हालाते ज़िंदगी
उलामा ऐ फरीक़ैन की अकसरीयत का इत्तेफाक़ है कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम 10 रबीउस् सानी 232 हिजरी को रोज़े जुमा बवक्ते सुबह जनाबे हुदैसा खातून की कोख से पैदा हुऐ।
(जिलाउल उयून पेज न. 295)
आपकी विलादत के बाद इमाम अली नकी अ.स. ने रसूले अकरम (स.अ.व.व) के रखे हुऐ नाम हसन बिन अली को आप से मंसूब किया।
(यनाबिउल मुवद्दा)
आपकी कुन्नीयत और अलक़ाब
आपकी कुन्नीयत अबुमौहम्मद थी और आपके अलक़ाब बेशुमार थे। जिनमे सबसे ज्यादा मशहूर लक़ब असकरी, ज़की, सिराज और इब्ने रज़ा हैं।
(नूरूल अबसार पेज न. 150)
आपके ज़माने के बादशाह
आपकी विलादत 232 हि. मे हुई जबकि वासिक़ बिल्लाह बिन मौतसिम बादशाहे वक्त था जो 227 हि. मे खलीफा बना था। फिर 233 मे मुतावक्कल खलीफा हुआ। फिर 236 हि. मे मुसतनसिर बिन मुतावक्किल खलीफा बना था। फिर 248 हि. मे मुसतईन खलीफा बना था फिर 252 हि. मे मौतज़ बिल्लाह खलीफा बना था फिर 255 हि. मे मेहदी बिल्लाह खलीफा बना था फिर 256 हि. मे मौतमद अलल्लाह खलीफा हुआ और इसी ज़माने 260 हि. मे इमाम असकरी अलैहिस्सलाम शहीद हुऐ।
चार माह की उम्र और मंसबे इमामत
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की उम्र जब चार महीने के करीब हुई तो इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने बाद के लिऐ मंसबे इमामत की वसीयत की और फरमाया कि मेरे बाद यही (इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम) मेरे जानशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगो को गवाह कर दिया।
(इरशादे मुफीद 502)
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
चार साल की उम्र मे आपका इराक़ का सफर
मुतावक्कल अब्बासी जो आले मोहम्मद का हमेशा से दुश्मन था। उसने इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को जबरदस्ती 236 हि. मे बुलवा लिया। इमाम असकरी अलैहिस्सलाम को भी दसवे इमाम के साथ इराक़ जाना पड़ा। उस वक्त आपकी उम्र चार साल थी।
(अद्दमतुस् साकेबा जिल्द 3 पेज न. 162)
इमाम असकरी अलैहिस्सलाम और उरूजे फिक्र
आले मौहम्मद अलैहेमुस्सलाम जो उरूजे फिक्र मे खास मक़ाम रखते है और इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम उन्ही हज़रात मे की एक कड़ी है। शिया सुन्नी दोनो के उलामा ने लिखा है कि एक दिन इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम एक ऐसी जगह पर खड़े थे जिस जगह कुछ बच्चे खेल रहे थे इत्तिफाक़न उसी वक्त आरिफे आले मौहम्मद जनाबे बहलोल दाना का गुज़र उधर से हुआ। उन्होने ये देखा कि सब बच्चे खेल रहे है। एक खूबसूरत सुर्ख व सफेद बच्चा खड़ा रो रहा है। जनाबे बहलोल ने इमाम असकरी अलैहिस्सलाम से कहा कि ऐ नोनीहाल मुझे बड़ा अफसोस है कि तुम इसलिऐ रो रहे हो कि तुम्हारे पास वो खिलोना नही है कि जो इन बच्चो के पास है सुनो मै अभी तुम्हारे लिऐ खिलोने लाता हुँ। ये कहना था कि इमाम हसन असकरी ने अपनी कमसिनी के बावजूद फरमाया कि ऐ नासमझ हम खेलने के लिऐ नही पैदा किये गऐ है। हम इल्म और इबादत के लिऐ पैदा किये गऐ है।
जनाबे बहलोल ने पूछाः तुम्हे ये कैसे मालूम हुआ कि हम इल्म और इबादत के लिऐ पैदा किये गऐ है।
तो इमाम ने फरमायाः इसकी हिदायत हमे कुराने मजीद करता है और फिर ये आयत तिलावत फरमाईः
أَفَحَسِبْتُمْأَنَّمَاخَلَقْنَاكُمْعَبَثًاوَأَنَّكُمْإِلَيْنَالَاتُرْجَعُونَ
क्या तुम ये गुमान करते हो कि हमने तुम्हे अबस (बेकार) मे पैदा किया है और क्या तुम हमारी तरफ पलट कर नही आओगे।
(सूराऐ मौमेनून आयत न. 115)
ये सुनकर जनाबे बहलोल हैरान रह गऐ और कहने पर मजबूर हो गऐ कि ऐ बेटा फिर तुम्हे क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे तुमसे गुनाह का तसव्वुर तो हो नही सकता क्योकि तुम बहुत छोटे हो।
इमाम ने फरमाया कि छोटे होने से क्या होता है मैने अपनी माँ को देखा कि वो बड़ी लकड़ीयो को जलाने के लिऐ छोटी लकड़ीयाँ इस्तेमाल करती है।
(सवाऐक़े मोहर्रेक़ा पेज न. 124)
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के साथ बादशाहाने वक्त का सुलूक
जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजुद को उनके अहद के बादशाह अपनी सल्तनत और हुक्मरानी के लिऐ खतरा समझते रहे और उनका ये ख्याल रहा कि दुनिया के दिल इनकी तरफ माएल है क्योकि ये फरज़न्दे रसूल और आमाले नेक के ताजदार है लिहाज़ा इनको लोगो की निगाहो से दूर रखा जाऐ वरना बहुत मुमकिन है कि लोग इन्हे अपना बादशाह न बना ले और ये बुग्ज़ भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाह के मुक़ाबिले मे ज्यादा की जाती है और ये कि इमाम मेहदी इन्ही की नस्ल से होंगे कि जो इंक़ेलाब लाऐंगे।
इन्ही तसव्वुरो ने जिस तरह इमाम के बुज़ुर्गो को चैन की सास न लेने दिया इसी तरह आपके वक्त के बादशाहो ने भी आप पर ज़ुल्म और मसाएब की इंतेहा कर दी।
(तारीखे अबुल फिदा जिल्द 2 पेज न. 14)
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
इमाम अली नकी की शहादत और इमाम हसन असकरी की इमामत का आग़ाज़
जब इमाम अली नकी अलैहिस्सलाम ने अपने फरज़न्द इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शादी जनाबे नरजिस खातून से करदी। जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसीऐ जनाबे ईसा की नस्ल से थी।
(जिलाउल उयून पेज न. 298)
उसके बाद आप 3 रजब 254 हि मे दरजाऐ शहादत पर फाऐज़ हो गऐ।
इमाम नकी अ.स. की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की इमामत का आग़ाज़ हुआ और मोमेनीन ने आपकी खिदमत मे आना जाना, शरई रक़मे लाना और सवाल जबाव का सिलसिला शूरू कर दिया।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने जवाबात मे ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात को लोगो तक पहुचाया कि लोग दंग रह गऐ और हैरत मे पड़ गऐ।
आपने इल्मे ग़ैब और मौत के इल्म तक के सूबूत लोगो के सामने पेश फरमाऐ और इस बात की भी वज़ाहत की कि फुला शख्स को इतने दिन मे मौत आ जाऐगी।
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
इमाम का अपने अक़ीदतमंदो मे दौरा
जाफर बिन शरीफ जरजानी बयान करते है कि मै हज से फराग़त हासिल करके हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की खिदमत मे हाज़िर हुआ और उनसे अर्ज़ की कि मौला अहले जुरजान आपकी मुलाक़ात के खाहिशमंद है।
इमाम ने फरमायाः तुम आज से 190 दिन बाद जुरजान पहुँचोगे और जिस दिन तुम पहुँचोगे उसी दिन शाम को मैं भी पहुँच जाऊँगा। तुम जुरजान वालो को बाखबर कर देना।
और ऐसा ही हुआ जिस दिन मैं जुरजान पहुँचा मौला भी उसी दिन तशरीफ ले आऐ और सब लोगो से मुलाक़ात की। फिर लोगो ने अपनी मुश्किलात मौला के सामने रखी। इमाम ने सबको मुतमईन कर दिया और इसी सिलसिले मे नस्र बिन जाबिर ने अपने फरज़ंद को पेश किया जो नाबीना (अंधा) था हज़रत ने उसके चेहरे पर दस्ते मुबारक फेर कर उसे बीनाई अता की।
(कशफुल ग़ुम्मा पेज न. 128)
एक शख्स ने इमाम को बिना रोशनाई के क़लम से खत लिखा। इमाम ने उसका भी जवाब दिया और साथ ही खत लिखने वाले और उसके बाप का नाम भी तहरीर फरमाया।
ये करामत देख कर वो शख्स हैरान हो गया और इस्लाम ले आया और आपकी इमामत का क़ायल हो गया।
(अद्दमतुस साकेबा पेज न. 172)
पत्थर पर मोहर
सिक़तुल इस्लाम अल्लामा कुलैनी और इमामे अहलैसुन्नत अल्लामा जामी लिखते है कि एक दिन इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की खिदमत मे एक खूबसूरत सा यमनी शख्स आया और उसने एक पत्थर का टुकड़ा पेश करके इमाम से खाहिश की कि आप इस पर अपनी इमामत की तसदीक़ मे मोहर लगा दे। इमाम ने मोहर निकाली और उस पत्थर पर लगा दी। और आपका नामे नामी उस पत्थर पर इस तरह लिखा गया कि जिस तरह मोम पर मोहर लगाने से लिखा जाता है।
(आलामुल वुरा पेज न. 214)
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
इमाम हसन असकरी और खुसुसियाते मज़हब
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का इरशाद है कि हमारे मज़हब मे उन लोगो का शुमार होगा जो उसूलो फुरूअ और दिगर लवाजिमात के साथ साथ इन दस चीज़ो के क़ायल हो बल्कि इन पर अमलपैरा होः
शबो रोज़ मे 5 1 रकत नमाज़ पढ़ना।
सजदागाहे करबला पर सजदा करना।
दाहिने हाथ मे अंगुठी पहनना।
अज़ान और अक़ामत के जुमले दो दो मर्तबा कहना।
अज़ान और अक़ामत मे हय्या अला खैरिल अमल कहना।
नमाज़ मे बुलंद आवाज़ मे बिस्मिल्लाह पढ़ना।
हर दूसरी रकत मे क़ुनुत पढ़ना।
सूरज की ज़रदी से पहले नमाज़े अस्र और तारो के डूब जाने से पहले नमाज़े सुबह पढ़ना।
सर और दाढ़ी मे वस्मा का खिज़ाब लगाना।
नमाज़े मय्यत मे पाँच तकबीर कहना।
(अद्दमतुस साकेबा जिल्द 3 पेज न. 172)
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की गिरफ्तारी
256 हिजरी में मोतमिद अब्बासी ने खिलाफत की बाग डोर संभालते ही अपने खानदानी किरदार को पैश करना शुरू कर दिया और ये कोशिश शुरू कर दी कि ज़मान आले मौहम्मद के वजूद से खाली हो जाऐ। उसने हूक्म दिया कि इस ज़माने मे खानदाने रिसालत की यादगार इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को क़ैद कर दिया जाऐ।
आखिर कार इमाम को क़ैद कर दिया गया और आप पर अली बिन औताश नामी एक नासबी और दुश्मने आले मौहम्मद को मुसल्लत किया गया और उसे कहा गया जो चाहे ज़ुल्म करो तुमसे कोई पूछने वाला नही है और उसने भी हर तरह के ज़ुल्म ढ़हाना शुरू कर दिये। न खुदा का खौफ किया और न पैग़म्बर की शर्म।
लेकिन अल्लाह अल्लाह औलादे पैग़म्बर का ज़ौहद व तक़वा कि दो चार ही दिन मे इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की इबादत ग़ुज़ारी और तक़वा व परहेज़ गारी को देख कर वो शख्स बेहद शर्मिंदा हो गया। यहाँ तक की वो वक़्त आ गया कि अली बिन औताश इमाम के दुश्मनो की सफ से निकल कर आपका चाहने वाला और शिया हो गया।
(आलामुलवुरा पेज न. 218)
अबू हाशिम दाऊद बिन क़ासिम का बयान है कि हम लोग भी इमाम के साथ अपनी क़ैद के दिन गुज़ार रहे थे कि एक दिन ग़ुलाम खाना लाया। हज़रत ने फरमाया के मे शाम का खाना नही लूंगा और उसी दिन अस्र के वक़्त इमाम क़ैदखाने से रिहा हो गऐ।
(आलामुलवुरा पेज न.214)
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
इमाम हसन असकरी अ.स. और उबैदुल्लाह वज़ीर मोतमद अब्बासी
एक बार इमाम असकरी अलैहिस्सलाम मुतावक्कल के वज़ीर फतह इब्ने खाक़ान के बेटे उबैदुल्लाह से कि जो मोतमिद का वज़ीर था, मिलने के लिए तशरीफ ले गऐ। उबैदुल्लाह ने इमाम की बेइन्तेहा ताज़ीम की और इस तरह आपसे महवे गुफ्तूगु हो गया के मोतमद का भाई मुवफ्फक़ दरबार मे आया तो उसने मुवफ्फक़ की कोई परवाह न की। ये हज़रत की क़दरो मन्ज़िलत और खुदा की दी हुई इज़्ज़त का नतीजा था।
(मनाकिबे इब्ने शहर आशोब जिल्द 5 पेज न. 124)
इमाम हसन असकरी अ.स. की शहादत
ग्यारवे इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम क़ैदो बन्द की ज़िन्दगी गुज़ारने के दौरान मे एक दिन अपने खादिम अबू अदयान से इरशाद फरमाते है कि तुम जब अपने मदाइन से पलटोगे तो मेरे घर से रोने-पीटने की सदाऐ आती होगी।
(जिलाउल उयुन पेज न. 299)
अलगरज़ इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को पहली रबीउल अव्वल 260 हि. को मोतमद अब्बासी ने ज़हर दिलवाया और आप 8 रबीउल अव्वल 260 हिजरी को जुमे के दिन सुबह के वक़्त जामे शहादत नोश फरमा गऐ।
इन्ना लिल्लाह व इन्ना इलैहे राजेऊन।
(जिलाउल उयुन पेज न. 296)
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