सूरे सजदा पवित्र क़ुरआन के उन चार सूरों में है जिनकी विशेष आयत पढ़ते ही तुरंत सजदा करना अनिवार्य है। वह चार सूरे जिनकी विशेष आयत पढ़ने से सजदा अनिवार्य हो जाता है, इस प्रकार हैं, सूरे नज्म, सूरे फ़ुस्सेलत, सूरे सजदा और सूरे अलक़। ज़रूरी नहीं कि कोई ख़ुद पढ़े तभी उस पर सजदा अनिवार्य होगा बल्कि दूसरे को इन सूरों को पढ़ते हुए सुनने से भी सजदा अनिवार्य हो जाता है। लुग़त या शब्दकोश में सजदे का अर्थ होता है ईश्वर के सामने ख़ुद की औक़ात न समझना जबकि धार्मिक शिक्षा में सजदे का अर्थ है ईश्वर की महानता और उसकी प्रशंसा में अपने माथे को ज़मीन पर रखना। उपासना की नियत से सजदा सिर्फ़ ईश्वर के लिए विशेष है इसलिए किसी और के सामने सजदा करना, वजित है।
पवित्र क़ुरआन के शब्दों में पूरी सृष्टि में जो कुछ है वह अनन्य ईश्वर की प्रशंसा कर रही है। इन्सान भी सृष्टि की अन्य रचनाओं की तरह, स्वाभाविक रूप से एकेश्वरवादी है। महान ईश्वर की उपासना सच्चे मन से होनी चाहिए इसके लिए इंसान को चाहिए कि वह सजदा करते वक़्त ख़ुद को तुच्छ व हक़ीर समझे और यह भाव उसके अंदाज़ से ज़ाहिर होना चाहिए।
सजदा सूरा पवित्र क़ुरआन का 32वां सूरा है। यह सूरा मक्के में उतरा था और इसमें 30 आयते हैं। इसभी पंद्रहवीं आयत पढ़ने पर तुरंत सजदा अनिवार्य हो जाता है। इसलिए इस सूरे को सजदा कहा गया है।
इस सूरे में हर चीज़ से पहले पवित्र क़ुरआन की सत्यता की बात कही गयी है। उसके बाद ज़मीन और आसमान में ईश्वर की निशानियों, इंसान के मिट्टी से बनने और उसमें ईश्वरीय आत्मा के बारे में चर्चा है। सजदा सूरे में शुभसूचनाओं और डराने वाली बातों के ज़रिए विशेष उद्देश्य की प्राप्ति मद्देनज़र रखी गयी है और वह उद्देश्य सृष्टि के स्रोत और प्रलय के दिन पर विश्वास को सुदृढ़ करना, मन में ईश्वर से डर की भावना को मज़बूत करना तथा इंसान को उद्दंडता और सरकशी से रोकना है।
सजदा नामक सूरे की पहली और दूसरी आयत में ईश्वर कह रहा है, अलिफ़ लाम मीम इस किताब को पूरी सृष्टि के पालनहार ने उतारा है जिसमें कोई शक नहीं।
इन दो आयतों में ईश्वर पवित्र क़ुरआन के बारे में अनेकेश्वरवादियों और मिथ्याचारियों के शक व संदेह के जवाब में पवित्र क़ुरआन को सच्ची बात कह रहा है जो उसकी ओर से भेजा गया है जिसमें किसी प्रकार के शक की कोई गुंजाइश नहीं है। क़ुरआन सृष्टि की सच्चाई के बारे में संक्षेप में आश्चर्यजनक बातों का संकलन है। इसे उस पालनहार ने उतारा है कि जिसका वजूद सारी सच्चाइयों का स्रोत है। हक़ीक़त में ईश्वर की महानता को देखते हुए ज़रूरी है कि वह ऐसी ठोस किताब इंसानियत के मार्गदर्शन के लिए भेजे जो उसे हर प्रकार के ख़तरों से बचा ले।
सजदा सूरे की आयत नंबर चार में एकेश्वरवाद, अनेकेश्वरवाद, जमीन और आसमान की रचना जैसी महत्वपूर्ण इस्लामी आस्थाओं का उल्लेख है। इस आयत में ईश्वर कह रहा है, “ईश्वर वह हस्ती है जिसने आसमान और ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के बीच है, छह दिन में पैदा किया, फिर अर्श बनाने के लिए आमादा हुआ। तुम्हारे लिए उसके इलावा कोई मददगार और सिफ़ारिश करने वाला नहीं है, तो क्या तुम इससे भी नसीहत हासिल नहीं करते।”
पवित्र क़ुरआन में सृष्टि को बनाने के लिए छह दिन का उल्लेख क़ुरआन में कई स्थान पर हुआ है। यौम शब्द पवित्र क़ुरआन में कई स्थान पर आया है, ज़्यादा स्थानों पर उससे मतलब दिन रात नहीं है। यौम से मुराद दौर भी लिया जाता है। इस आयत का यूं भी मतलब निकल सकता है कि ईश्वर ने ज़मीन और आसमान को निरंतर छह दौर में पैदा किया है। मुमकिन है यह दौर लाखों या अरबों साल लंबा रहा हो।
इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि अभी तक विज्ञान सृष्टि के बारे में क़ुरआन के दृष्टिकोण के ख़िलाफ़ कोई दृष्टिकोण नहीं पेश कर सका है।
इंसान को पैदा करने और उसको बनाने के लिए जो पदार्थ इस्तेमाल हुए और परिपूर्णतः तक पहुंचने के लिए जिन चरणों को उसे तय करना है, वे विषय हैं जिनका 7 से 9 तक की आयतों में उल्लेख है। सजदा सूरे की इन आयतों में ईश्वर यह कह रहा है कि उसने हर चीज़ को बहुत ही अच्छी व्यवस्था के तहत बनाया है और इंसान को दी गयी कुछ नेमतों का उल्लेख किया है। पहले इस बिन्दु का उल्लेख करता है कि ईश्वर ने इंसान को गीली मिट्टी से बनाया। यह ईश्वर की महानता व शक्ति का पता देती है कि जिसने इंसान जैसी मख़लूक़ को इतनी सादी चीज़ से पैदा किया। इसके इलावा इंसान को यह बता रहा है कि वह कहां से आया है और कहां जाएगा।
सजदा सूरे की आयत नंबर आठ इंसान की नस्ल और सबसे पहले ईश्वरीय दूत हज़रत आदम की नस्ल के आगे बढ़ने के बारे में बताती है। आठवीं आयत में ईश्वर कह रहा है, उसके बाद ईश्वर ने उसकी नस्ल का आधार मूल्यहीन व तुच्छ पानी को क़रार दिया। यहां इस आयत का मतलब इंसान के नुतफ़े से है जो उसके पूरे वजूद का सार, उसकी नस्ल के आगे बढ़ने का स्रोत है।
नवीं आयत में मां के पेट में बच्चे के विभिन्न जटिल चरणों को तय करने और इसी प्रकार मिट्टी से पैदा करने के वक़्त उसने जो चरण तय किए हैं, उनका उल्लेख है। ईश्वर कह रहा है, उसके बाद इंसान के जिस्म को सुव्यवस्थित रूप से बनाया, अपनी आत्मा उसमें फूंकी, और तुम्हारे लिए, आखं, कान और दिल बनाए। मां के पेट में बच्चे के विभिन्न चरणों को तय करने की प्रक्रिया में पहले वह वनस्पति की तरह जान रखता है यानी उसे खाना मिलता है और वह विकास करता है किन्तु उसके अंदर किसी तरह की कोई हरकत नहीं होती जो पशुओं के जानदार होने की पहचान है। किन्तु मां के पेट में बच्चे का विकास ऐसे चरण में पहुंचता है कि वह हरकत करने लगता है और धीरे धीरे उसमें दूसरी इंद्रियां काम करने लगती हैं। इसी चरण को क़ुरआन आत्मा फूंकने की संज्ञा देता है। ऐसी मूल्यवान आत्मा जो ईश्वर की है उसके वजूद में दौड़ने लगती है। यह इंसान के महान स्थान को दर्शाती है। तो यह कहा जा सकता है कि चूंकि इंसान में ईश्वर की आत्मा डाली गयी है इसलिए आत्मिक दृष्टि से उसमें यह क्षमता पायी जाति है कि अपने वजूद को ईश्वरीय विशेषताओं से संवारे। आयत में इंसान के कान, आंख और दिल का उल्लेख किया गया है जो महसूस करने और सोच विचार के माध्यम हैं। उसके बाद ईश्वर कहता है कि मख़लूक़ को अपने रचयिता का शुक्रिया अदा करना चाहिए जबकि शुक्र अदा करने वाले कम लोग हैं।
सजदा सूरे की बारहवीं आयत इंसान के दो गुटों अच्छे और बुरे लोगों की स्थिति के बयान करने के साथ साथ प्रलय के दिन बुरे लोगों की दयनीय स्थिति का यूं उल्लेख करती है, “ और उस वक़्त तुम देखोगे कि अपराधी व पापी अपने पालनहार के सामने सिर झुकाए हुए कहेंगे कि जिस चीज़ का तूने वादा किया था उसे हमने देखा और सुना तो हमें दुनिया में दोबारा भेज दे ताकि भले कर्म करें। हमें विश्वास हासिल हो गया है।” हालांकि वे दुनिया में लौटने की अपील करेंगे लेकिन उनकी यह अपील क़ुबूल नहीं की जाएगी क्योंकि दुनिया की ओर लौटने का कोई रास्ता न होगा। और बुरा अंजाम उनकी घात में होगा। पवित्र क़ुरआन में अपराधियों की छवि को पेश करने के साथ मोमिनों की निशानियां भी बयान की जाती है। ईश्वर सच्चे मोमिन बंदे की निशानियों का उल्लेख करके सत्य के प्रति ईमान लाने वालों की रूचि को और बढ़ाता है।
सजदा सूरे की आयत नंबर 15 में मोमिन बंदों की कुछ विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। पंद्रहवीं आयत में ईश्वर कह रहा है, “सिर्फ़ वे लोग हमारी निशानियों पर ईमान लाते हैं जो हर वक़्त इन आयतों को याद रखते हैं, सजदा करते हैं, अपने पालनहार की प्रशंसा करते हैं और वे घमन्ड नहीं करते।”
जैसा कि इस बात का ज़िक्र कर चुके हैं कि सजदा सूरे की पंद्रहवीं आयत पढ़ने या सुनने से तुरंत सजदा अनिवार्य हो जाता है। बाद की आयत में मोमिन बंदों की कुछ और विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। वे रात में बिस्तर से दूर रहते हैं और अपने पालनहार को डर और उम्मीद के साथ पुकारते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करते हैं। कोई नहीं जानता कि उसकी आंखों की ठंडक के लिए कितना अहम बदला छिपा कर रखा गया है। ये उनके सद्कर्मों का बदला है। कितना अच्छा होगा कि ईश्वर की ओर से बेहेसाब बदला पाने के लिए सुबह जल्दी उठने को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें।
अंत में आपको यह भी बताते चलें कि सजदा सूरे के कुछ और नाम हैं। जैसे मज़ाजेअ, अलिफ़ लाम सजदा और अलिफ़ लाम मीम सजदा।
सूरे सजदा की तफसीर
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