इमाम बाक़िर अ. अहले सुन्नत की निगाह में

इमाम मौहम्मद बाक़िर अ.स.
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अबू जाफ़र मोहम्मद बाक़िर अ. का उपनाम (उपाधि) बाक़िर है जिसका मतलब ज़मीन को चीरना और उसके अंदर से छिपा ख़ज़ाना निकालना है


इब्ने हजर हैसमी जो अहले सुन्नत के कट्टरपंथी उल्मा में से हैं वह इमाम बाक़िर अ. के बारे में लिखते हैं कि, अबू जाफ़र मोहम्मद बाक़िर अ. का उपनाम (उपाधि) बाक़िर है जिसका मतलब ज़मीन को चीरना और उसके अंदर से छिपा ख़ज़ाना निकालना है, और इसका कारण यह है कि आप ने छिपे हुए इल्म और अल्लाह के अहकाम की हक़ीक़त और सच्चाई को इस हद तक समझाया कि नजिस और नफ़रत रखने वाले लोगों के अलावा हर कोई समझ गया, यही कारण है कि आप को इल्मी गुत्थी को सुलझाने वाला और सारे इल्मों का स्रोत और उसका बांटने वाला और इल्म की रौशनी सभी तक पहुँचाने वाला कहा जाता है।
अब्दुल्लाह इब्ने अता जो ख़ुद इमाम के दौर के विद्वानों में से है वह कहता है कि, जितने लोग इमाम बाक़िर के पास इल्म और ज्ञान सीख रहे थे कभी भी किसी विद्वान को ज्ञान में कम नहीं पाया, और हकम इब्ने ओतैबा जैसे विद्वान जिसका सम्मान पूरे शहर में था उसको भी इमाम के सामने ऐसे बैठा पाया जैसे एक छोटा बच्चा अपने उस्ताद के सामने बैठता है।
(इरशादे मुफ़ीद, पेज 280, बिहारुल अनवार से नक़्ल करते हुए जिल्द 46, पेज 286, तज़केरतुल ख़वास, पेज 337)
अहले सुन्नत के एक और मशहूर जाहिज़ नामी आलिम ने इमाम की हदीसों की प्रशंसा करते हुए लिखा, आपने इस दुनिया में ज़िंदगी के रहस्यों को दो जुमलों में इस तरह समेट दिया कि सभी का जीवन और एक दूसरे से मेल मिलाप एक बर्तन के भरने जैसा है जिसका दो तिहाई हिस्सा बुद्धिमानी और एक तिहाई भाग अनदेखा करना है। (अल-बयान वत-तबयीन, जिल्द 1, पेज 84 बिहारुल अनवार से नक़्ल करते हुए जिल्द 46, पेज 289)
बसरा के मशहूर ज्ञानी क़ोतादह ने एक बार इमाम बाक़िर अ. से कहा कि, ख़ुदा की क़सम मैं बड़े बड़े ज्ञानी, विद्वानों और इब्ने अब्बास जैसे लोगों के पास बैठा हूँ, लेकिन जो घबराहट और बेचैनी आप के पास बैठ कर होती है वह किसी के पास नहीं होती।
इमाम ने फ़रमाया, क्या तुम्हे पता है कि कहाँ बैठे हो? तुम उन घरों के सामने बैठे हो जिसे अल्लाह ने विशेष दर्जा दिया है जहाँ सुबह और शाम हर समय अल्लाह का ज़िक्र होता है, इन घरों में वह लोग हैं, जिनका व्यापार करना, ख़रीदना, बेचना उन्हें अल्लाह के ज़िक्र और नमाज़ और ज़कात को अदा करने से नहीं रोकता।
हम इस प्रकार के घरों में रहते हैं। (बिहारुल अनवार, जिल्द 46, पेज 357)

 

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