आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी
मेरे अज़ीज़ो! एक वजूद के ज़िन्दा होने का सबसे अच्छी अलामत इसका तरक्की करना है, जिस्मानी तरक्की अगर एक पल के लिऐ रूक जाऐ तो मौत नज़दीक हो जाती है और जब कोई भी ज़िन्दा मौजूद अपने इन्हेतात की तरफ़ बढ़ता है तो धीरे धीरे उसकी मौत का आगाज़ हो जाता है और यह कानून मानवी व माद्दी ज़िन्दगी बल्कि पूरे समाज पर हाकिम है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए देखें कि अगर हम हर दिन कदम आगे न बढ़ाऐ और तक़वा, अखलाक़ अदब, पाकिज़गीऔर तरक्की से बहरा मंद न हो, और हर साल पिछले साल का अफसोस करते रहें तो हकीकत में हम एक बड़े नुकसान के शिकार हो गए हैं, और रास्ता भूल कर गलत रास्ते पर चल पड़े हैं, हमें इस खतरे को सख्ती से महसूस करना चाहिए।
हमारे इमाम अमीरुल मोमेनीन (अ.स) ने इस बारे में एक गहरी बात इरशाद फ़रमाई है अगर किसी की ज़िन्दगी के दिन और रात एक जैसे रहे तो वह धोखे का शिकार हो गया है। (क्योंकि वह अपने जीवन के मकसद को गंवाकर कोई तजुर्बा हासिल नहीं किया और हसरत और गम के सिवा कुछ नहीं कमाया) जो आदमी लगातार नुक्सान का शिकार है उसके लिए मौत बेहतर है, क्योंकि मौत कम से कम लगातार होने वाले नुकसान को रोक देती है! इसलिए यह एक बड़ी नेमत गिनी जाती है!
अगर आरिफ लोग और सालेहीन मुशारेता,मुराकेबा, मुहासेबा और मुआक़ेबा को अपने जरूरी समझते हैं तो इसका कारण यह है कि हक का रास्ता तलाश करने वाले गाफिल नही है और अगर उनके काम और आमाल में कोई ऐब हो तो उसे पूरा करने के लिए खड़े हो जाऐ और इस तरह रोज़ाना अनवारे इलाहिया के उफुक़ को अपने लिए वसी करे और अहले जन्नत की तरह सुबह और शाम एक नई अता और माफी का इंतजार रहें।
इसी लिए मेरे अज़ीज़ो! अपने हालात से बेखबर मत रहो, ताकि ज़िन्दगी के कारोबार में उम्र के किमती सरमाऐ को सस्ते दामों न बेच डालो, क्योंकि हर इंसान एक अज़ीम फायदा हासिल कर सकता है जैसा कि कुरान का फरमान हैः नुकसान का शिकार मत होना।
खुदा अपने हिसाबो किताब से बेखबर न रहें! हर महीने हर दिन अपना हिसाब करो, इससे पहले कि (क़यामत के दिन) कोई तुम्हारा हिसाब किताब करे।
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