विलादते इमाम (अ.स)
हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स) कि उमरे मुबारक के चालीस साल गुज़र चुके थे लेकिन आपके कोई औलाद ना थी और ये बात शियों के लिये काफी परेशान कुन थी क्योकि हज़रत रसूले खुदा (स.अ.व.व) और आइम्मा अलैहिमुस्सलाम से जो रवायात नकल हुई थीं। उसकी रौशनी में नवें इमाम अलैहिस्सलाम आठवें इमाम के फरजंद होंगे लेहाज़ा उन्हें इस बात का सख्त इंतेज़ार था कि खुदा वंदे आलम इमाम रज़ा (अ.स) को जल्द एक फरज़ंद से नवाज़े। इसलिऐ कभी इमामे रज़ा (अ.स) की खिदमते अकदस में शरफयाब हो कर इस बात की दरखास्त करते थे कि वो खुदा से दुआ मांगें कि खुदा वंदे आलम उन्हें एक फरज़न्द इनायत फरमाऐ लेकिन इमाम उन को तसल्ली देते थे कि खुदा वंदे आलम मुझे एक फरज़ंद अता करेगा जो मेरा वारिस होगा और मेरे बाद इमाम होगा।
(बिहारूल अनवार, जिल्द न. 5, पेज न. 15)
(ऐवानुल मौजेज़ात पेज न. 107)
10 रजब 195 को इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) कि विलादत हुई।
आपका इस्मे मुबारक मौहम्मद, कुन्नियत अबु जाफर और आपके मशहूर अलकाब तकी और मौहम्मद तक़ी हैं। आपकी विलादत शियों के लिये खुशियो मसर्रत और ईमानो ऐतकाद में इस्तेहकाम का सबब करार पाई क्योकि विलादत में ताखीर की वजह से बाज़ शियों में जो शक पैदा हो रहा था वो खत्म हो गया।
इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) की वालिदा का इस्मे गिरामी सबीका था लेकिन इमामे रज़ा (अ.स) ने आपका नाम खैज़रान रखा। आप रसूले खुदा कि ज़ौजा मोहतरमा जनाब मारिया कबतिया के खानदान से ताल्लुक रखती हैं।
अखलाको किरदार में अपने ज़माने कि तमाम औरतों से अफज़ल थीं। पैगम्बरे इस्लाम नें एक रिवायत में आपको खैरुल ईमां यानी बेहतरीन कनीज़े खुदा के उनवान से याद फरमाया है।
(काफी जिल्द 1 पेज न. 323)
इमामे रज़ा (अ.स) के घर में आनें से काफी पहले इमाम मूसा काज़िम (अ.स) नें आप की खुसूसियात बयान फरमाई थीं और अपने एक सहाबी जनाब यज़ीद बिन सलीत के ज़रिये सलाम कहलवाया था।
(काफी जिल्द 1 पेज न. 315)
इमाम रज़ा (अ.स) की हमशीरा जनाबे हकीमा का बयान है कि इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) की विलादत के मौके पर मेरे भाई ने मुझसे कहा कि मैं खैज़रान के पास रहुं विलादत के तीसरे दिन नौ मौलूद नें आँखें खोलीं। आसमान की तरफ देखा और दाहिनें बायें नज़र की और खुदा की तौहीद और नबी की नबूवत की गवाही दी।
ये देख कर मैं सख्त हैरान हुई और अपनें भाई की खिदमत में हाज़िर हुई जो कुछ देखा था उसे बयान किया – इमाम नें फरमाया , जो चीज़ें इसके बाद देखोगी वो इससे कहीं ज़्यादा अजीब होंगी।
(मनाकिब जिल्द 4 पेज न. 394)
अबु यहिया सोनआनी का बयान है कि मैं इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमते अकदस में था इतने में इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) जो इस वकत कमसिन थे, इमाम (अ.स) की खिदमत में लाऐ गऐ। इमाम नें फरमायाः ये वो मौलूद है जिससे ज़्यादा मुबारक कोई मौलूद शियों के लिये दुनिया में नहीं आया है।
इमाम का ये इरशाद शायद इस बिना पर हो जिसकी तरफ हम इबतेदा में इरशाद कर चुके हैं इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) कि विलादत से शियों का ये तो हम बिलकुल खत्म हो गया कि इमामे रज़ा का कोई जानशीन नहीं है। आप की विलादत ने शियों को शको तरदीद में मुबतेला होने से बचा लिया। नौफली का बयान है कि जिस वक्त इमाम रज़ा (अ.स) खुरासान तशरीफ ले जा रहे थे उस वक्त मैने इमाम की खिदमत में अर्ज़ किया कि मेरे लायक कोई खिदमत या कोई पैगाम तो नहीं है फरमाया तुम पर वाजिब है कि मेरे बाद मेरे फरज़ंद मौहम्मद की पैरवी करो और मैं एक ऐसे सफर पर जा रहा हूं जहा से वापसी नहीं होगी।
(उयूने अखबारे रज़ा जिल्द न. 2 पेज न. 321)
इमाम अली रज़ा (अ.स) के कातिब मौहम्मद बिन ऐबाद का बयान है कि हज़रत हमेंशा अपने फरज़ंद मौहम्मद को कुननियत से याद फरमाते थे।
जिस वक्त इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) का खत आता था आप फरमाते थे कि अबु जाफर ने मुझे ये लिखा है और जिस वक्त मैं (इमाम के हुक्म से ) अबु जाफर को खत लिखता था। इमाम बहुत ही बुज़ुर्गी और ऐहतराम के साथ उन को मुखातिब फरमाते थे। इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के जो खुतूत आते थे वो फसाहतो बलाग़त और अदब की खूबसूरती से भरपूर होते थे। मौहम्मद बिन ऐबाद से रिवायत है कि मैने हज़रत इमाम रज़ा (अ.स) को फरमाते हुए सुना कि मेरे बाद मेरे खानदान में अबु जाफर मेरे वसी और जानशीन होंगे।
माअमर बिन खलाद की रिवायत है कि इमाम रज़ा (अ.स) ने किसी चीज़ का तज़केरा करते हुऐ इरशाद फरमाया कि तुम्हें किस चीज़ की ज़रूरत है ये बात मुझसे सुनो। ये अबु जाफर हैं ये मेरे जानशीन हैं। इन को मैने अपनी जगह करार दिया है। (ये तुम्हारे तमाम सवालात और मसाऐल का जवाब देंगे) हम उस खानदान से हैं जहा बेटा बाप से (हकाएको मआरिफ की) भरपूर मीरास हासिल करता है। (मतलब ये है कि इसरार वा रमूज़े इमामत एक इमाम दूसरे इमाम से हासिल करता है और ये खुसूसियत सिर्फ इमामों से मखसूस है। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम के दूसरे फरज़ंद से नहीं।)
खैरानी ने अपने वालिद से रिवायत की है कि मैं खुरासान में हज़रत इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमते अकदस में था। एक शख्स ने हज़रत से दरयाफ्त किया कि अगर आपको कोई हादसा पेश आजाऐ तो उस वक्त हम किस की तरफ रूजु करें। फरमाया मेरे फरज़ंद अबुजाफर की तरफ। सवाली इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) की उम्र को काफी नहीं समझ रहा था, (और ये सोच रहा था कि बचपन इमामत कि ज़िम्मेदारियों को नहीं निभा सकता) उस वक्त इमाम रज़ा (अ.स) ने इरशाद फरमाया कि खुदा वन्दे आलम ने जनाबे ईसा (अ.स) को रिसालतो नबूवत के लिये मुनतखिब फरमाया जबकि उनकी उम्र अबु जाफर के उम्र से कम थी।
अब्दुल्लाह बिन जाफर का बयान है कि मैं सफवान बिन यहिया के हमराह इमाम रज़ा (अ.स) कि खिदमत में शरफयाब हुआ और मौहम्मद तकी (अ.स) भी वहा तशरीफ फरमा थे उस वक्त आप तीन साल के थे। हमनें इमाम रज़ा (अ.स) से पूछा कि अगर आपको कोई हादसा पेश आ जाऐ तो उस सूरत में आपका जानशीन कौन होगा। इमाम ने अबु जाफर की तरफ इशारा करते हुऐ फरमाया। मेरा ये फरज़ंद, अर्ज़ किया, इसी सिनो साल में। फरमाया हाँ, इसी उम्र में, खुदा वन्दे आलम नें जनाब ईसा को अपनीं हुज्जत करार दिया जबकि वो तीन साल के भी नहीं थे।
इमामते इमाम तक़ी (अ.स)
इमामत भी नबुवत कि तरह एक ईलाही तोहफा है जिसे खुदा अपने मुनतखिब वा बरगुज़ीदा और शाईस्ता बन्दों को अता फरमाता है और उस अता में सिनो साल कि कोई क़ैदो शर्त नहीं है। वो लोग जो नबुवतो इमामत को बचपन के साथ नामुम्किन ख्याल करते हैं वो इन ईलाही वा आसमानी मसाऐल को मामूली और आम बातों पर क़यास करते हैं जबकि नबुवत और इमामत का ताल्लुक खुदा वन्दे आलम के इरादे व मशीयत से है। खुदा वन्दे आलम अपने बन्दों में से जिसको शाईस्ता समझता है उसे लामहदूद इल्म अता कर देता है। लेहाज़ा मुमकिन है कि खुदा वन्दे आलम बाज़ मसालेह की बिना पर तमाम उलूम एक बच्चे को अता कर दे और उसे बचपने ही में नबुवत या इमामत के ओहदे पर फाऐज़ करदे। हमारे नवें इमाम हज़रत इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) आठ या नौं साल कि उम्र में इमामत के अज़ीम मनसब पर फाऐज़ हुऐ। मोअल्ला बिन अहमद की रिवायत है कि इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत के बाद मैंने इमाम तकी (अ.स) की ज़ियारत की और आप के खदुखाल कदो अन्दाम पर ग़ौर किया ताकि लोगों के लिये बयान कर सकुं इतने में इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) ने इरशाद फरमायाः ऐ मोअल्ला खुदा वन्दे आलम ने नबुवत की तरह इमामत के लिये भी दलील पेश की है हमने बचपने ही में यहिया को नबुवत अता कर दी।
मौहम्मद बिन हसन बिन अम्मार की रिवायत है कि मैं दो साल से मदीने में अली बिन जाफर की खिदमत में हाज़िर होता और वो रिवायते लिखता था जिसे वो अपने भाई इमाम मूसा बिन जाफर (अ.स) से हमारे लिये बयान करते थे एक दिन हम लोग मसजिदे नबवी में बैठे हुऐ थे इतने में इमाम तकी (अ.स) तशरीफ लाऐ। उन को देखते ही अली बिन जाफर नंगे पैर और बग़ैर अबा के ऐहतराम के लिये उठ खडे हुऐ और उन के हाथों का बोसा लिया। इमाम ने फरमायाः चचाजान आप तशरीफ रखें खुदा आप रहमतें नाज़िल फरमाऐ। अर्ज़ किया। आक़ा मैं कैसे बैठ सकता हुं जबकि आप खड़े हुऐ हैं। जब अली बिन जाफर वापस आऐ तो उन के दोस्तों और साथियों ने उन की मलामत की कि आप उनके वालिद के चचा हैं और इस तरह उनका एहतराम करते हैं। अली बिन जाफर ने कहाः खामोश रहो (अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुऐ फरमाया) जब खुदा वन्दे आलम ने इस सफेद दाढ़ी को इमामत के लायक नहीं समझा और उस जवान को उसके लिये सज़ावार करार दिया। तुम ये चाहते हो मैं उनकी फज़ीलत का इन्कार करूं। मैं तुम्हारी बातों के बारे में खुदा से पनाह मांगता हुं। मैं तो उसका एक बन्दा हुं।
उम्र बिन फरज का बयान है कि मैं इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के साथ दरयाऐ दजला के किनारे खड़ा हुआ था। मैंने हज़रत की खिदमत में अर्ज़ किया कि आपके शिया कहते हैं कि आप दजला के पानीं का वज़न जानते हैं तो इमाम ने फरमायाः क्या खुदा इस बात पर कादिर है कि एक मच्छर को दजला के पानीं के वज़न का इल्म अता करदे। अर्ज़ किया हाँ खुदा क़ादिर है। फरमायाः मैं खुदा के नज़दीक मच्छर और उसकी अकसर मखलूकात से कहीं ज़्यादा अज़ीज़ हुं।
अली बिन हेसान वासती का बयान है कि मैं (इमाम की कमसिनी का खयाल करते हुऐ) कुछ खेल कूद का सामान लेकर बतौरे तोहफा इमाम की खिदमत में पेश करने के लिये हाज़िरे खिदमत हुआ। मैने सलाम किया। इमाम ने सलाम का जवाब दिया। इमाम कुछ नाराज़ मालूम हो रहे थे। मुझे बैठने की इजाज़त नहीं दी। आगे बढ़ कर मैनें खेल कूद का सामान उन के सामने रख दिया। इमाम ने मुझ पर एक नज़र की और सारा सामान इधर उधर फेंक दिया और फरमायाः खुदा ने मुझे खेल कूद के लिये पैदा नहीं किया है। मुझे इन तसे क्या चीज़ो से क्या काम। मैनें तमाम चीज़ें समेट लीं और हज़रत से माफी तलब की और हज़रत ने माफ कर दिया। फिर मैं वापस आ गया।
अंबिया और आईम्मा अलैहेमुस्सलाम की ये खुसूसियत है कि उन्होंने दुनिया नें किसी से तालीम हासिल नहीं की। उनके इल्म का सरचश्मा खुदा वन्दे आलम की ज़ाते अक़दस है इस बिना पर उनकी उम्रे रिसालत व इमामत की ज़िम्मेदारिया संभालने की राह में हाऐल नहीं रही। खुदावन्दे आलम की इनायतों से वो किसी भी उम्र में लोगों की हिदायत रहनुमाई के लिये मोअय्यन किये जा सकते हैं। इस बिना पर कुछ हज़रात दरमियाने उम्र में कुछ ज़्यादा उम्र में। कुछ जवानी में और कुछ बिल्कुल बचपनें में, इस अज़ीम मनसब पर फाऐज़ हुऐ और ये सब खुदा वन्दे आलम की खास इनायतों के बगैंर नामुम्किन है। क़ुरआने करीम ने वज़ाहत की है कि जनाबे याहिया बचपन में नबी हुऐ।
ऐ याहिया इस किताब को मज़बूती से पकड़ लो और हमनें उनको उस वक्त नबी बनाया जब वो बच्चे थे और जनाबे ईसा तो बिल्कुल झूले में नबी मोअय्यन किये गऐ और यहूदी कहने लगे हम इस बच्चे से कैसे गुफ्तगू करें। ये अभी झूले में है। जनाबे ईसा ने फरमायाः मैं खुदा का बन्दा हुं मुझे किताब दी गई है और मुझे नबी बनाया गया है।
(सूरऐ मरयम आयत न. 28, 29)
ये उन लोगों की कजफिकरी और अक्ल से इन्हेराफ है। जो हमारे बाज़ आईम्मा की इमामत पर सिर्फ इस लिये ऐतराज़ करते हैं कि इन्हें कमसिनी में इमामत का मनसब मिल गया। कुरआन की ये आयतें इस तरह के तमाम ऐतराज़ात का जवाब दें। हज़रत इमाम मौहम्मद तकी (अ.स) अपने वालिद हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स) की बशारत के बाद इमामत के ओहदे पर फाऐज़ हुऐ गुज़िशता इमामों नें बाक़ायदा आपकी इमामत का ज़िक्र किया था अक्सर ऐसा हुआ कि नादान दुशमनों नें आपको आज़माने की कोशिश की लेकिन आपके जवाबात में इल्में खुदा की तजल्ली इस कदर ज़्यादा थी कि आपकी इमामत को जनाबे याहिया और जनाबे ईसा की नबुवत की दलील करार दिया जा सकता है इनकी नबुवत को आपकी इमामत की दलील करार नहीं दिया जा सकता इस लिये कि इमामत का मनसब नबुवत से बुलन्द है।
ग़ैब की खबरें और मोजिज़ात
(1) इमाम अली रज़ा (अ.स) की शहादत के बाद मुखतलिफ शहरो से 80 ओलामा और दानिशमंद हज करने के लिये मक्का रवाना हुए। वो सफर के दौरान मदीना भी गए, ताकि इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की ज़ियारत भी करलें। उन लोगो ने इमाम सादिक़ (अ.स) के एक खाली घर में क़याम किया।
इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) जो उस वक्त कमसिन थे। उन की बज़्म में तशरीफ लाए,मौफिक़,नामी शख्स नें लोगों से आप का तारुफ कराया। सब ही ऐहतेराम में खड़े हो गए,और सब ने आपको सलाम किया। उसके बाद उन लोगोनें सवालात करना शुरु किये। हज़रत ने हर एक का जवाब दिया (उस वाक़ए से हर एक को आपकी इमामत का मज़ीद यक़ीन हो गया) हर एक खुशहाल था। सब ने आपकी ताज़ीम की और आपके लिये दुआऐं कीं।
उनमें से एक शख्स इस्हाक़ भी थे जिस का बयान है कि मैंने एक ख़त में दस सवाल लिख लिये थे कि मौक़ा मिलने पर हज़रत से इस का जवाब चाहुंगा। अगर उन्होंने तमाम सवालों का जवाब दे दिया तो उस वक्त हज़रत से उस बात का तक़ाज़ा करुंगा कि वो मेरे हक़ में ये दुआ फरमाऐं कि मेरी ज़ौजा के हमल को खुदा फरज़ंद करार दे। नशिस्त काफी तूलानी हो गयी। लोग मुसलसल आपसे सवाल कर रहे थे और आप हर एक का जवाब दे रहे थे। ये सोच कर मैं उठा कि खत कल हज़रत की खिदमत में पेश करुंगा। इमाम की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी इरशाद फरमायाः
इस्हाक़। खुदा ने मेरी दुआ क़ुबूल कर ली है। अपने फरज़ंद का नाम अहमद रखना।
मैंने कहाः खुदाया तेरा शुक्र, यक़ीनन यही हुज्जते खुदा हैं।
जब इस्हाक़ वतन वापस आया खुदा ने उसे एक फरज़ंद अता किया जिसका नाम उसने ,अहमद,रखा।
(ऐवानुल मौजेज़ात, पेज न.109)
शियो के हालात का इल्म
(2) इमरान बिन मौहम्मद अशअरी का बयान है कि मैं हज़रत इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की खिदमत में शरफयाब हुआ तमाम बातों के बाद इमाम से अर्ज़ किया कि।
उम्मुलहसन ने आपकी खिदमत में सलाम अर्ज़ किया है और ये दरख्वास्त की है कि आप अपना एक लिबास इनायत फरमाऐं जिसे वो अपना कफन बना सके।
इमाम ने फरमायाः वो इन चीज़ों से बेनियाज़ हो चुकी है।
मैं इमाम के इस जुम्ले का मतलब नहीं समझ सका। यहा तक की मुझ तक ये खबर पहुची कि जिस वक्त मैं इमाम की खिदमत में हाज़िर था उस से 13,14 रोज़ पहले ही उम्मुल हसन का इन्तेक़ाल हो चुका था।
(बिहारुल अनवार, जिल्द 50, पेज न. 43, खराइज रावंदी पेज न. 237)
लूट के माल की खबर होना
(3) अहमद बिन हदीद का बयान है कि एक काफिला के हमराह जा रहा था रास्ते में डाकूओं नें हमें घेर लिया (और हमारा सारा माल लूट लिया) जब हम लोग मदीना पहुचे एक गली में इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से मुलाक़ात हुई। हम लोग उनके घर पहुचे और सारा वाक़ेआ बयान किया। इमाम (अ.स) ने हुक्म दिया और कपड़ा, पैसा हम को लाकर दिया गया। इमाम ने फरमायाः जितने पैसे ड़ाकू ले गए हैं उसी हिसाब से आपस में तक़सीम कर लो। हमने पैसा आपस में तक़सीम किया। मालूम ये हुआ कि जितना ड़ाकू ले गए थे उसी कद्र इमाम (अ.स) ने हमें दिया है। उस मिक़्दार से न कम था न ज़्यादा।
(बिहारुल अनवार, जिल्द 50, पेज न. 44, मुताबिक रिवायत खराइज रावंदी।)
इमाम का लिबास
(4) मौहम्मद बिन सहल क़ुम्मी का बयान है कि मै मक्के में मुजाविर हो गया था। वहा से मदीना गया और इमाम का मेहमान हुआ। मैं इमाम से उनका एक लिबास चाहता था मगर आखिर वक्त तक अपना मतलब बयान ना कर सका। मैंने अपने आप से कहाः अपनी इस ख्वाहिश को एक खत के ज़रिये इमाम की खिदमत में पेश करुं और मैने यही किया। उसके बाद मैं मस्जिदे नबवी चला गया और वहा ये तय किया की दो रकत नमाज़ बजा लाऊं और खुदा वंदे आलम से 100 मर्तबा तलब खैर करुं। उस वक्त अगर दिल ने गवाही दी तो खत इमाम की खिदमत में पेश करुंगा। वरना इस को फाड़ कर फेंक दूंगा।।।मेरे दिल ने गवाही नहीं दी,मैंने खत फाड़ कर फेंक दिया और मक्का की तरफ रवाना हो गया।।।।रास्ते मे मैंने एक शख्स को देखा जिसके हाथ मे रुमाल है जिस्में एक लिबास है और वो शख्स काफिला में मुझे तलाश कर रहा है।जब वो मुझ तक पौंहचा तो कहने लगाः तुम्हारे मौला ने ये लिबास तुम्हारे लिये भेजा है।
(खराइज रावंदी, पेज न. 237, बिहारुल अनवार जिल्द 50, पेज न. 44।)
(5) दरख्त पर फलो का आ जाना
मामून ने इमाम (अ.स) को बग़दाद बुलाया और अपनी बेटी से आपकी शादी की। लेकिन आप बग़दाद में ठहरे नहीं और अपनी बीवी के साथ मदीना वापस आ गये।
जिस वक्त इमाम मदीना वापस हो रहे थे। उस वक्त काफी लोग आप को विदा करने के लिये शहर के दरवाज़े तक आपके साथ आए और खुदा हाफिज़ कहा।
मग़रिब के वक्त आप ऐसी जगह पहुचे जहा एक पुरानी मस्जिद थी। नमाज़े मग़रिब के लिये इमाम (अ.स) उस मस्जिद में तशरीफ ले गए। मस्जिद के सहन में एक बेर का दरख्त था जिस पर आज तक फल नहीं आए थे। इमाम (अ.स) ने पानी तलब किया और उस दरख्त के नीचे वुज़ु फरमाया और जमाअत के साथ मगरिब की नमाज़ अदा फरमाई। उसके बाद आपने चार रकत नमाज़े नाफेला पढ़ी। उसके बाद आप सज्दए शुक्र बजा लाए और आपने तमाम लोगों को रुख्सत कर दिया।
दूसरे ही दिन उस दरख्त में फल आ गए और बेहतरीन फल ये देख कर लोगों को बहुत तआज्जुब हुआ।
(नूरुल अबसार शबलनजी, पेज न. 179, ऐहक़ाक़ुल हक, जिल्द 12 पेज न. 424, काफी, जिल्द न. 1, पेज न. 497, इर्शाद मुफीद, पेज न. 304,मुनाक़िब,जिल्द न. 4, पेज न. 390)
जनाब शैख मुफीद अलैहिर्रहमा का बयान है कि इस वाकए के बरसों बाद मैनें खुद उस दरख्त को देखा और उस का फल खाया।
(6) इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत का ऐलान
उमय्या बिन अली का बयान है कि जिस वक्त इमाम रज़ा (अ.स) खुरासान में तशरीफ फरमा थे उस वक्त मैं मदीने में ज़िन्दगी बसर कर रहा था और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के घर मेरा आना जाना था। इमाम के रिशतेदार आम-तौर से सलाम करने इमाम (अ.स) की खिदमत में हाज़िर होते थे। एक दिन इमाम (अ.स) ने कनीज़ से कहाः उन (औरतों) से कह दो अज़ादारी के लिये तैय्यार हो जाऐ। इमाम (अ.स) ने एक बार फिर इस बात की ताकीद फरमाई कि वो लोग अज़ादारी के लिये आमादा हो जाऐं।
लोगों ने दरयाफ्त कियाः किस की अज़ादारी के लिये।
फरमायाः रुए ज़मीन के सबसे बेहतरीन इन्सान के लिये।
कुछ अर्से के बाद इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत की खबर मदीना आई। मालूम हुआ कि उसी दिन इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत वाके हुई है जिस दिन इमाम (अ.स) ने फरमाया था कि अज़ादारी के लिये तैय्यार हो जाओ।
(आलामुलवरा, पेज न. 334)
(7) ऐतराफे क़ाज़ी
क़ज़ी याहिया बिन अक्सम, जो खान्दाने रिसालत व इमामत के सख्त दुशमनों में था। उस ने खुद इस बात का ऐतराफ किया है कि एक दिन रसूले खुदा (स.अ.वा.व) की क़ब्रे मुताहर के नज़दीक इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) को देखा उनसे कहा खुदा की क़सम। मैं कुछ बातें आप से दरयाफ्त करना चाहता हुं लेकिन मुझे शर्म महसूस हो रही है।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः सवाल के बगैंर तुम्हारी बातों के जवाब दे दूंगा। तुम ये दरयाफ्त करना चाहते हो कि इमाम कौन है।
मैने कहाः खुदा की क़सम यही दरयाफ्त करना चाहता था।
फरमायाः मैं इमाम हुं,
मैने कहाः इस बात पर कोई दलील है।
उस वक्त वो असा जो इमाम के हाथों मे था। वो गोया हुआ और उसने कहाः ये मेरे मौला हैं इस ज़माने के इमाम हैं और खुदा की हुज्जत है।
(क़ाफी, जिल्द 1, पेज न. 353, बिहारुल अनवार, जिल्द 50, पेज न. 68)
(8) पड़ौसी की नजात
अली बिन जरीर का बयान है कि मैं इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की खिदमते अक़दस में हाज़िर था। इमाम के घर की एक बकरी ग़ायब हो गई थी। एक पडौसी को चोरी के इल्ज़ाम में खेंचते हुऐ इमाम (अ.स) की खिदमत में लाए।
इमाम ने फरमायाः
अफसोस हो तुम पर इसको आज़ाद करो इसने बकरी नहीं चुराई है। बकरी इस वक्त फलॉ घर में है जाओ वहा से ले आओ।
इमाम (अ.स) ने जहा बताया था वहा गए और बकरी को ले आए और घर वाले को चोरी के इल्ज़ाम मे गिरफ्तार किया। उस की पिटाई की उसका लिबास फाड़ ङाला और वो क़सम खा रहा था कि उसने बकरी नहीं चुराई है। उस शख्स को इमाम की खिदमत मे लाए।
इमाम ने फरमायाः वाए हो तुम पर। तुम ने इस शख्स पर ज़ुल्म किया। बकरी खुद इसके घर मे चली गयी थी। उसको खबर भी न थी।
उस वक्त इमाम ने उसकी दिलजोई के लिये और उसके नुक़सान को पूरा करने के लिये एक रक़म उसको अता फरमाई
(बिहारुल अनवार, जिल्द 50,पेज न. 47, खराइज रावंदी की रिवायत के मुताबिक)
(9) क़ैद की रेहाई
अली बिन खालिद, का बयान है कि सामर्रा मे मुझे ये ऐत्तेला मिली कि एक शख्स को शाम से गिरफतार करके यहा लाए हैं और क़ैद खाना में उसको क़ैद कर रखा है। मशहूर है कि ये शख्स नबुवत का मुददई है।
मैं क़ैदखाना गया। दरबान से नेहायत नर्मी और ऐहतराम से पेश आया। यहा तक की मैं उस क़ैदी तक पहुंच गया। वो शख्स मुझे बाहम और अक़्लमंद नज़र आया। मैने उससे दरयाफ्त किया कि तुम्हारा क्या किस्सा है।
कहने लगाः शाम मे एक जगह है जिसको रासुल हुसैन कहते हैं (जहा इमाम हुसैन (अ.स) का सरे मुक़द्दस रखा गया था) मैं वहा इबादत किया करता था। एक रात जब मैं ज़िक्रे इलाही मे मसरूफ था। एक-दम एक शख्स को अपने सामने पाया। उसने मुझ से कहा खड़े हो जाओ।
मै खड़ा हो गया। उसके साथ चन्द कदम चला। देखता क्या हुं कि मसिज्दे कूफा में हुं। उसने मुझ से पूछाः इस मस्जिद को पहचानते हो।
मैने कहाः हाँ ये मस्जिदे कूफा है।
वहा हमने नमाज़ पढ़ी फिर हम वहा से बाहर चले आए। फिर थोड़ी दूर चले थे कि देखा मदीना मे मसिज्दे नबवी मे हुं। रसूले अकरम की क़ब्रे अतहर की ज़ियारत की मसिज्द मे नमाज़ पढ़ी। फिर वहा से चले आए फिर चन्द कदम चले देखा कि मक्का मे मौजूद हुं। खानए क़ाबा का तवाफ किया और बाहर चले आए फिर चन्द कदम चले तो अपने को शाम मे उसी जगह पाया जहा। मैं इबादत कर रहा था और वो शख्स मेरी नज़रों से पोशीदा हो गया।
जो कुछ देखा था। वो मेरे लिये काफी ताअज्जुब खैज़ था। यहा तक की इस वाकऐ को कई साल गुज़र गया। एक साल बाद वो शख्स फिर आया। गुज़िशता साल की तरह इस मर्तबा भी वही सब वाकेआत पेश आए। लेकिन इस मर्तबा जब वो जाने लगा तो मैने उस को क़सम देकर पूछाः आप कौन हैं।
फरमायाः मौहम्मद बिन अली बिन मूसा बिन जाफर बिन मौहम्मद बिन अली इब्नुल हुसैन बिन अली इब्ने अबितालिब हुं।
ये वाकेआ मैने बाज़ लोगों से बयान किया उसकी खबर मोतसिम अब्बासी के वज़ीर मौहम्मद बिन अब्दुल मलिक ज़यात तक पहुची। उसने मेरी गिरफ्तारी का हुक्म दिया जिस की बना पर मुझे क़ैद करके यहा लाया गया है। झूठों ने ये खबर फैला दी कि मैं नबूवत का दावेदार हुं।
अली बिन खालिद का बयान है कि मैने उससे कहा कि अगर तुम इजाज़त दो तो सही हालात ज़यात को लिख कर भेजु ताकि वो सही हालात से बा खबर हो जाए।
वो कहने लगाः लिखो।
मैने सारा वाकेआ ज़यात को लिखा। उसने इसी खत की पुश्त पर जवाब लिखा कि उससे कहो कि जो शख्स एक शब मे उसे शाम से कूफा, मदीना और मक्का ले गया और वापस ले आया, उसी से रेहाई तलब करे।
ये जवाब सुन कर मै बहुत रन्जीदा हुआ। दूसरे दिन मै क़ैदखाना गया ताकि उसे सब्रो शुक्र की तल्कीन करुं और उसका हौसला बढ़ाऊं।
जब वहा पहुचा तो देखा दरबान और दूसरे अफराद परेशान हाल नज़र आ रहे हैं। दरयाफ्त किया कि वजह किया है।
कहने लगे जो शख्स पैग़म्बरी का दावेदार था वो कल रात क़ैद खाना से नहीं मालूम किस तरह बाहर चला गया। ज़मीन मे धंस गया या आसमान मे उड़ गया। मुसलसल तलाश के बाद भी उसका कोई पता ना चला।
(इर्शाद मुफीद,पेज न. 304, आलामुल वुरा, पेज न. 332, ऐहक़ाक़ुल हक़, जिल्द 12, पेज न. 427, अलफसूलुल मुहिम्मा, पेज न. 289)
अबासलत की रिहाई
(10) अबासलत हरवी इमाम रज़ा (अ.स) के मुकर्रब तरीन असहाब मे से थे इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत के बाद मामून के हुक्म से आप को कैद कर दिया गया।
आप का बयान है कि एक साल तक कैदखाना मे रहा। आजिज़ आ गया एक रात सारी रात दुआ इबादत मे मशग़ूल रहा। पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) और अहलेबैत (अ.स) को अपने मसाएल के सिलसिले मे वास्ता क़रार देकर खुदा से दुआ मॉगी कि मुझे रेहाई अता फरमाऐ। अभी मेरी दुआ तमात भी न होने पाई थी कि देखा इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) मेरे पास मौजूद हैं। मुझ से फरमायाः ऐ अबासलत क्या क़ैद आजिज़ आ गये।
अर्ज़ कियाः ऐ मौला हा आजिज़ आ गया हु।
फरमायाः उठो आपने ज़न्जीरों पर हाथ फेरा। उसके सारे हल्के खुल गए। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और क़ैद खाना से बाहर ले आए। दरबानो ने मुझे देखा मगर हज़रत के रोअबो जलाल से किसी मे ज़बान खोलने की सकत नहीं थी। जब इमाम मुझे बाहर ले आए तो मुझ से फरमायाः जाओ खुदा हाफिज़ अब न मामून तुम्हे देखेगा और ना तुम ही उसको देखोगे। जैसा इमाम (अ.स) ने फरमाया था वैसा ही हुआ।
(मुन्तहल आमाल सवानेह उम्री हज़रत इमाम रज़ा (अ.स), पेज न. 67, उयूने अखबार, जिल्द 2, पेज न. 247, बिहारुल अनवार, जिल्द 49, पेज न. 303)
(11) मोतसिम अब्बासी की नशिस्त
ज़रक़ान, जो इब्ने अबी दाऊद (इब्ने अबी दाऊद,मामून,मोतसिम,वातिक़ और मुतावक्किल के ज़माने मे बग़दाद के क़ाज़ीयों मे था।) का गहरा दोस्त था। उसका बयान है कि एक दिन इब्ने अबी दाऊद, मोतसिम की बज़्म से रन्जीदा वापस आ रहा था। मैने रन्जीदगी का सबब दरयाफ्त किया कहने लगाः ऐ काश मै बीस साल पहले मर गया होता।
पूछाः आखिर क्युं।
कहा आज मोतसिम की बज़्म मे अबु जाफर इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से जो सदमा मुझे पहुचा है।
पूछाः माजरा क्या है।
कहाः एक शख्स ने चोरी का एतराफ किया और मोतसिम से ये तकाज़ा किया कि वो हद जारी करके उसे पाक करदे मोतसिम ने तमाम फोक़हा को जमा किया उनमें मौहम्मद बिन अली इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) भी थे मोतसिम ने हमसे पूछा चोर का हाथ कहा से काटा जाए।
मैने कहाः कलाई से।
पूछा उसकी दलील क्या है।
मैने कहाः आयते तमय्युम मे हाथ का इत्लाक़ कलाई तक हुआ है।
अपने चेहरे और हाथों का मसह करो। कलाई तक हाथ का इत्लाक़ हुआ है। इस मसअले मे फोक़हा की एक जमाअत मेरे मवाफिक़ थी। सब का कौल यही था कि चोर का हाथ कलाई से काटा जाए। लेकिन दूसरे फोक़हा का नज़रिया ये था कि चोर का हाथ कोहनी से काटा जाए। मोतसिम ने उनसे दलील तलब की उन्होंने कहा आयये वुज़ु में हाथ का इत्लाक़ कोहनी तक हुआ है।
अपने चेहरों को धोओ और हाथों को कोहनियों तक यहा कोहनी तक हाथ का इत्लाक़ हुआ है।
उस वक्त मोतसिम ने मौहम्मद बिन अली (इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की तरफ रुख किया और पूछा कि इस मसअले मे आपकी क्या राए है।
फरमायाः इन लोगों ने अपने नज़रयात बयान कर दिये हैं। मुझे माफ रखो।
मोतसिम ने बहुत इसरार किया और कसम दे कर कहा कि आप अपना नज़रिया ज़रूर बयान फरमाइये।
परमायाः चूंकि तुमने कसम दी है लेहाज़ा सुनो ये सब लोग गलती पर हैं। चोर की सिर्फ चार ऊगलिया काटी जाऐगी।
मोतसिम ने दरयाफ्त किया कि इस की दलील किया है।
फरमायाः रसूले खुदा (स.अ.व.व) का इर्शाद है कि सजदा सात आज़ा पर वाजिब हैः पेशानी, हाथ की हथेलिया, दोनो घुटने और पाँव के दोनो अंगूठे।
लेहाज़ा अगर कलाई या कोहनी से चोर का हाथ काटा जाए तो वो सज्दा किस तरह करेगा और खुदा वंदे आलम का इर्शाद है।
जिन सात आज़ा पर सज्दा वाजिब है। वो सब खुदा के लिये हैं। खुदा के साथ किसी और की इबादत ना करो और जो चीज़ खुदा के लिये हो वो काटी नहीं जा सकती है।
इब्ने अबी दाऊद का कहना है कि मोतसिम ने आप का जवाब पसंद किया और हुक्म दिया कि चोर की सिर्फ चार ऊगलिया ही काटी जाएं और सब के सामने हम सब की आबरु चली गयी। उस वक्त मैने (शर्म के मारे) मौत की तमन्ना की।
(तफसीर अय्याशी, जिल्द 1, पेज न. 319, बिहारुल अनवार, जिल्द 50,पेज न. 5)
साज़ीशी शादी
इमाम रज़ा (अ.स) के हालाते ज़िन्दगी के सिलसिले मे हम उस तरफ इशारा कर चुके हैं कि समाज मे जो अफरा तफरी फैली हुई थी। अलवीयीन भी हंगामे बरपा कर रहे थे। उन चीज़ों से नजात हासिल करने के लिये शियों और ईरानियों को अपने साथ लेने के लिये मामून अब्बासी ने अपने को अहलेबैत (अ.स) का दोस्त ज़ाहिर करना शुरु कर दिया। इमाम रज़ा (अ.स) को ज़बरदस्ती वली अहद बना कर अपनी इस ज़ाहिरदारी को और मुस्तहकम करना चाहा और इमाम की नक्लो हरकत को नज़दीक से ज़ेरे नज़र रखा।
दूसरी तरफ मामून के खान्दान वाले मामून के इस इक़दाम से खुश नहीं थे और ये सोच रहे थे कि इस तरह मामून खिलाफत बनी अब्बास से अलवीयो मे मुन्तकिल करना चाहता है। इस लिये बनी अब्बास मामून के इस इक़दाम से काफी नाराज़ थे और उन्होने मामून की मुखालेफत शुरु कर दी। लेकिन जब मामून ने इमाम अली रज़ा (अ.स) को शहीद कर दिया तो बनी अब्बास खामोश हो गए और मामून के इस अमल से काफी खुश भी हो गए और उसके नज़दीक आ गए।
मामून ने इमाम रज़ा (अ.स) को बहुत ही पोशीदा तरीके से ज़हर दिया था कि ये बात फैलने न पाए। अपने जुर्म पर पर्दा ड़ालने के लिये खुद को इमाम का अज़ादार ज़ाहिर किया। यहा तक की तीन दिन तक इमाम के घर पर ठहरा रहा और नमक रोटी खाता रहा। इन तमाम कोशिशों के बावजूद अलवीयो पर हकीक़त वाज़ेह हो गई कि इमाम का कातिल मामून के अलावा और कोई नहीं है। इस बात ने अलवीयो को सख्त रन्जीदा किया और उनको इन्तेक़ाम लेने पर मजबूर कर दिया। मामून को फिर अपना तख्तोताज खतरे मे नज़र आया और उसने तख्तोताज की हिफाज़त की खातिर एक और चाल चली इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से बहुत ज़्यादा मौहब्बत और अक़ीदत का इज़्हार करने लगा और ज़्यादा से ज़्यादा फायदा हासिल करने के लिये अपनी बेटी को इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के अक्द मे दे दिया और ये कोशिश करने लगा कि इस चाल से भी वही फायदा उठाए जो उसने इमाम रज़ा (अ.स) को ज़बरदस्ती वली अहद बना कर उठाना चाहा था। इस मक़सद के हुसूल के लिये मामून ने (204 हिजरी) यानी इमाम रज़ा (अ.स) की शहादत के एक साल बाद इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) को बग़दाद बुलाया और अपनी लाड़ली बेटी उम्मुल फज़्ल की शादी आपके साथ कर दी।
रय्यान बिन शबीब का बयान है कि जब अब्बासीयो को मामून के इस इरादे की खबर मिली कि वो अपनी बेटी की शादी इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से करना चाहता है। ये सुन कर उनको ये खतरा लाहक़ हो गया कि हुकूमत बनी अब्बास के खान्दान से मुन्तकिल होना चाहती है। इस लिये वो सब मामून के पास गए उसकी मलामत की और ये क़सम दिलाई कि वो अपना इरादा बदल दे और कहने लगे उस अर्सा मे जो वाक़ेआत बनी अब्बास और अलवीयो के दर्मियान रूनुमा हुए हैं उससे तुम वाकिफ हो। तुम से पहले के खलीफा अलवीयो को शहर बदर किया करते थे। उन्हें ज़लील करते थे। जिस वक्त तुमने वलीअहदी का ओहदा रज़ा के सपुर्द किया। हमें उस वक्त भी तशवीश थी लेकिन खुदा ने वो मुशकिल हल कर दी। हम तुम्हें क़सम देते हैं अब दोबारा हमें रन्जीदा ना करो और ये रिशता न करो। अपनी बेटी की शादी बनी अब्बास के किसी नुमाया फर्द से कर दो।
मामून ने जवाब दियाः तुम्हारे और अलवीयो के दर्मियान जो हादसात पेश आए तुम ही उसका सबब थे। अगर इन्साफ से देखो वो तुम से ज़्यादा हक़्दार हैं। मेरे पहले के खलीफा ने जो रविश इख्तियार की थी। वो क़तए रहेम की थी। मैं इस तर्ज़ से खुदा की पनाह माँगता हूँ। रज़ा की वली अहदी के बारे में भी शर्मिन्दा नहीं हुं। मैने तो खिलाफत क़बूल करने की पेशकश की थी। लेकिन खुदा का करना ऐसा हुआ की उन्होंने कबूल नहीं फरमाया। अबु जाफर मौहम्मद बिन अली (इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के बारे मे इतना कहुंगा कि मैने उनको शादी के लिये इस लिये मुन्तखिब किया है कि इस कमसिनी मे भी तमाम उलामा और दानिश मंदो पर फौकीयत हासिल है। ये चीज़ गरचे ताज्जुब का सबब है। मगर ये हकीक़त जिस तरह मेरे लिये वाज़ेह हो गयी उम्मीद करता हुं कि दूसरों के लिये भी रौशन हो जाएगी ताकि उन्हें मालूम हो जाए कि मेरा इन्तेखाब कितना सही है।
खान्दान वालों ने कहाः ये नौजवान अगरचे तुम्हारे लिये बहुत ज़्यादा ताज्जुब खैज़ है। लेकिन अभी कमसिन है। उसने अभी इल्मो फन हासिल ही कहा किया है। सब्र करो ताकि ये कुछ सीख ले। इल्मो अदब से वाकिफ हो जाए। उस वक्त तुम अपने इरादे पर अमल करना।
मामून ने कहाः वाए हो तुम पर मैं इस नौजवान को तुम से बेहतर जानता हूं वो इस खान्दान से ताल्लुक रखता है। जहा इल्मे खुदा दाद है उन्हे सीखने की कोई ज़रूरत नहीं है उनके आबाओ अज्दाद इल्मो अदब मे हमेशा तमाम लोगो से मुस्तग़नी रहे हैं। अगर चाहते हो तो इम्तेहान कर लो जो कुछ मैने कहा है वो वाज़ेह हो जाएगा।
कहने लगे ये तो बड़ी अच्छी पेशकश है। हम उसे आज़माऐगे हम तुम्हारे सामने उससे एक फिक़ही मसअला दरयाफ्त करेंगे। अगर सही जवाब दे दिया तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं होगा और हम सब पर तुम्हारे इन्तेखाब की ज़रूरत वाज़ेह हो जाइगी और अगर जवाब न दे सका। तब भी हमारी मुशिकल आसान हो जाएगी और तुम्हे इस रिश्ते को तोड़ना होगा।
मामून ने कहा। जब चाहो इम्तेहान कर लो।
अब्बासीयो ने उस वक्त के क़ाज़ीउल क़ुज़्ज़ात नामीं गिरामी मशहूरे ज़माना क़ाज़ी याहिया बिन अक्सम की तरफ रुख किया और उससे बहुत ज़्यादा इनामों इक़राम का वादा किया। ताकि वो इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से एक मसअला पूछे। जिसका वो जवाब न दे सकें। याहिया ने ये बात क़बूल कर ली। ये सब लोग मामून के पास आए और कहा तुम ही कोई दिन मोइय्यन कर दो। मामून ने दिन मोइय्यन कर दिया। उस रोज़ हर एक वहा पहुंच गया मामून ने हुक्म दिया कि मजलिस के बालाई हिस्सा मे इमाम मौहम्मद तक़ी के लिये जगह बनायी जाए। इमाम तशरीफ लाए और मोअय्यन जगह बैठ गए। आपके सामने याहिया बिन अक़्सम ने जगह पायी। हर एक अपनी अपनी जगह बैठ गया मामून इमाम (अ.स) के पहलु में बैठ गया।
याहिया बिन अक़्सम ने मामून से कहाः मुझे इजाज़त है कि मैं अबुजाफर से एक सवाल करुं।
मामून ने कहाः खुद उनसे इजाज़त तलब करो।
याहिया ने इमाम की तरफ रुख करके कहाः आप पर फिदा हो जाऊं क्या मुझे एक सवाल करने की इजाज़त है।
इमाम ने फरमायाः अगर चाहते हो तो ज़रूर सवाल करो।
याहिया ने कहाः मै आप पर फिदा हो जाऊ जो शख्स ऐहराम की हालत मे शिकार करे उसका कया हुक्म है।
इमाम ने फरमायाः इस मसअले की मुख्तलिफ सूरतें हैं।
हरम मे शिकार किया था या हरम के बाहर।
उसको शिकार की हुर्मत का इल्म था या नहीं।
जान बूझ कर शिकार किया था या भूले से।
शिकार करने वाला ग़ुलाम था या आज़ाद।
कमसिन था या बालिग़।
पहली मर्तबा शिकार किया था या दूसरी मर्तबा।
शिकार परिंदा था या कोई और चीज़।
शिकार छोटा था या बड़ा। शिकार करने वाला अपने इस अमल पर नादिम था या दोबारा करने का इरादा रखता था।
शिकार दिन मे किया था या रात मे।
ऐहराम उमरा का था या हज का।
इमाम कि ये आलमाना वज़ाहत देख कर याहिया बिल्कुल हैरान रह गया। शिकस्त और आजेज़ी के आसार उसके चेहरे पर नुमाया हो गए। ज़बान लुक़नत करने लगी यहा तक की हर एक पर याहिया की हालत वाज़ेह हो गयी।
मामून ने कहाः मैं इस नेमत पर खुदा का शुक्र अदा करता हुं कि मेरा इन्तेखाब सही निकला अब्बासीयो की तरफ रुख करके कहने लगा। तुम लोग जिस चीज़ का इन्कार कर रहे थे। वो तुम्हे मालूम हो गयी।
इसी मजलिस मे मामून ने इमाम (अ.स) से अपनी बेटी की शादी की पेशकश की और इमाम (अ.स) से खुत्बा पढ़ने की दरख्वास्त की। इमाम (अ.स) ने कुबूल फरमाते हुए युं खुत्बे का आगाज़ किया।
खुदा की नेमतों का इक़रार करते हुए उस की हम्द करता हुं खुलूसे वहदानियत के लिये कलमए तौहीद लाइलाहा इल्ललाह का इक़रार करता हुं खुदा का दुरूद हो अशरफुल मखलूक़ात हज़रत मौहम्मद मुस्तुफा (स.अ.वा.व) पर और उनके मुन्तखिब रोज़गार अहलेबैत पर।
बेशक बंदो पर खुदा की एक नेमत ये है कि उसने हलाल के ज़रिये हराम से बे नियाज़ किया और शादी का हुक्म दिया इर्शाद हैः कि अपने कुवॉरों की शादी करो। सालेह ग़ुलामों और कनीज़ों के रिश्ते करो (फक्र और तंगदस्ती तुम्हे उस काम की अन्जाम दही से मत रोके) अगर वो फक़ीर होंगे तो खुदा उन्हे अपने फज़्ल से ग़नी करेगा। खुदा बंदों की रोज़ी में बरकत देने वाला और हर चीज़ का जानने वाला है।
उसके बाद इमाम (अ.स) ने जनाब फातिमा ज़हरा के महेर के मुताबिक 500 दिरहम महर करार देते हुए। अपनी मर्ज़ी ज़ाहिर कर दी लड़की की तरफ से खुद मामून ने अक़्द पढ़ा और इमाम ने खुद कुबूल फर्माया। मामून के हुक्म से हाज़रीन को कीमती तोहफे पेश किये गए। दस्तरख्वान लगाया गया और लोग खाना खाकर चले गए। सिर्फ मामून के क़रीबी और दरबारी रह गए। उस वक्त जो सूरतें आपने बयान फरमाई थीं। उनका जवाब मरहमत फर्माए। इमाम (अ.स) ने तफसील से हर एक का जवाब मर्हमत फर्माया। (ये जवाब मजलिस की किताबों मे मौजूद है)
जवाब सुन कर मामून ने इमाम की बहुत तारीफ की और ये तक़ाज़ा किया कि आप भी याहिया की तरफ रुख करके फरमायाः कया मै सवाल कर सकता हुं।
याहिया जो शिक्सत खा चुका था और इमाम की इलमियत से मरऊब हो गया था। कहने लगाः आप पर क़ुरबान हो जाऊं आप की मर्ज़ी है। अगर इल्म होगा तो जवाब दूंगा वरना खुद आपसे इस्तेफादा करुँगा।
इमाम ने फरमायाः एक मर्द ने सुब्ह को एक औरत पर निगाह की जबकि निगाह करना हराम था और जब सूरज निकल आया तो ये औरत इसके लिये हलाल हो गयी। ज़ोहर के वक्त फिर हराम हो गयी। जब अस्र का वक्त आया तो हलाल हो गयी। ग़ुरूबे आफताब के वक्त फिर हराम हो गयी। जब ईशा का वक्त आया तो हलाल हो गयी। निस्फे शब को फिर हराम हो गयी और जब सुब्ह हुई तो फिर हलाल हो गयी बताओ इसकी वजह क्या है। ये औरत बाज़ वक्त क्युं हराम हो जाती थी बाज़ वक्त क्युं हलाल हो जाती थी।
याहिया ने कहाः खुदा की क़सम मुझे इस का सबब नहीं मालूम। अगर आप बयान फर्माए तो मै इस्तेफादा करुंगा।
इमाम ने फर्मायाः वो औरत एक शख्स की कनीज़ थी एक नामहरम ने सुब्ह उस पर निगाह की। जबकि ये निगाह हराम थी। जब सूरज निकल आया तो उसने ये कनीज़ उसके मालिक से खरीद ली। उस वक्त उसके लिये हलाल हो गयी। ज़ोहर के वक्त उसने कनीज़ को आज़ाद कर दिया तो उस पर हराम हो गयी। अस्र के वक्त उसने उससे निकाह कर लिया। अब फिर उस पर हलाल हो गयी। ग़ुरूबे आफताब के वक्त उसने ज़ुहार(1) किया तो इस पर हराम हो गयी ईशा के वक्त उसने ज़ुहार का कफ्फारा दे दिया तो उस पर हलाल हो गयी।
(1) दीने इस्लाम से पहले जाहीलियत के दौर मे ज़ुहार को तलाक़ समझा जाता था। ज़ुहार के बाद औरत हमेशा हमेशा के लिये मर्द पर हराम हो जाती थी। लेकिन दीने इस्लाम ने इस मसअले को बदल दिया कि ज़ुहार हुर्मत और कफ्फारा का सबब तो है मगर अब्दी हुर्मत का बाएस नहीं है ज़ुहार इबारत है इस जुम्ले से कि शौहर अपनी ज़ौजा से कहे के तुम्हारी पीठ मेरे लिये मेरी मॉ या बहेन या बेटी की तरह है अगर कोई शख्स ज़ुहार के बाद कफ्फारा दे दे तो ज़ौजा उसके लिये फिर से हलाल हो जाएगी। इस मसअले के लिये तफसीरे तोज़ीहुल मसाइल और दूसरी किताबों मे मुलाहेज़ा हो)
मामून ने ताज्जुब से अपने खान्दान वालो को देखा और उनको मुखातिब करके कहाः तुममे ऐसा है कोई जो इस तरह इस मसअले का जवाब दे या पहले सवाल का जवाब जानता हो।
सब ने कहाः बाखुदा कोई नही है।
(इर्शादे मुफीद पेज न. 299, तफसीरे क़ुम्मी, पेज न. 169, ऐहतजाजे तबरसी, पेज न. 245, बिहारुल अनवार, जिल्द 50, पेज न. 74, इखतिसार के साथ।)
ये बात क़ाबिले तवज्जोह है कि मामून की तमाम ज़ाहिरदारी फरेबकारी, अय्यारी और मक्कारी इस रिश्ते के बारे मे सिर्फ इस लिये थीं कि शादी से उसका मक़सद सियासत के अलावा कुछ और न था और वो इस शादी से कई और मक़ासिद हासिल करना चाहता था।
(1) इमाम के घर मे अपनी बेटी भेज कर इमाम की नक्लो हरकत पर निगाह रखना चाहता था। (इस सिलसिले मे मामून की बेटी ने अपनी ज़िम्मेदारी को खूब निभाया। वो बराबर जासूसी किया करती थी। तारीख उस हक़ीक़त पर मुकम्मल गवाह है।
(2) इस रिश्ते से मामून का मक़सद एक ये भी था कि इस तरह इमाम (अ.स) को अपने ऐशो नूश मे शामिल करे और उन्हे अपने खेल कूद और अपने गुनाहों मे शरीक करे और इस तरह इमाम की अज़मतो बुज़ुर्गी को दाग़दार करे और इमामत की बुलंदो बाला मन्ज़ेलत को लोगो की निगाहों से गिरा दे।
(3) मौहम्मद बिन रयान का कहना है कि मामून इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) को जितना लहवो लअब की तरफ खेंचने की कोशिश करता था। उतनी ही उसे नाकामी होती थी। इमाम की शादी के मौके पर मामून ने एक सौ खूबसूरत कनीज़ों (जिन मे हर एक बेहतरीन लिबास मे मलबूस थी और हर एक के हाथ मे जवाहरात से लदा हुआ तश्त था) को इस बात पर आमादा किया कि जब इमाम (अ.स) तशरीफ लाए तो ये कनीज़े उन का इस्तकबाल करें। कनीज़ो ने मामून की हिदायत पर अमल किया। लेकिन इमाम (अ.स) ने उन की तरफ रुख ही नहीं किया और अमल से बता दिया कि हम इन चीज़ों से बहुत दूर हैं।
(4) इसी जश्न मे एक गाना गाने वाले को गाने बजाने के लिये बुलाया गया था। जैसे ही उसने गाना बजाना शुरु किया। इमाम (अ.स) ने बुलंद आवाज़ मे फर्मायाः खुदा से ड़रो।
इमाम के इस जुम्ले से वो इतना ज़्यादा मरऊब हुआ कि संगीत का आला उसके हाथ से गिर गया और जब तक ज़िंदा रहा फिर कभी गाबजा न सका।
(काफी, जिल्द 1, पेज न. 494, बिहारुल अनवार, जिल्द 50, पेज न. 60)
5. जैसा कि हम ज़िक्र कर चुके हैं कि इस रिश्ते से मामून का एक मक़सद ये भी था कि वो अलवीयो को उनके क़यामो इन्केलाब से रोक सके और अपने को खान्दाने अहलेबैत का दोस्त और चाहने वाला ज़ाहिर कर सके।
6. अवाम फरेबीः मामून बसा औक़ात कहा करता था कि मैने ये रिश्ता इस लिये किया है ताकि इमाम की नस्ल से मेरा एक नवासा हो और मै पैग़म्बर (स.अ.व.व) और अली (अ.स) के खान्दान की एक फर्द का नाना कहलाऊ।
(तारीखे याक़ूबी,जिल्द 2,पेज न. 454)
लेकिन खुशकिस्मती से मामून की ये आरज़ू पूरी ना हुई क्योंकि मामून की बेटी
के कोई औलाद नहीं हुई। इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की तमाम औलाद जनाब इमाम अली तक़ी (अ.स), मूसा मबरका, हुसैन, इमरान, फातिमा, खदीजा, उम्मे कुलसूम हकीमा। ये सब औलादें इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की दूसरी ज़ौजा से हैं। जिन का नाम समाना मग़रबिया था।
((मुन्तहल आमाल,जिल्द 2,पेज न. 253, तोहफतुल अज़्हार के मुताबिक (मोहद्दिस क़ुम्मी इस किताब के इसी सफे पर ये भी तहरीर फर्माते हैं कि तारीखे क़ुम से ये बात ज़ाहिर होती है कि ज़ैनब, उम्मे मौहम्मद और मैमूना भी इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की बेटिया थीं और जनाब शैख मुफीद ने आपकी बेटियों के सिलसिले मे इमामा का भी ज़िक्र किया है))
इन तमाम बातों के अलावा मामून ने सिर्फ सियासी मक़ासिद के लिये इस रिश्ते पर इतना ज़ोर दिया था ये रिश्ता गरचे दुनियावी आसाईशो से भरपूर था, लेकिन इमाम (अ.स) अपने आबाओ अजदाद की तरह दुनिया की रंगीनियों से बिल्कुल बेज़ार थे। बल्कि मामून के साथ ज़िन्दगी बसर करना इमाम के लिये सख्त नागवार था।
हुसैन मकारी का बयान है कि बग़दाद मे इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुआ। जब मैने इमाम का रहन सहन देखा तो मेरे ज़हन मे ये ख्याल आया कि इतनी आसाईशों के होते हुए इमाम मदीना वापस नहीं जाएगे। इमाम (अ.स) ने थोड़ी देर के लिये सर को झुकाया और जब सर उठाया तो आपका चेहरा रंजो ग़म से ज़र्द हो रहा था। आप (अ.स) ने फर्मायाः
ऐ हुसैन रसूले खुदा (स.अ.व.व) के हरम मे जौ की रोटी और नमक मुझे इस ज़िन्दगी से कहीं ज़्यादा पसंद है।
(खराएज रावंदी पेज न. 208, बिहारुल अनवार जिल्द 50 पेज न. 48)
शहादते इमाम (अ.स)
218 हिजरी मे मामून को मौत अपने साथ ले गयी। उसके बाद मामून का भाई मोतसिम उसका जानशीन हुआ। 220 हिजरी मे मोतसिम ने इमाम को बग़दाद बुलाया ताकि नज़्दीक से आप पर नज़र रख सके। हम गुज़िश्ता सफहात मे चोर का हाथ काटे जाने का वाक़ेआ नक्ल कर चुके हैं कि इस मौके पर इमाम को भी शरीक किया गया था और उस वक्त क़ाज़ी बग़दाद इब्ने अबी दाऊद और दूसरों को क्या शर्मिन्दगी करना पड़ी थी। वाकेए के चन्द रोज़ बाद इब्ने अबी दाऊद कीना व हसद से भरा हुआ मोतसिम के पास पहुँचा और कहाः
तुम्हारी भलाई के लिये एक बात कहना चाहता हुं कि चन्द रोज़ पहले जो वाकेआ पेश आया है वो तुम्हारी हुकूमत के हक़ मे नहीं है। क्योंकि तुमने भरी बज़्म मे जिसमे कि बड़े बड़े उलामा और मुल्क की आला शख्सियतें मौजूद थीं, अबु जाफर (इमाम मौहम्मद तक़ी अ.स) के फतवे को हर एक के फतवे पर फौकियत दी। तुम्हे मालूम होना चाहिए कि मुल्क के आधे अवामी लोग उन्हे खिलाफत का सही हक़दार और तुम्हे ग़ासिब समझते हैं। ये खबर अवाम मे फैल गयी और शियों को एक मज़बूत दलील मिल गयी है।
मोतसिम, जिसमे दुश्मनीये इमाम के तमाम जरासीम मौजूद थे। ये सुन कर भ़ड़क उठा और इमाम (अ.स) के कत्ल का दरपे हो गया। आखिरकार उसने अपने इरादे को मुकम्मल कर दिखाया। ज़ीक़ाद की आखरी तारीख थी कि उसने इमाम (अ.स) को ज़हर दे कर शहीद कर दिया।
आपका जसदे अतहर आपके जद बुज़ुर्गवार हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ.स) के पहलू मे बग़दाद में दफ्न किया गया।
(इर्शादे मुफीद पेज न. 307, इएलामुल वरा पेज न. 338, बिहारुल अनवार जिल्द 50 पेज न. 6, मुन्तही अल अमाल जिल्द 2 पेज न. 234, (इमाम मौहम्मद तक़ी अ.स) के साले शहादत और रोज़े शहादत के बारे में और भी अकवाल हैं जिन्का ज़िक्र नहीं किया गया है।)
दुरूद हो उन पर और उनके तय्यबो ताहिर आबाओ अजदाद पर। उन दोनो इमामों का रौज़ा आज भी काज़मैन मे मौजूद है और मुद्दतों से चाहने वालों की ज़ियारत गाह है।
इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के शागिर्द
पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) की तरह हमारे आइम्मा अलैहिमुस्सलाम भी लोगों की तालीमो तर्बियत मे हमेशा कोशीश करते रहते थे। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम का तरीकाऐ तालीम और तरबियत को तालीमी और तरबियती इदारो की सरगर्मियों पर क्यास नहीं किया जा सकता है। तालीमी इदारे खास औक़ात में तालीम देते हैं और बकीया औकात मोअत्तल रहते हैं। लेकिन आइम्मा अलैहेमुस्सलाम की तालीमो तरबियत के लिये कोई खास वक्त मोअय्यन नहीं था। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम लोगों की तालीमो तरबियत मे मसरूफ रहते थे। आइम्मा अलैहिमुस्सलाम का हर गोशा, उन की रफ्तारो गुफ्तार, अवाम की तर्बियत का बेहतरीन ज़रिया था। जब भी कोई मुलाक़ात का शरफ हासिल करता था। वो आइम्मा के किरदार से फायदा हासिल करता था और मजलिस से कुछ न कुछ ले कर उठता था। अगर कोई सवाल करना चाहता था तो उसका जवाब दिया जाता था।
वाज़ेह रहे कि इस तरह का कोई मदरसा दुनिया मे कहीं मौजूद नहीं है। इस तरह का मदरसा तो सिर्फ अम्बिया अलैहेमुस्सलाम की ज़िन्दगी मे मिलता है ज़ाहिर सी बात है कि इस तरह के मदरसे के असारात फायदे और नताएज बहुत ज़्यादा ताज्जुब खैज़ हैं। बनी अब्बास के खलीफा ये जानते थे कि अगर अवाम को इस मदरसा की खुसूसियात का इल्म हो गया और वो उस तरफ मुतावज्जेह हो गए तो वो खुद-बखुद आइम्मा अलैहिमुस्सलाम की तरफ खिंचते चले जाएगे और इस सूरत मे ग़ासिबों की हुकूमत खतरो से दो-चार हो जाएगी। इस लिये खलीफा हमेशा ये कोशिश करते रहे कि अवाम को आइम्मा अलैहेमुस्सलाम को दूर रखा जाए और उन्हे नज़्दीक न होने दिया जाए। सिर्फ इमाम मौहम्मद बाक़िर (अ.स) के ज़माने मे जब उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की हुकूमत थी और इमाम जाफर सादिक़ (अ.स) के इब्तेदाई दौर में जब बनी उमय्या और बनी अब्बास आपस मे लड़ रहे थे और बनी अब्बास ने ताज़ा ताज़ा हुकूमत हासिल की थी और हुकूमत मुस्तहकम नहीं हुई थी। उस वक्त अवाम को इतना मौका मिल गया कि वो आज़ादी से अहलेबैत से इस्तेफादा कर सकें। लेहाज़ा हम देखते हैं कि इस मुख्तसर सी मुद्दत में शागिर्दों और रावियों की तादाद चार हज़ार तक पहुंच गयी।
(रेजाल शैख तूसी, पेज न. 142, 342)
लेकिन इसके अलावा बक़िया आइम्मा के ज़मानो मे शागिर्दों की तादाद बहुत कम नज़र आती है। मसलन इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के शागिर्दों और रावियों की तादाद 110 है।
(रेजाल शैख तूसी, पेज न. 397, 409)
इससे ये पता चलता है कि इस दौर मे अवाम को इमाम (अ.स) से कितना दूर रखा जाता था। लेकिन इस मुख्तसर सी तादाद में भी नुमाया अफराद नज़र आते हैं। यहा नमूने के तौर पर चन्द का ज़िक्र करते हैः
अली बिन महज़ियार
इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के असहाबे खास और इमाम के वकील थे। आप का शुमार इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम अली नक़ी (अ.स) के असहाब मे भी होता है। बहुत ज़्यादा इबादत करते थे, सजदे की बना पर पूरी पेशानी पर घट्टे पड़ गए थे। तोलूवे आफताब के वक्त सर सजदे मे रखते और जब तक एक हज़ार मोमिनो के लिये दुआ न कर लेते थे। उस वक्त तक सर ना उठाते थे। और जो दुआ अपने लिये करते थे वही उन के लिये भी।
अली बिन महज़ियार अहवाज़ मे रहते थे, आप ने 30 से ज़्यादा किताबें लिखी हैं।
ईमानो अमल के उस बुलन्द मर्तबे पर फाएज़ थे कि एक मर्तबा इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने आप की कद्रदानी करते हुए आप को एक खत लिखाः
बिसमिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम
ऐ अली। खुदा तुम्हे बेहतरीन अज्र अता फर्माए, बहिश्त मे तुम्हे जगह दे दुनियाओ आखेरत की रुसवाई से महफूज़ रखे और आखेरत मे हमारे साथ तुम्हे महशूर करे। ऐ अली। मैंने तुम्हे उमूर खैर, इताअत, एहतराम और वाजेबात की अदाएगी के सिलसिले मे आज़माया है। मैं ये कहने मे हक़ बजानिब हुं कि तुम्हारा जैसा कहीं नहीं पाया। खुदा वंदे आलम बहिश्ते फिरदोस मे तुम्हारा अज्र करार दे। मुझे मालूम है कि तुम गर्मियों, सर्दियों और दिन रात क्या क्या खिदमत अन्जाम देते हो। खुदा से दुआ करता हूं कि जब रोज़े कयामत सब लोग जमा होंगे उस वक्त रहमते खास तुम्हारे शामिले हाल करे। इस तरह कि दूसरे तुम्हे देख कर रश्क करें। बेशक वो दुआओ का सुनने वाला है।
(ग़ैबत शैख तूसी पेज न. 225, बिहारुल अनवार जिल्द 50 पेज न. 105)
अहमद बिन मौहम्मद अबी नस्र बरनती
कूफे के रहने वाले इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के असहाबे खास और उन दोनो इमामो के नज़्दीक अज़ीम मन्ज़ेलत रखते थे, आपने बहुत-सी किताबें तहरीर की। जिनमे एक किताब अल जामेआ है। ओलामा के नज़्दीक आपकी फिक्ही बसीरत मशहूर है। फोक़्हा आप के नज़रयात को एहतरामो इज़्ज़त की निगाह से देखते हैं।
(मोअज्जिम रेजाल अल हदीस जिल्द 2 पेज न. 237 वा रेजाल कशी पेज न. 558)
आप उन तीन आदमियों मे हैं जो इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे शरफयाब हुए और इमाम ने उन लोगो को खास इज़्ज़तो एहतराम से नवाज़ा।
ज़करया बिन आदम कुम्मी
शहरे क़ुम मे आज भी उनका मज़ार मौजूद है। इमाम रज़ा (अ.स) और इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के खास असहाब मे से थे। इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने आपके लिये दुआ फर्मायी। आपको इमाम (अ.स) के बावफा असहाब मे शुमार किया जाता है।
(रजाल कशी पेज न. 503)
एक मर्तबा इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुए। सुब्ह तक इमाम ने बातें की। एक शख्स ने इमाम रज़ा (अ.स) से दर्याफ्त कियाः मैं दूर रहता हूं और हर वक्त आपकी खिदमत मे हाज़िर नहीं हो सकता हूं। मैं अपने दीनी एहकाम किससे दर्याफ्त करुं।
(मुन्तहल आमाल सवानेह उमरी इमाम रज़ा (अ.स) पेज न. 85)
फर्मायाः ज़कर्या बिन आदम से अपने दीनी अहकाम हासिल करो। वो दीनो दुनिया के मामले मे अमीन है।
(रिजाल कशी पेज न. 595)
मौहम्मद बिन इस्माईल बिन बज़ी
इमाम मूसा काज़िम, इमाम रज़ा और इमाम मौहम्मद तक़ी अलैहिमुस्सलाम के असहाब मे ओलामा शिया के नज़्दीक मोअर्रिद एतमाद,बुलंद किरदार और इबादत गुज़ार थे। मोतदिद किताबें तहरीर की हैं। बनी अब्बास के दरबार मे काम करते थे।
(रिजाले नजाशी पेज न. 254)
इस सिलसिले मे इमाम रज़ा (अ.स) ने आपसे फर्मायाः
सितमगारों के दरबार मे खुदा ने ऐसे बंदे मुअय्यन किये हैं। जिन के ज़रीये वो अपनी दलील और हुज्जत को ज़ाहिर करता है। उन्हे शहरों मे ताकत अता करता है ताकि उनके ज़रीये अपने दोस्तो को सितमगारों के ज़ुल्मो जौर से महफूज़ रखे। मुसलमानो के मामलात की इस्लाह हो। ऐसे लोग हवादिस और खतरात मे साहेबाने ईमान की पनाहगाह हैं। हमारे परेशान हाल शिया उन की तरफ रुख करते हैं और अपनी मुश्किलात का हल उन से तलब करते हैं। ऐसे अफराद के ज़रिये खुदा मोमिनो को खौफ से महफूज़ रखता है। ये लोग हक़ीकी मोमिन हैं। ज़मीन पर खुदा के अमीन हैं। उन के नूर से क़यामत नूरानी होगी। खुदा की क़सम ये बहिश्त के लिये और बहिश्त इन के लिये है। नेमतें इन्हें मुबारक हों।
उस वक्त इमाम (अ.स) ने फर्मायाः तुममे से जो चाहे इन मक़ामात को हासिल कर सकता है।
मौहम्मद बिन इस्माईल ने अर्ज़ किया। आप पर क़ुर्बान हो जाऊ। किस तरह हासिल कर सकता हूं।
इमाम ने फर्मायाः सितमगारों के साथ रहे। हमें खुश करने के लिये हमारे शियों को खुश करे। (यानी जिस ओहदा और मनसब पर हो। उस का मकसद मोमिनो से ज़ुल्मो सितम दूर करना हो।)
मौहम्मद बिन इस्माईल,जो बनी अब्बास के दरबार मे वज़ारत के ओहदे पर फाएज़ थे। इमाम ने आखिर में उन से फर्मायाः ऐ मौहम्मद। तुम भी इन मे शामिल हो जाओ।
(रिजाले नजाशी पेज न. 255)
हुसैन बिन खालिद का बयान है कि एक गिरोह के हमराह इमाम रज़ा (अ.स) की खिदमत मे हाज़िर हुआ। दौरान गुफ्तगू मौहम्मद बिन इस्माईल का ज़िक्र आया। इमाम (अ.स) ने फर्मायाः मैं चाहता हूं कि तुममे ऐसे अफराद हों।
(रिजाले नजाशी पेज न. 255)
मौहम्मद बिन अहमद याहिया का बयान है कि मैं, मौहम्मद बिन अली बिन बिलाल, के हमराह मौहम्मद बिन इस्माईल बज़ी की कब्र की ज़ियारत को गया।मौहम्मद बिन अली कब्र के किनारे क़िबला रुख बैठे और फर्माया कि साहिबे क़ब्र ने मुझ से बयान किया कि इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) ने फर्मायाः जो शख्स अपने बरादर मोमिन की क़ब्र की ज़ियारत को जाए, क़िबला रुख बैठे और क़ब्र पर हाथ रख कर 7 मर्तबा सूरह इन्ना अन्ज़लना की तेलावत करे, खुदा वंदे आलम उसे क़यामत की परेशानियों और मुशकलात से नजात देगा।
(रेजाल कशी पेज न. 564)
मौहम्मद बिन इस्माईल की रिवायत है कि मैने इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) से एक लिबास की दरख्वास्त की कि अपना एक लिबास मुझे इनायत फर्माए ताकि उसे अपना कफन करार दूं। इमाम ने लिबास मुझे अता फर्माया और फर्मायाः इस के बटन निकाल लो।
(रेजाल कशी पेज न. 245-564)
अक़वाले इमाम तक़ी (अ.स)
आइम्मा मासूमीन अलैहेमुस्सलाम के अक़वाल आफताबे इल्म की शुआए हैं जो बंदगाने खुदा के लिये हिदायत और मशअले राह हैं। क्योंकि ये अफराद हर तरह की खता और लग़ज़िश से पाको पाकीज़ा हैं। उन की हिदायतें सिर्फ एक पहलू को लिये हुए नहीं हैं। बल्कि ज़िन्दगी के तमाम पहलूओं को लिये हुए हैं। उन का ताल्लुक किसी खास फिर्के से भी नहीं है। बल्कि हर फिर्के व तबके के लिये हैं। तमाम इन्सानो को कमाले मुतलक की तरफ हिदायत करते हैं। फितरत और ज़मीर के हर मर्हले मे इन्सान को बेदारी अता करते हैं।
हम यहाँ नवें इमाम हज़रत इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) के चन्द अक़्वाल, बिरादराने अहले सुन्नत की किताबों से नकल करते हैं। इस उम्मीद के साथ कि हम इससे इस्तेफादा कर सकें और इन अक़वाल को अपनी ज़िन्दगी के लिये राहनुमा करार दे सकें।
1. जो शख्स खुदा पर भरोसा रखता है लोग अपनी हाजतें उससे तलब करते हैं और जो खुदा से ड़रता है लोग उस्से मोहब्बत करते हैं।
(नूरुल अबसार पेज न. 180)
2. इन्सान का कमाल अक़्ल मे है।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 290)
3. कमाले मुरव्वत ये है कि इन्सान लोगो से इस तरह पेश न आए जिसे वो अपने बारे मे नापसंद करता है।
(नूरुल अबसार पेज न. 180)
4. जिस काम का वक्त ना आया हो उसे अन्जाम न दो, वरना शर्मिन्दा होगे,लम्बी चौड़ी आर्ज़ुए ना करो कि ये कसावत कल्ब का सबब है,कम्ज़ोरों पर रहेम करो,उन पर रहेम करके रहमते खुदा के तलबगार रहो।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 292)
5. जो बुरे फेल को अच्छा समझता है वो इस फेल मे शरीक है।
(नूरुल अबसार पेज न. 180)
6. ज़ुल्म करने वाला, उसकी मदद करने वाला और ज़ुल्म पर राज़ी रहने वाला सब ज़ुल्म मे बराबर के शरीक हैं।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 291)
7. जो शख्स अपने बरादर मोमिन को मखफी तौर पर नसीहत करे उसने उसको ज़ीनत दी और जो बरादर मोमिन को भरी बज़्म मे नसीहत करे उसने उसकी समाजी हैसियत को दाग़दार किया।
(नूरुल अबसार पेज न. 180)
8. दिल से खुदा की तरफ मुतवज्जेह होना आज़ाव जवारेह को आमाल पर आमादा करने से ज़्यादा मोवस्सिर है।,,
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 289)
9. अदलो इन्साफ का दिन ज़ालिम के लिये उस दिन से सख्त होगा जिस दिन मज़लूम पर ज़ुल्म हुआ था।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 291)
10. क़यामत के दिन मुसलिम के नामए आमाल का उन्वान हुस्ने खल्क होगा।
(नूरुल अबसार पेज न. 180)
11. तीन चीज़ें इन्सान को खुशनूदिये खुदा के नज़्दीक कर देती हैः
(1)कसरत से अस्तग़फार करना (2) लोगों से नर्मीं से पेश आना (3) ज़्यादा सदका देना।
तीन सिफातें जिस शख्स मे हों वो कभी शर्मिन्दा ना होगाः
(1) जल्दबाज़ ना हो (2) अपने कामो मे मशविरा करता हो (3) (मशविरा करने के बाद) जब किसी काम का इरादा करले तो खुदा पर भरोसा करे।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 291)
12. जो किसी गुनहगार को उम्मीद दिलाए उसकी कमतरीन सज़ा महरूमियत है।
(नूरुल अबसार पेज न. 181)
13. जो खुदा के अलावा किसी और से उम्मीद लगाए खुदा उस को उसी पर छोड़ देता है और जो बग़ैर इल्म के अमल करे वो सलाह से ज़्यादा फसाद फैलाता है।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 289)
14. नेको कारों को नेकी की ज़रूरत, ज़रूरत मंदों से ज़्यादा है क्योंकि नेकी करने से उन्हे अज्रो सवाब और इज़्ज़तो शोहरत हासिल होती है लेहाज़ा जब कोई नेकी करता है तो सब से पहले खुद अपने हक़ मे नेकी करता है।,,
(नूरुल अबसार पेज न. 180)
15. इफ्फत ग़ुरबत की ज़ीनत है। शुक्र इस्तग़ना की ज़ीनत है। सब्र बला की ज़ीनत है। इन्केसारी बुज़ुर्गी की ज़ीनत है। फसाहत कलाम की ज़ीनत है। हाफिज़ा रिवायत की ज़ीनत है। तवाज़ो इल्म की ज़ीनत है। अदब अक्ल की ज़ीनत है। हुज़ूरे कल्ब नमाज़ की ज़ीनत है। बेफायदा बातों से किनारा कशी तक़्वा की ज़ीनत है।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 291)
16. जो शख्स खुदा पर एतमाद करे और खुदा पर भरोसा करे खुदा उसे हर बदी से नजात देगा और हर दुशमन से उसकी हिफाज़त करेगा।,
(नूरुल अबसार पेज न. 181)
17. दीन इज़्ज़त का सबब है। इल्म खज़ाना है। खामोशी नूर है। बिदअत से ज़्यादा किसी चीज़ ने दीन को बरबाद नही किया। लालच से ज़्यादा किसी चीज़ ने इन्सान को बरबाद नहीं किया। सालेह रहनुमा से कौम की इस्लाह होती है। दुआऐ बला को रद्द करती हैं।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 290)
18. मुसीबत पर सब्र करना दुशमन के लिये खुद एक मुसीबत है।,
(नूरुल अबसार पेज न. 180)
19. जिसका खुदा सरपरस्त हो वो कैसे तबाह हो सकता है। जिसका खुदा तलबगार हो वो कैसे फरार हो सकता है।
(अलफूसूल मुहिम्मा पेज न. 289)
20. एक शख्स ने हज़रत से दरख्वास्त की कि एक मुखतसर मगर जामेआ नसीहत फर्माए।
हज़रत ने फर्मायाः ऐसे कामों से दूर रहो जो दुनिया मे ज़िल्लत और आखेरत मे आतिशे जहन्नम का सबब हों।
(अहक़ाक़ुल हक़ जिल्द 12 पेज न. 439, नक्ल अज़ वसीलए आमाल, बक़िया 19 अक़वाल जो नक्ल किये गए हैं। वो किताब अहक़ाक़ुल हक़ की जिल्द 12 पेज न. 428-439 मे मौजूद हैं। लेकिन ये तमाम अक़्वाल किताब,अलफूसूल मुहिम्मा और किताब नूरुल अबसार से लिये गए हैं।)
खुदाया हमें तौफीक़ दे कि हम आईम्मए मासूमीन के बताए हुए रास्ते पर चल सकें और उन्की खुशनूदी हासिल कर सकें। आमीन।
खुदाया तूही बेहतरीन तौफीक़ देने वाला और बेहतरीन नुसरत करने वाला है। हम तुझ ही पर भरोसा करते हैं और तुझही से नेकियों के तलबगार है।
आमीन।
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