इस चीज़ में कोई शक नहीं है, कि पृथ्वी के समस्त प्रकार मुसलमान प्रसिद्ध व पवित्र ग्रंथ कुरआनमजीद पर एक विशेष यक़ीन रख़ते है।
बेसत शुरु होने से पहले विभिन्न क़ौम और दलो के अन्दर एक फ़साहत व वलाग़त का एक विशेश चर्चा था, या विशेश स्थान था और यह इस स्थान तक पहूच गई थी की अरब के समस्त प्रकार फ़साहत व वलाग़त वालों ने कुरआनमजीद की फ़साहत व वलाग़त की ताईद व तौसिक़ की। और यह कहने पर असहाय हो गये की क़ुरआन मजीद की यह दिलनशीन कथाएं क़ाबिले क़यास नहीं है। कुरआने मजीद की ज़ाहेरी न कविता है और न उसकी क़ाफिया हमारे जैसा कविता के उदाहरण है। बल्कि वह लोग समझते थे कि कुरआनमजीद की कथाएं वेनज़ीर है, अज्ञान व अनपढ़ अरब मुशरेकीन, कुरआने मजीद को रसूल (स0) के तरफ़ जादु कहा करते थे ताकि लोगों को उन से पथ भ्रष्ट किया जाए ताकि उन के चारों तरफ़ लोग भीड न लगाए, लेकिन इन समस्त प्रकार बेहूदा तबलीग़ करने के बावजूद पैग़म्बरे अकरम (स0) की अमंत्रण व कुराने मजीद प्रसिद्ध व मारुफ़ होता गया और दिन बा दिन उसके अनुशरणकारी में उन्नती होने लगी,यहा तक के जो लोग पैग़म्बरे अकरम (स0) का अनुशरण नहीं करते थे वह लोग भी कुरआने मजीद के दिलनशीन शब्दो की ध्वनी को सूनने के लिए पैग़म्बरे अकरम (स0) के घर के चारों तरफ़ छिप छिप कर पवित्र कुरआने पाक की ध्वनी को सुना करते थे।
कुरआन मे परिवर्तन नहीं हुआ
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