तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-3

कुरआन मजीद
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ये सब रसूल स0 (जो) हम ने (भेजे) उसमे से बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी उन में से बाज़ तो ऐसे हैं जिन से खुद खुदा ने बात की उन में से और बाज़ के (और तरह पर) दर्जे बुलन्द किये और मरयम के बेटे ईसा को (कैसे कैसे) रौशऩ मोजिज़े अता किये और रुहुल कुद्स (जिबराईल) के ज़रिये से उनकी मदद की और अगर ख़ुदा चाहता तो जो लोग उन (पैग़म्बरों) के बाद हुए वह अपने पास रौशन मोजिज़े आ चुकने पर आपस में न लड़ मरते मगर उनमें फूट पड़ गयी पस उनमें से बाज़ तो ईमान लाए और बाज़ काफ़िर हो गये
और अगर ख़ुदा चाहता तो ये लोग आपस में न लड़ते मगर ख़ुदा वही करता है जो चाहता है- ईमानदारों(2) जो कुछ हमने तुमको दिया है उस दिन के आने से पहले (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो जिसमें न तो (ख़रीदो) फ़रोख़्त होगी और न यारी (और न आशनाई) और न सिफ़ारिश (ही काम आएगी) और कुफ़्र करने वाले ही तो जुल्म ढ़ातें हैं ख़ुदा ही वह (ज़ात पाक) है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वह ) ज़िन्दा है (और) सारे जहान का संभालने वाला है उसको न ऊंघ(2) आती है न नींद जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) उसी का है
कौन ऐसा है जो बगैर उसकी इजाज़त के उसके पास (किसी की) सिफ़ारिश करे जो कुछ उनके सामने (मौजूद) है (वह) और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका) है (ख़ुदा सबको) जानता है और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह (जिसे) जितना चाहे (सिखा दे) उसकी कुर्सी(1) सब आसमानों और ज़मीनों को घेरे हुए है और उन दोनों (आसमान व ज़मीन) की निगहदाश्त उस पर (कुछ भी) गरां नहीं और वह (बड़ा) आलीशान बुजुर्ग (मर्तबा) है
दीन में किसी तरह की ज़बरदस्ती नहीं क्योंकि हिदायत(2) गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी तो जिस शख़्स ने झूठे ख़ुदाओं (बुतों) से इंकार किया और ख़ुदा ही पर ईमान लाया – तो उसने वह मज़बूत रस्सी पकड़ ली जो टूट ही नहीं सकती और ख़ुदा (सब कुछ) सुनता (और) जानता है-ख़ुदा उन लोगों का सरपरस्त है जो ईमान ला चुके कि उन्हें (गुमराही की) तारीक़ियों से निकाल कर (हिदायत की) रौशनी में लाता है और जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया उनके सरपरस्त शैतान हैं कि उनको (ईमान की) रोशनी से निकाल कर (कुफ़्र की) तारीकियों में डाल देते हैं यही लोग तो ज़हन्नुमी हैं (और) यही उस में हमेशा रहेंगे
(ऐ रसूल) क्या तुमने उस शख़्स (के हाल) पर नज़र नहीं की जो सिर्फ़ इस बिश्ते पर कि ख़ुदा ने उसे सल्तनत दी थी इब्राहीम से उनके परवर दिगार के बारे में उलझ पड़ा कि जब इब्राहीम ने (उससे) कहा के मेरा परवरदिगार तो वह है जो (लोगों को) जलाता और मारता है तो वह भी (शेख़ी में आकर) कहने लगा, मैं भी जलाता और मारता हूँ (तुम्हारे ख़ुदा ही में कौन सा कमाल है) इब्राहीम ने कहा (अच्छा) ख़ुदा तो अफ़ताब को पूरब से निकालता है भला तुम उसके पश्चिम से तो निकालो-इस पर वह काफ़िर हक्का बक्का होकर रह गया (मगर ईमान न लाया) और ख़ुदा ज़ालिमों(1) को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता
(ऐ रसूल तुमने) मसलन उस(3) (बन्दे के हाल) पर भी नज़र की जो एक गांव (से होकर) गुज़रा और वह ऐसा उजड़ा था कि अपनी छतों पर ढह के गिर पड़ा था- यह देख कर वह बन्दा (कहने लगा) अल्लाह अब इस गांव को (ऐसी) विरानी के बाद क्योंकर आबाद करेगा इस पर ख़ुदा ने उसको (मार डाला और) सौ बरस तक मुर्दा रखा फिर उसको जला उठाया (तब) पूछा तुम कितनी देर पड़े रहे अर्ज़ की एक दिन पड़ा रहा या एक दिन से भी कम-फ़रमाया नहीं तुम (इसी हालत में) सौ बरस पडे रहे-अब ज़रा अपने खाने पीने (की चीज़ों) को देखो के उबसी तक नहीं और ज़रा अपने गधे (सवारी) को तो देखो (के उसकी हड्डिया ढ़ेर पडी हैं और सब इस वास्ते किया है) ताकि लोगों के लिए तुम्हे कुदरत का नमूना बनाएंगे (अच्छा अब इस गधे की) हड्डियों की तरफ़ नज़र करो कि हम क्यों कर उन को जोड़ जाड़ ढांचा बनाते हैं फिर उन पर गोश्त चढ़ाते हैं पस जब यह उन पर ये ज़ाहिर हुआ तो बेसाख़्ता बोल उठे कि (अब) मैं यह यक़ीन कामिल जानता हूँ कि ख़ुदा हर चीज़ पर कादिर है
और (ऐ रसूल वह वाक़या भी याद करो) जब इब्राहीम ने (ख़ुदा से) दरख़्वास्त(1) की के ऐ मेरे परवरदिगार तू मुझे भी तो दिखा दे कि तू मुर्दों को क्योंकर ज़िन्दा करता है ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुम्हे (इसका) यक़ीन नहीं इब्राहीम ने अर्ज़ किया की (क्यों नहीं) यक़ीन तो है मगर आंख से देखना इसलिए चाहता हूं कि मेरे दिल को पूरा इत्मीनान हो जाए फ़रमाया (अच्छा अगर यह चाहते हो) तो चार परिन्दे(2) लो और उनको अपने पास मँगवालो (और टुकड़े टुकड़ कर डालो) फिर हर पहाड़ पर उनका एक एक टुकड़ा रख दो उसके बाद उनको बुलाओ (फिर देखो तो क्यों कर) वह सबके सब तुम्हारे पास दौड़े हुए आते हैं- और समझ रखो के खुदा बैशक ग़लिब और हिक्मत वाला है जो लोग अपना माल ख़ुदा की राह में खर्च करते हैं उन (के खर्च) की मिसाल उस दाने की सी मिस्ले हैं जिसकी सात बालियां निकले (और) हर बाली में सौ (सौ) दाने हों
और ख़ुदा जिसके लिए चाहता है दुगना कर देता है और ख़ुदा बड़ी गुंजाइश वाला (और हर चीज़ से) वाक़िफ़ है जो लोग अपने माल ख़ुदा की राह में खर्च करते हैं और फिर खर्च करने के बाद किसी तरह का एहसान नहीं जताते हैं और न (जिन पर एहसान किया है उन को) सताते हैं उनका अर्ज (व सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और न (आख़रत में) उन पर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मग़ीन होंगे(साएल को) नरमी से जवाब दे देना और (इसके इसरार पर न झिड़कना बल्कि) उस से दरगुज़र करना उस ख़ैरात से कहीं बेहतर है जिस के बाद (साएल को) ईज़ा पहुंचे और ख़ुदा हर शै से बेपरवाह (और) बुर्दबार है(1)
ऐ ईमानदारों अपनी ख़ैरात को अहसान जताने और (साएल को) ईज़ा देने की वजह से उस शख़्स की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोगों के दिखाने(2) के वास्ते खर्च करता है और ख़ुदा और रोज़े आख़रत पर ईमान नहीं रखता तो उसकी खैरात की मिसल उस चिकनी चट्टान की सी है जिस पर कुछ ख़ाक (पड़ी हुई) हो फिर उस पर ज़ोर शोर का (ब़डे बड़े क़तरों वाला) मीह बरसे और उसको (मिट्टी बहा के) चिकना चुपड़ा छोड़ जाए (उसी तरह) रियाकर अपनी उस ख़ैरात या उसके सवाब में से जो उन्होंने की है किसी चीज़ पर क़ब्ज़ा न पाएंगे (न दुनिया में न आख़रत में) और ख़ुदा काफ़िरों को हिदायत (करके मंज़िले मक़सूद तक) नहीं (पहुंचाया) करता
और जो लोग(3) ख़ुदा की खुशनूदी के लिए अपने दिली एतक़ाद से अपने माल को खर्च करते हैं उन की मिस्ल (हरे भरे) बाग़ की सी है जो किसी टीले या टीकरे पर लगा हुआ हो और उस पर ज़ोर शोर से पानी बरसा तो अपने दुखना फल लाया और अगर उस पर बड़े धड़ल्ले का पानी न भी बरसे तो उस के लिए हल्की हल्की फुहार (ही काफ़ी) है जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसकी देखभाल करता रहता है भला तुम में कोई भी उसको पसन्द करेगा कि उसके लिए ख़जूर और अंगूरों का एक बाग़ हो उसके नीचे नहरे जारी हों और उसके लिए उसमें तरह तरह के मेवें हो और (अब) इसको बुढ़ापे ने घेर लिया है और उसके (छोटे छोटे) नात्वां कमज़ोर बच्चे हैं कि एकबारगी उस बाग़ पर ऐसा बगुला आ पड़ा जिसमें आग (भरी) थी कि वह बाग़ जल भुन कर रह गया- ख़ुदा अपने अहकाम को तुम लोगों से यूँ साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम ग़ौर करो
ऐ ईमान वालों अपनी पाक कमाई और उन चीज़ों में से जो हमने तुम्हारे लिए ज़मीन में पैदा की हैं (ख़ुदा की राह में) देने का क़सद भी न करो हालाँकि अगर ऐसा माल कोई तुमको देना चाहे तो तुम (अपनी खुशी से) उसके लेने वाले नहीं मगर ये कि उस (के लेने) में (अमदन) (दीदाओ दानिस्ताँ) आंख चुराओ और जाने रहो कि ख़ुदा बेशक बेनियाज़ (और) सज़ावार हम्द है शैतान तुम को तंगदस्ती से डराता(1) है और बुरी बात (बुख़्ल) का तुम को हुक्म करता है और ख़ुदा तुमसे अपनी बख़शिश और फ़ज्ल (व करम) का वादा करता है और ख़ुदा बड़ी गुंजाइश वाला (और सब बातों का) जानने वाला है
वह जिसको चाहता है हिक्मत अता फ़रमाता है और जिसको (ख़ुदा की तरफ़ से) हिक्मत(1) अता की गयी-तो इसमें शक ही नहीं कि उसे खूबियों की बड़ी दौलत हाथ लगी और अक़लमंदों के सिवा कोई नसीहत मानता ही नहीं
तुम जो कुछ भी ख़र्च करो या कोई मन्नत मानो खुदा उसको ज़रूर जानता है, और (ये भी याद रखीये कि) ज़ालिमो का (जो ख़ुदा का हक़ मार कर औरों की नर्ज़ करते हैं क़यामत में) कोई मददगार न होगा अगर ख़ैरात को ज़ाहिर में दो तो ये (ज़ाहिर करके देना) भी अच्छा है और अगर इसको छुपाओ और हाजतमंदों को दो तो ये (छुपा कर) देना तुम्हारे हक़ में ज़्यादा बेहतर है और ऐसे देने को ख़ुदा तुम्हारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा कर देगा और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है
(ऐ रसूल) उन का मंज़िले मक़सूद तक पहुंचना तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं (तुम्हारा काम सिर्फ़ रास्ता दिखाना है) मगर हां ख़ुदा जिसको चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा दे और (लोगों) तुम जो कुछ नेक काम में खर्च करोगे तो अपने लिए और तो ख़ुदा की ख़ुशनूदी के सिवा और काम में खर्च करते ही नहीं हो- और जो कुछ तुम नेक काम में खर्च करोगे (क़यामत में) तुमको भरपूर वापस मिलेगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा (ये ख़ैरात) ख़ास उन हाजत मंदो के लिए है जो ख़ुदा की राह में घिर गये हों
(और) अगर रुए ज़मींन पर (जाना चाहे) तो चल नहीं सकते नावाक़िफ़ उन के सवाल न करने की वजह से अमीर समझते हैं (लेकिन) तू (ऐ मुख़ातिब अगर उनको देखें) तो उनकी सूरत(1) से ताड़ जाए कि (के ये मोहताज हैं अगरचे) लोगों से चिमट के सवाल नहीं करते और जो कुछ भी तुम नेक काम में खर्च करते हो ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है जो लोग(2) रात को दिन को छिपा के या दिखा के (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करते हैं तो उन के लिए उनका अज्र (व सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और (क़यामत में) न उन पर किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह आजूर्दा ख़ातिर होंगे
जो लोग(3) सूद खातें हैं वह (क़यामत में) खड़े न हो सकेंगे मगर उस शख़्स की तरह खड़े होंगे जिस को शैतान ने लिपट के मख़तूबूल हवास बना दिया हो ये इस वजह से कि वह इसके क़ायल हो गये कि जैसा बिकरी का मामला वैसा ही सूद का मामला- हालाँकि बिकरी को तो ख़ुदा ने हलाल किया सूद को हराम कर दिया बस जिस शख़्स के पास उसके परवरदिग़ार की तरफ़ से नसीहत (मुमानेअत) आई और वह बाज़ आ गया तो (इस हुक्म के नाज़िल होने से पहले) जो सूद ले चुका वह तो उसका हो चुका और उसका अम्र (मामला) ख़ुदा के हवाले है और जो मनाही के बाद फ़िर सूद ले (या बिकरी और सूद के मामले को यकसाँ बताए जाए) तो ऐसे ही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह हमेशा जहन्नुम ही रहेंगे(1) ख़ुदा सूद को मिटाता है और ख़ैरात को बढ़ाता है
और जितने नाशुक्र गुनाहगार हैं ख़ुदा उन्हें दोस्त नहीं रखता (हां) जिन लोगों का ईमान क़बूल किया और अच्छे अच्छे काम किए और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ीं और ज़कात दिये गये उन के लिए अलबत्ता अनका अज्र (सवाब) उनके परवरदिगार के पास है (क़यामत में) न तो उन पर किसी किस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह आजूर्दा ख़ातिर होंगे
ऐ ईमान वालों ख़ुदा से डरो और जो सूद लोगों के ज़िम्मे बाक़ी रह गया है अगर तुम सच्चे मोमिन हो दो छोड़ दो, और अगर तुमने ऐसा न किया तो ख़ुदा(2) और उसके रसूल से लड़ने के लिए तैयार रहो और अगर तुमने तौबा की है तो तुम्हारे लिए तुम्हारा असल माल है, न तुम किसी का ज़बर्दस्ती नुक़सान करो और न तुम पर ज़बर्दस्ती की जाएगी, और अगर कोई तंगदस्त (तुम्हारा कर्ज़दार हो) तुम उसे खुशहाली तक मोहलत दो और अगर तुम समझो तो तुम्हारे हक़ में ये ज़्यादा बेहतर है कि (असल भी) बख़्श दो और उस दिन से डरो जिस दिन तुम सब के सब ख़ुदा की तरफ़ लौटाए जाओगे फिर जो कुछ जिस शख़्स ने किया है उस पर पूरा पूरा बदला दिया जाएगा और उन की ज़रा भी हक़ तल्फ़ी न होगी
ऐ ईमानदारो जब एक मियाद मुक़र्रर तक के लिए आपस में क़र्ज़ का लेन देन करो तो उसे लिखा (पढ़ी) कर लिया करो और लिखने वाले को चाहिए के तुम्हारे दरमियान (तुम्हारे क़ौल व इक़रार को) इंसाफ़ से, (ठीक़ ठाक,) लिखे और लिखने वाले को लिखने से इंकार न करना चाहिए (बल्कि) जिस तरह ख़ुदा ने उसे (लिखना पढ़ना) सिखाया है (उसी तरह) उसको भी (बेउज़्र) लिख देना चाहिए और जिसके ज़िम्मे क़र्ज़ आयद होता है उसी को चाहिए के (तमस्सुक) की इबारत बताता जाए और ख़ुदा से जो उसका (सच्चा) पालने वाला है डरता है और (बताने में) और क़र्ज़ देने वाले के हकूक़ में कुछ कमी न करे और अगर क़र्ज़ लेने वाला कम अक़्ल या माज़ूर या ख़ुद (तमस्सुक का मतलब) लिखवा नही सकता हो तो उसका सरपरस्त ठीक इंसाफ़ से लिखवा दे
और अपने लोगों में से जिन लोगों को तुम गवाही के लिए पसन्द करो (कम से कम) दो मर्दों की गवाही कर लिया करो फिर अगर दो मर्द न हो तो (कम से कम) एक मर्द और दो औरतें (क्योंकि) उन दोनों में से अगर एक भूल जाएगी तो एक दूसरी को याद दिलाएगी, और जब गवाह हुक्काम(1) के सामनें (गवाही के लिए) बुलाए जाए तो हाज़िर होने से इंकार न करें और क़र्ज़ का मामला ख्वाह छोटी हो या बड़ा उसकी मियाद मोअय्यन तक की (दस्तावेज) लिखवाने में काहिली न करो, ख़ुदा के नज़दीक ये लिखा पढ़ी बहुत ही मुन्सिफ़ाना कारवाई है
और गवाही के लिए भी बहुत मज़बूती है और बहुत क़रीन (क़यास) है कि तुम आइन्दा किसी तरह के शक व शुबह में न पड़ो मगर जब नक़द सौदा हो, जो तुम लोग आपस में उलट फेऱ किया करते हो तो उसकी (दस्तावेज) के न लिखने में तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है (हां) और जब इस तरह की ख़रीद व फ़रोख़्त हो तो गवाह कर लिया करो और कातिब (दस्तावेज) और गवाह को(1) ज़रुर न पहुंचाया जाए, और अगर तुम ऐसा कर बैठे तो ये ज़रुर तुम्हारी शरारत है और खुदा से डरो ख़ुदा तुमको (मामले की सफाई) सिखाता है और वह हर चीज़ को खूब जानता है और अगर तुम सफ़र में हो और कोई लिखने वाला न मिले (और क़र्ज़ देना हो) तो रेहन बाक़ब्ज़ा रख लो और अगर तुम में से एक का एक को एतबार हो तो (यूं ही क़र्ज़ दे सकता है मगर) फिर जिस पर ऐतबार किया गया है (क़र्ज़ लेने वाला) उसको चाहिए कि क़र्ज़ देने वाले की अमानत (क़र्ज़) पूरी पूरी अदा कर दे और अपने पालने वाले ख़ुदा से डरे
(मुसलमानों) तुम गवाही को न छिपाओ और जो छिपाएगा तो बेशक उसका दिल गुनाहगार है और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उसको खूब जानता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है, और जो तुम्हारे दिलों में है ख़्वाह तुम उसको ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ ख़ुदा तुम से उसका हिसाब लेगा, फ़िर जिसको चाहे बख़्श दे(1) और जिस पर चाहे अज़ाब करे और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है
(हमारे) पैग़म्बर (मुहम्मद स0) जो कुछ उन पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और उनके (साथ) मोमनीन भी (सब के) सब ख़ुदा और उसके फ़रिश्तों और उस की किताबों औऱ उसके रसूलों पर ईमान लाए (और कहते हैं कि) हम ख़ुदा के पैग़म्बरों में से किसी में तफ़रीक़ नहीं करते, और कहने लगे ऐ हमारे परवरदिगार हमने (तेरा इरशाद) सुना और मान लिया, परवरदिगार हमें तेरी ही मग़फ़िरत (की ख़्वाहिश है) और तेरी ही तरफ़ लौट कर जाना है ख़ुदा किसी को उसकी ताक़त से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देता उसने अच्छा काम किया तो अपने नफ़ाअ के लिए और बुरा काम किया तो (उसका वबाल) उसी पर पड़ेगा,
ऐ हमारे परवरदिगार अगर हम भूल जाएँ या ग़ल्ती करें तो हमारी गिरफ्त न कर, ऐ हमारे परवरदिगार हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा हम से अगले लोगों पर(2) बोझ डाला था, और ऐ हमारे परवरदिगार इतना बोझ जिसके उठाने की हम में ताक़त न हो हमसे न उठवा और हमारे क़सूरों से दरगुज़र कर और हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हम पर रहम फ़रमा, तू ही हमारा मालिक है, तू ही काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर।
सुरे.आले इमरान
ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है।
अलिफ़ लाम मीम अल्लाह की वह (ख़ुदा) है जिसके सिवा कोई क़ाबिले इबादत नहीं है वही जिन्दा (और) सारे जहान को संभालने वाला है (ऐ रसूल) उसी ने तुम पर बरहक़ किताब नाज़िल की जो (आसमानी किताबे पहले से) इसके सामने मौजूद हैं उनकी तस्दीक़ करती हैं और उसी ने इससे पहले लोगों को हिदायत के वास्ते तौरैत व इंजील नाज़िल की, और हक़ व बातिल में तमीज़ देने वाली (किताबे कुरआन) नाज़िल की बेशक जिन लोगों ने ख़ुदा की आयतों को न माना उन के लिए सख़्त अज़ाब है, और ख़ुदा हर चीज़ पर ग़ालिब बदला लेने वाला है, बेशक ख़ुदा पर कोई चीज़ पोशीदा नहीं है (न) ज़मीन में न आसमान में
वही तो वह (ख़ुदा) है जो माँ के पेट में तुम्हारी सूरत जैसी चाहते है बनाता है, इसके सिवा कोई माबूद नहीं (वही हर चीज़ पर) ग़ालिब (और) दाना है (ऐ रसूल) वही वह (ख़ुदा) है जिसने तुम पर किताब नाज़िल की इस में की बाज़ आयतें तो मोहकम (बहुत सरीह) है वही (अमल करने के लिए) असल (बुनियादी) किताब है और कुछ (आयतें) मोताशाबेह (गोल गोल जिसके माअनी में से पहलू निकल सकते हैं) पस जिन लोगों के दिल में कजी (टेढ़ापन) है वह उन्ही आयतों के पीछे पड़े रहते हैं जो मोताशाबेह हैं ताकि फ़साद बरपा करें और इस ख़्याल से कि उन्हें अपने मतलब पर ढ़ाल लें, हालाँकि ख़ुदा और उन लोगों के सिवा जो इल्म में बड़े पाये(1) पर फ़ाएज़ हैं उन का असली मतलब कोई नहीं जानता, वह लोग (ये भी) कहते हैं कि हम इस पर ईमान लाए (ये) सब (मोहकम या मुताशाबेह) हमारे परवरदिगार की तरफ़ से हैं और अक़्ल वाले ही समझते हैं,
(और दुआ करते हैं) ऐ हमारे पालने वाले हमारे दिल को हिदायत करने के बाद डावांडोल न कर, और अपनी बारगाह से हमें रहमत अता फ़रमा इसमें तो शक ही नहीं कि तू बडा देने वाला है ऐ हमारे परवरदिगार। बेशक तू एक न एक दिन जिस के आने में कोई शुबहा नहीं लोगों को इकट्ठा करेगा (तो हम पर नज़रे इनायत रहे) बेशक ख़ुदा अपने वादे के ख़िलाफ़ नहीं करता, बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उन को ख़ुदा (के अज़ाब) से न उनके माल ही कुछ बचाऐंगे, न उनकी औलाद (कुछ काम आएगी) और यही लोग जहन्नुम के ईंधन होंगे (उन की भी) क़ौम फ़िरऔन और उनसे पहले वालों की सी हालत है कि उन लोगों ने हमारी आयतों को झुटलाया तो ख़ुदा ने उन्हें उनके गुनाहों के बदले में ले डाला और ख़ुदा सख़्त सज़ा देने वाला है
(ऐ रसूल) जिन लोगों ने कुफ़्र इख्यतेयार किया उनसे कह दो कि बहुत जल्द तुम (मुसलमानो के मुक़ाबले में) मग़लूब होंगे और जहन्नुम में इकट्ठा किए जाओगे और वह (क्या) बुरा ठिकाना है-बेशक तुम्हारे (समझने के) वास्ते उन दो (मुख़ालिफ़) गिरोह में (जो बद्र की लड़ाई मे) एक दूसरे के साथ गुथ गये (रसूल की सच्चाई की) बड़ी भारी निशानी है कि एक गिरोह ख़ुदा की राह में जेहाद करता था और दूसरा काफ़िरों का जिनको मुसलमान अपनी आँख से दोगुना देख रहे थे (मगर ख़ुदा ने क़लील ही को फ़तह दी) और ख़ुदा अपनी मदद से जिसको चाहता है ताईद करता है बेशक आँख वालों के वास्ते इस वाक़ये में बड़ी इबरत(1) है
(दुनिया में) लोगों को उन की मरगूब चीज़ें (मसलन) बीवियों और बेटियों और सोने चाँदी के बड़े बड़े लगे हुए ढ़ेरों और उम्दा उम्दा घोड़ों और मवेशियों और खेती के साथ उल्फ़त भी कर के दिखा दी गयी है ये सब दुनियांवी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ह) फ़ायदे हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो ख़ुदा ही के यहां है (ऐ रसूल) उन लोगों से कहो के क्या मैं तुमको इन सब चीज़ों से बेहतर चीज़ बना दूं (अच्छा सुनों) जिन लोगों ने परहेज़गारी इख़्तेयार की उन के लिए उनके परवरदिगार के यहाँ (बेहिश्त के) वह बाग़ात हैं जिन के नीचे नहरें जारी हैं (और वह) हमेशा उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ़ सुथरी बीवियां हैं और (सब से बढ़ कर) ख़ुदा की ख़ुशनूदी है और खुदा (अपने) उन बन्दों को ख़ूब देख रहा है जो (ये) दुआऐं मांगा करते हैं, कि ऐ हमारे पालने वाले हम तो (बे तआम्मुल) ईमान लाए हैं पस तू भी हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हमको दोज़ख़ के अज़ाब से बचा (यही लोग हैं) सब्र करने वाले और सच बोलने वाले और (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार और (ख़ुदा की राह में) खर्च करने वाले और पिछली रातों में (खुदा से तौबा) अस्तग़फ़ार करने वाले ज़रुर ख़ुदा और फ़रिश्तों और इल्म वालों ने गवाही दी है कि इसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले इबादत नहीं है और वह ख़ुदा अद्ल व इंसाफ के साथ (कारख़ान ए आलम का) सम्भालने वाला है इसके सिवा कोई माबूद नहीं (वही हर चीज़ पर) ग़ालिब (और) दाना है (सच्चा) दी तो ख़ुदा के नज़दीक यक़ीनने (बस यही) इस्लाम है
और अहले किताब ने जो (इस दीने हक़ से) इख़्तेलाफ़ किया तो महज़ आपस की शरारत और (असली अम्र) मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख़्स ने ख़ुदा की निशानियों से इंकार किया तो (वह समझ ले कि) यक़ीनन ख़ुदा (उससे) बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (ऐ रसूल) पस अगर ये लोग तुमसे (ख़्वाह म ख़्वाह) हुज्जत करें तो कह दो मैंने ख़ुदा के आगे अपने सरे तस्लीम(1) ख़म कर दिया और जो मेरे ताबेअ है (उन्होंने भी) और (ऐ रसूल) तुम एहले किताब और जाहिलों से पूछो कि क्या तुम भी इस्लाम लाए हो (या नहीं) पस अगर इस्लाम लाए हैं तो बे खटके राहे रास्ते पर आ गए और अगर मुंह फेरे तो (ऐ रसूल) बन्दों को देख रहा है बेशक जो लोग खुदा का आयतों से इंकार करते हैं और नाहक़ पैग़म्बरों को क़्तल करते हैं और उन(2) लोगों को (भी) क़त्ल करते हैं जो (उन्हें) इंसाफ़ करने का हुक्म करते हैं तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को दर्दनाक अज़ाब की खुशख़बरी दे दो यही वह (बदनसीब) लोग हैं जिनका सारा किया कराया दुनियां और (दोनों) में अकारत हो गया और कोई उनका मददगार नहीं
(ऐ रसूल) क्या तुम ने उन(1) (उल्मा ए यहूद) के हाल पर नज़र नहीं की जिनकी (फ़हम) किताब (तौरैत) का एक हिस्सा दिया गया था (अब) उन को किताब ख़ुदा की तरफ़ बुलाया जाता है ताकि वही (किताब) उन के झगड़े का फैसला कर दे इस पर भी उन में एक गिरोह मुंह फेर लेता है और यही लोग रुगरदानी करने वाले है ये इस वजह से है कि वह लोग कहते हैं कि हमें गिनती के चन्द दिनों के सिवा जहन्नुम की आग हरगिज़ छुएगी भी तो नहीं जो अफ़्तरा परवाज़ियां ये लोग बराबर करते आए हैं उसी ने उन्हें उनके दीन में भी धोका दिया है फिर उनकी क्या गत बनेगी जब हम उनको एक दिन (क़यामत) जिस के आने में कोई शुबहा नहीं इकट्ठा करेंगे और हर शख़्स को उसके किए का पूर पूरा बदला दिया जाएगा और उन की किसी तरह हक़ तल्फ़ी नहीं की जाएगी
(ऐ रसूल) तुम तो ये दुआ मांगो के ऐ ख़ुदा तमाम आलम के मालिक। तू ही जिसको चाहे सल्तनत दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले और तू ही जिसको चाहे इज़्ज़त दे और तू ही जिसे चाहे ज़िल्लत दे- हर तरह की भलाई तेरे ही हाथ में है बेशक तू ही हर चीज़ पर क़ादिर है तू ही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल कर देता है (तो रात) बढ़ जाती है और तू ही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है) और तू ही (अंडा नुत्फ़ा वगैरह) से जानदार को पैदा करता है और तू ही जानदार से बे जान (नुत्फ़ा वगैरह) निकालता है और तू ही जिनको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है मोमिनीन मोमिनीन को छोड़ के काफ़िरों को अपना सरपरस्त न बनाए(1) और जो ऐसा करेगा तो उससे ख़ुदा से कुछ सरोकार नहीं मगर (इस किस्म की तदबीर से) किसी तरह उन (के शर) से बचना(3) चाहो तो (ख़ैर) और ख़ुदा तुमको अपने ही से डराता है, और ख़ुदा ही की तरफ़ लौट के जाना है
(ऐ रसूल) तुम (इन लोगों से) कह दो के जो कुछ तुम्हारे दिलों में है तुम ख़्वाह उसे छिपाओं या ज़ाहिर करो (बहरहाल) ख़ुदा तो उसे जानता है- और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है वह (सब कुछ) जानता है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (और उस दिन को याद रखो) जिस दिन हर शख़्स जो कुछ उसने (दुनिया में) नेकी की है और जो कुछ बुराई की है उसको मौजूद पाएगा (और) आरजू करेगा कि काश उसकी बदी और उसके दरमियान में ज़मानए दराज़ (हाएल) हो जाता और ख़ुदा तुम को अपने ही से डराता है और ख़ुदा (अपने) बंदो पर बड़ा शफ़ीक़ (व मेहरबान भी) है ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि अगर तुम ख़ुदा को दोस्त रखते हो तो मेरी पैरवी(1) करो कि ख़ुदा (भी) तुम को दोस्त रखेगा और तुम को तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है
(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा और रसूल की फ़रमा बरदारी करो फ़िर अगर ये लोग इससे सरताबी करें तो (समझ लें कि) ख़ुदा काफ़िरों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता बेशक ख़ुदा ने आदम और नूह और ख़ानदान(2) इब्राहीम और ख़ानदान इमरान को सारे जहान से बरगुज़ीदा किया है बाज़ की औलाद(3) को बाज़ से और ख़ुदा (सबकी) सुनता (और सबकुछ) जानता है (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब इमरान(4) की बीवी (हन्ना) ने (ख़ुदा से) अर्ज़ की कि ऐ पालने वाले मेरे पेट में जो (बच्चा) है (इसको मैं दुनिया के काम से) आज़ाद करके तेरी नर्ज़ करती हूं तू मेरी तरफ़ से (ये नज़र) कुबूल फ़रमा तू बेशक बड़ा सुनने वाला (और) जानने वाला है फ़िर जब वह बेटी जन्म ले चुकीं तो (हैरत से) कहने लगी ऐ मेरे परवरदिगार (अब मैं क्या करूं) मैंने तो यह लड़की जन्मी है और लड़का लड़की के ऐसा (गया गुज़रा) नहीं होता हालाँकि इस कहने की ज़रुरत क्या थी जो वह जन्मी थी ख़ुदा इस (की शान व मर्तबा) से खूब वाक़िफ़ था और मैंने इसका नाम मरियम रखा और मैं उसको और उसकी(5) औलाद को शैतान मरदूद (के फ़रेब) से तेरी पनाह में देती हूं तो उनके परवरदिगार ने (उनकी नज़र) मरियम(1) को खुशी से कुबुल फ़रमा लिया और उसकी नशोनुमा अच्छी तरह की और ज़करया को उनका कफ़ील बनाया
जब किसी वक्त ज़करिया उनके पास (उनकी) इबादत के हुजरे में जाते तो मरयम के पास कुछ न कुछ ख़ाने को मौजूद पाते तो पूछते कि ऐ मरियम ये (ख़ाना) तुम्हारे पास कहां से (आया) तो मरियम ये कह देती थी कि ये ख़ुदा के यहां से (आया) है बेशक ख़ुदा जिसको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है (ये माजरा देखते ही) उसी वक़्त ज़करियां ने अपने परवरदिगार से दुआ की और अर्ज़ की ऐ मेरे पालने वाले तू मुझ को (भी) अपनी बारगाह से पाकीज़ा औलाद अता फ़रमा बेशक तू ही दुआ का सुनने वाला है अभी ज़करिया हुजरे में खड़े (ये) दुआ कर ही रहे थे कि फ़रिश्तों ने उनको आवाज़ दी कि ख़ुदा तुम को यहया (के पैदा होने) की खुशख़बरी देता है जो कलीमुल्लाह (ईसा) की तसदीक़ करेगा और (लोगों का) सरदार होगा और औरतों की तरफ रग़बत न करेगा और नेकूकार नबी होगा
ज़करया ने अर्ज़ की परवरदिगार मुझे(2) लड़का क्योकर हो सकता है हालाँकि मेरा बुढ़ापा पहुंचा और (इस पर) मेरी बीवी बांझ है (ख़ुदा ने) फ़रमाया इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है ज़करिया ने अर्ज़ की परवरदिगार मेरे (इत्मीनान के) लिए कोई निशानी मुक़र्रर फरमा, इरशाद हुआ तुम्हारी निशानी ये है कि तुम तीन दिन तक लोगों से बात न कर सकोगे मगर इशारे से और (इसके शुक्रये में) अपने परवदिगार की अक्सर याद करो, और रात को और सुबहा तड़के (हमारी) तस्बीह किया करो
और (वह वाक़या भी याद करो) जब फ़रिश्तों ने मरियम से कहा, ऐ मरियम तुमको ख़ुदा ने बरगुज़ीदह किया और (तमाम गुनाहों और बुराईयों से) पाक व साफ़ रखा और सारे दुनियाँ जहान की औरतों में से तुम को मुन्ताख़िब किया है (तू) ऐ मरियम (उसके शुक्ररिये में) अपने परवरदिगार की फ़रमा बरदारी करो और संजदह-और रोकूअ करने लगो के साथ वही के ज़रिए से भेजते हैं (ऐ रसूल) तुम तो इन सरपरस्ताने मरियम के पास मौजूद न थे- जब वह लोग अपना अपना क़लम (दरिया में बतौर कोरआ के) डाल रहे थे (देखें) कौन मरियम का कफ़ील(1) बनता है- और न तुम उस वक़्त उन के पास मौजूद थे जब वह लोग आपस में झगड़ रहे थे (वह वाक़या भी याद करो) जब फ़रिश्तों ने (मरियम से) कहा ऐ मरियम ख़ुदा तुमको सिर्फ़ अपने हुक्म (से एक लडके के पैदा होने) की ख़ुश ख़बरी देता है जिस का नाम ईसा मसीह इब्ने मरियम होगा (और) दुनियां और आख़रत (दोनों) में बा इज़्ज़त (आबरु) और ख़ुदा के मोक़र्रब बन्दों में होगा और (बचपन में) जब झूले में पड़ा होगा और बड़ी उम्र का होकर (दोनों हालतों में यक्साँ) लोगों से बातें करेगा और नेकूकारों में से होगा (यह सुन कर मरियम ताअज्जुब से) कहने लगीं परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर होगा हांलाकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं(1) इरशाद हुआ इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस उसे कह देता है कि हो जा तो वह हो जाता(2) है
और (ऐ मरियम) ख़ुदा इस को (तमाम) कुतबे आसमानी और अक़्ल की बातें (ख़ास कर) तौरैत व इंजील सिखा देगा- और बनी इस्राईल का रसूल (क़रार देगा और वह उन से यूं कहेगा कि) मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) ये निशानी लेकर आया हूं कि मैं गुन्धी हुई मिट्टी से एक परिन्दें की मूरत बनाऊँगा फिर उस पर (कुछ) दम करूंगा तो वह ख़ुदा के हुक्म से उड़ने लगेगा और मैं ख़ुदा के हुक्म से मादरज़ाद अंधे और कोढ़ी को अच्छा करूँगा और मुर्दों को ज़िन्दा करूँगा औऱ जो कुछ खाते हो और अपने घरों में जमा करते जो मैं (सब) तुम को बता दूंगा अगर तुम ईमानदार हो तो बेशक तुम्हारे लिए उन बातों में (मेरी नबूवत की) बड़ी निशानी हैं और तौरैत जो मेरे सामने मौजूद है मैं उस की तसदीक़ करता हैं और (मेरे आने की) एक गरज़ ये (भी) है कि जो चीज़ें तुम पर हराम हैं उनमें से बाज़ को (हुक्म ख़ुदा से) हलाल कर दो और मैं तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) निशानी लेकर तुम्हारे पास आया हूँ- पस तुम ख़ुदा से डरो और मेरी एताअत करो बेशक ख़ुदा ही मेरा और तुम्हारा परवदिगार है पस उसकी इबादत करो (क्योंकि) यही (निजात का) सीधा रास्ता है
फ़िर जब ईसा ने (इतनी बातों के बाद भी) उन का कुफ़्र (पर अड़े रहना) देखा तो (आख़िर) कहने लगे कौन ऐसा है जो ख़ुदा की तरफ़ हो कर मेरा मददगार बने (ये सुन कर) हवारियों ने(1) कहा हम ख़दा के तरफ़दार हैं और हम ख़ुदा पर ईमान लाए और (ईसा से कहा) आप गवाह रहिये कि हम फ़रमाबरदार हैं (और ख़ुदा की बारगाह में अरज् की कि) ऐ हमारे पालने वाले जो कुछ तू ने नाज़िल किया हम उसपर ईमान लाए और हम ने (तेरे) रसूल (ईसा) की पैरवी इख़्तेयार की पस तू हमें (अपने रसूल के) गवाहों के दफ़्तर में लिख ले और यहूदियों (ईसा से) मक्कारी की और ख़ुदा ने उसके दाफ़िय्ये की तदबीर(1) की और ख़ुदा सब से बेहतर तदबीर करने वाला है
(वह वक़्त भी याद करो) जब ईसा से ख़ुदा ने फ़रमाया ऐ ईसा में ज़रुर तुम्हारी ज़िन्दगी की मुद्दत पूरी करके तुमको अपनी तरफ उठा लूंगा- और काफ़िरों की (गन्दगी) से तुम को पाक व पाकीज़ा रखूंगा और जिन लोगों ने तुम्हारी(2) पैरवी की उनको क़यामत तक काफ़िरों पर ग़ालिब रखूंगा फ़िर तुम सबको मेरी तरफ़ लौट कर आना है तब (उस दिन) जिन बातों तुम (दुनिया) में झगड़े करते थे (उन का) तुम्हारे दरम्यान फ़ैसला कर दूंगा पस जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उन पर दुनिया और आख़रत (दोनों) में सख्त अज़ाब करुंगा-और उन का कोई मददगार न होगा-और जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किया तो ख़ुदा उनको उन का पूरा अज्र व सवाब देगा और ख़ुदा ज़ालिमों को दोस्त नहीं रखता
(ऐ रसूल) ये जो हम तुम्हारे सामने बयान कर रहे हैं (कुदरते ख़ुदा की) निशानियां और पुर अज़ हिकमत तज़किरे हैं खुदा के नज़दीक तो जैसे ईसा की हालत वैसी ही आदम की हालत कि उन को मिट्टी का पुतला(3) बना कर कहा कि हो जा पस (फ़ौरन ही) वह (इंसान) हो गया (ऐ रसूल ये है) हक़ बात (जो) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (बताई जाती) है तो तुम शक करने वालों में से न हो जाना
फ़िर जब तुम्हारे पास इल्म (कुरआन) आ चुका उसके बाद भी अगर तुम से कोई (नसरानी) ईसा के बारे में हुज्जत करे तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएँ तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलाएँ) और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों(1) को (बुलाएँ) और तुम अपनी जानों को इसके बाद हम सब मिल कर (ख़ुदा की बारगाह मे) गिड़गिड़ाएँ और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें (ऐ रसूल) यह सब यक़ीनीं सच्चे वाक़यात है- और ख़ुदा के सिवा कोई माबूद (क़ाबिले इबादत) नहीं और बेशक ख़ुदा ही (सब पर) ग़ालिब (और) हिकमत वाला है फ़िर अगर (इससे भी) मुंह फ़ेरे तो (कुछ परवाह नहीं) ख़ुदा फ़सादी लोगों को खूब जानता है
(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कहो कि ऐ अहले किताब तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरम्यान यक्साँ हैं कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी चीज़ को इसका शरीक न बनाएँ और ख़ुदा के सिवा हम में से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाएं फिर अगर (इस से भी) मुंह मोड़े तो कह दो कि तुम गवाह रहना हम (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार हैं
ऐ अहले किताब। तुम इब्राहीम(1) के बारे में (ख़्वाह म ख़्वाह) क्यों झगड़ते हो (कि कोई उन को नसरानी कहता है कोई यहूदी) हालाँकि तौरैत व इंजील (जिन से यहूद व निसारी की इब्तेदा है वह) तो उन के बाद ही नाज़िल हुई तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते । ऐसे लो (अरे) तुम वही (अहमक़) लोग तो हो जिस का तुम्हें कुछ इल्म था उसमें तो झगड़ा कर चुके (खैर) फिर अब उस में क्या (ख़्वाह म ख़्वाह) झगड़ने बैठे हो जिस की (सिरे से) तुम्हें कुछ ख़बर ही नहीं और (हकीक़त हाल तो) ख़ुदा जानता है
और तुम नहीं जानते इब्राहीम न तो यहूदी थे न नसरानी बल्कि निरे खरे हक़ परस्त थे (और) फ़रमाबरदार (बन्दे) और मुश्रिकों से भी न थे इब्राहीम से ज़्यादा खुसूसियत तो उन लोगों को थी जो ख़ास उन की पैरवी करते थे और इस पैग़म्बर और ईमानदारों को (भी) है और मोमिनो(2) का खुदा मालिक है (मुसलमानों) एहले किताब से एक गिरोह ने तो बहुत चाहा कि किसी तरह तुम को राहे रास्त से भटका दें हालाँकि वह (अपनी तदबीरों से तुमको तो नहीं मगर) अपने ही को भटकाते हैं और (इसको) समझते (भी) नहीं ऐ अहले किताब तुम ख़ुदा की आयतों से क्यों इंकार करते हो- हाँलाकि तुम खुद गवाह बन सके हो
ऐ अहले किताब तुम क्यों हक़ वह बातिल को गुडमुड करते हो हक़ को छिपाते हो हालाँकि तुम जानते हो और अहले किताब से एक गिरोह ने (अपने लोगों से) कहा कि मुसलमानों पर जो किताब नाज़िल हुई है उस पर सुबह सवेरे इमान लाओ और आख़िर वक़्त इंकार कर दिया करो शायद मुसलमान (इस तदबीर से अपनी दीन से) फ़िर जाएं और जो तुम्हारे दीन की पैरवी करे उसके सिवा किसी दूसरे की बात का एतबार न करो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बस ख़ुदा ही की हिदायत तो हिदायत है(1) (यहूदी बाहम ये भी कहते हैं) इसको भी (न मानना) कि जैसा (उम्दा दीन) तुम को दिया गया है वैसा किसी और को दिया जाए या तुम से कोई शख़्स ख़ुदा के यहां झगड़ा करे
(ऐ रसूल तुम उनसे) कह दो कि (ये क्या ख़ास ख़्याल है) फ़ज़्ल (व करम) ख़ुदा के हाथ में है वह जिसको चाहे दे- और ख़ुदा बड़ी गुंजाइश वाला (और हर शै को) जानता है जिस को चाहे अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है और ख़ुदा बड़ा फज़्ल व करम वाला है और अहले किताब कुछ ऐसे भी है कि अगर उन के पास रुपये के ढेर अमानत रख दो तो भी उसे (जब चाहो बेऐनेह) तुम्हारे हवाले कर देंगे और बाज़ ऐसे हैं कि अगर क अशरफ़ी भी अमानत रखो तो जब तक तुम बराबर उन (के सर) पर खड़े न रहोगे तुम्हे वापस न देंगे ये (बद मामलगी) इस वजह से है कि उनका तो ये क़ौल है कि (अरब के) ज़ाहिलों (का हक़ मार लेने) में हम पर कोई (इल्ज़ाम की) राह ही नहीं और वह जान बूझ कर ख़ुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते(1) हैं हां (अलबत्ता) जो शख़्स अपने अहद को पूरा करे और परहेज़गारी इख़्तेयार करे तो बेशक ख़ुदा परहेज़गारो को दोस्त रखता है
बेशक जो लोग अपने अहद और (क़सम) अक़साम (जो) ख़ुदा (से किया था उस) के बदले थोड़ा (दुनियांवीं) मुआवज़ा ले लेते हैं उन्हीं लोगों के वास्ते आख़ेरत में कुछ हिस्सा नहीं और क़यामत के दिन ख़ुदा उन से बात तक तो करेगा नहीं और न उन की तरफ़ नज़र (रहमत) ही करेगा और न उन को (गुनाहों की गन्दगी से) पाक करेगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है
और अहले किताब से बाज़ ऐसे ज़रुर हैं कि किताब (तौरैत) में अपनी ज़बानें(2) मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि यह समझो कि ये किताब का जुज़ नहीं-और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) ख़ुदा के यहां से (उतरा) है हालाँकि वह ख़ुदा के यहां से नहीं (उतरा) और जान बूझ कर ख़ुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं किसी आदमी को यह ज़ेबा(1) न था कि खुदा तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फ़िरे कि ख़ुदा को छोड़कर मेरे बंदे बन जाओ बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे ख़ुदा (दूसरों को) पढ़ाते रहते हो और तुम खुद भी सदा पढ़ते रहते हो- और वो तुमसे यह तो (कभी) न कहेगा कि फ़रिश्तों और पैग़म्बरों को ख़ुदा बनाओ भला (कहीं ऐसा हो सकता है कि) तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हे कुफ़्र दिलाओ)
जब ख़ुदा ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुम को जो कुछ किताब और हिकमत (वग़ैरह) दें उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास है उसकी तसदीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रुर उस पर ईमान लाना, और ज़रुर उसकी मदद करना (और) ख़ुदा न फ़रमाया क्या तुमने इक़रार कर लिया और उन बातों पर जो हमने तुम से इक़रार लिया तुम मेरे (अहद का) बोझ उठा लिया सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया इरशाद हुआ (अच्छा) तो तुम (आज के क़ौल व इक़रार के) आपस में एक दूसरे के गवाह रहना और तुम्हारे साथ में भी एक गवाह हूं फ़िर इसके बाद जो शख़्स (अपने कौल से) मुंह फेरे तो वही लोग बदचलन हैं तो क्या यह लोग ख़ुदा के दीन के सिवा (कोई और दीन) ढूंढ़ते हैं हालाँकि जो (फ़िरश्ते) आसमानों में है और जो (लोग) ज़मीन में हैं सब ने ख़ुशी खुशी या ज़बरदस्ती उसके सामने अपनी गर्दने डाल दीं है और (आख़िर सब) उसी की तरफ़ लौट कर जाएंगे
(ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि हम तो ख़ुदा पर ईमान लाएं और जो (किताब) हम पर नाज़िल हुई और जो (सहीफ़े) इब्राहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याकूब और औलादे याकूब पर नाजिल हुए और मूसा और ईसा और और दूसरे पैग़म्बरों को जो (जो किताब) उनके परवदिगार की तरफ़ से इनायत हुई (सब पर ईमान लाए) हम तो उनमें से किसी एक मे भी(1) फ़र्ख़ नहीं करते और हम तो ऐसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमा बरदार हैं और जो शख़्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख़्वाहिश करे-और उसका वह दीन हरगिज़ कूबूल ही न कियी जाएगा और वह आख़रत में सख़्त घाटे में रहेगा भला ख़ुदा ऐसे लोगों की क्योंकर हिदायत करेगा जो ईमान लाने के बाद फ़िर काफ़िर हो गये-हालाँकि वह इक़ारार कर चुके थे कि पैग़म्बर (आख़रुज़्ज़माँ) बरहक़ हैं और उनके पास वाज़ेह और रौशन मोजिज़े भी आ चुके थे और ख़ुदा ऐसे हटधर्मों करने वाले लोगों की हिदायत नहीं करता ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उन पर ख़ुदा और फ़रिश्तों और (दुनिया जहान के) सब लोगों की फ़िटकार है और वह हमेशा इसी फ़िटकार में रहेंगे न तो उनके अज़ाब ही में तख़फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको मोहलत ही दी जाएगी मगर (हां) जिन लोगों ने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी (ख़राबी) की इस्लाह कर ली तो अलबत्ता ख़ुदा बड़ा बक़्शने वाला(1) मेहरबान है
जो लोग अपने ईमान के बाद काफ़िर हो बैठे फ़िर (रोज़ व रोज़ अपना) कुफ़्र बढ़ाते चले गऐ तो उनकी तौबा हरगिज़ न कूबूल की जाएगी और यही लोग (पल्ले दर्जे के) गुमराह हैं बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और कुफ़्र की हालत में मर गये- तो अगर चे इतना सोना भी किसी की गुलूख़्लासी में दिया जाएगा कि ज़मीन भर जाए तो भी हरगिज़ न कूबूल किया जाएगा यही लोग हैं जिन के लिए दर्दनाक अज़ाब होगा- और उनका कोई मददगार (भी) न होगा।

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