दुनिया व आखेरत की नेकी
परवरदिगार हमें दुनिया में भी नेकी अता फ़रमा और आख़ेरत में भी, और हमें जहन्नम के अज़ाब से महफ़ूज़ फ़रमा।
(बक़रह 201)
सब्र
पालने वाले हमें बे पनाह सब्र अता फ़रमा,हमारे क़दमों को सिबात दे और हमें काफ़िरों के मुक़ाबिले में नुसरत अता फ़रमा।
(बक़रह 250)
ग़लती
पालने वाले हम जो भूल जायें या हमसे ग़लती हो जाये उसका मुवाख़ेज़ा न करना। ( यानी उसके बारे में जवाब तलब न करना।)
(बक़रह 286)
बोझ न डालना
पालने वाले हमारे ऊपर वैसा बोझ न डालना, जैसा पिछली उम्मतों पर डाला गया।
(बक़रह 286)
हम पर रहम करना
पालने वाले हम पर वह बार न डालना जिसकी हम में ताक़त न हो, हमें माफ़ कर देना, हमें बख़्श देना, हम पर रहम करना, तू हमारा मौला और मालिक है, अब काफ़िरों के मुक़ाबिले में हमारी मदद फ़रमा।
(बक़रह 286)
हिदायत
पालने वाले हिदायत के बाद हमारे दिलों को न फेरना, हमें अपने पास से रहमत अता फ़रमा, तू तो बेहतरीन अता करने वाला है।
(आले इमरान 8)
गुनाहों को माफ़
पालने वाले हम ईमान ले आये हैं हमारे गुनाहों को माफ़ करदे और हमें जहन्नम से बचा ले।
(आले इमरान 16)
सिबाते क़दम
पालने वाले हमारे गुनाहों को माफ़ कर दे हमारे कामों में ज़्यादतियों को माफ़ फ़रमा, हमारे क़दमों को सिबात अता फ़रमा और काफ़िरों के मुक़ाबिले में हमारी मदद फ़रमा।
(आले इमरान 147)
नेक बंदों के साथ महशूर
पालने वाले हमारे गुनाहों को माफ़ फ़रमा, हम से हमारी बुराईयों को दूर कर दे और हमें नेक बंदों के साथ महशूर फ़रमा।
(आले इमरान 193)
तसदीक़ करने वालों
पालने वाले हम ईमान ले आये हैं लिहाज़ा हमारा नाम भी तसदीक़ करने वालों में लिख ले।
(मायदा 83)
ज़ालिमों के साथ क़रार न देना।
पालने वाले हमें ज़ालिमों के साथ क़रार न देना।
(आराफ़ 47)
मुसलमान दुनिया से उठा।
पालने वाले हमें बहुत ज़्यादा सब्र अता फ़रमा और हमें मुसलमान दुनिया से उठा।
(आराफ़ 126)
दुआ को क़बूल
पालने वाले मेरी दुआ को क़बूल फ़रमा।
(इब्राहीम 40)
बख़्श देना
पालने वाले मुझे, मेरे वालदैन को और तमाम मोमेनीन को उस दिन बख़्श देना जिस दिन हिसाब क़ायम होगा।
(इब्राहीम 41)
कामयाबी
पालने वाले हमें अपनी रहमत अता फ़रमा और हमारे काम में कामयाबी का समान फ़राहम कर दे।
(कहफ़ 10)
रहम
पालने वाले हम ईमान ले आये हैं, अब हमें माफ़ फ़रमा और हमारे ऊपर रहम कर और तू तो रहम करने वालों में सबसे बेहतर है।
(मोमिनून 109)
तक़वा
पालने वाले हमें हमारी अज़वाज व औलाद की तरफ़ से ख़ुनकी ए- चश्म अता फ़रमा और हमें साहिबाने तक़वा का पेशवा बना दे।
(फ़ुरक़ान 74)
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