और (ऐ रसूल सच तो यूं है के) हम अगर उनके पास फ़रिश्ते भी नाज़िल करते और उनसे मुर्दे भी बातें करने लगते और तमाम (मख़्फ़ी) चीज़ें (जैसे जन्नत व नार वग़ैरह) अगर वह गिरोह उन के सामने ला कर खड़ा करते तो भी ये ईमान लाने वाले न थे मगर जब अल्लाह चाहे लेकिन उनमें के अक्सर नहीं जानते के और (ऐ रसूल जिस तरह ये कुफ़्फ़ार तुम्हारे दुश्मन हैं) उसी तरह (गोया) हम ने (ख़ुद आज़माईश के लिए) शरीर आदमियों और जिनों को हर नबी का दुश्मन बनाया वह लोग एक दूसरे को फ़रेब देने की ग़रज़ से चिकनी चुपड़ी बातों की सरग़ोशी करते हैं और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो ये लोग ऐसी हरकत न कर पाते तो उन को और उनकी अफ़तरा परवाज़ियों को छोड़ दो और (ये सरगोशियां इस लिए थी) ताकि जो लोग आख़रत पर ईमान न लाए उन के दिल उन (की शरारत) की तरफ़ माएल हो जाए और उनहें पसन्द करे और ताकि जो अफ़्तरा परवाज़िया ये लोग ख़ुद करते हैं वह भी करने लगें।
(क्या तुम ये चाहते हो के) मैं ख़ुदा को छ़ोड़ कर किसी और को सालिस तलाश करूं हालाँकि वह वही ख़ुदा है जिस ने तुम्हारे पास वाज़े किताब नाज़िल की और जिन लोगों को हम ने किताब अता फ़रमाई है वह यक़ीनी तौर पर जानते हैं के ये (कुरआन भी) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से बरहक़ नाज़िल किया गया है तो तुम (कहीं) शक करने वाले से न हो जाना और सच्चाई और इंसाफ़ में तो तुम्हारे परवरदिगार की बात पूरी हो गई कोई उसकी बातों का बदलने वाला नहीं और वही बड़ी सुनने वाला वाक़िफ़कार है।
और (ऐ रसूल) दुनियां में तो बहुत से लोग ऐसे हैं कि तुम उनके कहने पर चलो तो तुम को ख़ुदा की राह से बहका दें ये लोग ते सिर्फ़ अपने ख़यालात की पैरवी करते हैं और ये लोग तो बस अटकल पच्छू बातें करते हैं (तो तुम क्या जानों) जो लोग उसकी राह से बहके हुए हैं उन को (कुछ) ख़ुदा ही खूब जानता है और वह दो हिदायत याफ़्ता लोगों से भी खूब वाक़िफ़ है तो अगर तुम उसकी आयतों पर ईमान रखते हो तो जिस चीज़ें पर (वक़्ते ज़िबह) ख़ुदा का नाम लिया गया हो उसी (1) को खाओ और तुम्हें क्या हो गया है के जिस पर ख़ुदा का नाम लिया गया हो उस में से नहीं खाते हो हालाँकि जो चीज़ें उस ने तुम पर हराम कर दी हैं वह तुमसे तफ़्सीलन बयान कर दी हैं मगर (हाँ) जब तुम मजूबर हो तो अल्बत्ता (हराम भी खा सकते हो) और बहुतेरे तो (ख़्वाह मख़्वाह) अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशों से बे समझे बूझे (लोगों को) बहका देते हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हक़ से तवावुस करने वालों से खूब वाक़िफ़ है।
(ऐ लोगों) ज़ाहिरी और बातिनी गुनाह (दोनों) को (बिल्कुल) छोड़ दो जो लोग गुनाह करते हैं उन्हें अपने आमाल का अन क़रीब ही बदला दिया जाएगा और जिस (ज़बीहा) पर ख़ुदा का नाम न लिया गया उसमें से मत खाओ (क्योंकि) ये बेशक बदचलनी है और शयातीन तो अपने हवा ख़्वाहों के दिल में वसवसा डाला ही करते हैं ताकि वह तुम से (बेकार बेकार) झगड़े किया करें और अगर (कहीं) तुम ने उनका कहना मान लिया तो (समझ रखों के) बेशुब्हा तुम भी मुश्रिक हो क्या जो (1) शख़्स (पहले) मुर्दा था फिर हमने उसको ज़िन्दा किया और उसके लिए एक नूर बनाया जिसके ज़रिए से वह लोगों में (बेतकल्लुफ़) चलता फिरता है उसके उस शख़्स का सामना हो सकता है जिसकी ये हालत है के (हर तरफ़ से) अंधेरों में फंसा हुआ है के वहां से किसी तरह निकल नहीं सकता (जिस तरह मोमिनों के वास्ते ईमान आरास्ता किया गया) उसी तरह काफ़िरों के वास्ते उन के आमाल (बद) आरास्ता कर दिए गए हैं (के भला ही भला न ज़र आता है और जिस तरह मक्के में है) उसी तरह हम ने हर बस्ती में उसके कुसूरवारों को सरदार बनाया ताकि उनमें मक्कारी किया करें।
और वह लोग जो कुछ भी मक्कारी करते हैं अपने ही हक़ में (बुरा) करते हैं और समझते (तक) नहीं और जब उनके पास कोई निशानी (नबी की तस्दीक़ के लिए) आती है तो कहते हैं जब तक हम को खुद वैसी चीज़ (वही वग़ैरह) न दी जाएगी जो पैग़म्बरान ख़ुदा को दी गई है उस वक़्त तक तो हम ईमान न लाएंगे और खुदा जहां (जिस दिल में) अपनी पैग़म्बरी क़रार देता है उसकी (क़ाबलियत व सलाहियत) को ख़ूब जानता है जो लोग (उस जुर्म के) मुजरिम हैं उनको अनक़रीब उनकी मक़्कारी की सज़ा में ख़ुदा के यहां बड़ी ज़िल्लत और सख़्त अज़ाब होगा तो ख़ुदा जिस शख़्स को राहे रास्त दिखाना चाहता है उस के सीने को इस्लाम (की वर्दीअत) के वास्ते (साफ और) कुशादाह कर देता है और जिस को गुमराही की हालत में छोड़ना चाहता है उस के सीने को तंग दुशवार गुज़ार(1) कर देता है गोया (क़बूल ईमान) उस के लिए आसमान पर चढ़ना है जो लोग ईमान नहीं लाते खुदा उन बुराई को उसी तरह मोसल्लत कर देता है।
और (ऐ रसूल) ये (इस्लाम) तुम्हारे परवरदिगार का (बनाया हुआ) सीधा रास्ता है- इबरत हासिल करने वालों के वास्ते हम ने अपने आयात तफ़सीलन बयान कर दिये हैं-उन के वास्ते उन के परवरदिगार के यहां अमन व चैन का घर (बेहिश्त) है और दुनिया में जो कार गुज़ारियां उन्हीं ने की थी उस के एवज़ खुदा उन का सपरस्त होगा और (ऐ रसूल वह दिन याद दिलाओ) जिस दिन खुदा सब लोगों को जमा करेगा (और शयातीन से फ़रमाएगा) ऐ गिरोह जिन्नात तुम ने तो बहुतसे आदमियों को (बहका बहका कर) अपनी जमाअत बड़ी कर ली और आदमियों से जो लोग (उन शयातीन के दुनिया में) दोस्त ते कहेंगे ऐ हमारे पालने वाले (दुनिया में) हम ने एक दूसरे से फ़ाएदा हासिल किया और अपने किये की सज़ा पाने को जो वक़्त तूने हमारे लिए मुअयन किया था अब हम अपने उस वक़्त (क़यामत) में पहुंच गये खुदा (उसके जवाब में) फ़रमाएगा तुम सब का ठिकाना जहन्नुम है और उस में हमेशा रहोगे मगर जिसे ख़ुदा (1) चाहे (निजात दे) बेशख तेरा परवरदिगार हिकमत वाला वाक़िफ़कार है।
और उसी तरह हम बाज़ ज़ालिमों को बाज़ का उन के करतूतों की बदौलत सर परस्त बनाएंगे (फ़िर हम पूछेंगे के क्यों) ऐ गिरोह ज़िन व इन्स क्या तुम्हारे पास तुम ही में के पैग़म्बर नहीं आए जो तुम से हमारी आयतें बयान करें और तुम्हें तुम्हारे उस रोज़े (क़यामत) के पेश आने से डराए वह सब अर्ज़ करेंगे (बेशक आए थे) हम ख़ुदा अपने ऊपर आप उपने (ख़िलाफ़) गवाही देते हैं (वाक़ई) उनको दुनिया की (चंद रोज़ा) ज़िन्दगी ने उन्हें धोके में डाल रखा और उन लोगों ने अपने ख़िलाफ़ आप गवाही दी के बेशक ये सब के सब काफ़िर थे और ये (पैग़म्बरों का भेजना सिर्फ़) उस वजह से है कि तुम्हारा परवरदिगार कभी बस्तियों को जुल्म ज़बरदस्ती से वहा के बाशिंदों के ग़फ़लत कि हालत में हलाक नहीं किया करता और जिस ने जैसा (भला या बुरा) किया है उसी के मुवाफ़िक़ हर एक के दरजात हैं और जो कुछ वह लोग करते हैं तुम्हारा परवरदिगार उससे बेख़बर नहीं और तुम्हारा परवरदिगार बेपरवाह रहम वाला है- अगर चाहें तो सब के सब को (दुनिया से उड़ा) ले जाए और तुम्हारे बाद जिसको चाहे तुम्हारा जानशीन बनाए जिस तरह आख़िर तुम्हें दूसरे लोगों की औलाद से पैदा किया।
बेशक जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जाता है वह ज़रुर (एक न एक दिन) आने वाली है और तुम उसके लाने में (खुदा को) आजिज़ नहीं कर सकते
(ऐ रसूल तुम उनसे) कहो के ऐ मेरी क़ौम तुम बजाए खुद जो चाहो करो मैं (भी बजाए खुद) अमल कर रहा हूं फिर अनक़रीब तुम्हे मालूम हो जाएगा के दारे आख़ेरत (बेहिश्त) किस के लिए है (तुम्हारे लिए या हमारे लिए) ज़ालिम लोग तो हरगिज़ कामयाब न होंगे और ये लोग ख़ुदा की पैदा की हुई खेती और चौपायों में से हिस्सा क़रार देते हैं और अपने ख़याल के मुवाफ़िक़ कहते हैं कि ये तो ख़ुदा का (हिस्सा) है और ये हमारे शरीकों के (यानी जिनको हमने ख़ुदा का शरीक बनाया) फ़िर जो खास उनके शरीकों का है वह तो ख़ुदा तक नहीं पहुंचने का और जो हिस्सा ख़ुदा का (1) है उसके शरीकों तक पहुंच जाएगा ये क्या ही बुरा हुक्म लगाते हैं।
और उसी तरह बहुत से मुशरेकीन को उन के शरीकों ने अपने बच्चों को मार डालने (2) को अच्छा करना दिखाया है ताकि उन्हें (अब्दी) हलाकत में डाल दें और उनके सच्चे दीन को उन पर ख़लत मल्त कर दें और अगर ख़ुदा चाहता तो ये लोग ऐसा काम न करते तो तुम (ऐ रसूल) और उनकी अफ़तापरवाज़ियों को (खुदा पर) छोड़ दो और ये लोग अपने ख़याल के मुवाफ़िक़ कहने लगे के ये चौपाए और ये खेती अछूती हैं उनके सिवा उस के जिसे हम चाहे कोई नहीं खा सकता और (उनका ये भी ख़याल है) के कुछ चोपाए ऐसे हैं जिन की पीठ पर सवारी या लादना हराम किया गया है और कुछ चार पाए ऐसे हैं जिन पर (वक़्ते ज़िबह) ख़ुदा का नाम तक नहीं लेते (और फ़िर ये ढकोसले ख़ुदा की तरफ़ मंसूब करते हैं) ये सब ख़ुदा पर इफ़़तेरा (झूठ) बोहतान (1) है खुदा उनके इफ़तरा-परवाज़ियों की बहुत जल्द सज़ा देगा।
और कुफ़्फ़ार ये भी कहते हैं के जो बच्चा (वक़्ते ज़िबह) उन जानवरों के पेट में (3) है (जिन्हें हम ने बुतों के नाम पर छोड़ा और ज़िन्दा पैदा होता तो) सिर्फ़ हमारे मरदों के लिए हलाल है और हमारी औरतों पर हराम है और अगर वह मरा हुआ हो तो सब के सब उस में शरीक हैं ख़ुदा अनक़रीब उनकी बात बनाने की सज़ा देगा बेशक वह हिकमत वाला बड़ा वाक़िफ़़दार है।
बेशक जिन लोगों ने अपनी औलाद को बे समझे बूझे बेवकूफ़ी से मार डाला और जो रोज़ी ख़ुदा ने उन्हें दी थी उसे ख़ुदा पर इफ़्तेरा (बोहतान) बांध बांध कर अपने ऊपर हराम कर डाला और वह सख़्त घाटे में है ये यक़ीनन राह से भटक गए और ये हिदायत पाने वाले थे भी नहीं और वह तो वही ख़ुदा है जिसने बहुतेसे बाग़ पेदा किए जिनमें मुख़्तलिफ़ अक़साम के दरख़्त हैं-कुछ तो अंगूर की तरह टटियोंपर चढ़ाए हुऐ और (कुछ) बे चढ़ाए हुए और खजूर के दरख़्त और खेती जिसके फल मुख़्तलिफ़ क़िस्मों के हैं और ज़ैतूनी और अनार बाज़ तो सूरत और रंग में मज़े में मिलते जुलते और (बाज़) बेमेल (लोगों) जब ये चीज़ें फ़लें तो उनका फ़ल खाओ और उन चीज़ों के काटने के दिन खुदा का हक़(3) ज़कात दे दो और ख़बरदार फ़जूल खर्ची(4) न करो- क्योंकि वह (खुदा) फ़जूल खर्चों से हरगिज़ उलफ़त नहीं रखता
और चारपायेों में से कुछ तो बोझ उठाने वालों (बड़े बड़े) और कुछ ज़मीन से लगे हुए (छोटे छोटे) पैदा किए खुदा ने जो तुम्हें रोज़ी दे दी है उस में से खाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो (क्योंकि) वह तो यक़ीनन तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है (खुदा ने नर व मादा मिला कर) आठ (क़िस्म के) जोड़ें(1) पैदा किए हैं- भेड़ से (नर व मादा) दो बकरी नसे (नर व मादाह) दो (ऐ रसूल उन काफ़िरों से0 पूछो (2) तो के ख़ुदा ने (उन दोनों भेड़ बकरी के) दोनों नरों को हराम कर दिया है या दोनों मादाहो को या उस बच्चे को जो उन दोनों के पेट के अंदर लिए हुए हैं अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा समझ के मुझे बताओ और ऊंट के (नर व मादाह) दो और गाए के (नर व मादाह) दो।
(ऐ रसूल तुम उन से ) पूछों के खुदा ने उन दोनों (ऊंट, गाए के) नरों को हराम किया है या दोनों मादाहो को या उस बच्चे को जो दोनों मादाहो के पेट के अंदर लिए हुए है क्या जिस वक़्त खुदा ने तुम को उसका हुक्म दिया था तुम उस वक़्त मौजूद थे फिर जो खु़दा पर झूठ बोहतान बाँधे उससे ज़्यादा ज़ालिम कौन होगा- ताकि लोगों को बेसमझे बूझे गुमराह करे- ख़ुदा हरगिज़ ज़ालिम क़ौम को मंज़िले मख़्सूद तक नहीं पहुँचाता जो (कुरआन) मेरे पास वही के तौर पर आया है उस में कोई चीज़ किसी खाने वाले पर जो उसके खाए हराम नहीं पाता मगर जबकि (1) वह मुरदों या बहता हुआ खून या सुवर का गोश्त हो तो बेशक ये (चीज़ें) नापाक और हराम हैं या (वह जानवर न फ़रमानी का बाएस) हो के (वक़्ते ज़िबाह) ख़ुदा के सिवा किसा और का नाम लिया गया हो फिर जो शख़्स (हर तरह बेबस हो जाए और) नाफ़रमान व सरकश न हों और उस हालत में खांए तो अलबत्ता तुम्हारा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है और हम ने यहूदियों पर तमाम नाख़ूनदार(2) जानवर हराम कर दिए थे और गाय और बकरी दोनों की चर्बीया भी उन पर हराम कर दीं थी मगर जो चर्बी उनकी दोनों पीठ या आंतों पर लगी हो या हड्डी से मिली हुई हो (वह हलाल थी) ये हमने उन्हें की सरकशी की सज़ा दी थी और उस में तो शक ही नहीं कि हम ज़रुर सच्चे हैं।
(ऐ रसूल) पस अगर वह तुम्हे झुटलाएं तो तुम (जवाब में) कहो के (अगर चे) तुम्हारा परवरदिगार बड़ी वसी रहमत वाला है मगर उसका अज़ाब गुनाहगार लोगों से टलता भी नहीं-अनक़रीब मुशरेकीन कहेंगे कि अगर खुदा चाहता तो न हम लोग शिर्क करते और न हमारे बाप दादा और न हम कोई चीज़ (अपने और) हराम करते उसी तरह (बातें बना बना के) जो लोग उन से पहले हो गुज़रें हैं (पैग़म्बरों को) झुटलाते रहे-यहां तक के उन लोगों ने हमारे अज़ाब (के मज़े) को चखा
(ऐ रसूल) तुम कहो के कि क्या तुम्हारे पास कोई दलील है (अगर है) तो हमारे (दिखाने के) वास्ते निकालो (दलील तो क्या पेश करोगे) तुम लोग तो सिर्फ अपने ख़याल ख़ाम की पैरवी करते हो और सिर्फ़ अटकल पच्चू बातें करते हो (ऐ रसूल) तुम कहो कि (अब तुम्हारे पास कोई दलील नहीं) ख़ुदा तक पहुंचाने वाली दलील खुदा ही के लिए खास है फ़िर अगर वही चाहता (2) तो तुम सबकी हिदायत करता (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अच्छा) अपने गवाहों को लाकर हाज़िर करो जो ये गवाही दैं कि ये चीज़ें (जिन्हें तुम् हराम बताते हो) ख़ुदा ही ने हराम कर दी हैं फिर अगर (बिलग़रज़) वह गवाही दे भी दें तो (ऐ रसूल) कहीं तुम उनके साथ गवाही न देना और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुटलाया और आख़रत पर ईमान नहीं लाये और दूसरों को अपने परवरदिगार का हम सर बनाते है उन की नफ़सानी ख़वाहिशों पर न चलना।
(ऐ रसूल) तुम उन से कहो के (ले बस) आओ जो चीज़े ख़ुदा ने तुम पर हराम की हैं वह मैं तुम्हें पढ़ कर सुनाऊ (वह) ये के किसी चीज़ को खुदा का शरीक न बनाओ और मां बाप के साथ नेक सलूक करो और मुफ़लिसी के खौफ़ से अपनी औलाद को मार न डालना (क्योंकि) उन को और (ख़्वाह) तुम को रिज़्क़ देने वाले तो हम हैं और बदकारियां के क़रीब भी न जाओ ख़्वाह वह ज़ाहिर हों(2) या पोशिदाह और किसी जान वाले को जिस के क़त्ल को खुदा ने हराम किया है न मार डालना मगर (किसी) हक़ के ऐवज में ये वह बातें हैं जिनका खुदा ने तुम्हें हुक्म दिया है ताकि तुम लोग समझो और यतीम के माल के क़रीब भी न जाओ लेकिन उस तरीक़े पर के (उस के हक़ में) बेहतर हो यहां तक कि वह अपनी जवान की हद को पहुँच जाए और इंसाफ के साथ नाप(1) पूरी किया करो हम किसी शख़्स को उस की ताक़त से बढ़ कर तकलीफ़ नहीं देते और (चाहे कुछ हो मगर) तुम्हारा अज़ीज़ ही (क्यों न) हो।
और ख़ुदा के अहदो पैमान को पूरा करो ये वह बातें हैं जिन का ख़ुदा ने तुम्हें हुक्म दिया है कि तुम इबरत हासिल करो और ये भी (समझ लो) के यही मेरा सीधा (1) रास्ता है तो उसी पर चले जाओ और दूसरे रास्तो पर न चलो के वह तुम को खुदा के रास्ते से (भटका कर) तितर बितर कर देंगे ये वह बाते हें जिनका खुदा ने तुम्हें हुक्म दिया है ताकि तुम परहेज़गार बनों फिर हमने जो नेकी करे उस पर अपनी नेअमत पूरी करने के वास्ते मूसा को किताब (तौरेत) अता फरमाई और उस में हर चीज़ की तफ़सील (बयान कर दी) थी और (लोगों के लिए अज़सर तापा) हिदायत व रहमत है ताकि वह लोग अपने परवरदिगार के सामने हाजि़र होने का यक़ीन करे
और ये किताब (कुरआन) जिस को हमने अन नाजि़ल किया है- बरकत वाली (किताब) है तो तुम लोग उसी की पैरवी करो (और खुदा) से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाय (और ऐ मुश्रकीन। ये किताब हम ने इस लिए नाज़िल की के तुम कहीं) ये कह बैठो कि हमसे पहले किताब खुदा तो बस सिर्फ़ दो गिरोहों (यहूद व नसारे) पर नाज़िल हुई थी अगर चे हम तो उनके पढ़ने (पढ़ाने) से बेख़बर थे या ये कहने लगों के अगर हम पर किताब (खुदा नाज़िल होती तो हम उन लोगों से कहीं बढ़ कर राहे रास्ते पर होते (देखो) अब तो यक़ीनन तुम्हारे परवदिग़ार की तरफ़ से तुम्हारे पास एक रौशन दलील (किताब खुदा) और हिदायत और रहमत आ चुकी तो जो शख़्स खुदा के आयात को झुटलाए और उससे मुंह फेरे उससे बढ़ कर ज़ालिम कौन हो जो लोग हमारी आयतों से मुंह फेरते हैं हम उनके मुंह फेरने के बदले में अनक़रीब ही बुरे अज़ाब की सज़ा देंगे।
(ऐ रसूल) क्या ये लोग सिर्फ उसके मुन्तज़िर हैं के उनके पास फ़रिश्ते आए या तुम्हारा परवरिदगार खुद (तुम्हारे पास) आए या तुम्हारे परवरदिगार की कुछ निशानियां आ जाएं (आख़िर क्योंकर समझाया जाए) हालाँकि जिस दिन तुम्हारे परवरदिगार की बाज़ निशानियां आ जाएंगी तो जो शख़्स पहले से ईमान नहीं लाया होगा या अपने मोमिन होने की हालत में कोई नेक काम नहीं किया होगा तो अब उस का ईमान लाना उस को कुछ भी मुफ़ीद न होगा- ऐ रसूल तुम (उन से) कह दो कि (अच्छा यही सही) तुम (भी) इन्तेज़ार करो हम भी यक़ीनन इन्तेज़ार करते हैं बेशक जिन लोगों ने अपने दीन में तफ़रक़ा डाला और कई फ़रीक़ (1) बन गए- तुम्हें उन से कुछ सरोकार नहीं उन का मामला तो सिर्फ़ खुदा के हवाले है फि़र जो कुछ वह (दुनियां में नेक या बद) किया करते थे वह उन्हें बता देगा (उस की रहमत तो देखो) जो शख़्स (2) नेकी करेगा तो उस को दस गुना सवाब अता होगा और जो शख़्स बदी करेगा तो उस की सज़ा उसको बस ऐसी ही दी जाएगी और वह लोग (किसी तरह) सताएं न जाएंगे।
(ऐ रसूल) तुम उन से कहो के मुझे तो मेरे परवरदिगार ने सीधी राह यानी एक मज़बूत दीन इब्राहीम के मज़हब की हिदायत फ़रमाई है जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरकीन से न थे (ऐ रसूल तुम उन लोगों) से कह दो के मेरी नमाज़ मेरी इबादत, मेरा जीना, मेरा मरना सब खुदा ही के वास्ते है जो सारे जहां का परवरदिगार है और उस का कोई शरीक नहीं और मुझे उसी का हुक्म दिया गया है और मैं सब से पहले इस्लाम लाने वाला हूं।
(ऐ रसूल) तुम पूछो तो के क्या मैं खुदा के सिवा किसी और को परवरदिगार तलाश करूं हालाँकि वह तमाम चीज़ों का मालिक है और जो शख़्स कोई बुरा काम करता है उसका (वहां) उसी पर है और कोई शख़्स किसी दूसरे के गुनाह का बोझ नहीं उठाने का फिर तुम सब को अपने परवरदिगार के हुजूर में लौट कर जाना है तब तुम लोग जिन बातों में बाहम झगड़ते थे वह (सब) तुम्हें बता देगा और वही तो वह (ख़ुदा) है जिस ने तुम्हे ज़मीन में (अपना) नाएब बनाया और तुम में से बाज़ के बाज़ पर दर्जे बुलन्द किए ताकि जो (नेअमत) तुम्हें दी है उसी पर तुम्हारा इम्तेहान करे इस में तो शक ही नहीं के तुम्हारा परवरदिगार बहुत जल्द अज़ाब करने वाला है और इस में भी शक नहीं के वह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
सूरे: अराफ़
सूरे: अराफ़(1) मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 206 आयतें हैं।
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
अलिफ़-लाम-मीम-स़ाद (ऐ रसूल) ये किताब खुदा (कुरआन) तुम पर इस गरज़ से नाज़िल की गयी ह ताकि तुम उसके ज़रिये से लोगों को अज़ाबे ख़ुदा से डराओ और ईमानदारों के लिए नसीहत को बाइस पाओ पस तुम्हारे दिल में उसकी वजह से कोई न तंगी पैदा हो (लोगों) जो तुम्हारे परवरिदगार की तरफ से तुम पर नाज़िल किया गया है उसकी पैरवी करो और उसके सिवा दूसरे (फ़र्जी) बुतों (माअबूदों) की पैरवी न करो तुम लोग तो बहुत ही कम नसीहत कबूल करते हो
और क्या तुम्हें ख़बर नहीं के ऐसी बहुतसी बसतियां है जिन्हें हमने हलाक डाला तो हमारा अज़ाब (ऐसे वक़्त) आप पहुंचा के वह लोग या तो रात नींद सो रहे थे या दिन को क़ैलूला (लोपोट) कर रहे थे तब जब हमारा अज़ाब उन पर आ पड़े तो उनसे सिवाए उसके और कुछ कहते न बन पड़ा के हम बेशक ज़ालिम थे फ़िर हम तो ज़रुर उन लगों से जिनकी तरफ पैग़म्बर भेजे गये थे (हर चीज़ का) सवाल करेंगे और खुद पैग़म्बरों से भी ज़रुर पूछेंगे फ़िर हम उनसे हक़ीक़त हाल खूब ससझ बूझ के )ज़रा ज़रा) दोहरायेंगें और हम (कुछ) ग़ाएब तो थे नहीं और उस दिन (आमाल का) तोला जाना(1) बिल्कुल ठीक है फ़िर तो जिनके (नेक आमाल के) पल्ले भारी होगे तो वही लोग ख़ाएजुल मराम होंगे और जिनके नेक (आमाल के) पल्ले हल्के होंगे तो उन्हीं लोगों ने हमारी आयात से नाफ़रमानी करने की वजह से यक़ीनन अपना आप नुक़सान किया और (ऐ नबी आदम) हमने तो यक़ीनन तुमको ज़मीन में कुदरत व इक़तेदार दिया और उसमें तुम्हारे लिये असबाबे ज़िन्दगी मुहय्या किये (मगर) तुम बहुत ही कम शुक्र करते हो।
हालाँकि इसमे तो शक ही नहीं के हम ने (तुम्हारे बाप आदम) को पैदा किया फ़िर तुम्हारी सूरतें बनाई फि़र हमने फ़रिश्तों से कहा के तुम सब के सब आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक पड़े मगर शैतान के वह सज्दा करने वालों में (शामिल) न हुआ खुदा ने (शैतान से) फ़रमाया जब मैंने तुझे हुक्म दिया के तो फ़िर तुझे सज्दा करने से किसने रोका कहने लगा मैं उससे अफ़ज़ल हूं (क्योंकि) तू ने मुझे आग (ऐसे लतीफ़ उनसुर) से पैदा किया और उसको मिट्टी (ऐसी कसीफ़ उनसूर) से पैदा किया (1) खुदा ने फ़रमाया (तुझ को ये गुरुर है) तो बेहिश्त से नीचे उतर जा क्योंकि तेरी ये मजाल नहीं कि तू यहां रह कर गुरुर करे तू यहां से (बाहर) निकल बेशक तू ज़लील लोगों में से है कहने लगा तो (खैर) हमें उस दिन तक की (मौत से) मोहलत दे जिस दिन सारी खुदाई के लोग (दोबारा जला कर) उठा खड़ा किये जाएंगे फ़रमाया (अच्छा मंजूर) तुझे ज़रुर मोहलत दी गयी कहने लगा चूंकी तूने मेरी राह मारी तो मैं भी तेरी राह पर नबी आदम को (गुमराह करने के लिए) साथ में बैठू तो सही फ़िर उन लोगो से (2) और उनके (ग़रज़ हर तरफ से) उन पर आ पड़ूंगा और (उन को बहकाउंगा) और तू उनमें से बहुतेरों को शुक्रगुज़ार नहीं पाएगा-खुदा ने फ़रमाया यहां से बुरे हाल में रान्दाह होकर निकल (दूर) जा उन लोगों में जो तेरा कहना मानेगे तो मैं यक़ीनन तुम (और उन) सबसे जहन्नुम को भर दूंगा
और (आदम से कहा) ऐ आदम तुम और तुम्हारी बीवी (दोनों) बहिश्त में रहा सहा करो और जहां से चाहों खाओ (पीऔ) मगर ख़बरदार उस दरख़्त के क़रीब न जाना वरना तुम अपने आप नुक़सान(6) करोगे फिर शैतान ने उन दोनों को वसवसा दिलाया ताकी (नाफ़रमानी की वजह से) उनके(1) सतर की चीज़ें जो उन (की नज़र से बहेश्ती लिबास की वजह) से पोशीदा थी खोल डाले कहने लगा के तुम्हारे परवरदिगार ने तुम दोनों को दरख़्त (के फ़ल खाने) से सिर्फ़ इसलिए मना किया है (मुवादा) तुम दोनों फरिश्ते बन जाओ या हमेशा (ज़िन्दा) रह जाओ और उन दोनों के सामने क़समें खाई के मैं यक़ीनन तुम्हारा ख़ैरख़्वाह हूं गरज़ धोके से (2) उन दोनों को उस (के खाने) की तरफ़ माएल किया गरज़ ज्यों ही उन दोनों ने उस दरख़्त (के फ़ल) को चखा कि (बहिश्ती लिबास गिर गाया और समझ पैदा हुई और) उन पर उनकी शर्मगाहें ज़ाहिर हो गयी और बहिश्त के पत्ते (तोड़ जोड़ कर) अपने ऊपर ढ़ाकने लगे तब उनके परवरदिगार ने उनको आवाज़ दी कि क्यों मैंने तुम दोनों को उस दरख़्त के पास (जाने) से मना नहीं किया था और (क्या) यह न जता दिया था कि शैतान तुम्हारा यक़ीनी खुला हुआ-दुश्मन है ये दोनों अर्ज़ करने लगे ऐ हमारे पालने वाले हमने अपना आप नुक़सान किया और अगर तू हमें माफ़ न फ़रमाएगा और हम पर रहम न करेगा तो हम बिल्कुल घाटे ही घाटे में रहेंगे हुक्म हुआ तुम (मियां बीबी शैतान) सब के सब बहिश्त से नीचे उतरो तुम में से एक का एक दुश्मन है और (एक ख़ास) वक़्त तक तुम्हारा ज़मीन में ठहराओ (ठिकाना) और ज़िन्दग़ी का सामान है खुदा ने (ये भी) फ़रमाया के तुम ज़मीन ही मैं ज़िन्दगी बसर करोगे और उसमें मरोगे और उसी में से (फ़िर दोबारा) तुम ज़िन्दा करके निकाले जाओगे ऐ आदम की औलाद हम ने तुम्हारे लिए पौशाक नाज़िल की तो जो तुम्हारे सतर को छिपाती हैं और ज़ीनत के लिए कपड़ें और उसके अलावा परहेज़गारी के लिबास(1) (है) और ये सब-(लिबास) से बेहतर है ये (लिबास) भी खुदा (की) कुदरत की निशानियों में से है ताकि लोग नसीहत व इबरत हासिल करें-ऐ औलादे अदाम (होशयार रहो) कहीं तुम्हे शैतान बहका न दे जिस तरह उसने तुम्हारे बाप मां (आदम व हव्वा) को बहिश्त से निकलवा छोड़ा उसी ने उन दोनों से (बहिश्ती) पोशाक उतरवाई ताकि उन दोनों को उन की शर्मगाहे दिखा दें वह और उसका कुन्बा ज़रुर ज़रुर तुम्हें इस तरह देखता रहता है कि तू उन्हें नहीं देखने पाते हमने शेतानों को उन्हीं लोगों का रफीक़ क़रार दिया है
जो ईमान नहीं रखते और वह लोग जब कोई बुरा(2) काम करते हैं कि हमने उसी तरीक़े पर अपने बाप दादाओं को पाया और ख़ुदा ने (भी) यही हुक्म दिया है (ऐ रसूल) तुम (साफ़) कह दो के ख़ुदा हरगिज़ बुरे काम का हुक्म नहीं देता क्या तुम लोग ख़ुदा पर (इफ़्तेरा) करके वह बातें कहते हो जो तुम नहीं जानते (ऐ रसूल) तुम कह दो के मेरे परवरदिगार ने तो इंसाफ़ का हुक्म दिया है और (ये भी फ़रमाया है के) हर नमाज़ के वक़्त अपने अपने मुंह (क़िबला की तरफ़) सीधे कर लिया करो और उसके लिए निरी खरी इबादत करके उससे दुआ माँगों जिस तरह उसने तुम्हें शु्र (शु्रू) पैदा किया था उसी तरह फ़िर (दोबारा) ज़िन्दा किये जाओगे उसी ने एक फ़रीक़ की हिदायत की और एक गिरोह (के सर) पर गुमरानी सवार हो गयी, उन लोगों ने खु़द को छोड़ कर शैतानों को अपने सरपरस्त बना लिया और बावजूद उसके गुमान करते हैं के वह राहे रास्त पर हैं ऐ औलादे आदम हर नमाज़ के वक़्त (1) बन सवर कर निख़र जाया करो और खाओ और पियो और फूजूल खर्ची न करो (क्यों के) खुदा फुजुल खर्च करने वालों को दोस्त नहीं रखता
(ऐ रसूल उनसे) पूछो तो के जो ज़ीनत के (साज़ व समान) और खाने की साफ़ सुथरी चीज़े खुदा ने अपने बंदो के वास्ते पैदा की हैं किसने हराम कर दी तुम खुद कहदो कि सब पाकीज़ा चीज़ें क़यामत के दिन उन लोगों(2) के लिये ख़ास हैं जो दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी में ईमान लाए थे हम यूं अपनी आयतें सझदार लोगों के वास्ते तफ़सीलवार बयान करते हैं (ऐ रसूल) तुम (साफ़) कह दो कि हमारे परवरदिगार ने तो तमाम बदकारियों को ख़्वाह ज़ाहिरी हों या बातिनी और गुनाह को और नाहक़ ज़्यादती करने को हराम किया है और उस बात को कि तुम किसी को ख़ुदा का शरीक बनाओ जिसकी उसमें कोई दलील नहीं नाज़िल फ़रमाई और ये भी कि वे समझे बूझे खुदा पर बोहतान(1) बांधों और हर गिरोह (के नापेद होने) का एक खास वक़्त है फि़र जब उनका वक़्त आ पहुंचा है तो ना एक घड़ी पीछे रह सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं।
ऐ औलादे आदम जब तुम में के (हमारे) पैग़म्बर तुम्हारे पास आऐ और तुमसे हमारे अहकाम बयान करे तो ऐसे लोगों पर न तो (क़यामत में) कोई खौफ़ होगा और न वह आजुरदा ख़ातिर होंगे और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुटलाया और उनसे सरताबी कर बैठे वह लोग जहन्नुमी हैं के वह उमसें हमेशा रहेंगे तो जो शख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बांधे या उसकी आयतों को झुटलाये और उससे बढ़कर ज़ालिम और कौन होगा फ़िर तो वह लोग हैं जिन्हें उन की (तक़दीर) का लिखा हिस्सा (रिज़्क़) वग़ैरह मिलता रहेगा- यहां तक जब हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके पास आकर उनकी क़ब्ज़ रूह करेंगे तो (उनसे) पूछेंगे कि जिन्हें तुम ख़ुदा को छोड़ कर पुकारा करते अब वह कहां हैं तो वह (कुफ़्फ़ार) जवाब देंगे कि वह सब के सब तो हमें छोड़ कर चल चंपत हुए और अपने ख़िलाफ़ आप गवाही देंगे के वह बेशक काफ़िर थे (तब खुदा) उनसे फ़रमाएगा जो लोग जिन्नों इन्स के तुमसे पहले चल बसे हैं उन्हीं में मिलजुल कर तुम भी जहन्नुम वासिल हो जाओ (और) अहले जहन्नुम का यह हाल होगा (के) जब उसमें एक गिरोह दाख़िल होगा तो अपने साथी दूसरे गिरोह पर लानत करेगा- यहां तक के जब सब के सब पहुंच आएंगे तो उन में की पिछली जमाअत अपने से पहले जमाअत के वास्ते बद्दुआ करेगी की परवरदिगार इन्हीं लोगों ने हमें गुमराह किया था तो उन पर जहन्नुम का दुगना अज़ाब फ़रमा (उस पर) ख़ुदा फ़रमाएगा कि हर एक के वास्ते दुगना(2) अज़ाब है लेकिन (तुम पर तुफ़ है) तुम जानते नहीं
और उन में से पहली जमाअत पिछली जमाअत की तरफ मुख़ातिब होकर कहेंगे कि अब तो तुमको हम पर कोई फ़ज़ीलत न रही पस (हमारी तरह) तुम भी अपने करतूत की बदौलत अज़ाब (के मज़े) चखों बेशक जिन लोगों ने हमारे आयात को झुठलाया और उनसे सरताबी की न उनके लिए आसमान के दरवाज़े खोले जाए(1) और न वह बेहिश्त ही में दाख़िल होने पाएंगे यहां तक के ऊंट सूई के नाके में(2) होकर निकल जाए (यानी जिस तरह ये मुहाल है उसी तरह उन का बेहिश्त में दाखिल होना मुहाल है) और हम मुजरिमों को ऐसी ही सज़ा दिया करते हैं- उनके लिए जहन्नुम (की आग) का बिछौना होगा और उनके ऊपर से (आग ही का) ओढ़ना भी और हम ज़ालिमों को ऐसी ही सज़ा देते हैं।
और जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए- और हम तो किसी शख़्स को उसकी ताक़त से ज़्यादा तकलीफ़ देते ही नहीं यही लोग जन्नती हैं के वह हमेशा जन्नत में ही रहा (सहा) करेंगे और उन लोगों के दिल में जो कुछ (बुग्ज़ व कीना) होगा वह सब हम निकाल (बाहर कर) देंगे उन (के महलों) के नीचे नहरें जारी होंगी और कहते होंगे शुक्र है उस खुदा का जिस ने हमें उस (मंज़िले मक़सूद) तक पहुंचाया और अगर खुदाहमें हां न पहुंचाता तो हम किसी तरह यहां न पहुंच सकते- बेशक हमारे परवरदिगार के पैग़म्बर दीन ए हक़ लेकर आये थे और उन लोगों से होक पुकार कर कह दिया जाएगा के वह बेहिश्त हैं जिनकी तुम अपनी कारगुज़ारियों की जज़ा में वारिस व मालिक बनाए गए हो जन्नती लोग जहन्नुम वालों से पुकार कर कहेंगे हम ने बेशक जो हमारे परवरदिगार ने हमसे वादा किया था ठीक ठाक पा लिया।
तो क्या तुमने भी जो तुम से तुम्हारे परवरदिगार ने वादा किया था ठीक पाया (या नहीं) अहले जहन्नुम कहेंगे हां (पाया) तब एक मुनादी(1) उनके दरमियान निदा करेगा कि ज़ालिमों पर ख़ुदा की लानत है जो ख़ुदा की राह से लोगों को रोकते थे और उसमे (ख्वाह मख़्वाह) कजी पैदा करना चाहते थे और वह रोज़ आख़रत से इंकार करते थे और बेहिश्त व दोज़ख़ के दरमियान में एक हद फ़ासिल हैं और कुछ लोग एराफ़ पर होंगे जो हर शख़्स को (बेहिश्ती या जहन्नुमी) उन की पैशानी से पहचान लेंगे और वह जन्नत वालों को आवाज़ देंगे कि तुम पर सलाम हो ये (आरा़फ़ वाले) लोग अभी दाख़िल जन्नत नहीं हुए है मगर वह तमन्ना ज़रुर रखते हैं और जब उनकी निगाहें पलट कर जहन्नुमी लोगों की तरफ़ जा पड़ेगी (तो उनकी ख़राब हालत देख कर खुदा से अर्ज़ करेंगे) ऐ हमारे परवरदिगार हमें ज़ालिम लोगों का साथी न बनाना और आराफ़ वाले कुछ (जहन्नुमी) लोगों को जिन्हें उनका चेहरा देख कर पहचान लेंगे आवाज़े देंगे और कहेंगे अब न तो तुम्हारा जत्था ही तुम्हारे काम आया और न तुम्हारी शेख़ी बाज़ी ही (फायदेमंद हुई जो तुम दुनिया में) किया करते थे क्या यही लोग वह हैं जिनकी निस्बत तुम क़समें खाया करते थे उन पर ख़ुदा (अपनी) रहमत न करेगा- (देखो आज वही लोग हैं जिनसे कहा गया के बेतकल्लुफ़) बेहिश्त में चले जाओ न तो तुम पर कोई खौफ़ है और न तुम किसी तरह आजूदा ख़ातिर होंगे।
और दोज़ख़ वाले अहले बेहिश्त को (ब लजाजत) आवाज़े देंगे कि हम पर थोड़ा सा पानी ही उन्डेल दो या जो (नेमत) ख़ुदा ने तुम्हें दी है उसमें से कुछ (दे डालो तो अहले बेहिश्त जवाब में) कहेंगे कि ख़ुदा ने तो जन्नत का खाना पानी काफ़िरों पर कतई हराम कर दिया है जिन लोगों ने अपने दीन को खेल(1) तमाशा बना लिया था और दुनियां की (चंद रोज़ह) ज़िन्दगी ने उन को फ़रेब दिया था तो हम भी आज (क़यामत में) उन्हें क़सदन भूल जाएंगे जिस तरह ये लोग (हमारी) आज की हुजूरी को भूल बैठे थे और हमारी आयतों से इंकार करते थे हालांकि हमने उनके पास रसूल की मारफ़त किताब भी भेज दी जिसे हर तरह समझ बूझ के तफ़्सील दार बयान कर दिया है।
(और वह) ईमानदार लोगों के लिए हिदायत और रहमत है क्या ये लोग बस सिर्फ़ अंजाम का (वक़्त) आ जाएगा तो जो लोग उस को पहले से भूले बैठे थे (बे साख़्ता) बोल उठेंगे बेशक हमारे परवरदिगार के सब रसूल हक़ लेकर आए थे ते क्या (उस वक़्त) हमारी भी सिफ़ारिश करने वाले हैं जो हमारी सिफ़ारिश करेंगे- या हम फ़िर (दुनियां में) लौटा दिये जाऐ तो जो जो काम हम करते थे उसको छोड़ कर दूसरे काम करें-बेशक उन लोगों ने अपना सख़्त घाटा किया और जो अफ़तरापरवाज़िया किया करते थे वह सब ग़ाएब (ग़ल्ला) हो गई बेशक तुम्हारा परवर दिगार वह खुदा ही है- जिसने (सिर्फ़) छः दिनों में आसमान और ज़मीन को पैदा किया फ़िर अर्श(1) के बनाने पर आमादह हुआ वही रात को दिन का लिबास पहनाता है तो (गोया) रात दिन को पीछे पीछे तेज़ी से ढ़ूंढ़ती फ़िरती है और उसी ने आफ़ताब और महताब और सितारों को पैदा किया कि यह सब उसी के हुक्म के ताबेदार है देखो हुकूमत और पैदा करना बस ख़ास उसी के लिए है वह ख़ुदा जो सारे जहान का परवरदिगार है बड़ा बरकत वाला है।
(लोगों) अपने परवरदिगार से गिड़गिड़ा कर और चुपके चुपके दुआ करो, वह हद से तज़ावुज़ करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता और ज़मीन में इसलाह के बाद फ़साद न करते फिरो और (अज़ाब के) ख़ौफ़ से और (रहमत) की आस लगा के खुदा से दुआ मांगो (क्यों कि) नेकी करने वालों से खुदा की रहमत यक़ीन क़रीब है
और वही तो (वह) खुदा है जो अपनी रहमत (अब्र) से पहले खुशखबरी देने वाली हवाओं को भेजता है यहां तक के जब हवाएं (पानी से भरे) बोझिल बादलों को ले उठें तो हम उन को किसी शहर की तरफ़ (जो पानी की नायाबी से गोया) मर चुका था- हका दिया फ़िीर हमने उससे पानी बरसाया फिर हमने उससे तरह तरह के फ़ल (ज़मीन से) निकले हम यूं ही (क़यामत के दिन ज़मीन से) मुरदों को निकालेंगे ताकि तुम लोग नसीहत व इबरत हासिल करो और उम्दा ज़मीन उस के परवरदिगार के हुक्म से उस सब्ज़ाह (अच्छा ही) है और जो ज़मीन बुरी है उसकी पैदावार भी ख़राब ही होती है हम यूं अपनी आय़तों को उलट फ़ेर कर शुक्रगुज़ार लोगों के वास्ते बयान करते हैं।
बेशक हमने नूह को उन की क़ौम के पास (रसूल बनाकर) भेजा तो उन्होंने (लोगों से) कहा कि ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई माअबूद नहीं और मैं तुम्हारी निसबत (क़यामत के से) बड़े (खौफ़नाक़) दिन के अज़ाब से डरता हूँ (तो) उनकी क़ौम के चंद सरदारों ने कहा हम तो यक़ीनन देखते हैं कि तुम खुल्लम खुल्ला गुमराही में (पड़े) हो तब नूह(1) ने कहा के ऐ मेरी क़ौम तुझ में गुमराही (वग़ैरह) तो कुछ नहीं बल्कि मैं तो परवरदिगार आलम की तरफ़ से रसूल हूं-तुम तक अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचाए देता हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारी ख़ैर ख़्वाही करता हूँ और ख़ुदा की तरफ से जो बातें मैं जानता हूं तुम नहीं जानते- क्या तुम्हें उस बात पर ताजुब है के तुम्हारे पास तुम्ही में से एक मर्द (आदमी) के ज़रिये से तुम्हारे परवरदिगार का ज़िक्र (हुक्म) आया ताकि वह तुम्हे (अज़ाब से) डराए और ताकि तुम परहेज़गार बने और ताकि तुम पर रहम किया जाए- उस पर भी लोगों ने उनको झुटला दिया तब हमने उन को और जो लोग उनके साथ कश्ती में थे बचा लिया और बाक़ी जितने लोगों ने हमारी आयतों को झुटलाया था सब को डुबो मारा ये सब के सब यक़ीनन अंधे लोग थे।
और (हमने) क़ौम आद(2) की तरफ़ उनके भाई हूद को (रसूल बनाकर भेजा) तो उन्होंने (लोगों से) कहा ऐ मेरी क़ौम ख़ुदा ही की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोई माअबूद नहीं तो क्या तुम (खुदा) से डरते नहीं हो (तो) उनकी क़ौम के चन्द सरदार जो काफ़िर थे कहने लगे हम तो बेशक तुम को हिमाक़त में (मुबतिला) देखते हैं और हम यक़ीनी तुमको झूटा समझते हैं- हूद ने(1) कहा मेरी क़ौम मुझमें तो हिमाक़त की कोई बात नही बल्कि मैं तो परवर दिगार आलम का रसूल हूं- मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचाए देता हूँ और मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख़्वाह हूँ क्या तुम्हें इस पर ताज्जुब है के तुम्हारे परवर दिगार का हुक्म तुम्हारे पास तुम्ही ही में के एक मर्द (आदमी) के ज़रिए से (आया) के तु्म्हें (अज़ाब से) डराएं और (वह वक़्त) याद करो जब उसने तुमकों क़ौम नूह के बाद ख़लीफ़ा (जानाशीन) बनाया और तुम्हारी ख़िलक़त में भी बहुत ज़्यादती कर दी तो ख़ुदा की नेमतों को याद करो ताकि तुम दिली मुराद पाओ तो वह लोग कहने लगे- क्या तुम हमारे पास इस लिए आए हो कि सिर्फ ख़ुदा की इबादत करें और जिन को हमारे बाप दादा पूजते चले आए छोड़ बैठे पस अगर तुम हो तो जिस से तुम हमको डराते हो हमारे पास लाओ, हूद ने जवाब दिया (के बस समझ लो) के तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर अज़ाब और ग़ज़ब नाज़िल हो चुका क्या तुम मुझसे चन्द (बुतों के फर्जी़) नामों के बारे में झगड़ते हो जिन को तुम ने और तुम्हारे बाप दादाओं ने (ख़्वाह मख़्वाह) गड़ लिए हैं- हालाँकि खुदा ने उन के लिए कोई सनद नहीं नाज़िल की पस तुम (अज़ाब ख़ुदा का) इन्तेज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ मुन्तज़िर हूं आख़िर हमने उन को और जो लोग उन के साथ थे उनको अपनी रहमत से निजात दी और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुटलाया था हमने उनकी जड़ काट दी और वह लोग ईमान लाने वाले थे भी नहीं
(हमने क़ौम) समूद की तरफ़ उनके भाई सालेह को(1) रसूल बना कर भेजा तो उन्होंने (उन लोगों से कहा) ऐ मेरी क़ौम ख़ुदी ही की इबादत करो- उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं है- तुम्हारे पास तो तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से वाज़े और रौशन दौलत आ चुकी ये ख़ुदा की (भेजी हुई) ऊटनी तुम्हारे वास्ते एक मोजज़ा है तो तुम लोग उसको छोड़ दो कि ख़ुदा की ज़मीन में जहां चाहे जरती फिरे और उसे कोई तकलीफ़ न पहुँचाओ- वरना तुम दर्दनाक अज़ाब में गिरफ़्तार हो जाओगे वह (वक़्त) याद करो जब उसने तुम को क़ौम ए आद के बाद (ज़मीन में) ख़लीफ़ा (व जानाशीन) बनाया और तुम्हें ज़मीन में उस तरह बसाया कि तुम हमवार व नर्म ज़मीन में (बड़े बडे) महल उठाते हो और पहाड़ों को तराश (तराश) के घऱ बनाते हो तो ख़ुदा की नेमतों को याद करो और रूए ज़मीन में फ़साद न करते फ़िरोगे तो उसकी कौ़म के बड़े बड़े लोग ने बेचारे ग़रीबों से उन में से जो ईमान लाए थे कहा क्या तुम्हें मालूम है कि सालेह (हक़ीक़तन) अपने परवरदिगार के सच्चे रसूल हैं उन बेचारों ने जवाब दिया के जिन बातों का वह पैग़ाम लाए हैं हमारा तो उस पर ईमान है तब जिन लोगों को (अपनी दौलत ए दुनियां पर) घमंड था कहने लगे हम तो जिस पर तुम ईमान लाए हो उसे नहीं मानते ग़रज़ उन लोगों ने उटनी की कोहनी और पैर काट डाले और अपने परवरदिगार के हुक्म से सरताबी की (बेबाकी से) कहने लगे अगर तुम सच्चे रसूल हो तो जिस (अज़ाब) से हम लोगों को डराते थे ले आओ तब उन्हें ज़लज़ले ने ले डाला और वह लोग ज़ानू पर सर किए (जिस तरह) थे बैठे के बैठे रह गए उसके बाद सालेह उन से टल गए और (उनसे मुख़ातिब हो कर) कहा मेरी क़ौम(1) (आह) मैने तो अपने परवरदिगार के पैग़ाम तुम तक पहुंचा दिए थे और तुम्हारे ख़ैर ख़्वाही की थी (और ऊंच नीच समझा दिया था मगर अफ़सोस) तुम (खै़र ख़्वाह) समझने वालों को अपना दोस्त नहीं समझते।
और लूत(1) को (हमने रसूल बनाकर भेजा था) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि (अफ़सोस) तुम ऐसी बदकारी (इग़लाम) करते हो कि तुम से पहले सारी ख़ुदाई में किसी ने ऐसी बदकारी(2) नहीं की थी (हाँ) तुम औरतों को छोड़ कर शहवत परस्ती के वास्ते मर्दों की तरफ़ माएल होते हो (हालाँकि उसकी ज़रुरत नहीं) मगर तुम लोग कुछ हो ही बेहुा सर्फ़ करने वालों को नुत्फ़ा को ज़ाया करते हो उस पर उस की क़ौम का उसके सिवा और कुछ जवाब ही न था के वह आपस में कहने लगे के उन लोगों को अपनी बस्ती से निकाल बाहर करो क्यों के यह तो वह लोग है जो पाक साफ़ बनना चाहते हैं तब हमने उन को और उनके घर वालों को तो निजात दी मगर (सिर्फ़ एक) उन की बीवी को कि वह (अपनी मदआमाली से) पीछे रह जाने वालों में थीं और हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मीन्ह बरसाया-पस ज़रा ग़ौर तो करो के गुनाहगारों का अंजाम आखिर क्या हुआ।
और (हमने) मदीना (वालों के) पास उनके भाई शुएब को (रसूल बनाकर भेजा) तो उन्होंने (उन लोगों से) कहा ऐ मेरी क़ौम खुदा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई दूसरा तुम्हारा माबूद नहीं (और) तुम्हारे परवरदिगार की दरफ़ से एक वाज़े व रौशन मोजज़ा (भी आ चुका) तो नाप(1) और तोल पूरी किया करो और लोगो को उनकी (खरीदी हुई) चीज़े कम न दिया करो और ज़मीन में उसकी इसलाह व दोस्ती के बाद फ़साद न करते फ़िरो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो वही तुम्हारे हक़ में बेहतर है।
और तुम लोग जो रास्तों पर (बैठ कर) जो खु़दा पर ईमान लाया है उसको डराते हो और खुदा की राह से रोकते हो और उसकी राह में (ख़्वाह मख़्वाह) कजी ढूँढ़ निकालते हो अब न बैठा करो और उसको तो याद करो के जब तुम (शुमार मेँ) काम थे तो ख़ुदा ही ने तुमको बढ़ाया, और ज़रा ग़ौर करो कि (आख़िर) फ़साद फैलाने वालों का अंजाम कार क्या हुआ- और जिन बातों का मैं पैग़ाम लेकर आया हूँ अगर तुममे से एक गिरोह ने उनको माल लिया और एक गिरोह ने नहीं माना तो (कुछ परवा नहीं) तो तुम सब्र से बैठे (देखते) रहो यहां तक के खुदा (खुद) हमारे दरम्यान फ़ैसला कर दें वह तो सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाला है।
पारा-9
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