पेश गुफ्त
“बहत्तर तारे” से मुराद आसमाने वफ़ा के वह बहत्तर सितारे यानी जाँ निसाराने हुसैन हैं जो आफ़ताबे इमामत इमामे हुसैन (अलै0) और अट्ठारह बनी हाशिम के हमराह जमीने कर्बला पर मिटटी में मिला दिए गए ।उन्ही सय्यादुश शोहदा हजरत इमाम हुस्सैन (अलै0) और अफज़लुल शोहदा हजरते अब्बास आदि की तरह यौमे आशूरा शहीद किया गया उनके सर काटे गए और उनकी लाशों पर घोड़े दौडाए गए ।‘कामकाम’ और’जललुलौअन’में है की कर्बला में जैनुल आबदीन इमामे मोo बाकिर हसन मसना और मुर्रक्का इब्ने कमामा असदी और एकबा इब्ने समआन गुलाम जनाबे रबाब के अलावा कोई नहीं बचा इन् शोहदा की ज़िन्दगी बज़ाहिर ख़तम हो गई लेकिन अल्लाह रे अफ्जाले खुदावन्दी इनका खून खाके शिफा में मिलकर सिज्दागाहे खलेइक बना उन्हें हयाते जावेदानी अता हुई और उनके तद्फीन में शिरकत के लिए हज़रात सरवरे कायनात (स०) जन्नत से तशरीफ़ लाए .
मैंने इस किताब में कर्बला के शोहदा का ज़िक्र किया है यानि सय्यादुश शोहदा हज़रत इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम के १८ बनी हाशिम और उनके बहत्तर जा निसारो के मुख़्तसर हालात कलमबंद किये है और तरतीबे शहादत के ऐत्बार व लिहाज़ से असहाब अइज्जा फिर हज़रत स्य्यादुश शोहदा का ज़िक्र किया गया है.
सय्यद नजमुल हसन करारवी
कूचा –ऐ – मौलाना साहब पेशावर सिटी
दीबाचा
जंगे कर्बला में हुसैनी वफादारो की जां-निसारी
मुजाहिद फी सबिलिल्लाह ऐसे कम नज़र आए .
क़यामत हो जिन्हें एक –एक घडी शोके शहादत में.
हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स०) के इन्तेकाल से पहले के वाक्यात अमीरुल मोमिनीन (अलै०) के हालत और इमाम हुसैन (अलै०)
की बेबसी और उनकी शाहदत इमाम हुसैन अपनी आँखों से देख चुके थे. यहीं वजह थी की भाई के बाद आप ने ख़ामोशी और गोशा नाशिनी इख्तियार कर ली थी .उमुरे सल्तनत में दखल देना तो दर किनार मामूली –मामूली मामलात में भी आपको दिलचस्पी लेने से ऐतराज़ था . अमीर माविया (ला०)जब एक हज़ार लश्कर लेकर यज़ीद की सल्तनत की राह हमवार करने के लिए निकला था और मदीने पहुच कर इमाम हुसैन (अ०) से मिला था तो आपने सवाले बैअत के जवाब में फ़रमाया था की मुझे यज़ीद (ल०) से कोई दिलचस्पी नहीं है और साथ ही इस के किरदार का हवाला भी दिया .
रजब सन ६० हिजरी में जब माविया ने इन्तेकाल किया और यज़ीद लईन तखत नशीं हुआ तो उसने सबसे पहले इमाम हुसैन अलै०से बैअत लेने की कोशिश की लेकिन दुनिया –ए-इस्लाम की वह सब से अज़ीम शख्सियत जिसने उसके बाप की बैअत न की हो भला वह किरदार बेटे की बैअत क्या करता आखिर आप ने वलीद इब्ने एकबा वाली –ऐ – मदीना के इस कहने का जवाब मुझे यज़ीद ने हुकुम दिया है की मै आपसे बैअत ले लू नफी में दे दिया और फ़रमाया की मेरे लिए यज़ीद की बैअत का सवाल ही पैदा नहीं होता . आप के बाद आप के कमाले तद्दबुर की वजह से तरके वतन का फैसला कर लिया और आप २८ रजब को अपने बाल बचचो समेत मदीने से रवाना हो कर मक्का –ए – मोअज्ज्मा जा पहुचे . पुरे चार माह और चन्द दिन मक्के में कयाम पंजीर रहने के बाद उसे मदीने की तरफ मुकामे खोफ जान कर तःह्फुज़े हुर्मते काबा के पेशे नज़र अहले कूफा की दावत के सहारे ८ ज़िल्हिज्जा को वहां से निकल खड़े हुए .रस्ते में बमकांम शराफ आप की पेश्कद्मी को रोकने नेज़ आपकी गिरफ़्तारी और नज़रबंदी के लिए एक हज़ार लश्कर आ गया .जिसका सिपहसलार हुर्र अलै० इब्ने यज़ीद रायाही था .
हुर्र का लश्कर आप को घेरे में लिए हुए जा रहा था की २ मोहरररम को कर्बला में वरूद हुआ आपने हुर्र की मंशा के मुताबिक नहर से काफी दूर अपने खेमे नसब कराये ३ मुहर्रम से लश्कर की आमद्का ताँता बंधा और योमे आशुरा तक हजारो की फ़ौज आ गई सातवी से पानी बंद हुआ और दसवी को अर्जे नहूसत के खुन्खारो की वजह से आसमाने वफ़ा के “बह्हत्र तारे” और चरखे रिसालत के कई शम्स व कमर और माह पारे ख़ाक में मिल गए .
मुआर्रखींन का बयान है की जब सुबहे आशुर नुमाया हुई तो सरकारे सय्यादुशशोहदा अपने असहाब के साथ नमाज़ के लिए आमदा हुए पानी नहीं था तयामुम किया इमाम हुसैन एक खास मोविज्ज़ींन रखते थे जिसका नाम हज्जाज इब्ने मस्रूक था जवान शोहदा में से एक है हमेशा वही आजान कहा करते थे लेकिन आज हज़रात अली ने अपने फरजंद अरजुमंद शाहिबे पैगम्बर हज़रत अली अकबर ने अज़ान कही हज़रत ने नमाज़ अदा की तमाम असहाब ने हुजुर की एक्तेदा में नमाज़ पढ़ी.
इमाम हुसैन ने नमाज़ के बाद असहाब और अहलेबैत के मर्दों से खिताब फ़रमाया (अश अहद अन नक्तल कुल्लोना इल्ला अली) मै गवाही देता हु की अली जैनुल आबदीन के अलावा हम सब आज शहीद हो जाएँगे जैसे ही इन् हजरात ने सरकार सयादुश्ह शोहदा से इस खुशखबरी को सुना तमाम ने मस्सर्रत और ख़ुशी का इज़हार किया यहाँ तक की इनमे से बाज़ इसी ख़ुशी में एक दुसरे से मजाक करने लगे इन् में से एक ने कहा यह मजाक का वक़त नहीं दुसरे ने जवाब दिया खुदा की कसम मैंने ज़िन्दगी भर कभी मजाक नहीं किया और न मै मजाक को पसंद करता हु लेकिन आज तो इन्तेहाई ख़ुशी का दिन है इनकी रिफात पैर गौर कीजिये ।
दूसरी तरफ तलुए सुबह से पहले उम्र इब्ने सअद लइन ने लश्कर की साफ आरई की । बहरुल मसऐब की रिवायत के मुताबिक लश्कर की तादाद एक लाख पच्चीस हज़ार और एक कॉल के मुताबिक एक लाख और दुसरे कॉल के मुताबिक अस्सी हज़ार सवार और चालीस हज़ार पयादे थे । इन् इख्तिलाफाते रिवायत में लश्करे यज़ीद की कम अज कम तादाद तीस हज़ार थी । सब सफें बंधकर खड़े हो गए । लश्कर का कमानदार इन चीफ खुद उम्रे साद लइन था । डिप्टी कमांडर इन् चीफ उस का बेट। था । मेमना का सरदार उम्रर इब्ने हज्जाज और मैसरा का सरदार शिमर लइन इब्ने जिल –जौशन तीर- अंदाजो का सरदार मोहम्मद इब्ने अशआस था । ये जम्मे गफीर इमाम मजलूम के खिलाफ सफ आरा हुआ ।
सरकारे सय्यादुश शोहदा ने भी सफ आराई की ज्यादा से ज्यादा लश्कर की तादाद १४५ और बा रिवायत १९२ और से अज्ज़ कम ७२ थी । ४२ पयादे और ३० सवार मैमना के सरदार हबीब इब्ने मज़ाहिर और मैसरा के जौहर इब्ने कैन एक आलम हज़रत इब्ने मज़ाहिर केहाथ में था और रायेत सब से बड़ा आलम हज़रत अबुल फज़लील अब्बास अले० के दस्ते मुबारक में था । सफ बाँध के खड़े हो गए किताब –उल बलदान इब्ने फकिया तबा इरान के सफअह एक सौ तिहातर १७३ में है की इमाम हुसैन अले० के साथ ७२ में से चालीस ४० कूफी थे । किताब नुरुल-ऐन अल्लामा अबू इशहाक असफरायिनी में है की लश्करे मुखालिफ चालीस हज़ार (४००००) कूफी थे ।
थोड़ी देर के बाद लश्कर इब्ने साद लइन में जंग का बिगुल बजा और टिड्डी दल फ़ौज ने शाहे कम सिपाह इमाम हुसैन अले० के लश्कर पैर हमला कर दिया त्तीरो की ऐसी बारिश हुई की जिसने इमामे मजलूम के तक़रीबन तमाम मुजाहिदो को ज़ख़्मी कर दिया और तीस ब-रिवायत बयालीस बहादुर तो उसी वक़्त जां –बा-हक तस्लीम हो गए इस जग़ को तारीख ने “जंगे मग्लूमा “ का नाम दिया है ।
फिर उस के बाद इन्फिरादी नबर्दाज्माई का सिलसिला शुरू हुआ और किसी किसी मौके पर एज्तेमई कैफियत भी पैदा हो जाती थी ।यह सिलसिला –ए –जंग अस्त्र के बाद तक जारी रहा । और पंजेतने पाक के खातेमा पर जग का खातेमा हो गया। अल्लामा अर्बली लिखते है की इमाम हुसैन अले० की जंग आखरी तीस हज़ार दुश्मनों से थी । हंगामे असर जब इमाम हुसैन के लड़ने की बरी आई तो उस वक़्त तीस हज़ार दुश्मन बाकि रह गए थे । जिन्होंने मिलकर इमाम हुसैन अले० को कतल करके पंजतने पाक का खतमाँ किया ।जंग के इख्तेयार पंजीर होते ही खेमो में आग लगा दी गई बीबियों के सरो से चादरे छीन ली गई शहीदों के सर तन से जुदा किये गए और लाशो पर घोड़े दौडाए गए ।
गयारह मुहर्रम को मुख्द्र्राते इस्मत व तहारत को नाको की पुश्ते बर्हैना पर सवार कर के कूफे पंहुचा दिया गया ।फिर वहां से एक हफ्ता बाद शाम ले जाया गया । कूफे व शाम के दरबारों में हर मुमकिन तौहीन कि गई और शाम के कैद खाने में एक साल रहने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया । बीस सफ़र बासठ हिजरी को ये काफीला कर्बला वापिस पंहुचा दिया गया ।फिर वहां से आठ रबि अव्वल बासठ हिजरी को मदीने मुन्नव्वरा वापिस पंहुचा दिया गया । बाशिंदेगाने मदीना ने इन् मुदाख्ह्राते इस्मत का इस्तकबाल आहों ज़ारी और फरयादो फूगा से किया पंद्रह शबो रोज़ किसी ने अपने घर में चूल्हा नहीं जलाया बिल आखिर सन तिरसठ –चौसठ (६३-६४) हिजरी में सब ने मुत्तफ़िक़ तौर पर यज़ीद की हुकूमत से बगावत कर दी जिसके नतीजे में तीन यौम के लिए हुर्माते मदीना आज़ाद कर दी गई और शबो रोज़ असहाबे रसूल हाफ़िज़े कुरान के कतल और मदीना की औरतो की इस्मत दरी का सिलसिला जारी रहा मस्जिदे नबवी में घोड़े बंधवाए गए मिम्बरे रसूल के साथ गलत सुलूक किया गया । तारीख यज़ीद के साथ इस इंसानियत सोज़ किरदार को वाकिया –ऐ –हुर्रा के नाम से याद करती है ।
इस के बाद हजरते मुख्तार इब्ने आबिदा सख्फी ने पैसठ हिजरी में शोहदाए –ऐ – कर्बला का बदला लेने का अजम बिल जज़म किया और कातिलने इमाम हुसैन को केफ्रो किरदार तक पंहुचाया लेकिन यह एक मुस्स्लेमा हकीकत है की शोहदा-ऐ-कर्बला का खूनबहान उस वक़त कोई हैसीयत नहीं रखता । जब तक इकसठ हिजरी से लेकर क़यामत की आखरी शाम तक ऐसे पैदा होने वालो के साथ जो यज़ीद के फ़एल पर राज़ी हो वहीँ सुलूक न किया जाए जो जो मुख्तार आले मोहम्मद ने उमरे साद वगैरह के साथ किया है ।
हुर्र इब्ने यज़ीदे अर्-रियाही
आप का नाम नामी और इसमें गिरामी हुर्र इब्ने यज़ीद इब्ने नाजिया इब्ने कनब इब्ने इताब इब्ने हुर्रमी इब्ने रिया इब्ने यार्बू इब्ने खंज़ला इब्ने मालिक इब्ने ज़ेद्मना इब्ने तमीम अल यार्बुई अर्र रियाही था । आप अपने हर अहदे हयात मे शरिफ़ए कौम थे ।
आप के बाप दादा कि शरफ़अत मुसलेमात से थी । पैगमबरे इसलाम के मशहुर सहबी ज़ऐद ईबने उमर इबने कैस इबने इताब जो (अहवज़) के नाम से मशहुर थे और शायरी मे बा- कमाल माने जाते थे वो आप के चचा ज़आत भैइया और आप के खनदान के चशमो चराग थे ।
हज़रते हुरर क शुमार कूफे के रईसों में था ।इब्ने ज़ियाद ने जब आप को एक हज़ार के लश्कर समेत इमाम हुसैन (अलै) से मुकाबला करने के लिए भेजा था उस वक्त आप को एक गैबी फ़रिश्ते ने जन्नत की बशारत दी थी जनाबे हुर्र्र का लश्कर मैदान मारता हुआ जब मकामे “शराफ” पर पंहुचा और इमाम हुसैन (अलै०) के काफिले को देख कर दौड़ा तो तमाजते आफताब और रास्ते की दोश ने प्यास से बेहाल कर दिया था । मौला की खिदमत में पहुँच कर जनाबे हुर्र ने पानी का सवाल किया । सकिये कौसर के फरजंद ने सराबी का हुकुम दे कर आने की गरज पूछी उन्होंने अरज की मौला ! आप की पेश- कदमी रोकने और आप का मुहासिरा करने के लिए हमको भेजा गया है । पानी पिलाने से फरागत के बाद इमाम हुसैन (अलै०) ने नमाज़े जोहर अदा फरमाई । हुर्र ने भी साथही नमाज़ पढ़ी । फिर नमाज़े असर पढ़ कर हज़रात इमाम हुसैन (अलै०) ने कूच कर दिया । हुर्र अपने लश्कर समेत काफिला –ऐ –हुस्सैनी से कदम मिलाए हुए चल रहे थे और किसी मकाम पर हज़रत की खिदमत में मौत का हवाला देते थे। मकसद ये था के यज़ीद की बैअत करके अपने को हलाकत से बचा लीजिये आप इस के जवाब में इरशाद फरमाते थे “हक पर जान देना हमारी आदत है “ रास्ते में बा- मकाम अजीब तर्माह इब्ने अदि अपने चार साथियों इमाम हुसैन (अलै०) से मिले । हुर्र ने कहा ये आप के हमराही नहीं है इस वक़्त कूफे से आ रहे है यह मै इन्हें आप के हम- रकाब रहने न दूंगा आप ने फरमाया तुम अपने मुआहदे से हट रहे हो ।सुनो ! अगर तुम अपने मुआहदे के खिलाफ इब्ने ज़ियाद के हुकुम पहुँचने से पहले हम से कोई मुजहेमत की तो फिर हम तुम से जंग करेंगे । ये सुन कर हुर्र खामोश हो गए और काफिला आगे बढ़ गया । “ कसरे बनी मुकतिल” पर मालिक इब्ने नसर नामी एक शक्स ने हुर्र्र को इब्ने ज़ियाद का हुकुमनामा दिया जिस में मारकूल था की जिस जगह मेरा यह ख़त तुम्हे मिले उसी मक़ाम पर इमाम हुसैन अलै० को ठहरा देना । और उस अमर का खास ख़याल रखना की जहाँ वो ठहरे वहां पानी और सब्जी का नामो निशाँ तक न हो इस हुकुम को पाते ही हुर्र ने आप को रोकना चाहा । आप तर्माह इब्ने अदि के मशविरे से आगे बढे और दो मोह्र्रम यौमे पंज्श्म्भा बा- मकामें कर्बला जा पहुचे हुर्र ने आपको बे- गयारह जंगल में पानी से बहुत दूर ठहराया और इस अमर की कोशिश की की `हुकुमे इब्ने जयाद ने फरक न आने पाए ।
दूसरी मोहर्र्रम तक ज़मीने कर्बला पर हुर्र रियाही इब्ने ज्याद और इब्ने साद के हर हुकुम की तकमील करते रहे और हालात का जयजा लेते रहे । सुबहे आशूर आप इस नतीजे पर पहुंचे की जन्नत व दोज़ख का फैसला कर लेना चाहिए ।
चुनाचे आप इन्तेहाई तरद्दुद व तफ़क्कुर में इब्ने साद के पास गए और पूछा की क्या वाकई इमाम हुसैन अलै० से जंग की जाए? इब्ने साद ने जवाब दिया बे – शक तन फद्केंगे ,सर बरसेंगे ,और कोई भी हुसैन और उनके साथियों में से न बचेगा ।
ये सुन कर हुर्र रियाही ख़ामोशी के साथ आहिस्ता –आहिस्ता इमाम हुसैन (अलै०) की खिदमत में आ पहुचे । बनी हाशिम ने इस्तकबाल किया । इमाम हुसैन अलै० ने सीने से लगाया । हुर्र ने अरज की मौला ! खता मुआफ मेरे पदरे नामदार ने आज शब् को ख्वाब में मुझे हिदायत की है की मै शर्फे कदम बोसी हासिल कर के दर्जे- ए –शहादत पर फएज हो जाऊ । मौला ! मैं ने ही सब से पहले हुजुर को रोका था । अब सब से पहले हुजुर पर कुर्बान हो जाना चाहता हूँ ।
(मुआर्खींनं का कहना है की इब्ने ज़ियाद और उमरे साद को हुर्र पर बड़ा एतमाद था इसीलिए सब से पह्ले उन्ही को रवाना किया था और फिरर यौमे आशुर लश्कर की तकसीम के मौके पर भी उन्हें लश्कर के चौथाई हिस्से प् जो कबीला-ए-तमीम व हमदान पर मुश्तकिल ।था सरदार करार दिया था)
इज्ने ज़ियाद दीजिये ताकि गर्दन कटाकर बारगाहे रिसालत में सुर्ख-रू हो सकू ।
इमाम हुसैन अलै० ने इजाज़त दी जनाबे हुर्र मैदान में तशरीफ़ लाए और दुश्मनों को मुखातिब करके कहा ।
“ ऐ दुश्मने इस्लाम शर्म करो अरे तुमने नवासे रसूले को खत लिखकर बुलाया । उन् की नुसरत व हिमायत का वयदा किया और खुतूत में ऐसी बाते तहरीर की के हुजुर को शरअन तामील करना पड़ी और वह जब तुम्हारे दावत नामो पर भरोसा कर के आ गए है तो तुम उन् पर मजलिम के पहाड़ तोड़ रहे हो उन्हें चारो तरफ से घेरा हुआ है और उन् के लिए पानी बनदीश कर दी है ।“
ऐ जालिमो ! सोचो यहुदो नसारा पानी पि रहे है और हर्र किसम के जानवर पानी में लोट रहे है लेकिन आले मोहम्मद एक-एक कतरा-ऐ-आब के लिए तरस रहे है । अरे तुमने मोहम्मद की आल के साथ कितना बुरा सुलूक रखा है ।
जनाबे हुर्र की बात अभी ख़तम न होने पाई थी की तीरों की बारिश शुरू हो गई आप ज़ख़्मी हो कर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाज़िर हुए और अरज की, मौला अब आप मुझसे खुश हो गए इमाम हुसैन अलै० ने दुआ दी और फ़रमाया “ऐ हुर्र ! फर्दा अज्ज़ आतिशी दोज़ख आज़ाद खावाहि वुद । तू फर्दा-ऐ-क़यामत में आतिशे जहानुम से आज़ाद हो गया ।
इसके बाद जनाबे हुर्र फिरर मैदान में तशरीफ़ लाए और निहायत बे- जिगरी से नबर्द आज़मा हुए और आप ने पचास दुश्मनों को तहे तेग कर दिया दौराने जंग में अय्यूब इब्ने मश्र्रा ने एक ऐसा तीर मारा जो जनाबे हुर्र के घोड़े की पीठ में लगा और आपका घोडा बे-काबू हो गया आप पयादा हो कर लड़ने लगे नागाह आप का नेजा टूट गया । और आपने तलवार संभाली अलमदारे लश्कर को आप कतल करना ही चाहते थे की ददुश्मनों ने चारो तरफ से तश्दिद हमला कर दिया । बिल आखिर कसूर लई इब्ने कुनना ने सीना –ऐ –हुर्र पर एक ज़बरदस्त तीर मारा जिसके सदमे से आप ज़मीन पर गिर पड़े और इमाम हुसैन अलै० को आवाज़ दी मौला खबर लिजिय ! इमाम हुसैन अलै० जनाबे हुर्र की आवाज़ पर मैदाने जंग में पहुचे और देखा जान – निसार एड़िया रगड़ रहा है ।आप उसके करीब गए और आपने उनके सर को अपनी आगोश में उठा लिया । जनाबे हुर्र ने आँखे खोल कर चेहरा- ऐ – इमामत पर निगाह की और इमाम हुसैन अलै० को बेबसी के आलम में छोड़ कर जन्नत का रास्ता लिया ।
रियाजे शाहदत में है की आप को सब शोहदा की तद्फीन के मौके पर बनी असद ने इमाम हुसैन अलै० से एक फ़रसख के फासले पर गल्बी जानिब दफ़न किया और वहीँ पर आप का रोज़ा बना हुआ है ।
आप की औलाद
हजरते हुर्र की कई औलादे थी । अली इब्ने हुर्र ने कर्बला में शहादत पाई हजर इब्ने हुर्र को इमाम हुसैन अलै० पर पानी बंद करने के
लिए चार हज़ार का लश्कर दे कर भेजा गया था । लेकिन जब इब्ने ज़ियाद को मालूम हुआ की हुर्र इमाम हुसैन अलै ० की तरफ झुक रहा है तो फौरन्न शीश इब्ने राबेए को एक लश्करे ग्रा के हमराह कर्बला में बंदिशे आब के लिए भेजा और इब्ने हुर्र भी उसे निगरा करार दिया ।
मातीन ३५१ हिजरी में है की हजरते हुर्र के लश्करे उमरे सआद लई के निकल आने के बाद हजर इब्ने हुर्र भी निकल आए और उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन अलै० से इजाज़त हासिल करके लश्करे उमरे साद लई पर हमला किया और घमासान की जंग में १२० दुश्मनों को कतल करके शहीद हुए उन् की शहादत के बाद इमाम हुसैन अलै० ने चाहा की उन् की लाश उठाए मगर दुश्मनों ने मज़हेमत बिल आखिर इमाम हुसैन अलै० ने जंग आजमाई शुरू की आठ सौ दुश्मनों को कतल करके लाशा-ऐ-हजर बिन हुर्र को खेमे तक पहुचाया ।
अबीदुल्लाह इब्ने हुर्र कमकाम में है की इस का शुमार शुजाने अरब में था । उस ने जंगे सिफ्फिन में माविया के साथ हज़रत अली के लश्कर से जंग की । आप की शहादत के बाद कूफे में सुकून्नत गीर हो गया था ।वाकेयाए-ऐ- कर्बला के मौके पर ये बिल- कसद कहीं चला गया था और उसने किसी का साथ नहीं दिया । एक दिन ये इब्ने ज़ियाद से मिलने गया । इब्ने ज़ियाद ने पूछा की तू कहाँ था?
उस ने जवाब दिया की मे अलील था , फिरर इब्ने ज़ियाद ने दरयाफ्त किया की तू हमारे दुश्मनों के साथ कर्बला में था उस ने अगर ऐसा होता तो उसके कुछ असरात होते यह बाते हो ही रही थी की इब्ने ज़ियाद किसी और तरफ मुतावाज्जो हो गया अबीदुल्लाह इब्ने हुर्र घोड़े पर सवार होकर किसी तरफ चल दिया जब इब्ने ज़ियाद ने उससे न पाया तो उसे तलाश कराया अबीदुल्लाह इब्ने हुर्र लोगों ने प् लिया और उससे कहा की ‘चलो इब्ने ज़ियाद ने बुलाया है’ तो उस ने जवाब दिया की ‘मै अपने इख्तेयार से तो किसी तरह उसके पास न जाऊंगा’। फिर उसके बाद वह वहां से अपने लश्कर यानि हम्राहियों समेत कर्बला को चला गया वहां पहुँच कर उस ने बेपनाह गिर्या किया और सात शेरो पर मुश्तमिल एक मर्सिया कहकर उसे कर्बला में पढ़ा और मदायन को चला गया उसके मर्सिये का एक शेर ये है:--------
व लौ अना अवासियाह बे-नफ्सी
लनलत करमता यौम-अल सलाक ।
इस में कोई शक नही की मै अगर इमाम हुसैन अलै० की आवाज़ पर लब्बैक कहकर उन की मदद के लिए गया होता तो ज़रूर क़यामत के दिन बड़ी करामात का मालिक होता लेकिन अफ़सोस मै उस शर्फे खिदमत से महरूम रहा ।
हजरते हुर्र की हयाते अब्दी (१)
जिस तरह तमाम शोहदा जिंदा है उसी तरह से हजरते हुर्र की ज़िन्दगी भी मुसल्लम है मिर्ज़ा मोहम्मद हैदर शिकोह इब्ने इब्ने मिर्ज़ा मोहम्मद काम बख्श इब्ने मिर्ज़ा मोहम्मद सुलेमान शिकोह इब्ने शाहे आलम बादशाह देहली ने अपने रिसाला “इल्मे हैदरी”में लिखा है की ८०४ हि०में यह मालूम करके हजरते हुर्र के सरे मुबारक पर एक ऐसा रुमाल बंधा हुआ है जो हजरते फातिमा ज़हरा स० का कटा व बुना हुआ है । मैंने चाहा की कबर खुदवा कर उसे निकाल लू लेकिन ओल्मा ने इसकी इजाज़त न दी मै सख्त रंजीदा था की सययद मदनी मुल्ला हसन ने मुझसे कहा की मदीने में एक जैद हाश्मी है उनके पास हजरते सय्यदा स० की बुनी हुई एक चादर है जिस पर बहुत से नकश और हरफ उभरे हुए है मैंने कोशिश करके उसे हासिल कर लिया और उसे सर पर बाँध कर नाजाते उख्र्वी का जरिया करार दिया हबीब- अल- सीर में है की सन ९१४ हि० में शाह इस्माइल सफवी ने हज़रत इमाम हुसैन अले० हजरते अब्बास अलै० और जनाबे हुर्र के रौजो की तजदीद व तरफीअ की अल्लामा नेमत-उल-अल्लाह जज़ायरी तहरीर फरमाते है । “इसी सन ९१४ ही० में शाह अब्बास ने हजरते हुर्र की कब्र खुदवा कर उन् की लाशे मुतहर से वो रुमाल खोला जो इमाम हुसैन अलै० ने ब-वक्ते शाहदत उन् के सर पर बांध दिया था । रुमाल का खोला जाना था की सरे हुर्र से खूने ताज़ा जरी हो गया ये देख कर रुमाल फ़ौरन बंधवा दिया गया”।
खूने ताजा का जारी होना शहादत देता है की हजरते हुर्र भी हयाते अब्दी के मालिक है जिस तरह तमाम शोहदा जिंदा है उसी तरह ये भी वाकई जिंदगी से बह्रवर है ।
अली इब्ने हुर्र रियाही (२)
आप हजरते हुर्र इब्ने यज़ीद अल-रियाही के बेटे थे । आप का नाम अली था । हज़रत की शाहदत के बाद आपके दिल में मोहब्बते पादरी ने जोश मारा आप की अकल ने जज्बा-ऐ-शहादत को उभारा इमाम हुसैन अलै० की बेबसी और बेकसी ने दिल व दिमाग में इज्तेराब पैदा कर दिया। बिल आखिर घोड़े को पानी पिलाने के बहाने से लश्कर इब्ने साद को छोड़ निकले(काशफ़ी)।
आप ने हजरते हुर्र शहीद के कदमो से अपनी आँखों को मला फिर आगे बढे और इमाम हुसैन अलै० के कदम बोस हुए इमामे मजलूम ने इजाज़त दी और आप मैदान में नाबर्दाज्मा हुए आप ने ऐसी जंग की की दुश्मन हैरान रह गए बिल आखिर आप दुश्मनों को कतल करके शहीद हो गए ।
नईम इब्ने अजलान अंसारी (३)
आप कबीला खजरज के चश्मों चराग थे । आप के दो भाई और थे । एक का नाम नज़र और दुसरे का नाम नोमान था ये तीनो भाई अमीरुल मोमिनीन हजरते अली अलै० के असहाब में से थे । इन लोगो ने जंगे सिफ्फिन में बड़ी जवा मार्डी का सबूत दिया था शुजाअत उन के घर की लौड़ी थी ये शायर भी थे । नज़र और नोमान वाक़ेया-ऐ-कर्बला से पहले वफात प् चुके थे और नईम जंगे कर्बला में शरीक हुए । नईम का शुमार हुस्सैनी वफादारो में था आपको जब पता चला की फ़रज़न्दे रसूल इमाम हुसैन अलै० आज़ेमे इराक है तो आप कूफे से निकलकर हज की खिदमत में हाज़िर हुए और आशुरे के दिन पहले हमले में शहीद हो गए ।
इमरान इब्ने कअब अल-असजइ(४)
आप का पूरा नाम इमरान इब्ने काब इब्ने हरिस अल-अश्जइ था । आप निहायत शुजा और बे –इन्तेहाई दीनदार थे । आप ने इमाम हुसैन अलै० का जिस वक़त से इख्तियार किया है आखिर दम तक उसी पर कायम रहे । यहाँ तक की आप ने सुबहे आशूर जंगे मग्लूबा में जामे शहादत नौश फ़रमाया ।
खजला इब्ने उमर अल-शिबानी (५)
आप इमामे हुसैन अलै० के वफादारो में थे । आप इमामे हुसैन अलै० पर कुर्बान होने को तैयार रहते थे । आले मोहम्मद की खिदमत में जान कुर्बान करने में ख़ुशी महसूस करते थे सुबहे आशूर जो दुश्मनों की तरफ से क़यामत खेज़ हमला हुआ था जनाबे खजला इसी में शहीद हो गए थे ।
कासित बिन ज़ुहैर अल-तग्लबी (६)
आप का पूरा नाम कासित इब्ने ज़ुहैर इब्ने हारिस ताग्ल्बी है । आप हज़रत अमीरुल मोमिनीन के असहाब में से थे । इन् की बहादुरी के कारनामे मशहूर है । जंगे जमल व सिफ्फिन और नहरवान में आपने पूरी जांबाजी की है और बड़ी बे-जिगरी से लड़े है ।आप को जब ये मालूम हुआ की फ़रज़न्दे रसूल इमाम हुसैन अलै० कर्बला में पहुच गए है तो आप रात के वक़त कूफे से रवाना हो कर वारीदे कर्बला हुए और आपने सुबहे आशूर इमाम हुसैन अलै० पर जान दे दी ।
कर्दूस बिन ज़ुहैर-अल-तग्लबी (७)
आप का नाम क़र्दूस इब्ने ज़ुहैर हरस अल – तग्लबी था आप को करश भी कहते थे । आप कसित इब्ने ज़ुहैर के हकीकी भाई थे और असहाबे अमीरुल मोमिनीन में आपका शुमार था । आप के एक भाई और थे जिनका नाम मस्कत इब्ने ज़ुहैर था । यह भी सहाबी –ऐ- अमीरुल मोमिनीन थे । एक रिवायत की बिना पर ये तीन भाई एक साथ ब-वक्ते शब् कर्बला पहुचे थे और यौमे आशूर एक ही साथ शहीद हुए ।
कनाना इब्ने अतीक अल-तग्लबी (८)
आप कूफे के मशहूर पहलवानों में थे नबर्द आजमाई आप का वातीरह था । बड़ी बे-जिगरी से लड़ते थे । आप इबादत गुजारी में भी बे-नजीर थे किरअते कुरआन में भी खास शोहरत के मालिक थे कर्बला में इमाम हुसैन की खिदमत में हाज़िर होकर यौमे आशूरा शहीद हुए ।
उमर इब्ने सबिकह अल- सनबइ (९)
आप का पूरा नाम उमर इब्ने सबिकह इब्ने कैस इब्ने सअलबता था । आप निहायत शुजा और अज़ीम शाह सवार थे । इब्ने साद की कोशिशो से इमाम हुसैन अलै० के मुकाबले के लिए कूफे से कर्बला आए थे ।लेकिन सही हालात से ब-खबर होने के बाद आप ने मकसदे इब्ने साद व इब्ने ज्याद पर लानत कर दी और लश्कर को खैरबाद कह कर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाज़िर हो गए और सुबहे आशूर शहीद हो कर राहिये-ऐ- जन्नत हुए ।
ज़र्गामा इब्ने मालिक-अल तग्लबी (१०)
आप का नाम इसहाक और लकब ज़र्गामा था । आप अमीरुल मोमिनीन के जाबाज़ सहाबी हजरत मालिके अश्तर के बेटे और इब्राहीम इब्ने मालिक के भाई थे । आप निहायत शुजा और बहादुर थे और जैसा की नाम से ज़ाहिर है शेरे नर की तरह दिलेर थे । आप मज़हब व अकीदे में शिया थे । आपने कूफे में मुस्लिम इब्ने अकील के हाथो पर इमाम हुस्सैन् की बैअत की थी । शहादते मुस्लिम के बाद लश्कर इब्ने ज़ियाद के साथ कर्बला में पहुचकर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाज़िर हो गए । और यौमे आशूरा जामे शहादत नौश फरमा कर राही-ऐ-जन्नत हुए फाजिल दर बंदी का कहना है की आप ५०० सवारों को कतल करके शहीद हुए है ।
गमीर इब्ने मुस्लिम अब्दी (११ )
आप हजरत अमीरुल मोमिनीन अलै० के शिया और बसरा के रहने वाले थे आप का पूरा नाम गमीर इब्ने मुस्लिम अब्दी अल-मत्री था आप मक्का-ऐ-मोज्ज़मा में इमाम हुसैन अलै० के साथ हो गए थे और त-दमें आखिर साथ ही रहे आप के हम राह आप का गुलाम सालिम भी था जियारत नहिया की बिना पर सालिम भी आप ही के हमराह आशूर के दिन शहीद हुआ ।
सैफ इब्ने मालिक अब्दी (१२ )
आप का पूरा नाम सैफ इब्ने मालिक अब्दी अल-नामिरी अल-बसरी था । आप हजरत अली अलै० के खास शियों में से थे । इमाम हुसैन अलै० की नुसरत के लिए मरिया के मकान में जो खुफिया इज्तेमा हुआ करता था । उसमे आप भी शामिल हुआ करते थे । आपने मक्के में इमाम हुसैन की बैअत इख्तेयार की थी और आप त-दमे आखिर साथ रहे यौमे आशूर शहीद हो गए ।
अब्दुर—रहमान अल- अरजब (१३)
आप मशहूर तबई और बड़े शुजा व बहादुर थे । आप का कबीला बनी हमदान की शाख बनी अरजब के चश्मों चराग थे । आप का पूरा नाम अब्दुर रहमान इब्ने अब्दुल्लाह अल-कजान इब्ने अरजब इब्ने मालिक इब्ने माविया इब्ने सअब इब्ने रोमान इब्ने बाकिर-अल-हमदानी-अल-अर्ज्बी था । आप उन वाफूद के एक मेंबर थे जो इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में अर्ज़िया लेकर कूफे से मक्का-ऐ- मोआज्ज्मा गए थे । पहले वफद में अब्दुल्लाह इब्ने सबाअ और अब्दुल्लाह दाल थे और दुसरे में कैस और यही अब्द्र्र रहमान गए थे उन के हमराह पचास अर्जियां थी यह वफद बराह माहे सयाम को मक्का-ऐ-मोअज्ज्मा पंहुचा था ।
मोर्रखींन का कहना है की जब इमाम हुसैन अलै० ने मुस्लिम इब्ने अकील को ब-कस्दे कूफा रवाना किया तो उनके हमराह उन्ही अब्दुर्र रहमान को भी कैस और अम्मारा के साथ कर दिया था । अब्दुर्र रहमान हजरत मुस्लिम को कूफा पंहुचा कर फिर मक्का-ऐ-मोज्ज़म्मा पहुचे और इमाम हुसैन अले० की मुस्तकिल बअत इख्तेयार कर ली और हजरत के साथ-साथ कर्बला आये और यौमे आशूरा शहीद हुए ।
मुज्माअ इब्ने अब्दुल्लाह अल-आब्दी (१४)
आपका पूरा नाम मजमाअ इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने मजमाअ इब्ने मालिक इब्ने आयास इब्ने अब्द मनत इब्ने सअद अल-आशिरअ अल-मज्हजी कहीं आंदी था । आप क़िबला मज्हज एक नुमाया फर्द थे आपके वालिद अब्दुल्लाह इब्ने मुज्माअ साहिबी-ऐ-रसूल थे और अहदे रिसालत में अच्छी हैसियत के मालिक थे । लोगो की निगह में आपकी बड़ी इज्ज़त थी । खुद मुज्माअ का शुमार ताबइन में था और आप को अमीरुल मोमिनीन के सहाबी होने का शरफ हासिल था । मक़ाम अजीब ह्ज़अनत में जिन लोगो को हुर्र ने इमाम हुसैन अलै० के साथ होने से रोका था उन में आप भी थे । आप ही से इमाम हुसैन अलै ० ने अह्ले कूफा के हालात अजीब में दरयाफ्त फरमाए थे और उन्ही अब्दुल्लाह ने अर्ज़ की थी की मौला! कूफे के जितने रईस-ओ-सरदार है सब को इब्ने ज्याद ने डरा धमका कर और रूपए देकर आप के खिलाफ कर दिया है सब आप से लड़ने को तैयार है । और ऐ मौला! यहीं हाल गुरबा का भी है उन के दिल अगर चे आपके साथ है लेकिन उनकी तलवारे आपकी हिमायत में नहीं है । फिर आपने अपने कसिदे कैस इब्ने मसहर के मुताल्लिक फ़रमाया की मैंने अहले कूफा के नाम उन के ज़रिये से आखिरी ख़त इरसाल किया है । मुज्माअ ने आब्दीदा हो कर जवाब दिया मौला! उन्हें हसीं बिन नामीर ने गिरफ्तार कर के इब्ने ज़याद के सामने पेश कर दिया था और वह हुक्मे इब्ने ज़याद से शहीद कर दिए गए । अल-गरज जनाबे मुज्माअ इब्ने अब्दुल्लाह इमाम हुसैन अले० के साथ रहे और यौमे आशूरा जंगे मग्लूबा में शहीद हो गए । कुछ रिवायतो के बिना पर आपके बेटे आएज़ इब्ने मुज्माअ भी आप के हमराह आए थे और आप ही के साथ शहीद हुए । मेरी तहकीक के मुताबिक मुज्माअ और उन् के चन्द साथी मसलन उमर इब्ने खालिद जनाद वगैरह उस वक़्त कूफे से निकल कर कर्बला पहुचे थे, जब जनाबे मुस्लिम को शहीद कर दिया गया था ।
ह्यान इब्ने हारिस अल-सलमानी (१५)
आप कबीला-ऐ-अजद के चश्मों चराग थे आपके दिल में आले मोहम्मद स० की मोहब्बत का अजीमुशशान समन्दर मौजज़न था । इमाम हुसैन अलै० की खिदमत को अपना फ़रीज़ा जानते थे । जिस वक़त से आप इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में पहुचे खादिमो की तरह खिदमत गुजारी करते रहे और तक़रीबन हर मौके पर आपने फ़रीज़ा-ऐ-खिदमत अदा किया और सुबह आशूर जंगे मग्लूबा में शहीद हुए ।
उमर इब्ने अब्दुल्लाह अल-जुनैदी (१६)
आप का पूरा नाम उमर इब्ने अब्दुल्लाह अल-हमदानी अल-जुनैदी था काबइले हमदान में से एक काबिले का नाम है ।आप इमाम हुसैन अलै० से कर्बला में मिले थे और जब से हाजिरे खिदमत हुए थे हर किस्म की खिदमत करते रहे और यौमे आशूरा जंगे मग्लूबा में शहीद हुए सिफ्हर कशानी और अल्लमा मजलिसी फाजिल अर्बली ने लिखा है की आप जंगे मग्लूबा में शहीद हुए है लेकिन अल्लामा समावि का बयां है की आप जंग करते करते शहीद हुए है और आप पर ज़ियारते नहिया में दर्दे आगीं-अलफ़ाज़ के साथ सलाम किया गया है ।
हलास इब्ने उमर रास्बी (१७)
आप कूफे के रहने वाले और कबीला-ऐ-अजद की रसब शाख की यादगार थे अमीरुल मोमिनीन के असहाब में आपका शूमार होता थाकूफे से उम्रे साद के लश्करी होकर कर्बला पहुचे थे और इब्ने साद के लश्कर वालो के साथ ही थे जब आप को यकीन हो गया की इमाम हुसैन अलै० से सुलह न हो सकेगी तो आप रात के वक़त पोशीदगी के साथ आ मिले और यौमे आशूरा आप शहीद हुए ।
नोमान इब्ने उमर रासेबी (१८)
आप भी कबीला-ऐ-अजद के चश्मों चराग थे । आप हलास अज्ज्दी के हकीकी भाई और इमाम हुसैन अलै० के जानिसार थे । आपको भी अमीरुल मोमिनीन के असहाब में होने का शरफ हासिल था इब्ने साद के लश्कर के साथ कर्बला में आकर इमामहुसैन अले० की खिदमत में हाजिर हुए और सुबह आशूर शहीद होकर सआदत अब्दी के मालिक बन गए।
सवारा इब्ने अमीर अल-मेहरानी (१९)
आपका पूरा नाम सवार इब्ने मनगम जबिस इब्ने अबी अमीर इब्ने नैह्मल हमदानी है ।आप हमदान के रहने वाले थे । आशूर के पहले दूसरी और दसवी के अन्दर किसी तारिख को कर्बला पहुचे थे आपके नाम के साथ लफ्ज़ “नेहमी”अपने दादा की तरफ इंतेसाब की वजह से लगा हुआ है बाज़ उलमा ने नेहमी को फहमी तहरीर फरमाया है लेकिन ये मेरे नज़दीक गलत है । आप ने यौमे आशूर के पहले हमले में जामे शाहदत नौश फ़रमाया है। आप के बारे में बाज़ किताबो में है की आप हमला-ऐ-अववल में ज़ख़्मी होकर गिरे तो सवार की कौम के लोगो ने उन्हें उठा लिया और इब्ने साद से इजाज़त के बाद छ: माह अपने पास रखा बिल आखिर आप ने शहादत पाई ।
अम्मारा इब्ने सलामता अल-दलानी (२०)
आप काबएले हमदान से कबीला-ऐ-बनी दालान के (इज्ज़त-दार) शख्स थे आप का पूरा नाम अममार इब्ने सलाम इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने इमरान इब्ने रास इब्ने दालान अबुसलामा हमदानी था आपको हुजुर रसूले-करीम के सहाबी होने का शरफ हासिल था । अल्लमा समावि का बयान है की आप अमिरुल मोमिनीन के असहाब में थे जंगे जमल व सिफ्फिन और नहरवान में हजरत के साथ रहे बसरा की तरफ जंग के इरादे से रवाना होते वक्त मंजिल ज़ि-वकार पर उन्हें अबू सलामा दालानी ने हज़रतअली से पूछा था की बसरा पहुच कर आप का क्या तर्जे अमल होगा आप ने फरमाया था की मै तबलीग करूँगा और लोगो को खुदा की तरफ दावत दूंगा अगर न माने तो फिर लडूंगा इस के जवाब में दलानी ने कहा था हुजुर जरुर ग़ालिब आयेंगे क्योकि खुदा की तरफ बुलाने वाला कभी मग्लूब नहीं होता ।
अल-गरज यह अबू-सलाम अम्मार दलानी बड़ी खूबियों के मालिक थे । आले मोहम्मद का साथ देना अपना फ़रीज़ा जानते थे । आप इमाम हुसैन अले० की खिदमत में ब-मकाम कर्बला हाजिर हुए और सुबहे आशूर शहीद हो गए ।
ज़ाहिर इब्ने उमर अल-कनदी (२१)
आप जनाब उम्र इब्ने अल हमक अमीरुल मोमिनीन के मशहूर सहाबी के हर वक़्त साथ रहा करते थे एक मर्तबा ज़ियाद इब्ने अबी और उम्र इब्ने अल-हमक में हजरत अली के बारे में सख्त इख्तेलाफ हो गया जिस के नतीजे में उसने आपको माविया के हवाले कर दिया और उसने उन्हें कतल कर दिया जब आप माविया के पास पहुचे थे आपके हमराह ये ज़ाहिर कन्दी भी थे । माविया ने उन्हें कतल नही किया । आप आले मोहम्मद की मोहब्बत में निहायत शोहरत रखते थे एक जबरदस्त पहलवान और पुख्ताकार बहादुर की हैसियत से मशहूर थे । ६० हिजरी में आप हज के लिए मक्का-ऐ-मोआज्ज्मा पहुचे और इमाम हुसैन अलै० के हमराह कर्बला आये आप के पोतो ने मोहम्मद बिन सनान इमाम रजा और इमाम मोहम्मद तकी अले० की हदीस से रावी गुज़रे है मोहम्मद इब्ने सननान की वफात सन २२० हिजरी में हुई है । ज़ाहिर कंदी मक्का से कर्बला तक इमाम हुसैन अलै० की खिद्मत करते रहे और सुबहे आशूर हमल-ऐ-अव्वल में शहीद हो गए ।
जोब्बिला इब्ने अली अल-शिबानी (२२)
आप कूफे के मशहूर बहादुरों में से थे ।हजरते मुस्लिम इब्ने अकील के कफील के कूफे पहुचने के बाद उनके साथ हो गए और निहायत दिलेरी से आपका साथ देते रहे हजरत मुस्लिम की शाहदत के बाद आप इमाम हुसैन की खिदमत में हाजिर हुए और यौमे आशूरा हमला-ऐ-अववल में शर्फे शहादत से मुश्र्रफ हो गए ।
मसूद इब्ने हज्जाज अल-तमीमी (२३)
आप अमीरुल मोमिनीन के खास शियों में से थे और निहायत ही शुजा और बहादुर थे । उमर इब्ने साद के हमराह कूफे से कर्बला पहुचे और यौमे आशूरा के पहले इब्ने साद की तरफ से निकल कर हजरत इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हो गए और यौमे आशूर अव्वल हमले में शहीद हो कर सादते अब्दी के मालिक बन गए । ओलमा ने लिखा है की आप के हमराह आप के फरजंद अब्दुर्र-रहमान इब्ने मसूद भी थे जो साथ ही शहीद हुए ।
हज्जाज इब्ने बद्र अल-तमीमी अल-सईदी (२४)
जनाब हज्जाज बसरा के रहने वाले कबीला-ऐ-बनी साद थे । आप रईसे बसरा मसूद इब्ने उमर का ख़त लेकर इमाम हुसैन अलै०की खिदमत में हाजिर हुए थे और फिर वापिस नहीं गए । मोर्रखींन का बयान है की इमाम हुस्स्सैन अलै० ने मसूद इब्ने उमर को ख़त इरसाल किया था जिस में दावते नुसरत भी थी ।मसूद ने ख़त पाते ही बनी तमीम बनी हंजला इब्ने साद आमिर को जमा करके एक ख़त के ज़रिये से कहा की माविया के मरने के बाद से ज़ुल्म व जौर से किले की दीवारे हिल गई है ।अब ज़रूरत है की इन्साफ और ईमान की बुनियादे मज़बूत हो मेरे अजीजो ! अगर माविया का जादू चल गया और यज़ीद की हुकूमत मुस्त्कर हो गई तो इस्लाम बिलकुल खतम हो जाएगा । सुनो! इमाम हुसैन फ़रज़न्दे रसूल हमें बुला रहे है और उनकी इमदाद हमारा फ़रीज़ा है । आप की तवील तकरीर के जवाब में सब ने हिमायत का दावा किया इसके बाद आपने हज्जाज सअदि के ज़रिये से इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में वयदा का ख़त भेजा हज्जाज जो पहले ही से हजीरे खिदमत होने को तैयार था इमाम हुसैन के पास पहुच कर वापिस न गए और यौमे आशूर हमला-ऐ-अव्वल में अपने को फ़रज़न्दे रसूल पर अपने को कुर्बान कर दिया ।
अब्दुल्लाह इब्ने बुशरा-अल-ख्शअमी (२५)
आपका पूरा नाम अब्दुल्लाह इब्ने बुशरा इब्ने राबिया इब्ने उमर इब्ने मगरा इब्ने कमर इब्ने आमिर इब्ने राएसा इब्ने मालिक इब्ने वहेब इब्ने जलिहा इब्ने कलब इब्ने रबिअ इब्ने अकरस इब्ने खल्क इब्ने अकील इब्ने अस्मारा अन्मारी अल—खशअमी था । आप निहायत मशहूर बहादुर थे और अज़ीम शख्सियत के मालिक थे । आप और आपके वालिद के तज़किरे अक्सर तारीखी जंगो में मिलते है ।आप पहले इब्ने साद के लश्कर में थे और उसी के साथ कूफे से कर्बला आये थे नवी मुहर्रम से पहले इमाम हुसैन की खिदमत में आकर दसवी मुहर्रम की सुबह को जंगे मग्लूबा में शहीद हो गए । बाज़ किताबो में आपका नाम जुहैर इब्ने बुश्र मिलता है और हो सकता है की अब्दुल्लाह और जुहैर दोनों अलग-अलग शख्सियते रही हो ।
अम्मार इब्ने हिसान अल्ताई (२६)
आपका पूरा नाम-ओं-नसब यह है अम्मार इब्ने हिस्सान इब्ने शरिह इब्ने साद इब्ने हारिस इब्ने लाम इब्ने उम्र इब्ने समामा इब्ने जेहेल इब्ने जजाआन इब्ने साद इब्ने तइ-अल-ताई था ।
आप अरब के शुजाओ में बड़े नामी गिरामी मशहूर थे और आले मोहम्मद के खास मुतिअ-ओ-मंकाद नेज़ जानिसार थे । आपके पद्रे बुजुर्गवार हिस्सान अमीरुल मोमिनीन के खास सहाबी थे । यह जंगे जमल में लडे और जंगे सिफ्फिन में लड कर शहीद हुए । अम्मार इब्ने हिस्स्सान मक्का-ऐ-मोअज्ज्मा में इमाम हुसैन अलै० के हमराह हो कर कर्बला आये और सुबहे आशूर जंगे मग्लूबा में शहीद हुए। आपकी सातवी पुशत में अब्दुल्लाह इब्ने अहमद निहायत जबरदस्त आलिमे दीन और रावी-ऐ-हदीस गुज़रे है यह अपने वालिद के ज़रिये से हजरत इमाम रजा अले० से रवायत करते थे । मौस्सूफ़ की कई तसनीफ है जिनमे काज्याए अमीरुल मोमिनीन ज्यादा मशहूर है ।
अब्दुल्लाह इब्ने उमैर-अल-कलबी (२७)
आपका नाम अब्दुल्लाह इब्ने उमैर इब्ने अब्दे कैस इब्ने अलीम इब्ने जनाबे कलबी अलिमी था । आप कबीला-ऐ-अलीम के चश्मों चराग थे । आप पहलवान और निहायत बहादुर थे । कूफे के मोहल्ले हमदान में करीब चाह जहद मकान बनाया था और उसी में रहते थे । मुकामे नाखिला में लश्कर को जमा होता देख कर लोगो से पूछा लश्कर क्यों जमा हो रहा है कहा गया हुसैन इब्ने अली अलै० से लड़ने के लिए । ये सुन कर आप घबराए और बीवी से कहने लगे की अरसा-ऐ-दराज से मुझे तम्मना थी की कुफार से लड़ कर जन्नत हासिल करूँ । लो आज मौका मिल गया है हमारे लिए यही बेहतर है की यहाँ से निकल चले और इमाम हुसैन की हिमायत में लड़ कर शर्फे शहादत से मुशर्रफ हो और साथ ही साथ हमराह जाने की दरख्वास्त भी पेश कर दी । अब्दुल्लाह ने मंज़ूर किया और दोनों रात को छिप कर इमाम हुसैन की खिदमत में जा पहुचे और सुबहे आशूर जंगे मग्लूबा में ज़ख़्मी होकर शहीद हो गए ।
अल्लामा समावि लिखते है की उस अज़ीम जंग में जब जनाबे अब्दुल्लाह की बीवी ने अपने चाँद को लिथड़ा हुआ देखा तो दौड़ कर मैदान में जा पहुची और उन् के चेहरे से खून व ख़ाक साफ़ करने लगी इसी दौरान में शिमरे मलऊन के गुलाम रुस्तम लई ने उस मोमिना के सर पर गुर्ज मार कर उसे भी शहीद कर दिया ।
मुस्लिम इब्ने कसीर अल-आजदी (२८)
आप कूफे के रहने वाले थे । आप का शुमार ताबेइन में था । आप असहाबे अमीरुल मोमिनीन में भी होने का शरफ रखते थे । आप का पूरा नाम मुस्लिम इब्ने कसीर अल-अर्ज अल-आजदी अल-कूफी था । आप अमीरुल मोमिनीन के हमराह किसी जंग में ज़ख़्मी हो कर लंग करने लगे थे इसी वजह से अआप को “एअराज”कहा जाता था ।
आप इमाम हुसैन के कर्बला पहुचे से कबल उन् के हमराह किसी मुकाम पर हो गए थे । फिर साथ ही रहे और सुबहे आशूरा शहीद हो गए थे । कुछ मुआर्खींन ने लिखा की नमाजे जोहर के बाद अआप के गुलाम “राफेअ इब्ने अब्दुल्लाह” भी शहीद हुए ।
ज़ोहेर इब्ने सलीम अल-अजदी (२९)
आप काबिल-ऐ-अजद के एक नुमाया शख्स थे । उमर इब्ने साद के साथ कर्बला पहुचे नौ की सुबह को जब आप ने यकीन कर लिया की सुलह नहीं होगी तो शबे आशूर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हो कर सुबहे आशूर जंगे मग्लूबा में शहीद हो गए ।
अब्दुल्लाह इब्ने यजीद अल-अब्दी (३०)
आप अपनी कौम के सरदार थे और दोस्त्दारे आले मोहम्मद थे । मनकज़ अब्दी की बेटी मारिया के घर जो इमाम हुसैन की हिमायत में सलाह व मश्वाराह होता था उस में ये भी शिरकत करते थे । आप गैर मारूफ रास्तो से गुजर कर इमाम हुसैन की खिदमत में मक्का-ऐ-मोआज्ज्मा पहुचे एक मकाम पर कयाम कर के इमाम हुसैन से मिलने गए । हजरत इमाम हुसैन अलै० को जो उन के आने का पता चला तो खुद मुलाकात के लिए तशरीफ ले गए । आखिर कार ये लोग जल्दी वापस गए सुर हजरत से अपने मकाम पर मिले आप मक्के से इमाम हुसैन अलै० के हमरकब रहे और सुबहे आशूर कर्बला में शहीद हो गए । बाज़ मोर्रखींन का बयान है की आपके भाई अबीदुल्लाह और वालिदे माजिद यज़ीद इब्ने साबीत भी मक्के में इमाम हुसैन के हमराह हुए थे । हमला-ऐ-अव्वल में और बाद नमाज़ की जंग में वालिदे माजिद ने शहादत पाई है ।
बशीर इब्ने उमर-अल-कंदी (३१)
आप का पूरा नाम बशीर इब्ने उमर इब्ने अहदोस अल-ह्ज्ररमी अल-कनदी था । आप ह्ज्रमौत के रहने वाले थे और आप का शुमार कबीला-ऐ-कुनदा में होता था । आप ताबइ और बड़ी फज़िलातो के मालिक थे । आप का और आपके लडको का ज़िक्र अक्सर तारीखी जंग में आता है । आप कर्बला में इमाम हुसैन की खिदमत में हाज़िर हुए थे । आप के हमराह आप के एक लड़के मोहम्मद नामी थे ।सुबहे आशूर आगाज़ ही पर आपको इत्तेला मिली की आप के एक लड़के उमर नामी हुकूमते रै की सरहद पर गिरफ्तार हो गए है आपने जब ये सुना तो कहा । खुदाया! मै अपने लड़के को तुझसे लूँगा ये मुझको गवारा नहीं हो सकता की मै जिंदा और मेरा लड़का गिरफ्तार रहे । हजरत इमाम हुसैन अ० ने उनका ये कलाम सुन लिया फरमाया ऐ बशर ! मै तुम्हे इजाज़त देता हु की तुम जाकर अपने लड़के को रिहा कराओ । बशर ने जवाब दिया “आका-ओ-मौला” !मुझे शेर और भेडिये खा ले अगर मै आपको इन् दुश्मनों में छोड़कर चला जाऊं ।“हजरत ने फ़रमाया “अच्छा पाच बरदे यमानी जिन की कीमत एक हज़ार अशर्फी है अपने बेटे मोहम्मद को दे कर यहाँ से रवाना कर दो आपने इस के बाद पांचो यमनी चादरे उनको अता फरमाई मुआर्रखींन का इसपर इतीफाक है यौमे आशूरा हमला-ऐ-अव्वल आपने भी शहादत पाई ।
अब्दुल्लाह इब्ने अर्वाह अल-गफ्फारी (३२)
आप का पशुमार कूफे के शोर्फा में था । आप निहायत शुजा और बहादुर थे आपके दादा जनाबे हवाक असहाब अमीरुल मोमिनीन में थे और बड़ी इज्ज़त के मालिक थे वह जंगे जमल,सिफ्फिन और नहरवान में हजरत अली अ० के साथ हो कर लड़े थे । अब्दुल्लाह इमाम हुसैन अलै० से आकर मिले थे । और आखिरे हयात तक इमाम हुसैन अलै० के साथ रहे आप को जब इमाम हुसैन की शहदात का यकीन हो गया तो आप की खिदमत में हाजिर हो कर अर्ज़ परवाज हो गए, मौला मरने की इजाज़त दीजिये ताकि हम आप के सामने कुर्बान होकर सुर्ख-रु हो जाये और लड़ने के लिए निकलना ही चाहते थे की जंगे मग्लूबा हो गई और सब के साथ आप भी शहीद हो गए ।
बुरैर इब्ने हजीर-अल-हमदानी (३३)
आप का पूरा नाम बुरैर इब्ने हजीर-अल-हमदानी मशरकी था । आपका कबीला हमदान की शाख बनू मशरिक की एक अज़ीम शख्सियत थे । आप काफी उम्र रसीदा और ताबइ होने के साथ आबिद-व-जाहिद,करी-ऐ-कुरआन बल्कि उस्ताद-अल-ऐ-कुरआन थे आप का शुमार अमीरुल मोमिनीन के असहाब और शुराफाए कूफा में था । आपने कूफा से मक्का जाकर इमाम हुसैन अ० के हमराही और मइअत इख्तेयार की थी आपने इमाम हुसैन अलै० और उनके अहलेबैत अ० की जैसी खिदमत की है उस की मिसाल नज़र नहीं आती शबे आशूर पानी की जद्दो जहद में आप ने जो कारनामा किया है वो सफ्हाते तारिख में सोने के हर्फ़ से लिखने के काबिल है । मै आपके शबे आशूर वाले कारनामे को अपनी किताब “ज़िक्र-अल-अबबास” के सफा न० १९६ से नक़ल करता हूँ ।
अहलेबैत रसूल इस्लाम अ० पर सातवी से पानी बंद है सइ आब की हर सबील गैर मुफीद साबित हो चुकी है ।तग-ओं-दू की गई कुऐ खोदे गये मगर पानी दस्तयाब न हो सका । आशूर की रात आ गई है पयसो की आँखों में मौत का नक्शा नज़र आ रहा है इज्तेराबे अहलेबैत की कोई हद नहीं ।हजरते सकीना बिन्तुल हुसैन अ० फरमाती है नवी मुहर्रम का दिन गुजरने के बाद जब रात आई तो पानी की नायाबी ने हम लोगो कमको करीब-ब-हलाकत पंहुचा दिया । खुश्क बर्तनों और मश्कीजो की तरह हमारी ज़बान और लब खुश्क हो गए और ऐसी हालत पैदा हो गई जो बर्दाश्त न हो सकी बिल आखिर मई और बच्चो समेत अपनी फूफी जैनब की खिदमत में हाज़िर हुई ताकि उन्हें अपनी हालत से आगाह करके पानी की खवाहिश करूँ शायद वह कोई सबील पैदा कर सके मैंने उन्हें अपने खेमे पाया वह आगोशे मोहब्बत में मेरे भाई अली असगर को लिए हुए थी और उनकी हालत ये थी की कभी खडी होती और कभी बैठ जाती और मेरा भाई उनकी आगोश में तडपता था । जिस तरह छोटी मछली पानी में तडपती है और वह तडपते भी और चिल्लाते भी और मेरी फूफी उन्हें तसल्ली देते हुए फरमाती है मेरे बरादर जादे सब्र करो और साथ ही साथ ये भी फरमाती है “व अना लक-ल-सब्र”
और तुझे सब्र क्यों कर आ सकता है जब की तेरी यह हालत है ऐ बेटा क्या करूँ इस बात से सख्त तकलीफ है की मै तेरी हालत देखती हूँ और तेरा बयान सुनती हूँ और कुछ नहीं कर सकती । जनाबे सकीना फरमाती है की जब मैने फूफी जान का बयान सुना और अली असगर की हालत देखि तो मै भी रोने लगी फूफी अम्मा ने पूछा कौन है “सकीना”?मैंने अर्ज़ की “हाँ फूफी जान मै हूँ, उन्होंने पूछा “क्यों रो रही हो ? मैंने यह ख़याल करते हुए की मैंने अपनी प्यास का ज़िक्र किया तो वह और परेशां हो जाएंगी । मैंने कहा ऐ फूफी जान ! अगर आप अंसार के अयाल के पास किसी को भेंजे तो शायद कुछ पानी कहीं से दस्तयाब हो जाये । यह सुन कर हजरते जैनब स० ने मेरे भाई को आगोश में उठा लिया और खुद मेरी दीगर फुफियों के खेमे में गई लेकिन कहीं पानी की सबील नज़र न आई फिर जब वह वापिस होकर बाज़ फ़रज़न्दे इमाम हुसैन अ० के खेमे में पहुची तो आपके साथ और बहुत से छोटे छोटे बच्चे भी हो गए और सबको यह उम्मीद हो गई थी की हजरते जैनब कहीं से पानी की सबील निकाल लेंगी । गरज यह की आखिर में फूफी जैनब ने असहाब के खेमो में पानी का पता लगाया मगर मायूसी रही जब पानी मिलने से न-उमीदी हुई तो अपने खेमे में पलट आई । अब आप के पास तक़रीबन बीस लड़के-लडकियां जमा हो गए थे ।जो सब के सब हद से ज्यादा प्यासे थे ।
हजरत सकीना फरमाती है की हम सब अत्फाले हुस्सैनी खेमे में रो पीट रहे थे की नागाह हमारे खेमो की तरफ बुरैर हमदानी गुज़रे उन्होंने जब हमारी हालत का मुताल्लेआ किया तो बे-सख्त रोने लगे और सर पर ख़ाक डालते हुए दीगर असहाब से मिले और उन् से कहा की बड़े अफ़सोस की बात है की हमारे हाथो में तलवार होने के बावजूद खानदाने रिसालत के बच्चे प्यास से मर रहे है ।मेरे दोस्तो !अगर हम उन्हें सेराब न कर सके और वोह प्यास से मर जाए तो इस से बेहतर है की हम लोग मौत की आगोश में चले जाये मेरी राय यह है की हम लोग उन् बच्चो के हाथ पकड़ ले और नहर पर चले और उन्हें सेराब करने की सईं करे ।
यह सुन कर याहिया माज्नी बोले मेरे ख्याल में बच्चो का ले जाना दुरुस्त नहीं क्योकि दुश्मन हमला करेंगे अगर इस हमले में खुदा न खाव्स्ता कोई बच्चा शहीद हो गया तो हम इस का सबब करार पाएंगे बेहतर यह है की मश्कीज़ा ले ले और नाहर पर चल कर पानी हासिल करे दस्तेयाब होने पर उन बच्चो को सेराब करे ।जनाबे याहिया माज्नी की राय सब ने पसंद की और चार असहाब मश्कीज़ा लेकर नहरे फुरात की तरफ रवाना हो गए जिन के काएद बुरैर हमदानी थे । यह लोग फुरात के करीब पहुचे मुहफेजीने नहर ने उन की आमद महसूस की पूछा “मन हुवला -ऐ-अल-कौम”यह कौन लोग है यानि तुम कौन हो और क्यों आये हो?क्या गरज है? फरमाया पानी पिने और पानी ले जाने के लिए आये है उसने अर्ज़ किया ठहरो मई अपने सरदार से दरयाफ्त कर लूँ अगर इजाज़त मिलेगी तो पानी ले जाने का इमकान होगा वरना न-मुमकिन ।है एक शकस मुहफिजीने नहर के सरदार इसहाक बिन जसव के पास गया वह जनाबे बुरैर का रिश्तेदार था और कहा बुरैर पानी पिने और पानी कयामे हुस्सैनी तक ले जाने ले लिए आये है उसने कहा पानी पिने के लिए रास्ता दे दो जितना जी चाहे पि ले लेकिन ले जाने की इजाज़त नहीं । इजाज़त मिली पानी में उतरे पानी की ठंडक ने दिल पिघला दिया बुरैर ने पानी पिए बगैर अपने साथियों से कहा , मश्कीज़ा जल्दी भरो और चल खड़े हो क्यों की फ़रज़न्दे रसूल के दिल प्यास से पिघले जा रहे है ।
बुरैर की आवाज़ एक दुश्मन ने सुन ली और पुँकार कर कहा , तुम्हे पानी पिने की इजाज़त दी गई है तुम पानी नहीं ले जा सकते ।मै फौर्रन इसहाक को ब-खबर करता हूँ लेकिन यह भी सुन लो अगर उसने ब-पासे कराबत फुरात से पानी ले जाने की इजाज़त भी दे दी तो मै पानी न ले जाने दूंगा ।
बुरैर ने अपना लहजा कमाले सियासत की बिना पर नर्म करके उसे गिरफ्तार करना चाहां मगर वह गिरफ्त में न आया और उसने इसहाक को खबर कर दी इसहाक ने हुकुम दिया की पानी न ले जाने से रोको अगर न माने तो गिरफ्तार कर लो । गिरफ्तार कर के मेरे पास ले आओ । वह आया उसने मश्किज़े खाली करने का मुतालबा किया हजरते बुरैर ने फरमाया खुदा की कसम पानी बहाने से अपना खून बहाना बेहतर समझता हूँ मैंने एक कतरा भी पानी न पिया हमारी पूरी गरज खायामे हुस्सैनी तक पानी पहुचना है । जब तक दम है हमारे मश्किजो को कोई नज़र भर कर भी नहीं देख सकता ।
उन लोगो के इरादे मालूम करने के बाद दुश्मनों ने चारो तरफ से घेर लिया । उन हुस्सैनी बहादुरों ने मश्किजे जमीन पर रक्खे और उसके इर्द गिर्द घुटने टेक कर खड़े हो गए तीर बयानी का हुकुम हुआ और तीर बरसाने लगे एक बहादुर ने मश्किज़ा उठा कर कंधे पर रक्ख लिया और चाहा की जल्दी से निकल कर ता-ब-खयामगाह पहुच जाये इतने में एक तीर कंधे पर आकर लगा तस्मा कट गया और खून जारी हो गया और कदम तक पंहुचा उसने बड़ी ख़ुशी के साथ कहा खुदा का लाख लाख शुकर है जिसने मेरी गर्दन को मश्किज़े के लिए सिपर बनाया यानी मेरी गरदन छिदी तो छिदी मश्किज़ा तो बच गया । अभी तक उन बहादुरों की तलवारे नयाम में थी ।मगर हजरते बुरैर अब समझ चुके है की यह पानी रोकने में अपनी सारी कोशिश ख़त्म कर देंगे अब तमामे हुज्जत के लिए कहा,की देखो फर्ज़ान्दाने रसूल प्यासे है और उन के अत्फाल व औरते भी प्यासी है हमें पानी ले जाने दो । उन लोगो ने जवाब दिया, हुसैन और उन के बच्चो के लिए हम ने फुरात का पानी हराम कर दिया है ये न-मुमकिन है की तुम पानी ले जा सको । बुरैर ने कहा,देखो हमारी तलवारे अभी तक नियाम में सो रही उन्हें बेदारी का मौका न दो वरना बड़ी खु-रेज़ी होगी ।
दुश्मन पानी रोकने में मुबालिगा कर रहे है और ये पानी ले जाने पर इसरार । बात बड़ी आवाज़ बुलंद हुई इमाम हुसैन अलै० के गोश गुजार हुई आप ने इरशाद फरमाया “अल-ह्कवाबेही” ऐ अब्बास कुछ लोगो को लेकर बुरैर की कमूक में जल्द पहुचो वह दुश्मनों में घिर गए है हजरते अब्बास चनद असहाब को लेकर बुरैर की मदद को चले और उनके हमराह बाज़ मुहफेजीन खेमे भी हो लिए उम्र इब्ने हज्जाज ने जब देखा तो उसने लश्करियों कों हुकुम दिया की अगर चे रात है लेकिन तीर बयानी शुरु कर दो हुकुम पाते ही दुश्मन ने तीरों की बारिश शुरू कर दी । बुरैर ने बढ कर एक मश्किज़ा उठा लिया और अपने साथियों से कहा की तुम मेरे इर्द-गिर्द जमा हो जाओ ताकि तीर मश्किज़े तक न पहुच सके और पानी बहने से बच जाए ।बुरैर मश्क लिए हुए अपने साथियों के दरमियान में और साथी इर्द-गिर्द है जिस कदर तीर आते है यह बहादुर अपने सीनों पर लेते है मश्कीज़े तक किसी तीर की रसाई नहीं होने देते बुरैर हमदानी के सात तीर लग चुके है लेकिन मश्कीज़ा अभी तक महफूज़ है । कजारा एक तीर बड़ी तेज़ी के साथ उड़ता हुआ आया और एक बहादुर के सीने पर लगा और लोग घबरा गए और यह समझे की तीर मश्कीज़े पर लग गया है हजरते बुरैर से पूछा , की ज़रा बताओ तो सही की ये तीर कहाँ लगा? बुरैर ने कामाले अकीदत से जवाब दिया की मश्कीज़ा बच गया । अल्हम्दोलिल्लाह ! यह तीर मेरी गर्दन पर लगा है अल-गरज कुमुक पहुच गई दुश्मनों के दिल छूट गए । ये हजरात दुश्मनों को हटा कर बुरैर वगैरह को हमराह ले आये ।
हजरत बुरैर मश्कीज़ा लिए हुए खेमे के करीब पहुचे और पुकार कर कहा ऐ रसूले अकरम के छोटे-छोटे बचचो आओ पानी आ गया ब-ख़ुशी पियों । बच्चो में शोर मच गया एक दुसरे को पुकारने लगे आओ! बुरैर पानी लाये है तमाम बच्चे दौड़ पड़े और उन्होंने अपने को म्श्किज़े पर गिरा दिया मश्किज़े को कोई आँखों से कोई रुखसार से कोई पहलु से लगाने लगा मश्कीज़े पर दबाव पड़ा और इस का दहाना-ऐ-बंद उल्ट गया और सारे का सारा पानी बच्चो के सामने ज़मीन पर बह गया बच्चे एक दुसरे का मुंह ताकने लगे और सब ने मिल कर आवाज़ दी बुरैर ! पानी बह गया ।
बुरैर इस आवाज़ को सुनते ही मुंह पीटने लगे और बड़ी मायूसी और जबरदस्त अफ़सोस के साथ रो-कर कहा,हाय किस अर्क रेज़ी से पानी दस्तेयाब हुआ था मगर अफ़सोस पैगम्बरेइस्लाम की औलादे सेराब न हो सकी ।
गरज यह की पानी ज़मीन पर बह गया और छोटे-छोटे बच्चे कमाले तश्नगी की वजह से उस तर ज़मीन पर गिरने लगे हजरते अब्बास ने उस हश्र आफरीन वाक्ये को अपनी नजरो से देखा और बेताब होकर निहायत मायूसी के आलम में कफे अफ़सोस मलने लगे । (माएतीन सफा ३१६-३२३)
शबे आशूर के बाद सुबह आशूर आपने जबरदस्त नबर्द आजमाई की बुढ़ापे के बा-वजूद आप ने ऐसी जंग की की दुश्मनों के दांत खट्टे हो गए । आप जिस पर भी हमला करते थे उसे फ़ना के घाट उतार देते थे सब से पहले आप से जिसने मुकाबला किया वह यजीद इब्ने मअक्ल था आपने उसे चन्द वारो में फ़ना कर दिया आखिर इसी तरह आपने तीस दुश्मनों को फ़ना के घाट उतार दिया आखिर में राज़ी इब्ने मंनक्ज़ सामने आया आपने उसे ज़मीन पर दे मारा और उस के सीने पर सवार हो गए इतने में कअब इब्ने अज्वी ने आप की पुश्ते मुबारक पर तीर का गहरा वार किया आप ने गुस्से में आकर राज़ी जिसके सीने पर सवार थे उस की दाँतों से नाक काट की । कअब ने नेजा और तलवार से कई वार करके जनाब बुरैर को सख्त जख्मी कर दिया और आखिर आप को बहिर इब्ने औरा-अल-जबी ने शहीद कर डाला । शहादत के वक़्त आपने हजरते इमामे हुसैन अले० को आवाज़ दी और आप उनकी लाश पर पहुचे और आपने निहायत दर्द भरे लहजे में फरमाया “अन-बुरैर मिन्न अबदिल्लाह-हिस्सालेहींन” हाय बुरैर हमसे जुदा हो गए जो खुदा के बेहतरीन बन्दों में से थे ।
वहब इब्ने अब्दुल्लाह-अल-कलबी (३४)
आप का नाम वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी था । आप बनी क्लब के एक फर्द थे । हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया है । हम आप के वाकेयाते शहादत को किताब के ज़रिये ज़िक्र-अल-अब्बास से नक़ल करते है । कर्बला की हौलनाक जंग में हुस्सैनी बहादुर निहायत दिलेरी से जान दे-दे श्र्फे शहादत हासिल कर रहे थे । यहाँ तक की जनाबे वहब बिन अब्दुल्लाह अल-कलबी की बारी आई । यह हुस्सैनी बहादुर पहले नसरानी था और अपनी बीवी और वालिद समेत इमाम हुसैन अलै० के हाथो पर मुसलमान हुआ था । आज जब की यह इमाम हुसैन अलै० पर फ़िदा होने के लिए आमादा हो रहे है उनकी वालेदा हमराह है माँ ने दिल बढ़ाने के लिए वहब से कहा , बेटा आज फ़रज़न्दे रसूल पर कुर्बान हो कर रूहे रसूल मकबूल स० को खुश कर दो । बहादुर बेटे ने कहा, मादरे गिरामी आप घबराये नहीं इंशा अल्लाह ऐसा ही होगा ।
अल-गरज आप इमाम हुसैन अलै० से रुखसत होकर रवाना हुए और रजज पढ़ते हुए दुश्मनों पर हमलावर हुए आप ने कमाले जोश व शुजाअत में जमाअत की जमाअत को कत्ल कर डाला इस के बाद अपनी माँ “कमरी”और बिवी की तरफ वापिस आये । माँ से पूछा मादरे गिरामी आप खुश हो गई माँ ने जवाब दिया मै उस वक्त तक खुश न होउंगी जब तक फ़रज़न्दे रसूल के सामने तुम्हे खाको खून में गलता न देखूं । यह सुन कर बीवी ने कहा, ऐ वहब मुझे अपने बारे में क्यों सताते हो और अब क्या करना चाहते हो? माँ पुकारी “यांनी बनी ल तक्बिल कौल्हा” बेटा बीवी की मोहब्बत में न अ जाना खुदारा जल्द यहाँ से रुखसत होकर फ़रज़न्दे रसूल पर अपनी जान कुर्बान कर दो वहब ने जवाब दिया मादरे गिरामी ऐसा ही होगा । मुझे इमाम हुसैन का इज्तेराब और हजरते अब्बास जैसे बहादुर की परेशानी दिखाई दे रही है भला क्योकर मुमकिन है की मै ऐसी हालत में ज़रा भी कोताही करूँ । इस के बाद जनाबे वहब मैदाने जंग की तरफ वापिस चले गए और कुछ अशआर पढ़ते हुए हमलावर हुए यहाँ तक की आपने उन्नेस१९ ब-कौले१२ सवार और १२ प्यादे कत्ल किये इसी दौरान में आप के दो हाथ कट गए । उनकी यह हालत देखकर उनकी बीवी को जोश आ गया और वह एक चौबे खेमा लेकर मैदान की तरफ दौड़ी और अपने शौहर् को पुकार का कहा खुदा तेरी मदद करें । हाँ फ़रज़न्दे रसूल के लिए जान दे दो और सुन इसके लिए मै अब भी अमादा हूँ । यह देख कर वहब अपनी बीवी की तरफ इसलिए फौरन्न आये की उन्हें खेमे तक पंहुचा दे उस मुख्द्दर ने उन का दामन थाम लिया और कहा मै तेरे साथ मौत की आगोश में सोउंगी । फिर इमाम हुसैन अले० ने उसे हुकुम दिया की वह खेमो में वापिस चली जाए । चुनाचे वह वापिस चली गई उसके बाद वहब मशगूले कार्जार हो गए । और काफी देर तक नबर्द आजमाई के बाद दर्जा-ऐ-शहादत पर फाऐज हुए वहब के ज़मीन पर गिरते ही उनकी बीवी ने दौड़ कर उन् का सर अपनी आगोश में उठा लिया उन के चेहरे से गर्दो-गुबार और सर व आख से खून साफ़ करने लगी इतने में शिमरे लई के हुकुम से उसके गुलाम रुस्तम लई ने उस मोमिना के सर पर गूरजे आहनी मारा और यह बेचारी भी शहीद हो गई । मोर्रखींन का कहना है की “वही अव्वल अम्रात क्त्ल्त:फी अस्कर-अल-हुसैन” यह पहली औरत है जो लश्करे हुसैन में कत्ल की गई । एक रिवायत में है जब वहब ज़मीन पर गिरे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया यानी उनकी लाश पर कब्ज़ा करके सर काट लिया गया । उसके बाद उस सर को खेमा-ऐ-हुस्सैनी की तरफ फेक दिया और माँ ने उस सर को उठा लिया बोसे दिए और दुश्मन की तरफ फेक कर कहा, हम जो चीज़ रहे मौला में देते है उसे वापिस नहीं लेते । कहते है की वहब का फेका हुआ सर एक दुश्मन के लगा और वह हालाक हो गया । फिर माँ चौबे खेमा लेकर निकली और दुश्मनों को कत्ल कर के ब-हुक्मे इमाम हुसैन खेमे में वापिस चली गई । दमा सकेबा सफा ३३१ तारीखे कामिल तुफाने बुका शोला १३ तबा इरान १३१४ हिजरी ।
अहदम इब्ने अमितुल अब्दी (३५)
आप बसरा के रहने वाले थे । आपने कूफे में सुकूनत इख्तेयार कर ली थी आप निहायत मौत्मिद किस्म के शिया थे । मारिया क्ब्तीया के मकान में जहाँ शिया जमा हुआ करते थे और बाह्मी मशविरे हुआ करते थे वहां यह भी पाबंदी से जाते एयर मशवरे से लोगो को आगाह करते थ । एक दिन यजीद बिन सबीत ने कहा की मै अनकरीब इमाम हुसैन की इमदाद के लिए मक्का-ऐ-मोज्ज्मा जाऊंगा यह सुन कर आप ने भी इजहारे ख़याल किया और कहा,बेशक जाना चाहिए, और सुनो! मै भी तुम्हारे हमराह चलूँगा चुनाचे यह हजरात कूफे से रवाना होकर मक्का-ऐ-मोआज्ज्मा पहुचे और इमाम हुसैन अले० के हमराह ही कर्बला आये । उन्होंने कमाले दिलेरी से यौमे आशूरा जाने अज़ीज़ इमाम हुसैन अलै० पर जान कुर्बान कर दी ।
उमय्या इब्ने सअद अल-ताई (३६)
आप हजरात अमीरुल मोमिनीन के असहाबे ख़ास में थे । आप को ताबइ होने का शरफ हासिल था । आप ने कूफे में सुकूनत इख्तेयार कर रखी थी । जब आप को इल्म हुआ की इमाम हुसैन अलै० के कर्बला पहुच गए है तो आपने कमाले उजलत के साथ अपने आपको कर्बला पहुचाना जरुरी समझा चुनाचे आप नवी मोहर्रम से वारिदे कर्बला हो गए और यौमे आशूरा कमाले जज्बऐ कुर्बानी के पेशे नज़र इमाम हुसैन अलै० और इस्लाम पर कुर्बान हो गए ।
सअद इब्ने हंज्ला अल-तमीमी (३७)
खालिद इब्ने उमर की शाहादत के बाद इब्ने हंज्ला तमीमी मैदाने जंग आये और मशगूले कार्जार हो गए कातिल कितालन सदिदन, निहायत ही बे-जिगरी से ज़बरदस्त जंग की और बहुत से दुश्मनों को फना के घाट उतार कर बहरे मौत में खुद डूब गए।
उमैर इब्ने अब्दुल्लाह अल-मदहजी (३८)
जनाबे सईद इब्ने हंज्ला की शहादत के बाद जनाबे उमैर इब्ने अब्दुल्लाह अल-मदहजी मैदाने जंग में आये आपने कमाले बेज़िगरी से जंग की । चारो तरफ से दुश्मनों ने आप पर हमले किये आप ने कसीर दुश्मनों को कत्ल किया बिल आखिर मुस्लिम स्बानी और अब्दुल्लाह जबली मलाउन ल० ने आप को शहीद कर दिया ।
मुस्लिम बिन औसजा अल-असदी (३९)
आप का पूरा नाम व नसब ये है की मुस्लिम इब्ने औसजा इब्ने सअलब: इब्ने दिद्वीन इब्ने असद इब्ने हजिमिया अबू हजल असदी सअदी आप के बड़े शरिफुन्न्फ्स शरिफुल कौम थे इबादत और जुह्द में दर्ज-ऐ-कमाल पर फाएज़ थे । आप को सहाबी-ऐ- रसूल होने का भी शरफ हासिल था । इस्लामी फुतुहात में आप ने बड़े बड़े कार नुमाया किये है । २४ हिजरी में फतहे आजरबाईजान में हज़िफा यमान के हमराह जो नुमायाँ उन्होंने किया है वह तारिख में यादगार है ।
इमामे हुसैन अलै० को दावते कूफा देने वालो में आप का इसमें गिरामी भी है । आप ने मुस्लिम इब्ने अकील की मग्बुलियत और बाद में उनके तहाफुज़ में कमाले खुर्मो अहतियात का सबूत दिया । इब्ने ज़ियाद के कूफे आने के बाद जनाबे मुस्लिम इब्ने औसजा ने ही काबाइले तमीम व हमदान कुंडा दरबइअ: को साथ लेकर दारुल अमारा पर हमला किया था ।
मुस्लिम इब्ने अकील और हानि इब्ने अर्वाह की शहादत और शरीक इब्ने अउर ( जो पहले से अलील था ) की वफात के बाद मुस्लिम इब्ने औसजा थोड़े अरसे रूपोश रहे फिर बाल-बच्चो समेत कूफे से पोश्दगी के साथ रवाना होकर कर्बला पहुचे ।
नौ मुहर्रम की शाम को जब इमाम हुसैन अलै० ने खुतबे में फरमाया था की यह लोग सिर्फ मेरा खून बहाना चाहते है ऐ मेरे असहाब-ओं-अइज्जा तुम अगर जाना चाहो तो यहाँ से चले जाओ । मै तौके बैअत तुम्हारी गर्दनो से हटा लेता हूँ । इस के जवाब में अइज्जा की तरफ से हजरते अब्बास और असहाब की जानिब से मुस्लिम इब्ने औसजा ने ही कहा था की ये हो ही नहीं सकता हम अगर सारी उम्र मारे और जिलाए जाये तब भी आप ही के साथ रहे । आप की खिदमत में शहादत सआदते उज़मा है ।
शबे आशूर जब खंदक के गिर्द आग जलाने पर शिमर ने ताना जनि की तो उस का मुंह तोड़ जवाब मुस्लिम इब्ने औसजा ने ही दिया था ।
सुबहे आशूर जब लश्करे इब्ने साद ने हमला-ऐ-ग्रां किया था तो उस वक्त मुस्लिम इब्ने औसजा ने ऐसी तलवार चलाई और वो मार्के किये की किसी ने भी कभी ऐसा देखा न सुना था ।
आप बड़ी बेजिग्री से लड रहे थे की मुस्लिम इब्ने अब्दुल्लाह जुब्यानी और अब्दुल्लाह इब्ने खाश्कार ने आप पर एक साथ हमला कर दिया मैदान गर्द से पुर था जब गर्द बैठी तो मुस्लिम इब्ने औसजा खाको खून में लोटते देखे गए । इमाम हुसैन अलै० ने बढ़कर मुस्लिम की दिलजोई की और उन्हें दुआऐ दी । आप की शाहदत पर लोगों ने ख़ुशी का इज़हार किया तो सबस इब्ने रबई ने जो अगर चे दुश्मन था बोला अफ़सोस तुम ऐसी शख्सियत की शहादत पर ख़ुशी का इज़हार कर रहे हो जिन के इस्लाम पर एहसानात है उन्होंने ने जंगे आजरबाईजान में छ; मुशरिको को एक साथ कत्ल कर के दुश्मनों की कमर तोड़ दी थी ।
आप की शहादात के बाद आप के फरजंद मैदान में आये और आप ने जबरदस्त नबर्द आजमाई की और आप तीस दुश्मनों को कत्ल कर के खुद भी शहीद हो गये ।
हिलाल इब्ने नाफेअ-अल-जबली (४०)
आप बड़े दीनदार शरीफ और बहादुर थे आप की परवरिश हजरत अली अलै० ने की थी । आप तीरंदाजी में अपना नज़ीर न रखते थे आप की आदत थी तीरों पर अपना नाम लिखवा लिया करते थे । आपको आले मोहम्मद (स०) की खिदमत का बड़ा शौक था । शबे आशूर का मशुर वाकेआ है की इमाम हुसैन अलै० मौका-ऐ-जंग देखने निकले थे तो हिलाल ने आप की हमराही इख्तियार कर ली थी। इमाम हुसैन अलै० ने मौक़ाऐ जंगे के सिलसिले में आप से मशविरा भी लिया था आप के बारे में ओलमा ने लिखा है “ काना हाज्मन बसिरन सियासत :”। की आप बहुत ही समझदार और सियासतदान थे । सुबह आशूर जब आप मैदाने जंग में जाने के लिए निकोले तो आप की जौजा ने मुज़हेमत की । आप ने कहा फ़रज़न्दे रसूल की खिदमत दुनिया व माँ फिहा से बेहतर है । मैदाने जंग में पहुचने के बाद आपने ऐसे हमले किये की जिन्होंने बड़े-बड़े बहादुरों को फना के घाट उतार दिया । आप के तरकश में अस्सी तीर थे जिस से सत्तर दुश्मनों की कत्ल किया तीरों के ख़त्म हो जाने के बाद आप ने तलवार निकाली और जबरदस्त हमला करके तेरह दुश्मनों को कत्ल कर दिया ।
जब शिमर ने देखा की हिलाल काबू में नहीं आते तो चारो तरफ से हमला कर दिया यहाँ तक की आपके बाजूं शिकस्ता हो गए और आप शहीद कर दिए गए ।
सईद इब्ने अब्दुल्लाह अल-हनफ़ी (४१)
आप कूफे के नामी गिरामी शियों में से थे । इबादत गुजारी में मुमताज़ और बहादुरों में नामवर थे । माविया के मरने के बाद अहले कूफा ने जो मोतमदीन के हमराह खुतूत इरसाल किये थे उन् मोतमिद लोगो में जनाबे सईद भी थे इमाम हुसैन अलै० ने आखिरी ख़त का जवाब जो इरसाल फरमाया था जिस में जनाबे मुस्लिम की रवानगी का हवाला था वोह उन्ही सईद के ज़रिये से था ।
मुस्लिम इब्ने अकील के पहुचने के बाद जिन लोगो ने हिमायती खुतबे पढ़े उनमे तीसरा नम्बर सईद का था । मुस्लिम इब्ने अकील की तरफ से इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में यहीं सईद ख़त लेकर गए थे और वहां पहुच कर फिर इस ख्याल से वापिस नहीं आये की इमाम हुसैन अलै०के हमराह कूफे पहुचेगे ।सुबहे आशुर आपने जंग की और जोहर के वक्त की अज़ीम जंग में आपने कारे नुमाया किये ऍन जंग में नमाज़े जोहर जमात के साथ पढने में आपने बड़ी दिलेरी का सबूत दिया ।
हालाते नमाज़ में जब दुश्मनों ने इमाम हुसैन अलै० पर जब तीर बरसाने किये तो जनाबे सईद इमामे हुसैन अले० के सामने आकर खड़े हो गए और तीरों को अपने चेहरे अपनी गर्दन ,अपने सीने और अपने पहलुओं पर रोकने लगे और इमाम हुसैन अलै० तक तीर नहीं पहुचने दिया और इसी तरह तीर रोकते-रोकते शहीद हो गए इमाम हुसैन अलै० आप की शहदात से बहुत मुत्तास्सिर हुए।
अब्दुर्र रहमान इब्ने अब्दुल मजनी (४२)
आप निहायत शरीफ और आले मोहम्मद के चाहने वाले थे यौमे आशुरा इमाम हुसैन अलै० के इज्ने जंग हासिल करके मैदाने जंग में बरामद हुए । आप ने रजज पढ़ा और दुश्मनों पर जबरदस्त हमला किया बहुत से दुश्मनों को कत्ल करके खुद भी शहीद हो गए ।
नाफेअ इब्ने हिलाल-अल-जमली (४३)
आप का पूरा नाम नाफ़ेअ इब्ने हिलाल इब्ने नाफ़ेअ इब्ने हमल इब्ने सअद अल-अशीरा इब्ने मदहज अल-जमली थ । आप बुजुर्गे कौम और शरिफुन्न्फ्स थे । मिल्लत की सरदारी और रियासत आप की खानदानी विरासत थी । आप बहादुर, कारी-ऐ-कुरान रावी-ऐ-हदीस और मुंशी-ऐ-कामिल थे आप को हजरत अली अलै० के असहाब में भी होने का शरफ हासिल था आप ने जंगे जमल, सिफ्फिन,और नहरवान में शिरकत की थी । कूफे में जनाबे मुस्लिम इब्ने अकील की शहादत से कबल ही आप इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में पहुच गए थे । लश्करे हुर्र से मुलाक़ात के बाद स्यादुश शोहदा ने जिस खुतबे में ये फरमाया था की तुम लोग चले जाओ यह लोग सिर्फ मेरा खून बहाना चाहते है । इस का जवाब असहाब में जुहैर ने सबसे पहले दिया था उस के बॉस नफ़ेअ इब्ने हिलाल ने ही एक तवील तक़रीर में जांनिसारी का यकीन दिलाया था ।
कर्बला में पानी बंद हो जाने के बाद हुसुले आब में आपने भी काफी जद्दो-जहद की थी । एक दो बार हजरते अब्बास अलै० के साथ भी सई-ऐ-आब में गए थे ।आपने अपने तमाम तीर जहर में बुझाए हुए थे बारह दुश्मनों को तीर से मार कर तलवार से हमला करने लगे और बेशुमार दुश्मनों की जख्मी कर दिया बिल आखिर शिमर ने आप को शहीद कर दिया ।
उमर इब्ने कर्जा अल-अंसारी (४४)
आप का पूरा नाम और नसब ये है :-‘उमर इब्ने करजा इब्ने कअब इब्ने उमर इब्ने आएज़ ज़ैद इब्ने मनात इब्ने सलबा इब्ने कअब इब्ने अल-खजरज अल-अंसारी अल-कूफी अल ख्जरजी कूफी था । आप के वालिदे माजिद जनाब करजा अंसारी रसूल स० के सहाबी थे आप से आ हजरत की बहुत सी हदीसे है । आँ हजरत के बाद आपको हजरत अली अलै० के सहाबी होने का शरफ हासिल था । आप मदीने मुन्नव्वरा से कूफे आकर मुकीम हुए और जंगे जमल—-सिफ्फिन और नहरवान में आप ने हजरत की बैअत में जंग की आपको अमीरुल मोमिनीन ने फारस का हाकिम बना दिया था । सन ५१ हिजरी में आपकी वफात हुई कूफे में सबसे पहले हजरत अली अलै० के बाद आप का नौहा पढ़ा गया । करजा ने कई औलादे छोड़ी जिस में सब से ज़यादा मशहूर उम्र इब्ने करजा थे ।
जनाबे उमर इब्ने करजा ने रास्तों की बदिश से पहले इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में ब-मकाम कर्बला अपने को पंहुचा दिया था ।आप कर्बला में उमरे साद के पास पैगामात पहुचाया करते थे ।
आप इमाम हुसैन से इजाज़त लेकर यौमे आशूरा मैदाने जंग में आये और आप ने रजज पढ़ कर जबरदस्त हमला किया
और काफी ज़ख़्मी होकर इमाम हुसैन अले० की खिदमत में हाजिर हुए जब इमाम हुसैन अलै० पर दुश्मनों ने हमला कर दिया तो आप तीरों को सीने पर लेने लगे यहाँ तक की शहीद हो गए ।(जिक्र-अल-अब्बास सफा न० २२३)
जौन बिन हवी गुलामे गफ्फारी (४५)
जनाबे जौन अबुज़र गफ्फारी के गुलाम थे आप को आले मोहम्मद से वही खुसूसियत हासिल थी जो अबुज़र को थी । जौन पहले इमामे हसन अलै० की खिदमत में रहे फिर इमामे हुसैन अलै० की खिदमत गुजारी के शरफ से बहरावर हुए । आप इमामे हुसैन अलै० के हमराह मदीने से मक्का और वहां से कर्बला आये ।
आशूरा के दिन आपने इजने जेहाद तलब की तो आप ने फरमाया “जौन ! मुझे पसंद नहीं की मै तुम्हे कत्ल होते देखूं” । जौन ने कदमो पर सर रखते हुए अर्ज़ की “मौला आप के कदमो में शहीद हो जाना मेरी जिंदगी का मकसद है”।
मौला ! मेरा पसीना बूदार है हस्ब खराब है और रंग कला सही, लेकिन जज्बा-ऐ-शःहद्त में खामी नहीं है मौला इजाज़त दीजिये की की सुर्खरू हो जाऊ।
इमामे हुसैन अलै० ने इजाज़त दी और जौन मैदाने जंग में आये । आप ने जबरदस्त जंग की और दर्जा-ऐ-शहादत पर फाएज़ हुए । इमामे हुसैन अले० लाशे जौन पर पहुचे आपने दुआ देते हुए कहा “खुदाया”! इनके पसीने को मुश्क्जार और रंग को सफेद कर दे और हस्ब को आले मोहम्मद (स०) के इंतेसाब से मुमताज़ कर दे ।
इमामे हुसैन बाकर अलै० का इरशाद हैं की शहादत के बाद आप का चेहरा रौशन हो गया था । और बदन से मुश्क की खुश्बू आ रही थी ।
उमर इब्ने खालिद-अल-सिदादी (४६)
आपका पूरा नाम उमर इब्ने खालिद अल-असदी था और आपकी कुन्नियत अबू खालिद थी । आप मकाम सहरा के रहने वाले थे और कूफे के शुरफा में से थे । आप को मोहब्बत अहले बैअत में कमाल हासिल था हजरते मुस्लिम इब्ने अकील की पूरी हिमायत की थी और शहादते हजरते मुस्लिम के बाद आपने मजबूरन रु-पोशी इख्तेयार की थी । आप को जब मालूम हुआ की इमामे हुसैन अलै० मक्का से कूफा पहुच रहे है तो आप गैर मारूफ रास्तो से रवाना होकर मंजिले अजीब “ह्जानत” में हाजिरे खिदमत हो गए और कर्बला पहुच कर यौमे आशूरा उरूसे शहादत से हम किनार हो गए । अब्द मुक्फ़ का बयान है की ये इब्ने खालिद जंग करते-करते सख्त घेरे में आ गए तो इमामें हुसैन अले० ने हजरते अब्बास को उनकी मदद के लिए भेजा था आप ने पूरी मदद की आखिर में आप शहीद हो गए । (जिक्र-अल-अब्बास सफा न० २२३)
हनजला इब्ने असद-अल-शबामी (४७)
आप का पूरा नाम और नसब यह है की ह्न्ज्ला इब्ने साद इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने असद इब्ने हाशिम इब्ने हमदान-अल-हमदानी । आप कबएले हमदान के कबीले बनी शबाम से थे ।
आप निहायत सरवरआवरद: शिया थे । निहायत फसीह-ओं-बलीग कारी निहायत शुजा और बहादुर शख्स थे । आप का एक लड़का था जिस नाम “अली” था और जिस का जिक्र तारीखों में आया है ।इमामे हुसैन अले० के कर्बला पहुचने के बाद हाजिरे खिदमत हुए । यौमे आशूरा इजाज़त लेकर मैदान में आ गए आपने बेशुमार दुश्मनों को क़त्ल किया बिल-आखिर बहुत से खून्खारो ने मिल कर आपको शहीद कर दिया ।
सवीद इब्ने उमर-अल-तमारी (४८)
आपका इसमें गिरामी सवीद इब्ने उमर इब्ने अबी मताबा-अल-तामीरी ख्श्मी था । आप बड़े शुजा निहायत बहादुर और लड़ाइयों में आज्मुदाकार थे । इबादत गुजारी आप की आदत, जोहद व तक्वा आप का शेवा था । आप नें यौमे आशूरा दुश्मनों से नबर्द आजमाई की और बेशुमार दुश्मनों को कत्ल किया । जब आप जख्मो से चूर होकर जमीन पर गिरे और बेहोश हो गए तो लोगो ने यह समझकर आपकी तरफ से नजर मोड़ ली की आप इन्तेकाल कर गए है थोड़ी देर बाद जब शहादते हुस्सैनी की ख़ुशी में बाजे बजने लगे तो आप की होश आया । आप ने फौर्रन कमर से वह छुरी निकाल कर जो छुपी हुई थी दुश्मनों पर हमला कर दिया बिल आखिर अर्वाह इब्ने बुकार और ज़ैद इब्ने वर्का ने आपको शहीद कर दिया ।
याहिया इब्ने सलीम- अल- माज्नी (४९)
आप मोहब्बते आले मोहम्मद में शोहरत के मालिक थे । शबे आशूर बुरैर हमदानी के साथ आप भी पानी लाने के लिए गए थे । यौमे आशूरा आपने जबरदस्त जंग की थी आप इजने जेहाद लेकर मैदाने जंग में आये और आपने बेशुमार दुश्मनों को कत्ल किया इस के बाद आप पर बहुत से दुश्मनों ने मिल कर हमला कर दिया आखिरकार आप शहीद हो गए ।
कुर्रह इब्ने अबी कुर्तल गफ्फारी (५०)
आप निहायत सईद, शरीफ और जाबाज़ थे ।यौमे आशूरा इमामे हुसैन अलै० पर जान देने में कार्हाए नुमाया किये थे । आपने दुश्मनों पर उस बेजिग्री से हमले किये थे की दुश्मनों के दातं खट्टे हो गए आप मैदान में रजज पढ़ते थे और हमला करते थे । बिल आखिर आप शहीद हो गए ।
मालिक इब्ने अनस-अल-मलकी (५१)
इब्ने नमा का बयान है की मालिक इब्ने अनस का नाम अनस इब्ने हरस इब्ने काहिल इब्ने उमर इब्ने सअब इब्ने असद इब्ने हजीमा असदी-अल-काहिली था । आप हुजुर सरवरे कायनात के सहाबी थे और रावी हदीस दोनों फिरको के ओलमा ने रिवायत की है की आप का कहना है की मैंने आँ हजरत को यह कहते हुए सुना है की मेरा बच्चा हुसैन कर्बला में शहीद किया जायेगा जो उस वक्त हाजिर हो उसे मदद करनी जरुरी है ।ओलमा अस्क्लानी और इब्ने ज्जरी ने असाबा और अस्द्ल्ग़ाब : में लिखा है । इब्ने ज्जरी का कहना है की अनस का शुमार कूफी असहाब में था । यानी कूफे के बाशिंदे थे ।आप कूफे से रात को निकल कर कर्बला पहुचे और रौज़े आशूरा इमामे हुसैन अलै० पर निसार हो गए आप निहायत कबिरुल सिन्न थे इमामे हुसैन अलै० से इजाज़त लेकर मैदाने जंग में आये और रजज पढ़ते हुए शहीद हो गए ।
ज़ियाद इब्ने गरीब-अल-साएदी (५२)
आपका पूरा नाम और नसब यह है की ज़ियाद इब्ने गरीब इब्ने ह्न्ज्ला इब्ने वारिम इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने कअब इब्ने शर्जील इब्ने उमर इब्ने ज्श्म इब्ने हाशिद इब्ने ज्श्म इब्ने खैर्दान इब्ने औफ़ इब्ने हमदान । आप की कुन्नियत अबू उम्र:थी ।आप कबाइल-ऐ-हमदान के काबिलीये बनी हाएद के चश्मों चराग थे ।
आप के वालिद गरीब सहाबी-ऐ-रसूल थे और खुद आपको भी ऑ हजरत की जियारत नसीब हुई थी । आबिद व जाहिद और तहज्जुद गुज़ार थे । आप का शुमार मुशाहिरे एबाद में था । आप ने इमाम हुसैन अलै० से कर्बला में मुलाकात की और यौमे आशोरा नबर्द आजमाई के बाद दर्जा-ऐ-शहादत हासिल किया । आपका कातिल आमिर (ल) इब्ने न्ह्शल था ।
उमर इब्ने मताअ-अल-जअफी (५३)
आप जबरदस्त मोहिब्बे अहलेबैत थे । कर्बला में रोजे आशुरा इमामे हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर होकर अर्ज़ की “मौला! मरने की इजाज़त दीजिये । इमामे मजलूम ने इजने जंग अता फरमाया आप मैदान में तशरीफ़ ले गए और अज़ीम नाब्र्दाज्माई के बाद शहीद हुए ।
हज्जाज इब्ने मसरूक अल मदहजी (५४)
आप का पूरा नाम हज्जाज इब्ने मसरूक इब्ने जअफ इब्ने सअद अशीरा था । आप का कबीला मदहज के एक अज़ीम फर्द थे । आप का शुमार हजरत अली अलै० के खास शियों में था । आप कूफे में रहते और हजरत अली अलै० की खिदमत करते थे ।
इमामे हुसैन अलै० की मक्के से रवानगी के वक्त हज्जाज भी कूफे से रवाना हुए और मंजिले कसर बनी मकातिल में शरफे मुलाकात हासिल किया ।जब अब्दुल्लाह इब्ने हुर्र जअफ़ी (जिन का खेमा कसर इब्ने मकतिल में पहले से नसब था ) को दावते नुसरत देने के लिए इमामे हुसैन अलै० खुद के खेमे में तशरीफ़ ले गए तो हज्जाज आप के हमराह थे ।
जनाबे हज्जाज यौमे आशुरा इमामे हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हो कर अर्ज़ की मौला! मरने की इजाज़त दीजिये ‘। इमामे हुसैन ने इजने जिहाद अता फरमाया और हज्जाज मैदान में तशरीफ़ लाये और नाब्र्दाज्माई शुरु की आप ने १५ दुश्मनों को कत्ल करने के बाद हाजिरे खिदमते इमाम हुए और थोड़ी देर मौला की खिदमत में ठहर कर मैदाने जंग में फिर तशरीफ़ लाये और अपने “गुलामे मुबारक” की मैय्यत में दुश्मनों से लड़ते रहे । आखिरकार एक सौ पचास (१५०) दुश्मनों को कत्ल करके शहीद हो गए ।
जुहैर ईब्ने कैने अल-जबली (५५)
जुहैर इब्ने कैन इब्ने किस अल अन्मारी जबली अपनी कौम के शरीफ और रईस थे आपने कूफे में सुकूनत इख्तेयार की थी और वहीँ पर रहते थे । आप बड़े शुजा और बहादुर थे ।अक्सर लड़ाइयों में शरीक रहते थे । पहले उस्मानी थे फिर ६० हिजरी में हुस्सैनी-अल-अल्वी हो गए ।
६० हिजरी में हज के लिए अहलो अयाल समेत गए थे । वहां से वापस कूफे आ रहे थे की रास्ते में इमाम हुसैन अलै० से मुलाकात हो गई । एक दिन ऐसी जगह उनके ख्याम नसब हुए की इमाम हुसैन अलै० के खेमे भी सामने थे । जब जुहैर खाना खाने के लिए बैठे तो इमाम हुसैन अलै० का कासिद पहुच गया । उसने सलाम के बाद कहा जुहैर तुम को फ़रज़न्दे रसूल ने याद किया है यह सुन कर सबको सकता हो गया और हाथों से निवाले गिर पड़े ।जुहैर की बीवी जिस का नाम ‘वलहम बीनते उमर , था जुहैर की तरफ मुतावाज्जो हो कर कहने लगीं जुहैर क्या सोचते हो? खुशनसीब तुमको फ़रज़न्दे रसूल ने याद किया है उठो और उनकी खिदमत में हाजिर हो जाओ ।
जुहैर उठे और खिद्मते इमाम हुसैन अलै० में हाजिर हुए थोड़ी देर के बाद जो वापिस आये तो उनका चेरा निहायत बश्शाश था ।ख़ुशी के साथ आसार उनके चेरे से जाहिर थे ।
उन्होंने वापस आतें ही हुकुम दिया की सब खेमे इमाम हुसैन अलै० के खयाम के करीब नसब कर दे और बीवी से कहा मै तुमको तलाक दिए देता हूँ तुम अपने काबिले को वापिस चली जाओ मगर एक वाकया मुझ से सुन लो ।
जब लश्करे इस्लाम ने बल्खजर पर चढाई की और फतह्याब हुए तो सब खुश थे और मैभी खुश था मुझे मसरूर देखकर सुलेमान फ़ारसी ने कहा की जुहैर तुम उस दिन इससे ज्यादा खुश होगे जिस दिन फर्ज्न्दे रसूल के साथ होकर जंग करोगे “।(अल-बसार अल-एन)
मै तुम्हे खुदा हाफिज कहता हु और इमाम हुसैन अलै० के लश्कर में शरीक होता हूँ इसके बाद आप इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हुए और मरते दम तक साथ रहें यहाँ तक की शहीद हो गए ।
मोआर्खींन का बयान है की जनाबे जुहैर इमाम हुसैन अलै० के हमराह चल रहे थे मकामे “जौह्श्हम” पर हुर्र की आमद के बाद आप ने खुतबे में असहाब से फरमाया की तुम वापस चले जाओ उन्हें सिर्फ मेरी जान से मतलब है इस जवाब में जुहैर ने ही कहा था की हम हर हाल में आप पर कुर्बान होंगे ।जब हुर्र ने इमाम हुसैन अलै० की से मुज़हेमत की थी तो जनाब जुहैर ने इमाम हुस्सैंन की बारगाह में दर्खावस्त की थी अभी ये एक ही हजार है हुकुम दीजिये की उनका खातेमा कर दे । जिस के जवाब में इमामे हुसैन ने फ़रमाया था की हम इब्तेदाए जंग नहीं कर सकते । मोर्रखींन का ये बयान है की जब हजरते अब्बास एक शब् की मोहलत लेने के लिए शबे आशुर निकले थे तो जनाबे जुहैर भी आप के साथ थे ।
शबे आशुर के खुतबे के जवाब में जनाबे जुहैर ने कमाले दिलेरी से अर्ज़ की थी की आप “मौला अगर ७० मर्तबा भी हम आप की मोहब्बत में कत्ल किये जाए तो भी कोई परवाह नही ।
मोअर्र्खींन का इत्तेफाक है की सुबह आशुर जब इमाम हुसैन अलै0 ने अपने छोटे से लश्कर की तरतीब दी तो मैम्ना जनाबे जुहैर ही के सुपुर्द किया था ।
यौमे आशुर आपने जो कारे-नुमाया किया है वह तारीखे कर्बला के वर्क में मौजूद है । नमाज़े जोहर की जद्दो-जहद में भी आप आप का हिस्सा है आपने पै-द्र-पै दुश्मनों पर कई हमले किये और १२० को फना के घाट उतार दिया बिल आखिर अब्दुल्लाह इब्ने शबइ और मुहाजिर इब्ने अदस तमीमी के हाथो शहीद हुए ।
हबीब इब्ने मज़ाहिर- अल- असदी (५६)
जनाबे हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी ब रिवायत आलिमे अहले सुन्नत शाह मोहम्मद हसन साबरी चिस्ती १३ रबी-उस्मानी ५ हिजरी चाहार शम्बा (बुध) बादे नमाज़े मगरीब मदीना-ऐ-मुनव्वरा में पैदा हुए वह बहुत खूबसूरत थे उनका चेरा सुर्खो सफ़ेद था बुढ़ापे में दाड़ी भी खिजाब करते थे (आइना-ऐ-तसर्रुफ़ ४४३हिज्रि तबा रामपुर)
आपके अलकाब में फाजिल, कारी, हाफिज और फकीह बहुत ज्यादा मशहूर है । इनका सिलसिला-ऐ-नसब यह है की हबीब इब्ने मज़ाहिर इब्ने रियाब इब्ने अशतर इब्ने इब्ने जुनवान इब्ने फकअस इब्ने तरीफ इब्ने उम्र इब्ने कैस इब्ने हरस इब्ने सअलबता इब्ने दवान इब्ने असद (अबुल कासिम असदी फ़कअसी )
अल्लामा मजलिसी ((र०) ने खुलासतुल मकाम में मज़ाहिर के बजाय मजहर उन के बाप का नाम लिखा है लेकिन शेख तूसी (र०) और अमीद अर्द्सा ने मज़ाहिर ही तहरीर फ़रमाया है । इन के चचा होत बिन रियाब के एक फरजंद जिनका नाम रबीया और जिनकी कुन्नियत अबू सौर थी । बहुत बहादुर शख्स गुज़रे है । शहसवारी और शायरी में बहुत मुमताज़ समझे जाते है ।
हबीब के पद्रे बुजुर्गवार जनाबे मज़ाहिर हजरते रसूले करीम स० की निगाह में बड़ी इज्ज़त रखते थे रसूले करीम स० इनकी दावत कभी रद्द नहीं फरमाते थे । एक दिन का जिक्र है की उन्होंने सरकारे दो आलम को अपने घर में दावत दी और दावत का इंतज़ाम शुरू कर दिया हबीब जो उस वक्त कमसिन थे उन को जब रसूले करीम स० की दावत का मालूम हुआ तो उन्होंने अपने बाप से ख्वाहिश की की इस दावत में इमाम हुसैन अलै० को जरुर बुलाया जाये ।मज़ाहिर ने कहा की मैंने उन्हें भी बुलाया है यह सुन कर हबीब मसरूर (खुश) हो गए फिर जब आने का वक्त आया तो हबीब इब्ने मज़ाहिर ने कमाले जोश-औ-खरोश में बामे-खाना पर जा कर इमाम हुसैन अलै० का इंतज़ार करने लगे और उन के दीदार के लिए बेचैन थे इसी इज्तेराब-औ-बेचैनी में बामे-खाना से गिर कर राही-ऐ-मुल्के अदम हो गए । मज़ाहिर ने उनकी लाश को पोशीदा कर कर दिया ताकि मेहमान को महसूस न हो और मेहमान नवाजी ठीक तरह से हो जाये । जब दसतरखान बिछाया गया और हबीब दसतरखान पर न आये तो इमाम हुसैन अलै० ने पूछा की हबीब कहाँ है? उनके वालिद ने पहले तो छिपाने की कोशिश की लेकिन बिल-आखिर बताना पड़ा यह सुनकर रसूले करीम (स०) और इमाम हुसैन अलै० सख्त रंजीदा हुए । इसके बाद सरकारे दो आलम ने फ़रमाया की बेटा हुसैन दुआ करो ख़ुदावंदे आलम तुम्हारी दुआ कुबूल करेगा चुन्नाचे उन्होंने दुआ की और खुदा ने हबीब को दुबारा ज़िन्दगी दे दी । वाजेह हो की यह वाक्य अगर- चे आम तारीख में नहीं लेकिन मकातिल में पाया जाता है हमने इसे किताब मोव्ससा-अल-ग्मूम जिल्द अव्वल सफा २५९ मत्बुआ १२९३ हिजरी से लिखा है जिस पर जनाबे शम्सुल ओलमा सय्यद मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास नाबीर: अल्लामा नेमातुलाल्लाह (र०)जज़ाएरी तकरीज मर्कूम है ।
शहीदे सलीम अल्लमा नूर-उल्लाह-शोस्तरी मजलिस-अल-मोमिनीन में लिखते है की हबीब इब्ने मज़ाहिर को सरकारे दो आलम की सोहबत में रहने का भी शरफ हासिल हुआ था उन्होंने उनसे हदीसे सुनी थी । वो अली इब्ने अबू तालिब अल० की खिदमत में रहे और तमाम लडाइयों (जलम,सिफ्फिन,नहरवान)में उन के शरीक रहे शेख तूसी ने इमाम अली इब्ने अबू तालिब और इमाम हसन अलै० और इमाम हुसैन अलै० सब के असहाब में उन का जिक्र किया है ।
किताबे अल-बसारल-ऐन में है की जनाबे हबीब इब्ने मज़ाहिर मदीने के रहने वाले थे मगर जब हजरत अली ने मदीने से दारुल खिलाफा कूफे को बनाया और तरके मदीना करके कूफे तशरीफ़ लाये तो हबीब इब्ने मज़ाहिर भी मदीने से कूफे चले आये थे ।
अल्लमा नूर-उल्लाह-शोस्तरी शहीदे सालिस मजलिस अल-मोमिनीन में लिखते है की हबीब इब्ने मज़ाहिर बेहतरीन हाफ़िज़े कुरआन थे । वो रात भर में कुराने मजीद ख़त्म करते थे ।उन का उसूल था की नमाज़े ईशा के बाद कुराने-मजीद की तिलावत शुरू करते थे और तुलुअ से पहले खत्म कर देते थे ।
आप इमाम हुसैन अलै० के बचपन के दोस्त थे आप को रिसालत मुआब के सहाबी होने का शरफ हासिल था आप असहाबे अमीरुल मोमिनीन में भी थे । आपने हर उस जंग में हजरत अली का साथ दिया जो औं हजरत के बाद रुनुमा हुई थी जैसा के उपर गुज़रा है अल्लामा शेख अब्बास कमी ब-हवाला रुजाल कशी इरशाद फरमाते है की एक दिन मीसमे तम्मार अपने घोड़े पर सवार हो कर कहीं जा रहे थे रास्ते में जनाबे हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी मिल गए और दोनों आपस में बातें करने लगे इसके बाद अपनी-अपनी राह लग गए रवानगी के वक्त जनाबे हबीब इब्ने मज़ाहिर ने मीसमे त्म्मार से कह “फक्कानी ब्शेख असलेह जख्म अल बतने यावीए अल ब्तीख इन्दा दारुल रिजका कद स्लब फी-हुव्बे अहले बैत नबीहे” की मै एक ऐसे बुज़ुर्ग को अपनी आँखों से देख रहा हूँ किस के सर पर बाल नहीं है यानी जिसका (चन्द्ला)साफ़ है और उस की तोंद निकली हुई है और वह दारुल रिजक में खरबूजा बेच रहा है उस को मोहब्बते आले मोहम्मद स० में सूली दी गई । यह सुन कर जनाबे मीसमे तम्मार ने कहा की भाई मै भी एक ऐसे अज़ीम शख्स को अपनी आखों से देख रहा हूँ की वह सुर्खों सफ़ेद है और होठ बड़े है की वह फ्र्जन्दे रसूल स० की नुसरत में कत्ल कर दिया गया है “व् यहाला बरासा फिल कूफा” और उस का सर काट कर कूफे में फिराया जा रहा है । इन दोनों अज़ीम बुजुर्गो का मतलब यह था की एक दुसरे को आइन्दा के हालात से ब-खबर कर दें ।
गरज यह है की इन दोनों ने मुस्तकबिल पर रौशनी डाल दी और वहां से रवाना हो गए इनके जाने के बाद उस मकाम पर जो लोग जमा थे आपस में कहने लगे की ये दोनों कितने झूठे हैं एक दुसरे के बारे में बे-सरों पैर बातें करके चले गये। यह मजमा अभी मुन्तशिर न होने पाया था की इतने में “रशीद हिजरी” आ गये और उन्होंने उन दोनों की ताईद की इसके बाद वह भी रवाना हो गये उन के जाने के बाद यह लोग आपस में कहने लगे की “हाजा वाल्लाहे अक्जबहुम्” खुदा की कसम यह तो उन दोनों से ज्यादा झूठा है फिर उन्ही लोगो ने कहा की खुदा की कसम अभी थोडा अरसा गुजरा था की हमने मीसमे तम्मार को उमरू हुवैस के दरवाज़े पर और हबीब इब्ने मज़ाहिर के सर को नोके नेज़ा पर बलंद देखा ।
"वरैइना कुल्ले मा-कालू” और जो उन दोनों ने कहा था उसे हम लोगो ने अपनी आँखों से देख लिया (सफिन्तुल बहारिज सनं २०३ हिज० )
आपने कूफे में हजरते मुस्लिम इब्ने अकील का पूरा-पूरा साथ दिया और शहादते मुस्लिम के बाद रु-पोश होकर चन्द दिन कूफे में रहे फिर अनजान रास्ते से कर्बला को पा-प्यादा रवाना हो कर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में जा पहुचे । आका-ऐ-दरबंदी इजरारुल शहादत में लिखते है की-
फ़रज़न्दे रसूल सफर कूफे के जेल में जब मकामे जरू पर पहुचे और जंगल में खेमे नसब का दिए गए और आप को अपने चचा जाद भाई हजरत मुस्लिम इब्ने अकील की खबरे शहादत पहुची और मालूम हुआ की कूफे के रहने वालो ने धोखा किया है उस वक्त उसी मंजिल पर इमाम हुसैन अलै० ने बारह निशान मुर्त्ब किये गोया इस वक्त तक हुस्सैनी काफिले की मुसाफिराना हैसियत थी और जंगो जदल का कोई ख़याल न था । हजरते मुस्लिम की खबरे शहादत ने बताया की दुश्मन बरसरे पैकार है अब मुदाफेअत का वक्त आ गया है नेज़ हजरत मुस्लिम करीब-तरीन रिश्तेदार थे आप की सुनानी सुन्ने के बाद हाश्मी खून में इन्तेकाल का जोश पैदा हो जाना फितरी अम्र था और यह बिनाए मुखासेमत पैदा हो जाने के बाद जरूरत थी की इन्तेकाम का परचम लहराने लगे मगर अन्सारे इमाम ने इब्तेदाए जंग नही की और सब्र-ओ-शकेब के जादा पर चलते रहे इमाम अलै० ने बाद बाराह निशाँन तरतीब देकर अंसार को हुकुम दिया एक-एक मुजाहिद आकार मुझ से यह निशाँन हासिल करे । मुजाहेदीन राहे खुदा वलवला-ऐ-नुसरत में बढे और रायात की तकसीम शुरू हुई ग्यारह अलम ग्यारह शखसों को दे दिए और बारहवे अलम को रोक लिया निशानों के फरेरों का खुलना था की अंसारों के दिलों में वलवला-ऐ- जंग पैदा हो गया और उन्होंने खिद्मते इमाम में अर्ज़ की की हुकुम दीजिये तो हम इस जमीन से चल पड़े । इमाम ने इरशाद फरमाया जरा सब्र करो ताकि आखीरी अलम को लेने वाला भी आ जाए असहाब ने अर्ज़ की की ऐ- मौला !यह अलम भी हम में से किसी को दे दीजिये हजरत ने वलवला-ऐ-जंग और जोशे जां निसारी को देख कर दुआ दी और फरमाया जल्दी न करो इस अलम को उठाने वाला अनकरीब पहुच जायेगा ।अंसार चाहते थे की मंजिले शहादत तक जल्द पहुचे और इमाम का दिल चाहता था की जब तक दूर इफ्तादा हबीब आकर शामिल न हो जाये कदम न बढाये । एक फौजी सिपहसलार का फर्ज़ है की वह तैयार हुए बगैर नकल व हरकत न करे मैमना लश्कर का इंतज़ार कर चुके थे । मैसरा बे सरदार के रहा जाता था । फौरनन कलम दवात तलब करके हबीब इब्ने मज़ाहिर को खत लिखा । चुकी कूफा इस मंजिल से करीब था इसलिए उससे बेहतर मौक़ा न था की हबीब को आने का मौका दिया जाये इस ख़त को हबीब की सवानेह उमरी में आबे जर से लिखना चाहिए और इस सरफरोश को खिराजे तहसीन पेश करना चाहिए जिसने इस पुर-आशोब दौर में हबीब तक ख़त को पहुचाया ।
हुसैन इब्ने अली का खत हबीब इब्ने मज़ाहिर के नाम
मिनल हुसैन इब्ने अली इब्ने अबू तालिब इलल-रजलुल फ्कीहे हबीब इब्ने मज़ाहिर अम्मा-बाअद या हबीब फानत तालमो क्राब्तना मिनर-रसुलअल्लाहे व अन्वा आरिफ नबा गैरका व अंता :जी शीमत: व गैरत:फला तनजल अलैना बेन्फसेका यहारेका जद्दी रसूल-अल्लाह यौमल कियाम”।
तर्जुमा:- ये नामा है हुसैन बिन अली की तरफ से मर्द फ्केहा हबीब बिन मज़ाहिर के नाम ।
अम्माबाद-वाजेह हो की ऐ हबीब तुम खूब जानते हो जो कुर्बत हमको पैगम्बरे खुदा से है और तुम गैरों से ज्यादा हमको पहचानते हो और तुम नेक सरशत गैरतदार इंसान हो देखो जान देने से बुखल न करना इस की जजा तुम को मेरे नाना रसूले खुदा क़यामत में देंगे ।
हजरत ने यह खत कासिद के हवाले किया और कासिद रात गए कूफे पंहुचा हबीब दस्तरखवान पर अपनी जौजा के साथ बैठे खाना खा रहे थे । बीवी के लुकमे दफअतन गुलुगीर हुआ और उस मोमिना ने तआज्जुब से कहा “अल्लाह हो अकबर” इसके बाद बोली हबीब अनकरीब कोई खत आया है ये बातें हो रही ही थी की दरवाज़े पर दस्तक दी गई हबीब ने पूछा कौन? कासिद ने जवाब दिया “अना बरईरुल हुसैन”से सुन कर जनाबे हबीब फौरन बाहर आये नामा-ऐ-मुबारक को लिया आखों से लगाया सर पर रखा और फिर उसे पढ़ा ।
“कासिद रसीद-औ-नामा रसीद-औ-ख़बर रसीद
दर हैफ तुम के जां बकुदा मै कनम निसार”
हबीब ने खत पढ़ते ही अजम बिल जजम कर लिया मगर वो चाहते थे की इब्ने ज़ियाद के खौफ में अपने ज़मीर से किसी को आगाह न करें मगर शायद कासिद की सदा उन के चचा-जाद भाइयों ने सुनली और फौरन ही आ गए और कहा की शायद तुम नुसरते हुसैन के लिए खुरुज करने वाले हो हबीब ने मसलहत आमेज़ जवाब दिया उनकी बीवी ने पसे पर्दा से दोनों भाइयों की गुफ्तगू सुनी उस मोमिना को शुबाह हुआ की कहीं ऐसा न हो की हबीब सआदते अब्दी से महरूम रह जाये । उसने पूछा –हबीब क्या इरादा है? हबीब ने खौफे इब्ने ज्याद की वजह से कमजोर सा जवाब दिया उनकी बीवी ने जज्बात से मजबूर हो कर कहा की मेरी चादर तुम ओढ़ लो ।हबीब ने कहा की मुझे तुम्हारा ख़याल है कितुम मेरे बाद क्या करोगी ? मै ख़ाक फाकुंगी मगर तुम नुसरत से बाज़ न रहो और मुझ को मस्लहत आमेज़ जवाब न दो बल्कि तय्यारी करो ।
हबीब जब बीवी का इम्तेहान ले चुके और उसे मसायब बर्दाश्त करने पर भरपूर आमदा पाया तो आपने उस जज्बे के तहत जो उनके दिल में था । जौजा को दुआ दी और रवानगी का बंदोबस्त किया जौजा ने अर्ज़ की ऐ-हबीब मेरी भी एक आरजू है पूछा वह क्या है?कहा की आप खुदा की कसम जब इमाम के रूबरू पहुच्येगा तो मेरी तरफ से हाथों और पैरों को बोसा दे दीजियेगा । और मेरी तरफ से तसलीम अर्ज़ कीजियेगा हबीब ने अरब रस्म रिवाज़ के मुताबिक़ “ह्बाद करामत:”कहकर इकरार किया और जल्द-जल्द घोड़े को जीन से आरस्ता करके गुलाम को देकर कहा की खबरदार किसी को इत्तेला न हो फलां मुकाम पर पहुच कर मेरा इंतज़ार करना ।
हबीब इब्ने मज़ाहिर ज़ौजा से रुखसत हुए और अहले कूफा के खौफ से घर से ख़ुफ़िया निकल कर इस शान से रवाना हुए जैसे अपनी जराअतों पर जाते थे । दर-हकीकत का सफर किश्ते अम्ल के लिए था इस से बेहतर खेती न थी की आखिरत की तहसील हो ।
हबीब ख़ुफ़िया रास्ते तय कर रहे है और गुलाम इन्तिज़ार के लम्हात बेचैनी से गुज़ार रहा है हत्ता की नाके पर हबीब पहुच गए तो यह सुन के गुलाम घोड़े से कह रहा है की अगर मेरा आका न आया तो मै तुझ पर बैठकर नबी जादे की मदद करूँगा । घोड़े ने जो यह वलवला देखा तो उस की आँखों से आसूं जरी हो गए ।हबीब हाथ मल कर कहने लगे मेरे माँ बाप कुरबान हो आप पर ऐ फ्र्जन्दे रसूल ,गुलाम भी सरफरोशी की तमन्ना करता है तो आज़ाद को नुसरत का ज़्यादा हक है । हबीब ने गुलाम को उसके अकीदे की पुश्त्गी की वजह से आज़ाद कर्र दिया । उसने रो कर जवाब दिया की ऐ मेरे सरदार खुदा की कसम मै आपका साथ न छोड़ूगा जब तक की किद्माते इमाम में न पहुच लूँ और नुसरते इमाम करके उनके सामने कत्ल न हो जाऊ हबीब ने गुलाम के कलाम को बड़े एसतहसान की नजर से देखा और दुआ दी ।मुझे नहीं मालूम की गुलाम साथ रहा या वापस कर दिया गया शोहदा के सिलसिला-ऐ-हालात में उस की शहादत का तजकिरा नही मिलता मुमकिन है हबीब ने उस को वापस कर दिया हो गुलाम का साथ होना तो तश्ना तहकीक है लेकिन यह मुसल्लेमा हकीकत है की मुस्लिम इब्ने औसजा और हबीब इब्ने मज़ाहिर मरकज़ पर साथ साथ पहुचे या तो कुछ दूर राह तय करने के बाद एक दुसरे के साथ हो गए या सरहदे कूफा ही से साथ हो गया था । लेकिन मुस्लिम इब्ने औसजा ये हिम्मत काबिले दाद हैं की ये इस पुर आशोब दौर में अयाल को लेकर चले । तकरीबन तमाम मकतिल में मौजूद है की मुस्लिम इब्ने औसजा की बीवी ने फरजनद को आलाते हरब से आरसता करके मैदान नबर्द में भेजा और बाप के बाद यतीम बेटा भी इस्लाम के काम आया । और उन के जन-ओ-फरजंद के साथ हो जाने हबीब के मुश्किलात में यक़ीनन इजाफा हो गया होगा ।
हबीब घोडा सरपट दौडाते हुए खिदमते इमाम में चले वहां उनका बेचैनी से इन्तिज़ार था । कूफे की तरफ से गर्द उडी और इमाम हुसैन अलै० ने बेसाख्ता फरमाया की इस बारहवे अलम का हकदार आ पंहुचा । जब हबीब को अन्सारे हुसैन ने आते देखा तो मस्सरत की हद न रही हबीब दूर ही से घोड़े पर से कूद पड़े और इमाम अलै० की खाके कदम पर बोसा दिया ।आब्दीदा होक इमाम अलै० और असहाब पर सलाम किया । इमाम की खिद्मते आली में अपनी जौजा का सलामे शौक पहुचाया ।
हबीब के आने से सिपाहे कलील में वो रूह दौड़ गई की हरमसरां में भी खबर पहुची ।जनाबे जैनबे कुबरा ने दरयाफ्त किया की कौन आया है ?जवाब दिया गया की “हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी” यह सुन कर खातून कयामत की दुखतर ने खादेमा को भेजा और कहा की मेरी तरफ से हबीब को सलाम कह दो ।हबीब ने इस बेपनाह इज्ज़त को देखकर अपने मुंह पर तमाचे मारे और सर पर ख़ाक डाली और कहा की “मेरा भी ये मर्तबा के दुख्तरे अमीरुल मोमिनीन हमे सलाम कहें”। (सवानेह हयात हबीब इब्ने मज़ाहिर असदी)
कर्बला पहुच कर आपने पूरी कोशिश की की बनी असद से कुछ मददगार ले आये और इसके लिए आपने काफी जद्दो जहद की यहाँ तक की ९० आदमियों को तय्यार कर लिया लेकिन उम्रे सअद ल० की मुज़हेमत से इमाम हुसैन अलै० तक न पहुच सके ।
शबे आशूर एक शब् की मोहलत के लिए जब हजरत अब्बास उमरे सअद की तरफ गए तो हबीब इब्ने मज़ाहिर आप के हमराह थे ।नमाज़े जोहर आशुरा के मौके पर हसीन ल० इब्ने न्मीर की बद-कलामी का जवाब आप ही ने दे दिया था और इसके कहने पर की ‘हुसैन की नमाज़ क़ुबूल न होगी “आप ने बढ़ कर घोड़े के मुंह पर तलवार लगाईं थी और ब-रिवायत नासेख एक जरब से हसीन की नाक उड़ा दी थी ।
आप ने मौका-ऐ-जंग में कारे-नुमाया किये थे । आप इज्ने जिहाद लेकर मैदान में निकले और नबर्द आजमाई में मशगूल हो गए यहाँ तक की बासठ (६२) दुश्मनों को कत्ल करके शहीद हो गए ।
तारीख में है की हबीब इब्ने मज़ाहिर बड़ी-बे-जिगरी से हजरते इमाम हुसैन अलै० के हमराह इस्लाम की खातिर जंग की । वह इस सिलसिले में लोहे के पहाडो से टकराए और अपने सिने से नैज़ो का इस्तेकबाल किया और अपने चेहरे से तलवारों का खैर-मकदम किया उन्हें अमन और दौलत का लालच दिया जा रहा था । मगर वह यह कहते थे की हम इस्लाम के लिए लड रहे है। और रसूले करीम की खिदमत में सुर्खरू होने की सइ कर रहे है हमें अमान और माले दुनिया की जरूरत नहीं है एक रिवायत में है की हबीब इब्ने मज़ाहिर जब जंग के लिए निकले तो कमाल की जानिसारी से खूब हसें इस पर यजीद ल० हसीन हमदानी ने कहा “या अकी लेस: हाज़ा सअत:जहक:” ऐ भाई ये हसने का वक्त नहीं है और आप हंस रहे है । हबीब इब्ने मज़ाहिर ने फरमाया “फअय्यो मौव्ज़ा अहक मिन हाजा बिस्स्सुरुर “ अगर यह वक्त नहीं है तो बताओ वह वक्त कौन सा आएगा जो ख़ुशी का होगा । सुनो !यह तो बहुत ज्यादा ख़ुशी का वक्त है क्योकि इस वक्त तलवारें हमारे गले मिलेगी और हम हुरुल ऐन को गले लगायेगे । (सफिन्तल बहरिज सफा २०४)
मोआर्रखीन का कहना है की बदील इब्ने हरीम अफकाई ने आप पर तलवार लगाई और बनी तमीम के एक शख्स ने नेजा मारा और हसीन बिन नमीर ने सर पर तलवार लगाईं और आप घोड़े से गिर पड़े उस वक्त एक तमीमी ने सर काट लिया ।
हबीब की शहादत के बाद इमाम हुसैन अलै० ने इन्तिहाई दर्द-अंगेज़ लहजे में कहा,ऐ-हबीब खुदा तुम पर रहमत नाजिल करें मै तुमको और अपने असहाब को खुदा से लूँगा ।
माएतीन सफा ४०३ में है की हबीब इब्ने मज़ाहिर का कातिल बदील ल० इब्ने हरीम है यह इब्ने ज़ियाद से एक सौ दिरहम इनाम लेकर जब रवाना हो रहा था । तब उसने इब्ने ज्याद से हबीब इब्ने मज़ाहिर का सर मांग लिया और उसे घोड़े की गर्दन में लटका कर मक्का-ऐ-मोआज्म्मा पहुचाया जहाँ हबीब के एक फरजंद से मुलाकात हो गई उन्होंने पत्थर मारकर बदील ल० को कत्ल कर दिया और अपने बाप के सर को लेकर मकामे मोअलला में जो अब ‘रास अल-हबीब के नाम से मशहूर है । दफन कर दिया ।
अबू समामा उमरू बिन अब्दुल्लाह सेदादी (५७)
आप का पूरा नाम उमरू इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने कैब इब्ने शरजील इब्ने उमर इब्ने हाशिद इब्ने जशम इब्ने हैरदन इब्ने औफ बिन हमदान साअएदी अल-सैदावी था और कुन्नियत अबू समामा थी ।
आप ताबई थी । आप का शुमार हजरत अली अले० के असहाब में था । आप ने हजरत अली के साथ तमाम जंगो में शिरकत की थी । आप बड़े शहसवार और शियों में बडी अजमतों शौकत के मालिक थे । अमीरुल मोमिनीन के बाद इमाम हुसैन की खिदमत में रहे ।
हजरत मुस्लिम इब्ने अकील जब कूफे तशरीफ़ लाये तो आपने उनकी पूरी इमदाद की उनकी पूरी इमदाद की । उनके लिए असलहे खरीदे और दारुलअमार: पर हमले में बनी तमीम हमदान की कयादत की हजरते मुस्लिम की शहादत के बाद आप चंद रोज़ रु-पोश हो गए फिर इमाम हुसैन की खिदमत में हाजिर हो गए ।
कर्बला के बाद इब्ने सअद ल० ने कासीर इब्ने अब्दुल्लाह ने शअबी के जरिये से इमाम हुसैन अलै० के पास एक पैगाम भेजा कासिद चाहता था की हथीयार लगाये इमाम हुसैन से मिले मगर अबू समामा ने उस को कामयाब न होने दिया और वह बगैर पैगाम पहुचाये वापस चला गया।
नमाज़े जोहर के लिए आप ने ऍन हंगामा-ए-कार्जार में इमाम हुसैन अलै० से दर्ख्वास्त की की नमाज़े जमाअत होनी चाहिए । चुनांचे इमामे मजलूम ने नमाज़ पढाई फिर जंग के मौके पर आपने कमाले दिलेरी से शमशीर जनीकी बिल-आखिर आप के चचा जाद भाई कैस ल० इब्ने अब्दुल्लाह अल-सआएदी ने आप को शहीद कर दिया
अनीस इब्ने मअकल असहबी (५८)
आप आले रसूल के जानिसारों औए खास दोस्तदारों में थे ।यौमे आशुरा आप ने इज्ने जिहाद हासिल किया और मैदान में आकर निहायत दिलेरी और बहादुरी से लड़े और आप ने दस दुश्मनों को कत्ल करने के बाद शहादत पाई ।
जाबिर इब्ने अरव:अल-गफ्फारी (५९)
आप सहाबी-ऐ-रसूल थे । आपने सरवरे कायनात की मौजूदगी में जंगे बद्र-ओ-हुनैन वगैरह में शिरकत की थी आप निहायत कबीर-उल-सिन और जइफ थे ।कर्बला में यौमे आशुरा जब नबर्दआजमाई के लिए निकले तो आपने अम्मामे से कमर और एक कपड़े से अपनी पलको को उठा कर बाँध लिया था इजने जिहाद के बाद जबरदस्त जंग की और साठ आदमियों को कत्ल कर खुद शहीद हो गए ।
सालिम मौला आमिर अल-अब्दी (६०)
आप अपने मालिक आमिर इब्ने मुस्लिम अब्दी के हमराह मक्का-ऐ-मोआज्ज्मा में हाजिरे खिद्मते इमाम हुसैन अलै० हुए आपके मालिक जनाब आमिर अमीरुल मोमिनीन के शियों में थे और बसरा के रहने वाले थे मक्का से इमाम हुसैन अलै० के हमराह रहे और कर्बला में अपने मालिक की मईअत में शहीद हुए ।
जिनादह इब्ने कअब खजरजी (६१)
aअप का पूरा नाम जिनादह इब्ने कअब इब्ने हरस अल-अंसारी खज़रजी था । आप कबीला खजरज की याद गार थे । आले मोहब्बत का शरफ रखते थे । मक्का –ऐ-मोआज्ज्मा जाकर इमाम हुसैन अलै० के हमराह हो गए थे । आप के अहल-ओ-अयाल आप के हमराह थे । यौमे आशुरा आप ने १८ दुश्मनों को कत्ल किया और खुद इस्लाम पर कुर्बान होकर बारगाहे मोहम्मद व आले मोहम्मद में सुखरु हो गए ।
उमर बिन जिनादह अंसारी (६२)
आप अपने वालिदे माजिद जिनाद: के हमराह मक्का-ऐ-मोअज्ज्मा होते हुए कर्बला पहुचे आप कमसिन थे । आपकी मादरे गिरामी आपके साथ ही थी जनाबे जिनादह: की शहादत के बाद माँ ने बेटे को आलाते हर्ब से आर्स्ता करके इजने जिहाद की खातिर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में भेजा । इमाम हुसैन अलै० ने फरमाया की बेटा अभी-अभी तुम्हारे बाप ने शहादत पाई है । मै तुम्हे मैदान की इजाजत देकर कैसे तुम्हारी माँ को नाराज़ और रंजीदा कर सकता हूँ उसने अर्ज़ की मौला! मुझे मेरी माँ ने तैयार करके भेजा है । इस के बाद इमाम हुसैन अलै० ने जंग की इजाजत दी और उमर इब्ने जिनाद मैदान में जाकर शहीद हो गए ।
आपकी शहादत के बाद दुश्मनों ने आपका सर काट कर खायामे हुस्सैनी की तरफ फेंका उमर इब्ने जिनाद: की माँ ने सर को उठा कर आखों पर बोसे दिए और फिर उस को वापिस फेक कर कातिल के सीने पर दे मारा और वह कत्ल हो गया ।
जिनादा बिन हरष अल-सलमानी (६३)
आप कबीला-ऐ-मदहज की एक शाख मुराद के ब-मुराद फरजंद थे ।आपको सलमानी खानदान के एतबार से कहा जाता था आप कुफे के रहने वाले और आले मोहम्मद के दोस्त-दारों में से थे । आप कि शिअत बहुत मशहूर थी और आप हजरत अली अले० के असहाबे ख़ास में से थे । आप ने जनाबे मुस्लिम इब्ने अकील की कुफे में पूरी रिफाकत की और इनकी हिमायत में अपना फरीजा अदा किया । वहां से रात के वक्त रवाना हो कर खिद्माते इमाम हुसैन अलै० में हाजिर हुये और त-हयात साथ रहे ।
कर्बला में यौमे आशुरा निहायत दिलेरी के साथ जंग की और नरगे में घिर गये । आप को बचाने के लिए हजरत अब्बास तशरीफ ले गए और वापस ले गये ।प्यास के गलबे ने बेचैन कर रखा था । फिर दोबारा मैदान में जा कर शहीद हो गये ।
आबिस इब्ने शबिब अल-शाकरी (६४)
आपका पूरा नाम और नसब आबिस इब्ने अबी शबीब शाकेरी इब्ने रबीया इब्ने मालिक इब्ने सअब इब्ने माविया इब्ने कसीर इब्ने मालिक इब्ने ज्श्म इब्ने हाशिद हमदानी शाकरी था । आप का कबीला-ऐ-बनी शाकिर की यादगार थे ।आप निहायत बहादुर, रईस, आबिदे जिन्ददार और अमीरुल मोमिनीन के मुखलिस तरीन मानने वाले थे । आपके काबिले बनी शाकिर पर अमीरुल मोमिनीन को बड़ा एतेमाद था । इसी वजह से आपने जंगे सिफ्फिन में फरमाया था की अगर कबीला-ऐ-बनी शाकिर के एक हजार अफराद मौजूद हो तो दुनिया में इस्लाम के सिवा कोई मजहब बाकी न रहेगा ।
जब जनाबे मुस्लिम इब्ने अकील कुफे पहुचे थे आपने सबसे पहले मदद का यकीन दिलाया था और उनके कूफा के दौरान कयाम में उनकी पूरी मदद की थी । फिर जनाबे मुस्लिम का खत लेकर मका-ऐ—मोअज्ज्मा इमाम हुसैन अलै० के पास गए और उन्ही के हमराह कर्बला-ऐ-मोअल्ल्ला पहुचे ।
यौमे अशुरा जब आप मैदान में तशरीफ लाये और मुबारज तलबी की तो कोई भी आप के मुकाबले के लिए न निकला । बिल आखिर आप पर एज्तेमाई तौर पर पथराव किया गया । फिर बेशुमार अफराद ने मिलकर हमला करके शहीद कर दिया । इसके बाद सर काट लिया ।
शौजब इब्ने अब्दुल्लाह हमदानी (६५)
आप जनाबे आबिस शाकरी के गुलाम बड़े बहादुर जबरदस्त शहसवार और नमूदार शिया थे । आप हजरत अमीरुल मोमिनीन से हदीस की रवायत किया करते थे । आप अपने मालिक जनाबे आबिस के साथ जब की वह कहते मुस्लिम इब्ने अकिल लेकर मक्के तशरीफ ले गए उन्ही के हमराह मक्का-ऐ-मोअज्ज्मा गए और ता-कर्बला साथ रहे और यहाँ तक की यौमे आशुरा निहायत बहदुरी से इस्लाम पर कुर्बान हो गए ।
अब्दुर्र-रहमान इब्ने आरवाए गफ्फारी (६६)
आपका पूरा नाम अब्दुर्र रहमान इब्ने अरवा इब्ने हुर्राक गफ्फारी था । आप कुफे के शुरफा में से थे ।आप निहायत शुजा और बड़े बहादुर थे ।उनके दादा हुर्राक असहाबे अमीरुल मोमिनीन उन्होंने जंगे जमल-ओ-सिफ्फिन और नहरवान में हजरत अली के हमराह हो कर जंग की थी । कर्बला में इमाम हुसैन की खिदमत में हाजिर हुए आप को यकीन हो गया की इमाम हुसैन अलै० से सुलह न हो सकेगी तो आप मैदान में आये और निहायत दिलेरी से लड़-भिड कर दर्जा-ऐ-शहादत हासिल कर लिया ।
हरस इब्ने अमरु कैसअल-कंदी (६७)
आप अर्ब के शुजाओं में मशहूर थे । आप बड़े बहादुर और जबर्दस्त जाहिद थे । इस्लामी जंगों में अक्सर आप का जिक्र आया हैं ।आप लश्कर इब्ने सअद के साथ कर्बला आये थे और जब तक सुलह की बात-चीत होती रही आपको आकेबत की फ़िक्र नहीं हुई लेकिन यह तय हो जाने के बाद की इमाम हुसैन अलै० का खून जरुर बहाया जायेगा उनके दिल में इज्तेराब और बेचैनी पैदा हो गई चुनांचे आप लश्करे उमरे सअद से निकल कर खिद्मते इमाम हुसैन अले० में हाजिर हो गए और यौमे आशुर जबर्दस्त जंग के बाद जामे शहादत नौश फरमा लिया ।
यजीद इब्ने ज़ियाद ह्दली (६८)
आप का पूरा नाम यजीद इब्ने ज़ियाद इब्ने मुहाजिर अल-क्न्दी अल-ह्द्ली था । और कुन्नियत अबू शअसा टी । आप अपनी कौम के शरीफ और सरदार थे । आपको फुनुने जंग में बड़ी महारत थी ।
आप कुफे से निकल कर रिसाल:से पहले इमाम हुसैन अलै० से जा मिले थे और कूफे के तमाम हालात से आप को खबर किया था । हुर्र के लश्कर के आ जाने के बाद इब्ने ज़ियाद ने एक खत मालिक नसरकंदी के जरिये हुर्र को भेजा था । इब्ने नसर खत लेकर और जवाब लेकर जाने ही वाला था की आप ने उससे मुलाक़ात करके उसके तर्जे अम्ल पर इजाहारे अफ़सोस किया ।उसने इताआते यजिदे म० ल० की इताअत खुदा की नाराज़गी से नही बचा सकती । तुझे खुदा और रसूल स० को मुंह दिखाना है ।
यौमे आशुरा आप मैदाने कारजार में आये और निहायत बे-जिगरी से लड़ने लगे । यहाँ तक की आपके घोड़े के पाँव काट दिए गए और आप जमीन पर आ रहे उस वक्त आपके तरकश में सौ तीर थे । आप ने उन्हें लश्करे कुफ्फार की तरफ फेका जिसके नतीजे में पच्च्नाबे ९५, दुश्मन हलाक हुए यानी सिर्फ पांच तीर खाली गए । आपके हर तीर के साथ इमाम हुसैन अलै० कामयाबी की दुआ करते थे ।
तीरों के खत्म हो जाने के बाद आप उठ खड़े हुए और तलवार से हमला करने लगे ।यहाँ तक कि दर्जा-ऐ शहादत हासिल कर लिया ।
अबू उमरू अल-नह्शली (६९)
आप आबिदे शब् जिन्दा-दार निहायत मुत्तकी और परहेजगार थे । आपको मोहब्बते आले मोहम्मद स० में बेंइन्तहा शगफ़ था । आप फनुने जंग से बहुत ज्यादा आगाह थे ।
आपने यौमे आशुरा शेरे गुरना की तरह बेशुमार हमले किये और बेंईन्तेहा लोगो को फना के घाट उतारा । बिल आखिर दुशमनो ने आप को घेर लिया ।और हर किस्म के हमले आप करने लगे यहाँ तक की कबीला-ऐ-बनी सअबला के एक बदबख्त अम्म्मार इब्ने न्ह्श्ल ने आपको शहीद कर दिया ।
जनदब इब्ने हजीर अल-खुलानी अल-कनदी (७०)
आप अपने काबिले के चश्मों चराग थे । मोहब्बते आले मोहम्मद में बड़ा अच्छा मकाम रखते थे । आपका शुमार इज्ज़तदार और नमूदार शियों में था । आपको अमीरुल मोमिनीन के असहाब में होने का शरफ हासिल था । आप इमाम हुसैन अलै० की मदद के लिए अपने वतन से चल कर आये थे । हूरर के पहुचने से पहले पहुच कर हजरत के ह्मरकाब हो गए थे ।और इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में ह्मानत मशगूल रहे यौमे आशुर आप ने कमाले दिलेरी के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया था । आखिरकार फरजनदे रसूल स० की हिमायत में जन्नत के रास्ते पर जा लगे थे और शरफे शहादत हासिल करके बारगाहे रसूल स० में सुर्खरू हो गए थे ।
सलमान इब्ने मजारिब अल-अन्मारी (७१)
आप का पूरा नाम सलमान इब्ने म्जारिब इब्ने कैसअल-अन्मारी अल-जबली था ।आप जुहैरे कैन के हकीकी चचा जाद भाई थे ।आप निहायत दिलेर और बहुत अच्छे जाबांज थे ।
६० हिजरी में जुहैर-कैन के हमराह हज के लिए गये थे और जुहैर-कैन के साथ ही शरफे मुलाकाते इमाम हुसैन अलै० से मुशर्रफ हुए थे । मक्के से रवाना होकर जिस जगह से शरफे खिदमत हासिल किया था उसी जगह फैसला कर लिया था की इमाम हुसैन अलै० का अब साथ छोड़ना नहीं हैं चुन्नाचे ह्मरकाब रहे और यौमे आशुरा बादे नमाज़े जोहर शरफे शहादत से मुशर्रफ होकर इमाम हुसैन अलै० की दुखिया माँ फातिमा ज़हरा स० की नजरों में मुमताज़ हो गए ।
मालिक इब्ने अब्दुल्लाह अल-जाबरी (७२)
आप का नामे-नामी मालिक इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने सरीअ इब्ने जाबिर हमदानी अल-जाबरी था । कबीला-ऐ-हमदान से बनी जाबिर भी एक कबीला है जनाबे मालिक इब्ने अब्दुल्लाह इसी कबीला-ऐ-जाबिर से ताल्लुक रखते थे । आप निहायत बहादुर और ईन्तेहाई मुंसिफ मिज़ाज थे । आले मोहम्मद की मोहब्बत आप किके दिल में भरी हुई थी और अहलेबैत रसूल की खिदमत को आप अपना फ़रीज़ा जानते थे ।
यौमे आशुरा से पहले इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में हाजिर हुए थे । सुबहे आशुर से आप हगाम-ऐ-काजार में बार-बार दौड़ धूप करने के बाद ब-चश्मे गिरया हाजिरे खिदमत होकर अर्ज़-परवाज़ हुए । मौला! अब इजाजते जिहाद दे दीजिये इमाम हुसैन अलै० ने फरमाया मेरे भाइ गिरया मत करो अनकरीब तुम्हारी आँखे ठंडी हो जायेगीं । मालिक इब्ने अब्दुल्लाह ने अर्ज़ की मौला !हम आप की बे-बसी, बे-कसी और आप के बच्चों की प्यास की वजह से गिरया करते है मौला ! इस के सिवा और कोई रास्ता हमारे पास नहीं की हम आप पर अपनी जान निसार कर दे । गरज यह है की इमाम हुसैन ने इजाजत दी और आप रजमगाह [पहुच कर नबर्द आजमा हुए यहाँ तक की आप घोड़े से गिरे और इमाम हुसैन अलै० ब-आवाज़े बलन्द सलाम किया आपने जवाबे सलाम के बाद फरमाया “व न्ह्नो ख्ल्फोका” मेरे वफादार बहादुर नाना की खिदमत में चलो मै तुम्हारे पिछे बहुत जल्द आ रहा हूँ ।
बिस्स्मिल्लाह-हिर्र-रहमानिर्र-रहीम
अट्ठारह बनी हाशिम अलै० की कुर्बानियां
कारजारे कर्बला में इमाम हुसैन अलै० के असहाबे ब-सफा और मोआलियाने ब-वफा के बाद के आप के आईज्ज़ा व अक्रेबा और बिराद्रान और औलादे इस्लाम पर भेंट चड़ना शुरू हो गए और उन्होंने अपनी बे—जीर कुर्बानियों से इस्लाम को सदा बहार बना दिया ।
अबुदल्लाह इब्ने मुस्लिम अलै० (१)
आप हजरत मुस्लिम इब्ने अकील “शहीदे कूफा” के फरजंद हजरत इमाम हुसैन अलै० शहीदे कर्बला के भांजे और अमीरुल मोमिनीन अली अले०के नवासे थे । आप की वालेदा-ए-माजेदा का इस्मेगिरामी रुक्यया और नानी न नामें-नामी सहबा बिनते एबाद इब्ने रबीय:इब्ने याहिया इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने अलकमा था । आप का कबीला बनी साअलबता की एक मोअइज्ज़ फर्द थी आक की कुन्नियत उम्मे हबीब थी ।
आपने कर्बला के मैदान में असहाब के बाद सब से पहले अपने आप को कुरबान किया है । आप यौमे आशुरा हजरते इमाम हुसैन अलै० से रुखसत लेने के बाद मैदान जंग में पहुचे और रजस पढ़कर हमला-कुना हुए । आपने इन्तेहाई अतश के बावजूद तीन जबर्दस्त हमले किये जिनमे ९० दुश्मनों को कत्ल किया ।दौराने जंग उमर इब्ने सबीह सैदावी ने आपकी पेशानी को तीर से ताका आपने ब-तकाजा -ऐ—फितरत हाथ पेशानी पर रख दिया । तीर इस तरह से लगा की आप का हाथ पेशानी से पेवस्त हो गया ।उसने फिर एक और तीर मारा आप ज़मीन पर तशरीफ़ लाये और शहादत पाई ।
मोहम्मद इब्ने मुस्लिम अलै० (२)
अब्दुल्लाह इब्ने मुस्लिम इब्ने अकिल को खाको-खूनमें लोटते हुए उनके भाई मोहम्मद इब्ने मुस्लिम ने देखा । यह समा देख कर आप बेचैन हो अगये और इमाम हुसैन अले०से फौरन्न इजने जिहाद लेने के बाद मैदान में जा पहुचे । आपने वहां पहुच कर अनगिनत हमले किये और कई दुश्मनों को फन्ना के घाट उतार कर खुद जामे शहादत नोश फरमाया । आपको अबू जरहम आजदी और ल्कीते इब्ने अयास जहमी ने कत्ल किया है ।
जाफर इब्ने अकिल अले० (३)
आप हजरते अकील इब्ने अबितालिब के फरजंद थे ।आपकी वालेदा हौसा बिन्ते अमरु इब्ने आमिर इब्ने हसान इब्ने कअब इब्ने अब्द इब्ने अबिबक्र इब्ने किलाब आमरी थी और आप की नानी रीत: इब्नेअब्दुल्लाह इब्ने अबी बकर थी ।
आप यौमे आशुरा इजने जिहाद लेकर मैदान में पहुचे और दुश्मनों पर जबर्दस्त हमला किया ।थोड़ी देर जंग करने के बाद करने के बाद १५ दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया ।बिल आखिर बशर इब्ने खुत के हाथों शहीद हुए ।
अबदुर्र रहमान बिन अकील अलै० (४)
आप हजरते अकील इब्ने अबुतालिब के बेटे थे आप ने इजने जिहाद लेकर मैदान में तशरीफ ले गए ।और कमाले अतश
के बावजूद आप ने सत्तरह १७ दुश्मनों को कत्ल किया बिल आखिर ब-दस्ते उस्मान इब्ने खालिद इब्ने असीम जहमी और बशर इब्ने खुत हमदानी दर्जा-ऐ-शहादत पर फाएज़ हुए ।
अब्दुल्लाह बिन अकील अलै० (५)
आप यौमे आशुर इजने जिहाद लेकर मैदाने जंग में तशरीफ लाये । आपने जबर्दस्त जंग की और बहुत से दुश्मनों को कत्ल कर डाला आप को चारों तरफ से दुह्मानो ने घेर लिया आखिर कार आप उस्मान इब्ने खालिद (म०) के हाथों रही-ऐ-जन्नत हुए ।
मूसा इब्ने अकील अलै० (६)
आप हजरते अकील इब्ने अबी तालिब के फरजंद थे । आप यौमे आशुर इजने जिहाद लेकर मैदान में आये सत्तर ७० दुश्मनों को कत्ल करके सरवरे कायनात की बारगाह में जान पहुचे ।
ओंन इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने जाफर अलै०(७)
आप जनाबे अब्दुल्लाह के बेटे और हजरते जाफरे तय्यार के पोते थे । अमीरुल मोमिनीन अलै० के नवासे थे । आप की वालिद: माजेदा जनाबे जैनबे कुबरा थी और नानी हजरत फ्फातिमा ज़हरा स० थीथ । हजरत इमाम हुसैन अलै० जब मक्का मोआज्ज्मा से ब-क्स्दे ईराक रवाना हुए थे ।तो जनाबे अब्दुल्लाह ने मदीने से एक अरीजा इरसाल किया था ।जिसमे मर्कूम था की आप ईराक का सफर इख्तेयार न करें ।कूफे के बाशिंदे हमेशा बेवफा साबित हुए हैं ।
अब्दुल्लाह इब्ने जाफर ने यह खत औन-औ-मोहम्मद के हाथों भेजा था । साहबजादे मंजिले अकीक में इमाम हुसैन अलै० से मिले अब्दुल्लाह ने हाकिमे मदीना से इमाम हुसैन अले० के लिए एक अमान नामा भी लिखवा लिया था । जिससे हाकिमे मदीना के भाई याहिया के जरिये इरसाल किया और खुद ब-रिवायते मंजिले जाते ईराक में इमाम हुसैन अलै० से जा मिले ।
इमाम हुसैन अलै० अब्दुल्लाह इब्ने जाफर की सई के जवाब में नाना का खवाब पेश फरमाया और मदीने जाने से इनकार कर दिया ।
अब्दुल्लाह इब्ने जाफर जो उस वक्त अलील थे उन्होंने अपने दोनों बेटों औन-ओ-मोहम्मद को इमाम हुसैन अलै० कि खिदमत में छोड़ दिया और उन्हें इमाम हुसैन अलै० पर जां-निसारी की हिदायत क्र के चले गए ।
औन-ओ-मोहम्मद इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में रहे और सुबहे आशुर इस्लाम पर कुर्बान हो गए मोआर्रखीन का कहना है की जब ऑन इब्ने जाफर मैदान में आये तो रजज के अशआर पढ़े ।जिस में उन्होंने कहा की मै शहीदे इस्लाम हजरते जाफरे तय्यार का पोता जिन्हें खुदा ने जन्नत में परवाज़ के लिए दो जुमर्र्र्दैन पर अता किये हैं इसके बाद आपने हमले शुरू कर दिए । आपने कमसिन और बे-इन्तेहाई प्यासे होने के ब-वजूद तीन सवार और १८ प्यादों को वासिले जह्न्नुम किया ।आखिर कार अब्दुल्लाह इब्ने कतन: नबहानी के हाथों शहीद हो गए ।
आप की शहादत के सिलसिले में जनाबे जैनब के तास्सुरात किताब “जिक्र-अल-अब्बास” लाहौर में मुलाहेजा किये जाएँ । तारिख में है की अब्दुल्लाह इब्ने जाफर को जब मदीने में आपकी खबरे शहादत पहुंची तो आपने खुदा का शुक्र अता किया की मेरी कुर्बानी बारगाहे खुदावन्दी में कबूल हो गयी । ताजियत के सिलसिले में जब अहले मदीना जमा हुए तो जनाबे अब्दुल्लाह के गुलाम ओ मुलाजिम अबू अल्लास ने कहा की मुसीबत इमाम हुसैन अलै० की वजह से आई है । यह सुन कर अब्दुल्लाह रोने लगे और उन्होंने गुलाम को जूती मारा और कहा की अफ़सोस मैं हाजिर न था वरना अपनी कुर्बानी पेश करके बारगाहे रिसालत में सुर्खरू होता ।
मोहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने जाफरे तय्यार अलै०
आप जनाबे अब्दुल्लाह के फरजंद और हजरत जाफरे तय्यार के पोते थे । आपकी माँ का नाम मेरी तहकिकी के मुताबिक हजरते जैनब था । आप अपने भाई ऑन इब्ने जाफर के बाद मैदान में तशरीफ़ लाये और दुश्मनों से नबर्द आजमां हुए कमसिन और फिर उस पर प्यास का गलबा लेकिन आपकी जलालत का इसी से अंदाज़ा होता है की ऐसी नाज़ुक हालत में भी आपने दस दुश्मनों को क़त्ल किया । आप नबर्द आजमाई में मशगूल थे । दुश्मनों ने चारों तरफ से आपको घेर लिया बिल-आखिर अमीर ल० इब्ने नैहशल म० के हाथों शहीद हुए ।
9. अब्दुल्लाह अल-अकबर (उर्फ़ उमरू ) इब्ने हसन अलै०
आप हजरत इमामे हसन अलै० के बड़े बेटे थे । आप की कुन्नियत अबू-बकर थी आपकी मादरे गिरामी का नाम रमल:और ब-रिवायते नफीला था । आप मैदान में तशरीफ लाये और जबर्दस्त हमले किये बिल आखिर आप अस्सी आदमियों को कत्ल करके अब्दुल्लाह ल० इब्ने उक्ब:ग्न्वी शहीद हो गए
१०. कासिम इब्ने हसन अलै०
आप इमाम हसन अलै० के फरजंद और इमाम हुसैन अलै० के हकीकी भतीजे थे । आप की वालेद:रमल:थी । आप यौमे आशुर इमाम हुसैन अलै० से ब-इसरार तमाम इजाज़त हासिल करके मैदान में पहुचे आप जवान और निहायत बहादुर थे ।आपने मैदाने जंग में पहुच कर एसी जंग की की दुश्मनों की हिम्मते पस्त हो गई । आप के मुकाबले में कई दुश्मन आये लेकिन आप ने अपना शेराना-ओ-दिलेराना हमलों से एक को भी बाख कर न जाने दिया । अजरके शामी जैसे बहादुर को आप ने इस तरह फाड़ा के लोग हैरान रह गए बिल आखिर आप को चारों तरफ से घेर कर घोड़े से गिरा दिया और आप पर जिस का ज्यादा कारी वार लगा वह अमीर बिन नफील अज्वी था ।
मोआराखींन का बयान है की आप का जिसमे मुबारक जिंदगी ही में पामाले सुमे अस्पा हो गया था । मेरे नजदीक कर्बला में अकदे कासिम की रिवायत दुरुस्त नहीं हैं ।
११. अब्दुल्लाह इब्ने हसन अलै०
आप हजरत इमाम हुसैन अलै० के फरजंद थे आप की वालेद:बिन्ते श्लील इब्ने अब्दुल्लाह जबली थी श्लील सहाबी -ऐ-रसूल थे ।कर्बला में आपकी उमर हदे बलूग तक न पहुची थी । आप मैदान में तशरीफ लाये और जबर्दस्त जंग की बिल-आखिर चौदह १४ दुश्मनों को कत्ल कर के ब-दस्ते हानि इब्ने शीस खजरजी शहीद हो गए ।
एक रिवायत की बिना पर आपकी शहादत का वाक्य यह है की आप ने इमाम हुसैन को गरदाबे मसायब में देख कर उनकी हिमायत का इरादा किया और एक चौबे खेमा लेकर मैदान को रवाना हुए।
मुख्द्र्राते अस्मत ने हर चंद आपको रोका मगर आप निकल ही गए मैदान में पहुच कर आप इमाम हुसैन के पहलू में खड़े हो गए हबरा बिन कैब नामी दुश्मन ने इमाम हुसैन पर तलवार छोड़ी और अब्दुल्लाह ने अपने हाथों पर रोका जिस के नतीजे में आपके दोनों हाथ कट गए ।
१२. अब्दुल्लाह इब्ने अली अलै०
आप बटने जनाबे उम्मुल बनीन से हजरत अली के बेटे और हजरते अब्बास अलमदारे कर्बला के हकीकी भाई थे ।आप जनाबे अब्बास की हिदायत के ब-मुजिब यौमे आशुर कर्बला में नबरद आजमाई के लिए निकले और जबर्दस्त जंग क्र के ब-दस्ते हानि इब्ने सबीत ह्जरमी मलऊन शहीद हुए ।
१३. उस्मान इब्ने अली अलै०
आप भी हजरते अब्बास अलै० के छोटे भाई थे । आशूरे के दिन हस्बे हिदायत हजरते अब्बास, आप भी नबर्द आजमाई हुए और निहायत जबर्दस्त जंग करके कौमे मुखालिफ में हलचल मचा दी आखिरकार खुली शाकी ने पेशानी-ऐ-अक्दसपर एक तीर मार कर आपको निढाल कर दिया और कबीला:अबान इब्ने दारम के एक शखस ने तलवार से शहीद कर दिया ।शहादत के वक्त आपकी उम्र २३ साल थी आप का नाम हजरत अली ने उस्मान इब्ने मजऊन के नाम पर रखा था ।
१४.जाफर इब्ने अली अलै०
आप भी हजरत अब्बास अलै० के हकीकी भाई थे । अलमदारे कर्बला की जब हस्बे खवाहिश व हिदायत आप भी यौमे आशूरा इमाम हुसैन अलै० पर कुर्बान होने के लिए बरामद हुए मैदान में पहिच कर आपने जबर्दस्त जंग की और बहुत से दुश्मनों को हलाक किया बिल आखिर आप ब-दस्ते खूली इब्ने यजीद ब-रिवायत हानि इब्ने स्बीते ह्ज्र्मी शहीद हो गए ।
शहादत के वक्त आप कि उम्र २१ साल की थी । आप का नाम अमीरुल मोमिनीन ने जाफरे तय्यार की यादगार में जाफर रखा था।
१५. अलम दारे कर्बला अब्बास बिन अली अलै०
इन बहदुराने बनी हाशिम की शहादत के बाद हजरत अली अकबर ने मैदान में जाने का इरादा किया । हजरत अब्बास ने फरमाया आका-जादे ये न मुमकिन है की मै जिन्दा रहूँ और तुम दुनिया से रुखसत हो जाओ ।
आप तालिबे रुखसत और हुसुले इज़न के लिए खिद्माते सरकारे हुस्सैनी में हाजिर हुए इमाम हुसैन अलै० ने फरमाया की तुम सकीना की प्यास का बंदोबस्त करो । आप मश्कीज़ा और अलम लेकर मैदान में तशरीफ ले गए और कारे-नुमाया करके पानी की जद्दो-जहद में शहीद हो गए । आप की तफ्सिली वाकेयात के लिए मुलाहेजा हो किताब जिक्र-अल-अब्बास मअल्लिफ हकीर ,मतबुआ लाहौर । आप के मुख्तसर हालात ये है की आप चार शाबान सई २६ हिजरी मुताबिक़ १८ मई सन ६४७ यौम स: शमबा को मदीना-ऐ-मुन्नवरा में पैदा हुए आप इमाम हुसैन के मुस्तकिल अल्मब्र्दारे लश्कर थे । आपको कर्बला में जिहाद की इजाजत नही दी गई । सिर्फ पानी लाने का हुकुम दिया गया था । आप कमाले वफा-दारी की वजह से नहरे फुरात में दाखिल हो क्र प्यासे बरामद हुए । आप का दाहिना हाथ खेमे में पानी पहुचने की सई में ज़ैद इब्ने वकार ल० की तलवार से कटा था ।और बायान हाथ हकीम इब्ने तुफैल ल० ने काटा था ।म्श्कीज़े पर तीर लगने से सारा पानीं बह गया था । और एक तीर सीने पर लगने से आप जमीन पर आ गए थे । आपके सर पर एक गुर्ज गराँ बार लगा था जमीन पर गिरते हुए आपने इमाम हुसैन अलै० को आवाज़ दी इमाम हुसैन अलै० ने अपनी कमर थाम क्र फ़रमाय की “अलान अनकसर जहरी” हाय मेरी कमर टूट गई । आपका लकब सक्का और कुन्नियत अबुल-फजिल व अबू करिया थी । आपकी तारीखे शहादत में मौलाना रोम ने मिसरा,सर दीन रा बरीद बेदीन से निकाली है । शहादत के वक्त आपकी उम्र ३४ साल चंद माह थी । आपने अपनी शहादत से कबल अपने बेटे फजल और कासिम को कुर्बान किया था । आपको कमाले हुस्न की वजह से कमर-ऐ-बनी हाशिम कहा जाता है ।
हजरत अली अकबर अलै० १६
आप हजरत इमाम हुसैन अलै० के मनझले बेटे थे । अमीरुल मोमिनीन हजरत अली अले० और फातिमा झर स० के पोते थे । हजरत अली की शाहदत के दो साल बाद मदीना-ऐ-मुनव्वरा में पैदा हुए थे । आपकी मादरे गिरामी का नामे नामी उम्मे लैला था ये बीबी अबू-हरीरा इब्ने अरव :इब्ने मसऊद सकफी की बेटी थी और उन् की वालेद: का नाम मैमुना: बिन्ते अबू-सुफियान इब्ने हर्ब इब्ने उम्मया था और मैमुना की माँ अबू-आस इब्ने उम्मयया की बेटी थी ।आप सुरत व सीरत में पैगम्बरे इस्लाम से बहुत मुशाबेह थे । आपका नाम अली इब्ने हुसैन कुन्नियत अबू-हसन और लकब अकबर था । मदीने से रवानगी के वक्त आपने अहले अस्मत के पर्दे का खास एतेमाम किया था ।
कर्बला में हजरते अब्बास की शहादत के वक्त आप मैदान में तशरीफ लाये और जबर्दस्त नबर्द आजमाई के बाद प्यास से बेहाल होकर इमाम हुसैन अलै० की खिदमत में वापिस तशरीफ ले गए । बाबा! जान पानी पिला दीजिये । इमाम हुसैन अलै० पानी की कोई सबील न क्र सके और फिर मैदान में वापस आये और नबर्द आजमाई करने लगे ।
ओलमा ने लिखा है की अली अकबर को जब इमाम हुसैन अलै० पानी न दे सके तो कहा, मेरे मुंह में अपनी जबान दे दो, अली अकबर ने जबान तो दे दी लेकी फौरन बाहर खींच ली और कहा, बाबा जान ! आप की जबान तो मेरी जबान से भी ज्यादा खुश्क है । इसके बाद इमाम हुसैन अलै० एक अन्गुश्त्गी उनके मुंह में दे और अली अकबर वापस मैदान जंग में चलाए गए ।
मैदान में जा कर आपने १२० दुश्मनों को कत्ल किया यहाँ तक की मुन्क्ज़ इब्ने मरा अब्दी ने आपके गुलुए मुबारक पर तीर और इब्ने नमीर ने सीना-ऐ-अक्दस पर वह तीर मारा जिसके सदमे से आप जमीन पर तशरीफ लाये । आपने आवाज़ दी !बाबा जान खबर लीजिये ! इमाम हुसैन अलै० बे-हाल वहां पहुचे । आप से पहले हजरते जैनब अली अकबर के पास पहुच चुकी थी । बच्चों की मदद से आप लाशा-ऐ-अकबर खेमे में ले आये शहादत के बाद आपकी उम्र१८ साल थी ।
मोहम्मद इब्ने अबी सईद इब्ने अकील अलै० (१७)
आप हजरत अकील इब्ने अबी तालिब के बेटे थे हजरत अली अकब्र की शाहदत के बाद इमाम हुसैन को उअको-तन्हा देख कर कमसिनी और इन्तेहाई प्यास के बावजूद खेमे से निकल पड़े । आपके हाथ में एक चौबे खेमा थी । आप घबराए हुए इन्तेहाई परेशानी के आलम में इमाम हुसैन की तरफ दौड़े जाते थे । आप के कानों के गोश्वारे हिलते जाते थे ।अभी आप इमाम हुसैन के नजदीक न पहुचे थे की नुफीत इब्ने आयासी जहमी याहानी इब्ने सबीत खज्र्जी ने घोड़े पर से झुक कर शहजादे के सरे मुबारक पर तलवार लगाईं और ख़ाक-ओ-खून में लोटने लगे । यहाँ तक की राही-ऐ-जन्नत हुए ।
मोआराखींन कशानी र० इस शहीदे जफा का नाम और नसब बताने से कासिर हैं (नास्खिउल तवारीख )
हजरत अली असगर अलै० (१८)
आप हजरत इमाम हुसैन के बेटे हजरत अली अलै० के पोते थे १० रजब ६० हिजरी को मादी-ऐ-मुनवरा में पैदा हुए आपकी मादरे गिरामी जनाबे रबाब बिन्ते अम्र वल कैस इब्ने अदि इब्ने औस थी ।
यौमे आशुरा जनाबे इमाम हुसैन अले० ने आवाज़ इस्तेगासा बलन्द की तो आपने अपने को झेले से गिरा दिया खेमे में रोने का कोहराम बरपा हुआ और इमाम हुसैन अले० फौरन आ पहुचे । पुछा बहेन जैनब ! क्या बात हैं ? जनाबे जैनब ने वाकया ब्यान किया इमाम हुसैन अलै० हजरत अली असगर को आगोश में लेकर कौमे अश्किया के स्समने जा पहुचे और ब-आवाज़े बलन्द फरमाया की मेरे इस बच्चे की माँ का दुध्ह खुश्क हो चूका हैं यह तीन दिन से भूखा और प्यासा है । इसे थोडा सा पानी दे दो ।
सवाले आब पर उम्रे साद के हुकुम से हुर्मुला ने तीन भाल का तीर कमान में छोड़ कर अली असगर के गले को ताका “फान्क्ल्ब अल-सबी अला यदें अल-इमाम” तीर का लगना थ की हजरत अली असगर इमाम हुसैन अलै० के हाथों पर मुन्क्लीब हो गये ।
इमाम हुसैन ने हजरत अली असगर का खून चुल्लू में लेकर आसमान की तरफ जमीन की जानिब फेकना चाहा लेकिन उन दोनों ने इसे कहने नाहक कुबूल करने से इनकार कर दिया बिल आखिर आप ने इस बच्चे के खून को अपने चेहरे पर मलकर कहा, मै इसी तरह नाना रसूल अल्लाह की बारगाह में जाऊँगा ।
इनकार आसमाँ को है राज़ी जमी नहीं ।।
असगर तुम्हारे खून का ठिकाना कहीं नहीं ।।
जनाबे इमाम हुसैन अलै०
शाह्दते ताजदारे इंसानियत स्यादुश- शोहदा
स्य्यादुश शोहदा हजरत इमाम हुसैन अलै० अमीरुल मोमिनीन हजरत अली अ० और स्य्यादेतुं निसा हजरत फातिमा जहरा स० के फरजंद और पैगम्बरे इस्लाम मोहम्मद मुस्तफा स० के नवासे थे आप ३ शाबान सन ४ हिजरीके मुताबिक ९ जनवरी ६२६ इ० को मदीना-ऐ-मुनव्वरा में पड़ा हुए थे । आप अहदे तिफ्लियत पैगम्बरे इस्लाम, अमीरुल मोमिनीन के जेरे आत्फत गुजरा ५० हिजरी इमाम हुसैन अले० की शहादत के बाद मदीना-ऐ-मुनव्वरा में इज्जत-नशीन हो गए । सन ५६ हिजरी में माविया ने आपसे बैअते यजीद लेनी चाही आपने उसके किरदार के हवाले से इनकार कर दिया ।रजब साठ हिजरी में माविया के इन्तेकाल के बाद यजीद ने फिर बैअत का सवाल उठाया और लाज़ेमन कत्ल के लिए जाने की धमकी दी । आपने मदीना छोड़ा ४ माह मक्के में कयाम के बाद ईराक कि तरफ रवाना हो गए आपके हमराह मुख्ह्द्राते इस्मत और छोटे-छोटे बच्चे भी थे ।
दूसरी मोहर्रम को आप का वरुद कर्बला में हुआ सातवी मोहर्रम से आप पर पानी बंद कर दिया गया । और सुबहे आशुर से असर तक आपके तमाम अज़ीज़ और अक्रेबा मुआली और ओलाद इन्कारे बएत फासिक की पादाश में तीन दिन के भूखे और प्यासे कत्ल कर दिए गए थे । यहाँ तक की आप का श्श्माहा बच्चा अली असगर तक न बच सका यानी आप का सारा खानदान इस्लाम की खातिर उसूल की भेट चढ़ गया ।
जब आप का मूईनो मददगार कोई न रहा और किसी से इस अम्र की तवक्कों न रही की वह उसूल की खातिर इस्लाम पर जान लगा दे तो आप खुद मैदान में अपनी कुर्बानी पेश करने के लिए निकल आये चुन्नाचे आपके जिस्म पर एक हजार नौ सौ इकसठ (१९६१) जख्म लगाए गए और आप जमीन पर तशरीफ लाये । नमाज़े असर का वक्त आ चूका था आप सजदा-ऐ-खालिक में गए शिमरे मलऊन ने आप का सरे मुबारक जुदा कर दिया ।
“इन्ना लिल्लाह व इन्ना इलैहे राजउन”
ये वाकया दस मोहररम ६१ हिजरी मुताबिक १० अक्तूबर सन्न ६८० ई० यौमे जुमा का है ।तफसीर के लिए मुलाहेजा हो चौदह सितारे ।।
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