अलबत्ता वह ईमान लाने वाले रस्तगार हुए(2) जो अपनी नमाज़ों में (खु़दा के सामने) गिड़़गिड़ाते हैं और जो बेहूदा बातों से मुंह फेरे रहते हैं और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं और जो (अपनी) शर्म गाहों को (हराम से) बचाते हैं मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौंडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता पस जो शख़्स उस के सिवा (किसी और तरीक़े से शहवह परस्ती की) तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं
और जो अपनी अमानतों और अपने अहद का लिहाज़ रखते हैं और जो अपनी नमाज़ों की पाबंदी करते हैं (आदम की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस(3) हैं जो बेहिश्त में बरीं का हिस्सा लेंगे (और) यही लोग उस में हमेशा (ज़िन्दा) रहेंगे और हम ने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया फिर हमने उसको एक महफूज़ जगह (औरत के रहम में) नुतफ़ा बना कर रखा फिर हम ही ने नुतफ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया फिर हम ही ने मुनजामिद खून को गोश्त का लोथड़ा बनाया हम ही ने लोथड़े की हड्डियां बनायी फिर हम ही न हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया फिर हम ही ने उसको (रुह डाल कर) एक दूसरी सूरत(1) में पैदा किया तो (सुबहान अल्लाह) खुदा बा-बरकत है जो सब बनाने वालों से बेहतर है फिर उसके बाद यक़ीनन तुम सब लोगो को (एक न एक दिन) मरना है उसके बाद क़यामत के दिन तुम सबके सब कब्रों से उठाए जाओगे और हम ही ने तुम्हारे ऊपर तह ब तह आसमान(2) बनाए और हम मख़लूक़ात से बे ख़बर नहीं है और हम ने आसमान से एक अंदाज़े के साथ पानी बरसाया फिर उसको जमीन में (हस्बे मसलहत) ठहराए रखा और हम तो यक़ीनन उस के ग़ाएब कर देने पर भी क़ाबू रखते हैं फिर हमने उस पानी से तुम्हारे वास्ते खजूरों और अंगूरों के बाग़ात बनाए कि उन मे तुम्हारे वास्ते (तरह-तरह के) बहुतेरे मेवे (पैदा होते) हैं उनमें से बाज़ को तुम खाते हो
और (हम ही ने ज़ैतून का) दरख़्त (पैदा किया) जो तूर सीना(1) (पहाड़) में (कसरत से) पैदा होता है जिस से तेल भी निकलता है और खाने वालों के लिए सालन(2) भी है और उसमें भी शक नहीं कि तुम्हारे वास्ते चौपायों में भी इबरत की जगह है और (ख़ाक़ बला) जो कुछ उन के पेट में है उस से हम तुम को दूध पिलाते हैं और जानवरों में तो तुम्हारे और भी बहुत से फ़ायते हैं उन्हीं में से बाज़ को तुम खाते हो और उन्हीं जानवरों और कश्तियों पर चढ़ते-चढ़ते फिरते भी हो और हमने नूह को उनकी क़ौम के पास पैग़म्बर बना कर भेजा तो नूह ने (उनसे) कहा ऐ मेरी क़ौम खुदा ही की इबादत करो उस के सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे) डरते नहीं हो तो उनका क़ौम के सरदारों ने जो काफ़िर थे कहा कि ये भी तो बस (आख़िर) तुम्हारे ही सा आदमी है(2) (मगर) उशकी तमन्ना ये है कि तुम पर बुजुर्गी हासिल करे
और अगर खुदा (पैग़म्बर ही भेजना) चाहत तो फ़रिश्तों को नाज़िल करता हमने तो (भाई) ऐसी बात अपने अगले बाप दादाओं में (भी) होती नहीं सुनी हो न हो बस ये एक आदमी है जिसे जुनून हो गया है- ग़रज़ तुम लोग एक (ख़ास) वक़्त तक (उसके अंजाम का) इन्तेज़ार देखो नूह ने (ये बातें सुन कर) दुआ कि ऐ मेरे पालने वाले मेरी मदद कर इस वजह से कि इन लोगों ने मुझे झुठला दिया तो हमने नूह के पास वही भेजी कि तुम हमारे सामने हमारे हुक्म के मुताबिक कश्ती बनाना शुरू करो फिर जब कल हमारा अज़ाब आ जाए जानवरों मे) से (नर व मादा) दो-दो का जोड़ा अपने लड़के वालों को बिठा लो मगर उनमें से जिसकी निस्बत (ग़र्ख होने का) पहले से हमारा हुक्म हो चुका है (उन्हें छोड़ दो) और जिन लोगों ने (हमारे हुक्म से) सरकशी की है उनके बारे में मुझसे कुछ कहना (सुनना) नहीं क्योंकि ये लोग यक़ीनन डूबने वाले हैं ग़रज़ जब तुम अपने हमराहियों के साथ कश्ती पर दुरुसत बैठो तो कहो तमाम हम्द व सना का सज़ावार ख़ुदा ही है जिसने हमको ज़ालिम लोगों से निजात दी और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (दरख़्त के पानी की) बा बरकत जगह में उतारना और तू तो सब उतारने(1) वालों से बेहतर है उसमें शक नहीं कि उसमें (हमारी कुदरत की) बहुत सी निशानियां हैं और हमको तो उन सबका इम्तेहान लेना मंजूर था फिर हमने उनके बाद एख और क़ौम (समूद) को पैदा किया
और हमने उन्हीं में से (एक आदमी सालेह को) रसूल बनाकर उन लोगों में भेजा (और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा) कि ख़ुदा की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं तो क्या तुम (उससे से) डरते नहीं हो और उस की क़ौम के चन्दर सरदारों ने जो काफ़िर थे और (रोज़े) आख़ेरत की हाज़िरी को भी झुठलाते थे और दुनियां की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी में हमने उन्हे सरवत भी दे रखी थी आपस में कहने लगे (अरे) ये तो बस तुम्हारा ही सा आदमी है जो चीज़े तुम खाते हो वही ये भी खाता है और जो चीज़े तुम पीते हो उन ही में से ये भी पीता है और अगर कहीं तुम लोगों ने अपने ही से आदमी को इताअत कर ली तो तुम ज़रुर घाटे में रहोगे
क्या ये शख़्स तुमसे वादा करता है कि जब तुम मर जाओगे और (मर कर) मिट्टी और हड्डियाँ (बनकर) रह जाओगे तो तुम (दोबारा ज़िन्दा करके क़ब्रों से निकाले जाओगे (है है अरे) उस का तुमसे वादा किया जाता है बिल्कुल (अक़्ल से) दूर और (क़यास से) बईद है (दोबारा ज़िन्दा होना क़ैसा) बस यही हमारी दुनियां की ज़िन्दगी है कि हम मरते भी है और जीते भी हैं और हम तो फिर (दोबारा) उठाए नहीं जाएंगे हो न हो ये (सालेह) वह शख़्स है जिसने ख़ुदा पर झूठ मूट बहतान बांधा है और हम तो कभी उस पर ईमान लाने वाले नहीं (ये हालत देख कर) सालेह ने दुआ की- ऐ मेरे पालने वाले चूंकि इन लोगों ने मुझे झुठला दिया तू मेरी मदद कर ख़ुदा ने फ़रमाया (एक ज़रा ठहर जाओ) अनक़रीब ही ये लोग नादिम व परेशान हो जाएंगे
गरज़ उन्हें(1) यक़ीनन एक सख़्त चिंघाड़ ने ले डाला तो हमने उन्हें कूड़े करकट (का ढ़ेर) बना छोड़ा पस ज़ालिमों पर (ख़ुदा की) लानत है फिर हमने उन के बाद दूसरी क़ौमो को पैदा किया कोई उम्मत अपने वक़्त मुक़र्रर से न आगे बढ़ सकती है न (उससे) पीछे हट सकती है फिर हमने लगातार बहुत से पैग़म्बर भेजे (मगर) जब जब किसी उम्मत का पैग़म्बर उनके पास आता तो यह लोग उसको झुठलाते थे तो हम भी (आगे पीछे) एख को दूसरे के बाद (हलाक) करते गये और हमने उन्हें (नेस्त व बूद) करके अफ़साना बना दिया तो ईमान न लाने वालों पर ख़ुदा की लानत है
फिर हमने मूसा और उनके भाई हारून को अपनी निशानियों और वाज़े व रोशन दलील के साथ फिरऔन और उसके दरबार के उमराओं के पास (रसूल बनाकर) भेजा तो उन लोगों ने शेखी की और वह थे बड़े सरकश लोग आपस में कहने लगे क्या हम अपने ही ऐसे दो आदमियों पर ईमान ले आएं हालांकि उन दोनों कि (क़ौम की) क़ौम हमारी ख़िदमतगारी करती है ग़रज़ उन लोगों ने उन दोनों की झु़टलाया तो आख़िर यह सब के सब हलाक कर डाले गये और हमने मूसा को किताब (तौरैत) उस लिए अता की थी कि यह लोग हिदायत पाएं
और हमने मरयम के बेटे (ईसा) और उनकी मां को (अपनी कुदरत की) निशानी बनाया था और उन दोनों को हमने एक ऊँची हमवार ठहरने के क़ाबिल चश्मे वाली ज़मीन पर (रहने की) जगह दी (और मेरा आम हुक्म था ऐ (मेरे पैग़म्बरों) पाक व पाकीज़ा चीज़े खाओं और अच्छे अच्छे काम करो (क्योंकि) तुम जो कुछ भी करते हो उसमें मैं उससे बाखूबी वाक़िफ़ हूं (लोगों) यह (दीने इस्लाम) तुम सबका मज़हब एक ही मज़हब है और मैं तुम दोनों का परवरदिगार हूं तो बस मुझी से डरते रहो फिर लोगों ने अपन काम (में इख़्तेलाफ़ करके उस) को टुकड़े टुकड़े कर डाला हर गिरोह(1) जो कुछ उसके पास है उसी में नेहाल है तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उनकी ग़फ़लत में एक ख़ास वक़्त तक (पड़ा) छोड़ दो क्या यह लोग यह ख़याल करत हैं कि हम जो उन्हे माल व औलाद में तरक़्क़ी दे रहे हैं तो हम उनके साथ भलाइयां करने में जल्दी कर रहे हैं (ऐसा नहीं) बल्कि यह लोग समझते नहीं उसमें शक नहीं कि जो लोग अपने परवरदिगार की दहशत से लरज़ रहें हैं
और जो अपने परवरदिगार की (कुदरत की) निशानियों पर ईमान रखते हैं और जो लोग अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाते और जो लोग (ख़ुद की राह में) जो कुछ बन पड़ता है देते हैं और फिर उनके दिल को उस बात का खटका लगा हुआ है कि उन्हें अपने परवरदिगार के सामने लौट कर जाना है (देखिये क्या होता है) यही लोग (अलबत्ता) नेकियों में जल्दी करते हैं और भलाईयों की तरफ़ (दूसरों से) लपक के आगे बढ़ जाते हैं और हम तो किसी शख़्स को उसकी कूवत से बढ़ के तकलीफ़ देते ही नहीं और हमारे पास तो (लोगों के आमाल की) किताब है जो(1) बिल्कुल ठीक (हालत बताती है) और उन लोगों की (ज़र्रा बराबर) हक़ तलाफ़ी नहीं की जाएगी उनके दिल उसकी तरफ से गफ़लत में पड़े हैं उसके अलावा उनके बहुत से आमाल हैं जिन्हें यह (बराबर) क्या करते हैं (और बाज़ नहीं आते) यहां तक कि जब हम उनके मालदारों को अज़ाब(2) में ग़िरफ़्तार करेंगे तो यह लोग वावैला करने लगेंगे (उस वक़्त कहा जाएगा) आज वावैला मत करो तुम को अब हमारी तरफ़ से मदद नहीं मिल सकती
(जब) हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थी तो तुम अकड़ते किस्सा कहते बकते हुए उन से उल्टे पावों फिर जाते थे तो क्या उन लोगों ने (हमारी) बात (कुरआन) पर गौ़र नहीं किया या उनके पास कोई ऐसी नई चीज़ आई जो उनके बदले बाप दादाओं के पास नहीं आई थी या उन लोगों ने अपने रसूल ही को नहीं पहचाना तो उस वजह से उनका इंकार बैठे या कहते हैं कि उसको जुनून हो गया है (हरगिज़ उसे जुनून नहीं) बल्कि वह तो उनके पास हक़ बात लेकर आया है और उनमें के अक़्सर हक़ बात से नफ़रत रखते हैं और अगर कहीं हक़ उनकी नफ़सानी ख़्वाहिशों की पैरवी करता तो सारे आसमान व ज़मीन और जो लोग उनमें हैं (सब के सब) बरबाद(2) हो जाते बल्कि हम तो उन्हीं के तज़किरे (जिब्राईल के वास्ते से) उनके पास लेकर आए तो यह लोग अपने ही तज़किरों से(1) मुंह मोड़ते हैं
(ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (अपनी रिसालत की) कुछ उजरत मांगते हो तो तुम्हारे परवरदिगार की उजरत उससे कहीं बेहतर है और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देने वाला है और तुम तो यक़ीनन उनके सीधी राह की तरफ़ बुलाते हो और उसमें शक नहीं कि जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते वह सीधी राह से हटे हुए हैं और अगर हम उन पर तरस खाएं और जो .तकलीफ़ें उन को (कुफ़्र की वजह से) पहुंच रही हैं उनको दफ़ा कर दें तो यक़ीनन यह लोग (और भी) अपनी सरकशी पर अड़ जाएं और भटकते फिरे और हमने उनके सामने एक सख़्त अज़ाब का दरवाज़ा खोल दिया तो उस वक़्त फ़ौरन यह लोग बेआस होकर बैठ(2) रहे हालांकि वही लोग (मेहरबान खुदा) हैं जिस ने तुम्हारे लिये कान और आँखे और दिल पैदा किये (मगर) तुम लोग हो ही बहुत कम शुक्र करने वाले और वह वही (ख़ुदा) है जिसने तुमको रुए ज़मीन में (हर तरफ़) फ़ैला दिया और फिर (एक दिन) सब के सब उसी के सामने इकट्ठे किये जाओगे
और वही वह (खुदा) है जो जिलाता और मारता है कि और रात दिन का फ़ेर बदल भी उसी(7) के इख़्तेयार में है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते (उन बातों को समझे खाक़ नहीं) बल्कि जो अगले लोग कहते आए वैसी ही बात यह भी कहने लगे कि जब हम मर जाएंगे और (मरकर) मिट्टी (की ढ़ेर) और हड्डियां हो जाएंगे तो क्या हम फिर दोबारा (क़बरों से ज़िन्दा करके) निकाले जाएंगे उस का वादा तो हम से और हम से पहले हमारे बाप दादाओं से भी (बारहा) किया जा चुका है ये तो बस सिर्प़ अगले लोगों के ढ़कोसले हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला अगर तुम लोग कुछ जानते हो (तो बताओ) ये ज़मीन और जो लोग उसमें हैं किस के है वह फ़ौरन जवाब देंगे कि ख़ुदा के तुम कह दो कि तो क्या तुम अब भी ग़ौर न करोगे
(ऐ रसूल) तुम (उन से) पूछो तो कि सातों आसमानों का मालिक और (इतने) बड़े अर्श का मालिक कौन है तो कौन जवाब देंगे कि (सब कुछ0 ख़ुदा ही का है अभ तुम कहते तो क्या तुम अब भी (उस से) नहीं डरोगे
(ऐ रसूल) तुम (उन से) पूछो कि भला अगर तुम कुछ जानते हो (तो बताओ) कि वह कौन शख़्स है- जिस के इख़्तेयार हर चीज़ की बादशाहत है वह (जिसे चाहता है) पनाह देता है और उस (के अज़ाब) से पनाह नहीं दी जा सकती तो ये लोग फ़ौरन बोल उठेंगे कि (सब इख़्तेयार) ख़ुदा ही को है- अभी तुम कह दो कि तुम पर जादू कहां किया जाता है बात यह है कि हम ने उनके पास हक़ बात पहुंचा दी और ये लोग यक़ीनन झूटे हैं न तो अल्लाह ने किसी को (अपना) बेटा बनाया है
और न उसके साथ कोई और ख़ुदा है (अगर ऐसा होता) उस वक़्त हर ख़ुदा अपने अपने मख़लूक को लिए लिए(1) फिरता और यक़ीनन एक दूसरे पर(2) चढ़ाई करता (और खूब जंग होती) जो बातें ये लोग (ख़ुदा कि निसबत) बयान करते हैं उस से ख़ुदा पाक व पाकीज़ा है वह पोशीदा और हाज़िर (सब से) ख़ूब वाक़िफ है ग़रज़ वह उन के शिर्क से (बिल्कुल पाक और) बालातर है (ऐ रसूल) तुम दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले जिस (अज़ाब) का तूने उन से वादा किया है अगर शायद तू मुझे दिखाए तो परवरदिगार मुझे उन ज़ालिम लोगों के हमराह न करना
और (ऐ रसूल) हम यक़ीनन उस पर क़ादिर हैं कि जिस (अज़ाब) का हम उन से वादा करते हैं तुम्हें दिखा दे और बुरी बात के जवाब(2) में ऐसी बात कहो जो निहायत अच्छी हो जो कुछ ये लोग (तुम्हारी निसबत) बयान करते हैं उस से हम खूब वाक़िफ़ हैं
और (यह भी) दुआ कि ऐ मेरे पालने वाले मैं शैतान के वसवसों से तेरी पनाह मांगता हूं और ऐ मेरे परवरदिगार उस से भी तेरी पनाह मांगता हूं कि शयातीन मेरे पास आएं (और कुफ़्फ़ार तो मानेंगे नहीं) यहां तक कि जब उनमें से किसी की मौत आई तो कहने लगे परवरदिगार तू मुझे (एक बार) उस मक़ाम (दुनियां) में जिसे मैं छोड आया हूं फिर वापस(2) कर दे ताकि मैं (अबकी दफ़ा) अच्छे अच्छे काम करूं (जवाब दिया जाएगा) हरगिज़ नहीं ये एक लग़े बात है जिसे वह बक रहा और उनके (मरने के) बाद (आलिम) र्बज़ख़ हैं (जहां) दोबारा क़बरों से उठाए जाएंगे (रहना होगा) फिर जिस वक़्त सूर फूंका जाएगा तो उस दिन न लोगों में क़राबत(1) दरियां रहेगी और न एक दूसरे की बात पूछेंगे फिर जिन (के नेकियों) के पल्ले भारी होंगे तो यही लोग कामयाब होंगे और जिन (के नेकियों) के पल्ले हल्के होंगे तो यही लोग जिन्होंने अपना आप नुक़सान किया कि हमेशा जहन्नुम में रहेंगे और (उनकी ये हालत होगी कि) जहन्नुम की आग उनके मुंह और झुलसा देगी और वह लोग मुंह बनाए हुए होंगे (उस वक़्त हम पूछेंगे) क्या तुम्हारे सामने मेरी आयते न पढ़ी गई थी (ज़रुर पढ़ी गई थी) तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे
वह जवाब देंगे ऐ हमारे परवरदिगार हमको हमारी कमबख़्ती ने आ दबाया और हम गुमराह लो थे- परवरिदगार हमको (अबकी दफा) किसी तरह उस जहन्नुम से निकाल दे इफर अगर दोबारा हम ऐसा करें तो अलबत्ता क़सूरवार हैं ख़ुदा फ़रमाएगा दूर हो उसी में (तुमको रहना होगा) और (बस) मुझसे बात न करो- मेरे बन्दों में से एक गिरोह(2) ऐसा भी था जो (बराबर) ये दुआ करता था कि ऐ हमारे पालने वाले हम ईमान लाएं तो तुम हमको बख़्श दें और हम पर रहम कर और तू तमाम रहम करने वालों से बेहतर है तुम लोगों ने उन्हें मसखरा बना लिया यहां तक कि (गोया) उन लोगों ने तुम से मेरी याद भुला दी और तुम उनसे (बराबर) हसते रहे मैंने आज उनको उनके सब्र का अच्छा बदला दिया कि यही लोग अपनी (खातिर ख्वाह) मुराद को पहुंचने वाले हैं
(फिर उनसे) ख़ुदा पूछेगा कि (आख़िर) तुम ज़मीन पर कितने बरस रहे वह कहेंगे (बरस कैसा) हम तो बस पूरा एक दिन(1) या एक दिन से भी कम तो तू शुमार करने वालों से पूछ ले ख़ुदा फ़रमाएगा-बेशक तुम (ज़मीन में) बहुत ही कम ठहरे काश तुमनी (इतनी बात भी दुनिया मे) समझते होते तो क्या तुम ये ख़याल करते हो कि हमने तुमको यूं ही बेकार पैदा किया और ये कि तुम हमारे हुजूर में लौटा कर न लाए जाओगे तो ख़ुदा जो सच्चा बादशाह (हर चीज़ से) बरतर व आला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वही) अर्श बुजुर्ग मालिक है- और जो शख़्स ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद की भी इबादत करेगा उसके पास उश शिर्क का कोई दलील तो है नहीं तो बस उसका हिसाब (किताब) उसके परवरदिगार ही के पास होगा (मगर याद रहे कि) कुफ़्फ़ार हरगिज़ फलाह पाने वाले नहीं और (ऐ रसूल) तुम कह दो परवरदिगार तो (मेरी उम्मत को) बख़्श दे और तरस खा और तू तो सब रहम करने वालों में से बेहतर है।
सूरऐ नूर
सूरऐ नूर मदीने में नाज़िल हुआ और इसकी 64 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
यह एक सूरऐ है जिसे हमने नाज़िल किया और उस (के अहकाम) को फ़र्ज़ न कर दिया और उसमें हमने वाज़े व रौशन आयतें नाज़िल की हैं ताकि तुम (ग़ौर करके) नसीहत हासिल करो ज़िना करने वाली औरत और ज़िना करने वाले मर्द उन दोनों में से हर एक को सौ (सौ 100) कोड़े(2) मारो और अगर तुम ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हो तो हुक्म ख़ुदा के नाफ़िज़ करने में तुमको उनके पारे में किसी तरह की तरस का लिहाज़ न होने पाए और उन दोनों की सज़ा के वक़्त मोमीनीन की एक जमाअत को मौजूद रहना चाहिए ज़िना करने वाले मर्द तो ज़िना करने वाली औरत भी बस ज़िना करने वाले ही मर्द या मुशरिक से निकाह करेगी और सच्चे ईमानदारों पर तो उस क़िस्म के(4) ताल्लुक़ात हराम हैं
और जो लोग पाक दामन औरतों पर (ज़िना की) तोहमत लागाएं फिर (अपने दावे पर) चार गवाह पेश न करें तो उन्हें अस्सी (80) कोड़े मारो(5) और फिर (आइंदा) कभी उनकी गवाही क़बूल न करो और (याद रखो कि) ये लोग ख़ुदा बदकार हैं मगर हां जिन लोगों ने उसके बाद तौबा कर ली और अपनी इसलाह की तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और जो लोग अपनी बीबियों पर (ज़िना) का एैब लगाए और (उसके सबूत) अपने सिवा उनका कोई गवाह न हो तो ऐसे लोगों में से एक की गवाही चार मर्तबा उस तरह होगी कि वह (हर मर्तबा) ख़ुदा की क़सम खाकर बयान करे कि वह (अपने दावे में) ज़रुर सच्चा है
और पांचवी (मर्तबा) यूं (कहेगा) अगर वह झूठ बोलता हो तो उस पर ख़ुदा की लानत और औरत (के सर से) उस तरह सज़ा टाली जा सकती है कि वह चार मर्तबा ख़ुदा की क़सम ख़ाकर यो बयान कर दे कि ये शख़्स (उसका शौहर अपने दावे में) ज़रुर झूठा है और पांचवीं मर्तबा यूं करेगी अगर ये शख़्स (अपने दावे में) सच्चा हो तो मुझ पर ख़ुदा का ग़ज़ब पड़े और अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़्ल (व करम) और उसकी मेहरबानी न होती तो (तो देखते की तोहमत लगाने वालों का क्या हाल होता) और उसमें तो शक ही नहीं की ख़ुदा बड़ा तौबा क़बूल करने वाला हकीम है बेशक जिन लोगों ने झूठी तोहमत(1) लगाई वह तुम्ही में से एक गिरोह है तुम अपने हक़ में उस तोहमत को बुरा न समझो बल्कि ये तुम्हारे हक़ मे बेहतर है उनमें से जिस शख़्स ने जितना गुनाह समेटा वह उस (की सजा़) को ख़ुद भुगतेगा और उनमें से जिस शख़्स ने उस तोहमत का बड़ा हिस्सा लिया उसके लिए बड़ी (सख़्त) सज़ा होगी और जब तुम लोगों ने उसको सुना था तो उसी वक़्त ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों ने अपने लोगों पर भलाई का गुमान क्यों कर न किया और ये क्यों न बोल उठे कि ये तो खुला हुआ बोहतान है
और जिन लोगों ने तोहमत लागाई थी अपने दावे के सबूत में चार गवाह क्यों न पेश किए फिर जब उन लोगों ने जब गवाह न पेश किए तो ख़ुदा के नज़दीक यही लोग झूठे(1) हैं और अगर तुम लोगों पर दुनियां और आख़ेरत में ख़ुदा का फ़ज़्ल(व करम) और उसकी रहमत न होती तो जिस बात का तुम लोगों ने चर्चा किया था उसकी वजह से तुम पर कोई बड़ा (सख़्त) अज़ाब आ पहुंचता कि तुम अपनी ज़बानों से उसको एक दूसरे को बयान करने लगे और उपने मुंह से ऐसा बात कहते थे जिस का तुम्हें इल्म व यक़ीन न था (और लुत्फ़ ये है कि) तुम ने उसको एक आसान बात समझी थी हालांकि वह ख़ुदा के नज़दीक बड़ी सख़्त बात थी- और जब तुमने ऐसी बात सुनी थी तो तुमने लोगों से ये क्यों न कह दिया कि हमको ऐसी बात मुह से निकलनी मुनासिब नहीं सुबहान अल्लाह ये बड़ा भारी बोहतान है ख़ुदा तुम्हारी नसीहत करता है कि अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़बरदार फिर कबी ऐसा न करना और ख़ुदा तुमसे (अपने) अहकाम साफ़-साफ़ बयान करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफ़दार हकीम है
जो लोग यह चाहते हैं कि ईमानदारों में बदकारी का चर्चा फ़ैल(1) जाए बेशक उनके लिये दुनिया और आख़ेरत में दर्दनाक अज़ाब है और ख़ुदा (असब हाल को) ख़ूब जानता है और तुम लोग नहीं जानते हो और अगर ये बात न होती कि तुम पर ख़ुदा का फ़ज़्ल (व करम) और उसकी रहमत है और यह कि ख़ुदा (अपने बंदों पर) बड़ा शफ़ीक़ मेहरबान है (तो तुम देखते क्या हो) ऐ ईमानदारों शैतान के क़दम व क़दम न चलो और जो शख़्स शैतान के क़दम व क़द चलेगा वह यक़ीनन उसे बदकारी और बुरी बात (करने) का हुक्म देगा और अगर तुम पर ख़ुदा का फ़ज़्ल (व करम) और उसकी रहमत न होती तो तुम से कोई भी कभी पाक साफ़ न होता मगर ख़ुदा तो जिसे चाहता है पाक साफ़ कर देता है और ख़ुदा बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़दार है और तुम में(2) से जो लोग ज़्यादा दौलत और मुक़दर वाले हैं क़राबतदारों और मोहताजों और ख़ुदा का रीह में हिजरत करने वालों को कुछ देने (लेने) से क़सम न खा बैठे बल्कि उन्हें चाहिए कि (उनकी ख़ता) माफ़ कर दें और दरगुज़र करे क्या तुम यह नहीं चाहते हो कि ख़ुदा तुम्हारी ख़ता माफ़ करे और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
बेशक जो लोग पाक दामन बे ख़बर और ईमानदार औरतों पर (जि़ना की) तोहमत लगाते हैं उन पर दुनिया और आख़ेरत में (ख़ुदा की) लानत है और उन पर बड़ा (सख़्त) अज़ाब होगा जिस दिन उनके ख़िलाफ़ उनकी ज़बाने और उनके हाथ और उनके पांव उनकी कारसतानियों की गवाही देंगे उस दिन ख़ुदा उनको ठीक उनका पूरा पूरा बदला देगा और जान जाएंगे कि ख़ुदा बिल्कुल बरहक़ और (हक़ का) ज़ाहिर करने वाला है- गंदी(1) औरतें, गंदें मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गंदे मर्द गंदी औरतों के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (मौजूअ) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए लोग जो कुछ उनकी निस्बत बका करते हैं उससे यह लोग बरी ज़िम्मा है उन ही (पाक लोगों) के लिए (आख़ेरत मे) बख़्शिश है और इज़्ज़त की रोज़ी
ऐ ईमानदारों अपने घरों के सिवा दूसरे(2) घरों में (दर्राना) न चले जाओ यहां तक कि उनसे इजाज़त ले लो और उन घरों के रहने वालों से साहब सलामत कर लो यहीं तुम्हारे हक़ में बेहतर है (यह नसीहत उस लिए है) ताकि तुम याद रखो पस अगर तुम उन घरों में किसी को न पाओ तो तावख़तीका तुमको (ख़ास तीर पर) इजाज़त न हासिल हो जाए उनमें न जाओ और अगर तुमसे कहा जाए कि फिर जाओ तो तुम (बे तआम्मुल) फिर जाओ यही तुम्हारे वास्ते ज़्यादा सफ़ाई की बात है और तुम जो कुछ भी करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाकिफ़ है उसमे अलबत्ता तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि ग़ैर आबाद मक़ानात(1) में जिसमें तुम्हारा कोई असबाब हो (बे इज़ाज़त) चले जाओ और जो कुछ खुल्लम ख़ुल्ला करते हो और जो कुछ छिपा कर करतो हो ख़ुदा (सब कुछ) जानता है (ऐ रसूल) ईमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें यही उनके वास्ते ज़्यादा सफ़ाई की बात है यह लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उस लिए यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ़ है
और (ऐ रसूल) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें(2) और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाओ सिंगार (के मक़ामात) को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (छिप न सकता हो) (उसका गुनाह नहीं) और अपनी ओढ़नियों को (घूंघट मार के) अपने गेरेबानों (सीनों) पर डालें रहें और अपने शौहरों या अपने बाप दादुओं या अपने शौहर के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने शौहर के बेटों या अपने भाईयों या अपने भतिजों या अपने भांजो या अपने (क़िस्म की) औरतों या अपनी लौंडियों या (कर के) वह नौकर चाकर जो मर्द सूरत मगर (बहुत बूढे होने की वजह से) औरतों से कुछ मतलब नहीं रखते या कमसिन लड़के जो औरतों को परदे की बात से आगाह नहीं हैं उनके सिवा (किसी पर) अपना बनाव सिगांर ज़ाहिर न होने दिया करें और चलने में अपने पांव ज़मीन पर इस तरह न रखें कि लोगों को उनके पोशीदा बनाव सिंगार (झंकार वगैरह) की ख़बर हो जाए
और ऐ ईमानदारों तुम सब के सु ख़ुदा की बारगाह में तौबा करों ताकि तुम फ़लाह पाओ और अपनी (कौ़म की) बे शौहर औरतों और अपने नेक बख़्त गुलामों और लौंडियों का भी निकाह(1) कर दिया करो अगर ये लोग मोहताज होंगे तो ख़ुदा अपने फ़ज़्ल व (करम) से उन्हें मालदार बना देगा और ख़ुदा तो बड़ी गुन्जाइश वाला वाक़िफ़दार है और जो लोग निकाह करने का मुक़द्दर नहीं रखते उन को चाहिए कि पाक दामनी इख़्तेयार करें
यहां तक कि ख़ुदा उन को अपने फ़ज़ल व (करम) से मालदार बना दें और तुम्हारी लौंड़ी गुलामों से जो मकाबत(2) होने (कुछ रुपये की शर्त पर आज़ादी का सर ख़त लेने) की ख़्वाहिश करें तो तुम अगर उन में कुछ सलाहियत देखों तो उन को मकातब करो और ख़ुदा के माल से जो उसने तुम्हें अता किया है उन को भी दो
और तुम्हारी लौंडियां जो पाक दामन हैं रहना चाहती हैं उन को दुनियावीं जिन्दग़ी के फ़ायदे हासिल करने की ग़र्ज़ से हराम कारी पर मजबूर(1) न करो और जो शख़्स उन को मजबूर करेगा तो उसमें शक नहीं कि ख़ुदा उस की बे बसी के बाद बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और (ईमानदारों) हम ने तुम्हारे पास (अपनी) वाज़े व रौशन आयतें और जो लोग तुम से पहले गुज़र चुके हैं उन की हालतें और परहेज़गारों के लिए नसीहत (की बातें) नाज़िल की
ख़ुदा तो सारे आसमान और ज़मीन का नूर है उस के नूर की मसल ऐसी है जैसे एक ताक़(2) (सीना) है जिस में एक रौशन चिराग़ (इल्म शरीअत) हो और चिराग़ एख शीशे की क़न्दील (दिल) में हो (और) क़न्दील (अपनी तड़प में) गोया एक जगमगाता हुआ रौशन सितारा (वह चिराग़) ज़ैतून के मुबारक दरख़्त (के तेल) से रौशन किया जाए जो न पूरब की तरफ़ हो और न पच्छिम की तरफ़ (बल्कि बीचों बीच में मैंदान में) उस का तेल (ऐसा शफ़ाफ़ हो कि) अगर ये आग उसे छूवे भी नहीं ताहम ऐसा मालूम हो कि आप ही आप रौशऩ हो जाएगा (ग़रज़ एक नूर नहीं बल्कि) नूर अला नूर (नूर की नूर पर जोत प़ड़ रही है) ख़ुदा अपने नूर की तरफ़ जिसे चाहता है हिदायत करता है और ख़ुदा लोगों (के समझाने के) वास्ते मसले बयान करता है और ख़ुदा तो हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ़ है
(वह क़न्दीलें) उन घरों में रौशन हैं जिनकी निस्बत ख़ुदा ने हुक्म दिया कि उनकी ताज़ीम की जाए और उन में उस का नाम लिया जाए जिन में सुबहा शाम वह लोग उसकी तस्बीह किया करते हैं ऐसे लोग(1) जिन को ख़ुदा के ज़िक्र और नमाज़ पढ़ने और ज़कात अदा करने से न तो तिजारत ही ग़ाफ़िल कर सकती है न (ख़रीदो) फ़रोख्त (का मामला क्योंकि) वह लोग उस दिन से डरते हैं जिस में (ख़ौफ़ के मारे) दिल और आँखे उलट जाएंगी (उस की इबादत इस लिए करते हैं) तिका ख़ुदा उन्हें उनके आमाल का बेहतर से बेहतर बदला अता फ़रमाए और अपने फज्ल व करम से कुछ और ज़्यादा भी दे और ख़ुदा तो जिसे चाहता है बे हिसाब रोज़ी देता है
और जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया उन की कारस्तानियां (ऐसी हैं) जैसे एख चटियल मैदान का चमकता हुआ बालू कि प्यासा उस को दूर से देखे तो पानी ख़्याल करता है यहां तक कि जब उसके पास आया तो उस को कुछ भी न पाया (और प्यास से तड़प कर मर गया) और ख़ुदा को अपने पास मौजूद पाया तो उसने उस का हिसाब (क़िताब) पूरा पूरा चुका दिया और ख़ुदा तो बहुत जल्द हिसाब करने वाला है (या काफ़िरों के आमाल की मिसाल) उस ब़ड़े गहरे दरिया की तरीकियों की सी है- जैसे एक लहर उस के ऊपर दूसरी लहर उसके ऊपर अब्र (तह ब तह) ढाके हुए हो (ग़रज़) तारीकियां हैं कि एक के ऊपर (उमड़ी) चली आती हैं (उसी तरह से) कि अगर कोई शख़्स अपना हाथ निकाले तो (शिद्दत तारीकी से) उसे देख न सके और जिसे ख़ुद ख़ुदा ही ने (हिदायत की) रौशनी मदद दी हो तो (समझ लो कि) उस के लिए कहीं कोई रौशनी(1) ही नहीं है
(ऐ शख़्स) क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि जितनी मख़लूक़ात सारे आसमान और ज़मीन में है और परिन्दे पर फैलाए (ग़रज़ सब) उसकी तरह तस्बीह किया करते हैं सब के सब अपनी नमाज़ों और अपनी तस्बीह का तरीक़ा ख़ूब जानते हैं और जो कुछ किया करते हैं ख़ुदा उस से खूब वाक़िफ़ है और सारे आसमान व ज़मीन की सल्तनत ख़ास ख़ुदा ही की है और ख़ुदा ही की तरफ़ (सब को) लौट कर जाना है- क्या तूने उस पर भी नज़र नहीं की कि यक़ीनन ख़ुदा ही अब्र को चलाता है फिर वही बाहम उसे जोड़ता है फिर वही उसे तै ब तै रखता है- तब तू बारशि उस के दरम्यान से निकलते हुए देखता है और आसमान जो (जमे हुए बादलों के) पहाड़ हैं उन मे से वही उसे बरसाता है फिर उन्हें जिस (के सर) पर चाहता है पहुंचा देता है और जिस (के सर) से चाहता है डाल देता है क़रीब है कि उस की बिजली की कौध आँखों की रौशनी उसके लिये जाती है ख़ुदा ही रात और दिन को फ़ेर बदल करता रहता है-बेशक उस में आँख वालों के लिए बड़ी इबरत है और ख़ुदा ही ने तमाम ज़मीन पर चलने वाले (जानवरों) को पानी(2) से पैदा किया उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जो अपने पेट के बल चलते हैं और बाज़ उनमें ऐसे हैं जो दो पावों पर चलते हैं और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो चार पावों पर चलते हैं- ख़ुदा जो चाहता है पैदा करता है उसमें शक नहीं कि ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है
हम ही ने यक़ीनन वाज़ेह व रौशन आयतें नाज़िल की और ख़ुदा ही जिसको चाहता है सीधी राह की हिदायत करता है और (कुछ लोग ऐसे भी हैं जो) कहते हैं कि हम ख़ुदा पर और रसूल पर ईमान लाए और हमने ऐताअत कूबूल की फिर उसके बाद उनमें से कुछ लोग (ख़ुदा के हु्क्म से) मुंह फेर लेते हैं और (सच यूं है कि) यह लोग ईमानदार थे ही नहीं और जब वह लोग ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ़ बुलाए जाते हैं ताकि रसूल स0 उनके आपस के झगड़े का फ़ैसला कर दें तो उनमें का एक फरीक़ रू गरदानी करता है और (असल यह है कि) अगर हक़ उनकी तरफ़ होता तो गरदन झुकाए (चुपके) रसूल स0 के पास दौड़े हुए आते क्या उनके दिल में (कुफ़्र का) मर्ज़ (बाक़ी) है या शक में पड़े हैं या इस बात से डरते हैं कि (मुबादा) ख़ुदा और उसके रसूल उन पर जुल्म कर बैठेगा- (यह सब कुछ नहीं) बल्कि यही लोग ज़ालिम हैं ईमानदारों का कौ़ल तो बस यह है कि जब उनको ख़ुदा और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी झगड़ों का फ़ैसला कर दें तो कहते हैं कि हम ने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही लोग (आख़ेरत में) कामयाब होने वाले हैं और जो शख़्स ख़ुदा और उसके रसूल का हुक्म माने और ख़ुदा से डरे और उस (की नाफ़रमानी) से बचता रहेगा तो ऐसे ही लोग अपनी मुराद(1) को पहुंचेगे और (ऐ रसूल) उन (मुमाफ़िक़ीन) ने तुम्हारी ऐताअत की ख़ुदा की सख़्त से क़समें(2) खाई कि अगर तुम उन्हें हुक्म दो तो बिला उज़्र (घरबार छोड़ कर) निकल खड़े हो- तुम कह दो कि क़समें न खाओ उससे ख़बरदार है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा की ऐताअत करो और रसूल की ऐताअत करो उस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किये गये हैं और जिसके जि़म्मेदार तुम बनाए गये हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी ऐताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ़ साफ तौर पर (अहकम का) पहुंचाना फ़र्ज़ है
(ऐ ईमानदारों) तुम में सि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किये उनसे ख़ुदा ने वादा किया है कि उनको (एक न एक) दिन रूऐ ज़मीन पर ज़रुर (अपना) नाएब मुक़र्रर करेगा जिस तरह उन लोगों को नायाब बनाया जो उन से पहले गुज़र चुके हैं और जिस दीन को उसने उनके लिए पसंद फ़रमाया है (इसलाम) उस पर उन्हें ज़रुर ज़रुर पूरी कुदरत देगा और उनके ख़ाएफ़ होने के बाद (उनके हिरासत को) अमन से ज़रुर बदल देगा किवह (इत्मेनान से) मेरी ही इबादत करेंगे और किसी को हमारा शरीक न बनाएंगे और जो शख़्स उस के बाद भी नाशुक्री करे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं
और (ऐ ईमानदारों) नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और (दिल से) रसूल स0 की ऐताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए और (ऐ रसूल) तुम ये ख़याल न करो कि कुफ़्फ़ार (इधर-उधर) ज़मीन में (फैल कर हमें) आजिज़ करेंगे (ये ख़ुद आजिज़ हो जाएंगे) और उन का ठिकाना तो जहन्नुम है और क्या बुरा ठिकाना है
ऐ ईमानदारों तुम्हारी लौंड़ी गुलाम और वह लड़के जो अभी तक बलूग़ की हद तक नहीं पहुंचे हैं उन को भी चाहिए कि (दिन रात में) तीन मर्तबा (तुम्हारे पास आने की) तुम से इजाज़त ले लिया करें तब आएं (एक) नमाज़ सुबहा से पहले और (दूसरे) जब तुम (गर्मी से) दोपहर को (सोने के लिए अमूमन) कपड़े उतार दिया करते हो और (तीसरे) नमाज़ इशा के बाद (ये) तीन (वक़्त) तुम्हारे परदे के हैं इन औका़त के अलावा (बे-इज़्न आने में) ने तुम पर कोई इल्ज़ाम है-ने उन पर (क्योंकि) इन औक़ात के अलावा (बग़ैर या बे ज़रुरत) लोग एक दूसरे के पास चक्कर लगाया करते हैं- यूं ख़ुदा वाक़िफ़कार हकीम है और (ऐ ईमानदारों) जब तुम्हारे लड़के हद बलूग को पहुंचे तो जिस तरह उन के क़ब्ल (बड़ी उम्र) वाले (घर में आने की) इजाज़त से लिया करते थे उसी तरह ये लोग भी इजाज़त ले लिया करे- यूं ख़ुदा अफने अहकाम साफ-साफ बयान करता है और ख़ुदा तो बडा वाक़िफ़कार हकीम है
और बड़ी बूढ़ी औरतें जो (बुढ़ापे की वजह से) निकाह की ख़्वाहिश नहीं रखती वह अगर अपने कप़ड़े (दुपट्टा वग़ैरह) उतार कर (सर नंगा) कर डालें तो उस में उन पर कुछ गुनाह नहीं है बशर्ते कि उन को अपना बनाव सिंगार दिखाना मंजूर न हो और (उस से भी) बचें तो उन के लिए और बेहतर है और ख़ुदा तो (सब की सब कुछ) सुनता और जानता है इस बात में न तो अंधे आदमी के लिए मुज़ाएक़ा है और न लंगड़े आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है- और न बीमार पर कोई गुनाह है और न खुद तुम लोगों पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बांप दादा नाना वग़ैरह के घरों से या अपनी मां दादी, नानी वग़ैरह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चाचाओं के घरों से या अपनी फुफियों के घरों से या अपने मामू के घरों से या अपनी ख़ालाओं के घरों से या उस घर से जिस की कुंजियां तुम्हारे हाथ में हैं(1) या अपने दोस्तों (के घरों) से उस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिल कर खाओ या अलग-अलग फिर जब तुम घरों वालों में जाने लगो (हां वहां किसी को न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो ख़ुदा की तरफ़ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफ़ा है- ख़ुदा यूं (अपने) अहकाम तुम से साफ-साफ बयान करता है ताकि तुम समझो सच्चे ईमानदार तो सिर्फ वह लोग हैं जो ख़ुदा और उस के रसूल पर ईमान लाएं और जब किसी ऐसे काम के लिए जिस में लोगों के जमा होने की ज़रुरत है- रसूल स0 के पास होते हैं जब तक कि उस से इजाज़त न ले लेंगे
(ऐ रसूल) जो लोग तुम से (हर बात में) इजाज़त ले लेते हैं वही लोग (दिल से) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए हैं तो जब ये लोग अपने किसी काम के लिए तुम से इजाज़त मांगे तो तुम उन में से जिस को(1) (मुनासिब ख़याल कर के) चाहो इजाज़त दे दिया करो और ख़ुदा से उस की बख्शिश की दुआ भी करो बे शक बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है- (ऐ ईमानदारों) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम लेकर) बुलाया करते हो उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो ख़ुदा उन लोगों को ख़ूब जानता है जो तुम में से आंख बचा के (पैग़म्बर के पास से) ख़िसक जाते हैं तो जो लोग उसके हुक्म की मुख़ालिफ़त करते हैं उन को इस बात से डरते रहना चाहिए कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पड़े या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाज़िल हो-ख़बरदार जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है (सब) यकी़नन ख़ुदी ही का है जिस हालत पर तुम हो ख़ुदा खूब जानता है और जिस दिन उस के पास ये लोग लौटा कर जाएंगे तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया है बता देगा- और खुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ़ है।
सूरऐ फुरक़ान
सूरऐ फुरक़ान मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 77 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
(ख़ुदा) बहुत बा बरकत है जिसने अपने बन्दे (मुहम्मद) पर कुरआन नाज़िल किया ताकि सारे महमान के लिए (खुदा के अज़ाब से) डराने वाला हो
वह ख़ुदा कि सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत उसी की है और उसने (किसी को) न अपना लड़का बनाया और न सलनतन में उस को कोई शरीक है और हर चीज़ को उसी ने पैदा किया फिर उसे अंदाज़े(2) से दुरुस्त किया और लोगों ने उस के सिवा दूसरे दूसरे माबूद बना रखे हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि व खुद दूसरे के पैदा किये हुए हैं और वह ख़ुद अपने लिये भी न नुक़सान पर क़ाबू रखते हैं न नफ़े पर और न मौत ही पर इख़्तेयार करते हैं और न ज़िन्दगी पर और न मरने के बाद जी उठने पर और जो लोग काफिर हो गये-बोल उठे कि ये (कुरआन) तो निरा झूठ है जिसे उस शख़्स (रसूल) ने अपने जी से गढ़ लिया और कुछ और लोगों ने उस अफ़तरा परवाजड़ी में उस की मदद भी की है तो यक़ीनन खुद उन ही लोगों ने जुल्म व फ़रेब किया है और (ये भी) काह कि (यह तो) अगले लोगों के ढकोसले हैं जिसे उसने किसी से लिखवाया है पस वही सुबह व शाम उस के सामने पढ़ा जाता है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि उस को उसने नाज़िल किया जो सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों को खूब जानता है बेशक वह बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है और उन लोगों ने (यह भी) कहा कि ये कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों(1) मे चलता फिरता है- उसके पास कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं नाज़िल हुआ ताकि वह भी उसके साथ (ख़ुदा का अज़ाब से) डराने वाला होता (कम से कम) उस के पास ख़ज़ानाही (आसमान से) गिरा दिया जाता (और नहीं तो) उस के पास कोई बाग़ ही होता कि उससे खाता (पीता) और ये ज़ालिम (कुफ़्फ़ार मोमिनों से) कहते हैं कि तुम लोग तो बस ऐसे आदमी की पैरवी करते हो जिस पर जादू कर दिया गया है
(ऐ रसूल) ज़रा देखों तो कि उन लोगों ने तुम्हारे वास्ते कैसी-कैसी फब्तियां गढ़ी हैं और गुमराह हो गए तो अब ये लोग किसी तरह राह पर आ ही नहीं सकते ख़ुदा तो ऐसा बा बरकत है कि अगर चाहे(1) तो (एक बाग़ क्या चीज़ है) उस से बेहतर बहुतेरे ऐसे बाग़ात तुम्हारे वास्ते पैदा कर ले जिनके नीचे नहरे जारी हो और (बाग़ात के अलावा उन में) तुम्हारे वास्ते महल बना दे (ये सब कुछ नहीं) बल्कि (सच यूं है कि) उन लोगों ने क़यामत ही को झूठ समझा है और जिस शख़्स ने क़यामत को झूठ समझा उस के लिए हमने जहन्नुम को (दहका के) तैयार कर रखा है कि जब जहन्नुम उन लोगों को दूर से देखेगी तो (जोश खाएगी और) ये लोग उस के जोश व ख़रोश की आवाज़ सुनेंगे और जब ये लोग ज़न्ज़ीरों से जकड़ कर उस की किसी तंग जगह में झोंक दिए जाएंगे तो उस वक़्त मौत को पुकारोगे (उस वक़्त उन से कहा जाएगा कि) आज एक मौत को न पुकारो बल्कि बौहतेरी मौतों को पुकारो (मगर उस से कुछ होने वाला नहीं)
(ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि जहन्नुम बेहतर है या हमेशा रहने का बाग़ (बेहिश्त) जिस का परहेज़गारों से वादा किया गया है कि वह उन (के आमाल) का सिला होगा और आख़िरी ठिकाना जिस चीज़ की ख़्वाहिश करेंगे उन के लिए वहां मौजूद होगी (और) वह हमेशा (उसी हाल में) रहेंगे ये तुम्हारे परवरदिगार पर (एक लाज़मी और) मांगा हुआ वादा है और जिस दिन ख़ुदा उन लोगों को और जिस की ये लोग खु़दा को छोड़ कर इबादत करते हैं (उस को) जमा करेगा और पूछेगा क्या तुम ही ने हमारे उन बन्दों को गुमराह कर दिया था या ये लोग ख़ुदा राहे रास्त से भटक गए थे (उन के माबूद) अर्ज़ करेंगे-सुब्हान अल्लाह (हम तो ख़ुद तेरे बन्दे थे) हमें ये किसी तरह ज़ेबा न था कि हम तुझे छोड़ कर दूसरे को अपना सरपरस्त बनाते (फिर अपने को क्योंकर माबूद बनाते) मगर बात तो ये है कि तू ही ने उन को और उन के बाप दादाओं को चैन दिया यहां तक कि उन लोगों ने (तेरी) याद भुला दी और ये ख़ुद हलाक होने वाले लोग थे तब (काफ़िरों से कहा जाएगा कि) तुम जो कुछ कह रहे हो उस में तो तुम्हारे माबूदों ने तुम्हें झुठला दिया तो अब तुम न (हमारे अज़ाब के) टाल देने की सकत रखते हो न किसी से मदद ले सकते हो और (याद रखो) तुम में से जो ज़ुल्म करेगा हम उसको ब़ड़े (सख़्त) अज़ाब (का मज़ा) चखाएंगे
और (ऐ रसूल) हमने तुम से पहले जितने पैग़म्बर भेजे हैं वह सब चलते फिरते थे और हम ने तुम में से एक को एक का ज़रिये आज़माइश(1) बना दिया- (मुसलमानों) क्या तुम अब भी सब्र करते हो (या नहीं) और तुम्हारा परवरदिगार (सब की) देखभाल कर रहा है।
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