सादिक़े आले मौहम्मद इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम

नबी अकरम व अहलेबैत
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विलादत

आप 17 रबीउल अव्वल 83 हि. को पीर के दिन मदीनाऐ मुनव्वरा मे पैदा।

(इरशादे मुफीद पेज न. 413, आलामुल वुरा पेज न. 159)

अल्लामा मजलिसी लिखते है कि जब आप बत्ने मादर मे थे तो कलाम फरमाया करते थे और विलादत के बाद आपने कलमाऐ शहादतैन जबान पर जारी किया।आप नाफबुरीदा और खतनाशुदा पैदा हुऐ थे।

(जिलाउल उयून पेज न. 265)

 

इस्मे गिरामी, कुन्नीयत और अलक़ाब

आप का नामे नामी जाफर, आपकी कुन्नीयत अबुअब्दिल्लाह, अबु इस्माईल और आपके अलक़ाब सादिक़, साबिर, फाज़िल और ताहिर वगैरा थे।

अल्लामा मजलिसी लिखते है कि रसूले अकरम (स.अ.व.व) ने अपनी हयाते तैय्यबा मे खुद छठे इमाम का लक़ब सादिक़ अलैहिस्सलाम रख दिया था और उसकी वजह ये थी कि अहले आसमान के नज़दीक इमाम जाफर का लक़ब पहले से ही सादिक़ अलैहिस्सलाम था।

(जिलाउल उयून पेज न. 264)

और उलामा बयान करते है कि जन्नत मे जाफर नामी एक शीरीन नहर है उसी नहर की मुनासेबत से आपका ये नाम रखा गया क्योकि आपका फैज़े आम नहरे जारी की तरह था (यानी जिस तरह लोग एक नहर से बिना किसी रोक-टोक के फायदा उठाते है ऐसे ही इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की ज़ात से फायदा उठाते थे।)

(अरजहुल मतालिब पेज न. 361)

 

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

बादशाहाने वक्त

आपकी विलादत 83 हि. मे हुई इस वक्त अब्दुल मलिक बिन मरवान बादशाह था। फिर वलीद फिर सलमान फिर उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ फिर यज़ीद बिन अब्दुल मलिक फिर हश्शाम बिन अब्दुल मलिक फिर वलीद बिन यज़ीद बिन अब्दुल मलिक फिर यज़ीदुन नाक़िस फिर इब्राहीम बिन वलीद फिर मरवानुल हिमार खलीफा बनते रहे। और मरवानुल हिमार के बाद अमवी खानदान की सल्तनत का चिराग़ गुल हो गया और बनी अब्बास ने हुकुमत पर क़ब्जा कर लिया। बनी अब्बास का पहला बादशाह अबुल अब्बास सफ्फाह था और दूसरा बादशाह मंसूरे दवानकी था और इसी मंसूरे दवानक़ी ने अपनी हुकुमत के दो साल गुज़रने के बाद इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम को ज़हर दिलवा कर शहीद कर दिया।

(आलामुल वुरा, अनवारुल हुसैनिया जिल्द न. 1 पेज न. 50)

 

अब्दुल मलिक बिन मरवान के दौर मे आपका एक मुनाज़ेरा

एक बार अब्दुल मलिक बिन मरवान के दरबार मे क़दरिया मुनाज़िर आया और उसने बादशाह के उलामा से मनाज़रे की माँग की। बादशाह के दरबारी उलामा ने उस से बहसो मुबाहेसा शूरू किया और कुछ ही घंटो मे वो सब के सब उस मनाज़िर से हार गये।

बादशाह को मालूम था कि ऐसे वक्त मे कहा रूजू किया जाऐ लिहाज़ा उसने पहली फुरसत मे इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की खिदमत मे खत लिख कर, आपको दीने पैयम्बर का वास्ता दे कर बुलवा भेजा। इमाम ने ज़रूरते वक्त को समझते हुऐ इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम को शाम रवाना कर दिया।

जिस वक्त अब्दुल मलिक ने देखा कि इमाम बाकिर अलैहिस्सलाम के बदले इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम तशरीफ लाऐ है तो कहने लगा कि आप अभी कमसिन है और वो बड़ा पुराना मनाज़ेरे करने वाला है। कही ऐसा न हो कि आप भी उलामा की तरह शिकस्त खा बैठे। इसी लिऐ मुनासिब नही है कि मजलिसे मुनाज़ेरा दोबारा रखी जाऐ।

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया कि बादशाह तू घबरा मत, अगर खुदा ने चाहा तो मै सिर्फ चंद मिन्टो मे मुनाज़ेरा खत्म कर दूँगा।

अल ग़रज़ सब लोग आ गऐ और मुनाज़ेरा शूरू हुआ।

और क्यो कि कदरीयो का ये अक़ीदा है कि खुदा बंदो के आमाल मे कोई दखल नही रखता और बंदे जो कुछ करते है खुद करते है लिहाज़ा इमाम ने उसके पहल करने की खाहिश पर फरमाया कि मै तुम से सिर्फ एक बात कहना चाहता हूँ और वो ये है कि तुम सूरऐ हम्द पढ़ो।

उस कदरियो के बुज़ुर्ग मनाज़िर और आलिम ने सूरऐ हम्द पढ़ना शूरू की और जब वो इय्याका नअबुदु व इय्याका नस्तईन पर पहुँचा कि जिसका तरजुमा ये है कि मैं सिर्फ तेरी ही इबादत करता हूँ और तुझ ही से मदद माँगता हूँ।

तो इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फरमायाः ठहर जाओ और मुझे इसका जवाब दो कि जब तुम्हारे अक़ीदे के मुताबिक़ खुदा को किसी मामले मे दखल देने का हक़ नही है तो फिर उससे मदद क्यो माँगते हो।

ये सुनकर वो खामोश हो गया और कोई जवाब न दे पाया।

और मजलिसे मुनाज़ेरा वही तमाम हो गई औऱ बादशाह बेहद खुश हुआ।

(तफसीरे बुरहान जिल्द न. 1 पेज न. 33)

 

क्या खुदा दुनिया को एक अंडे मे समो सकता है?

अबुशाकिर देसानी नामी एक शख्स ने इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के सहाबी हश्शाम बिन हकम से सवाल कराया कि क्या खुदा सारी दुनिया को एक अंडे मे समो सकता है और न अंडा बढ़े और न दुनिया घटे ???

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने जवाब दियाः बेशक वो हर चीज़ पर क़ादिर है।

उसने कहाः कोई मिसाल।

इमाम ने फरमायाः मिसाल के लिऐ आँख की छोटी सी पुतली काफी है। इसमे सारी दुनिया समा जाती है। न पुतली बढ़ती है, न दुनिया घटती है।

(उसूले काफी पेज न. 433)

 

जनाबे अबुहनीफा शार्गिदे इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम

ये तारीखी मुसल्लेमात मे से है कि अहले सुन्नत भाईयो के इमाम जनाबे अबुहनीफा इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के शार्गिदो मे एक है। लेकिन अल्लामा तक़ीयुद्दीन इब्ने तीमीया ने हमअस्र होने की वजह से इसमे मुनकिराना शुबह जाहिर किया है और इनके शुबह को शम्सुल उलामा अल्लामा शिबली नौमानी ने रद्द किया। यहा तक कि अल्लामा शिबली नोमानी ने इब्ने तीमीया की रद्द करते हुऐ आखिर मे लिखा .... इमाम अबुहनीफा लाख मुजतहिद और फक़ीह हो लेकिन फज़्लो कमाल मे हज़रत इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम से क्या निस्बत, हदीस व फिक़ह बल्कि तमाम मज़हबी उलूम अहलेबैत के घर से निकले है।

صاحب البیت ادری بما فیھا

घर वाले घर की तमाम चीज़ो को जानते है।

(सीरतुन् नौमान पेज न. 45)

 

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का अखलाक़

अल्लामा इब्ने शहर आशोब लिखते है कि इक इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने एक गुलाम को किसी काम से बाज़ार भेजा। जब उसकी वापसी मे देर हुई तो इमाम उसे ढ़ूढ़ने निकल गऐ और उसे एक जगह पर सोता हुआ पाया। इमाम उसके सरहाने बैठ गऐ और उसे पंखा करने लगे। जब वो सोकर उठा तो आप ने उस से फरमाया कि रात सोने के लिऐ और दिन काम के लिऐ है आईन्दा ऐसा न करना।

(मनाक़िब जिल्द 5 पेज न. 52)

अल्लामा अली नक़ी नक़्क़न साहब लिखते है कि आप इसी सिलसिलाऐ इस्मत की इक कड़ी थे जिसे खुदा वंदे आलम ने तमाम इंसानो के लिऐ नमूनाऐ कामिल बना कर पैदा किया है। इनके अखलाक़ो औसाफ ज़िन्दगी के हर हिस्से मे मैयारी हैसीयत रखते थे। खास खास सिफात जिनके मुताल्लिक़ इतिहासकारो ने खास तौर पर वाकिआत नक़्ल किये है मेहमान नवाज़ी, खैरो खैरात, छुपकर गरीबो की मदद, रिश्तेदारो के साथ हुस्ने सुलुक और सब्र व बरदाश्त वग़ैरा है।

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

सुफयाने सूरी बयान करते है कि मै एक मर्तबा इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की खिदमत मे हाज़िर हुआ तो देखा कि इमाम के चेहरे का रंग बदला हुआ है मैने वजह दरयाफ्त की तो इमाम ने फरमायाः मैने मना किया था कि कोई मकान की छत पर न जाऐ जब मै घर मे दाखिल हुआ तो एक कनीज़ हमारे एक बच्चे को लेकर छत पर जा रही थी। जब उसने मुझे देखा तो वो डर गई औऱ बच्चा उसके हाथ से छूट कर गिर गया है और वही पर मर गया।

मुझे बच्चे के मरने का इतना सदमा नही है जितना इसका रंज है कि इस कनीज़ पर इतना रौब व डर क्यो तारी हुआ।

फिर हज़रत ने उस कनीज़ को पुकार कर कहा कि डरो नही मैने तुम्हे राहे खुदा मे आज़ाद कर दिया।

उसके बाद इमाम उस बच्चे के कफन-दफन मे लग गऐ।

(सादिक़े आले मौहम्मद पेज न 12)

 

शार्गिदाने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम और उनकी किताबे

इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम के शार्गिदो की तादाद को उलामा ने चार हज़ार से भी ज़्यादा लिखा है और उनमे से बाज़ के नाम ये हैः इमाम अबुहनीफा, याहिया बिन सईद अंसारी, इब्ने जुरैह, इमाम मालिक बिन अनस, सुफयान सौरी, सुफयान बिन ऐनियह, अय्युब सजिस्तानी, जनाबे जाबिर इब्ने हय्यान, जनाबे जमरान, जनाबे अबान बिन तग़लब, फज्ल बिन शाज़ान, इब्ने दौल, इब्ने उमैर और जनाबे ज़ुरारा वगैरा है।

हज़रत के असहाब मे से चार सौ लेखको ने चार सौ ऐसी किताबे लिखी कि जिनमे उन्होने सिर्फ वो हदीसे लिखी कि जिन्हे उन्होने या तो खुद इमाम से सुना था या किसी ऐसे शख्स से रिवायत की कि जिसने हदीस को खुद इमाम से सुना था और इन किताबो को उसूले अरबा मिया का नाम दिया गया।

फज्ल बिन शाज़ान ने एकसौ अस्सी किताबे, इब्ने दौल ने सौ किताबे, बरक़ी ने भी तकरीबन सौ किताबे, इब्ने उमैर ने नव्वे किताबे लिखी और अकसर असहाबे आईम्मा ऐसे थे कि जिन्होने तीस या चालीस किताबे लिखी है।

 

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम और दूसरे इल्म

इतिहासिक किताबे इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के उन मुनाज़रो से भरी हुई है कि जिनमे इमाम ने इल्मे तिब, इल्मे कुरान, इल्मे नुजुम और इल्मे अजसाम वग़ैरा उलूम के बारे मे उन उलूम के बेहद माहिर अफराद से मुनाज़रे किये और उन्हे शिकस्त दी।

यहा तक कि आप के परिंदो और जानवरो की जबानो के जानने की गवाही भी इतिहास ने दी है।

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम और हिन्दुस्तानी हकीम

एक बार इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम मंसूर दवांक़ी के दरबार मे गऐ। वहा एक हिन्दुस्तानी हकीम बाते कर रहा था और इमाम बैठ कर उसकी बाते सुनने लगे आखिर मे उस हिन्दुस्तानी हकीम ने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की तरफ मुतावज्जे हो कर आपसे कहा कि अगर आप को मुझ से कुछ पूछना हो तो पूछ सकते है।

इमाम ने उस से कहाः मै क्या पूछू मै खुद तुझ से ज़्यादा जानता हूँ।

हकीम ने कहाः अगर ये बात है तो मै भी कुछ सुनु।

इमाम ने फरमायाः जब किसी बीमारी का गलबा हो तो उसका इलाज उसकी ज़िद्द से करना चाहिऐ यानी गर्म का इलाज सर्द से, तर का इलाज खुश्क से, खुश्क का तर से और हर हालत मे खुदा फर भरोसा रखना चाहिऐ।

याद रखो कि मेदा (पेट) तमाम बीमारीयो का घर है और परहेज़ सौ दवाओ की एक दवा है। जिस चीज़ का इंसान आदी हो जाता है उसके मिज़ाज के मुवाफिक़ और उसकी सेहत का सबब बन जाती है।

हकीम ने कहाः बेशक आपने जो कुछ भी बयान फरमाया यही अस्ल तिब है।

उसके बाद इमाम ने फरमाया कि अच्छा मै चंद सवाल करता हूँ। इनका जवाब दो।

फिर इमाम ने अपने सवाल हकीम के सामने रखेः

आँसू और रतूबतो (नाक वग़ैरा) की जगह सर मे क्यो है?

सर पर बाल क्यो है?

पेशानी (माथा) बालो से खाली क्यो है?

पेशानी पर खत और शिकन (लाईन्स) क्यो है?

दोनो पलके आँखो के उपर क्यो है?

नाक का सूराख नीचे की तरफ क्यो है?

मुँह पर दो होठ क्यो है?

सामने के दाँत तेज़ और दाढ़े चौड़ी क्यो है?

और इन दोनो के दरमियान लम्बे दाँत क्यो है?

दोनो हथेलिया बालो से खाली क्यो है?

मरदो के दाढ़ी क्यो है?

नाखून और बालो मे जान क्यो नही है?

दिल पान की शक्ल का क्यो होता है?

फेपड़े के दो टुकड़े क्यो होते है?

और वो अपनी जगह हरकत क्यो करता है?

जिगर की शक्ल उत्तल (Convex) क्यो है?

गुर्दे की शक्ल लोबीये के दाने की तरह क्यो है?

दोनो पाँव के तलवे बीच से खाली क्यो है?

हकीम ने जवाब दियाः मै इन बातो का जवाब नही दे सकता।

इमाम ने फरमायाः बफज़ले खुदा मै इन तमाम बातो के जवाब जानता हुँ।

हकीम ने कहाः बराऐ करम जवाब भी बयान फरमाऐ।

अब इमाम ने जवाब देना शुरू किया।

1.  सर अगर आसुओ और रूतूबतो (नाक वग़ैरा) का मरकज़ ना होता तो खुशकी की वजह से टुकड़े टुकड़े हो जाता।

2. सर पर बाल इसलिऐ है कि उनकी जड़ो से तेल वग़ैरा दिमाग तक पहुँचता रहे और दिमाग गर्मी और ज़्यादा सर्दी से बचा रहे।

3. पेशानी (माथा) इसलिए बालो से खाली होता है कि इस जगहा से आखोँ मे नुर पहुँचता है।

4. पेशानी मे शिकन (लाईंस) इसलिऐ होती है कि सर से जो पसीना गिरे वो आँखों मे न पड़ जाऐ और जब माथे की शिकनों मे पसीना जमा हो तो इंसान पोछ कर फेंक दे जिस तरह जमीन पर पानी जारी होता है तो गढ़ो मे जमा हो जाता है।

5. पलके इस लिऐ आँखो पर क़रार दी गई है कि सूरज की रोशनी इस क़दर पड़े कि जितनी ज़रूरूत है और बवक्त जरूरत बंद होकर आँख की हिफाज़त कर सके और सोने मे मदद कर सके।

6. नाक दोनो आँखो के बीच मे इस लिऐ है कि रोशनी बट कर बराबर दोनो आँखो तक पहुँच जाऐ।

7. आँखो को बादामी शक्ल का इसलिऐ बनाया है कि जरूरत के वक्त सलाई से दवा (सूरमा, काजल वगैरा) इसमे आसानी से पहुँच जाऐ।

8. नाक का सुराख नीचे को इस लिऐ बनाया कि दिमागी रूतूबत (नाक वगैरा) आसानी से निकल सके और अगर ये छेद उपर होता तो दिमाग तक कोई खुशबू या बदबू जल्दी से न पहुँच सकती।

9. होठ इसलिऐ मुँह पर लगाऐ गऐ है कि जो रूतूबत दिमाग़ से मुँह मे आऐ वो रूकी रहे और खाना भी आराम से खाया जा सके।

10. दाढ़ी मर्दो को इसलिऐ दी गई कि मर्द और औरत का फर्क पता चले।

11. अगले दाँत इसलिऐ तेज़ है कि किसी चीज़ का काटना आसान हो और दाँढ़ को इसलिऐ चौड़ा बनाया कि खाने को पीसना और चबाना आसान हो और इन दोनो के दरमियान लम्बे दाँत इसलिऐ बनाऐ कि इन दोनो को मज़बूती दे जिस तरह मकान की मज़बूती के लिऐ पीलर्स होते है।

12. हथेलियो पर बाल इस लिऐ नही है कि किसी चीज़ को छूने से उसकी नर्मी, सख्ती, गर्मी और सर्दी वग़ैरा आसानी से मालूम हो जाऐ।

13. बाल और नाखून मे जान इस लिऐ नही है कि इनका बढ़ना दिखाई देता है और नुक़सान देने वाला है। अगर इन मे जान होती तो काटने मे तकलीफ होती।

14. दिल पान की शक्ल का इसलिऐ होता है कि आसानी से फेपड़े मे दाखिल हो सके और इसकी हवा से ठंडक पाता रहे ताकि इस से निकलने वाली गैस दिमाग़ की तरफ चढ़ कर बीमारीया पैदा न करे।

15. फेपड़े के दो टुकड़े इसलिऐ हुऐ कि दिल उन के दरमियान है और वो इसको हवा देते रहे।

16. जिगर उत्तल (Convex) इस लिऐ हुआ है कि अच्छी तरह मैदे के उपर जगह पकड़ ले और अपनी गिरानी और गर्मी से खाने को हज़म करे।

17. गुर्दा लोबीये की शक्ल का इसलिऐ होता है कि मनी (वीर्य) पीछे की तरफ से उस मे आता है और इसके फैलने और सुकड़ने की वजह से आहिस्ता आहिस्ता निकलता है जिसकी वजह से इंसान को लज़्ज़त (मज़ा) महसूस होती है।

18. दोनो पैरो के तलवे बीच मे से इसलिऐ खाली है कि किनारो पर बोझ पड़ने से आसानी से पैर उठा सके और अगर ऐसा न होता और पूरे बदन का बोझ पैरो पर पड़ता तो सारे बदन का बोझ उठाना मुश्किल हो जाता।

इन जवाबो को सुनकर हिन्दुस्तानी हकीम हैरान रह गया और कहने लगा कि आप ने ये इल्म कहा से हासिल किया।

इमाम सादिक़ ने फरमायाः अपने बाप-दादा से और उन्होने रसूले खुदा से हासिल किया है और उन्होने इस इल्म को खुदा से हासिल किया था।

वो हकीम कहने लगे कि मै गवाही देता हुँ कि कोई खुदा नही सिवा एक के और मौहम्मद उसके रसूल और खास बन्दे है और आप इस जमाने के सबसे बड़े आलिम है।

(मनाकिब जिल्द 5 पेज न. 46)

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

मंसूर का हज और इमाम जाफर सादिक़ के क़त्ल का इरादा

अल्लामा शिबलंजी लिखते है कि 147 हिजरी मे मंसूर दवानकी जब हज करने गया तो कुछ दुश्मनाने खुदा उसके कान भर दिये कि इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम तेरी मुखालिफत करते है और तेरी हुकुमत का तख्ता पलटने की कोशिश मे है। हज से फारिग़ हो कर मंसूर मदीने आया और इमाम को तलब किया और जब उनके क़त्ल का इरादा कर लिया तो इमाम ने उस से फरमाया कियाः ऐ अमीर जनाबे सुलैमान को अज़ीम सल्तनत दी गई तो उन्होने शुक्र किया और जनाबे अय्यूब को मुसीबतो मे मुबतला किया गया तो उन्होने सब्र किया। जनाबे युसुफ पर ज़ुल्म किया गया तो उन्होने जालिमो को माफ कर दिया।

ऐ बादशाह ये सब नबी थे और तू भी इन्ही की नस्ल से है तुझे तो इनकी पैरी लाज़िम है।

ये सुनकर मंसूर का गुस्सा जाता रहा।

(नूरूल अबसार पेज ऩ 123)

 

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत

आप 15 शव्वाल सन् 148 हि. मे 65 साल की उम्र मे शहादत के दर्जे पर फाएज़ हुऐ और अल्लामा इब्ने हजर और दूसरे उलामा भी लिखते है कि आपको मंसूर के जमाने मे ज़हर से शहीद किया गया।

आप की कब्रे मुबारक जन्नतुल मे (मदीना) मे है।

(अरजहुल मतालिब पेज न 480)

 

औलाद

आपके दस औलादे थी जिनमे सात लड़के और तीन लड़कीया थी।

1.  जनाबे इस्माईल

2. इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम

3. अब्दुल्लाह

4. इस्हाक

5. मौहम्मद

6. अब्बास

7. अली

और बेटीयो के नाम ये हैः

1.  उम्मे फरबा

2. अस्मा

3. फातिमा

(इरशाद)

 

 

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