तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-7

कुरआन मजीद
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और वह देखता है जब यह लोग इस (कुरआन) को सुनते हैं जो हमारे रसूल पर नाज़िल किया गया है तो उनकी आँखों से बेसाख़्ता (छलक कर आंसू) (1) जारी हो जाते है क्यों के उन्होंने (अम्र्) हक़ को पहचान लिया है (और) अर्ज़ करते हैं के ऐ मेरे पालने वाले हम तो ईमान ला चुके तू (रसूल की) तसदीक़ करने वालों के साथ हमें भी लख रख और हम को क्या हो गया है कि हम ख़ुदा और जो हक़ बात हमारे पास आ चुकी है उस पर तो ईमान ल बाए और (फ़िर) ख़ुदा से ये उम्मीद रखें कि वह अपने नेक बंदों के साथ हमें (बेहिश्त में) पहुंचा ही देगा तो ख़ुदा ने उन्हें इन के (सिद़्क दिल से) अर्ज़ करने के सिले में उन्हें वह (हरे भरे) बाग़ात अता फ़रमाए जिन के (दरख़्तों के) नीचे नहरें जारी हैं (और) वह उस में हमेशा और (सिद्क दिल से) नेकी नकरे वालों का यही ऐवज़ है और जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और हमारी आयतों को झुटलाया यही लोग जहन्नुमी हैं (2) ऐ ईमानदारों जो पाक चीज़े ख़ुदा ने तुम्हारे वास्ते हलाल कर दी हैं इनको अपने ऊपर हराम न करो और हद से न बढ़ो क्यों के ख़ुदा हद से बढ़ जाने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता और जो हलाल साफ़ सुथरी चीज़े ख़ुदा ने तुम्हें दी हैं इनको (शौक से) खाओ और जिस ख़ुदा पर तुम ईमान लाए हो उससे डरते रहो ख़ुदा तुम्हारे बेक़ार(1) (बेकार) क़समो (के खाने) पर तो (ख़ैर) गिरफ़्त न करेगा मगर बिलक़सद पक्की क़सम ख़ाने और उसके ख़िलाफ़ करने पर ज़रुर तुम्हारी ले दे करेगा
(लो सुनों) इस का जुर्माना जैसा तुम ख़ुद अपने अहलो अयाल को खिलाते हो इसी क़िस्म का औसत दर्जे का दस मोहताज को खाना खिलाना या उनको कपड़े पहनाना या एक गुलाम आज़ाद करना है फ़िर जिससे ये सब न हो सके तो तीन दिन के रोज़े (रखना) ये (तो) तुम्हारी क़स्मों का जुर्माना है जब तुम क़सम खाओ (और पूरी न करो) और अपनी क़स्म (के पूरा करने) का ख़्याल रखो ख़ुदा अपने अहकाम को तुम्हारे वास्ते यूं साफ़ साफ़ बयान करता है ताके तुम शुक्र करो ऐ ईमानदारों शराब (2) और जुआ और बुत और पासे को बस नापाके (बुरे) शैतानी काम हैं तो तुम लोग इससे बचते रहो ताके तुम फ़लाह पाओ शैतान की तो बस यहीं तमन्ना है के शराब और जुए की बदौलत तुममे बाहम अदावत व दुश्मनी डलवा दे और ख़ुदा की याद और नमाज़ से बाज़ रखे तो क्या तुम इससे बाज़ आने वाले हो और ख़ुदा का हुक्म मानों और रसूल का हुक्म मानों और (नाफ़रमानी से) बचे रहो इस पर भी अगर तुमने (हुक्म ख़ुदा से) मुंह फेरा तो समझ रखो के हमारे रसूल पर बस साफ साफ़ पैगा़म पहुंचा देना फ़र्ज़ है (फ़िर करो चाहे न करो तुम मुख़तार हो) जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे काम किये हैं उन पर जो कुछ खा (पी) चुके इसमे कुछ गुनाह नहीं जब उन्होंने परहेज़गारी(1) की और ईमान ले आए और अच्छे (अच्छे) काम किये फ़िर परहे़ज़गारी की और ईमान ले आए फ़िर परहेज़गारी की और नेकियों की और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है
ऐ ईमानदारो कुछ शिकार से जिन तक तुम्हारे हाथ और नेज़े पहुंच सकते हैं ख़ुदा तुम्हारा ज़रुर इम्तेहान करेगा ताके ख़ुदा देख ले के इससे बे देखे भाले कौन डरता है फ़िर इसके बाद भी जो ज़्यादती करेगा तो उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है ऐ ईमानदारों जब तुम हालाते अहराम में हों तो शिकार (2) न मारो और तुम में से जो कोई जान बूझ कर शिकार मारेगा तो जिस (जानवर) को मारा है चौपाओ में से इसका मिस्ल तुममे से जो दो मुन्सिफ़ आदमी तज़वीज़ कर दें उसका बदला (देना) होगा (और) काबे तक पहुंचा कर कुर्बानी की जाए यो (इसका) जुर्माना (इसकी कीमत से) मोहताजों को खाना खिलाना या इसके बराबर रोज़े रखना (ये जुर्माना इस लिए है) ताके अपने किये की सज़ा का मज़ा चखे जो हो चुका उससे तो ख़ुदा ने दरगुज़र की और जो फिर ऐसी हरकत करेगा तो ख़ुदा उसकी सज़ा देगा और ख़ुदा ज़बरदस्त बदला लेने वाला है।
तुम्हारे और क़ाफ़िले के फ़ाएदे के वास्ते दरयाई शिकार और उस का खाना तो (हर हालत में) तुम्हारे वास्तें जाएज़ कर दिया है मगर ख़ुशकी का (1) शिकार जब तक तुम हालते अहराम में रहो तुम पर हरमा है और उस ख़ुदा से डरते रहो जिस की तरफ़ (मरने के बाद) उठाए जाओगे ख़ुदा ने काबे को जो (उसका) मोहतरम घर है और हुरमतदार महीनों को और कुर्बानी को और उस जानवर को जिस के गले में (कुर्बानी के वास्ते) पट्टे डाल दिये गये हो लोगों के अमन क़ायम रखने का सबब क़रार दिया ये इसलिये के तुम जान लो के ख़ुदा जो कुछ आसमानी में से और जो कुछ ज़मीन में से है यक़ीनन (सब) जानता है और यह भी (समझ लो) के बेशक ख़ुदा हर चीज़ से वाक़िफ़ है जान लो के यक़ीनन ख़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब वाला है और ये (भी) के बड़ा बक्शने वाला मेहरबान है (हमारे) रसूल पर पैग़ाम पहुंचा देने के सिवा (और) कुछ (फर्ज़) नहीं और जो कुछ तुम व ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छिपा करते हो ख़ुदा सब जानता है (ऐ रसूल) कह दो के नापाक (हराम) और पाक (हलाल) बराबर नहीं हो सकता अगर चे नापाक की कसरत तुम्हें भली क्योंकि न मालूम हो तो ऐ अक़लमन्दों अल्लाह से डरते रहो ताके तुम कामयाब रहो
ऐ ईमान वालों ऐसी चीज़ों के बारे मे (रसूल से) न पूछा करो (1) के अगर तुम को मालूम हो जाए तो तुम्हे बुरी मालूम हो और अगर उनके बारे में कुरआन नाज़िल होने के वक़्त पूछ बैठोगे तो तुम पर ज़ाहिर कर दी जाएगी (मगर तुम को बुरा लगेगा जो सवालात तुम कर चुके) ख़ुदा ने उन से दरगुज़र की और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला बुर्दबार है।
तुमसे पहले भी लोगों ने इस कि़स्म की बातें (अपने वक़्त के पैग़म्बरों से) पूछी थी फिर (जब तहम्मुल न हो सका तो) उसके मुनकिर हो गए ख़ुदा ने न तो कोई बहीरा (कनफटी ऊंटऩी) मुक़र्रर किया है न साएबा (सांड) न वसीला (जु़ड़वा बच्चा) न हाल (बुढ़ा सांड) मगर कुफ़्फ़ार ख़ुदा पर ख़्वाह झूट (मूट) बोहतान बाधते हैं और उनमें के अक्सर नहीं समझते और जब इनसे कहा जाता है के जो (कुरआन) ख़ुदा ने नाज़िल फ़रमाया है उसकी तरफ़ और रसूल की आओ (और जो कुछ कहें सो मानो) तो कहते हैं हम ने जिस (रंग) में अपने बाप दादा को पाया वही हमारे लिए काफ़ी है क्या (ये लोग लकीर के फ़कीर ही रहेंगे) अगर चे इनके बाप दादा न कुछ जानते ही हो न हिदायत ही पायी हो ऐ ईमान वालों तुम अपनी ख़बर लो जब तुम सही रास्ते पर हो तो कोई गुमराह हुआ करे तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकता तुम सब के सब को ख़ुदा की तरफ़ लौ़ट कर जाना है तब (इस वक़्त नेक व बद) जो कुछ (दुनियां में) करते थे तुम्हें बता देगा
ऐ ईमान वालों जब तुम में से किसी (के सर) पर मौत (1) ख़ड़ी हों तो वसीयत के वक़्त तुम (मोमिनों) में से दो आदमियों की गवाही होनी ज़रुर रहे और अगर तुम इत्तेफाक़न कहीं का सफ़र करो और (सफ़र ही में) तुम को मौत की मुसीबत का सामना हो तो (भी) दो गवाह ग़ैर (मोमिन) सही (और) अगर तुम्हे शक हो तो इन दोनों को नमाज़ के बाद रोक लो फिर वह दोनों ख़ुदा की क़सम खांए के हम इस (गवाही) के एवज़ कुछ दाम नहीं लेगे अगर चे हम जिसको गवाही देते हैं हमारा अज़ीज़ ही क्यों न हो और हम ख़ुदा लगती गवाही न छिपाएंगे अगर ऐसे करें तो हम बेशक गुनाहगार हैं फिर अगर इस पर इत्तेला हो जाए के वह दोनों (दरोग़ हल्फ़ी से) गुनाह के मुस्तहक़ हो गए तो दूसरे दो आदमी इन लोगों में से जिन का हक़ दबाया गया है और (मय्यत) के ज़्यादा क़राबत दार हैं (इनकी तरदीद में) इनकी जगह खड़े हो जाए फिर दो नए गवाह ख़ुदा की क़सम खाए के पहले दो गवाहों की निस्बत हमारी गवाही ज़्यादा सच्ची है और हमने (हक़ से यकसरमू) तजावुज़ नहीं किया ऐसा किया हो तो उस वक़्त बेशक हम ज़ालिम हैं ये ज़्यादा क़रीने कयास है कि इस तरह पर (आख़रत के डर से) ठीक ठीक गवाही दैं या (दुनियां की रुसवाई का) अंदेशा हो के कहीं हमारी क़समें दूसरे फ़रीक़ की क़समों के बाद रद्द न कर दी जाएं मुसलमानों ख़ुदा से डरो और (जी लगा के) सुन लो और ख़ुदा बदचलन लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाता (उस वक़्त को याद करो) जिस दिन ख़ुदा अपने पैग़म्बरों को जमा करके पूछेगा के (तुम्हारी उम्मत की तरफ़ से तबलीग़ अहकाम का) क्या जवाब दिया गया तो अर्ज़ करेगे के हम तो (चन्द जाहिरी बातों के सिवा) कुछ नहीं जानते तू तो ख़ुद बड़ा ग़ैब दां है
(वह वक़्त याद करो) जब ख़ुदा फ़रमाएगा के ऐ मरियम के बेटे ईसा हमने जो अहसानात तुम पर और तुम्हारी मां पर किए उन्हें याद करो जब हमने रुहू रुहुल कुद्दस (जिब्राईल) से तुम्हारी ताईद (1) की के तुम झूले में (पड़े पड़े) और अधेड़ होकर (यक्सा बातें) करने लगे और जब(2) हमने तुम्हें लिखना और अक़्ल व दानाई की बातें और (तौरेत व इंजील) (ये सब चीज़ें) सिखाई और जब (1) तुम मेरे हुक्म से मिट्टी से चिड़िया की मूरत बनाते-फिर उस पर (कुछ) दम कर देते तो वह मेरे हुक्म से (सचमुच) चिडियां बन जाती थी और (1) मेरे हुक्म से मादरज़ाद अंधा और कोढ़ी को अच्छा कर देते थे और जब (4) तुम मेहेर कुह्म से मुरदों को ज़िन्दा (करके क़बरों से) निकाल खड़ा करते थे और जिस (3) वक़्त तुम बनी इस्राईल के पास मोजिज़े लेकर आए और उस वक़्त मैं ने इन को तुम (पर दस्त दराज़ी करने) से रोका तो उन में से बाज़ कुफ़्फ़ार कहने लगे ये तो बस ख़ुला हुआ जादू है और (4) (जब मैं ने हवारियों को इलहाम किया के मुझ पर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ तो अर्ज़ करने लगे हम ईमान लाए और तू गवाह रहना के हम तेरे फ़रमा बरदार बंदे हैं (वह वक़्त याद करों) जब हवारियों ने ईसा से अर्ज़ की के ऐ मेरे मरयम के बेटे ईसा क्या आप का खुदा इस पर ख़ादिर है के हम पर आसमान से (नेअमत का) एक ख़्वाह नाज़िल फ़रमाए-ईसा ने कहा अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा से डरो (ऐसी फ़रमाइश जिस में इम्तेहान मालूम हो न करो) वह अर्ज़ करने लगे हम तो (फ़क़त) ये चाहते हैं के इस में से (तबर्रूकन) कुछ खाएं और हमारे दिल को (आप की रेसालत का पूरा पारा) इतमेनान हो जाए और यक़ीन कर ले के आप ने हमसे (जो कुछ कहा था) सच फ़रमाया था और हम लोग इस पर गवाह रहे (तब) मरयम के बेटे ईसा ने (बारगाहें ख़ुदा में) अर्ज़ की ख़ुदा वन्दा ऐ हमारे पालने वाले हम पर आसमान से एक ख़्वान (1) (नेअमत) नाज़िल फ़रमा के वह दिन हम लोगों के लिये हमारे अगलों के लिए और हमारे पिछलों के लिए ईद का क़रार पाए (और हमारे हक़ में) तेरी तरफ़ से एक बड़ी निशानी हो और हमें रोज़ी दे और तू सब रोज़ी देने वालों से बेहतर है ख़ुदा ने फ़रमाया मैं ख़्वान तो तुम पर ज़रुर नाज़िल करूँगा (मगर याद रहे के) फ़िर तुम से जो शख़्स उस के बाद काफि़र हुआ तो मैं उस को यक़ीनन ऐसे सख़्त अज़ाब की सज़ा दूंगा के सारी ख़ुदाई में किसी एक पर भी वैसा (सख़्त) अज़ाब न करूँगा और (वह वक़्त भी याद करो)
जब (क़यामत में ईसा से) ख़ुदा फ़रमाएगा के (क्यों) ऐ मरयम के बेटे ईसा क्या तुमने लोगों से ये कह दिया था के ख़ुदा को छोड़ कर मुझको और मेरी मां को ख़ुदा बना लो ईसा अर्ज़ करेंगे सुबहान अल्लाह मेरी तो यह मजाल न थी के मैं ऐसी बात मुंह से निकालू जिसका मुझे कोई हक़ न हो (अच्छा) अगर मैंने कहा होगा तो तुझ को तो ज़रुर मालूम ही होगा क्यों के तू मेरे दिल की (सब बात) जानता है हां अलबत्ता मैं तेरे जी की बात नीहं जानता (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं के तू ही ग़ैब की बाते खूब जानता है तूने मुझे जो कुछ हुक्म दिया उसके सिवा तो मैंने इनसे कुछ भी नहीं कहा, यही के खु़दा ही की इबादत करो जो मेरा और तुम्हार सब का पालने वाला है।
और जब तक मैं इन में रहा उनकी देखभाल करता रहा फ़िर जब तूने मुझे (दुनिया से) उठा लिया तो तू ही इनका निगेहबान था और तू तो ख़ुदा हर चीज़ का गवाह (मौजूद) है तू अगर इन पर अज़ाब करेगा तो (तू मालिक है) ये तेरे बंदे हैं और अगर इन्हें बख्श देगा तो (कोई तेरे हाथ नहीं पकड़ सकता क्यों के) बेशक तू ज़बरदस्त हिकमत वाला है- ख़ुदा फ़रमाएगा कि ये वो दिन है के सच्चे बंदो को उनकी सच्चाई (आज) काम आएगी उनके लिए (हरे भरे बेहिश्त के) वह बाग़ात हैं जिनके (दरख़्तों के) नीचे नहरे जारी हैं (और) वह इसमें अबदुल आबाद तक रहेंगे ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़ुदा से खुश यही तो बहुत बड़ी कामयाबी है सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इनमें है सब ख़ुदा ही की सलनतन है और वह हर चीज़ पर ख़ादिर (व तवाना) है।


सूरे: अनआम

सूरे: अनआम(1) मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 165 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
सब तारीफ़ ख़ुदा ही को (सज़ावार) हैं जिसने बहुतेरे आसमान व ज़मीन को पैदा किया और इसमें मुख़तलिफ़ क़िस्मों की तारीकी और रौशनी बताई फ़िर (बावजूद इसके) कुफ़्फ़ार (औरो को) अपने परवरदिगार के बराबर करते हैं (1) वह तो वहीं खुदा है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया फिर (तुम्हारे मरने का) एक वक़्त मु्कर्रर कर दिया और (अगर चे तुमको मालूम नहीं मगर) उसके नज़दीक (क़यामत) का एक वक़्त मुक़र्रर है फिर (यही) तुम शक करते हो और वही तो आसमनों में (भी) और ज़मीन में (भी) ख़ुदा है वहीं तुम्हारे ज़ाहिर व बातिन से (भी) ख़बरदार है और वही जो कुछ भी तुम करते हो जानता है और (इन लोगों का) अजब हाल है के इनके पास ख़ुदा की आयात में से जब कोई आयत आती तो बस ये लोग ज़रुर उससे मुंह फेर लेते चुनांचे जब इनके पास (कुरआन बरहक़) आया तो इसको भी झुटलाया तोये लोग जिसके साथ मस्ख़रापन कर रहे हैं इसकी हक़ीक़त उन्हे अनक़रीब ही मालूम हो जाएगी क्या इन्हें सूझता नहीं के हमने इन से पहले कितने गिरोह (के गिरोह) हलाक कर डाले जिनको हम ने रुए ज़मीन में वह कुवत कुदरत अता की थी जो अभी तक तुम को नहीं दी और हम ने आसमान को इन पर मुस्लाधार पानी बरसने छोड़ दिया था और इनके (मकानात के) नीचे बहती हुई नहरें बना दी थी (मगर) फिर भी इनके गुनहों की वजह से इनको मार डाला और इनके बाद एक दूसरे गिरोह को पैदा कर दिया।
और (ऐ रसूल) अगर हम काग़ज़ (1) पर (लिखी लिखाई) किताब (भी) तुम पर नाज़िल करते और ये लोग इसे अपने हाथों से छू भी लेते फिर भी कुफ़्फार (न मानते और) कहते के ये तो बस ख़ुला हुआ जादू है और (ये भी) कहते के (नबी) पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं नाज़िल किया गया (जो साथ साथ रहता) हालांके अगर हम फ़रिश्ता भेज देते तो (इन का) काम ही तमाम हो जाता (और) फिर इन्हें मोहलत भी न दी जाती और अगर हम फ़रिश्ता (2) को नबी बनाते तो (आख़िर) इसको भी मर्द सूरत बनाते और जो शुब्हे ये लोग कर रहे हैं वहीं शुब्हे (गोया) हम ख़ुद इन पर (इस वक़्त भी) उड़हा देते ऐ रसूल तुम दिल तंग न हो तुम से पहले (भी) पैग़म्बरों के साथ मस्ख़रापन किया गया है पस जो लोग मस्ख़रापन करते थे उन को इस अज़ाब ने जिस की ये लोग हंसी उडाते थे घेर लिया (ऐ रसूल इन से) कहो के ज़रा रूए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो (अम्बयां के) झुटलाने वालों का क्या (बुरा) अंजाम हुआ (ऐ रसूल इन से) पूछो तो के (भला) जो कुछ आसमान और ज़मीन में हैं किस का है (वह क्या जवाब देंगे) तुम खु़द कह दो के ख़ास ख़ुदा का है इसने अपनी ज़ात पर मेहरबानी लाज़िम कर ली है वह तुम सब के सब को क़यामत के दिन जिसके आने में कुछ शक नहीं ज़रुर जमा करेंगा (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (क़यामत पर) ईमनान न लाएंगे हालांके (ये नहीं समझते के) जो कुछ रात को और दिन को (रुए ज़मीन पर) रहता (सहता) है (जब) ख़ास उसी का है और वही (सब की) सुना (और सब कुछ) जानता है
(ऐ रसूल) (1) तुम कह दो के क्या ख़ुदा को जो सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला है छोड़ कर दूसरे को (अपना) सरपरस्त बनाओ और वही (सब को) रोज़ी देता है और उसको कोई रोज़ी नहीं देता (ऐ रसूल) तुम कह दो के मुझे हुक्म दिया गया है के सब से पहले इस्लाम लाने वाला मैं हूं और (ये भी ख़बरदार) मुश्रक़ीन से न कहना (ऐ रसूल) तुम कहो के अगर मैं नाफ़रमानी करो तो बेशक एक बड़े (सख़्त) दिन के अज़ाब से डरता हूं उस दिन जिस (के सर) से अज़ाब टल गया तो (समझो के) खुदा ने उस पर (बड़ा) रहम किया और यही तो सरीही कामयाबी है और अगर ख़ुदा तुम को किसी क़िस्म की तकलीफ़ पहुंचाए तो उस के सिवा कोई उसका दफ़ा करने वाला नहीं है और अगर तुम्हें कुछ फ़ायदा पहुँचाए तो भी (कोई रोक नहीं सकता क्योके) वह हर चीज़ पर कादिर है वही अपने बन्दों पर ग़ालिब है और वह वाकि़फ़कार हकीम है (ऐ रसूल) तुम पूछो के गवाही में सब से बढ़ के कौन चीज़ है तुम ख़ुद ही कह दो के मेरे और तुम्हारे दरमियान ख़ुदा गवाह है और मेरे पास ये कुरआन वही के तौर पर इस लिए नाजि़ल किया गया ताके तुम्हे और जिसे (उसकी) ख़बर पहुंचे उस के जऱिये से डराओ क्या तुम यक़ीनन ये गवाही दे सकते हो के अल्लाह के साथ और दूसरे माअबूद भी हैं।
(ऐ रसूल) तुम कह दो को मैं तो उसकी गवाही न ही देता (तुम दिया करो) तुम (उन लोगों से) कहो के वह तो बस एक ही ख़ुदा है और जिन लोगों के हम ने किताब अता फरमाई है (यहूदी व नसारा) वह तो जिस तरह अपने बाल बच्चों को पहचानते हैं उसी तरह इस नबी (मुहम्मद) को भी पहचानते हैं (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (किसी तरह) ईमान न लाएंगे और जो शख़्स ख़ुदा पर झू़ट बोहतान बांधे या उसकी आयतों को झुटलाए उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा और ज़ालिमों को हरगिज़ निजात न होगी और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम उन सब को जमा करेंगे फिर जिन लोगों ने शिर्क किया उनसे पूछेंगे के जिन को तुम (ख़ुदा का) शरीक ख़्याल करते थे कहां है फ़िर उन की कोई शरारत (बाक़ी) न रहेगी बल्कि वह तो ये कहेंगे क़सम है उस ख़ुदा की जो हमारा पालने वाला है हम किसी को उसका शरीक नहीं बनाते थे (ऐ रसूल भला) देखो तो ये लोग अपने ही ऊपर आप किस तरह झूट बोलने लगे और ये लोग (दुनिया में) जो कुछ इफ़तेरा परवाज़ी करते थे वह सब ग़ायब हो गयी और बाज़ उनमें के ऐसे भी हैं जो तुम्हारी (बातों की) तरफ़ कान लगाए रहते हैं और (उनकी हटधर्मी इस हद को पहुंची है के गोया)  हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं और उनके कानों में बहरापन पैदा कर दिया है के उसे समझ न सके और अगर वह सारी (खुदाई के) मोजज़े भी देख लें तब भी ईमान न लाएंगे यहां तक कि (हटधर्मी पहुंची) के जब तुम्हारे पास तुम से उलझते हुए आ निकलते हैं तो कुफ़्फ़ार (कुरआन लेकर) कह बैठते हैं (के भला इसमें रखा ही क्या है) ये तो अलगों की कहानियों (1) के सिवा कुछ भी नहीं और ये लोग (दूसरों को भी) उस (के सुनने) से रोकते हैं और ख़ुद तो अलग थलग रहते ही हैं और (इन बातों से) बस आप ही अपने को हलाक करते हैं और (अफ़सोस) समझते नहीं और (ऐ रसूल) अगर तुम इन लोगों को इस वक़्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब जहन्नुम (के किनारे) पर लाकर खड़े किये जायेंगे तो (उसे देखकर) कहेंगे ऐ काश हम (दुनिया मे) फ़िर (दोबारा) लौटा दिये जाते और अपने परवर दिगार की आयतों को ना झ़ुटलाते और हम मोमिनीन से होते (मगर उनकी यह आरज़ू पूरी न होगी) बल्कि जो (बेईमानी) पहले से छुपाते थे आज (उसकी हक़ीक़त) उन पर खुल गयी और (हम जानते हैं के) अगर ये लोग (दुनियां में) लौटा भी दिये जाएं तो भी जिस चीज़ की मनाही की गई है उसे करें और ज़रुर करें और इसमें शक नहीं के ये लोग ज़रुर झूटे है और कुफ़्फ़ार ये भी तो कहते हैं के हमारी इस दुनियावी ज़िन्दगी के सिवा कुछ भी नहीं और (क़यामत वग़ैरह ढकोसला हैं) हम (मरने के वाले) भी उठाए ही न जाएंगे
(ऐ रसूल) अगर तुम इनको इस वक़्त देखते (तो ताजुब करते) जब ये लोग ख़ुदा के सामने ख़ड़े किये जाएंगे और ख़ुदा (उनसे) पूछेगा के क्या ये (क़यामत का दिन) अब भी सही नहीं है वह (जवाब में) कहेंगे के परवरदिगार की क़सम हां (बिल्कुल सच) है तब ख़ुदा फ़रमाएगा के तुम चूके (दुनिया में इससे) इंकार करते थे उसकी सज़ा में अज़ाब (के मज़े) चखो बेशक जिन लोगों ने क़यामत के दिन ख़ुदा की हुजूरी को झुटलाया वह बड़े घाटे में है यहां तक कि जब उनके सर पर क़यामत नागहां पहुँचेगी तो कहने लगेंगे अफ़सोस हमने तो इसमें बड़ी कोताही की (ये कहते जाएंगे) और अपने गुनाहों का पछतावा अपनी अपनी पीठ पर लादते जाएंगे देखो तो (ये) क्या बुरा बोझ है जुसको ये लादे (लादे फिर रहे) हैं और (ये) दुनयावी ज़िन्दगी तो खेल तमाशो के सिवा कुछ भी नहीं और ये तो ज़ाहिर है के आख़रत का घर (बेहिश्त) परहेज़गारों के लिए इससे बदर जहां बेहतर हैं तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते हम खूब जानते हैं के उन लोगों की बक बक तुमको सदमा पहुँचाती है तो (तुमको समझना चाहिए के) ये लोग तुमको नहीं झुटलाते बल्कि (ये) ज़ालिम (हक़ीकतन) खुदा की आयतों से इंकार करते हैं और (कुछ तुम ही पर इनहेसार नहीं) तुम से पहले भी बहुतसे रसूल झुटलाए जा चुके हैं तो उन्होंने अपने झुटलाए जाने और अज़ीयत (व तक़लीफ़) पर सब्र किया यहां तक के हमारी मदद उन के पास आई और (क्यों न आती) तो ख़ुदा की बातों का कोई बदलने वाला नहीं है।
और पैग़म्बरी के हालात तो तुम्हारे पास पहुंच ही चुके हैं अगर चे उन लोगों की रुगरदानी तुम पर शाक़ ज़रुर है (लेकिन) अगर तुम्हारा बस चले तो ज़मीन के अन्दर कोई सुरंग ढूँढ निकालो या आसमान में सीढ़ी लगाओ और उन्हें कोई मोजज़ा दिखाओ (तो ये भी कर देखो) अगर खु़दा चाहता तो उन सब को राहे रास्त पर इकट्ठा कर देता (मगर वह तो इम्तेहान करता है) पस (देखो) तुम हरगिज़ जाहिलों मे (शामिल) न होना (तुम्हारा कहना तो) सिर्फ़ वही लोग मानते हैं जो (गोश दिल से) सुनते हैं और मुर्दो को तो ख़ुदा क़यामत ही में उठाएगा फिर उसी की तरफ़ से कोई मोजज़ा क्यों नहीं नाज़िल होता तो तुम (उन से) कह दो के ख़ुदा मोजज़ा के नाज़िल करने पर ज़रुर कादिर है मगर उन में के अक्सर लोग (ख़ुदा की मसलहतों को) नहीं जानते ज़मीन में जो चलने फिरने वाला (हैवान) या अपने दोनों पैरों से उड़ने वाला परिन्दा है उन की भी तुम्हारी तरह जमाअतें हैं (और सब के सब लौहे महफूज़ में मौजूद हैं) हम ने किताब (कुरआन) में कोई बात फ़रो गुज़ाश्त नहीं की है फिर सब के सब (चरिन्द हो या परिन्द) अपने परवरदिगार के हुजूर में लाए जाएंगे और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झ़ुटलाया गोया वह (कुफ़्र के घटा टोप) अंधेरों में गुंगे (1) बहरे (पड़े हैं) ख़ुदा जिसे चाहे उसे गुमराही में छोड़ दे और जिसे चाहे उसे सीधे ढर्रे पर लगा दे।
(ऐ रसूल इन से) पूछो तो के क्या तुम ये समझते हो के अगर तुम्हारे सामने ख़ुदा का अज़ाब आ जाए या तुम्हारे सामने क़यामत ही आ खड़ी मौजूद हो तो तुम अगर (अपने वादे में) सच्चे हो तो (बताओ के मदद के वास्ते) क्या ख़ुदा को छोड़ कर दूसरे को पुकारोगे (दूसरों को तो क्या) बल्कि उसी को पुकारोगे फिर अगर वह चाहता तो जिस के वास्ते तुम ने उस को पुकारा है उसे दफ़ा कर देगा और (उस वक़्त) तुम दूसरे माअबूदों को जिन्हें तुम (ख़ुदा) का शरीक समझते थे भूल जाओगे और रसूल भेज चुके हैं फिर (जब नाफ़रमानी की) तो हम ने उन को सख़्ती और तकलीफ़ में गिरफ़्तार किया ताके वह लोग (हमारी बारगाहों में) गिड़गिड़ाए तो जब उन (के सर) पर हमारा अज़ाब आ खड़ा हुआ तो वह लोग क्यों नहीं गिड़गिड़ाए (के हम अज़ाब दफ़ा कर देते) मगर उन के दिल तो सख़्त हो गए थे और उन की कारस्तानियों को शैतान ने आरास्ता कर दिखाया था (फिर क्यों कर गिड़गिड़ाते) फिर जिस की उन्हें नसीहत की गई थी उस को भूल गए तो हम ने उन पर (ढील देने के लिए) हर तरह की (दुनियावी) नेअमतों के दरवाज़े खोल दिए यहां तक के जो नेअमतें उन को दी गई थी जब उन को पाकर खुश हुए तो हम ने उन्हें नागाह ले डाला उस वक़्त वह नाउम्मीद हो कर रह गए-फिर ज़ालिम लोगों की जड़ (1) काट दी गई- और सारे जहां के मालिक ख़ुदा का शक्र है (के क़िस्सा पाक हुआ)
ऐ रसूल उन से पूछो तो के क्या तुम ये समझते हो के अगर ख़ुदा तुम्हारे कान और तुम्हारी आँखें ले ले और तुम्हारे दिलों पर मोहर कर दे तो ख़ुदा के सिवा और कौन माअबूत है जो (फ़िर) तुम्हें ये नेमते (वापस) लदे (ऐ रसूल) देखो तो हम किस किस तरह अपनी दलीले बान करते हैं इस पर भी वह लोग मुंह मोड़े जाते हैं (ऐ रसूल) इन से पूछे के क्या तुम ये समझते हो के अगर तुम्हारे सर पर ख़ुदा का अज़ाब बे ख़बरी में या आशकार आ जाए तो क्या गुनाहगारों के सिवा और लोग भी हलाक किये जाएंगे (हरगिज़ नहीं) खुशख़बरी दे और (बदों को अज़ाबे जहन्नुम से) डराए फ़िर जिस ने ईमान क़बूल किया और अच्छे अच्छे काम किये तो ऐसे लोगों पर (क़यामत में) न कोई ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मागीन होंगे और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुटलाया तो चूंके बदकारी करते थे (हमारा) अज़ाब उन को लिपट जाएगा।
(ऐ रसूल) उन से कह दो के मैं तो ये नहीं कहता के मेरे पास ख़ुदा के खज़ाने हैं (1) (के ईमान लाने पर दे दूंगा) और न मैं गैब के (कुछ हलात) जानता हूँ और न मैं तुम से ये कहता हूँ के मैं फ़रिश्ता हूं मैं तो बस जो (ख़ुदा की तरफ़ से) मेरे पास वही की (2) जाती है उसी का पाबंद हूं (इनसे पूछो तो) के अंधा और आंख वाला बराबर हो सकता है तो क्या तुम (इतना भी) नहीं सोचते और इस कुरआन के ज़रिये तुम उन लोगों को डराओ जो इस बात का ख़ौफ़ रखते हैं के वह (मरने के बाद) अपने ख़ुदा के सामने जमा किये जाएंगे (औ ये समझते है के) इन का ख़ुदा के सिवा न कोई सरपरस्त है और न कोई सिफ़ारिश करने वाला ताकि ये लोग परहेज़गार बन जाए।
और (ऐ रसूल)(3) जो लोग सुबह शाम अपने परवरदिगार से इस की खुशनूदी की तमन्ना में दुआएं मांगा करते हैं- इन को अपने पास से न धुतकारों-न इनके (हिसाब व किताब की) जो अबद ही तु्म्हारे ज़िम्मे है-और न तुम्हारे (हिसाब किताब की) जो अबद ही कुछ इनके ज़िम्मे हैं ताके तुम इन्हें (बस ख़याल से) धुतकार बताओ तो तुम ज़ालिमों (के शुमार) मे हो जाओगे और इसी तरह हमने बाज़ आदमियों को बाज़ से आज़माया ताके वह लोग कहे के हाए क्या ये लोग हम में से हैं जिन पर ख़ुदा ने अपना फ़ज़ल व करम किया है (ये तो समझते के) क्या ख़ुदा शुक्रगुज़ारों को भी नहीं जानता और जो लोग हमारी आयतों पर ईमान लाए हैं तुम्हारे पास आए तो तुम सलाम (अलैकुम) तुम पर ख़ुदा की सलामती (हो) कहीं तुम्हारे परवरदिगार ने अपने ऊपर रहमत लाजि़म कर ली है-बेशक तुम में से जो शख़्स नादानी से कोई गुनाह कर बैठे उसके बाद फ़िर तौबा कर ले और अपनी हालत की इस्लाह करे (ख़ुदा उस का गुनाह बख़्श देगा क्योंकि) वह तो यक़ीनी बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और हम (अपनी) आयतों को यूं तफ़सील से बयान करते हैं ताके गुनाहगारों की राह (सब पर) खुल जाए (और वह इस पर न चलें)
(ऐ रसूल) तुम कह दो के मुझ से इसकी मनाही की गयी है के मैं ख़ुदा को छोड़ कर उन माबूदों की इबादत करूं जिन को तुम पूजा करते हो (यह भी) कह दो के मैं तो तुम्हारी (नफ़सानी) ख्वाहिशों पर चलने का नहीं (वरना) फ़िर तो मैं गुमराह हो जाऊँगा और हिदायत याफ़्ता लोगों में न रहूंगा तुम कह दो के मैं तो अपने परवरदिगार की तरफ़ से एक रोशन दलील पर हूँ और तुम ने उसे झुटला दिया (तो) तुम जिसकी जल्दी करते हो (अज़ाब) वह कुछ मेरे पास (इख़्तेयार में) तो है नहीं- हुकूमत तो बस सिर्फ़ ख़ुदा ही के लिए है वह तो हक़ (हक़) बयान करता है और वह तमाम फ़ैसला करने वालों से बेहतर है (इन लोगों से) कह दो के जिस (अज़ाब) की तुम जल्दी करते हो अगर वह मेरे पास (इख़्तेयार मे) होता तो मेरे और तुम्हारे दरम्यान का फ़ैसला कब न कम चुक गया होता और ख़ुदा तो ज़ालिमों से खूब वाकिफ़ है और उसके पास ग़ैब की कुन्जियां हैं जिनको उसके सिवा कोई नहीं जानता और जो कुछ खुश्की और तरी में है उसको (भी) वही जानता है और कोई पत्ता भी नहीं खड़कता मगर वह उसे ज़रुर जानता है और ज़मीन की तारीकियां मैं कोई दाना और न कोई हरी और न कोई खुश्क चीज़ हैं मगर वह नूरानी किताब (लौहे महुफूज़) मे मौजूद है। वही (खुदा) है जो तुम्हें रात को (नींद में एक तरह पर दुनिया से) उठा लेता है और जो कुछ तुमने दिन को किया था जानता है-फ़िर तुम्हे दिन को उठा कर खड़ा करता है ताके (ज़िन्दगी की वह) मियाद जो (उस के इल्म में) मोअय्यन है पूरी की जाए फ़िर (तो आख़िर) तुम सबको उसी की तरफ़ लौटना है फ़िर जो कुछ तुम (दुनिया में भला या बुरा) करते हो तुम्हें बता देगा वह अपने बंदो पर ग़ालिब है वह तुम लोगों पर निगेहबान (फ़रिश्ते तैनात करके) भेजता है-यहां तक कि जब तुम में से किसी को मौत आए तो हमारे फरसतादा (फ़रिश्तें) उसको (दुनियां से) उठा लेते हैं (1) और वह (हमारे तामील हुक्म में ज़रा भी) कोताही नहीं करते फ़िर ये लोग अपने सच्चे मालिक ख़ुदा के पास वापस बुला लिये गये-आगाह रहो के हुकूमत ख़ास उसी के लिए है और वह सब से ज़्यादा हिसाब (2) लेने वाला है (ऐ रसूल) इन से पूछो के तुम्हें खुश्की और तरी के (घटाटोग) अंधेरों से कौन छुटकारा देता है जिस से तुम गिड़गि़ड़ा कर और चुगके (चुपके) दुआए मांगते हो के अगर वह हमें (अब की दफ़ा) इस (बला) से छुटकारा दे तो हम ज़रुर उसके शुक्रगुज़ार (बंदे होकर) रहेंगे तुम कहो इन (मुसीबतों( से और हर बला से ख़ुदा तुम्हे निजात देता है (मगर अफ़सोस) इस पर भी तुम शिर्क करते ही जाते हो
(ऐ रसूल) तुम कह दो वही इस पर अच्छी तरह कूब़ी रखता है के (अगर चाहे तो) तुम पर अज़ाब तुम्हारे (सर के) ऊपर से नाज़िल करें या तुम्हारे पांव के नीचे से (उठा कर खड़ा कर दे) या एक गिरोह को दूसरे से भिड़ा दे और तुम में से कुछ लोगों को बाज़ आदमियों की लड़ाई का मज़ा चखा दें ज़रा ग़ौर तो करो हम किस किस तरह अनी आयतों को उलट पुलट के बयान करते हैं ताके ये लोग समझें और इसी (कुरआन) को तुम्हारी क़ौम ने झुटला दिया हालांके वह बरहक़ है।
(ऐ रसूल) तुम इनसे कहो के मैं तुम पर कुछ निगेहबान तो हूं नहीं हर ख़बर (के पूरा होने) का एक ख़ास वक़्त मुक़र्रर है और अनक़रीब ही तुम जान लोंगे और जब तुम इन लोगों को देखो जो हमारी आयतों में बेहूदा बहस कर रहे हैं तो उनके (के पास) से टल जाओ यहां तक के वह लोग उस के सिवा किसी और बात में बहस करने लगें और अगर (हमारा ये हुक्म) तुम्हे शैतान भूला दे तो याद आने के बाद ज़ालिम लोगों के साथ हरगिज़ न बैठना (1) और ऐसे लोगों (के हिसाब किताब) की जो अबद ही कुछ परहेज़गारी पर तो है नहीं मगर (सिर्फ़ नसीहतन) याद दिलाना (चाहिए) ताके ये लोग भी परहेज़गार बनें और जिन लोगों ने अपने दीन को ख़ेल और तमाशा बना रखा है और दुनियां की ज़िन्दगी में उन को धोके में डाल रखा है ऐसे लोगों को छोड़ो और (मौक़े मौक़े से) कुरआन के ज़रिए से इनको नसीहत करते रहो (ऐसा न हो के) कोई शख़्स अपनी करतूत की बदौलत मुब्तला बला हो जाए (क्योंके उस वक़्त) तो ख़ुदा के सिवा उसका न कोई सरपरस्त होगा न सिफ़ारिशी और अगर (वह अपने गुनाह के एवज़) सारे (जहान का) बदला भी दे तो भी इन में से एक न लिया जाएगा जो लोग अपनी करनी की बदौलत मुब्तला बला हुए हैं उन को पीने के लिए ख़ोलता हुआ गरम पानी (मिलेगा) और (उन पर) दर्दनाक आज़ाब होगा-क्योंकि वह कुफ़्र किया करते थे।
(ऐ रसूल) इन से पूछो तो कि क्या हम लोग ख़ुदा को छोड़ कर इन (माबूद) से मुनाजात करें जो न तो हमें नफ़ा पहुंचा सकते हैं न हमारा कुछ बिगाड़ ही सकते हैं- और जब ख़ुदा हमारी हिदायत कर चुका इसके बाद उल्टे पांव कुफ्र की तरफ़ उस शख़्स की तरह फ़िर जाए जिसे शैतानों ने जंगल में भटका दिया हो और वह हैरान (परेशान) हो (के कहां जाए क्या करे) और इसके कुछ रफीक़ हों के उसे राहे रास्त की तरफ़ पुकारते रह जाए के (इधर) हमारे पास आओ और वह एक न सुने (ऐ रसूल) तुम कह दो के हिदायत तो बस ख़ुदा की हिदायत है और हमें तो हुक्म ही दिया गया है कि हम सारे जहान के परवरदिगार ख़ुदा के फरमाबरदार बन्दे रहें और ये (भी हुक्म हुआ है) के पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और उसी से डरते रहो और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसके हुजूर में तुम सबके सब हाजिर किए जाओगे वही तो वह (खुद़ा है) जिसने ठीक (ठीक) बहुतेरे आसमान व ज़मीन पैदा किए और जिस दिन (किसी चीज़ को) कहता है के वह हो जा तो (फ़ौरन) हो जाती है उसकी क़ौल सच्चा है और जिस दिन सूर फूंका जाएगा (उस दिन) ख़ास उसी की बादशाहत होगी (वही) ग़ाएब व हाजि़र (सब) का जानने वाला है और वही दाना वाक़िफ़क़ार है।
(ऐ रसूल उस वक़्त को याद करो) जब इब्राहीम अपने (मुह बोले) बाप (1) आज़र से कहा क्या तुम बुतों को ख़ुदा मानते हो मैं तो तुम को और तुम्हारी कौम को खुली गुम्राही में देखता हूं और (जिस तरह हम ने इब्राहीम को दिखाया था के बुत क़ाबिल इबादत नहीं) उसी तरह हम इब्राहीम को सारे आसमान और ज़मीन की सलतन्त का (इन्तेज़ाम) दिखाते रहे ताके वह (हमारी वहदानियत का) यक़ीन करने वालों मे हो जाए तो जब उन पर रात की तारीकी छा गई तो एक सितारे को देखा तो दफ़अतन बोल उठे (हाए क्या) यही मेरा ख़ुदा है फिर जब वह डूब गया तो कहने लगे ग़ौरूब हो जाने वाली चीज़ को तो मैं (ख़ुदा बनाना) पसन्द नहीं करता फिर जब चान्द को जगमगाता हुआ देखा तो बोल उठे (क्या) यही मेरा ख़ुदा है फिर जब वह भी ग़ौरूब हो गया तो कहने लगे के अगर (कहीं) मेरा (असली) परवरदिगार मेरी हिदायत न करता तो मैं ज़रुर गुम्राह लोगों में हो जाता फिर जब आफ़ताब को चमकता हुआ देखा तो कहने लगे (क्या) यही मेरा ख़ुदा है ये तो सब से बड़ा (भी) है फ़िर जब ये भी ग़ौरूब हो गया तो कहने लगे ऐ मेरी क़ौम जिन जिन चीज़ों को तुम लोग (ख़ुदा का) शरीक़ (1) बनाते हो उनसे मैं बेज़ार हूँ (यह हरगिज़ खुदा नहीं हो सकते) मैंने तो बातिल से कतरा करे उस की तरफ से मुंह कर लिया है जिसने बहुतेरे आसमान और ज़मीन पैदा किए और मैं मुश्रक़ीन से नहीं हूं और उनकी क़ौम के लोग उनसे हुज्जत करने (2) लगे तो इब्राहीम ने कहा था क्या तुम मुझसे ख़ुदा के बारे में हुज्जत करते हो हालांके वह यक़ीनी मेरी हिदयात कर चुका और तुम जिन बुतों को उन का शरीक मानते हो मैं उनसे डरता (वरता) नहीं (वह मेरा कुछ नहीं कर सकते) मगर हां मेरा ख़ुदा ख़ुद (करना) चाहे (तो अलबत्ता कर सकता है) मेरा परवरदिगार तो बाएतबार इल्म के सब पर हावी है तो क्या इस पर भी तुम नसीहत नहीं मानते और जिन्हें तुम ख़ुदा का शरीक बताते हो मैं उनसे क्यों डरूं जब तुम इस बात से नहीं डरते हो के तुमने ख़ुदा का शरीक ऐसी चीज़ों को बनाया है जिनकी ख़ुदा ने कोई सनद तुम पर नहीं नाज़िल की फ़िर अगर तुम जानते हो तो (भला बताओ तो सही के हम दोनों फ़रीक़ में अमन क़ायम रखने का ज़्यादा हक़दार कौन है- जिन लोगों ने ईमान कूबूल किया और अपने ईमान को जुल्म (शिर्क) से आलूदा नहीं किया उन्हीं लोगों के लिए अमन (व इल्मेनान) है और यही लोग हिदायत याफ़्ता है और ये हमारी (समझाई बुझाई) दलीलें है जो हमने इब्राहीम को अपनी क़ौम पर (ग़ालिब आने के लिए) अता की थी हम जिसके मर्तबे चाहते हैं बुलंद करते हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार हिकमत वाला बा-ख़बर है और हमने इब्राहीम को इसहाक़ व याकूब (सा बेटा पीता) अता किया हमने सब की हिदायत की और इनसे पहले नूह की (भी) हम ही ने हिदायत की और इन्हीं (इब्राहीम) की औलाद से दाऊद व सुलेमान व अयूब व युसूफ़ व मूसा व हारून (सब की हमने हिदायत की) और नेकूकारों का हम ऐसा ही सिला अता फ़रमाते हैं।
और जक़रिया व यहया व ईसा (1) वे इलयास (सब की हिदायत की और ये) सब (खुदा के) नेक बंदों से हैं और इस्माईल व वल्यसाअ व युनूस व लूत (की भी हिदायत की) और सब को सारे जहान पर फ़ज़ीलत अता की और (सिर्फ़ उन्हीं को नहीं बल्कि) उनके बाप दादाओं और उनकी औलाद और उनके भाई बंदुओ में से (बुहुतेरों को) और उनको मुनताख़िब किया और उन्हें सीधी राह की हिदायत की (देखो) ये खुदा की हिदायत है अपने बंदों से जिस को चाहे उसी की वजह से राह पर लाए और अगर इन लोगों ने शिर्क किया होता तो उनका क्या (धरा) सब अकारत हो जाता ये (पैग़म्बर) वह लोग थे जिनको हम ने (आसमान) किताब और हुकूमत और नबूवत अता फ़रमाई पस अगर ये लोग इससे भी न माने तो (कुछ परवाह नहीं) हमने तो उस पर ऐसे लोगों को मुक़र्रर कर दिया है जो (इन की तरह) इंकार करने वाले नहीं (ये अगले पैग़म्बर) वह लोग थे जिनको ख़ुदा ने हिदायत की पस तुम भी उनकी हिदायत की पैरवी करो
(ऐ रसूल इनसे) कहो के मैं तुमसे इस (रिसालत) की मजदूरी कुछ नहीं चाहता ये सारे जहान के लिए सिर्फ़ नसीहत है और बस और इन लोगों (यहूद) ने ख़ुदा की जैसी क़द्र करनी चाहिए न की इसलिए इन लोगों ने (बेहुदापन से) ये कह दिया के ख़ुदा ने किसी बशर पर कुछ नाज़िल ही नहीं किया (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि फ़िर यह किताब जिसे मूसा लेकर आए थे किस ने नाज़िल की जो लोगों के लिए रौशऩी और (अज़सरतापा) हिदायत दी जिसे तुम लोगों ने अलग अलग करके काग़ज़ी औराक़ बना डाले और उसमें का कुछ हिस्सा (जो तुम्हारे मतलब का है वह) तो ज़ाहिर करते हे और बहुतेरे को (जो ख़िलाफ़ मुद्दुआ है) छिपाते हो हालांके उसकी किताब के ज़रिये से तुम्हे वह बाते सिखाई गई जिन्हें तुम न जानते थे और न तुम्हारे बाप दादा
(ऐ रसूल वह तो जवाब देंगे नहीं) तुम ही कह दो के ख़ुदा ने (नाज़िल फ़रमाई) इसके बाद उन्हें छोड़ के (पड़े झक मारा करे और) अपनी तू तू मैं मैं में खेलते फ़िरे और ये (कुरआन) भी वह किताब है जिसे हमने बाबरकत नाजि़ल किया और इस किताब की तसदीक़ करती है जो उसके सामने (पहले से) मौजूद हैं और (इस वास्ते नाज़िल किया है) ताके तुम (उसके ज़रिये से) अहले मक्का और उसके अतराफ़ के रहने वालों को (ख़ौफ़ ख़ुदा से) ड़राओ और जो लोग आख़रत पर ईमान रखते हैं वह तो इस पर (बेतामुल) ईमान लाते हैं और वही अपनी अपनी नमाज़ में भी पाबंदी करते हैं और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूट (मूट) अफ़तेरा करके कहे के हमारे पास (1) वही आई है हालांके उसके पास वही वगै़रह कुछ भी नहीं आई या वह शख़्स दावा करे (2) के जैसा कुरआन खुदा ने नाज़िल किया है वैसा में भी (अभी) अनक़रीब नाज़िल किये देता हूं।
और (ऐ रसूल) काश तुम देखते के ये ज़ालिम मौत की सख़्तियों में पड़े हैं और फ़रिश्ते इन की तरफ़ (जान निकालने के वास्ते) हाथ लपका रहे हैं और कहते जाते हैं के अपनी जाने निकालो आज ही तो तुम को रुसवाई के अज़ाब की सज़ा दी जाएगी क्योंके तुम ख़ुदा पर नाहक़ (नाहक़) झूट छोड़ा करते थे और उसकी आयतों को (सुन कर उन) से अक़ड़ा करते थे और आख़िर तुम हमारे पास इसी तरह तन्हा(3) आए (ना) जिस तरह हम ने तु्मको पहली बार पैदा किया था और जो (माल औलाद) हम ने तुमको दिया था वह सब अपने पसे पुश्त छोड़ आए और तुम्हारे साथ तुम्हारे इन सिफ़रिश करने वालों को भी नहीं देखते जिनको तुम ख़याल करते थे के वह तुम्हारी (परवरिश वग़ैरह) में (हमारे) साझेदार हैं अब तो तुम्हारे बाहमी ताल्लुकात मुनक़ता होगे और जो कुछ तुम ख़याल करते थे वह सब तुमसे ग़ायब हो गये ख़ुदा ही तो गुठली और दाने को शिगाफ़ता (कर के दरख़्त रोईदा) करता है वहीं ज़िन्दा को मुरदे से निकालता है और वही ज़िन्दा से मुरदा को निकालने वाला है।
लोगों) वहीं तुम्हारा ख़ुदा है फ़िर तुम किधर बहके जा रहे हो, उसी के लिए सुबह की पौ फटी और उसी ने आरास के लिए रात और हिसाब के लिए सूरज और चाद बनाए ये ख़ुदाए ग़ालिब व दाना के मुक़र्रर करदाह (उसूल) हैं और वह वही (खुदा) है जिस ने तुम्हारे (नफ़ाअ के) वास्ते सितारे पैदा किये ताके तुम जंगलों और दरयाओं की तारीकियों में इनसे राह मालूम करो जो लोग वाक़िफ़कार हैं उन के लिए हमने (अपनी कुदरत की) निशानियां खूब तफ़सील से बयान कर दी हैं।
और वह वही खुदा है जिसने तुम लोगों को एक शख़्स से पैदा किया फ़िर (हर शख़्स को) क़रार की जगह (बाप की पुश्त) और सौपने की जगह (मां का पेट) मुक़र्रर है हमने समझ़दार लोगों के वास्ते (अपनी कुदरत की) निशानियां खूब तफ़सील से बयान कर दी हैं और वह वही (क़ादिर व तवाना है) जिसने आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने इसके ज़रिये से हर चीज़ के कोपल निकाले फि़र हम ही ने इसे हरी भरी टहनियां निकाली के इससे हम बाहम गुथे हुए दाने निकालते हैं और छुहारे के बौर (मंज़र) से लटके हुए गुच्छे (पैदा किये) और अंगूर और ज़ैतूनों और अनार के बाग़ात जो बाहम सूरत में एक दूसरे से मिलते जुलते और (मज़े में) जुदा जुदा जब यह फले और पक्के तो इसके फल की तरफ़ ग़ौर तो करो बेशक इसमें ईमानदार लोगों को लिए बहुत सी (खुदा की) निशानियां हैं और उन (कमबख़्तों) ने जिन्नात को ख़ुदा का शरीक बनाया हालांकि जिन्नात को भी खुदा ही ने पैदा किया इस पर भी उन लोगों ने बेसमझे बूझे खुदा के लिए बेटे बेटियां गढ़ डाली जो जो बातें ये लोग (उसकी शान में) बयान करते हैं इससे वह पाक व पाकीज़ा और बरतरह हैं सारे आसमान व ज़मीन का मूजिद है उस के कोई लड़का क्यों कर हो सकता है जब उसको कोई बीवी ही नहीं है और उसी ने हर चीज़ को पैदा किया और वही हर चीज़ से खूब वाक़िफ़ है (लोगों) वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नही वही हर चीज़ का पैदा करने वाला है तो उसी की इबादत करे
और वही हर चीज़ का नेगहबान है उसको आंखे देख नहीं सकती (1) (न दुनियां में न आख़रत में) और वह (लोगों की) नज़रों को खूब देखता है और वह बड़ा बारीक बीन ख़बरदार है तुम्हारे पास तो सुझाने वाली चीज़ें आ ही चुकी फिर जो देखे (समझे) तो अपने दम के लिए और जो अंधा बने तो (उसका ज़र्रर भी) खुद उस पर है और (ऐ रसूल इन से कह दो) के मैं तुम लोगों का कुछ निगेहबान तो हूं नहीं और हम (अपनी) आयतें यूं उलट फेर कर बयान करते हैं (ताके हुज्जत तमाम हो) और ताके वह लोग ज़बानी भी इक़रार कर ले के तुम ने (कुरआन इन के सामने) पढ़ दिया और ताके जो लोग जानते हैं उनके लिए (कुरआन को) खूब वाज़ेह करके बयान कर दें जो कुछ तुम्हारे पास तुम्हारे परवदिगार की तरफ़ से वही की जाए बस उसी पर चलो अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही और मुशरिकों से किनारा कश रहो-
और अगर खुदा चाहता तो ये लोग शिर्क ही न करते और हमने तुम को इन लोगों का निगेहबान तो बनाया नहीं है और न तुम इन के ज़िम्मेदार हो और ये (मुशरकीन) जिन की अल्लाह के सिवा (खुदा समझ कर) इबादत करते हैं इन्हें तुम बुरा न कहा करो वरना ये लोग भी खुदा को बे समझे अदावत से बुरा (भला) कह बैठोगे (और लोग अपनी ख़्वाहिश नफ़्सानी के) इस तरह (पाबन्द हो गए के गोया) हम ने खुद हर गिरोह के आमाल इन को सवार कर अच्छे कर दिखाए फिर इन्हें तो (आख़िरकार) अपने परवरदिगार की तरफ़ लौट कर जाना है तब जो कुछ दुनियां में कर रहे थे- खुदा उन्हे बता देगा और उन लोगों ने ख़ुदा की सख़्त सख़्त क़स्में(1) खाई के अगर इन के पास कोई मोजज़े आए तो वह ज़रुर उस पर ईमान लाएंगे (ऐ रसूल) तुम कहो के मोजिज़े तो बस ख़ुदा ही के पास हैं और तुम्हें क्या मालूम यह यक़ीनी बात है के जब मोजज़ा भी आएगा-तो भी ये ईमान न लाएंगे और हम इनके दिल और इनकी आँखें उलट पलट देंगे जिस तरह ये लोग कुरआन पर पहली मर्तबा ईमान नहीं लाए और हम इन्हें इनकी सरकशी की हालत में छोड़ देंगे के सरगरदां रहें ।

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