खुदावंदे आलम अपनी किताब में कई जगह फ़रमाता है कि हर चीज़ का पैदा करने वाला ख़ुदा है। (सूर ए ज़ुमर आयत 65) जिस चीजॉ को शय या चीज़ कहा जाता है वह ख़ुदा के अलावा है। यही मज़मून क़ुरआने मजीद में चार बार आया है और उस के लिहाज़ से जो चीज़ भी दुनिया में मख़लूक़ फ़र्ज़ की जाये वह ख़ुदा ने ही पैदा की है और उस की ज़िन्दगी भी ख़ुदा से वाबस्ता है।
अलबत्ता इस नुक्ते को भी नही भूलना चाहिये कि क़ुरआने मजीद सैकड़ो आयात में इल्लत व मालूम की तसदीक़ करता है और हर फ़ाइल के फ़ेल को ख़ुद उस के फ़ाइल से निस्बत देता है। चीज़ों से असरात को जैसे आग के जलाने, ज़मीन से खेती उगाने, आसमान से बारिश बरसाने और ऐसे ही दूसरे आमाल, जो इंसान के इख़्तियारी फ़ेल हैं उन को इंसान सें मंसूब करता है।
नतीजे के तौर पर हर काम को अंजाम देने वाला शख़्स इस काम का साहिब या मालिक है लेकिन ज़िन्दगी देने वाला और हर चीज़ को पैदा करने वाला, हक़ीक़ी साहिबे कार सिर्फ़ ख़ुदा ही है और बस,
अल्लाह तआला ने अपनी मख़लूक और आफ़रिनिश को उमूमियत देने के बाद, फ़रमाता है कि वह ख़ुदा जिसने हर चीज़ को बहुत ख़ूब सूरत पैदा किया है, मुनदर्जा बाला आयात के इंज़ेमाम के मुताबिक़, ख़ूब सूरती के अलावा और कोई सिफ़त नही रखतीं। (हर चीज़ ज़ेबा और ख़ूब सूरत है)
और इस नुक्ते से भी ग़ाफ़िल नही होना चाहिये कि क़ुरआने मजीद बहुत ज़्यादा आयात में अच्छाई को बुराई के मुक़ाबले में और फ़ायदे को नुक़सान के मुक़ाबले में और उसी तरह अच्छे को बुरे के मुक़ाबले में और ख़ूब सूरत को बदसूरत के मुक़ाबले में बयान करता है।
और बहुत से कामों, मज़ाहिर क़ुदरत को अच्छा और बुरा कह कर पुकारता है लेकिन हक़ीक़त में यह बुराईयाँ आपस में मुक़ाबला करने से पैदा होती हैं लिहाज़ा इन का वुजूद क़यासी और निसबी है न कि नफ़्सी (ज़ाती)। जैसे साँप और बिछ्छू बुरे जानवर हैं लेकिन इंसानों और हैवानात की बनिस्बत, जिन को उन के डंकों से नुक़सान पहुचता है न कि पत्थर और मिट्टी की बनिस्बत, तल्ख़ मज़ा और मुर्दार की बदबू क़ाबिले नफ़रत है लेकिन इंसान के ज़ायक़े और सूघने की बनिस्बत न कि किसी दूसरी चीज़ की। बाज़ अख़लाक़ और किरदार भी बुरे हैं लेकिन इंसानी समाज की अर्थ व्यवस्था की बनिस्बत न कि हर निज़ाम की बनिस्बत और न ही समाजी निज़ाम से अलग हो कर।
हाँ तो अगर मुक़ाबले और निस्बत से चश्म पोशी कर ली जाये तो इस सूरत में हर चीज़, जिस चीज़ को भी देखेगें, ख़ूब सूरती, हैरत अंगेज़ और चौंधिया देने वाले अजीब करिश्मों के सिवा कुछ नज़र नही आयेगा और इस दुनिया का ख़ूब सूरत जलवा इंसानी बयान और तारीफ़ से बाहर हैं क्योकि ख़ुद तारीफ़ और बयान भी। इसी दुनिया का हिस्सा हैं।
दर हक़ीक़त इस आयत की मक़सद यह है कि लोगों को बुराईयों से हटा कर सिर्फ़ ख़ूबियों और अच्छाईयों की तरफ़ मायल करें और कुल्ली और उमूमी तौर पर ज़हनों को अरास्ता कर दे।
इस तालीम को हासिल करने के बाद हम सैक़ड़ों क़ुरआनी आयात का मुशाहिदा करते हैं कि अपने भिन्न भिन्न के बयानात के ज़रिये इस दुनिया की मौजूदात को अलग अलग, गिरोह गिरोह, जुज़ई और कुल्ली निज़ामों को जिन के मुताबिक़ वह हुकूमत करते हैं ख़ुदा वंदे आलम की निशानियों के तौर पर तआरुफ़ कराते हैं और अगर उन पर गहराई से ग़ौर व फिक्र करें तो वह अल्लाह तआला का रास्ता दिखाने वाली हैं।
पिछली दो आयतों के पेशे नज़र हमें यह मालूम होता है कि यह अदुभुत ख़ूब सूरती जो सारी दुनिया को घेरे हुए है वही ख़ुदाई ख़ूबसूरती जो आसमान व ज़मीन की निशानियों के ज़रिये दिखाई देती है और इस दुनिया के तमाम अजज़ा एक ऐसा दरिचा हैं जिन से दिलनशीन और असीमित फ़ज़ा बाहर निकलती है लेकिन यह अजज़ा ख़ुद व ख़ुद कोई चीज़ नही है।
इस तरह क़ुरआने मजीद दूसरी आयात में हर कमाल और जमाल को ख़ुदा वंदे आलम से मुतअल्लिक़ शुमार करता है जैसा कि इरशाद होता है कि वह (ख़ुदा) ज़िन्दा है उस के अलावा कोई ख़ुदा नही है। (सूर ए मोमिन आयत 65), समस्त ताक़त और शक्ति अल्लाह के लिये हैं। (सूर ए बक़रह आयत 165), वास्तव में सारी इज़्ज़तें ख़ुदा को जचती हैं। (सूर ए निसा आयत 139) या सूर ए रूम की 54 वी और सूर ए इसरा की पहली आयतें के मअना के अनुसार या सूर ए ताहा की 8 वी के अनुसार ख़ुदा वह है जिस के बग़ैर और कोई ख़ुदा नही है, हर अच्छा नाम उसी का है। इन आयतों के अनुसार सारी ख़ूबसूरतियाँ जो इस दुनिया में पाई जाती हैं उन सब की हक़ीक़त ख़ुदा वंद की तरफ़ से है लिहाज़ा दूसरों के लिये सिर्फ़ मजाज़ी और वक़्ती हैं।
इस बयान की ताईद में क़ुरआने मजीद एक और बयान के ज़रिये वज़ाहत करता है कि दुनिया के हर मज़हर में जमाल व कमाल महदूद और सीमित है हैं और ख़ुदा वंद तआला के लिये ना महदूद और असीमित। हमने हर चीज़ को एक ख़ास अंदाज़े के साथ पैदा किया है। (सूरए क़मर आयत49), हर चीज़ हमारे सामने एक ख़ज़ाने है, हम ने इस ख़ज़ाने को बग़ैर एक मुअय्यन अंदाज़े के जम़ीन पर नही भेजते। (सूर ए हिज्र आयत 21)
इंसान इस क़ुरआनी हक़ीक़त को क़बूल करने से अचानक अपने आप को एक ना महदूद जमाल व कमाल के सामने देखेगा कि हर तरफ़ से उस को घेर हुए है और उस के मुक़ाबले में किसी क़िस्म का ख़ला नही पाया जाता है और हर जमाल व कमाल और हत्ता कि अपने आप को जो कि ख़ुद उन्ही आयतों (निशानियों) में से एक है, भूल कर उसी (ख़ुदा) का आशिक़ हो जायेगा। जैसा कि इरशाद होता है कि जो लोग ख़ुदा पर ईमान लाये हैं वह ख़ुदा की निस्बत ज़्यादा महर व मुहब्बत रखते हैं। (सूर ए बक़रह आयत 165)
और यही वजह है कि चुँकि महर व मुहब्बत का ख़ास्सा है अपने इस्तिक़लाल और इरादे को ख़ुदा के सामने तसलीम करते हुए ख़ुदा की कामिल सर परस्ती के तहत चला जाता है।
चुँनाचे अल्लाह तआला फ़रमाता है कि ख़ुदा मोमिनों का सर परस्त और वली है। (सूर ए आले इमरान आयत 68) और अल्लाह तआला ने भी जैसा कि वादा किया है, ख़ुद इंसानों की रहबरी और क़यादत करता है। ख़ुदा मोमिनों का सरपरस्त है और उन को अंधेरों से निकाल कर रौशनी की तरफ़ रहनुमाई करता है। (सूर ए बक़रह आयत 257)
और इस आयते करीमा के अनुसार, आया वह शख़्स मर गया था जो हम ने उस को ज़िन्दा किया और उसको नूर और रौशनी दिखाई कि वह उस रौशनी के साथ लोगों के दरमियान चलता फिरता है (सूर ए इनआम आयत 122) और इस आयत के मुताबिक़ और ख़ुदा ने उस के दिलों में ईमान को क़ायम और साबित कर दिया है और उन को अपनी रूह या ईमान से मदद दी है। उन को एक नई रुह और नई ज़िन्दगी बख़्शता है और एक नूर यानी ख़ास हक़ीक़त बिनी का मलका उस को अता कर देता है ता कि सआदत मंदाना ज़िन्दगी को समाज में तशख़ीस दे। (सूर ए मुजादेला आयत 22)
और दूसरी आयते शरीफ़ा इस नूर को हासिल करने के बारे में वज़ाहत करती है, ऐ ईमान वालो, परहेज़गार बनो और ख़ुदा के पैग़म्बर पर ईमान लाओ ताकि ख़ुदावंदे तआला अपनी रहमत से तुम्हे दुगुना दे और तुम्हारे लिये नूर लाये ताकि तुम उस नूर के साथ राह पर चलो। (सूर ए हदीद आयत 28)
और पैग़म्बरे अकरम (स) पर ईमान लाने को दूसरी आयात में उन के सामने सरे तसलीम ख़म करने और उन की पैरवी करने का हुक्म दिया गया है जैसा कि इरशाद होता है कि ऐ नबी कह दीजिये कि अगर तुम्हे ख़ुदा से मुहब्बत है तो मेरी पैरवी करो ता कि ख़ुदा तुम से मुहब्बत करे। पैरवी और इताअत की बुनियाद एक दूसरी आयते शरीफ़ा में वज़ाहत फ़रमाता है। जो लोग इस पैग़म्बर की इताअत और पैरवी करते हैं जो उम्मी है और जो कोई तौरेत और इंजील में लिखे हुए सुबूत को पैदा करना चाहता है, तौरेत और इंजील में भी इस (नबी) का ज़िक्र आया है उन को अच्छी बातों का तरफ़ दावत देता है और बुरी बातों से मना करता है और इसी तरह पाक चीज़ों को उन के लिये हलाल और नापाक और पलीद चीज़ों को उन के लिये हराम करता है और उन से सख़्तियों और हर क़िस्म की पाबंदियों को दूर करता है यानी उन को आज़ादी बख़्शता है। (सूर ए आराफ़ आयत 157)
पैरवी और इताअत के बारे में उस से भी वाज़ेह तर बयान एक और आयते शरीफ़ा में जो पहली आयत की तफ़सीर भी करती है और उसे वाज़ेह भी करती है, अपने चेहरों को दीन के लिये मज़बूत रखो, ऐतेदाल की हालत में रहो, दीन में ऐतेदाल के साथ साबित क़दम रहो, यह ख़ुदा की फ़ितरत है जिस पर इंसानों को पैदा किया गया है (उसी पर साबित क़दम रहो) ख़ुदा की फ़ितरत में कोई तब्दीली नही है, यही वह दीन है जो इंसानी समाज का बख़ूबी इंतेज़ाम कर सकता है। (सूर ए रूम आयत 30)
इस आयते शरीफ़ा के मुताबकि इस्लाम का मुकम्मल प्रोग्राम फ़ितरत के तक़ाज़ों पर मबनी है दूसरे अल्फ़ाज़ में ऐसी शरीयत और क़वानीन है जिन की तरफ़ इंसानी फ़ितरत रहनुमाई करती है। (यानी एक क़ुदरती और फ़ितरी इंसान की फ़ितरी ज़िन्दगी तमाम बुराईयों से पाक हो।) जैसा कि एक जगह पर इरशाद होता है कि मुझे क़सम है इंसानी नफ़्स की जो अपने कमाल में पैदा किया गया है लेकिन इस को शर का इलहाम भी दिया गया है, इन आयात की क़सम जिस ने अपने नफ़्स को गुनाहों से पाक रखा यक़ीनन गुनाहों से निजाता पैदा करेगा और जिस ने नफ्स को गुनाहों से आलूदा किया वह यक़ीनन घाटे में रहेगा। (सूरए शम्स आयत 7,10)
कुरआने मजीद वाहिद आसमानी किताब है जो सब से पहले इंसानी सआदत मंदाना ज़िन्दगी को फ़ितरी और पाक इंसान की ज़िन्दगी को बे लाग ज़िन्दगी के बराबर समझती है और दूसरे तमाम तरीक़ों के ख़िलाफ़ जो इंसान की ख़ुदा परस्ती (तौहीद) के प्रोग्राम को ज़िन्दगी के प्रोग्राम से जुदा और अलग करते हैं, दीन के प्रोग्राम को ही ज़िन्दगी का प्रोग्राम कहती है और इस तरह इंसान के तमाम इंफ़ेरादी और समाजी पहलू में मुदाखिलत करते हुए हक़ीक़त बिनी पर मबनी, (ख़ुदा परस्ती और तौहीद) अहकाम को जारी करती है। दर अस्ल अफ़राद को दुनिया और दुनिया को अफ़राद के हवाले करती है और दोनो को ख़ुदा के हवाले। कुरआने मजीद ख़ुदा के बंदों और अवलिउल्लाह के लिये उन के यक़ीन और ईमान के मुताबिक़ बहुत ज़्यादा मानवी ख़वास का ज़िक्र करता है। जिस का बयान इस बाब में समा नही सकता।
क़ुरआन से क़ुरआन की तफ़सीर का नमूना
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