तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-20

कुरआन मजीद
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भला वह कौन है जिस ने आसमानों और जम़ीन को पैदा किया और तुम्हारे वास्ते आसमान से पानी बरसाया- फिर हम ही ने पानी से दिलचस्प व खुशनुमा बाग़ उगाए- तुम्हारे तो यह बस की बात न थी कि तुम उन के दरख़्तों को उगा सकते तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि ये लोग ख़ुद (अपने जी से गढ़ के बुतों को) उसके बराबर बनाते हैं भला वह कौन है जिस ने ज़मीन को (लोगों के) ठहराने की जगह बनाया और उसक दरम्यान जा-बजा नहरें दौड़ाई और उसकी मज़बूती के वास्ते पहाड़ बनाए और (मीठे खारी) दो दरयाओों के दरम्यान हद फासिल बनाया तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि उन में के अक्सर (कुछ) जानते ही नहीं भला वह कौन है कि जब मुज़तर उसे पुकारे तो दुआ कुबूल करता हू और मुसीबत को दूर करता हू
और तुम लोगं को जम़ीन में (अपना) नाएब(1) बनाता है तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद है (हरगिज़ नहीं) उस पर भी तुम लोग बहुत कम नसीहत व इबरत हासिल करते हो भला वह कौन है जो तुम लोगों को खुश्की और तरी की तारिकियों मे राह दिखाता है और कौन उस क बारान रहमत के आगे-आगे (बारिश की) खुशख़बरी लेकर हवाओं को भेजता है- क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) ये लोग जिन चीज़ों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं- खुदा उस से बालातर है
भला वह कौन है जो ख़िलक़त को नए सिरे से पैदा करता है फिर उसे दुबारा (मरने के बाद) पैदा करेगा और कौन है जो तुम लोगों को आसमान व ज़मीन से रिज़्क देता है तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं)
(ऐ रसूल) तुम (उन मुशरेकीन से) कह दो कि अगर तुम सच्चे हो तो अपनी दलील पेश करो (ऐ रसूल उन से) कह दो कि जितने लोग आसमान व जमीन में है उनमें से कोई भी ग़ैब की बात के सिवा नहीं(1) जानता और वह ये भी तो नहीं समझते कि क़ब्र से दुबारा कब ज़िन्दा उठा खड़े किये जाएंगे बल्कि(2) (अस्ल यह है कि) आख़ेरत के बारे में उनके इल्म का ख़ात्मा हो गया है बल्कि उसकी तरफ़ से शक में पड़े हैं बल्कि (सच है कि) उस से यह लोग अंधे बने हुए हैं और कुफ़्फ़ार कहने लगे कि क्या जब हम और हमारे बाप दादा (सड़गल कर) मिट्टी हो जाएंगे तो क्या हम फिर निकाले जाएंगे उसका तो पहले भी हमे से और हमारे बाप दादाओं से वादा किया गया था (कहां का उठना और और कैसी क़यामत) ये तो हो न हो अगले लोगों के ढकोसले हैं
(ऐ रसूल) लोगों से कह दो कि रूऐ ज़मीन पर ज़रा चल फिर कर देखो तो गुनाहगारों का अंजाम क्या हुवा- और (ऐ रसूल) तुम उन के हाल पर कुछ अफ़सोस न करो और जो चालें ये लोग (तुम्हारे ख़िलाफ़) चल रहे हैं उस से तंग दिल न हो और ये (कुफ़्फ़ार मुसलमानों से) पूछते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये (क़यामत का अजाब का) वादा कब पूरा होगा
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुमन लोग जल्दी मचा रहे हो क्या अजाब है उस में से कुछ क़रीब आ गया हो और उम में तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार लोगों पर बड़ा फ़ज़्ल व करम करने वाला है मगर बहुतेरे लोग (उस का) शुक्र नहीं करते और इस में शक नहीं कि जो बातें उन के दिलों में पोशीदा हैं और जो कुछ ये ऐलानियां करते हैं तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनी जानता है- और आसमान व ज़मीन में कोई ऐसी बात पोशीदा नहीं जो वाज़े(1) रौशन किताब (लौह महफूज़) में (लिखी) मौजूद न हो इस में भी शक नहीं कि ये कुरआन बनी इस्राईल पर उन की इक्सर बातों को जिन मे ये इख़्तेलाफ़ करते(2) हैं ज़ाहिर कर देता है और इस में भी शक नहीं कि ये कुरआन ईमानदारों के वास्ते अज़सरतापा हिदायत व रहमत है
(ऐ रसूल) बे शक तुम्हारा परवरदिगार अपने हुक्म से उन के आपस (के झगड़ों) का फ़ैसला कर देगा और वह (सब पर) ग़ालिब (और) वाक़िफ़कार है तो (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा पर भरोसा रखो- बेशक तुम यक़ीनी सरीही हक़ पर हो-बेशक न हो तो तुम मुर्दो(1) को (अपनी बात) सुना सकते हो और बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हो (ख़ास कर) जब वह पीठ फेर कर भाग खड़े हो और न तुम अंधों को उन की गुमराही से राह पर ला सकते हो
तुम तो बस उन ही लोगों को (अपनी बात) सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं- फिर वही लोग तो मानने वाले भी हैं और जब उन लोगों पर (क़यामत का) वादा पूरा होगा तो हम उनके वास्ते ज़मीन से एक चलने वाला(2) निकाल खड़ा करेंगे जो उन से ये बातें करेगा कि (फला-फला) लोग हमारी आयतों का यक़ीन नहीं रखते ते और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम हर उम्मत से अक गिरोह(3) को जो हमारी आयतों का यक़ीन नहीं रखते थे और (उस दिन को याद करो0 जिस दिन हम हर उम्मत से एक गिरोह(3) को जो हमारी आयतों को झुठलाया करते थे (ज़िन्दा करके) जमा करेंगे फिर उन की टोलियाँ-अलैहदा करेंगे
यहां तक कि जब वह सब (ख़ुदा के सामने) आएंगे और ख़ुदा उन से कहेगा क्या तुमने हमारी आयतों को बे अच्छी तरह समझे बूझे झुठलाया-भला तुम क्या किया करते थे और चूंकि ये लोग जुल्म किया करते थे उन पर (अज़ाब का) वादा पूरा हो गया फिर ये लोग कुछ बोल भी न सकेंगे- क्या इन लोगों ने ये भी न देखा कि हम ने रात को इस लिए बनाया कि ये लोग उस में चैन करें और दिन को रौशन (ताकि देख भाल सकें) बेशक उस में ईमान लाने वालों के लिए (कुदर ख़ुदा की) बहुत सी निशानयाँ हैं और (उस दिन को याद करो) जिस दिन सूर फूंका जाएगा तो जितने लोग आसमानों में हैं और जितने लोग ज़मीन में हैं (ग़रज़ सब के सब) दहल जाएंगे।
मगर जिस शख़्स को ख़ुदा चाहे (अलबत्ता मुतमईन रहेगा) और सब लोग उसकी बारगाह में ज़िल्लत व आजिज़ी की हालत में हाज़िर होंगे और तुम पहाड़ों को देक कर उन्हें मज़बूत जमे हुए समझते हो- हालांकि ये (क़यामत के दिन) बादल की तरह उड़े-उड़े फिरेंगे (ये भी) ख़ुदा की कारीगरी है कि जिस ने हर चीज़ को खूब मज़बूत बनाया है- बेशक जो कुछ तुम लोग करते हो उस से वह खूब वाक़िफ है।
जो शख़्स नेक काम करेगा उस के लिए उस की जज़ा उस से कहीं बेहतर है और ये लोग उस दिन ख़ौफ़ व ख़तर से महफूज़ रहेंगे और जो लोग बुरा काम करेंगे- वह मुंह के बल जहन्नुम में झोंक दिए जाएंगे (और उनसे कहा जाएगा कि) जो कुछ तुम (दुनियां में) करते थे बस उसी की जज़ा तुम्हें दी जाएगी।
(ऐ रसूल उन से कह दो कि) मुझे तो बस यही हुक्म दिया गया है कि मैं उस शहर (मक्का) के मालिक की इबादत करूं जिस ने उसे इज्ज़त व हुरमतत दी है और हर चीज़ उसी की है और मुझे ये भी हुक्म दिया गया है कि मैं (उस के) फ़रमाबरदार बन्दों में से हूं- और ये कि मैं कुरआन पढ़ा करूं फिर जो शख़्स राह पर आया तो अपनी ज़ात के नफ़ा के वास्ते राह पर आया और जो गुमराह हुआ तो तुम कह दो कि मैं भी बस एक डराने वाला हूं- और तुम कह दो कि अलहम्दो लिल्लाह वह अनक़रीब तुम्हे अपनी (कुदरत की) निशानियां(1) दिखा देगा तो तुम उन्हे पहचान लोगे और जो कुछ तुम करते हो तुम्हारा परवरदिगार उस से ग़ाफिल नहीं है।

सूरऐ क़स़स

सूरऐ क़स़स़ मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 88 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
तसम (ऐ रसूल) ये वाज़ेह व रौशन किता बी आयतें हैं (जिस में) हम तुम्हारे सामने मूसा और फिरऔन का वाक़िया ईमानदार लोगों के नफ़ा के वास्ते ठीक-ठीक बयान करते हैं बेशक फिरऔन के (मिस्र की) सर ज़मीन में बहुत सर उठाया था और उसने वहां के रहने वालों को कई गिरोह कर दिया था उन में से एक गिरोह ने (बनी इस्राईल) को आजिज़ कर रखा था कि उन के बेटों को ज़बह करवा देता था और उन की औरतों (बेटियों) को ज़िन्दा छोड़ देता था बेशक वह भी मुफ़सिदों में था
और हम तो ये चाहते हैं कि जो लोग रुऐ ज़मीन में कमज़ोर कर दिए गए हैं उन पर अहसान करें और उन ही को (लोगों का) पेशवा बनाए और उन ही को इस (सर ज़मीन) का मालिक बनाएं और उन ही को रूए ज़मीन पर पूरी कुदरत अता करे और फिरऔन और हामान और उन दोनों के लश्करों को उन ही कमज़ोरों के हाथ से वह चीज़ें दिखाएं जिस से ये लोग डरते(1) थे और हमने मूसा की मां के पास ये वही भेजी कि तुम उस को दूध पिला लो फिर जब उसकी निस्बत तुम को कोई ख़ौफ़(2) हो तो उन को (एक सन्दूक़ में रख कर) दरिया में डाल दो और (उस पर) तुम कुछ ना डरना और न कुढ़ना (तुम इत्मीनान रखो) हम उस को फिर तुम्हारे पास पहुंचा देंगे और उसको (अपना) रसूल बनाएंगे (गरज़ मूसा की मां ने दरिया में डाल दिया वह सन्दूक़ बहते-बहते फिरऔऩ के महल के पास आ गया) तो फ़िरऔन के लोगों ने उसे उठा लिया ताकि (एक दिन यही) उन का दुश्मन और उन के रन्ज को बाएस बने उस में शक नहीं कि फिरऔऩ और हारून उन दोनों के लश्कर ग़ल्ती पर थे
और (जब मूसा महल में लाए गऐ तो) फिरऔन की बीवी (आसिया अपने शौहर से) बोली कि ये मेरी और तुम्हारी (दोनों की) आंखों की ठंडक है तो तुम लोग उसको क़त्ल न करो क्या अजब है कि हम को नफ़ा पहुंचाए या हम उसे ले बालक ही बना लें और उन्हें (उसी के हाथ से बरबाद होने की) ख़बर न थी (इधऱ तो ये हो रहा था) और (उधर) मूसा की माँ का दिल ऐसा बेचैन हो गया कि अगर हम उस के दिल को मज़बूत न कर देते तो क़रीब था कि मूसा का हाल ज़ाहिर कर देती (और हम ने इसी लिए ढारस दी) ताकि वह (हमारे वादे का) यक़ीन रखे और मूसा की मां ने (दरिया में डलते वक़्त) उनकी वबह (कुल्सुम) से कहा कि तुम उसके पीछे-पीछे (अलग) चली जाओ तो वह मूसा को दूर से देखती रीह और उन लगों को उस की ख़बर भी न हुई और हमने मूसा पर पहले हीसे और दाइयों (के दूध) को हराम कर दिया था (कि किसी की छाती से मुंह न लगाना) तब मूसा की बहन बोली भला मैं तुम्हें एक घराने का पता बताओ कि वह तुम्हारी ख़ातिर से उस बच्चे की परवरिश कर देंगे और वह यक़ीनन उस के ख़ैर ख़्वाह होंगे(1)
ग़रज़ इस (तरकीब से) हम ने मूसा को उसकी मां तक फिर पुहंचा दिया उस की आँख ठंडी हो जाए और रन्ज न करें- और ताकि समझ लें कि ख़ुदा का वादा बिल्कुल ठीक है- मगर उन में से अक़्सर नहीं जानते हैं- और जब मूसा अपनी जवानी को पहुंचे और (हाथ पांव निकाल के) दुरुस्त हो गए तो हमने उन को हिक्मत और इल्म अता किया- और नेकी करने वालों को हम यूं जज़ाए ख़ैर देते हैं और एक दिन इत्तफ़ाक़न मूसा शहर में ऐसे वक़्त आए कि वहां के लोग (नीद की) गफ़लत में पड़े हुए थे कि वहाँ दो आदमी आपस में लड़े मरते हैं ये (एक) तो उन की क़ौम बनी (इस्राईल) मे का है और वह (दूसरा) उन के दुश्मन की क़ौम (क़ब्ती) का है तो जो शख़्स उन की क़म का था उस ने उस शख़्स से जो उन के दुश्मनों में था (ग़लबा हासिल करने लिए) मूसा से मदद मागंी ये सुनते ही मूसा ने उसे एक घूंसा मारा था कि उसका काम तमाम हो गया फिर (ख़याल करके) कहने लगे ये शैतान का काम था- उसमें शक नहीं कि वह दुश्मन और खुल्लम खुल्ला गुमराह करने वाला है
(फिर बारगाह ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार बेशक में ने अपने ऊपर ज़ुल्म किया (कि उस शहर में आया) तू तो मुझे (दुश्मनों से) पोशीदा(1) रख-गरज़ खुदा ने उन्हें पोशीदा रखा उसमें तो शक नहीं कि वह बड़ा पोशीदा रखने वाला मेहरबान है मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार चूंकि तूने मुझ पर एहसान किया है मैं भी कभी आइन्दा गुनाहगारों का हरगिज़ मददगार न बनूंगा-गरज़ (रात तो जो तो गुज़री) सुबह को उम्मीद व बीम की हात में मूसा शहर में गये तो क्या देखते हैं कि वही शख़्स जिस ने कल उन से मदद मांगी थी उन से (फिर) फ़रयाद कर रहा है- मूसा ने उस से कहा बेशक तू यक़ीनी खुल्लम ख़ुल्ला गुमराह है ग़रज़ जब मूसा ने कहा कि उस शख़्स पर जो दोनों का दुश्मन था (छुड़ाने के लिए) हाथ बढ़ाए तो कुब्ती कहने लगा कि ऐ मूसा जिस तरह तुमने कल एक आदमी को मार डाला (उसी तरह) मुझे भी मार डालना चाहते हो- तुम तो बस ये चाहते हो कि रूए ज़मीन में सरकश बन कर रहो और मसलह (क़ौम) बन कर रहना नहीं चाहते(1) और एक शख़्स शहर के उस किनारे से दौड़ता हुवा आया और (मूसा से) कहने लगा मूसा (तुम ये यक़ीन जानो कि शहर के) बड़े बड़े आदमी तुम्हारे बारे में मशवरा कर रहे हैं कि तुम को क़त्ल कर डालें तो तुम (शहर में) निकल भागो- मैं तुम से ख़ैर ख़्वाहाह कहता हूं ग़रज़ मूसा वहां से उम्मीद व बीम की हालत में निकल खड़े हुए और (बारगाह ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार मुझे ज़ालिम लोगों (के हाथ) से निजात दे और जब मदायन की तरफ़ रुख किया (और रास्ता मालूम न था) तो आप ही आप बोले मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधा रास्ता दिखा दे और (आठ दिन फ़ाक़ा करते चले) जब शहर मदायन के कुंवे पर (जो शहर के बाहर था) पहुंचे तो कुंवे पर लोगों की भीड़ देखी कि वह (अपने जानवरों को) पानी पिला रहे हैं और उन सब के पीछे दो औरतों (हज़रत शुएैब की बेटियों) को देखा कि वह (अपनी बकरियों को) रोके खड़ी हैं
मूसा ने पूछा कि तुम्हारा क्या मतलब है वह बोली जब तक सब चरवाहे (अपने जानवरों को) खूब छक के पानी पिला कर फिर न जाए हम नहीं पिला सकते और हमारे वालिद बहुत बूढ़ें हैं तब मूसा ने (की बकरियों) के लिए (पानी खींच कर) पिला दिया फिर वहां से हट कर छाओ में(2) जा बैठे तो (चुंकि बहुत भूक थी) अर्ज़ की परवरदिगार परवरदिगार (इस वक़्त) जो नेअमत तू मेरे पास भेज दे मैं उसका सख़्त हाजतमंद हूं में उन ही दो में से एख औरत शर्मीली चाल से आई (और मूसा से) कहने लगी-मेरे वालिद तुम को बुलाते हैं ताक तुमने जो (हमारी बकरियों को) पानी पिला दिया है तुम्हें उस की मज़दूरी दें
ग़रज़ जब मूसा उनके पास आए और उन से अपने क़िस्से बयान किये तो उन्होंने कहा अब कुछ अंदेशा न करो तुम ने ज़ालिम लोगों के हाथ से निजात पाई(3) (इसी आसना में) उन दोनों में से एक लड़की ने कहा ऐ अब्बा उन को नौकर रख लिजिए क्योंकि आप जिस को भी नौकर रखें बस में बेहतर वह है जो मज़बूत और ईमानदार हो (और इन में दोनों बाते पाई जाती हैं तब) शुएैब ने कहा मैं चाहता हूं कि अपनी उन दोनों लड़कियों में से एक के साथ तुम्हारा इस (महेर) पर निकाह कर दूं कि तुम आठ बरस तक मेरी नौकरी करो अगर तुम दस बरस पूरे कर दो तो तुम्हारा एहसान और मैं तुम पर मेहनते शाक़ा भी डालना नहीं चाहता और तुम मुझे इन्शा-अल्लाह नेकोकार आदमी पाओगे मूसा ने कहा ये मेरे आर आप के दरमियान (मुआहेदा) है दोनों मुद्दतों में से जो भी पूरी करूं (मुझे इख़्तेयार है) फिर मुझ पर जब और ज़्यादती (देने का आपको हक़) नहीं और हम आप जो कुछ कर रहे हैं (उसका) खुदा गवाह है(1)
ग़रज़ मूसा का छोटी लड़की से निकाह हो गया और रहने लगे फिर जब मूसा ने अपनी (दस बरस की) मुद्दत पूरी की और बीवी को लेकर चले तो (अंधेरी रात जाड़ों के दिन राह भूल गए और बीबी सफूरह को दर्देज़ह शुरू हुआ इतने में) कोहे तूर की तरफ़ आग दिखाई दी तो अपने लड़के बालों से कहा तुम लोग ठहरो मैंने यक़ीनन आग देखी है मैं वहां जाता हूं क्या अजब है वहां से (रास्ते की) कुछ ख़बर लाऊँ या आग की कोई चिन्गारी (लेता जाऊं) ताकि तुम लोग तापो ग़रज़ जब मूसा आग के पास आए तो मैदान के दाहिने किनारे से उस मुबारक जगह में एक दरख़्त से उन्हें आवाज़ आई कि ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मैं ही अल्लाह सारे जहाँ का पालने वाला हूं
और ये (भी आवाज़ आई) कि तुम अपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दो फिर जब (डाल दिया तो) देखा कि वह उस तरह बल खा रही है कि गोया वह (ज़िन्दा) अज़दहा है तो पीठ फेर के भागे और पीछे मुड़ कर भी न देखा (तो हमने फ़रमाया) ऐ मूसा आगे आओ और डरों नहीं तुम हर तरह अमन व अमान में हो (अच्छा और लो) अपना हाथ गरेबान में डालो (और निकाल लो) तो सफेद बुराक़ होकर बे ऐब निकल आया और ख़ौफ़ (की वजह) से अपने बाजू अपनी तरफ़ समेट(1) लो (ताकि खौफ़ जाता रहे) गरज़ ये दोनों (असा व यदे बैज़ा) तुम्हारें परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारी नबूवत की) दो दलीलें फिरऔन और उस के दरबार के सरदारों के वास्तें हैं उसमें शक नहीं कि वह बदकार लोग थे
मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार मैं ने उन में से एक शख़्स को मार डाला था- तो मैं डरता हूं कहीं (उस के बदले) मुझे न मार डालें- और मेरा भाई हारून मुझ से ज़बान में ज़्यादा फसीह है तो तू उसे मेरे साथ मेरा मददगार बना कर भेज कि वह मेरी तस्दीक़ करे क्योंकि मैं इस बात से डरता हूं कि मुझे वह लोग झुठला देंगे (तो उन के जवाब के लिए गोयाई की ज़रुरत है) फ़रमाया अच्छा हम अनक़रीब तुम्हारे भाई की वजह से तुम्हारे बाज़ू क़वी कर देंगे और तुम दोनों को ऐसा ग़लबा अता करेंगे कि फिरऔनी लोग तुम दोनों तक हमारे मोज़िज़े की वजह से पहुंच भी न सकेंगे लो जाओ तुम दोनों और तुम्हारे पैरवी करने वाले ग़ालिब रहेगे- ग़रज़ जब मूसा हमारे वाज़े व रौशन मोजिज़े लेकर उन के पास आए तो वह लोग कहने लगे कि ये तो बस अपने दिल का गाढ़ा हुआ जादू है और हमने तो अपने अगले बाप दादाओं (के ज़माने) में ऐसी बात सुनी भी नहीं और मूसा ने कहा मेरा परवरदिगार उस शख़्स से खूब वाक़िफ़ है जो उस की बारगाह से हिदायत ले कर आया है उस शख़्स से भी जिस के लिए आख़ेरत का घर है
इस में तो शक ही नहीं कि ज़ालिम लोग कामयाब नहीं हुए और (ये सुन कर) फ़िरऔऩ ने कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारों मुझ को तो अपने सिवा तुम्हारा कोई परवरदिगार मालूम नहीं होता (और मूसा दूसरे को ख़ुदा बताता है) तो ऐ हामन वज़ीर फ़िरऔन तुम मेरे वास्ते मिट्टी (की ईंट) का पजावा सुलगाओ फिर मेरे वास्ते एख पुख्ता महल(1) ताकि मैं उस पर चढ़कर मूसा के ख़ुदा को देखूँ और मैं तो यक़ीनन मूसा को झूठा समझता हूँ- और फिरऔन और उसके लश्कर ने रूए ज़मीन में नाहक़ सर उठाया था और उन लोगों ने समझ लिया था कि हमारी बारगाह में वह कभी पलट कर नहीं आएंगे- तो हम ने उस को और उस के लश्कर को ले डाला- फिर उन सब को दरयां में डाल दिया तो (ऐ रसूल) ज़रा देखो तो कि ज़ालिमों का कैसा बुरा अंजाम हुआ
और हम ने उन को (गुमराहों का) पेश्वा बनाया कि (लोगों को) जहन्नुम की तरफ़ बुलाते हैं और क़यामत के दिन (ऐसे बेक़स होंगे कि) उन को किसी तरह की मदद न दी जाएगी और हमने दुनियां में भी तो लानत उन के पीछे लगा दी है और क़यामत के दिन उन के चेहरे बिगाड़ दिए जाएंगे और हम ने बहुत सी अगली उम्मतों को हलाक कर डाला उसके बाद मूसा को किताब (तौरैत) अता की जो लोगों के लिए अज़-सर-ता-पा बसीरत और हिदायत और रहमत थी ताकि वह लोग इब्रत व नसीहत हासिल करें
और (ऐ रसूल) जिस वक़्त हमने मूसा के पास अपना हुक्म भेजा था तो तुम (तूर के) मग़रिबी जानिब में मौजूद न थे और न तुम उन वाक़िआत को चश्म दीद देखने वालों में से थे- मगर हमने (मूसा के बाद) बहुत सी उम्मते पैदा की फिर उन पर एक ज़मान दराज़ गुज़र गया और न तुम मदायन के लोगों में रहे थे कि उन के सामने हमारी आयतें पढ़ते (और न तुम को उन के हालात मालूम होते) मगर हम तो (तुम को) पैग़म्बर बना कर भेजने वाले थे और न तुम तूर की किसी जानिब उस वक़्त मौजूद थे(1) जब हमने (मूसा को) आवाज़ दी थी (ताकि तुम देखते) मगर ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है ताकि तुम उन लोगों को जिन के पास तुम से पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं(2) डराओ ताकि ये लोग नसीहत व इबरत हासिल करें
और अगर ये न होता कि जब उन पर उन की अगली करतूतों की बदौलत कोई मुसीबत प़ड़ती तो बे साख़्ता कह बैठते कि परवरदिगार तूने हमारे पास कोई पैग़म्बर क्यों न भेजा कि हम तेरे हुक्मों पर चलते और ईमानदारों में होते (तो हम तुमकों न भेजते मगर) फिर जब हमारी बारगाह से (दीन) हक़ उनके पास पहुंचा तो कहने लगे जैसे (मोजिज़े) मूसा को अता हुए थे वैसे ही इस रसूल (मुहम्मद) को क्यों नहीं दिए गए क्या जो मोजिज़े इससे पहले मूसा को अता हुए थे उनसे उन लोगों ने इंकार न किया था कुफ़्फ़ार तो ये भी कह गुजरे कि ये दोनों के दोनों (तौरैत व कुरआन) जादू है कि बाहम एक दूसरे के(1) मददगार हो गए हैं और ये भी कह चुके कि हम सब के मुन्कर हैं
(ऐ रसूल) तुम (इन लोगों से) कह दो कि अगर सच्चे हो तो ख़ुदा की तरफ़ से एक ऐसी किताब जो उन दोनों से हिदायत में बेहतर हो ले आओ कि मैं भी उस पर चलूं फिर अगर ये लोग (उस पर भी) न माने तो समझ लो कि ये लोग बस अपनी हवाओं होस की पैरवी करते हैं और जो शख़्स खुदा की हिदायत को छोड़ कर लोगों को मंज़िल मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता और हम यक़ीनन लगातार (अपने अहकाम को भेज कर) उन की नसीहत करते रहे ताकि वह लोग नसीहत हासिल करें जिन(2) लोगों के हमने इस से पहले किताब अता की है वह इस (कुरआन) पर ईमान लाते हैं और जब उनके सामने ये पढ़ा जाता है तो बोल उठते हैं कि हम तो उस पर ईमान ला चुके बेशक ये ठीक है (और) हमारे परवरदिगार की तरफ़ से है हम तो उस को उस के पहले ही से मानते थे- यही वह लोग हैं जिन्हें (उन सके आमाल ख़ैर की) दोहरी सज़ा दी जाएगी चूंकि उन लोगों ने सब्र किया और बदी का दफिइया नेकी से करते हैं और जो कुछ हम ने उन्हें अता किया है उस में से (हमारी राह में) खर्च करते हैं और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ़ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारयां है और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियां (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलों (की सोहबत) के ख़्वाहा नहीं (ऐ रसूल) बेशक(1) तुम जिसे चाहो मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचा सकते मगर हां वह जिसे चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचाए और वही हिदायत याफ़्ता लोगों से खूब वाक़िफ है
(ऐ रसूल) कुफ़्फ़ार (मक्का) तुम से कहते(2) हैं कि अगर हम तुम्हारे साथ दीन हक़ की पैरवी करें तो हम अपने मुल्क से उचक लिये जाएं (ये क्या बकते हैं) क्या हम ने उन्हें हरम (मक्का) में जहां हर तरह का अमन है जगह नहीं दी जहां हर क़िस्म के फ़ल रोज़ी के वास्ते हमारी बारगाह में खिचे चले जाते हैं मगर बहुतेरे लोग नहीं जानते और हम ने तो बेहतरीन बस्तियां बरबाद कर दी जो अपनी मईशत में बहुत इतराहट से (ज़िन्दगी) बसर किया करती थी- (तो देखो) ये उन ही के (उजड़े हुए घर हैं जो उनके बाद फिर आबाद नहीं हुए मगर बहुत कम-और (आख़िर) हम ही उन के (माल व असबाब के) वारिस हुए और तुम्हारा परवरदिगार जब तक उन गांव के सदर(1) मक़ाम पर अपना पैग़म्बर न भेज ले और वह उन के सामने हमारी आयतें न पढ़ दे (उस वक़्त तक) बस्तियों को बरबाद नहीं कर दिया करता और हम तो बस्तियों को बरबाद करते ही नहीं जब तक वहां के लोग ज़ालिम न हों और तुम लोगों को कुछ अता हुवा है तो दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी का फ़ाएदा और उसी की आराईश है और जो कुछ ख़ुदा के पास है वह उस से कहीं बेहतर और पाएदार है तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते
तो क्या वह(2) शख़्स जिस से हम ने (बेहिश्त का ) अच्छा वादा किया है और वह उसे पाकर रहेगा उस शख़्स के बराबर हो सकता है जिसे हम ने दुनियावी ज़िन्दगी के (चंद रोज़ा) फ़ाएदे अता किये हैं और फिर क़यामत के दिन (जो अबद ही के वास्ते हमारे सामने) हाज़िर किया जाएगा और जिस दिन ख़ुदा उन कुफ़्फार करते थे वह (आज) कहां है- (ग़रज़ वह शोरका भी बुलाए जाऐंगे) वह लोग जो हमारे अज़ाब के हकदार हो चुके हैं कह देंगे कि परवरदिगार यही वह लोग हैं जिन्हें हमने गुमराह किया था जिस तरह हम ख़ुद गुमराह हुए उसी तरह हमने उनको गुमराह किया अब हम तेरी बारगाह में (उन से) दस्त बरदार होते हैं ये लोग हमारी इबादत नहीं करते थे
और कहा जाएगा कि भला आपने (उन) शरीकों को (जिन्हें ख़ुदा समझते थे) बुलाओ तो ग़रज़ वह लोग उन्हें बुलाएंगे तो वह उन्हें जवाब तक न देंगे और (अपनी आँखों से) अज़ाब को देखेंगे-काश ये लोग (दुनियां मै) राह पर आए होते- और (वह दिन याद करो) जिस दिन ख़ुदा लोगों को पुकार कर पूछेगा कि तुम लोगों ने पैग़म्बरों को (उन के समझाने पर) क्या जवाब दिया- तब उस दिन उन्हें बातें न सूझ पड़ेगी (और) फिर बाहम एक दूसरे से पूछ भी न सकेंगे मगर हां जिस शख़्स ने तौबा कर ली और ईमान लाया और अच्छे-अच्छे किये तो क़रीब है कि ये लोग अपनी मुरादें पाने वालों से होंगे
और तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है पैदा करता है और (जिसे चाहता है) मुनतक़ब(1) करता है और ये इन्तेक़ाब लोगों के इख़्तेयार में नहीं है और जिस चीज़ को ये लोग ख़ुदा का शरीक बनाते हैं उस से ख़ुदा पाक और (कहीं) बरतर है और (ऐ रसूल) ये लोग जो बाते अपने दिलों में छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है और वही ख़ुदा है उसके सिवा कोई क़ाबिल इबादत नहीं दुनिया और आख़ेरत में उसी की तारीफ़ है और उसी की हुकूमत है
और तुम लोग (मरने के बाद) उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे (ऐ रसूल उन लोगों से) कहो कि भला तुम ने देखा कि अगर ख़दा हमेशा के लिएक क़यामत तक तुम्हारे सरों पर रात को छाए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे पास रौशनी ले आता तो क्या तुम सुनते नहीं तो (ऐ रसूल उन से) कह दो कि भला तुम ने देखा कि अगर ख़ुदा क़यामत तक बराबर तुम्हारे सरों पर दिन किये रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे लिये रात को ले आता कि तुम लोग उस में रात को आराम करो तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं देखते और उस ने अपनी मेहरबानी से तुम्हारे वास्ते रात और दिन को बनाया ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसके फज़्ल व क़रम से (रोज़ी) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शुक्र करो
और (उस दिन को याद करो) जिस दिन वह उन्हें पुकार कर पूछेगा कि जिन को तुम लोग मेरा शरीक़ ख़याल करते थे वह (आज) कहा हैं और हम हर एक उम्मत से एक गवाह(1) (पैग़म्बर) निकाले (सामने बुलाए)गे फिर (उस दिन मुश्रकीन से) कहेंगे कि अपनी (बराअत की) दलील पेश करो तब उन्हें मालूम हो जाएगा कि हक़ ख़ुदा ही की तरफ है और जो अफ़तरापरदाज़ियां ये लोग किया करते थे सब उन से ग़ाएब हो जाएंगी
(नाशुक्री का एक क़िस्सा सुनो) मूसा की क़ौम से एक़ शख़्स क़ारून(2) (नामी) था तो उस ने उन पर सरकशी शुरू की और हमने उसको उस क़दर खज़ाने अता किये थे कि उन की कुंजियां एख सकतदार(1) जमाअत (की जमाअत) को उठाना दूसरे हो जाता था जब (एक बार) उस की क़ौम ने उस से कहा कि (अपनी दौलत पर) इतरा मत क्योंकि ख़ुदा इतराने वालों को दोस्त नहीं रखता और जो कुछ ख़ुदा ने तुझे दे रखा है उस में आख़ेरत के घर की भी जुस्तजू कर और दुनिया से जिस क़दर तेरा हिस्सा है मत भूल(2) जा और जिस तरह ख़ुदा ने तेरे साथ अहसान किया है तू भी औरों के साथ अहसान कर और रूए ज़मीन में फ़साद का ख़्वाह न हो- इसमें शक नहीं कि ख़ुदा फ़साद करने वालों को दोस्त नहीं रखता- तो क़ारून कहने लगा कि ये (माल दौलत) तो मुझे अपने इल्म(2) (कीमया) की वजह से हासिल हुवा है
क्या कारून ने यह भी न ख़याल किया कि अल्लाह उसके पहल उन लोगों को हलाक कर चुका है जो उस से कुव्वत और जमीअत में कहीं बढ़ चढ़ के थे और गुनाहगारों से (उन की सज़ा के वक़त) अपनी क़ौम के सामने बड़ी आराइश(5) और ठाठ के साथ निकला जो लोग दुनिया की (चंद रोज़ा) ज़िन्दगी के तालिब थे (शान से देख कर) कहने लगे जो माल दौल क़ारून को अता हुई है काश मेरे लिए (भी) होती इस में शक नहीं कि क़ारून बड़ा नसीबवार था
और जिन लोगों को (हमारी बारगाह से) इल्म अता हुआ थआ कहने लगे तुम्हारा नास हो जाए (अरे) जो शख़्स ईमान लाए और अच्छे काम करे उस के लिए तो ख़ुदा का सवाल उस से कहीं बेहतर है और वह सवाब सब्र करने वालों के सिवा दूसरे नहीं पा सकते- और हम ने क़ारून और उस के घर-बार को ज़मीन में धंसा(1) दिया फिर तो ख़ुदा के सिवा कोई जमाअत ऐसी न थी कि उस की मदद करती- और न ख़ुद आप अपनी मदद कर सका
और जिन लोगों ने कल उस के जाह व मर्तबा की तमन्ना की थी वह (आज ये तमाशा देख कर) कहने लगे अरे माज़ अल्लाह ये तेो ख़ुदा ही अपने बन्दों से जिस की रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिस की रोज़ी चाहता है तंग कर देता है(2) और अगर (कहीं) खुदा हम पर मेहरबानी न करता (और इतना माल दे देता) तो उस तरह हम को भी ज़रुर धंसा देता-अरे मआज़ अल्लाह (सच है) हर गिज़ कुफ़्फ़ार अपनी मुरादें न पाएंगे
ये आख़ेरत का घर तो हम उन ही लोगों के लिए ख़ास कर देंगे जो रुए ज़मीन पर सरकशी करना चाहता है और न फ़साद और (सच भी यूं ही है कि) फिर अंजाम तो परहेज़गारों(1) ही का है जो शख़्स नेकी करेगा तो उस के लिए उसे कहीं बेहतर बदला है और जो बुरे काम करेगा तो वह याद रखें कि जिन लोगों ने बुराईयां की है उन का वही बदला है जो दुनिया में करते रहे हैं- (ऐ रसूल) खु़दा जिस ने तुम पर कुरआन नाज़िल किया ज़रुर(2) ठिकाने तक पहुंचा देगा
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि कौन राह पर आया और कौन सरोही गुमराही में पड़ा रहा, उस से मेरा परवरदिगार ख़ूब वाक़िफ़ है और तुम को तो ये उम्मीद न थी कि तुम्हारे पास ख़ुदा की तरफ़ से किताब नाज़िल की जाएगी मगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से नाज़िल हुई तो तुम हरगिज़ काफिरों के पुश्त पनाह न बनना- कहीं ऐसा न हो कि अहकाम ख़ुदा बन्दी नाज़िल होने के बाद तुम को ये लोग उन की तब्लीग़ से रोक दें और तू अपने परवरदिगार की तरफ़ (लोगों को) बुलाते चले जाओ- और ख़बरदार मुशरकीन से हरगिज़ न होना- और ख़ुदा के सिवा किसी और माबूद की इबादत न करना उश के सिवा कोई क़ाबिल इबादत नहीं उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फ़ना होने वाली है- उसी की हुकूमत है और तुम लोग उसी की तरफ़ (मरने के बाद) लौटाए जाओगे।

सूरऐ अन्कबूत

सूरऐ क़स़स़ मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 88 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
क्या लोगों ने ये समझ लिया है कि (सिर्फ इतना कह देने से कि हम ईमान लाएं छोड़ दिए जाएंगे और उनका इम्तेहान न लिया जाएगा(2) (ज़रुर लिया जाएगा) और हम ने तो उन लोगों का भी इम्तेहान लिया जो उन से पहले गुज़र गए-गरज़ ख़ुदा उन लोगों को जो सच्चे (दिल से ईमान लाए) हैं यक़ीनन अलैहदा देखेगा और झूटों को भी (अलैहदा) ज़रुर देखेगा क्या जो लोग बुरे-बुरे काम करते हैं उन्होंने ये समझ लिया है कि वह हम से (बच कर) निकल जाएंगे (अगर ऐसा है तो) ये लोग क्या ही बुरे हुक्म लगाते हैं जो शख़्स ख़ुदा से मिलने (क़यामत के आने) की उम्मीद रखता हो तो (समझ रखो कि) ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई मियाद ज़रुर आने वाली है
और वह (सब की) सुना (और) जानता है और जो शख़्स (इबादत में) कोशिश करता है तो बस अपने ही वास्ते कोशिश करता है (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा सारे जहान (की इबादत) से बे नियाज़ है और जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए हम यक़ीनन उन के गुनाहों की तरफ़ से क़फ़्फ़ारा क़रारा देंगे और ये (दुनियां में) जो आमाल करते थे हम उन के आमाल की उन्हें अच्छी जज़ा अता करेंगे और हमने(1) इंसान को अपने मां बाप से अच्छा बरताव करने का हुक्म दिया है और (ये भी कि) अगर तुझे मेरे माँ बाप उस बात पर मजूबर करें कि ऐसी चीज़ को मेरा शरीक बना जिन (के शरीक होने) का मुझे इल्म तक नहीं तो उन का कहना न मानना तुम सबको (आख़िर एक दिन) मेरी तरफ़ लौट कर आना है मैं जो कुछ तुम लोग (दुनियां में) करते थे बता दूंगा
और जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए हम उन्हें (क़यामत के दिन) ज़रुर नेकों कारों में दाख़िल करेंगे और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो (ज़बान से तो) कह देते हैं कि हम ख़ुदा पर ईमान लाए फिर जब उन को ख़ुदा के बारे में कुछ तकलीफ पहुंची तो वह लोगों की तक़लीफ़ दही को अज़ाब के बराबर ठहराते हैं और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की मदद आ पहुंची और तुम्हें फ़ताह हुई तो यही लोग कहने लगते हैं कि हम भी तो तुम्हारे साथ ही साथ थे भला जो कुछ सारे जहान के दिलों में है क्या ख़ुदा बखूबी वाक़िफ़ नहीं (ज़रुर है)
और जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया-ख़ुदा उन को यक़ीनन जानता है और मुनाफ़क़ीन को भी ज़रुर जानता है- और कुफ़्फ़ार ईमान वालों(1) से कहने लगे कि हमारे तरीक़े पर चलो और (क़यामत में) तुम्हारे गुनाहों (के बोझ) को हम (अपने सर) ले लेंगे हालांकि ये लोग ज़रा भी तो उन के गुनाह उठाने वाले नहीं ये लोग यक़ीनी झूटे हैं- और (हां) ये लोग अपने (गुनाहों के) बोझे तो यक़ीनन उठाएंगे ही और अपने बोझो के साथ (जिन्हें गुमराह का) उनके बोझ भी उठाएंगे और जो जो फितना परदाज़ियां ये लोग करते हैं क़यामत के दिन उन से ज़रुर उन की बाज़ पुर्स होगी
और हम ने नूह को उन की क़ौम के पास (पैग़म्बर बना कर) भेजा तो वह उन में पचास कम हज़ार बरस(2) रहे (और हिदायत किया किए और जब न माना) तो आख़िर तूफ़ान में उन्होंने डाला और वह उस वक़्त भी सरकश ही थे- फिर हमने नूह और कश्ती में रहने वालों को बचा लिया और हमने उस वाक़िये को सारी ख़ुदाई के वास्ते (अपनी कुदरत की) निशानी क़रार दिया और इब्राहीम को (याद करो) जब उन्होंने कहा कि (भाइयों) ख़ुदा की इबादत करो और उस से डरो अगर तुम समझते बूझते हो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर हैं (मगर) लोग तो ख़ुदा को छोड़ कर सिर्फ़ बुतों की इबादत करते हो और झूटी बातें (अपने दिल से) गढ़ते हो इस में तो शक ही नहीं कि ख़ुदा को छोड़कर जिन लोगों को तुम इबादत करते हो वह तु्म्हारी रोज़ी का इख़्तेयार नहीं रखते
बस ख़ुदा ही से रोज़ी भी मांगो और उसी की इबादत भी करो उस का शुक्र करो (क्योंकि) तुम लोग (एक दिन) उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे और (ऐ अहले मक्का) अगर तुमने(1) (मेरे रसूल को) झुटलाया तो (कुछ परवा नहीं) तुम से पहले भी तो बहुतेरी उम्मतें (अपने पैग़म्बरों को) झुटला चुकी और रसूल के ज़िम्मे तो सिर्फ़ (अहकाम का) पहुंचा देना है बस क्या उन लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा किस तरह मख़लूकात को पहले पहल पैदा करता है और फिर उसको दुबारा पैदा करेगा- ये तो ख़ुदा के नज़दीक बहुत आसान बात है
(ऐ रसूल उन लोगों से) तुम कह दो कि ज़रा रूऐ ज़मीन पर चल फिर कर देखें तो कि ख़ुदा ने किस तरह पहले पहल मख़लूक को पैदा किया फिर (उसी तरह वही) ख़ुदा (क़यामत के दिन) आख़िरी पैदाइश पैदा करेगा- बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है- जिस पर चाहे अज़ाब करे और जिस पर चाहे रहम करे और तुम लोग (सब के सब) उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे और न तो तुम ज़मीन में ख़ुदा को ज़ेर कर सकते हो और न आसमान में और ख़ुदा के सिवा न तो तुम्हारा कोई सरपरस्त है और न मददगार और जिन लोगों ने ख़ुदा की आयतों और (क़यामत के दिन) उस के सामने हाज़िर होने से इंकार किया मेरी रहमत से मायूस हो गये हैं और उन ही लोगों के वास्ते दर्दनाक अज़ाब है
ग़रज़ इब्राहीम की क़ौम के पैास (उन बातों का) इसके सिवा कोई जवाब न था कि बाहम कहने लगे उसको मार डालो या जला (कर ख़ाक) कर डालो (और वह कर गुज़रे) तो ख़ुदा ने उन को आग से बचा लिया- उस में शक नहीं कि दुनियादार लोगों के वास्ते उस वाक़ये में (कुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियां हैं और इब्राहीम ने (अपनी क़ौम से) कहा कि तुम लोगों ने ख़ुदा को छोड़ कर बुतों को सिर्फ़ दुनियावी ज़िन्दगी में बाहम मुहब्बत करने(1) की वजह से (ख़ुदा) बना रखा है
फिर क़यामत के दिन तुम में से एक का एक इंकार करेगा और एक दूसरे पर लानत करेगा और (आख़िर) तुम लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और (उस वक़्त)) तुम्हारा कोई भी मददगार न होगा- तब सिर्फ़ लूत इब्राहीम पर लाये और इब्राहीम ने कहा मैं तो देश को छोड़कर अपने परवरदिगार की तरफ़ (जहां उस का मंजूर हो) निकल जाऊँगा- उसमें शक नहीं कि वह ग़ालिब (और) हिकमत वाला है
और हमने इब्राहीम को इसहाक़ (सा बेटा) और याकूब (सा पोता) अता किया और उन की नस्ल में पैग़म्बरों(1) और किताब क़रार दी और हम ने इब्राहीम को दुनिया में भी अच्छा बदला अतात किया और वह तो आख़ेरत में भा यक़ीनी नेकोकारों से हैं
(और ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग अजब बेहयाई का काम करते हो कि तुम से पहले सारी ख़ुदाई के लोगों में से किसी ने नहीं क्या किया तुम लोग (औरतों को छोड़ कर क़ज़ाए शहवत के लिये) मरदों की तरफ़ गिरतो हो और (मुसाफिरों की) रहज़नी करते हो(2) और तुम लोग अपनी महफ़िलों में बुरी बुरी(2) हरकतें करते हो तो (इन सब बातों का) लूत की क़ौम के पास उसके सिवा कोई जवाब न था कि वह लोग कहने लगे कि भला अगर तुम सच्चे हो तो हम पर ख़ुदा का अज़ाब तो ले आओ- (तब) लूत ने दुआ कि परवरदिगार इन मुफ़सिद लोगों के मुक़ाबले में मेरी मदद करो (उस वक़्त अज़ाब की तय्यारी हुई)
और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते इब्राहीम के पास (बुढ़ापे में बेटे की) खु़शख़बरी लेकर आए तो (इब्राहीम से) बोले हम लोग अन्क़रीब उस गाँव के रहने वालों को हलाक करने वाले हैं (क्योंकि) उस बस्ती के रहने वाले यक़ीनी (बड़े) सरकश हैं (ये सुन कर) इब्राहीम ने काह कि उस बस्ती में तो लूत भी हैं- वह फ़रिश्ते बोले जो लोग उस बस्ती में हैं हम लोग उन से खूब वाक़िफ़ हैं- हम तो उन को और उनके लड़के वालों को यक़ीनी बचा लेंगे मगर उनकी बीवी को वह (अलबत्ता) पीछे रह जाने वालों में होगी और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते लूत के पास आए लूत उन के आने से ग़मग़ीन हुए और उन (की मेहमानी) से दिल तंग हुए (क्योंकि वह नौजवान खूबसूरत मरदों की सूरत में आए थे) फ़रिश्तों ने कहा आप खौफन करें और कुढ़ें नहीं- हम आप को और आप के लड़के बालों को बचा लेंगे- मगर आप की बीवी (क्योंकि) वह पीछे रह जाने वालों से होगी
हम यक़ीनन इसी बस्ती के रहने वालों पर चूंकि ये लोग बदकारियाँ करते रहे एक आसमानी अज़ाब नाज़िल करने वाले हैं- और हम ने यक़ीनी इस (उल्टी हई बस्ती) में से समझदार लोगों के वास्ते (इबरत की) एक वाज़े व रौशन निशानी बाक़ी रखी है और (हम ने) मदायन के रहने वालों के पास उन के भाई शुएैब को पैग़म्बर बना कर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा की इबादत करो और रोज़ आख़ेरत की उम्मीद रखो और रूए ज़मीन में फ़साद न फैलाते फिरो- तो उन लोगों ने शुऐब को झुटलाया पस ज़लज़ला (भूचांल) ने उन्हें ले डाला- तो वह लोग अपने घरों में औंधे ज़ानू के बल पड़े(1) के पड़े रह गये और क़ौमे आद और समूद को (भी हलाक कर डाला)
और (ऐ अहले मक्का) तुम को तो उन के (उजड़े हुए) घऱ भी (रास्ता आते जाते) मालूम हो चुके-और शैतान ने उन की नज़र में उन क कामों को अच्छा कर दिखाया था- और उन्हें (सीधी) राह (चलने) से रोक दिया था हालांकि वह बड़े होशयार थे- और (हम ही ने) क़ारून व फिरऔन व हामान को भी (हलाक कर डाला) हालांकि उन लोगों के पास मूसा वाज़ेह व रौशन मोजिज़े लेकर आए फिर भी ये लोग रूए ज़मीन में सरकशी करते फिरे और हम से (निकल कर) कहीं आगे न बढ़ सके तो हम ने सब को उनके गुनाह की सज़ा में ले डाला
चुनांचे उन में से बाज़ तो वह थे जिन पर हमने पत्थर वाली आँधी भेजी और बाज़ उन में से वह थे जिनको एक सख़्त चिंघाड़ ने ले डाला और बाज़ उन में से वह थे जिन को हम ने ज़मीन में धसा दिया और बाज़ उन में से वह थे जिन्हें हमने डुबा मारा- और ये बात नहीं कि ख़ुदा ने उन पर जुल्म किया हो- बल्कि (सच यूं है कि) ये लोग ख़ुद (ख़ुदा की नाफ़रमानी करके) आप अपने ऊपर जुल्म करते रहे- जिन लोगों ने ख़ुदा के सिवा दूसरे कारसाज़ बना रखे हैं उन की मसल उस मकड़ी की सी है जिस ने (अपने ख़याल नाख़िस में) एक घर बनाया और इस में तो शक नहीं कि तमाम घरों से बोदा घर मकड़ी का होता है
अगर ये लोग (इतना भी) जानते हों- ख़ुदा को छोड़ कर ये लोग जिस चीज़ को पुकारते हैं उस से ख़ुदा यक़ीनी वाक़िफ़ है- और वह तो (सब पर) ग़ालिब (और) हिकमत वाला है और हम ये मिसाले लोगों के समझाने (के वास्ते बयान करते हैं) और उन को तो बस उल्मा(1) ही समझते हैं- खु़दा ने सारे आसमान और ज़मीन को बिल्कुल ठीक पैदा किया- उस में शक नहीं कि उस में ईमानदारों के वास्ते (क़ुदरत ख़ुदा की) यक़ीनी बड़ी निशानी है।

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