[संग्रहकर्ता मौलाना अदीब-उल-हिन्दी]
मुक़द्दमा
क़ुरान क्या है यह ख़ुद क़ुरान बता रहा है। अहादीस के लिये पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि जिसने चालीस अहादीस रजा-ए- ख़ुदा और आक़बत (यमलोक) सँवारने के लिये याद कर लीं वह अम्बिया के साथ महशूर होगा।
मैंने क़ुरान करीम की चालीस चालीस आयतें और तमाम मासूमीन (अ.स.) के चालीस चालीस अक़वाल (कथन) जमा करके पेश करने की कोशीश की है। आइये देखें कि हमारी ज़िन्दगी में इन अनवार की झलक पाई जाती है या नहीं अगर नहीं तो आज ही अहद (वचन) करें कि इन अहादिस को मशअले राह बनाते हुए जेहालत (अज्ञानता) व गुमराही के अंधेरों में चिराग़ां करेंगें।
क्योंकि आज जबकि हर तरफ़ ज़ुल्म व जौर (अन्याय व दमन) का बाज़ार गर्म है मुआशरे (समाज) में हद दरजा इन्हेतात (गिरावट) और पस्ती आ गयी है। ग़ैर तो ग़ैर अपने भी तालीमाते आले मोहम्मद (अ.स.) भूल गये हैं। ऐसे पुर आशोब दौर में हमारे सामने क़ुरान और मासूमीन (अ.स.) की अहादीस के वह शह पारे हैं के अगर उनको ग़ौर से पढ़ा जाये और उन पर अमल (कार्य) करने की कोशीश की जाये तो बड़ी आसानी से हम उन मुश्किलात पर क़ाबू पा सकते हैं और बिगड़े मुआशरे (समाज) की इस्लाह (शुध्दि, दुरूस्तगी) कर सकते हैं।
आइये आज अहद (प्रतिज्ञा) करें के हम अपने आइम्मा (अ.स.) के इन अहकामात (आज्ञाओं) पर अमल पैरा (कार्यान्वित) होने की कोशिश करेंगे।
बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम
क़ुराने करीम
हमने इसे शबे क़द्र में नाज़िल (उतारा) किया। (1- सूरह.97)
यह क़ुरान आलेमीन (सम्पूर्ण जगत) के लिये हिदायत (निर्देश) है। (1- सूरह. 25)
इसमें हर ख़ुश्क व तर का ज़िक्र (बयान) है। (6- सूरह. 59)
यह माज़ी (भूतकाल) की दास्ताने तुम्हें इबरत के लिये सुनाता है।
यह हमेशा राहे रास्त (सीधा रास्ता) की हिदायत (निर्देश) करता है।
हमने इसमें वह बातें बयान की हैं जो मोमेनीन के लिये शफ़ा व रहमत हैं और ज़ालिमों (अन्यायी) के लिये सिवाय नुक़सान के और कुछ नहीं। (82- सूरह. 17)
हम ही ने इसको नाज़ील किया हम ही इसके मुहाफ़िज़ (रक्षक) है।
तुम इसके मतलब पर ग़ौर क्यों नहीं करते!!! क्या तुम्हारी अक़्लों पर ताले पड़ें हैं। (24- सूरह. 47)
हदीस
जिन बातों का रसूल तुम्हें हुक्म (आदेश) दें उन पर अमल करो (आदेशानुपालन) और जिन चीज़ों से मना फ़रमायें तो उनके क़रीब न जाओ। (7- सूरह. 59)
हज़रत रिसालत मआब ने फ़रमायाः- ऐ अली मेरी उम्मत (क़ौम) के जिस शख़्स ने चालीस हदीसें रज़ा-ए ख़ुदा (ईशवर की ख़ुशी) और आक़बत सँवारने के लिये याद की – तो ख़ुदावन्दे आलम उसे क़यामत के दिन अम्बिया, शोहदा, सिद्दीक़ीन और सालेहीन के साथ महशूर करेगा। (ख़ेसाल सफ़ा 509)
जिसने हमारी चालीस हदीस हराम व हलाल के सिलसिले में याद की – क़यामत (महाप्रलय) के दिन वह फ़क़ीह (धर्म निधी का ज्ञाता) और आलीम (ज्ञानी) महशूर होगा और उस पर अज़ाब नहीं किया जायेगा। (सफ़ा 508)
मेरी उम्मत (क़ौम) के जिस शख़्स ने ऐसी चालीस हदीसें हिफ़्ज़ (कंठ) कीं जिसकी उसे रोज़ मर्राह (प्रतिदिन) की ज़िन्दगी में ज़रूरत हो तो ख़ुदावन्दे आलम क़यामत (महाप्रलय) के रोज़ उसको फ़क़ीह (धर्म निधी का ज्ञाता) और आलीम महशूर करेगा।
अनवारे क़ुरआन
यह मुत्तक़ीन (ईशवर से भय रखने वाला) के लिये हिदायत (निर्देश) है।
क़ुराने करीम
१. हमेशा सही बात करो। (7- सूरह.33)
२. जब तुम पर कोई मुसीबत पड़े तो यक़ीन जानो के उसका बायस (कारण) तुम ख़ुद हो। (79- सूरह. 4)
३. ज़ालिमों की नुसरत (सहायता) करने वाला कोई नहीं। (192- सूरह. 3)
४. कभी माँगने वाले को झिड़को नहीं। (10- सूरह. 3)
५. वह बात क्यों कहते हो जो कर नहीं सकते। (2- सूरह. 61)
६. कभी किसी की टोह में मत रहा करो। (14- सूरह. 49)
७. जिस चीज़ का तुमको इल्म (ज्ञान) नहीं उसके बारे में कुछ न कहो क्योंकि कान, आँख और सब के सब क़यामत के दिन जवाब देह (उत्तरदायी) होगें। (36- सूरह. 49)
८. फ़साद (झगड़े) करते न फिरो। (56- सूरह. 7)
९. तुम उन लोगों से दूर रहो जिन्होंने दीन को खेल तमाशा बना रखा है। (69- सूरह. 7)
१०. ख़्वाहेशात नफ़सानी (आत्मइच्छाओं) की पैरवी मत करो वरना राहे ख़ुदा से हट जाओगे। (26- सूरह. 83)
११. लग़ो (व्यर्थ) बातों से बचो। (4- सूरह. 44)
१२. मुनाफ़क़ीन (जिनका बाहरी व आंनतरिक एक न हो) की एक अलामत (चिन्ह) यह है के जब वह नमाज़ के लिये ख़ड़े होते हैं तो बे-दिली के साथ। (142- सूरह. 3)
१३. तुम अल्लाह के बाज़ अहकामात (आज्ञाओं) पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार कर देते हो – उसकी सज़ा दुनिया में तुम्हारी रूस्वाई है और आख़रत (परलोक) में शदीद अज़ाब (सज़ा) हैं। (85- सूरह. 4)
१४. अपने ओमूर (कार्य) में लोगों से मशविरा करो और जब कोई बात तय कर लो तो फिर अल्लाह पर भरोसा रखो क्योंकि अल्लाह इस बात को पसन्द करता है। (159- सूरह. 3)
१५. क़ाबिले मुबारकबाद हैं वो लोग जो ग़ौर से बाते सुनते हैं और उनमें से अच्छी बातों को अपनातें हैं। (18- सूरह. 39)
१६. अहकामे इलाही (ईशवरीय आज्ञाओं) के नेफ़ाज़ (लागू) में किसी क़िस्म की रू- रेआयत नहीं बर्तनी चाहिये। (2- सूरह. 24)
१७. अपनी ख़ैरात को एहसान जता कर और साएल को कबिदा ख़ातिर (रंजीदा) करके बर्बाद न करो। (264- सूरह. 2)
१८. ग़ैरों को भी अपना राज़दार न बनाओ। (76- सूरह.3)
१९. मोमिन ख़ुदा की राह में जेहाद करता है -- काफ़िर माद्दी (दुनियावी) ताक़तों की बहीली के लिये अपनी जान देता है -- तुम शैतान के साथियों से मुक़ाबला करो -- और शैतान के हरबे तो यक़ीनन कमज़ोर हैं। (76- सूरह.4)
२०. सुस्ती न करो और परेशान ख़ातिर न हो -- अगर तुम मोमिन हो तो तुम्हीं सरबलन्द रहोगे। (139- सूरह.3)
२१. किसी नाफ़रमान की बात पर बग़ैर तहक़ीक़ किये ऐतेबार न करो वरना हो सकता है कि बाद में तुम्हें नादिम (पछतावा) होना पड़े। (6- सूरह.49)
२२. एक दूसरे को बूरे अल्क़ाब (अपशब्द) से मत नवाज़ो। (11- सूरह.49)
२३. जो इलाही अहकामात (ईशवरीय आज्ञाओं) के मुताबिक़ अमल (कार्य) नहीं करते – वही काफ़िर हैं वही ज़ालिम हैं – वही फ़ासिक़ हैं। (45- सूरह.5)
२४. आपस में झगड़ा न करो वरना तुम्हारी हिम्मतें पस्त हो जायेगीं और रोब व दबदबा ख़त्म हो जाएगा। (46- सूरह.8)
२५. अगर तुम शुक्र बजा लाओगे तो हम तुम्हारी नेमतों में इज़ाफ़ा कर देंगे. (7- सूरह.14)
२६. नमाज़े शब पढ़ा करो यह तुम्हारे लिये फ़ज़ीलत है ताकि ख़ुदा तुम्हें मक़ामे महमूद (पुनीत कक्ष) अता करे। (79- सूरह.17)
२७. हर शख़्स अपने फ़ेल (कार्य) का ज़िम्मेदार है -- और रोज़े हिसाब (क़यामत) कोई किसी का बार (बोझ) नहीं उठायेगा। (165- सूरह.6)
२८. जो लोग हमारी राह में जेहाद (संघर्ष) करते हैं उनको हम दीनी राह ख़ुद बताते हैं। (69- सूरह.29)
२९. तुम अपने अहद व पैमान (वचन) की हमेशा वफ़ा (पूरा) करो। (1- सूरह.5)
३०. दरगुज़र से काम लो, अच्छी बातों का हुक्म दो और जाहिलों से किनारा कश (दूर) रहो। (199- सूरह.7)
३१. नेकियों और अच्छाईयों में एक दूसरे का हाथ बटाओ लेकिन गुनाह व सरकशी में किसी का साथ न दो। (2- सूरह.5)
३२. ख़ुदा तुम्हें हुक्म देता है के अमानतें उनके मालिकों तक पहुँचाओ और जब लोगों के दरमियान फ़ैसला करो तो इन्साफ़ से काम लो। (58- सूरह.4)
३३. ख़ुदा किसी भी ख़यानतकार को दोस्त नहीं रखता है। (38- सूरह.22)
३४. लोग क़ुरआन के मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर क्यों नहीं करते, क्या उनके दिलों पर ताले पड़े होते हैं। (24- सूरह.47)
३५. तुम अपने माँ, बाप और अपने भाई बहनों को अपना ख़ैर ख़ा (अच्छाई करने वाला) न समझो अगर वह ईमान पर ग़लत बातों को तरजीह (प्राथमिकता) देते हैं। (23- सूरह.9)
३६. अगर तुम्हें अपने अज़ीज़, अपना ख़ानदान, अपना माल व मता अपनी तेजारत (व्यवसाय) अपने पसन्दीदा मकानात -- अल्लाह और उसके रसूल और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादा अज़ीज़ (प्यारे) हैं -- तो अल्लाह के अज़ाब का इन्तेज़ार (प्रतिक्षा) करो। (24- सूरह.9)
३७. जो लोग माल व दौलत जमा करते हैं और अल्लाह की राह (मार्ग) में सर्फ़ (ख़र्च) नहीं करते तो उन्हें दर्दनाक अज़ाब से बा-ख़बर कर दो। (34- सूरह.9)
३८. शराब, जुआ, बुत, पाँसे नजिस और शैतानी खेल हैं अगर आख़ेरत (परलोक) की कामयाबी चाहते हो तो इन चीज़ों से बचो। (90- सूरह.5)
३९. जो शख़्स ईमान के साथ नेक आमाल (कार्य) भी अन्जाम देगा हम उसकी दुनिया व आख़ेरत (परलोक) दोनो सँवार देंगे। (88- सूरह.18)
४०. तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स (जिन्नात और मनुष्य)) तुम दोने अपने परवरदिगार (ईश्वर) की कौन कौन सी नेमत को ना मानोगे। (13- सूरह. 97)
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
अनवारे हदीस
पैग़म्बरे इस्लाम
(सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम)
"आपका कलाम नूर है" (ज़ियारते जामेआ)
हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.)
इस्मे मुबारक (नाम) -- -- -- मोहम्मद (स.)
लक़ब -- -- -- मुस्तफ़ा
कुन्नियत -- -- -- अबुल क़ासिम
पदरे बुज़र्गवार -- -- -- अब्दुल्लाह इब्ने अब्दुल मुत्तलिब
वालदा-ए माजिदा -- -- -- आमना बिन्ते वहब
विलादत -- -- -- 17 रबी-उल अव्वल 570 ई0
शहादत -- -- -- 28 सफ़र 11 हिजरी 632 ई0
मदफ़न -- -- -- मदीना-ए मुनव्वरा
उम्र ------------ 62 वर्ष
हज़रत रिसालतमॉब ने इरशाद फ़रमायाः-
१. तुममें सबसे बेहतर वह शख़्स है जो अल्लाह की मासियत (गुनाह) से इज्तेनाब (बचे) करे।
२. अगर तुम से कोई गुनाह सरज़द हो जाए तो उसके बाद नेक काम फ़ौरन करो ताकि (शायद) कुछ तलाफ़ी हो जाये।
३. आपस में मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो क्योंकि उससे कीना (मन में शत्रुता) ख़त्म होता हैं।
४. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह शख़्स है जो तुम को नेक काम की तरफ़ मुतावज्जेह करे।
५. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह शख़्स है जो तुम को तुम्हारी ग़लतियों की तरफ़ तुमको मुतावज्जेह करे।
६. सरवतमन्द वह शख़्स नहीं है जिसके पास माल की फ़रावानी हो बल्कि सरवतमन्द वह है जो लालच में मुबतला न हो।
७. जो शख़्स किसी बेकस व परेशान मेमिन को पनाह दे क़यामत के दिन ख़ुदावन्दा करीम उसे अपनी पनाह में ले लेगा।
८. लोगों से इस तरह मिलो के जब तक ज़िन्दा रहो लोग तुम्हारे पास आना पसन्द करें और जब मर जाओ तो तुम्को याद करके आँसू बहायें।
९. सिल्हे रहम (लोगों से भलाई) तूले उम्र (दीर्घायु) और सरवत का बायस (कारण) है।
१०. ख़ुद पसन्दी (अपने को ऊँचा समझना) से बचो वरना तुम्हारा कोई दोस्त न रह जायेगा।
११. तुम में सबसे नेक शख़्स वह है जो अपने ग़ुस्से को पी जाये और क़ुदरत के बावजूद बुर्दबारी (गंभीरता) से काम ले।
१२. क्या कहना उस शख़्स का जो ऐब (त्रुटियों) की जुस्तजू (ख़ोज) में रहता है और दूसरों के ओयूब (ऐब का बहु) से ग़ाफ़िल है।
१३. अपने बदन को काम और कोशिश (प्रयत्न) पर आमादा करो और हर्गिज़ काहिली और सुस्ती की तरफ़ न जाओ।
१४. आपस में एक दूसरे को तोहफ़े (उपहार) भेजो ताकि आपस में मुहब्बत बढ़े।
१५. जब तुमसे कोई मुलाक़ात के लिये आए तो उसका एहतेराम (आदर) करो।
१६. बुरे से भी नेकी करो ताकि उनकी बुराई से महफ़ूज़ (बचो) रहो।
१७. जो शख़्स दूसरों की ख़ताओं से दरगुज़र करता है ख़ुदावन्दे आलम उसकी ख़ताओ से दरगुज़र करता है।
१८. भाई वह है जो बुरे वक़्त (समय) में काम आये।
१९. ताक़तवर वह है जो अपने नफ़्स पर मुसल्लत (हावी) रहे।
२०. बदतरीन शख़्स वह है जो अपने घर वालों पर बेजा सख़्ती करे।
२१. कोई हसब व नसब ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से बेहतर नहीं।
२२. जो शख़्स लोगों पर रहम नहीं करता ख़ुदा उस पर रहम न करेगा।
२३. हमेशा अच्छी बातें करो ताकि नेकी से याद किये जाओ।
२४. बेहतरीन नेकी लोगों से इत्तेहाद (एकता) क़ायम (स्थापित) करना है।
२५. जो शख़्स ना-मशरू (ग़लत) तरीक़े से किसी चीज़ को हासिल करना चाहता है तो ज़्यादा तर नाकामयाब रहता है और अक्सर परेशानी में मुबतला ही रहता है।
२६. तुम्हारे घर की अच्छाई यह है कि वह तुम्हारे बे बज़ाअत (ग़रीब) रिश्तेदारों और बे-चारे लोगों की मेहमान सरा हो।
२७. लोगों में ज़लील शख़्स वह है जो मख़्लूक़े ख़ूदा (ईशवर के बन्दों) को ज़लील समझे।
२८. अपने बच्चों का एहतेराम (आदर) करो और उनकी अच्छी तरबियत करो।
२९. सच हमेशा आसूदगी का बायस और झूठ हमेशा तशवीश (परेशानी) का मोजिब (कारण)।
३०. ज़रूरतमन्दों की मदद करने से बुरी मौत से निजात मिलती है।
३१. अफ़सोस उस शख़्स पर जिसकी मदह व सना (तारीफ़, प्रशंसा) सिर्फ़ उसके शर से महफ़ूज़ रहने के लिए की जाती है।
३२. अफ़सोस उस शख़्स पर जिसके सितम के ख़ौफ़ से लोग उसकी इताअत (आदेशानुपालन) करते हों।
३३. ख़ुदा की लानत हो उन माँ बाप पर जो अपने बच्चों की सही तरबियत (शिक्षा- दीक्षा) न करें और अपने आक़ किये जाने के बायस (कारण) बनें।
३४. जो शख़्स अपने अहद व पैमान (वचन) को पूरा न करे वह मुसलमान नहीं।
३५. ख़ुदा की लानत हो उस शख़्स पर जो ज़िन्दगी का बार (बोझ) दूसरों पर डाले रहे।
३६. जो शख़्स चाहे के लोगों में महबूब रहे उसे गुनाह से इज्तेनाब (बचना) चाहिये।
३७. छोटे बच्चों के साथ बच्चों की तरह बर्ताव (व्यवहार) करो।
३८. नेकी और अच्छाई यह है कि अयादत (बीमार को पूछना) के वक़्त मरीज़ से हाथ मिलाओ मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो।
३९. बच्चों के जो हक़ूक़ (हक़ का बहु) माँ बाप पर हैं उनमें यह भी है कि उनका ख़ूबसूरत नाम रखें और उनकी नेक तरबियत (शिक्षा- दीक्षा) करें।
४०. इमान वह दरख़्त (पेड़) है जिसके रेशे यक़ीन, जिसका तना तक़वा, जिसके शिगोफ़े हया और जिसका फल सख़ावत है।
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हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलवातुल्लाह अलैयहा
इस्मे मुबारक --------- फ़ातिमा (अ.स.)
लक़ब ---------- ज़हरा
कुन्नियत ------- उम्मुल आइम्मा
वालिदे बुज़ुर्गवार -------- हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स0)
वालदा-ए माजिदा ---------- ख़दीजतुल कुबरा
विलादत --------- 20 जमादिउस्सानीया 614 ई.
शहादत ---------- 3 जमादिउस्सानिया 11 हिजरी
मदफन ---------- जन्नतुल बक़ीअ
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जिसने अपनी ज़िन्दगी उन कामों में गुज़ारी जो ख़ुदावन्दे आलम से दूरी का बायस हों तो उसने अपना नुक़सान किया।
२. कपड़े धोना ग़म व ग़ुस्से को ज़ाएल (मिटा देना) कर देता है।
३. क़नाअत (सन्तोष) और इताअते ख़ुदा बेनियाज़ी और इज़्ज़त का बायस (कारण) और गुनाह (पाप) और लालच बदबख़्ती की अलामत (निशानी) है।
४. ईमान और हया का चोली दामन का साथ है अगर इनमें से कोई एक चला जाए तो दूसरे का वुजूद (अस्त्वि) बरक़रार (स्थिर) न रह सकेगा।
५. जो औरत अपने शौहर (पति) को सख़्त और मुश्किल कामों के लिये मजबूर न करे वह जन्नती है और ख़ुदा उससे राज़ी है।
६. जो औरत बिला वजह अपने शौहर (पति) से तलाक़ चाहे बेहिश्त (स्वर्ग) की ख़ुश्बू भी उस पर हराम है।
७. कितने बदबख़्त हैं वह लोग जिसमें अज़्म व पुख़्तगी (द्रढ़ता) न हो और वह अहम (ख़ास) कामों को मेज़ाह (मज़ाक़) में टाल जायें।
८. ज़ौजा (पत्नि) जब अपने शौहर (पति) का हक़ अदा न करे गोया उसने ख़ुदा के हक़ को अदा नहीं किया।
९. वह मर्द जो हवा व हवस (इच्छाओं) के बन्दे (ग़ुलाम) हों वह समाज के लिये बायसे ज़िल्लत हैं।
१०. वह औरत जो अपने शौहर को अज़ीयत (तकलीफ़) दे ख़ुदावन्दे आलम उसके नेक कामों को भी क़ुबूल (स्वीकार) नहीं करे गा।
११. जो औरत पाबन्दे नमाज़ हो और बग़ैर शौहर की इजाज़त के घर से क़दम न निकाले और उसकी फ़रमाबरदार (आज्ञाकारी) रहे ख़ुदावन्दे आलम उसके गुनाहों (पापों) को माफ़ (क्षमा) कर देगा।
१२. तुम्हें क्या हो गया है? तुम किधर जा रहे हो जबकि क़रानी अहकामात (आज्ञायें) बहुत साफ़ और वाज़ेह (खुली हुई) हैं।
१३. बर्तनों की सफाई और पाकीज़गी ग़िना (मालदारी) और नेमत में इज़ाफ़े का बायस (कारण) है ।
१४. ख़ुदावन्दे आलम ने ईमान को शिर्क (ख़ुदा का शरीक बनाने की प्रक्रिया) से पाकिज़गी का बायस (कारण) और नमाज़ को दिलों से किब्र व निख़्वत (गर्व व घमण्ड) के अज़ाले (दूर होने) का बायस बनाया है।
१५. तज़किया-ए नफ़्स (आत्मा की शुध्दता) के लिये ज़कात वाजिब की और इख़्लास की पुख़्तगी (मज़बूती) के लिए रोज़ा।
१६. हमारी इताअत (आदेशानुपालन) क़ौम की तनज़ीम की बायस (कारण) है और हमारी इमामत क़ौम के इत्तेहाद (एकता) की ज़ामिन है।
१७. इस्लाम की इज़्ज़त जेहाद (इस्लामी संघर्ष) है।
१८. अवाम की मसलैहत अम्रे मारूफ़ (अच्छाई की दावत) में है।
१९. इताअते वालदैन (पिर्त भक्ति) अज़ाबे इलाही (ईशवरीय प्रकोप) से महफ़ूज़ रखती है।
२०. सिल्हे रहम (अच्छा बर्ताव) उम्र (आयु) में इज़ाफ़े का सबब (कारण) है।
२१. क़सास (बदला) ख़ूंरेज़ी (ख़ूनी संघर्ष) को रोक देता है।
२२. नज़्र (वचन) को पूरा करना मग़्फ़रत (बख़्शिश) का सबब है।
२३. शराब इन्सान का आलूदा (ख़राब) कर देती है।
२४. तोहमत (आरोप) लगाने वाला लानत का सज़ावार है।
२५. चोरी बदअम्नी (अशान्ति) फैलाती है।
२६. जो सब्र (सहनशीलता) करता है उसे पूरा पूरा सवाब मिलता है।
२७. ऐ बन्देगाने ख़ुदा तुम अपने नफ़्स (आत्मा) पर अल्लाह के अमीन हो और दूसरी उम्मतों तक उसके पैग़ाम रसां (पहुँचाने वाले) हो।
२८. हज दीन की तक़वियत (ताक़त) का बायस (कारण) है।
२९. अदल व इन्साफ़ (न्याय) दिलों की तन्ज़ीम का ज़रिया (कारण) है।
३०. क़ुराने करीम को तुमने पसे पुश्त (पीछे) डाल दिया है क्या तुम उससे इन्हेराफ़ (मुँह फेरना) के ख़्वाहाँ (इच्छुक) हो।
३१. क़यामत के दिन निदामत (शर्मिन्दगी, पछतावा) काम आने वाली नहीं।
३२. कल्मे की अस्ल (जड़) इख़लास है उसका मफ़हूम (मतलब) फ़िक्र को रौशनी देता है।
३३. जब मख़लूक़ात परदा-ए ग़ैब में और हिजाबे अदम में थीं उस वक़्त भी मेरे पदरे बुज़ुर्गवार हवादिसे ज़माना और मुक़द्देरात की मुकम्मल मार्फ़त रखते थे।
३४. क्या तुम ज़ालिम से डरते हो जबकि ख़ौफ़ (डर) सिर्फ़ ख़ुदा का होना चाहिये।
३५. बन्दों को दावत दी गई है के शुक्र के ज़रिये नेमतों में इज़ाफ़ा करायें।
३६. ख़ुदा वह है जिसकी आँखों से रोयत (देखना), ज़बान से तारीफ़ और ख़्याल से कैफ़ियत का समझ लेना मोहाल (दुशवार) है।
३७. क़ुरान का इत्तेबा (पैरवी) निजात (मुक्ति) का ज़रिया है।
३८. पैग़म्बरे इस्लाम के इस दुनिया से उठते ही तुममें निफ़ाक़ (शत्रुता) ज़ाहिर हो गया और दीन की चादर कोहना (पुरानी) हो गयी।
३९. हज मोमेनीन की सफ़ों को आरास्ता करने का ज़रिया है।
४०. अगर बुख़ार से बचना चाहते हो तो रोज़ाना (प्रतिदिन) दुआए नूर पढ़ो।
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(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
हज़रत अली इब्ने अबीतालिब (अ.स.)
इस्मे मुबारक --------- अली (अ.स.)
लक़ब --------- मुर्तज़ा
कुन्नियत ------ अबुल हसन
वालिदे बुज़ुर्गवार -------- अबुतालिब बिन अब्दुल मुत्तलिब
वालदा-ए माजिदा-------- फ़ातिमा बिन्ते असद
विलादत -------- 13 रजब 599 ई0
शहादत --------- 21 रमज़ान 40 हिजरी 661 ई0
मदफ़न --------- नजफ़े अशरफ़
हज़रत अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जिस चीज़ की काश्त करोगे वही महसूल (हासिल) हासिल होगा और जो अमल करोगे उसकी जज़ा (इनाम) पाओगे।
२. अमानत (धरोहर) की हिफ़ाज़त (रक्षा) में तसाहुली (काहिली) न करो। अमानत में ख़यानत फ़क़्र और तहीदस्ती (ग़रीबी) का बायस (कारण) है।
३. जिसने क़ुरान को अपना रहनुमा (मार्गदर्शक) बनाया उसकी हिदायत जन्नत की तरफ़ होगी।
४. जो क़ुरान के हराम को हलाल जाने उसका ईमान क़ुरान पर नहीं।
५. मुसलमान मुसलमान का भाई है न उसपर ज़ुल्म करें न उसको सतायें।
६. क्या कहना उस शख़्स का जो अपनी ख़ामियों (कमियों) की तलाश में रहे और दूसरों की कमज़ोरी पर नज़र न करे और जो माल मयस्सर (पास) हो, उसको गुनाह (पाप) में सर्फ़ (ख़र्च) न करे।
७. जहाँ भी रहो ख़ुदा से डरो हमेशा हक़ बात कहो अगरचे तल्ख़ (कड़वी) हो।
८. हर काम को पहले अन्दाज़ा करके और उसकी तदबीर करके शुरू करो ताकि नफ़रत से महफ़ूज़ (बचे) रहो।
९. अपने वाजेबात (जिसका न करना पाप हो) को पूरा करो ताकि परहेज़गार (बुराइयों से बचने वाले) रहो और मुक़द्देरात इलाही पर राज़ी रहो ताकि सबसे बेनियाज़ रहो।
१०. जो कोई अपने बरादरे मोमिन की हाजत पूरी करेगा ख़ुदावन्दे आलम उसकी बहुत सी हाजतें पूरी करेगा।
११. कितनी बुरी बात है के आदमी मतलब के वक़्त (समय) ख़ाकसार बना रहे और मतलब निकल जाने पर जफ़ाकार (ज़ुल्म करने वाला)।
१२. जितना हक़ तुम दूसरों पर रखते हो उतना ही हक़ वह तुम पर भी रखते हैं।
१३. जब दुश्मन पर फ़त्ह (विजय) पाओ तो कामयाबी (सफ़लता) का शुक्राना यह है के उसे माफ़ (क्षमा) कर दो।
१४. पोशीदा सदक़ा (गुप्तदान) इन्सान के गुनाहों (पापों) की तलाफ़ी (बदल) करता है।
१५. बदतरीन दोस्त (ख़राब दोस्त) वह है जो तुम्हें मासियत (गुनाहों) की तरफ़ मायल (सुझाव) करे।
१६. अपने को उन आमाल के लिये तैयान करो जिसकी ज़रूरत क़यामत (महाप्रलय) के दिन होगी।
१७. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह शख़्स (मनुष्य) है जो दूसरों की मालूमात (ज्ञान) से अपनी मालूमात (ज्ञान) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) करे।
१८. हद से ज़्यादा मेज़ाह (मज़ाक़) आबरू (इज़्ज़त) को ख़त्म कर देता है और झूठ शख़्सियत की इज़्ज़त को ज़लील कर देता है।
१९. अजीब बात है कि हासिद (ईष्य्रालु) अपनी तन्दरूस्ती की फ़िक्र नहीं करते।
२०. हमेशा ख़ुदा की याद रखो के वह दिल की नूरानी का बायस (कारण) और इबादत (तपस्या) है।
२१. अपने ईमान को एहसान और बख़्शिश के ज़रिये महफ़ूज़ (बचाये) रखो।
२२. किसी की बुराई को फ़ाश करने वाला (प्रकट करने वाला) बुराई करने वाले की मिस्ल (समान) है और ग़ीबत का सुनने वाला ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई करना) करने वाले के मानिन्द (समान) है।
२३. वह लोग जो बुरे और बदकार हैं वह दूसरों के उयूब (ऐब का बहु) को फ़ाश (प्रकट) किया करते हैं ताकि अपनी ख़ामियों (कमियों) के लिये बहाना मिल जाए।
२४. तीन चीज़ों में कोई शर्मिन्दगी नहीं। मेहमान की ख़िदमत करना, उस्ताद और बाप के लिये अपनी जगह से उठना और अपने हक़ को तलब करना।
२५. तीन चीज़ें ही ज़िन्दगी को मुसीबत में डाल देती हैं कीना (मन में शत्रुता), रश्क (किसी को हानि पहुँचाये बिना उस जैसा बनने की भावना), बदमेजाज़ी।
२६. इल्म (ज्ञान) का पूरा फ़ायदा (लाभ) उस वक़्त (समय) हासिल (प्राप्त) होता है जब उसे काम में लायें (प्रयोग में लायें)
२७. जो शख़्स तुम्हारी ख़ामियों (कमियों) पर तुम को मुतावज्जेह करे तुम्हारा दोस्त और जो ख़ामियों को छिपाये वह तुम्हारा दुश्मन (शत्रु)।
२८. हर शख़्स के माल के दो शरीक हैं एक वारिस दूसरे हवादिस (हादिसे का बहु)।
२९. तुम जिसके मरकज़े उम्मीद हो उसका दिल (मन) मत तोड़ो।
३०. जो यतीम (जिनके पिता न हों) बच्चों पर मेहरबानी करता है उसके बच्चों पर मेहरबानी की जाती है।
३१. सब्र (सहनशीलता) व ज़ब्त (बर्दाश्त) ज़माने की सख़्तियों को आसान कर देता है।
३२. किसी के गिरफ़्तारे बला हो जाने से ख़ुश न हो क्योंकि ख़ुदा जाने फ़लक कज रफ़्तार तुम्हारे साथ क्या करे।
३३. दीनदार वह है जो दूसरों के सितम् तो सह ले मगर कोई उससे सितम न उठाये।
३४. उस शख़्स पर ज़ुल्म करने से ख़बरदार जिसका ख़ुदा के अलावा कोई हमनवा (साथी) नहीं।
३५. दुश्मन पर हमला करने से पहले सोच लो।
३६. बुरों की तारीफ़ करना बहुत बड़ा गुनाह (पाप) है।
३७. जानने के लिये सवाल करो फ़ित्ना बर्पा करने के लिये नहीं।
३८. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह है जो तुम्को ताअते इलाही (ईशवरीय भक्ति) पर मजबूर करे।
३९. अपनी बीमारी का इलाज बेकसों की दस्तगीरी (गिरते को थामना) और मदद (सहायता) से करो।
४०. बला के तूफ़ान को इबादत (तपस्या) व दुआ के ज़रिये (द्वारा) दूर करो।
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हज़रत इमाम हसन ए मुजतबा (अ.स.)
इस्मे मुबारक --------- हसन (अ.स.)
लक़ब ---------- मुजतबा
कुन्नियत -------- अबु मोहम्मद
वालिदे बुज़ुर्ग ---------- हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ.स.)
वालिदा ए माजिदा ------ हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स0)
विलादत ---------- 15 रमज़ान 3 हिजरी 625 ई0
शहादत -------- 28 सफ़र 50 हिजरी 670 ई0
मदफ़न --------- जन्नतुल बक़ी, मदीना
हज़रत इमामे हसन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जो शख़्स (मनुष्य) हराम ज़राये से दौलत (धन) जमा करता है ख़ुदावन्दे आलम उसे फ़क़ीरी और बेकसी में मुबतला करता है।
२. दो चीज़ो से बेहतर कोई शैय (चीज़) नहीं एक अल्लाह पर ईमान और दूसरे ख़िदमते ख़ल्क (परोपकार)।
३. ख़ामोश सदक़ा (गुप्त दान) ख़ुदावन्दे आलम के ग़ज़ब (प्रकोप) को ख़त्म कर देता है।
४. हमेशा नेक लोगों की सोहबत (संगत) इख़्तेयार (ग्रहण) करो ताकि अगर कोई कारे नेक (अच्छा कार्य) करो तो तुम्हारी सताएश (प्रशंसा) करें और अगर कोई ग़लती हो जाये तो मुतावज्जेह (ध्यान दियालें) करें।
५. जिसने ग़लत तरीक़े से माल जमा किया वह माल ग़लत जगहों पर और नागहानि-ए-हवादिस (अचानक घटित होने) में सर्फ़ होता है।
६. हर शख़्स की क़ीमत उसके इल्म के बराबर है।
७. तक़वा (सँयम, ईश्वर से भय) से बेहतर लिबास, क़नाअत (आत्मसंतोष) से बेहतर माल, मेहरबानी व रहम से बेहतर एहसान मुझे न मिला।
८. बुरी आदतें जाहिलों की मुआशेरत (कुसंग) में और नेक ख़साएल (अच्छी आदतें) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की सोहबत (संगत) से मिलते हैं।
९. अपने दिल को वाएज़ व नसीहत (अच्छे उपदेश) से ज़िन्दा रखो।
१०. गुनाहगारों (पापियों) को नाउम्मीद (निराश) मत करो (क्योंकि) कितने गुनाहगार ऐसे गुज़रे जिनकी आक़ेबत ब-ख़ैर हुई।
११. सबसे बेचारा वह शख़्स है जो अपने लिये दोस्त (मित्र) न बना पाये।
१२. जो शख़्स दुनिया की बेऐतबारी को जानते हुए उस पर ग़ुरूर (घमण्ड) करे बड़ा नादान है।
१३. ख़ुश अख़लाक़ (सुशील) बनो ताकि क़यामत (महाप्रलय) के दिन तुम पर नर्मी की जाए।
१४. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह इन्सान को नेकियों से महरूम कर देता है।
१५. हमेशा नेक बात कहो ताकि नेकि से याद किये जाओ।
१६. अल्लाह की ख़ुशनूदी माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है और अल्लाह का ग़ज़ब उनके ग़ज़ब के साथ है।
१७. अल्लाह की किताब पढ़ा करो और अल्लाह की नाराज़गी और ग़ज़ब से ख़बरदार रहो।
१८. बुख़्ल (कंजूसी) और ईमान एक साथ किसी के दिल में जमा नहीं हो सकता।
१९. किसी इन्सान को दूसरे पर तरजीह (प्राथमिकता) नहीं दी जा सकती मगर दीन या किसी नेक काम की वजह से।
२०. मैने किसी सितमगर को सितम रसीदा के मानिन्द नहीं देखा मगर हासिद (ईर्ष्यालु) को।
२१. अपने इल्म (ज्ञान) को दूसरों तक पहुँचाओ और दूसरों के इल्म (ज्ञान) को ख़ुद हासिल करो।
२२. अपने भाईयें से फ़ी सबीलिल्लाह (केवल ईशवर के लिए) भाई चारा रखो।
२३. नेकियों और अच्छाइयों का अन्जाम उसके आग़ाज़ (प्रारम्भ) से बेहतर है।
२४. अच्छाई से लज़्ज़त बख़्श कोई और मसर्रत नहीं।
२५. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से पेश आती हो।
२६. जिसका हाफ़ेज़ा (याद्दाश्त) क़वी (ताक़तवर) न हो और अपना दर्स (पाठ) पूरे तौर से याद न कर पाता हो उसे चाहिये के वह उस्ताद के बयान करदा मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर करे और अपने पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) करे ताकि वक़्ते ज़रूरत काम आये।
२७. जितना मिले उसपर ख़ुश रहना इन्सान को पाकदामनी तक ले जाता है।
२८. नुक़सान उठाने वाला वह शख़्स है जो ओमूरे दुनिया (सांसारिक कार्य) में इस तरह मश्ग़ूल रहे के आख़ेरत (आख़रत) के ओमूर रह जायें।
२९. धोका और मक्र (छल) ख़ासतौर से उस शख़्स के साथ जिसने तुमको अमीन (सच्चा) समझा कुफ़्र है।
३०. गुनाह क़ुबूलियते दुआ में मानेअ और बदख़ुल्क़ी शर व फ़साद का बायस (कारण) है।
३१. तेज़ चलने से मोमिन का वेक़ार (आत्मसम्मान) कम होता है और बाज़ार में चलते हुए खाना पस्ती (नीचता) की अलामत है।
३२. जब कोई तुम्हारा ख़ैर अन्देश (शुभचिन्तक) अक़्लमन्द तुमको कुछ बताये तो उसे क़ुबूल करो और उसकी ख़िलाफ़ वर्ज़ी (विरोध) से बचो क्योंकि उसमें हलाक़त है।
३३. नादानों की बातों की बेहतरीन जवाब ख़ामोशी है।
३४. हासिद (ईर्ष्यालु) को लज़्ज़त, बख़ील (कंजूस) को आराम और फ़ासिक़ (ईशवरीय आदेशों का मन से विरोध) को एहतेराम (आदर) तमाम लोगों से कम मिलता है।
३५. बेहतरीन किरदार गुर्सना (भूखे) को खाना खिलाना और बेहतरीन काम जाएज़ काम में मशग़ूल (लिप्त) रहना।
३६. जब तुम बुरे काम से परेशान हो और नेक कामों से ख़ुशहाल तो समझ लो के तुम मोमिन हो।
३७. बेहतर यह है के तुम अपने दुश्मन पर ग़लबा (विजय) हासिल (प्राप्त) करने से पहले अपने नफ़्स पर क़ाबू पा लो।
३८. बख़ील (कंजूस) इन्सान अपने अज़ीज़ों (रिश्तेदारों) में ख़ार रहता है।
३९. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह (पाप) इन्सान के हस्नात (अच्छाइयों) को भी तबाह (बर्बाद) कर देता है।
४०. जिसके पास अज़्म (द्रढ़ता) व इरादा है वह दूसरों लोगों के मुक़ाबले में अपने ऊपर मुसल्लत (हावी) है।
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हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) सय्यदुश्शोहदा
इस्मे मुबारक ------------- हुसैन (अ.स.)
लक़ब -------------------- सय्यदुश्शोहदा
कुन्नियत ---------------- अबु अब्दुल्लाह
वालिदे बुज़ुर्गवार --------- हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.)
वालदा ए माजिदा -------- हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स0)
विलादत ----------------- 3 शाबान 4 हिजरी 626 ई0
शहादत ------------------ 10 मोर्रम 61 हिजरी
मदफ़न ------------------ कर्बला
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जो शख़्स किसी मोमिन को खाना खिलाता है ख़ुदावन्दे आलम उसे जन्नत के मेवों से नवाज़ेगा।
२. किसी नेक काम को ख़ुदनुमाई (दिखलाना) के लिये अन्जाम मत दो और किसी नेक काम को ख़ेजालत (शर्मिन्दगी) की बिना पर तर्क न करो।
३. जिसे कोई नेमत (अच्छी वस्तु) मिले उसे शुक्र करना चाहिये।
४. किसी इमारत में हराम चीज़ों का इस्तेमाल न करो के वह वीरानी का बायस (कारण) है।
५. जो शख़्स अमानतदार नहीं वह ईमानदार नहीं और जिसे अपने अहद व पैमान का ख़्याल नहीं तो वह दीनदार नहीं।
६. नेक बातें तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) और ख़ानदान में महबूबियत (जनप्रिय) और जन्नत में दाख़िले का मोजिब (ज़रिया) है।
७. जिस तरह तुम्हें अपने ऊपर ज़ुल्म पसन्द नहीं दूसरों पर ज़ुल्म मत करो।
८. दो चीज़ों की क़ीमत का अन्दाज़ा नहीं किया जाता मगर उनके गुज़र जाने के बाद, एक जवानी दूसरे तन्दरूस्ती।
९. कितने ग़ैर हैं जो अपनों से बेहतर हैं (और बुरे वक़्त काम आते हैं) ।
१०. बख़ील (कंजूस) लोगों से मशविरा (परामर्श) मत करो वरना वह तुमको भी सख़ावत (दान) व बख़्शिश से रोक देंगे।
११. नेक लोगों की लग़ज़िशों (त्रुटियों) से चश्मपोशी (अनदेखी) करो क्योंकि ख़ुदावन्दे आलम उनका नासिर व मददगार (सहायक) है।
१२. झूठ से बचो क्योंकि झूठ और ईमान में तज़ाद (टकराव) है।
१३. बड़ी अज़ीम है वह मुसीबत जो इन्सान के दीन पर आये।
१४. जो शख़्स अल्लाह के दोस्तों को दोस्त रखता है, क़यामत (महाप्रलय) के दिन उन्हीं के साथ महशूर होगा (उठाया जायेगा) ।
१५. मुसलमान जब किसी से वायदा करता है तो फिर वायदा ख़िलाफ़ी नहीं करता।
१६. बदख़्वाही (बुरा चाहना) बदगुमानी (बुरा सोचना) चुग़लख़ोरी, ज़ुल्म व सितम और फ़ालेबद (अभिशाप) कहने से इज्तेनाब (बचो) करो।
१७. तोहफ़ा दोस्ती को परवान चढ़ाता है भाई चारगी में इज़ाफ़ा करता है और कीने (मन में शत्रुता) को ख़त्म करता है।
१८. कितनी ही ऐसी जल्द ख़त्म हो जाने वाली लज़्ज़ात (मज़े) हैं जिनके नतीजे में एक तुलानी (दीर्घकालीन) रन्ज व अफ़सोस हैं।
१९. लोगों से उन मौज़ूआत (विषयों) पर बात करो जिसे वह समझ सकें।
२०. लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता), दुरूस्तकारी से मिलो और उन पर ग़ुस्सा करने से बचो।
२१. ईमान वाला ख़ुदावन्दे आलम से दो चीज़ें तलब करता है, दुनिया में आसूदगी (संतोष) और आख़ेरत में नेमात (परलोक में मनपसन्द वस्तु) ।
२२. मोमिन तमलक़ (चापलूसी) और चापलूसी नहीं करता।
२३. जब तुम्हारा दामन ख़ुद ही गुनाहों (पापों) से और बुराईयों से आलूदा है तो नही अनिल मुन्कर (बुराई से रोकना) तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं।
२४. हक़ की पैरवी किये पग़ैर इन्सान की अक़्ल (बुध्दि) कामिल (पूर्ण) नहीं होती।
२५. जिस चीज़ तक पहुँचना मोहाल (दुशवार) है उसकी आरज़ू (इच्छा) मत करो।
२६. डरपोक और गुनाहगार (पापी) हमेशा परेशान रहते हैं।
२७. इज़्ज़त व मसर्रत परहेज़गारी (बुराईयों से बचना) में है।
२८. ईमान वाला इन्सान न ग़लत काम करता है न ही उसे माज़ेरत (पश्चाताप) करना पड़ती है।
२९. इन्सान की इज़्ज़त इसमें है कि वह दूसरों का मोहताज न रहे।
३०. जो तुम्हारा दोस्त (मित्र) होगा वह तुम्हें बुरे कामों से बचायेगा।
३१. मुसलमान से मुजादला (झगड़ा करना) नादानी की अलामत (जिन्ह) है।
३२. जितना काम किया हो उससे ज़्यादा के सिले (बदले या मज़दूरी) की उम्मीद (आशा) मत रखो।
३३. बख़ील (कंजूस) वह है जो सलाम में बुख़्ल (कंजूसी) करे।
३४. मुनाफ़िक़ (जिसका बाहरी व आन्तरिक एक न हो) रोज़ ग़लती करता है और रोज़ उसे माज़ेरत करना पड़ती है। मोमिन न ग़लती करता है न उसे माज़ेरत (क्षमायाचना) की ज़रूरत होती है।
३५. सलाम में सत्तर (70) हस्ना (अच्छाईयाँ) उन्हत्तर (69) सलाम करने वाले को और एक जवाब देने वाले को।
३६. जब तक कोई सलाम से इब्तेदा (शुरूआत) न करे उसकी बात का जवाब न दो।
३७. लोगों का अपनी ज़रूरेयात में तुम्हारी तरफ़ रूख़ करना अल्लाह की नेमतों में से एक नेमत है उसे ठुकराओ नहीं।
३८. ज़िन्दगी अक़ीदा (विशवास) और अमले पैयहम (निरन्तर कार्य करना) का नाम है।
३९. मोमिन का क़ौल (कथन) उसकी शख़्सियत (व्यक्तित्व) का आइना होता है।
४०. अपनी ज़रूरत सिर्फ़ तीन तरह के लोगों से बयान करो।
(1). दीनदार, (2). साहिबे मुरव्वत, (3). शराफ़तमन्द।
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हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)
इस्मे मुबारक -------------------- अली इब्नुल हुसैन (अ.स.)
लक़ब --------------------------- ज़ैनुल आबेदीन
कुन्नियत --------------------- अबु मोहम्मद
वालिदे बुज़ुर्गवार -------------- हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------ शहर बानो
विलादत --------------------- 15 जमादिउल ऊला 38 हिजरी 658 ई0
शहादत ---------------------- 25 मोहर्रम 95 हिजरी 714 ई0
मदफ़न ---------------------- जन्नतु बक़ीअ, मदीना
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. तन्दरूस्ती के वक़्त (समय) बीमारी के लिए और ज़िन्दगी में आख़ेरत (परलोक) के लिए तूशा (सामाग्री) फ़राहम करो।
२. मुस्कर (नशे वाली चीज़ें) चीज़ों से परहेज़ करो क्योंकि यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।
३. जो कम रोज़ी पर ख़ुदा से राज़ी होगा ख़ुदावन्दे आलम भी उसके अमले क़लील (कम अमल) पर राज़ी रहेगा।
४. झूठी क़सम माल की नाबूदी (बर्बाद) और तेजारत में अदमे बरकत (बरकत का ख़त्म होना) का बायस (कारण) है।
५. सबसे बेहतर वह शख़्स है जिसकी बातें तुम्हारे इल्म (ज्ञान) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) करें और तुमको ख़ैर की दावत दें।
६. अपनी औलाद का एहतेराम (इज़्ज़त) करो और उनकी अच्छी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो।
७. किसी को उस वक़्त तक परहेज़गार न समझा जायेगा जब तक वह शक व शुबाह (संदिग्ध) वाले कामों से इज्तेनाब (बचना) और हराम से बचेगा नहीं।
८. ज़्यादा माल व दौलत से बहुत ख़ुश न हो और किसी हाल में ख़ुदा को न भूलो।
९. हक़ीक़ी मोमिन वह है जो अपने माल में हाजतमन्दो को शरीक करे और लोगों से इन्साफ़ करे।
१०. जिसने तुम पर एहसान किया उसका हक़ तुम पर यह है कि उसका शुक्रिया अदा करो उसके एहसान को भूलो नहीं और उसके नाम को नेक चीज़ों से शोहरत दो।
११. दुनिया की लालच में मुबतला की मिसाल रेशम के उस कीड़े की सी है के जो जितना घूमता है उतना ही अपने को जाल में उलझा लेता है।
१२. अगर तुमसे कोई गुनाह (पाप) सरज़द हो जाये तो फ़ौरन ख़ुदा से तौबा (प्रायश्चित) करो।
१३. जब तुमसे फ़ैसले की तवक़्क़ो (आशा) की जाए तो बहुत होशियार होकर अदालत (न्याय) का ख़्याल रखो।
१४. जो शख़्स अपने और अपने ख़ुदा के दरमियान मामला साफ़ रखता है ख़ुदावन्दे आलम उसके और दूसरें लोगों के दरमियान मामला साफ़ रखता है।
१५. हर शख़्स की क़द्र उसकी ख़ूबियों के बराबर है।
१६. अपने ख़ुदा के अलावा किसी और से उम्मीदवार मत रहो।
१७. ख़ुदावन्दे आलम बेकार आदमी को पसन्द नहीं करता।
१८. जो शख़्स तुमको बुलाये उसकी दावत क़ुबूल (स्वीकार) करो और मरीज़ो की अयादत (बीमार की हालत पूछना) करो।
१९. क़र्ज़ लेने से इज्तेनाब (बचो) करो (क्योंकि) वह रात में अफ़सोस का बायस (कारण) और दिन में ज़िल्लत का बायस है।
२०. जिससे मिलों उसे सलाम करो ताकि ख़ुदावन्दे आलम तुम्हारे अज्र (इनाम) में इज़ाफ़ा करे।
२१. बदबख़्त वह शख़्स है जो तजुर्बा और अक़्ल के फ़वाएद (फ़ायदा का बहु वचन) से महरूम रहे।
२२. तुम चाहे जितना ताक़त व क़ुव्वत, माल व दौलत में ज़्यादा रहो फिर भी अपने ख़ानदान व क़ौम के मोहताज रहोगे।
२३. दोस्तों का छूट जाना बेकसी है।
२४. छुप कर सदक़ा (गुप्त दान से) देने से ख़ुदावन्दे आलम का ग़ज़ब (ईशवरीय प्रकोप) ज़ाएल (टल जाता है) हो जाता है।
२५. सब्र व रज़ा तमाम ताक़तों से बलन्द है।
२६. बच्चों की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो जो कल मुआशरे (समाज) में उसकी ख़ुबसूरती का बायस (कारण) है।
२७. अल्लाह से नाउम्मीदी (निराशा) का गुनाह बे गुनाहों का ख़ून बहाने से ज़्यादा है।
२८. अपनी औलाद की ऐसी तरबियत (शिक्षा दीक्षा) करो के ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ शोबों में आबरूमन्द और बाइज़्ज़त ज़िन्दगी गुज़ार सकें और तुम्हारे फ़ख़्र (गर्व) का बायस हों।
२९. जो शख़्स अपने घर वालों पर ज़्यादा फ़ेराख़ दिली दिखाता है ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी उनके शामिल हाल रहती है।
३०. यतिमों पर माँ बाप की तरह रहम करो और यह ख़्याल रहे कि आज जो अमल करोगे कल उसी की जज़ा मिलेगी।
३१. जो शख़्स लोगों पर बहुत मिन्नत (ख़ुशामद) रखता है वह लईम व पस्त है।
३२. ख़ुदावन्दे आलम उस जवान को पसन्द करता है जो अपने नापसन्दीदा आमाल पर नादिम (शर्मिन्दा) हो और तौबा (प्रायश्चित) कर ले।
३३. मोमिन की रातों की इबादत उसका शरफ़ है लोगों में बेनियाज़ी (बेपरवाही) उसकी इज़्ज़त।
३४. क्या कहना उस शख़्स का जो हाज़िर लज़्ज़तों को ग़ाएब नेमतों के हुसूल के लिए छोड़ दे।
३५. ग़रीब वह शख़्स है जिसे मुआशरे (समाज) में अपने साथी न मिल सकें।
३६. आख़री ज़माने में जो चीज़ सबसे कम मिलेगी वह मोरिदे इत्मिनान (विश्वसनीय) दोस्त और हलाल आमदनी है।
३७. ख़ुदावन्दे आलम इस्लाम की उन लोगों से ताईद कराता है जो उसके दाएरे में न भी हों।
३८. उन चीज़ों में मश्ग़ूल रहना जो इन्सान के काम न आने वाली हों सख़्त तरीन ग़लती है।
३९. हासिद (ईर्ष्यालु) कभी बा-इज़्ज़त नहीं हो पाता और कीना परवर (मन में बुराई रखने वाला) अपने ग़ुस्से से मरा करता है।
४०. अज़मत (बढ़ाई) उसी को हासिल है जो लोगों को मेज़ाह (मज़ाक़) का ज़रिया न बनाये उनको धोका न दे और उनकी इज़्ज़त में कमी न करे।
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
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हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.)
इस्मे मुबारक --------------------- मोहम्मद बिन अली (अ.स.)
लक़ब ---------------------------- बाक़िर
कुन्नियत ------------------------ अबु जाफ़र
वालिदे बुज़ुर्गवार ----------------- हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)
वालदा ए माजिदा --------------- फ़ातिमा बिन्ते हसन (अ.स.)
विलादत ------------------------ 1 रजब 57 हिजरी 733 ई0
शहादत ------------------------- 7 ज़िलहिज्जा 104 हिजरी 733 ई0
मदफ़न ------------------------- जन्नतुल बक़ीअ, मदीना
हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जो शख़्स किसी मुसलमान को धोका दे या सताये वह मुसलमान नहीं।
२. यतीम बच्चों पर माँ बाप की तरह मेहरबानी करो।
३. खाने से पहले हाथ धोने से फ़ख़्र (निर्धनता) कम होता है और खाने के बाद हाथ धोने से ग़ुस्सा (क्रोध) ।
४. क़र्ज़ कम करो ताकि आज़ाद रहो और गुनाह (पाप) कम करो ताकि मौत में आसानी हो।
५. हमेशा नेक काम करो ताकि फ़ायदा उठाओ बुरी बातों से परहेज़ (बचो) करो ताकि हमेशा महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहो।
६. ताअत (अनुसरण) व क़नाअत (आत्मसंतोष) बे नियाज़ी (बे परवाही) और इज़्ज़त का बायस है और गुनाह व लालच बदबख़्ती (अभाग्य) और ज़िल्लत का मोजिब (कारण) है।
७. जिस लज़्ज़त में अन्जाम कार पशेमानी हो नेकी नहीं।
८. दुनिया फ़क़त दो आदमियों के लिये बायसे ख़ैर (शुभ होने का कारण) है एक वह जो नेक आमाल में रोज़ इज़ाफ़ा करे, दूसरा वह जो गुज़िश्ता गुनाहों (भूतकालीन पाप) की तलाफ़ी तौबा (प्रायश्चित) के ज़रिये करे।
९. अक़लमन्द वह है जिसका किरदार (चरित्र) उसकी गुफ़्तार (कथन) की तसदीक़ (प्रमाणित) करे और लोगों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करे।
१०. बदतरीन शख़्स वह जो अपने को बेहतरीन (अच्छा) शख़्स ज़ाहिर करे।
११. अपने दोस्त के दुश्मनों से रफ़ाक़त (मित्रता) मत करो वरना अपने दोस्त को गवाँ (खो) दोगे।
१२. हर काम को उसके वक़्त (समय) पर अन्जाम (पूरा करो) दो जल्दबाज़ी से परहेज़ (बचो) करो।
१३. बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा (रहजाना) बेकसों की मदद और ग़मज़दो की दिलजूई में है।
१४. जो दिन गुज़र गया वह तो पलट कर आयेगा नहीं और आने वाले कल पर भरोसा किया नहीं जा सकता।
१५. हर इन्सान अपनी ज़बान के नीचे पोशीदा (छिपा) है जब बात करता है तो पहचाना जाता है।
१६. माहे मुबारक रमज़ान के रोज़े अज़ाबे इलाही के लिये ढाल हैं।
१७. काहिली से बचो (क्योंकि) काहिल अपने हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) अदा नहीं कर सकता।
१८. तुम में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो नादानों (अज्ञानियों) से फ़रार ( दूर भागे) करे।
१९. बुज़ुर्गों (अपने से बड़ों का) का एहतेराम (आदर) करो क्योंकि उनका एहतेराम (आदर) ख़ुदा की इबादत (तपस्या) के मानिन्द (तरह) है।
२०. सिल्हे रहम (अच्छा सुलूक) घरों की आबादी और तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) है।
२१. इसराफ़ (अपव्यय) में नेकी (अच्छाई) नहीं और नेकियों में इसराफ़ का वुजूद (अस्तित्व) नहीं।
२२. जिस मामले में पूरी वाक़्फ़ियत (जानकारी) नहीं उसमें दख़्ल मत दो वरना (मौक़े की ताक में रहने वाले) बुरे और बदकिरदार (दुष्कर्मी) लोग तुमकों मलामत का निशाना बनायेंगे।
२३. हमेशा लोगों से सच बोलो ताकि सच सुनों (याद रखो) सच्चाई तलवार से भी ज़्यादा तेज़ है।
२४. लोगों से मुआशेरत (अच्छा रहन सहन) निस्फ़ (आधा) ईमान है और उनसे नर्म बर्ताव आधी ज़िन्दगी।
२५. ज़ुल्म (अन्याय) फ़ौरी (तुरन्त) अज़ाब का बायस है।
२६. नागहानिए हादसात (अचानक घटनायें) से बचाने वाली कोई चीज़ दुआ से बेहतर नहीं ।
२७. मुनाफिक़ (जिसका अन्दरुनी और बाहरी व्यवहार में अन्तर हो ) से भी ख़ुश अख़लाक़ी से बात करो ।
२८. मोमिन से दोस्ती में ख़ुलूस पैदा करो ।
२९. हक़ (सत्य) के रास्ते (पथ) पर चलने के लिए सब्र का पेशा इख़्तियार करो ।
३०. ख़ुदावन्दे आलम मज़लूमों (जिनके साथ अन्याय किया गया हो) की फ़रयाद को सुनता है और सितमगारों (जिन्होंने ज़ुल्म किया हो) के लिए कमीनगाह में है ।
३१. सलाम और ख़ुश गुफ़्तारी गुनाहों से बख़्शिश (मुक्ति) का बायस (कारण) है।
३२. इल्म (ज्ञान) हासिल (प्राप्त) करो ताकि लोग तुम्हें पहचानें और उस पर अमल करो ताकि तुम्हारा शुमार ओलमा (ज्ञानियों) में हो।
३३. इबादते इलाही में ख़ास ख़्याल रखो आमाले ख़ैर (शुभकार्य) में जल्दी करो और बुराईयों से इज्तेनाब (बचो) करो।
३४. जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं क्या छोड़ा लेकिन जब फ़रिश्ते (ईश्वरीय दूत) सवाल करते हैं क्या भेजा?
३५. बेहतरीन इन्सान वह है जिसका वजूद दूसरों के लिये फ़ायदा रसां (लाभकारी) हो।
३६. क़ायम आले मोहम्मद (अ.स.) वह इमाम हैं जिनको ख़ुदावन्दे आलम तमाम मज़ाहब पर ग़लबा ऐनायत (प्रदान) करेगा।
३७. खाना ख़ूब चबाकर खाओ और सेर होने से पहले खाना छोड़ दो।
३८. ख़ालिस इबादत (सच्चे मन से तपस्या) यह है कि इन्सान ख़ुदा के सिवा किसी से उम्मीदवार न हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से डरे नहीं।
३९. उजलत (जल्दी) हर काम में नापसन्दीदा मगर रफ़े शर (बुराई को दूर करने में) में।
४०. जिस तरह इन्सान अपने लिये तहक़ीराना (अनादर) लहजा नापसन्द करता है दूसरों से भी तहक़ीराना (अनादर) लहजे में गुफ़्तगू (बात चीत) न करे।
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हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.)
इस्मे मुबारक ------------------------ जाफ़र बिन मोहम्मद (अ.स.)
लक़ब ------------------------------- सादिक़
कुन्नियत --------------------------- अबु अब्दुल्लाह
वालिदे बुज़ुर्गवार -------------------- हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------------ उम्मे फ़रवा
विलादत --------------------------- 17 रबी उल अव्वल 83 हिजरी 702 ई0
शहादत ---------------------------- 15 शव्वाल 184 हिजरी 765 ई0
मदफ़न ---------------------------- जन्नतुल बक़ीअ, मदीना
हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. हर बुज़ुर्गी और शरफ़ की अस्ल तवाज़ो है।
२. जिन कामों के लिये बाद में माज़ेरत करना पड़े उनसे परहेज़ (बचो) करो।
३. अपने दिलों (मन का बहु) को क़ुराने मजीद की तिलावत और अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) से नूरानी रखो।
४. अगर कोई तुम पर एहसान करे तो तुम उसके एहसान को चुकाओ और अगर यह न कर सकते हो तो उसके लिये दुआ करो।
५. जिस तरह तुम यह चाहते हो की लोग तुमसे नेकी करें तुम भी दूसरों से नेकी करो।
६. सफ़र (यात्रा) से पहले हमसफ़र (जिसके साथ सफ़र कर रहा है) को और घर लेने से पहले हमसाया (पड़ोसी) को ख़ूब परख लो।
७. किसी फ़क़ीर को ख़ाली वापिस न करो कुछ न कुछ ज़रूर दे दो ।
८. अव्वल वक़्त नमाज़ अदा (पढ़ो) करो अपने दीन के सुतून (खम्भो) को मज़बूत करो।
९. लोगों को ख़ुश करने के लिये ऐसा काम न करो जो ख़ुदावन्दे आलम को नापसन्द हो।
१०. दोस्तों (मित्रों) को हज़र (मौजूदगी) में एक दूसरे से मिलते रहना चाहिये और सफ़र में ख़ुतूत (ख़त का बहु वचन) के ज़रिये राबता (सम्बन्ध) रखना चाहिये।
११. शराबियों से दोस्ती मत करो।
१२. अच्छे काम इन्सान को बूरे वक़्त में बचाते है।
१३. (अगर) आज तुम अपने किसी भाई की मदद करोगे तो कल हज़ारों लोग तुम्हारी मदद करेगें।
१४. मौत की याद बुरी ख़्वाहिशों (इच्छाओं) को दिल से (मन से) ज़ाएल (दूर) करती है।
१५. माँ बाप की फ़रमांबरदारी ख़ुदावन्दे आलम की इताअत (आज्ञा का पालन) है।
१६. हसद, कीना और ख़ुद पसन्दी (स्वार्थ) दीन के लिये आफ़त हैं।
१७. सिल्हे रहम आमाल को पाकीज़ा (पवित्र) करता है।
१८. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स पर रहमत करे जो इल्म (ज्ञान) को ज़िन्दा रखे।
१९. ग़ुस्सा हर बुराई का पेशख़ेमा है।
२०. जिसकी ज़बान सच बोलती है उसका अमल भी पाक होता है।
२१. अपने वालदैन (माता पिता) से नेकी करो ताकि तुम्हारी औलाद (बच्चे) तुम से नेकी करें।
२२. ख़ामोंशी से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।
२३. कुफ़्र की बुनियाद तीन चीज़ हैं 1. लालच, 2. तकब्बुर (घमण्ड), 3. हसद।
२४. नेक बातें तहरीर (लिखावट) में लाओ और उसे अपने भाईयों में तक़सीम करो।
२५. मुझे वह शख़्स नापसन्द है जो अपने काम में सुस्ती करे।
२६. हरीस (लालची) मत बनो क्योंकि उससे इन्सान की आबरू चली जाती है और वह दाग़दार हो जाता है।
२७. बदतरीन लग़्ज़िश यह है के इन्सान अपने उयूब (ऐब का बहु वचन) की तरफ़ मुतावज्जेह (ध्यान) न दे।
२८. शराबियों से कोई राबता (सम्बन्ध) न रखो।
२९. जिस घर या जिस नशिस्त में मोहम्मद (स0) का नाम मौजूद हो वह बा बरकत व मुबारक है।
३०. लिखे हुए कागज़ात को नज़्रे आतिश (जलाओ नहीं) न करो अगर जलाना है तो पहले नविश्त ए जात (लिखे हुए को) को महो (मिटा) कर दो।
३१. कभी गुनाह को कम न समझो मगर गुनाह से इज्तेनाब (बचो) करो।
३२. जिसने लालच को अपना पेशा बनाया उसने ख़ुद को रूसवा (ज़लील) कर लिया।
३३. जल्दबाज़ी हमेशा पशेमानी (पश्चाताप) का बायस (कारण) होती है।
३४. मौत की याद बेतुकी ख़्वाहिशों (व्यर्थ इच्छाओं) को दिल से निकाल देती है।
३५. निजात व सलामती हमेशा (सदैव) ग़ौर व फ़िक्र (सोचविचार) से हासिल (प्राप्त) होती है।
३६. ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी (ख़ुशी) माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है।
३७. जो शख़्स कम अक़्लों और बेवकूफ़ों से दोस्ती करता है वह अपनी आबरू ख़ुद कम करता है।
३८. शराब से बचो के यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।
३९. मेदा तमाम बुराईयों का ख़ज़ाना है और परहेज़ हर इलाज का पेशख़ेमा है।
४०. जिस तरह ज़्यादा पानी से सब्ज़ा पज़मुर्दा हो जाता है उसी तरह ज़्यादा खाने से दिल मुर्दा हो जाता है।
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हज़रत इमाम मुसा काज़िम (अ.स.)
इस्मे मुबारक ----------------------- मूसा बिन जाफ़र (अ.स.)
लक़ब ------------------------------ काज़िम
कुन्नियत -------------------------- अबु इब्राहीम
वालिदे बुज़ुर्गवार ------------------- हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ----------------- हमीदा मुस्तफ़ा
विलादत -------------------------- 7 सफ़र 129 हिजरी 745 ई0
शहादत --------------------------- 25 रजब 183 हिजरी 799 ई0
मदफ़न --------------------------- काज़मैन, बग़दाद
हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. ग़ाफ़िल तरीन (बेपरवाह) शख़्स वह है जो ज़माने (समय) की गर्दिश और हादसात से इबरत हासिल न करे।
२. जो शख़्स बद अख़लाक़ है (गोया) उसने अपने एक दाएमी (सदैव) अज़ाब में मुबतला कर रखा है।
३. बहादुर वह है जो ग़ुस्से के वक़्त भी बुर्दबार रहे।
४. इल्म तमाम ख़ूबियों का बायस (कारण ) और जेहेल (जिहालत) तमाम बुराईयों का मोजिब (कारण) है।
५. माल ख़ुदावन्दे आलम की एक नेमत है और माल से बेहतर बदन की सलामती है और उससे बेहतर तक़्वा ए क़ल्ब है।
६. ज़कात के ज़रिये अपने माल की हिफ़ाज़त (रक्षा) करो सदक़े (ईश्वर के मार्ग में कुछ देना) के ज़रिये बीमारी का इलाज।
७. बुरे लोगों से भी नेकी करो ताकि उनकी बदी (बुराई) से महफ़ूज़ (बचे) रहो (क्योंकि) नेकी से आज़ाद भी बन्दाए बे दाम हो जाता है।
८. दुनिया ख़्वाब है और आख़ेरत (परलोक) बेदारी और उस दरमियान (बीच) ज़िन्दगी एक ख़्वाबे परेशां।
९. बहादुर इन्सान हमेशा ख़ुश व मसरूर रहता है और अपना ज़ेहेन और आसाब पर आक़ेलाना क़ाबू रखता है।
१०. कभी किसी को धोका मत दो क्योंकि यह काम बहुत पस्त लोगों का है।
११. झूठ बदतरीन बीमारी है।
१२. हमेशा हक़ बात कहो और परहेज़गारों (बुराई से बचने वाला) के नासिर व मददगार (सहायक) बनो।
१३. अहमक़ (बेवकूफ़) लोगों से दोस्ती मत करो क्योंकि वह ग़ैरे शऊरी तौर (बेवकूफ़ी से) से तुमको नुक़सान पहुँचायेंगे।
१४. जो अल्लाह से डरता है वह किसी पर ज़ुल्म नहीं करता।
१५. अल्लाह की राह (मार्ग) में अपने जान व माल से जेहाद करो और दुनिया में (आख़ेरत के लिये) ज़ख़ीरा (जमा) कर लो।
१६. सितमगर पर सख़्ती करके मज़लूम के हक़ को उससे दिलवाओ।
१७. दोस्त की लग़्ज़िशों (त्रुटियों) से चश्म पोशी करो और उसे दुश्मनों के हमलों के वक़्त के लिए महफ़ूज़ (बचाये) रखो।
१८. जिसका ईमान अल्लाह पर है वह उस दस्तरख़ान पर नहीं बैठता जहाँ शराब हो।
१९. अगर तुम में से कोई बरादरे मोमिन को दोस्त रखे तो उसे आगाह कर दो।
२०. कारे ख़ैर में जल्दी करो (वरना) किसी दूसरे काम में लग जाओगे।
२१. क्या कहना उस शख़्स का जो अपने हलाल माल से बख़्शिश व इन्फ़ाक़ (व्यय करे) करे।
२२. लोगों से बदगोई (अपशब्द) मत करो (वरना) इस तरह तुम अपने लिये अदावत को दावत दोगे।
२३. जो शख़्स मौक़ा बे मौक़ा अपनी परेशानियों को लोगों से सुनाता है वह अपने को ज़लील करता है।
२४. हरग़िज़ अपने अज़ीज़ों से चश्मपोशी न करो और बेगाने (जिससे जान पहचान न हो) को आश्ना (जानने वाले) पर तरजीह मत दो।
२५. जिसने मियाना रवी और क़नाअत (आत्मसंतोष) को अपनाया उसके लिये नेमत हमेशा बाक़ी रहती है।
२६. हमेशा हक़ गो (सच बोलो) रहो और हक़ को सरीह अन्दाज़ से बयान करो और ख़ुदावन्दे आलम के सिवा किसी और की ख़ुशनूदी के तलबगार न हो।
२७. ख़ुदावन्दे आलम काहिल और सुस्त बन्दे को पसन्द नहीं करता।
२८. सब्र (सहनशीलता) करोगे तो फ़ायदे में रहोगे।
२९. जो इसराफ़ और फ़ुज़ूल ख़र्ची करता है उसके यहाँ नेमत पर ज़वाल आ जाता है।
३०. परहेज़ हर मुसीबत का इलाज है।
३१. सात साल की उम्र के बच्चों को नमाज़ के लिये तैयार करो और उनके बिस्तर जुदा (अलग- अलग) कर दो।
३२. अज़ीम इन्सान (अच्छा मनुष्य) क़ुदरत पाकर अफ़ो (क्षमा) कर देता है अपनी ज़बान को नासज़ा (अपशब्द) कहने से रोकता है और इन्साफ़ (न्याय) का रास्ता इख़्तेयार (ग्रहण) करता है।
३३. कुशादा रवी (अच्छा अख़लाक़) ऐसा नेक काम है जिसमें न कोई ख़र्च है न कोई ज़हमत।
३४. अच्छे दोस्त हासिल करने से इन्सान की इज़्ज़त बढ़ जाती है।
३५. नेकी वह चीज़ है जो सिवाय शुक्राने और ऐवज़ देने के ख़त्म नहीं होती।
३६. वह इज़्ज़त जो तकब्बुर (घमण्ड) से हासिल हो वह ज़िल्लत है।
३७. लोगों से हाजत तलब करना (माँगना) बे-इज़्ज़ती भी है और रिज़्क़ में कमी का बायस (कारण) भी।
३८. जब बाद करो तो झूठ मत बोलो और जब वायदा करो तो वायदा ख़िलाफ़ी न करो।
३९. जब तुम किसी दूसरे के ऐब का ज़िक्र करना चाहो तो पहले अपने ऐब को सोच लो।
४०. मौत आने से पहले उसके लिये तैयार हो जाओ।
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हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.)
इस्मे मुबारक ------------------------- अली बिन मूसा (अ.स.)
लक़ब --------------------------------- रज़ा (अ.स.)
कुन्नियत ----------------------------- अबुल हसन
वालिदे बुज़िर्गवार ---------------------- हज़रते इमाम मूसा काज़िम (अ.स.)
वालदा ए माजिदा --------------------- उम्मुल बनीन नजमा
विलादत ------------------------------ 11 ज़िक़ादा 148 हिजरी 766 ई0
शहादत ------------------------------- आख़िर सफ़र 203 हिजरी 816 ई0
मदफ़न ------------------------------- मशहदे मुक़द्दस
हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. जब लोग नये नये गुनाहों का इरतेकाब (करना) शुरू कर देंगे तो ख़ुदावन्दे आलम (ईशवर) भी उन्हें नई नई बलाओं (आपत्तियों) में मुबतला करेगा (डालेगा) ।
२. माँ बाप को मोहब्बत भरी निगाहों से देखना इबादत (तपस्या) है।
३. ख़ुशबख़्त वह शख़्स है जो दूसरों की सरगुज़श्त (गुज़रा हुआ) से इब्रत (वह मानसिक खेद जो किसी आदमी को बुरी अवस्था में देखकर होता है) हासिल करे।
४. तुम्हारे अच्छे काम वह हैं जो आख़ेरत (परलोक) को सँवारें।
५. बेहतरीन कारे ख़ैर (अच्छा कार्य) वह है जो दाएमी (हमेशा) हो अगरचे कम हो।
६. जो किसी हाजत मन्द (माँगने वालों) की हाजत रवा (पूरा) करे ख़ुदावन्दे आलम उसके दुनिया व आख़ेरत (परलोक) दोनों आसान करेगा।
७. नेक ओमूर (अच्छे काम) में जल्दी करो ताकि कामयाब रहो (याद रखो) नेक कामों से उम्र (आयु) में बरकत होती है।
८. जो बुज़ुर्गों का एहतेराम (आदर) और ख़ुर्दों (छोटो) पर रहम न करे वह मुझ से नहीं।
९. बख़ील (कंजूस) लोगों की हमनशीनी (संगत) मत इख़्तेयार (ग्रहण) करो क्योंकि जब तुम उनके मोहताज होगे (तो) वह तुम से दूर भागेगा।
१०. जो तकब्बुर (घमण्ड) करेगा वह बेतुका फ़ख़्र करेगा उसे ज़िल्लत के सिवा कुछ और हासिल न होगा।
११. अपने राज़ को सिर्फ़ क़ाबिले ऐतमाद (भरोसेमन्द) लोगों से बताओ।
१२. इल्म से बेहतर कोई ख़ज़ाना नहीं और बुर्दबारी से बेहतर कोई इज़्ज़त नहीं।
१३. अपने दोस्तों और दुश्मनों सबके मामेलात में इन्साफ़ (न्याय) का ख़्याल ज़रूर रखना।
१४. नेक काम अन्जाम दो ताकि क़यामत के दिन नेक जज़ा (इनाम) मिले ।
१५. दुनिया की गुज़रगाह से अपने दाएमी घर (आख़ेरत)के लिए तोशा (सामग्री) लेते चलो ।
१६. किसी भी काम के लिए अव्वले वक़्त नमाज़ तर्क ना करो।
१७. जो अक़्लमन्दों से मश्विरा (परामर्श) करता है गुमराह (ईश्वरीय मार्ग से भटकना) नहीं होता।
१८. ख़ुदावन्दे आलम (ईश्वर) नें गुनाहों (पापों) और बुराईयों पर क़ुफ़्ल (तालें) लगा दिये हैं और उनकी कुँजी शराब और झूट उससे भी बदतर है ।
१९. ख़ानदान वालों से राब्ता (सम्बन्ध) हमेशा (सदैव) ताज़ा रख़ो अगरचे सिर्फ़ सलाम ही से हो ।
२०. माँ बाप को नाराज़ करने से उम्र (आयु) कोताह (कम) हो जाती है ।
२१. कभी अपने दीनी भाई से जेदाल (लड़ाई) या (हद से ज़्यादा) मेज़ाह (मज़ाक़) न करो और उनसे झूठे वादे मत करो ।
२२. नियाज़ मन्दी और हाजत (ऐसी बला है कि) होशियार से होशियार आदमी को भी दलील व बुर्हान (सुबूत) से रोक देती है ।
२३. अमानत (धरोहर) को अपने मालिक की तरफ़ वापिस करो चाहे वो नेक हो या बद ।
२४. हमेंशा अपनी ज़बान और अपनें हाथों से अम्र बिल मारूफ़ (अच्छाई का आदेश) व नहीं अनिल मुन्कर (बुराई से रोकना) करते रहो और अपने छोटे से छोटे गुनाह (पाप) कम ना समझो ।
२५. आज जबकि तुम्हारा क़द व क़ामत सलामत, ख़ून गर्म और दिल बेदार हे तो आने वाली सख़्तियों के लिए ख़ूब फ़िक्र (सोच विचार) कर लो ।
२६. अच्छे अख़्लाक़ वाला इन्सान वह है जिससे किसी का दिल न दुखा हो ।
२७. हर शख़्स का दोस्त उसका इल्म (ज्ञान) है दुश्मन उसकी जेहालत (अज्ञानता) ।
२८. मुझे वह दस्तरख़्वान पसन्द नहीं जिस पर सब्ज़ी न हो ।
२९. जो ज़ुबान से अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) करे और दिल से अपने गुनाहों से पशेमान (शर्मिन्दगी) न हो वह गोया अपने साथ मज़ाक़ कर रहा है ।
३०. ज़रुरी है कि तुम हमेशा मोहज़्जब (सभ्य) लोगों से इरतेबात (सम्बन्ध) रखो ।
३१. ज़माना तुम्हारी ज़िन्दगी की डायरी है इसलिए इसमें नेक आमाल (अच्छे कार्य) दर्ज करो (लिखो)।
३२. आलिम (ज्ञानी) मरने के बाद (म्रत्यु पश्चात) भी ज़िन्दा (जिवित) रहता है जाहिल (अज्ञानी) ज़िन्दगी ही में मुर्दा है।
३३. बुरे कामों से बचना नेक कामों की अन्जाम देही (के करने) से बेहतर है।
३४. जब तक भूक न हो दस्तरख़ान पर मत बैठो और शिकम (पेट) सेर होने (भरने) से पहले दस्तरख़ान छोड़ दो।
३५. बीमारों को जब उनका दिल माएल (मन न चाहे) न हो ज़बर्दस्ती ग़िज़ा (खाना) मत दो।
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
३६. मसर्रत (ख़ुशी) व शादमानी तीन चीज़ों से हासिल होती है, 1. मुवाफ़िक़ शरीके हयात (अपने मिजाज़ की पत्नि), 2. नेक औलाद, 3.अच्छे दोस्त।
३७. आरज़ू (इच्छा) ख़त्म होने वाली चीज़ नहीं और मौत को भी भुलाये रखती है।
३८. सूद बदतरीन महसूल (जो प्राप्त हुआ हो) है और माले यतीम (जिसके पिता न हों) खाना बदतरीन ग़िज़ा है।
३९. ख़ुदावन्दे आलम सख़ी (बाँटने वाला) है और सख़ी (ईशवरीय इच्छा हेतु बाँटना) को पसन्द करता है।
४०. वाजेबात (जो कार्य ईशवर हेतु अवश्य करना होता है) के बाद ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक़ बेहतरीन काम लोगों को मसर्रत (ख़ुश करना) पहुँचाना है।
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हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.)
इस्मे मुबारक ------------------------- मोहम्मद बिन अली (अ.स.)
लक़ब -------------------------------- जवाद
कुन्नियत ---------------------------- अबु जाफ़र
वालिदे बुज़ुर्गवार --------------------- हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------------- ख़ैज़रान
विलादत ---------------------------- 10 रजब 195 हिजरी 899 ई0
शहादत ----------------------------- 29 ज़ीकादा 220 हिजरी 835 ई0
मदफ़न ----------------------------- काज़मैन, बग़दाद
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. आपस में इत्तेहाद (मेल जोल) क़ायम करने के लिये झूठ भी नापसन्दीदा नहीं है।
२. ख़ुशकिस्मत वह है जो बुज़ुर्गों (अपने से बढ़ों) और नेक लोगों से मेल मिलाप रखे।
३. क्या कहना उस शख़्स का जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी बर्ते और बुरे वक़्तो में काम आए।
४. वायदे का वफ़ा करना (पूरा करना) और मुआहदे (समझौते) का एहतेराम (सम्मान) करना ईमान का जुज़ (टुकड़ा) है।
५. अगर किसी को कोई चीज़ नहीं मालूम तो मालूम करने में शर्म महसूस न करे क्योंकि हर इन्सान की क़ीमत उसकी मालूमात (ज्ञान) पर है।
६. जो शख़्स इस हाल में सुबह करे कि किसी पर ज़ुल्म का ख़्याल भी दिल में न लाये ख़ुदा उसके गुनाहों को दरगुज़र करेगा।
७. कभी भी ओमूरे ख़ैर (अच्छे कार्य) को मिन्नत (अहसान) जता कर ज़ाया मत करो।
८. अपनी ज़िन्दगी के दौरान हमेशा ओमूरे ख़ैर में मशग़ूल (वयस्त) रहो और दरियाए रहमते ख़ुदा से सेराब होते रहो।
९. पस्त अफ़राद के पास सिवाये यावा सराई (अपनी बड़ाई करना) और नासज़ा कल्मात (बुरे शब्द) के कोइ और हर्बा नहीं है।
१०. आज़ाद वह है जो अपने को ख़्वाहिशाते नफ़्स (आत्मइच्छाओं) से आज़ाद रखे।
११. अपने दुश्मनों से अच्छे अख़लाक़ (शिष्टाचार) का बर्ताव (व्यवहार) करो जल्दी कामयाब (सफ़ल0 होगे।
१२. जो कोई अपने भाई के लिये कुआँ खोदेगा ख़ुद उसका शिकार होता है।
१३. ग़ौर व फ़िक्र (सोच विचार) नूरानियत का बायस (कारण) और ग़फ़लत व बेख़बरी तारीकी लाती है।
१४. सबसे ख़तरनांक मर्ज़ हवा व हवस (इच्छापूर्ति) की पैरवी है।
१५. नेकी (अच्छाई) करो ताकि दूसरे तुमसे नेकी करें दूसरों पर रहम करो ताकि तुम पर रहम किया जाये।
१६. अल्लाह की राह (राह) में काम करते वक़्त (समय) लोगों की सरज़निश (ऐतेराज़) की परवाह मत करो।
१७. जो शख़्स (मनुष्य) दूसरों के ओयूब (ऐब का बहु) पर से परदा उठायेगा नागाह (अचानक) ख़ुद उसके ओयूब बे परदा हो जायेगें।
१८. तहसीले इल्म (ज्ञान प्राप्ती) में अगर कोई लुक़्मा ए अजल (मर जाये) हो जाये तो गोया वह शहीद है।
१९. मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो इससे दिल के कीने (द्वेष, वह शत्रुता जो मन में रहे) दूर हो जाते हैं।
२०. इल्म (ज्ञान) बेहतरीन मीरास (नानकार) है और अख़लाक़ (शिष्टाचार) बेहतरीन ज़ेवर है।
२१. नेक अख़लाक़ (सुशीलता) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की हमनशीनी (संगत) से हासिल होता है।
२२. बुरी आदतें जाहिलों (अज्ञानियों) की हमनशीनी (संगत) की देन है।
२३. सितमगर के लिये हिसाब का दिन (महाप्रलय) ज़्यादा सख़्त (कठोर) होता है मुक़ाबले में मज़लूम (जिसके साथ अन्याय किया गया हो) पर सितम करने के दिन से।
२४. जो अपनी ख़्वाहेशात (इच्छाओं) का ग़ुलाम हुआ गोया उसने अपने दुश्मन की ख़्वाहेशात (इच्छाओं) को पूरा कर दिया।
२५. जिस शख़्स में जितना अदब होगा ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक़ वह उतना ही मोहतरम होगा।
२६. जिस दस्तरख़ान पर शराब हो उस पर खाना खाना हराम है।
२७. पाकदामनी हवस को कम करती है और सदाक़त रहमते ख़ुदावन्दी का बायस (कारण) होते हैं।
२८. दूसरों की लग़्ज़िशों (त्रुटियों) से चश्मपोशी (अनदेखी) करना बेहतरीन नेकी है और उससे तुम्हारे बुज़र्गी (बड़ापन) भी ज़ाहिर होती है।
२९. ईमान वाला हमेशा कीना (द्वेष) और शक़ावत (ज़ुल्म) से दूर रहता है।
३०. ख़ुद पसन्दी (ख़ुद को अच्छा समझना) हिमाक़त (बेवक़ूफ़ी) व नादानी की अलामत है।
३१. यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी (दायित्व) है के हमेशा हक़ गो (सही बात कहो) रहो अहद व पैमान को पूरा करो अमानत (धरोहर) को अदा करो ख़्यानत (दूसरें के धरोहर के प्रति बेईमानी का विचार) तर्क (छोड़ दो) करो।
३२. हरगिज़ लोगों की ख़ुशनूदी के लिये अल्लाह को ग़ज़बनांक न करना और लोगों से क़ुरबत (क़रीबी) के लिये अल्लाह से दूर मत होना।
३३. एक दूसरे को तोहफ़ा (उपहार) देकर मोहब्बत बढ़ाओ और जो तुम्हें तोहफ़ा (उपहार) दे तुम भी उसे हदिया दो।
३४. कितना बद बख़्त है वह इन्सान जो दुनिया में फ़क़ीर रहे और आख़ेरत (परलोक) में अज़ाबे इलाही (ईश्वरीय प्रकोप) में गिरफ़्तार रहे।
३५. सबसे बड़ा ज़ुल्म व सितम वह है जो इन्सान अपने आइज़्ज़ा (रिश्तेदारों) पर करे।
३६. जब मुस्तहब (जिसके करने में सवाब हो) काम वाजिब ओमूर (जिनके न करने में अज़ाब हो) में रूकावट (बाधा) का बायस (कारण) हों तो उन्हें तर्क (छोड़) कर दो।
३७. सहर (प्रातः) के वक़्त सफ़र शुरू करो बहुत फ़वायद (फ़ायदे का बहु) हासिल होते हैं।
३८. मुश्किलात पर सब्र (सहनशीलता) के ज़रिये क़ाबू हासिल करो क्योंकि बेताबी से अज्र (इनाम) भी ज़ाया (चला जाता) होता है और मुसीबत भी बढ़ जाती है।
३९. जो शख़्स ऐसा काम करे जिससे ज़न व शौहर (मियाँ बीवी) में जुदाई हो जाये उस पर दुनिया व आख़ेरत (परलोक) में ग़ज़बे ख़ुदावन्द (इश्वरीय प्रकोप) रहेगा।
४०. अल्लाह से नज़दीक होने की अलामत है के हमेशा उससे मागें और लोगों से नज़दीक होने के लिये ज़रूरी है के उनसे मागें।
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हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.)
इस्मे मुबारक ------------------ अली बिन मोहम्मद (अ.स.)
लक़ब ------------------------- नक़ी
कुन्नियत --------------------- अबुल हसन
वालिदे बुज़ुर्गवार -------------- हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------ समाना
विलादत --------------------- 15 ज़िलहिज्जा 214 हिजरी 829 ई0
शहादत ---------------------- 3 रजब 254 हिजरी 868 ई0
मदफ़न ---------------------- सामरा, इराक़
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. ख़ुदपसन्दी इन्सान की बदबख़्ती और हलाकत का सबब है।
२. जो शख़्स नेमाते इलाही (ईश्वरीय ईनाम) का शुक्रगुज़ार करता है उस पर नेमाते इलाही का इज़ाफ़ होता (बढ़ जाता) है।
३. मैं तुम लोगों को वसियत करता हूँ के हमेशा रास्त गो रहना अहद को वफ़ा करना अमानत (धरोहर) को अदा करना और यतीमों ( जिसका पिता न हो) की सरपरस्ती करना।
४. नेक काम मर्गे मफ़ाजात से बचाते हैं।
५. दूसरो के अमवाल (माल का बहु वचन) में लालच न करो ताकि लोग तुम्हें पसन्द करें।
६. नादानी से ज़्यादा कोई फ़ख़्र नहीं और अक़्ल (बुध्दि) से ज़्यादा फ़ायदा रसाँ (लाभ पहुँचाने वाला) कोई माल नहीं।
७. अल्लाह से डरो ताकि दूसरों से भी अमान (सुरक्षा) में रहो।
८. तीन चीज़ें मोहब्बत पैदा करती हैं- 1. मुआशेरत (समाज) में इन्साफ़, 2. सख़्तियों में हमदर्दी और 3.खुले दिल से लोगों से मोहब्बत ।
९. ख़्वाहिशे नफ़्स (आत्म इच्छा) पर क़ाबू पा लेना दीनदारी की अलामत (चिन्ह) है।
१०. दो रूई (दोहरी बातें) और चुग़लख़ोरी से परहेज़ करो क्योंकि उसी से लोगों के दिलों में किना (द्वेष) पैदा होता है और तुम्हारी शख़्सियत (व्यक्तित्व) घटती जाती है।
११. कभी भी अपने बरादरे दीनि से इन्तेक़ाम (बदला) लेने की कोशिश (प्रयास) न करो अगरचे उसने बदी की हो।
१२. जो शख़्स (मनुष्य) सिर्फ़ अपनी अक़्ल पर भरोसा करे और मशविरा (परामर्श) न करे उससे लग़्ज़िश (त्रुटि) हो सकती है।
१३. जो सच्चा मुसलमान हो परहेज़गार (बुराई से बचने वाला) रहेगा।
१४. ख़ुदा की रहमत है उस पर जिसे जब नेक काम की दावत दी जाये तो क़बूल (स्वीकार) कर ले।
१५. जब तुम से कोई मशविरा (राय) करे तो उसे सही रहनुमाई (उचित मार्गदर्शन) करो।
१६. बेहतरीन सदक़ा यह है कि जो दोस्त जुदाई (प्रथकता) का शिकार हो गये हैं उनमें इस्लाह (शुध्दि) कर दो।
१७. अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) से रहनुमाई हासिल करो और उनके मशविरे से सरताबी न करो वरना पशेमान होना पड़ेगा।
१८. लोगों से इज़्हारे मोहब्बत (प्रेम प्रकट) करो ताकि तुमको भी दोस्त रखें।
१९. क्या कहना उस शख़्स का जो अक़्लमन्दों और दानिशमन्दों (बुध्दिमानों) का हमनशीं (साथी) है।
२०. जो ज़माने से तजुर्बा हासिल करता है वह दुनिया वालों के फ़रेब (धोके) में नहीं आता।
२१. ख़ुशख़ल्की (अच्छा तरीक़ा) और कुशादा रूई (सत्य व्यवहार) दोस्ती का बायस (कारण) और मोहब्बत हासिल करने का ज़रिया है।
२२. जो चीज़ें यहाँ हलाल ज़रिये से हासिल की गईं उसका भी वहाँ हिसाब होगा।
२३. हर चीज़ का एक सुतून (खम्भा) होता है दीन का सुतून इल्म व दानिश (बुध्दि) है।
२४. जो शख़्स ख़ुदपसन्दी और ख़ुदखाँ (अपनी प्रशंसा चाहने वाला) होता है उस पर ग़ुस्सा करने वाले भी ज़्यादा होगें।
२५. छुप कर गुनाह करने से डरो क्योंकि उस वक़्त का देखने वाला ही फ़ैसला करने वाला है।
२६. दूर अन्देश वह है जो फ़ुज़ूल ख़र्ची से बचे और इसराफ़ (दुरूपयोग) से दूर रहे।
२७. जिसके पास अमानत हो वह उसके मालिक तक पहुँचायें।
२८. इलाही नेमात पर ग़ौर करना एक अच्छी इबादत है।
२९. सख़ावत मोहब्बत पैदा करती है और अख़लाक (शिष्टाचार) इन्सान को भी आरास्ता करती है।
३०. कीना परवरी (मन में शत्रुता) पस्ती की अलामत है और इन्सान की अज़मत (बड़ापन) कम करती है।
३१. औलाद जब अपने माँ बाप को मोहब्बत की नज़रों से देखे तो यह इबादत है।
३२. इज़्ज़त के बाद ज़िल्लत उतनी सख़्त है जितना इक़्तेदार मसर्रत आवर।
३३. गुनाहगारों (पापियों) के लिये तौबा (प्रायश्चित) कर लो।
३४. जिसकी निगाहें दूसरे के माल की तरफ़ होती हैं उसका ग़म ज़्यादा और अफ़सोस फ़रावां रहता है।
३५. जब दो मुसलमान आपस में मुलाक़ात करके मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करते हैं तो उनके गुनाह ख़ुश्क पत्तों की तरह गिरते है।
३६. हमेशा दूसरोंक की कामयाबी (सफ़लता) और आक़बत ब-ख़ैर होने की दुआ करो ताकि वह चीज़ें तुम अपने में पाओ।
३७. मेज़ाह (मज़ाक़) वेक़ार (सम्मान) व हैयबत को कम कर देता है जबकि सुकूत (ख़ामोशी) वेक़ार (सम्मान) में इज़ाफ़े (बढ़ाने) का बायस (कारण) है।
३८. जवानों में से जो क़ुदरत रखता हो अज़्दवाज (विवाह) करे क्योंकि अज़्दवाज पाकदामनी का मोजिब (कारण) है।
३९. मालियात (माल का बहु वचन) के ज़मन में हमेशा अपने से नीचे लोगों से मवाज़ना (मुक़ाबला) करो न के बलन्द लोगों से।
४०. आख़ेरत (परलोक) का महसूल अमले सालेह (अच्छा कार्य) हैं और दुनिया का महसूल माल व औलाद।
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हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.)
इस्मे मुबारक ----------------------- हसन बिन अली (अ.स.)
लक़ब ------------------------------ असकरी
कुन्नियत -------------------------- अबु मोहम्मद
वालिदे बुज़ुर्गवार ------------------- हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------------ सलील
विलादत --------------------------- 10 रबी उस सानी 232 हिजरी 846 ई0
शहादत ---------------------------- 8 रबी उल अव्वल 260 हिजरी 874 ई0
मदफ़न ---------------------------- सामरा, इराक़
हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. मुसलमान वह शख़्स है जिसकी ज़बान और जिसके हाथों से मुसलमान महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहें।
२. हर रंज व ग़म और ख़ुशी व मसर्रत की इन्तेहा (हद) है सिवाय जहन्नमियों के रंज व ग़म की जिसकी कोई इन्तेहा (हद) नहीं।
३. जब किसी काम का इरादा करो उसके नताएज (नतीजे का बहु वचन) को सोच लो अगर अच्छा है तो इक़दाम (क़दम बढ़ाओ) करो वरना इज्तेनाब (बचो) करो।
४. मुसलमान वह है जिससे लोगों की जान व माल महफ़ूज़ रहे।
५. सबसे होशियार वह शख़्स है जो अल्लाह से ज़्यादा डरे और उसकी इताअत (आदेशानुपालन) ज़्यादा करे।
६. जो दूसरों की ख़ताओं (त्रुटियों) से दरगुज़र करता है अल्लाह उसके गुनाहों से दरगुज़र करेगा।
७. जो शख़्स ईमान के मज़े को चखना चाहता है वह लोगों से सिर्फ़ अल्लाह के लिये मोहब्बत (प्रेम) करे।
८. किसी मुसलमान के लिये यह रवा नहीं के वह अपने बरादरे इमानी से 3 दिन से ज़्यादा (ग़ुस्से की वजह से) मेल मिलाप न रखे।
९. सबसे अहम ज़ख़ीरा मुसीबत से दिनों में सब्र (सहनशीलता) है जो शख़्स सब्र को अपना शआर बना ले फिर उसे हादसे (घटनाओं) का ख़ौफ़ (भय) नहीं।
१०. सब्र (सहनशीलता) और नेकी, बुर्दबारी और ख़ुश अख़लाकी (सुशीलता) पैग़म्बरों (ईश्वरीय दूत, अवतार) की सीरत है।
११. इन्सान की यह कितनी बड़ी कमज़ोरी है के दूसरो के ऐब को शुमार करता है और वही चीज़ अपने बारे में भूल जाता है।
१२. किसी कमज़ोर पर ज़ुल्म (अन्याय) करना ज़ुल्म की सबसे बड़ी क़िस्म है।
१३. ख़ुदग़र्ज़ी और ख़ुदपसन्दी नादानी की अलामत है।
१४. अपने माल से अपनी आबरू की हिफ़ाज़त करो यह एक अच्छा काम है।
१५. अक़्लमन्द वह शख़्स है जो आख़ेरत और उक़बा (यमलोक) की फ़लाह (अच्छाई) के लिये कोशां (प्रयत्नशील) रहे।
१६. परहेज़गार (बुराई से बचने वाले) बनों क्योंकि तक़वा (आन्तरिक संयम , ईशवर से भय) बेहतरीन ख़ज़ाना है और ज़बरदस्त मुहाफ़िज़ है।
१७. क्या कहना उस शख़्स का जो अपने नफ़्स (आत्मा) की इस्लाह (शुध्दि, त्रुटियों का सुधार) करे और जायज़ जराय (उचित तरीक़े से) से रोज़ी हासिल करे।
१८. झूठों की दोस्ती से बचो क्योंकि उनकी दोस्ती (मित्रता) ऐसा सराब (धोका) है जो दूर की चीज़ को नज़दीक और नज़दीक की चीज़ को दूर दिखाती है।
१९. अपने माल और अपनी रविश (तरीके) में हमआहंगी (मेल मिलाप) रखो यह बुज़ुर्गवारी (बड़ापन) की अलामत है.
२०. (इसका ख़्याल रखो के) तुम्हारें हमनशीं (साथ उठने बैठने वाला) नेक लोग हों और तुम्हारे दोस्त परहेज़गार (बुराई से बचने वाला) हो।
२१. ख़ुदपसन्द शख़्स अपने मलामत करने वालों में इज़ाफ़ा करता रहता है।
२२. पड़ोसियों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) का बर्ताव (व्यवहार) करो।
२३. हर चीज़ का एक मअदन (खान) होता है तक़वे (आन्तरिक संयम) का मअदन (खान) ख़ुदाशुनास (न्यायवान) लोगों का दिल है।
२४. तमाम बुराईयों की कुंजी गुस्सा (क्रोध) है।
२५. इबादतगुज़ार (तपस्या करने वाला) वह शख़्स है जो वाजेबात (जिसके न करने में पाप हो) को पूरा करे।
२६. अहमक़ (बेवकूफ़) का दिल उसकी ज़बान पर है अक़्लमन्द (बुध्दिमान) की ज़बान उसके दिल में है।
२७. जो शख़्स हक़ से किनारा कशी (दूरी) करता है ज़लील हो जाता है।
२८. हसद और कीना (मन में शत्रुता) इन्सान की मसर्रतों (ख़ुशियों) को ख़त्म करने में सबसे ज़्यादा मोस्सर (प्रभावपूर्ण) है।
२९. तमाम बुराईयों की किलीद (कुंजी) झूठ है झूठ के ज़रिये इन्सान फ़क़्र (ग़रीबी) में मुबतला होता है।
३०. अक़्लमन्द वह है जो इलाही अहकामात (ईशवरीय आदेश) के आगे सर झुकाये, ऐहतियात और दूरअन्देशी को अपनाये।
३१. होशियार वह है जिसका आज कल से बेहतर हो और बुराईयों के दरवाज़े अपने ऊपर बन्द कर ले।
३२. ख़ुदावन्दे आलम के नज़दीक शराफ़त व बुज़ुर्गी आमाल के ज़रिये है ज़बानी नहीं।
३३. बदतरीन शख़्स वह है जिससे किसी ख़ैर की उम्मीद (आशा) नहीं और उसके शर (बुराई) से अमान (रक्षा) नहीं।
३४. सख़ावत (ईशवरीय मार्ग में धन वितरित करना) बुज़ुर्गी (बड़ापन) की अलामत (चिन्ह) है और पाकदामनी (नेकचलनी, सदाचार) तमाम ख़ूबियों (अच्छाईयों) का सरचश्मा (स्त्रोत) है।
३५. बेकार व बेतुकी बातों से इज्तेनाब (बचने) करो क्योंकि बात चीत उसी क़द्र काफ़ी है जिससे मफ़हूम (मतलब) अदा हो जाये।
३६. नेक काम बुरी मौत से बचाते है और हर नेक काम सदक़ा (दान) है।
३७. ख़ुदावन्दे आलम ने बदज़बानों पर जन्नत हराम कर दी है और बदख़ुल्क़ी (दुर्व्यवहार) बदबख़्ती की अलामत है।
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
३८. किसी नादान से अगर नेक काम हो तो उसे क़ुबूल (स्वीकार) कर लो अगर किसी दानिशमन्द (बुध्दिमान) की लग़्ज़िश (त्रुटि) ज़बान पर देखो तो माफ़ कर दो।
३९. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स को पसन्द नहीं करता जो अपने दुनयावी मामेलात में बड़ाई करे और आख़ेरत (परलोक) के मसाएल में जाहिल हो।
४०. अगर कोई बाइज़्ज़त ज़लील और कोई सरवतमन्द (धनी) ग़रीब हो जाये तो उस पर रहम करो।
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हज़रत इमाम साहेबुज़्ज़मान अज्जलल्लाहो फ़राजह
इस्मे मुबारक ------------------------ मोहम्मद (अ.स.)
लक़ब ------------------------------- महदी (अ0 ज0)
कुन्नियत --------------------------- अबुल क़ासिम
वालिदे बुज़ुर्गवार -------------------- हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.)
वालदा ए माजिदा ------------------ नरजिस ख़ातून
विलादत --------------------------- 15 शाबान 256 हिजरी 870 ई0
ब हुक्मे ख़ुदा ज़िन्दा है और ब हुक्मे ख़ुदा ज़ुहूर फ़रमायेंगे।
हज़रत हुज्जत (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-
१. मेरा वुजूद (अस्तित्व) ग़ैबत में भी लोगों के लिए ऐसा ही मुफ़ीद (लाभकारी) है जैसे आफ़ताब (सूर्य) बादलों के ओट (पीछे) से।
२. मैं ही महदी हूँ मैं ही क़ायमे ज़माना हूँ।
३. मैं ज़मीन को अद्ल (न्याय) व इन्साफ़ से इस तरह भर दूँगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौरर से भर गई है।
४. जो चीज़ तुम्हारे लिये मुफ़िद (लाभकारी) न हो उसके लिये सवाल (प्रशन) मत करो।
५. ज़ुहूर (प्रकटता) में ताजील (शिघ्रता) के लिये दुआ (प्रथना) माँगों क्योंकि उसी में तुम्हारी भलाई है।
६. जो लोग हमारे अमवाल (अमल का बहु वचन) को मुशतबा और मख़लूत (मिलाये हुए) किये हुए हैं जो कोई भी उसमें से ज़र्रा बराबर बिला इस्तहक़ाक (बग़ैर हक़ के) खोयेगा गोया उसने आग से अपना शिकम पुर किया ( पेट भर लिया) ।
७. मैं अहले ज़मीन (धरती पर रहने वालों) के लिये उसी तरह बायसे अमान (शान्ति का कारण) हूँ जिस तरह सितारे अहले आसमान (आसमान पर रहने वालों) के लिये।
८. हमारा इल्म तुम्हारे सारे हालात पर मोहीत (घेरे हुए) है और तुम्हारी कोई चीज़ हम से पोशीदा (छीपी) हुई नहीं।
९. हम तुम्हारी ख़बरगीरी (देखरेख) से ग़ाफ़िल (बेपरवाह) नहीं और न तुम्हारी याद को अपने दिल से निकाल सकते हैं।
१०. हर वह काम करो जो तुम्हें हम से नज़दीक (क़रीब) करे और हर उस अमल से परहेज़ करो (बचो) जो हमारे लिये बारे ख़ातिर और नाराज़गी का सबब हो।
११. तुममे से जो कोई तक़वा ए इलाही (ईशवर का भय) इख़्तेयार (अपनायेगा) करेगा और मुस्तहक़ (हक़दार) तक उसके हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) पहुँचायेगा वह आने वाले फ़ित्नों (झगड़ों) से महफ़ूज़ रहेगा (बचा रहेगा) ।
१२. अगर हमारे चाहने वाले अपने अहद व पैमान की वफ़ा करते तो हमारी मुलाक़ात में ताख़ीर (देर) न होती और हमारी ज़ियारत उन्हें जल्द नसीब होती.
१३. हमें तुमसे कोई चीज़ दूर नहीं करती मगर वह जो हमें नागवार और नापसन्द है।
१४. हम तुम्हारे अमवाल (माल का बहु वचन, यह ख़ुम्स की ओर इशारा है) को सिर्फ़ इसलिए क़ुबूल (स्वीकार) करते हैं के तुम पाक हो जाओ हमें जिसका जो चाहे अदा करे जो चाहे अदा न करे क्योंकि जो कुछ ख़ुदावन्दे आलम ने हमें अता फ़रमाया (दिया) है वह उससे बेहतर है जो तुम्हें दिया है।
१५. नमाज़ शैतान को रूसवा (निंदित) कर देती है। नमाज़ पढ़ो और शैतान को रूसवा करो।
१६. जो मेरा इन्कार करे वह मुझसे नहीं और उसका अन्जाम पिसरे नूह (नूह जो नबी थे उनका पुत्र) का अन्जाम है।
१७. मसाएल में हमारे रावियों की तरफ़ रूजु करो क्योंकि वह मेरी तरफ़ से तुम पर हुज्जत (तर्क, दलील) हैं।
१८. ताज्जुब है उन लोगों की नमाज़ कैसे क़ुबूल होती है जो इन्ना अन्ज़ल्ना की तिलावत नहीं करते (नहीं पढ़ते)।
१९. नमाज़ के लिये जिन सूरतों के फ़ज़ाएल बयान किये गये हैं वह अपनी जगह पर अलबत्ता अगर कोई शख़्स सूरा ए इन्ना अन्ज़लना और सुरा ए क़ुल हो वल्लाह की तिलावत करे तो उसे इन सूरतों का सवाब भी मिलेगा और जिन सूरतों के बदले पढ़ेगा उसका भी।
२०. मलऊन है मलऊन है वह शख़्स जो नमाज़े मग़रिब में इतनी ताख़ीर (देर) करे के तारे ख़ूब खिल जायें।
२१. हमारे अलावा जिसने अपनी हक़्क़ानियत (सच्चाई) का दावा किया वह झूठा है।
२२. क्या लोग यह बात नहीं जानते के नबी (अ.स.) के बाद उनकी हिदायत (मार्ग दर्शन) के लिये आइम्मा (अ.स.) का इन्तेज़ाम (प्रबन्ध) किया गया है।
२३. यह लोग कैसे फ़ित्ने (झगड़े) में घिर गये हैं क्या उन्होंने अपने दीन को छोड़ दिया है।
२४. यह लोग हक़ से क्यों अनाद (दुश्मनी) रखते हैं क्या हक़ को पहचानने के बाद उसे भुला दिया है।
२५. क्या तुम नहीं जानते के ज़मीन कभी हुज्जते ख़ुदा (ईशवरीय तर्क, दलील) से ख़ाली नहीं रहती।
२६. तमाम (सभी) लोग यह बात समझ लें के हक़ हमारे साथ है और हम में है।
२७. मैं रूए ज़मीन पर बक़िय्यतुल्लाह (ईशवरीय चिन्ह) हूँ और दुश्मनाने ख़ुदा (ईशवर के शत्रु) से इन्तेक़ाम (बदला) लूँगा।
२८. जो लोग मेरे ज़ुहूर (प्रकटता) के लिये वक़्त (समय) मोअय्यन (निर्धारित) करते हैं वह झूठे हैं.
२९. छींक का आना मौत से कम से कम 3 दिन की ज़मानत है।
३०. मैं ख़ातिमुल औलिया हूँ और मेरे ज़रिये ख़ुदावन्दे आलम मेरे चाहने वालों को बलाओं से निजात (मुक्ति) देगा।
३१. ख़ुदावन्दे आलम ने यह दुनिया बेकार नहीं पैदा की है।
३२. ख़ुदावन्दे आलम ने जिन्हें हिदायत (निर्देश) का ज़रिया बनाया है उनको फ़ज़ीलत भी दी है।
३३. ख़ालिके कायनात (संसार को पैदा करने वाला) ने अपने औलिया (वली का बहु वचन) के ज़रिये दीन को ज़िन्दा किया।
३४. आइम्मा (अ.स.) को हर गुनाह (प्रत्येक पाप) से पाक और हर बुराई से दूर रखा है।
३५. औलिया इल्म के ख़ज़ाने और हिकमत (दानाई) का मअदन (खान) हैं।
३६. जो इमामत के झूठे दावेदार होंगे उनका नक़्स (कीना) बहुत जल्द मालूम हो जायेगा।
३७. जब हुक्मे ख़ुदा होगा हक़ ज़ाहिर होगा और बातिल मिट जायेगा।
३८. (दादी) फ़ातिमा ज़हरा (स0) की ज़िन्दगी हमारे लिये नमूना है।
३९. ख़ुदा हम सब का वली (सहायक) है।
४०. जिसने हमारे नुमायन्दे को रद किया उसने गोया मुझे रद्द किया।
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अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मादिन वा आले मोहम्मद वा अज्जिल फ़राजाहुम
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