- लेखक: सैय्यद मौहम्मद मीसम नक़वी
हश्शाम बिन सालिम कहते है कि एक दिन मै कुछ लोगो के साथ इमाम सादिक़ (अ.स) की खिदमत बैठा था कि एक शामी मर्द ने आपके हुज़ुर मे आने की इजाज़त माँगी और इमाम से इजाज़त लेने के बाद आपके सामने हाज़िर हुआ।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बैठ जाओ और उस से पूछाः क्या चाहते हो?
शाम के रहने वाले उस मर्द ने इमाम (अ.स) से कहाः सुना है कि आप लोगो के सवालो के जवाब देते है लेहाज़ा मैं भी आप से बहस और मुनाज़ेरा करना चाहता हुँ।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः किस मौज़ू (विषय) मे?
शामी ने कहाः क़ुरआन पढ़ने के तरीक़े के बारे मे।
इमाम (अ.स) ने अपने सहाबी और शार्गिद जमरान की तरफ मुँह करके फरमायाः जमरान इस शख्स का जवाब दो।
शामी ने कहाः मै चाहता हुँ कि आप से बहस करूँ।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः अगर जमरान को हरा दिया तो समझो मुझे हरा दिया।
शामी ने न चाहते हुऐ भी जनाबे जमरान से मुनाज़ेरा किया अब शामी जो भी सवाल पूछता गया और जनाबे जमरान ने दलीलो के साथ जवाब दिये और आखिर मे उसने हार मान ली।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः तूने जमरान के इल्म को कैसा पाया?
शामी ने जवाब दियाः बहुत जबरदस्त, जो कुछ भी मैने इससे पूछा इसने बहुत अच्छा जवाब दिया।
फिर शामी ने कहा कि मैं चाहता हुँ कि लुग़त (शब्दार्थ) और अरबी अदब (व्याकरण) के बारे मे बहस करुँ।
इमाम (अ.स) ने अपने सहाबी और शार्गिद अबान बिन तग़लब की तरफ मुँह करके फरमायाः अबान इसका जवाब दो।
जनाबे अबान ने भी जनाबे जमरान की तरह उस शख्स के हर सवाल का बेहतरीन जवाब दिया और उस मर्दे शामी को हरा दिया।
शामी ने कहाः मैं अहकामे इस्लामी के बारे मे आप से मुनाज़ेरा करन चाहता हुँ।
इमाम (अ.स) ने अपने शार्गिद जनाबे ज़ुरारा से कहा कि इससे मुनाज़ेरा करो और ज़ुरारा ने भी शामी के दाँत खट्टे कर दिये और उसे मुनाज़ेरे मे मात दी।
शामी ने फिर इमाम (अ.स) से कहा कि मैं इल्मे कलाम (अक़ीदे) के बारे मे आपसे बहस करना चाहता हुँ।
इमाम (अ.स) ने मोमीने ताक़ को हुक्म दिया कि उस शामी से मुनाज़ेरा करे।
कुछ ही देर गुज़री थी कि मोमीने ताक़ ने उसे शिकस्त दे दी।
इसी तरह उस शामी शख्स ने इमाम (अ.स) से अलग अलग विषयो पर मुनाज़ेरे की माँग की और इमाम (अ.स) ने अपने शार्गिदो को उससे मुनाज़ेरे के लिऐ हुक्म दिया और वो मर्दे शामी इमाम (अ.स) के तमाम शार्गिदो से हारता चला गया।
और इस खूबसूरत लम्हे पर इमाम (अ.स) के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ती चली गई।
(ये आरटीकल जनाब मेहदी पेशवाई की किताब "सीमाये पीशवायान" से लिया गया है।)
इमाम सादिक़ और मर्दे शामी
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