पैग़ाम ए इमाम हुसैन अ स अपने अज़ादारो के नाम ।।।।।

शायरी
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मेरा पैग़ाम ज़माने को सुनाने वालो ।।
मेरे ज़ख्मो को कलेजे से लगाने वालो ।।

मेरे मातम से ज़माने को जगाने वालो
कर्बला क्या है ज़माने को बताने वालो ।।

दिल ए मुज़्तर के धड़कने की सदा भी सुन लो ।।
आज एक चाहने वाले का गिला भी सुनलो।।


याद तो होगा तुम्हे करबोबला का वह मुक़ाम ।।।
जिसके सन्नाटे में गुम हम हमा ए लश्कर ए शाम ।।

मैंने ज़ैनब को दिया था दम ए रुखसत ये पयाम ।।
लौट के जाना तो कहना मेरे शियों को सलाम ।।

दर्स ईसार ओ मोहब्बत का दिया था मैंने ।।
ज़ेर ए खंजर भी तुम्हे याद किया था मैंने ।।


अपनी अज़मत का कुछ एहसास तुम्हे है की नहीं ?
दिल को गरमाए जो वह प्यास तुम्हे है की नहीं ?

एहतेराम रहे अब्बास तुम्हे है की नहीं ?
मेरे मक़सद का भी कुछ पास तुम्हे है की नहीं ?

जाके मस्जिद में पयाम दिल ओ जान भी देते ।।
नौहा ख्वां मेरे बने थे तो अज़ान भी देते ।।


जिस चमन के लिए बहा था अली अकबर का लहू।।।
जिसपे टपका है गुलू ए अली असग़र का लहू।।

बह गया जिसके लिए मेरे भरे घर का लहू।।
काम जिस दीं पे आया बहत्तर का लहू।।।

तुम इस दीं की अज़मत का सबब भूल गए ।।
मेरी मजलिस तो पढ़ी और मेरा हक़ भूल गए ।।


दिलको तड़पा न सके जो वह मोहब्बत कैसी ।।
मेरे मक़सद की नहीं फ़िक्र तो उल्फत कैसी ।।

सर्द है जोश ए अज़ल गर तो इताअत कैसी ।।
जिससे सैराब न हो रूह वह पैमाना क्या।।

दूर मस्जिद से जो कर दे वह अज़खाना क्या ।।।
फर्श ए मजलिस में यह आपस में अदावत क्यू है ।।


मेरा ग़म जिसमे है इस दिल में कुदूरत क्यू है ।।
भाई भाई से है नाराज़ यह हिमाक़त क्यू है ।।

मेरे मातम में यह अग़यार की सीरत क्यू है ।।।
हुआ हमला कोई मक़सद पे तो रद कर न सके ।।

मेरा मातम तो किया मेरी मदद कर न सके ।।
हर ग़लत बात हर ग़लत फ़िक्र की तरदीद करो।।

मेरे असहाब के किरदार की तजदीद करो।।
अपने किरदार से उठकर मेरी ताईद करो।।

वरना अश्को की यह दौलत मुझे वापस कर दो।।।
मेरा ग़म मेरी मोहब्बत मुझे वापस कर दो ।।।।।।

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