरफ़ है लोग खुदा का (क़यामत का ) वादा यक़ीनी बिल्कुल सच्चा है तो (कही) तुम्हे दुनियां की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी फरेब में न लाए (ऐसा न हो कि शैतान) तुम्हें ख़ुदा के बारे में धोका दे बेशक शैतान तुम्हारा दुश्मन है तो तुम भी उसे अपना दुश्मन बनाए रहो वह तो अपने गिरोह को बस इसलिए बुलाता है की वह लोग (सब के सब) जहन्नुमी बन जाएं
जिन लोगों ने (दुनिया में) कुफ़्र इख़्तेयार किया उनके लिए (आख़ेरत में) सख़्त अज़ाब है और जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किये उनके लिए (गुनाहों की) मग़फ़िरत और निहायत अच्छा बदला (बेहिश्त) है तो भला वह शख़्स जिसे उसका बुरा काम (शैतानी अग़वा से) अच्छा कर दिखाया गया है और वह उसे अच्छा समझने लगा है (कभी मोमिन नेकोकार के बराबर हो सकता है हरगिज़ नहीं) तो यक़ीनी (बात) यह है कि ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है राहे रास्त पर आने (की तौफ़ीक़) देता है तो ऐ रसूल (कहीं) उन (बदबख़्तों) पर अफ़सोस करके तुम्हारा दम न निकल जाए
जो कुछ यह लोग करते हैं ख़ुदा उससे खूब वाक़िफ़ है तो हवाएं बादोलं को उड़ाए-उड़ाए फिरती हैं फिर हम उस बादल को मुरदा (उफ़्तादा) शहर की तरफ़ हका देते हैं फिर हम उसके ज़रिये से ज़मीन को उसके मर जाने के बाद शादाब कर देते हैं यह ही (मुरदों को क़यामत में) जो उठना होगा जो शख़्स इज्ज़त का ख़्वाहा हो तो (ख़ुदा से मांगे क्योंकि) सारी इज़्ज़त तो ख़ुदा ही की है(1) उसकी बारगाह तक अच्छी बातें (बुलंद होकर) पहुंचती(2) हैं और अच्छे काम को वह खुद बुलंद फ़रमाता है(3) और जो लोग (तुम्हारे ख़िलाफ़) बुरी-बुरी तदबीरे करते रहते हैं उनके लिए क़यामत में सख़्त अज़ाब है और (आख़िर) उन लोगों की तदबीरें मलयामेट हो जाएंगी
और ख़ुदाऐ रहीम ने तुम लोगों को (पहले पहल) मिट्टी से पैदा किया फिर नुतफ़े से फिर तुम को जोड़ा (नर व मादा) बनाया और बग़ैर उस के इल्म (और इजाज़त) के न कोई औरत हामला होती है और न जनती है और न किसी शख़्स को उम्र में ज़्यादती होती है और न किसी की उम्र से कमी की जाती है मगर वह किताब (लौह महफूज़) में (ज़रुर) है बेशक ये बात ख़ुदा पर बहुत ही आसान है
(उसकी कुदरत देखो) दो समन्दर(1) (बावजूद मिल जाने के) यकसा नहीं हो जाते ये (एक तो) मीठा खुश ज़ाएक़ा कि उस का पीना सुवारत है और ये (दूसरा) खारी कड़वा है और (इस इख़्तेलाफ़ पर भी) तुम लोग दोनों से (मछली का) तरोताज़ा गोश्त (यकसा) खाते हो और (अपने लिए) ज़ेवरात (मोती वग़ैरह) निकालते हो जिन्हें तुम पहनते हो और तुम देखते हो कि कश्तियां दरया में (पानी को) फ़ा़ड़ती चली जाती है ताकि उसके फ़ज़्ल (व करम तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शकु्र करो वही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और वही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो वह दिन बढ़ जाता है और) उसी ने सूरज और चाँद को अपना मुतीअ बना रखा है कि हर एक अपने (अपने) मुअय्यन वक़्त पर चला करता है वही ख़ुदा तु्म्हारा परवरदिगार है उसी की सल्तनत है
और उसे छोड़कर जिन माबूदों को तुम पुकारते हो वह छुहारे की गुठली के बराबर भी तो इख्तेयार नही रखते अगर तुम उन को पुकारो तो वह तुम्हारी पुकार को सुनते नहीं अगर (ब-फ़रज़े मुहाल) सुने भी तो तुम्हारी दुआए नहीं कुबूल कर सकते और क़यामत के दिन तुम्हारे शिर्क से इंकार कर बैठेंगे और वाक़िफ़क़ार(1) शख़्स की तरह कोई (दूसरा उन की पूरी हालत) तुम्हें बना नहीं सकता-लोगों तुम सब के सब ख़ुदा के (हर वक़्त) मोहताज हो और (सिर्फ़) ख़ुदा ही (सब से) बे परवा सज़ावार हम्द (व सना) है अगर वह चाहे तो तुम लोगों को (अदम के परदे में) ले जाए और एक नई ख़िलक़त ला बसाए और ये कुछ ख़ुदा के वास्ते दुश्वार नहीं और (याद रहे कि) कोई शख्स किसी दूसरे (के गुनाह) को बोझ नहीं उठाएगा और अगर कोई (अपने गुनाहों का) भारी बोझ उठाने वाला अपना बोझ़ उठाने कि वास्ते (किसी को) बुलाएगा तो उसके बारे में से कुछ भी उठाया न जाएगा अगर चे (कोई किसी का) क़राबतदार ही (क्यों न) हो
(ऐ रसूल) तुम तो बस उन्हीं लोगों को डरा सकते हो जो बे देखे भाले अपने परवरदिगार का ख़ौफ़ रखते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और (याद रखो कि) जो शख़्स पाक साफ़ रहता है वह अपने ही फ़ायदे के वास्ते पाक़ साफ़ रहता है और (आख़िरकार सब को हिर फिर के) ख़ुदा की की तरफ़ जाना है और अंधा (काफ़िर) और आँखों वाला (मोमिन किसी तरह) बराबर नहीं हो सकते और न अंधेरा (कुफ्र) और उजाला (ईमान) बराबर है और न छाव (बेहिश्त) और धूप (दोज़ख़ बराबर है) और न ज़िन्दे (मोमिनीन) और न मुर्दे (क़ाफ़िर) बराबर हो सकते हैं और खुदा जिसे चाहता है अच्छी तरह सुना (समझा) देता है और (ऐ रसूल) जो (कुफ़्फ़ार मुर्दों की तरह) क़ब्रों में हैं- उन्हें तुम अपनी (बातें) नहीं समझा सकते हो- तुम तो बस (एक ख़ुदा से) डरने वाले हो,
हम ही ने तुम को यक़ीनन कुरआन के साथ ख़ुशख़बरी देने वाला और डराने वाला (पैग़म्बर) बना कर भेजा और कोई उम्मत (दुनियां में) ऐसी नहीं गुज़री कि उस के पास (हमारा) डराने वाला (पैग़म्बर) न आया हो और अगर ये लोग तुम्हें झुठलाए तो कुछ परवाह न करो क्योंकि उन के आगलों ने भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया है (हालाँकि) उनके पास उन के पैग़म्बर वाज़े व रौशन मोजिज़े और सहीफ़े और रौशन किताब लेकर आए थे, फिर हम ने उन लोगो को जो काफ़िर हो बैठे ले डाला तो (तुमने देखा कि) मेरा अज़ाब (उन पर) कैसा (सख़्त हुआ)
ऐ क्या तुमने उस पर भी ग़ौर नहीं किया कि यक़ीनन ख़ुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम (ख़ुदा) ने उसके (ज़रिए) से तरह-तरह की रंगतों के फल पैदा किए और पहाड़ों में क़ताअत (टुकड़े रास्ते) हैं जिनके रंग मुख़्तलिफ़ हैं कुछ तो सफ़ेद (बुराक़) और कुछ लाल (लाल) और कुछ बिल्कुल काले स्याह और उसी तरह आदमियों और जानवरों और चारपायों की भी रंगते तरह-तरह की हैं- उसके बन्दों में ख़ुदा का ख़ौफ़ करने वाले तो बस उल्मा(1) हैं बेशक ख़ुदा (सबसे) ग़ालिब (और) बख़्शने वाला है- बेशक जो लोग ख़ुदा की किताब पढ़ा करते हैं और पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हे अता किया है उसमें से छिपा के और दिखा के (ख़ुदा की राह में) देते हैं वह यक़ीनन ऐसे व्यापार का आसरा रखते हैं जिस का कभी टाट न उल्टेगा ताकि ख़ुदा उन्हें उन की मज़दूरियां भरपूर अता करे बल्कि अपने फ़ज़ल (व करम) से कुछ और बढ़ा देगा बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला है (और) बड़ा क़द्रदान है
और हमने जो किताब तुम्हारे पास वही के ज़रिए से भेजी वह बिल्कुल ठीक है और जो (किताबें उस से पहेल की) उस के सामने (मौजूद) हैं उन की तस्दीक़ भी करती हैं-बेशक ख़ुदा अपने बन्दों (के हालत) से ख़ूब वाक़िफ़ (है और) देख रहा है फिर हमने अपने बन्दगान में से ख़ास उन को कुरआन का वारिस बनाया जिन्हें (अहल समझ कर) मुन्तख़िब किया क्योंकि बन्दों मे से जो कुछ तो (न फ़रमानी करके) अपनी जान पर सितम ढ़ाते है और कुछ उन में से (नेकी बदी के) दरमियान हैं और उन्हीं से कुछ लोग ख़ुदा के इख़्तेयार से नेकियों में (औरों से) गोया सबक़त ले गए हैं यही (इंतेख़ाब व सबक़त) तो ख़ुदा का बड़ा फज़ल है
(और उस का सिला बेहिश्त के) सदाबहार बाग़ात हैं जिन में ये लोग दाख़िल होंगे और उन्हें वहां सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएंगे और वहां उन की (मामूली) पोशाक ख़ालिस रोशमी होगी और ये लोग (खुशी के लहजे में) कहेंगे ख़ुदा का शुक्र जिस नेहम से (हर कि़स्म का) रन्ज व ग़म(1) दूर कर दिया-बेशक हमारा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला (और) क़द्रदान है जिस ने हम को अपने फज़्ल (व करम) से हमेसगी के घर (बेहिश्त) में उतारा (मेहमान क्या) जहां हमें कोई तकलीफ़ छूएगी भी तो नहीं और न कोई थकान ही पहुंचेगा
और जो लोग काफिर हो बैठे उन के लिए जहन्नुम की आग है न उन की क़ज़ा ही आएगी कि वह मर जाए (और तक़लीफ़ से निजात मिले) और न उन से उन के अज़ाब ही में तख़फीफ़ की जाएगी हम हर माशुक्रे की सज़ा यूं ही किया करते हैं और ये लोग दोज़ख़ में (पड़े) चिल्लाया करेंगे कि परवरदिगार अम हम को (यहां से) निकाल दे तो जो कुछ हम करते थए और छोड़ कर नेक काम करेंगे (तो ख़ुदा जवाब देगा कि) क्या हमने तुम्हें इतनी उम्हें न दी थी कि जिन मेंम जिस को जो कुछ सोचना समझना (मंजूर) हो ख़ूब सोच समझ ले और (उसके अलावा) तुम्हारे पास (हमारा) डराने वाला (पैग़म्बर) भी पहुंच गया था (अपने किए का मज़ा) चख़ो क्योंकि सरकश लोग का कोई मददगार नहीं
बेशक ख़ुदा सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों से ख़ूब वाक़िफ़ है वह यक़ीनी दिलों के पोशीदा राज़ से बाख़बर है वह वही (ख़ुदा) है जिसने रुए ज़मीन में तुम लोगों को (अगलों का) जानशीन बनाया फिर जो शख़्स काफ़िर होगा तो उस के कुफ्र का बवाल उसी पर पड़ेगा और काफ़िरों को उन का कुफ़्र उन के परवरदिगार की बारगाह में ग़ज़ब के सिवा कुछ बढ़ाएगा नहीं और कुफ़्फ़ार को उन का कुफ़्र घाटे के सिवा कुछ नफ़ा न देगा
(ऐ रसूल) तुमने (उन से) जो (कुछ) देखा मुझे भी ज़रा दिखाओ तो कि उन्होंने ज़मीन (की चीज़ों) से कौन सी चीज़ पैदा की या आसमानों में कुछ उन को आधा साझा है या हमने ख़ुद उन्हें कोई किताब दी है कि वह उस की दलील रखते हैं (ये सब तो कुछ नहीं) बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे से (धोंके के और) फ़रेब ही का(1) वादा करते हैं बेशक ख़ुदा ही सारे आसमान और ज़मीन अपनी जगह से हट जाने से रोके हुए है और अगर (फ़र्ज़ करो कि) ये अपनी जगह से हट जाए तो फिर उस के सिवा उन्हें कोई रोक नही सकता बेशक वह बड़ा बुर्दबार (और) बड़ा बख़्शने वाला है
और ये लोग तो खु़दा की बड़ी-बड़ी सख्त क़स्में खा (कर कहते) थे कि बेशक अगर उन के पास कोई डराने वाला (पैग़म्बर) आएगा(1) तो वह ज़रुर हर एक उम्मत से ज़्यादा-रू-बराह होंगे फिर जब उन के पास ड़राने वाला (रसूल) आ पहुंचा तो (उन लोगों को) रूए ज़मीन में सरकशी और बुरी-बुरी तदबीरे करने की वजह से (उसके आने से) उनकी नफ़रत को तरकी ही होती गई और बुरी तदबीर (की बुराई) तो बुरी तदबीर करने वला ही पर पड़ती है तो (हो न हो) ये लोग बस अगले ही लोगों के मरताओ के मुन्तज़िर है तो (बेहतर) तुम ख़ुदा के दस्तूर में कभी तबदीली न पाओगे और ख़ुदा की आदत में हरगिज़ कोई तग़य्युर न पाओगे तो क्या उन लोगों ने रूए ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उन के पहले थे और उनसे ज़ोर व कूवत में भी कहीं बढ़ चढ़ के थे फिर उन का (नाफ़रमानी की वजह से) क्या (ख़राब) अंजाम हुआ
और ख़ुदा ऐसा (गया ग़ुज़रा) नहीं है कि उसे कोई चीज़ आजिज़ कर सके (न इतने) आसमानों में और न ज़मीन में बेशक वह बड़ा ख़बरदार (और) बड़ी (क़ाबू) कु़दरत बाला है और अगर (कहीं) ख़ुदा लोगों की करतूतों की गिरफ़्त करता तो (जैसी उन की करनी है) रूए जम़ीन पर किसी जानवर को बाक़ी न छोड़ना मगर वह तोएक मुक़र्रर मियाद तक लोगों को मोहलत देता है (कि जो करना हो कर लो) फिर जब उनका (वह) वक़्त आ जाएगा तो ख़ुदा यक़ीनी अपने बंदों (के हाल) को देख रहा है (जो जैसा करेगा वैसा पाएगा)

 सूरऐ यासीन

सूरऐ फ़ातिर मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 83 आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।
यासीन(2) (इस) पर अज़हिकमत कुरआन की क़सम (ए रसूल) तुम बिला शक यक़ीनी पैग़म्बर में से हो (और दीन के बिल्कुल) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम) हो जो बड़े मेहरबान (और) ग़ालिब (ख़ुदा) का नाज़िल किया हुवा (है) ताकि तुम उन लोगों को (अज़ाब ख़ुदा से) डराओ जिन के बाप दादा (तुम से पहले किसी पैग़म्बर से) डराए नही गये तो वह (दीन से बिल्कुल) बेख़बर हैं उनमें अक़्सर तो (अज़ाब की) बातें यक़ीनन बिल्कुल ठीक पूरी उतरे ये लोग तो ईमान लाएंगे नहीं
हम ने(1) उन की गरदनों में (भारी-भारी लोहे के) तौक़ डाल दिये हैं और ठुड्डियों तक पहुंचे हुए हैं कि वह गरदने उठाए हुए हैं (सर झुका नहीं सकते)
हम ने एक दीवार उन के आगे बना दी है और एक दीवार उन के पीछे फिर ऊपर से उनको ढांक दिया है तो वह कुछ देख ही नहीं सकते
और (ऐ रसूल) उनके लिए बराबर हैं ख़्वाह तुम उन्हें डराओ या न डराओ ये (कभी) ईमान लाने वाले नहीं हैं- तुम तो बस उसी शख़्स को डरा सकते हो
जो नसीहत माने और बे देखे भाले ख़ुदा का ख़ौफ़ रखे तो तुम उस को (गुनाहों की) माफ़ी और एक बाइज़्ज़त (व आबरू) अज्र की खुश ख़बरी दे दो
हम ही यक़ीनन मुरदों को ज़िन्दा करते हैं और जो कुछ लोग पहले कर चुके हैं (उन को) और उन की (अच्छा या बुरी बाक़ी मान्दा) निशानियों को देखते जाते हैं और हम ने हर चीज़ को एक सरीह व रौशन(2) पेशवा में घेर दिया है
और (ऐ रसूल) तुम (उन से) मिसाल के तौर पर एक गाँव (अनताकिया) वालों का क़िस्सा बयान करो कि जब वहां (हमारे) पैग़म्बर(3) आए उस की तरह जब हम ने उनके पास दो (पैग़म्बर यूहना और युसुफ़) भेजे तो उन लोगों ने दोनों को झुटलाया तब हमने एक तीसरे (पैगम़्बर शमऊन) से (उन दोनों को) मदद दी तो उन तीनों नें कहा कि हम तु्म्हारे पास ख़ुदा के भेजे हुए (आए) हैं वह लोग कहने लगे कि तुम लोग भी तो बस हमारे ही से आदमी हो और ख़ुदा ने कुछ नाज़िल (वाज़िल) नहीं किया है तुमसब के सब बस बिल्कुल झूटे हो तब उनको पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीनी उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानों या न मानों) हम पर तो बस ख़ुल्लम ख़ुल्ला (अहकाम ख़ुदा का) पहुंचा देना(1) फ़र्ज़ है वह बोले हम ने तुम लोगों को बहुत नहस क़दम पाया कि (तुम्हारे आते ही क़हत में मुबतिला हुए) तो अगर तुम (अपनी बातों से) बाज़ न आओगे तो हम लोग तुम्हें ज़रुर संगसार कर देंगे और तुम को यक़ीनी हमारा दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा पैग़म्बरों ने कहा कि तुम्हारी बद शगूनी (तुम्हारी करनी है) तुम्हारे साथ है क्या जब नसीहत की जाती है (तो तुम उसे दलफ़ली कहते हो नहीं) बल्कि तुम ख़ुद (अपनी) हद से बढ़ गये हो और (इतने में) शहर के उस सिरे से एक शख़्स (हबीब बुखार) दौड़ता हुवा आया और कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम (उन) पैग़म्बरों का कहना मानों ऐसे लोगों का (ज़रुर) कहना मानो जो तुम से (तबलीग़ रिसालत की) कुछ मज़दूरी नहीं मांगते और वह लोग हिदायत याफ़्ता भी हैं।

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