(ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे पास नाज़िल की गई है उसकी तिलावत करो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो बेशक नमाज़ बे हयाई और बुरे कामों से बाज़ रखती है(1) और ख़ुदा की याद यक़ीनी बड़ा मर्तबा रखती है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उससे वाक़िफ़ है और (एक ईमादारों) अहले किताब से मनाज़िरा न किया करो मगर उमदा और शाइस्ता अल्फ़ाज़ व उन्वान से लेकिन उन में से जिन लोगों ने तुम पर जुल्म किया (उन के साथ रियायत न करो) और साफ-साफ कह दो कि जो किताब हम पर नाज़िल हुई और जो किताब तुम पर नाज़िल हुई है हम तो सब पर ईमान ला चुके और हमारा माबूद और तुम्हारा माबूद एख ही है और हम उसी के फ़रमाबरदार हैं
और (ऐ रसूल जिस तरह अगले पैग़म्बरों पर किताबें उतारी) उसी तरह हमने तुम्हारे पास किताब नाज़िल की तो जिन लोगों को हमने (पहले) किताब अता की है वह उस पर भी ईमान रखते हैं और उन (अरबों) में से बाज़ वह हैं जो उस पर ईमान रखते हैं और हमारी आयतों के(2) तो बस पक्के कटे काफिर ही मुनकिर हैं
और (ऐ रसूल) कुरआन से पहले न तो तुम कोई किताब ही पढ़ते थे और न अपने हाथ से तुम लिखा करते थे ऐसा होता तो ये झूठे ज़रुर (तुम्हारी नबूवत में) शक करते मगर जिन लोगों(3) को (ख़ुदी की तरफ़ से) इल्म अता हुआ है उन के दिल में ये (कुरआन) वाज़े व रौशन आयतें हैं और सरकशों के सिवा हमारी आयतों से कोई इंकार नहीं करता और (कुफ़्फ़ारों अरब) कहते हैं कि इस (रसूल) पर उस के परवरदिगार की तरफ़ से मोजिज़े क्यों नहीं नाज़िल होते (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि मोजिज़े तो बस ख़ुदा ही के पास हैं और मैं तो सिर्फ़ साफ़-साफ़ (अज़ाब ख़ुदा से) डराने वाला हूं क्या उनके लिए ये काफ़ी नहीं(1) हमने तुम पर कुरआन नाज़िल किया जो उन के सामने पढ़ा जाता है उस में शक नहीं कि ईमानदार लोगों के लिए उस में (ख़ुदा को बड़ी) मेहरबानी और (अच्छी ख़ासी) नसीहत है
तुम कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरमियान गवाही के वास्ते ख़ुदा ही काफ़ी है जो सारे आसमान व ज़मीन की चीज़ों को जानता है और जिन लोगों न बातिल को मना और खु़दा से इंकार किया वही लोग बड़े घाटे में रहेंगे और (ऐ रसूल) तुम से लोग अज़ाब के नाज़िल होने की जल्दी करते हैं और अगर (अज़ाब का) वक़्त मोअय्यन न होता तो यक़ीनन उनके पास अब तक अज़ाब आ जाता और (आख़िर एक दिन) उन पर अचानक ज़रुर आ पड़ेगा और उन को ख़बर भी न होगी ये लोग तुम से अज़ाब की जल्दी करते हैं और ये यक़ीनी बात है कि दोज़ख़ काफिरों को (इस तरह) घेर कर रहेगी कि रूक न सकेंगे जिस दिन अज़ाब उनके सर के ऊपर से और उनके पांव के नीचे से उन को ढाँके होगा- और ख़ुदा (उनसे) फ़रमाएगा कि जो जो कारस्तनियां तुम (दुनियां में) करते थे अब उन का मज़ा चखो
ऐ मेरे ईमानदार बन्दों मेरी ज़मीन तो यक़ीनन कुशादा है तो तुम मेरी ही इबादत करो- हर शख़्स (एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है फिर तुम सब आख़िर हमारी ही तरफ़(1) लौटाए जाओगे- और जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए उन को हम बेहिश्त के झरोकों मे जगह देंगे जिन के नीचे नहरें जारी हैं- जिन में वह हमेशा रहेंगे- (अच्छे) चलव वालों की भी क्या ख़ूब खरी मज़दूरी है जिन्होंने (दुनियां में मुसीबतों पर) सब्र किया और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं- और ज़मीन पर चलने वालों में बहुतेरे ऐसे हैं जो अपनी रोज़ी अपने ऊपर लादे नहीं(2) फिरते ख़ुदा ही उनको भी रोज़ी देता है और तुम को भी और वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है
और (ऐ रसूल) अगर तुम उन से पूछो कि (भला) किसने सारा आसमान व ज़मीन को पैदा किया और चांद और सूरज को काम में लगाया तो वह ज़रुर यही कहेंगे कि अल्लाह ने फिर वह कहां बहके चले जाते हैं और ख़ुदा ही अपने बन्दों में से जिस को रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिस के लिए चाहता है तंग कर देता है इसमें शक नहीं कि खु़दा ही हर चीज़ से वाक़िफ है और (ऐ रसूल) अगर तुम उससे पूछो कि किस ने आसमान से पानी बरसाया या फिर उस के ज़रिए से ज़मीन को उसने मरी (पड़ी होने) के बाद ज़िन्दा (आबाद) किया तो वह ज़रुर यही कहेंगे कि अल्लाह ने (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अल्हम्दो लिल्लाह –मगर उन में से बहुतेरे (इतना भी) नहीं समझते और ये दुन्यिावी ज़िन्दगी तो खेल तमाशे के सिवा कुछ नहीं और अगर ये लोग समझे बूझे तो इसमें शक नहीं कि अब्दी ज़िन्दगी (की जगह) तो बस आख़ेरत का घर है (बाक़ी कुछ नही)
फिर जब ये लोग कश्ती में सवार होते हैं तो निहायत ख़लूस से उसी की इबादत करते वाले बनकर ख़ुदा से दुआ करते हैं- फिर जब उन्हें खुश्की में (पहुंचा कर) निजात देता है तो फ़ौरन शिर्क करने लगते हैं ताकि जो (नेमते) हमने उन्हें अता की हैं उन का इंकार कर बैठे- और ताकि (दुनियां में) ख़ूब चैन करले तो अनक़रीब ही (उसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा क्या उन लोगों ने उस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने हरम (मक़्का) को अमन व इत्मीनान की जगह बनाया हालांकि उनके गिर्द नवाह से लोग अचानक(1) लिए जाते हैं- तो क्या ये लोग झूटे माबूदों पर ईमान लाते हैं और ख़ुदा की नेअमत की नाशुक्री करते हैं
और जो शख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बांधे या जब उसके पास कोई सच्ची बात आए तो झूठला दे- उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा क्या (उन) काफ़िरों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है- (ज़रूर है) और जिन लोगों ने हमारी राह में जिहाद किया उन्हें हम ज़रुर अपनी राह की(1) हिदायत करेंगे और उसमें शक नहीं कि ख़ुदा नेकीकारों का साथी है।
सूरऐ रूम
सूरऐ रूम मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 60 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
अलिफ़-लाम-मीम (यहां से) बहुत क़रीब के मुल्क में रोमी (नसारा अहले फ़ारस आतिश परस्तों से) हार गए-मगर ये लोग अनक़रीब ही अपने हार जाने के बाद चन्द सालों में फिर (अहले फ़ारस पर) ग़ालिब(3) आ जाएंगे- क्योंकि (इससे) पहले और बाद (ग़रज़ हर ज़माने) हर अमर का इख़्तेयार ख़ुदा ही को है और उस दिन ईमानदार लोग ख़ुदा की मदद से ख़ुश हो जाएंगे वह जिस को चाहता है- मदद करता है और वह (सब पर) ग़ालिब रहम करने वाला है (ये) ख़ुदा का वादा है ख़ुदा अपने वादे के ख़िलाफ़ नहीं किया करता- मगर अक्सर लोग नहीं जानते हैं
ये लोग बस दुनियावी ज़िन्दगी की ज़ाहिरी हालत को जानते हैं- और ये लोग आख़ेरत से बिल्कुल ग़ाफ़िल हैं क्या उन लोगों ने अपने दिल में (इतना भी) ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ने सारे आसमान और ज़मीन को और जो चीज़ें उन दोनों के दरम्यान में हैं बस बिल्कुल ठीक और एक मुक़र्रर मियाद के वास्ते पैदा किया है कुछ शक नहीं कि बहुतेरे लोग तो अपने परवरदिगार (की बारगाह) के हुजूर (क़यामत) ही को किसी तरह नहीं मानते क्या ये लोग रूए ज़मीन पर जचले फिरे नहीं कि देखते कि जो लोग उन से पहले गुज़र गये उन का अंजाम कैसा (बुरा) हुवा-हालांकि जो लोग उन से कूवत में भी कहीं ज़्यादा थे और जिस क़र ज़मीन उन लोगों ने आबाद की हैं उस से कहीं ज़्यादा (ज़मीन की) उन लोगों ने काश्त भी की थी और उसको आबाद भी किया था और उन के पास भी उन के पैग़म्बर वाज़ेह व रौशन मोजिज़े लेकर आ चुके थे (मगर उन लोगों ने न माना) तो ख़ुदा उन पर कोई जुल्म नहीं किया-मगर वह लोग (कुफ़्र व सरकशी से) आप अपने ऊपर ज़ुल्म करते रहे
फिर जिन लोगों ने बुराई की थी उन का अंजाम बुरा ही हवा क्योंकि उन लोगों ने ख़ुदा की आयतों को झुटलाया था और उन के साथ मसख़रापन किये ख़ुदा ही ने मख़लूक़ात को पहली बार पैदा किया फिर वही दोबारा (पैदा करेगा) फिर तुम सब लोग उसी की तरफ़ लौटा जाओगे और जिस दिन क़यामत बरपा होगी (उस दिन) गुनाहगार लोग नाउम्मीद होकर रह जाएंगे और उन के (बनाए हुए ख़ुदा के) शरीकों में से कोई उन का सिफ़ारशी न होगा और ये लोग ख़ुद भी अपने शरीकों से इंकार कर जाएंगे और जिस दिन क़यामत बरपा होगी उस दिन (मोमिनों से) कुफ़्फ़ार जुदा हो जाएंगे-फिर जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किये तो वह बाग़ बेहिश्त में निहाल कर दिये जाएंगे
मगर जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और हमारी आयतों और आख़ेरत की हुजूरी को झुटलाया तो ये लोग अज़ाब में गिरफ़्तार किये जाएंगे- फिर जिस(1) वक़्त तुम लोगों की शाम हो और जिस वक़्त तुम्हारी सुबह हो ख़ुदा की पाकीज़गी ज़ाहिर करो और सारे आसमान व ज़मीन में तीसरे पहर को और जिस वक़्त तुम लोगों की दोपहर हो जाए वही क़ाबिल तारीफ़ है वही ज़िन्दा को मुरदा से निकालता है और वही मुरदा को ज़िन्दा से पैदा करता है और ज़मीन को मरने (पड़ती होने) के बाद ज़िन्दा (आबाद) करता है और इसी तरह तुम लोग भी (मरने के बाद) निकाले जाओगे और उस (की कुदरत) की निशानियों में से यह भी है कि उसने तुम को मिट्टी से पैदा किया फिर यकाचक तुम आदमी बम कर (ज़मीन पर) चलने फिरने लगे
और उसी (की कुदरत की निशानियों) में एक यह (भी) है कि उस ने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीबियां पैदा कि ताकि तुम उन के साथ रह कर चैन करो और तुम लोगों के दरमियान प्यार और(1) उल्फ़त पैदा कर दी- इसमें शक नहीं कि उस में गै़र करने वालों के वास्ते (कुदरत खु़दा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियां है- और उस (की कुदरत) की निशानियों में आसमानों और ज़मीन का पैदा करना और तुम्हारी ज़बानों और रंगतों का इख़्तेलाफ़ भी है
यक़ीनन उस में वाक़िफ़कारों के लिए बहुत सी निशानियां है और रात और दिन को तुम्हार सोना और उसके फ़ज़्ल व करम (रोज़ी) की तलाश करना भी उस की (कुदरत की) निशानियों से है-बेशक जो लोग सुनते हैं उन के लिए उस में (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं- और उसी की (कुदरत की) निशानियों में से एक यह भी है कि वह तुम को डराने और उम्मीद दिलाने के वास्ते(2) बिजली दिखाता है- और आसमान से पानी बरसाता है और उसके ज़रिये से ज़मीन को उस के पड़ती होने के बाद आबाद करता है- बेशक अक़लमन्दों के वास्ते उस में (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी दलीलें हैं और उसी की (कुदरत की) निशानियों में एक ये भी है कि आसमान और ज़मीन उस के हुक्म से क़ाएम है फिर (मरने के बाद) जिस वक़्त तुम को एक बार बुलाएगा तो तुम सब के सब ज़मीन से (ज़िन्दा हो होकर) निकल पड़ोगे और जो लोग आसमानों और ज़मीन में हैं सब उसी के हैं- और सब उसी के ताबेअ फ़रमान हैं
और वह ऐसा (क़ादिर मुतलक़) है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करता है फिर दुबारा (क़यामत के दिन) पैदा करेगा और वह उस पर बहु आसान है और सारे आसमान व ज़मीन में सब से बालातर उसी की शान है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है- और हम ने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) तुम्हारी ही एक मस्ल बयान की है हम ने जो कुछ तुम्हें अता किया है क्या उसमें तुम्हारे लौंडी गुलामों में से कोई (भी) तुम्हारा शरीक है कि (वह और) तुम उस में बराबर हो जाओ (और क्या) तुम उनसे ऐसा ही(1) ख़ौफ़ रखते हो जिनता तुम्हें अपने लोगों का (हक़ हिस्सा न देने में) ख़ौफ़ होता है फिर बन्दों को ख़ुदा का शरीक क्यों बनाते हो, अक़लमन्दों के वास्ते हम यूं अपनी आयतों को तफ़सीलवार बयान करते हैं
मगर सरकशों ने तो बग़ैर समझे बुझे अपनी नफ़सानी ख्वाहिशों की पैरवी कर ली (और ख़ुदा का शरीक ठहरा दिया) ग़रज़ ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे (फिर) उसे कौन राहे रास्त पर ला सकता है और उन का कोई मददगार (भी) नही तो (ऐ रसूल) तुम बातिल से कतरा के अपना रूख़ दीन की तरफ़ किये रहो- यही ख़ुदा की बनावट है जिस पर उस ने लोगों को पैदा किया है ख़ुदा की (दुरुस्त की हुई) बनावट में (तग़य्युर) तबदील नहीं हो सकता- यही मज़बूत और (बिल्कुल सीधा) दीन है मगर बहुत से लोग नहीं जानते हैं
उसी की तरफ़ रूजुअ होकर (ख़ुदा की इबादत करो) और उसी से डरते रहो और पाबंदी से नमाज़ पढ़ो और मुश्रकीन से न हो जाना जिन्होंने अपने (असली) दीन में तफ़रक़ा परदाज़ी की और मुख़तलिफ़ फिरक़े के बन गये-जो (दीन) जिस फिरक़े के पास है उसी में(1) नेहाल नेहाल है और जब लोगों को कोई मुसीबत छू भी गई तो उसी की तरफ रूजूअ होकर अपने परवरदिगार को पुकारने लगते हैं फिर जब वह अपनी रहमत की लज़्ज़त चखा देता है तो उन्हीं में से कुछ लोग अपने परवरदिगार के साथ शिर्क करने लगते हैं ताकि जो (नेअमत) हम ने उन्हें दी हैं उसकी नाशुक्री करें ख़ैर (दुनिया में चंद रोज़ चैन कर लो) फिर तो बहुत जल्द (अपने किये का मज़ा) तुम्हें मालूम ही होगा
क्या हमने उन लोगों पर कोई दलील नाज़िल की है जो उस (के हक़ होने) को बयान करती ह जिस से (ये) लोग (ख़ुदा का) शरीक ठहराते हैं तो वह उस से खुश हो गये और जब उन्हें अपने हाथों की अगली कारस्तानियों की बदौलत कोई मुसीबत पहुंची तो यकबारगी मायूस होकर बैठे रहते हैं क्या उन लोगों ने (इतना भी) ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ही जिसको रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और (जिस को चाहता है) तंग करता है
कुछ शक नहीं कि उसमें ईमानदार लोगों के वास्ते (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं (तो ऐ रसूल अपने) क़राबतदार(1) (फ़ातिमा ज़हरा) का हक़ (फ़िदक) दे दो और मोहताजों व परदेसी का (भी) जो लोग ख़ुदा की खुशनूदी के ख़्वाह हैं उन के हक़ में सब से बेहतर यही है और ऐसे ही लोग (आख़ेरत में) अपनी दिली मुरादें पाएंगे- और तुम लोग जो सूद देते हो ताकि लोगों के माल (दौलत) में तरक़्क़ी हो तो (याद रहे कि ऐसा माल) ख़ुदा के हां फूलता फूलता नहीं- और तुम लोग जो ख़ुदा की ख़ुशनूदी के इरादे से ज़कात(2) देते हो- तो ऐसे ही लोग (ख़ुदा की बारगाह से) दूनादों लेने वाले हैं
ख़ुदा वह (क़ादिर तवाना है) जिस ने तुम को पैदा किया फिर उसी ने रोज़ी दी फिर वही तुम को मार डालेगा फिर वही तुम को (दोबारा) ज़िन्दा करेगा- भला तुम्हारा (बनाए हुए ख़ुदा के) शरीकों मे से कोई भी ऐसा है जो उन कामों में से कुछ भी कर सके जिसे ये लोग (उसका) शरीक बनाते हैं वह उस से पाक व पाकीज़ा और बरतर है- ख़ुद लोगों ही के अपने हाथों की कारस्तानियों की बदौलत खुश्क व तर में फ़साद फैल गया ताकि जो कुछ ये लोग कर चुके हैं ख़ुदा उसको उन में से बाज़ करतूतों का मज़ा चखा दे ताकि ये लोग (अब भी) बाज़ आएं
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ज़रा रूए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि जो लोग उसके क़ब्ल गुज़र गए उन के (अफ़आल) का अंजाम क्या हुआ उन में से बहुतेरे तो मुशरिक ही हैं तो (ऐ रसूल) तुम उस दिन के आने से पहले जो ख़ुदा की तरफ़ से आकर रहेगा (और) कोई उसे रोक नहीं सकता अपना रूख़ मज़बूत (और सीधे दीन की) तरफ़ किए रहो उस दिन लोग (परेशान होकर) अलग-अलग हो जाएंगे- जो काफ़िर बन बैठा उस पर उसके कुफ्र की बवाल है और जिन्होंने अच्छे काम किए वह अपने ही लिए असाइश का सामान कर रहे हैं ताकि जो लोग ईमान लाए और अच्छे-अच्छे काम किए उन को ख़ुदा अपने फ़ज़्ल (व करम) से अच्छी जज़ा अता करेगा
वह यक़ीनन कुफ़्फ़ार से उल्फ़त नही रखता उसी की (कुदरत) की निशानियों में से एक ये भी है कि वह हवाओं को (बारिश) की ख़ुशख़बरी के वास्ते (क़ब्ल से) भेज(1) दिया करता है और ताकि तुम्हें अपनी रहमत की लज़्ज़त चखाए और इसलिए भी कि (उसकी बदौलत) कश्तियां उसके हुक्म से चल खड़ी हों और ताकि तुम उसके फज़्लों करम से अपनी रोज़ी की तलाश करो और इसलिये भी ताकि तुम शुक्र करो
और (ऐ रसूल) हमने तुम से पहले और भी बहुत से पैग़म्बर उन की क़ौमों के पास भेजे तो वह पैग़म्बर वाज़े व रौशन मोजिज़े लेकर आए (मगर उन लोगों ने न माना) तो उन मुजरिमों से हमने (ख़ूब) बदला लिया और हम पर तो मोमिनीन की मदद करना लाज़िम था ही ख़ुदा ही वह (क़ादिर तवाना) है जो हवाओं को भेजता है तो वह बादलों को उड़ाए-उड़ाए फिरती है-फिर वही ख़ुदा बादल को जिस तरह चाहता है आसमान में फैला देता है और (कभी) उस को टुकड़े (टुकड़े) कर देता है फिर तुम देखते हो कि बूंदियां उस के दरम्यान से निकल पड़ती है फिर जब ख़ुदा उन्हें अपने बंदों में से जिस पर चाहता है बरसा देता है- तो वह लोग खुशियां मनाने लगते हैं अगरचे ये लोग उन पर (बारान रहमत) नाज़िल होने से पहले (बारिश से) शुरू ही से बिल्कुल मायूस (और मजबूर) थे
ग़रज़ ख़ुदा की रहमत के आसार की तरफ़ देखो तो कि वह क्योंकर ज़मीन को उस की पड़ती(1) होने के बाद आबाद करता है- बेशक यक़ीनी वही मुरदों को ज़िन्दा करने वाला और वही हर चीज़ पर क़ादिर है और अगर हम (खेती की नुक़सान देह) हवा भेजे फिर लोग खेती को (उसी हवा के वजह से) ज़र्द (पसमुरदा) देखें तो वह लोग उसे के बाद (फ़ौरन) नाशुक्री करने लगें
(ऐ रसूल) तुम तो (अपनी) आवाज़ न मुरदों ही को सुना सकते हो न बरो को सुना सकते हो (खुसूसन) जब वह पीठ फेर कर चले जाए और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से (फेर कर) राह पर ला सकते हो-तुम तो बस उन ही लोगों को सुना (समझा) सकते हो जो हमारी आयतों को दिल से माने फिर यही लोग इस्लाम लाने वाले हैं
ख़ुदा ही तो है जिस ने तुम्हें (एक निहायत) कमज़ोर चीज (नुत्फ़ा) से पैदा किया फिर उसी ने (तुम में) बचपने की कमज़ोरी के बाद (शबाब की) कुव्वत अता की फिर उसी ने (तुम में जवानी की) कुव्वत के बाद कमज़ोरी और बुढ़ापा पैदा कर दिया वह जो चाहता पैदा करता है- और वही बड़ा वाक़िफ़कार और (हर चीज़ पर) कूबा रखता है- और जिस दिन क़यामत बरपा होगी तो गुनाहगार लोग क़स्में खाएंगे कि वह (दुनियां में) घड़ी(1) भर से ज़्यादा नहीं ठहरे यूं ही लोग (दुनियां में भी) फितना परवाज़ियां करते रहे- और जिन लोगों को (ख़ुदा की बारगाह से) इल्म और ईमान दिया गया है, जवाब देंगे कि (हाए) तुम तो ख़ुदा की किताब के मुताबिक़ रोज़े क़यामत तक (बराबर) ठहरे रहे फिर ये तो क़यामत ही का दिन है मगर तुम लोग तो उस का यक़ीन ही नहीं रखते थे- तो उस दिन सरकश लोगों को न उन की उज्र माज़रत कुछ काम आएगी और न उन की सुनवाई होगी और हमने तो इस कुरआन में (लोगों के समझाने को) हर तरह की मिसाल बयान कर दी
और अगर तुम उन के पास कोई सा मोजिज़ा ले आओ तो भी यक़ीनन कुफ़्फ़ार यही बोल उठेंगे कि तुम लोग निरे दग़ाबाज़ हो- जो लोग समझ (और इल्म) नहीं रखते उन के दिलों पर (नजर करके) खु़दा यूं तस्दीक़ करता है (कि ये ईमान न लाएंगे) तो (ऐ रसूल) तुम सब्र करो बेशक ख़ुदा का वादा और (कहीं) ऐसा न हो कि जो लोग (तुम्हारी) तस्दीक़ नहीं करते तुम्हें (बहका कर) ख़फीफ़ कर दें।
सूरऐ लुक्मान
सूरऐ लुक्मान मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 34 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
अलिफ़-लाम-मीम ये (सूरऐ) हिकमत से भरी हुई किताब की आयतें हैं जो (सर से पैर तक) उन लोगों के लिए हिदायत व रहमत है जो पाबंदी से नमाज़ अदा करते हैं और ज़कात देते हैं और वही लोग आख़ेरत का भी यक़ीन रखते हैं यही लोग अपने परवरदिगार की हिदायत पर आमिल हैं और यही लोग (क़यामत में) अपनी दिली मुरादें पाएंगे और लोगों में बाज़ (नज़र बिन अलहारिस) ऐसा है जो बेहूदा(2) क़िस्से (कहानियां) ख़रीदता है ताकि बगै़र समझे बूझे (लोगों को) ख़ुदा की (सीधी) राह से भटका दे और आयात ख़ुदा से मस्ख़रापन करे ऐसे ही लोगों के लिए बड़ा रुसवा करने वाला अज़ाब है
और जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो शेख़ी के मारे मुहं फेर कर (इस तरह) चल देता है गोया उसने उन आयतों को सुना ही नहीं जैसे उस के दोनों कानों में ठेठी है तो (ऐ रसूल) तुम उसको दर्दनाक अज़ाब की (अभी से) ख़ुशख़बरी दे दो बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे काम किए उन के लिए नेअमत के (हरे भरे बेहिश्ती) बाग़ हैं कि वह उन में हमेशा रहेंगे-ये ख़ुदा का पक्का वादा है और वह (तो सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है
तुम उन्हें देख रहे हो कि उसी ने बग़ैर सतून के आसमानों को बना डाला और उसी ने ज़मीन पर (भारी-भारी) पहाड़ों के लंगर डाल दिए कि (मुबादा) तुम्हें लेकर किसी तरफ़ जुन्बिश करें और उसी ने हर तरह चल फिर करने वाले (जानवर) ज़मीन में फैलाए और हमने आसमान से पानी बरसाया और (उस के ज़रिए से) ज़मीन में हर रंग के नफ़ीस जोड़े पैदा किए (ऐ रसूल उन से कह दो कि) ये तो ख़ुदा की ख़लक़त है फिर (भला) तुम लोग मुझे दिखाओ तो कि जो (माबूद) खु़दा के सिवा तुम ने बना रखे हैं उन्होंने क्या पैदा किया बल्कि सरकश लोग (कुफ़्फार) सरीही गुम्राही में (पड़े) हैं और यक़ीनन हमने लुक़मान को हिकमत(1) अता की (और हुक्म दिया था कि) तुम ख़ुदा का शुक्र करो और जो ख़ुदा का शुक्र करेगा-वह अपने ही फ़ायदे के लिए शुक्र करता है और जिसने नाशुक्री की तो (अपना बिगाड़) क्योंकि ख़ुदा तो (बेहरहाल) बे परवा (और) क़ाबिल हम्द व सना है
और (वह वक़्त याद करो) जब लुक़मान न अपने बेटे से उस की नसीहत करते हुए कहा ऐ बेटा (ख़बरदार कभी किसी को) ख़ुदा का शरीक न (बनाना क्योंकि) शिर्क यक़ीनी बड़ा सख्त गुनाह है (जिस की बख़शिश नहीं) और हमने इन्सान को जिसे उस की मां ने दुख पर दुख सह के पेट में रखा (उसके अलावा) दो बरस में (जाके) उस की दूध बढ़ाई की (अपने और) उसके मां बाप के बारे में ताकीद की कि मेरा भी शुक्रया(1) अदा करो और अपने वालदैन का (भी और आख़िर सब को) मेरी तरफ़ लौट के जाना है और अगर तेरे माँ बाप(2) तुझे उस बात पर मजबूर करें कि तू मेरा शरीक ऐसी चीज़ को क़रार दे जिस का तुझे इल्म भी नहीं तो तू (उसमें) उन की ऐताअत न करो (मगर तकलीफ़ न पहुंचा) और दुनिया (के कामों) में उन का अच्छी तरह साथ दे और उन लोगों के तरीक़ों पर चल जो (हर बात में) मेरी (ही) तरफ़ रजूअ करें फिर (तो आख़िर) तुम सब की रूजूअ मेरी ही तरफ़ है तब (दुनियां में) जो कुछ तुम करते थे (उस वक़्त उस का अंजाम) बता दूंगा ऐ बेटा इसमें शक नहीं कि वह अमल (अच्छा हो या बुरा) अगर राई के बराबर भी हो और फिर वह किसी सख़्त पत्थर के अदंर या आसमानों में या ज़मीन में (छिपा हुवा) हो तो भी ख़ुदा उसे (क़यामत के दिन) हाज़िर कर देगा-बेशक ख़ुदा बड़ा बारीक बीन वाक़िफ़दार है
ऐ बेटा नमाज़ पाबंदी से पढ़ा कर और (लोगों से) अच्छा काम करने को कहो और बुरे काम से रोको और जो मुसीबत तुम पर पडे उस पर सब्र करो (क्योंकि) बेशक (ये बड़ी) हिम्मत का काम है और लोगों के सामने (ग़रुर से) अपना मुंह न फुलाना और ज़मीन पर अकड़ कर न चलना क्योंकि ख़ुदा किसी अकड़ने वाले और इतराने वाले को दोस्तन नहीं रखता और अपनी चाल(ढ़ाल) में मियानारवी इख़्तेयार करो और दूसरे से बोलने में अपनी आवाज़ धीमी रखों क्योंकि आवाजों में तो सब से बुरी आवाज़ (चीखने की वजह से) गधों की है
क्या तुम लोगों ने उस पर ग़ौर नहीं किया कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही ने यक़ीनी तुम्हारा ताबेअ कर दिया(1) और तुम पर अपनी ज़ाहिरी और(2) बातिनी नेमतें पूरी कर दी और बाज़ लोग (नसर बिन हारिस वग़ैरह) ऐसे भी हैं जो (ख़्वाह-म-ख़्वाह) ख़ुदा के बारे में झगड़ते हैं (हाँलाकिं) उनके पास न इल्म है और न हिदायत है और न कोई रोशन किताब है
और जब उन से कहा जाता है कि जो (किताब) ख़ुदा ने नाज़िल की है उसकी पैरवी करो तो (छूटते ही) कहते हैं कि नहीं हम तो उसी (तरीक़े से चलेंगे) जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया-भला अगर चे शैतान उन के बाप दादाओं को जहन्नुम के अज़ाब की तरफ़ बुलाता रहा हो (तो भी उन की पैरवी करेंगे) और जो शख़्स ख़ुदा के आगे अपना सर(1) (तस्लीम) ख़म करे और वह नेकूकार (भी) हो तो बेशक उस ने (ईमान की) मज़बूत रस्सी पकड़ ली और (आख़िर तो) सब कामों का अंजाम ख़ुदा ही की तरफ़ है
और (ऐ रसूल) जो काफ़िर बन बैठे तो तुम उसके कुफ्र से कूढ़ो नहीं इन सबको तुम्हारी तरफ़ लौट कर आना है तो जो कुछ इन लोगों ने किया है (उसका नतीजा) हम बताएंगे- बेशक ख़ुदा दिलों के राज़ से (भी) ख़ूब वाक़िफ है हम उन्हें चन्द रोज़ तक चैन करने देंगे फिर उन्हें मजबूर करके सख़्त अज़ाब की तरफ़ खींच लाऐंगे
और (ऐ रसूल) तुम अगर उन से पूछो कि सारे आसमान और ज़मीन को किस ने पैदा किया तो ज़रुर कह देंगे कि अल्लाह ने (ऐ रसूल) उस पर तुम कह दो अलहम्द लिल्लाह, मगर उन में अक़्सर (इतना भी) नहीं जानते हैं जो कुछ सारे आसमान और ज़मीन में हैं (सब) ख़ुदा ही का है-बेशक खु़दा तो श्रहर चीज़ से) बे परवा (और बहरहाल) क़ाबिल हम्दों सना है और जितने दरख़्त ज़मीन में हैं सब के सब क़लम बन जाएं और समन्दर उस की स्याही बने और उन के (ख़त्म होने के) बाद (और) सात समन्दर (स्याही हो जाए और ख़ुदा का इल्म और उसकी बातें लिखी जाएंगी) तो भी खु़दा की(2) बातें ख़त्म न होंगी बेशक ख़ुदा (सब पर) ग़ालिब (और) दाना (बीना) है तुम सब का पैदा करना और फिर मरने के बाद जिला उठाना एक शख़्स के (पैदा करने और जिला उठाने के) बराबर है- बेशक ख़ुदा (तुम सब की) सुनता (और सब कुछ) देख रहा है
क्या तूने ये भी ख़्याल नहीं किया कि ख़ुदा ही सब को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता देता है (तो दिन बढ़ जाता है) उसी ने आफ़ताब व महताब को (गोया) तुम्हारा ताबेअ बना दिया है- कि एक मुक़र्रर मीयाद तक (यूं ही) चलता रहेगा और (क्या तूने ये भी न ख़्याल किया कि) जो कुछ तुम कर रहे हो ख़ुदा उस से खूब वाक़िफ़ कार है ये सब बातें) उस सबब से हैं कि ख़ुदा ही यक़ीनी बरहक़ (माबूद) है- और उस के सिवा जिस को लोग पुकारते हैं- यक़ीनी बिल्कुल बातिल और उस में शक नहीं कि ख़ुदा ही आलीशान और बड़ा रूतबे वाला है
क्या तूने उस पर भी ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ही के फ़ज़ल से कश्ती दरियामें बहती चलती रहती है ताकि (लकड़ी में ये कुव्वत देकर) तुम लोगों को अपनी (कुदरत की) बाज़ निशानिया दिखा दे बेशक उन में भी तमाम सब्र व शुक्र करने वाले (बन्दों) के लिए (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं और जब उन्हें मौज (ऊंची होकर) साएबानों की तरह (ऊपर से) ढांक लेती है तो निराखुरा उसी का अक़ीदा रख कर ख़ुदा को पुकारने लगते हैं फिर जब खु़दा उन को नजात देकर खुश्की तक पुहंचा देता है तो उन में से बाज़ तो कुछ देर एतदाल पर रहते हैं (और बाज़ पक्का काफ़िर) और हमारी (कुदरत की) निशानियों से इंकार तो बस बद अहद और न शुक्रे ही लोग करते हैं
लोगों अपने परवरदिगार से डरों और उस दिन का ख़ौफ़ रखो जब न कोई बाप अपने बेटे के काम आएगा और न कोई बेटा अपने बाद के कुछ काम आ सकेगा- खुदा का (क़यामत का) वादा बिल्कुल पक्का है तो (कहीं) तुम लोगों को दुनियां की (चन्द रोज़ह) ज़िन्दगी धोके में न डाले और न कहीं तुम्हें फ़रेब देने वाला (शैतान) कुछ फ़रेब(1) दे-बेशक ख़ुदा ही के पास क़यामत (के आने) का इल्म है और वही (जब मौक़ा मुनासिब देखता है) पानी बरसता है- और जो कुछ औरतें के पेट में (नर व मादा) है जानता है और कोई शख़्स (इतना भी तो) नहीं जानता कि वह ख़ुद कल क्या करेगा- और कोई शख़्स ये (भी) नहीं जानता है कि वह किस(2) सरज़मीन पर मरे (गड़े) गा-बेशक (सब बातों से) आगाह ख़बरदार है।
सूरऐ सज्दा
सूरऐ सज्दा मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 30 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
अलिफ़-लाम-मीम- इसमें कुछ शक नहीं कि किताब (कुरआन) का नाज़िल करना सारे जहान(4) के परवरदिगार की तरफ़ से है- क्या यह लोग (य़ह) कहते हैं कि उस को उस शख़्स (रसूल) ने अपने जी से गढ़ लिया है नहीं ये बिल्कुल तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ है ताकि तुम लोगों को (ख़ुदा के अज़ाब से) डराओ जिनके पास तुम से पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं ताकि ये लोग राह पर आएं-खुदा ही तो है जिस ने सारे आसमान और ज़मीन और जितनी चीज़ें उन दोनों के दरमियान है छः दिन में पैदा की फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ
उस के सिवा न कोई तुम्हारा सरपरस्त है न कोई सिफ़ारिशी तो क्या तुम (उस से भी) नसीहत व इबरत हासिल नहीं करते आसमान से ज़मीन तक के हर अमर का वही मुदब्बिर (व मुन्तज़िम)(1) है फिर ये बन्दोबस्त उस दिन जिस की मिक़दार तुम्हारे शुमार से हज़डार बरस से होगी-उसी की बारगाह में पेश होगा- वही (मुदब्बिर) पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला है (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है- व है (क़ादिर) जिसने जो चीज़ बनाई (निख़ सुख से) ख़ूब (दुरुस्त) बनाई और इंसान की इब्तेदाई ख़िलखत मिट्टी से की फिर उस की नस्ल (इंसानी जिस्म के) ख़ुलासा ये यानी (नत्फ़ा के से) ज़लील पानी से बनाई फिर उस (के पुतले) को और दुरुस्त किया उसमें अपनी तरफ़ से रूह फूंकी और तुम लोगों के (सुनने के) लिए कान और (देखने के लिए) आंखें और (समझने के लिए) दिल बनाए (उस पर भी) तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो
और ये लोग कहते हैं कि जब हम ज़मीन में न पैदा हुए जाएंगे तो क्या हम फिर नई ख़तम लेंगे (क़यामत से नहीं) बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार के (सामने) हुजूरों ही से इंकार(1) रखते हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मल्कुल मौत जो तुम्हारे ऊपर तैनात है वही तुम्हारी रूहें कब्ज़ करेगा उसके बाद तुम सब के सब अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाए जाओगे
और (ऐ रसूल) तुमको बहुत अफ़सोस होगा अगर तुम मुजरिमों को देखोगे कि वह (हिसाब के वक़्त) अपने परवरदिगार की बारगाह में अपने सर झुकाए खड़े हैं और (अर्ज़ कर रहे हैं) परवरदिगार हमने (अच्छी तरह देख और सुन लिया तो हमें दुनियां में) एक दफ़ा फिर लौटा दे कि हम नेक काम करे और अब तो हमको (क़यामत का) पूरा पूरा यक़ीन है और (ख़ुदा फ़रमाएगा कि) अगर हम चाहते तो (दुनियां ही में) हर शख्स को (मजबूर करके) राहे रास्ते पर ले आते मगर मेरी तरफ़ से (रोज़ अज़ल) ये बात क़रार पा चुकी है कि मैं जहन्नुम को जिन्नात और आदमियों से भर दूंगा- तो चूंकि तुम आज के दिन हुजूरी को भूले बैठे थे तो अब उसका मज़ा चखो
हमने तुम को क़स्दन बिठला दिया(2) और जैसी-जैसी तुम्हारी करतूतें थी (उनके बदले) अब हमेशा के अज़ाब के मज़े चखो हमारी आयतों पर ईमान बस वही लोग(1) लाते हैं कि जिस वक़्त उन्हें वह (आयतें) याद दिलाई गई तो फ़ौरन सज्दे में गिर प़ड़ने और अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह पढ़ने लगे और ये लोग तकबीर नहीं करते (रात के वक़्त) उनके पहलू बिस्तरों से आशना नहीं होते और (अज़ाब के) ख़ौफ़ और (रहमत की) उम्मीद पर अपने परवरदिगार की इबादत करते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है उसमें से (ख़ुदा की) राह में खर्च करते हैं
उन लोगों की कारगुज़ारियों के बदले में कैसी-कैसी आंखों की ठंडक उनके लिए ढ़की छुपी रखी है उसको तो कोई शख़्स जानता ही नहीं तो क्या जो शख़्स ईमानदार है उस शख़्स के बराबर हो जाएगा जो बदकार है हरगिज़ नहीं ये दोनों(2) बराबर नहीं हो सकते लेकिन जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे-अच्छे काम किए उनके लिए तो रहने सहने के लिए (बेहिश्त के) बाग़ात हैं ये सामान ज़्याफ़त उन कारगुज़ारियों का बदला है जो वह (दुनियां में) कर चुके थे और जिन लोगों ने बदकारी की उनका ठिकाना तो (बस) जहन्नुम है वह जब उसमें से निकल जाने का इरादा करेंगे तो उसी में फिर ढकेल दिए जाएंगे और उनसे कहा जाएगा कि दोज़ख़ के जिस अज़ाब को तुम झुठलाते थए अब उस (के मज़े) चखो और हम यक़ीनी (क़यामत के) बड़े अज़ाब से पहले दुनिया के (मामूली) अज़ाब का(1) मज़ा चखाएंगे जो अनक़रीब होगा ताकि यह लोग अब भी (मेरी तरफ़ रुजू करें
और जिस शख़्स को उसके परवरदिगार की आयतें याद दिलाई जाएं और वह उनसे मूंह फ़ेर उस से बढ़कर और ज़ालिम कौन होगा हम गुनाहगारों से इन्तेक़ाम लेंगे और ज़रुर लेंगे और (ऐ रसूल) हमने तो मूसा को भी (आसमानी किताब) तौरैत अता की थी तुम भी उस किताब (कुरआन) के (मिनजानिब अल्लाह) मिलने से शक में न (पड़े) रहो और हमने उस (तौरैत) को बनी इस्राईल के लिए रहनुमा क़रार दिया था और उन्ही (बनी इस्राईल) में से हमने कुछ लोगों को(2) चूंकि उन्होंने (मुसीबतों पर) सब्र किया था पेशवा बनाया जो हमारे हुक्म से (लोगों की) हिदायत करते थे और (इसके अलावा) हमारी आयतों का दिल से यक़ीन रखते थे
(ऐ रसूल) इसमें शक नहीं कि जिन बातों में लोग (दुनियां में) बाहम झगड़ते रहते हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार क़तई फ़ैसला कर देगा- क्या इन लोगों को मालूम नहीं कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला जिनके घरों में यह लोग चल फिर रहे हैं बेशक उसमें (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं तो क्या लोग सुनते नहीं हैं क्या उन लोगों ने उस पर भी ग़ौर नहीं हम चटचल मैदान (उफ़तादा) ज़मीन की तरफ़ पानी को जारी करते हैं फिर उसके ज़रिये हम घास पात लगाते हैं जिसे उन के जानवर और ये खुद भी खाते हैं तो क्या ये लोग इतना भी नहीं देखते और ये लोग कहते हैं कि अगर तुम लोग सच्चे हो (कि क़यामत आएगी) तो (आख़िर) ये फ़ैसला कब होगा
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि फ़ैसला का दिन कुफ़्फार को उन का ईमान लाना कुछ काम न आएगा और न उन को (उस की) मोहलत दी जाएगी-गरज़ तुम उन की बातों का ख़याल छोड़ दो-और तुम मुन्तज़र रहो (आख़र) वह लोग भी तो इनतेजा़र कर रहे हैं।
सूरऐ अहज़ाब
सूरऐ अहज़ाब मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 73 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
ऐ नबी ख़ुदी ही से डरते रहो और काफ़िरों मुनाफ़िकों की बात न मानो- इस में शक नहीं कि ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़दार हकीम है और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे पास जो वही की जाती है (बस) उसी की पैरवी करो- तुम लोग जो कुछ कर रहे हो खु़दा उस से यक़ीनी अच्छी तरह आगाह है और ख़ुदा ही पर भरोसा रखो और ख़ुदा ही कारसाज़ी के लिए काफ़ी है ख़ुदा ने किसी आदमी के सीने में(2) दो दिल नहीं पैदा किये (कि एक दो इरादे कर सके) और न उसने तुम्हारी बीबियों को जिन से तुम ज़हार करते हो तुम्हारी(1) माँए बता दी है और न उस ने तुम्हारे ले-पालकों को तुम्हारे(2) बेटे बना दिये ये तो फ़क़त तुम्हारी मुंह बोली बात (और ज़बानी खर्च) है और (चाहे किसी को बुरी लगे या अच्छी) ख़ुदा तो सच्ची कहता है और (सीधी) राह दिखाता है
लेपालकों को उनके (असली) बापों के नाम से पुकारा करो- यही ख़ुदा के नज़दीक बहुत ठीक है- हां अगर तुम लोग उनके असली बापों को न जानते हो तो तुम्हारे दीनी भाई और दोस्त हैं (उन्हें भाई या दोस् कह कर पुकारा करो) और हां उस से भूल चूक जाओ तो अलबत्ता उस का तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है मगर जब तुम दिल से जान बूझ कर करो (तो ज़रुर गुनाह है) और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
नबी तो मोमिनीन से खुद उन की जानों से भी बढ़ कर हक़ रखते हैं (क्योंकि वह गोया उम्मत के मेहरबान बाप हैं) और उनकी बिबिया (गोया) उनकी माएं हैं और मोमिनीन व मुहाजरीन में से (जो लोग बाहम) क़राबतदार(3) (हैं) किताब खुदा की रौ से (गैरौं की निसबत) एक दूसरे के (तरके के) ज़्यादा हक़दार हैं मगर (जब) तुम अपने दोस्तों के साथ सलूक करना चाहो (तो दूसरी बात है) ये तो किताब (ख़ुदा) में लिखा हुवा (मौजूद) है
और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब हम ने और पैग़म्बरों से और ख़ास तुमसे और नूह और इब्राहीम व मूसा और मरयम के बेटे ईसा से अहद व पैमान लिया और उन लोगों से हम ने सख़्त अहद लिया ताकि (क़यामत के दिन) सच्चों (पैग़म्बरों) से उन सच्चाई (तबलीग़ रिसालत) का हाल दरयाफ़्त करे और काफ़िरों के वास्ते तो उस ने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर ही रखा
और ऐ ईमानदारों ख़ुदा की उन नेमतों(1) को याद करो जो उस ने तुम पर नाज़िल की है (जंग ख़न्दक़ में) जब तुम पर काफिरों का लश्कर (उमड़ के) आ पड़ा तो (हमने तुम्हारी मदद को) उन पर आंधी भेजी और (उस के अलावा फ़रिश्तों का) ऐसा लश्कर (भेजा) जिस को तुम ने देखा तक नहीं और तुम जो कुछ कर रहे थे ख़ुदा उसे खूब देख रहा था जिस वक़्त वह लोग तुम पर तुम्हारे ऊपर से आ पड़े और तुम्हारे नीचे की तरफ़ से भी पिल गये और जिस वक़्त (उन की कसरत से) तुम्हारी आँखें खीरा हो गयी थी और (ख़ौफ़ से) कलेजे मुंह की आ गये थे और ख़ुदा पर तरह-तरह के (बुरे) ख़याल करने लगे थे यहां पर मोमीनों का इम्तेहान लिया गया था और खूब अच्छी तरह झिन्झोड़े गये थे और जिस वक़्त मुनाफ़क़ीन और वह लोग जिन के दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ था, कहने लगे थे कि ख़ुदा ने और उसके रसूल स0 ने जो हम से वायदे किये थे वह बस बिल्कुल धोके की टट्टी थी
जब उनमें का एक गिरोह कहने लगा था कि ऐ मदीने वालों अब (दुश्मन के मुक़ाबले में) तुम्हारे कहीं ठिकाना नही तो (बेहतर है कि अब भी) पलट चलों और उन में से कुछ लोग रसूल से (घर लौट जाने की) इजाज़त मांने लगे थे कि हमारे घर (मरदों से) बिल्कुल खाली (ग़ैर महफूज़) पड़़े हुए हैं- हालांकि वह खाली (ग़ैर महफूज़) न थे (बल्कि) वह लोग तो (उसी बहाने से) बस भागना चाहते हैं और अगर ऐसा ही (लश्कर) उन लोगों पर मदीने के अतराफ़ से आ पड़े और उन से फ़साद (खाना जंगी) करने की दरख़्वास्त की जाए तो ये लोग उस के लिए (फ़ौरन) आ मौजूद हों और (उस वक़्त) अपने घरों में भी बहुत कम तवक़्क़ुफ करेंगे (मगर ये तो जिहाद है) हालांकि उन लोगों ने पहले ही ख़ुदा से अहद किया था कि हम दुश्मन के मक़ाबले में अपनी पीठ न फेंरेगे और ख़ुदा के अहद की पूछ गछ तो (एक न एक दिन) होकर रहेगी
(ऐ रसूल उन से) कह दो कि अगर तुम मौत या क़त्ल (के ख़ौफ़) से भागे भी तो (ये) भागना तुम्हें हरगिज़ कुछ भी मुफ़ीद न होगा और अगर तुम भाग कर बच भी गये तो बस यही न कि (दुनिया में) चंद रोज़ और चैन कर लो (ऐ रसूल) तुन उन से कह दो कि अगर ख़ुदा तुम्हारे साथ बुराई का इरादा कर बैठे तो तुम्हें उसके (अज़ाब) से कौन ऐसा है जो बचाले या भलाई ही करना चाहे (तो कौन रोक सकता है) और ये लोग ख़ुदा के सिवा न तो किसी को अपना सरपस्त पाएंगे और न मददगार।
तुम में से जो लोग (दूसरों को जिहाद से) रोकते हैं ख़ुदा उन को खूब जानता है
और (उनको भी ख़ूब जानता है) जो अपने भाई बंदो से कहते हैं कि हमारे पास चले भी आओ और ख़ुद भी (फ़क़त छिद्दा छुड़ाने को) लड़ाई (के खेत) में बस एक एक ज़रा सा आकर तुम से अपनी जान चुराई (और चल दिये) और जब (उन पर) ख़ौफ़ (का मौक़ा) आ पड़ा तो तुम देखते हो कि (पास से) तुम्हारी तरफ़ देखते हैं (और) उन की आँखें इस तरह घूमती हैं जैसे किसी शख़्स पर मौत की बेहोशी छा जाए फिर जब ख़ौफ़ (का मौक़ा) जाता रहा और ईमानदारों की फ़तह हुई तो माले (ग़नीमत) पर गिरते पड़ते फ़ौरन तुम पर अपनी तेज़ी ज़बानों से ताना करने लगे ये लोग (शुरू) से ईमान ही नहीं लाए (फ़क़त ज़बानी जमा खर्च थी) तो ख़ुदा ने भी उन का किया कराया सब अकारत कर दिया और ये तो ख़ुदा के वास्ते एक (निहायत) आसान बात थी मदीने का मुहासरा करने वाले चल भी दिये मगर (ये लोग अभी यही समझ रहे हैं कि (काफिरों के) लश्कर अभी नहीं गये और अगर कहीं (कुफ़्फ़ार का) लश्कर फिर आ पहुंचे तो ये लोग चाहेंगे कि काश वह जंगलों में गवारों में जा बसते और (वहीं से बैठे-बैठे) तुम्हारे हालात दरयाफ़्त करते रहते और अगर उन को तुम लोगों में रहना पड़ता तो फ़क़त (छद्दा छुड़ाने को) ज़रा-ज़हूर (कही) लड़ते
(मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते तो ख़ुद रसूल अल्लाह का (ख़न्दक़ में बैठना) एक अच्छा नमूना था (मगर हां ये) उस शख़्स के वास्ते है जो ख़ुदा और रोज़ आख़ेरत की उम्मीन रखता हो और ख़ुदा की याद ब कसरत करता हो- और जब सच्चे ईमानदारों ने (कुफ़्फार के) जमघटों को देखा तो (बेतकल्लुफ़) कहने लगे कि ये यही चीज़ तो है जिसका हमसे ख़ुदा ने और उसके रसूल ने वादा किया था (उसकी परवाह क्या है) और ख़ुदा ने और उसके रसूल ने बिल्कुल ठीक कहा था और (उसके देखने से) उनका ईमान और उसकी एताअत और भी ज़िन्दा हो गई
ईमानदारों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं कि ख़ुदा से उन्होंने (जान निसारी का) जो अहद किया था उसे पूरा कर दिखाया-गर्ज़ उनमें से बाज़ वह हैं जो (मर कर) अपना वक़्त पूरा कर गए और उनमें से बाज़ (हुक्म ख़ुदा के) मुन्तज़र बैठे हैं- और उन लोगों ने (अपनी बात) ज़रा भी नहीं बदली (ये इम्तेहान इस लिए था) ताकि ख़ुदा सच्चे (ईमानदारों) को उनकी सच्चाई की जज़ाए ख़ैर दे और अगर चाहे तो मुनाफ़क़ीन की सज़ा करे या (अगर वह लोग तौबा करें तो) ख़ुदा उनकी तौबा क़ुबूल फ़रमाए- उसमें शक नहीं कि ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और ख़ुदा ने (अपनी कुदरत से) काफ़िरों को मदीने से फेर दिया (और वह लोग) अपनी झुंझलाहट में (फिर गए) और उन्हें कुछ फायदा भी न हुआ और ख़ुदा ने (अपनी मेहरबानी से) मोमनीन को लड़ने की नौबत न आने दी और ख़ुदा तो (बड़ा) ज़बरदस्त (और) ग़ालिब है
और अहले किताब में से जिन लोगों (बनी क़रीज़ा) ने उन (कुफ़्फ़ार) की मदद की थी ख़ुदा उन को उनके क़िलों से (बेदख़ल कर के) नीचे उतार लाया(1) और उनके दिलों में (तुम्हारा) ऐसा रौब बिठा दिया कि तुम उनके कुछ लोगों को क़त्ल करने लगे, और कुछ को क़ैदी (और गुलाम) बनाने और तुम ही लोगों को उनकी ज़मीन और उनके घर और उनके माल और उस ज़मीन (ख़ैबर) का ख़ुदा ने मालिक बना दिया जिसमें तुम ने क़दम तक नहीं रखा था और ख़ुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर (व तवाना) है
ऐ रसूल(2) अपनी बीबियों से कह दो कि अगर तुम (फ़क़त) दुनियावीं ज़िन्दगी और उसकी आराईश व ज़ीनत की ख़्वाहों हो तो इधर आओ मैं तुम लोगों को कुछ साज़ व समान दे दूं और उनवाने शाइस्ता से रुख़सत कर दूं और अगर तुम लोग ख़ुदा और उसके रसूल और आख़ेरत के घर की ख़्वाहा हो तो (अच्छी तरह ख़्याल रखो की) तुम लोगों में से नेकूकार औरतों के लिए ख़ुदा ने यक़ीनन बड़ा (बड़ा) अज्र व (सवाब) मोहय्या कर रखा है ऐ पैग़म्बर की बीबियों तुम में से जो कोई किसी सरीही नाशाइस्ता हरकत का मुरतकिब हुई तो (याद रहे की) उसका अज़ाब भी दो-गुना बढ़ा दिया जाएगा और ख़ुदा के वास्ते (निहायत) आसान है।
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