आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी
मेरे अजीज़ो! रूह और रूह के आराम और सुकून की बात हो रही थी, वही गरानबहा गौहर जिस को पाने लिऐ खलीले खुदा जनाबे इब्राहीम कभी आसमान की तरफ देखते थे और कभी ज़मीन की तवज्जो करते थे और उसे बा अज़मत जहान में तलाश करते थे:
"कज़ालेक नरा इब्राहीमा मलकूतस् समवात वल अर्ज़ व लेयकुना मिनल मोकेनीन (सूराऐ इनआम आयत न. 75)
और कभी चार परींदो कि जिनके बारे में कई मुफस्सेरीन ने कहा है कि इन चारों परींदो में इंसान के बुरी आदते पाए जाते थे (मोर कि खुदपसंदी और गुरूक की निशानी था, मुर्गा जो सेक्सी आदतो मे निशानी हैं, कबूतर जो लह्वो लाब की निशानी है और कौआ जो बहुत आरज़ूओ और उम्मीदों की निशानी है) हज़रत इब्राहीम उन सब को मार कर उनके गोश्त को आपस में मिला दिया ताकि उनके दूबारा ज़िन्दा होने के बाद उन्हें क़यामत का यकीन हो जाऐ और अपनी दिली तमन्ना तक पहुँच जाऐ।
इस गरानबहा गौहर यानी आराम और सुकून को कैसे हासिल किया जा सकता? और किस जहान में यह तलाश किया जा सकता है?
इसे पाना आसान होने के साथ भी मुश्किल है, इस मिसाल को ध्यान से सुनिए:
आप कभी जहाज के ऊपर इस समय चढ़े हैं जब आसमान पर बादल हो जहाज धीरे धीरे ऊपर जाता है और धीरे धीरे बादलों के बीच से होता हुआ बादलों के ऊपर पहुँच जाता है। वहां पर सूरज अपनी पूरी ताकत के साथ चमकता हुआ होता है और सभी चीजों को रोशन व मुनव्वर किये होता है।
वहां पर साल के किसी भी हिस्से में अंधेरा बादल नहीं होता और सूरज का चेहरा किसी भी समय परदे में नहीं जाता क्योंकि वह बादलों से बहुत ऊपर है?
अल्लाह इस दुनिया की मुक़द्दस तरीन ज़ात एक सूरज की तरह है जो सभी चीजों के ऊपर रोशनी बिखेर रही है और बादल वही परदा हैं जो हमें इस जमाल को देखने नहीं देता। ये परदा हमारे बुरे आमाल और हमारी उम्मीदें और आरज़ूऐ हैं?
और इमामुल आरेफीन हजरत अली अ.स के बक़ौल: सिर्फ तुम्हारे आमाल तुम्हारे और तुम्हारे परवरदिगार के बीच परदा है।
हिजाब वही शैतान हैं जो हमारे आमाल की वजह से हमारे अंदर रसूख कर गऐ है और उन्होने अच्छी तरह से हमारे दिलों को घेर लिया है, जैसा कि हदीस में बयान हुआ है।
अगर शैतान, लोगो के दिलो पर क़ब्ज़ा नहीं करते तो वे आसमान के मलकूत देख सकते थे।
ये परदे ऐसे मुख्तलिफ बुत हैं जिन्हें हमने अपने हाथों से बनाया है और शहवत और आरज़ूओं के पीछे पड़ कर दिल बुतखाने के सुपुर्द कर दिया है और बुज़ुर्गों के बकौल:
बुत साखतीम दर दिलो खनदीदीम
बर कैश बद ब्राह्मन व बोदा रॉ!
शेर का तरजुमाः हमने खुद बुत बना रखे है और दिल ही दिल ब्राहमणो और बोदीश्तो पर हसते है। (जबकि खुद हमने भी अपने बुरे आमाल को अपने लिऐ बुत बना रखा है।)
ऐ अज़ीज़ो! जनाबे इब्राहीम की तरह ईमान और तक़वा की तलवार को उठाकर उन (बुरे आमाल के) बुतो को तोड़ दो, ताकि मलकूते आसमान की तरफ देख सको और "मोक़ेनीन" में से हो जाओ, जैसा कि इब्राहीम हो गए।
ख्वाहिशात और हवाए नफ़्स के गुबार ने हमारा माहौल गंदा कर दिया है और हमारे बातिन की आँखों के लिए माने हो गया है। हिम्मत करो और इस गुबार को हटा दो ताकि देख सकों?
इससे भी अजीब बात यह है कि हमारे खुद से ज़्यादा परवरदिगार हमसे क़रीब है, लेकिन क्यों हम इससे दूर हैं? वह हमारे साथ है हम क्यों इससे दूर हैं?
हाँ हमारा महबूब हमारे घर में है और हम दुनिया जहान में तलाश कर रहे हैं!
और यही हमारी सबसे बड़ी मुश्किल, हमारा दर्द, परदा और माने है हालांकि इसका इलाज बहुत ही रोशन है?
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