अब्बासी शासक हारून बड़ा अत्याचारी एवं अहंकारी शासक था। वह स्वयं को समस्त चीज़ों और हर व्यक्ति से ऊपर समझता था।
वह विश्व के बड़े भूभाग पर शासन करता और अपनी सत्ता पर गर्व करता और कहता था" हे बादलों वर्षा करो तुम्हारी वर्षा का हर बूंद मेरे ही शासन में गिरेगी चाहे वह पूरब हो या पश्चिम।
एक दिन हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम को बाध्य करके हारून के महल में ले जाया गया। हारून ने इमाम से पूछा, दुनिया क्या है?
इमाम ने दुनिया से हारून के प्रेम और उसके भ्रष्टाचार को ध्यान में रखते हुए उसे सचेत करने के उद्देश्य से कहा" दुनिया भ्रष्टाचारियों की सराय है" उसके पश्चात आपने सूरये आराफ़ की १४६वीं आयत की तिलावत की जिसका अनुवाद है" वे लोग जो ज़मीन पर अकारण घमंड करते हैं हम शीघ्र ही उनकी निगाहों को अपनी निशानियों से मोड़ देंगे" इमाम और हारून के बीच वार्ता जारी रही। हारून ने, जो अपने आपको इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के साथ बहस में फंसा हुआ देखा देख रहा था, पूछा हमारे बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है? इमाम काज़िम अलैहिस्लाम ने पवित्र क़ुरआन की आयत को आधार बनाते हुए उसके उत्तर में कहा" तुम ऐसे हो कि ईश्वर कहता है कि क्या उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने ईश्वरीय विभूति का इंकार किया और अपनी जाति को तबाह व बर्बाद कर दिया" एक बार लोगों ने हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को ख़ेत में काम करते हुए देखा। कठिन मेहनत व परिश्रम के कारण आपके पावन शरीर से पसीना बह रहा था।
लोगों ने आपसे कहा क्यों इस कार्य को दूसरे को नहीं करने देते?
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम ने उनके उत्तर में कहा" कार्य व प्रयास ईश्वरीय दूतों एवं भले लोगों की जीवन शैली है"
कभी देखने में आता है कि कुछ लोग संसार की विभूतियों से लाभांवित होने या परलोक की तैयारी में सीमा से अधिक बढ़ जाते जाते हैं या सीमा से अधिक पीछे रह जाने का मार्ग अपनाते हैं।
कुछ लोग इस तरह दुनिया में लीन हो जाते हैं कि परलोक को भूल बैठते हैं और कुछ लोग परलोक के कारण दुनिया को भूल बैठते हैं।
परिणाम स्वरुप संसार की विभूतियों, योग्यताओं एवं संभावनाओं से सही लाभ नहीं उठाते हैं।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम कहते हैं" वह व्यक्ति हमसे नहीं है जो अपनी दुनिया को अपने धर्म के लिए या अपने धर्म को अपनी दुनिया के लिए छोड़ दे"
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की दृष्टि में लोक- परलोक एक दूसरे से संबंधित हैं।
धर्म, लोक व परलोक में मानव के कल्याण के मार्गों को दिखाता है। दुनिया धार्मिक आदेशों व शिक्षाओं के व्यवहारिक बनाने का स्थान है।
दुनिया का सीढ़ी के समान है जिसके माध्यम से लक्ष्यों तक पहुंच जा सकता है।
मनुष्यों को चाहिये कि वे अपनी भौतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन उत्पन्न करें ताकि अपनी योग्यताओं व क्षमताओं को परिपूर्णता तक पहुंचायें।
इस आधार पर हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम लोगों से चाहते हैं कि वे लोक व परलोक के अपने मामलों में संतुलन स्थापित करें।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम अपनी एक वसीयत में धर्म में तत्वदर्शिता पर बल देते हुए कहते हैं"
ईश्वर के धर्म के बारे में ज्ञान व जानकारी प्राप्त करो क्योंकि ईश्वरीय आदेशों का समझना तत्वदर्शिता की कुंजी है और वह धर्म एवं दुनिया के उच्च स्थानों तक पहुंचने का कारण है"
इमाम की वसीयत में यह वास्तविकता दिखाई पड़ती है कि इस्लाम धर्म, मानव कल्याण को सुनिश्चित बनाता है इस शर्त के साथ कि उसे सही तरह से समझा जाये।
अतः आप, सदैव लोगों के हृदय में तत्वदर्शिता का दीप जलाने के प्रयास में रहे।
समाज की राजनीतिक स्थिति संकटग्रस्त होने के बावजूद आप लोगों विशेषकर विद्वानों के विचारों एवं विश्वासों के सुधार के प्रयास में रहते।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक प्रयास इस बात का कारण बने कि ग़लत विचारों के प्रसार के दौरान इस्लाम धर्म की शिक्षाएं फेर- बदल से सुरक्षित रहीं।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने इस दिशा में बहुत कठिनाइयां सहन कीं। उन्होंने बहुत से शिष्यों का प्रशिक्षण किया।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम की श्रेष्ठता व विशेषता के बारे में कहते हैं"
इसके बावजूद कि विभिन्न विषयों के बारे में मेरे पिता की सोच एवं विचार प्रसिद्ध थे फिर भी वे कभी-कभी अपने दासों से विचार - विमर्श करते हैं।
एक दिन एक व्यक्ति ने मेरे पिता से कहा क्या अपने सेवकों व दासों से विचार विमर्श कर लिया? तो उन्होंने उत्तर दिया ईश्वर शायद किसी समस्या का समाधान इन्हीं दासों की ज़बान पर जारी कर दे" यह शैली समाज के विभिन्न वर्गों विशेषकर कमज़ोरों, वंचितों एवं ग़रीबों के मुक़ाबले में इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम की विन्रमता की सूचक थी।
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम लोगों विशेषकर दरिद्र और निर्धन लोगों के प्रति बहुत दयालु एवं दानी थे।
जो भी आपके घर जाता, चाहे आध्यात्मिक आवश्यकता के लिए या भौतिक, आवश्यकता के लिए वह संतुष्ट व आश्वस्त होकर आपके घर से लौटता।
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम कहते थे कि प्रेम, जीवन को अच्छा बनाता है, संबंधों को मज़बूत करता है और हृदयों को आशावान बनाता है"
हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम आत्मिक और व्यक्तिगत विशेषताओं की दृष्टि से बहुत ही महान व्यक्तित्व के स्वामी थे तथा एक शक्तिशाली चुंबक की भांति पवित्र हृदयों को अपनी ओर आकृष्ट कर लेते थे परंतु बुरे विचार रखने वाले और अत्याचारी, सदैव ही आपके वैभव तथा आध्यात्मिक आकर्षण से भयभीत थे।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम, पैग़म्बरे इस्लाम के उस कथन के चरितार्थ थे जिसमें आप कहते हैं" ईश्वर ने मोमिन अर्थात ईश्वर पर ईमान रखने वाले व्यक्ति को तीन विशेषताएं प्रदान की हैं दुनिया में मान- सम्मान व प्रतिष्ठा, परलोक में सफलता व मुक्ति और अत्याचारियों के दिल में रोब।
इमामे मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम
Typography
- Smaller Small Medium Big Bigger
- Default Helvetica Segoe Georgia Times
- Reading Mode
Comments powered by CComment