कयामत की दलीलें

अकीदाऐ क़यामत
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उलामा ने मआद (कयामत) की ज़रुरत पर बहुत सी दलीलें पेश की हैं जिन में से बाज़ यह हैं:

 

ख़ुदा का आदिल होना

 

ख़ुदा वंदे आलम ने इंसानों को अपनी इबादत के लिये पैदा किया है लेकिन इंसान दो तरह के होते हैं: 1. वह जो ख़ुदा के नेक और सालेह बंदे हैं। 2. वह जो ख़ुदा की मासियत और गुनाहों में डूबे हुए हैं।


चूँकि ख़ुदा आदिल है लिहाज़ा ज़रुरी है कि वह मोमिन को ईनाम और गुनाह करने वाले को सज़ा दे। लेकिन यह काम इस दुनिया में नही हो सकता इस लिये कि जिस शख़्स ने सैकड़ों क़त्ल किये हों उसे इस दुनिया अगर सज़ा दी जाये तो उसे ज़्यादा से ज़्यादा मौत की सज़ा दी जायेगी। जो सिर्फ़ एक बार होगी जब कि उसने सैकड़ों क़त्ल किये हैं लिहाज़ा कोई ऐसी जगह होनी चाहिये जहाँ ख़ुदा उसे उस के अमल के मुताबिक़ सज़ा दे और वह जगह आख़िरत (मआद) है।

 

इंसान का बे मक़सद न होना

हम जानते हैं कि ख़ुदा ने इंसान को बे मक़सद पैदा नही किया है बल्कि एक ख़ास मक़सद के तहत उसे वुजूद अता किया है और वह ख़ास मक़सद यह दुनियावी ज़िन्दगी नही है। इस लिये कि यह महदूद और ख़त्म हो जाने वाली ज़िन्दगी है जिस के बाद सब को उस दुनिया की तरफ़ जाना है जो हमेशा बाक़ी रहने वाली है लिहाज़ा अगर उसी दुनियावी ज़िन्दगी को पैदाईश का मक़सद मान लिया जाये तो यह एक बेकार और बे बुनियाद बात होगी। लिहाज़ा अगर ज़रा ग़ौर व फ़िक्र किया जाये तो मालूम हो जायेगा कि इंसान इस महदूद दुनियावी ज़िन्दगी के लिये नही बल्कि एक बाक़ी रहने वाली ज़िन्दगी के लिये पैदा किया गया है जो बाद के बाद की ज़िन्दगी यानी मआद है और यह दुनिया उसी असली ज़िन्दगी के लिये एक गुज़रगाह है। इस सिलसिले में क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है:

افحسبتم انما خلقناکم عبثا و انکم الینا لا ترجعون .

क्या तुम यह ख़्याल करते हो कि हम ने तुम्हे बे मक़सद पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे? (सूर ए मोमिनून आयत 115)


मआद के दिन सब के आमाल उन के सामने लाये जायेगें। जिन लोगों ने नेक आमाल अंजाम दिये है उन का नाम ए आमाल दाहिने हाथ में होगा लेकिन जिन लोगों ने बुरे आमाल किये होगें उन की नाम ए आमाल बायें हाथ में होगा और बुरे आमाल वाला अफ़सोस करेगा कि ऐ काश मैं बुरे काम अंजाम न देता।

 

मआद की दो अहम दलीलें:
1. ख़ुदा का आदिल होना: इस दुनिया में नेक काम करने वालों को ईनाम और गुनाह करने वालों को सज़ा नही दी जा सकती। लिहाज़ा एक ऐसी जगह का होना ज़रुरी है जहाँ ख़ुदा अपनी अदालत के ज़रिये ईनाम और सज़ा दे सके और वह जगह वही आलमे आख़िरत या मआद है।

2. इंसान का बे मक़सद न होना: ख़ुदा ने इंसान को बे मक़सद पैदा नही किया है बल्कि ख़ास मक़सद के तहत उसे वुजूद बख़्शा है और वह ख़ास मक़सद यह महदूद दुनियावी ज़िन्दगी नही हो सकती। इस लिये कि यह एक बेकार बात होगी, वह ख़ास मक़सद हमेशा बाक़ी रहने वाली ज़िन्दगी है और इस दुनिया के बाद हासिल होगी जिसे मआद कहते हैं।

 

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