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बुध, अप्रै

सूरए असरा की तफसीर

कुरआने मजीद की तफसीर
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सूरए असरा, पवित्र कुरआन का 17वां सूरा है और यह सूरा मक्के में उतरा। चूंकि इस सूरेए में पैग़म्बरे इस्लाम के मेराज अर्थात आसमान पर जाने की ओर संकेत किया गया है इसलिए इसे असरा कहा गया है और इसी तरह यह सूरा बनी इस्राईल की कहानी को बयान करता है इसलिए इसे बनी इस्राईल भी कहा जाता है।“ शुरू करता हूं उस ईश्वर के नाम से जो अत्यंत कृपाशील व दयावान है पवित्र है वह ईश्वर जो अपने बंदे को एक रात में मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक्सा ले गया जिसे हमने बरकतों वाला बनाया है, ताकि उसे अपनी आयतों व निशानियों को दिखायें। निःसंदेह वह देखने और सुनने वाला है”

 इस सूरे की आरंभिक आयतों में यह बयान किया गया है कि महान ईश्वर रात को पैग़म्बरे इस्लाम को मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक्सा ले गया और वहां से उन्हें आसमान की सैर कराई। उस काल में इंसान के पास जो संभावनाएं मौजूद थीं उसके दृष्टिगत यह यात्रा आम तरीक़े से संभव नहीं थी और पूरी तरह से चमत्कारिक थी।

पवित्र कुरआन और हदीसों के आधार पर मेराज वह घटना है जो निश्चित रूप से हुई है। इस प्रकार से कि महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने एक रात में पैग़म्बरे इस्लाम को मस्जिदुल हराम से जो मक्के में है मस्जिदुल अक्सा की सैर कराई और उन्हें वहां से आसमान पर ले गया। यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि मस्जिदुल हराम मक्के में है और मस्जिदुल अक्सा फिलिस्तीन में है। पैग़म्बरे इस्लाम उस रात को एक आसमान से दूसरे आसमान पर यहां तक कि वे सातवें आसमान पर गये वहां पर उन्होंने बहुत सारी चीज़ें देखीं कुछ इस्लामी इतिहास में आया है कि पैगम्बरे इस्लाम ने आसमान पर जाने से पहले मस्जिदुल अक्सा में नमाज़ पढ़ी। जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम ने मस्जिदुल अक्सा में नमाज़ पढ़ी उस समय वहां पर हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा और हज़रत ईसा जैसे बड़े पैग़म्बर मौजूद थे और सबने पैग़म्बरे इस्लाम की इमामत में नमाज़ पढ़ी। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने एक के बाद दूसरे यहां तक कि सातों आसमानों को देखा। स्वर्ग और स्वर्ग में रहने वालों के स्थान को देखा। इसी तरह पैगम्बरे इस्लाम ने नरक और नरक में रहने वालों के स्थान को देखा।

वहां पर महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित किया और उन्हें ईश्वर की ओर से महत्वपूर्ण मामलों की जानकारी दी गयी। आज जो मुसलमान पांच वक्त की नमाज़ पढ़ते हैं वह वहीं मेराज पर पैग़म्बरे इस्लाम पर अनिवार्य हुई और हज़रत जीब्राईल ने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ नमाज़ पढ़ी।

पैग़म्बरे इस्लाम ने इस यात्रा में महान ईश्वर की महानता की बहुत सी निशानियों को देखा, पैग़म्बरों से भेंट की और महान ईश्वर की बारगाह में उपासना की और उसी रात सुबह होने से पहले मक्का आ गये और सुबह की नमाज़ मक्के में पढ़ी। पैग़म्बरे इस्लाम जब मेराज पर गये थे तो पूरी तरह जाता रहे होशियार थे और उन लोगों के विपरीत जो यह कहते हैं कि यह पैग़म्बरे इस्लाम की आध्यात्मिक यात्रा थी। वास्तविकता यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम की यात्रा शारीरिक थी। यह यात्रा रात को इसलिए थी ताकि महान ईश्वर अपनी निशानियों को दिखाये और पैग़म्बरे इस्लाम की आत्मा और महान हो जाये। पैग़म्बरे इस्लाम की मेराज के बारे में इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं ईश्वर का कदापि कोई स्थान नहीं है और वह किसी समय में भी नहीं है वह किसी समय में सीमित नहीं है परंतु वह चाहता था कि आसमान में रहने वाले उसके फरिश्ते और दूसरे रहने वाले, पैग़म्बरे इस्लाम का सम्मान करें और वह अपनी महानता के चिन्हों को अपने पैग़म्बर को दिखाये ताकि लौटने के बाद वह लोगों से बतायें”

पैग़म्बरे इस्लाम मेराज से वापस आने के बाद बैतुल मुकद्दस गये और वहां से वह मक्का आये। रास्ते में उन्होंने कुरैश का व्यापारिक काफिला देखा। काफिले वालों का ऊंट गायब हो गया था और उसे वे ढूंढ रहे थे। पैग़म्बरे इस्लाम जब मक्का पहुंचे तो उन्होंने लोंगों को अपनी इस यात्रा और जो कुछ देखा था उसकी महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में बताया परंतु क़ुरैश ने अपनी पुरानी आदत के अनुसार पैगम्बरे इस्लाम को झुठलाना आरंभ कर दिया। पैग़म्बरे इस्लाम ने मक्का और बैतुल मुकद्दस के दौरान जो कुछ हुआ था उसे भी बयान किया। इसी तरह उन्होंने कुरैश के उस कारवां के बारे में भी बताया जिसका ऊंट लापता हो गया था। समय नहीं गुज़रा था कि कारवां का अगुवा अबू सुफयान आ गया और काफिले वालों ने उन समस्त बातों की पुष्टि की जो पैग़म्बरे इस्लाम ने बतायी थीं।

सूरे असरा की 2 से 8 तक कि आयतों में बनी इस्राईल के इतिहास से संबंधित कुछ बातों को बयान किया गया है। इस सूरे की चौथी से लेकर उसके बाद की आयतों में इस्राईल जाति के दो बार के फसाद व अत्याचार की ओर संकेत किया गया है। ईश्वर कहता है” हमने बनी इस्राईल को तौरात में घोषणा कर दी है कि जमीन में दोबारा भ्रष्टाचार और बुराई फैलेगी। इसके बाद की आयतों में इस्राईल जाति के उतार चढाव का बयान दो चरणों में किया जाता है। ईश्वर कहता है” फिर जब पहले वादे का समय आ गया तो हमने तुम्हारे मुकाबले में अपने एसे बंदों को भेजा जो युद्ध में बड़े बलशाली थे तो वे बस्तियों में घुसकर हर ओर फैल गये और यह वादा पूरा होना ही था। फिर हमने तुम्हारी बारी उन पर लौटाई कि उन पर तुम प्रभावी हो सको और धनों तथा पुत्रों से तुम्हारी सहायता की और तुम्हें बहु संख्यक लोगों का एक जत्था बनाया। यदि तुमने भलाई की तो अपने लिए ही भलाई की और यदि तुमने बुराई की तो अपने लिए ही की फिर जब दूसरे वादे का मौका आ गया तो हमने तुम्हारे मुकाबले में एसे प्रबल गुट को भेजा कि वे तुम्हारे चेहरों को बिगाड़ दें और मस्जिद में घुसे थे ताकि जिस चीज़ पर उनका ज़ोर चले उसे विनष्ट कर दें। इसके बावजूद प्रायश्चित का द्वार बंद नहीं है। संभव है कि तुम्हारा पालनहार तुम पर दया करे किन्तु यदि तुम फिर उसी पहले वाले रास्ते पर पलट गये तो हम भी पलटेंगे और हमने नरक को इंकार करने वालों का कारागार बना रखा है”

अलबत्ता इस बारे में अध्ययन कर्ताओं के मध्य मतभेद है कि कौन सी दो घटनाएं हैं जिनमं  बनी इस्राईल ने बुराई और अत्याचार किया है। बहरहाल जो भी हो इस जाति ने पूरे इतिहास में उतार चढाव देखे हैं। इस समय भी इसी अतिवादी जाति का एक गुट जिसे जायोनी कहते हैं, फिलिस्तीनिनयों के विरुद्ध नाना प्रकार का अत्याचार कर रह है। इस गुट ने फिलिस्तीनियों की मातृभूमि को हड़प लिया है और वह उनकी महिलाओं, बच्चों और पुरुषों की हत्या करता है। जायोनियों का यह अतिवादी गुट किसी भी कानून के प्रति कटिबद्ध नहीं है।

पवित्र कुरआन में जो बनी इस्राईल के अत्याचार और उसकी पराजय का वर्णन किया गया है उसका उद्देश्य केवल घटना को बयान करना नहीं है बल्कि यह दूसरों के लिए सीख है और लोग देख लें कि अत्याचारी को उसके अत्याचार का दंड मिल कर रहता है। इस आयत का आगामी पीढियों के लिए संदेश है कि अगर अच्छा कार्य करेंगे तो इज्जत के साथ सफलता प्राप्त करेंगे और अगर अत्याचार करेंगे तो बुरा परिणाम उनकी प्रतीक्षा में है। संक्षेप में यह कि जो जैसा करेगा वह वैसा पायेगा।

महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरये असरा की ११वीं आयत में इंसान के उतावलेपन की ओर संकेत करता और कहता है” मनुष्य उस प्रकार बुराई मांगता है जिस प्रकार उसकी प्रार्थना अच्छाई के लिए होना चाहिये।क्योंकि इंसान बहुत उतावला है” इस प्रकार इंसान बहुत जल्दबाज़ और उतावला है और जल्दबाज़ी इंसान के विचार एवं उसके अमल दोनों के लिए हानिकारक है। जो इंसान जल्दबाज़ होता है वह किसी मामले के समस्त पहलुओं पर ध्यान नहीं देता है। बहुत से अवसरों पर एसा होता है कि वह उतावलेपन के कारण ही अपनी वास्तविक भलाई को नहीं समझ पाता है और जिस चीज़ में भलाई है उसे छोड़कर बुराई कर बैठता है और बुरी व गलत चीज में ही अपना फायेदा समझता है। इसके बाद वाली आयत में रात और दिन की विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है। महान ईश्वर कहता है” हमने रात और दिन को दो निशानी बनाया है फिर हमने रात की निशानी को प्रकाशहीन बनाया और दिन की निशानी को हमने प्रकाशमान बनाया ताकि तुम अपने पालनहार का अनुग्रह ढूंढो ताकि तुम वर्षों की गणना और हिसाब कर सको। और हमने हर चीज़ को स्पष्ट रूप से बयान कर दिया है” वास्तव में रात दिन प्रकृति के सबसे आसान और सबकी समझ में आ जाने वाले कैलेंन्डर हैं। यह एसी वास्तविकता है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता कि पूरा ब्रह्मांड हिसाब किताब से चल रहा है और इस ब्रह्मांड की कोई भी वस्तु हिसाब किताब के बिना नहीं है। स्वाभाविक है कि इंसान भी इस ब्रह्मांड का एक छोटा सा अंश है और वह भी हिसाब किताब के बिना जीवन व्यतीत नहीं कर सकता।

 

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