(चौदह सितारे)
लेखकः मौलाना नजमुल हसन कर्रारवी
है यही ख़ालिक़ की अदालत का तक़ाज़ा दम ब दम
जान लेवा है अगर कोई , तो जां परवर भी हो
छुप के जब जब परदे में बहकाता है इबलीसे लईं
है तक़ाज़ा अद्ल का , परदे में एक रहबर भी हो।।
साबिर थरयानी ‘‘कराची ’’
या इलाही मेहदियम , अज़ ग़ैब आर
त बगरदुद , दर जहाँ अदल आशकार
इमामे ज़माना हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) सिलसिलए अस्मते मोहम्मदिया की चौदहवीं और सिल्के इमामते अलविया की बारहवीं कड़ीं हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) और वालेदा माजेदा नरजिस ख़ातून 1 थीं।
आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमामे मन्सूस , मासूम , आलमे ज़माना और अफ़ज़ले कायनात हैं। आप बचपन ही में इल्मों हिकमत से भर पूर थे। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा पेज न. 124 )
आपको पांच साल की उम्र में वैसी ही हिकमत दे दी गई थी जैसी हज़रते यहिया को मिली थी , और आप बतने मादर में उसी तरह इमाम क़रार दिये गये थे जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) नबी क़रार पाये थे। (कशफ़ुल ग़म्मा पेज न. 130 )
आप अम्बिया से बेहतर हैं। (एसआफ़ुल राग़ेबीन पेज न 128 ) आपके मुताअल्लिक़ हज़रत रसूले करीम (स.अ.व.व.) ने बेशुमार पेशीन गोईयां फ़रमाई हैं और इसकी वज़ाहत की है कि आप हुज़ूर की इतरत और हज़रत फ़ात्मा ज़हरा (स.अ.व.व.) की औलाद से होंगे। मुलाहेज़ा हों (जामए सग़ीर सियूती पेज न. 160 तबा मिस्र व मसनद अहमद बिन हम्बल जिल्द 1 पेज न. 84 तबा मिस्र व कन्ज़ुल हक़ाएक़ पेज न. 122 व मुस्तदरिक जिल्द 4 पेज न. 520 व मिशकात शरीफ़)
आपने यह भी फ़रमाया कि इमाम मेहदी (अ स ) का ज़ुहूर आखि़र ज़माने में होगा और हज़रते ईसा (अ स ) उनके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे। मुलाहेजा़ हो सही बुख़ारी पारा 14 पेज न. 399 व सही मुस्लिम जिल्द 2 पेज न. 95 सही तिर्मिज़ी पेज न. 270 व सही अबू दाऊद जिल्द 2 पेज न. 210 व सही इब्ने माजा पेज न. 204 व पेज न. 209 व जामए सग़ीर पेज न. 134 व अनवारूल हक़ाएक़ पेज न. 90) आपने यह भी कहा है कि इमाम मेहदी (अ स ) मेरे ख़लीफ़ा की हैसियत से ज़हूर करेंगे और यख़तमुद्दीन बेही कमा फ़तेह बना जिस तरह मेरे ज़रिये से दीने इस्लाम का आग़ाज़ हुआ उसी तरह उनके ज़रिये से मुहरे एख़तेताम लगा दी जायेगी। मुलाहेज़ा हो कन्ज़ुल हक़ाएक़ पेज न. 209 । आपने इसकी भी वज़ाहत फ़रमाई है कि इमाम मेहदी (अ स ) का असल नाम मेरे नाम की तरह मोहम्मद और कुन्नियत मेरी कुन्नियत की तरह अबुल का़सिम होगी। वह जब ज़हूर करेंगे तो सारी दुनिया को अदल व इन्साफ़ से उसी तरह पुर कर देंगे जिस तरह वह उस वक़्त ज़ुल्म व जौर से भरी होगी। मुलाहेज़ा हो , जामए सग़ीर पेज न. 104 व मुस्तदरिक इमाम हाकिम पेज न. 422 व 495 । ज़हूर के बाद उनकी फ़ौरन बैअत करनी चाहिये क्यों कि वह ख़ुदा के ख़लीफ़ा होंगे। (सनन इब्ने माजा उर्दू पेज न. 261 तबा किराची 1377 हिजरी)
हाशिया :1 नरजिस एक यमनी बूटी को कहते हैं जिसके फूल की शोअरा आंखों से तशबीह देते हैं। (अल मुंजद पेज न. 835 ) मुन्तहुल अदब जिल्द 4 पेज न. 2227 में है कि यह जुमला दख़ील और मआरब यानी किसी दूसरी ज़बान से लाया गया है। सराह पेज न. 425 और अल मआत सिद्दीक़ हसन पेज न. 47 में है कि यह लफ़्ज़ नरजिस , नरगिस से मआरब है जो कि फ़ारसी है। रिसाला आजकल लखनऊ के सालनामा 1947 ई 0 के पेज न. 118 में है कि यह लफ़्ज़ यूनानी नरकोस से मआरब है। जिसे लातीनी में नरकसस और अंग्रेज़ी में नरसेसिस कहते हैं।
हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) की विलादत ब सआदत
मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी विलादत ब सअदत 15 शाबान 225 हिजरी यौमे जुमा बवक़्ते तुलूए फ़जर वाक़े हुई है। जैसा कि दफ़यातुल अयान , रौज़तुल अहबाब , तारीख़ इब्नुल वरदी , नियाबुल मोवद्दता ,, तारीख़े कामिल , तबरी , कशफ़ुल ग़म्मा , जिला उल अयून , उसूले काफ़ी ,, नूरूल अबसार , इरशाद , जामए अब्बासी , आलाम अल वरा और अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा में मौजूद है।
बाज़ उलेमा का कहना है कि विलादत का सन् 256 हिजरी और माद्दए तारीख़ नूर है। यानी आप शबे बराअत के एख़तेताम पर बवक़्ते सुबहे सादिक़ आलमे ज़हूर व शहूद में तशरीफ़ लाये हैं।
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) की फुफी जनाबे हकीमा ख़ातून का बयान है कि एक रोज़ मैं हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) के पास गई तो आपने फ़रमाया कि ऐ फुफी आप आज हमारे ही घर में रहिये , क्यों कि ख़ुदा वन्दे आलम मुझे आज एक वारिस अता फ़रमायेगा। मैंने कहा यह फ़रज़न्द किस के बतन से होगा ? आपने फ़रमाया कि बतने नरजिस से मुतावल्लिद हो गा। जनाबे हकीमा ने कहा ! बेटे मैं तो नरजिस में कुछ भी हमल के आसार नहीं पाती , इमाम (अ स ) ने फ़रमाया कि ऐ फुफी नरजिस की मिसाल मादरे मूसा जैसी है , जिस तरह हज़रते मूसा का हमल विलादत के वक़्त से पहले ज़ाहिर नहीं हुआ उसी तरह मेरे फ़रज़न्द का हमल भी बर वक़्त ज़ाहिर होगा। ग़रज़ कि इमाम के फ़रमाने से उस वक़्त वहीं रही। जब आधी रात गुज़र गई तो मैं उठी और नमाज़े तहज्जुद में मशग़ूल हो गई , और नरजिस उठ कर नमाज़े तहज्जुद पढ़ने लगी। उसके बाद मेरे दिल में यह ख़्याल गुज़रा कि सुबह क़रीब है और इमाम हसन असकरी (अ स ) ने जो कहा था वह अभी तक ज़ाहिर नहीं हुआ। इस ख़्याल के दिल में आते ही इमाम (अ स ) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी , ऐ फुफी ! जल्दी न किजिये , हुज्जते ख़ुदा के ज़हूर का वक़्त बिलकुल क़रीब है। यह सुन कर मैं नरजिस के हुजरे की तरफ़ पलटी , नरजिस मुझे रास्ते में ही मिलीं , मगर उनकी हालत उस वक़्त मुताग़य्यर थी। वह लरज़ा बर अन्दाम थीं और उनका सारा जिस्म कांप रहा था। (अल बशरा , शराह मोअद्दतुल क़ुरबा पेज न. 139 )
मैंने यह देख कर उनको अपने सीने से लिपटा लिया और सूरा ए क़ुल हो वल्लाह , इन्ना अनज़लना व आयतल कुरसी पढ़ कर उन पर दम किया। बतने मादर से बच्चे की आवाज़ आने लगी , यानी मैं जो कुछ पढ़ती थी वह बच्चा भी बतने मादर में वही कुछ पढ़ता था। उसके बाद मैंने देखा कि तमाम हुजरा रौशन व मुनव्वर हो गया। अब जो मैं देखती हूं तो एक मौलूद मसऊद ज़मीन पर सजदे में पड़ा हुआ है। मैंने बच्चे को उठा लिया। हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी ऐ फुफी ! मेरे फ़रज़न्द को मेरे पास लाईये। मैं ले गई , आपने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और ज़बान दर दहाने वै क़रद और अपनी ज़बान बच्चे के मूँह में दे दी और कहा कि ऐ फ़रज़न्द , ख़ुदा के हुक्म से बात करो , बच्चे ने इस आयत बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम व नर यदान नमन अल्ल लज़ीना असतज़अफ़रा फ़िल अर्ज़ व नजअल हुम अल वारीसैन की तिलावत की जिसक तरजुमा यह है , कि हम चाहते हैं कि एहसान करें उन लोगों पर जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गए हैं और उनको इमाम बनायें और उन्हीं को रूए ज़मीन का वारिस क़रार दें।
इसके बाद कुछ सब्ज़ तारों ने आकर हमें घेर लिया , इमाम हसन असकरी (अ स ) ने उन मे से एक तारे को बुलाया और बच्चे को देते हुए कहा ख़दह फ़ा हिफ़ज़हू इसको ले जा कर इसकी हिफ़ाज़त करो यहां तक कि ख़ुदा इसके बारे में कोई हुक्म दे। क्यो कि ख़ुदा अपने हुक्म को पूरा कर के रहेगा। मैंने इमाम हसन असकरी (अ स ) से पूछा कि यह तारा कौन था और दूसरे तारे कौन थे ? आपने फ़रमाया कि यह जिब्राईल थे और वह दूसरे फ़रिश्तगाने रहमत थे। इसके बाद फ़रमाया कि ऐ फुफी इस फ़रज़न्द को उसकी माँ के पास ले आओ ताकि उसकी आंखें खुनुक हों और महजून व मग़मूम न हो और यह जान ले कि ख़ुदा का वादा हक़ है। व अकसरहुम ला यालमून लेकिन अकसर लोग इसे नहीं जानते इसके बाद इस मौलूदे मसऊद को उसकी माँ के पास पहुँचा दिया गया। (शवाहेदुन नबूवत पेज न. 212 तबा लखनऊ 1905 ई 0 )
अल्लामा हायरी लिखते हैं कि विलादत के बाद आपको जिब्राईल परवरिश के लिये उड़ा ले गये। (ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 75 )
किताब शवाहेदुन नबूवत और वफ़यातुल अयान व रौज़ातुल अहबाब में है कि जब आप पैदा हुए तो मख़्तून और नाफ़ बुरीदा थे और आपके दाहिने बाज़ू पर यह आयत मन्कूश थी। जाअल अक़्क़ो वा ज़ाहाक़ल बातिल इन्नल बातेला काना ज़हूक़ा यानी हक़ आया और बातिल मिट गया और बातिल मिटने ही के का़बिल था। यह क़ुदरती तौर पर बहरे मुताक़ारिब के दो मिसरे बन गये हैं। हज़रत नसीम अमरोहवी ने इस पर क्या ख़ूब तज़मीन की है। वह लिखते हैं
चश्मो , चराग़ दीदए नरजिस
ऐने ख़ुदा की आँख का तारा
बदरे कमाल , नीमए शाबान
चौदहवां अख़्तर औज बक़ा का
हामिए मिल्लत माहिए बिदअत
कुफ्र मिटाने ख़ल्क़ में आया
वक़्ते विलादत माशा अल्लाह
कु़रआन सूरत देख के बोला
जाअल अक़्क़ो वल हक़्क़ुल बातिल
इन्नल बातेला काना ज़हुक़ा
मोहद्दिस देहलवी शेख़ अब्दुल हक़ अपनी किताब मनाक़िबे आइम्मा अतहार में लिखते हैं कि हकीमा ख़ातून जब नरजिस के पास आईं तो देखा कि एक मौलूद पैदा हुआ है। जो मख़तून और मफ़रूग़ मुंह है यानी जिसका ख़तना किया हुआ है और नहलाने धुलाने के कामों से जो मौलूद के साथ होते हैं बिलकुल मुसतग़नी है। हकीमा ख़ातून बच्चे को इमाम हसन असकरी (अ स ) के पास लाईं , इमाम ने बच्चे को लिया और उसकी पुश्ते अक़दस और चश्मे मुबारक पर हाथ फेरा। अपनी ज़बाने मुतहत उनके मुंह में डाली और दाहिने कान में अज़ान और बाएं में अक़ामत कही। यही मज़मून फ़सल अल ख़त्ताब और बेहारूल अनवार में भी है। किताब रौज़तुल अहबाब और नियाबुल मोवद्दता में है कि आपकी विलादत बमुक़ाम सरमन राय ‘‘सामरह मे हुई है।
किताब कशफ़ल ग़म्मा पेज न. 120 में है कि आपकी विलादत छिपाई गई और पूरी सई की गई कि आपकी पैदाईश किसी को मालूम न हो सके। किताब दमए साकेबा जिल्द 3 पेज न. 194 में है कि आपकी विलादत इस लिये छिपाई गई कि बादशाहे वक़्त पूरी ताक़त के साथ आपकी तलाश में था। इस किताब के पेज न. 192 में है कि इसका मक़सद यह था कि हज़रते हुज्जत को क़त्ल कर के नस्ले रिसालत का ख़ात्मा कर दे।
तारीख़े अबूल फ़िदा में है कि बादशाहे वक़्त मोतज़ बिल्लाह था। तज़किरए ख़वासुल उम्मता में है कि उसी के अहद में इमाम अली नकी़ (अ स ) को ज़हर दिया गया था। मोतज़ के बारे में मुवर्रेख़ीन की राय कुछ अच्छी नहीं है। तरजुमा तारीख़ अल खुलफ़ा अल्लामा सियूती के पेज न. 363 में है कि उसने अपनी खि़लाफ़त में अपने भाई को वली अहदी से माज़ूल करने के बाद कोड़े लगवाये थे और ता हयात क़ैद में रखा था। अकसर तवारीख़ में है कि बादशाहे वक़्त मोतमिद बिन मुतावक्किल था जिसने इमाम हसन असकरी (अ स ) को ज़हर से शहीद किया। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पेज न. 67 में है कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल कमज़ोर मतलून मिज़ाज और ऐश पसन्द था। यह अय्याशी और शराब नोशी में बसर करता था। इसी किताब के पेज न. 29 में है कि मोतमिद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) को ज़हर से शहीद करने के बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) को क़त्ल करने के दरपए हो गया था।
आपका नसब नामा
आपका पदरी नसब नामा यह है। मोहम्मद बिन हसन बिन अली बिन मोहम्मद बिन अली इब्ने मूसा इब्ने जाफ़र बिन मोहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली व फ़ात्मा बिन्ते रसूल अल्लाह (स.अ.व.व.) यानी आप फ़रज़न्दे रसूल (स.अ.व.व.) , दिल बन्दे अली (अ स ) और नूरे नज़र बुतूल (स.अ.व.व.) हैं। इमाम अहमद बिन हम्बल का कहना है कि इस सिलसिलाए नसब के असमा को अगर किसी मजनून पर दम कर दिया जाए तो उसे यक़ीनन शिफ़ा हासिल होगी। (मसनद इमाम रज़ा पेज न. 7 ) आपका सिलसिलाए नसब मां की तरफ़ से हज़रत शमऊन बिन हमून अल सफ़आ वसी हज़रत ईसा तक पहुँचता है।
अल्लामा मजलिसी और अल्लामा तबरी लिखते हैं कि आपकी वालेदा जनाब नरजिस ख़ातून थीं। जिनका नाम मलीका भी था। नरजिस ख़ातून यशूआ की बेटी थीं जो राम के बादशाह क़ैसर के फ़रज़न्द थे सिनका सिलसिलाए नसब वसीए हज़रते ईसा (अ स ) जनाब शमऊन तक पहुँचता है। 13 साल की उम्र मे क़ैसरे रोम ने चाहा था कि नरजिस का अक़्द अपने भतीजे से कर दे लेकिन बाज़ क़ुदरती कु़दरती हालात की वजह से वह इस मक़सद में कामयाब न हो सका। बिल आखि़र एक ऐसा वक़्त आ गया कि आलमे अरवाह में हज़रते ईसा (अ स ) , जनाबे शमऊन हज़रते मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ स ) और जनाबे फ़ात्मा (स.अ ) बमक़ाम क़सरे क़ैसर जमा हुए। जनाबे सय्यदा (स अ ) ने नरजिस ख़ातून को इस्लाम की तलक़ीन की और आं हज़रत (स.अ ) बतवस्सुत हज़रत ईसा (अ स ) जनाबे शमऊन से इमाम हसन असकरी (अ स ) के लिये नरजिस ख़ातून की ख़्वास्गारी की , निस्बत की तकमील के बाद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) ने एक नूरी मिम्बर पर बैठ कर अक़्द पढ़ा और कमाले मसर्रत के साथ यह महफ़िले निशात बरख़्वास्त हो गई। जिसकी इत्तेला जनाबे नरजिस को ख़्वाब के तौर पर हुई। बिल आखि़र वह वक़्त आया कि जनाबे नरजिस ख़ातून हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) की खि़दमत में आ पहुँची और आपके बतने मुबारक से नूरे ख़ुदा का ज़हूर हुआ। (किताब जिलाउल उयून पेज न. 298 व ग़ाएतुल मक़सूद पेज न. 175 )
आपका इस्मे गिरामी
आपका नामे नामी व इस्मे गिरामी मोहम्मद और मशहूर लक़ब मेहदी है। उलेमा का कहना है कि आपका नाम ज़बान पर जारी करने की मुमानिअत है।
अल्लामा मजलिसी इसकी ताईद करते हुए फ़रमाते हैं कि हिकमत आन मख़्फ़ी अस्त इसकी वजह पोशीदा और ग़ैर मालूम है। (जिलाउल उयून)
उलेमा का बयान है कि आपका यह नाम खुद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) ने रखा था। मुलाहेज़ा हो रोज़ातुल अहबाब व नियाबुल मोअद्दता।
मुवर्रिख़े आज़म मिस्टर जा़किर हुसैन तारीखे़ इस्लाम जिल्द 1 पेज न. 31 में लिखते हैं कि आं हज़रत (स.अ.व.व.) ने फ़रमाया कि मेरे बाद बारह 12 ख़लीफ़ा क़ुरैश से होंगे। आपने फ़रमाया कि आखि़री ज़माने में जब दुनिया ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी , तो मेरी औलाद में से मेहदी का ज़हूर होगा जो ज़ुल्मो जौर को दूर कर के दुनिया को अदलो इन्साफ़ से भर देगा। शिर्क व कुफ़्र को दुनिया से नाबूद कर देगा। नाम मोहम्मद और लक़ब मेहदी होगा। हज़रत ईसा (अ स ) आसमान से उतर कर उसकी नुसरत करेंगे और उसके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे और दज्जाल को क़त्ल करेंगे।
आपकी कुन्नियत
इस पर उलमाए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी कुन्नियत अबुल का़सिम और अबू अब्दुल्लाह थी और इस पर भी उलेमा मुत्तफ़िक़ हैं कि अबुल क़ासिम कुन्नियत ख़ुद सरवरे कायनात की तजवीज़ करदा है। हुलाहेजा़ हांे (जामेए सग़ीर पेज न. 104 , तज़किराए ख़वास अल उम्मता , पेज न. 204 , रौज़तुल शोहदा पेज न. 439 , सवाऐक़े मोहर्रेक़ा पेज न. 134 , शवाहेदुन नबूवत पेज न. 312 , कशफ़ुल ग़म्मा पेज न. 130 , जिलाउल उयून पेज न. 298 )
यह मुसल्लेमात से है कि आं हज़रत (स.अ.व.व.) ने इरशाद फ़रमाया है कि मेहदी का नाम मेरा नाम और उनकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत होगी। लेकिन इस रवायत में बाज़ अहले इस्लाम ने यह इज़ाफ़ा किया है कि आं हज़रत (स.अ.व.व.) ने यह भी फ़रमाया है कि मेहदी के बाप का नाम मेरे वालिदे मोहतरम का नाम होगा। मगर हमारे रावियों ने इसकी रवायत नहीं की और ख़ुद तिरमिज़ी शरीफ़ में भी इस्मे अबीहा इस्मे अबी नहीं है। ताहम बक़ौल साहेबुल मनाक़िब अल्लामा कन्जी शाफ़ेई यह कहा जा सकता है कि रवायत में लफ़्ज़ अबीहा से मुराद अबू अब्दुल्लाह अल हुसैन हैं यानी इससे इस अम्र की तरफ़ इशारा है कि इमाम मेहदी (अ स ) हज़रत इमाम हुसैन (अ स ) की औलाद से हैं।
आपके अलक़ाब
आपके अलक़ाब मेहदी , हुज्जत उल्लाह , ख़लफ़े अलसालेह , साहेबुल असर व साहेबुल अमर वल ज़मान , अल क़ायम , अल बाक़ी और अल मुन्तज़र हैं। मुलाहेज़ा हो तज़किराए ख़वासुलमता पेज न. 204 , रौज़ातुल शोहदा पेज न. 439 , कशफ़ुल ग़म्मा पेज न. 131 सवाएक़े मोहर्रेक़ा पेज न. 124 , मतालेबुल सुवेल पेज न. 294 , आलाम अल वरा पेज न. 24 हज़रत दानियाल नबी ने हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) की विलादत से 1420 साल पहले आप का लक़ब मुन्तज़िर क़रार दिया है। मुलाहेज़ा हो किताब व दानियाल बाब 12 आएत 12 । अल्लामा इब्ने हजर मक्की अल मुन्तज़िर की शरह करते हुए लिखते हैं कि उन्हें मुन्तज़िर यानी जिसका इन्तेज़ार किया जाए इस लिये कहते हैं कि वह सरदाब में गा़एब हो गए हैं और यह मालूम नहीं होता कि कहां चले गए। मतलब यह है कि लोग उनका इन्तेज़ार कर रहे हैं । शैख़ अल ऐराक़ैन अल्लामा शैख़ अब्दुल रसा तहरीर फ़रमाते हैं कि आपको मुन्तज़र इस लिये कहते हैं कि आप की ग़ैबत की वजह से आपके मुख़लिस आपका इन्तेज़ार कर रहे हैं। मुलाहेज़ा हो। (अनवारूल हुसैनिया जिल्द 2 पेज न. 57 तबा बम्बई)
आपका हुलिया मुबारक
किताब अक्मालुद्दीन में शेख़ सदूक़ तहरीर फ़रमाते हैं कि सरवरे काएनात (स.अ.व.व.) का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ स ) शक्ल व शबाहत ख़ल्क़ व ख़लक़ ख़साएल , अक़वाल व अफ़आल में मेरे मुशाबे होंगे। आपके हुलिये के मुताअल्लिक़ उलमा ने लिखा है कि आपका रंग गन्दुम गून , क़द मियाना है। आपकी पेशानी खुली हुई और आपके अबरू घने और बाहम पेवस्ता हैं , आपकी नाक बारीक और बुलन्द है आपकी आंखें बड़ी और आपका चेहरा नेहायत नूरानी है। आपके दाहिने रूख़सार पर एक तिल है कानहू कौकब दुर जो सितारे की मानिन्द चमकता है। आपके दांत चमकदार खुले हुए हैं आपकी ज़ुल्फ़ें कन्धों तक बड़ी रहती हैं। आपका सीना चैड़ा और आपके कन्धे खुले हुए हैं। आपकी पुश्त पर इसी तरह की मुहरे इमामत सब्त है जिस तरह पुश्ते रिसालत माब (स.अ.व.व.) पर मुहरे नबूअत सबत थी। (अलाम अल वरा पेज न. 265 , व ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 64 , नूरूल अबसार पेज न. 152 )
तीन साल की उम्र में हुज्जतुल्लाह होने का दावा
किताब तवारीख़ व सैर से मालूम होता है कि आप की परवरिश का काम जनाबे जिब्राईल (अ स ) के सिपुर्द था और वही आपकी परवरिश व परदाख्त करते थे। ज़ाहिर है कि जो बच्चा विलादत के वक़्त कलाम कर चुका हो और जिसकी परवरिश जिब्राईल जैसे मुक़र्रब फ़रिश्ते के सिपुर्द हो वह यक़ीनन दुनियां में चन्द दिन गुज़ारने के बाद बहरे सूरत इस सलाहियत का मालिक हो सकता है कि वह अपनी ज़बान से हुज्जतुल्लाह होने का दावा कर सके।
अल्लामा अरबली लिखते हैं अहमद इब्ने इसहाक़ और साद अल अशकरी एक दिन हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) की खि़दमत में हाज़िर हुए और उन्होंने ख़्याल किया कि आज इमाम (अ स ) से यह दरयाफ़्त करेंगे कि आप के बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ कौन होगा। जब सामना हुआ तो इमाम हसन असकरी (अ स ) ने फ़रमाया कि ऐ अहमद ! तुम जो दिल में ले कर आये हो मैं उसका जवाब तुम्हे देता हूँ , यह फ़रमा कर आप अपने मक़ाम से उठे और अन्दर जा कर यूं वापस आये कि आप के कंधे पर एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा था जिसकी उम्र तीन साल की थी। आपने फ़रमाया ऐ अहमद ! मेरे बाद हुज्जते ख़ुदा यह होगा। इसका नाम मोहम्मद और इसकी कुन्नियत अबुल क़ासिम है यह खि़ज़्र की तरह ज़िन्दा रहेगा और ज़ुलक़रनैन की तरह सारी दुनियां पर हुकूमत करेगा। अहमद इब्ने इसहाक़ ने कहा मौला ! कोई ऐसी अलामत बता दीजिए कि जिससे दिल को इत्मीनाने कामिल हो जाए। आपने इमाम मेहदी (अ स ) की तरफ़ मुतावज्जा हो कर फ़रमाया , बेटा इसको तुम जवाब दो। इमाम मेहदी (अ स ) ने कमसिनी के बवजूद बज़बाने फ़सीह फ़रमाया अना हुज्जतुल्लाह व अना बक़ीयतुल्लाह मैं ही ख़ुदा की हुज्जत और हुक्मे ख़ुदा से बाक़ी रहने वाला हूँ। एक वह दिन आयेगा जिसमे मैं दुश्मनाने ख़ुदा से बदला लूंगा , यह सुन कर अहमद ख़ुश व मसरूय व मुतमईन हो गए। (कशफ़ुल ग़म्मा पेज न. 138 )
पांच साल की उम्र मे ख़ासुल ख़ास असहाब से आपकी मुलाक़ात
याक़ूब बिन मनक़ूस व मोहम्मद बिन उस्मान उमरी व अबी हाशिम जाफ़री और मूसा बिन जाफ़र बिन वहब बग़दादी का बयान है कि हम हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) की खि़दमत में हाज़िर हुए और हम ने अर्ज़ कि मौला ! आपके बाद अमरे इमामत किस के सुपुर्द होगा और कौन हुज्जते ख़ुदा क़रार पाऐगा। आपने फ़रमाया कि मेरा फ़रज़न्द मोहम्मद मेरे बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ होगा। हम ने अर्ज़ कि मौला हमे उनकी ज़ियारत करा दीजीए। आपने फ़रमाया वह पर्दा जो सामने आवेख़्ता है उसे उठाओ। हम ने पर्दा उठाया तो उस से एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा जिसकी उमर पाँच साल थी बरामद हुआ और वह आ कर इमाम हसन असकरी (अ स ) की आग़ोश में बैठ गया। यही मेरा फ़रज़न्द मेरे बाद हुज्जतुल्लाह होगा। मोहम्मद बिन उस्मान का कहना है कि हम इस वक़्त चालीस अफ़राद थे और हम सब ने उनकी ज़ियारत की। इमाम हसन असकरी (अ स ) ने अपने फ़रज़न्द इमाम मेहदी (अ स ) को हुक्म दिया कि वह अन्दर चले जाएं और हम से फ़रमाया शुमा ऊरा नख़्वही दीद ग़ैर अज़ इमरोज़ कि अब तुम आज के बाद फिर उसे न देख सकोगे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ फिर ग़ैबत शुरू हो गई।। (कशफ़ुल ग़म्मा पेज न. 139 व शवाहेदुन नबूअत पेज न. 213 )
अल्लामा तबरसी किताब आलाम अल वरा के पेज न. 243 में तहरीर फ़रमाते हैं कि आइम्मा के नज़दीक मोहम्मद और उसमान उमरी दोनों सुक़ह हैं। फिर इसी सफ़ह पर तहरीर फ़रमाते हैं कि अबू हारून का कहना है कि मैंने बचपन में साहेबुज़्ज़मान को देखा है। ‘‘कानहू अलक़मर लैलता अलबदर इनका चेहरा चैदवीं रात के चांद की तरह चमकता था।
इमाम मेहदी (अ स ) नबूवत के आईने में
अल्लामा तबरसी बहवाला हज़रात मासूमीन (अ स ) तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) में बहुत से अम्बिया के हालात व कैफ़ियात नज़र आते हैं और जिन वाक़ेयात से मुख़तलिफ़ अम्बिया को दो चार होना पड़ा वह तमाम वाक़ियात आपकी ज़ात सतूदा पेज न.त में दिखाई देते हैं। मिसाल के लिए हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ स ) हज़रत मूसा (अ स ) हज़रत ईसा (अ स ) हज़रत अय्यूब (अ स ) हज़रत युनूस (अ स ) हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) को ले लीजिए और उनके हालात पर ग़ौर कीजिए। आपको हज़रत नूह (अ स ) की तवील ज़िन्दगी नसीब होगी। हज़रत इब्राहीम (अ स ) की तरह आपकी विलादत छिपाई गई और लोगों से किनारा कश हो कर रूपोश होना पड़ा। हज़रत मूसा (अ स ) की तरफ हुज्जत के ज़मीन से उठ जाने का ख़ौफ़ ला हक़ हुआ और उन्ही कि विलादत की तरह आपकी विलादत भी पोशीदा रखी गई और उन्हीं के मानने वालों की तरह आपके मानने वालों को आपकी ग़ैबत के बाद सताया गया। हज़रत ईसा (अ स ) की तरह आपके बारे में लोगों ने इख़्तेलाफ़ किया। हज़रत अय्यूब (अ स ) की तरह तमाम इम्तेहानात के बाद आपकी फ़र्ज़ व कशाइश नसीब होगी। हज़रत युसुफ़ (अ स ) की तरह अवाम व ख़वास से आपकी ग़ैबत होगी। हज़रत यूनुस (अ स ) की तरह ग़ैबत के बाद आपका ज़हूर होगा। यानी जिस तरह वह अपनी क़ौम से ग़ाएब हो कर बुढ़ापे के बावजूद नौजवान थे उसी तरह आपका जब ज़हूर होगा तो आप चालीस साल के जवान होंगे और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) की तरह आप साहेबुल सैफ़ होंगे। (आलाम अल वरा पेज न. 264 तबा बम्बई 1312 हिजरी)
इमाम हसन असकरी (अ स ) की शहादत
इमाम मेहदी (अ स ) की उम्र अभी सिर्फ़ पाँच साल की हुई थी कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी ने मुद्दतों क़ैद रखने के बाद इमाम हसन असकरी (अ स ) को ज़हर दे दिया जिसकी वजह से आप बतारीख़ 8 रबीउल अव्वल 260 हिजरी मुताबिक़ 873 ब उम्र 28 साल रेहलत फ़रमा गए। वख़ल मन अलविदा बनहूमोहम्मदन और आपने औलाद में सिर्फ़ इमाम मेहदी (अ स ) को छोड़ा। (नुरूल अबसार पेज न. 53 , दमए साकेबा पेज न. 191 )
अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि जब आपकी शहादत की ख़बर मशहूर हुई तो सारे शहर सामरा में हलचल मच गई। फ़रयादो फ़ुग़ां की आवाज़ बुलन्द हो गई , सारे शहर में हड़ताल कर दी गई यानी सारी दुकाने बन्द हो गईं लोगों ने अपने करोबार छोड़ दिये। तमाम बनी हाशिम हुक्कामे दौलत , मुन्शी काज़ी अरकान अदालत , अयान हुकूमत और आम ख़लाएक़ हज़रत के जनाज़े के लिये दौड़ पड़े। हालत यह थी कि शहर सामरा क़यामत का मन्ज़र पेश कर रहा था। तजहीज़ और नमाज़ से फ़राग़त के बाद आपको इसी मकान में दफ़्न कर दिया गया जिस में इमाम अली नक़ी (अ स ) मदफ़ून थे। (नुरूल अबसार पेज न. 152 व तारीख़े कामिल सवाएक़े मोहर्रेक़ा व फ़सूल महमा , जिला अल अयून पेज न. 296 )
अल्लामा मोहम्मद बाक़िर तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन असकरी (अ स ) की वफ़ात के बाद नमाज़े जनाज़ा हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) ने पढ़ाई। मुलाहेज़ा हो , (दमए साकेबा जिल्द 3 पेज न. 192 व जिला अल अयून पेज न. 297 )
अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि नमाज़ के बाद आप को बहुत से लोगों ने देखा और आपके हाथों का बोसा दिया। (आलाम अल वरा पेज न. 242 ) अल्लामा इब्ने ताऊस का इरशाद है कि 8 रबीउल अव्वल को इमाम हसन असकरी (अ स ) की वफ़ात वाक़ेए हुई और 9 रबीउल अव्वल से हज़रत हुज्जत (अ स ) की इमामत का आग़ाज़ हुआ । हम 9 रबीउल अव्वल को जो ख़ुशी मनाते हैं इसकी एक वजह यह भी है। (किताब इक़बाल) अल्लामा मजलिसी लिखते हैं 9 रबीउल अव्वल को उमर बिन साद ब दस्ते मुख़्तार आले मोहम्मद का क़त्ल हुआ। (ज़ाद अल माद पेज न. 585 ) जो उबैदुल्लहा इब्ने ज़्याद का सिपह सालार था , जिसके क़त्ल के बाद आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) ने पूरे तौर पर ख़ुशी मनाई। (बेहारूल अनवार मुख़तार आले मोहम्मद) किताब दमए साकेबा के पेज न. 192 में है कि हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) ने 259 में अपनी वालेदा को हज के लिये भेज दिया था और फ़रमा दिया था कि 260 हिजरी में मेरी शहादत हो जायेगी। इसी सिन में आपने हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) को जुमला तबरूकात दे दिये थे और इस्में आज़म वग़ैरा तालीम कर दिया था। (दमए साकेबा व जिला अल अयून पेज न. 298 ) उन्हीं तबरूकात में हज़रत अली (अ स ) का जमा किया हुआ वह क़ुरान भी था जो तरतीब नुेज़ूल पर सरवरे काएनात की ज़िन्दगी में मुरत्तब किया गया था। (तारीख़ अल ख़ुलफ़ा व अनफ़ान) और जिसे हज़रत अली (अ स ) ने अपने अहदे खि़लाफ़त में भी इस लिये राएज न किया था कि इस्लाम में दो क़ुरआन रवाज पा जायेंगे और इस्लाम में तफ़रेक़ा पड़ जायेगा। (अज़ाता अल ख़फ़ा पेज न. 273 ) मेरे नज़दीक इस सन् में हज़रत नरजिस ख़ातून का इन्तेक़ाल हुआ है और इसी सन् में हज़रत ने ग़ैबत इख़्तेयार फ़रमाई है।
हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) की ग़ैबत और उसकी ज़रूरत
बादशाहे वक़्त ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी जो अपने आबाव अजदाद की तरह ज़ुल्म का ख़ूगर और आले मोहम्मद (अ स ) का जानी दुश्मन था उसके कानों में मेहदी (अ स ) की विलादत की भनक पड़ चुकी थी। उसने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) की शहादत के बाद तकफ़ीन व तदफ़ीन से पहले बक़ौल अल्लामा मजलिसी हज़रत के घर पर पुलिस का छापा डलवाया और चाहा कि इमाम मेहदी (अ स ) को गिरफ़्तार करा ले लेकिन चुकि वह बहुक्मे ख़ुदा 23 रमज़ानुल मुबारक 259 हिजरी को सरदाब में जा कर ग़ायब हो चुके थे। जैसा कि शवाहेदुन नबूवत , नुरूल अबसार , दमए साकेबा , रौज़तुस शोहदा , मनाक़िब अल आइम्मा , अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा से मुुस्तफ़ाद मुस्तबज़ होता है इसी लिये वह उसे दस्तयाब न हो सके। उसने उसके रद्दे अमल में हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) की तमाम बीबीयों को गिरफ़्तार करा लिया और हुक्म दिया कि इस अमर की तहक़ीक़ की जाये कि आया कोई उनमें से हामेला तो नहीं है , अगर कोई हामेला हो तो उसका हमल ज़ाया कर दिया जाए। क्यों कि वह हज़रते सरवरे कायनात (स.अ.व.व.) की पेशीन गोई से ख़ाएफ़ था कि आख़री ज़माने में मेरा एक फ़रज़न्द जिसका नाम मेहदी होगा। कायनात आलम के इन्क़ेलाब का ज़ामिन होगा और उसे यह मालूम था कि वह फ़रज़न्द इमाम हसन असकरी (अ स ) की औलाद से ही होगा , लेहाज़ा उसने आपकी तलाश और आपके क़त्ल की पूरी कोशिश की। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पेज न. 31 में है कि 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ स ) की शहादत के बाद जब मोतमिद ख़लीफ़ए अब्बासी ने आपके क़त्ल करने के लिये आदमी भेजे तो आप (सरदाब) 1 सरमन राय में ग़ायब हो गये। बाज़ अकाबिर उलेमाए अहले सुन्नत भी इस अमर में शियों के हम ज़बान हैं। चुनान्चे मुल्ला जामी ने शवाहेदुन नबूवत में इमाम अब्दुल वहाब शेरानी ने लवाक़ेउल अनवार व अल यूवाक़ेयत वल जवाहर में और शेख़ अहमद मुहिउद्दीन इब्ने अरबी ने फ़तूहाते मक्कीया में और ख़्वाजा पारसा ने फ़सलुल खि़ताब मोहद्दिस देहलवी ने रिसाला आइम्माए ताहेरीन में और जमालुद्दीन मोहद्दिस ने रौज़तुल अहबाब में , अबू अब्दुल्लाह शामी साहब किफ़ातुल तालिब ने किताब अल तिबयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान में और सिब्ते इब्ने जौज़ी ने तज़किराए ख़्वास अल मता , और इब्ने सबाग़ नुरूद्दीन अली मालकी ने फ़सूल अल महमा में और कमालुद्दीन इब्ने तलहा शाफ़ेई ने मतालेबुल सुवेल में और शाह वली उल्लाह फ़ज़ल अल मुबीन में और शेख़ सुलेमान हनफ़ी ने नियाबुल मोवद्दता में और बाज़ दीगर उलेमा ने भी ऐसा ही लिखा है और जो लोग इन हज़रत के तवील उम्र में ताअज्जुब कर के इन्कार करते हैं उनको यह जवाब देते हैं कि ख़ुदा की क़ुदरत से कुछ बईद नहीं है जिसने आदम (अ स ) को बग़ैर माँ बाप के और ईसा (अ स ) बग़ैर बाप के पैदा किया , तमाम अहले इस्लाम ने हज़रत खि़ज़्र (अ स ) को अब तक ज़िन्दा माना हुआ है। इदरीस (अ स ) बेहिशत में और हज़रत ईसा (अ स ) आसमान पर अब तक ज़िन्दा माने जाते हैं और अगर ख़ुदाए ताअला ने आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) में से एक शख़्स को तुले उम्र इनायत किया तो ताअज्जुब क्या है ? हालां कि अहले इस्लाम को दज्जाल के मौजूद होने के क़रीबे क़यामत ज़हूर करने से इन्कार नहीं है। किताब शवाहेदुन नबूवत पेज न. 68 में है कि ख़ानदाने नबूवत के ग्यारवे इमाम हसन असकरी (अ स ) 260 हिजरी में ज़हर से शहीद कर दिये गये थे उनकी वफ़ात पर इनके साहब ज़ादे मोहम्मद लक़ब व मेहदी शियों के आख़री इमाम हुए।
मौलवी अमीर लिखते हैं कि ख़ानदाने रिसालत के इन इमामों के हालात निहायत दर्द नाक हैं। ज़ालिम मुतावक्किल ने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) के वालिदे माजिद इमाम अली नकी़ (अ स ) को मदीने से सामरा पकड़ बुलाया था और वहां उनकी वफ़ात तक उनको नज़र बन्द रखा था फिर ज़हर से हलाक कर दिया था इसी तरह मुतावक्किल के जां नशीनों ने बदगुमानी और हसद के मारे हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) को क़ैद रखा था। उनके कमसिन साहब ज़ादे मोहम्मद अल मेहदी (अ स ) जिनकी उम्र अपने वालिद की वफ़ात के वक़्त पांच साल की थी ख़ौफ़ के मारे अपने घर के क़रीब ही एक ग़ार में छुप गये और ग़ायब हो गये। इब्ने बतूता ने अपने सफ़र नामे में लिखा है कि जिस ग़ार में इमाम मेहदी (अ स ) की ग़ैबर बताई जाती है उसे मैंने अपनी आंखों से देखा है। (नूरूल अबसार जिल्द 1 पेज न. 152 ) अल्लामा हजरे मक्की का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ स ) सरदाब में ग़ायब हुये थे। फ़ल्म यारफ़ ईं ज़हब फिर मालूम नहीं कहां तशरीफ़ ले गये। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा पेज न. 124 )
हाशिया :1 यह सरदाब मक़ाम सरमन राय में वाक़े है जिसे असल में सामेरा कहते हैं। सामरा की आबादी बहुत ही क़दीमी है और दुनियां के क़दीम तरीन शहरों में से एक शहर है। इसे साम बिन नूह ने आबाद किया था और इसी को दारूल सलतनत भी बनाया था। इसकी आबादी सात फ़रसख़ लम्बी थी। इसने इसे निहायत ख़ूब सूरत शहर बना दिया था इस लिये इसका नाम सरमन राय रख दिया था यानी वह शहर जिसे जो भी देखे ख़ुश हो जाए , असकरी इसी का एक मोहल्ला है जिसमें इमाम अली नक़ी (अ स ) नज़र बन्द थे बाद में उन्होंने दलील बिन याक़ूब नसरानी से एक मकान ख़रीद लिया था जिसमें अब भी आपका मज़ार मुक़द्दस वाक़े है।
सामरा में हमेशा ग़ैर शिया आबादी रही इसी लिये अब तक वहां शिया आबाद नहीं हैं वहां के जुमला ख़ुद्दाम भी ग़ैर शिया हैं।
हज़रत हुज्जत (अ स ) के ग़ाएब होने का सरदाब वहीं एक मस्जिद के किनारे वाक़े है जो हज़रत इमाम अली नक़ी (अ स ) और हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स ) के मज़ारे अक़दस के क़रीब है।
ग़ैबते इमाम मेहदी (अ स ) पर उलेमाए अहले सुन्नत का इजमा
जम्हूरे उलेमाए इस्लामा इमाम मेहदी (अ स ) के वुजूद को तसलीम करते हैं। इसमें शिया सुन्नी का सवाल नहीं हर फ़िरक़े के उलेमा यह मानते हैं कि आप पैदा हो चुके हैं और मौजूद हैं। हम उलेमाए अहले सुन्नत के अस्मा मय उनकी किताबों और मुख़्तसर अक़वाल के दर्ज करते हैं।
1 अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई किताब मतालेबुल सुवेल में फ़रमाते हैं कि इमाम मेहदी (अ स ) सामरा में पैदा हुए जो बग़दाद से 20 फ़रसख़ के फ़ासले पर है।
2 अल्लामा अली बिन मोहम्मद बिन सबाग़ मालकी की किताब फ़ुसूल अल महमा में है कि इमाम हसन असकरी (अ स ) गयाहरवें इमाम ने अपने बेटे इमाम मेहदी (अ स ) की विलादत बादशाहे वक़्त से ख़ौफ़ से पोशीदा रखी।
3 अल्लामा शेख़ अब्दुल्लाह बिन अहमद ख़साब की किताब तवारीख़ मवालीद में है कि इमाम मेहदी (अ स ) का नाम मोहम्मद और कुन्नियत अबुल क़ासिम है। आप आख़री ज़माने में ज़हूर व ख़ुरूज करेंगे।
4 अल्लामा मुहिउद्दीन इब्ने अरबी हम्बली की किताब फ़तूहात में है कि जब दुनियां ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी तो इमाम मेहदी (अ स ) ज़हूर करेंगे।
5 अल्लामा शेख़ अब्दुल वहाब शेरानी की किताब अल यूवाक़ियात वल जवाहर में है कि इमाम मेहदी (अ स ) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। अब इस वक़्त यानी 958 हिजरी में उनकी उम्र सात सौ छः ( 706 साल) की है। हयी मज़मून अल्लामा बदख़शानी की किताब मिफ़ताह अल नजाता में भी है।
6 अल्लामा अब्दुल रहमान जामी हनफ़ी की किताब शवाहेदुन नबूवत में है कि इमाम मेहदी (अ स ) सामरा में पैदा हुए हैं और उनकी विलादत पोशीदा रखी गई है। वह इमाम हसन असकरी (अ स ) की मौजूदगी में ग़ाएब हो गए हैं। इसी किताब में विलादत का पूरा वाक़ेया हकीमा ख़ातून की ज़बानी लिखा है।
7 अल्लामा शेख़ अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी की किताब मनाक़ेबुल आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ स ) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। इमाम हसन असकरी (अ स ) ने उनके कान में अज़ान व इक़ामत कही है और थोड़े अर्से के बाद आपने फ़रमाया कि वह उस मालिक के सुपुर्द हो गये हैं जिनके पास हज़रते मूसा (अ स ) बचपने में थे।
8 अल्लामा जमाल उद्दीन मोहद्दिस की किताब रौज़ातुल अहबाब में है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए और ज़मानाए मोतमिद अब्बासी में बमक़ाम सरमन राय अज़ नज़र बराया ग़ायब शुद , लोगों की नज़र से सरदाब में ग़ायब हो गये।
9 अल्लामा अब्दुल रहमान सूफ़ी की किताब मराएतुल इसरार में है कि आप बतने नरजिस से 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए।
10 अल्लामा शहाबुद्दीन दौलताबादी साहेबे तफ़सीर बहरे मवाज की किताब हिदाएतुल सआदा में है कि खि़लाफ़ते रसूल (स.अ.व.व.) हज़रत अली (अ स ) के वास्ते से इमाम मेहदी (अ स ) तक पहुँची आप ही आख़री इमाम हैं।
11 अल्लामा नसर बिन अली जहमनी की किताब मवालिदे आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ स ) नरजिस ख़ातून के बतन से पैदा हुए हैं।
12 अल्लामा मुल्ला अली क़ारी की किताब मरक़ात शरह मिशक़ात में है कि इमाम मेहदी (अ स ) बारहवें इमाम हैं। शियो का यह कहना ग़लत है कि अहले सुन्न्त अहते बैत (अ स ) के दुश्मन हैं।
13 अल्लामा जवाद साबती की किताब बराहीन साबतीया मे है कि इमाम मेहदी (अ स ) औलादे फ़ात्मा (स.अ.व.व.) में से हैं। वह बक़ौले 255 हिजरी में पैदा हो कर एक अर्से के बाद ग़ायब हो गये हैं।
14 अल्लामा शेख़ हसन ईराक़ी जिनकी तारीफ़ किताब अल वाक़ेया में है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ स ) से मुलाक़ात की है।
15 अल्लामा अली ख़वास जिनके मुताअल्लिक़ शेरानी ने अल यूवाक़ियत में लिखा है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ स ) से मुलाक़ात की है।
16 अल्लामा शेख़ सईद उद्दीन का कहना है कि इमाम मेहदी (अ स ) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं। दौरे आखि़र ज़माना आशकार गरदद और वह आखि़र ज़माने में ज़ाहिर होंगे। जैसा कि किताब मस्जिदे अक़सा में है।
17 अल्लामा अली अकबर इब्ने सआद अल्लाह की किताब मकाशिफ़ात में है कि आप पैदा हो कर कुतुब हो गये हैं।
18 अल्लामा अहमद बिला ज़री अहादीस में लिखते हैं कि आप पैदा हो कर महज़ूब हो गये हैं।
19 अल्लामा शाह वली अल्लाह मोहद्दिस देहलवी के रिसाले नवादर में है , मोहम्मद बिन हसन (अ स ) (अल मेहदी) के बारे में शियों का कहना दुरूस्त हैं।
20 अल्लामा शम्सुद्दीन जज़री ने बहवाला मुसलसेलात बिलाज़री ने एतेराफ़ किया है।
21 अल्लामा अलाउद्दौला अहमद समनानी साहब तारीख़े ख़मीस दर अहवाली अल नफ़स नफ़ीस अपनी किताब में लिखते है कि इमाम मेहदी (अ स ) ग़ैबत के बाद एबदाल फिर कु़तुब हो गये।
23 अल्लामा नूर अल्लाह बहवाला किताब बयानुल एहसान लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ स ) तकमीले सिफ़ात के लिये ग़ायब हुये हैं।
24 अल्लामा ज़हबी अपनी तारीख़े इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ स ) 256 हिजरी में पैदा हो कर मादूम हो गये हैं।
25 अल्लामा इब्ने हजर मक्की की किताब सवाएक़े मोहर्रेक़ा में है कि इमाम मेहदी अल मुन्तज़र (अ स ) पैदा हो कर सरदाब में ग़ायब हो गए हैं।
26 अल्लामा अस्र की किताब दफ़यातुल अयान की जिल्द 2 पेज न. 451 में है कि इमाम मेहदी (अ स ) की उम्र इमाम हसन असकरी (अ स ) की वफ़ात के वक़्त 5 साल की थी। वह सरदाब में ग़ाएब हो कर फिर वापस नहीं हुए।
27 अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी की किताब तज़किराए ख़वास अल आम्मा के पेज न. 204 में है कि आपका लक़ब अल क़ायम , अल मुन्तज़िर , अल बाक़ी है।
28 अल्लामा अबीद उल्लाह अमरतसरी की किताब अर हज्जुल मतालिब के पेज न. 377 में बहवाला किताबुल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़ान मरक़ूम है कि आप उसी तरह ज़िन्दा व बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , खि़ज़्र (अ स ) , इलयास (अ स ) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं।
29 अल्लामा शेख़ सुलैमान तमन दोज़ी ने किताब नियाबुल मोवद्दता पेज न. 393 में।
30 अल्लामा इब्ने ख़शाब ने किताब मवालिद अलले बैत में।
31 अल्लामा शिब्लन्जी ने नूरूल अबसार के पेज न. 152 तबा मिस्र 1222 हिजरी में बहवाला किताबुल बयान लिखा है कि इमाम मेहदी (अ स ) ग़ायब होने के बाद अब तक ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उनके वजूद के बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शुबहा नहीं। वह इसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रते ईसा (अ स ) , हज़रते खि़ज़्र (अ स ) और हज़रत इलयास (अ स ) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं। उन अल्लाह वालों के अलावा दज्जाल , इबलीस भी ज़िन्दा हैं। जैसा कि क़ुरआने मजीद , सही मुस्लिम , तारीख़े तबरी वग़ैरा से साबित है लेहाज़ा ला इमतना फ़ी बक़ाया उनके बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शक व शुबहे की गुन्जाईश नहीं है।
32 अल्लामा चलपी किताब कशफ़ुल जुनून के पेज न. 208 में लिखते हैं कि किताब अल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन यूसुफ़ कंजी शाफ़ेई की तसनीफ़ हैं। अल्लामा फ़ाज़िल रोज़ बहान की अबताल अल बातिल में है कि इमाम मेहदी (अ स ) क़ायम व मुन्तज़िर हैं। वह आफ़ताब की मानिन्द ज़ाहिर हो कर दुनिया की तारीकी , कुफ़्र ज़ाएल कर देंगे।
33 अल्लामा अली मुत्तक़ी की किताब कंज़ुल आमाल की जिल्द 7 के पेज न. 114 में है कि आप ग़ायब हैं ज़ुहूर कर के 9 साल हुकूमत करेंगे।
34 अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती की किताब दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पेज न. 23 में है कि इमाम मेहदी (अ स ) के ज़हूर के बाद हज़रते ईसा (अ स ) नाज़िल होंगे वग़ैरा वग़ैरा।
इमाम मेहदी (अ स ) की ग़ैबत और आपका वुजूद व ज़ुहूर क़ुरआने मजीद की रौशनी में
हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) की ग़ैबत और आपके मौजूद होने और आपके तूले उम्र नीज़ आपके ज़ुहूर व शहूद और ज़हूर के बाद सारे दीन को एक कर देने के मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआन मजीद में मौजूद हैं जिनमें से अकसर दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है। इसी तरह बेशुमार ख़ुसूसी अहादीस भी हैं। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों। ग़ाएतुल मक़सूद व ग़ाएतुल मराम , अल्लामा हाशिम बहरानी व नियाबतुल मोवद्दता। मैं इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो तीन आयतें लिखता हूँ आपकी ग़ैबत के मुताअल्लिक़। अलीफ़ लाम्मीम। ज़ालेकल किताबो ला रैबा फ़ीहे हुदल्लीम मुत्तक़ीन। अल लज़ीना यौमेनूना बिल ग़ैब है।
हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) फ़रमाते हैं कि ईमान बिल ग़ैब से इमाम मेहदी (अ स ) की ग़ैबत मुराद है। नेक बख़्त हैं वह लोग जो उनकी ग़ैबत पर सब्र करें और मुबारकबाद के क़ाबिल हैं , वह समझदार लोग जो ग़ैबत मे भी उनकी मोहब्बत पर क़ायम रहेंगे। (नेयाबुल मोवद्दता पेज न. 370 तबा बम्बई) आपके मौजूद और बाक़ी होने के मुताअल्लिक़ जाअलहा कलमता बाक़ियता फ़ी अक़बा है। इब्राहीम (अ स ) की नस्ल में कलमा बक़िया को क़रार दिया है जो बाक़ी और ज़िन्दा रहेगा। इस कलमाए बाक़िया से इमाम मेहदी (अ स ) का बाक़ी रहना मुराद है और वही आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) में बाक़ी हैं। (तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी पेज न. 226 ) नम्बर 3 , आपके ज़हूर और ग़लबे के मुताअल्लिकत्र यनज़हरहू अलद्दीने कुल्लाह जब इमाम मेहदी (अ स ) ब हुक्मे ख़ुदा ज़हूर फ़रमाएंगे तो तमाम दीनों पर ग़लबा हासिल कर लेंगे यानी दुनिया में सिवा एक दीने इस्लाम के कोई और दीन न होगा। (नूरूल अबसार पेज न. 153 तबा मिस्र)
इमाम मेहदी (अ स ) का ज़िक्र कुतुबे आसमानी में
हज़रत दाऊद (अ स ) की ज़बूर की आयत 4 मरमूज़ 97 में है कि आख़री ज़माने में जो इन्साफ़ का मुजस्सेमा इन्सान आयेगा , उसके सर पर अब्र साया फ़िगन होगा। किताब सफ़याए पैग़म्बर के फ़सल 3 आयत 9 में है आख़री ज़माने में तमाम दुनिया मोवहिद हो जायेगी। किताब ज़बूर मरमूज़ 120 में है , जो आख़ेरूज़्ज़मान आयेगा उस पर आफ़ताब असर अन्दाज़ न होगा। सहीफ़ए शैया पैग़म्बर के फ़सल 11 मे है कि जब नूरे ख़ुदा ज़हूर करेगा तो अदलो इन्साफ़ का डन्का बजेगा , शेर और बकरी एक जगह रहेगे , चीता और बाज़गाला एक साथ चरेंगे। शेर और गौसाला एक साथ रहेंगे , गोसाला और मुर्ग़ एक साथ होंगे। शेर और गाय में दोस्ती होगी। तिफ़ले शीर ख़्वार सांप के बिल में हाथ डालेगा और वह काटेगा नहीं। फिर इसी सफ़हे के फ़सल 27 में है कि यह नूरे ख़ुदा जब ज़ाहिर होगा तो तलवार के ज़रिये तमाम दुश्मनों से बदला लेगा। सहीफ़ए तनजास हरफ़े अलिफ़ में है कि ज़हूर के बाद सारी दुनिया के बुत मिटा दिये जायेंगे ज़ालिम और मुनाफ़िक़ ख़त्म कर दिये जायेंगे। यह ज़हूर करने वाला कनीज़े ख़ुदा (नरजिस) का बेटा होगा।
तौरैत के सफ़रे अम्बिया में है कि मेहदी (अ स ) ज़हूर करेंगे। हज़रज ईसा (अ स ) आसमान से उतरेंगे। दज्जाल को क़त्ल करेंगे। इन्जील में है कि मेहदी (अ स ) और ईसा (अ स ) दज्जाल और शैतान को क़त्ल करेंगे। इसी तरह मुकम्मल वाक़िया जिसमें शहादते इमाम हुसैन (अ स ) और ज़हूरे मेहदी (अ स ) का इशारा हैं इन्जील किताब दानियाल बाब 12 फ़सल 9 आयत 24 रोयाए 2 में मौजूद है। (किताब अल वसाएल पेज न. 129 तबा बम्बई 1339 हिजरी)
इमाम मेहदी (अ स ) की ग़ैबत की वजह
मज़कूरा बाला तहरीरों से उलेमाए इस्लाम का एतेराफ़ साबित हो चुका यानी वाज़े हो गया कि इमाम मेहदी (अ स ) के मुताअल्लिक़ जो अक़ाएद शियो के हैं वही मुन्सिफ़ मिज़ाज और ग़ैर मुताअस्सिब अहले तसन्नुन के उलेमा के भी हैं और मक़सदे असल की ताईद क़ुरआन की आयतों ने भी कर दी। अब रही ग़ैबते इमाम मेहदी (अ स ) की ज़रूरत उसके मुताअल्लिक़ अर्ज़ है कि , 1 ख़ल्लाक़े आलम ने हिदायते ख़ल्क़ के लिये एक लाख चैबीस हज़ार पैग़म्बर और कसीर तादाद में उनके औसिया भेजे। पैग़म्बरों में से एक लाख तेहीस हज़ार नौ सौ निन्नियानवे (1 , 23 , 999 ) अम्बिया के बाद चूंकि हुज़ूर रसूले करीम (स.अ.व.व.) तशरीफ़ लाये थे लेहाज़ा उनके जुमला सिफ़ात व कमालात व मोजेज़ात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ ) में जमा कर दिये गये थे और आपको ख़ुदा ने तमाम अम्बिया के सिफ़ात का जलवा बरदार बना दिया बल्कि ख़ुद अपनी ज़ात का मज़हर क़रार दिया था और चूंकि आपको भी इस दुनियाए फ़ानी से ज़ाहिरी तौर पर जाना था इस लिये आपने अपनी ज़िन्दगी ही मे हज़रत अली (अ स ) को हर क़िस्म के कमालात से भर पूर कर दिया था। हज़रत अली (अ स ) अपने ज़ाती कमालात के अलावा नबवी कमालात से भी मुम्ताज़ हो गये थे। सरवरे कायनात के बाद कायनाते आलम में सिर्फ़ अली (अ स ) की हस्ती थी जो कमालाते अम्बिया की हामिल थी। आपके बाद यह कमालात अवसाफ़ में मुन्तिक़िल होते हुए इमाम मेहदी (अ स ) तक पहुँचे। बादशाहे वक़्त इमाम मेहदी (अ स ) को क़त्ल करना चाहता था। अगर वह क़त्ल हो जाते तो दुनियां से अम्बिया व औसिया का नाम व निशान मिट जाता और सब की यादगार बयक ज़र्ब शमशीर ख़त्म हो जाती और चुंकि उन्हें अम्बिया के ज़रिये से ख़ुदा वन्दे आलम मुताअरिफ़ हुआ था लेहाज़ा उसका भी ज़िक्र ख़त्म हो जाता। इस लिये ज़रूरी था कि ऐसी हस्ती को महफ़ूज़ रखा जाए जो जुमला अम्बिया और अवसिया की यादगार और तमाम के कमालात की मज़हर हो। 2 ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया वाजालाहा कमातह बाक़ीयता फ़ी अक़बे इब्राहीम (अ स ) की नस्ल मे कलमा बाक़ीहा क़रार दे दिया है। नस्ले इब्राहीम (अ स ) दो फ़रज़न्दों से चली है एक इस्हाक़ (अ स ) और दूसरे इस्माईल (अ स ) । इस्हाक़ (अ स ) की नस्ल से ख़ुदा वन्दे आलम जनाबे ईसा (अ स ) को ज़िन्दा व बाक़ी क़रार दे कर आसमान पर महफ़ूज़ कर चुका था अब यह मुक़तज़ाए इन्साफ़ ज़रूरी थी कि नस्ले इस्माईल (अ स ) से भी किसी एक को बाक़ी रखे और वह भी ज़मीन पर क्यो कर आसमान पर एक बाक़ी मौजूद था लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ स ) को जो नस्ले इस्माईल (अ स ) से हैं ज़मीन पर ज़िन्दा और बाक़ी रखा और उन्हें भी इसी तरह दुश्मन के शर से महफ़ूज़ कर दिया जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) को महफ़ूज़ किया था। 3 यह मुसल्लेमाते इस्लामी से है कि ज़मीन हुज्जते ख़ुदा और इमामे ज़माना से ख़ाली नहीं रह सकती। (उसूले काफ़ी 103 तबा नवल किशोर) चुंकि हुज्जते ख़ुदा उस वक़्त इमाम मेहदी (अ स ) के सिवा कोई न था , उन्हें दुश्मन क़त्ल कर देने पर तुले हुए थे इस लिये उन्हे महफ़ूज़ व मस्तूर कर दिया गया। हदीस में है कि हुज्जते ख़ुदा की वजह से बारीश होती है और उन्हीं के ज़रिये से रोज़ी तक़सीम की जाती है। (बेहार)4 यह मुसल्लम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) जुमला अम्बिया के मज़हर थे इस लिये ज़रूरत थी कि उन्हीं की तरह उनकी ग़ैबत भी होती यानी जिस तरह बादशाहे वक़्त के मज़ालिम की वजह से हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ स ) , हज़रत मूसा (अ स ) , हज़रत ईसा (अ स ) और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) अपने अहदे हयात में मुनासिब मुद्दत तक ग़ाएब रह चुके थे इसी तरह यह भी ग़ाएब रहते। 5 क़यामत का आना मुसल्लम है और इस वाक़िये क़यामत में इमाम मेहदी (अ स ) का ज़िक्र बताता है कि आपकी ग़ैबत मस्लहते ख़ुदा वन्दे आलम की बिना पर हुई है। 6 सुरए इन्ना अन ज़ल्नाहो से मालूम होता है कि नुज़ूले मलाएक शबे क़दर में होता रहता है यह ज़ाहिर है कि नुज़ूले मलाएक अम्बिया व औसिया पर ही हुआ करता है। इमाम मेहदी (अ स ) को इस लिये मौजूद और बाक़ी रखा गया है ताकि नुज़ूले मलाएक की मरकज़ी ग़रज़ पूरी हो सके और शबे क़द्र में उन्हीं पर नुज़ूले मलाएक हो सके। हदीस में है कि शबे क़द्र में साल भर की रोज़ी वगै़रह इमाम मेहदी (अ स ) तक पहुँचा दी जाती है और वही उसे तक़सीम करते हैं। 7 हकीम का फ़ेल हिकमत से ख़ाली नहीं होता यह दूसरी बात है कि आम लोग इस हिकमत व मसेलहत से वाक़िफ़ न हों। ग़ैबते इमाम मेहदी (अ स ) उसी तरह मसलेहत व हिकमते ख़ुदा वन्दी की बिना पर अमल में आई है। जिस तरह तवाफ़े काबा , रमी जमरात वग़ैरह हैं जिसकी असल मसलेहत ख़ुदा वन्दे आलम को ही मालूम है।। 8 इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ स ) का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ स ) को इस लिये ग़ायब किया जायेगा ताकि ख़ुदा वन्दे आलम अपनी सारी मख़लूक़ात का इम्तेहान कर के यह जांचे कि नेक बन्दे कौन हैं और बातिल परस्त कौन लोग है। (इकमालुद्दीन)9 चूंकि आपको अपनी जान का ख़ौफ़ था और यह तय शुदा है कि मन ख़ाफ अली नफ़सही एहसताज अली इला सत्तार कि जिसे अपने नफ़्स और अपनी जान का ख़ौफ़ हो वह पोशीदा होने को लाज़मी जानता है। (अल मुतुर्जा़)10 आपकी ग़ैबत इस लिये वाक़े हुई है कि ख़ुदा वन्दे आलम एक वक़्ते मोइय्यन में आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) पर जो मज़ालिम किये गए हैं इनका बदला इमाम मेहदी (अ स ) के ज़रिये से लेगा यानी आप अहदे अव्वल से लेकर बनी उमय्या और बनी अब्बास के मज़ालिमों से मुकम्मिल बदला लेंगे। (कमालुद्दीन)
ग़ैबते इमाम मेहदी (अ स ) जफ़र जामए की रौशनी में
अल्लामा शेख़ क़न्दूज़ी बलख़ी हनफ़ी रक़मतराज़ हैं कि सुदीर सैरफ़ी का बयान है कि हम और मुफ़ज़ल बिन उमर , अबू बसीर , अमान बिन तग़लब एक दिन सादिक़े आले मोहम्मद (अ स ) की खि़दमत में हाज़िर हुए तो देखा कि आप ज़मीन पर बैठे हुए रो रहे हैं और कहते हैं कि ऐ मोहम्मद ! तुम्हारी ग़ैबत की ख़बर ने मेरा दिल बेचैन कर दिया है। मैंने अर्ज़ कि हुज़ूर , ख़ुदा की आंखों को कभी न रूलाए , बात क्या है , किस लिए हुज़ूर गिरया कुना हैं ? फ़रमाया , ऐ सुदीर ! मैंने आज किताब जाफ़र जामे में बवक़्ते सुबह इमाम मेहदी की ग़ैबत का मुताला किया है। ऐ सुदीर ! यह वह किताब है जिसमे आमा माकाना वमायकून का इन्दराज है और जो कुछ क़यामत तक होने वाला है सब इसमें लिखा हुआ है। ऐ सुदीर ! मैंने इस किताब में यह देखा है कि हमारी नस्ल से इमाम मेहदी होगें। फिर वह ग़ायब हो जाएगें और उनकी ग़ैबत नीज़ उमर बहुत तवील होगी। उनकी ग़ैबत के ज़माने में मोमेनीन मसाएब में मुबतिला होगें और उनके इम्तेहानात होते रहेंगे और ग़ैबत में ताख़ीर की वजह से उनके दिलों में शकूक पैदा होते होंगे , फिर फ़रमाया ऐ सुदीर ! सुनो इनकी विलादत हज़रत मूसा (अ स ) की तरह होगी और उनकी ग़ैबत ईसा (अ स ) की मानिन्द होगी और उनके ज़हूर का हाल हज़रत नूह (अ स ) के मानिन्द होगा और उनकी उम्र हज़रते खि़ज़्र (अ स ) की उम्र जैसी होगी। (नेयाबुल मोवद्दत) इस हदीस की मुख़तसर शरह यह है कि :
1 तारीख़ में है कि जब फ़िरऔन को मालूम हुआ कि मेरी सलतनत का ज़वाल एक मौलूद बनी इस्राईल के ज़रिए होगा तो उसने हुक्म जारी कर दिया कि मुल्क में कोई औरत हामेला न रहने पाए और कोई बच्चा बाक़ी न रखा जाए। चुनान्चे इसी सिलसिले में 40 हज़ार बच्चे ज़ाया किये गए लेकिन खुदा ने हज़रत मूसा (अ स ) को फ़िरऔन की तमाम तरकीबों के बवजूद पैदा किया , बाक़ी रखा और उन्हीं के हाथों से उसकी सलतनत का तख़्ता उलट दिया। इसी तरह इमाम मेहदी (अ स ) के लिये हुआ कि तमाम बनी उमय्या और बनी अब्बास की सई बलीग़ के बावजूद आप बतने नरजीस ख़ातून से पैदा हुए और आपको कोई देख तक न सका।
2 हज़रत ईसा (अ स ) के बारे में तमाम यहूदी और नसरानी मुत्तफ़िक़ हैं कि आपको सूली दे दी गई और आप क़त्ल किये जा चुके , लेकिन ख़ुदा वन्दे आलम ने उसकी रद्द फ़रमा दी और कह दिया कि वह न क़त्ल हुए हैं और न उनको सूली दी गई है। यानी ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने पास बुला लिया और वह आसमान पर अमन व अमाने ख़ुदा में हैं। इसी तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) के बारे में भी लोगों का कहना है कि पैदा ही नहीं हुए , हालां कि पैदा हो कर हज़रत ईसा (अ स ) की तरह ग़ाएब हो चुके हैं।
3 हज़रत नूह (अ स ) ने लोगों की नाफ़रमानी से आजिज़ आ कर ख़ुदा के अज़ाब के नज़ूल की दरख़्वास्त की। ख़ुदा वन्दे आलम ने फ़रमाया कि पहले एक दरख़्त लगाओ वह फल लाएगा , तब अज़ाब करूगां। इसी तरह नूह (अ स ) ने सात मरतबा किया बिल आखि़र इस ताख़ीर के वजह से आपके तमाम दोस्त व मवाली और इमानदार काफ़िर हो गए और सिर्फ़ 70 मोमिन रह गए। इसी तरह ग़ैबते इमाम मेहदी (अ स ) और ताख़ीरे ज़हूर की वजह से हो रहा है। लोग फ़रामीने पैग़म्बर और आइम्मा (अ स ) की तकज़ीब कर रहे हैं और अवामे मुस्लिम बिला वजह ऐतिराज़ात कर के अपनी आक़बत ख़राब कर रहे हैं और शायद इसी वजह से मशहूर है कि जब दुनियां में चालीस मोमिन कामिल रह जाएगें तब आपका ज़हूर होगा।
4 हज़रते खि़ज्र (अ स ) जो ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक ज़िन्दा और मौजूद रहेगें। उन्हीं की तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) भी ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक मौजूद रहेंगे और जब कि हज़रते खि़ज़्र (अ स ) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में मुसलमानों में कोई इख़्तेलाफ़ नहीं है , हज़रत इमाम मेहदी (अ स ) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में भी कोई इख़्तेलाफ़ की वजह नहीं हैं।
ग़ैबते सुग़रा व कुबरा और आपके सुफ़रा
आपकी ग़ैबत की दो हैसियतें थीं , एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 75 या 73 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नाएबे ख़ास होता था जिसके ज़ेरे एहतेमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब , ख़ुम्स व ज़कात और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्रर किये जाते थे।
सब से पहले जिन्हें नाएबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई उनका नामे नामी व इस्मे गेरामी हज़रत उस्मान बिन सईद उमरी था। आप हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मोतमिदे ख़ास और असहाबे ख़ल्लस में से थे। आप क़बीलाए बनी असद से थे। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी। आप सामरा के क़रीए असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आप बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किये गये हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) आपके फ़रज़न्द हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िलत पर फ़ाएज़ हुए , आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने अपनी वफ़ात से दो माह क़ब्ल अपनी क़ब्र खुदवा दी थी। आपका कहना था कि मैं यह इस लिये कर रहा हूँ कि मुझे इमाम (अ.स.) ने बता दिया है और अपनी तारीख़े वफ़ात से वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीबब बमक़ाम दरवाज़ा कूफ़ा सिरे राह दफ़्न हुये।
फिर आपकी वफ़ात के बाद बा वास्ता मरहूम हज़रत इमाम (अ.स.) के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रौह इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाएज़ हुए।
जाफ़र बिन मोहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने हज़रत हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम (अ.स.) का पैग़ाम पहुँचाया था। हज़रत हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिब थी। आप महल्ले नव बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर जुमला मुमालिके इस्लामिया का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िरक़ों के नज़दीक मोतमिद , सुक़्क़ा , सालेह और अमीन क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326 हिजरी में हुई और आप महल्ले नव बख़्त कूफ़े में मदफ़ून हुए हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) हज़रत अली बिन मोहम्मद अल समरी इस ओहदाए जलीला पर फ़ाएज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राएज़ अंजाम दे रहे थे , जब वक़्त क़रीब आया तो आप से कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इंतेज़ाम करेंगे ? आपने फ़रमाया कि अब आइन्दा यह सिलसिला क़ाएम न रहेगा। (मजालेसुल मोमेनीन , पेज न. 89 व जज़ीरए खि़ज़रा पेज न. 6 व अनवारूल हुसैनिया पेज न. 55) मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नबूवत के पेज न. 214 में लिखते हैं कि मोहम्मद अल समरी के इन्तेक़ाल से 6 यौम क़ब्ल इमाम (अ.स.) का एक फ़रमाने नाहिया मुक़द्देसा से बरामद हुआ जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिलाए सिफ़ारत के ख़त्म होने का सिलसिला था। इमाम मेहदी (अ.स.) के ख़त के अयून अल्फ़ाज़ यह हैं।
बिस्मिल्लाहिर्रहमार्निरहीम
या अली बिन मोहम्मद अज़म अल्लाह अजरा ख़वाएनेका फ़ीक़ा फ़ाअनका मयता मा बैनका व बैने सुन्नता अय्याम फ़ा अज़मा अमरेका वला तरज़ इला अहद याकौ़म मक़ामेका बाअद वफ़ातेका फ़क़त वक़अत अल ग़ैबता अल तामता फ़ला ज़हूर इला बआद इज़न अल्लाह ताआला व ज़ालेका बआद तूल अल आमद। ’’
तरजुमा:- ऐ अली बिन मोहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे बारे में तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम हो कि तुम 6 यौम में वफ़ात पाने वाले हो , तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये अपना कोई क़ाएम मुक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिये कि ग़ैबते कुबरा वाक़े हो गई है और इज़ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर न मुम्किन होगा। यह ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा।
ग़रज़ कि 6 दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मोहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गए और फिर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्रर नहीं हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई।
सुफ़राए उमूमी के नाम
मुनासिब मालूम होता है कि उन सुफ़रा के इस्मा भी दरजे ज़ैल कर दिये जायें जो उन्हें नब्वाबे ख़ास के ज़रिए और सिफ़ारिश से बहुक्मे इमाम (अ.स.) मुमालिके महरूसा मख़सूसिया में इमाम (अ.स.) का काम करते और हज़रत की खि़दमत में हाज़िर होने रहते थे।
1.बग़दाद से हाजिज़ , बिलाली , अत्तार 2. कूफ़े से आसमी , 3. अहवाना से मोहम्मद बिन इब्राहीम बिन मेहरयार , 4. हमदान से मोहम्मद इब्ने सालेह , 5. रै से बसामी व असदी 6. आज़र बैजान से क़सम बिन अला , 7. नैशापूर से मोहम्मद बिन शादान , 8. क़सम से अहमद बिन इस्हाक़। (ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 120)
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत के बाद
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत चूंकि ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से बतौरे लुत्फ़े ख़ास अमल में आई थी। इस लिये आप ख़ुदाई खि़दमत में हमतन मुनहमिक हो गये और ग़ायब होने के बाद आपने दीने इस्लाम की खि़दमत शुरू फ़रमा दी। मुसलमानों , मोमिनों के ख़ुतूत के जवाबात देने उनकी बवक़्ते ज़रूरत रहबरी करने और उन्हें राहे रास्त दिखाने का फ़रीज़ा अदा करना शुरू कर दिया। ज़रूरी खि़दमात आप ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में ब वास्ता सुफ़रा या बिला वास्ता और ज़मानए कुबरा में बिला वास्ता अन्जाम देते रहे और क़यामत तक अन्जाम देते रहेंगे।
307 हिजरी में आपका हजरे असवद नसब करना
अल्लामा अरबली लिखते हैं कि ज़मानाए नियाबत में बाद हुसैन बिन रौह , अबूल क़ासिम , जाफ़र बिन मोहम्मद , कौलिया हज के इरादे से बग़दाद गये और वह मक्के मोअज़्ज़मा पहुँच कर हज करने का फ़ैसला किये हुए थे लेकिन वह बग़दाद पहुँच कर सख़्त अलील हो गये। इसी दौरान में आपने सुना कि क़रामता ने हजरे असवद को निकाल लिया है और वह उसे कुछ दुरूस्त कर के अय्यामे हज में फिर नसब करेंगे। किताबों में चूंकि पढ़ चुके थे कि हजरे असवद सिर्फ़ इमामे ज़माना ही नसब कर सकता है जैसा कि पहले हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.व.) ने नसब किया था। फिर ज़मानाए हज में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने नसब किया था। इसी बिना पर उन्होंने अपने एक करम फ़रमा ‘‘ इब्ने हश्शाम ’’ के ज़रिए से एक ख़त इरसाल किया और उसे कह दिया कि जो हजरे असवद नसब करे उसे यह ख़त दे देना। नसबे हजर की लोग सई कर रहे थे लेकिन वह अपनी जगह पर क़रार नहीं लेता था कि इतने में एक ख़ूब सूरत नौ जवान एक तरफ़ से सामने आया और उसने उसे नसब कर दिया और वह अपनी जगह पर मुसतक़र हो गया। जब वह वहां से रवाना हुआ तो इब्ने हश्शाम उनके पीछे हो लिये। रास्ते में उन्होंने पलट कर कहा ऐ इब्ने हश्शाम , तू जाफ़र बिन मोहम्मद का ख़त मुझे दे दे। देख उस में उसने मुझ से सवाल किया है कि वह कब तक ज़िन्दा रहेगा। यह कह कर वह नज़रों से ग़ायब हो गए। इब्ने हश्शाम ने सारा वाक़ेया बग़दाद पहुँच कर जाफ़र बिन क़ौलिया से बयान कर दिया। ग़रज़ कि वह तीस साल के बाद वफ़ात पा गये। (कशफ़ुल ग़ुम्मा पेज न. 133)
इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताबे मज़कूरा में मौजूद हैं। अल्लामा अब्दुल रहमान मुल्ला जामी रक़म तराज़ हैं कि एक शख़्स इस्माईल बिन हसन हर कुली जो नवाही हिल्ला में मुक़ीम था उसकी रान पर एक ज़ख़्म नमूदार हो गया था जो हर ज़मानए बहार में उबल आता था। जिसके इलाज से तमाम दुनिया के हकीम आजिज़ और क़ासिर हो गये थे। वह एक दिन अपने बेटे शम्सुद्दीन को हमराह ले कर सय्यद रज़ी उद्दीन अली बिन ताऊस की खि़दमत में गया। उन्होंने पहले तो बड़ी सई की लेकिन कोई चारा कार न हुआ। हर तबीब यह कहता था कि यह फोड़ा ‘‘ रगे एकहल ’’ पर है अगर इसे नशतर दिया तो जान का ख़तरा है इस लिये इसका इलाज न मुम्किन है। इस्माईल का बयान है कि ‘‘ चून अज़ अत्तबा मायूस शुदम अज़ी मत मशहद शरीफ़ सरमन राए करदम ’’ जब मैं तमाम एतबार से मायूस हो गया तो सामरा के सरदाब के क़रीब गया और वहां पर हज़रते साहेबे अम्र को मुतावज्जे किया। एक शब दरयाए दजला से ग़ुस्ल कर के वापस आ रहा था कि चार सवार नज़र आए , उनमें से एक ने मेरे ज़ख़्म के क़रीब हाथ फेरा और मैं बिल्कुल अच्छा हो गया। मैं अभी अपनी सेहत पर ताअज्जुब ही कर रहा था कि इनमें से एक सवार ने जो सफ़ेद रीश (सफ़ैद दाढ़ी) थे कहा कि ताअज्जुब क्या है। तुझे शिफ़ा देने वाले इमाम मेहदी (अ.स.) हैं। यह सुन कर मैंने उनके क़दमों का बोसा दिया और वह लोग नज़रों से ग़ायब हो गये। (शवाहेदुन नबूवत पेज न. 214 व कशफ़ुल ग़ुम्मा पेज न. 132)
इस्हाक़ बिन याक़ूब के नाम इमामे अस्र (अ.स.) का ख़त
अल्लामा तबरिसी बहवाला मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी लिखते हैं कि इस्हाक़ बिन याक़ूब ने बज़रिये मोहम्मद बिन उस्मान अमरी हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की खि़दमत में एक ख़त इरसाल किया जिसमें कई सवालात लिखे थे। हज़रत ने ख़ुद खत़ का जवाब तहरीर फ़रमाया और तमाम सवालात के जवाबात तहरीर इनायत फ़रमा दिये जिसके अजज़ा यह हैं:
1. जो हमारा मुनकिर है , वह हम से नहीं।
2. मेरे अज़ीज़ों में से जो मुख़ालेफ़त करते हैं , उनकी मिसाल इब्ने नूह और बरादराने युसुफ़ की हैं।
3. फुक्का़ह यानी जौ की शराब का पीना हराम है।
4. हम तुम्हारे माल सिर्फ़ इस लिये (बतौरे ख़ुम्स) क़ुबूल करते हैं कि तुम पाक हो जाओ और अज़ाब से निजात हासिल कर सको।
5. मेरे ज़हूर करने और न करने का ताल्लुक़ सिर्फ़ ख़ुदा से है जो लोग वक़्ते ज़हूर मुक़र्रर करते हैं वह ग़लती पर हैं झूट बोलते है।
6. जो लोग यह कहते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) क़त्ल नहीं हुए वह काफ़िर झूठे और गुमराह हैं।
7. तमाम वाके़ए होने वाले हवादिस में मेरे सुफ़रा पर एतिमाद करो वह मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए हुज्जत हैं और मैं हुज्जतुल्लाह हूँ।
8. मोहम्मद बिन उस्मान ’’ अमीन और सुक़्क़ह हैं और उनकी तहरीर मेरी तहरीर है।
9. मोहम्मद बिन अली महरयार अहवाज़ी का दिल इन्शा अल्लाह बहुत साफ़ हो जायेगा और उन्हें कोई शक न रहेगा।
10. गाने वाले की उजरत व क़ीमत हराम है।
11. मोहम्मद बिन शादान बिन नईम हमारे शियों में से हैं।
12. अबू अल ख़त्ताब मोहम्मद बिन ज़ैनब अजद मलऊन है और इनके मानने वाले भी मलऊन हैं मैं और मेरे बाप दादा इस से और इसके बाप दादा से हमेशा बेज़ार रहे हैं।
13. जो हमारा माल खाते हैं वह अपने पेटों में आग भरते हैं।
14. ख़ुम्स हमारे सादात शिया के लिये हलाल है।
15. जो लोग दीने ख़ुदा में शक करते हैं वह अपने खुद ज़िम्मेदार हैं।
16. मेरी ग़ैबत क्यो वाक़ेए हुई है यह बात ख़ुदा की मसलहत से मुताअल्लिक़ है इसके मुताअल्लिक़ सवाल बेकार है। मेरे आबाओ अजदाद दुनियां वालों के शिकन्जें में हमेशा रहे हैं लेकिन ख़ुदा ने मुझे इस शिकन्जे से बचा लिया है जब मैं ज़हूर करूगां बिल्कुल आज़ाद हूंगा।
17. ज़मानाए ग़ैबत में मुझ से फ़ायदा क्या है इसके मुताअल्लिक़ यह समझ लो कि मेरी मिसाल ग़ैबत में वैसी है , जैसे अब्र में छुपे हुए आफ़ताब की। मैं सितारों की मानिन्द अहले अर्ज़ के लिये अमान हूँ। तुम लोग ग़ैबत और ज़हूर के मुताअल्लिक़ सवालात का सिलसिला बन्द करो और ख़ुदा वन्दे आलम की बारगाह में दोआ करो औ वह जल्द मेरे ज़हूर का हुक्म दे दे। ऐ इस्हाक़ ! तुम पर और उन लोगों पर मेरा सलाम जो हिदायत की इब्तेदा करते हैं।
(आलामुल वुरा पेज न. 258 , मजालिसुल मोमेनीन पेज न. 190 , कशफ़ुल ग़ुम्मा पेज न. 140)
शेख़ मोहम्मद बिन मोहम्मद के नाम इमामे ज़माना (अ.स.) का मकतूबे गिरामी
डलमा का बयान है कि हज़रत इमामे अस्र (अ.स.) ने जनाबे शेख़ मुफ़ीद अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन मोहम्मद बिन नेमान के नाम एक मकतूब इरसाल फ़रमाया है जिसमें उन्होंने शेख़ मुफ़ीद की मदह फ़रमाई है और बहुत से वाक़ेयात से मौसूफ़ को आगाह फ़रमाया है। उनके मकतूबे गिरामी का तरजुमा यह है:-
मेरे नेक बरादर और लाएक़ मोहिब , तुम पर मेरा सलाम हो। तुम्हें दीनी मामले में ख़ुलूस हासिल है और तुम मेरे बारे में यक़ीने कामिल रखते हो। हम उस ख़ुदा की तारीफ़ करते हैं जिसके सिवा कोई माबूद नहीं है। हम दुरूद भेजते हैं हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) और उनकी पाक आल पर। हमारी दुआ है कि ख़ुदा तुम्हारी तौफ़ीक़ाते दीनी हमेशा क़ाएम रखे और तुम्हें नुसरते हक़ की तरफ़ हमेशा मुतावज्जा रहे। तुम जो हमारे बारे में सिदक़ बयानी करते रहतें हो , ख़ुदा तुमको इसका अज्र अता फ़रमाए। तुम ने जो हम से ख़त व किताबत का सिलसिला जारी रखा और दोस्तों को फ़ायदा पहुँचाया , वह का़बिले मदह व सताईश है। हमारी दोआ है कि ख़ुदा तुम को दुश्मनों के मुक़ाबले में कामयाब रखे। अब ज़रा ठहर जाओ , और जैसा हम कहते हैं उस पर अमल करो। अगरचे हम ज़ालिमों के इमकानात से दूर हैं जब तब दौलते दुनियां फ़ासिक़ों के हाथ में रहेगी। हम उन लग़ज़ीशों को जानते हैं जो लोगों से अपने नेक असलाफ़ के खि़लाफ़ जा़हिर हो रही हैं। (शायद इससे अपने चचा जाफ़र की तरफ़ इरशाद फ़रमाया है) उन्होंने अपने अहदों को पसे पुश्त डाल दिया गोया वह कुछ जानते ही नहीं। ताहम हम उनकी रिवायतों को छोड़ने वाले नहीं और न उनके ज़िक्र भूलने वालें हैं अगर ऐसा होता तो इन पर मुसीबतें नाज़िल होतीं और दुश्मनों का ग़लबा हासिल हो जाता , पस उनसे कहो कि ख़ुदा से डरो और हमारे अमर नहीं मुनकर की हिफ़ाज़त करो और अल्लाह अपने नूर का कामिल करने वाला है चाहे मुश्रिक कैसी ही कराहीय्यत करें तक़य्या को पकड़े रहो। मैं उसकी निजात का ज़ामिन हूँ जो ख़ुदा की मरज़ी का रास्ता चलेगा। इस साल जमादील अव्वल का महीना आयेगा तो इसके वाक़ियात से इबरत हासिल करना तुम्हारे लिए आसमान व ज़मीन से रौशन आएतें ज़ाहिर होगीं। मुसलमानों के गिरोह हुज़न व क़लक़ में बामुक़ाम एराक़ फंस जाएगें और उनकी बद आमालियों की वजह से रिज़्क़ में तगीं हो जाऐगी। फिर यह ज़िल्लत व मुसीबत शरीरोंेे की हलाकत के बाद दूर हो जायेगी। उनकी हलाकत से नेक और मुत्तक़ी लोग ख़ुश होंगे। लोगों को चाहिये कि वह ऐसे काम करें जिनसे उनमें हमारी मोहब्बत ज़्यादा हो। यह मालूम होना चाहिए कि जब मौत यकायक आएगी तो बाबे तौबा बन्द हो जाऐगा और ख़ुदाई कहर से नजात न मिलेगी। ख़ुदा तुम को नेकी पर क़ाएम रखे और तुम पर रहमत नाज़िल करे। ’’
मेरे ख़्याल में यह ख़त अहदे ग़ैबते कुबरा का है , क्योंकि शेख़ मुफ़िद की विलादत 11 ज़ीक़ाद 326 हिजरी और वफ़ात 3 रमज़ान 413 हिजरी में हुई और ग़ैबते सुग़रा का ऐख़्तेतामम 15 शाबान 329 हिजरी में हुआ है। अल्लामा कबीर हज़रत शहीदे सालिस अल्लामा नूर उल्लाह शूस्तरी मजालिस अल मोमेनीन के पेज न. 206 में लिखते हैं कि शेख़ मुफ़ीद के मरने के बाद हज़रत इमामे इस्र (अ.स.) ने तीन शेर इरसाल फ़रमाए थे जो मरहूम की क़ब्र पर कन्दा हैं।
उन हज़रात के नाम जिन्होंने ज़मानए ग़ैबते सुग़रा में इमाम को देखा है।
चारों वकलये ख़ुसूसी और सात वकलाए उमूमी के अलावा वह जिन लोगों ने हज़रत इमामे अस्र (अ.स.) को देखा है उनके इसमाए बाज़ के नाम यह हैं:-
बग़दाद के रहने वालों में से , 1. अबू अल क़ासिम बिन रईस , 2. अबू अब्दुल्लाह इब्ने फ़राख़ , 3. मसरूर अल तबाख़ , 4. , 5. अहमद व मोहम्मद पिसराने हसन , 6. इसहाक़ कातिब अज़नू बख़्त , 7. साहेगे अल फ़राए , 8. साहेबे असरतह अल मख़तूमा , 9. अबू अल क़ासिम बिन अबी जलैसा , 10. अबू अब्दुल्लाह अल कन्दी , 11. अबू अब्दुल्लाह अल जन्दी , 12. हारून अल फ़राज़ , 13. अल नैला , (हमदान के बाशिन्दों में से) 16. हसन बिन हरवान , 17. अहमद बिन हरवान (अज़ असफ़हान) 18. इब्ने बाज़शाला , (अज़ जै़मर) 19. ज़ैदान अज़ क़ुम , 20. हसन बिन नसर , 21. मोहम्मद बिन मोहम्मद , 22. अली बिन मोहम्मद बिन इसहाक़ , 23. मोहम्मद बिन इसहाक़ , 24. हसन बिन याक़ूब , (अज़ रै) 25. क़सम बिन मूसा , 26. फ़रज़न्द क़सीम बिन मूसा , 27. इब्ने मोहम्मद बिन हारून , 28. साहेबे अल अस साका़ , 29. अली बिन मोहम्मद , 30. मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी , 31. अबू जाफ़र अरक़ा , (अज़ कज़वीन) 32. मरवास , 33. अली बिन अहमद , (अज़ फ़ारस) 34. अकमज़रूह (शेहज़ोर) 35. इब्ने अल जमाल , (अज़ क़ुद्स) 36. मजरूह (अज़मरो) 37. साहेबे अलफ़ दीनार , 38. साहेबे अल माल व अरक़ता अल बैज़ा , 39. अबू साबित (अज़ नेशापूर) 40. मोहम्मद बिन शोऐब बिन सालेह (अज़ यमन) 41. फ़ज़ल बिन यज़ीद , 42. हसन बिन फ़ज़ल , 43. जाफ़री , 44. इब्ने अल अजमी , 45. शमशाती (अज़ मिस्र) 46. साहेबे अल मौलूदैन , 47. साहेेबे अल माल , 48. अबू रहाए , (अज़ नसीबैन) 50. अल हुसैनी (ग़ायतल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 121)
ज़्यारते नाहिया और उसूले काफ़ी
कहते हैं कि इसी ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में नाहिया मुक़द्देसा से एक ऐसी ज़्यारत बरामद हुई है जिसमे तमाम शोहदाए करबला के नाम और उनके क़ातिलों के असमा हैं इसे ‘‘ ज़्यारते नाहिया ’’ के नाम से मौसूम किया जाता है।
इसी तरह यह भी कहा जाता है कि उसूले काफ़ी जो कि हज़रत सुक़तुल इस्लाम अल्लामा क़ुलैनी अल मतूफ़ी 328 हिजरी की 20 साला तसनीफ़ है। वह जब इमामे अस्र (अ.स.) की खि़दमत में पेश हुई तो आपने फ़रमाया ‘‘ हाज़ क़ाफ़े लाशैतना ’’ यह हमारे शियो के लिये काफ़ी है।
ज़्यारते नाहिया की तौसीक़ बहुत से उलमा ने की है जिनमें अल्लामा तबरसी और मजलिसी भी हैं। दोआए सबासब आप ही से मरवी है।
ग़ैबते कुबरा में इमाम मेहदी (अ.स.) का मरक़जी़ मुक़ाम
इमाम मेहदी (अ.स.) चुंकि उसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) , हज़रत खि़ज्ऱ (अ.स.) हज़रत इलयास नीज़ दज्जाल , बताल , याजूज माजूज और इब्लीस लईन ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उन सब का मरक़ज़ी मुक़ाम मौजूद है। जहां यह रहते हैं मसलन हज़रत ईसा चौथे आसमान पर (क़ुरान मजीद) हज़रत इदरीस जन्नत में (क़ुरान मजीद) हज़रत खि़ज़्र और इलयास मजमउल बहरैन यानी दरियाए फ़ारस व रोम के दरमियान पानी के क़सर में (अजाएब अल क़स अल्लामा अब्दुल वाहिद पेज न. 176) और दज्जाल व बताल तबरस्तान जज़ीराए मग़रिब में (किताब ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 102) और याजूज माजूज बहरे रोम के अक़ब में दो पहाड़ों के दरमियान (ग़ायतल मक़सूद जिल्द 2 पेज न. 74) और इबलीस लईन , इस्तेमारे अरज़ी के वक़्त वाले पाएतख़्त मुल्तान में (किताब इरशाद उत तालेबीन अल्लामा अख़ून्द दरवीज़ा पेज न. 243) तो ला मुहाला हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का भी कोई मरकज़ी मुक़ाम होना ज़रूरी है जहां आप तशरीफ़ फ़रमा हों और वहां से सारी काएनात में अपने फ़राएज़ अंजाम देते हों।
इसी लिये कहा जाता है कि ज़मानाए ग़ैबत में हज़रत मेहदी (अ.स.) (जज़ीराए खि़ज़रा और बहरे अबयज़) में अपनी औलाद अपने असहाब समेत क़याम फ़रमा हैं और वहीं से ब एजाज़ तमाम काम किया करते और जगह पहुँचा करते हैं। यह जज़ीराए खि़ज़रा सरज़मीने विलायत बरबर में दरमियान दरिया उन्दलिस वाक़े है यह जज़ीरह मामूर व आबाद है। इस दरिया के साहिल में एक मौज़ा भी है जो ब शक्ले जज़ीरा है उसे उन्दलिस वाले (जज़ीराए रफ़ज़ा) कहते हैं क्यों कि उसमें सारी आबादी शियों की है। इस तमाम आबादी की ख़ुराक वग़ैरा जज़ीराए खि़ज़रा से बराह बहरे अबयज़ साल में दो बार इरसाल की जाती है।
मुलाहेज़ा हो (तारीख़ जहाँ आरा , रेआज़ उल उलमा कफ़ाएतुल मेहदी , कशफ़ुल के़नाअ , रेआज़ अल मोमेनीन , ग़ाएतल मक़सूद , रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा , बहरे अबयज़ और मजालिस अल मोमेनीन , अल्लामा नूर उल्लाह शूस्तरी व बेहारूल अनवार , अल्लामा मजलिसी किताब रौज़तुल शौहदा अल्लामा हुसैन वाज़ेए काशफ़ी पेज न. 439 में इमाम मेहदी (अ.स.) के अक़साए बिलादे मग़रिब में होने और उनके शहरों पर तसर्रूफ़ रखने और साहबे औलाद वग़ैरा होने का हवाला है।
इमाम शिब्लन्जी अल्लामा अब्दुल अल मोमिन ने भी अपनी किताब नूरूल अबसार के पेज न. 152 में इसकी तरफ़ ब हवाला किताब जामेए अल फ़नून इशारा किया है ग़यास अल ग़ास के पेज न. 72 में है कि यह वह दरिया है जिसके जानिबे मशरिक़ चीन , जानिबे ग़रबी यमन , जानिबे शुमाली हिन्द , जानिबे जुनूबी दरियाए मोहीत वाक़े हैं। इस बहरे अबयज़ व अख़ज़र का तूल 2 हज़ार फ़रसख़ और अर्ज़ पाँच सौ फ़रसख़ है। इसमें बहुत से जज़ीरे आबाद हैं जिनमें एक सरान्दीब भी है इस किताब के पेज न. 295 में है कि आप कि ‘‘ साहेबुज़्ज़मान ’’ हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का लक़ब है। अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि आप जिस मकान में रहते हैं उसे ‘‘ बैतुल हम्द ’’ कहते हैं। (आलामुल वुरा पेज न. 263)
जज़ीराए खि़ज़रा में इमाम (अ.स.) से मुलाक़ात
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की क़याम गाह जज़ीराए खि़ज़रा में जो लोग पहुँचे हैं उनमें से शेख़ सालेह , शेख़ ज़ैनुल आब्दीन अली बिन फ़ाज़िल माज़न्देरानी का नाम नुमाया तौर पर नज़र आता है। आपकी मुलाक़ात की तस्दीक़ , फ़ज़ल बिन यहिया बिन अली ताबई कुफ़ी व शेख़ आलिम आलिम शेख़ शम्सुद्दीन नजी अली व शेख़ जलालुद्दीन , अब्दुल्लाह इब्ने अवाम हिल्ली ने फ़रमाई है।
अल्लामा मजलिसी ने आपके सफ़र की सारी रूदाद एक रिसाले की सूरत में ज़ब्त किया है जिसका मुसलसल ज़िक्र बेहारूल अनवार में मौजूद है। रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा के पेज न. 1 में है कि शेख़ अजल सईद शहीद बिन मोहम्मद मक्की और मीर शम्सुद्दीन मोहम्मद असद उल्लाह शुस्तरी ने भी तसदीक़ की है।
मोअल्लिफ़ किताबे रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा कहता है कि हज़रत की विलादत हज़रत की ग़ैबत , हज़रत का ज़ुहूर वग़ैरा जिस तरह रमज़े ख़ुदावन्दी और राज़े इलाही है उसी तरह आपकी जाए क़याम भी एक राज़ है जिसकी इत्तेला आम ज़रूरी नहीं है। वाज़े हो कि कोलम्बस के इदराक से भी क़ब्ल अमरीका का वजूद था।
इमामे ग़ायब का हर जगह हाज़िर होना
अहादीस से साबित है कि इमाम मेहदी (अ.स.) जो कि मज़हरूल अजाएब हज़रत अली (अ.स.) के पोते हैं , हर मक़ाम पर पहुँचते और हर जगह अपने मानने वालों के काम आते हैं। उलमा ने लिखा है कि आप ब वक़्ते ज़रूरी मज़हबी लोगों से मिलते हैं उन्हें देखते हैं यह और बात है कि उन्हें पहचान न सकें। (गा़एतुल मक़सूद)
इमाम मेहदी (अ.स.) और हज्जे काबा
यह मुसल्लेमात से है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) हर साल काबा के लिये मक्का मोअज़्ज़मा इसी तरह तशरीफ़ ले जाते हैं जिस तरह हज़रते खि़ज़र व इलयास (अ.स.) जाते हैं। (सिराज अल क़ुलूब पेज न. 77)
अहमद कूफ़ी का बयान है कि मैं तवाफ़े काबा में मसरूफ़ व मशग़ूल था कि मेरी नज़र एक निहायत ख़ूब सूरत नवजवान पर पड़ी मैंने पूछा आप कौन हैं और कहां से तशरीफ़ लाए हैं ? आपने फ़रमाया ‘‘ अनल मेहदी व अनल क़ाएम ’’ मैं मेहदी आख़रूज़ ज़मा और क़ाएमे आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) हूँ।
ग़ानम हिन्दी का बयान है कि मैं इमाम मेहदी (अ.स.) की तलाश में एक मरतबा बग़दाद गया , एक पुल से गुज़रते हुए मुझे एक साहब मिले वह मुझे एक बाग़ में ले गए और उन्होंने मुझ से हिन्दी ज़बान में कलाम किया और फ़रमाया कि तुम इस साल हज के लिये ना जाओ वरना नुक़सान पहुँच जाऐगा। मोहम्मद बिन शाज़ान का कहना है कि मैं एक दफ़ा मदीने में दाखि़ल हुआ तो हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात हुई , उन्होंने मेरा पूरा नाम ले कर मुझे पुकारा , चुंकि पूरे नाम से कोई वाक़िफ़ न था इस लिये मुझे ताज्जुब हुआ। मैंने पूछा आप कौन हैं ? फ़रमाया इमामे ज़मान हूँ।
अल्लामा शेख़ सुलेमान क़न्दूज़ी बलख़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि अब्दुल्लाह इब्ने सालेह ने कहा मैंने ग़ैबते कुबरा के बाद इमाम मेहदी (अ.स.) को हजरे असवद के नज़दीक इस हाल में खड़े हुए देखा कि उन्हें लोग चारों तरफ़ से घेरे हुए हैं। (यनाबिउल मोवद्दता)
ज़मानाए ग़ैबते कुबरा में इमाम मेहदी (अ.स.) की बैअत
हज़रत शेख़ अब्दुल लतीफ़ हलबी हनफ़ी का कहना है कि मेरे वालिद शेख़ इब्राहीम हुसैन का शुमार हलब के मशएख़ अज़ाम में था। वह फ़रमाते हैं कि मेरे मिस्री उस्ताद ने बयान किया है कि मैंने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के हाथ पर बैअत की है। (नियाबुल मोवद्दता बाब 85 पेज न. 392)
इमाम मेहदी (अ.स.) की मोमेनीन से मुलाक़ात
रिसालए जज़ीरए खि़ज़रा के पेज न. 16 में ब हवाला अहादीसे आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) मरक़ूम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से हर मोमिन की मुलाक़ात होती है यह और बात है कि मोमेनीन उन्हें मसलहते ख़ुदा वन्दी की बिना पर इस तरह न पहचान सकें जिस तरह पहचान्ना चाहिये। मुनासिब मालूम होता है कि इस मुक़ाम पर मैं अपना ख़्वाब लिख दूँ। वाक़िया है कि आज कल जब कि मैं इमामे ज़माना (अ.स.) के हालात लिख रहा हूँ हदिसे मज़कूर पर नज़र डालने के बाद फ़ौरन ज़हन में यह ख़्याल पैदा हुआ कि मौला सब को दिखाई देते हैं लेकिन मुझे आज तक नज़र नहीं आये। इसके बाद मैं बिस्तरे इस्तेराहत पर गया और सोने के इरादे से लेटा। अभी नींद ना आई थी और क़तई तौर पर नीम बेदारी (ग़ुनूदगी) की हालत थी कि नागाह मैंने देखा कि मेरे मकान से मशरिक़ की जानिब ता बा हद्दे नज़र एक क़ौसी ख़त पड़ा हुआ है यानी शुमाल की जानिब का सारा हिस्सा आलमे पहाड़ है और उस पर इमाम मेहदी (अ.स.) तलवार लिये ख़ड़े हैं और यह कहते हुए कि ‘‘ निस्फ़ दुनिया आज ही फ़तह कर लूंगा ’’ शुमाल की जानिब एक पांव बढ़ा रहे हैं। आपका क़द आम इंसानों के क़द से डेयोढ़ा और जिस्म दोहरा है। बड़ी बड़ी सुरगमीं आंखें और चेहरा इन्तेहाई रौशन है। आपके पट्टे कटे हुए हैं और सारा लिबास सफ़ैद है और वक़्त अस्र का है। यह वाक़िया 30 नवम्बर 1958 ई0 शबे यक शम्बा (रवीवार की रात) ब वक़्त 4.30 बजे शब का है।
मुल्ला मोहम्मद बाक़िर दामाद का इमामे अस्र (अ.स.) से इस्तेफ़ादा करना
हमारे अकसर उलेमा इल्मी मसाएल और मज़हबी व मआशरती मराहिल हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) ही से तय करते आये हैं। मुल्ला मोहम्मद बाक़िर दामाद जो हमारे अज़ीमुल क़द्र मुजतहिद थे उनके मुताअल्लिक़ है कि एक शब आपने ज़रीह नजफ़े अशरफ़ में एक मसला लिख कर डाला , उसके जवाब में तहरीरन कहा गया कि तुम्हारा इमामे ज़माना इस वक़्त मस्जिदे कूफ़ा में नमाज़ गुज़ार है , तुम वहां जाओ। वह वहा जा पहुँचे। खुद ब खुद मस्जिद का दरवाज़ा खुद गया और आप अन्दर दाखि़ल हो गये। आप ने मसले का जवाब हासिल किया और आप मुतमइन हो कर बरामद हुए।
जनाब बहरूल उलूम का इमामे ज़माना (अ.स.) से मुलाका़त करना
किताब क़सासुल उलेमा मोअल्लेफ़ा अल्लामा तन्काबनी पेज न. 55 में मुजतहिदे आज़म करबलाए मोअल्ला जनाब आक़ा सय्यद मोहम्मद मेहदी बहरे उलूम के तज़किरे में मरक़ूम है कि एक शब आप नमाज़ में अन्दूरूने हरम मशग़ूल थे कि इतने में इमामे अस्र (अ.स.) अपने अबो जद की ज़्यारत के लिये तशरीफ़ लाये जिसकी वजह से उनकी ज़बान में लुकनत हुई और बदन में एक क़िस्म का राशा पैदा हो गया फिर जब वह वापस तशरीफ़ ले गये तो उन पर जो एक ख़ास क़िस्म की कैफ़ियत तारी थी वह जाती रही। इसके अलावा आपके इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताब मज़कूरा में लिखे हैं।
इमाम मेहदी (अ.स.) का हिमायते मज़हब फ़रमाना
वाक़िए ‘‘ अनार ’’
किताब कशफ़ुल ग़ुम्मा पेज न. 133 में है कि सय्यद बाक़ी बिन अतूवाह इमामिया मज़हब के थे और उनके वालिद ज़ैद यह ख़्याल रखते थे। एक दिन उनके वालिद अतूवाह ने कहा कि मैं सख़्त अलील हो गया हूँ और अब बचने की कोई उम्मीद नहीं। हर क़िस्म के हकीमों का इलाज कर चुका हूँ। ऐ नूरे नज़र मैं तुमसे वायदा करता हूँ कि अगर मुझे तुम्हारे इमाम ने शिफ़ा दे दी तो मैं मज़हबे इमामिया इख़्तेयार कर लूंगा। यह कहने के बाद जब यह रात को बिस्तर पर गये तो इमामे ज़माना का उन पर ज़हूर हुआ , इमाम ने मक़ामे मर्ज़ को अपने हाथ से मस कर दिया और वह मर्ज़ जाता रहा , अतूवाह ने उसी वक़्त मज़हबे इमामिया इख़्तेयार कर लिया और रात ही में जा कर अपने फ़रज़न्द बाक़ी अतूवाह को ख़ुश ख़बरी दे दी।
इसी तरह किताब जवाहरूल बयान में है कि बहरैन का वाली नसरानी और उसका वज़ीर ख़वारजी था। वज़ीर ने बादशाह के सामने चन्द ताज़ा अनार पेश किये जिन पर ख़ुल्फ़ा के नाम अल्ल तरतीब कन्दा थे और बादशाह को यक़ीन दिलाया कि हमारा मज़हब हक़ है और तरतीबे खि़लाफ़त मन्शाए क़ुदरत के मुताबिक़ दुरूस्त है। बादशाह के दिल में यह बात कुछ इस तरह बैठ गई िकवह यह समझने पर मजबूर हो गया कि वज़ीर का मज़हब हक़ है और इमामिया राहे बातिल पर गामज़न है। चुनान्चे उसने अपने ख़्याल की तकमील के लिये जुमला उलेमाए इमामिया को जो उसके अहदे हुकूमत में थे बुला भेजा और उन्हें अनार दिखा कर उन से कहा कि इसकी रद्द में कोई माक़ूल दलील लाओ वरना हम तुम्हें क़त्ल कर के तमाम मज़हब को जड़ से उखा़ड़ देंगे। इस वाक़िए ने उलेमाए कराम में एक अजीब क़िस्म का हैज़ान पैदा कर दिया। बिला आखि़र सब उलेमा आपस में मशवरे के बाद ऐसे दस उलेमा पर मुत्तफ़िक़ हो गये जो उन में निसबतन मुक़द्दस थे और प्रोग्राम यह बना कि जंगल में एक एक आलिम शब में जा कर इमामे ज़माना (अ.स.) से इस्तेआनत करे , चूंकि एक शब की मोहलत व मुद्दत मिली थी इस लिये परेशानी ज़्यादा थी। ग़रज़ कि उलेमा ने जंगल में जा कर इमामे ज़माना (अ.स.) से फ़रियाद का सिलसिला शुरू किया। दो आलिम अपनी अपनी मुद्दते फ़रयादो फ़ुगां़ ख़त्म होने पर जब वापस आये और तीसरे आलिम हज़रत मोहम्मद बिन अली की बारी आई तो आपने बदस्तूर सहरा में जाकर मुसल्ला बिछा दिया और नमाज़ के बाद इमामे ज़माना (अ.स.) को अपनी तरफ़ मुतवज्जे करने की कोशिश की लेकिन नाकाम हो कर वापस आते हुए उन्हें एक शख़्स रास्ते में मिला , उसने पूछा क्या बात है क्यों परेशान हो ? आपने अर्ज़ की इमामे ज़माना की तलाश है और वह तशरीफ़ ला नहीं रहे हैं। उस शख़्स ने कहा ‘‘ अना साहेबुल अस्र फ़ा ज़िक्र हाजतेका ’’ मैं ही तुम्हारा इमामे ज़माना हूँ। कहो क्या कहते हो। मोहम्मद बिन अली ने कहा कि अगर साहेबुल अस्र हैं तो आपसे हाजत बयान करने की ज़रूरत क्या ? आपको ख़ुद ही इल्म होगा।
इसके जवाब में उन्होंने फ़रमाया कि सुनो ! वज़ीर के कमरे में एक लकड़ी का सन्दूक़ है उसमें मिट्टी के कुछ सांचे रखे हुए हैं। जब अनार छोटा होता है वज़ीर उस पर सांचा चढ़ा देता है और जब वह बढ़ता है तो उस पर नाम कन्दा हो जाते हैं। जो सांचे में कन्दा हैं। मोहम्मद बिन अली ! तुम बादशाह को अपने हमराह ले जाकर वज़ीर के दजल व फ़रेब को वाज़े कर दो। वह अपने इरादे से बाज़ आ जायेगा और वज़ीर को सज़ा देगा। चुनान्चे ऐसा ही किया गया और वज़ीर बरख़ास्त कर दिया गया। (किताब बदाए उल अख़बार मुल्ला इस्माईल सबज़वारी , पेज न. 150 व सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 पेज न. 536 मुद्रित नजफ़े अशरफ़)
इमामे अस्र (अ.स.) का वाक़िए करबला बयान करना
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से पूछा गया कि ‘‘کھیعص ’’ का क्या मतलब है। तो फ़रमाया कि इसमें काफ़ से करबला है , हे से हलाकते इतरत , ये से यज़ीद मलऊन , ऐन से अतशे हुसैनी , सुवाद से सब्रे आले मोहम्मद मुराद है। आपने फ़रमाया कि आयत में जनाबे ज़करिया का ज़िक्र किया गया है। जब ज़करिया को वाक़िए करबला की इत्तेला हुई तो वह तीन रोज़ तक मुसलसल रोते रहे। (तफ़सीरे सानी पेज न. 279)
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के तूले उम्र की बहस
बाज़ मुशतशरक़ीन व माहेरीन आमार का कहना है कि ‘‘ जिनके आमाल व किरदार अच्छे होते हैं और जिनका पेज न.ए बातिन कामिल होता है उनकी उमरें तवील होती हैं। यही वजह है कि उलमा फ़ुक़हा और सुलहा की उमरें अकसर तवील देखी गई हैं और हो सकता है कि तवील उमर इमाम मेहदी (अ.स.) की यह भी वजह हो , इन से क़ब्ल जो आइम्मा (अ.स.) गुज़रे वह शहीद कर दिये गए और इन पर दुशमन का दस्तरस न हुआ तो यह ज़िन्दा रह गए और अब तक बाक़ी हैं। लेकिन मेरे नज़दीक़ उम्र का तक़र्रूर व तअय्युन दस्त एज़िदी में है उसे इख़्तेयार है कि किसी की उम्र कम रखे किसी की ज़्यादा। उसकी मोअय्यन करदा मुद्दत उम्र में एक पल का भी तफ़रेक़ा नहीं हो सकता।
तवारीख़ व अहादीस से मालूम होता है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने बाज़ लोगों को काफ़ी तवील उमरे अता की हैं। उम्र की तवालत मसलहते ख़ुदा वन्दी पर मब्नी है। इससे उसने अपने दोस्दों और दुश्मनों को नवाज़ा है। दोस्तों में हज़रत ईसा (अ.स.) , हज़रत इदरीस (अ.स.) , हज़रत खि़ज़्र (अ.स.) , हज़रत इलयास (अ.स.) और दुश्मनों में से इबलीस लईन , दज्जाल व बताल , याजूज माजूज वग़ैरा हैं और हो सकता है कि चुंकि क़यामत उसूले दीने इस्लाम से है और इसकी आमद में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर ख़ास हैसियत रखता है लेहाज़ा उनका ज़िन्दा व बाक़ी रहना मक़सद रहा हो और उनके तवीले उम्र के ऐतिराज़ को रद और रफ़ा दफ़ा करने के लिये उसने बहुत से अफ़राद की उम्रें तवील कर दी हों। मज़कूरा अफ़राद को जाने दीजिए। आम इंसानों की उम्रों को देखिए बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जिनकी उम्रे काफ़ी तवील रही है। मिसाल के लिये मुलाहेज़ा हों:-
1. लुक़मान की उम्र 3500 साल , 2. औज बिन अनक़ की उम्र 3300 साल और बक़ौले 3600 साल , 3. ज़ुलक़रनैन की उम्र 3000 साल , 4. हज़रत नूह (अ.स.) की उम्र 900 साल , 5. ज़हाक़ व 6. तमहूरस की उम्रें 1000 साल , 7. क़ैनान की उम्र 900 साल , 8. महलाइल की उम्र 800 साल , 9. नफ़ीस बिन अब्दुल्लाह की उम्र 700 साल , 10. रबी बिन उम्र उर्फ़ सतीह काहिन की उम्र 600 साल , 11. हाकिमे अरब आमिर बिन ज़रब की उम्र 500 साल , 12. साम बिन नूह 500 साल , 13. हरस बिन मजाज़ ज़र हमी की उम्र 400 साल , 14. अरमख़्शद की उम्र 400 साल , 15. दरीद बिन ज़ैद की उम्र 456 साल , 16. सलमान फ़ारसी की उम्र 400 साल , 17. उमर बिन दूसी की उम्र 400 साल , 18. ज़ुहैर बिन जनाब बिन अब्दुल्लाह की उम्र 430 साल , 19. हरस बिन ज़यास की उम्र 400 साल , 20. काब बिन जमजा की उम्र 390 साल , 21. नसर बिन धमान बिन सलमान की उम्र 390 साल , 22. क़ैस बिन साद की उम्र 380 साल , 23. उमर बिन रबी की उम्र 333 साल , 24. अक्सम बिन ज़ैफ़ी की उम्र 336 साल , 25. उमर बिन तफ़ील अदवानी की उम्र 200 साल थी। (ग़ाएतलम क़सूद पेज न. 103 आलामुल वुरा पेज न. 270)
इन लोगों की तवील उम्रों को देखने के बाद यह हरगिज़ नहीं कहा जा सकता कि ‘‘ चुंकि इतनी उम्र का इंसान नहीं होता , इस लिये इमाम मेहदी (अ.स.) का वजूद हम तसलीम नहीं करते। क्यों कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इस वक़्त (किताब लिखते वक्त) 1393 हिजरी में सिर्फ़ ग्यारह सौ अड़तालिस साल की होती है जो मज़कूरा उम्रों में है लुक़मान हकीम और ज़ुलक़रनैन जैसे मुक़द्दस लोगों की उम्रों से बहुत कम है।
अलग़रज़ कु़रआने मजीद , अक़वाले उलमाए इस्लाम और अहादीस से यह साबित होता है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं और क़यामत के क़रीब ज़हूर करेंगे और आप उसी तरह ज़मानाए ग़ैबत में भी हुज्जते ख़ुदा हैं जिस तरह बाज़ अम्बिया अपने अहदे नबूवत में ग़ायब होने के दौरान में भी हुज्जत थे। (अजाएब अल क़सस पेज न. 191) और अक़ल भी यही कहती है कि आप ज़िन्दा और बाक़ी मौजूद हैं , क्यों कि जिस के पैदा होने पर उलमाए इस्लाम का इत्तेफ़ाक़ हुआ और वफ़ात का कोई एक भी ग़ैर मुतअसिब आलिम क़ाएल न हुआ और तवील उल उम्र इन्सानों के होने की मिसालें भी मौजूद हों तो ला मुहाला उसका मौजूद और बाक़ी होना मानना पड़ेगा। दलील मन्तक़ी से भी यही साबित होता है लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) ज़िन्दा और बाक़ी हैं।
इन तमाम शवाहिद और दलाएल की मौजूदगी में जिनका हम ने इस किताब में ज़िक्र किया है मौलवी मोहम्मद अमीन मिस्री का रिसाला ‘‘ तूले इस्लाम ’’ कराची जिल्द 14 पेज न. 45 व पेज न. 94 में यह कहना कि , ‘‘ शियों को इब्तेदाअन रूए ज़मीन पर कोई ज़ाहेरी ममलेकत का़एम करने में कामयाबी न हो सकी इनको तकलीफ़ें दी गईं और परागन्दा और मुन्तशिर कर दिया गया तो उन्होंने हमारे ख़्याल के मुताबिक़ इमामे मुन्तज़िर और इमाम मेहदी (अ.स.) वग़ैरा के पुर उम्मीद अक़ाएद ईजाद कर लिये ताकि अवाम की ढारस बन्धी रहे।
और मुल्ला अख़ून्द दरवेज़ा का किताब इरशाद अल तालेबीत पेज न. 396 मे यह फ़रमाना कि , ‘‘ हिन्दुस्तान में एक शख़्स अब्दुल्लाह नामी पैदा होगा जिसकी बीवी अमीना (आमना) होगी। उसके एक लड़का पैदा होगा जिसका नाम मोहम्मद होगा , वही कूफ़े जा कर हुकूमत करेगा। लोगों का यह कहना दुरूस्त नहीं कि इमाम मेहदी (अ.स.) वही हैं जो इमाम हसन असकरी (अ.स.) के फ़रज़न्द हैं। ’’ हद दरजा मज़हक़ा ख़ेज़ , अफ़सोसनाक और हैरत अंगेज़ है क्यों कि उलेमाए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि ‘‘ अल मेहदी मन वलद अल इमाम अल हसन अल असकरी ’’ इमाम मेहदी (अ.स.) हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के बेटे हैं और 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हो चुके हैं।
मुलाहेज़ा हो , असआफ़ अल राग़बैन , दफ़यातुल अयान , रौज़तुल अहबाब , तारीख़े इब्नुल वरदी , नेयाबुल मोअद्दता , तारीख़े कामिल , तारीख़े तबरी , नुरूल अबसार , उसूले काफ़ी , कशफ़ुल ग़म्मा , जिलाउल अयून , इरशाद मुफ़ीद , आलामुल वरा , जामाए अब्बासी , सवाएक़े मोहर्रेक़ा , मतालेबुल सुवेल , शवाहेदुन नबूवत , अर हज्जुल मतालिब , बेहारूल अनवार , मनाक़िब वग़ैरा।
हदीसे नअसल और इमामे अस्र (अ.स.)
नअसल एक यहूदी था जिससे हज़रत आयशा हज़रत उस्मान को तशबीह दिया करती थीं और रसूले इस्लाम (स.अ.व.व.) के बाद फ़रमाया करती थीं इस नअसले इस्लामी उस्मान को क़त्ल कर दो। मुलाहेज़ा हो , (निहायत अल लुग़ता अल्लामा इब्ने असीर जज़री पेज न. 321) यही नअसल एक दिन हुज़ूर रसूले करीम (स.अ.व.व.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ , मुझे अपने ख़ुदा , अपने दीन , अपने ख़ुलफ़ा का ताअर्रूफ़ कराईये अगर मैं आपके जवाब से मुतमईन हो गया तो मुसलमान हो जाऊंगा। हज़रत ने निहायत बलीग़ और बेहतरीन अंदाज़ में ख़ल्लाके आलम का ताअर्रूफ़ कराया। उसके बाद दीने इस्लाम की वज़ाहत की , ‘‘ का़ला सदक़त ’’ नअसल ने कहा आपने बिल्कुल दुरूस्त फ़रमाया फिर उसने अर्ज़ कि मुझे अपने वसी से आगाह कीजिए और बताइये की वह कौन हैं ? आपने फ़रमाया मेरे वसी अली बिन अबी तालिब (अ.स.) और उनके फ़रज़न्द हसन (अ.स.) व हुसैन (अ.स.) के सुल्ब से नौ (9) बेटे क़यामत तक होंगे। उसने कहा सब के नाम बताइये। आपने बारह इमामों के नाम बताए। नामों को सुनने के बाद वह मुसलमान हो गया और कहने लगा कि मैंने कुतुबे आसमानी में इन बारह नामों को इसी ज़बान के अलफ़ाज़ में देखा है। फिर उसने हर वसी के हालात बयान किये। करबला का होने वाला वाक़िया बताया। इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की ख़बर दी और कहा कि हमारे बारह इस्बात में से लादी बिन बरखि़या ग़ायब हो गये थे। फिर मुद्दतों के बाद ज़ाहिर हुये और अज़ सरे नौ दीन की बुनियादें इस्तेवार (मज़बूत) कीं।
हज़रत ने फ़रमाया इसी तरह हमारा बारहवां जानशीन इमाम मेहदी मोहम्मद बिन हसन (अ.स.) तवील मुद्दत तक ग़ायब रह कर ज़हूर करेगा और दुनियां को अदलो इन्साफ़ से भर देगा।
(ग़ायतुल मक़सूद पेज न. 134 बहवाला फ़राएद अल सिमतैन हमवीनी)
अलामते ज़हूरे मेहदी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ अरबाबे अस्मत के इरशादात
इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर से पहले बेशुमार अलामात ज़ाहिर होंगे। फिर आखि़र में आपका ज़हूर होगा। मग़रिब व मशरिक़ पर आपकी हुकूमत होगी। ज़मीन खुद ब खुद तमाम दफ़ाएन (ज़मीन के ख़ज़ाने) उगल देगी। दुनियां की कोई ऐसी ज़मीन न बाक़ी रहेगी जिसको आप आबाद न कर दें। अलामाते ज़हूर में यह चन्द हैं:
1. औरतें मरदों के मुशाबेह होगीं। 2. मर्द औरतों जैसे होगें। 3. औरतें ज़ीन जैसी चीज़ें , घोड़े , साईकिलों , स्कूटरों , करों वग़ैरा पर सवारी करने लगेंगी। 4. नमाज़ जान बूझ कर क़ज़ा की जाने लगेगी। 5. लोग ख़ाहिशाते नफ़सानी की पैरवी करने लगेंगे। 6. क़त्ल करना मामूली चीज़ समझा जायेगा। 7. सूद का ज़ोर होगा। 8. ज़िना आम होगा। 9. अच्छी अच्छी इमारतें बहुत बनेगीं। 10. झूठ बोलना हलाल समझा जायेगा। 11. रिश्वत आम होगी। 12. शहवते नफ़सानी की पैरवी की जायेगी। 13. दीन को दुनिया के बदले बेचा जायेगा। 14. अज़ीज़दारी की परवाह न होगी। 15. अहमक़ों को आमिल बनाया जायेगा। 16. बुर्दबारी को बुज़दिली व कमज़ोरी पर महमूल किया जायेगा। 17. ज़ुल्म फ़ख़्र के तौर पर किया जायेगा। 18. बादशाह व उमरा फ़ासिक़ो फ़ाजिर होंगे। 19. वज़ीर झूठ बोलेंगे। 20. अमानत दार ख़ाएन होंगे। 21. हर एक मद्दगार ज़ुल्म परवर होगा। 22. क़ारीयाने क़ुरआन फ़ासिक़ होंगे। 23. ज़ुल्म व जौर आम होगा। 24. तलाक़ बहुत ज़्यादा होंगी। 25. फ़िसक़ो फ़ुजूर नुमायाँ होंगे। 26. फ़रेबी की गवाही क़ुबूल की जायेगी। 27. शराब नोशी आम होगी। 28. इग़लाम बाज़ी का ज़ोर होगा। 29. सिहक़ , यानी औरतें , औरतों के ज़रिए शहवत की आग बुझाएंगी। 30. माले ख़ुदा व रसूल (स.अ.व.व.) को माले ग़नीमत समझा जायेगा। 31. सदक़ा व ख़ैरात से नाजायज़ फ़ायदा उठाया जायेगा। 32. शरीरांे की ज़बान के ख़ौफ़ से नेक बन्दे ख़ामोश रहेंगे। 33. शाम से सुफ़ियानी का ख़ुरूज होगा। 34. यमन से यमानी बरामद होगा। 35. मक्के और मदीने के दरमियान ब मक़ाम ‘‘ लुद ’’ ज़मीन धंस जायेगी। 36. रूकन और मक़ाम के दरमियान आले मोहम्मद की एक मोअजि़्ज़ज़ फ़र्द क़त्ल होगी। (नुरूल अबसार पेज न. 155 मुद्रित मिस्र) 37. बनी अब्बास में शदीद एख़्तेलाफ़ होगा। 38. 15 शाबान को सूरज गरहन और इसी माह के आखि़र में चाँद गरहन होगा। 39. ज़वाल के वक़्त आफ़ताब अस्र के वक़्त तक क़ाएम रहेगा। 40. मग़रिब से आफ़ताब निकलेगा। 41. नफ़से ज़किया और सत्तर (70) सालेहीन का क़त्ल। 42. मस्जिदे कूफ़ा की दीवार ख़राब व बरबाद कर दी जायेगी। 43. ख़ुरासान की जानिब से सियाह (काले) झंडे बरामद होंगे। 44. मिस्र में एक मग़रेबी का ज़हूर होगा। 45. तुर्क जज़ीरे में होंगे। 46. रोम रमले में पहुँच जायेंगे। 47. मशरिक़ में एक सितारा निकलेगा जिसकी रौशनी मग़रिब तक फ़ैलेगी। 48. एक सुरखी ज़ाहिर होगी जो आसमान और सूरज पर गा़लिब आ जायेगी। 49. मशरिक़ से एक ज़बरदस्त आग भड़केगी जो तीन या सात रोज़ बाक़ी रहेगी और बरवायत शिब्लन्जी पेज न. 21 , वह आग मग़रिब तक फैल कर आलम को तहस नहस कर देगी। 50. अरब मुख़तलिफ़ बलाद पर क़ाबू पा लेंगे और अजम के बादशाह को मग़लूब कर देगें। 51. मिस्री अपने बादशाह और हाकिम को क़त्ल कर देंगे। 52. शाम तबाह व बरबाद हो जायेगा। 53. क़ैस व अरब के झंड़े मिस्र पर लहराएगें। 54. ख़ुरासान पर बनी कन्दा का परचम लहरायेगा। 55. फ़रात का पानी इस दरजा चढ़ जायेगा कि कूफ़े के गली कूचों में पानी होगा। 56. 60 , अद्द मुद्दीयाने नबूवत ज़ाहिर होंगे। 57. 13 नफ़र औलादे अबू तालिब से दावाए इमामत करेंगे। 58. बनी अब्बास का एक अज़ीम शख़्स ब मुक़ाम हलवलाद ख़ानक़ैन नज़रे आतश किया जायेगा। 59. बग़दाद में ख़रक़ जैसा पुल बनाया जायेगा। 60. सियाह आंधी का आना। 61. ज़लज़लों का आना। 62. अकसर मक़ामात पर ज़मीन का धंस जाना। 63. नागहानी मौतों का ज़्यादा होना। 64. जानो माल व समरात (फ़लों) की तबाही। 65. चींटीयों और टिड्डियों की कसरत जो खेती को खा जायें। 66. ग़ल्ले का कम उगना। 67. आपसी कुश्तो ख़ून की कसरत। 68. अपने सरदारो से लोगों का नाफ़रमान होना। 69. अपने सरदारों को क़त्ल करना। 70. बाज़ गिरोह का सुअर और बन्दर की सूरत में मसख़ होना। 71. आसमान से एक आवाज़ का आना जिसे तमाम अहले ज़मीन सुनेंगे। 72. आसमानी आवाज़ का हर ज़बान बोलने वाले के कान में उसी की ज़बान में पहुँचना। 73. बाज़ सूरतों का मक़ामे ऐन अल शम्स में ज़ाहिर होना। 74. 24 , चौबीस बारीशों का पै दर पै होना। 75. ज़मीन का ज़िन्दा हो कर अपने तमाम मालूमात ज़ाहिर करना। (कशफ़ल ग़म्मा पेज न. 134) 76. अच्छाई और बुराई एक नज़र से देखी जायेगी। 77. बुराई का हुक्म अपनी औलाद को दिया जायेगा और अच्छाई से रोका जायेगा। 78. लालच की वजह से बातिन ख़राब हो जायेंगे। 79. ख़ौफ़े ख़ुदा दिल से निकल जायेगा। 80. क़ुरआन का सिर्फ़ निशान रह जायेगा। 81. मस्जिदें आबाद मगर हिदायत से ख़ाली होंगी। 82. फ़ोक़हा फ़ितना परवर होंगे। 83. औरतों से मशवेरा लिया जायेगा। 84. गुनाह खुल्लम खुल्ला किया जायेगा। 85. बद अहदी आम होगी। 86. औरतों को तिजारत में शरीक किया जायेगा। 87. ज़लील तरीन शख़्स क़ौम का सरदार होगा। 88. गाने वालियों का ज़ोर होगा। 89. उस ज़माने के लोग अगलों पर बिला वजह लानत करेंगे। 90. झूठी गवाही दी जायेगी। 91. हक़ ख़त्म हो जायेगा। 92. क़ुरआन एक कोहना (पुरानी) किताब समझी जायेगी। 93. दीन अन्धा कर दिया जायेगा। 94. बदकारी ऐलान के साथ की जायेगी। 95. फ़िसक़ो फ़ुजूर में जिसकी मदह की जायेगी ख़ुश होगा। 96. लड़के औरतों की तरह उजरत पर इस्तेमाल होंगे। 97. मासियत पर माल ख़र्च करने वालों को टोका न जायेगा। 98. हमसाया हमसाये को अज़ीयत देगा। 99. नेकी का हुक्म करने वाला ज़लील होगा। 100. नेकी के रास्ते छोड़ दिये जायेंगे। 101. बैतुल्लाह मोअत्तल कर दिया जायेगा। 102. औरतें अन्जुमनें क़ायम करेंगी। 103. मर्द औरतों की तरह कंघी करेंगे। 104. मर्दों को शर्मगाहों का मुआवज़ा मिलेगा। 105. मोमिन से ज़्यादा साहेबे माल की इज़्ज़त होगी। 106. औरतें अपने शौहरों को मर्दों के साथ बद फ़ेली पर मजबूर करेंगी। 107. औरतों की दलाली करने वाले मोअज़्ज़ज़ समझे जायेंगे। 108. मोमिन ग़मगीन और ज़लील होगा। 109. हराम को हलाल किया जायेगा। 110. दीन में खुदराई की जायेगी। 111. गुनाह के लिये परदाए शब की ज़रूरत न होगी। 112. बड़े बड़े माल ख़ुदा की मासियत में सर्फ़ होंगे। 113. हुक्काम दीनदारी से दूर होंगे। 114. जज फ़ैसले में रिश्वत लेंगे। 115. हराम औरतों से ज़िना किया जायेगा , जैसे माँ बहनें। 116. मर्द अपनी जौजा की हराम कमाई खायेगा। 117. औरतें अपने मर्दों पर हुकूमत करेंगी। 118. मर्द अपनी जोजा और लोंडी को किराये पर चढ़ायेगा। 119. शरीफ़ को ज़लील समझा जायेगा। 120. हुक्काम में उसकी इज़्ज़त होगी जो आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) को बुरा कहेगा। 121. कु़रआन पढ़ना और सुन्ना बार होगा। 122. चुग़लखोरी आम होगी। 123. ग़ीबत को अच्छा समझा जायेगा। 124. हज और जेहाद ख़ुदा के लिये नहीं दीगर मक़ासिद के लिये किया जायेगा। 125. बादशाह यानी बर सरे इक़्तेदार तबक़ा मोमिन को काफ़िर के लिये ज़लील करेगा। 126. वीराना आबादी से बदल जायेगा। 127. नाप तोल में कमी लोंगो का ज़रिए माश होगा। 128. लोग रियासत तलबी के लिये अपने को बदज़बानी में मशहूर करेंगे ताकि ख़ौफ़ के मारे हुकूमत उनके सिपुर्द कर दी जाये। 129. नमाज़ बिल्कुल हलकी और बेअहमियत कर दी जायेगी। 130. माले कसीर के बावजूद ज़कात न दी जायेगी। 131. मय्यत क़ब्र से निकालीं जायेगी। 132. क़ब्र से कफ़न चुरा कर बेचा जायेगा। 133. इन्सान सुबह शाम नशे में होगा। 134. चोपायो के साथ बदफ़ेली की जायेगी। 135. चैपाए चैपायों को फाड़ खायेंगे। 136. लोग जानमाज़ पर बरहैना जायेंगे। 137. लोगों के क़ुलूब सख़्त हो जायेंगे। 138. लोगों की आंखें बेहयाई करेंगी। 139. ज़िक्रे ख़ुदा लोगों पर बार होगा। 140. माले हराम आम होगा। 141. नमाज़ सिर्फ़ दिखावे के लिये पढ़ी जायेगी। 142. फ़क़ीह दीन के सिवा दूसरे कामों के लिये फ़िक़ा हासिल करेंगे। 143. लोग ग़ासिब का साथ देंगे। 144. हलाल रोज़ी कमाने वाले की मज़म्मत की जायेगी। 145. तालिबे हराम की मदाह की जायेगी। 146. हरमैन शरीफ़ैन में ऐसे अमल होंगे जो मन्शाए ख़ुदा वन्दी के खि़लाफ़ होंगे। 147. आलाते ग़िना (गाने बजाने की चीज़ें) मक्के व मदीने में आम हों जायेंगी। 148. हक़ की हिदायत को मना किया जायेगा। 149. लोग एक दूसरे की तरफ़ देखेंगे और अहले शहर उनकी इक़्तेदा करेंगे चाहे वह कुछ करें। 150. नेकी के रास्ते ख़ाली हो जायेंगें। 151. मय्यत का मज़हका़ उड़ाया जायेगा। 152. हर साल बुराईयों मे ईज़ाफ़ा होगा। 153. मजलिस में सिर्फ़ माल दार की इज़्ज़त की जायेगी। 154. फ़क़ीरों को मज़हक़े के तौर पर माल दिया जायेगा। 155. आसमानी मख़ादफ़ से कोई ख़ौफ़ न खायेगा। 156. मर्द और औरतें सब के सामने ख़्वाहिशाते नफ़सानी की आग बुझायेंगे। 157. अपनी इज़्ज़त के ख़ौफ़ से कोई शरीफ़ किसी को रोक टोक न सकेगा। 158. मासियत में माल ख़ुशी से सर्फ़ किया जायेगा लेकिन ख़ुदा की राह में बिल्कुल न दिया जायेगा। 159. वालेदैन की तरफ़ से औलाद को आक़ करना आम हो जायेगा। 160. वालेदैन अपनी औलाद की निगाह में सुबुक़ होंगे। 161. औलाद अपने वालेदैन पर इफ़तेरा करने में ख़ुशी महसूस करेगी। 162. औरतें मुल्क व हुकूमत पर गा़लिब हो जायेंगी। 163. फ़रज़न्द अपने बाप पर बोहतान बांधेगा। 164. लड़का माँ बाप पर बद दुआ करेगा। 165. फ़रज़न्द माँ बा पके जल्द मरने की तमन्ना करेगा। 166. इंसान जिस दिन कोई गुनाह न करेगा उस दिन ग़मगीन रहेगा। 167. बादशाह गरानी के लिये ग़ल्ला रोकेगा। 168. आइज़्ज़ा का माल फ़रेब से तक़सीम किया जायेगा। 169. जुआ खेला जायेगा। 170. शराब के ज़रिये से मरीज़ों का इलाज किया जायेगा। 171. अच्छाई और बुराई दोनों की तलक़ीन बराबर हैसियत रखेगी। 172. मुनाफ़िक़ और दुश्मने ख़ुदा की हवा बंधेगी और अहले हक़ मक़हूर (बे इज़्ज़त) रहेंगे। 173. उजरत ले कर अज़ान कही जायेगी और ऐवज़ ले कर नमाज़ पढ़ाई जायेगी। 174. ख़ुदा से न डरने वाले मस्जिदों पर क़ाबिज़ होंगे। 175. मस्जिदों में न अहल जमा हो कर ग़िबतें करेंगे। 176. बद मस्त रसमी तौर पर जमाअत में खड़े हो कर नमाज़ पढ़ेंगे। 177. यतीमों का माल खाने वाले की मदह की जायेगी। 178. क़ाज़ी हुक्मे ख़ुदा के खि़लाफ़ फ़ैसला करेगा। 179. हुक्काम लालच की वजह से ख़ाइनों पर भरोसा करेंगे। 180. मीरास बदकारी में सर्फ़ की जायेगी। 181. मिम्बर पर तक़वे का ज़िक्र किया जायेगा लेकिन वाएज़ ख़ुद अमल नहीं करेगा। 182. नमाज़ के अवक़ात की परवाह न की जायेगी। 183. सदक़ा व ख़ैरात ख़ुशनूदिये ख़ुदा के लिये नहीं सिर्फ़ सिफ़ारिश पर दिया जायेगा। 184. इन्सान का मक़सूदे हयात सिर्फ़ पेट पालना और ऐश करना होगा। 185. हक़ की निशानियां मिट जायेंगी। 186. भाई भाई से हसद करेगा। 187. अपने दोस्तों के साथ ख़यानत की जायेगी। 188. दिलों में ज़हर की तरह तकब्बुर दौड़ जायेगा। 189. ज़ोहद ख़त्म हो जायेगा। 190. लोगों की शक्लें इन्सानी और दिल शैतानी हो जायेंगे। 191. उनकी उम्रें क़लील और उनकी तमन्नाएं कसीर होंगी। (बेहारूल अनवार जिल्द 13 पेज न. 174 मुद्रित ईरान) 192. कनीज़ों से मशविरे किये जायेंगे। 193. बच्चे मिम्बरों पर बैठेंगे। 194. ऐसे हाकिम होंगे कि जब उनसे कोई बात करेगा तो क़त्ल कर दिया जायेगा। 195. हुक्काम शुरफ़ा के माल को अपना माल समझेंगे। 196. औरतों की आबरू रेज़ी करेंगे। 197. कुछ चीज़ें मशरिक़ से और कुछ मग़रिब से लाई जायेंगी जिनसे उम्मत का इम्तेहान किया जायेगा। 198. मस्जिद नक़शों निगार से मुज़अय्यन की जायेगी। 199. कु़रआन मजीद सजाये जायेंगे। 200. मस्जिदों की मिनारें बलन्द बनाई जायेंगी। 201. मर्द सोना इस्तेमाल करेंगे। 202. रेशमी कपड़े पहनेगें। 203. चीते की खाल का फ़र्श बनायेंगे। 204. सूद ख़ोरी ज़ाहिर बज़ाहिर होगी। 205. हदे शरई न की जायेगी। 206. शरीर अफ़राद हाकिम होंगे। 207. मालदार तफ़रीह के लिये , ग़रीब दिखाने के लिये मुतवसित तिजारत के लिये हज करेंगे। 208. क़ुरआन मजीद सुर से पढ़ा जायेगा। 209. वल्द अज़ ज़ेना की कसरत होगी। 210. ख़ुशामद बहुत ज़्यादा राएज होगी। 211. लिबास पर फ़ख़रो मुबाहात किया जायेगा। 212. उमरा शतरन्ज खेलेंगे। 213. क़ारियाने क़ुरआन और अब्बाद एक दूसरे पर लानत करेंगे। 214. मालदार फ़ख़ीरों से दूर भागेंगे। 215. मुल्की नज़्म व नस्क़ में वह लोग दख़ील होंगे जिनको उससे हिस व मिस न होगा। 216. ज़मीने ऐतिराफ़ से धंस जायेंगी। (तफ़सीर अली बिन इब्राहीम क़ुम्मी पेज न. 229) 217. दरिन्दें इन्सानांे से बाते करने लगेंगे। 218. लोंगो से उनके कोड़े और जूते कलाम करने लगेंगे। 219. इन्सान की राने बोलने लगेंगी और वह इसके घर के लोगों ने जो कुछ किया होगा घर के मालिक को बताने लगेगी। (नियाबुल मोवद्दता पेज न. 431 बहवाला तिरमिज़ी) 220. सुफ़यानी , ख़ुरासानी , यमानी का ख़ुरूज एक ही दिन , एक ही महीना , एक ही साल में होगा। 221. हुकूमते शाम , हमस महतसकीन , अरदन कफ़ससरीन पर ग़ालिब आ जायेगी। 222. तूफ़ान का ज़ोर होगा। 223. वादी याबिस से ‘‘ इब्ने आक़लातुल अकबाद ’’ खुरूज करेंगे। 224. मोमेनीन का इम्तेहान ख़ौफ़ , जू अन्कस अमवाल , नक़श , समरात से होगा। 225. शाम का ‘‘ क़रिया ’’ जाबीह ज़मीन में धंस जायेगा। 226. क़त्ले नफ़से ज़किया के 15 दिन बाद इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर होगा। (आलम अलवरा तबरसी पेज न. 262 मुद्रित बम्बई 1312 हिजरी) 227. दुनियां में झगड़े बखेड़े बेइन्तेहां होंगे। 228. नए नए फ़ितने पैदा होंगे। 229. आमदो रफ़्त के रास्ते बन्द हों जायेंगे। 230. लोग एक दूसरे को लूटने लगेगें। (अरजहुल मतालिब पेज न. 472) 231. मर्दों की कमी और औरतों की ज़्यादती होगी। 232. हेजाज़ से आग निकलेगी। 233. मस्जिदों से (लाऊड स्पीकर वग़ैरा के ज़रिये से) आवाज़ें बुलन्द होंगी। 234. रेशमी लिबास मर्द पहनने लगेगें। 235. मशरिक़ मग़रिब जज़ीराए अरब में ज़मीन धंस जायेंगी। 236. यमन और अदन से आग भड़कने लगेगी। (मिशक़ात पेज न. 461) 237. अच्छे लोग ख़त्म हो जायेंगे और बुरों की कसरत होगी। 238. मुक़द्देराते इलाही की मुख़ालेफ़त आम होगी। 239. माल के लाने ले जाने वाले चोरी करेंगे। 240. हराम ख़ोरी आम होगी। 241. गरानी हद से बढ़ जाएगी। 242. दरिया ख़ुश्क हो जायेंगे। 243. बारिश बन्द हो जायेगी। 244. अहले बरबर ज़र्द झंडे ले कर मिस्र पहुँच जायेंगे। 245. सख़र की औलाद से एक शख़्स खुरूज करेगा। 246. बर सरे आम औरतों की छातियों से खेला जायेगा। 247. सफ़ेद पिंडलियों की औरतें सड़कों पर बरैहना मिलेगी। 248. एक यमनी बादशाह हसन नामी यमन से खुरूज करेगा। 249. हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं क़ुरसे आफ़ताब (सूरज के गोले) के क़रीब आसमान पर एक हाथ ज़ाहिर होगा। 250. हज का रास्ता बन्द कर दिया जायेगा। 251. मर्दों से बदफ़ेली के लिये ताक़तवर ग़िजा़ए खाई जायेंगी। 252. दौलत के ज़ोर से हुकूमत हासिल की जायेगी। 253. झूठी क़सम खाना फ़ैशन में दाखि़ल होगा। 254. ज़ख़ीरा अन्दोज़ी होगी। 255. मस्जिदे बरासा जो जंगे नहरवान के बाद हज़रत अली (अ.स.) ने राहिब ज़रिये से बनाई थी , तबाह कर दी जायेगी। 256. क़ज़वैन में एक काफ़िर की अज़ीम हुकूमत होगी। 257. तकरीत से एक शख़्स ‘‘ औफ़ सलमा ’’ नामी ख़ुरूज करेगा। 258. मक़ामे क़रक़िया में जंगे अज़ीम होंगी। 259. तुर्क मैदाने जंग में उतर आयेंगे। 260. अहले नाक़ूस नसारा की हुकूमते आलम पर छा जायेंगे। 261. इस्लामी मुमालिक में बेशुमार कलीसे बनाये जायेंगे। (किताब अल वसाएल अलहाज मोहम्मद अली पेज न. 207 मुद्रित बम्बई 1329 हिजरी) 262. औरतें ऊंट के कोहान की तरह सर के बाल बनाएंगी। 263. औरतें ऐसे कपड़े पहनेंगी कि बरैहना मालूम होंगी। 264. औरतें ज़ीनत कर के बाहर निकला करेंगी। (बेहारूल अनवार) 265. लड़के लम्बे बाल रखेंगे। 266. बेवकूफ़ तफ़रीह के लिये इस्तेमाल किये जायेंगे। 267. मस्जिदें ख़ूबसूरत बनाई जायेंगी। 268. बड़ी बड़ी इमारतें बनाई जायेंगी। 269. क़हवे की मुख़्तलिफ़ क़िस्में इस्तेमाल होंगी। 270. लोग सवारियों से टकरा कर मरेंगे। 271. लोग रात में सोयेंगे और सुबह को मुर्दा होंगे। 272. रोयते हिलाल पर इख़्तेलाफ़ होंगे। 273. लोग आलाते ग़िना जेब में रख कर घूमा करेंगे। 274. हिन्द तिब्बत की वजह से तबाह होगा और तिब्बत की तबाही चीन की वजह से होगी। (मनाक़िब) 275. मिस्र में अमीर अल आमरा का क़याम होगा। 276. अरबो की हुकूमत छिन जायेगी। (कशफ़ुल ग़म्मा) 277. अदन की गहराई से आग निकलेगी। (रिसालाए ग़ैबत तूसी पेज न. 281) 278. दुनियां में हबशियों की हुकूमत क़ायम हो जायेंगी। 279. शाम में चीनी घुस जायेंगे तब ज़हूर होगा। (इलजा़म अल निसाब पेज न. 183)
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर मौफ़ूरुल सुरूर
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर से पहले जो अलामात जा़हिर होंगी उनकी तकमील के दौरान ही में नसारा फ़तेह ममालिके आलम का इरादा कर के उठे खड़े हांेगे और बेशुमार ममालिक पर क़ाबू हासिल करने के बाद उन पर हुक्मरानी करेंगे। इसी ज़माने में अबू सुफ़ियान की नस्ल से एक ज़ालिम पैदा होगा जो अरब व शाम पर हुक्मरानी करेगा। इसकी दिली तमन्ना यह होगी की सादात के वजूद से मुमालिके मीरूसा ख़ाली कर दिये जायें और नस्ले मोहम्मदी का एक फ़रज़न्द भी बाक़ी न रहे। चुनान्चे वह सादात को निहायत बेदर्दी से क़त्ल करेगा। फिर इसी असना में बादशाहे रोम को नसारा के एक फ़िरक़े से ज़ग करना पड़ेगी शाहे रोम एक फ़िरक़े को हमवार बना कर दूसरे फ़िरक़े से जंग करेगा और शहर क़ुसतुनतुनयां पर क़ब्ज़ा कर लेगा। क़ुसतुनतुनियां का बादशाह वहां से भाग कर शाम में पनाह लेगा , फिर वह नसारा के दूसरे फ़िरक़े की मुवावनत से फ़िरक़ये मुख़लिफ़ के साथ नर्बद आज़मा होगा। यहां तक कि इस्लाम को ज़बर दस्त फ़तेह नसीब होगी। फ़तेह इस्लाम के बवजूद नसारा शोहरत देंगे कि ‘‘ सलीब ’’ ग़ालिब आयेगी उस पर नसारा और मुसलमानों मे जंग होगी और नसारा ग़ालिब आजायगें। बादशाहे इस्लाम क़त्ल हो जायेगा और मुल्के शाम पर भी नसारा का झंडा लहराने लगेगा और मुसलमानों का क़त्ले आम होगा। मुसलमान अपनी जान बचा कर मदीने की तरफ़ कूच करेंगे और नसारा अपनी हुकूमत को वुस्अत देते हुए ख़ैबर तक पहुँचेंगे। इस्लामियां आलम के लिये कोई पनाह न होगी। मुसलमान अपनी जान बचाने से आजिज़ होंगे। उस वक़्त वह गिरोह सारे आलम में मेहदी (अ.स.) को तलाश करेंगे , ताकि इस्लाम महफ़ूज़ रह सके और उनकी जानें बच सकें और अवाम ही नहीं मुल्क के कुतुब , अबदाल और औलिया , जुस्तजू में मशग़ूल व मसरूफ़ होंगे नागाह आप मक्का ए मोअज़्ज़मा में रूकनव मक़ाम के दरमियान से बरामद होंगे। (क़यामत नामा क़दो तह अल मोहद्देसीन शाह रफ़ीउद्दीन देहलवी पेज न. 3 मुद्रित पेशावर 1926 ई0) उलमाए फ़रीक़ैन का कहना है कि आप क़रिया ‘‘ क़रआ ’’ से रवाना हो कर मक्कए मोअज़्ज़मा से ज़हूर फ़रमाएंगे। (ग़ाएतल मक़सूद पेज न. 165 , नूरूल अबसार पेज न. 154)
अल्लामा कुन्जी शाफ़ई और अली बिन मोहम्मद साहब किफ़ायतुल अस्र का ब हवाला अबू हुरैरा बयान करते हैं कि हज़रत सरवरे कायनात (स.अ.व.व.) ने इरशाद फ़रमाया है कि इमाम मेहदी (अ.स.) क़रया (क़रआ) (जो मदीने से बतरफ़ मक्का तीस मील के फ़ासले पर वाक़े है (मजमुअल बहरैन पेज न. 435) निकल कर मक्का ए मोअज़्ज़मा से ज़हूर करेंगे , वह मेरी ज़िरा पहने होगे। मेरी तलवार लगाए होंगे और मेरा अमामा बांधे होंगे। उनके सर पर अब्र का साया होगा और मलक आवाज़ देता होगा यही इमाम मेहदी (अ.स.) हैं इनकी इत्तेबा करो। एक रवायत में है कि जिब्राईल आवाज़ देगें और ‘‘ हवा ’’ इसको सारी कायनात में पहुँचा देगी और लोग आपकी खि़दमत मे हाज़िर होंगे। (ग़ाएतुल मक़सूद पेज न. 165)
लुग़ाते सरवरी पेज न. 530 में है कि आप क़स्बाए ख़ैरवाँ से ज़हूर फ़रमाएंगे। मासूम का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के मुताअल्लिक़ किसी का कोई वक़्त मोअय्यन करना फ़िल हक़ीक़त अपने आप को इल्में ग़ैब में ख़ुदा का शरीक क़रार देना है। वह मक्के में बे ख़बर ज़हूर करेंगे , उनके सर पर ज़र्द रंग का अमामा होगा। बदन पर रिसालत मआब (स.अ.व.व.) की चादर और पाँव में उन्हीं की नालैने मुबारक होगी। वह अपने सामने चन्द भेड़ें रखेंगे। कोई उन्हें पहचान न सकेगा और उसी हालत में यको तन्हा बग़ैर किसी रफ़ीक़ के काबातुल्लाह में आ जायेंगे। जिस वक़्त आलम सियाहिए शब की चादर ओढ़ लेगा और लोग सो जायेंगे उस वक़्त मलाएका सफ़ ब सफ़ उतरेंगे और हज़रत जिब्राईल व मीकाईल उन्हें नवेदे इलाही सुनाएंगे , कि उनका हुक्म तमाम दुनियां पर जारी व सारी है। यह बशारत पाते ही इमाम मेहदी (अ.स.) शुक्रे ख़ुदा बजा लाऐंगे और रूकने हजरे असवद और मक़ामे इब्राहीम के दरमियान खड़े हो कर बा आवाज़े बुलन्द निदा देंगे कि ऐ वह गिरोह जो मेरे मख़सूसों और बुज़ुर्गों से हो और वह लोग जिनको हक़ तआला ने रूए ज़मीन पर मेरे ज़ाहिर होने से पहले मेरी मद्द के लिये जमा किया है ‘‘ आजाओ ’’ यह निदा हज़रत के उन लोगों तक ख़्वाह वह मशरिक़ में हैं या मग़रिब में पहुँच जायेगी , और वह लोग यह आवाज़ सुन कर चश्मे ज़दन में हज़रत के पास जमा हो जायेंगे। यह लोग 313 होंगे और नक़ीबे इमाम कहलाएंगे। उसी वक़्त एक नूर ज़मीन से आसमान तक बलन्द होगा जो सफ़े दुनियां में हर मोमिन के घर में दाखि़ल होगा। जिससे उनकी तबीयतें मसरूर हो जायेंगी मगर मोमिनीन को मालूम न होगा कि इमाम (अ.स.) का ज़हूर हुआ है। सुबह इमाम (अ.स.) मय उन 313 अशख़ास (लोगों) के जो रात को उन के पास जमा हो गये थे काबे में खड़े होंगे और दीवार से तकिया लगा कर अपना हाथ खोलेंगे जो मूसा (अ.स.) के यदे बैज़ा के मानिन्द होगा और कहेंगे कि जो कोई इस हाथ पर बैयत करेगा वह ऐसा है गोया उसने ‘‘ यद अल्लाह ’’ पर बैयत की। सब से पहले जिब्राईल शरफ़े बैयत से मुशर्रफ़ हांेगे। इनके बाद मलायका बैयत करेंगे। फिर मुक़द्दम अल ज़िक्र नुक़बा 313 बैयत से मुशर्रफ़ होंगे। इस हलचल और इज़देहाम में मक्के में तहलका मच जायेगा और लोग हैरत ज़दा हो कर हर सिम्त से इस्तेफ़सार करेंगे कि यह कौन शख़्स है। यह तमाम वाक़ेयात तुलूए आफ़ताब से पहले सर अन्जाम हो जायेंगे फिर जब सूरज चढ़ेगा तो कु़रसे आफ़ताब के सामने एक मुनादी करने वाला ज़ाहिर होगा और बाआवाज़े बलन्द कहेगा जिसको साकेनाने ज़मीनो आसमान सुनेंगे कि ‘‘ ऐ गिरोह ख़लाएक़ यह मेहदी आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) हैं इनकी बैयत करो फिर मलाएक और 313 आदमी तसदीक़ करेंगे और दुनिया के हर गोशे से ज़ूक दर ज़ूक आपकी ज़्यारत के लिये रवाना हो जायेंगे और आलम पर हुज्जत क़ायम हो जायेगी। इसके बाद दस हज़ार अफ़राद बैयत करेंगे और कोई यहूदी और नसरानी बाक़ी न छोड़ा जायेगा सिर्फ़ अल्लाह का नाम होगा और इमाम मेहदी (अ.स.) का काम होगा। जो मुख़ालेफ़त करेगा उस पर आसमान से आग बरसे गी और उसे ख़ाक इसतर कर देगी। (नूरूल अबसार , इमाम शिब्लन्जी , शाफ़ेई पेज न. 155 , आलामुल वुरा पेज न. 264)
उलेमा ने लिखा है कि 27 मुख़लेसीन आपकी खि़दमत में कूफ़े से इस क़िस्म के पहुँच जायेंगे जो हाकिम बनाए जायेंगे। जिनके असमा , किताब ‘‘ मुन्तख़ब बसाएर ’’ यह हैं। यूशा बिन नून , सलमान फ़ारसी , अबू दजाना अन्सारी , मिक़दाद बिन असवद , मालिके अशतर और क़ौमे मूसा के 15 अफ़राद और सात असहाबे कहफ़। (आलामुल वुरा पेज न. 264 , इरशाद मुफ़ीद पेज न. 216)
अल्लामा अब्दुल रहमान जामी का कहना है कि कुतब , अबदाल , अरफ़ा सब आपकी बैयत करेंगे। आपकी जानवरों की ज़बान से भी वाक़िफ़ होंगे और आप इंसानों व जिनों में अदल व इंसाफ़ करेंगे। (शवाहेदुन नबूवत पेज न. 216)
अल्लामा तबरीसी का कहना है कि आप हज़रते दाऊद (अ.स.) के उसूल पर अहकाम जारी करेंगे। आपको गवाह की ज़रूरत न होगी। आप हर एक के अमल से ब इल्हामे ख़ुदा वन्दी वाक़िफ़ होंगे। (आलामुल वुरा पेज न. 264)
इमाम शिब्लन्जी शाफ़ेई का बयान है कि जब इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर होगा तो तमाम मुसलमान ख़वास और अवाम ख़ुश व मसरूर हो जायेंगे। उनके कुछ वज़रा होंगे जो आपके अहकाम पर लोगों से अमल कराऐंगे। (नूरूल अबसार पेज न. 153 बहवाला फ़तूहाते मक्किया)
अल्लाम हल्बी का कहना है कि असहाबे कहफ़ आप के वज़रा होंगे। (सीरते हल्बिया)
हमूयनी का बयान है कि आपके जिस्म का साया न होगा। (ग़ायत अल मक़सूद जिल्द 2 पेज न. 150)
हज़रत अली (अ.स.) का फ़रमान है कि अन्सार व असहाब इमाम मेहदी (अ.स.) ख़ालिस अल्लाह वाले होंगे। (अर हज्जुल मतालिब पेज न. 469) और आपके गिर्द इस तरह लोग जमा हो जायेंगे जिस तरह शहद की मक्खी अपने ‘‘ यासूब ’’ बादशाह के गिर्द जमा हो जाती हैं। (अर हज्जुल मतालिब पेज न. 469)
एक रवायत में है कि ज़हूर के बाद आप सब से पहले कूफ़े तशरीफ़ ले जायेंगे और वहां के कसीर अफ़राद क़त्ल करेंगे।
इमाम मेहदी (अ.स.) का सिने ज़हूर
ख़ल्लाक़े आलम ने पांच चीजो का इल्म अपने लिये मख़सूस रखा है जिनमें एक क़यामत भी है। (क़ुरआने मजीद) ज़हूरे इमाम मेहदी (अ.स.) चूंकि लाज़मए क़यामत से है लेहाज़ा इसका इल्म भी ख़ुदा ही को है कि आप कब ज़हूर फ़रमाऐंगे। कौन सी तारीख़ होगी , कौन सा सन् होगा। ताहम अहादीसे मासूमीन (अ.स.) जो इल्हाम और कु़रआन से मुसतम्बित होती हैं उनमें इशारे मौजूद हैं। अल्लामा शेख़ मुफ़ीद , अल्लामा सैय्यद अली , अल्लामा तबरेसी , अल्लामा शिब्लन्जी रक़म तराज़ हैं कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने इसकी वज़ाहत फ़रमाई है कि आप ताक़ सन् में ज़हूर फ़रमाऐंगे जो 1 , 3 , 5 , 7 , 9 , से मिल कर बनेगा मसलन 1300 , 1500 , 1700 , 1900 या 1000 , 3000 , 5000 , 7000 , 9000 , इसी के साथ ही साथ आपने फ़रमाया है कि आपके इस्मे गेरामी का ऐलान बज़रिए जनाबे जिब्राईल (अ.स.) 23 तारीख़ को कर दिया जायेगा और ज़हूर यौमे आशूरा होगा जिस दिन इमाम हुसैन (अ.स.) ब मुक़ामे करबला शहीद हुए हैं। (शरह इरशाद मुफ़ीद पेज न. 532 , ग़ायतूल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 161 , आलामुल वुरा पेज न. 262 , नूरूल अबसार पेज न. 155)
मेरे नज़दीक़ ज़िल्ज्जिा की 23 तारीख़ होगी क्यो कि नफ़से ज़किया के क़त्ल और ज़हूर में 15 रातों का फ़ासला होना मुसल्लम है। इमकान है कि क़त्ले नफ़से ज़किया के बाद ही नाम का ऐलान कर दिया जाय फिर उसके बाद ज़हूर हो।
मुल्ला जव्वाद साबाती का कहना है कि इमाम मेहदी (अ.स.) यौमे जुमा बवक़्ते सुबह बतारीख़ 10 मोहर्रमुल हराम 7100 हिजरी में ज़हूर फ़रमाऐंगे। (ग़ाएतुल मक़सूद पेज न. 161 ब हवाला बराहीने साबतीया)
इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर बवक़्ते अस्र होगा और वही असराय ‘‘ वल अस्र इन्नल इंसाना लफ़ी ख़ुसरिन ’’ से मुराद है।
शाह नेमत अल्लाह वली काज़मी अल मतूफ़ी 827 हिजरी (मजालिसे मोमेनीन पेज न. 276) जो शायर होने के अलावा आलिम और मुनज्जिम भी थे। आपको इल्मे जाफ़र में भी दख़्ल था। आपने अपनी मशहूर पेशीन गोई में 1380 हिजरी का हवाला दिया है जिसका ग़लत होना साबित है क्यों कि 1393 हिजरी है। (वल इल्म इन्दल्लिाह) (क़यामत नामा क़ुदवतुल मोहद्देसीन शाह रफ़ीउद्दीन पेज न. 38)
ज़हूर के वक़्त इमाम (अ.स.) की उम्र
यौमे विलादत से ताबा ज़हूर आपकी क्या उम्र होगी ? इसे तो ख़ुदा ही जाने , लेकिन यह मुसल्लेमात से है कि जिस वक़्त आप ज़हूर फ़रमायेंगे मिसले हज़रते ईसा (अ.स.) आप चालीस साला जवान की हैसियत में होंगे। (आलामुल वुरा पेज न. 265 व ग़ायतुल मक़सूद पेज न. 76 पेज न. 119)
आपका अलम
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के अलम पर ‘‘ अल बकीयतुल्लाह ’’ लिखा होगा और आप अपने हाथों पर ख़ुदा के लिये बैयत लेंगे और कायनात में सिर्फ़ दीने इस्लाम का परचम लहरायेगा। (यनाबिउल मोवद्दता पेज न. 434)
ज़हूर के बाद
ज़हूर के बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) काबे की दीवार से टेक लगा कर खडे होंगे। अब्र (बादल) का साया आपके सरे मुबारक पर होगा। आसमान से आवाज़ आती होगी ‘‘ यही इमाम मेहदी (अ.स.) हैं ’’ इसके बाद आप एक मिम्बर पर जलवा अफ़रोज़ होंगे। लोगो को ख़ुदा की तरफ़ दावत देंगे और दीने हक़ की तरफ़ आने की सब को हिदायत फ़रमायेंगे। आपकी तमाम सीरत पैग़म्बरे इस्लाम की सीरत होगी और उन्हीं के तरीक़े पर अमल पैरा होंगे। अभी आपका ख़ुत्बा जारी होगा कि आसमान से जिब्राईल और मीकाईल आ कर बैयत करेंगे। फिर मलाएक ए आसमानी की आम बैयत होगी। हज़ारों मलाएका की बैयत के बाद वह 313 मोमेनीन बैयत करेंगे जो आपकी खि़दमत में हाज़िर हो चुके होंगे। फिर आम बैयत का सिलसिला शुरू होगा। दस हज़ार अफ़राद की बैयत के बाद आप सब से पहले कूफ़े तशरीफ़ ले जायेंगे और दुश्मनाने आले मोहम्मद का गला क़मा करेंगे। आपके हाथ में असाए मूसा होगा। जो अज़दहे का काम करेगा और तलवार हेमाएल होगी। (अयनुल हयात मजलिसी पेज न. 92)
तवारीख़ में है कि जब आप कूफ़े पहुँचेंगे तो कई हज़ार का एक गिरोह आपकी मुख़ालफ़त के लिये निकल पडे़गा और कहेगा हमें बनी फ़ात्मा की ज़रूरत नहीं , आप वापस जाइये , यह सुन कर तलवार से उनका क़िस्सा पाक कर देंगे और किसी को भी ज़िन्दा न छोड़ेंगे। जब कोई भी दुश्मनें आले मोहम्मद और मुनाफ़िक़ वहां बाकी़ न रहेगा तो आप एक मिम्बर पर तशरीफ़ ले जायेंगेक और वाक़िया ए करबला का ज़िक्र करेंगे यानी मजलिसे हुसैन (अ.स.) पढ़ेंगे। उस वक़्त लोग महवे गिरया हो जायेंगे और कई घंटे तक रोने का सिलसिला जारी रहेगा। फिर आप हुक्म देंगे कि मशहदे हुसैन (अ.स.) तक नहरे फ़ुरात काट कर लाई जाये और एक मस्जिद की तामीर की जाये , जिसके एक हज़ार दर हों चुनान्चे ऐसा ही किया जायेगा। इसके बाद आप ज़्यारते सरवरे कायनात के लिये मदीनए मुनव्वरा तशरीफ़ ले जायेंगे।
(आलामुल वुरा पेज न. 263 इरशाद मुफ़ीद पेज न. 532 नूरूल अबसार पेज न. 155)
क़ुदवतुल मोहद्देसीन शाह रफ़ीउद्दीन रक़म तराज़ हैं कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) जो इल्मे लदुन्नी से भर पूर होंगे जब मक्के से आपका ज़हूर होगा और उस ज़हूर की शोहरत अतराफ़ व अकनाफ़े आलम में फैलेगी तो अफ़वाज़ मदीना व मक्का आपकी खि़दमत में हाज़िर होगी और शाम व ईराक़ व यमन के अब्दाल और औलिया खि़दमत शरीफ़ में हाज़िर होंगे और अरब की फ़ौजे जमा हो जायेंगी। आप उन तमाम लोगों को उस ख़ज़ाने से माल देंगे जो काबे से बरामद होगा और मुक़ामे ख़जा़ना को ‘‘ ताजुल काबा ’’ कहते होंगे। इसी असना में एक शख़्स ख़ुरासानी अज़ीम फ़ौज ले कर हज़रत की मदद के लिये मक्के मोअज़्ज़मा को रवाना होगा। रास्ते में इस लशकरे ख़ुरासानी के मुक़द्देमा अल जैश के कमान्डर मन्सूर से नसरानी फ़ौज की टक्कर होगी और ख़ुरासानी लशकर नसरानी फ़ौज को पसपा कर के हज़रत की खि़दमत में पहुँच जायेगा।
इसके बाद एक शख़्स सुफ़ियानी जो बनी कल्ब से होगा हज़रत से मुक़ाबले के लिये लशकरे अज़ीम इरसाल करेगा लेकिन बहुक्मे ख़ुदा जब वह लशकरे मक्काए मोअज़्ज़मा और काबाए मुनव्वरा के दरमियान पहुँचेगा और पहाड़ में क़याम करेंगा जो ज़मीन में वहीं धंस जायेगा। फिर सुफ़ियानी जो दुशमनों आले मोहम्मद होगा नसारा से साज़ बाज़ कर के इमाम मेहदी (अ.स.) से मुक़ाबले के लिये ज़बर दस्त फ़ौज फ़राहम करेगा। नसरानी और सुफ़ियानी फ़ौज के अस्सी निशान होंगे और निशान के नीचे 12000 की फ़ौज होगी। उनका दारूल खि़लाफ़ा शाम होगा। इमाम मेहदी (अ.स.) भी मदीनाए मुनव्वरा होते हुए जल्द से जल्द शाम पहुँचेंगे। जब आप का वरूदे मसऊद दमिशक़ में होगा तो दुश्मने आले मोहम्मद और सुफ़ियानी और दुशमने इस्लाम नसरानी आप से मुक़ाबले के लिये सफ़ आरा होंगे। इस जंग में फ़रीक़ैन के बे शुमार अफ़राद क़त्ल होंगे। बिल आखि़र इमाम (अ.स.) का फ़तेह कामिल होगी और एक नसरानी भी ज़मीने शाम पर बाक़ी न रहेगा। उसके बाद इमाम (अ.स.) अपने लशकरियों में इनाम तक़सीम करेंगे और उन मुसलमानों को मदीनए मुनव्वरा से वापस बुला लेगे जो नसरानी बादशाह के ज़ुल्म व जौर से आजिज़ आ कर शाम से हिजरत कर गये थे। (क़यामत नामा पेज न. 4)
इसके बाद आप मक्काए मोअज़्ज़मा वापस तशरीफ़ ले जायेंगे और मस्जिदे सहला में क़याम फ़रमायेंगे। (इरशाद पेज न. 533)
इसके बाद मस्जिदुल हराम को अज़ सरे नो बनायेंगे और दुनिया की तमाम मसाजिद को शरई उसूल पर कर देंगे , हर बिदअत को ख़त्म कर देंगे और हर सुन्नत को क़ायम करेंगे। निज़ामे आलम दुरूस्त करेंगे और शहरों में फ़ौजें इरसाल करेंगे। इन्सेराम व इन्तेज़ाम के लिये वज़रा रवाना होंगे। (आलामुल वुरा पेज न. 262 पेज न. 264)
इसके बाद आप मोमेनीन , कामेलीन और काफ़रीन को ज़िन्दा करेंगे और इस ज़िन्दगी का मक़सद यह होगा कि मोमेनीन इस्लामी उरूज से ख़ुश हों और काफ़ेरीन से बदला लिया जाये।इन ज़िन्दा किये जाने वालों में का़बिल से ले कर उम्मते मोहम्मदिया के फ़राना तक ज़िन्दा किये जायेंगे और उनके किये का पूरा पूरा बदला उन्हें दिया जायेगा। जो जो ज़ुल्म उन्हीं ने किये उनका मज़ा चखेंगे। ग़रीबों मज़लूमों और बे कसों पर जो ज़ुल्म हुआ है उसकी , ज़ालिम को सज़ा दी जायेगी। सब से पहले जो वापस लाया जायेगा वह यज़ीद बिन माविया मलऊन होगा और इमाम हुसैन (अ.स.) तशरीफ़ लायेंगे। (ग़ायत अल मक़सूद)
दज्जाल और उसका ख़ुरूज
दज्जाल दजल से मुश्तक़ है (बना है) जिसके मानी फ़रेब के हैं। इसका असल नाम साएफ़ , बाप का नाम साएद , माँ का नाम काहेता उर्फ़ क़तामा है। यह अहदे रिसालत माआब (स.अ.व.व.) में बमक़ामे तौहा जो मदीना ए मुनव्वरा से तीन मील के फ़ासले पर वाक़े है चहार शम्बे के दिन बवक़्ते ग़ुरूबे आफ़ताब पैदा हुआ है। पैदाईश के बाद आन्न फ़ान्न बढ़ रहा था उसकी दाहिनी आँख फूटी थी और बाई आँख पेशानी पर चमक रही थी। वह चन्द दिनों में काफ़ी बढ़ कर दावाए ख़ुदाई करने लगा। सरवरे कायनात (स.अ.व.व.) जो हालात से बराबर मुत्तला हो रहे थे उन्होंने सलमाने फ़ारसी और चन्द असहाब को लिया और बमक़ामे तीहा जा कर उसको तबलीग़ करना चाही , उसने बहुत बुरा भला कहा और चाहा कि हज़रत पर हमला कर दे , लेकिन आप के असहाब ने मदाफ़ेअत की , आपने उससे यह फ़रमाया था कि ख़ुदाई का दावा छोड़ दे और मेरी नबूवत को मान ले। उलेमा ने लिखा है कि दज्जाल की पेशानी पर ब ख़त्ते यज़दानी ‘‘ अल काफ़िर बिल्लाह ’’ लिखा हुआ था और आँख के ढेले पर भी (काफ़ , फ़े , रे) मरक़ूम था। ग़रज़ कि आपने वहां से मदीना ए मुनव्वरा वापस तशरीफ़ लाने का इरादा किया। दज्जाल ने एक संगे गरां (बहुत बड़ा पत्थर) जो पहाड़ के मानिन्द था हज़रत की राह में रख दिया। यह देख कर हज़रत जिब्राईल (अ.स.) आसमान से आये और उसे हटा दिया। अभी आप मदीने पहुँचे ही थे कि दज्जाल लशकरे अज़ीम ले कर मदीने के क़रीब जा पहुँचा। हज़रत ने बारगाहे अहदियत में अर्ज़ की , ख़ुदाया इसे उस वक़्त तक के लिये महबूस कर दे , जब तक इसे ज़िन्दा रखना मक़सूद है। इसी दौरान में जनाबे जिब्राईल आये और उन्होंने दज्जाल की गरदन को पुश्त की तरफ़ से पकड़ कर उठा लिया और उसे ले जा कर जज़ीरा ए तबरिस्तान में महबूस (क़ैद) कर दिया। लतीफ़ा यह है कि जिब्राईल उसे ले कर जाने लगे तो उसने ज़मीन पर दोनो हाथ मार कर तहतुल शरह तक की दो मुठ्ठी खा़क ले ली और उसे तबरिस्तान में डाल दिया। जिब्राईल (अ.स.) ने सरवरे कायनात (स.अ.व.व.) के जवाब में कहा कि आपकी वफ़ात से 960 साल बाद यह खा़क आलम मे फैले गी और उसी वक़्त से आसारे क़यामत शुरू हो जायेंगे। (ग़ायतल मक़सूद पेज न. 64 , इरशाद अल तालेबैन पेज न. 394)
पैग़म्बरे इस्लाम का इरशाद है कि दज्जाल को मबहूस होने के बाद तमीम दारमी ने जो पहले नसरानी था जज़ीरा ए तबरिस्तान में ब चश्मे खुद देखा है। उसकी मुलाक़ात की तफ़सील किताब सियाह अल मसाबिह , ज़हरतुल रियाज़ , सही बुख़ारी , सही मुस्लिम में मौजूद है।
ग़रज़ कि अकसर रवायात के मुताबिक़ दज्जाल हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर फ़रमाने के 18 यौम बाद ख़ुरूज करेगा। (मजमऊल बहरैन पेज न. 560 व ग़ायतल मक़ूसद जिल्द 2 पेज न. 69) ज़हूरे इमाम (अ.स.) और खुरूजे दज्जाल से पहले तीन साल तक सख़्त कहत पडे़गा। पहले साल एक बटे तीन बारिश और एक बटे तीन ज़राएत ख़त्म हो जायेगी। दूसरे साल आसमान व ज़मीन की बरकत व रहमत ख़त्म हो जायेगी। तीसरे साल बिल्कुल बारिश न होगी और सारी दुनियां वाले मौत की आग़ोश में पहुँचने के क़रीब हो जायेंगे। दुनियां ज़ुल्म व जौर , इज़तेराब व परेशानी से बिल्कुल पुर होगी। इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के बाद 18 दिन में कायनात निहायत अच्छी सहत पर पहुँची हो गी कि नागाह दज्जाल मलऊन के खुरूज का गुलग़ुला उठेगा। वह बरवायत अखवन्द दरवीज़ा हिन्दोस्तान के एक पहाड़ पर नमूदार होगा और वहां से ब आवाज़े बलन्द कहेगा ‘‘ मैं खुदाए बुज़ुर्ग हू ’’ मेरी इताअत करो। यह आवाज़ मशरिक़ व मग़रिब में पहुँचेगी। उसके बाद तीन यौम या बरवायत 40 यौम इसी मुक़ाम पर रह कर लश्कर तैयार करेगा। फिर शाम व ईराक़ होता हुआ अस्फ़ाहान के एक क़रये ‘‘ यहूदिया ’’ से ख़ुरूज करेगा। उसके हमराह बहुत बड़ा लश्कर होगा जिसकी तादाद 70 ,00 ,000 (सत्तर लाख) मरक़ूम है। जिन , देव , परी , शैतान इनके अलावा होंगे। वह एह गधे पर सवार होगा। जो अबलक़ रंग का होगा। उसके जिस्म का बालाई हिस्सा सुर्ख़ , हाथ पाँव ताज़ा नौ सियाह उसके बाद से सुम तक सफ़ैद होगा। उसके दोनों कानों के दरमियान 40 मील का फ़ासला होगा। वह 21 मील ऊँचा और 90 मील लम्बा होगा। उसका हर क़दम एक मील का होगा। उसके दोनों कानों में ख़ल्के़ कसीर बैठी होगी। चलने में उसके बालों से हर क़िस्म के बाजों की आवाज़ आयेगी। वह उसी गधे पर सवार होगा। सवारी के बाद जब वह रवाना होगा तो उसके दाहिने तरफ़ एक पहाड़ होगा जो हमराह चलता रहेगा। उसमें नहरें , मेवा जात और हर क़िस्म की नेमते होंगी , और बाईं जानिब एक पहाड़ होगा जिसमें हर क़िस्म के सांप बिच्छू होंगे। वह लोगों को उन्हीं चीज़ों के ज़रिये से बहकायेगा और कहेगा कि मैं खु़दा हूँ। जो मेरा हुक्म मानेगा जन्नत में रखूगा जो न मानेगा उसे जहन्नुम में डाल दूंगा। इसी तरह चालीस दिन में सारी दुनियां का चक्कर लगा कर और सब को बहका कर इमाम मेहदी (अ.स.) की इस्कीम को नाकामयाब बनाने की सई कोशिश में ख़ानाए काबा को गिराना चाहेगा और एक अज़ीम लश्कर भेज कर काबे और मदीने को तबाह करने पर मामूर करेगा और खुद कूफ़े के लिये रवाना होगा। उसका मक़सद यह होगा कि कूफ़ा जो इमाम मेहदी (अ.स.) की आमाजगाह है उसे तबाह कर दे। ‘‘ चूँ आन लईन नज़दीक़ कूफ़ा बरसदे इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) बइसतेसाले ओ बरसद ’’ लेकिन ख़ुदा का करना देखिये कि जब वह कूफ़े के क़रीब पहुँचेगा जो हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) ख़ुद वहां पहुँच जायेंगे और उसे ब हुक्मे खुदा जड़ से उखाड़ देंगे। ग़रज़ कि घमासान की जंग होगी और शाम तक फैले हुए लश्कर पर इमाम मेहदी (अ.स.) ज़बरदस्त हम ले करेंगे बिल आखि़र वह मलऊन आपकी ज़रबों की ताब न ला कर शाम के मक़ामे ‘‘ उक़बाए रफ़ीक़ ’’ या बमक़ाम ‘‘ लुद ’’ जुमे के दिन तीन घड़ी दिन चढे़ मारा जायेगा। उसके मरने के बाद दस मील तक दज्जाल और उसके गधे और लश्कर का ख़ून ज़मीन पर जारी रहेगा। उलेमा का कहना है कि क़त्ले दज्जाल के बाद इमाम (अ.स.) उसके लशकरियों पर एक ज़बरदस्त हमला करेंगे और सब को क़त्ल कर डालेंगे। उसे जो काफ़िर ज़मीन के किसी हिस्से में छुपे गा , वह आवाज़ देगा कि फ़लां काफ़िर यहां छुपा हुआ है इमाम (अ.स.) उसे क़त्ल कर देंगे। आखि़र कार ज़मीन पर कोई दज्जाल का मानने वाला न रहेगा। (इरशाद अल तालेबीन पेज न. 397) ग़ायतल मक़सूद जिल्द 2 पेज न. 71 , ऐनुल हयात पेज न. 126 , किताब अल वसाएल पेज न. 181 , क़यामत नामा पेज न. 7 , माअरफ़ुल मिल्लता पेज न. 328 , सही मुस्लिम , लम्आते शरह मिशक़ात अब्दुल हक़ , मरक़ात , शरह मिशक़ात मजमउल बेहार)
बाज़ रवायात में है कि दज्जाल को हज़रते ईसा (अ.स.) बहुक्मे हज़रते इमाम मेहदी (अ.स.) क़त्ल करेंगे।
नुज़ूले हज़रते ईसा (अ.स.)
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) सुन्नत के का़यम करने और बिदअत के मिटाने नीज़ इनसेराम व इन्तेज़ामे आलम में मशग़ूल व मसरूफ़ होंगे कि एक दिन नमाज़े सुबह के वक़्त बरवायते नमाज़े अस्र के वक़्त हज़रते ईसा (अ.स.) दो फ़रिश्तों के कंधो पर हाथ रखे हुए दमिश्क़ की जामे मस्जिद के मिनारए शरक़ी पर नुज़ूल फ़रमायेगें। हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) उनका इस्तेक़बाल करेंगे और फ़रमायेंगे कि आप नमाज़ पढ़ाइये हज़रते ईसा कहेंगे कि यह नामुम्किन है नमाज़ आपको पढ़ानी होगी चुनान्चे हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) इमामत करेंगे और हज़रत ईसा (अ.स.) उनके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे और उनकी तसदीक़ करेंगे। (नूरूल अबसार पेज न. 154 ग़ायत अल मक़सूद पेज न. 104 से 154 , बहवालाए मुस्लिम व इब्ने माजा , मिशक़ात पेज न. 458) उस वक़्त हज़रते ईसा (अ.स.) की उम्र चालीस साला नौजवान जैसी होगी। वह इस दुनियां में शादी करेंगे और उनके दो लड़के पैदा होंगे एक नाम अहमद और दूसरे का नाम मूसा होगा। (असआफ़ुल राग़ीबैन , बर हाशिया नूरूल अबसार पेज न. 135 , क़यामत नामा , पेज न. 9 , बहवालाए किताबुल वफ़ा इब्ने जोज़ी व मिशक़ात पेज न. 465 व सिराजुल कु़लूब पेज न. 77)
इमाम मेहदी (अ.स.) और ईसा इब्ने मरियम का दौरा
इसके बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) और हज़रते ईसा (अ.स.) बलाद मुमालिक का दौरा करने और हालात का जायज़ा लेने के लिये बरामद होंगे और दज्जाल मलऊन के पहुँचाये हुये नुक़सानात और उसके पैदा किये हुये बदतरीन हालात को बेहतरीन सतह पर लायेंगे। हज़रते ईसा (अ.स.) ख़न्जीर के क़त्ल करने , सलीबों को तोड़ने और लोगों के इस्लाम क़ुबूल करने का इन्सेराम व बन्दोबस्त फ़रमायेंगे। अदले मेहदवी से बलादे आलम में इस्लाम का डंका बजेगा और ज़ुल्म व सित्म का तख़्ता तबाह हो जायेगा। (क़यामत नामा क़ुदवतुल मोहद्देसीन पेज न. 8 बहवाला सही मुस्लिम)
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का कुस्तुनतुनया को फ़तेह करना
रवायत में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) कुसतुनतुनया , चीन और जबले देलम को फ़तेह करेंगे। यह वही कु़सतुनतुनया है जिसे अस्तम्बोल कहते हैं और जिस पर उस ज़माने में नसारा का क़ब्ज़ा होगा और उनका क़ब्ज़ा भी मुसलमान बादशाह को क़त्ल करने के बाद होगा। चीन और जबले देलम पर भी नसारा का क़ब्ज़ा होगा और वह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से मुक़ाबले का पूरा इन्तेज़ामात करेंगे। ‘‘ चीन ’’ जिसको अरबी में ‘‘ सीन ’’ कहते हैं इसके बारे में रवायत के हवाले से अल्लामा तरही ने मजमउल बहरैन के पेज न. 615 में लिखा है कि सीन (1) एक पहाड़ी है। (2) मशरिक़ में एक ममलेकत है। (3) कूफ़े में एक मौजा है। पता यह चलता है कि सारी चीज़ें फ़तेह की जायेंगी। इनके अलावा सिन्ध और हिन्द के मकानात की तरफ़ भी इशारा है। बहर हाल इमाम मेहदी (अ.स.) शहरे कुस्तुनतुनया को फ़तह करने के लिये रवाना होंगे और उनके हमराह सत्तर हज़ार बनू इस्हाक़ के नौजवान होंगे उन्हें दरियाये रोम के किनारे शहर में जाकर उसे फ़तेह करने का हुक्म होगा। ज बवह वहां पहुँच कर फ़सील के किनारे नाराए तकबीर लगायेंगे तो खुद ब खुद रास्ता पैदा हो जायेगा और यह दाखि़ल हो कर उसे फ़तेह कर लेंगे। कुफ़्फ़ार क़त्ल होंगे और उस पर पूरा पूरा क़ब्ज़ा हो जायेगा। (नूरूल अबसार पेज न. 155 बहवालाए तबरानी , ग़ाएतल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 152 , बहवालाए अबू नईम , आलामुल वुरा , बहवालए इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) पेज न. 264 क़यामत नामा बहवालाए सही मुस्लिम)
याजूज माजूज और उनका ख़ुरूज
क़यामते सुग़रा यानी ज़हूरे आले मोहम्मद और क़यामते कुबरा के दरमियान दज्जाल के बाद याजूज और माजूज का ख़ुरूज होगा यह सद्दे सिकन्दरी से निकल कर सारे आलम में फ़ैल जायेंगे और दुनिया के अमनो अमान को तबाह व बरबाद कर देने में पूरी कोशिश करेंगे।
याजूज , माजूज हज़रते नूह (अ.स.) के बेटे याफ़िस की औलाद से हैं। यह दोनो चार सौ क़बीलों और उम्मतों के सरदार और सरबर आवुरदा हैं। उनकी कसरत का कोई अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता। मख़लूक़ात में मलाएका के बाद उन्हें कसरत दी गई है। इनमें कोई ऐसा नहीं जिसके एक एक हज़ार औलाद न हो। यानी यह उस वक़्त मरते ही नहीं जब तक एक हज़ार बहादुर पैदा न कर लें। यह तीन क़िस्म के लोग हैं , एक वह जो ताड़ से ज़्यादा लम्बे हैं , दूसरे वह जो लम्बे और चैड़े बराबर हैं जिनकी मिसाल बहुत बड़े हाथी से दी जाती है। तीसरे वह जो अपना एक कान बिछाते हैं और दूसरा ओढ़ते हैं। इनके सामने लोहा , पत्थर , पहाड़ तो कोई चीज़ नहीं है। यह हज़रते नूह (अ.स.) के ज़माने में दुनिया के आखि़र में उस जगह पैदा हुये हैं जहां से पहले पहल सूरज ने तुलउ किया था। ज़मानए फ़ितरत से पहले यह लोग अपनी जगह से निकल पड़ते थे और अपने क़रीब की सारी दुनियां को खा पी जाते थे यानी हाथी , घोड़ा , ऊँट इंसान , जानवर , खेती बाड़ी ग़रज़ कि जो कुछ सामने आता था सब को हज़म कर जाते थे। वहां के लोग उन से सख़्त तंग आ कर आजिज़ थे। यहां तक कि ज़मानए फ़ितरत में हज़रते ईसा (अ.स.) के बाद बरवायते जब ‘‘ ज़ुलक़रनैन ’’ उस मंज़िल तक पहुँचे तो उन्हें वहां का सारा वाक़िया मालूम हुआ और वहां की मख़्लूक़ ने उनसे दरख़्वास्त की कि हमे इस बलाए बे दरमा याजूज , माजूज से बचाइये चुनान्चे उन्होंने दो पहाड़ों के उस दरमियानी रास्ते को जिससे वह आया करते थे बहुक्मे ख़ुदा लौहे की दीवार से जो दौ सौ (200) गज़ ऊँची और पचास सा साठ (50 या 60) ग़ज़ चैड़ी थी बन्द कर दिया। इसी दीवार को ‘‘ सद्दे सिकन्दरी ’’ कहते हैं क्यांे कि ‘‘ जु़लक़रनैन ’’ का असल नाम सिकन्दरे आज़म था। सद्दे सिकन्दरी के लग जाने के बाद उनकी ख़ुराक सांप क़रार दी गई जो आसमान से बरसते हैं। यह ता बा ज़हूर इमाम मेहदी (अ.स.) इसी में महसूर रहेंगे। उनका उसूल और तरीक़ा यह है कि यह लोग अपनी ज़बान से सद्दे सिकन्दरी को सारी रात चाट कर काटते हैं जब सुबह होती है और धूप लगती है तो हट जाते हैं फिर दूसरी रात कटी हुई दीवार भी पुर हो जाती है और वह फिर उसे काटने में लग जाते हैं। बहुक्मे ख़ुदा यह लोग इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़माने में खु़रूज करेंगे दीवार कट जायेगी और यह निकल पड़ेंगे। उस वक़्त का आलम यह होगा कि यह लोग अपनी सारी तादाद समैत सारी दुनियां में फैल कर निज़ामे आलम को दरहम बरहम करना शुरू कर देंगे। लाखों जाने जा़या होंगी और दुनियां की कोई चीज़ ऐसी बाक़ी न रहेगी जो खाई और पी जा सके और यह उस पर तसर्रूफ़ न करें। यह बला के जंगजू लोग होंगे। दुनिया को मार कर खा जायेंगे और अपने तीर आसमान की तरफ़ फेंक कर आसमानी मख़लूक़ को मारने का हौसला करेंगे और जब उधर से बहुक्मे ख़ुदा तीर ख़ून आलूद आयेगा तो यह बहुत खुश होंगे और आपस में कहेंगे कि अब हमारा इक़तेदार ज़मीन से बुलन्द हो कर आसमान तक पहुँच गया है। इसी दौरान में हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की बरकत और हज़रते ईसा (अ.स.) की दुआ की वजह से ख़ुदा वन्दे आलम एक बीमारी भेज देगा जिसको अरबी में ‘‘ नग़फ़ ’’ कहते हैं। यह बीमारी नाक से शूरू हो कर ताऊन की तरह एक ही शब में उन सब का काम तमाम कर देगी। फिर उनके मुरदार को खाने के लिये ‘‘ उन्क़ा ’’ नामी परिन्दा पैदा होगा जो ज़मीन को उनकी गंदगी से साफ़ कर देगा और इंसान उनके तीरो कमान और जल सकने वाली चीज़ो और आलाते हर्ब (लड़ाई के असलहों) को सात साल तक जलायेंगे। (तफ़सीरे साफ़ी पेज न. 278 , मिशकात पेज न. 366 , सही मुस्लिम , तिरमिज़ी , इरशाद अल तालेबैन , पेज न. 398 , ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 2 पेज न. 76 , मजमुअल बहरैन पेज न. 466 , क़यामत नामा पेज न. 8)
इमाम मेहदी (अ.स.) की मुद्दते हुकूमत और ख़ातमाए दुनिया
हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का पाए तख़्त शहरे कूफ़ा होगा। मक्के में आपके नाएब का तक़र्रूर होगा। आपका दीवान ख़ाना और आपके इजराए हुक्म की जगह मस्जिदे कूफ़ा होगी। बैतुल माल मस्जिदे सहला क़रार दी जायेगी और खि़लवत कदा नजफ़े अशरफ़ होगा। (हक़्क़ुल यक़ीन पेज न. 145)
आपके अहदे हुकूमत में मुकम्मल अमनो सुकून होगा। बकरी और भेड़ , गाय और शेर , इंसान और सांप , ज़म्बील और चूहें सब एक दूसरे से बे खौ़फ़ होंगे। (दुर्रे मनशूर , सियोती जिल्द 3 पेज न. 23) गुनाह का इरतेक़ाब बिल्कुल बन्द होगा। तमाम लोग पाक बाज़ हो जायेंगे। जेहल , जबन , बुखल काफ़ुर हो जायेंगे। आजिजो , ज़ईफ़ों की दाद रसी होगी जु़ल्म दुनियां से मिट जायेगा। इस्लाम के का़लिब बे जान में रूहे ताज़ा पैदा हो जायेगी। दुनियां के तमाम मज़ाहिब ख़त्म हो जायेंगे , न ईसाई होंगे न यहूदी न और कोई मसलक होगा सिर्फ़ इस्लाम होगा और उसी का डंका बजता होगा। आप दावत बिल सैफ़ देंगे जो आपके खि़लाफ़ होगा क़त्ल कर दिया जायेगा। जज़िया मौक़ूफ़ होगा। ख़ुदा की जानिब से शहर अकाके हरे भरे मैदान में मेहमानी होगी। सारी कायनात मसर्रतों से ममलूह होगी। ग़रज़ कि अदलो इंसाफ़ से दुनिया भर जायेगी दुनियां के तमाम मज़लूम बुलाये जायेंगे और उन पर ज़ुल्म करने वाले हाज़िर किये जायेंगे। हत्ता की आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) तशरीफ़ लायेंगे और उन पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ने वाले बुलाये जायेंगे। हज़रत इमाम (अ.स.) मज़लूम की दाद रसी फ़रमायेंगे और ज़ालिम को कैफ़रो किरदार तक पहुँचायेंगे। हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) इन तमाम उमूर में निगरानी का फ़रीज़ा अदा फ़रमाने के लिये जलवा अफ़रोज़ होंगे। इसी दौरान में हज़रते ईसा (अ.स.) अपनी साबेक़ा अरज़ी 33 साला ज़िन्दगी में 7 साला मौजूदा अरज़ी ज़िन्दगी का इज़ाफ़ा कर के चालीस साल की उम्र में इन्तेक़ाल कर जायेंगे और आपको रौज़ाए हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) में दफ़्न कर दिया जायेगा। (हाशिए मिशक़ात , पेज न. 463 , सिराज अल क़ुलूब पेज न. 77 , अजाएबुल क़सस पेज न. 23)
इसके बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की हुकूमत का ख़ात्मा हो जायेगा और हज़रत अमीरूल मोमेनीन निज़ामे कायनात पर हुक्म रानी करेंगे जिसकी तरफ़ कु़रआने मजीद में ‘‘ दाबतुल अर्ज़ ’’ से इशारा किया गया है। अब रह गया यह कि हज़रत इमाम मेहदी ( अ.स. ) की मुद्दते हुकूमत क्या होगी ? इसके बारे मे सख़्त इख़्तेलाफ़ है। इरशाद मुफ़िद के पेज न. 533 में सात साल और पेज न. 537 में 19 साल और आलामुल वुरा के पेज न. 364 में 19 साल , मिशक़ात के पेज न. 462 में 7 , 8 , 9 साल , नूरूल अबसार के पेज न. 154 में 7 , 8 , 9 , 10 साल और नेयाबुल मोअद्दता शेख़ सुलेमान क़न्दूज़ी बलखी़ के पेज न. 433 में 20 साल मरक़ूम है। मैंने हालात हदीस , अक़वाले उलेमा से इस्तेम्बात कर के बीस साल को तरजीह दी है। हो सकता है कि एक साल दस साल के बराबर हों।
( इरशाद मुफ़िद पेज न. 533 , नूरूल अबसार पेज न. 155) ग़रज़ कि आपकी वफ़ात के बाद हज़रत इमाम हुसैन ( अ.स. ) आपको ग़ुस्लो कफ़न देंगे और नमाज़ पढ़ा कर दफ़्न फ़रमायेंगे। जैसा कि अल्लामा सैय्यद अली बिन अब्दुल हमीद ने किताब अनवारूल मज़ीया में तहरीर फ़रमाया है , हज़रत इमाम मेहदी ( अ.स. ) के अहदे ज़हूर में क़यामत से पहले ज़िन्दा होने को रजअत कहते हैं यह रजअत ज़रूरियाते मज़हबे इमामिया से है। ( मजमुल बहरैन पेज न. 422) इसका मतलब यह है कि ज़हूर के बाद बहुक्मे ख़ुदा शदीद तरीन काफ़िर और मुनाफ़िक़ और कामिल तरीन मोमेनीन हज़रत रसूले करीम (स.अ.व.व.) , आइम्मा ए ताहेरीन ( अ.स. ) , बाज़ अम्बियाए सलफ़ बराए इज़हार दौलते हक़के मोहम्मदे दुनिया में पलट कर आयेंगे। ( तकलीफ़ अल मुकल्लेफ़ीन फी उसूल अल दीन पेज न. 25)
इसमें ज़ालिमो को ज़ुल्म का बदला और मज़लूमों को इन्तेक़ाम का मौक़ा दिया जायेगा। इस्लाम को इतना फ़रोग़ दिया जायेगा कि ‘‘ लेज़हरा अल्ल दीने कुल्लह ’’ दुनियां में सिर्फ़ एक इस्लाम रह जायेगा। ( मआरिफ़ अल मिल्लता अल नाजिया वल नारिया पेज न. 380)
इमाम हुसैन ( अ.स. ) का मुकम्मल बदला लिया जायेगा। ( ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 186 बहवाला तफ़सीर अयाशी ) और दुशमनाने आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) को क़यामत में अज़ाबे अकबर से पलहे रतअत में अज़ाबे अदना का मज़ा चखाया जायेगा। ( हक़्क़ुल यकी़न पेज न. 147 , बहवाला क़ुरआने मजीद )
शैतान सरवरे कायनात (स.अ.व.व.) के हाथों से नहरे फ़रात पर एक अज़ीम जंग के बाद क़त्ल होगा। आइम्मा ए ताहेरीन ( अ.स. ) के हर अहदे हुकूमत में अच्छे बुरे ज़िन्दा किये जायेंगे और हज़रत इमाम मेहदी ( अ.स. ) के अहद में जो लोग ज़िन्दा होंगे उनकी तादाद चार हज़ार होगी ( ग़ाएतल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 178) शोहदा को भी रजअत में ज़ाहेरी ज़िन्दगी दी जायेगी ताकि उसके बाद जो मौत आये उससे आयत के हुक्म ‘‘کل نفس ذائقۃ الموت ’’ की तकमील हो सके और उन्हें मौत का मज़ा नसीब हो जाये। ( ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पेज न. 173)
इसी रजअत में वादाए क़ुरआनी के हिसाब से आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) को हुकूमते आइम्मा ए आलम दी जायेगी और ज़मीन का कोई गोशा न होगा जिस पर आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) की हुकूमत न हो। इसके मुताअल्लिक़ कुरआने मजीद में ‘‘ अन्ना अरज़ यरशहा अबादिल सालेहून ’’ व ‘‘و نرید أن نمن على الذین استضعفوا فى الأرض و نجعلهم أئمّة و نجعلهم الوارثین ’’ मौजूद है। ( हक़्कु़ल यक़ीन पेज न. 146)
अब रह गया यह कि कायनात की जा़हेरी हुकूमत व विरासते आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) के पास कब तक रहेगी उसके मुताअल्लिक़ एक रवायत 8000 ( आठ हज़ार ) साल का हवाला दे रही है और पता यह चलता है कि अमीरल मोमेनीन ( अ.स. ) हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) के ज़ेरे निगरानी हुकूमत करेंगे और दीगर आइम्मा ए ताहेरीन उनके वज़रा और सुफ़रा की हैसियत से मुमालिके आलम में इन्तेज़ाम व इन्सेराम फ़रमायेंगे। एक रवायत मे यह भी है कि हर इमाम तरतीब से हुकूमत करेंगे। ( हक़्क़ुल यक़ीन व ग़ायतुल मक़सूद )
हज़रत अली ( अ.स. ) के ज़हूर और निज़ामे आलम पर हुक्मरानी के मुताअल्लिक़ कु़रआने मजीद में ब सराहत मौजूद है। इरशाद होता है ‘‘اخرجنا لهم دابة من الارض ( पारा 20 रूकू 1)
उलमाए फ़रीक़ैन यानी शिया व सुन्नी का इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयत से मुराद हज़रत अली ( अ.स. ) हैं। मुलाहेज़ा हो ! मीज़ान अल एतेदाल , अल्लामा ज़ेहबी व मोआलिम अल तनज़ील , अल्लामा बग़वी व हक़्क़ुल यक़ीन अल्लामा मजलिसी व तफ़सीर साफ़ी अल्लामा मोहसिन फ़ैज़ उसकी तरफ़ तौरेत में भी इशारा मौजूद है। ( तज़किरतुल मासूमीन पेज न. 246) आपका काम यह होगा कि आप ऐसे लोंगे की तसदीक़ न करेंगे जो ख़ुदा के मुख़ालिफ़ और उसकी आयतों पर यकी़न न रखने वाले होंगे। वह पेज न. व मरवा के दरमियान से बरामद होंगे। उनके हाथ में हज़रत सुलैमान ( अ.स. ) की अंगूठी और हज़रते मूसा ( अ.स. ) का असा होगा। जब क़यामत क़रीब होगी तो आप असा व अंगूशतरी से हर मोमिन व काफ़िर की पेशानी पर निशान लगायेंगे। मोमिन की पेशानी पर ‘‘ हाज़ा मोमिन हक़ा ’’ और काफ़िर की पेशानी पर ‘‘ हाज़ा काफ़िर हक़ा ’’ तहरीर हो जायेगा। मुलाहेजा़ हो ( किताब इरशाद अल तालीबैन अख़वन्द दरवेज़ा पेज न. 400 व क़यामत नामा , कु़दवतुल मोहद्देसीन , अल्लामा रफ़ीउद्दीन पेज न. 10 , अल्लामा बग़वी किताब मिशक़ात अल मसाबीह के पेज न. 464 में तहरीर फ़रमाते हैं कि व अबतल अज्ऱ दोपहर के वक़्त निकलेगा और जब इस दाबतुल अर्ज़ का अमल दरामद शुरू हो जायेगा तो बाबे तौबा बन्द हो जायेगा और उस वक़्त किसी का ईमान लाना कारगर न होगा।
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ ( अ.स. ) फ़रमाते हैं कि एक मरतबा हज़रत अली ( अ.स. ) मस्जिद में सो रहे थे इतने में हज़रत रसूले करीम ( स.अ. ) तशरीफ़ लाये और आपने फ़रमाया ‘‘ क़ुम या दाबतुल्लाह ’’ इसके बाद एक दिन फ़रमाया ! ‘‘ या अली अज़ाकान अख़रज कुल्लाहा ’’ ऐ अली ( अ.स. ) जब दुनियां का आखि़री ज़माना आयेगा तो ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हें बरामत करेगा उस वक़्त तुम अपने दुशमनों की पेशानियों पर निशान लगाओ गे। ( मजमउल बहरैन पेज न. 127)
आपने यह भी फ़रमाया कि अली ‘‘ व अबता अल जन्नता ’’ हैं लुग़त में है कि दाबा के मानी पैरों से चलने वाले के हैं। ( मजमउल बहरैन पेज न. 127)
कसीर रवायत से मालूम होता है कि आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) की हुक्मरानी जिसे साहेबे अर हज्जुल मतालिब ने बादशाही लिखा है। उस वक़्त तक क़ाएम रहेगी जब तक दुनिया के ख़त्म होने में चालीस दिन बाक़ी रहेंगे। ( इरशाद मुफ़ीद पेज न. 137 व आलामुल वुरा पेज न. 264) इसका मतलब यह है कि चालीस दिन की मुद्दत क़ब्रों से मुर्दो को निकालने और क़यामते कुबरा के लिये होगी। हश्रो नश्र , हिसाबो किताब , सूर फूंकना और दीगर तवाज़िमे क़यामते कुबरा इसी में अदा होगे। ( आलामुल वुरा पेज न. 264)
इसके बाद हज़रत अली ( अ.स. ) लोगों को जन्नत का परवाना देंगे। लोग उसे ले कर पुले सिरात पर से गुज़रेंगे। ( सवाएक़े मोहर्रेक़ा इब्ने हजर मक्की पेज न. 74 व इस्आफुल राग़ेबीन पेज न. 75 , बर हाशिया नूरूल अबसार )
फिर आप हौज़े कौसर की निगरानी करेंगे जो दुशमनाने आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) हौज़े कौसर पर होगा उसे आप उठा देंगे। ( अर हज्जुल मतालिब पेज न. 767)
फिर आप ‘‘ लवा अल हम्द ’’ यानी मोहम्मदी झन्डा ले कर जन्नत की तरफ़ चलेंगे और पैग़म्बरे इस्लाम ( अ.स. ) आगे आगे होंगे। अम्बिया व शोहदा व सालेहीन और दीगर आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) के मानने वाले पीछे होंगे। ( मनाक़िब अख़तब ख़वारज़मी , कल्मी व अर हज्जुल मतालिब पेज न. 774) फिर आप जन्नत के दरवाज़े पर जायेंगे और अपने दोस्तों को बग़ैर हिसाब दाखि़ले जन्नत करेंगे और दुशमनों के जहन्नम में झोंक देंगे। ( किताब शिफ़ा क़ाज़ी अयाज़ व सवाएके़ मोहर्रेक़ा )
इसी लिये हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा ( स.अ. ) ने हज़रत अबू बक्र , हज़रत उमर , हज़रत उस्मान और बहुत से असहाब को जमा कर के फ़रमा दिया था कि अली ( अ.स. ) ज़मीन और आसमान दोनों में मेरे वज़ीर हैं अगर तुम लोग खुदा को राज़ी करना चाहते हो तो अली ( अ.स. ) को राज़ी करो इस लिये की अली ( अ.स. ) की रज़ा खुदा की रज़ा और अली ( अ.स. ) का ग़ज़ब ख़ुदा का ग़ज़ब है। ( मोवद्दतुल क़ुरबा पेज न. 55 से 62)
अली (अ.स.) की मोहब्बत के बारे में तुम सब को ख़ुदा के सामने जवाब देना पड़ेगा और तुम अली (अ.स.) की मरज़ी के बग़ैर जन्नत में न जा सकोगे और अली (अ.स.) से कह दिया कि तुम और तुम्हारे शिया ‘‘ ख़ैरूल बर्रिया ’’ यानी ख़ुदा की नज़र में अच्छे लोग हैं यह क़यामत में ख़ुश होंगे और तुम्हारे दुशमन नाशादो नामुराद रहेंगे।
मुलाहेजा़ हो ! (कंज़ुल आमाल जिल्द 6 पेज न. 218 व तोफ़ए अशना अशरया पेज न. 604 , तफ़सीर फ़तहुल बयान जिल्द 1 पेज न. 323) वस्सलाम
बारहवे इमाम हज़रत मेहदी (अ स.)
Typography
- Smaller Small Medium Big Bigger
- Default Helvetica Segoe Georgia Times
- Reading Mode
Comments powered by CComment