ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम से हज़रत अली अलैहिस्सलाम की 600 हदीसें
संकलनकर्ता : अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद तमीमी आमदी
अनुवादक: सैयद क़मर ग़ाज़ी
इस संकलन के बारे में
मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की पाक सुन्नत, वास्तविक्ता को जानने वाले इंसानों के लिए ईमान व श्रेष्ठता की एक ऐसी विरासत है जो उनके दिलो को आध्यात्म और बुद्धी को बुद्धिमत्ता से भर देती है। हक़ीक़त को जानने और अल्लाह तक पहुँचने की उत्सुकता रखने वाले लोग, हमेशा ही मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की हदीसों की रौशनी में अमर रहने वाली नेकी व पाकी के रास्ते पर चलते रहे हैं। मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की हदीसों से जहाँ होशियार लोगों ने पूर्ण रूप से बुद्धिमत्ता प्राप्त की, वहीं अन्य लोगों ने ज्ञान लाभ प्राप्त किया है। इसी लिए हम देखते हैं कि "सुन्नत" क़ुरआन के बाद मुसलमानों के दीन का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत है और दीन की वास्तविक्ता को व्यक्त करने तथा इस्लामिक ज्ञान को उच्चता व महत्ता प्रदान करने में इसका विशेष योगदान रहा है।
वर्तमान समय में इंसानों में आध्यात्म व अख़लाक की आवश्यक्ता बढ़ी है और यह भी स्वीकार कर लिया गया है कि हदीसें दीन का आधार भूत अंग है, लेकिन इन सब बातों के होते हुए भी हदीस के क्षेत्र में बहुत कम काम हुआ है। हदीसों को जिस प्रकार आगे बढ़ाना चाहिए था नही बढ़ाया गया है, नई नस्ल में इसका उचित रूप से प्रचार व प्रसार नही हुआ है।
दूसरी ओर रिवायतों व हदीसों की अधिकता और उनमें पाये जाने वाले झूठे व समय से ताल मेल न खाने वाले आश्य तथा वर्तमान समय में प्रयोग होने वाली भाषा में उनके अनुवाद का अभाव आदि इस बात का कारण बनें हैं कि जो लोग इस विषय पर कोई संक्षिप्त व संकलित किताब पढ़ना चाहते हैं, वह नही पढ़ पाते।
इस बात में कोई संदेह नही है कि अगर उपरोक्त वर्णित कमियों को दूर कर दिया जाये और हदीसों को एक नये रूप व एक नई शैली में प्रस्तुत किया जाये तो यह कार्य जनता में हदीस के प्रचार व प्रसार में सहायक सिद्ध होगा। अतः इन्हीँ बातों को नज़र में रखते हुए हदीसों के इस संकलन में एक विशेष शैली को अपनाया गया है। चूँकि इस शैली का प्रयोग साहित्य जैसे अन्य विषयों में भी लाभ प्रद रहा है, अतः उम्मीद की जाती है कि हदीसों के प्रकाशन में भी उचित ही रहेगा। अभी तक जनता के लिए धार्मिक किताबों में इस शैली को बहुत कम प्रयोग किया गया है।
यह शैली, अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हदीसों से जनता को पूर्ण रूप से परिचित कराने के लिए अधिक उपयुक्त है। इस शैली के द्वारा प्रथम चरण में अध्ययनकर्ताओं में इन हदीसों को समझने की उत्सुक्ता पैदा करके बाद के चरण में हदीसों के संदर्भ में उनका व्यापक स्तर पर मार्ग दर्शन किया जा सकता है। अतः इस संकलन को इसी उद्देशय से इस शैली में व्यवस्थित किया गया है। उम्मीद है कि हदीसों को सही करने व उन्हें जीवित रखने की अन्य अनेकों कोशिशों के साथ, हदीसों का यह संकलन भी जनता को हदीसों से परिचित कराने के लिए एक ऐसा दरवाज़ा बनेगा जिससे लोग हदीसों के शहर में प्रवेश करेंगे।
इस संकलन की विशेषताएं
इस संकलन की महत्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है।
1- इस संकलन के लिए महत्वपूर्ण हदीसों को ही चुना गया है।
2- हदीसों के चुनाव में उनके ऐतिहासिक क्रम को दृष्टि में नही रखा गया है बल्कि हदीसों की पुरानी व नई सभी महत्वपूर्ण किताबों से इन हदीसों को चुना गया है।
3- इस श्रृंख्ला की हर किताब अनुवाद के साथ एक सौ से दो सौ पेज तक है।
4- इस श्रृंख्ला की हर किताब एक ही साईज़ व डिज़ाईन में प्रस्तुत की जायेगी।
5- प्रत्येक संकलन प्रस्तावना, मूल लेख व विषय बोध पर आधारित होगा। प्रस्तावना में किताब के लेखक के जीवन परिचय के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी, उसकी शैक्षिक योग्यताएं, किताब की विषय सामग्री और हदीस की किताबों के मध्य उस किताब के स्थान आदि का उल्लेख किया जायेगा। मूल लेख में अरबी की मूल हदीसें, उनकी मात्राएं, अनुवाद व आवश्यक्तानुसार उनकी व्याख्या का उल्लेख होगा। विषय बोध में प्रत्येक संकलन के अंत में उसमें वर्णित हदीसों के विषयों की पूर्ण सूची दी जायेगी, जिसके द्वारा विभिन्न विषयों पर आधारित हदीसों को आसानी से ढूँढा जा सकेगा।
6- हदीस के स्रोतों का यथा संभव उल्लेख किया गया है और उन्हें प्रत्येक पेज पर रेफ़रैंस में लिख दिया गया है, उन हदीसों की किताबों के अतिरिक्त जिनकी गनणा प्राथमिक स्रोतों में होती है।
7- प्रत्येक संकलन में विषयों को क्रमबद्ध वर्णन करने की यथासंभव कोशिश की जायेगी है। अगर किसी अवसर पर किसी विशेष शैली को अपनाया जायेगा तो उस संकलन की प्रस्तावना में उसका व्याख्यात्मक वर्णन कर दिया जायेगा।
8- हदीसों के चुनाव में निम्न लिखित बातों को आधार बनाया गया है।
अ- ऐसे विषय जिनकी सब लोगों को आवश्यक्ता हो।
आ- हदीस छोटी, स्पष्ट व अधिक काम आने वाली हो।
इ- एतेक़ाद (आस्था), इबादत, अखलाक़, तरबियत एवं समाजिक व आर्थिक व ..... पहलुओं से संबंधित हो, जिंदगी की उम्मीदों को बढ़ाती हो और अखलाक़ व इंसान की ज़िन्दगी के आधारों को मज़बूत बनाने वाली हो।
9- हदीसों के अनुवाद में गद्य के नियमों का पालन करने की कोशिश की गई है।
10- प्रत्येक संकलन, सामूहिक कार्य का फल है और यह एक संचीव के निर्देशन में व्यवस्थित होता है। प्रत्येक संकलन में उसको व्यवस्थित करने वालों के नामों का उल्लेख किया जाता है।
उम्मीद की जाती है कि विभिन्न संकलनों पर आधारित यह श्रृंख्ला मासूमीन अलैहिमुस्सलाम की हदीसों की परिचायक बन कर चाहने वालों को उनकी हदीसों से परिचित करायेगी।
इस किताब को व्यवस्थित करने में जिन लोगों ने सहायता प्रदान की है हम उनका शुक्रिया करते हुए यहाँ पर उनके नामों का उल्लेख कर रहे हैं, जनाब मुहम्मद अली सुलतानी, सैयद काज़िम तबातबाई, क़ासिम जवादी, मुहम्मद हादी खालक़ी इन्होंने इस किताब को छपने से पहले पढ़ा और अपनी लाक्षप्रद राय से अवगत कराया। हम इन सबका एक बार फिर शुक्रिया करते है।
हादी रब्बानी
प्रचार संचिव
तहक़ीक़ाते दारुल हदीस
प्रस्तावना
संकलनकर्ता
नासेहुद्दीन अबुल फ़तह अब्दुल वाहिद पुत्र मुहम्मद तमीमी आमदी, पाँचवी हिजरी शताब्दी के अंतिम चरण व छठी हिजरी शताब्दी के प्रथम पाँच दशकों में एक बड़े शिआ आलिम रहे हैं। उन्होंने ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम नामक किताब लिख कर अपना नाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बुद्धिमत्ता पर आधारित कथनों का संकलन करने वालों में अमर कर लिया है। परन्तु जीवन परिचय कराने वाली किताबों में उनके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है और जो जानकारी उपलब्ध है भी उसमें आशंकाएं पाई जाती हैं।
जीवन परिचयों से संबंधित किताबों में मिलता है कि इब्ने शहरे आशोब माज़न्दरानी उनके ही शिष्य थे। कुछ लोगों ने अहमद ग़ज़्ज़ाली को उनका उस्ताद उल्लेख किया है। आमदी की मृत्यु छठी हिजरी शताब्दी के मध्य में हुई।
रचनाएं
आमदी के जीवन का एक अप्रत्यक्ष पहलु उनकी रचनाओं की गणना है। ग़ु-ररुल हिकम के अतिरिक्त उनकी अन्य किताबों में जवाहेरुल कलाम फ़िल हुक्मे व अल-अहकाम का नाम लिया जाता है।
किताब की विशेषताएं
यह किताब ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम हज़रत अली अलैहिस्साम के 11050 छोटे व महत्वपूर्ण कथनों पर आधारित है। इन कथनों का विषय नसीहत, उत्साह व भय का वर्णन करते हुए सदाचारिक विशेषताओं को अपनाने व सदाचारिक बुराईयों से दूर रहने का उपदेश हैं।
आमदी ने अपनी इस किताब की प्रस्तावना में इस किताब को लिखने का कारण यह उल्लेख किया है कि जाहिज़ द्वारा लिखी गई किताब मिअतु कलमतिन (सौ कथन) में बहुत कम कथनों को चुना गया था। उन्होंने जाहिज़ पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि "चूँकि उसको अच्छी परख नही थी इस लिए उसने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों के समुन्द्र से नसीहत के असंख्य मोतियों में से बहुत कम को चुना और उन्हें ही अधिक समझा।" जाहिज़ के काम में इस कमी को देखने के बाद उन्होंने अपनी कमर को कसा और हिम्मत करके यह महत्वपूर्ण किताब लिखी।
उन्होंने इन कथनों को इकठ्ठा करने में साहित्यिक विशेषताओं व सौन्दर्यों को दृष्टिगत रखते हुए कथनों की सनद (अर्थात इन कथनों का क्रमशः किन लोगों ने उल्लेख किया है) को छोड़ दिया और कथनों को ढूँढने में सरलता के लिए कथनों को अरबी वर्ण माला के क्रमानुसार व्यवस्थित किया।
किताब का महत्व
आमदी, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों को एकत्रित करने वाले प्रथम व अंतिम व्यक्ति नही हैं, बल्कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बुद्धिमत्ता पर आधारित इन कथनों को एकत्रित करने का काम इस्लाम के प्रारम्भिक दशको में आरम्भ हो गया था। परन्तु आमदी द्वारा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों को सुव्यवस्थित करके उन्हें एक नये रूप में प्रस्तुत करने के कारण इस किताब को विशेष ख्याति प्राप्त हुई।
अल्लामा मजलिसी, इस किताब को अपनी किताब बिहारुल अनवार के स्रोतों में उल्लेख करते हुए इसके बारे में लिखते हैं कि यह किताब बहुत मशहूर है और एक से दूसरे हाथ में घूमती रहती है। इसी तरह मुस्तदरकुल वसाइल नामक किताब के लेखक मिर्ज़ा हुसैन नूरी, इस किताब के लेखक के शिआ होने की दलीलों का उलेलेख करते हुए लिखते हैं कि "अगर कोई शिआ आलिमों की हदीसों की किताबों से परिचित आदमी इस किताब को ध्यान पूर्वक पढ़े तो वह समझ जायेगा कि आमदी ने इस किताब में उल्लेखित हदीसों को शिआ किताबों से ही चुना है।"
मरहूम मुहद्दिस उरमवी, इस किताब की आध्यात्मिक महत्ता और इसके एक नस्ल से दूसरी नस्ल की ओर हस्तान्त्रित होने और एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमने का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि
"इस आशय पर सबसे बड़ा तर्क, इस किताब की लिपियों का अधिक संख्या में पाया जाना है: क्योंकि जब हम दुनिया के बड़े पुस्तकालयों विशेष रूप से उन इस्लामिक पुस्तकालयों को देखते हैं जो विभिन्न घटनाओं व परिस्थितियों से अपने अस्तित्व को बचाते हुए नई नस्ल तक पहुँचे हैं, तो पाते हैं कि इस किताब की बहुत सी लिपियाँ या कम से कम एक लिपि वहाँ मौजूद हैं।"
किताब का परिचय
ग़ु-ररुल हिकम उन किताबों में से है, जो बहुत से लोगों की रिसर्च का विषय बन चुकी है। इस किताब के निम्न लिखित पहलुओं की ओर इशारा किया जा रहा है।
अ- अनुवाद
1- ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम, अनुवाद व व्याख्या जमालुद्दीन मुहम्मद खुवानसारी, प्रस्तावना, शुद्धीकरण: मीर जलालुद्दीन हुसैनी उरमवी (मुहद्दिस)
प्रकाशक: तेहरान विश्वविद्यालय, तेहरान, सन् 1998 ई., 7 जिल्द।
2- ग़ु-ररुल हिकम मजमुआ ए कलमाते क़िसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम, अनुवाद: मुहम्मद अली अंसारी क़ुम्मी, 2 जिल्द,
3- गुफ़्तारे अमीरुल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम, अनुवाद: सैयद हुसैन शेखुल इस्लामी,
प्रकाशक: अंसारियान पब्लिकेशन, क़ुम, सन् 1995 ई., 2 जिल्द।
4- ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम, अनुवाद: सैयद हाशिम रसूली महल्लाती,
प्रकाशक: फरहंगे इस्लामी पब्लिकेशन तेहरान, सन् 1999 ई., 2 जिल्द।
आ- संकलन
5- मुन्तख़ब उल ग़ु-रर: हज़रत अली अलैहिस्सलाम की 2400 हदीसें, संकलनकर्ता: फ़ज़लुल्लाह कम्पनी,
प्रकाशक: मुफ़ीद पब्लिकेशन, तेहरान, सन् 1983 ई.,1 जिल्द 471 पेज पर आधारित।
इ- विषय सूचियाँ
6- शरहे फार्सी ग़ु-रर व दु-ररे आमदी, विषय सूची, सैयद जलालुद्दीन मुहद्दिस,
प्रकाशक: तेहरान विश्वविद्यालय पब्लिकेशन, तेहरान, सन् 1981 ई., 1 जिल्द 434 पेज पर आधारित।
7- हिदायतुल अलम फ़ी तनज़ीमे ग़ु-ररुल हिकम, सैयद हुसैन शेखुल इस्लामी,
प्रकाशक: अंसारियान पब्लिकेशन, क़ुम, सन् 1992 ई., 1 जिल्द 704 पेज पर आधारित।
8- तस्नीफ़े ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम, मुस्तफ़ा दरायती।
प्रकाशक: तबलीग़ाते इस्लामी पब्लिकेशन, क़ुम, 1 जिल्द 562 पेज पर आधारित।
ई- शाब्दिक सूचियाँ
9- अल-मोजमुल मुफ़हरस लिअलफ़ाज़ि ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम, अली रिज़ा बराज़िश।
प्रकाशक: अमीरे कबीर पब्लिकेशन, तेहरान, सन् 1992 ई., 3 जिल्द।
10-मो-जमु अलफ़ाज़ि ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम, मुस्तफ़ा दरायती,
प्रकाशक:तबलीग़ाते इस्लामी पब्लिकेशन, क़ुम, सन् 1992 ई., 1 जिल्द 1533 पेज पर आधारित।
इस संकलन के बारे में
यह संकलन, मीर जलालुद्दीन मुहद्दिल उरमवी द्वारा परिमार्जित लिपी (जिसका वर्णन "किताब का परिचय" नामक शीर्षक में हुआ है) के आधार पर व्यवस्थित किया गया है। उस किताब में मौजूद 11050 हदीसों में से 600 हदीसों को उन आधारों पर चुना गया है जिनका वर्णन दो शब्द नामक शीर्षक में हो चुका है। समस्त हदीसों को अरबी वर्ण माला के अक्षरों के क्रमानुसार 14 भागों में विभाजित करके व्यवस्थित किया गया है।
हदीस के असली न. को उसके सामने कोष्ठक में लिख दिया गया है।
अनुवादक के शब्द
प्रियः पाठको ! हज़रत अली अलैहिस्सलाम की कुछ हदीसों के अनुवाद के साथ हम एक बार फिर आपकी सेवा में हैं।
इस भौतिकता के युग में इंसान निरन्तर सदाचारिक पतन की ओर बढ़ रहा है। अगर इस पतन को न रोका गया तो हमारी आने वाली नस्लें सदाचार से बहुत दूर हो जायेगी। आज विज्ञान के वर्दानों का खुल कर दुरूपयोग हो रहा है जिसके नतीजे में हमारे चारों ओर अश्लीलता फैलती जा रही है। विभिन्न टी. वी. चैनलों और इन्टरनेट साईटों ने मानवीय मर्यादाओं को तबाही के कगार पर खड़ा कर दिया है। इस स्थिति में आध्यात्मिक्ता का ज्ञान ही हमें सदाचारिक पतन से रोक कर मानवीय उच्चताओं तक पहुँचा सकता है। अल्लाह ने इंसान के लिए जो विधान निश्चित किया है अगर उस पर चला जाये तो इंसानी समाज निश्चित रूप से विघटन से बचेगा और विकास की ओर अग्रसर होगा। क़ुरआने करीम अल्लाह के विधान का सबसे महत्वपूर्ण व अन्तिम स्रोत है। क़ुरआन की शिक्षाएं इंसान को उसकी वास्तविक्ता का बोध कराते हुए उसे उसकी उत्पत्ति के उद्देश्यों से परिचित कराती हैं और उसे सही मार्ग पर चलने का निर्देश देती हैं। अतः अगर इंसान क़ुरआने करीम की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए अल्लाह के आदेशों का पालन करे तो वह उच्च सदाचारी बन जायेगा। सदाचारिक मार्गदर्शन का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत पैग़म्बर (स.) और उनके अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के वह महत्वपूर्ण कथन हैं, जिनको इस्लामिक भाषा में हदीस कहा जाता है। इन कथनों में उच्च कोटि के सदाचारिक उपदेश निहित हैं। उन्होंने इंसान की ज़िन्दगी से संबंधित हर पहलु पर अपने विचार प्रकट किये हैं और जीवन के हर क्षेत्र में इंसानों का मार्गदर्शन किया है। चूँकि वह सब मासूम हैं और उन्हें क़ुरआन पर आथारिटी है इस लिए उनकी हर बात क़ुरआन पर आधारित है और उनके कथनों में कोई संदेह व संशय नही पाया जाता है। चूँकि वह स्वयं उच्च सदाचारिक गुणों के मालिक थे इस लिए उनकी जीवन शैली सदाचार का उच्चतम नमूना है। अतः अगर उनका अनुसरण किया जाये और उनके बताये मार्ग पर चला जाये तो इंसान का जीवन उज्वल बन जायेगा है।
इस किताब के अनुवाद का उद्देश्य अपने जवान भईयों को मासूम (अ.) के कथनों से परिचित कराना है ताकि वह इन कथनों को पढ़ने के बाद इन्हें अपने दैनिक जीवन में अपनाये तथा अपने जीवन को उनके अनुरूप ढाल कर वास्तविक जीवन का आनंद लें और समाज में फैली हुई बुराईयों से स्वयं भी दूर रहे और दूसरों को भी दूर रखने की कोशिश करे।
इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हमने तहक़ीक़ाते दारुल हदीस नामक संस्था द्वारा संकलित इस किताब का अनुवाद कर इसे अपने जवान भाईयों तक पहुँचाने की कोशिश की है
हमें उम्मीद है कि अगर कोई इन स्वर्णिम हदीसों व कथनों को पढ़ने के बाद इन पर क्रियान्वित होगा तो उसका सांसारिक जीवन ख़ुशियों से भर जायेगा और परलोकीय जीवन भी सफलता से परिपूर्ण होगा।
इस किताब में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की जिन हदीसों को चुना गया है वह इस दुनिया व आख़ेरत की सफ़लता के रहस्यों की ओर इशारा करती है और सदाचारिक उपदेशों से परिपूर्ण हैं। इन कथनों में बुद्धिमत्ता पाई जाती और इन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के वह तजुर्बे भी निहित हैं जो उन्होंने अपने उतार चढ़ाव वाले जीवन में किये हैं। इसी लिए उन्होंने समस्त इंसानों को इस सांसारिक जीवन की वास्तविक्ता से परिचित कराते हुए परलोक के लिए कार्य करने की नसीहत की है।
सैय्यद क़मर ग़ाज़ी
पहला भाग
1. اَلدُّنيا أمَدٌ، الآخِرَةُ أبَدٌ: (4)
1. दुनिया ख़त्म होने वाली है और आख़िरत हमेशा बाक़ी रहने वाली है।
2. اَلتَّواضُعُ يَرفَعُ، اَلتَّكبُّرُ يَضَعُ : (11)
2. (दूसरों के) आदर व सत्कार की भावना, (इंसान को) उच्चता प्रदान करती है और घमंड मिट्टी में मिला देता है।
3. اَلظَّفَرُ بِالحَزمِ وَالحَزِمُ بِالتَّجارِبِ: (42)
3. सफलता दूर दर्शिता से और दूर दर्शिता तजुर्बे से प्राप्त होती है।
4. اَلحازِمُ يَقظانُ، اَلغافِلُ وَسنانُ: (100)
4. दूर दर्शी जागा हुआ है और ग़ाफिल नींद के प्रथम चरण में है।
5. اَلعِلمُ يُنجيكَ، الجَهلُ يُرديكَ: (150)
5. ज्ञान आपको बचाता है और ज्ञानता आपका विनाश करती है।
6. اَلعَفوُ أحسَنُ الإحسانِ: (259)
6. क्षमा, सब से अच्छी नेकी व भलाई है।
7. اَلإنسانُ عَبدُ الإحسانِ: (263)
7. इन्सान एहसान का गुलाम है।
8. اَللَّهوُ مِن ثِمارِ الجَهلِ: (267)
8. व्यर्थ कार्य मूर्खता का परिणाम होते हैं।
9. اَلسَّخاءُ يَزرَعُ المَحَبَّةَ:(306)
9. सख़ावत (दान) मोहब्बत के बीज बोती है।
10. اَلهَدِيَّةُ تَجلِبُ المَحَبَّةَ: (316)
10. उपहार मोहब्बत को अपनी तरफ़ खींचता है।
11. اَلمَواعِظُ حَياةُ القُلُوبِ: (321)
11. नसीहत (सद उपदेश) दिलों की ज़िन्दगी है।
12. اَلعُجبُ رَأسُ الحَماقَةِ: (348)
12. घमंड, मूर्खता की जड़ है।
13. أخُوكَ مُواسِيَكَ فِي الشِّدَّةِ: (420)
13. तुम्हारा भाई वह है जो मुशकिल के समय जान व माल से तुम्हारी सहायता करे।
14. اَلعَجَلُ يُوجِبُ العِثارَ: (432)
14. जल्दी, गल्तियों का कारण बनती है।
15. اَلمَرءُ ابنُ ساعَتِهِ: (447)
15. आदमी अपने समय की संतान है।
16. اَلحازِمُ مَن دارى زَمانَهُ: (503)
16. दूर दर्शी वह है जो अपने समय से प्यार करे।
17. اَلمطامِعُ تُذِلُّ الرِّجالَ: (633)
17. लालच मर्दों को ज़लील करा देता है।
18. اَلمَنُّ يُفِسدُ الإحسانَ: (784).
18. एहसान जताना, नेकियों को बर्बाद कर देता है।
19. اَلطَّيشُ يُنَكِّدُ العَيشَ: (789)
19. मूर्खता, जीवन को कठिन बना देती है।
20. اَلاِعتِبارُ يُثمِرُ العِصمَةَ: (879)
20. (विभिन्न घटनाओं से) शिक्षा लेना, (गुनाहों से) सुरक्षित रहने का परिणाम है।
21. اَلنَّدمُ عَلَى الخَطيئَةِ يَمحُوها: (894)
21. (अपनी) ग़लती पर लज्जित होना, गलतियों को ख़त्म कर देता है।
22. اَلغيبَةُ آيَةُ المُنافِقِ: (899)
22. चुग़ली, मुनाफ़िक़ की पहचान है।
23. اَلقَناعَةُ أهنَأُ عَيش: (933)
23. क़िनाअत (कम पर खुश रहना), सब से अच्छी ज़िन्दगी है।
24. اَلعُيُونُ مَصائِدُ الشَّيطانِ: (950)
24. आँखें, शैतान का जाल हैं।
25. اَلمَرءُ مَخبُوءٌ تَحتَ لِسانِهِ: (978)
25. आदमी अपनी ज़बान के पीछे छिपा होता है।
26. اَلمَرءُ لا يَصحَبُهُ إلاَّ العَمَلُ: (999)
26. आदमी का उसके कार्यों के अलावा कोई साथी नहीं होता।
27. اَلحَسُودُ لا يَسُودُ: (1017)
27. ईर्ष्यालू को कोई फायदा नहीं होता।
28. اَلاِستِشارَةُ عَينُ الهِدايَةِ: (1021)
28. मशवरा करना, मार्गदर्शन का स्रोत है।
29. اَلبَشاشَةُ حِبالَةُ المَوَدَّةِ: (1075)
29. प्रफुलता, मोहब्बत का जाल है।
30. إضاعَةُ الفُرصَةِ غُصَّةٌ: (1083)
30. फ़ुर्सत को खो देना, दुख का कारण बनता है।
31. اَلحَليمُ مَنِ احتَمَلَ إخوانَهُ: (1111)
31. संयमी वह है जो अपने भाईयों की (गलतियों को) बर्दाश्त करले।
32. اَلكِبرُ مِصيَدةُ إبليسِ العُظمى: (1132)
32. घमंड, शैतान का सब से बड़ा जाल है।
33. اَلمُحسِنُ مَن صَدَّقَ أقوالَهُ أفعالُهُ: (1138)
33. नेक वह है, जिसके काम, उसकी बात को सत्यापित करें।
34. إظهارُ التَّباؤُسِ يَجلِبُ الفَقرَ: (1141)
34. परेशानियों को ज़ाहिर करना, फ़क़ीरी लाता है।
35. اَلمُعينُ عَلَى الطّاعَةِ خَيرُ الأصحابِ: (1142)
35. सब से अच्छे साथी वह हैं जो (अल्लाह की) आज्ञा पालन में मदद करें।
36. اَلغِنى وَالفَقرُ يَكشِفانِ جَواهِرَ الرِّجالِ وَأوصافَها: (1154)
36. समृद्धता और निर्धनता, दोनों ही मर्दों के जौहरों और विशेषताओं को प्रकट कर देती हैं।
37. اَلسُّكُوتُ عَلَى الأحمَقِ أفضَلُ جَوابِهِ: (1160)
37. जाहिल के सामने चुप हो जाना उसका सब से अच्छा जवाब है।
38. اَلسّامِعُ لِلغيبَةِ كَالمُغتابِ: (1171)
38. चुग़ली सुनने वाला, चुग़ली करने वाले के समान है।
39. اَلجَمالُ الظّاهِرُ حُسنُ الصُّورَةِ، اَلجَمالُ الباطِنُ حُسنُ السَّريرَةِ: (1193)
39. बाह्य ख़ूबसूरती अच्छी शक्ल में और आन्तरिक ख़ूब सूरती अच्छे व्यक्तित्व में निहित है।
40. آلَةُ الرِّیاسَةِ سِعَةُ الصَّدرِ: (1256)
40. सत्ता का यन्त्र, सीने का बड़ा होना है, अर्थात जो सबको अपने सीने से लगाता है, वही सत्ता पाता है।
41. أوَّلُ العِبادَةِ اِنتِظارُ الفَرَج بِالصَّبرِ: (1257)
41. सब्र के साथ आराम मिलने का इन्तेज़ार करना, सब से अच्छी इबादत है।
42. اَلبُخلُ بِالمَوجُودِ سُوءُ الظَّنِّ بِالمَعبودِ: (1258)
42. मौजूद चीज़ के बारे में कंजूसी करना, माबूद पर बद गुमानी करना है।
43. اَلغِشُ مِن أخلاقِ اللِّئامِ: (1299)
43. धोखेबाज़ी, नीच लोगों का व्यवहार है।
44. َالأيّامُ تُوضِحُ السَّرائِرَ الكامِنَةَ: (1306)
44. समय, छुपे हुए भेदों को खोल देता है।
45. اَلعَجَلُ قَبلَ الإمكانِ يُوجِبُ الغُصَّةَ: (1333)
45. (किसी काम को करने के लिए उसके) साधनों (की छान बीन करने) से पहले (उसमें) जल्दी करना, दुख का कारण बनता है।
46. اَلتَّوَدُّدُ إلَى النّاسِ رَأسُ العَقلِ: (1345)
46. लोगों से मोहब्बत करना, अक्लमंदी की जड़ है।
47. اَلمُجاهِدُونَ تُفتَحُ لَهُم أبوابُ السَّماءِ: (1347)
47. मुजाहिदों (धर्मयोधाओं) के लिये आसमान के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं।
48. اَلتَّوبَةُ تُطَهِّرُ القُلُوبَ وَتَغسِلُ الذُّنُوبَ: (1355)
48. तौबा, दिलों को पाक करती है और गुनाहों को धो डालती है।
49. الَغضَبُ يُفسِدُ الألبابَ وَيُبعِدُ مِنَ الصَّوابِ: (1356)
49. ग़ुस्सा, अक्ल को खराब और (इंसान को) सही रास्ते से दूर करता है।
50. إدمانُ الشَّبَعِ يُورِثُ أنواعَ الوَجَعِ: (1363)
50. हर वक्त पेट का भरा रहना, तरह तरह के दुखों को जन्म देता है।
51. اَلفِكرُ فِي الخَيرِ يَدعُو إلَى العَمَلِ بِهِ: (1395)
51. नेकी के बारे में सोचना, (आदमी को) नेकी करने का निमन्त्रण देता है।
52. اَلتَّدبِيرُ قَبلَ العَمَلِ يُؤمِنُ النَّدَمَ: (1417)
52. काम से पहले सोच विचार करना, लज्जा से बचाता है।
53. اَلتَّقريعُ اَشَدُّ مِن مَضَضِ الضَّربِ: (1429)
53. निंदा झेलना, मार पीट के दर्द से भी बुरा है।
54. اَلمُؤمِنُ هَيِّنٌ لَيِّنٌ سَهلٌ مُؤتَمَنٌ: (1454)
54. मोमिन, सरल स्वभावी, विनम्र, आसानी से काम लेने वाला और भरोसेमंद होता है।
55. اَلمُؤمِنُ سِيرَتُهُ القَصدُ وَسُنَّتُهُ الرُّشدُ: (1501)
55. मोमिन की जीवन शैली, समस्त कामों में बीच का रास्ता अपनाना और उसकी सुन्नत विकास करना है।
56. اَلبِشرُ اِسداءُ الصَّنيعَةِ بغیر مَؤُونَةِ: (1503)
56. प्रफुलता, बगैर खर्च की नेकी है।
57. اَلطُّمَأنينَةُ قَبلَ الخُبرَةِ خِلافُ الحَزمِ: (1514)
57. परीक्षा किये बिना, किसी पर भरोसा करना दूर दर्शिता के ख़िलाफ है।
58. اَلإحسانُ اِلَى المُسيءِ يَستَصلِحُ العَدُوَّ: (1517)
58. बुरे के साथ भलाई करना, दुश्मन का सुधार करना है।
59. اَلحَياءُ مِنَ اللهِ يَمحوُ كثيراً مِنَ الخَطايا: (1548)
59. अल्लाह से शर्माना, बहुत से गुनाहों को मिटा देता है।
60. اَلصِّدقُ مُطابَقَةُ المَنطِقِ لِلوَضعِ الإلهِيِّ: (1552)
60. सच बोलना, उस बात के अनुसार है जो अल्लाह ने (प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व में) रखी है।
61. اَلمُرائي ظاهِرُهُ جَميلٌ وَباطِنُهُ عَليلٌ: (1577)
61. पाखंड़ी (दिखावा करने वाले) का बाह्य रूप अच्छा और आन्तरिक रूप बुरा होता है।
62. اَلمَطَلُ وَالمَنُّ مُنَكِّدَ الإحسانِ: (1595)
62. एहसान जताना, नेकी की महत्ता को कम कर देता है।
63. اَلدُّعاءُ لِلسّائِلِ إحدَى الصَّدَقَتَينِ: (1620)
63. ज़रुरतमंद के लिये दुआ करना, दो सदकों में से एक है।
64. اَلإنصافُ يَرفَعُ الخِلافَ وَيُوجِبُ الاِئتِلافَ: (1702)
64. इंसाफ लड़ाई झगड़ों को खत्म कर देता है और मोहब्बत बढ़ाता है।
65. اَلصَّبرُ عَلى طاعَةِ اللهِ أهوَنُ مِنَ الصَّبرِ عَلى عُقُوبَتِهِ: (1731)
65. अल्लाह की आज्ञा पालन पर सब्र करना, उसकी सज़ा पर सब्र करने से आसान है।
66. اَلعالِمُ مَن لا يَشبَعُ مِنَ العِلمِ وَلا يَتَشَبَعُ بِهِ: (1740)
66. ज्ञानी कभी ज्ञान से तृप्त नही होता और न ही अपनी तृप्तता को प्रकट करता।
67. اَلكَمالُ فِي ثَلاث: اَلصَبرُ عَلَى النَّوائِبِ وَالتَوَرُّعُ فِي المَطالِبِ وَإسعافُ الطّالِبِ: (1777)
67. (इन्सान का) कमाल तीन चीज़ों में है, परेशानियों पर सब्र करना, इच्छाओं के होते हुए पारसा बने रहना, और माँगने वाले की आवश्यक्ता को पूरा करना।
68. اَلعارِفُ مَن عَرَفَ نَفسَهُ فَأَعتَقَها وَنَزَّهَها عَن كُلِّ ما يُبَعِّدُها وَيُوبِقُها: (1788)
68. आरिफ (ब्रह्मज्ञानी) वह है जो स्वयं को पहचाने और स्वयं को हर उस चीज़ से बचाये रखे जो उसे सही रास्ते से दूर करे और विनाश की ओर ले जाए।
69. اَلإخوانُ فِي اللهِ تَعالى تَدُومُ مَوَدَّتُهُم لِدَوامِ سَبَبِها: (1795)
69. जो किसी को अल्लाह के लिए भाई बनाता है उसकी मोहब्बत स्थाई हो जाती है, क्यों कि दोस्ती व भाई चारे का कारण अमर है।
70. اَلكُيِّسُ مَن كانَ يَومُهُ خَيراً مِن أمسِهِ وَعَقَلَ الذَّمَّ عَن نَفسِهِ: (1797)
70. चतुर वह है, जिस का आज, बीते हुए कल से अच्छा हो और जो स्वयं को बुराइयों से रोक ले।
71. اَلتَّقَرُّبُ إلَى اللهِ تَعالى بِمَسأَلَتِهِ وَإِلَى النّاسِ بِتَركِها:(1801)
71. अल्लाह का समीपयः उस से कुछ माँगने पर प्राप्त होता है और इंसानों का समीपयः उनसे कुछ न माँगने पर।
72. إخوانُ الصِّدقِ زِينَة ٌفی السراء وعدۃ فی الضراء: (1805)
72. सच्चा भाई खुशी में शोभा होता है और दुख दर्द में (सहायता के लिए हर तरह से) तैयार रहता है।
73. اَلمُرُؤَةُ اجتِنابُ الرَّجُلِ ما يَشينُهُ وَاكتِسابُهُ ما يَزينُهُ: (1815)
73. मर्दानंगी इसमें है कि मर्द उन चीज़ों से दूर रहे जो उसे बुरा बनायें और उन चीज़ों को अपनाये जो उसे शौभनीय बनायें।
74. اَلحاسِدُ يَرى أنَّ زَوالَ النِّعمَةِ عَمَّن يَحسُدُهُ نِعمَةٌ عَلَيهِ: (1832)
74. ईर्ष्यालु जिस से ईर्ष्या करता है, उसकी नेमतों के विनाश को अपने लिये नेमत (धन दौलत) समझता है।
75. اَلعامِلُ بِجَهل كَالسَّائِرِ عَلى غَيرِ طَريق فَلا يَزيدُهُ جِدُّهُ فِي السَّيرِ إلاّ بُعداً عَن حاجَتِهِ: (1847)
75. अज्ञानता के साथ किसी काम को करने वाला, ग़लत रास्ते पर चलने वाले की तरह है, उसकी आगे बढ़ने की कोशिश से गंतव्य से दूर होने के अलावा उसे कोई फायदा नहीं होता।
76. الذُّنُوبُ الدّاءُ وَالدَّواءُ الاِستِغفارُ وَالشَّفاءُ أن لا تَعُودَ: (1890)
76. गुनाह, दर्द है और उसकी दवा इस्तगफार (अल्लाह से क्षमा याचना करना) है और उसका इलाज उसे न दोहराना है।
77. اَلصَّبرُ صَبرانِ: صَبرٌ عَلى ما تَكَرَهُ وَصَبرٌ عَمّا تُحِبُّ: (1892)
77. सब्र दो तरह के हैं: एक वह सब्र जो उन चीज़ों पर करते हों जिन्हें अच्छा नहीं समझते हो और दूसरा वह सब्र जो उन चीज़ों पर करते हों जो तुम्हें अच्छी लगती हो।
78. إكمالُ المَعرُوفِ أحسَنُ مِنِ ابتِدائِهِ: (1899)
78. नेकियों को पूरा करना, उनको शुरु करने से भी अच्छा है।
79. اَلصَّديقُ الصَّدوُقُ مَن نَصَحَكَ فِي عَيبِكَ وَحَفِظَكَ فِي غَيبِكَ وَآثَرَكَ عَلى نَفسِهِ: (1904)
79. तुम्हारा सच्चा दोस्त वह है जो तुम्हें तुम्हारी बुराइयों के बारे में नसीहत करे, तुम्हारे पीछे तुम्हारी रक्षा करे और तुम्हें अपने ऊपर वरीयता दे।
80. اَلحَزمُ النَّظَرُ فِي العَواقِبِ ومُشاوَرَةُ ذَوِي العُقُولِ: (1915)
80. दूर दर्शिता, (किसी काम के) परिणामों पर ग़ौर करना और बुद्धिमान लोगों से परामर्श करने का नाम है।
81. اَلدَّهرُ يَومانِ: يَومٌ لَكَ وَيَومٌ عَلَيكَ فَإذا كانَ لَكَ فَلا تَبطَر وَإذا كانَ عَلَيكَ فَاصطَبِر: (1917)
81. दुनिया दो दिन की है, एक दिन तुम्हारे पक्ष में और दूसरा तुम्हारे विरुद्ध है, जब तुम्हारे पक्ष में हो तो उपद्रव न करो और जब तुम्हारे विरुद्ध हो तो सब्र से काम लो।
82. اَلعِلمُ خَيرٌ مِنَ المالِ، اَلعِلمُ يَحرُسُكَ وَأنتَ تَحرُسُ المالَ: (1923)
82. ज्ञान, माल से अच्छा है, क्यों कि ज्ञान तुम्हारी रक्षा करता है और माल की तुम रक्षा करते हो।
83. اَلتَّثَبُّتُ خَيرٌ مِنَ العَجَلَةِ إلاّ فِي فُرَصِ البِرِّ: (1949)
83. सुअवसर के अतिरिक्त (कार्यों में) देर करना, जल्दी करने से अच्छा है,
84. اَلجُنُودُ عِزُّ الدِّينِ وَحُصُونُ الوُلاةِ: (1953)
84. फौज, दीन के लिए इज़्ज़त और शासकों के लिए किला है।
85. اَلأمرُ بِالمَعروفِ أفضَلُ أعمالِ الخَلقِ: (1977)
85. अम्र बिल मअरुफ (इंसानों को अच्छे काम करने की सलाह देना), लोगों का सब से अच्छा काम है।
86. اَلطُّمَأنِينَةُ اِلى كُلِّ أحَد قَبلَ الاِختِبارِ مِن قُصُورِ العَقلِ: (1980)
86. परीक्षा करने से पहले, हर एक पर भरोसा करना कम बुद्धी की निशानी है।
87. اَلبُكاءُ مِن خَشَيَةِ اللهِ يُنيرُ القَلبَ وَيَعصِمُ مِن مُعاوَدَةِ الذَّنبِ: (2016)
87. अल्लाह से डर कर रोना, दिल को प्रकाशित करता है और गुनाह की पुनरावर्त्ति से रोकता है।
88. اَلحِدَّةُ ضَربٌ مِنَ الجُنُونِ لأَنَّ صاحِبَها يَندَمُ فَإن لَمِ يَندَم فَجُنونُهُ مُستَحكَمٌ: (2040)
88. क्रूरता, एक तरह का पागलपन है, क्योंकि ऐसा करने वाला लज्जित होता है और अगर वह लज्जित न हो तो उसका पागल पन पक्का है।
89. اَلأيّامُ صَحائِفُ آجالِكُم، فَخَلِّدُوها أحسَنَ أعمالِكُم: (2049)
89. हर दिन तुम्हारी उम्र का रजिस्टर है अतः उन्हें अपने अच्छे कामों से अमर बनाओ।
90. اَلتَّيَقُّظُ فِي الدِّينِ نِعمَةٌ عَلى مَن رُزِقَهُ: (2058)
90. धार्मिक जागरूकता, एक ऐसी नेमत है जो नसीब से मिलती है।
91. اَلمُتَعَبِّدُ بِغَيِر عِلم كَحِمار الطّاحُونَةِ، يَدُورُ وَلا يَبرَحُ مِن مَكانِهِ: (2070)
91. ज्ञान के बिना इबादत करने वाला, उस चक्की चलाने वाले गधे के समान है जो घूमता रहता है लेकिन अपनी जगह से बाहर नहीं निकलता।
92. اَلكَريمُ مَن صانَ عِرضَهُ بِمالِهِ وَاللَّئيمُ مَن صانَ مالَهُ بِعِرضِهِ: (2159)
92. करीम (महान) वह है जो अपनी इज़्ज़त को माल से बचाता है और नीच वह है जो इज़्ज़त खो कर माल बचाता है।
93. اَلصَّلاةُ حِصنُ مِن سَطَواتِ الشَّيطانِ: (2212)
93. नमाज़ शैतान के हमलों (से बचने के लिए) किला है।
दूसरा भाग
94. اِنسَ رِفدَكَ اُذكُر وَعدَك: (2249)
94. दी हुई चीज़ों को भूल जाओं और अपने वादों को याद करो।
95. أعِن أخاكَ عَلى هِدايَتِهِ: (2281)
95. (नेकी के) मार्गदर्शन में अपने भाई की मदद करो।
96. أحسِن إلى مَن أساءَ إِلَيكَ وَاعفُ عَمَّن جَنى عَلَيكَ: (2287)
96. जिसने तुम्हारे साथ बुराई की उसके साथ भलाई करो और जिसने तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार किया उसे क्षमा कर दो।
97. أصلِحِ المُسيءَ بِحُسنِ فِعالِكَ وَدُلَّ عَلَى الخَيرِ بِجَميلِ مَقالِكَ: (2304)
97. बुरे इन्सान को अपने अच्छे व्यवहार से सुधारो और अपनी अच्छी बातों के द्वारा उसका नेकी की ओर मार्गदर्शन करो।
98. اِحفَظ أمرَكَ وَلا تُنكِح خاطِباً سِرَّكَ: (2305)
98. अपने कार्यों को छुपाओ और अपने राज़ों को हर चाहने वाले की दुल्हन न बनाओ। अर्थात हर किसी से अपने रहस्यों का वर्णन न करो।
99. اِرضَ لِلنّاسِ بِما تَرضاهُ لِنَفسِكَ تَكُن مُسلِماً: (2329)
99. जो अपने लिये पसन्द करते हो, वही दूसरों के लिये भी पसंद करो, ताकि मुसलमान रहो।
100. اِرضَ مِنَ الرِّزقِ بِما قُسِمَ لَكَ تَعِش غَنِيّاً: (2332)
100. जो धन तुम्हारे हिस्से में आया है उस पर खुश रहो (और) मालदारी में जीवन व्यतीत करो।
101. أكرِم ضَيفَكَ وَإن كانَ حَقيراً وَقُم عَن مَجلِسِكَ لاَِبِيكَ وَمُعَلِّمِكَ وَإن كُنتَ أميراً: (2341)
101. अपने मेहमान की इज़्ज़त करो चाहे वह नीच ही हो और अपने बाप व उस्ताद के आदर में अपनी जगह से खड़े हो जाओ चाहे तुम शासक ही क्यों न हो।
102. اِغتَنِم مَنِ استَقرَضَكَ في حالِ غِناكَ لِيَجعَلَ قَضاءَهُ في يَومِ عُسرَتِكَ: (2370)
102. (अगर) कोई तुम्हारे मालदार होने की स्थिति में तुम से कर्ज़ माँगे तो उसे अच्छा समझो, वह तुम्हारी आवश्यक्ता के समय तुम्हें उसका बदला देगा।
103. أكثِرِ النَّظرَ إلى مَن فُضِّلتَ عَلَيهِ فَإنَّ ذلِكَ مِن أبوابِ الشُّكرِ: (2375)
103. तुम्हें जिन लोगों पर श्रेष्ठता दी गई है उनकी ओर अधिक देखो, (अर्थात उनका अधिक ध्यान रखो) क्योंकि यह, शुक्र करने का एक तरीका है।
104. أشعِر قَلبَكَ الرَّحمَةَ لِجَميعِ النّاسِ وَالإحسانِ إلَيهِمَ وَلا تُنِلهُم حَيفاً وَلا تَكُن عَلَيهِم سَيفاً: (2392)
104. समस्त लोगों के साथ मोहब्बत और भलाई करने को अपने दिल का नारा बना लो और न उन्हें नुक्सान पहुंचाओ और न ही उन पर तलवार खींचो।
105. اِستَفرغ جُهدَكَ لِمَعادِكَ تُصلِح مَثواكَ وَلا تَبع آخِرَتَكَ بِدُنياكَ: (2411)
105. अपनी पूरी मेहनत व कोशिश को आख़ेरत के लिये खर्च करो ताकि तुम्हारा ठिकाना अच्छा बने और अपनी आख़ेरत को दुनिया के बदले न बेचो।
106. اِجعَل لِكُلِّ إنسان مِن خَدَمِكَ عَمَلاً تَأخُذهُ بِهِ فَإنَّ ذلِكَ أحرى أن لا يَتَواكَلُوا فِي خِدمَتِكَ: (2432)
106. अपने तमाम मातहतों को काम पर लगाओ और उनसे, उनके कार्यों के बारे में पूछ ताछ करो, (ताकि वह अपनी ज़िम्मेदारियों का जवाब दें) यह काम (इस लिए) अच्छा है कि वह अपनी ज़िम्मेदारी को एक दूसरे के कांधे पर न डाल सकें।
107. اُبذل لِصَديقِكَ كُلَّ المَوَدَّةِ وَلا تَبذُل لَهُ كُلَّ الطُّمَأنينَةِ وأَعطِهِ مِن نَفسِكَ كُلَّ المُواساةِ وَلا تَقُصَّ اِلَيهِ بِكُلِّ أسرارِكَ: (2463)
107. अपनी पूरी मोहब्बत को अपने दोस्त पर निछावर कर दो, लेकिन उस पर आँख बन्द कर के भरोसा न करो, दिल से उसके साथ रहो लेकिन अपने सारे राज़ उसे न बताओ।
108. اِصبِر عَلى مَرارَةِ الحَقِّ وَإيّاكَ أن تَنخَدِعَ لِحَلاوَةِ الباطِلِ: (2472)
108. हक़ (सच्चाई) की कडवाहट पर सब्र करो और खबरदार बातिल (झूठ) की मिठास से धोखा न खाना।
109. أطِع مَن فَوقَكَ يُطِعكَ مَن دُونَكَ: (2475)
109. अपने बड़ों का कहना मानों ताकि तुम्हारे छोटे तुम्हारा कहना मानें।
110. اِكتَسِبُوا العِلمَ يَكسِبكُمُ الحَياةَ: (2486)
110. ज्ञान प्राप्त करो ताकि वह तुम्हें ज़िन्दगी दें।
111. اِلزَمُوا الجَماعَةَ وَاجتَنِبُوا الفُرقَةَ: (2488)
111. सब के साथ मिल कर रहो और अलग रहने से बचो।
112. اِنتَهِزُوا فُصَ الخَيرِ فَإنَّها تَمُرُّ مَرَّ السَّحابِ: (2501)
112. सुअवसर से फ़ायदा उठाओ क्यों कि वह बादलों की तरह गुज़र जाती है।
113. اِتَّقُوا مَعاصِيَ الخَلَواتِ فَإنَّ الشّاهِدَ هُوَ الحاكِمُ: (2524)
113. तन्हाई के गुनाहों से बचो, क्योंकि उन्हें देखने वाला हाकिम है।
114. اُطلُبُوا العِلمَ تُعرَفُوا بِهِ وَاعمَلُوا بِه تَكُونُوا مِن أهلِهِ: (2531)
114. ज्ञान प्राप्त करो ताकि उसके द्वारा पहचाने जाओ और उस पर क्रियान्वित रहो ताकि उसके योग्य बने रहो।
115. اِضرِبُوا بَعضَ الرَّأيِ بِبَعض يَتَوَلَّد مِنهُ الصَّوابُ: (2567)
115. अपनी राय को एक दूसरे के सामने रखो ताकि उस से एक अच्छा नतीजा निकले।
116. أجمِلُوا فِي الخِطابِ تَسمَعُوا جَميلَ الجَوابِ: (2568)
116. अपनी बात चीत को सुन्दर बनाओ ताकि अच्छा जवाब सुनो।
117. اِتَّهِمُوا عُقُولَكُم فَإنَّهُ مِنَ الثِّقَةِ بِها يَكُونُ الخَطاءُ: (2570)
117. अपनी बुद्धी को ग़लती करने वाली मान कर चलो, क्योंकि उस पर अधिक भरोसा करना ग़लती हो सकती है।
118. اِحذَر كُلَّ عَمَل يَرضاهُ عامِلُهُ لِنَفسِهِ وَيَكرَهُهُ لِعامَّةِ المُسلِمينَ: (2596)
118. हर उस काम से बचो जिस का करने वाला उसे अपने लिये तो पसंद करता हो लेकिन आम मुसलमानों के लिये पसंद न करता हो।
119. اِحذَر كُلَّ قَول وَفِعل يُؤدِّي إلى فَسادِ الآخِرَةِ وَالدِّينِ: (2597)
119. हर उस बात व काम से बचो, जो आख़ेरत व दीन को बर्बादी की ओर ले जायें।
120. اِحذَر مُجالَسَةَ قَرينِ السُّوءِ فَإنَّهُ يُهلِكُ مُقارِنَهُ وَيُردي مُصاحِبَهُ: (2599)
120. बुरे दोस्त के पास बैठने से बचो, क्योंकि वह अपने दोस्त को बर्बाद और अपने साथी को ज़लील करता है।
121. اِحذَرُوا ضِياعَ الأعمارِ فِيما لا يَبقى لَكُم فَفائِتُها لايَعُودُ: (2618)
121. जो चीज़ें तुम्हारे पास बाक़ी रहने वाली नहीं हैं, उनमें अपनी उम्र बर्बाद करने से बचो, क्योंकि जो उम्र बीत जाती है, वह वापस नहीं आती।
122. إيّاكَ وَالهَذَرَ فَمَن كَثُرَ كَلامُهُ كَثُرَت آثامُهُ: (2637)
122. अधिक बोलने से बचो क्योंकि अधिक बोलने वाले के गुनाह भी अधिक होते हैं।
123. إيّاكَ وَالنَّميمَةَ فَإنَّها تَزرَعُ الضَّغينَةَ وَتُبَعِّدُ عَنِ اللهِ وَالنّاسِ: (2663)
123. चुग़ल खोरी से बचो, क्योंकि यह दुश्मनी का बीज बोती है और अल्लाह व इन्सानों से दूर करती है।
124. إيّاكَ وَالمَنَّ بِالمَعرِّوفِ فَإنَّ الاِمتِنانَ يُكَدِّرُ الإحسانَ: (2673)
124. भलाई करने के बाद उसका एहसान जताने से बचो, क्योंकि एहसान जताना नेकी को बर्बाद कर देता है।
125. إيّاكَ وَالنِّفاقَ فَإنَّ ذَا الوَجهَينِ لا يَكُونُ وَجيهاً عِندَ اللهِ: (2694)
125. निफ़ाक से बचो, क्योंकि अल्लाह (की नज़र में) मुनाफिक की कोई इज़्ज़त नहीं है।
126. إيّاكَ أن تَجعَلَ مَركَبَكَ لِسانَكَ في غِيبَةِ إخوانِكَ أو تَقُولَ ما يَصيرُ عَلَيكَ حُجَّةً وَفِي الإساءَةِ إِلَيكَ عِلَّةً: (2724)
126. अपनी ज़बान को अपने भाई की चुग़ली की सवारी बनाने से बचओ और ऐसी बात कहने से भी दूर रहो जो तुम्हारे लिये दलील और तुम्हारे साथ बुराई करने का कारण व बहाना बने।
127. إيّاكُم وَالبِطنَةَ فَإنَّها مَقساةٌ لِلقَلبِ مَكسَلَةٌ عَنِ الصَّلاةِ وَمَفسَدَةٌ لِلجَسَدِ: (2742)
127. पेट भर कर भोजन करने से बचो, क्योंकि इस से दिल सख़्त होता है, नमाज़ में सुस्ती पैदा होती है और यह शरीर के लिये भी हानिकारक है।
128. إيّاكُمِ وَالفُرقَةَ فَإنَّ الشّاذَّ عَن أهلِ الحَقِّ لِلشَّيطانِ كَما أنَّ الشّاذَّ مِنَ الغَنَمِ لِلذِّئبِ: (2747)
128. अलग होने से बचो, क्योंकि हक़ से अलग होने वाला शैतान का (शिकार बन जाता है) जिस तरह रेवड़ से अलग होने वाली भेड़, भेड़िये का शिकार बन जाती है।
129. ألا مُستَيقِظٌ مِن غَفلَتِهِ قَبلَ نَفادِ مُدَّتِهِ: (2752)
129. क्या कोई नहीं है, जो उम्र पूरी होने से पहले ग़फ़लत से जाग जाए।
130. ألا وَإنَّ مِنَ البَلاءِ الفاقَةَ وَأشَدُّ مِنَ الفاقَةِ مَرَضُ البَدَنِ وَأشَدُّ مِن مَرَضِ البَدَنِ مَرَضُ القَلبِ: (2775)
130. जान लो कि भुखमरी एक विपत्ति है और शारीरिक बीमारी भुखमरी से भयंकर है और दिल की बीमारी (अर्थात कुफ़्र, निफ़ाक़ व शिर्क) शारीरिक बीमारी से भी भंयकर है।
131. ألا لايَستَحيِيَنَّ مَن لا يَعلَمُ أن يَتَعَلَّمَ فَإنَّ قِيمَةَ كُلِّ امرِئ مَا يَعلَمُ: (2787)
131. समझ लो कि तुम जिस चीज़ के बारे में नहीं जानते हो उसे सीखने में शर्म न करो, क्योंकि हर इन्सान का महत्व उस चीज़ में है जिसे वह जानता है।
132. ألا لا يَستَقبِحَنَّ مَن سُئِلَ عَمَا لا يَعلَمُ أن يَقُولَ لا أعلَمُ: (2788)
132. जान लो कि जब किसी से कोई सवाल पूछा जाये और वह उसका जवाब न जानता हो तो यह कहने में कोई बुराई नही है कि मैं नहीं जानता हूँ।
133. أفضَلُ العِبادَةِ غَلَبَةُ العادَةِ: (2873)
133. सब से अच्छी इबादत आदतों पर क़ाबू पाना है।
134. أفضَلُ الإِيمانِ الأمانَةُ: (2905)
134. सब से अच्छा ईमान आमानतदारी है।
135. اَسوَءُ النّاسِ عَيشاً الحَسُودُ: (2931)
135. इंसानों में सब से बुरा जीवन ईर्ष्यालु का होता है।
136. أَشَدُّ القُلُوبِ غِلاًّ قَلبُ الحَقُودِ: (2932)
136. दिलों में सब से बुरा दिल, कीनः (ईर्ष्या) रखने वाले का होता है।
137. أَفضَلُ العَمَلِ ما اُرِيدَ بِهِ وَجهُ اللهِ: (2958)
137. सब से अच्छा काम वह है जिस के द्वारा अल्लाह की ख़ुशी को प्राप्त करने की इच्छा की जाये।
138. أَفضَلُ المَعرُوفِ إغاثَةُ المَلهُوفِ: (2959)
138. सब से श्रेष्ठ भलाई, पीड़ित की फ़रियाद सुनना है।
139. أَكبَرُ الحُمقِ الإغراقُ فِي المَدحِ وَالذَّمِ: (2985)
139. सब से बड़ी मूर्खता, (किसी की) बुराई या प्रशंसा में अधिक्ता से काम लेना है।
140. أَفضَلُ النّاسِ أنفَعُهُمِ لِلنّاسِ: (2989)
140. सब से अच्छा इन्सान वह है, जिस से इन्सानों को सबसे अधिक फ़ायदा पहुंचता है।
141. أَقبَحُ الغَدرِ إذاغَةُ السِّرِّ: (3005)
141. सब से बड़ी गद्दारी (किसी के) रहस्यों को खोलना है।
142. أَفضَلُ الوَرَعِ حُسنُ الظَّنِّ: (3027)
142. सब से अच्छी पारसाई, खुश गुमान रहना है।
143. أَسرَعُ شَيء عُقُوبَةً اليَمينُ الفاجِرَةُ: (3041)
143. जिस चीज़ की सज़ा बहुत जल्दी मिलती है, वह झूठी क़सम है।
144. أَكثَرُ النّاسِ أمَلأ أقَلُّهُم لِلمَوتِ ذِكراً: (3053)
144. सब से अधिक इच्छायें उन लोगों की होती है, जो मौत को बहुत कम याद करते हैं।
145. أَبصَرُ النّاسِ مَن أبصَرَ عُيُوبَهُ وَأقلَعَ عَن ذُنُوبِهِ: (3061)
145. सब से अधिक दृष्टिवान इन्सान वह है जो अपनी बुराइयों को देखे और गुनाहों से रुक जाये।
146. أَقوَى النّاسِ مَن غَلَبَ هَواهُ: (3074)
146. सब से अधिक शक्तिशाली इन्सान वह है जो अपनी हवस पर काबू पा ले।
147. أَصلُ المُرُوءَةِ الحَياءُ وَثَمَرَتُهَا العِفَّةُ: (3101)
147. मर्दांगी की जड़ शर्म है, और उसका फल पारसाई है।
148. أَفضَلُ النّاسِ مَن كَظَمَ غَيظَهُ وَحَلُمَ عَن قُدرَة: (3104)
148. सब से अच्छा इन्सान वह है जो अपने गुस्से को पी जाए और ताक़त के होते हुए संयम से काम ले।
149. أَغبَطُ النّاسِ المُسارِعُ إلَى الخَيراتِ: (3122)
149. सब से खुश हाल इन्सान वह है जो नेकियों की तरफ़ दौड़े।
150. أَعظَمُ الذُّنُوبِ عِندَ اللهِ ذَنبٌ اَصَرَّ عَلَيهِ عامِلُهُ: (3131)
150. अल्लाह के नज़दीक सब से बड़ा गुनाह वह है, जिसे गुनहगार बार बार करे।
151. أَدَلُّ شَيء عَلى غَزارَةِ العَقلِ حُسنُ التَدبيرِ: (3151)
151. बुद्धिमान होने की सब से बड़ी दलील, अच्छी तदबीर व उपाय है।
152. أَفضَلُ النّاسِ رَأياً مَن لا يَستَغنِي عَن رَأي مُشير: (3152)
152. सब से अच्छी राय उस इन्सान की है जो स्वयं को मशवरा देने वाले की राय से मुक्त न समझता हो।
153. أَفضَلُ الجُودِ اِيصالُ الحُقُوقِ إلى اَهلِها: (3153)
153. सब से बड़ा दान व सखावत, हकदारों तक उनके हक पहुंचाना है।
154. أَكبَرُ الكُلفَةِ تَعَنُيكَ فِيما لا يَعنيكَ: (3166)
154. सब से बड़ा दुख व तकलीफ़, उस चीज़ में मेहनत करना है जिस से तुम्हें कोई फ़ायदा न हो।
155. أَكبَرُ العَيبِ أن تَعيبَ غَيرَكَ بِما هُوَ فيكَ: (3167)
155. सब से बड़ी बुराई, दूसरों की उस बुराई को पकड़ना है जो स्वयं में भी पाई जाती है।
156. أَخسَرُ النّاسِ مَن قَدَرَ عَلى اَن يَقُولَ الحَقَّ وَلَم يَقُل: (3178)
156. सब से अधिक नुक़्सान में वह लोग हैं जो हक़ बात कहने की ताक़त रखते हुए, हक़ बात न कहें।
157. أَبخَلُ النّاسِ مَن بَخِلَ بِالسَّلامِ: (3200)
157. सब से अधिक कंजूस वह लोग हैं जो सलाम करने में कंजूसी करें।
158. أَشَدُّ مِنَ المَوتِ طَلَبُ الحاجَةِ مِن غَيرِ أَهلِها: (3213)
158. नीच से कोई चीज़ माँगना, मौत से भी अधिक कठिन है।
159. أَعقَلُ النّاسِ مَن كانَ بِعَيبِهِ بَصيراً وَعَن عَيبِ غَيرِهِ ضَريراً: (3233)
159. सब से अधिक बुद्धिमान इन्सान वह है जो अपनी बुराइयों को देखे और दूसरों की बुराइयों को न देखे।
160. أَفضَلُ الأدَبِ أن يَقِفُ الإنسانُ عِندَ حَدِّهِ وَلا يَتَعدَّى قَدرَهُ: (3241)
160. सब से अच्छा सदाचार यह है कि इन्सान अपनी हद में रहे और उस से बाहर न निकले।
161. إِنَّ أهنَأَ النّاسِ عَيشاً مَن كانَ بِما قَسَمَ اللهُ لَهُ راضِياً: (3397)
161. सब से अच्छा जीवन उसका है जो उस पर प्रसन्न रहे, जो उसे अल्लाह ने दिया है।
162. اِنَّ مِنَ العِبادَةِ لِينَ الكَلامِ وَإفشاءَ السَّلامِ: (3421)
162. नर्मी के साथ बात करना और ऊँची आवाज़ में सलाम करना इबादतों में से है।
163. إِنَّ هذِهِ القُلُوبَ اَوعِيَةٌ فَخَيرُها اَوعاها لِلخَيرِ: (3449)
163. यह दिल बर्तन (के समान) हैं और इन में सब से अच्छा बर्तन वह है जिस में नेकियां अधिक आयें।
164. إِنَّ بِشرَ المُؤمِنِ فِي وَجهِهِ، وَقُوَّتَهُ فِي دينِهِ وَحُزنَهُ فِي قَلبِهِ: (3454)
164. मोमिन की खुशी उसके चेहरे पर, उसकी ताक़त उसके दीन में और उसका ग़म उसके दिल में होता है।
165. إنَّ هذِهِ القُلُوبَ تَمِلُّ کما تمل الأبدانُ فَابتَغُوا لَها طَرائِفَ الحِكَمِ: (3549)
165. दिल, बदन की तरह थक जाते हैं, उन्हें खुश करने के लिये नया ज्ञान व बुद्धिमत्ता तलाश करो।
166. إنَّ أفضَلَ الخَيرِ صَدَقَةُ السِّرِّ وَبِرُّ الوالِدَينِ وَصِلَةُ الرَّحِمِ: (3550)
166. सब से अच्छी नेकी छिपा कर सदका देना, माँ बाप के साथ भलाई करना और सिला –ए- रहम (रिश्तेदारों के साथ मेल जोल से रहना) करना है।
167. إنَّ النّاسَ إلى صالِحِ الأدَبِ أحوَجُ مِنهُم إلَى الفِضَّةِ وَالذَّهَبِ: (3590)
167. लोगों को सदाचार की ज़रुरत, सोने चांदी से अधिक है।
168. إنَّ حَوائِجَ النّاسِ إلَيكُم نِعمَةً مِنَ اللهِ عَلَيكُم فَاغتَنِمُوها وَلا تَمَلُّوها فَتَتَحَوَّلَ نَقَماً: (3599)
168. तुम से लोगों की ज़रुरतों का जुडा होना, तुम्हारे लिए अल्लाह की नेमत है, उसे अच्छा समझो और उस से दुखी न हो वर्ना वह निक़मत में बदल जायेगी। (निक़मत शब्द हर प्रकार की बुराई को सम्मिलित है)
169. اِن كُنتُم تُحِبُّونَ اللهَ فَأخِرِجُوا مِن قُلُوبِكُم حُبَّ الدُّنيا: (3747)
169. अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत करते हो तो अपने दिल से दुनिया की मोहब्बत निकाल दो।
170. إن تَنَزَّهُوا عَنِ المَعاصِي يُحبِبكُمُ اللهُ: (3759)
170. अगर तुम गुनाहों से पाक हो जाओ तो अल्लाह तुम से मोहब्बत करेगा।
171. إنَّكَ إن أطَعتَ اللهَ نَجّاكَ وأصلَحَ مَثواكَ: (3806)
171. अगर तुम अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हें निजात (मुक्ति) देगा और तुम्हारे ठिकाने को अच्छा बना देगा।
172. إنَّكَ لَن يُغنِي عَنَكَ بَعدَ المَوتِ إلاّ صالِحُ عَمَل قَدَّمتَهُ فَتَزَوَّد مِن صالِحِ العَمَلِ: (3815)
172. मरने के बाद, तुम्हें तुम्हारे उन कार्यों के अलावा कोई चीज़ फायदा नहीं पहुंचायेगी जो तुम ने आगे भेज दिये हैं अतः नेक कामों को तुम अपना तोशा बना लो। (यात्रा के दौरान काम आने वाली हर चीज़ को तोशा कहते हैं, यहाँ पर इस बात की ओर इशारा किया गया है कि परेलोक की यात्रा के लिए अच्छे कार्यों को इकठ्ठा करो ताकि वह इस यात्रा में तुम्हारे काम आयें।)
173. اِنَّمَا العاقِلُ مَن وَعَظَتَهُ التَّجارِبُ: (3863)
173. बुद्धिमान वह है जो अपने तजुर्बों से शिक्षा ले।
174. إنَّما سُمِّيَ العَدُوُّ عَدُوّاً لاَِنَّهُ يَعدُو عَلَيكَ فَمَن داهَنَكَ فِي مَعايِبِكَ فَهُوَ العَدُوُّ العادي عَلَيَكَ: (3876)
174. दुश्मन को दुश्मन इस लिये कहा जाता है, क्योंकि वह तुम्हारे ऊपर अत्याचार करता है, अतः जो तुम्हें तुम्हारी बुराइयाँ बाताने से बचे, वह तुम्हारा दुश्मन है क्योंकि उसने तुम पर अत्याचार किया है।
175. إنَّما زُهدَ النّاسِ في طَلَبِ العِلمِ كَثرَةُ ما يَرَونَ مِن قِلَّةِ مَن عَمِلَ بِما عَلِمَ: (3895)
175. जिस चीज़ ने इंसानों को ज्ञान प्राप्ति से रोका है, वह यह है कि बहुतसे देखते हैं कि अपने अपने इल्म पर अमल करने वाले अर्थात अपने ज्ञान पर क्रियान्वित होने वाले कम हैं।
176. إنَّما قَلبُ الحَدَثِ كَالأرضِ الخالِيَةِ مَهما أُلقِيَ فيها مِن كُلِّ شَيء قَبِلَتهُ: (3901)
176. नौजवान का दिल उस ज़मीन के समान है जिस में अभी खेती न की गई हो अतः उस में जो कुछ डाला जायेगा वह उसे ही स्वीकार कर लेगा।
177. إذا صَنَعتَ مَعرُوفاً فَاستُرهُ: (3981)
177. जब कोई नेकी करो तो उसे छिपा लो।
178. إذا صُنِعَ اِلَيكَ مَعرُوفٌ فَاذكُر: (4000)
178. जब तुम से कोई भलाई करे तो उसे याद रखो।
179. إذا تَمَّ العَقلُ نَقَصَ الكَلامُ: (4011)
179. जब बुद्धी पूर्ण हो जाती है तो बातें कम हो जाती हैं।
180. إذا أَضَرَّتِ النَّوافِلُ بِالفَرائِضِ فَارفُضُوها: (4015)
180. जब मुस्तहब चीज़ें, वाजिब चीज़ों को नुक्सान पहुंचाने लगें तो उन्हें छोड़ दो।
181. إذا ظَهَرَتِ الجِناياتُ ارتَفَعَتِ البَرَكاتُ: (4030)
181. जब बुरे काम व गुनाह खुले आम होने लगते हैं तो बरकत ख़त्म हो जाती है।
182. إذا رَأيتَ عالِماً فَكُن لَهُ خادِماً: (4044)
182. जब आलिम को देखो तो उसकी सेवा करो।
183. إذا قامَ أحَدُكُم إِلَى الصَّلاةِ فَليُصَلِّ صَلاةَ مُوَدِّع: (4050)
183. जब तुम में से कोई नमाज़ के लिये खड़ा हो तो इस तरह नमाज़ पढ़े जैसे वह उसकी आखरी नमाज़ है।
184. إذا أبصَرَتِ العَينُ الشَّهوَة عَمِيَ القَلبُ عَنِ العاقِبَةِ: (4063)
184. जब आँख हवस की तरफ़ देखती है तो दिल उसके नतीजे को देखने से अंधा हो जाता हैं।
185. إذا رَاَيتَ مَظُلوماً فَاَعِنهُ عَلَى الظّالِمِ: (4068)
185. जब किसी मज़लूम को देखो तो ज़ालिम के मुक़ाबले में उसकी मदद करो।
186. اِذا رَغِبتَ فِي المَكارِمِ فَاجتَنِبِ المَحارِمَ: (4069)
186. अगर बुज़ुर्गी व सम्मान चाहतें हो तो हराम काम से दूर हो जाओ।
187. إذا أكرَمَ اللهُ عَبداً شَغَلَهُ بِمَحَبَّتِهِ: (4080)
187. जब अल्लाह किसी बन्दे का आदर करता है तो उसे अपनी मोहब्बत में व्यस्त कर देता है।
188. إذا عَلَوتَ فَلا تُفَكِّر فِيمَن دُونَكَ مِنَ الجُهّالِ ولكِنِ اقتَدِ بِمَن فَوقَكَ مِنَ العُلَماءِ: (4092)
188. जब किसी उच्चता पर पहुंचो तो अपने से नीचे के जाहिलों के बारे में न सोचो, बल्कि अपने से ऊपर वाले आलिमों का अनुसरण करो।
189. إذا رَأيتَ في غَيرِكَ خُلقاً ذَمياً فَتَجَنَّب مِن نَفسِكَ اَمثالَهُ: (4098)
189. जब तुम किसी में कोई अख़लाकी बुराई देखो तो स्वयं को उस जैसी बुराईयों से दूर रखो।
190. إذا أرادَ اللهُ بِعَبد خَيراً ألهَمَهُ القَناعَةُ وأصَلَحَ لَه زَوجَهُ: (4115)
190. जब अल्लाह किसी बन्दे की भलाई चाहता है तो उसके दिल में क़िनाअत (कम को अधिक समझना) डाल देता है और उसकी बीवी को नेक बना देता है।
191. إذا أرادَ اللهُ سُبحانَهُ صَلاحَ عَبد ألهَمَهُ قِلَّةَ الكَلامِ وَقِلَّةَ الطَّعامِ وَقِلَّةَ المَنامِ: (4117)
191. जब अल्लाह किसी बन्दे का सुधार व भलाई चाहता है तो उसके दिल में कम बोलने, कम खाने, कम सोने की बात डाल देता है।
192. اِذا هَمَمتَ بِآمر فَاجتَنِب ذَميمَ العَواقِبِ فِيهِ: (4119)
192. जब किसी काम का इरादा करो तो उसके बुरे नतीजे से बचो।
193. إذا سَأَلتَ فَاسأل تَفَقُّهاً وَلا تَسأَل تَعَنُّتاً: (4147)
193. जब कोई सवाल पूछो तो समझने व जानने के लिये पूछो, दूसरों का इम्तेहान लेने के लिये नहीं।
194. إذا كَتَبتَ كِتاباً فَأَعِد فيهِ النَّظَرَ قَبلَ خَتمِهِ فَإنَّما تَختِمُ عَلى عَقِلِكَ: (4167)
194. जब तुम कोई चीज़ लिखो तो उस पर मोहर लगाने से पहले उसे एक बार फिर पढ़ कर देख लो क्योंकि तुम अपनी बुद्धी पर मोहर लगा रहे हो।
195. إذا رَغِبتَ في صَلاحِ نَفسِكَ فَعَلَيكَ بِالاِقتِصادِ وَالقُنُوعِ وَالتَّقَلُّلِ: (4172)
195. अगर स्वयं को सुधारना चाहते हो तो मयानारवी (न कम न अधिक) से खर्च करो, जो मिले उस पर खुश रहो और इच्छाओं को कम कर दो।
तीसरा भाग
196. بِحُسنِ العِشرَةِ تَدوُمُ المَوَدَّةُ: (4200)
196. अच्छे व्यवहार से मोहब्ब्त मज़बूत होती है।
197. بِالعَدلِ تَتَضاعَفُ البَرَكاتُ: (4211)
197. इन्साफ से बरकतें दोगुनी हो जाती हैं।
198. بِالدُّعاءِ يُستَدفَعُ البَلاءُ: (4240)
198. दुआ से, विपत्तियाँ दूर होती हैं।
199. بِحُسنِ الاَخلاقِ يَطيبُ العَيشُ: (4263)
199. अच्छे अखलाक से जीवन आनंन्दायक बनता है।
200. بِصِحَّةِ المِزاجِ تُوجَدُ لَذَّةُ الطَّعمِ: (4289)
200. स्वास्थ सही होता है जो खाने के मज़े का एहसास होता है।
201. بِحُسنِ العَمَلِ تُجنى ثَمَرَةُ العِلمِ لا بِحُسنِ القَولِ: (4296)
201. इल्म का फल, अच्छे अमल से मिलता है, अच्छी बातों से नहीं।
202. بِالتَّوبَةِ تُمَحَّصُ السَّيِّئاتُ: (4324)
202. तौबा से गुनाह धुल जाते हैं।
203. بِالتَّعَبِ الشَّديدِ تُدرَكُ الدَّرَجاتُ الرَّفيعَةُ وَالرّاحَةُ الدّائِمَةُ: (4345)
203. कठिन परिश्रम के द्वारा ऊँचे पद और सदैव का आराम प्राप्त करो।
204. بِادرِ الفُرصَةَ قَبلَ اَن تَكُونَ غُصَّةَ: (4362)
204. अवसर से फ़ायदा उठाओ, इससे पहले कि उसके हाथ से निकल जाने के बाद अफ़सोस करो।
205. بِادِرُوا قَبلَ قُدُومِ الغائِبِ المُنتَظَرِ: (4368)
205. जल्दी करो, उस ग़ायब के आने से पहले जिसका इन्तेज़ार हो रहा है।
206. بادِر شَبابَكَ قَبلَ هَرَمِكَ وَصِحَّتَكَ قَبلَ سُقمِكَ: (4381)
206. अपनी जवानी से, बुढ़ापे से पहले और अपनी सेहत से, बीमारी से पहले फायदा उठाओ।
207. بِرُّ الرَّجُلِ ذَوَيَ رَحِمِهِ صَدَقَةٌ: (4427)
207. मर्द का, अपने रिशतेदारों के साथ भलाई करना, (एक प्रकार का) सदका हैं।
208. بُكاءُ العَبدِ مِن خَشيَةِ اللهِ يُمَحِّصُ ذُنُوبَهُ: (4432)
208. बंदे का अल्लाह से डर कर रोना, गुनाहों को खत्म कर देता है।
209. باكِرُوا فَالبَرَكَةُ فِي المُباكَرَةِ وَشاوِرُوا فَالنُّجحُ فِي المُشاوَرَةِ: (4441)
209. सुबह सवेरे कमाने खाने के लिये निकलो, सुबह के काम में बरकत होती है और मशवरा करो क्योंकि मशवरे में सफलता है।
210. بَرُّوا آباءَكُم يَبَرَّكُم أبناؤُكُم: (4448)
210. अपने माँ बाप के साथ भलाई करो ताकि तुम्हारी औलाद तुम्हारे साथ भलाई करे।
211. بَينَكُم وَبَينَ المَوعِظَةِ حِجابٌ مِنَ الغَفلَةِ وَالغِرَّةِ: (4450)
211. तुम्हारे और नसीहत के बीच ग़फ़लत व अचेतना के पर्दे हैं।
212. تَضييعُ المَعرُوفِ وَضعُهُ فِي غَيرِ عَرُوف: (4470)
212. किसी ऐसे (इंसान) के साथ भलाई करना जो उस भलाई के महत्व को न जानता हो, उस भलाई को बर्बाद करना है।
213. تَقَرُّبُ العَبدِ إلَى اللهِ سُبحانَهُ بِإخلاصِ نِيَّتِهِ: (4477)
213. बन्दा अल्लाह से ख़ालिस नीयत के साथ क़रीब होता है।
214. تَمامُ العِلمِ العَمَلُ بِمُوجَبِهِ: (4482)
214. ज्ञान की पूर्णता, उसके अनुसार कार्य करना है।
215. تَهويِنُ الذَّنبِ اَعظَمُ مِن رُكُوبِ الذِّنبِ: (4490)
215. गुनाह को छोटा समझना, गुनाह करने से भी बड़ा (गुनाह) है।
216. تَدَبَّرُوا آياتِ القُرآنِ وَاعتَبِرُوا بِهِ فَإنَّهُ أبلَغُ العِبَرِ: (4493)
216. कुरआन की आयतों पर चिंतन करो और उससे शिक्षा (नसीहत) लो क्योंकि वह बहुत अधिक शिक्षाएं देने वाला हैं।
217. تَركُ جَوابِ السَّفيهِ أبلَغُ جَوابِهِ: (4498)
217. मुर्ख की बात का जवाब न देना ही उसका सब से अच्छा जवाब है।
218. تَمَسَّك بِكُلِّ صَدِيق أفادَتكَهُ الشِّدَّةُ: (4508)
218. सब से दोस्ती करो, वह कठिन समय में तुम्हारे काम आयेंगे।
219. تَفَكَّر قَبلَ أن تَعزِمُ وَشاور قَبلَ أن تُقدِمَ وَتَدَبَّر قَبلَ أن تَهجُمَ: (4545)
219. (किसी काम का) इरादा करने से पहले अच्छी तरह विचार करो, उसे शुरु करने से पहले मशवरा करो और काम में हाथ डालने से पहले उसके परिणाम पर ध्यान दो।
220. تَوقَّوا البَردَ في أوَّلِهِ وَتَلَقَّوهُ فِي آخِرِهِ، فَإنَّهُ يَفعَلُ فِي الأبدانِ كَما يَفعَلُ فِي الأغصانِ أوَّلُهُ يُحرِقُ وَآخِرُهُ يُورِقُ: (4551)
220. आती हुई सर्दी से बचो और जाती हुई सर्दी को गले से लगाओ, क्योंकि सर्दी शरीर के साथ वही करती है जो पेड़ की डालियों के साथ करती है, शुरु में उन्हें सुखा देती है और अंतिम समय में उन्हें हरा भरा बना देती है।
221. تَجاوَز عَنِ الزَّلَلِ وَأقِلِ العَثَراتِ تُرفَع لَكَ الدَّرَجاتُ: (4566)
221. ग़लती देख कर आँख बन्द कर लो और दूसरे की ग़लती को अनदेखा कर दो ताकि तुम्हारा मान सम्मान बढ़े।
222. تَعجيِلُ البِرِّ زِيادَةٌ فِي البِرِّ: (4568)
222. अच्छे काम में जल्दी करना, अच्छाई को बढ़ाना है।
223. تَدارَك في آخِرِ عُمرِكَ ما أضَعتَهُ فِي أوَّلِهِ تَسعَد بِمُنقَلَبِكَ: (4572)
223. जिस चीज़ को अपनी उम्र के पहले हिस्से में बर्बाद किया है उसे आखरी हिस्से में पूरा कर लो ताकि लौटते समय (अर्थात मौत के वक्त) सफल बन सको।
224. ثَمَرَةُ الحَزْمِ السَّلامَةُ: (4590)
224. दूर दर्शिता का परिणाम, सुरक्षित रहना है।
225. ثَمَرَةُ العِفَّةِ الصِّيانَةُ: (4593)
225. पाक दामन रहने का नतीजा, सुरक्षा है।
226. ثَمَرَةُ التَّواضُعِ المَحَبَّةُ: (4613)
226. इन्केसारी (दूसरों के सम्मुख स्वयं को छोटा समझना) का नतीजा, मोहब्बत है।
227. ثَمَرَةُ التَّجرِبَةِ حُسنُ الاِختِيارِ: (4617)
227. अनुभव का परिणाम, उचित चुनाव है।
228. ثَمَرَةُ القَناعَةِ الإجمالُ فِي المُكتَسَبِ وَالعُزُوفُ عَنِ الطَّلَبِ: (4634)
228. क़िनाअत (निस्पृहता) का परिणाम, कमाने खाने में मध्य क्रम को अपनाना और माँगने को बुरा समझना है।
229. ثَلاثٌ لايُستَحيى مِنهُنَّ: خِدمَةُ الرَّجُلِ ضَيفَهُ وَقِيامُهُ عَن مَجلِسِهِ لاَِبيهِ وَمُعَلِّمِهِ وَطَلَبُ الحَقِّ وَإن قَلَّ: (4666)
229. तीन चीज़ों से नहीं शर्माना चाहिये: मेहमान की आव भगत से, बाप और उस्ताद के आदर में अपनी जगह से खड़े होने से और अपना अधिकार माँगने से चाहे वह कम ही हो।
230. ثَلاثَةٌ تَدُلُّ عَلى عُقُولِ أربابِها: الرَّسُولُ وَالكِتابُ وَالهَدِيَّةُ: (4681)
230. तीन चीज़े अपने मालिक की बुद्धिमत्ता पर तर्क करती हैं: दूत, पत्र और उपहार।
231. ثَلاثٌ يُوجِبنَ المَحَبَّةَ: حُسنُ الخُلقِ وَحُسنُ الرِّفقِ وَالتَّواضُعُ: (4684)
231. तीन चीज़ें मोहब्बत का कारण बनती हैं: अच्छा अख़लाक़, विनम्रता और दूसरों के सामने स्वयं को छोटा समझना।
232. ثابِرُوا عَلى صَلاحِ المُؤمِنِينَ وَالمُتَّقِينَ: (4703)
232. मोमिन व मुत्तकीन की भलाई को हमेशा नज़र में रखो।
चौथा भाग
233. جالِسِ العُلَماءَ تَزدَد عِلماً: (4721)
233. ज्ञानियों के पास बैठो ताकि तुम्हारा ज्ञान बढ़े।
234. جُودُوا بِما يَفنى تَعتاضُوا عَنهُ بِما يَبقى: (4732)
234. (इस दुनिया में) ख़त्म होने वाली चीज़ों को दान कर दो (ताकि आख़ेरत में) उनके बदले में कभी खत्म न होने वाली चीज़े पाओ।
235. جاوِر مَن تَأمَنُ شَرَّهُ، وَلا يَعدُوكَ خَيرُه: (4737)
235. तुम उसके पड़ोस में रहो, जिसकी भलाई तो तुम तक पहुँचे परन्तु उसकी बुराई तुम से दूर रहे।
236. جَمالُ العِلمِ نَشرُهُ وَثَمَرَتُهُ العَمَلُ بِهِ، وَصِيانَتُهُ وَضعُهُ فِي أهلِهِ: (4754)
236. ज्ञान की सुन्दरता उसका प्रसारण और उसका फल उस पर क्रियान्वित होना है, उसकी सुरक्षा उसे किसी योग्य के हवाले करना है।
237. جِماعُ المُرُؤَةِ أن لا تَعمَلَ فِي السِّرِّ ما تَستَحيي مِنهُ فِي العَلانِيَةِ: (4785)
237. सारी मर्दांगी इस में है कि जिसे खुले आम करने में शर्माते हों उसे छुप कर भी न करो।
238. حُسنُ الظَّنِّ راحَةُ القَلبِ وَسَلامَةُ الدِّينِ: (4816)
238. अच्छा गुमान, दिल का चैन और दीन की सलामती है।
239. حُسنُ اللِّقاءِ يَزيِدُ فِي تَأَكُّدِ الإخاءِ: (4827)
239. अच्छा व्यवहार, भाई चारे को बढ़ाता है।
240. حُسنُ الاِستِدراكِ عُنوانُ الصَّلاحِ: (4867)
240. अच्छाई की ओर बढ़ना, सुधार की निशानी है।
241. حُبُّ الاِطراءِ وَالمَدحِ مِن اَوثَقِ فُرَصِ الشَّيطانِ: (4877)
241. अतिशयोक्ति व प्रशंसा को पसंद करने की स्थिति, शैतान के लिए सब से अच्छा मौक़ा है।
242. حَلاوَةُ الظَّفَرِ تَمحُو مَرارَةَ الصَّبرِ: (4882)
242. सफलता की मिठास, सब्र की कड़वाहट को मिटा देती है।
243. حِراسَةُ النِّعَمِ فِي صِلَةِ الرَّحِمَ: (4929)
243. नेमतों का बाक़ी रहना, सिला ए रहम में (निहित) है।
244. حَياءُ الرِّجُلِ مِن نَفسِهِ ثَمَرَةُ الاِيمانِ: (4944)
244. मर्द का अपनी आत्मा से शर्माना, ईमान का नतीजा है।
245. خَيرُ اَموالِكَ ما وَقى عِرضَكَ: (4958)
245. तुम्हारा सब से अच्छा माल वह है जो तुम्हारे मान सम्मान की रक्षा करे।
246. خَيرُ الضِّحكِ التَّبسُّمُ: (4964)
246. सब से अच्छी हँसी, मुस्कुराहट है।
247. خَيرُ مَن شاوَرتَ ذَوُو النُّهى وَالعِلمِ، وَاُولُوا التَّجارِبِ وَالحَزمِ: (4990)
247. मशवरा करने के लिये सब से अच्छे लोग: बुद्धिमान, ज्ञानी, अनुभवी और दूरदर्शी लोग हैं।
248. خَيرُ الإخوانِ مَن لَم يَكُن عَلى إخوانِهِ مُستَقصِياً: (4997)
248. सब से अच्छे भाई वह हैं जो अपने भाईयों से अधिक उम्मीदें न रखते हों और कामों में सख्ती न करते हों।
249. خَيرُ إخوانِكَ مَن سارَعَ إلَى الخَيرِ وَجَذَبَكَ إلَيهِ وَأمَرَكَ بِالبِّرِ وَأعانَكَ عَلَيهِ: (5021)
249. तुम्हारा सब से अच्छा भाई वह है जो नेक कामों की तरफ़ दौडता हो और तुम्हें भी उन की तरफ़ खैंचता हो और नेक कामों का हुक्म देता हो और उनको करने में तुम्हारी मदद करता हो।
250. خزيرُ ما وَرَّثَ الآباءُ الابناءَ الأدَبَ: (5036)
250. सब से अच्छी चीज़ जो बाप औलाद के लिये विरसे में छोड़ते हैं, अदब है।
251. خُذِ القَصدَ فِي الاُمُورِ، فَمَن اَخَذَ القَصدَ خَفَّت عَلَيهِ المُؤَنَ: (5042)
251. कामों में बीच का रास्ता अपनाओ, जो बीच का रास्ता अपनाता है, उसका खर्च कम हो जाता है।
252. خُذِ الحِكمَةَ مِمَّن أتاكَ بِهِا، وَانظُر إلى ما قالَ وَلا تَنظُر إلى مَن قالَ: (5048)
252. तुम्हें जो कोई भी बुद्घिमत्ता दे, ले लो, यह देखो कि क्या कह रहा है यह न देखो कि कौन कह रहा है।
253. خَيرُ الاَعمالِ إعتِدالُ الرَّجاءِ وَالخَوفِ: (5055)
253. सब से अच्छे काम, उम्मीद और डर का बराबर (एहसास) है।
254. خالِف مَن خالَفَ الحَقَّ اِلى غَيرِهِ، وَدَعهُ وَما رَضِىَ لِنَفسِهِ: (5057)
254. जो हक़ का विरोध करे उसका विरोध करो और वह जिस पर राज़ी हो, उसे उसी पर छोड़ दो।
255. خالِطُوا النّاسَ مُخالَطَةُ إن مِتُّم بَكَوا عَلَيكُم وَإن غِبتُم حَنُّوا إلَيكُم: (5070)
255. लोगों से इस प्रकार व्यवहार करो कि अगर तुम मर जाओ तो वह तुम पर रोयें और अगर तुम ग़ायब हो जाओ तो वह तुम से मिलने की इच्छा करें।
256. خُلُوُّ الصَّدرِ مِنَ الغِلِّ وَالحَسَدِ مِن سَعادَةِ العَبدِ: (5083)
256. सीने का ईर्ष्या व कीनेः से खाली होना, बन्दे की भाग्यशालिता है।
257. خَوافِي الأخلاقِ تَكشِفُهَا المُعاشَرَةُ: (5099)
257. एक साथ रहने से छुपी हुई आदतें सामने आ जाती है।
पाँचवां भाग
258. دارِ النّاسَ تَأمَن غَوائِلُهُم، وَتَسلَم مِن مَكائِدِهِم: (5128)
258. लोगों से मोहब्बत करो ताकि उनके उपद्रव से सुरक्षित और उनकी बुराइयों से बचे रहो।
259. دَع ما لايَعنِيكَ، وَاشتَغِل بِمُهِمِّكَ الَّذي يُنجِيَكَ: (5133)
259. जो चीज़ तुम्हारे काम न आये, उसे छोड़ दो और जो चीज़ तुम्हें मुक्ति दे उस में व्यस्त हो जाओ।
260. ذِكرُ اللهِ مَطرَدَةُ الشَّيطانِ: (5162)
260. अल्लाह की याद, शैतान को दूर करती है।
261. ذُروَةُ الغاياتِ لا يَنالُها إلاّ ذَوُوا التَّهذيبِ وَالمُجاهَداتِ: (5190)
261. सदाचारी और कोशिश करने वाले के अतिरिक्त कोई भी अपने उद्देश्य की चोटी को नहीं छू पाता।
262. ذُو الكَرَمِ جَميلُ الشِّيَمِ مُسد لِلنِّعَمِ وَصُولٌ لِلرَّحِمِ: (5196)
262. करीम, वह है जिस का अखलाक अच्छा हो, हर नेमत के लिये उचित हो और सिल ए रहम करता हो।
263. ذَوُوا العُيُوبِ يُحِبُّونَ إشاعَةَ مَعايِبِ النّاسِ لِيَتّسِعَ لَهُمُ العُذرُ فِي مَعايِبِهِم: (5198)
263. बुरे लोग यह चाहते हैं कि लोगों की बुराइयां आम हो जायें ताकि उन्हें अपनी बुराइयों के बारे में और अधिक बहाना मिले।
छटा भाग
264. رَحِمَ اللهُ امرَءٌ عَرَفَ قَدرَهُ وَلَم يَتَعَدَّ طَورَهُ: (5204)
264. अल्लाह रहमत करे उस मर्द पर जो अपने महत्व को पहचाने और अपनी हद से आगे न बढ़े।
265. رَحِمَ اللهُ امرءً أحيا حَقَّاً وَأماتَ باطِلاً وَأدحَضَ الجَورَ وَأقامَ العَدلَ: (5217)
265. अल्लाह रहमत करे उस इंसान पर जो हक़ (सत्यता) को ज़िन्दा करे और बातिल (असत्य) को मौत के घाट उतार दे, अत्यचार को मिटाये और न्याय को फैलाये।
266. رَأسُ الفَضائِلِ مِلكُ الغَضَبِ وَاِماتَةُ الشَّهوَةِ: (5237)
266. श्रेष्ठता की जड़ गुस्से पर कंट्रोल करना और हवस को मारना है।
267. رَأسُ الجَهلِ مُعاداةُ النّاسِ: (5247)
267. लोगों से दुश्मनी करना, मूर्खता की जड़ है।
268. رَأسُ السِّياسَةِ استِعمالُ الرِّفقِ: (5266)
268. मोहब्बत से काम लेना, सियासत की जड़ है।
269. رُبَّ مُتَوَدِّد مُتَصَنِّع: (5277)
269. बहुत सी दोस्तियाँ दिखावटी होती है।
270. رُبَّ كَلِمَة سزلَبَت نِعمَةً: (5282)
270. बहुत सी बातें, नेमत को रोक देती हैं।
271. رُبَّ كَلام جَوابُهُ السُّكُوتُ: (5303)
271. बहुत सी बातों का जवाब, चुप रहना है।
272. رُبَّ واعِظِ غَيرُ مُرتَدِع: (5361)
272. बहुत से नसीहत करने वाले ऐसे हैं जो खुद को गुनाहों से नहीं रोकते।
273. رَغبَتُكَ فِي زاهِد فيِكَ ذُلٌّ: (5383)
273. जो तुम से दूर रहना चाहता है, उस से मिलना अपमान है।
274. رَدعُ النَّفسِ عَن زَخارِفِ الدُّنيا ثَمَرَةُ العَقلِ: (5399)
274. अपनी आत्मा को इस दुनिया की शोभाओं से दूर रखना, बुद्धी का परिणाम है।
275. رَوِّ قَبلَ العَمَلِ تَنجُ مِنَ الزَّلَلِ: (5401)
275. काम करने से पहले सोचो, ताकि गलतियों से बच सको।
276. رَضِيَ بِالذُّلِ مَن كَشَفَ ضُرَّهُ لِغَيرِهِ: (5414)
276. वह इंसान अपमानित होने पर राज़ी हो गया, जिसने अपनी परेशानियों को दूसरों पर प्रकट कर दिया।
277. رَأيُ الرَّجُلِ عَلى قَدرِ تَجرِبَتِهِ: (5426)
277. हर इंसान की राय उसके अनुभव के अनुसार होती है।
278. رِضَا المَرءِ عَن نَفسِهِ بُرهانُ سَخافَةِ عَقلِهِ: (5441)
278. आदमी का स्वयं से राज़ी होना, कम बुद्धी की दलील है।
279. زَكاةُ الجَمالِ العَفافُ: (5449)
279. खूब सूरती की ज़कात, पाक दामन रहना है।
280. زِلَّةُ العالِمِ كَانكِسارِ السَّفينَةِ، تَغرَقُ وَتُغَرَّقُ مَعَها غَيرَها: (5474)
280. ज्ञानी की ग़लती, किश्ती के टूटने के समान है, वह स्वयं भी डूबती है और दूसरों को भी डुबाती है।
281. زِيادَةُ الشُّحِّ تَشينُ الفُتُوَّةَ وَتُفسِدُ الأُخُوَّةَ: (5508)
281. अधिक कंजूसी, बहादुरी को ख़त्म और भाई चारे को ख़राब कर देती है।
सातवां भाग
282. سَبَبُ الاِئتِلافِ الوَفاءُ: (5511)
282. वफा, मोहब्बत का कारण बनती है।
283. سَبَبُ المَحَبَّةِ البِشرُ: (546)
283. प्रफुल्लता, मोहब्बत का कारण बनती है।
284. سِلاحُ المُؤمِنِ الدُّعاءُ: (5559)
284. दुआ, मोमिन का हथियार है।
285. سُوسُوا أنفُسَكُمِ بِالوَرَعِ وَداوُوا مَرضاكُمِ بِالصَّدَقَةِ: (5588)
285. पाक दामनी के द्वारा अपनी जान की रक्षा करो और अपने बीमारों का सदक़े से इलाज करो।
286. سِياسَةُ العَدلِ ثَلاثٌ: لِينٌ في حَزم، وَاستِقصاءٌ في عَدل، وَإفضالٌ في قَصد: (5592)
286. न्याय पर आधारित सियासत के तीन स्तम्भ हैं, दूर दर्शिता के साथ नर्मी, न्याय को अंतिम सीमा तक पहुंचाना, और मध्य क्रम में लोगों को धन देना अर्थात न बहुत कम न अत्याधित।
287. سَل عَنِ الجارِ قَبلَ الدّارِ: (5598)
287. घर (खरीदने) से पहले पड़ोसी के बारे में पूछ ताछ करो।
288. سالِمِ النّاسَ تَسلَم، وَاعمَل لِلآخِرَةِ تَغنَم: (5605)
288. लोगों के साथ मोहब्बत से रहो ताकि सुरक्षित रहो और आख़ेरत के लिये काम करो ताकि तुम्हें ग़नीमत मिले।
289. سَلامَةُ العَيشِ فِي المُداراةِ: (5607)
289. ज़िन्दगी का आराम, प्यार मोहब्बत में है।
290. سَيِّئَةُ تَسُوؤُكَ خَيرٌ مِن حَسَنَة تُعجِبُكَ: (5615)
290. जो गुनाह तुम्हें ग़मगीन कर दे, वह उस नेकी से अच्छा है जो तुम में घमंड पैदा कर दे।
291. سَمعُ الاُذُنِ لايَنفَعُ مَعَ غَفَلَةِ القَلبِ: (5618)
291. दिल के ग़ाफ़िल होते हुए, कानों से सुनने का कोई फ़ायदा नहीं है।
292. سِرُّكَ اَسيِرُكَ فَإن اَفشَيتَهُ صِرتَ اَسيرَهُ: (5630)
292. तुम्हारा राज़, तुम्हारा कैदी है, अगर तुम ने उसे खोला तो तुम उसके कैदी बन जाओगे।
293. سُوءُ الخُلقِ نَكَدُ العَيشِ وَعَذابُ النَّفسِ: (5639)
293. बुरा अखलाक ज़िन्दगी के लिए कठिनाई और जान के लिए अज़ाब है।
294. سَلُوا القُلُوبَ عَنِ المَوَدّاتِ فَإنَّها شَواهِدُ لا تَقبَلُ الرُّشا: (5641)
294. दोस्ती व मोहब्बत को दिलों से पूछो, क्योंकि दिल ऐसा गवाह हैं जो रिशवत नहीं लेते।
295. شُكرُ المُؤمِنِ يَظهَرُ فِي عَمَلِهِ: (5661)
295. मोमिन का शुक्र, उसके कार्यों से प्रकट होता है।
296. شَرُّ النّاسِ مَن لا يَقبَلُ العُذرَ، وَلا يُقيِلُ الذَّنبَ: (5685)
296. सब से बुरा इंसान वह हैं जो किसी मजबूरी को क़बूल नही करता और गलतियों को माफ नहीं करता।
297. شَرُّ العَمَلِ ما أفسَدتَ بِهِ مَعادَكَ: (5695)
297. सब से बुरा काम वह है, जिस से तुम अपनी आख़ेरत बर्बाद कर लो।
298. شَرُّ النّاسِ مَن يَرى أَنَّهُ خَيرُهُم: (5701)
298. सब से बुरा इंसान वह है, जो स्वयं को दूसरों से अच्छा समझे।
299. شَرُّ النّاسِ مَن لا يُبالِي أن يَراهُ النّاسُ مُسِيئاً: (5702)
299. सब से बुरा इंसान वह हैं, जो इस बात की परवाह न करें कि लोग उसे गुनाहगार के रूप में देखें।
300. شَرُّ اَصدِقائِكَ مَن تَتَكَلَّفُ لَهُ: (5706)
300. तुम्हारा सब से बुरा दोस्त वह है, जिसकी वजह से तुम किसी मुसिबत में फँस जाओ।
301. شَرُّ الاَوطانِ مالَم يَأمَن فيهِ القُطّانُ: (5712)
301. सब से बुरा वतन वह है, जिसमें रहने वाले लोग सुरक्षित न हों।
302. شَرُّ النّاسِ مَن لا يُرجى خَيرُهُ وَلا يُؤمَنُ شَرُّهُ: (5732)
302. सब से बुरे लोग वह है जिन से किसी भलाई की उम्मीद न हो और उनकी बुराई से न बचा जा सकता हो।
303. شَرُّ الاَصحابِ السَّريعُ الاِنقِلابِ: (5742)
303. सब से बुरे साथी वह हैं जो जल्दी ही रंग बदल दें।
304. شاوِر قَبلَ أن تَعزِمُ، وَفَكِّر اَن تُقدِمَ: (5754)
304. इरादा करने से पहले मशवरा करो और काम शुरु करने से पहले सोचो।
305. شَيئانِ لاَيعرِفُ فَضلَهُما اِلاَّ مَن فَقَدَهُما: الشَّبابُ وَالعافِيَةُ: (5764)
305. दो चीज़ें ऐसी हैं जिनके महत्व को केवल वही जानता है, जिसके पास से वह चली जाती है: जवानी और स्वास्थ।
306. شَيئانِ لا يُوزَنُ ثَوابُهُما: اَلعَفوُ وَالعَدلُ: (5769)
306. दो चीज़ें ऐसी हैं जिनके सवाब (पुणय) का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है: क्षमा और न्याय।
307. شارِكُوا الَّذِي قَد أقبَلَ الرِّزقُ فَإنَّهُ أجدَرُ بِالحَظِّ وَأخلَقُ بِالغِنى: (5790)
307. जिसकी ओर धन बढ़ जाये, उसके साझीदार बन जाओ, क्योंकि वह लाभान्वित होने के लिए योग्य व मालदारी के लिए उपयुक्त है।
आठवां भाग
308. صَلاحُ العَمَلِ بِصَلاحِ النِّيَّةِ: (5792)
308. कार्यों का सही होना, नीयत के सही होने पर आधारित है।
309. صَلاحُ العِبادَةِ التَّوَكُّلُ: (5802)
309. तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा), इबादत को सवांरता है।
310. صَلاحُ الاِنسانِ فِي حَبسِ اللِّسانِ وَبَذلِ الإحسانِ: (5809)
310. इन्सान की भलाई, ज़बान को काबू में रखने और नेकी करने में है।
311. صِحَّةُ الاَجسامِ مِن أهنَإ الأقسامِ: (5812)
311. तन्दरुस्ती, सब से बड़ी नेमत है।
312. صِيانَةُ المَرأةِ أنعَمُ لِحالِها وَأدوَمُ لِجَمالِها: (5820)
312. औरत का पर्दा, उसके लिये लाभदायक है और उसकी सुन्दरता को हमेशा बाकी रखता है।
313. صاحِبُ السَّوءِ قِطعَةٌ مِنَ النّارِ: (5824)
313. बुरा साथी दोज़ख की आग का एक अंगारा होता है।
314. صِلَةُ الأرحامِ تُثمِرُ الأموالَ وَتُنسِىءُ فِي الآجالِ: (5847)
314. सिला ए रहम (रिश्तेदारों के साथ मिलने जुलने) से माल बढ़ता है और मौत टलती है।
315. صَدَقَةُ السِّرِّ تُكَفِّرُ الخَطيئَةَ، وَصَدَقَةُ العَلانِيَةِ مَثراةٌ فِي المالِ: (5848)
315. छिपा कर दिया जाने वाला सदक़ा, गुनाहों को छिपाता है और खुले आम दिये जाने वाले सदक़े से माल बढ़ाता है।
316. صُن دينَكَ بِدُنياكَ تَربَحهُما وَلا تَصُن دُنياكَ بِدِينِكَ فَتَخسَرَهُما: (5861)
316. अपने दीन की दुनिया के द्वारा रक्षा करो ताकि दोनों से फ़ायदा उठाओ और अपनी दुनिया को दीन के द्वारा न बचाओ वरन दोनों का नुक़्सान होगा।
317. صُمتٌ يُعقِبُكَ السَّلامَةَ خيرٌ مِن نُطق يُعقِبُكَ المَلامَةَ: (5865)
317. जिस खामोशी के परिणाम में तुम्हारी सुरक्षा हो, वह उस बोलने से अच्छी है जिसके नतीजे में तुम्हें बुरा कहा जाये।
318. صِيامُ القَلب عَنِ الفِكرِ فِي الآثامِ أفضَلُ مِن صِيامِ البَطنِ عَنِ الطَّعامِ: (5873)
318. दिल का रोज़ा, पेट के रोज़े से अच्छा है (अर्थात पेट को खाने से रोकने से अच्छा यह है कि दिल को गुनाह की फिक़्र से रोका जाये।
319. صَدرُ العاقِلِ صُندُوقُ سِرِّهِ: (5875)
319. बुद्धिमान का सीना, उसके रहस्यों का सन्दूक होता है।
320. ضَرُوراتُ الاَحوالِ تُذِلُّ رِقابَ الرِّجالِ: (5892)
320. आवश्यक्तायें, मर्दों की गर्दनों को झुका देती हैं।
321. ضادُّوا التَّوانِي بِالعَزمِ: (5927)
321. आलस्य को दृढ़ संकल्प से खत्म करो।
322. طُوبى لِلمُنكَسِرَةِ قُلوبُهُم مِن أجلِ اللهِ: (5937)
322. खुशी है उनके लिये जिनके दिल अल्लाह के लिये टूटे हैं।
323. طُوبى لِمَن خَلا مِنَ الغِلِّ صَدرُهُ وَسَلِمَ مِنَ الغِشِّ قَلبُهُ: (5941)
323. खुशी है उनके लिये जिनके सीने किनः (ईर्ष्या) से ख़ाली और दिल धोखे बाज़ी से साफ़ हैं।
324. طُوبى لِمَنَ قَصَّرَ أمَلَهُ وَاغتَنَمَ مَهَلَهُ: (5948)
324. खुशी है उनके लिये जो अपनी इच्छाओं को कम करते हैं और मोहलत (उम्र) को ग़नीमत मानते हैं।
325. طَلَبُ الجَنَّةِ بِلا عَمِل حُمقٌ: (5991)
325. (अच्छे) कार्य किये बिना, जन्नत की चाहत मूर्खता है।
326. طَلَبُ الجَمعِ بَينَ الدُّنيا وَالآخِرَةِ مِن خِداعِ النَّفسِ: (5995)
326. दुनिया और आख़ेरत दोनों को इकठ्ठा करने की चाहत आत्मा का एक धोखा है।
327. طَلَبُ المَراتِبِ وَالدَّرَجاتِ بِغَيرِ عَمَل جَهلٌ: (5997)
327. (उचित) कार्यों के बिना ऊँचे स्थान की इच्छा, मूर्खता है।
328. طَريقَتُنا القَصدُ، وَسُنَّتُنا الرُّشدُ: (6008)
328. हम अहले बैत का तरीक़ा मध्य क्रम को अपना और हमारी सुन्नत विकास करना है।
329. طَعنُ اللِّسانِ أمَضٌ مِن طَعنِ السِّنانِ: (6011)
329. ज़बान का ज़ख्म, भाले के जख्म से अधिक दर्द दायक होता है।
330. طَهِّرُوا أنفُسَكُم مِن دَنَسِ الشَّهَواتِ تُدرِكُوا رَفيعَ الدَّرَجاتِ: (6020)
330. अपनी आत्मा को हवस की गंदगी से पाक करो, ऊँचे दर्जे पाओ।
331. ظُلمُ الضَّعيفِ أفحَشُ الظُّلمِ: (6054)
331. कमज़ोर पर ज़ुल्म करना, सब से बुरा ज़ुल्म है।
332. ظَلَمَ المَعروفَ مَن وَضَعَهُ فِي غَيرِ أهلِهِ: (6063)
332. किसी अयोग्य के साथ भलाई करना, भलाई पर ज़ुल्म है।
333. ظُلمُ اليَتامى وَالاَيامى يُنزِلُ النِّقَمَ وَيَسلُبُ النِّعَمَ أهلَها: (6079)
333. यतीमों और बेवा औरतों पर ज़ुल्म करने से विपत्तियाँ आती है और नेमत वालों से नेमतें छीन ली जाती हैं।
नौवां भाग
334. عَلَيكَ بِالاخِرَةِ تَأتِكَ الدُّنيا صاغِرَةً: (6080)
334. आख़ेरत के लिये काम करो, ताकि दुनिया ज़लील हो कर तुम्हारे पास आये।
335. عَلَيكَ بِالسَّكينَةِ فَإنَّها أفضَلُ زينَة: (6088)
335. गंभीरता के साथ रहो क्यों कि गंभीरता सब से अच्छी शोभा है।
336. عَلَيكَ بِالشُّكرِ فِي السَّرّاءِ وَالضَّرّاءِ: (6092)
336. सुख दुख में अल्लाह का शुक्र करते रहो।
337. عَلَيكَ بِالبَشاشَةِ فَإنَّها حِبالَةُ المَوَدَّةِ: (6101)
337. हँस मुख रहो, क्योंकि हँस मुखी दोस्ती का जाल है।
338. عَلَيكَ بِإخوانِ الصَّفاءِ فَإنَّهُم زينَةٌ فِي الرَّخاءِ وَعَونٌ فِي البَلاءِ: (6128)
338. (बुराईयों से) पाक साफ़ भाईयों (दोस्तों) के साथ रहो, क्योंकि वह खुशियों में शोभा और विपत्तियों में सहायक होते हैं।
339. عَلى قَدرِ المَؤُنَةِ تَكُونُ مِنَ اللهِ المَعُونَةُ: (6172)
339. जितना खर्च होता है, अल्लाह की तरफ़ से उतनी ही मदद मिलती है।
340. عَلَى التَّواخِي فِي اللهِ تَخلُصُ المَحَبَّةُ: (6191)
340. अल्लाह के लिये भाई चारे का संबंध स्थापित करने से, निस्वार्थ मोहब्बत होती है।
341. عَلَى المُشيرِ الاِجتِهادُ فِي الرَّأيِ وَلَيسَ عَلَيهِ ضَمانُ النُّجحِ: (6194)
341. मशवरा देने वाले का काम सही राय देने की कोशिश करना है, उस पर सफ़लता की ज़िम्मेदारी नहीं है।
342. عِندَ تَعاقُبِ الشّدائِدِ تَظهَرُ فَضائِلُ الإنسانِ: (6204)
342. एक के बाद एक कठिनाई पड़ने की स्थिति में इन्सान के गुण व श्रेष्ठता प्रकट होती हैं।
343. عِندَ نُزُولِ الشَّدائِدِ يُجَرَّبُ حِفاظُ الإخوانِ: (6205)
343. दोस्ती व भाई चारे की लाज रखने वालों की परख कठिनाई के समय होती है।
344. عِندَ بَديهَةِ المَقالِ تُختَبَرُ عُقُولُ الرِّجالِ: (6221)
344. तुरंत बात कहने के समय मर्दों की बुद्धियों को परखा जाता है।
345. عِندَ حُضُورِ الشَّهَواتِ وَاللَّذّاتِ يَتَبَيَّنُ وَرَعُ الأتقِياءِ: (6224)
345. पारसाओं की पारसाई, हवस और मज़े के समय प्रकट होती है।
346. عَوِّد نَفسَكَ السَّماحَ وَتَجَنُّبَ الإلحاحِ يَلزَمكَ الصَّلاحُ: (6235)
346. अपने अन्दर दूसरों को चीज़ देने और ज़िद न करने की आदत डालो, तुम्हारे ऊपर सुधार व इस्लाह वाजिब है।
347. عادَةُ اللِّئامِ المُكافاةُ بِالقَبيحِ عَنِ الإحسانِ: (6238)
347. नीच लोगों की आदत, अच्छाई का जवाब बुराई से देना है।
348. عَجِبتُ لِمَن يَرى أنَّهُ يَنقُصُ كُلَّ يَوم فِي نَفسِهِ وَعُمُرِهِ وَهُوَ لا يَتَأَهَّبُ لِلمَوتِ: (6253)
348. मुझे आश्चर्य है उन लोगों पर जो देखते हैं कि हर दिन उनकी उम्र व जान कम हो रही है, परन्तु वह फिर भी मरने के लिये तैयार नहीं होते।
349. عَجِبتُ لِمَن يَحتَمِي الطَّعامَ لاِذيَّتِهِ كَيفَ لا يَحتَمِي الذَّنبَ لاِليمِ عُقُوبَتِهِ: (6254)
349. मुझे आश्चर्य है उन लोगों पर जो बीमारी के डर से (अनुचित चीज़ें) खाने पीने से बचते हैं, परन्तु दर्द दायक अज़ाब के डर से गुनाह से नहीं बचते !।
350. عَجِبتُ لِمَن يَرجُو فَضلَ مَن فَوقَهُ كَيفَ يَحرِمُ مَن دُونَهُ: (6285)
350. मुझे आश्चर्य है उन लोगों पर जो अपने से ऊपर वाले लोगों से भलाई की अम्मीद रखते हैं, वह अपने से नीचे वालों को किस तरह वंचित करते हैं।
351. عِلمٌ بِلا عَمَل كَشَجَر بِلا ثَمَر: (6290)
351. ज्ञान के अनुरूप कार्यों का न होना, बिना फल के पेड़ के समान है। अर्थात अगर ज्ञान के अनुरूप कार्य न हों तो ज्ञान का कोई लाभ नही है।
352. عَلِّمُوا صِبيانَكُم الصَّلاةَ وَخُذُوهُم بِها إذا بَلَغُوا الحُلُمَ: (6305)
352. अपने बच्चों को नमाज़ सिखाओ और जब वह बालिग हो जायें तो उनसे नमाज़ के बारे में पूछ ताछ करो।
353. عَينُ المُحِبِّ عَمِيَّةٌ عَن مَعايِبِ المَحبُوبِ، وَأُذُنُهُ صَمَاءُ عَن قِبحِ مَساويهِ: (6314)
353. आशिक की आँखें, माशूक की बुराईयों को नहीं देखतीं और उसके कान उसकी बुराई को नहीं सुनते।
354. عاص يُقِرُّ بِذَنبِهِ خَيرٌ مِن مُطيع يَفتَخِرُ بِعَمَلِهِ: (6334)
354. अपने गुनाहों को स्वीकार करने वाला गुनहगार, उस आज्ञाकारी से अच्छा है जो अपने कार्यों पर गर्व करता है।
355. عامِل سائِرَ النّاسِ بِالإنصافِ وَعامِلِ المُؤمِنينَ بِالإيثارِ: (6342)
355. समस्त लोगों के साथ न्याय पूर्वक व्यवहार करो और मोमिनों से त्याग के साथ।
356. غايَةُ الخِيانَةِ خِيانَةُ الخِلِّ الوَدُودِ وَنَقضُ العُهُودِ: (6374)
356. ग़द्दारी की अन्तिम सीमा, अपने पक्के दोस्त को धोखा देना और प्रतिज्ञा को तोड़ना है।
357. غَضُّ الطَّرفِ مِن أفضَلِ الوَرَعِ: (6400)
357. सब से बड़ी पारसाई, स्वयं को बुरी नज़र से रोकना है।
358. غَيِّرُوا العاداتِ تَسهُل عَلَيكُمُ الطّاعاتُ: (6405)
358. अपनी आदतों को बदलो ताकि आज्ञा पालन तुम्हारे लिये सरल हो जाये।
359. غَلَبَةُ الهَزلِ تُبطِلُ عَزيمَةَ الجِدِّ: (6416)
359. हँसी मज़ाक़ की अधिकता, गंभीरता को खत्म कर देती है।
दसवां भाग
360. فِي تَصاريفِ الدُّنيَا اعتِبارٌ: (6453)
360. दुनिया में होने वाले परिवर्तनों में शिक्षाएं (निहित) हैं।
361. فِي تَصاريفِ الأحوالِ تُعرَفُ جَواهِرُ الرِّجالِ: (6470)
361. स्थितियों के बदलने पर मर्दों के जौहर पहचाने जाते हैं।
362. فِي الضِّيقِ يَتَبَيَّنُ حُسنُ مُواساةِ الرَّفيقِ: (6473)
362. तंगी के समय, दोस्त की ओर से होने वाली सहायता का पता लगता है।
363. فِي لُزومِ الحَقِّ تَكونُ السَّعادَةُ: (6489)
363. हक़ की पाबन्दी से खुशी नसीब होती है।
364. فِي المَواعِظِ جَلاءُ الصُّدُورِ: (6509)
364. नसीहत से दिल चमकते हैं।
365. فازَ مَن أصلَحَ عَمَلَ يَومِهِ وَاستَدرَكَ فَوارِطَ أمسِهِ: (6540)
365. जिसने अपने आज के कार्यों को सुधार कर, कल की ग़लतियों का बदला चुकाया, वह सफल हो गया।
366. فازَ مَن تَجَلبَبَ الوَفاءَ وَادَّرَعَ الأمانَةَ: (6556)
366. जिसने वफ़ादारी का वेश धारण किया और अमानत का कवच पहना, वह सफल हो गया। अर्थात जिसने वफादारी और अमानतदारी को अपनाया वह सफल हो गया।
367. فَضِيلَةُ السُّلطانِ عِمارَةُ البُلدانِ: (6562)
367. बादशाह की श्रेष्ठता शहरों को आबाद करने में है।
368. قَد جَهِلَ مَنِ استَنصَحَ أعداءَهُ: (6663)
368. जिसने अपने दुशमनों से नसीहत चाही उसने मूर्खता की।
369. قَد تُورِثُ اللَّجاجَةُ ما لَيسَ لِلمرَءِ إِلَيهِ حاجَةٌ: (6680)
369. कभी कभी इंसान को ज़िद के नतीजे में वह मिलता है, जिसकी उसे ज़रूरत नही होती।
370. قَد كَثُرَ القَبيحُ حَتّى قَلَّ الحَياءُ مِنهُ: (6710)
370. बुराईयाँ इतनी फैल गईं हैं कि अब बुराईयों से शर्म कम हो गई है।
371. قَليلٌ تَدُومُ عَلَيهِ خَيرٌ مِن كَثير مَملُول: (6740)
371. निरन्तर चलते रहने वाला कम कार्य, उस अधिक कार्य से अच्छा है, जिससे तुम उकता जाओ।
372. قَدرُ الرَّجُلِ عَلى قَدرِ هِمَّتِهِ، وَعَمَلُهُ عَلى قَدرِ نِيَّتِهِ: (6743)
372. आदमी का महत्व उसकी हिम्मत के अनुरूप होता है और उसके कार्यों का महत्व उसकी नीयत के अनुसार होता है।
373. قَولُ «لا اَعلَمُ» نِصفُ العِلمِ: (6758)
373. यह कहना कि "मैं नही जानता हूँ।" स्वयं आधा ज्ञान है।
374. قارِن أهلَ الخَيرِ تَكُن مِنهُم، وَبايِن أهلَ الشَّرِّ تَبِن عَنهُم: (6805)
374. अच्छे लोगों से मिलो ताकि तुम भी उन्हीं जैसे बन जाओ और बुरे लोगों से दूर रहो ताकि उनसे अलग रह सको।
375. قِوامُ العَيشِ حُسنُ التَّقديرِ وَمِلاكُهُ حُسنُ التَّدبيرِ: (6807)
375. जीवन अच्छी योजना से आरामदायक बनता है और उसे अच्छे प्रबंधन से प्राप्त किया जा सकता है।
ग्यारहवां भाग
376. كُلُّ ذي رُتبَة سَنِيَّة مَحسودٌ: (6862)
376. हर ऊँचे पद (मान सम्मान) वाले से ईर्ष्या की जाती है।
377. كُلُّ امرِء يَميلُ إلى مِثلِهِ: (6865)
377. हर इंसान अपने जैसे इंसान की तरफ़ झुकता है।
378. كُلُّ داء يُداوى اِلاّ سُوءَ الخُلقِ: (6880)
378. बद अख़लाक़ी (दुष्टता) के अतिरिक्त हर बीमारी का इलाज है।
379. كُلُّ شَيء يَنقُصُ عَلَى الإنفاقِ إلاَّ العِلمَ: (6888)
379. ज्ञान के अलावा हर चीज़ ख़र्च करने से कम होती है।
380. كُلُّ شَيء لا يُحسُنُ نَشرُهُ أمانَةٌ وَإن لَم يُستَكتَم: (6897)
380. जिस चीज़ का प्रचार करना सही न हो, वह अमानत है, चाहे उसके छिपाने का आग्रह भी न किया गया हो।
381. كَم مِن صَعب تَسَهَّلَ بِالرِّفقِ: (6946)
381. बहुत सी कठिनाईयाँ प्यार मोहब्बत से हल हो जाती हैं।
382. كَم مِن مُسَوِّف بِالعَمَلِ حَتّى هَجَمَ عَلَيهِ الأجَلُ: (6954)
382. ऐसे बहुत से लोग हैं जो काम करने में आज कल करते रहते हैं, यहाँ तक कि उन पर मौत हमला कर देती है।
383. كَيفَ تَصفُو فِكرَةُ مَن يَستَديِمُ الشِّبَعَ؟!: (6975)
383. उसके विचार किस तरह साफ़ हो सकते हैं, जिसका पेट हमेशा भरा रहता हो?!
384. كَيفَ يُفرَحُ بِعُمر تَنقُصُهُ السّاعات؟!: (6983)
384. उस उम्र से किस तरह खुशी मिल सकती है, जिसमें हर पल कमी होती रहती है?
385. كَيفَ يَجِدُ لَذَّةَ العِبادَةِ مَن لا يَصُومُ عَنِ الهَوى؟!: (6985)
385. वह इबादत का मज़ा कैसे चख सकता है जो स्वयं को हवस से न रोक सकता हो?!
386. كَيفَ يُصلِحُ غَيرَهُ مَن لا يُصلِحُ نَفسَهُ؟!: (6995)
386. वह दूसरों को कैसे सुधार सकता है, जिसने स्वयं को न सुधारा हो ?!
387. كَيفَ يَدَّعِي حُبَّ اللهِ مَن سَكَنَ قَلبَهُ حُبُّ الدُّنيا؟!: (7002)
387. वह अल्लाह से मोहब्बत का दावा कैसे कर सकता है, जिसके दिल में दुनिया की मोहब्बत बस गई हो?!
388. كَفى بِالشَّيبِ نَذيِراً: (7019)
388. डरने के लिए, बालों का सफ़ेद होना काफ़ी है।
389. كَفى بِالمَرءِ فَضيلَةً أن يُنَقِّصَ نَفسَهُ: (7039)
389. आदमी की श्रेषठता के लिए यही काफ़ी है कि स्वयं को अपूर्ण माने।
390. كَفى بِالمرء كَيِّساً أن يَعرِفَ مَعايِبَهُ: (7040)
390. आदमी की होशिआरी के लिए यही काफ़ी है कि वह अपनी बुराइयों को जानता हो।
391. كَفى بِالمَرءِ جَهلاً أن يَضحَكَ مِن غَيرِ عَجَب: (7051)
391. आदमी की मूर्खता के लिए बेमौक़े हँसना काफ़ी है।
392. كَفى مُخبِراً عَمّا بَقِيَ مِنَ الدُّنيا ما مَضى مِنها:(7057)
392. जो (लोग) दुनिया में बच गये हैं, उनकी जानकारी के लिए वह काफ़ी हैं जो दुनियाँ से चले गये हैं।
393. كَفى بِالمَرئِ غَفلَةً أن يَصرِفَ هِمَّتَهُ فيما لا يَعنيهِ: (7074)
393. आदमी की लापरवाही के लिए यही काफ़ी है कि वह अपनी ताक़त को काम में न आने वाली चीज़ों में व्यय कर दे।
394. كَفاكَ مُؤَدِّباً لِنَفسِكَ تَجَنُّبُ ما كَرِهتَهُ مِن غَيرِكَ: (7077)
394. स्वयं को शिष्टाचारी बनाने के लिए यह काफ़ी है कि दूसरों की जो बातें पसंद न आयें, उनसे स्वयं भी दूर रहे।
395. كَثرَةُ المُزاحِ تُسقِطُ الهَيبَةَ: (7101)
395. अधिक मज़ाक़, रौब को ख़त्म कर देता है।
396. كَثرَةُ الغَضَبِ تُزرِي بِصاحِبِهِ وَتُبدِي مَعايِبَهُ: (7107)
396. अधिक क्रोध, क्रोधी को अपमानित करा देता है और उसकी बुराइयों को प्रकट कर देता है।
397. كُن سَمِحاً وَلا تَكُن مُبَذِّراً: (7138)
397. दानी बनो, लेकिन व्यर्थ ख़र्च करने वाले न बनो।
398. كُن مَشغُولاً بِما أنتَ عَنهُ مَسئُولٌ: (7143)
398. तुम उस काम में व्यस्त रहो जिसके बारे में तुम से पूछ ताछ की जायेगी।
399. كُن لِلمَظلذومِ عَوناً، وَلِلظّالِمِ خَصماً: (7153)
399. पीड़ित के सहायक और अत्याचारी के दुश्मन बनो।
400. كُن بَعيدَ الهِمَمِ إذا طَلَبتَ، كَريمَ الظَّفَرِ إذا غَلَبتَ: (7161)
400. जब किसी चीज़ को प्राप्त करना चाहो तो उच्च हिम्मत से काम करो और जब किसी चीज़ पर अधिपत्य जमा लो तो अपनी सफला में महानता का परिचय दो।
401. كُن بِأسرارِكَ بَخيلاً، وَلا تُذِع سِرّاً اُودِعتَهُ فَإنَّ الإذاعَةَ خِيانَةٌ: (7175)
401. अपने रहस्यों के बारे में कँजूस बन जाओ (अर्थात किसी को न बताओ) और अगर कोई तुम्हें अपना राज़ बता दे तो उसके राज़ को न खोलो, क्योंकि किसी के राज़ को खोलना, ग़द्दारी है।
402. كُلَّما كَثُرَ خُزّانُ الأسرارِ كَثُرَ ضِياعُها: (7197)
402. जितने राज़दार बढ़ते जायेंगे, उतने ही राज़ खुलते जायेंगे।
403. كَما تَدينُ تُدانُ: (7208)
403. जिसे तुम कर्ज़ दोगे वह तुम्हें कर्ज़ देगा।
404. كَما تَزرَعُ تَحصُدُ: (7215)
404. जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।
405. كُفرانُ النِّعَمِ يُزِلُّ القَدَمَ وَيَسلُبُ النِّعَمَ: (7239)
405. नेमत की नाशुक्री पैरों को लड़ खड़ा देती है और नेमत को रोक देती है।
406. لِكُلِّ ضَيق مَخرَجٌ: (7266)
406. हर तंग जगह से बाहर निकलने का रास्ता है।
407. لِكُلِّ مَقامِ مَقالٌ: (7293)
407. हर जगह के लिए एक बात है।
408. لِكُلِّ شَيء زَكاةٌ وَزَكاةُ العَقلِ احتِمالُ الجُهّالِ: (7301)
408. हर चीज़ के लिए एक ज़कात है और बुद्धी की ज़कात मूर्ख लोगों को बर्दाश्त करना है।
409. لِطالِبِ العِلمِ عِزُّ الدُّنيا وَفَوزُ الآخِرَةِ: (7349)
409. तालिबे इल्म (शिक्षार्थी) के लिए दुनिया में सम्मान और आख़ेरत में सफलता है।
410. لِلمُؤمِنِ ثَلاثُ ساعات: ساعَةٌ يُناجي فيها رَبَّهُ وَساعَةٌ يُحاسِبُ فِيها نَفسَهُ، وَساعَةٌ يُخَلِّي بَينَ نَفسِهِ وَلَذَّتِها فِيما يَحِلُّ وَيَجمُلُ: (7370)
410. मोमिन के लिए तीन वक़्त हैं: एक वक़्त वह जिसमें अल्लाह की इबादत करता है, दूसरा वक़्त वह जिसमें (अपने कार्यों का) हिसाब करता है, तीसरा वक़्त वह जिसमें वह हलाल व अच्छी लज़्ज़तो का आनंनद लेता है।
411. لِيَكُن أبغَضُ النّاسِ إلَيكَ وَأبعَدُهُم مِنكَ أطلَبَهُم لِمَعايِبِ النّاسِ: (7378)
411. तुम्हें सबसे ज़्यादा क्रोध उस इंसान पर करना चाहिए, और सबसे ज़्यादा दूर उस इंसान से रहना चाहिए, जो लोगों की बुराईयों की तलाश में अधिक रहता हो।
412. لَن يَفُوزَ بِالجَنَّةِ إلاَّ السّاعِي لَها: (7404)
412. जन्नत में उन लोगों के अलावा कोई नही जायेगा जो उसमें जाने के लिए कोशिश करते हैं।
413. لَن يُجدِيَ القَولُ حَتّى يَتَّصِلَ بِالفِعلِ: (7413)
413. किसी भी बात का उस समय तक फ़ायदा नही है, जब तक उसके अनुसार कार्य न किया जाये।
414. لَن تُدرِكَ الكَمالَ حَتّى تَرقى عَنِ النَّقصِ: (7423)
414. तुम उस समय तक कमाल पर नही पहुँच सकते, जब तक (अपनी) कमियों को दूर न कर लो।
415. لَيسَ مَعَ قَطيعَةِ الرَّحِمِ نَماءٌ: (7455)
415. क़त- ए- रहम (संबंधियों से नाता तोड़ना) के साथ विकास नही है।
416. لَيسَ لاِنفُسِكُم ثَمَنٌ إلاَّ الجَنَّةُ فَلا تَبيعُوها إلاّ بِها: (7492)
416. तुम्हारी जान की क़ीमत जन्नत के अलावा कुछ नही है, इस लिए तुम उसे जन्नत के अलावा किसी चीज़ के बदले में न बेंचो।
417. لَيسَ مِنَ العَدلِ القَضاءُ عَلَى الثِّقَةِ بِالظَّنِّ: (7500)
417. अमानतदार, इंसान के बारे में किसी आशंका के आधार पर कोई फैसला करना न्यायपूर्वक नही है।
418. لَيسَ لَكَ بِأخ مَنِ احتَجتَ إلى مُداراتِهِ: (7503)
418. वह तुम्हारा भाई नही है, जिसके प्रेम पूर्वक व्यवहार की तुम्हें ज़रूरत हो।
419. لَيسَ لَكَ بِأخ مَن أحوَجَكَ إلى حاكِم بَينَكَ وَبَينَهُ: (7505)
419. वह तुम्हारा भाई नही है जो तुम्हें अपने व तुम्हारे बीच फ़ैसले के लिए (किसी तीसरे फ़ैसला करने वाले का) मोहताज बना दे।
420. لَيسَ لِلعاقِلِ أن يَكُونَ شاخِصاً إلاّ فِي ثَلاث: خُطوَة في مَعاد، أو مَرَمَّةِ لِمَعاش أو لَذَّة في غَيرِ مُحَرَّم: (7524)
420. बुद्धिमान के लिए शौभनीय नही है कि वह निम्न- लिखित तीन कामों के अतिरिक्त कोई अन्य काम करे: क़ियामत के लिए काम करना, जीविका कमाना और हलाल तरीक़े से मज़ा लेना।
421. لَم يَعقِل مَواعِظَ الزَّمانِ مَن سَكَنَ إلى حُسنِ الظَّنِّ بِالأيّامِ: (7549)
421. जो समय के बारे में ख़ुश गुमान रहता है उस आदमी को ज़माने की शक्षाएं व नसीहतें बुद्धिमान नही बना सकती हैं।
422. لَم يَعقِل مَن وَلِهَ بِاللَّعِبِ وَاستُهتِرَ بِاللَّهوِ وَالطَّرَبِ: (7568)
422. जो खेल कूद, नाच गाने और व्यर्थ बातों का आशिक़ बन जाये, वह बुद्धिमान नही है
423. لَوِ اعتَبَرتَ بِما أضَعتَ مِن ماضِي عُمرِكَ لَحَفِظتَ ما بَقِيَ: (7589)
423. अगर तुम अपनी व्यर्थ बीती हुई उम्र से शिक्षा लो तो शेष उम्र की रक्षा करो।
424. لَو يَعلَمُ المُصَلّي ما يَغشاهُ مِنَ الرَّحمَةِ لَما رَفَعَ رَأسَهُ مِنَ السُّجُودِ: (7592)
424. अगर नमाज़ पढ़ने वाला यह जान जाये कि उसे कौनसी रहमत (अनुकम्पा) घेरे हुए है तो वह सजदे से सर न उठाये।
425. لَو بَقِيَتِ الدُّنيا عَلى أحَدِكُم لَم تَصِل إلى مَن هِيَ فِي يَدَيهِ: (7608)
425. अगर दुनिया तुम में से किसी एक के पास बाक़ी रहती तो जिसके पास आज है, उसके पास कभी न पहुँचती।
426. لِيَكُن مَركَبُكَ القَصدَ وَمَطلَبُكَ الرُّشدَ: (7619)
426. मध्य चाल के घोड़े पर सवार होकर अपने विकास की ओर बढ़ो। अर्थात अपने ख़र्च को सीमित करो न अधिक ख़र्च करो और न बहुत कम।
427. لِن لِمَن غالَظَكَ فَإنَّهُ يُوشِكُ اَن يَلينَ لَكَ: (7620)
427. जो तुम्हारे साथ सख़्ती करे, तुम उसके साथ नर्मी करो, वह भी तुम्हारे लिए नर्म हो जायेगा।
428. لِقاءُ أهلِ المَعرِفَةِ عِمارَةُ القُلُوبِ وَمُستَفادُ الحِكمَةِ: (7635)
428. अहले मारेफ़त (आध्यात्मिक लोग) से मिलने जुलने पर दिल खुश होता है और हिकमत (बुद्धी) बढ़ती है।
429. لَذَّةُ الكِرامِ فِي الإطعامِ، وَلَذَّةُ اللِّئامِ فِي الطَّعامِ: (7638)
429. करीम (श्रेष्ठ) लोगों को खिलाने में मज़ा आता है और नीच लोगों को खाने में मज़ा आता है।
बारहवां भाग
430. مَن أنصَفَ أُنصِفَ: (7692)
430. जो इंसाफ़ करता है, उसके साथ इंसाफ़ होता है।
431. مَن أحسَنَ المَسأَلَةَ أُسعِفَ: (7693)
431. जो अच्छे ढंग से माँगता है, उसे मिलता है।
432. مَن مَدَحَكَ فَقَد ذَبَحَكَ: (7766)
432. जिसने तुम्हारी प्रशंसा की, उसने तुम्हें क़त्ल कर दिया।
433. مَن دَخَلَ مَداخِلَ السُّوءِ اتُّهِمَ: (7778)
433. जो बुरी जगह जाता है, उस पर आरोप लगते हैं।
434. مَن نَسِيَ اللهَ أنساهُ نَفسَهُ: (7797)
434. जो अल्लाह को भूल जाता है, अल्लाह उसे ख़ुद उससे भुला देता है।
435. مَن أساءَ خُلقَهُ عَذَّبَ نَفسَهُ: (7798)
435. जो स्वयं को दुष्ट बना लेता है, वह कठिनाईयाँ झेलता है।
436. مَن عَجِلَ كَثُرَ عِثارُهُ: (7838)
436. जो जल्दी करता है, उसकी ग़लतियाँ अधिक होती हैं।
437. مَن أحَبَّ شَيئاً لِهِجَ بِذِكرِهِ: (7851)
437. जो जिस चीज़ से मोहब्बत करता, उसकी ज़बान पर उसका नाम रहता है।
438. مَن قَبَضَ يَدَهُ مَخافَةَ الفَقرِ فَقَد تَعَجَّلَ الفَقرَ: (7877)
438. जो निर्धनता के डर से अपने हाथ को (दान देने से) रोक ले, समझो वह तेज़ी के साथ निर्धनता की ओर बढ़ रहा है।
439. مَن نَظَرَ فِي العَواقِبِ سَلِمَ: (7921)
439. जो (किसी काम के) परिणाम पर विचार करता है, वह सुरक्षित रहता है।
440. مَن جَهِلَ مَوضِعَ قَدَمِهِ زَلَّ: (7920)
440. जो अपने रास्ते को न जानता हो, वह भटक जाता है।
441. مَن وَعَظَكَ أحسَنَ إلَيكَ: (7924)
441. जिसने तुम्हें नसीहत की, उसने तुम्हारे साथ भलाई की।
442. مَن وافَقَ هَواهُ خالَفَ رُشدَهُ: (7957)
442. जिसने अपनी इच्छाओं का समर्थन किया, उसने अपने विकास को अवरुद्ध किया।
443. مَن أحسَنَ إلى جِيرانِهِ كَثُرَ خَدَمُهُ: (7967)
443. जो अपने पड़ौसियों के साथ भलाई करता है, उसके सेवक ज़्यादा हो जाते हैं।
444. مَن أظهَرَ عَزمَهُ بَطَلَ حَزمُهُ: (7980)
444. जो अपने इरादे को प्रकट कर देता है, उसकी दूरदर्शिता समाप्त हो जाती है।
445. مَن غَشَّ نَفسَهُ لَم يَنصَح غَيرَهُ: (8008)
445. जो स्वयं को धोखा देता है, वह दूसरों को नसीहत नही कर सकता।
446. مَن عُرِفَ بِالكِذبِ لَم يُقبَل صِدقُهُ: (8010)
446. जो झूठा मशहूर हो जाता है, उसकी सच्ची बात भी स्वीकार नही की जाती।
447. مَن أعمَلَ اجتِهادَهُ بَلَغَ مُرادَهُ: (8058)
447. जो कोशिश व मेहनत करता है, वह अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है।
448. مَن ظَنَّ بِكَ خَيراً فَصَدِّق ظَنَّهُ: (8066)
448. जो तुम्हारे बारे में अच्छा विचार रखता है, (तुम अपने व्यवहार से) उसके विचार को सत्य कर दिखाओ।
449. مَن رَجاكَ فَلا تُخَيِّب أمَلَهُ: (8067)
449. जो तुम से कोई उम्मीद रखता हो, उसे ना उम्मीद न करो।
450. مَن عَلِمَ أنَّهُ مُؤاخَذٌ بِقَولِهِ فَليُقَصِّر فِي المَقالِ: (8124)
450. जिसे यह पता हो कि उससे उसकी बात चीत के बारे में पूछ ताछ की जायेगी, उसे कम बोलना चाहिए।
451. مَن خَلا بِالعِلمِ لَم تُوحِشهُ خَلوَةٌ: (8125)
451. जो ज्ञान के साथ रहता है, उसे कोई तन्हाई नही डरा सकती।
452. مَن تَسَلَّى بِالكُتُبِ لَم تَفُتهُ سَلَوةٌ: (8126)
452. जिसे किताबों से आराम मिलता है, समझो उसने आराम का कोई साधन नही खोया है।
453. مَن أُعطِىَ الدُّعاءَ لَم يُحرَمِ الإجِابَةَ: (8143)
453. जिसे दुआ की तौफ़ीक़ दी जाती है, उसे दुआ के क़बूल होने से महरूम (वंचित) नही रखा जाता।
454. مَن جانَبَ الإخوانَ عَلى كُلِّ ذَنبِ قَلَّ أصدِقاؤُهُ: (8166)
454. जो अपने दोस्तों से, उनकी ग़लतियों की वजह से अलग हो जाता है, उसके दोस्त कम हो जाते हैं।
455. مَن أبانَ لَكَ عَيبَكَ فَهُوَ وَدُودُكَ: (8210)
455. जो तुम्हें, तुम्हारी बुराइयों के बारे में बताये, वह तुम्हारा दोस्त है।
456. مَن عَرَفَ النّاسَ لَم يَعتَمِد عَلَيهِم: (8232)
456. जो लोगों को जान जाता है, उन पर भरोसा नहीं करता।
457. مَن سَألَ فِي صِغَرِهِ أجابَ فِي كِبَرِهِ: (8273)
457. जो बचपन में पूछता है, वह बड़े होकर जवाब देता है। अर्थात जो बचपन में ज्ञान प्राप्त करता है, वह बड़ा होने पर लोगों के प्रश्नों के उत्तर देता है।
458. مَن قَرَعَ بابَ اللهِ فُتِحَ لَهُ: (8292)
458. जो अल्लाह के दरवाज़े को खटखटाता है, उसके लिए दरवाज़ा खुल जाता है।
459. مَن شَرُفَت هِمَّتُهُ عَظُمَت قِيمَتُهُ: (8320)
459. जिसमें जितनी अधिक हिम्मत होती है, उसका उतना ही अधिक महत्व होता है।
460. مَن أطاعَ هَواهُ باعَ آخِرَتَهُ بِدُنياهُ: (8354)
460. जिसने अपनी हवस व इच्छाओं का अनुसरण किया, उसने अपनी आख़ेरत को दुनिया के बदले बेंच दिया।
461. مَن حُسُنَت عِشرَتُهُ كَثُرَ إخوانُهُ: (8392)
461. जिसका व्यवहार अच्छा होता है, उसके भाई (दोस्त) अधिक होते हैं।
462. مَنِ اتَّجَرَ بِغَيرِ عِلم فَقَدِ ارتَطَمَ فِي الرِّبا: (8401)
462. जो ज्ञान (फ़िक़्ह) को जाने बिना व्यापार करता है, वह सूद में डूब जाता है।
463. مَن قالَ مالا يَنبَغي سَمِعَ مالا يَشتَهِي: (8417)
463. जो अनुचित बात कहता है, वह बुरी भली सुनता है।
464. مَن كَظَّتهُ البِطنَةُ حَجَبَتهُ عَنِ الفِطنَةِ: (8459)
464. जो अधिक खाने के दुख में घिर जाता है, वह बुद्धिमत्ता से दूर रह जाता है।
465. مَن دارَى النّاسَ أمِنَ مَكرَهُم: (8465)
465. जो लोगों का मान सम्मान करता है, वह उनकी धोखे धड़ी से सुरक्षित रहता है।
466. مَن أحَبَّنا فَليَعمَل بِعَمَلِنا وَليَتَجَلبَبِ الوَرَعَ: (8483)
466. जो हम (अहलेबैत) से मोहब्बत करता है, उसे चाहिए कि वह हमारी तरह व्यवहार करे और मुत्तक़ी बन जाये।
467. مَن طَلَبَ شَيئاً نالَهُ أو بَعضَهُ: (8490)
467. जो किसी चीज़ को चाहता है, वह उसे पूर्ण रूप से या उसके कुछ हिस्से को प्राप्त कर लेता है।
468. مَن يَطلُبِ الهِدايَةَ مِن غَيرِ أهلِها يَضِلُّ: (8501)
468. जो किसी अयोग्य व्यक्ति से मार्गदर्शन चाहता है, वह भटक जाता है।
469. مَن جالَسَ الجُهّالَ فَليَستَعِدَّ لِلقيلِ وَالقالِ: (8505)
469. मूर्खों के साथ उठने बैठने लाले को, व्यर्थ की बातें सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए।
470. مَن رَقى دَرَجاتِ الهِمَمِ عَظَّمَتهُ الأُمَمُ: (8526)
470. जो हिम्मत के द्वारा उन्नति करता है, लोग उसे बड़ा मानते हैं।
471. مَن كَشَفَ ضُرَّهُ لِلنّاسِ عَذَّبَ نَفسَهُ: (8542)
471. जिसने अपनी कठिनाई को लोगों पर प्रकट कर दिया, उसने स्वयं को अज़ाब में डाल लिया।
472. مَن أظهَرَ فَقرَهُ أذَلَّ قَدرَهُ: (8555)
472. जिसने अपनी निर्धनता को दूसरों के सामने प्रकट कर दिया, उसने अपना महत्व घटा लिया।
473. مَن كَثُرَ فِكرُهُ فِي المَعاصِيَ دَعَتهُ إلَيها: (8561)
473. जो गुनाहों के बारे में अधिक विचार करता है, उसे गुनाह अपनी तरफ़ खीँच लेते हैं।
474. مَنِ استَنكَفَ مِن أبَوَيهِ فَقَد خالَفَ الرُّشدَ: (8623)
474. जिसने घमंड के कारण अपने माँ बाप की अवज्ञा की, उसने अपने विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया।
475. مَن بَخِلَ عَلى نَفسِهِ كانَ عَلى غَيرِهِ أبخَلَ: (8625)
475. जो स्वयं अपने बारे में कंजूसी करता है, वह दूसरों के बारे में अधिक कंजूसी करता है।
476. مَن ظَلَمَ العِبادَ كانَ اللهُ خَصمَهُ: (8637)
476. जो अल्लाह के बंदों पर अत्याचार करता है, अल्लाह उसका दुश्मन है।
477. مَن أسرَعَ فِي الجَوابِ لَم يُدرِكِ الصَّوابَ: (8640)
477. जो जवाब देने में जल्दी करता है, वह सही जवाब नही दे पाता।
478. مَن عَمِلَ بِالحَقِّ مالَ إلَيهِ الخَلقُ: (8646)
478. जो हक़ (सच्चाई) के साथ काम करता है, लोग उसकी तरफ़ झुकते हैं।
479. مَن مَدَحَكَ بِما لَيسَ فيكَ فَهُوَ خَليقٌ أن يَذُمَّكَ بِما لَيسَ فِيكَ: (8658)
479. जो तुम्हारी उस बारे में प्रशंसा करे जो बात तुम्हारे अन्दर नहीं पाई जाती है, उसे अधिकार है कि वह तुम्हारी उस बारे में बुराई भी करे जो तुम्हारे अन्दर नही पाई जाती है।
480. مَن كافَأَ الإحسانَ بِالإساءَةِ فَقَد بَرِيءَ مِنَ المُرُوَّةِ: (8674)
480. जो भलाई का बदला बुराई से देता है, उसमें मर्दानगी नही पाई जाती।
481. مَن كَرُمَت عَلَيهِ نَفسُهُ لَم يُهِنها بِالمَعصِيَةِ: (8730)
481. जो इज़्ज़तदार होता है, वह स्वयं को गुनाहों के द्वारा अपमानित नही करता।
482. مَن ضَعُفَ عَن سِرِّهِ فَهُوَ عَن سِرِّ غَيرِهِ أضعَفُ: (8757)
482. जो अपने राज़ छिपाने में कमज़ोर होता है, वह दूसरों के राज़ को छिपाने में अधिक कमज़ोर होता है।
483. مَن أسهَرَ عَينَ فِكرَتِهِ بَلَغَ كُنهَ هِمَّتِهِ: (8784)
483. जो अपने विचार की आँखों को खुला रखता है, वह अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।
484. مَن تَطَلَّعَ عَلى أسرارِ جارِهِ انهَتَكَت أستارُهُ: (8798)
484. जो अपने पड़ोसी के रहस्यों को जानने की कोशिश करता है, उसका पर्दा फट जाता है, अर्थात उसके स्वयं के राज़ खुल जाते हैं।
485. مَن كَثُرَ في لَيلِهِ نَومُهُ فاتَهُ مِنَ العَمَلِ مالا يَستَدرِكُهُ في يَومِهِ: (8827)
485. जो रात में अधिक सोता है, उसके कुछ ऐसे काम छुट जाते हैं, जिन्हें वह दिन में पूरा नही कर सकता।
486. مَن كانَت هِمَّتُهُ ما يَدخُلُ بَطنَهُ كانَت قيمَتُهُ ما يَخرُجُ مِنهُ: (8830)
486. जिस इंसान की पूरी ताक़त उस चीज़ में ख़र्च होती है, जो उसके पेट में जाती है, उसका महत्व उस चीज़ के बराबर है जो पेट से बाहर निकलती है।
487. مَن أصلَحَ أمرَ آخِرَتِهِ أصلَحَ اللهُ لَهُ أمرَ دُنياهُ: (8857)
487. जो अपने आख़ेरत के कामों को सुधारता है, अल्लाह उसके दुनिया के कामों को सुधार देता है।
488. مَن يَكتَسِب مالاً مِن غَيرِ حِلِّهِ يَصرِفهُ في غَيرِ حَقَّهِ: (8883)
488. जो हराम तरीक़े से माल कमाता है, वह उसे ग़लत कामों में ख़र्च करता है।
489. مَنِ استَعانَ بِذَوِي الألبابِ سَلَكَ سَبيلَ الرَّشادِ: (8912)
489. जो बुद्धिमान लोगों से सहायता माँगता है, वह उन्नती के मार्ग पर चलता है।
490. مَن لَم يَتَعَلَّم فِي الصِّغَرِ لَم يَتَقَدَّم فِي الكِبَرِ: (8937)
490. जो बचपन में नही पढ़ता, वह बड़ा होने पर आगे नही बढ़ता।
491. مَن لَم تَسكُنِ الرَّحمَةُ قَلبَهُ قَلَّ لِقاؤُها لَهُ عِندَ حاجَتِهِ: (8974)
491. जिसके दिल में मुहब्बत नही होती, उसके पास ज़रूरत के वक़्त कम लोग आते हैं।
492. مَن طَلَبَ رِضَى اللهِ بِسَخَطِ النّاسِ رَدَّ اللهُ ذامَّهُ مِنَ النّاسِ حامِداً: (9035)
492. जो लोगों की नाराज़गी के साथ भी अल्लाह की खुशी चाहता है, अल्लाह बुराई करने वाले लोगों को भी उसका प्रशंसक बना देता है।
493. مَنِ اقتَصَدَ فِي الغِنى وَالفَقرِ فَقَدِ استَعَدَّ لِنَوائِبِ الدَّهرِ: (9048)
493. जो मालदारी व ग़रीबी दोनों में मध्य मार्ग को अपनाता है, वह सांसारिक कठिनाईयों का सामना करने के लिए तैयार रहता है।
494. مَنِ افتَخَرَ بِالتَّبذيرِ احتُقِرَ بِالإفلاسِ: (9057)
494. जो व्यर्थ ख़र्च पर गर्व करता है, वह निर्धनता के हाथों अपमानित होता है।
495. مَن دَنَت هِمَّتُهُ فَلا تَصحَبهُ: (9086)
495. कम हिम्मत लोगों के साथी न बनों।
496. مَن هانَت عَلَيهِ نَفسُهُ فَلا تَرجُ خَيرَهُ: (9087)
496. जो स्वयं को ज़लील समझता हो, उससे किसी भलाई की उम्मीद न रखो।
497. مَن نَقَلَ إلَيكَ نَقَلَ عَنكَ: (9133)
497. जो दूसरों की बातें तुम्हें बताता है, वह तुम्हारी बातें दूसरों को बताता है।
498. مَن بَرَّ والِدَيهِ بَرَّهُ وَلَدُهُ: (9145)
498. जो अपने माँ बाप के साथ भलाई करता है, उसकी संतान उसके साथ भलाई करती है।
499. مَن لَم يَتَغافَل وَلا يَغُضَّ عَن كَثير مِنَ الأُمُورِ تَنَغَّصَت عِيشَتُهُ: (9149)
499. जो बहुत से कार्यों से अचेत न बने और बहुत से कार्यों को अनदेखा न करे उसकी ज़िन्दगी अंधेरी हो जाती है।
500. مَن شَبَّ نارَ الفِتنَةِ كانَ وَقُوداً لَها: (9163)
500. जो उपद्रव की आग भड़काता है, वह स्वयं उसका ईंधन बनता है।
501. مَنِ ادَّعى مِنَ العِلمِ غايَتَهُ فَقَد أظهَرَ مِن جَهلِهِ نِهايَتَهُ: (9193)
501. जिसने यह दावा किया कि मैं ज्ञान की अंतिम सीमा तक पहुंच गया हूँ, उसने अपनी मूर्खता की अंतिम सीमा को प्रकट कर दिया।
502. مِن شَرائِطِ الإيمانِ حُسنُ مُصاحَبَةِ الإخوانِ: (9282)
502. ईमान की शर्तों में से एक शर्त भईयों के साथ सद्व्यवहार भी है।
503. مِن أحسَنِ الفَضلِ قَبُولُ عُذرِ الجانِي: (9294)
503. उच्च श्रेष्ठताओं में से एक श्रेष्ठता ग़लती करने वाले की मजबूरी को स्वीकार करना भी है।
504. مِن أشرَفِ أفعالِ الكَريمِ تَغافُلُهُ عَمّا يَعلَمُ: (9321)
504. करीम इंसान के श्रेष्ठ कार्यों में से एक काम किसी बात को जानते हुए उसे अनदेखा करना है।
505. مِن أماراتِ الخَيرِ الكَفُّ عَنِ الأذى: (9330)
505. (लोगों को) पीड़ा पहुँचाने से दूर रहना, नेकी व भलाई की एक निशानी है।
506. مِن أماراتِ الدَّولَةِ اليَقَظَةُ لِحِراسَةِ الأُمُورِ: (9360)
506. हुकूमत की (मज़बूती) की एक निशानी, कामों की देख रेख के लिए जागना है।
507. مِن كَمالِ السَّعادَةِ السَّعِيُ في إصلاحِ الجُمهُورِ: (9361)
507. साधारण जनता के सुधार की कोशिश करना सबसे बड़ी भाग्यशालिता है।
508. مِن أعظَمِ الشَّقاوَةِ القَساوَةُ: (9376)
508. हृदय की कठोरता सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
509. مِنَ الاِقتِصادِ سَخاءٌ بَغَيرِ سَرَفِ، وَمُرُوَّةٌ مِن غَيرِ تَلَف: (9419)
509. व्यर्थ खर्च किये बिना दान देना और तोड़ फोड़ के बिना मर्दानगी दिखाना, मध्यक्रम की निशानी है।
510. مِن كَمالِ الإنسان وَوُفُورِ فَضلِهِ استِشعارُهُ بِنَفسِهِ النُقصانَ: (9442)
510. अपने नफ़्स के नुक़्सान के बारे में जानकारी लेना, इंसान के कमाल व अत्याधिक श्रेष्ठ होने की निशानी है।
511. ما عَزَّ مَن ذَلَّ جيرانَهُ: (9486)
511. अपने पड़ोसी को ज़लील करने वाला, इज़्ज़त नही पा सकता।
512. ما تَزَيَّنَ مُتَزَيِّنٌ بِمِثلِ طاعَةِ اللهِ: (9489)
512. कोई भी श्रृंगार करने वाला, अल्लाह की आज्ञा का पालन करने वाले के समान सुशौभित नही है।
513. ما أكثَرَ العِبَرَ وَأقَلَّ الاِعتِبارَ: (9542)
513. नसीहतें कितनी अधिक हैं और नसीहत लेना कितना कम।
514. مَا اتَّقى أحَدٌ إلاّ سَهَّلَ اللهُ مَخرَجَهُ: (9565)
514. कोई मुत्तक़ी ऐसा नही है, जिसके कठिनाईयों से बाहर निकलने के रास्ते को अल्लाह ने आसान न बनाया हो।
515. ما حُفِظَتِ الأُخُوَّةُ بِمِثلِ المُواساةِ: (9578)
515. जिस प्रकार जान व माल के द्वारा सहायता, दोस्ती व भाईचारे को रक्षा करती है, उस तरह कोई भी चीज़ दोस्ती को बाक़ी नही रखती।
516. مَا اختَلَفَت دَعوَتانِ إلاّ كانَت إحداهُما ضَلالَةً: (9592)
516. दो निमन्त्रण परसपर विरोधी नही हो सकते, जब तक उनमें से एक भ्रमित करने वाला न हो।
517. لا يَنبَغي أن تَفعَلَهُ فِي الجَهرِ فَلا تَفعَلهُ فِي السِّرِّ: (9636)
517. जिस काम को तुम खुले आम नही कर सकते हो, उसे छुपकर करना भी उचित नही है।
518. ما أكثَرَ الإخوانَ عِندَ الجِفانِ، وَأقَلَّهُم عِندَ حادِثاتِ الزَّمانِ: (9657)
518. जब इंसान के पास प्याला (भरा) होता है अर्थात उसके पास दुनिया का माल होता है तो उसके दोस्त अत्याधिक होते हैं और जब वह कठिनाईयों में घिरता हैं तो दोस्त बहुत कम दिखाई देते हैं !!।
519. ما تَزَيَّنَ الإنسانُ بِزينَةِ أجمَلَ مِنَ الفُتُوَّةِ: (9659)
519. इंसान बहादुरी से ज़्यादा किसी भी आभूषण से सुसज्जित नही हुआ है।
520. ما لُمتُ أحَداً عَلى إذاعَةِ سِرِّي اِذ كُنتُ بِهِ أضيَقَ مِنهُ: (9706)
520. जिसने मेरा राज़ खोला, मैंने उसे बुरा भला नही कहा, क्योंकि उसे छिपा कर रखने में मैं उससे भी अधिक तंग था।
521. مِلاكُ الأُمُورِ حُسنُ الخَواتِمِ: (9729)
521. कार्यों की अच्छाई का आधार, उनके अच्छे समापन पर है।
522. مُذيعُ الفاحِشَةِ كَفاعِلِها: (9759)
522. बुरी बातों को फैलाने वाला, बुरे काम करने वाले के समान है।
523. مَرارَةُ اليَأسِ خَيرٌ مِنَ التَّضَرُّعِ إلَى النّاسِ: (9795)
523. नाउम्मीदी की कड़वाहट को (बर्दाश्त करना) लोगों के सामने रोने से अच्छा है।
524. مَجالِسُ اللَّهوِ تُفسِدُ الإيمانَ: (9815)
524. व्यर्थ सभायें ईमान को ख़राब करती हैं।
525. مَثَلُ الدُّنيا كَظِلِّكَ إن وَقَفتَ وَقَفَ وَإن طَلَبتَهُ بَعُدَ: (9818)
525. दुनिया की मिसाल तुम्हारी स्वयं की परछाई जैसी है, जब तुम खड़े होते हो तो वह रुक जाती है और जब तुम उसके पीछे चलते हो तो वह तुम से दूर हो जाती है।
526. نِعمَ زادُ المَعادِ الإحسانُ إلَى العِبادِ: (9912)
526. लोगों के साथ भलाई करना, क़ियामत के लिए कितना अच्छा तौशा है। (इंसान किसी यात्रा पर जाते समय जो आवश्यक चीज़े अपने साथ ले जाता है उन्हें तौशा कहते हैं।)
527. نِعمَ عَونُ الدُّعاءِ الخُشُوعُ: (9945)
527. ख़ुशू-उ, (स्वयं को बहुत छोटा समझना व रोना) दुआ के लिए कितना अच्छा मददगार है। !
528. نَفَسُ المَرءِ خُطاهُ إلى أجَلِهِ: (9955)
528. इंसान की साँस, उसके मौत की तरफ़ बढ़ते हुए क़दम हैं।
529. نِعمَةٌ لا تُشكَرُ كَسَيِّئَةِ لا تُغفَرُ: (9959)
529. नेमत पर शुक्र न करना, माफ़ न होने वाले गुनाह जैसा है।
530. نُصحُكَ بَينَ المَلاَِ تَقريعٌ: (9966)
530. लोगों के बीच (किसी को) नसीहत करना, उसकी निंदा है।
531. نِظامُ الدِّينِ خَصلَتانِ: إنصافُكَ مِن نَفسِكَ، وَمُواساةُ إخوانِكَ: (9983)
531. धार्मिक व्यवस्था की दो विशेषताएं हैं, स्वयं अपने साथ इंसाफ़ करना और अपने भाईयों की जान व माल से सहायता करना।
532. نَزِّل نَفسَكَ دُونَ مَنزِلَتِها تُنَزِّلكَ النّاسُ فَوقَ مَنزِلَتِكَ: (9985)
532. अपने मान सम्मान से नीची जगह पर बैठो ताकि लोग तुम्हें तुम्हारे मान सम्मान से भी ऊँची जगह पर बैठायें।
533. نِفاقُ المَرءِ مِن ذُلٍّ يَجِدُهُ في نَفسِهِ: (9988)
533. इंसान का निफ़ाक़ (द्विवादिता) एक ऐसी नीचता है, जिसे वह अपने अन्दर पाता है।
तेरहवां भाग
534. هُدِيَى مَن تَجَلبَبَ جِلبابَ الدّينِ: (10012)
534. जिसने दीन की पोशाक पहन ली, वह हिदायत पा गया। अर्थात जिसने दीन को अपना लिया वह सफल हो गया।
535. هَلَكَ مَن لَم يَعرِف قَدرَهُ: (10020)
535. जिसने अपने महत्व को न समझा, वह बर्बाद हो गया।
536. وَلَدُ السُّوءِ يَهدِمُ الشَّرَفَ، وَيَشينُ السَّلَفَ: (10065)
536. बुरी संतान, प्रतिष्ठा को मिटा देती है और बुज़ुर्गों के अपमान का कारण बनती है।
537. وَقِّروا كِبارَكُم يُوَقِّركُم صِغارُكُم: (10069)
537. तुम अपने से बड़ों का आदर करो ताकि तुम से छोटे तुम्हारा आदर करें।
538. وَيلٌ لِمَن غَلَبَت عَلَيهِ الغَفلَةُ فَنَسِيَ الرِّحلَةَ وَلَم يَستَعِدَّ: (10088)
538. धिक्कार है उस पर जो इतना लापरवाह हो जाये कि अपने कूच (प्रस्थान) को भूल जाये और तैयार न हो।
539. وَحدَةُ المَرءِ خَيرٌ لَهُ مِن قَرينِ السُّوءِ: (10136)
539. बुरे इंसान के पास बैठने से, आदमी का तन्हा रहना अच्छा है।
चौदहवां भाग
540. لا تَأسَ عَلى ما فاتَ: (10153)
540. जो खो दिया, उस पर अफ़सोस न करो।
541. لا تَطمَع فِيما لا تَستَحِقُّ: (10157)
541. जिसके तुम हक़दार नही हो, उसका लालच न करो।
542. لا تَثِقَنَّ بِعَهدِ مَن لا دينَ لَهُ: (10163)
542. किसी बेदीन के साथ किये हुए समझौते पर भरोसा न करो।
543. لا تُحَدِّث بِما تَخافُ تَكذيبَهُ: (10173)
543. जिस बात के झुठलाये जाने का डर हो, उसे न कहो।
544. لا تَعِد بِما تَعجِزُ عَنِ الوَفاءِ بِهِ: (10177)
544. तुम में जिस बात को पूरा करने की ताक़त न हो, उसके बारे में वादा न करो।
545. لا تَعزِم عَلى ما لَم تَستبِنِ الرَّشدَ فيهِ: (10183)
545. उस काम को करने का संकल्प न करो, जिसकी उन्नति व विकास के बारे में तुम्हें जानकारी न हो।
546. لا تُمسِك عَن إظهارِ الحَقِّ اِذا وَجَدتَ لَهُ أهلاً: (10188)
546. हक़ बात कहने से न रुको, जब तुम्हें कोई हक़ बात सुनने योग्य मिल जाये।
547. لا تُمارِيَنَّ اللَّجُوجَ في مَحفِل: (10203)
547. झगड़ालु स्वभव वाले आदमी से भरी सभा में न उलझो।
548. لا تُعاتِبِ الجاهِلَ فَيَمقُتَكَ، وَعاتِبِ العاقِلَ يُحبِبِكَ: (10215)
548. मूर्ख की निंदा न करो क्योंकि वह तुम्हारा दुश्मन बन जायेगा और बुद्धिमान की निंदा करो वह तुम से मोहब्बत करेगा।
549. لا تَستَصغِرَنَّ عَدُوّاً وَاِن ضَعُفَ: (10216)
549. किसी भी दुश्मन को छोटा न समझो चाहे वह कमज़ोर ही क्यों न हो।
550. لا تُلاحِ الدَّنِيَّ فَيَجتَرِىءَ عَلَيكَ: (10221)
550. नीच इंसान से मत झगड़ो, वह तुम्हारे साथ दुष्टता करेगा।
551. لا تُؤيِسِ الضُّعَفاءَ مِن عَدلِكَ: (10225)
551. कमज़ोर लोगों को अपने न्याय से नाउम्मीद न करो।
552. لا تَعمَل شَيئاً مِنَ الخَيرِ رِياءُ وَلا تَترُكهُ حَياءً: (10254)
552. किसी भी नेक काम को दिखावे के लिए न करो और न शर्म की वजह से उसे छोड़ो।
553. لا تَثِقِ بِالصَّديقِ قَبلَ الخُبرَةِ: (10257)
553. परखे बिना दोस्त पर भरोसा न करो।
554. لا تَستَحيِ مِن إعطاءِ القَليلِ: فَإنَّ الحِرمانَ أقَلُّ مِنهُ: (10263)
554. कम (दान) देने में शर्म न करो, क्योंकि उससे वंचित रखना तो उससे भी कम है।
555. لا تَظلِمَنَّ مَن لا يَجِدُ ناصِراً إلاَّ اللهَ: (10284)
555. जिसका अल्लाह के अलावा कोई सहायक न हो उस पर अत्याचार न करो।
556. لا يَشغَلَنَّكَ عَنِ العَمَلِ لِلآخِرَةِ شُغلٌ: فَإنَّ المُدَّةَ قَصيرَةٌ: (10286)
556. (याद रखो) आख़ेरत के कामों से (रोकने के लिए) कोई काम तुम्हें स्वयं में व्यस्त न कर ले, क्योंकि समय बहुत कम है।
557. لا تَفرِحَنَّ بِسَقطَةِ غَيرِكَ لا تَدري ما يُحدِثُ بِكَ الزَّمانُ: (10290)
557. किसी के हारने या गिरने से खुश न हो, क्योंकि तुम्हें नही पता कि आने वाले समय में तुम्हारे साथ क्या घटित होने वाला है।
558. لا تَجعَل عِرضَكَ غَرَضاً لِقَولِ كُلِّ قائِلِ: (10304)
558. अपनी इज़्ज़त को हर बोलने वाले के तीर का निशाना न बनने दो।
559. لا تَستَبِدَّ بِرَأيِكَ، فَمَنِ استَبَدَّ بِرَأيِهِ هَلَكَ: (10311)
559. स्वेच्छाचारी न बनों, क्योंकि स्वेच्छाचारी मौत के घाट उतर जाता है।
560. لا تُسِيءِ الخِطابَ فَيَسُوءَكَ نَكيرُ الجَوابِ: (10324)
560. किसी को बुरी बात न कहो कि बुरा जवाब सुनने को मिले।
561. لا تَستَبطِيء اِجابَةَ دُعائِكَ وَقد سَدَدتَ طَريقَهُ بِالذُّنُوبِ: (10329)
561. अपनी दुआ के देर से क़बूल होने की (उम्मीद में न रहो) जब गुनाहों के द्वारा उसके क़बूल होने के रास्ते को बंद कर दिया हो।
562. لا تُدخِلَنَّ في مَشوَرَتِكَ بِخيلاً فَيَعدِلَ بِكَ عَنِ القصدِ، وَيَعِدَكَ الفَقرَ: (10348)
562. कभी भी कंजूस से मशवरा न करो, क्योंकि वह तुम्हें मध्य मार्ग से दूर कर देगा और निर्धनता से डरायेगा।
563. لا تُشرِكَنَّ في رَأيِكَ جَباناً يُضَعِّفُكَ عَنِ الأمرِ وَيُعَظِّمُ عَلَيكَ ما لَيسَ بِعَظيمِ: (10349)
563. किसी भी डरपोक से मशवरा न करना, क्योंकि वह तुम्हारी काम करने की शक्ति को कमज़ोर बना देगा और जो काम बड़ा नही है उसे तुम्हारे सामने बड़ा बनाकर पेश करेगा।
564. لا تَستَشِرِ الكَذّابَ: فَإنَّهُ كَالسَّرابِ يُقَرِّبُ عَلَيكَ البَعيدَ: وَيُبَعِّدُ عَلَيكَ القَريبَ: (10351)
564. झूठे से मशवरा न करना, वह सराब (मरीचिका) के समान होता है, वह दूर को तुम्हारे लिए समीप व समीप को दूर कर देगा।
565. لا تُشرِكَنَّ في مَشوَرَتِكَ حَريصاً يُهَوِّنُ عَلَيكَ الشَّرَّ وَيُزَيِّنُ لَكَ الشَّرَهَ: (10353)
565. किसी भी लालची से मशवरा न करना, वह तुम्हारे सामने बुराई को आसान और लालच को सुसज्जित कर के पेश करेगा।
566. لا تُؤَخِّر إنالَةَ المُحتاجِ إلى غَد: فَإنَّكَ لا تَدري ما يَعرِضُ لَكَ وَلَهُ في غَد: (10364)
566. निर्धन की आवश्क्ताओं की पूर्ति को कल पर मत टालो, क्योंकि तुम्हें नही पता कि आने वाले कल में तुम्हारे या उसके साथ क्या होने वाला है।
567. لا تَنقُضَنَّ سُنَّةً صالِحَةٌ عُمِلَ بِها وَاجتَمَعَتِ الأُلفَةُ لَها وَصَلَحَتِ الرَّعِيَّةُ عَلَيها: (10377)
567. उस अच्छी सुन्नत को न मिटाओ जिसे लोग अपनाये हुए हों और जिसके द्वारा आपस में एक दूसरे से मिलते हों और जिसमें उनके लिए भलाई हो।
568. لا تَصحَب مَن يَحفَظُ مَساوِيَكَ، وَيَنسى فَضائِلَكَ وَمَعالِيَكَ: (10419)
568. जो तुम्हारी बुराईयों को याद रखे और तुम्हारी विशेषताओं व उच्चताओं को भुला दे, उसे दोस्त न बनाओ।
569. لا تَقُل مالا تَعلَمُ فَتُتَّهَمَ بِإِخبِارِكَ بِما تَعلَمُ: (10426)
569. तुम जिस चीज़ के बारे में नही जानते हो, उसके बारे में कुछ न कहो, ताकि तुम्हारी उन बातों के बारे में शक न हो जिनके बारे में तुम अच्छी तरह जानते हो।
570. لا فِطنَةَ مَعَ بِطنَةِ: (10528)
570. भरा हुआ पेट व बुद्धिमत्ता एक साथ इकठ्ठा नही होते है।
571. لا جِهادَ كَجِهادِ النَّفسِ: (10551)
571. कोई जिहाद, नफ़्स से जिहाद करने के समान नही है, अर्थात अपनी इच्छाओं से लड़ी जाने वाली जंग जैसी कोई जंग नही है।
572. لا يَجِتَمِعُ الباطِلُ وَالحَقُّ: (10584)
572. हक़ व बातिल, झूठ व सच एक साथ इकठ्ठा नही होते है।
573. لا لِباسَ أجمَلُ مِنَ السَّلامَةِ: (10635)
573. स्वास्थ से सुन्दर कोई वेश नही है।
574. لا دِينَ لِمُسَوِّف بِتَوبَتِهِ: (10660)
574. जो तौबा करने में आज कल करता है, वह दीनदार नही है।
575. لا عَيشَ لِمَن فارَقَ أحِبَّتَهُ: (10661)
575. जो अपने दोस्तों से अलग हो जाये उसके लिए आराम नही है।
576. لا يُدرَكُ العِلمُ بِراحَةِ الجِسمِ: (10684)
576. शारीरिक आराम के साथ ज्ञान प्राप्त नही होता।
577. لا يَشبَعُ المُؤمِنُ وَأخُوهُ جائِعٌ: (10691)
577. मोमिन खाना नही खाता, (अगर) उसका भाई भूखा हो।
578. لا يَستَغنِي العاقِلُ عَنِ المُشاوَرَةِ: (10693)
578. बुद्धिमान यह नही सोचता कि उसे परामर्श व मशवरे की ज़रूरत नही है।
579. لا خَيرَ في لَذَّة لا تَبقى: (10707)
579. जो मज़ा बाक़ी रहने वाला न हो, उसमें भलाई नही है।
580. لا عَيشَ أهنَأُ مِنَ العافِيَةِ: (10728)
580. सेहत व स्वस्थता से अच्छा कोई आनंद नही है।
581. لا خَيرَ فيمَن يَهجُرُ أخاهُ مِن غَيرِ جُرمِ: (10741)
581. उसके लिए भलाई नही है जो अपने दोस्तों से उनकी किसी ग़लती के बिना ही अलग हो जाये।
582. لا تَكمُلُ المَكارِمُ إلاّ بِالعَفافِ وَالإيثارِ: (10745)
582. पारसाई व त्याग के बिना अख़लाक़ पूरा नही होता।
583. لا عَدُوَّ أعدى عَلَى المَرءِ مِن نَفسِهِ: (10760)
583. आदमी का उसके नफ़्स से बड़ा कोई दुश्मन नही है।
584. لا يُغتَبَطُ بِمَوَدَّةِ مَن لا دينَ لَهُ: (10803)
584. बेदीन से दोस्ती पर ख़ुश नही होते।
585. لا يَرضَى الحَسُودُ عَمَّن يَحسُدُهُ إلاّ بِالمَوتِ أو بِزَوالِ النِّعمَةِ: (10812)
585. ईर्ष्यालु उस समय तक खुश नही होता जब तक जिससे वह ईर्ष्या करता है वह मर न जाये या उसका धन दौलत न छिन जाये।
586. لا يَكُونُ الصَّديقُ صَديقاً حَتَّى يَحفَظَ أخاهُ في غَيبَتِهِ وَنَكبَتِهِ وَوَفاتِهِ: (10821)
586. दोस्त उस समय तक दोस्त (कहलाने के योग्य) नही है, जब तक अपने दोस्त की उनुपस्थिति में, उसकी परेशानी में और उसकी मौत पर दोस्ती का हक़ अदा न करे।
587. لا طاعَةَ لِمَخلوق في مَعصِيَةِ الخالِقِ: (10839)
587. पैदा करने वाले की अवज्ञा करने के लिए किसी की भी आज्ञा का पालन आवश्यक नही है।
588. لا يَفوزُ بِالجَنَّةِ اِلاّ مَن حَسُنَت سَريرَتُهُ وَخَلُصَت نِيَّتُهُ: (10868)
588. जिनकी आत्मा अन्दर से पाक व नीयत साफ़ है उनके अतिरिक्त कोई जन्नत में नही जा सकता।
589. لا خَيرَ في قَوم لَيسُوا بِناصِحينَ وَلا يُحِبُّونَ النّاصِحينَ: (10884)
589. जो क़ौम नसीहत करने वाली न हो और जो नसीहत करने वालों से मोहब्बत न करती हो, उसके लिए भलाई नही है।
590. لا خَيرَ في أخ لا يُوجِبُ لَكَ مِثلَ الَّذي يُوجِبُ لِنَفسِهِ: (10891)
590. उस भाई व दोस्त से कोई फ़ायदा नही है, जो जिस चीज़ को अपने लिए ज़रूरी समझता है, उसे तुम्हारे लिए ज़रूरी न समझे।
591. لا نِعمَةَ أهنَأُ مِنَ الأمنِ: (10911)
591. शांति से बढ़कर कोई भी नेमत सुख देने वाली नही है।
592. لا خَيرَ في قَلب لا يَخشَعُ، وَعَين لا تَدمَعُ، وَعِلم لا يَنفَعُ: (10913)
592. जो दिल अल्लाह से न डरता हो, जो आँख न रोती हो और जो ज्ञान फ़ायदा न पहुँचाता हो, उसमें कोई भलाई नही है।
593. يُستَدَلُّ عَلى عَقلِ كُلِّ امرِء بِما يَجرِي عَلى لِسانِهِ: (10957)
593. जो बात इंसान की ज़बान पर आती है, वह उसकी बुद्धी पर तर्क बनती है।
594. يُستَدَلُّ عَلى كَرَمِ الرَّجُلِ بِحُسنِ بِشرِهِ، وَبَذلِ بِرِّهِ: (10963)
594. मर्द का सदव्यवहार और उसकी भलाई व नेकी, उसकी श्रेष्ठता का तर्क है।
595. يَسيرُ الرِّياءُ شِركٌ: (10976)
595. लोगों को दिखाने के लिए किया जाने वाला थोड़ा काम भी शिर्क है।
596. يَسيرُ العَطاءِ خَيرٌ مِنَ التَّعَلُّلِ بِالاِعتِذارِ: (10991)
596. थोड़ा दान दे देना, बहाना बनाने व माफ़ी माँगने से अच्छा है।
597. يَبلُغُ الصّادِقُ بِصِدقِهِ مالا يَبلُغُهُ الكاذِبُ بِاحتِيالِهِ: (11006)
597. सच बोलने वाला, अपनी सच्चाई से उस चीज़ तक पहुँच जाता है, जिस तक झूठ बोलने वाला धोखे बाज़ी के द्वारा नही पहुँच पाता।
598. يُمتَحَنُ الرَّجُلُ بِفِعلِهِ لا بِقَولِهِ: (11026)
598. मर्दों को उनके कामों से परखो, उनकी बातों से नही।
599. يَومُ المَظلومِ عَلَى الظّالِمِ أشَدُّ مِن يَومِ الظّالِمِ عَلَى المَظلومِ: (11029)
599. ज़ालिम पर मज़लूम का दिन, मज़लूम पर ज़ालिम के दिन से कठिन है। अर्थात अत्याचारी के लिए अत्याचार की सज़ा पाने का दिन, अत्याचार करने के दिन से कठिन है।
600. يَكتَسِبُ الصّادِقُ بِصِدقِهِ ثَلاثاً: حُسنَ الثِّقَةِ بِهِ، وَالمَحَبَّةَ لَهُ، وَالمَهابَةَ عَنهُ: (11038)
600. सच बोलने वाले को अपने सच से तीन फ़ायदे होते हैं: (लोग) उस पर भरोसा करते हैं, उसके लिए दिलों में मोहब्बत पैदा होती है और उसको बड़ा मानते हुए उससे डरते हैं।
हदीसों के विषयों की सूची
अक़्ल:
अक़्ल पर अधिक खाने का दुषप्रभाव: हदीस न.464 व 570
अख़लाक़:
बुरे अखलाक़ से दूरी: हदीस न.189, जीवन पर अच्छे अख़लाक़ का प्रभाव: हदीस न.199,
अच्छी चीज़ का चुनाव:
अच्छी चीज़ के चुनाव में अनुभव की भूमिका: हदीस न.227
अच्छी बीवी:
अच्छी बीवी नेमत के रूप में: हदीस न.191
अच्छे कार्य:
अच्छे कार्यों के द्वारा सुधार: हदीस न.97
अच्छे दोस्त: हदीस न.35
अज़ाब
अज़ाब आने के कारण: हदीस न.333,
अत्याचार
लोगों पर अत्चार, अल्लाह से दुश्मनी: हदीस न.474, अत्याचार से दूरी: हदीस न.104, सबसे बुरा अत्याचार: हदीस न.331, विधवा पर अत्याचार: हदीस न.333, निस्सहाय पर अत्याचार: हदीस न.555, नेकी पर अत्याचार: हदीस न.332, यतीम पर अत्याचार: हदीस न.33, अत्याचार का विरोध: हदीस न.65, दुश्मन का अत्याचार: हदीस न.174
अत्याचारी
अत्याचारी से दुश्मनी: हदीस न.399,अत्याचारी का दिन: हदीस न.599,
अधिक खना
अधिक खाने का बुद्धी पर दुष्प्रभाव: हदीस न.464, अधिक खाने से दूरी: हदीस न.127, अधिक खाने का शरीर पर दुष्प्रभाव: हदीस न.127, अधिक खाने का दिल पर दुष्प्रभाव: हदीस न.127, अधिक खाने के नुक़्सान: हदीस न.50
अधिक बोलना
अधिक बोलने का गुनाहों पर प्रभाव : हदीस न.122, अधिक बोलने से बचना 122,
अनभिज्ञ बनना
अनभिज्ञ बनने का फ़ायदा: हदीस न.499
अनुचित जगह जाने का परिणाम: हदीस न.433
अनुभव
अनुभव से शिक्षा: हदीस न.173, अच्छे चुनाव में अनुभव का योगदान: हदीस न.227
अनुभावी
अनुभवी से मशवरा करना: हदीस न.246
अपनी इज़्ज़त स्वयं करना
अपनी इज़्ज़त करने का परिणाम: हदीस न.481
अपमान
अपमान में आवश्यक्ताओं की भूमिका: हदीस न.320, अपमान में क्रोध की भूमिका: हदीस न.396, अपमान को स्वीकार करना: हदीस न.276, बचने वाले से मिलना अपमान है: हदीस न.273, अपमान में लालच की भूमिका: हदीस न.17, निर्धनता से अपमान: हदीस न.494, स्वयं को अपमानित समझने वाला: हदीस न.496
अपमान का आधार: हदीस न.536
अम्र बिल मारूफ़ (अच्छे कार्य करने के लिए कहना)
अम्र बिल मारूफ़ का महत्व: हदीस न.85
अमानतदारी
मुक्ति व निजात पर अमानतदारी का प्रभाव: हदीस न.365, अमानतदारी का महत्व: हदीस न.135
अमीन
अमीन आदमी के बारे में फैसला करना: हदीस न.417
अलग रहना
अलग रहने से दूरी: हदीस न.111, दोस्तों से अलग होने के नुक़्सान: हदीस न.575 अल्लाह
अल्लाह से दूरी के कारण: हदीस न. 123 व 125, अल्लाह से मुहब्बत के प्रभाव: हदीस न.169, अल्लाह को भूलने के परिणाम: हदीस न.434
अल्लाह की आज्ञा का पालन
मुक्ति व निजात में अल्लाह की आज्ञा पालन का प्रभाव: हदीस न.171
अल्लाह का दरवाज़ा
अल्लाह के दरवाज़े को खटखटाना: हदीस न.458
अल्लाह का दुश्मन
लोगों पर अत्याचार के कारण अल्लाह से दुश्मनी: हदीस न.476
अल्लाह की याद
शैतान को भगाने में अल्लाह की याद का असर: हदीस न.260,
अल्लाह की रहमत पाने वाले: हदीस न.264 व 265
अल्लाह के महबूब (प्रियः)
अल्लाह के महबूब बनने वाले कारक: हदीस न.170
अल्लाह को ख़ुश करना
लोगों की नाराज़गी की परवाह न करके अल्लाह को ख़ुश करना: हदीस न. 492
अल्लाह से क़रीब होना
अल्लाह से क़रीब होने का तरीक़ा: हदीस न.71 व 213
अल्लाह से डरना
अल्लाह के डर से रोना: हदीस न.208
अल्लाह से शर्माना
अल्लाह से शर्माना गुनाहों से दूर करता: हदीस न. 59,
अशाँती
अशाँती की बुराईयाँ: हदीस न.301
अशौभनीय कार्य
अशौभनीय कार्यों से दूरी: हदीस न.118
अहले बैत अलैहिमुस्सलाम
अहले बैत की (अ.) मुहब्बत: हदीस न.466, अहले बैत (अ.) की पैरवी (अनुसरण): हदीस न.466, अहले बैत (अ.) की सीरत: हदीस न.327, अहले बैत (अ.) का मध्य मार्ग को अपनाना।
आख़ेरत (परलोक)
बुराईयाँ, आखेरत को बर्बाद करती है: हदीस न. 297, आख़ेरत को बर्बाद करने वाली बातों से दूरी: हदीस न.119, आख़ेरत के लिए मेहनत करना: हदीस न.288, 334, 420, 556, आख़ेरत के रास्ते का ख़र्च: हदीस न. 526, आख़ेरत की अमरता: हदीस न.1, दुनिया और आख़ेरत को इकठ्ठा करना: हदीस न. 326, आख़ेरत के कार्यों को व्यवस्थित करना: हदीस न. 487
आख़ेरत को बेंचना
आख़ेरत को हवस के बदले बेंचना: हदीस न.460, आख़ेरत को बेंचने से बचना: हदीस न.105
आँख
न रोने वाली आँख: हदीस न.592
आँखें बंद करना
जान बूझ कर अनभिज्ञ बनना: हदीस न.504
आत्म सुधार
आत्म सुधार में, अपनी क़िस्मत पर राज़ी रहने के प्रभाव: हदीस न.195, आत्म सुधार में संतुलन के प्रभाव: हदीस न.195, आत्म सुधार के उपाय: हदीस न.195
आदत
आदत का बदलना: हदीस न.358, दूसरों को चीज़ देने की आदत: हदीस न.346, ज़िद्द न करने की आदत: हदीस न.346, आदतों पर क़ाबू: हदीस न.133
आदर
आदर में खड़े होना: हदीस न.101 व 299, पिता का आदर: हदीस न. 101, उस्ताद का आदर: हदीस न.101, मेहमान का आदर: हदीस न. 101, उच्चता पाने में आदर की भूमिका: हदीस न.2 व 532, दोस्ती पर आदर सत्कार के प्रभाव: हदीस न.226 व 231
आध्यात्मिक लोग
आध्यात्मिक लोगों से लाभान्वित होना: हदीस न.428, आध्यात्मिक लोगों से मिलना: हदीस न.428
आबादी
आबादी में बादशाहों की भूमिका: हदीस न. 367
आभूषण
सबसे अच्छा आभूषण: हदीस न.519
आराम व आसानी
तवक़े से आराम व आसानी: हदीस न.514
आरिफ़ (ब्रह्मज्ञानी)
आरिफ़ का अपनी आत्मा को पाक रखना: हदीस न. 68, आरिफ़ का स्वयं को पहचानना: हदीस न.68, आरिफ़ का स्वयं को बुरी बातों से दूर रखना: हदीस न. 68
आरोप
आरोप लगने का कारण: हदीस न.433
आलस्य
आलस्य से मुक़ाबला: हदीस न.321
आवश्यक्ता
माँगने वाले की आवश्यक्ता को पूरा करना: हदीस न.67, नीच के सामने अपनी आवश्यक्ता को प्रकट करना: हदीस न.158
आशिक़
आशिक़ का माशूक़ की बुराई न सुनना: हदीस न.353, आशिक़ का माशूक़ की बुराई न देखना: हदीस न.353
आज्ञाकारी
गर्व करने वाला आज्ञाकारी: हदीस न.354
आज्ञा पालन
बड़ों की आज्ञा का पालन: हदीस न.109, आज्ञा पालन का आसान रास्ता: हदीस न.358, अल्लाह की अवज्ञा के लिए इंसानों की आज्ञा का पालन करना: हदीस न.587, अल्लाह की आज्ञा पालन की अच्छाई: हदीस न.512
औरत (स्त्री)
औरत को छुपाने का फ़ायदा: हदीस न.312
इच्छा
सबसे अधिक इच्छायें रखने वाले लोग: हदीस न.144
इच्छाएं
इच्छाओं को पूरा करने के उपाय: हदीस न.447
इज़्ज़त
इज़्ज़त की रक्षा: हदीस न. 558, माल के द्वारा इज़्ज़त की रक्षा: हदीस न. 245,
इज़्ज़त में बाधक चीज़ें: हदीस न.511,
इबादत
इबादत के सही होने पर तवक्कुल का असर: हदीस न.309, सबसे अच्छी इबादत: हदीस न.41, इबादत का मज़ा: हदीस न.385, धीमे बोलना, इबादत: हदीस न.162
इबादत करने वाला
इल्म के बिना इबादत करने वाला: हदीस न. 91
इम्तेहान
कार्यों से इम्तेहान: हदीस न.598
इस्तग़फ़ार (क्षमा याचना)
इस्तग़फ़ार का दवा होना: हदीस न.76
इंसान
इंसान का महत्व: हदीस न.131 व 372, इंसान एहसान का ग़ुलाम होता है: हदीस न.7, इंसान अपनी ज़बान के पीछे छुपा होता है: हदीस न.25, इंसान की भलाई: हदीस न.310, इंसान के काम: हदीस न.26, इंसान का झुकाव: हदीस न.377, इंसान का साथी: हदीस न. 26
इंसानों से निकटता
इंसानों से निकटता का साधन: हदीस न.71
इंसाफ़
इंसाफ़ का प्रभाव: हदीस न.430, अपने साथ इंसाफ़: हदीस न.531, लोगों के साथ इंसाफ़: हदीस न. 355, मुहब्बत पर इंसाफ़ का प्रभाव: हदीस न.64, मत भेद को दूर करने में इंसाफ़ की भूमिका: हदीस न. 64
ईमान
सबसे अच्छा ईमान: हदीस न.134, ईमान की शर्तें: हदीस न.502, ईमान को बर्बाद करने वाली चीज़ें: हदीस न.524, ईमान का नतीजा: हदीस न.244
ईर्ष्या
ईर्ष्या न होने का खुशहाली पर प्रभाव: हदीस न.256
ईर्ष्यालु
ईर्ष्यालु के विचार: हदीस न.74, ईर्श्यालु की ख़ुशी: हदीस न.585, ईर्ष्यालु का बुरा जीवन: हदीस न.135, ईर्ष्यालु का लाभ से वंचित रहता है: हदीस न. 27
उच्च अधिकारी
उच्च अधिकारियों की ज़िम्मेदारियाँ: हदीस न.188
उच्चता
हवस, उच्चता के मार्ग में बाधक है: हदीस न.442, उच्चता प्राप्ति के प्रयास: हदीस न. 426, उच्चता पर पहुँचने का मार्ग: हदीस न.489, उच्चता प्राप्त करने के तरीक़े: हदीस न.330
उच्च हिम्मत
कार्य व उच्च हिम्मत: हदीस न.400
उपाय व युक्ति
कार्य करने से पहले उपाय: हदीस न.52
उपद्रव
उपद्रव की आग भड़काना: हदीस न.500,
उम्मीद
उम्मीद से दूरी: हदीस न.248
उम्मीदवार
उम्मीदवार को निराश न करना: हदीस न.449
उम्र
उम्र पर सिला –ए- रहम का प्रभाव: हदीस न.415, उम्र से फ़ायदा उठाना: हदीस न.423, उम्र बर्बाद करने वाली चीज़ों से बचना: हदीस न.121, उम्र से नसीहत लेना: हदीस न.423, उम्र का रजिस्टर: हदीस न.89, हर दिन उम्र का कम होना: हदीस न.347, उम्र का घटना: हदीस न.384
उम्र का रजिस्टर: हदीस न. 89
उस्ताद
उस्ताद का आदर: हदीस न.101 व 229
एहसान
एहसान जताने से बचना: हदीस न.124, एहसान जताने से भलाई व नेकी का बर्बाद होना: हदीस न.124
कठिनाई
कठिनाई में दोस्ती को परखना: हदीस न.343, कठिनाई, प्यार मुहब्बत से आसान बन जाती है: हदीस न.381, आराम में कठिनाई व परिश्रम की भूमिका 203, कठिनाई में गुण प्रकट होते हैं: हदीस न.342, उच्च पदों की प्राप्ति में कठिनाई व परिश्रम का योगदान: हदीस न.203, कठिनाई में शुक्र: हदीस न.336
कठिनाईयाँ
कठिनाईयों के कारण: हदीस न. 19, कठिनाईयों को प्रकट करने के नुक़्सान: हदीस न.276
कठोरता
कठोरता व दुर्भाग्य: हदीस न.508,
कंजूस
कंजूस से मशवरा न करना: हदीस न.562, कंजूस मध्य मार्ग से रोक देता है: हदीस न.562, कंजूस निर्धनता से डराता है: हदीस न.562, सब से बड़ा कंजूस: हदीस न.157
कंजूसी
कंजूसी बहादुरी को ख़त्म कर देती है: हदीस न.281, भाई चारे पर कंजूसी का प्रभाव: हदीस न.281, कंजूसी, अल्लाह पर बद गुमानी: हदीस न.42, अपने बारे में कंजूसी करना: हदीस न. 475, रहस्यों के बारे में कंजूसी करना: हदीस न.401, अधिक कंजूसी: हदीस न.281
कम इच्छाएं
कम इच्छाओं का महत्व: हदीस न.324
कमज़ोर
कमज़ोर को निराश न करना: हदीस न.551, कमज़ोर पर अत्याचार: हदीस न.331
कम खाना
कम खाने की श्रेष्ठता: हदीस न.191
कम बोलना
कम बोलने की श्रेष्ठता: हदीस न.191, बात चीत में कम बोलना: हदीस न. 195
कम सोना
कम सोने की श्रेष्ठता: हदीस न.191
कमाल
कमाल पाने का तरीक़ा: हदीस न.414, कमाल की निशानियाँ: हदीस न.67 व 510
कमी को जानना
कमी को जानना चतुरता: हदीस न.390
क़र्ज़ (ऋण)
क़र्ज़ वापसी की मोहलत देना: हदीस न.102,
कर्म का फल
जैसा बोना वैसा काटना: हदीस न.404
करीम (महान)
करीम का अख़लाक़: हदीस न.262, करीम का भोजन कराना: हदीस न.429, करीम का सगे संबंधियों से मिलना: हदीस न.62, करीम का नेमतो के लिए उचित होना: हदीस न.262, करीम की विशेषताएं: हदीस न.262, करीम के शराफ़त के काम: हदीस न.504, करीम का मज़ा: हदीस न.429
कार्य
कार्य करने से पहले उस पर विचार करना: हदीस न.275, सबसे बुरा कार्य: हदीस न.297, सबसे अच्छा कार्य: हदीस न.137 व 253, अज्ञानता के साथ किये जाने वाले कार्य: हदीस न.75, आख़ेरत को बर्बाद करने वाले कार्य: हदीस न.119, कार्यों का सही होना: हदीस न.308, अनुचित कार्य: हदीस न.517, कार्य का आधार: हदीस न.517, कार्य की नीयत: हदीस न.372, कार्यों का नतीजा व फल: हदीस न.521, कार्यों का आधार: हदीस न.521
कार्य करने में देर करना: हदीस न.382
किताब
किताब से आराम: हदीस न.452
क़िनाअत (कम पर संतोष करना)
क़िनाअत का पैदा होना: हदीस न.190, क़िनाअत की ख़ुशी: हदीस न.23, मध्य मार्ग में क़िनाअत की भूमिका: हदीस न.228
क़ियामत
क़ियामत में काम आने वाली चीज़ें: हदीस न.526
क़ियामत का हाकिम: हदीस न.113
कीनः (ईर्ष्या)
कीनः से खुशी का अंत: हदीस न.256, कीनः से दूरी: हदीस न.323, कीनः और चुग़लख़ोरी का संबंध: हदीस न.123
कीनःबाज़ (ईर्ष्यालु)
कीनः बाज़ के दिल का साफ़ न होना: हदीस न.136
क़ुरआन
क़ुरआन से नसीहत लेना: हदीस न.216, क़ुरआन में चिंतन करना: हदीस न.216
वह क़ौम जिसमें भलाई नही पाई जाती: हदीस न.589
सख़्ती
सख़्ती करने वाले के साथ नर्मी करना: हदीस न.427,
क्रूरता
क्रूरता पागलपन है: हदीस न.88,
क्रोध
क्रोध के परिणाम: हदीस न. 396, क्रोध को रोकना: हदीस न. 148, क्रोध पर क़ाबू पाना: हदीस न.266, बुद्धी के विनाश में क्रोध की भूमिका: हदीस न.49
ख़त
ख़त, अक़्लमंदी की निशानी: हदीस न.230
ख़बर
ग़लत खबर देने के ग़लत प्रभाव: हदीस न.569
ख़र्च
ख़र्च और अल्लाह की मदद: हदीस न.339
ख़ुद को अधूरा समझना
ख़ुद को अधूरा समझने की श्रेष्ठता: हदीस न.389
ख़ुश गुमानी (दूसरों के बारे में सुविचार रखना)
शाँति पर ख़ुश गुमानी का प्रभाव: हदीस न.238, दीन के सालिम रहने में ख़ुश गुमानी की भूमिका: हदीस न.238, ज़माने के बारे में ख़ुश गुमान रहना: हदीस न.421, खुश गुमानी की श्रेष्ठता: हदीस न.142
ख़ुशी
लोगों की हार पर, खुशी न मनाना: हदीस न. 557
ख़ुशू
दुआ करते हुए रोना: हदीस न.527
खेल कूद
खेल कूद का दीवाना होना: हदीस न.422
ग़द्दारी
ग़द्दारी से बचना: हदीस न.323, दोस्त से ग़द्दारी: हदीस न.356, सबसे बड़ी ग़द्दारी: हदीस न. 356
गर्व करना
व्यर्थ ख़र्च पर गर्व करने के दुष्परिणाम: हदीस न.494
ग़म
खोई हुई चीज़ का ग़म: हदीस न.540, मोमिन का ग़म: हदीस न.164, ग़म के कारण: हदीस न.45
गंभीरता
गंभीरता शोभा के रूप में: हदीस न.335
ग़लती
ग़लती को अनदेखा करना: हदीस न.221, ग़लती पर जल्दी का प्रभाव: हदीस न.436, ग़लती पर न जानने का प्रभाव: हदीस न.440, ग़लती और नाशुक्री: हदीस न.440, ग़लती पर नेमत की नाशुक्री का प्रभाव: हदीस न. 405, ग़लती से बचने का तरीक़ा: हदीस न.275, ग़लती को माफ़ न करने वाला: हदीस न.296, ग़लती के कारण: हदीस न.14
गुनाह
गुनाह को ख़त्म करने में तौबा की भूमिका: हदीस न.48 व 202, गुनाह पर रोने का प्रभाव: हदीस न.208, ज़लील होने में गुनाहों की भूमिका: हदीस न.481, दुआ पर गुनाहों का प्रभाव: हदीस न. 561, लगातार गुनाह करना: हदीस न.150, गुनाह के बारे में सोचना 473, सबसे बड़ा गुनाह: हदीस न.150, गुनाह से बचना: हदीस न.145 व 349, छुप कर गुनाह करने से बचना: हदीस न.113, गुनाह से शर्माना: हदीस न.21, गुनाह का बदला चुकाना: हदीस न.240, गुनाहों का दर्द: हदीस न.76, गुनाहों के दर्द का इलाज: हदीस न. 76, गुनाह की तरफ़ खीँचने वाली चीज़ें: हदीस न.473, उदास करने वाले गुनाह: हदीस न.290, गुनाहों से बचने का फ़ायदा: हदीस न.170, गुनाह को छोटा समझना: हदीस न.215, गुनाह से पाक होने का आधार: हदीस न.315, गुनाहों पर अधिक बोलने का प्रभाव: हदीस न.122, गुनाहों से दूर रहने का शिक्षा लेने पर प्रभाव: हदीस न.20, गुनाहों से दूरी में रोने की भूमिका: हदीस न.87
गुनाहगार
स्वयं को गुनाहगार के रूप में प्रस्तुत करने की बुराई: हदीस न.299, अपने गुनाहों को स्वीकार करने वाला गुनाहगार: हदीस न.54,
घमंड
घमंड शैतान का जाल: हदीस न.24 व 32, आदमी के अपमान में घमंड की भूमिका: हदीस न.2
चक्की के गधे: हदीस न.91
चिंतन
उद्देश्यों की प्राप्ति में चिंतन की भूमिका: हदीस न.483, कार्य करने से पहले चिंतन करना: हदीस न.275, सही चिंतन का जन्म: हदीस न.115, क़ुरआन में चिंतन: हदीस न.216, कार्य शुरू करने से पहले चिंतन: हदीस न.219
चुग़ली
चुग़ली से बचना: हदीस न.126, चुग़ली सुनने वाला: हदीस न.38, चुग़ली निफ़ाक़ की पहचान: हदीस न.22, चुग़ली से दूरी: हदीस न.123, चुग़ली अल्लाह से दूर करती है: हदीस न. 123, चुग़ली कीनः व ईर्ष्या पैदा करती है: हदीस न.123
चुग़ल ख़ोर
चुग़लख़ोर की विशेषता: हदीस न.497
चुप रहना
चुप रहकर जवाब देना: हदीस न.271, मूर्ख के सामने चुप रहना: हदीस न. 37, वह चुप जो सुरक्षित रखता है: हदीस न.317,
जगह
सबसे बुरी जगह: हदीस न.301
जनता
लोगों के साथ भलाई करना: हदीस न.104, लोगों के कार्यों को सुधारना: हदीस न.507, सबसे कंजूस लोग: हदीस न.140 व 157, सबसे बुरे लोग: हदीस न.296 व 298 व 299 व 302, सबसे अच्छे लोग: हदीस न.140 व 148 व 152, अधिक इच्छाएं रखने वाले लोग: हदीस न.144, लोगों पर ज़ुल्म करने से बचना: हदीस न.104, सबसे अधिक बुद्धिमान लोग: हदीस न.159, लोगों से दुश्मनी: हदीस न.267, लोगों से दोस्ती: हदीस न.46, लोगों के साथ व्यवहार 355, सबसे अधिक नुक़्सान पहुँचाने वाले लोग: हदीस न.156, सबसे अधिक फ़ायदा पहुँचाने वाले लोग: हदीस न.140, लोगों से दूरी की वजह: हदीस न.123, सबसे अधिक ताक़तवर लोग: हदीस न.146, सबसे अधिक नफ़रत योग्य लोग: हदीस न.411, लोगों से प्यार मुहब्बत करना: हदीस न.258 व 465, लोगों के साथ रहना: हदीस न.255, लोगों पर दया करना: हदीस न.104, लोगों के क़रीब रहना: हदीस न.71, अच्छी हालत वाले लोग: हदीस न.149
जन्नत
अच्छे कार्यों के बिना जन्नत की इच्छा: हदीस न.325, जन्नत में जाने वाले इंसान: हदीस न. 412, जन्नत पाने के उपाय: हदीस न.588
ज़बान
ज़बान बुद्धी की परिचायक: हदीस न.593, ज़बान पर कन्ट्रोल: हदीस न.310,
ज़बान का ज़ख़्म
ज़बान के ज़ख़्म का दर्द: हदीस न. 329
ज़रूरत
मर्द की बेइज़्ज़ती में ज़रूरत की भूमिका: हदीस न.320
ज़रूरतमंद
ज़रूरतमंद को देना: हदीस न.566
जल्दी
जल्दी का ग़लतियों पर प्रभाव: हदीस न.436, जल्दी पर देरी को वरियता: हदीस न.83, जवाब देने में जल्दी करना: हदीस न., नेकी में जल्दी करना: हदीस न.83 व 322, काम के समय से पहले जल्दी करना: हदीस न.45, जल्दी से ग़लतियाँ पैदा होती हैं: हदीस न.14
जवान
जवान का दिल: हदीस न.176
जवानी
जवानी से लाभ उठाना: हदीस न.206, जवानी नेमत है: हदीस न.305
जवाब
जवाब देने में जल्दी करना: हदीस न.477
जान
जान की क़ीमत: हदीस न.416, तक़वे के द्वारा जान की रक्षा: हदीस न.285, जान को जन्नत के बदले बेंचना: हदीस न.416, जान का हर दिन कम होना: हदीस न.348
ज़िद्द
ज़िद्द का नुक़्सान: हदीस न.369
ज़िद्दी
ज़िद्दी से बहस करना: हदीस न.547
जिन पर ज़्यादा ग़ुस्सा होना चाहिए: हदीस न.411
जिहाद
स्वयं से जिहाद करना (अपनी इच्छाओं से लड़ना): हदीस न.571, उद्देश्यों तक पहुंचने में स्वयं से जिहाद का योगदान: हदीस न.261
जीवन
सफल जीवन की प्राप्ति के उपाय: हदीस न.375, जीवन पर सदव्यवहार के प्रभाव: हदीस न.199, जीवन पर बुरे व्यवहार के प्रभाव: हदीस न.293, जीवन की सरलता पर मध्य मार्गीय खर्च के प्रभाव: हदीस न.251, जीवन के लिए योजना: हदीस न.375, जीवन की मज़बूती: हदीस न.75, जीवन के लिए मेहनत व कोशिश 420, सबसे अच्छा जीवन: हदीस न.161, जीवन का प्रबंधन: हदीस न.375, जीवन में ज्ञान की भूमिका: हदीस न.110
जीविका कमाना
जीविका के लिए सुबह के समय प्रयास करना: हदीस न.209, जीविका प्राप्त करने में मध्य मार्ग को अपनाना: हदीस न. 288
झुकाव
इंसान का झुकाव: हदीस न.377
झूठा
झूठ बोलने के बुरे प्रभाव: हदीस न.446, झूठे से मशवरा न करो: हदीस न.564, झूठे का आचरण: हदीस न. 564, झूठे का धोखेबाज़ होना: हदीस न.564
झूठी क़सम
झूठी क़सम का परिणाम: हदीस न.143
डरपोक
डरपोक से मशवरा न करो: हदीस न.563, डरपोक हर चीज़ को बड़ा बना देता है: हदीस न.563
डर व उम्मीद
डर व उम्मीद दोनों को बराबर बनाये रखना: हदीस न.253
तक़वा
कार्यों की सरलता पर तक़वे का प्रभाव: हदीस न.514, सबसे अच्छा तक़वा: हदीस न.375, इच्छाओं में तक़वा: हदीस न.67, तक़वा कमाल की निशानी के रूप में: हदीस न.67, तक़वे के द्वारा जान की रक्षा: हदीस न.285, तक़वे की रिआयत: हदीस न.466,
तन्हाई
सबसे अच्छी तन्हाई: हदीस न.539
तंगी
तंगी से बाहर निकलने का रास्ता: हदीस न.406 , तंगी के समय भलाई: हदीस न.362
त्याग
मोमिन के लिए त्याग: हदीस न.355
तुरंत बोलना
बुद्धी की परख में तुरंत बोलने की भूमिका: हदीस न.344
तोहफ़ा (उपहार)
दोस्ती में तोहफ़े की भूमिका: हदीस न.10
तौबा
गुनाहों को ख़त्म करने में तौबा की भूमिका: हदीस न.48 व 202, तौबा करने में देरी: हदीस न.574, दिल की सफ़ाई में तौबा की भूमिका: हदीस न.48
दृढ़ संकल्प
आलस्य का सामना करने में दृढ़ संकल्प का योगदान: हदीस न.321
दान
दान का महत्व: हदीस न. 397, कम दान: हदीस न.554, व्यर्थ किये बिना दान देना: हदीस न. 509, निर्धन को दान देना: हदीस न.566, कम देना बहाना करने से अच्छा है: हदीस न. 596, सबसे अच्छा दान: हदीस न.153, दान का परिणाम: हदीस न.234, दान देने में देर करना: हदीस न.566
दिखावटी दोस्त: हदीस न. 269
दिल
पाक दिलों की श्रेष्ठता: हदीस न.322
टूटे हुए दिलों की श्रेष्ठता: हदीस न.322
दिल
दिल का आराम: हदीस न.238, दिल को साफ़ करने में नसीहत का योगदान: हदीस न.346, दिल को ज़िन्दा करने में नसीहत की भूमिका: हदीस न. 11, दिल की उदासी: हदीस न.165, सबसे अच्छा दिल: हदीस न.163, दिल की बीमारी: हदीस न.130, दिल को बुद्धिमत्ता की शिक्षा देना: हदीस न.165, दिल रिश्वत नही लेता: हदीस न.294, दिल का रोज़ा: हदीस न.318, दिल अच्छाई व भलाई का बर्तन होता है: हदीस न. 163, दिल को नूरानी (प्रकाशित) बनाने वाली चीज़ें: हदीस न.87, दिल को आबाद करने वाली चीज़ें: हदीस न.428, दिल को अंधा बनाने वाली चीज़े: हदीस न.184, दिल की ग़फ़लत: हदीस न.291, दिल की कठोरता: हदीस न.127, न रोने वाला दिल: हदीस न.592, ईर्ष्यालु दिल: हदीस न.136, सबसे बुरा दिल: हदीस न.136, दिल की पवित्रता में तौबा की भूमिका: हदीस न.48
दीन
दीन को बर्बाद करने वाली चीज़ों से दूरी: हदीस न. 119, दीन के द्वारा दुनिया की रक्षा: हदीस न.316, दुनिया के द्वारा दीन बचाना: हदीस न.316, दीन का आधार: हदीस न.531, दीन की रक्षा: हदीस न.238, दीन की इज़्ज़त: हदीस न.84, दीन के संबंध में जागरूकता: हदीस न.90
दीनदारी
हिदायत व मार्गदर्शन पर दीनदारी का प्रभाव: हदीस न.534
दुआ
विपत्तियों पर दुआ के प्रभाव: हदीस न.198, दुआ का क़बूल होना: हदीस न.453, रोते हुए दुआ करना: हदीस न.527, दुआ मोमिन का हथियार है: हदीस न.284, गुनाह के साथ दुआ क़बूल नही होती: हदीस न.561
दुःख
सबसे बड़ा दुःख: हदीस न.154, बे फ़ायदा दुख उठाना: हदीस न. 154
दुश्मन
सबसे बुरा दुश्मन: हदीस न.583, दुश्मन को छोटा न समझो: हदीस न.549, दुश्मन का अत्याचार: हदीस न. 174, दुश्मन से भलाई चाहना: हदीस न.368, दुश्मन की दुश्मनी का रास्ता: हदीस न.174, दुश्मन का अत्याचार 174, दुश्मन को दुश्मन कहने का कारण: हदीस न.174, दुश्मन के साथ भलाई करना: हदीस न.58,
दुश्मनी
लोगों से दुश्मनी 267
दूत
दूत, बुद्धिमात्ता का परिचायक: हदीस न. 230
दुनिया
दुनिया के परिणाम की जानकारी : हदीस न.392, दुनिया की सुन्दरता से दूर रहना: हदीस न.274, आख़ेरत व दुनिया का एक जगह इकठ्ठा होना: हदीस न.326, दुनिया की उपमा: हदीस न.525, दुनिया को ज़लील करने का तरीक़ा: हदीस न.334, दुनिया का नश्वर होना: हदीस न.1, दुनिया का विनाश: हदीस न.425, दुनिया परछाई के रूप में: हदीस न. 525, दुनिया से मुहब्बत नही: हदीस न.169, दुनिया की मुहब्बत अल्लाह की मुहब्बत से रोकती है: हदीस न.387
दुर्भाग्य
सबसे बड़ा दुर्भाग्य: हदीस न.508
दूर-दर्शिता
दूरदर्शिता का आत्म रक्षा पर प्रभाव : हदीस न.224, दूर दर्शिता के सियासी प्रभाव: हदीस न.286, परिणाम के बारे में दूरदर्शिता: हदीस न. 80, दूर दर्शिता का विनाश करने वाली चीज़ें: हदीस न. 444, दूर दर्शिता के बारे में मशवरा: हदीस न. 80, सफलता में दूर दर्शिता की भूमिका: हदीस न. 3
दूरदर्शी
दूर दर्शी की जागरूकता: हदीस न.4, दूर दर्शी का आदर सत्कार: हदीस न.16, दूर दर्शी से मशवरा करना: हदीस न.246
दूर रहना
दोस्त से दूर रहना: हदीस न.458 व 581
दोस्त
सबसे बुरा दोस्त: हदीस न.300, दोस्त पर पूरा भरोसा करने से बचो: हदीस न.107, दोस्त के साथ पूरी दोस्ती: हदीस न.107, दोस्त को पूरे राज़ बताने से बचो: हदीस न.107, दोस्त की ग़लतियाँ: हदीस न.454, दोस्त के साथ ग़द्दारी: हदीस न.356, सच्चा दोस्त: हदीस न.586, दोस्त पर कब भरोसा किया जाये: हदीस न.553, सदव्यवहार और दोस्तों की अधिकता: हदीस न.461, दोस्तों का कम होना: हदीस न.454, दोस्तों से अलग होना: हदीस न. 454 व 581
दोस्ती
दोस्ती पर आदर सत्कार का प्रभाव: हदीस न.226, दोस्ती पर सख़ावत का प्रभाव: हदीस न.9, दोस्ती पर हँस मुखी का प्रभाव: हदीस न.29, दोस्ती पर उपहार का प्रभाव: हदीस न.10, दोस्ती पर प्रफुल्लता का प्रभाव: हदीस न.283 व 337, दोस्त का नाम ज़बान पर रहता है: हदीस न.437, दोस्ती पर सच बोलने का प्रभाव: हदीस न.600, दोस्ती करना: हदीस न.218, दिल दोस्ती का गवाह: हदीस न.294, बेदीन से दोस्ती: हदीस न.584, अल्लाह से दोस्ती: हदीस न.387, अच्छाइयाँ भूलने वाले से दोस्ती: हदीस न.567, अनुपस्थिति में दोस्ती: हदीस न.586, जिस दोस्ती से रोका गया है: हदीस न.567, दोस्ती को मज़बूत बनाने का तरीक़ा: हदीस न.196, दोस्ती को अमर बनाने वाली चीज़ें: हदीस न.69, दोस्ती के कारण: हदीस न.231, अल्लाह के लिए दोस्ती: हदीस न.35
दृष्टि
दृष्टिवान इंसान: हदीस न.145,
धनवान (नेमत वाले)
धनवानों के साथ साझेदारी: हदीस न.307
धोखेबाज़ी
धोखेबाज़ी नीच लोगों का काम: हदीस न.43
नफ़्स (आत्मा)
नफ़्स की दुश्मनी: हदीस न.583, नफ़्स का धोखा: हदीस न.326
नमाज़
बच्चों को नमाज़ सिखाना: हदीस न.352, नमाज़ क़िले के रूप में: हदीस न.93, नमाज़ में सुस्ती के कारण: हदीस न.127, सबसे अच्छी नमाज़: हदीस न.183, औलाद को नमाज़ का शौक़ दिलाना: हदीस न.352
नमाज़ी
नमाज़ी पर रहमत: हदीस न.424
नर्मी
सख्ती करने वाले के साथ नर्मी: हदीस न.427
नसीहत
क़ुरआन से नसीहत लेना: हदीस न.216, किसी को लोगों के बीच में नसीहत करना: हदीस न.530, ज़माने से नसीहत लेना: हदीस न.421, उम्र से नसीहत लेना: हदीस न.423, सबसे अच्छी नसीहत: हदीस न.216, नसीहत बुराई के रूप में: हदीस न.530, नसीहत गुनाहों से रोकती है: हदीस न.20, नसीहत लेने वालों का कम होना: हदीस न.513, नसीहतों का अधिक होना: हदीस न.513, नसीहत से लापरवाही: हदीस न.211, दिल पर नसीहत का असर: हदीस न.346, जीवन पर नसीहत का असर: हदीस न.11
नसीहत करने वाला
नसीहत करने वाला गुनहगार: हदीस न.272, नसीहत करने वाले का नेक होना: हदीस न.441
नही जानता
"मैं नही जानता" यह कहना ज्ञानता की निशानी: हदीस न. 373, "मैं नही जानता" कहना बुरी बात नही है: हदीस न.132
ना अहल (अयोग्य)
अयोग्य के साथ भलाई करना: हदीस न.332, अयोग्य से मार्ग दर्शन चाहना: हदीस न.467
ना उम्मीदी
ना उम्मीदी की कड़वाहट: हदीस न.523
नाता तोड़ना
नाता तोड़ने से उम्र का घटना: हदीस न.415
निंदा
अधिक निंदा करना: हदीस न.139, निंदा का दर्द: हदीस न.53, नसीहत के साथ निंदा करना: हदीस न.530
निफ़ाक़ (द्विरूपता)
निफ़ाक़ से दूरी: हदीस न.125, निफ़ाक़ की जड़: हदीस न.533, अल्लाह से दूरी में निफ़ाक़ की भूमिका: हदीस न.125
निरोग्यता
सुख समृद्धी में निरोग्यता की भूमिका: हदीस न. 580
निर्धनता
अपनी निर्धनता को प्रकट करने के बुरे परिणाम: हदीस न.471, निर्धनता विपत्ति है: हदीस न.130, निर्धनता के कारण अपमान: हदीस न.494, निर्धनता और महत्व का कम होना: हदीस न.472, निर्धनता के कारण: हदीस न.34 व 437, निर्धनता में मध्यमार्ग को अपनाना: हदीस न.493, इंसान के गुणों व अवगुणों को प्रकट करने में निर्धनता की भूमिका: हदीस न.36, निर्धनता से डराना: हदीस न.562
निर्धनता को प्रकट करना
निर्धनता को प्रकट करने की बुराई: हदीस न.34
निमन्त्रण
दो विरोधी निमन्त्रण: हदीस न.516
निश्चय
अपने निश्चय को प्रकट करने का परिणाम: हदीस न.444, निश्चय से पहले विचार: हदीस न.219, बुरे काम को करने का निश्चय: हदीस न.545, निश्चय से पहले मशवरा: हदीस न.304
नीच
नीच को अच्छाई के साथ जवाब देना: हदीस न.47, नीच का अपने माल की रक्षा करना: हदीस न.92, नीच की आदत: हदीस न.43, नीच का पेट भरना: हदीस न.429, नीच के मज़े: हदीस न.429, नीच के साथ झगड़ना: हदीस न.55
नीयत
काम पर नीयत के सही होने का असर: हदीस न.8, जन्नत पर नीयत का असर: हदीस न.588
नुक़्सान उठाने वाले: हदीस न.156
नेक
नेक की बात व काम में एक रूपता का होना: हदीस न.33, नेक के साथ रहना: हदीस न.374
नेकी
दूसरों की नेकियों को ज़ाहिर करना: हदीस न.178, नेकी को पूरा करना: हदीस न.78, नेकी करना: हदीस न.310, अपनी नेकियों को छुपाना: हदीस न.177, माँ बाप के साथ नेकी करने का असर: हदीस न.210, नेकी के ज़रिये क़ियामत के लिए सवाब जुटाना: हदीस न.172, नेकी के बदले बुराई: हदीस न.480, नेकी की सिफ़ारिश: हदीस न.249, नेकी में जल्दी करना: हदीस न.149, घमंड पैदा करने वाली नेकी का नुक़्सान: हदीस न.290, नेकी पर ज़ुल्म: हदीस न.332, नेकी में जल्दी: हदीस न.83 व 322, नेकी करना: हदीस न.51, नेकी के बारे में सोचने का फ़ायदा: हदीस न.51, दुश्मन के साथ नेकी करने का फ़ायदा: हदीस न.58, बुरे के साथ नेकी करना: हदीस न.96, माँ बाप के साथ नेकी करना: हदीस न.166, व 498, रिश्तेदारों के साथ नेकी करना: हदीस न.207, पड़ौसियों के साथ नेकी करना: हदीस न.443, तंगी में नेकी करना: हदीस न.362, अयोग्य के साथ नेकी करना: हदीस न.332, सबसे अच्छी नेकी: हदीस न.166, दिखावे के लिए नेकी करने से दूरी: हदीस न.552, शर्म के कारण नेकी को छोड़ना: हदीस न.552, नेकी की निशानी: हदीस न.505, निरन्तर आगे बढ़ने वाली कम नेकी: हदीस न.371, नेकी का बुरा नतीजा: हदीस न.212, सबसे अच्छी नेकी: हदीस न.138, नेकी की बर्बादी: हदीस न.212
नेमत (अल्लाह के उपहार)
नेमत की रक्षा: हदीस न.243, नेमत छीनने वाले: हदीस न.270, नेमत योग्य: हदीस न.262, नेमत छिनने के कारण: हदीस न.333, नेमत की नाशुक्री: हदीस न.405 व 529, शाँती की नेमत 591, लोगों का किसी इंसान से अपनी ज़रूरतो का सवाल करना, नेमत: हदीस न.168, वह नेमते जिनका महत्व नही पहचाना जाता: हदीस न.305
नेमत की नाशुक्री करना
नेमत की नाशुक्री का नेमत पर प्रभाव: हदीस न.405
निगाह
निगाह, शैतान का जाल: हदीस न.24, ग़लत निगाह से दूरी: हदीस न.357
नींद
अधिक सोने के नुक़्सान: हदीस न.485
न्याय व इंसाफ़
मत भेदों को दूर करने में न्याय की भूमिका: हदीस न.64, बरकत पर न्याय का प्रभाव: हदीस न.197, न्याय स्थापित करना: हदीस न.265, न्याय का सवाब: हदीस न.306, सियासत में न्याय: हदीस न.286
पड़ोसी
पड़ोसी के राज़ों को जानने का ग़लत असर: हदीस न.484, पड़ोसी को अपमानित करने का ग़लत असर: हदीस न.511, मकान के लिए पड़ोसी की पहचान: हदीस न.287, पड़ोसी के साथ भलाई का फ़ायदा: हदीस न.443, अच्छे पड़ोसी की निशानी: हदीस न. 235
पदाधिकारी
पदाधिकारियों से ईर्ष्या: हदीस न.376
प्राप्त करना
हराम माल प्राप्त करना: हदीस न.488
परिणाम पर विचार करना
सुरक्षित रहने के लिए परिणाम पर विचार: हदीस न.349, परिणाम के बारे में दूर दर्शिता: हदीस न.80, कार्यों के परिणाम पर विचार: हदीस न.192, परिणामों पर विचार बुद्धिमत्ता का लक्षण: हदीस न.151
पाक भाई (दोस्त)
पाक दोस्त शोभा होते हैं: हदीस न.338, पाक दोस्त सहायक होते हैं: हदीस न.338
पारसाई
सबसे अच्छी पारसाई: हदीस न.142
पिछले कार्यों की पूर्ति: हदीस न.323,
पतझड़
पतझड़ की सर्दी: हदीस न.220
परिवर्तन
परिवर्तन का लाभ: हदीस न.361, सांसारिक परिवर्तनों से शिक्षा: हदीस न.360,
पवित्रता
कमाल की प्राप्ति में पवित्रता की भूमिका: हदीस न.582, पवित्रता का महत्व: हदीस न.279, बहादुरी पर पवित्रता का प्रभाव: हदीस न.147, आत्मरक्षा में पवित्रता की भूमिका: हदीस न.225
पवित्रता
स्वयं को हवस से पवित्र करने का फ़ायदा: हदीस न.330,
पिता
पिता का आदर: हदीस न.101 व 229, पिता के साथ भलाई करने का परिणाम: हदीस न.210
पीड़ित
पीड़ित की सहायता: हदीस न.138
पेड़
बिना फल का पेड़: हदीस न.351
पेट
केवल पेट भरने के चक्कर में लगे रहने के दुष्परिणाम: हदीस न.486, पेट के अधिक भरे होने के बुद्धिमत्ता पर प्रभाव: हदीस न.570, पेट के अधिक भरे होने का नुक़्सान: हदीस न.50
पेट को भरना
अधिक पेट भरने से विचारों का प्रभावित होना: हदीस न. 383
प्रतिज्ञा
प्रतिज्ञा को तोड़ना: हदीस न.356
प्यार
कठिनाईयों के हल में प्यार मुहब्बत की भूमिका: हदीस न.381, सुख समृद्धि में प्यार मुहब्बत की भूमिका: हदीस न.289, धोखेबाज़ी से बचाने में प्यार मुहब्बत की भूमिका: हदीस न.258, बुराई से मुक्त रखने में प्यार मुहब्बत की भूमिका: हदीस न.58, धोखे धड़ी से बचाने में प्यार मुहब्बत की भूमिका: हदीस न.465, सियासत में प्यार मुहब्बत की भूमिका: हदीस न.268, दूर्दर्शी का प्यार: हदीस न.16
प्रश्न
कुछ जानने के लिए प्रश्न पूछना: हदीस न.193, दूसरों को परखने के लिए प्रश्न पूछना: हदीस न.193
प्रशंसा
प्रशंसा के दुष्प्रभाव: हदीस न.432, प्रशंसा में अधिक्ता: हदीस न.139, प्रशंसा की चाहत: हदीस न.241, अनुचित प्रशंसा: हदीस न.479
प्रसन्न चित्त
दोस्ती पर प्रसन्न चित्ता का प्रभाव: हदीस न.283 व 337, प्रसन्न चित्ता महानता की निशानी 594
फ़ुर्सत
फ़ुर्सत से फ़ायदा उठाना: हदीस न.112, फ़ुर्सत को गवांने का नुक़्सान: हदीस न.30, फ़ुर्सत को ग़नीमत समझना: हदीस न.204, शैतान की फ़ुर्सत: हदीस न.241, फ़ुर्सत को गवांना: हदीस न.112
फ़ैसला
अन्यायपूर्ण फ़ैसला: हदीस न.417
फौज
फौज, दीन की इज़्ज़त: हदीस न.84
बग़ावत (विद्रोह)
बग़ावत से दूरी: हदीस न.82,
बड़े
बड़ों के आदर का परिणाम: हदीस न.537
बच्चा
बच्चे को नमाज़ सिखाना: हदीस न.352
बचपन
बचपन में पढ़ाना लिखाना: हदीस न.490, बचपन में सीखना: हदीस न.457,
बद अख़लाक़ी
बद अख़लाक़ी से स्वयं को दुख होता है: हदीस न.435, बद अख़लाक़ी और जीवन कठिनाईयाँ: हदीस न.293, बद अख़लाक़ी से आत्म पीड़ा होती है: हदीस न.293, बद- अख़लाक़ी का कोई इलाज नहीं है: हदीस न.378
बद गुमानी
अल्लाह पर बद गुमानी: हदीस न.42
बरकत (वृद्धी)
बरकत पर न्याय का प्रभाव: हदीस न.197, बरकत ख़त्म होने के कारण: हदीस न.181
बसंत
बसंत की हवा: हदीस न.220
बहादुरी
बहादुरी पर कंजूसी का प्रभाव: हदीस न.281, बहादुरी शोभा व सुन्दरता है: हदीस न.519
बंदे का आदर
अल्लाह की मुहब्बत का पैदा होना 187
बात चीत
आखेरत को विनाश करने वाली बातों से दूरी: हदीस न.119, बुरी बातों से दूरी: हदीस न.126, बात कहने की जगह: हदीस न.407, अच्छी बात का जवाब: हदीस न.116, कुछ बात का जवाब नही देना चाहिए: हदीस न.271, जिन बातों से नेमत रुक जाती हैं: हदीस न.270, बुरी बात: हदीस न.317, अनुचित बात: हदीस न.463, अच्छी बात: हदीस न.116, कम बोलना: हदीस न.450, बातों के बारे में पूछ ताछ होना: हदीस न.450, मीठी बात करना: हदीस न.162, कही हुई बात पर अमल करना: हदीस न.413, लाभदायक बात चीत: हदीस न. 413
बातिन (अंतरात्मा)
जन्न की प्राप्ति में अंतरात्मा की भूमिका: हदीस न.588
बातिल (असत्य व अवास्तविक)
बातिल को मिटाना: हदीस न.265, बातिल की ओर झुकने से बचना: हदीस न.108, हक़ व बातिल का एक साथ इकठ्ठा न होना: हदीस न.572
बादशाह
बादशाह की श्रेष्ठता: हदीस न.367, बादशाह का क़िला फौज: हदीस न.84
बेदीन
बेदीन पर भरोसा न करना: हदीस न.542
बेवफ़ाई
सबसे बुरी बेवफ़ाई: हदीस न.141
बेहिम्मत
बेहिम्मत इंसानों के साथ न रहो: हदीस न.495
बीमारी
शारीरिक बीमारी: हदीस न.130, दिल की बीमारी: हदीस न.130, बीमारी का सदक़े से इलाज: हदीस न.285
बुद्धी
बुद्धी की परख तुरंत बोलने से: हदीस न. 344, बुद्धी का आधार: हदीस न.46, बुद्धी की ग़लतियाँ: हदीस न.117, बुद्धी को परखने का तरीक़ा: हदीस न.344, बुद्धी की निशानी: हदीस न.593, बुद्धी की ज़कात: हदीस न.408, बुद्धी को आरोपित करना: हदीस न.117, बुद्धी के ख़राब होने के कारण: हदीस न.49, बुद्धी के पूर्ण होने की निशानी: हदीस न.179
बुद्धिमत्ता
बुद्धिमत्ता की शिक्षा: हदीस न.252, दिल के लिए बुद्धिमत्ता की शिक्षा: हदीस न.165, बुद्धिमत्ता का परिणाम: हदीस न.274, बुद्धिमत्ता का तर्क: हदीस न.151, बुद्धिमत्ता की निशानी: हदीस न.230
बुद्धिमान
बुद्धिमान के कार्य, जीवन के लिए: हदीस न.420, बुद्धिमान के कार्य, क़ियामत के लिए: हदीस न.420, बुद्धिमान के कार्य, हलाल मज़े के लिए: हदीस न.420, बुद्धिमान का सीना: हदीस न. 319, बुद्धिमान के रहस्यों का संदूक़: हदीस न. 319, बुद्धिमान का कम बोलना: हदीस न. 179, बुद्धिमान से मशवरा करना: हदीस न. 80 व 246, बुद्धिमान के लिए शौभनीय कार्य: हदीस न. 420, बुद्धिमान को मशवरे की ज़रूरत: हदीस न. 578, बुद्धिमान से मदद माँगना: हदीस न. 489, बुद्धिमान का अनुभवों को इकठ्ठा करना: हदीस न.173, बुद्धिमान की निंदा: हदीस न.458
बुराई
खुले आम बुराई होने के नुक़्सान: हदीस न.181, बुराईयों के फैलने का नुक़्सान: हदीस न.370, बुराई को प्रकट करने में क्रोध की भूमिका: हदीस न.396, सबसे बड़ी बुराई: हदीस न.155, अपनी बुराई को देखना: हदीस न.159, बुराईयों को प्रकट करने वाला दोस्त: हदीस न.455, अपनी बुराईयों को देखना: हदीस न.145, बुरे होते हुए दूसरों की बुराइयों को तलाश करना: हदीस न.155, दूसरों की बुराइयों को अन देखा करना: हदीस न.159, बुराई फैलाना: हदीस न. 522
बुराइयाँ खोजना
बुराइयों की खोज से दूर रहना: हदीस न.411,
बुराइयों का फ़ैलाना : हदीस न.522
बुरी संतान
बुरी संतान इज़्ज़त को खो देती है: हदीस न.534, समय की संतान होना: हदीस न.15
बुरे इंसान
बुरों की बुराई: हदीस न.302, बुरों से बचना: हदीस न. 374, बुरे लोगों का बुराई फैलाने की कोशिश करना: हदीस न. 263
बुरे कार्य करने वाले
बुरे कार्य करने वालों को सुधारना: हदीस न.97, बुरे लोगों को माफ़ करना: हदीस न.96, बुरे के साथ अच्छा व्यवहार: हदीस न.96
बुरे दोस्त: हदीस न.303,
बोलना
ग़लत बात कहने से बचना: हदीस न.560, अच्छे अन्दाज़ में अच्छी बात कहना: हदीस न.116
भटकना
भटकाव के कारण: हदीस न.468
भरोसा
भरोसे पर सच बोलने के प्रभाव: हदीस न.600, परीक्षा से पहले भरोसा करना: हदीस न. 6 व 7, दोस्त पर पूरा भरोसा करने से बचना: हदीस न.107, दोस्त पर भरोसा करने का समय: हदीस न.553
भलाई
अपने मातहतों के साथ भलाई: हदीस न. 350, आम जनता के साथ भलाई: हदीस न.104 व 526, भलाई आख़ेरत के तोशे (यात्रिक) के रूप में: हदीस न.526, भलाई का महत्व: हदीस न.7, सबसे अच्छी भलाई: हदीस न.6, भलाई करके एहसान जताना: हदीस न.62, भलाई के महत्व को कम करने वाली चीज़ें: हदीस न.62, भलाई के बर्बाद होने का कारण: हदीस न.18, भलाई के बिना बुराई: हदीस न.302, भलाई को छोड़ने का बुरा परिणाम: हदीस न. 89,
भलाई चाहना
दुश्मन से भलाई चाहना: हदीस न. 368, अल्लाह से भलाई चाहना: हदीस न.190
भाई
वह भाई जिनमें अच्छाई नही पाई जाती: हदीस न.590, सबसे अच्छे भाई: हदीस न.248 व 249, भाई चारे को स्थाई बनाने वाली चीज़ें: हदीस न.69, भाईयों की सहायता करना: हदीस न.13 व 95 व 515 व 431, भाई की जान से सहायता करना: हदीस न.531, भाई के साथ उठना बैठना: हदीस न.502
भाई चारा (दोस्ती)
भाई चारे की परख कठिनाई में होती है: हदीस न.343, भाई चारे पर कंजूसी का प्रभाव: हदीस न.281, भाई चारे की मज़बूती: हदीस न.239, अल्लाह के लिए भाई चारा स्थापित करना: हदीस न.69 व 340, कठिनाई में भाई चारा: हदीस न.518, खुश हाली में भाई चारा: हदीस न.518, भाई चारे की रक्षा: हदीस न.515, भाई चारे को मज़बूत बनाने का आधार: हदीस न.239
भाग्य
भग्य पर ख़ुश रहना: हदीस न.161 व 195
भोग विलास
भोग विलास की लिपसा: हदीस न.422
भोजन
स्वास्थ के साथ भोजन का मज़ा: हदीस न.200
मजबूरी
किसी की मजबूरी को स्वीकार न करने की बुराई: हदीस न.296, मजबूरी को स्वीकार करना:
हदीस न.503
मज़लूम
मज़लूम का दिन: हदीस न.599, मज़लूम की मदद करना: हदीस न.185 व 399
मज़ा
मज़ा बिना भलाई: हदीस न.579
मज़ाक़
मज़ाक़ रोब को मिटा देता है: हदीस न.395
मध्य मार्ग
जीवन की खुशियों में मध्य मार्ग का योगदान: हदीस न.251, मध्य मार्ग की रिआयत करना : हदीस न.426, कंजूस का मध्य मार्ग को अपनाने से मना करना: हदीस न.562, मध्य मार्ग के अवसर: हदीस न.9, अहले बैत (अ) का मध्य मार्ग को अपनाना: हदीस न.27, कार्यों में मध्य मार्ग को अपनाना: हदीस न.251, जीवन में मध्य मार्ग: हदीस न.195, सियासत में मध्य मार्ग 286, जीविका कमाने में मध्य मार्ग: हदीस न.228, मोमिन का मध्य मार्ग अपनाना: हदीस न.55
मर्दानगी
मर्दानगी और पारसाई: हदीस न.147, पूरी मर्दानगी: हदीस न.237, मर्दानगी से दूरी: हदीस न.480, मर्दानगी का आधार: हदीस न.147, मर्दानगी व शर्म 147, बग़ैर ख़र्च के मर्दानगी: हदीस न.509, मर्दानगी का फल: हदीस न.147, मर्दानगी की निशानी
मर्दों का जौहर
मर्दों के जौहर की पहचान: हदीस न.361
मरने के बाद
मरने के बाद का तोशा (यात्रिक): हदीस न.172
मशवरा (परामर्श)
सफलता में मशवरे का योगदान: हदीस न.209, कंजूस से मशवरा करने से बचना: हदीस न.562, डर पोक से मशवरा करने से बचना: हदीस न.563, लालची से मशवरा करने से बचना: हदीस न.565, झूठे से मशवरा करने से बचना: हदीस न.564, मशवरे का फ़ायदा: हदीस न.28, बुद्धिमान से मशवरा करना: हदीस न.246, दूर दर्शी से मशवरा करना: हदीस न.246, अनुभवी से मशवरा करना: हदीस न.246, ज्ञानी से मशवरा करना: हदीस न.246, मशवरे में दूर दर्शिता: हदीस न.80, काम शुरू करने से पहले मशवरा करना: हदीस न.219, किसी काम का पक्का इरादा करने से पहले मशवरा करना: हदीस न.304, मशवरे की ज़रूरत: हदीस न.152 व 578
महत्व
महत्व को कम करने वाले कारण: हदीस न.472, महत्व को बढ़ाने में हिम्मत का योगदान: हदीस न.470, महत्व का आधार: हदीस न.131 व 486
महान
महान का अपनी इज़्ज़त को बचाना: हदीस न.92
महानता
सफलता में महानता: हदीस न.400, महानता पाने का तरीक़ा: हदीस न.186, महानता, इफ़्फ़त (अश्लीलता से दूरी) से पूर्ण होती है: हदीस न. 594,
मातहत
मातहतों पर ध्यान देना: हदीस न.103, मातहतों के साथ भलाई करना: हदीस न.350, मातहतों को ज़िम्मेदारी सोंपना: हदीस न.106
माफ़ करना
माफ़ करने का सवाब: हदीस न.306, बुरे को माफ़ करना: हदीस न.96, ग़लती को माफ़ करना: हदीस न.221, माफ़ करना सबसे अच्छी नेकी के रूप में: हदीस न.6
मार्गदर्शन
अच्छी बातों के द्वारा मार्गदर्शन: हदीस न.97, अयोग्य से मार्ग दर्शन चाहना: हदीस न. 468, मार्ग दर्शन दीन के साथ: हदीस न.534
माल
माल पर ज्ञान को वरीयता: हदीस न.2, माल की रक्षा: हदीस न.82, माल की अधिकता का आधार: हदीस न.315, सबसे अच्छा माल: हदीस न.245
मालदार
मालदार बनने का तरीक़ा: हदीस न.100,
मालदारी
मालदारी में मध्य क्रम को अपनाना: हदीस न.493
माँगना
अच्छे तरीक़े से माँगने का प्रभाव: हदीस न.431
माँगने वाला पाता है: हदीस न.467
माँ बाप
माँ बाप के साथ भलाई करने का परिणाम: हदीस न.498, माँ बाप की अवज्ञा का परिणाम: हदीस न.474, माँ बाप के साथ भलाई: हदीस न.166 व 498
मीरास
सबसे अच्छी मीरास: हदीस न.250
मुजाहिद
मुजाहिदों के लिए आसमान के दरवाज़ों का खुलना: हदीस न.47
मुत्तक़ीन
इच्छाओं के होते हुए मुत्तक़ियों के तक़वे का ज़ाहिर होना: हदीस न.345, मुत्तक़ियों के तकवे का लज्जतों के साथ ज़ाहिर होना: हदीस न.345, मुत्तक़ियों की राय की रियाअत करना: हदीस न.232,
मुनाजात (विनती)
मोमिन की मुनाजात: हदीस न.410
मुनाफ़िक़
मुनाफ़िक़ की निशानी: हदीस न.22
मुशाविर (परामर्शदाता)
सबसे अच्छा मशवरा देने वाला: हदीस न.246, मशवरा देने वाले का गंभीर होना: हदीस न.341
मुहब्बत
ख़ालिस मुहब्बत का आधार: हदीस न.47, मुहब्बत पर वफ़ादारी का प्रभाव: हदीस न.282, मुहब्बत पर न्याय का प्रभाव: हदीस न.64
मुस्तहब
वाजिब से टकराने वाले मुस्तहब: हदीस न.180, वाजिब को नुक़्सान पहुँचाने वाले मुस्तहब: हदीस न.180,
मुसलमान
मुसलमान बने रहने का आधार: हदीस न.99
मूर्ख
मूर्ख से दुश्मनी: हदीस न.548, मूर्ख की निंदा: हदीस न.548, मूर्ख के साथ उठना बैठना: हदीस न.469, मूर्ख को बर्दाश्त करना: हदीस न.408, मूर्ख की बात का जवाब न देना: हदीस न.217, मूर्खों के सामने चुप रहना: हदीस न. 37
मूर्खता
मूर्खता की कठिनाईयाँ: हदीस न.19, मूर्खता की निशानी: हदीस न.278, मूर्खता की जड़: हदीस न.267 व 12, विनाश में मूर्खता का योगदान: हदीस न.5, मूर्खता का परिणाम: हदीस न.8, सबसे बड़ी मूर्खता: हदीस न.139, मूर्खता के कार्य: हदीस न.325, बे मौक़े हँसना मूर्खता की निशानी: हदीस न.391, मूर्खता का लक्षण: हदीस न.422, मूर्खता उल्टी सीधी बातों का परिणाम: हदीस न.359, मूर्खता की ओर झुकाव: हदीस न.422
मेल जोल
सुरक्षित रहने में मेल जोल की भूमिका: हदीस न. 288
मेहनत व परिश्रम
उद्देश्यों की प्राप्ति में मेहनत की भूमिका: हदीस न.447, आख़ेरत के लिए मेहनत 105,
मेहमान
मेहमान का आदर: हदीस न.101, मेहमान की आव भगत: हदीस न.229
मेहरबानी (दया)
दया का दोस्ती पर प्रभाव: हदीस न.231, लोगों पर दया करना: हदीस न.104
मोमिन
मोमिन का आसानी से काम लेना: हदीस न.54, मोमिन का ग़म: हदीस न.164, मोमिन की समय सारणी: हदीस न.401, मोमिन का जीवन 55, मोमिन का चेहरा: हदीस न.164, मोमिन की राय का सम्मान: हदीस न.232, मोमिन के साथ व्यवहार: हदीस न.355, मोमिन का हथियार: हदीस न.286, मोमिन की खुशी: हदीस न.164, मोमिन का शुक्र: हदीस न.259, मोमिन की ताक़त: हदीस न.164, मोमिन का अपने कामों का हिसाब करना: हदीस न.410, मोमिन का भरोसेमंद होना: हदीस न.54, मोमिन की मुनाजात: हदीस न.410, मोमिन का मध्य मार्ग को अपनाना: हदीस न.55, मोमिन का भूखों के बारे में सोचना: हदीस न.577, मोमिन का सरल स्वभावी होना: हदीस न.54, मोमिन का मज़ा लेने का वक़्त 410
मोहलत
जिन्दगी की मोहलत से फ़ायदा उठाना: हदीस न.324
मौत
मौत के लिए तैयार रहना: हदीस न.348, मौत पर सिला ए रहम का असर: हदीस न.314, मौत से भी बुरा: हदीस न.158, मौत की तरफ़ क़दम बढ़ाना: हदीस न.528, मौत की याद: हदीस न.144,
यतीम
यतीम पर ज़ुल्म से नेमतों का छिनना: हदीस न.333, यतीम पर ज़ुल्म से अज़ाब का आना: हदीस न.333
युग (समय व ज़माना)
ज़माने का बदलना: हदीस न.81, समय के विपरीत होने पर सब्र: हदीस न.81, राज़ व रहस्यों के खोलने में समय की भूमिका: हदीस न.44 व 402
राज़ (रहस्य)
पड़ोसी के राज़ को जानना: हदीस न.484, किसी का राज़ खोलना: हदीस न.141 व 520, राज़ के बारे में कंजूसी करना: हदीस न.401, राज़ खोलने से बचना: हदीस न.401, दोस्त को राज़ बताने से बचना: हदीस न.107, राज़ के खुलने का कारण: हदीस न.402, राज़ खुलने का नुक़्सान: हदीस न.292
राज़ खोलना
राज़ खोलने से बचना: हदीस न. 401, राज़ खोलना विश्वासघात: हदीस न. 401
राज़दारी
राज़दारी का महत्व: हदीस न.98, राज़ को छुपाने की ताक़त का न होना: हदीस न.482,
राय मशवरा
राय का महत्व: हदीस न.277, राय मशवरे का फ़ायदा: हदीस न. 115
रिया (पाखंड व दिखावा)
रिया का शिर्क होना: हदीस न.595
रियाकार (पाखंड़ी)
पाखंडी की आन्तरिक बीमारी: हदीस न.61, पाखंड़ी की बाह्य सुन्दरता: हदीस न. 61
रिश्तेदार
रिश्तेदारों से मिल कर रहना: हदीस न. 243 व 262, रिश्तेदारों के साथ भलाई करना: हदीस न. 207
रूह का अज़ाब
दुरव्यवहार आत्मा के लिए अज़ाब है: हदीस न.293
रोज़ा
दिल का रोज़ा: हदीस न. 318
रोज़ी (जीविका)
रोज़ी पर सिला ए रहम का प्रभाव: हदीस न.314, अपनी रोज़ी पर खुश रहना: हदीस न.100
रोना
लोगों के सामने रोने की कड़वाहट: हदीस न.523
रोना
गुनाहों पर रोने का प्रभाव: हदीस न.208, अल्लाह के डर से रोना: हदीस न.87 व 208, रोने से गुनाहों से दूरी: हदीस न.87, रोने से दिल का नूरानी होना: हदीस न.87
लड़ना
झगड़ालु स्वभव वाले से लड़ना: हदीस न.547
लापरवाह
लापरवाह का नींद में होना: हदीस न.4
लापरवाही
मौत के लिए तैयार न होने पर लापरवाही का प्रभाव: हदीस न.538, लापरवाही से जागना: हदीस न.129, नसीहत से लापरवाह रहना: हदीस न.211, शक्ति का अनुचित प्रयोग, लापरवाही की निशानी: हदीस न.393, दिल की लापरवाही: हदीस न.291
लाभ
लाभ से वंचित होना: हदीस न.27
लालच
अनुचित लालच: हदीस न.541, अपमान में लालच की भूमिका: हदीस न.17
लालची
लालची के मशवरे से बचो: हदीस न.565, लालची का लालच को सुसज्जित करना: हदीस न.565
लेख
लेख पर ध्यान देना: हदीस न.194
लेन देन : हदीस न.403
लोगों की नारज़गी
लोगों की नाराज़गी की परवाह न करके अल्लाह को ख़ुश करना: हदीस न. 492
लोगों की पहचान
लोगों की पहचान व भरोसा: हदीस न.456
लोगों की ज़रूरत
लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना: हदीस न.168
लोगों को आकर्षित करना
लोगों को आकर्षित करने के साधन: हदीस न.478
वफ़ादारी
मुहब्बत पर वफ़ादारी का असर: हदीस न.282
वादा
ना होने वाले काम का वादा करने से बचना: हदीस न.544, वादे को याद रखना: हदीस न.94
विकास व उन्नति
विकास का विरोध: हदीस न.474,
विचार
अधिक खाने से विचारों का प्रभावित होना: हदीस न.383
विधवा
विधवा पर अत्याचार का परिणाम: हदीस न.333
विनम्रता
सियासत में विनम्रता: हदीस न.286, मोमिन की विनम्रता: हदीस न.54
विनाश
विनाश के कारण: हदीस न.5
विपत्ति
निर्धनता विपत्ति है: हदीस न.130, दुआ से विपत्ति दूर होती है: हदीस न.198,
विलंब (देरी)
जल्दी पर देरी को वरीयता: हदीस न.83
वेश
स्वास्थ का वेश: हदीस न.573
व्यर्थ
व्यर्थ काम करने में मूर्खता की भूमिका: हदीस न.8
व्यर्थ कार्य
व्यर्थ कार्यों से बचना: हदीस न.259
व्यर्थ ख़र्च
व्यर्थ ख़र्च से बचना: हदीस न.397, व्यर्थ ख़र्च पर गर्व करना: हदीस न.494
व्यर्थ की सभायें
व्यर्थ की सभाओं का परिणाम: हदीस न.524
व्यस्तता
अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में व्यस्त रहना: हदीस न. 398
व्यापार
फ़िक़्ह पढ़े बिना व्यापार करना: हदीस न.462
शर्म
गुनाह से शर्माना: हदीस न.21, शर्म ईमान की निशानी: हदीस न.244, स्वंय से शर्माना 244, अनावश्यक शर्म: हदीस न.229, कम दान देने से शर्माना: हदीस न. 554, शर्म व पारसाई: हदीस न. 147, हुनर सीखने में शर्माना: हदीस न. 131,
शर्म के कार्य
शर्म के कार्यों से बचना: हदीस न.237
शराफ़त
शराफ़त ख़त्म होने के कारण: हदीस न.536,
शरीर
शारीरिक रोग का कारण: हदीस न.127, शारीरिक स्वास्थ: हदीस न.311
शाँति
शाँति नेमत के रूप में: हदीस न.591, शाँति पर ख़ुश गुमानी का प्रभाव: हदीस न.238, शाँति पर किताब पढ़ने का प्रभाव
शिष्टाचार
उद्देश्यो की प्राप्ति में शिष्टाचार की भूमिका: हदीस न.261, सबसे अच्छा शिष्टाचार: हदीस न.160, स्वयं को शिष्टाचारी बनाने के उपाय: हदीस न.394, शिष्टाचार की ज़रूरत: हदीस न.167
शिक्षार्थी
शिक्षार्थी की आखेरत में सफलता: हदीस न.409,शिक्षार्थी की दुनिया में इज़्ज़त: हदीस न.409
शुरू करना
मौक़े पर शुरू करना: हदीस न.205, शुरू करने से पहले विचार करना: हदीस न.304
शुक्र
शुक्र करने का तरीक़ा: हदीस न.103, समृद्धी में शुक्र: हदीस न.336, कठिनाई में शुक्र: हदीस न.336, मोमिन का शुक्र: हदीस न.295
शैतान
शैतान का जाल: हदीस न.24 व 32, अल्लाह की याद से शैतान दूर होता है: हदीस न.260
शोभा
सबसे अच्छी शोभा: हदीस न.335, बुराईयों से दूर रहने वाले भाईयों का शोभा होना: हदीस न.338
सख़ावत (खुले हाथों खर्च करना)
दोस्ती में सख़ावत की भूमिका: हदीस न.9
सच्चाई
सच्चाई की वास्तविक्ता: हदीस न.60
सच बोलना
सच बोलने का भरोसे पर प्रभाव: हदीस न.600, सच बोलने का दोस्ती पर प्रभाव: हदीस न.600, सच बोलने का रोब पर प्रभाव: हदीस न.600, सच बोलने का फ़ायदा: हदीस न.597
सच्चे दोस्त
सच्चे दोस्त की क़ुर्बानी: हदीस न.79, सच्चे दोस्त से नसीहत: हदीस न.79, सच्चे दोस्त बुराई से दूर रखते हैं: हदीस न.79,
सच्चे भाई (दोस्त)
सच्चे दोस्त शोभा बनते हैं: हदीस न.72, सच्चे दोस्त सहायक होते है: हदीस न.72
सत्ता
सत्ता के यन्त्र: हदीस न.40, सत्ता के लिए सीने का बड़ा होना: हदीस न.40
सताना
किसी को सताने से दूर रहना: हदीस न.505
सदक़ा
छुपा कर सदक़ा देने के गुनाह पर प्रभाव: हदीस न.315, खुले आम सदक़ा देने के माल की वृद्धी पर प्रभाव: हदीस न.315, सदक़े से इलाज: हदीस न.285, सदक़ा नेकी के रूप में: हदीस न.207, छुपा कर सदक़ा देने की श्रेष्ठता: हदीस न.166
सदव्यवहार
दोस्ती की मज़बूती पर सदव्यवहार का प्रभाव: हदीस न.239
सदाचार
दोस्ती पर सदाचार का प्रभाव: हदीस न.231
सफलता
सफलता के समय सयंम से काम लेना: हदीस न.400, सफलता की मिठास: हदीस न.242, सफलता में दूरदर्शिता का योगदान: हदीस न.3, सफलता पर अमानतदारी का प्रभाव: हदीस न.365, सफलता पर पिछले कार्यों की पूर्ति का प्रभाव: हदीस न.365, सफलता में वफ़ादारी का योगदान: हदीस न.365, सफलता के कारकों का प्रबंध: हदीस न. 259, शिक्षार्थी की परलोकीय सफलता: हदीस न.409, प्रति दिन के कार्यों के द्वारा सफलता: हदीस न.365, सफलता के कारक 171, सफलता में मशवरे का योगदान: हदीस न.209
सफ़ेद बाल
सफ़ेद बालों की चेतावनी: हदीस न.388
सब्र
सब्र के साथ समृद्धि का इंतज़ार: हदीस न.41, सब्र की कड़वाहट: हदीस न.242, हक़ की कड़वाहट पर सब्र: हदीस न.108, सब्र के प्रकार: हदीस न.77, कठिनाईयों पर सब्र: हदीस न.77, समय के विपरीत होने की स्थिति में सब्र: हदीस न.77, सब्र कमाल की निशानी: हदीस न.67, दुर्घटनाओं पर सब्र: हदीस न.67, अल्लाह की आज्ञा पालन पर सब्र: हदीस न.65
सबसे अच्छे इंसान: हदीस न.84
सबसे बड़ा बुद्धिमान: हदीस न.159
सबसे बुरे लोग: हदीस न.296, 298, 299, 302
समझौता
वह समझौता जिस पर भरोसा नही करना चाहिए: हदीस न.542,
समय
समय का विभाजन: हदीस न.410,
सम्मिलित होना
धनवानो के साथ सम्मिलित होना: हदीस न.307,
समूह
समूह के साथ रहना: हदीस न.111
समृद्धता
इंसान की विशेषताओं को प्रकट करने में समृद्धता की भूमिका: हदीस न.36
समृद्धि
अच्छी समृद्धि: हदीस न.560, समृद्धि पर परिश्रम का प्रभाव: हदीस न. 203, समृद्धि पर शाँति का प्रभाव: हदीस न. 580, समृद्धि पर सम्मान व सत्कार का प्रभाव: हदीस न.289, समृद्धि हीन लोग: हदीस न.575
सर्दी
बसंत की सर्दी को गले से लगाना: हदीस न.220,
आती सर्दी से बचना: हदीस न.220,
सरलता
मोमिन का सरलता से काम लेना: हदीस न.54
सलाम
सलाम को प्रकट रूप में करना: हदीस न.162, सलाम करने में कंजूसी: हदीस न.157
सहायता
सहायता को भूल जाना: हदीस न.94,
सहायता करना
भाई की सहायता करना: हदीस न.515 व 531, जान व माल से सहायता करना: हदीस न. 515 व 531,
सहायता करने की श्रेष्ठता: हदीस न.138
संतान
संतान को नमाज़ पढ़ने का शौक़ दिलाना: हदीस न.352
संबंध
भाई चारे का संबंध: हदीस न. 418 व 419
संयम
बदला लेने में संयम से काम लेना: हदीस न.148
संयमी
सयंमी की बर्दाश्त: हदीस न.31
साथ बैठना
भाईयों के साथ बैठना: हदीस न.502, आलिमों (ज्ञानियों) के साथ बैठना: हदीस न.232,
साथ रहना
साथ रहने से आदतों की जानकारी होना: हदीस न.257,
साथी
बुरे साथी: हदीस न.539, बुरे साथी दोज़ख की आग: हदीस न.313, बुरे साथियों के पास बैठने से दूरी: हदीस न.120, बुरे साथियों के नुक़्सान: हदीस न.120
साफ़ नीयत
साफ़ नीयत का निकटता पर असर: हदीस न.231
सामाजिक महत्व
सामाजिक महत्व को बढ़ाने वाली चीज़ें: हदीस न.459 व 470 व 532
सार्वजनिक व्यवहार
सार्वजनिक व्यवहार का आधार: हदीस न.99
साँस लेना
साँस लेना मौत की तरफ़ बढ़ना: हदीस न.528
सियासत
सियासत में दूर दर्शिता: हदीस न.286, सियासत का आधार: हदीस न.268, न्याय पर आधारित सियासत: हदीस न. 286, सियासत में न्याय: हदीस न. 286, सियासत में प्यार मुहब्बत: हदीस न. 268, सियासत में मध्य मार्ग को अपनाना: हदीस न. 286, सियासत में विनीतता: हदीस न.286
सिला –ए- रहम
सिला –ए- रहम का मौत पर प्रभाव: हदीस न. 314, सिला –ए- रहम का धन की वृद्धी पर प्रभाव: हदीस न.314, सिला –ए- रहम की श्रेष्ठता: हदीस न.166
सीने का बड़ा होना
सत्ता व सीने का बड़ा होना: हदीस न.40
सुख चैन का इन्तेज़ार
सब्र के साथ सुख चैन का इन्तेज़ार: हदीस न.41
सुधार
लोगों के कार्यों का सुधार: हदीस न.507, अच्छे कार्यों के द्वारा सुधार: हदीस न.97, अपना सुधार: हदीस न. 386, दूसरों के सुधार के तरीक़े: हदीस न.386, आत्म सुधार के उपाय: हदीस न.346, सुधार की निशानी: हदीस न.240, बन्दो का सुधार: हदीस न.191
सुन्दरता
सुन्दरता और अल्लाह की आज्ञा का पालन: हदीस न.512
सुन्दरता
सुन्दरता की ज़कात: हदीस न.279, आन्तरिक सुन्दरता: हदीस न. 39, बाह्य सुन्दरता: हदीस न.39, ज्ञान प्रसार की सुन्दरता: हदीस न.236
सुनना
दिल की ग़फ़लत के साथ सुनना: हदीस न.391
सुन्नत
अच्छी सुन्नत: हदीस न.567, इंसानों को आपस में मिलाने वाली सुन्नत: हदीस न.567
सुन्नत को मिटाना
सुन्नत को मिटाने से बचना: हदीस न. 567
सुरक्षा
सुरक्षा में दूर दर्शिता की भूमिका: हदीस न.24,
सुविचार
सुविचारों को सत्य रूप देना: हदीस न.448
सौभाग्य
हक़ के द्वारा सौभाग्य की प्राप्ति: हदीस न.363, भाग्यशाली बनाने वाली चीज़ें: हदीस न.256, ग़लतियों की पूर्ति का सौभाग्य पर प्रभाव: हदीस न. 323, पूर्ण सौभाग्य: हदीस न.507
स्वयं को यातना देना
स्वयं को यातना देने में बद अख़लाक़ी की भूमिका: हदीस न.435
स्वयं को भूल जाना
अल्लाह को भूलाने का परिमाम स्वयं को भूलना: हदीस न. 434
स्वयं से प्रसन्न रहना
ख़ुद से राज़ी रहना, मंद बुद्धी: हदीस न.278
स्वेच्छाचारिता
स्वेच्छा चारिता बर्बादी: हदीस न.559, स्वेच्छाचारिता मूर्खता की जड़ है: हदीस न.12
हक़
हक़ को प्रकट करना: हदीस न.546, ख़ुशी पर हक़ का प्रभाव: हदीस न.363, हक़ को ज़िन्दा करना: हदीस न.265, हक़ व बातिल का इकठ्ठा न होना: हदीस न.572, हक़ की कड़वाहट को बर्दाश्त करना: हदीस न.108, हक़ के साथ काम करना: हदीस न.478, हक़ बात न कहने का नुक़्सान: हदीस न.156, हक़ देना: हदीस न.153
हक़ के मुख़ालिफ़
हक़ के मुख़ालिफ़ों की मुख़ालेफ़त: हदीस न.254
ह्रदय की कठोरता
ह्रदय की कठोरता के कारण: हदीस न.127
हराम
हराम से बचने के फ़ायदे: हदीस न.186
हराम माल
हराम माल का ख़र्च: हदीस न.488, हराम माल कमाना: हदीस न.488
हलाल मज़ा
हलाल मज़े को तलाश करना: हदीस न.420
हवस
हवस का आँखो पर प्रभाव: हदीस न.184, हवस को मारना: हदीस न.266, रूह को हवस से पाक करने का फ़ायदा: हदीस न.330, हवस के बुरे प्रभाव: हदीस न.442, इबादत के मज़े पर हवस के प्रभाव: हदीस न.385, हवस की पैरवी का नुक़्सान: हदीस न. 460, हवस पर हावी होना: हदीस न.146
हँस मुख होना
हँस मुख होने का दोस्ती पर प्रभाव: हदीस न.29, हँस मुख होना का नेकी पर प्रभाव: हदीस न.56
हँसी
सबसे अच्छी हँसी: हदीस न.245, बेमौक़े हँसना: हदीस न.391
हिम्मत
उच्च स्थान पाने में हिम्मत की भूमिका: हदीस न. 459 व 470, हिम्मत का महत्व: हदीस न.372, हिम्मत का दुरुपयोग: हदीस न.393, पेट भरने में हिम्मत जुटाना: हदीस न.486
हुकूमत
हुकूमत के मज़बूत होने की निशानी: हदीस न.506
हैबत (रोब)
हैबत पर सच बोलने का असर: हदीस न.600, हैबत पर मज़ाक़ का असर: हदीस न.395
होशियार
होशियार की पहचान: हदीस न.70
होशियारी
कमियों को जानना होशियारी: हदीस न.390
श्रेष्ठ
श्रेष्ठ की निशानी: हदीस न.510
श्रेष्ठता
सबसे बड़ी श्रेष्ठता: हदीस न.503, श्रेष्ठता का आधार: हदीस न.266
ज्ञान
ज्ञान को माल पर वरीयता: हदीस न.82, ज्ञान से लापरवाह रहना: हदीस न.175, ज्ञान का ज्ञानी का रक्षक होना: हदीस न.82, ज्ञान का पूर्ण होना: हदीस न.214, पूर्ण ज्ञानी होने का दावा मूर्खता: हदीस न.501, ज्ञान की रक्षा: हदीस न.236, ज्ञान के साथ रहना: हदीस न.451, ज्ञान की सुन्दरता: हदीस न.236, ज्ञान प्राप्ति की कठिनाईयाँ: हदीस न.576, ज्ञान के अनुसार व्यवहार न करने के नुक़्सान: हदीस न.175, ज्ञान को बढ़ने वाली चीज़ें: हदीस न.232, ज्ञान व्यवहार के बिना: हदीस न.351, ज्ञान बिना फल: हदीस न.592, ज्ञान महत्ता का आधार: हदीस न.131, ज्ञान के अनुसार व्यवहार: हदीस न.114 व 201 व 214, ज्ञान प्राप्त करने के फ़ायदे: हदीस न.110, ज्ञान का कम न होना: हदीस न.379, ज्ञान का बढ़ना: हदीस न. 236, ज्ञान का फल: हदीस न.210 व 236, प्रसिद्धी में ज्ञान की भूमिका: हदीस न.114, मुक़्ति व निजात में ज्ञान की भूमिका: हदीस न.5
ज्ञानी
ज्ञानी की सेवा: हदीस न.82, ज्ञानी का ज्ञान से तृप्त न होना: हदीस न.66, ज्ञानी के भटकने का नुक़्सान: हदीस न.280, ज्ञानी से मशवरा करना: हदीस न.246, ज्ञानी के पास बैठना: हदीस न.233,
किताब के स्रोत
1) बिहारुल अनवार अलजामिअतु लिदु-ररि अख़बारिल आइम्मातिल अतहार अलैहिमुस्सलाम, मुहम्मद बाक़िर बिन मुहम्मद तक़ी अल-मजलिसी (स्व. सन् 1110 हिजरी क़मरी) प्रकाशक: मोअस्ससा अलवफ़ा, बैरूत, दूसरा संस्करण, सन् 1403 हिजरी क़मरी
2) ख़ाति-मतु मुस्तद-रकुल वसाइल, हुसैन नूरी तबरसी(स्व. सन् 1320 हिजरी क़मरी) प्रकाशक: मोअस्ससा ए आलुल बैत अलैहिमुस्सलाम, क़ुम, प्रथम संस्करण, सन् 1415 हिजरी क़मरी,
3) दानिश नामा ए इमाम अली अलैहिस्सलाम, अली अकबर रशाद, प्रकाशक: दानिश व अनदेशा ए मआसिर, तेहरान, प्रथम संस्करण, सन् 2001 ई.
4) अज़्ज़रीअतु इला तसानीफ़िश्शीआ, आक़ा बुज़ुर्ग तेहरानी, (स्व. सन् 1389 हिजरी क़मरी) प्रकाशक: दारुल अज़वा, बैरूत, तीसरा संस्करण, सन् 1403 हिजरी क़मरी
5) रोज़ातुल जिनान फ़ी अहवालिल उलमा ए व अस्सादात, मुहम्मद बाक़िर ख़वानसारी, तहक़ीक़ असदुल्लाह इसमाईलयान, प्रकाशक: इस्माईलयान तेहरान व क़ुम, सन् 1391 हिजरी क़मरी
6) रिहा-नतुल अदब, मुहम्मद अली मुदर्रिस तबरेज़ी, प्रकाशक: किताब फ़रोशी ख़य्याम, तीसरा संस्करण, सन् 1990 ई.
7) रियाज़ुल उ-लमा व हियाज़ुल फ़ुज़ला, अब्दुल्लाह आफ़ंदी इस्फ़हानी, तहक़ीक़: सैय्यिद अहमद हुसैनी, प्रकाशक: किताब खाना ए आयतुल्लाह मर-अशी नजफ़ी, सन् 1401 हिजरी क़मरी
8) ग़ु-ररुल हिकम व दु-ररुल कलिम, अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद तमीमी आमदी, अनुवाद व व्याख्या: मालुद्दीन मुहम्मद ख़वानसारी, प्रस्तावना व शुद्धीकरण: मीर जलालुद्दीन हुसैनी अरमवी (मुहद्दिस), प्रकाशक: तेहरान यूनिवर्सिटी तेहरान, तीसरा संस्करण, सन् 1981 ई.
9) अल-मुहक़्क़िक़ तबातबाई फ़ी ज़िकराहुस् सनवियतुल ऊला, सामूहिक लेख, प्रकाशक: मोअस्ससातुल आलुल बैत अलैहिमुस्सलाम, क़ुम, प्रथम संस्करण, सन् 1417 हिजरी क़मरी
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