और जो लोग (क़यामत में) हमारी हुजूरी की उम्मीद नहीं रखते कहा करते हैं कि आख़िर फ़रिश्ते हमारे पास क्यों नहीं नाज़िल किए गए या हम अपने परवरदिगार को (क्यों नहीं) देखते उन लोगों ने अपने जी में अपने को (बहुत) बड़ा समझ लिया है और बड़ी सरकशी की जिस दिन ये लोग फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन गुनाहगारों को कुछ खुशी न होगी और फ़रिश्तों को देख कर(1) कहेंगे दूर दफ़ान और उन लोगों ने (दुनियां में) जो कुछ नेक काम किए हैं हम उस की तरफ़ तवज्जा करेंगे तो हम उस को (गोया) उड़ती(2) हुई ख़ाक बना कर (बरबाद कर) देंगे- उस दिन जन्नत वालों का ठिकाना भी बेहतर से बेहतर होगा और आरामगाह भी अच्छी से अच्छी।
और जिस दिन आसमान बदली के सबब से फट जाएंगे उस दिन की सल्तनत ख़ास ख़ुदा ही के लिए होगी और वह दिन काफिरों पर बड़ा सख़्त होगा और जिस दिन ज़ुल्म करने वाला अपने हाथ (मारे अफ्सोस के) काटने लगे(3)गा और कहेगा काश रसूल के साथ में भी (दीन का सीधा) रास्ता पकड़ता हाए अफ़सोस काश मैं फ़लां शख़्स को अपना दोस्त न बनाता बेशक यक़ीनन उसने हमारे पास नसीहत आने के बाद मुझे बहकाया और शैतान तो आदमी को रुसवा करने वाला ही है और (उस वक़्त) रसूल (बारगाह ख़ुदा वन्दी में) अर्ज़ करेंगे कि ऐ मेरे परवरदिगार मेरी क़ौम ने तो उस कुरआन को बेकार बना दिया और हमने (गोया ख़ुद) गुनाहगारी में से हर नबी के दुश्मन बना दिए हैं
और तुम्हारा परवरदिगार हिदायत और मददगारी के लिए काफ़ी है और कुफ़्फ़ार कहने लगे कि उन के ऊपर (आख़िर) कुरआन कुल का कुल (एक ही दफा) क्यों नहीं नाज़िल किया गया (हमने) इस तरह उस लिए (नाज़िल किया) ताकि तुम्हारे दिल को तस्कीन देते रहे और हमने इस को ठहर-ठहर कर नाज़िल किया और (ये कु़फ्फ़ार) चाहे जैसी ही अनोखी मसल बयान करेंगे मगर हम तुम्हारे पास (उसका) बिल्कुल ठीक और निहायत उम्दा (जवाब) बयान कर देंगे जो लोग (क़यामत के दिन) अपने-अपने मूहों के लब जहन्नुम में हकाये जाएंगे वही लोग बदतर जगह में होंगे और सब से ज़्यादा राह रास्त से भटकने वाले और अलबत्ता हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता करी और उन के साथ उन के भाई हारून को (उनका) वज़ीर बनाया तो हमने कहा तुम दोनों उन लोगों के पास जो हमारी (कुदरत की) निशानियों को झुठलाते हैं जाओ (और समझाओ जब न माना) तो हमने उन्हें खूब बरबाद कर डाला
और नूह की क़ौम को जब उन लोगों ने (हमारे) पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबा दिया और हमने उन को लोगों (के हैरत) की निशानी बनाया और हमने ज़ालिमों के वास्ते दर्दनाक़ अज़ाब तैयार कर रखा है और (उसी तरह) आद और समूद और नहर(1) वालों और उन के दरमियान में बहुत सी जमाअतों को (हमने हलाक कर डाला) और हमने हर एक से मस्लें बयान कर दी थी और (खूब समझाया मगर न माना) हमने उन को ख़ूब सत्यानास कर छोड़ा और ये लोग (कुफ़्फ़ार मक्का) उस बस्ती पर (हो) आए हैं जिस पर (पत्थरों की) बुरी बारिश बरसाई गई तो क्या उन लोगों ने उस को देखा न होगा मगर (बात ये है कि) ये लोग मरने के बाद जी उठने की उम्मीद ही नहीं रखते (फिर क्यों ईमान लाए)
और (ऐ रसूल) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मस्ख़रापन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बना कर भेजा है (माज़ अल्लाह) अगर बुतों की इबादत पर साबित क़दम न रहते तो उस शख़्स ने हम को हमारे माबूदों से बहका ही दिया था और बहुत जल्द (क़यामत में) जब ये लोग अज़ाब को देखेंगे तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राह रास्त से क़ौन ज़्यादा भटका हुआ था क्या तुम ने उस शख़्स को भी देखा है जिस ने अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उस के ज़िम्मेदार हो सकेत हो (कि वह गुमराह न हो) क्या तुम्हारा ये ख़याल है कि उन (कुफ़्फ़ार) में अकसर (बात) सुनते या समझते हैं (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिस्ल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज़्यादा राह (रास्त) से भटके हुए
(ऐ रसूल) क्या तुम ने अपने परवरदिगार की कुदरत की तरफ़ नज़र नहीं कि कि उस ने क्योंकर साये को फैला दिया(1) अगर वह चाहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुवा कर देता फिर हम ने आफ़ताब को (उस की शिनाख़्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया फिर हम ने उसको थोड़ा थोड़ा कर के अपनी तरफ़ खींच लिया और वही तो वह (ख़ुदा) है जिस ने तुम्हारे वास्ते रात को परदा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक़्त बनाया और वही तो वह (ख़ुदा) है जिस ने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुशख़बरी देने के लिए (पेश ख़ीमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और निथरा हुवा पानी बरसाया ताकि हम उस के ज़रये से मुर्दा (वीरान) शहर को ज़िन्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूक़ात में जो चौपायों और बहुत से आदमियों को उस से सराब करें और हम ने पानी को उन के दरम्यान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना और अगर हम चाहते तो हर बस्ती में ज़रुर एक (अज़ाब ख़ुदा से) (डराने वाला पैग़म्बर) भेजते (तो ऐ रसूल) तुम काफिरों की ऐताअत न करना और उन से कुरआन के (दलाएल) से खूब लड़ो और वो तो वह (ख़ुदा) है जिस ने दरयाओं को आपस में मिला दिया (और बावजूद कहा कि) ये ख़ालिस मज़ेदार मीठा है और ये बिल्कुल ख़ारी कड़वा मगर (दोनों को मिलाया) और दोनों के दरम्यान एक आड़ और मज़बूत और बना दी है (कि गड़बड़ न हो) और वही तो वह (ख़ुदा) है जिस ने पानी (मनी) से आदमी को पैदा किया फिस उस को ख़ानदान(1) और सुसराल वाला बनाया
और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार हर चीज़ पर क़ादिर है और लोग (कुफ़्फार मक्का) ख़ुदा को छो़ड़ कर उस चीज़ की इबादत करते हैं जो न उन्हें नफ़ा ही दे सकती है और न नुक़सान ही पहुंचा सकती है और काफ़िर (अबू जहल) तो हर वक़्त अपने परवरदिगार की मुख़ालफ़त पर ज़ोर लगाए हुए हैं और (ऐ रसूल) हम ने तो तुम को बस (नेकों को जन्नत की) खुशख़बरी देने वाला और (बुरों को अज़ाब से) डराने वाला बना कर भेजा है और उन लोगों से तुम कहो कि मैं उस (तबलीग़ रिसालत) पर तुम पर कुछ मज़दूरी तो मांगता नहीं हूं मगर तमन्ना यह है कि जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुंचने की राह पकड़े
और (ऐ रसूल) तुम उस (ख़ुदा) पर भरोसा रखो जो ऐसा ज़िन्दा है कि कभी नहीं मरेगा और उस की हम्द व सना की तसबीह पढ़ो और वह अपने बन्दों के गुनाहों की वाक़िफ़क़ारी में काफ़ी है (वह ख़ुद समझ लेगा) जिस ने सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ उन दोनों में है छः दिन में पैदा किया फिर अर्श (के बनाने) पर अमादा हुवा और वह बड़ा मेहरबान है तो तुम उस का हाल किसी बाख़बर ही से पूछना और जब उन कुफ़्फ़ार से कहा जाता है कि रहमानी(1) (ख़ुदा) को सजदा करो तो कहते हैं कि रहमान क्या चीज़ है क्या तुम जिस के लिए कहते हो हम उस का सजदा करने लगे और (उससे) उन की नफ़रत और बढ़ जाती है बहुत बा बरकत है
वह ख़ुदा जिस ने आसमान में बुर्ज बनाए और उन बुर्जों में (आफ़ताब का) चिराग़ और जगमगाता चाँद बनाया और वही तो वह (ख़ुदा) है जिस ने रात और दिन (एक) को (एक का) जानशीन बनाया (ये) उस के (समझने के) लिए है जो नसीहत हासिल करना चाहता है शुक्रगुज़ारी का इरादा करे और (ख़ुदाए) रहमान के खास बंदे तो वह हैं जो ज़मीन पर फ़रोतनी के साथ चलते हैं और जब जाहिल उन से (जिहालत) की बात करते हैं तो कहते हैं कि सलाम(2) (तुम सलामत रहो)
और वह लोग जो अपने परवरदिगार के वास्ते सज्दा और क़याम में रात काट देते हैं और वह लोग जो दुआ करते हैं कि परवरदिगार हम से जहन्नुम का अज़ाब फेरे रहे क्योंकि उस का अज़ाब बहुत (सख़्त और) पाएदार होगा बेशक वह बहुत बुरा ठिकाना और बड़ा मक़ाम है और वह लोग जब ख़र्च करते हैं तो न फ़जूल खर्ची करते हैं और न (1) करते हैं और उन का खर्च उस के दरमियान औसत दर्ज़े का रहता है और वह लोग जो ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद की इबादत नहीं करते और जिस जान के मारने को ख़ुदा ने हराम कर दिया हैं उसे नहक़ क़त्ल नहीं करते और न ज़िना करते हैं और जो शख़्स ऐसा करेगा वह आप अपने गुनाह की सज़ा भुगतेगा कि क़यामत के दिन उस के लिए अज़ाब दूना कर दिया जाएगा और उसमें हमेशा ज़लील व ख़्वार रहेगा मगर (हां) जिस शख़्स ने तौबा की और ईमान क़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए तो (अलबत्ता) उन लोगों की बुराइयों को ख़ुदा नेकियों से बदल देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
और जिस शख़्स ने तौबा कर ली और अच्छे-अच्छे काम किए तो बेशक उसने ख़ुदा की तरफ़ (सच्चे दिल से) हक़ीक़तन रुजूअ की और वह लोग जो फ़रेब के पास ही नहीं खड़े होते और वह लोग जब किसी बेहूदा काम के पास से गुज़रते हैं तो बुर्ज़गान अंदाज़ से गुज़र जाते हैं(2) और वह लोग कि जब उन्हें उनके परवरदिगार की आयतें याद दिलाई जाती हैं तो बहरे अंधे हो कर गिर नहीं पड़ते (बल्कि जी लगा कर सुनते हैं) और वह लोग जो (हम से) अर्ज़ करते है, कि परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलाद की तरफ़ से आँखों की ठंडक अता फरमाए और हमको परहेज़गारों का पेशवा बनाया ये वह लोग हैं जिन्हें उन की जज़ा में (बेहिश्त के) बाला ख़ाने अता किए जाएंगे और वहां उन्हें तन्ज़ीम व सलाम (का हदया) पेश किया जाएगा और ये लोग उस में हमेशा रहेंगे और वह रहने और ठहरने की अच्छी जगह है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर दुआ नहीं किया करते तो मेरा परवरदिगार भी तुम्हारी कुछ परवाह नहीं करता-तुम ने तो (उस के रसूल को) झुठलाया तो अनक़रीब ही (उस का वबाल) तुम्हारे सर पड़ेगा
सूरऐ शुअरा
सूरऐ शुअरा मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 227 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
ये वाज़े व रौशन किताब की आयतें हैं (ऐ रसूल) शायद तुम (इस फिक्र में) अपनी जान हलाक कर डालोगे कि ये (कुफ़्फ़ार) मोमिन क्यों नहीं हो जाते- अगर हम चाहें तो उन लोगों पर आसमान से कोई ऐसा मोजिज़ा नाज़िल करें कि उन लोगों की गर्दन उस के सामने झुक जाएं और (लोगों का क़ाएदा है कि) जब उनके पास कोई नसीहत की बात ख़ुदा की तरफ़ से आई तो ये लोग उस से मुंह फेरे बग़ैर नहीं रहे उन लोगों ने झुठलाया ज़रुर तो अनक़रीब ही (उन्हें) उस (अज़ाब) की हक़ीक़त मालूम हो जाएगी जिन की ये लोग हंसी उड़ाते थे क्या उन लोगों ने ज़मीन की तरफ़ भी (ग़ौर से) नहीं देखा कि हमने हर रंग की उम्दा-उम्दा चीज़ें उस में किस कसरत से उगाई हैं यक़ीनन उस में (भी कुदरत) ख़ुदा की एक बड़ी निशानी है मगर उन में से अक्सर ईमान लाने वाले ही नहीं और उस में शक नहीं के तेरा परवरदिगार यक़ीनन (हर चीज़ पर) ग़ालिब(1) (और) मेहरबान है
(ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जब तुम्हारे परवरदिगार ने मूसा को आवाज़ दी कि (उन) ज़ालिमों फ़िरऔन की क़ौम के पास जाओ (हिदायत करो) क्या ये लोग (मेरे ग़ज़ब से) डरते नहीं है मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार मैं डरता हूं कि (मुबादा) वह लोग मुझे झुठला दें और (उन के झुठलाने से) मेरा दम रूक जाए और मेरी ज़बान (अच्छी तरह) न चले तो हारून के पास पैगा़म भेज दें (कि मेरा साथ दें) और (उस के अलावा) उन का मेरे सर एक जुर्म भी है (कि मैंने एक शख़्स को मार डाला था) तो मैं डरता हूं कि (शायद) मुझे ये लोग मार डालें ख़ुदा ने कहा हरगिज़ नहीं अच्छा तुम दोनों हमारी निशानियां लेकर जाओ हम तुम्हारे साथ हैं और (सारी गुफ़्तगू) अच्छी तरह सुनते हैं ग़रज़ तुम दोनों फिरऔन के पास जाओ और कहो हम सारे जहान के परवरदिगार के रसूल हैं
(और यह पैगा़म लाएं हैं।) कि आप बनी इस्राईल को हमारे साथ भेज दीजिए (चुनांचा मूसा गए और कहा) फिरऔन बोला (मूसा) क्या हमने तुम्हें यहां रख कर बचपने में तुम्हारी परवरिश नहीं की और तुम अपनी उम्र से बरसों हम में रह सह चुके हो और तुम अपना वह क़ाम (खून क़बती) जो कर गए और तुम (बड़े) नाशुक्रे हो मूसा ने कहा (हां) मैं ने उस वक़्त उस काम को किया जब मैं हालत ग़फ़लत में था फिर जब मैं आप लोगों से डरा तो भाग खड़ा हुआ फिर (कुछ अरसे के बाद) मेरे परवरदिगार ने मुझे नबूवत अता फरमाई और मुझे भी एक पैग़म्बर बनाया और यह भी कोई अहसान(1) है जिसे आप मुझ पर जता रहे हैं कि आप ने बनी इस्राईल को गुलाम बना रखा है
फिरऔन ने पूछा (अच्छा यह तो बताओ) रबुब्ल आलमीन क्या चीज़ है मूसा ने कहा सारे आसमान व ज़मीन का और जो कुछ उन के दरम्यान है (सब का) मालिक अगर आप लोग यक़ीन कीजिए (तो क़ाफ़ी है) फिरऔन ने कहा उन लोगों से जो उसके इर्द गिर्द (बैठे) थे क्या तुम लोग नहीं सुनते हो-मूसा ने कहा (वह ख़ुदा के) तु्म्हारा परवरदिगार और तुम्हारे बाप दादाओं का परवरदिगार है (फ़िरऔन ने कहा लोगों) यह रसूल तुम्हारे पास भेजा गया है, हो न हो दिवाना है
मूसा ने कहा (वह ख़ुदा जो) पूरब पश्चिम और जो कुछ उन दोनों के दरम्यान (सब का) मालिक है अगर तुम समझते हो (तो यही क़ाफ़ी है) फिरऔन ने कहा अगर तुमने मेरे सिवा किसी और को (अपना) ख़ुदा बनाया है तो मैं ज़रुर तुम्हें क़ैदी बनाऊँगा मूसा ने कहा मैं आपको एक वाज़ेह व रौशन मोजिज़ा भी दिखाऊ (तो भी) फिरऔन ने कहा (अच्छा) तो तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो (दिखाओ) बस (यह सुनते ही) मूसा ने अपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दी फिर तो यकायक वह एक सरीही अज़दहा बन गया और (जेब से) अपना हाथ बाहर निकाला तो देखने वालों के वास्ते बहुत सफेद चमकदार था (उस पर) फ़िरऔन अपने दरबानियों से जो उसके गिर्द (बैठे) थे कहने लगा कि यह तो यक़ीनन बड़ा ख़िलाड़ी जादूगर है यह तो चाहता है कि अपने जादू के ज़ोर से तुम्हें तुम्हारे मुल्क से बाहर निकाल दे तो तुम लोग क्या हुक्म लगाते हो दरबारियों ने कहा अभी इसको और इसके भाई को (चंदे) मोहलत दें दीजिए और तमाम शहरों ने जादूगरों के जमा करने को हरकारे रवाना कीजिए कि वह लोग तमाम बड़़े-बड़े खिलाड़ी जादूगरों को आप के सामने ला हाज़िर करें ग़रज़ वक़्त मुक़र्र हुवा सब जादूगर उस मुक़र्रर दिन के वादे पर जमा किये गये
और लोगों में मनादी करा दी गई कि तुम लोग अब भी जमा होंगे या नहीं ताकि अगर जादूगर लोग ग़ालिब और वर रहें तो हम लोग उनकी पैरवी करें अलग़रज़ जब सब जादूगर आ गये तो जादूगरों ने फ़िरऔन से कहा कि अगर हम ग़ालिब आ गये तो हमको यक़ीनन कुछ ईनाम (सरकार से) मिलेगा
फिरऔन ने कहा हां (ज़रुर मिलेगा) और (ईनाम क्या चीज़ है) तुम उस वक़्त (मेरे) मुक़रबीन (बारगाह) से होंगे मूसा ने जादूगरों से कहा (मन्तर व मन्तर) जो कुछ तुम्हें फे़कना हो फ़ेंको-उस पर जादूगरों ने अपनी रस्सियां और अपनी छड़ियां (मैदान में) डाल दीं और लगे फिरऔन के जलाल की क़सम हम ही ज़रुर ग़ालिब रहेंगे तब मूसा ने अपनी छड़ी डाली तो जादूगरों ने जो कुछ (शोबदे) बनाए थे उसको वह (निगलने लगी) यह देखते ही जादूगर लोग सजदे में (मूसा के सामने) गिर पड़े और कहने लगे हम सारे जहां के परवरदिगार पर ईमान लाए जो मूसा और हारून का परवरदिगार (है)
फिरऔन ने कहा (हाए) क़ब्ल उसके कि मैं तुम्हें इजाज़त दूं तुम उस पर ईमान ले आए बेशक यह तुम्हारा बड़ा गुरु है जिसने तुम सबको जादू सिखाया है तो (ख़ैर) अभी तुम लोगों को (उसका नतीजा) मालूम हो जाएगा कि हम यक़ीनन तुम्हारे एक तरफ़ के(1) हाथ और दूसरी तरफ़ के पाव काट डालेंगे और तुम सबके सबको सूली दे देंगे वह बोले कुछ परवाह नहीं हम को तो बहरहाल अपने परवरदिगार की तरफ़ लौट कर जाना है हम चुंकि सब से पहले ईमान लाए हैं इसलिए यह उम्मीद रखते हैं कि हमारा परवरदिगार हमारी खताएं माफ़ कर देगा
और हमने मूसा के पास वही भेजी कि तुम मेरे बंदों को रातों रात लेकर निकल जाओ क्योंकि तुम्हारा पीछा किया जाएगा तब फिरऔन ने (लश्कर जमा करने के ख़्याल से) तमाश शहरों में (धडाधड़) हरकारे रचाना किए (और कहा) कि ये लोग मूसा के साथ बनी इस्राईल थोड़ी(1) सी (मुट्ठीभर की) जमाअत है और उन लोगों ने हमें सख़्त गुस्सा दिलाया है और हम सब के सब साज़ो समान हैं (तुम भी आ जाओ कि सब मिल कर ताकुब करें) ग़रज़ हमने उन लोगों को (मिस्र के) बाग़ो और चश्मों और खज़ानों और इज्ज़त की जगह से (लौ) निकाल बाहर किया (और जो न फ़रमानी करे) इसी तरह सज़ा होगी और आख़िर हमने उन ही चीजों का मालिक बनी इस्राईल को बनाया गरज़ (मूसा तो रात ही को चले गए और) उन लोगों ने सूरज निकलते उनका पीछा किया तो जब दोनों जमाते (इतनी क़रीब हुई कि) एक दूसरे को देखने लगीं तो मूसा के साथी (हिरासां होकर) कहने लगे कि लो अब तो पकड़े गए
मूसा ने कहा हरगिज़ नहीं क्योंकि मेरे साथ मेरा परवरदिगार है वह फ़ौरन मुझे कोई (मुख़लिसी का) रास्ता बता देगा तो हमने मूसा के पास वही भेजी कि अपनी छड़ी दरिया पर मारो (मारना ताकि) फ़ौरन दरिया फट कर टुकड़े-टुकड़े हो गा तो गोया हर टुकड़ा एक बड़ा ऊंचा पहाड़ था और हमने उसी जगह दूसरे फ़रीक़ (डूबने से ) बचा लिया फिर दूसरे फ़रीक़ (फिरऔन और उसके साथियों) को डुबा कर हलाकर कर दिया, बेशक उसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और उनमें अक़्सर ईमान लाने वाले ही न थे और उसमें तो शक ही न था कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है
और (ऐ रसूल) उन लोगों के सामने इब्राहीम का क़िस्सा बयान करे, जबह उन्होंने अपने (मुंह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग किसकी इबादत करते हो तो वह लोबे हम बुतों की इबादत करते हैं और उन ही के मुजाविर बन जाते हैं इब्राहीम ने कहा भला तजब तुम लोग उन्हें पुकारते हो तो वह तुम्हारी कुछ सुनते हैं या कुछ तुम्हें नफ़ा या नुक़सान पहुंचा सकते हैं- कहने लगे (कि ये सब तो कुछ नहीं) बल्कि हमने अपने बांप दादाओं को ऐसा ही(1) करते पाया है
इब्राहीम ने कहा क्या तुमने देखा भी की जिन चीज़ों की तुम इबादत करते हो या तुम्हारे अगले बाप दादा (करते थे) ये सब मेरे यक़ीनी दुश्मन हैं मगर सारे जहां का पालने वाला जिसने मुझे पैदा किया (वही मेरा दोस्त है) फिर वही मेरी हिदायत करता है और वह शख़्स जो मुझे (खाना) खिलाता है और मुझे (पानी) पिलाता है और जब बीमार पड़ता हूं तो वही मुझे शिफ़ा इनायत फ़रमाता है और वह शख़्स जो मुझे मार डालेगा
उसके बाद (फिर) मुझे ज़िन्दा करेगा और वह शख़्स जिससे मैं उम्मीद रखता हूं कि क़यामत के दिन मेरी ख़ताओं को बख़्श देगा परवरदिगार मुझे इल्म व फ़हम अतः फरमा और मुझे नेको के साथ शामिल कर और आइन्दा आने वाली नस्लों में मेरा ज़िक्र ख़ैर क़ाएम(1) रख और मुझे भी नेअमत के बाग़ (बेहिश्त) के वारिसों में से बना और मेरे (मुंह बोले) बाप (चचा आज़र) को बख़्श दे क्यों कि वह गुमराहों में से हैं और जिस दिन लोग क़ब्रों से उठाए जाएंगे मुझे रूसवा न करना जिस दिन न तो माल ही कुछ काम आएगा और न लड़के बाले मगर जो शख़्स ख़ुदा के सामने (गुनाहों से) पाक दिल लिए हुए हाज़िर होगा (वह फ़ायदे में रहेगा) और बेहिश्त परहेज़गारों के क़रीब कर दी जाएगी और दो़ज़ख़ गुमराहों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी
और उन लोगों (अहले जहन्नुम) से पूछा जाएगा कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन की तुम इबादत करते थे (आज) वह कहां हैं क्या वह तुम्हारी कुछ मदद कर सकते हैं या वह ख़ुदा अपनी आप बाहम मदद कर सकते हैं फिर वह (माबूद) और गुमराह लोग और शैतान का लश्कर (ग़रर्ज़ सब के सब) जहन्नुम में औंधे मुंह ढकेल दिए जाएंगे और ये लोग जहन्नुम मे बाहम झगड़ा करेगें और (गुमराह अपने माबूद से) कहेगें खुदा की क़सम हम लोग तो यक़ीनन सरीही गुमराही मे थे कि हम तुमको सारे जहाँ के पालने वाले (ख़ुदा) के बराबर समझते रहे और हमको बस (उन) गुनाहगारों ने (जो मुझ से पहले हुए) गुमराह किया तो अब तो न कोई (साहब) मेरी सिफ़ारिश करने वाले हैं और न कोई दिलबन्द(3) दोस्त है तो काश हमें अब दुनियां में दुबारा जाने का मौक़ा मिलता तो हम (ज़रूर) ईमान वालों से होते (इब्राहीम के उस) हिस्से में भी यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और उनमें से अकसर ईमान लाने वाले थे भी नहीं
और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है (यूंही) नूह की क़ौम ने पैग़म्बरों को झुटलाया कि जब उनसे उनके भाई नूह ने कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते मैं तो तुम्हारा यक़ीनी अमानतदार पैग़म्बर हूं तुम ख़ुदा से डरो और मेरी ऐताअत करो और मैं इस (तबलीग रिसालत) पर कुछ उजरत तो मांगता नहीं मेरी उजरत तो बस सारे जहां के पालने वाले ख़ुदा पर है तो ख़ुदा से डरों और मेरी ऐताअत करो वह लोग बोले जब कमीनों (मज़दूरों वग़ैरह) ने (लालच से) तुम्हारी पैरवी कर ली है तो हम तुम पर क्या ईमान लाएं नूह ने कहा यह लोग जो कुछ करते थे मुझे क्या ख़बर (और क्या ग़रज़) उन लोगों का हिसाब तो मेरे परवरदिगार के ज़िम्मे है काश तुम (इतनी) समझ रखते और मैं तो ईमानदारों को अपने पास से निकालने वाला नहीं मैं तो सिर्फ़ (अज़ाबे ख़ुदा से) साफ़-साफ़ डराने वाला हूं
वह लोग कहने लगे ऐ नूह अगर तुम अपनी हरकत से बाज़ न आओगे तो ज़रुर संगसार कर दिये जाओगे (आख़िर) नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार मेरी क़ौम ने यक़ीनन मुझे झुटलाया तो अब तो मेरे और उन लोगों के दरम्यान एक क़तई फ़ैसला कर दें और मुझे और जो मोमिनीन मेरे साथ हैं उनको निजात दे- ग़रज़ हमने नूह और उनके साथियों को जो भरी हुई कश्ती में थे निजात दी फिर उसके बाद हमने बाक़ी लोगों को ग़र्क़ कर दिया बेशक उसमें भी यक़ीनन बड़ी इबरत है और उनमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे और उसमें तो शक ही नहीं कि तम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब बड़ा मेहरबान है (उसी तरह क़ौम) आद ने पैग़म्बरों को झुटलाया जब उनके भाई हूद ने उनसे कहा कि तुम ख़ुदा से क्यों नहीं डरते-
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूं तो ख़ुदा से डरो और मेरी ऐताअत करो मैं तुमसे इस (तबलीग़े रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं मांगता मेरी उजरत तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) पर है तुम क्या हर ऊँची जगह पर बेकार यादगारे बनाते फिरते हो और बड़े-बड़े महल तामीर करते हो गोया तुम हमेशा (यहीं) रहोगे और जब तुम (किसी पर) हाथ डालते हो तो सरकशी से हाथ डालते हो तुम ख़ुदा से डरो और मेरी ऐताअत करो और उस शख़्स से डरो जिसने तुम्हारी उन चीज़ों से मदद की जिन्हें तुम खूब जानते हो अच्छा सुनों उसने तुम्हारे चार पायों और लड़के वालों वग़ैरह बागों और चश्मों से मदद की मैं तो यक़ीनन तुम पर एक बडे (सख़्त) रोज़ क अज़ाब से डरता हूं वह लोग कहने लगे ख़्वाह तुम नसीहत करो या न नसीहत करो हमारे वास्ते (सब) बराबर है
ये (डरना) तो बस अगले लोगों की आदत हालाँकि हम पर अज़ाब (वग़ैरह अब) किया नहीं जाएगा ग़रज़ उन लोगों ने हूद को झुठला दिया तो हमने भी उनको हलाक कर डाला बेशक उस वाक़िए में यक़ीनी एक बड़ी इबरत है और उसमें से बहुतेरे ईमान लाने वाले भी न थे और इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है (इसी तरह क़ौम) समूद ने पैग़म्बरों को झुठलाया जब उनके भाई सालेह ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते।
मैं तो यक़ीनन तुम्हारा अमानतदार पैग़म्बर हूं तो ख़ुदा से डरो और मेरी ऐताअत करो और मैं तो तुमसे उस (तब्लीग़ रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं मांगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) पर है क्या जो चीज़े यहां (दुनियां में) मौजूद हैं बाग़ और चश्में और खेतियों और छुहारे जिनकी कलियां लतीफ़ व नाजुक होती हैं उन ही में तुम लोग इत्मीनान से (हमेशा के लिए) छोड़ दिए जाओगे और (उसी वजह से) पूरी महारत और तकल्लुफ़ से साथ पहाड़ों को काट-काट कर घर बनाते हो तो ख़ुदा सो ड़रो और मेरी ऐताअत करो और ज़्यादती करने वालों का कहा न मानों जो रूए ज़मीन पर फ़साद फैलाया करते हैं और (ख़राबियों की) इसलाह नहीं करते।
वह लोग बोले कि तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हो) तुम भी तो आख़िर हमारे ही ऐसे आदमी हो- पस अगर तुम सच्चे हो तो कोई मोजिज़ा हमारे पास ला (दिखाओ) सालेह ने कहा यही ऊंटनी (मोजिज़ा) है एक बारी उसके पानी(1) पीने की है और एक मुक़र्रर दिन तुम्हारे पीने का और उसको कोई तकलीफ़ न पहुंचाना वरना एक बड़े (सख़्त) ज़ोर के अज़ाब तुम्हें ले ड़ालेगा उस पर भी उन लोगों ने उसके पांव(2) काट डाले (और उसको मार डाला) फिर ख़ुद परेशान हुए फिर उन्हें अज़ाब ने ले डाला- बेशक इसमें यक़ीनन एक बड़ी इबरत है और उनमें बहुतेरे लाने वाले भी न थे और उसमें शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
(उसी तरह) लूत की क़ौम ने पैग़म्बरों को झुठलाया- जब उनके भाई लूत ने उनसे कहा कि तुम (खुदा से0 क्यों नहीं डरते मैं तो यक़ीनन तुम्हारा आमानतदार पैग़म्बर हूं तो ख़ुदा से डरो और मेरी ऐताअत करो और में तो तुम से उस (तबलीग़ रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं मांगता
मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) पर है क्या तुम लोग (शहवत परस्तों के लिए) सारे जहां के लोगों में मर्दों ही के पास जाते हो और तुम्हारे वास्ते जो बीबियों तुम्हारे परवरदिगार ने पैदा की हैं उन्हें छोड़ देते हो (ये कुछ नहीं) ब्लिक तुम लोग हद से गुज़र जाने वाले आदमी हो- उन लोगों ने कहा ऐ लूत अगर तुम बाज़ न आओगे तो तुम ज़रुर निकाल बाहर कर दिए जाओगे
लूत ने कहा मैं यक़ीनन तुम्हारी (नाशाएस्ता) हरकत से बेज़ार हूं (और दुआ की) परवरदिगार जो कुछ ये लोग करते हैं उससे मुझे और मेरे लडकों को निजात दे तो हमने उन को और उनके सब लडकों को निजात दी मगर (लूत की) बूढ़ी औरत कि वह पीछे रह गई (और) हलाक हो गई फिर हमने उन लोगों को हलाक कर डाला और उन पर हमने (पत्थरों का) बादल बरसाया तो जिन लोगों को (अज़ाब ख़ुदा से) डराया गया था उन पर क्या बड़ी बारिश हुई इस वाक़ये में भी एक बड़ी इबरत है
और उन में से बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे और हमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सब पर ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है उसी तरह जंगल के रहने वालों ने (मेरे) पैग़म्बरो को झुठलाया जब शुएैब(1) ने उनसे कहा कि तुम (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते मैं तो बिला शुबह तुम्हारा अमानतदूर हूं तो ख़ुदा से डरो और मेरी ऐताअत करो और मैं तो तुमसे (तब्लीग़ रिसालत) पर कुछ मज़दूरी भी नहीं मांगता मेरी मज़दूरी तो बस सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) के ज़िम्मे है तुम (जब कोई चीज़ नाप करो तो) पूरा पैमाना दिया करो और नुक़सान (कम देने वाले) न बनो
और तुम (जब तौलो तो) ठीक तराजू से (डंडी सीधी रख कर तोलो) और लोगों को उनकी चीज़ें (जो ख़रीदें) कम न दिया करो और रूए ज़मीन में फ़साद न फैलाते फिरो और उस (ख़ुदा) से डरो जिसने तुम्हें और अगली ख़िल्क़त को पैदा किया वह लोग कहने लगे तुम पर तो बस जादू कर दिया गया है (कि ऐसी बातें करते हो) और तुम तो हमारे ही एक ऐसे आदमी हो और हम लोग तो तुम को झूठा ही समझते हैं तो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर आसमान का एक टुकड़ा गिरा दो तो शुएैब ने कहा जो कुछ तुम लोग करते हो मेरा परवरदिगार ख़ूब जानता है ग़रज़ उन लोगों ने शुएैब को झुठलाया तो उन्हें साएबान(1) (अब्र) के आज़ाब ने ले डाला इसमें शक नही की ये भी एक बड़े (सख़्त) दिन का अज़ाब था- इसमें भी शक नहीं कि उसमें (समझदारों के लिए) एक बडी इबरत है और उनमें के बहुतेरे ईमान लाने वाले ही न थे और बेशक तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब (और) बड़ा मेहरबान है
और (ऐ रसूल) बेशक ये (कुरआन) सारी ख़ुदाई के पालने वाले (ख़ुदा) का उतारा हुआ है जिसे रूहल अमीन (जिब्राईल) साफ अरबी ज़मीन में लेकर तुम्हारे दिल पर नाज़िल हुए हैं ताकि तुम भी (और पैग़म्बरो की तरह लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से) डराओ और बेशक उसकी ख़बर अगले पैगम्बरों की किताबों में (भी मौजूद) है क्या उनके लिए ये कोई (काफी) निशानी नहीं है कि उसको उलेमा(2) बनी इस्राईल जानते हैं
और अगर हम इस कुरआन को किसी दूसरी ज़बान वाले पर नाज़िल करते और वह उन अरबों के सामने उसको पढ़ता तो भी ये लोग उस पर ईमान लाने वाले न थे उसी तरह हमने (गोया ख़ुद) इस इंकार गो गुनाहगारों के दिलों में राह दी कि ये लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब को न देख लेंगे उस पर ईमान न लाएंगे कि वह यकायक उस हाल में उन पर आ पड़ेगा कि उन्हें ख़बर भी न होगी (मगर जब अज़ाब) नाज़िल होगा तो वह लोग कहेंगे कि क्या हमें (उस वक़्त कुछ) मोहलत मिल सकती है तो क्या ये लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं तो क्या तुमने ग़ौर किया कि अगर हम उनको सालाह साल चैन करने दै उसके बाद जिस (अज़ाब) का उनसे वादा किया जाता है उनके पास आ पहुंचे तो जिन चीज़ों से ये लोग चैन किया करते थे कुछ भी काम न आएगी और हमने किसी बस्ती को बग़ैर इसके हलाक नहीं किया की उसके समझाने को (पहले से) डराने वाले (पैगम्बर भेज दिए) थे और हम ज़ालिम नहीं हैं
और उस कुरआन को शयातीन ले कर नाजिल नहीं हुए थे और ये काम न तो उनके लिए मुनासिब था और न वह कर सकते थे बल्कि वह तो (वही के) सुनने से महरूम हैं तो (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा के साथ किसी दूसरे माबूद की इबादत न करो वरना तुम बी मुब्तेलाए अज़ाब किए जाओगे
और (ऐ रसूल) तुम अपने क़रीबी रिश्तेदारों को (अज़ाब ख़ुदा से)(1) डराओ और जो मोमीनीन तुम्हारे पैरकार हो गए हैं उनके सामने अपना बाजू झुकाओ (तवाज़ा करो) पस अगर लोग तुम्हारी नाफ़रमानी करें तो तुम (साफ़-साफ) कह दो कि मैं तुम्हारे करतूतों से बरी-उज्ज़मा हूं और तुम (उस ख़ुदा) पर जो (सब से ग़ालिब और) मेहरबान है भरोसा रखो की जब तुम (नमाज़ तहज्जुद) में खड़े होते हो और सजदा करने वालों (की जमाअत) में तुम्हारा फिरना (उठऩा बैठना सज्दा रुकूअ वग़ैरह सब) देखता है बेशक वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़क़ार है क्या मैं(1) तुम्हें बता दूं कि शयातीन किन लोगों पर नाज़िल हुवा करते हैं
(लो सुनों) ये लोग हर झूटे बदकार पर नाज़िल हुवा करते हैं जो फ़रिश्तों की बातों पर कान लगाए रहते हैं (कि कुछ सुन पाए) हालांकि उन में अक़्सर तो (बिल्कुल) झूटे हैं और शायरों की(2) पैरवी तो गुमराह लोग किया करते हैं क्या तुम नहीं देखते कि ये लोग जंगल जंगल सरगिदां मारे फिरते हैं और ये लोग ऐसी बातें कहहते हैं जो कभी करते नहीं मगर (हां) जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किये और कसरत से खुदा का ज़िक्र किया करते हैं और जब उन पर जुल्म किया जा चुका उस के बाद उन्होंने बदला लिया और जिन लोगों ने जुल्म किया है उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि वह किस जगह लौटाए जाएंगे।
सूरऐ नम्ल
सूरऐ नम्ल मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 63 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
तस ये कुरआन वाज़े व रौशन किताब की आयतें हैं (ये) उन ईमानदारों के लिये (अज़सरतापा) हिदायत और (जन्नत की) ख़ुशख़बरी है जो नमाज़ को पाबंदी से अदा करते हैं और ज़कात दिया करते हैं और यही लोग आख़ेरत (कयामत) का भी यक़ीन रखते हैं इसमें शक नहीं कि जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते (गोया) हम ने खुद उन की कारस्तानियों को (उन की नज़र में) अच्छा कर दिखाया है तो ये लोग भटकते फिरते हैं यही वह लोग हैं जिन के लिए (क़यामत में) बड़ा अज़ाब है और यही लोग आख़ेरत में सब से ज़्यादा घाटा उठाने वाले हैं
और (ऐ रसूल) तुम को तो कुरआन एक बड़े वाक़िफ़दार हकीम की बारगाह से अता किया जाता है (वह वाक़या याद दिलाओ) जब मूसा ने अपने लड़के वालों से कहा कि मैंने (अपने बाए तरफ़) आग देखी है (ऐ ज़रा ठहरो तो) मैं वहां से कुछ (राह की) ख़बर लाऊं या तुम्हें एक सुलगता हुवा आग का अंगारा ला दूं ताकि तुम तापो- ग़रज़ जब मूसा उस आग के पास आए तो उनको आवाज़ आई कि मुबारक है वह जो आग में (तजल्ली दिखाता) है और जो उस के गिर्द है और वह ख़ुदा जो सारे जहान का पालने वाला है (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है
ऐ मूसा इस में शक नहीं कि मै ज़बरदस्त हिकमत वाला हूं और (हाँ) अफनी छड़ी तो (ज़मीन पर) डाल दो तो जब मूसा ने उसको देखा कि वह इस तरह लहरा रही है गोया वह ज़िन्दा अज़दहा है तो पिछले पावों भाग चले और पीछे मु़ड़ कर भी न देखा (तो हमने कहा) ऐ मूसा डरो नहीं हमारे पास पैग़म्बर लोग डरा नहीं करते(1) (मुतमइन हो जाते हैं) मगर जो शख़्स गुनाह करे फिर गुनाह के बाद उसे नेकी (तौबा) से बदल दे तो अलबत्ता मैं बड़ा बख्शने वाला मेहरबान हूं
(हां) और अपना हाथ अपने गिरेबान में तो डालो कि वह सफ़ेद बुराक़ होकर बेएैब निकल आएगा (ये दोनों मोजिज़ें) मिंजुमला नौ मौजिज़ात के हैं (जो तुम को मिलेंगे तुम) फिरऔन और उसकी क़ौम के पास (जाओ) क्योंकि वह लोग बद किरदार हैं तो जब उन के पास हमारे आँखे खोल देने वाले मोजिज़े आए तो कहने लगे ये तो खुला हुवा जादू है और बावजूद ये कि उन के दिल को उन मोजिज़ों का यक़ीन था मगर फिर भी उन लोगों ने सरकशी और तकब्बुर से उनको न माना तो (ऐ रसूल) देखो कि (आख़िर) मुफ़सिदों को अंजाम क्या होगा और इम में शक नहीं कि हम ने दाऊद और सुलेमान को इल्म अता किया और दोनों ने (खुश होकर) कहा ख़ुदा का शुक्र जिस ने हम को अपने बहुतेरे ईमानदार बंदों पर फ़ज़ीलत दी
और (इल्म हिकमत जायदाद मंकूला ग़ैर मंकूला सब में) सुलेमान दाऊद के वारिस(2) हुए और कहा कि लोग हम को (ख़ुदा के फ़ज्ल से) परिन्दों की बोली भी सिखाई गई है और हमें (दुनियां की) हर चीज़ अता की गई है इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनी (ख़ुदा का) सरीही फ़ज़्ल व करम है और सुलेमान के सामने उन के लश्कर(1) जिन्नात और आदमी और परिन्दे सब जमा किये जाते थे तो वह सब के सब (मिल-मिल) खड़े किये जाते थे (ग़रज़ इस तरह लश्कर चलात) यहां तक कि जब (एक दिन) चुनियों के मैदान में आ निकले तो एक चूटीं बोली(2) ऐ चूटियों। अपने अपने बिल में घुस जाओ-ऐसा न हो कि सालैमान और उन्हें उस की ख़बर भी न हो तो सूलैमान उस की इस बात से मुस्करा कर हंस पड़े
और अर्ज़ की परवरदिगार मुझे तौफीक़ अता फ़रमा कर जैसी-जैसी नेमतें तूने मुझ पर मेरे वालदैन पर नाज़िल फ़रमाई हैं मैं (उन का) शुक्रिया अदा करूं और मैं ऐसे नेक काम करूं जिसे तू पसंद करे और तू अपनी ख़ास मेहरबानी से मुझे (अपने) नेकोकार बन्दों मे दाख़िल कर और सुलैमान ने परिन्दों (के लश्कर) की हाज़री ली तो कहने लगे कि क्या बात है कि में हुद-हुद को (इस की जगह पर) नहीं देखता यो (वाक़ई मे) वह कीं ग़ाएब है (अगर ऐसा है तो) मैं उसे सख़्त से सख़्त सज़ा दूंगा या (नहीं) उसे ज़बह ही कर डालूंगा या वह (अपनी बेगुनाही की) कोई साफ़ दलील मेरे पास पेश करे
ग़रज़ सुलैमान ने थोड़ी ही देर तवक्कुफ़ किया था कि (हुद-हुद आ गया) तो उसने अर्ज़ की मुझे वह बात मालूम हुई है जो अब तक हुजूर को भी मालूम नहीं है और मैं आप के पास शहर सबा स एक तहक़ीक़ी ख़बर ले कर आया हूं मैं ने एक औरत को(1) देखा जो वहां के लोगों पर सल्तनत करती है और उसे (दुनिया की) हर चीज़ अता की गई है और उस का एक बड़ा तख़्त है(2) मैंने खुद मल्का को दखा और उसकी कौ़म को देका कि वह लोग ख़ुदा को छोड़ कर आफ़ताब को सजदा करते हैं और शैतान ने उन की करतूतों को (उन की नज़्र में) अच्छा कर दिखाया है और उनको राह-रास्त से रोक रखा है तो उन्हें (इतनी सी बात भी नहीं सूझती) कि वह लोग ख़ुदा ही का सजदा क्यों नहीं करते जो आसमान और जम़ीन की पोशीदा बातों को ज़ाहिर कर देता है और तुम लोग जो कुछ छिपा कर या ज़ाहिर करके करते हो सब जानता है अल्लाह वह जिस के सिवा कोई माबूद नहीं वही (इतने) बड़े अर्श का मालिक है
(ग़रज़) सुलैमान ने कहा हम अभी देखते हैं कि तूने सच-सच कहा या तू झूटा है (अच्छा) हमारा ये ख़त लेकर जा और उस को उन लोगों के सामने डाल दे फिर उन के पास से हट जाओ फिर देखते रहना कि वह लोग आख़िर क्या जवाब देते हैं (ग़रज़ हुद हुद ने मल्का के पास ख़त पुहँचा दिया) तो मलका बोली ऐ (मेरे दरबार के) सरदारों ये एक वाजिबुल एहतराम(2) ख़त मेरे पास डाल दिया गया है सुलैमान की तरफ़ से है ये (उसका सरनामा ही बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम) (और मज़मून) यह है कि मुझ से सरकशी न करो और मेरे सामने फ़रमाबरदार बन कर हाज़िर हो तब मलका (बिल्क़ीस) बोली ऐ मेरे दरबार के सरदारों तुम मेरे इस मामले में मुझे राय दो (क्योंकि मेरा तो यह क़ाएदा है कि) जब तक तुम लोग मेरे सामने मौजूद न हो (मशवरा न दे दो) मैं किसी अम्र में क़तई फ़ैसला नहीं किया करती
उन लोगों ने अर्ज़ की हम ब़ड़े ज़ोर-आदर बड़े ल़ड़ने वाले हैं और (आइन्दा) हर अम्र का आफ को इख़्तेयार है तो जो हुक्म दें आफ खुद अच्छी तरह (उस के अंजाम पर) ग़ौर कर लें मल्का ने कहा बादशाहों का क़ाएदा है कि जब किसी बस्ती में (बज़ोर फ़ताह) दाख़िल होते हैं तो उसको उजाड़ देते हैं और वहां के मुअजिज़ लोगों को ज़लील व रुसवा कर देते हैं और यह लोग भी ऐसा ही करेंगे और मैं उनके पास (ऐलचियों के मारफ़त कुछ तोहफ़ा)(1) फेज कर देखती हूं कि ऐलची लोग क्या जवाब लाते हैं ग़रज़ जब बिल्क़ीस का ऐलची (तोहफ़ा लेकर) सुलैमान के पास आय तो सुलैमान ने कहा क्या तुम लोग मुझे माल की मदद देते हो तो ख़ुदा ने जो (माल दुनिया) मे मुझे अता किया है वह (माल) उस से जो तुम्हें बक्शा है कहीं बेहतर है (मैं तो नहीं) बल्कि तुम्हीं लोग अपने तोहफे तहाएफ़ से खुश हुवा करो (फिर तोहफ़ा लाने वाले ने कहा) तो उन्हीं लोगों के पास जा
हम यक़ीनन ऐसे लश्कर से उन पर चढ़ाई करेंगे जिसका उस से मुक़ाबला न हो सकेगा और उम ज़रुर उन्हें वहां से ज़लील व रूसवा करके निकाल बाहर करेंगे और वह रुसवा होंगे(2) (जब वह जा चुका) तो सुलैमान ने अपने अहले दरबार से कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारों तुम में से कौन ऐसा है कि क़ब्ल उसके वह लोग मेरे सामने फ़रमाबरदार बनकर आवें मल्का का तख़्त मेरे पास ले आए (उस पर) जिना में से एक देव लोब उठा कि क़ब्ल उसके कि हुजूर (दरबार बरख़ास्त करके) अपनी जगह से उठे मैं तख़्त आप के पास ले आऊंगा और मैं यक़ीनन उस पर क़ूबा रखता हूँ (और) ज़िम्मेदार हूं उस पर अभी सुलेमान कुछ कहने न पाए थे कि वह शख़्स(1) (आसिफ़ बिन बरख़िया) जिसके पास किताब (ख़ुदा) का किसी क़दर इल्म न था बोला कि मैं आप की पलक झपकने से पहले तख़्त को आप के पास हाजि़र किये देता हूं
(बस इतने ही में आ गया) तो जब सुलैमान ने उसे अपने पास मौजूद पाया तो कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फ़ज़ल व करम है ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मैं उस का शुक्र करता हूं या नाशुक्री करता हूं और जो कोई शुक्र करता है तो वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है और जो शख़्स नाशुक्री करता है (तो याद रखिये) मेरा परवरदिगार यक़ीनन बे परवा और सख़ी है (उसके बाद) सुलैमान ने कहा कि उस के तख़्त में (उसकी अक़्ल के इम्तेहान के लिए) तग़ीर तबद्दुल करो ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन लोगों में है जो समझ नहीं रखते (चुनांचे ऐसा ही किया गया)
फिर जब बिल्क़ीस (सुलैमान के पास) आई तो पूछा गाय कि तुम्हारा तख़्त भी ऐसा ही है वह बोली गोया यह वही है (फिर कहने लगी) हम को तो उससे पहले ही (आप की नबूवत) मालूम हो गई थी और हम तो आप के फ़रमाबरदार थे ही और ख़ुदा के सिवा जिसे वह पूजती थी सुलैमान ने उस से उसे रोक दिया क्योंकि वह काफिर क़ौम की थी (और आफ़ताब को पूजती थी) फिर उस से कहा गया कि आफ अब महल में चलिए तो उस ने महल (में शीशे की फ़र्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने पाएंचे उठाए कि) अपनी दोनों पिंडलियां खोल दीं
सुलैमान ने कहा तुम डरो नहीं (यह पानी नहीं है) महल है जो शीशों से मंढ़ा हुआ है (उस वक़्त तंबीह हुई और) अर्ज़ की परवदिगार मैंने (आफ़ताब को पूज कर) यक़ीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया और अब मैं सुलैमान के साथ सारे जहां के पालने वाले ख़ुदा पर ईमान लाती हूं(2) और हम ही ने क़ौम समूद के पास उन के भाई सालेह को पैग़म्बर बना कर भेजा कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो तो सालेह के आते ही (मोमिन व काफ़िर) दो फ़रीक़ बनकर बाहम झगड़ने लगे
सालेह ने कहा ऐ मेरी क़ौम (आख़िर) तुम लोग भलाई से पहले बुराई के वास्ते जल्दी क्यों कर रहे हो तुम लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा व असतग़फार क्यों नहीं करते ताकि तुम पर रहम किया जाए वह लोग बोले हम ने तो तुम से और तुम्हारे साथियों से बुरा शगून पाया सालेह ने कहा तुम्हारी बद क़िस्मती ख़ुदा के पास है (यह सब कुछ नहीं) बल्कि तुम लोगों की आज़माइश की जा रही है और शहर में नौ आदमी थे जो मुल्क के बानी फ़साद थे और इसलाह की फ़िक्र न करते थे
उन लोगों ने (आपस में) कहा कि बाहम ख़ुदा की क़सम खाते जाओ कि हम लोग सालेह और उसके लडके बालों पर शब खून करें उस के बाद उसके वाली वारिस से कह देंगे कि हम लोग उनके घर वालों को हलाक होते वक़्त मौजूद ही न थे और हम लोग तो यक़ीनन सच्चे हैं और उन लोगों ने एक तदबीर की और हम ने भी एक तदबीर की(1) और (हमारी तदबीर की) उन को ख़बर भी न हुई तो (ऐ रसूल) तुम देखों उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अंजाम हुवा कि हम ने उन को और उनकी सारी क़ौम को हलाक कर ड़ाला-ये बस उकने घर हैं कि उन की नाफ़रमानियों की वजह से खाली वीरान पड़े हैं इस में शक नहीं कि इस वाक़ये में वाक़िफ़कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है और हम ने उन लोगों को जो ईमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया
और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम देखे भाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो क्या तुम औरतों को छोड़ कर शहवत से मर्दों को आते हो (ये तुम अच्चा नहीं करते) बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ जवाब न था कि वह लोग बोल उठे कि लूत के ख़ानदान को अपनी बस्ती (सैदूम) से निकाल बाहर करो ये लोग बड़े पाक साफ़ बनना चाहते हैं ग़रज़ हम ने लूत को और उन के ख़ानदान को बचा लिया मगर उन की बीवी के उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों मे लिख दिया था
और (फिर तो) हम ने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा (ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक होने पर) ख़ुदा का शुक्र और उसके बुरगुज़ीदा बंदो पर सालम भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे यह लोग शरीक ख़ुदा कहते हैं
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