तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-2

कुरआन मजीद
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बाज़ अहमक़ लोग ये कह बैठेंगे कि मुसलमान जिस क़िब्ले (बैतुल मुक़द्दस) की तरफ़ पहले से (सजदाह करते) थे इससे (दूसरे क़िब्ले की तरफ़) मुड़ जाने का क्या बाएस हुआ
(ऐ रसूल तुम उनके जवाब में कहो(1) कि पूरब पश्चिम सब ख़ुदा ही का है जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ़ हिदायत करता है

(और जिस तरह तुम्हारे क़िब्ले के बारे में हिदायत की) इसी तरह तुमकों आदिल(2)  उम्मत बनाया ताकि और लोगों के मुकाबले में तुम गवाह बनों और रसूल (मुहम्मद स0) तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और (ऐ रसूल) जिस क़िब्ले की तरफ़ तुम पहले (सज्दा करते) थे हम ने उसको सिर्फ़ इस वजह से (क़िब्ला) करार दिया था कि (जब क़िब्ला बदला जाए) तो हम उन लोगों को जो रसूल की पैरवी करते हैं लोगों से अलग देख लें जो उलटे पाव फिरते हैं अगरचे (ये उलट फ़ेर) सिवा उन लोगों के जिन की ख़ुदा ने हिदायत(3) की है सब पर शाक़ ज़रुर है


और ख़ुदा ऐसा नहीं है कि तुम्हारे ईमान (नमाज़) को (जो बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ पढ़ चुके हो) बरबाद कर दे बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा ही शफ़ीक़ व मेहरबान है (ऐ रसूल क़िब्ला बदलने के वास्ते) बेशक तुम्हारा (बार बार) आसमान की तरफ़ मुंह करना हम देख रहें हैं तो हम ज़रुर तुमको ऐसे क़िब्ले की तरफ़ फ़ेर देंगे कि तुम नेहाल हो जाओ
(अच्छा तो) नमाज़(4) ही में) तुम मस्जिदे(5) मोहतरम (क़ाबा) की तरफ़ मुंह कर लो और (ऐ मुसलमानों) तुम जहां कहीं हो उसी तरफ़ अपना (अपना) मुंह कर लिया करो और जिन लोगों को किताब (तौरेत) दी गयी है वह बाख़ूबी जानते हैं कि ये तबदीले क़िब्ला बहुत बजा व दुरुस्त (हैं और) उसके परवरदिगार की तरफ़ से हैं और जो कुछ वो लोग करते हैं उससे ख़ुदा बेख़बर नहीं और अगर अहले किताब के सामने (दुनिया की) सारी दलीलें पेश कर देंगे तो भी वह तुम्हारे क़िब्ले को न मानेंगे और न तुम ही उनके क़िब्ले को मानने वाले हो और ख़ुद अहले क़िताब भी एक दूसरे के क़िब्ले को नहीं मानते
और जो इल्म (कुरआन) तुम्हारे पास आ चुका है इसके बाद भी अगर तुम उनकी ख़्वाहिश पर चले तो अलबत्ता तुम नाफ़रमान हो जाओगे, जिन लोगों को हमने किताब (तौरेत वग़ैरह) दी है वह जिस तरह अपने बेटों को पहचानते हैं (इसी तरह) वह उस पैग़म्बर को भी पहचानते हैं
और उनमें कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो दीदवो-दानिस्ता हक़ बात को छिपाते हैं (ऐ रसूल तबदील क़िब्ला) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ के वास्ते एक सिम्त है उसी की तरफ़ वह (नमाज़ में) अपना मुंह कर लेता है पस तुम (ऐ मुसलमानों इस झगड़े को छोड़ दो और) नेकियों में (उनसे) लपक के आगे बढ़ जाओ तुम जहां कहीं होंगे ख़ुदा तुमको (अपनी तरफ़)(2) ले आयेगा बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है
और (ऐ रसूल) तुम जहां से जाओ (हत्ता मक्के से) तो भी नमाज़ में तुम अपना मुंह मस्जिद मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर लिया करो और बेशक वह (ऩया क़िब्ला) तुम्हारे परवर दिगार की तरफ़ से हक़ है और तुम्हारे कामों से ख़ुदा ग़ाफ़िल नहीं है
और (ऐ रसूल) तुम जहां से जाओ (हत्ता के मक़्के से तो भी) तुम (नमाज़ में) अपना मुंह मस्जिदुल हराम की तरफ़ कर लिया करो
और (ऐ मुसलमानों) तुम (भी) जहां कहीं हुआ करो तो (नमाज़ में) अपना मुंह इसी (काबा) की तरफ़ कर लिया करो (बार-बार हुक्म देने का एक फ़ायदा ये है) ताकि लोगों का इल्ज़ाम तुम पर न आने पाए मगर उनमें से जो लोग नाहक़ हटधर्मी करते हैं (वह तो ज़रुर इल्ज़ाम देगे) तो तुम लोग उनसे डरो नहीं
और सिर्फ़ मुझसे डरो और (दूसरा फ़ायदा यह है) ताकि तुम पर अपनी नेमत(1) पूरी कर दूं और (तीसरा फ़ायदा यह है) ताकि तुम हिदायत पाओ (मुसलमानों यह वैसा ही है) जैसे हमने  तुम्ही में का एक रसूल भेजा जो तुमको हमारी आयतें पढ़ कर सुनाए और तुम्हारे नफ़्स को पाकीज़ा करे और तुम्हे किताब (कुरआन) और अक़्ल की बातें सिखाए
और तुम को वह बातें बताए जिन की तुम्हें (पहले से) ख़बर (भी) न थी पस तुम याद(2) रखो तो में (भी) तुम्हारा ज़िक्र (ख़ैर) किया करुंगा और मेरा शुक्रिया अदा करते रहो और नाशुक्री न करो
ऐ ईमानदारों (मुसीबत के वक़्त) सब्र और नमाज़ के ज़रिये से (ख़ुदा की) मदद मांगो बेशक ख़ुदा सब्र करने वालो ही का साथी है- और जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गए उन्हें कभी मुर्दा न कहना बल्कि (वह लोग) ज़िन्दा हैं मगर तुम (उन की ज़िन्दगी की हक़ीक़त का) कुछ भी शऊर नहीं रखते और हम(1) तुम्हें कुछ ख़ौफ़ और भूक से और मालों और जानों और फलों की कमी से ज़रुर आज़माएंगे
और (ऐ रसूल) ऐसे सब्र करने वालों को जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो वह (बेसाख़्त) बोल उठें हम तो ख़ुदा ही के हैं और हम उसी की तरफ़ लौट कर जाने वाले हैं ख़ुशख़बरी दे दो कि उन्ही लोगों पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से इनायतें हैं और रहमत और यही लोग हिदायत याफ़्ता हैं(2)
बेशक (कोह) सफ़ा और (कोह) मुदो ख़ुदा की निशानियों में से हैं- पस जो शख़्स (ख़ाना-ए-काअबा) का हज या उमरा करे उस पर उन दोनों के (दरमियान) तवाफ़ (आमद व रफ़्त) करने में कुछ गुनाह नही(3) (बल्कि सवाब है)
और जो शख़्स खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़द्रदाँ (और) वाक़िफ़कार है- बेशक जो लोग (हमारी) इन रौशन दलीलों और हिदायतों को जिन्हें हमने नाज़िल किया उसके बाद छिपातें हैं जब कि हम किताब (तौरेत) में लोगों के सामने साफ़ साफ़ बयान कर चुके तो यही लोग हैं जिन पर ख़ुदा (भी) लानत करता है और (और) लानत करने वाले भी लानत करते है
मगर जिन लोगों ने (हक़ छिपाने से) तौबा की और (अपनी ख़राबी की) इस्लाह कर ली और (जो किताबें ख़ुदा की हैं साफ़ साफ़ बयान कर दिया) पस उनकी तौबा में क़बूल करता हूं और मैं तो बड़ा तौबा का क़ुबूल करने वाला मेहरबान हूं बेशक जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया और कुफ़्र ही की हालत में मर गए उन्हीं पर ख़ुदा की और फरिश्तों की और तमाम लोगों की लानत है हमेशा इसी फटकार में रहेंगे न तो उनसे अज़ाब ही में तख़फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको (अज़ाब से) मोहलत दी जाएगी
और तुम्हारा माअबूद तो (वही) यक्ता ख़ुदा है उसके सिवा कोई माबूद नहीं जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है बेशक आसमान व ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के रद्दो बदल में और कश्तियों (जहाज़ों) में जो लोगों के मुनाफ़े की चीज़ें (माले तिजारत वग़ैरह) दरिया में ले कर चलते हैं
और पानी जो ख़ुदा ने आसमान से बरसाया फिर उससे ज़मीन को मुर्दा (बेकार) होने के बाद जला दिया (शादाब कर दिया) और उसमें(1) हर क़िस्म के जानवर फैला दिए और हवाओं के चलाने में और अब्र में जो आसमान व ज़मीन के दरमियान (ख़ुदा के हुक्म से) घिरा रहता है (इन सब बातों में) अक़्ल वालों के लिए (बड़ी बड़ी) निशानियां हैं
और बाज़ लोगं ऐसे भी हैं(1) जो ख़ुदा के सिवा (औरों को भी ख़ुदा का) मिस्ल व शरीक़ बनाते हैं (और) जैसी मुहब्बत ख़ुदा से रखनी चाहिए वैसी ही उनसे रखते हैं और जो लोग ईमानदार हैं वह उन से कहीं बढ़ कर ख़ुदा की उल्फ़त रखते हैं और काश ज़ालिमों को (उस वक्त) वह बात सूझती जो अज़ाब देखने के बाद सूझेगी के यक़ीनन हर तरह की कुवत ख़ुदा ही की है और ये के बेशक ख़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब वाला है
(वह क्या सख़्त वक़्त होगा) जब पेशवा(2) लोग अपने पैरोकारो से अपना पीछा छुड़ाऐंगे और (बचश्म खुद) अज़ाब को देखेंगे और उनके बाहमी ताअल्लुक़ात टूट जाएंगे और पैरोकार कहने लगेंगे अगर हमें कहीं फिर (दुनिया में) पलटना मिले तो हम भी उनसे (इसी तरह) अलग हो जाएं जिस तरह (ऐन वक्त पर) यह लोग हम से अलग हो गए
यूहीं ख़ुदा उनके आमाल को दिखाएगा जो उन्हें (सरतापा पास ही) पास दिखायी देंगे और फिर भला कब वह दोज़ख़ से निकल सकते हैं- ऐ लोगों जो कुछ ज़मीन में है उसमें से हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ से) ख़ाओ और शैतान के क़दम क़दम न चलो वह तो तुम्हारा ज़ाहिर बज़ाहिर दुश्मन है वह तो तुम्हें बुराई और बदकारी ही का हुक्म करेगा
और ये (चाहेगा) कि तुम बे जाने बूझे ख़ुदा पर बोहतान बांधो और जब उन से कहा जाता है कि जो हुक्म ख़ुदा की तरफ़ से नाज़िल हुआ उसको मानो तो कहते हैं (के नहीं) बल्कि हम तो इसी तरीक़े पर चलेंगे जिस पर हम ने अपने बाप दादाओं को पाया अगरचे उन के बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न राहे-रास्त ही पर चलते रहे हों
और जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उनकी मिस्ल तो उस शख्स की मिस्ल है जो ऐसे (जानवर) को पुकार के अपना हलक़ फ़ाड़े जो आवाज़ और पुकार के सिवा सुनता (समझता) ख़ाक न हो (ये लोग) बहरे गूंगे अंधे हैं कि ख़ाक़ नहीं समझते
ऐ ईमानदारों जो कुछ हम ने तुम्हें दिया है उस में से सुथरी चीज़े (शौक़ से) खाओ और अगर ख़ुदा ही की इबादत करते हो तो उसी का शुक्र करो उस ने तो तुम पर बस मुरदा(1) जानवर का  खून और सुवर का गोश्त(2) और वह जानवर जिस पर (वक्ते ज़िबह) ख़ुदा के सिवा और किसी का नाम लिया गया हो- हराम किया है पस जो शख़्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज़्यादती करने वाला न हो (और उनमें से कोई चीज़ ख़ा ले) तो उस पर गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
बेशक़ जो लोग इन बातों को जो ख़ुदा ने किताब में नाज़िल की है, छिपाते हैं और उस के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दीनी नफ़ा) ले लेते हैं ये लोग बस अंगारों से अपने पेट भरते हैं और क़यामत के दिन ख़ुदा उनसे बात तक तो करेगा नहीं और न उन्हें (गुनाहों से) पाक करेगा और उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब है, यही लोग वह हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख़शिश (ख़ुदा) के बदले अज़ाब- पस वह लोग दोज़ख़ की आग को क्योंकर बरदाश्त करेंगे
ये इसलिए कि ख़ुदा ने बरहक़ किताब नाज़िल की और बेशक जिन लोगों ने किताबे ख़ुदा में रद्दो बदल की वह लोग बड़े पल्ले दरजे की मुख़ालेफ़त में है नेकी कुछ यही थोड़ी सी ही है कि (नमाज़ में) अपने मुंह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो बल्कि नेकी तो की है जो ख़ुदा और रोजे आख़िरत और फ़रिश्तों और (ख़ुदा की) किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए
और उसकी उल्फ़त में अपना माल क़राबत दारों और यतीमों और मोंहतजों और परदेसियों और मागने वालों और लाँड़ी गुलाम (की गुलू ख़्लासी) में सर्फ़ करें और पाबंदी से नमाज़ पढ़ें और ज़कात देता रहे और जब कोई अहद किया तो अपने क़ौल के पूरे हैं और फुक़्र व फ़ाक़ा रंज व सख्ती और कुढ़न के वक़्त साबित क़दम रहे, यही लोग वह हैं जो (दाअवा-ए-ईमान में) सच्चे निकले और यहीं लोग परहेज़गार हैं
ऐ मोमिनों जो लोग (ना हक़) मार डाले जाएंगे उन के बदले में तुम जान के बदले जान(1) लेने का हुक्म दिया जाता है आज़ाद के बदले आज़ाद और गुलाम के बदले गुलाम और औरत के बदले औरत, पस जिस (क़ातिल) को उसके (ईमानी) भाई (तालिब क़सास) की तरफ़ से कुछ माफ़ कर दिया जाये तो उसे भी उसी के क़दम ब क़दम नेकी करना और ख़ुश मुआलगी से (खून बहा) कर देना चाहिए ये तुम्हारे परवर दिगार की तरफ़ से आसानी और मेहरबानी है फ़िर इसके बाद जो ज़्यादती करे तो इसके लिए दर्दनाक अज़ाब है
ऐ अक़लमंद व क़सास (के क़वाएद मुक़र्रर कर देने) में तुम्हारी ज़िन्दगी है (और इसी लिए जारी किया गया है) ताकि तुम (खूंरेज़ी से)(1) परहेज़ करो (मुसलमानों) तुमको हुक्म दिया जाता है कि जब तुम में से किसी के सामने मौत आ ख़ड़ी हो बशर्ते के वह कुछ माल छोड़ जाए तो वह मां बाप और कराबत दारों के लिए अच्छी वसीयत करे जो ख़ुदा से डरतें हैं उन पर यह एक हक़ है फिर जो सुन चुका उसके बाद उसे कुछ का कुछ कर दे तो उसका गुनाह उन्हीं लोगों (की गर्दन) पर है जो उसे बदल डालें, बेशक खुदा सब कुछ जानता और सुनता है
(हां अलबत्ता) जो शख़्स वसीयत करने वाले से बेजा तरफ़दारी या बेइंसाफी का ख़ौफ़ रखता हो और उन (वारिसों) में मुसला करा दे तो उस पर बदलने का कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है ऐ ईमानदारों रोज़ा रख़ना जिस तरह तुमसे पहले के लोगों पर फर्ज़ था उसी तरह तुम पर भी फर्ज़ किया गया ताकि तुम (इसकी वज़ह से) बहुत से गुनाहों से बचो (वह भी हमेशा नहीं बल्कि) गिन्ती के चन्द रोज़ उस पर भी (रोज़े के दिनों मे) जो शख़्स तुममे से बीमार(2) हो या सफ़र में हो तो और दिनों में (जितने क़ज़ा हुए हो) गिन के रख लें और जिन्हें(3) रोज़े रखने की कूवत है (और न रखें) तो उन पर इसका बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है और जो शख़्स अपनी खुशी से भलाई करें तो यह उसके लिए ज़्यादा बेहतर है और अगर तुम समझदार हो तो (समझ लो कि फ़िदया से) रोज़ा रखना तुम्हारे हक़ में (बहरहाल) अच्छा है
 (रोज़ों का) महीना रमज़ान है जिसमें कुरआन नाज़िल किया गया जो लोगों का रहनुमा हैं और उमसे रहनुमाई और (हक़ व बातिल) की तमीज़ की रोशन निशानिया हैं (मुसलमानों) तुम में से जो शख़्स बीमार हो या फ़िर सफ़र में हो तो और दिनों में (रोज़े की) गिनती पूरी करो ख़ुदा तुम्हारे साथ आसानी करना चाहता है और तुम्हारे साथ सख़्ती करनी नहीं चाहता और (शुमार का हुक्म इसलिए दिया है) ताकि तुम (रोज़ो की) गिनती पूरी करो और ताकि ख़ुदा ने जो तुमको राह पर लगा दिया है उस नेअमत पर उसकी बड़ाई करो(1)
और ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनों (ऐ रसूल) जब मेरे बन्दे मेरा हाल तुमसे पूछें तो (कह दो कि) मैं उनके पास ही हूं और जब मुझसे कोई दुआ मांगता है तो में हर दुआ करने वालों की दुआ (सुन लेता हूँ और जो मुनासिब हो तो) क़ुबूल करता हूं पस उन्हें चाहिए कि मेरा भी कहना मानें और मुझ पर ईमान लाएं ताकि वह सीधी राह पर आ जाये (मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते रोज़ों की रातों में अपनी बीवियों के पास(2) जाना हलाल कर दिया गया
औरतें (गोया) तुम्हारी चोली हैं और तुम (गोया) उन(1) के दामन हो, ख़ुदा ने देखा कि तुम (गुनाह करके) अपना नुक़सान करते थे (के आंख बचा के अपनी बीबी के पास चले जाते थे) तो उसने तुम्हारी तौबा क़ुबूल की और तुम्हारी ख़ता से दरगुज़ार किया पस तुम अब उन से हमबिस्तरी करो और (औलाद) से जो कुछ ख़ुदा ने तुम्हारे लिए (तक़दीर में) लिख दिया है उसे माँगो और खाओ और पियो यहां तक कि सुबह की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से (आसमान पर पूरब की तरफ़) तुम्हे साफ़ नज़र आने लगे फिर रात तक रोज़ा पूरा करो
और (हां) जब तुम मस्जिदों में एकक़ाफ़ करने बैठो तो उनसे (रात को भी हम बिस्तरी न करो) वह ख़ुदा की (मुईन की हुई) हदे हैं तो तुम उनके पास भी न जाना यूं खुल्मखुल्ला ख़ुदा अपने एहकाम लोगों के सामने बयान करता है ताकि वह लोग (ना फ़रमानी से) बचे और आपस मे एक दूसरे का माल नाहक़ न खाओ और (न) माल को (रिश्वत में) हुक्काम के यहां झोक दो ताकि लोगों के माल में से (जो) कुछ हाथ लगे नाहक़ ख़ुर्द-बुर्द कर जाओ हालाँकि तुम जानते हो
(ऐ रसूल) तुम से लोग चाँद के बारे में पूछते हैं (कि क्यों घटता बढ़ता है) तुम कह दो कि इससे लोगों के (दीनवी उमूर और) हज के औक़ात होते हैं और ये कोई(2) भली बात नहीं है कि घरों में पिछवाड़े से (फांद के) आओ बल्कि नेक़ी इस की है जो परहेज़गारी करें और घरों में (आना हो तो) उन के दरवाज़ों की तरफ़ से आओ और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम मुराद को पहुंचो
औऱ जो लोग तुम से लड़े तुम (भी) ख़ुदा की राह में उन से लड़ो) और ज़्यादती न करो (क्योंकि) ख़ुदा ज़्यादती करने वालों को हरग़िज़ दोस्त नहीं रखता और तुम उन (मुश्रिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो औऱ उन लोगों ने जहाँ (मक्के) से तुम्हे शहर बदर किया है- तुम भी उन्हे निकाल बाहर करो और फ़ित्ना परवाज़ी (शिर्क) खूं-रेजी से भी बढ़के है
और जब तक वह लोग (कुफ़्फ़ार) मस्जिदे हराम (काबा) के पास तुम से न लड़े तुम भी उन से इस जगह न लड़ो पस अगर वह तुम से लड़ें तो (बे खट्के) तुम भी उन को क़त्ल करो काफ़िरों की यही सज़ा है, फिर अगर वह लोग बाज़ रहे तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और उन से लड़े जाओ यहां तक कि फ़साद (बाक़ी) न रहे और सिर्फ़ ख़ुदा ही का दीन रह जाए फ़िर अगर वह लोग बाज़ रहे तो उन पर ज़्यादती न करो क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज़्यादती (अच्छी) नहीं हुरमत वाला महीना हुरमत वाले महीने के बराबर है (और कुछ महीने की ख़सूसियत नहीं) सब हुरमत(1) वाली चीज़ें एक दूसरे के बराबर हैं
पस जो शख़्स तुम पर ज़्यादती करे तो जैसी ज़्यादती उसने तुम पर की है वैसी ही ज़्यादती तुम भी उस पर करो और ख़ुदा से डरते रहो और ख़ूब समझ लो कि ख़ुदा परहेज़ागारों का साथी है और ख़ुदा की राह में खर्च करो और अपने हाथ (जान) हलाकत(2) में न डालो और नेकी करो बेशक ख़ुदा नेकी करने वलों को दोस्त रखता है
और सिर्फ़ ख़ुदा ही के वास्ते हज और उमरा को पूरा करो पस अगर तुम (बिमारी वगैरह की वजह से) मजबूर हो जाओ तो फिर जैसी कुरबानी मयस्सर आये (कर दो) और जब तक कुरबानी अपनी जगह न पहुंच जाये अपने सर न मुंडवाओ
फिर जब तुम में से कोई बीमार हो या उसके सर में कोई तक़लीफ़ हो तो (सर मुंडवने का बदला) रोज़े या ख़ैरात या कुरबानी है पस जब मुतमएयन रहो तो जो शख़्स तम्ततो(3) का उमरा करे तो उसको जो कुरबानी मयस्सर आये करनी होगी और जिससे कुरबानी नामुमकिन हो तो तीन रोज़े ज़मान-ए-हज में (रखने होंगे) और सात रोज़े जब तुम वापस आओ वह पूरी दहाई है
यह हुक्म उस शख़्स के वास्ते है जिसके लड़के-बाले मस्जिदे हराम (मक्का) के बाशिंदे न हों और खुदा से डरो औऱ समझ लो कि ख़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब वाला है, हज के महीने तो (अब सब को) मालूम हैं (शव्वाल, जीक़ाअदा, ज़िलहिज) पस जो शख़्स इन महीनों में अपने ऊपर हज लाज़िम कर ले तो (एहराम से आख़िर हज तक) न औरत के पास जाए और न कोई गुनाह करे और न झ़गड़े और नेकी का कोई सा काम भी कर दो तु ख़ुदा उसको खूब जानता है और (रास्ते के लिए) ज़ादेराह मुहैया करो और सब से बेहतर ज़ादेराह परहेज़ागारी है और
ऐ अक़्ल मंदों मुझ से डरते रहो इसमें कोई इल्ज़ाम नहीं है कि (हज के साथ) तुम अपने परवरदिगार के फज़्ल (नफ़अ तिजारत) की ख़्वाहिश करो और फिर जब तुम अरफ़ात(1) से चल खड़े हो तो मशउरूल हराम के पास ख़ुदा का ज़िक्र करो और उस की याद भी करो (तो) जिस तरह तुम्हें बताया है अगर तुम उसके पहले तो गुमराहों से थे
फिर जहां से चल खड़े हों वहीं से तुम भी चल खड़े हो और ख़ुदा से मग़फ़िरत की दोआ मांगो बेशकदा ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला औऱ मेहरबान है- फिर जब तुम अरकाने हज बजा ला चुको तो तुम इस(1) तरहां ज़क्रे ख़ुदा करो जिस तरह तुम अपने बाप दादाओं का ज़िक्र करते हो बल्कि इससे बढ़ के फिर बाज़ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि ऐ मेरे परवरदिगार हमको (जो देता है) दुनियां में दे दे, हालाँकि (फिर) आख़ेरत में इल का कुछ हिस्सा नहीं
और बाज़ बन्दे ऐसे हैं जो दुआ करते हैं कि ऐ मेरे पालने वाले मुझे दुनियां में नेअमत(2) दे और आख़रत में सवाब दे और दोज़ख़ की आग से बचा यही वह लोग हैं जिन के लिए अपनी कमाई का (हिस्सा) चैन है, और ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है
और (इन) गिनती के चन्द दिनों तक (तो) ख़ुदा का ज़िक्र(3) करो फ़िर जो शख़्स जल्दी कर बैठे और (मेनाअ) से दो ही दिन में चल खड़ा हो तो उस पर भी गुनाह नहीं और जो (तीसरे दिन तक) ठहरा रहे उस पर भी कुछ गुनाह नहीं (लेकिन यह रियायत) उसके वास्ते है जो परहेज़गार हो, और ख़ुदा से डरते रहो और यक़ीन जानो कि (एक दिन) तुम सब के सब उसकी तरफ़ क़बरों से उठाए जाओगे
(ऐ रसूल) बाज़ लोग (मुनाफ़कीन से ऐसे भी हैं) जिन की (चिकनी चुपड़ी) बातें (इस जरा सी) दीनवी ज़िनद्गी में तुम्हें बहुत भातीं हैं और वह अपनी दिली मुहब्बत पर ख़ुदा को गवाह मोक़र्रर करते हैं- हालाँकि वह (तुम्हारे) दुश्मनों में सबसे ज़्यादा झगड़ालूं हैं और जहां (तुम्हारी मुहब्बत से) मुंह फेरा तो इधर उधर दौड़ धूप करने लगा ताकि मुल्क में फ़साद के लाए और ज़ेराअत और मवेशी का सत्यानास करें औऱ ख़ुदा फ़साद को अच्छा नहीं समझता
और जब कहा जाता है कि ख़ुदा से डरो तो उसे ग़ौरुर गुनाह पर उभारता है पस ऐसे (कमबख्त) के लिए जहन्नुम (ही) काफी है और बहुत ही बुरा ठिकाना है
और लोगों(1) में से (खुदा के बंदे) कुछ ऐसे भी हैं जो ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने की गरज से अपनी जान तक बेच डालते हैं
और ख़ुदा ऐसे बंदों पर बड़ा ही शफ़कत वाला है ईमान वालों तुम सबके सब एक बार इस्लाम में (पूरी तरह) दाख़िल हो जाओ और शैतान वके क़दम व क़दम न चलो वो तुम्हारा यक़ीनी ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है फिर जब तुम्हारे पास रौशन दलीलें आ चुकी इसके बाद भी डगमगा गये तो (अच्छी तरह) समझ लो कि ख़ुदा (हर तरह) ग़ालिब औऱ तदबीर वाला है
क्या वे लोग इसी के मुनतज़िर हैं कि सफ़ेद अब्र के सायेबानों (की आड़) में (अज़ाब) ख़ुदा और (अज़ाब के) फरिश्ते उन पर आ ही जाये और सब झगड़े तक ही जाये हालाँकि (आख़िर) कुल उमूर ख़ुदा ही की तरफ रूजूअ किया जाऐंगे (ऐ रसूल) बनी इस्राईल से पूछो कि हमने उन को कैसी (कैसी) रोशन निशानियां दी और जब किसी शख़्स के पास ख़ुदा की नेअमत (किताब) आ चुकी इसके बाद भी इस को बदल डाले तो बेशक ख़ुदा सख़्त अज़ाब वाला है जिन(1) लोगों ने कुफ़्र इख्तियार किया उनके लिए दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी खूब अच्छी कर दिखाई गयी है औ ईमानदारों से मस्ख़रापन करते हैं हालाँकि क़यामत के दिन परहेज़गारों का दर्जा उनसे (कहीं) बढ़ चढ़ के होगा और ख़ुदा जिस को चाहता है बे हिसाब राज़ी अता फ़रमाता है
(पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे फिर (आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने (निजाता से) ख़ुशख़बरी देने वाले और (अज़ाब से) डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे (किताब ख़ुदा इसका) फ़ैसला कर दे-और (फ़िर अफ़सोस तो यह है कि) इस हुक्म से इख़्तेलाफ़ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिनको किताब दी गयी थी (और वह भी) जब उन के पास ख़ुदा के साफ़ साफ़ अहकाम आ चुके उसके बाद (और वह भी) आपस की शरारत से तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिसमें उन लोगों ने इख़्तेलाक़ डाल रखा था और ख़ुदा जिसको चाहे राहे रास्ते की हिदायत करता है
क्या(1) तुम यह ख़याल करते हो कि बेहिश्त में पहुंच ही जाओगे हालाँकि अबी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आई कि उन्हे तरह तरह की तकलीफ़ों (फ़ाक़ाकशी मोहताजी) औऱ बिमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़द्र झंझोड़े गये कि आख़िर (आजिज़ होके) पैग़म्बर औऱ ईमान वाले जो उनके साथ थे कहने लगे (देखिये) ख़ुदा की मदद कब (होती) है देखे (घबराओ नहीं) खुदा की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है
(ऐ रसूल) तुमसे लोग पुछते हैं कि (हम ख़ुदा की राह में) क्या खर्च करें (तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई जो कुछ खर्च करो तो (वह तुम्हारे) मां बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों औऱ परदेसियों का हक है औऱ तुम कोई सा नेक काम करो- ख़ुदा उसे ज़रुर जानता है (मुसलमान) तुम पर जेहाद फ़र्ज़ किया गया अगरचे तुम पर शाक़ ज़रुर है अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ (जेहाद) को न पसंद करो हालाँकि वह तुम्हारे हक़ में बेरहत हो और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ को पसंद करो हालाँकि वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो और ख़ुदा (तो) जानता ही है मगर तुम नहीं जातने हो
(ऐ रसूल) तुमसे(1) लोग हुरमत वाले महीनो की निसबत पूछते हैं कि (आया) जेहाद उनमें (जायज़) है तो तुम उन्हे जवाब दो कि उन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है और (वह भी याद रहे) कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इंकार और मस्जिदे हराम (क़ाबा) से (रोकना) और जो इसके अहल हैं उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (यह सब) ख़ुदा के नज़दीक इससे भी बढ़कर गुनाह है और फ़ितना परवाज़ी कुश्त व ख़ून से भी बढ़कर है और यह कुफ्फ़ार हमेशा तुमसे लड़ते ही चले जाएंगे यहां तक कि अगर इनका बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फेर दें
और तुम में जो शख़्स अपने दीन से फ़िरा औऱ कुफ़्र ही की हालत में मर गया तो ऐसो ही किया कराया सब कुछ दुनियां व आख़िरत (दोनों) में अकारत है और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह इसी में हमेशा रहेंगे- बेशक जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और ख़ुदा की राह में हिज़रत की और जेहाद किया यही लोग रहमते ख़ुदा के उम्मीदवार हैं और खुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
(ऐ रसूल) तुम से लोग शराब(1) और जुए के बारे में पूछते हैं तो तुम उन से कह दो कि यह दोनों ही बड़े गुनाह है और (कुछ) फ़ाऐदा भी है और उन के फ़ाएदे से उन का गुनाह बढ़ के है और तुम से लोग पूछते हैं कि ख़ुदा की राह में क्या खर्च करें तुम (उनसे) कह दो कि जो तुम्हारे ज़रुरत से बचे यूं ख़ुदा अपने एहकाम तुम से साफ़-साफ बयान करता है ताकि तुम दुनियां और आख़रत (के मामलात) में ग़ौर करो
और तुम से लोग यतीमों के बारे में पूछते हैं तुम (उन से) कह दो कि उनकी इस्लाह व (दुरुस्ती) बेहतर हैं और अगर तुम इन से मिल जुल कर रहो तो (कुछ हर्ज नहीं आख़िर) वह तुम्हारे भाई ही तो हैं और ख़ुदा फ़सादी को ख़ैर-ख़्वाह से (अलग खूब) जानता है और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम को मुसीबत में डाल देता बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त हिकमत वाला है
और (मुसलमानों) तुम मुश्रिक औरतों से जब तक ईमान न लाए निकाह न करो क्योंकि मुश्रिक औरतें तुम्हें (अपने हुस्न ज़माल में) कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हों मगर फिर भी ईमानदार औरत से ज़रुर अच्छी हैं और मुश्रकीन(2) जब तक ईमान न लाएं अपनी औरते उनके निकाह में न दो और मुश्रिक तुम्हें कैसा अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उन से ज़रुर अच्छा है ये (मुश्रिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ़ बुलाते हैं ये और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़शिश की तरफ़ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ़साफ़ बयान करता है ताकि ये लोग चेतें
(ऐ रसूल) तुम से लोग हज़(2) के बारे मे पूछतें हैं तो उन से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाएं उन के पास न जाओ पस जब वह पाक़ हो जाएं तो जिधर तुम्हें खुदां ने हुक्म दिया है उन के पास जाओ बे शक ख़ुदा तौबा करने वालों और सुथरे लोगों को पसन्द करता है तुम्हारी बीवियां (गोया) तुम्हारी खेती हैं अपनी आइन्दा की भलाई के वास्ते (आमाल सालेहा) पेशगी भेजो और ख़ुदा से डरते रहो और ये भी समझ रख़ो कि एक न एक दिन तुमको उसके सामने जाना है
और (ऐ रसूल) ईमानदारों को (निजात की) ख़ुशख़बरी देदे और (मुसलमानों) तुम अपनी क़स्मों(3) (के हीले) से ख़ुदा (के ना) को (लोगों के साथ) सलूक करने और ख़ुदा से डरने और लोगों के दरमियान सुलह करा देने का मानए न ठहराओ और ख़ुदा (सबकी) सुनता और (सब को) जानता है तुम्हारी लग़ो क़समों पर (जो बे इख़्तेयार ज़बान से निकल जाए) ख़ुदा तुम से गिरफ़्त नहीं करने का मगर उन क़समों पर ज़रुर तुम्हारी गिरफ़्त करेगा जो तुम ने क़सदन दिल से ख़ाई हों और ख़ुदा बख़्शने वाला बुर्दबार है जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने से क़सम खाए(1) उनके लिए चार महीने की मोहलत है पस अगर (वह अपनी क़सम से इस मुद्दत में बाज़ आ जाए)
और उन की तरफ़ तवज्जह करें तो बेशक ख़ुदा सबकी सुनता (और सब कुछ) जानता है और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको (तलाक़ के बाद) तीन(2) हज़ के (ख़त्म) हो जाने तक (निकाहे सानी से) रोकें और अगर (वह औरतें) ख़ुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लायी हैं तो उनके लिए यह जाएज़ नहीं है कि जो कुछ भी ख़ुदा ने उनके रहम (पेट) में पैदा किया है उसको छिपाएं और अगर उनके शौहर मेंल-जोल करना चाहें तो वह (मुद्दत मज़कूरा) में उनके पास बुला लेने के ज़्यादा हक़दार हैं और शरिअत के मुताबिक़ औरतों का (मर्दों पर) वहीं सब कुछ (हक़) है जो (मर्दों का) औरतों पर है हां अलबत्ता मर्दों को (फज़ीलत में) औरतों पर फ़ौक़ियात ज़रुर है और खुदा ज़बरदस्त हिक्मत वाला है
तलाक़ (रजई जिस के बाद) रुजु हो सकती है दो ही मर्तबा है उसके बाद या तो शरीअत के मुवाफ़िक़ रोक ही लेना चाहिए या हुस्ने सुलूक से (तीसरी दफ़ा) बिल्कुल रुख़सत औऱ तुम को यह जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उसकें से फिर कुछ वापस लो मगर जब दोलों को उस का ख़ौफ़ हो कि ख़ुदा ने जो हदे मुक़र्रर कर दी हैं उन को दोनों मियां बीवी क़ायम न रख़ सकेंगे फिर अगर तुम्हें (ऐ मुसलमानों) यह खोफ़ हो कि यह दोनों ख़ुदा की (मुक़र्रर) की हुई हदों पर क़ायम न रहेंगे तो अगर औरत मर्द को कुछ देर कर अपना पीछा छुडाए (खुलाअ कराए) तो इसमें उन दोनों पर कुछ गुनाह नहीं है यह ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदें हैं पस उन से आगे न बढ़ो
और जो ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदों से आगे बढ़ते हैं वहीं लोग तो ज़ालिम हैं, फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाएन)(1) दें तो इसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न करे उसके लिए हलाल नहीं हाँ(2) अगर दूसरा शौहर (निकाह के बाद) उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता इन मियां बीवी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है- अगर इन दोनों को यह गुमान हो कि ख़ुदा की हदों को क़ायम रख़ सकेंगे और यह ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें है जो समझ़दार लोगों के वास्ते साफ़ बयान करता है
और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उन्वान से उन को रोक लो या हुस्न सलूक से बिल्कुल रुख़सत कर दो और उन्हें तकलीफ़ पहुंचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज़्यादती करने लगो और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा और ख़ुदा के अहकाम को (कुछ) हसी हठ्ठा न समझो और खुदा ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और उनसे तुम्हारी नसीहत करता है और ख़ुदा से डरते रहो और समझ रखो कि ख़ुदा हर चीज़ को ज़रुर जानता है
औऱ जब तुम औरतों को तलाक़ दो औऱ वह अपनी मुद्दत (इद्दाह) पूरी कर लें तो उन्हें अपनी शौहरों के साथ निकाह करने से न रोके, जब आपस में दोनों मियां बीवी शरियत के मुवाफिक़ अच्छी तरह मिल जुल जाएं यह शी शख़्स को नसीहत की जाती हैं जो तुम में से ख़ुदा और रोज़े आख़रत पर ईमान ला चुका हो यही तुम्हारे हक़ में बड़ी पाकीज़ा औऱ सफाई की बात है और (उसकी खूबी) ख़ुदा खूब जानता है और तुम (वैसा) नहीं जानते हो
और (तलाक़ देने के बाद) जो शख़्स अपनी औलाद को पूरी मुद्दत तक दूध पिलवाला चाहे तो उसकी ख़ातिर मांए अपनी औलाद का दो बरस(1) दूध पिलाएं औऱ जिसका वह लड़का है (बाप) उस पर माओं का ख़ाना कपड़ा दस्तूर के मुनाबिक़ लाज़िम है किसी शख़्स को ज़हमत नहीं दी जाती मगर इसकी गुन्जाइश भर न मां का उसके बच्चे की वजह से नुक़सान गवारा किया जाए और न जिस का लड़का है (बाप) इसका (बल्कि दस्तूर के मुताबिक़ दिया जाए) और (अगर बाप न हो तो दूध पिलाने का हक़) उसी तरह वारिस पर लाज़िम है फिर अगर (दो बरस के क़ब्ल) मां बाप दोनों अपनी मर्ज़ी और मश्वरे से दूध बढ़ाई औलाद को (किसी अन्ना से) दूध पिलवाना चाहे तो (इसमें भी) तुम पर कुछ गुनाह नहीं बे बशर्तें कि जो तुमने दस्तूर के मुताबिक़ मोक़र्रर किया है उनके हवाले कर दो और ख़ुदा से डरते रहो
और जान रखो कि जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देखता है और तुम में से जो लोग बीविया छोड़ के मर जाए तो यह औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दत भर) अपने रोकें (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दा की) मुद्दत पूरी कर लें तो शरीअत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें(1) इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है और अगर तुम (इस ख़ौफ़ से कि शायद कोई दूसरा निकाह कर ले इन औरतों से शरअन निकाह की (क़ब्ले इद्दत) ख़्वास्त गारी कर दिया अपने दिलों में छिपाए रखो तो इसमे भी कुछ तुम पर इल्ज़ाम नहीं है (क्योंकि) ख़ुदा को मालूम है कि (तुम से सब्र न हो सकेगा और) इन औरतों से निकाह करने का ख़्याल आएगा लेकिन चोरी छिपे से (निकाह का) वादा न करना मगर ये कि उन से अच्छी बात कह गुज़रो (तो मोज़ाएक़ा नहीं) और जब तक मुक़र्रर मीआद गुज़र न जाए निकाह का क़सद भी न करना और समझ रखों कि जो कुछ तुम्हारे दिल में है ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है तो उससे डरते रहो और (यह भी) जान लो के ख़ुदा ब़डा बख़्शने वाला बुर्दबार है
और अगर तुमने अपनी बीवियों को हाथ तक न लगाया हो और न मेहर मोअयन किया हो उसके क़ब्ल ही तुम उन को तलाक़ दे दो (तो इसमें भी) तुम पर कुछ इलज़ाम नहीं है- हां उन औरतों के साथ (दस्तूर के मुताबिक़) मालदार पर अपनी हैसियत के मुवाफ़िक़ और गरीब पर अपनी हैसियत के मुवाफिक़ (कपड़े रुपये वगैरह से) कुछ सुलूक करना लाज़िम है नेकी करने वालों पर ये भी एक हक़ है और अगर तुम उन औरतों का महर तो मुअयन कर चुके हो मगर हाथ लगाने (ख़िलवत सहीहा) के क़ब्ल ही तलाक़ दे दो तो उन औरतों को महर मुअय्यन का आधा दे दो मगर ये कि ये औरतें खुद मआफ़ कर दे या उनका वली जिस के हाथ में उन के निकाह का इख़तेयार हो मुआफ़ कर दे (तब कुछ नहीं) और अगर तुम ही (सारा महर) बख्श दो तो परहेज़गारी से बहुत ही क़रीब है और आपस की बुजुर्गी को मत(1) भूलो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देख रहा है
और (मुसलमानों) तुम तमाम(2) नमाज़ों की और खूबसूरत बीच वाली(3) नमाज़ (सुबह या ज़ोहर या अस्र) की पाबंदी करो और खास खुदा ही के वास्ते (नमाज़) में क़ुनूत(4) पढ़ने वाले हो कर खड़े हो फ़िर अगर तुम ख़ौफ़ की हालत में हो (और पूरी नमाज़ न पढ़ सको) तो सवार या पैदल (जिस तरह बने पढ़ लो) फ़िर जब तुम्हें इतमीनान हो तो जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हे (अपने रसूल की मग़फिरत) इन बातों को सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे इस तरह ख़ुदा को याद करो औऱ तुम में से जो लोग अपनी बीवियों को छोड़ कर मर जाए उन पर अपनी बीवियों के हक़ में साल बर तक के नान व नफ़क़ा और (घर से) न निकलने की वसीयत करनी लाज़िम) है पस अगर औरतें खुद निकल खड़ी हो तो जाएज़ बातों (निकाह वग़ैरह) से कुछ अपने हक़ में करों उस का तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं और और ख़ुदा हर शै पर ग़ालिब और हिक्मत वाला है
और जिन औरतों को (तअय्युन(1) महर और हाथ लगाए बगैर) तलाक़ दे दी जाए उनके साथ (जोड़े रुपये वग़ैरह से) सूलूक करना लाज़िम है यह भी परहेज़गारों पर एक हक़ है इसी तरह ख़ुदा तुम लोगों (की हिदायत) के वास्ते अपने अहकाम साफ़ साफ़ बयान फ़रमाता है ताके तुम समझो (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (के हाल) पर नज़र नहीं की जो मौत के डर के मारे अपने घरों से निकल भागे औऱ वह हज़ारों(3) आदमी थे तो ख़ुदा ने उनसे फ़रमाया कि सब के सब मर जाओ (और वह मर गये) फ़िर ख़ुदा ने उन्हें ज़िन्दा किया-बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा मेहरबान है मगर अक्सर लोग उसका शुक्रिया नहीं करते
और (मुसलमानों) ख़ुदा की राह में जेहाद करो और जान रखो कि ख़ुदा ज़रुर (सब कुछ) सुनता (और) जानता है कोई जो ख़ुदा को क़र्ज़(1) हस्ना दे ताकि ख़ुदा इसके माल को उसके लिए कई गुना बढ़ा दे और ख़ुदा ही तंगदस्त करता है और वही कशायिश देता है और उसी की तरफ़ सब के सब लौटा दिये जायेगे
(ऐ रसूल) क्या तुमने मूसा के बाद बनी इस्राईल(1) के सरदारों (की हालत) पर नज़र नही की जब उन्होंने अपनी नबी (शमवेल) से कहा कि हमारे वास्ते एक बादशाह मुक़र्रर कीजिए ताकि हम राहे ख़ुदा में जेहाद करें (पैग़म्बर ने) फ़रमाया कहीं ऐसा तो न हो कि जब तुम पर जेहाद वाजिब किया जाए तो तुम न लड़ो- कहने लगे- जब हम अपने घरों और अपने बाल बच्चों से निकाले जा चुके तो (फ़िर) हमे कौन सा अर्ज़ बाक़ी है कि हम ख़ुदा की राह में जेहाद न करें फ़िर जब उन पर जेहाद वाजिब किया गया तो उनमें से चंद(2) आदमियों के सिवा सब के सब ने लड़ने से मुह फ़ेरा- और ख़ुदा तो ज़ालिमों को खूब जानता है
और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक ख़ुदा ने (तुम्हारी दरख़्वास्त के मुताबिक़) लालूत(3) को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया (तब) कहने लगे- इसकी हुकूमत हम पर क्यों कर हो सकती है हालाँकि सल्तनत के हक़दार(4) उससे से ज़्यादा तो हम हैं- क्योंकि उसे तो माल (के एतबार) से भी फ़ारिग़-उल-बाली (तक) नसीब नही (नबी ने) कहा ख़ुदा ने उसे तुम पर फ़ज़ीलत दी है (और माल में न सीही मगर) इल्म और जिस्म का फ़ैलाव तो उसी का ख़ुदा ने ज़्यादा फ़रमाया है और ख़ुदा अपना मुल्क जिसे चाहे दे औऱ ख़ुदा बड़ी गुंजाइश वाला औऱ वाक़िफ़ कार है
और उनके नबी ने उनसे (ये भी) कहा उसके (मिनजानिब अल्लाह) बादशाह होने की ये पहचान है कि तुम्हारे पास संदूक(1) आ जाएगा जिसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तस्कीन देह चीज़ें और उन तर्बुकात से बचा खुचा होगा जो मूसा व हारून की औलाद यादगार छोड़ गयी है औऱ उस संदूक को फ़रिश्ते उठाएं होंगे अगर तुम ईमान रखते हो तो बेशक उसमें तुम्हारे वास्ते पूरी निशानी है फिर जब तालूत लश्कर समेत (शहर एलिया से) रवाना हुआ तो (अपने साथियों से) कहा (देखो आगे) एक नहर (मिलेगी उस) से यक़ीनन ख़ुदा तुम्हारे (सब्र की) आज़माइश करेगा पस जो शख़्स उसका पानी पीएगा वह मुझसे (कुछ वास्ता) नहीं (रखता) औऱ जो उसको न चखेगा वह बेशक मुझ से होगा (हां) जो अपने हाथ से एक (आध चुल्लू) भर (के पी) ले (तो कुछ हर्ज नहीं) पस उन लोगों ने न माना और चन्द आदमियों के सिवा सबने उसका पानी पी लिया (ख़ैर) जब तालूत औऱ जो मोमीनीन उनके साथ थे(2) नहर से पार हो गए तो (ख़ालिस मोमिनों के सिवा) सब के सब कहने लगे कि हमने तो आज जालूत और उसकी फौज से लड़ने की सकत नहीं मगर वह लोग जिन को यक़ीन है कि (एक दिन) ख़ुदा को मुंह दिखाना है (बेधड़क) बोल उठे कि ऐसा बहुत हुआ है कि ख़ुदा के हुक्म से छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ालिब आ गयी है और ख़ुदा सब्र करने वालों का साथी है
(गरज) जब यह लोग जालूत औऱ उसकी फौज के मुक़ाबले को निकले तो दुआ की-ऐ मेरे परवरदिगार हमें कामिल सब्र अता फ़रमा और मैदान ए जंग में हमारे क़दम जमाए रख और हमें काफ़िरों पर फ़तह इनायत कर, फिर तो उन जालूत को क़त्ल किया और ख़ुदा ने उनकी सल्तनत व तदबीर तमद्दुन अता की और (इल्म व हुनर) जो चाहा उन्हें (गोया) घोल के पिला दिया और अगर ख़ुदा बाज़ लोगो के ज़रिए से बाज़ का दफ़ा (शर) न करता तो तमाम रुए ज़मीन में फसाद फैल जाता मगर ख़ुदा तो सारे जहान के लोगों पर फज्ल (व रहम) करता है (ऐ रसूल) यह ख़ुदा की सच्ची आयतें हैं जो हम तुमको ठीक-ठीक पढ़ के सुनाते हैं औऱ बेशक तुम ज़रुर रसूलों में से हो।

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