नमाज और दीनयात

अहकाम
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लेखकः मौलाना फरमान अली साहब

मुक़्द्देमा

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इस एक अकेले ने सारे जहांन में ज़मीन का फ़र्श बिछाया, उस पर रंग बिरंगे के गुलबूटे छापे, आसमान का शामयाना बनाया, उसमें सीतारों की चमकीली चमकियां टांकी, आफ़ताब व महताब की कंदीले लटकाई। एक को रौशन और दूसरे को बुझा कर रात दिन की सैर कराता है, अपनी क़ुदरत के तमाशे दिखाता है। इसका वज़ीर बेनज़ीर है, यह उसकी कहानी है और क़ुदरती क़िस्सों को हमें यूँ कह सुनाता है।

 

उसूल-ए-दीन

यानी दीन की जड़े पाँच हैं

(1)तौहीद, (2)अदल, (3)नबूव्वत, (4) इमामत, (5) क़यामत

 

तौहीद- यानी ख़ुदा एक है, क्योंकि अगर कई ख़ुदा होते तो जहांन के इन्तेज़ाम में बखेङा होता, एक ख़ुदा कुछ कहता और दूसरा कुछ कहता, इससे आपस में तकरार होती और कोई चीज़ पैदा ना हो सकती।

 

अदल- यानी ख़ुदा इंसाफ़वर है, ज़ालिम नहीं है क्योंकि ज़ुल्म करना बूरी चीज़ है और ख़ुदा हर बुराई से पाक है।

 

नबूव्वत- ख़ुदा ने एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर पैदा किये, अव्वल हज़रत आदम (अ0), आख़ीर इनके हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स0) हैं, बाद हज़रत के ना कोई पैग़म्बर हुआ है ना होगा।

 

इमामत- यानी हर पैग़म्बर ने अपने बाद किसी को अपना नाएब मुर्क़रर किया है, इसी तरह हमारे पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा (स0) ने भी अपना नाएब मुर्क़रर फ़रमाया और वोह सब बरहक़ हैं और मासूम हैं, इन सबका हुक्म बजा लाना भी हम लोगों पर वाजिब है।

 

क़यामत- यानी एक रोज़ ऐसा होगा कि सब के सब मर जायेगें, सिवाये ज़ाते ख़ुदा के कुछ बाक़ी ना रहेगा। ना आसमान ना ज़मीन, ना आफ़ताब ना महताब, फिर ख़ुदा उनके बदनों में रूह को दाख़िल करेगा, और हिसाब वग़ैरा के बाद नेकों को बहिश्त में और बदों को दोज़ख़ में भेजेगा।

 

 

इमाम बारह हैं

(1)    पहले इमाम हज़रत अली अ0

(2)    दूसरे इमाम हज़रत हसन अ0

(3)    तीसरे इमाम हज़रत हुसैन अ0

(4)    चौथे इमाम हज़रत ज़ैनुलआबिदीन अ0

(5)    पाँचवे इमाम हज़रत मोहम्मद बाक़िर अ0

(6)    छठे इमाम हज़रत जाफ़र सादिक़ अ0

(7)    सातवे इमाम हज़रत मुसा काज़िम अ0

(8)    आठवें इमाम हज़रत अली रिज़ा अ0

(9)    नवे इमाम हज़रत मोहम्मद तक़ी अ0

(10) दसवें इमाम हज़रत अली नक़ी अ0

(11) ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन असकरी अ0

(12) बारहवें इमाम हज़रत महेदी आख़िरूज़्ज़ामन अ0

बारहवें इमाम- बारहवें इमाम अभी तक ज़िन्दा हैं मगर ख़ुदा के हुक्म से हम लोगों की नज़रों से पोशीदा हैं और यूँही पोशीदा रहेगें। जब ख़ुदा का हुक्म होगा तब दुनिया में ज़ाहिर होगें, उस वक़्त सब लोग एक दीन और मज़हब पर होंगे, इसी हाल पर दुनिया बरसो क़ायम रहेगी।

चौदह मासूम

जनाबे रसूले ख़ुदा (स. अ.) और जनाबे फ़ात्मा ज़हरा (अ.) और बारह इमाम (अ.) हैं।

 

सिफ़ात-ए-सुबूतिया

जो बातें ख़ुदा में पाई जाती हैं वो आठ हैं।

(1)    क़दीम: यानी हमेंशा से है और हमेंशा रहेगा।

(2)    क़ादिर: यानी हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।

(3)    आलिम: यानी हर चीज़ का जानने वाला है।

(4)    मुदरिक: यानी बग़ैर आँख, कान वग़ैरा के हर चीज़ दर्याफ़्त करने वाला है।

(5)    हई: यानी हमेशा से है और हमेशा ज़िन्दा रहेगा।

(6)    मुरीद: यानी हर काम अपने इरादे और अख़त्यार से करता है।

(7)    मुतकल्लिम: यानी जिस चीज़ में चाहे कलाम पैदा करे।

(8)    सादिक़ यानी: वो हर बात में सच्चा है।

 

सिफ़ात-ए-सलबिया

जो बातें ख़ुदा में नहीं पाई जाती हैं आठ है।

(1)    मुरक्कब नहीं: यानी किसी चीज़ से मिलकर नहीं बना।

(2)    जिस्म नहीं: हाथ और पाँव वग़ैरा नहीं रखता।

(3)    मकान नहीं उसके रहने की एक जगह नहीं बल्कि हर जगह मौजूद है।

(4)    हुलूल नहीं: यानी किसी में समाता नहीं।

(5)    मरई नहीं: यानी दिखने में नहीं आता।

(6)    महले हवादिस नही: यानी वो एक हाल से दुसरे हाल की तरफ़ नहीं बदलता।

(7)    शरीक अपना नहीं रखता।

(8)    यह सिफ़तें उसकी ज़ात से अलग नहीं बल्कि सब ऐन ज़ात हैं।

 

 

नाम-ए-आमाल

यानी दो फ़रीश्तें ख़ुदा की तरफ़ से हर शख़्स पर मोक़र्रर हैं, इसके सब काम अच्छे और बुरे लिखते हैं, एक फ़रिश्ता अच्छे कामों को और दूसरा बुरे कामों को।

 

 

सवाल मुनकिर व नकीर

यानी क़ब्र में मुर्दे को दफ़्न करने के बाद तो फ़रिश्ते आते हैं और मुर्दो की रूह को ब हुक्में ख़ुदा फिर जिस्म में दाख़िल करके पूछते हैं।

 

 

सवाल                              जवाब

 

तेरा ख़ुदा कौन है ?                परवरदिगार

तेरा दीन क्या है ?                 इस्लाम

तेरा पैग़म्बर कौन है ?              हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स0)

तेरा इमाम कौन है ?               हज़रत अली ता बारह इमाम (अ0)

तेरा क़िब्ला क्या है ?               क़ाबा मोहतरम

 

 

बस जो शख़्स ईमानदार है और इन बातों का एतेक़ाद दिल से रखता है, और ठीक-ठीक साफ़-साफ़ जवाब देता है तब वोह फ़रिश्ते उसको बहिश्त की ख़ुशख़बरी देकर चले जाते हैं, और जो शख़्स इन बातों का जवाब ठीक नहीं देता उसको फ़रिश्ते आग के गुर्ज़ मारते हैं और दोज़ख़ की ख़बर देकर चले जाते हैं।

 

हिसाब

यानी क़यामत के रोज़ हर शख़्स की बदी और नेकी देखी जाऐगी, जिसने जो कुछ अच्छा या बुरा काम किया है उसका हिसाब होगा और उसके मवाफ़िक जज़ा या सज़ा पाऐगा।

 

मीज़ान

यानी बरोज़े क़यामत हर शख़्स के आमाल ख़ुदा की क़ुदरत के तराज़ू में तोले जायेगे, अगर नेक कामों का पल्ला भारी होगा तो उसको अच्छा बदला मिलेगा, और जिसके बुरे कामों का पल्ला भारी होगा उसको सज़ा मिलेगी।

 

सिरात

ये एक पुल का रास्ता है, बाल से ज़्यादा बारीक और तलवार की धार से ज़्यादा तेज़, और आग से ज़्यादा गर्म दोज़ख़ पर क़ायम किया जायेगा। इस पर से लोगों को गुज़रना होगा, जो लोग कामिल ईमान रखते हैं, जिन्होंने ख़ुदा और उसके रसूल (स0) और इमामों की पुरी ताबेदारी की है वह लोग मिस्ल हवा के उस पर से गुज़र जाऐगें। जिन लोगों ने इसके ख़िलाफ़ किया हैं और गुमराह रहें हैं उन से इस पर ना चला जायेगा और दोज़ख़ में गिरेगें।

 

बहिश्त

ऐसी पाकीज़ा व लतीफ़ आरास्ता ऐश व आराम की जगह है कि यहाँ के बादशाहों को इसके सौवें हिस्से में से एक हिस्सा भी नसीब नहीं, वहाँ किसी तरह की फ़िक्र और ग़म और बिमारी और दुख नहीं, जो दाख़िल होगा वो हमेंशा की ज़िन्दगी पाकर ऐश व आराम से रहेगा।

 

दोज़ख़

ऐसी सख़्त अज़ाब की जगह है कि जितनी अज़ीयतें, दुख और दर्द रंज, आफ़ते यहाँ पेश आती हैं, इन सब से हज़ार दर्जे ज़्यादा वहाँ हमेंशा के लिये होगी।

 

शिफ़ाअत

यानी क़यामत के दिन जनाबे रसूले ख़ुदा (स0) और उनके अहलेबैत अतहार (अ0) गुनाहगार बन्दों की सिफ़ारिश करेगें जो लोग उनकी मोहब्बत और ताबेदारी से बाहर रहे हैं वह शिफ़ाअत से महरूम रहेंगे और जो ताबेदारी में सर गर्म रहे हैं ख़ुदा उनको बख़्श देगा।

 

कलमा

ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदु रसूलुल्ला अलीयुन वलीयुल्लाहे वसीयो रसूलिल्लाहे व ख़ली फ़तहू बिला फ़स्ल ।

(तरजुमा: अल्लाह के अलावा कोई और ख़ुदा नहीं, मोहम्मद अल्लाह के पैग़म्बर हैं। अली अल्लाह के वली हैं और रसूले ख़ुदा के वसी हैं और बिला फ़स्ल रसूल के ख़लीफ़ा हैं।)

दुरूद

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन व आले मुहम्मद ।

(तरजुमा: ऐ अल्लाह अपने रसूल मोहम्मद मुस्तफ़ा (स0) और उनकी औलादे ताहेरा पर दरूद भेज।)

 

 

फ़ुरू-ए-दीन

यानी दीन की शाख़ें, और वो छ: हैं।

(1)         नमाज़

(2)         रोज़ा

(3)         ख़ुम्स

(4)         हज

(5)         जिहाद

 

औक़ाते नमाज़

 हर रोज़ पाँच वक़्त की नमाज़ वाजिब है, सुबह की दो रकअत, ज़ोहर की चार रकअत, अस्र की चार रकअत, मग़रिब की तीन रकअत, ऐशा की चार रकअत, इन नमाज़ों के पढ़ने की तरकीब यह कि नमाज़ पढ़ने के क़ब्ल हर तरह की नजासत से बदन और कपङो का पाक होना और वुज़ू या ग़ुस्ल या ज़रूरत पर तयम्मुम कर लेना ज़रूरी है।

 

 

वुज़ू की तरकीब

पाक पानी से पहले दोनो हाथों को गट्टे तक दो मर्तबा धोयें, फिर तीन मर्तबा कुल्ली करें, फिर तीन मर्तबा नाक में पानी डालें, फिर वुज़ू की नियत इस तरह करें कि वुज़ू करता हूँ मैं वास्ते दूर होने हदस के और मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह  साथ ही नियत के एक चुल्लू पानी मुंह पर डालें, इस तरह की इब्तेदाई पेशानी से ठुड्डी के नीचे तक और चौङाई में दोनों कानों की जङ के क़रीब तक धोये इसके बाद दाहिने हाथ की कोंहनी कुछ ऊपर से उंगलियों के सिरे तक धोयें, इसके बाद बाँए हाथ को भी इसी तरह धोयें, इसके बाद सिर का मसह करें, यानि हाथ की उंगलियाँ तालू से बालों के इन्तेहा तक खीचें, इसके बाद दाहिने हाथ से दाहिने पाँव का और बायें हाथ से बायें पाँव का यानी दोनो पाँव की उंगलियों से गट्टे तक मसह करें।

 

 

तयम्मुम

अगर पानी ज़रर करता हो, या ना मिलता हो, या ग़स्बी हो, और वक़्ते नमाज़ हो तो ग़ुस्ल या वुज़ू के बदले तयम्मुम करना चाहिये पहले नियत करें कि तयम्मुम करता हूँ या करती हूँ बदले ग़ुस्ल या वुज़ू के वास्ते मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह और इसके बाद फ़ौरन दोनों होथों को एक मर्तबा ख़ाक पर मारें, बाद इसके हाथों को मिलाकर पेशानी के ऊपर से नाक तक खींचे, इसके बाद बायें हथेली से दाहिने हाथ की पुश्त पर गट्टे से उंगलियों के सिरे तक मसह करे इसके बाद बायें हाथ की पुश्त पर गट्टे से उंगलियों के सिरे तक मसह करे, मिट्टी पाक हो, कोई चीज़ इसमें मिली न हो और हाथ से अंगूठी वग़ैरा उतार दें।

 

 

अज़ान

वुज़ू के बाद जब नमाज़ का इरादा करें तो पहले इस तरह चार मर्तबा बा आवाज़ बलन्द अल्लाहो अकबर (ख़ुदा बुज़ुर्ग है) कहें, फिर दो मर्तबा अश्हदो अल्ला इलाहा इलल्लाह (गवाही देता हूँ ब तहक़ीक ख़ुदा कोई नहीं ब जुज़ अल्लाह के) फिर दो मर्तबा कहें अश्हदो अन्ना मोहम्मदर रसूलुल्लाह (गवाही देता हूँ ब तहक़ीक मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं) फिर दो मर्तबा कहें अश्हदो अन्ना अमीरल मोअमेनीना व इमामल मुत्तक़ीना अलीयव वली युल्लाह वसीयो रसूलिल्लाहे व ख़लीफ़तोहू बिला फ़स्ल (गवाही देता हूँ की ब तहक़ीक अली अ0 मोमिनों के अमीर और मुत्तक़ियों के इमाम, अल्लाह के वली हैं पैग़म्बरे ख़ुदा के वसी और ख़लीफ़ बिला फ़स्ल हैं) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अलस्सलाह (नमाज़ के लिये आमादा हों) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अललफ़लाह (फ़लाहयत के लिये आमादा हो) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अला ख़ैरिल अमल (बेहतरीन अमल के लिये आमादा हों) फिर दो मर्तबा कहें अल्लाहो अकबर (अल्लाह बुज़ुर्ग है) फिर दो मर्तबा कहें ला इलाहा इलल्लाह (अल्लाह के सिवाये कोई माबूद नहीं)।

बाद इसके बैठ जायें और यह दुआ पढ़े

अल्लाहुम्मज अल क़लबी बार रवं व अमली सार रवं व ऐशी क़ार रवं व रिज़्क़ी दारवं व औलादी अबरारवं वज अलली इन्दा क़ब्रे नबीय्येका मुहम्मदिन सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम मुसतक़र रवं वाक़रारन बे रहमते का या अरहमर राहेमीन ।

(तर्जुमा: ऐ पालने वाले मेरे क़ल्ब को नेक और मेरे ऐश को बरक़रार और अमल को जारी रख और मेरे रिज़्क़ को और हमेशगी और मेरी औलाद को नेकोकारी अत फ़रमा, और मेरे लिये अपने नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) की क़ब्र के नज़दीक अता करना, और इन पर अल्लाह की रहमत और दुरूद और इनकी आल पर सलाम इसतक़रार और बरक़रारी अपनी रहमत के साथ अता फ़रमा ऐ बहुत रहम वाले)

 

दुआ पढ़ने के बाद इस तरह अक़ामत कहें

अक़ामत

अल्लाहो अकबर दो मर्तबा बाद इसके सब अरकान अज़ान की तरह बजा लायें मगर हय्या अला ख़ैरिल अमल के बाद दो मर्तबा क़द क़ामतिस्सलाह को ज़्यादा करे और ला इलाहा इल्लल्लाह एक मर्तबा कहे। इसके बाद नमाज़ शुरू करें.


तरकीब नमाज़

अक़ामत के बाद सीधा खङा हो क़िब्ला की तरफ़ मुंह करके और इस तरह नियत करें नमाज़ पढ़ता हूँ मैं (जैसे) सुबह की दो रकअत वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह इसके साथ ही तकबीर कहें यानी अल्लाहु अकबर ब आवाज़ बलन्द कहें, इसके बाद हम्द बिस्मिल्लाह के साथ पढ़ें।

 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान रहीम है।

अलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन, अर रहमानिर रहीम, मालिके यौमिद्दीन, ईय्याका नअबोदो व इय्याका नसताईन, एहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम, सिरातल्लज़ीना अन अमता अलैहिम ग़ैरिल मग़ज़ूबे अलैहिम वलज़्ज़ल्लीन ।

(तर्जुमा : सब तारीफ़े अल्लाह के लिये जो तमाम आलमों का पालने वाले है जो बङा रहम करने वाला है, क़यामत के दिन का मालिक है। हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझसे ही मदद चाहते हैं। हम को सीधी राह पर बाक़ी रख उन लोगों की राह पर जिनपर अपनी नेमतें नाज़िल फ़रमाई, न उन लोगों की राह जिन पर तूने अपना ग़ज़ब नाज़ील किया और न गुमराहों की।)

बाद अलहम्द के जो सूरा चाहे पढ़े इख़्तेयार है।

 

 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान रहीम है।

 

इन्ना अनज़लनाहो फ़ी लैलतिल क़द्र वमा अदरका मा लैलतुल क़द्र लैलतुल क़द्रे ख़ैरूम मिन अलफ़े शहर, तनज़्ज़लुल मलाएकतो वर रूहो फ़ीहा बेइज़्ने रब्बेहिम मिन कुल्ले अमरिन सलामुन हियाहत्ता मतलाईल फ़ज्र ।

 

(तर्जुमा- ब तहक़ीक़ हमने क़ुर्आन को शबे क़द्र में नाज़ील किया, और तू नहीं जानता कि शबे क़द्र कैसी शब है, शबे बेहतर है हज़ारो महीनों से। अपने परवरदिगार के हुक्म से इस शब में मलायेका और रूह नाज़िल होते हैं, यह शब आबीदों के लिये हर अमल बाअसे सलामती है यहा तक की तुलूए सुबह हो।)

 

फिर अल्लाहु अकबर कह कर रूकूउ में जाये और तीन मर्तबा सुबहाना रब्बेयल अज़ीमे व बेहमदेह कहे। (यानी तस्बीह करता हूँ मैं अपने उस परवरदिगार बुज़ुर्ग की और हम्द उसकी।) फिर सिधा खङे हो और समे अल्लाहोलेमन हमेदह कहे (ख़ुदा वन्दे आलम उसका कलाम सुनता है जो उसकी हम्द करता है) फिर अल्लाहो अकबर कह कर सजदे में जायें और तीन मर्तबा कहें सुब्हाना रब्बेयल आला व बेहमदेह (तस्बीह करता हूँ अपने परवरदिगार की जो सबसे ज़्यादा बुज़ुर्ग है और हम्द उसकी) बाद इसके सर उठायें और अल्लाहो अकबर कह कर बैठें और एक मर्तबा असतग़ फ़ेरूल्लाहा रब्बी व अतूबो इलैह कहें (बख़्शीश चाहता हूँ अपने परवरदिगार से अपने गुनाहों की) फिर अल्लाहो अकबर कहें और दोबारा सजदें में जायें और तीन बार कहें सुब्हाना रब्बेयल आला व बेहमदेह और सजदे से सर उठायें और अल्लाहो अकबर कहें और बैठे, बाद उसके बेहोलिल्लाहे व क़व्वतेही अक़ूमो व अक़ुद (यानी उसी अल्लाह की क़ुव्वत और मदद से खङा होता हूँ और बैठता हूँ) कह के सीधा खङा हो। रकअत अव्वल तमाम हुई।

 

 दूसरी रकअत

मिस्ल रकअत अव्वल बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कह कर सूरा हम्द पढ़ें। इसके बाद सुरा क़ुल होवल्लाहो अहद, पढ़े।

 

 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान रहीम है।

क़ुल होवल्लाहो अहद, अल्ला हुस्समद, लम यलिद वलम यूलद, वलम यकुल्लाहू कोफ़ोवन अहद ।

(तर्जुमा- कहदो ऐ रसूल अल्लाह एक है और वह बेनियाज़ है। कोई उससे पैदा नहीं हुआ और न वह किसी से पैदा हुआ और न कोई उसका मिस्ल है।) इसके बाद दोनो हाथों को मुंह के बराबर उठायें और यह दुआ-ए-क़ुनूत पढ़े।

 

रब्बनग़फ़िरली वले वालेदय्या व लिलमोमिनीना, यौमा यक़ूमुल हिसाब अल्लाहुम्मग़फ़िरलना वरहमना व आफ़ेना व अफ़ोअन्ना फ़िद्दुनिया वल आख़ेरह इन्नाका अला कुल्ले शैइन क़दीर।

 

(तर्जुमा- ऐ हमारे पालने वाले क़यामत के दिन हमको और हमारे वालदैन और तमाम मोमिनों को बख़्श दें। परवरदिगार हमारी और तमाम मोमिनों की बख़्शीश कर और दुनिया और आख़ेरत में आफ़ियत अता फ़रमा ब तहक़ीक़ की तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है।)

 

इसके बाद दुरूद पढ़ कर मिस्ल रकअत अव्वल के रूकूउ और दोनों सजदे बजा लाये, जब सजदे से सर उठाये अल्लाहो अकबर कह कर दो ज़ानू बैठे और तशहुद पढ़ें।

 

अशहदो अल्लाइलाहा इल्लल्लाह वहदहूलाशरीका लहू व अशहदो अन्ना मुहम्मदन अबदोहू व रसूलोह।

 

(तर्जुमा- गवाही देता हूँ कि कोई ख़ुदा सिवाये अल्लाह के नहीं है ख़ुदा एक है और इसका कोई शरीक नहीं और गवाही देता हूँ की मोहम्मद मुस्तफ़ा (स00) इसके बन्दे और रसूल हैं।) इसके बाद दुरूद पढ़ें, अगर नमाज़ दो रकअत है तो यूँ सलाम पढ़ें।

 

अस्सालो अलैका अय्योहन्नबीयो व रहमतुल्लाहे व बराकातूह, अस्सलामो अलैना व अला एबादिल्लाहिस्सालिहीन, अस्सालामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरादातूह।

 

(तर्जुमा- ऐ पैग़म्बरे ख़ुदा आप पर सलाम हो और अल्लाह की रहमतें और बरकतें हो सलाम हो हम पर और ख़ुदा के नेक बन्दों पर और सलाम हो सब पर और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकत।)

 

अगर नमाज़ सह (तीन) रकअती हो या चार रकअती तो सलाम न पढ़ें, और तशहुद पढ़ कर उठ खङा हो और फ़क़्त सूरा हम्द या जो सूरा याद हो पढ़े और रूकूउ और दोनों सजदे मिस्ल साबिक़ बजा लाये अगर नमाज़ सह रकअती है तो बाद तीसरी रकअत के और अगर चार रकअती है तो बाद चौथी रकअत के तशहुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे फिर तीन मर्तबा अल्लाहो अकबर हाथों को कानो तक लेजा कर कहें।

इसके बाद दुरूद और तसबीह जनाबे सय्यदा (स00) 34 मर्तबा अल्लाहो अकबर और 33 मर्तबा अलहम्दो लिल्लाह और 33 मर्तबा सुब्हानल्लाह पढ़े। इस के बाद दुआयें और क़ुरआन मजीद और जोशनीन वग़ैरा पढ़ें और बावास्ता पंजतन पाक (अ0) और बाराह इमाम (अ0) बरादरान मोमिन ज़िन्दा और मुर्दा के लिये दुआ-ए-ख़ैर करें और अपनी हाजतें ख़ुदा से तलब करे और बाद इसके ज़ेयारत इमाम हुसैन (अ0) रोज़-ए-अक़दस की तरफ़ इशारा करके पढ़ें।

 

 

नमाज़ जमाअत

इस्लाम एक कामिल और एजतेमाई दीन है। यही वजह है कि इस्लाम नमाज़े जमाअत को बहुत अहमियत देता है। क्योंकि नमाज़े जमाअत मज़हरे वहदत व उल्फ़त व नज़म व ज़ब्त और क़ुव्वते (ताक़त) मुसलेमीन है।

हदीस में आया है कि अगर एक आदमी इमाम जमाअत की एकतेदा करे तो हर रकअत का सवाब एक सौ पचास नमाज़ों का है। अगर दो आदमी हों तो छ: सौ नमाज़ो का सवाब है। इसी तरह जितने मुक़्तदी ज़्यादा होते जायेगें, सवाब में इज़ाफ़ा होता जायेगा। लेकिन जब या इससे ज़्यादा मुक़्तदी हो जायें तो अगर तमाम आसमान कागज़ बन जाये, तमाम दरया सियाही बन जाये, तमाम दरख़्त क़लम बन जायें और तमाम जिन व इन्स व मलायका लिखने वाले हों तो एक रकअत का भी सवाब नहीं लिख सकते। लापरवाही की वजह से जमाअत में हाज़िर ना होना जाएज़ नहीं है। और बग़ैर उज्र के नमाज़े जमाअत तर्क करना मुनासिब नहीं है(1)

((1) इमाम ख़ुमैनी, आक़ाए ख़ुई, आक़ाए गुलपाएगानी, आक़ाए मोहम्मद अली अराक़ी)


शराऐते पेश नमाज़

1-मर्द हो, 2-बालिग़ हो, 3-आक़िल हो, 4-शिया असनाये अशरी हो, 5-हलाल ज़ादा हो, 6-नमाज़ दुरूस्त पढ़ सकता हो, 7-आदील हो, अदालत एक हालत नफ़सानी और रूहानी है जिसका लाज़िम तक़वा व परहेज़गारी है, यानी अवाम का पाबन्द और नवाही को मुरतक़िब ना हो।

 

 

तरीक़ा-ए-नमाज़े जमाअत

नमाज़े जमाअत सिर्फ़ दो आदमियों यानी एक पेश नमाज़ और एक मुक़तदी(पीछे नमाज़ पढ़ने वाला) से हो सकती है।

पेश नमाज़ की नियत करने के बाद मुक़तदी नियत करे की फ़लां नमाज़ पढ़ता हूँ मैं पीछे इस पेश नमाज़ के अदा वाजिब क़ुर्बतनइलल्लाह, और पहली और दूसरी रकअत में हम्द और दूसरा सूरा ख़ुद न पढ़े बल्कि पेश नमाज़ के पढ़ने को सुनता रहे। अख़फाकी नमाज़ (ज़ोहर व अस्र) में जब इमाम क़रअत करे तो बेहतर है कि मामूम ज़िकरे ख़ुदा में मशग़ूल रहे बल्कि अक़वा यह है कि जहरी नमाज़(नमाज़े फ़ज्र, मग़रिब व एशा) में भी जब इमाम करअत करे और उसकी आवाज़ सुनाई न दे तो मामूम ज़िक्रे ख़ुदा (आहिस्ता आहिस्ता सुब्हानल्लाह सुब्हानल्लाह पढ़ता रहे) में मशग़ूल रहें। अगर जहरी नमाज़ में क़रअत या हमहमा सुन रहा हो, तो ख़ामोश रहना और सुनना वाजिब है। और अगर सुनने में ना आये तो बहतर बल्कि अहवत यह है कि ख़ामोश खङा होकर इमाम की क़राअत सुनने की कोशिश करता रहे। बाक़ि रूकूउ व सजदों के तमाम उमूर पेश नमाज़ के पीछे ख़ुद बजा लाये। अगर मुक़तदी किसी वजह से पहली रकअत में शामिल नहीं हो सका और दुसरी रकअत में रूकुउ से पहले शामिल हुआ है तो जिस वक़्त पेश नमाज़ तशहुद पढ़े तो मुक़तदी को चाहिये की वो ज़ानुओ को ज़मीन से उठा कर और हाथों को ज़मीन पर टेक कर चुप बैठा रहे और बजाये तशहुद सुब्हानल्लाह पढ़ता रहे और इमाम के खङे होने के साथ ही खङा हो जाये। तीसरी रकअत में जब पेश नमाज़ सलाम अदा करे तो मुक़तदी सलाम शुरू करने के एन वक़्त पर उठ कर अपनी तीसरी रकअत अदा करे। अगर नमाज़ चार रकअती हो तो मुक़तदी जल्द से तशहुद अदा करके पेश नमाज के साथ क़याम में शामिल हो जाये। क्योंकि हालते रूकूउ व सजदों में पेश नमाज़ के साथ शामिल होना ज़रूरी है।

 

नमाज़ जमात के चन्द ज़रूरी मसाएल

1 नमाज़ जमाअत में पेश नमाज़ को तय्यन होना लाज़मी है।

2 पेश नमाज़ पहले दो रूकन पैदर पै अमदन बजा लाये तो ऐहतेयात वाजिब यह है कि नमाज़ को तमाम करने के बाद दोबारा पढ़ें।

3 नमाज़ ज़ोहर और अस्र की पहली और दूसरी रकअत में मामूम अलहम्द और सूरा ना पढ़ें बल्कि सुब्हानल्लाह कहना मुस्तहब है।

4 इमाम नमाज़ में पेशाब पैख़ाना नहीं रोक सकता तो एहतेयात वाजिब है कि इसकी इक़तेदा न करे इसी तरह जिसको जुज़ाम और बरस हो वह भी इमामे जमाअत नहीं बन सकता।

5 मामूम नमाज़ जमाअत में अलहदम्द और दुसरे सूरे के अलावा बाक़ी तमाम ज़िक्र ख़ुद पढ़े।

6 पहली सफ़ के मामूम तकतीब से तकबीरातुल एहराम कहें जबकि दूसरी और बाक़ी सफ़ वाले अपने आगे वाले की तकबीर के बाद तकबीरातुल एहराम कह सकते हैं।

 

 

नमाज़े जुमा

इस्लाम दीन-ए-सियासत है कि जिसके एहकाम सियासते इलाही के मज़हर में मस्जिद में नमाज़े जमाअत के इजतेमाअत और हफ़्ते में एक दफह नमाज़-ए-जुमा का इजतेमा इस बात का सबूत है। इन दीनी और सयासी इजतेमाआत की वजह से मुसलमान एक दूसरे के हालात से वाक़िफ़ होने अलावा दीनी इजतेमाइ और अक़तसादी मसायल से भी आगाही नसीहत और रोज़ मर्राह के मसायल बयान होने चाहिये।

नमाज़े जुमा वली-ए-अस्र (अ0) की ग़ैबत में वाजिब तख़ीरी है यानि जुमें के दिन इन्सान ज़ोहर के बजाय जुमा पढ़ सकता है। लेकिन जुमा अफ़ज़ल है और नमाज़ ज़ोहर अहवत है और एहतेयात यह है कि दोनो को जमा किया जाये और जो नमाजे जुमा वाजिब की नियत से पढ़ता है उस पर ज़ोहर पढ़ना वाजिब नहीं है। ताहम एहतियात मुस्तहब है कि नमाज़े ज़ोहर भी पढ़े। नमाज़े जुमा के वही शरायत हैं जो नमाज़े जमाअत के हैं।

इसी तरह इमामे जुमा और इमामे जमाअत के शरायत यकसा हैं।

 

 

नमाज़े जुमा वाजिब होने की शर्ते

1 बालिग़ हो, 2 मर्द हो, 3 मुसाफ़िर ना हो, 4 अंधा ना हो, 5 सही व सालीम हो, 6 ज़ईफ़ और बुढ़ा ना हो, 7.महल नमाज़े जुमा घर से दो फ़रसख के फ़ासले से ज़्यादा न हो।

नमाज़े जुमा जमाअत के बग़ैर नहीं हो सकती। जमाअत के लिये कमअज़्कम पाँचे आदमियों का होना ज़रूरी है और इसका वक़्त वही है जो नमाज़े ज़ोहर का वक़्ते फ़ज़ीलत है। इस नमाज़ में पहले पेश नमाज़ उन दो ख़ुतबों को पढ़े या उनकी मिस्ल दो ख़ुतबे पढ़े जिसमें हम्द व सनाऐ परवरदिगार और दुरूद व सलाम मोहम्मद व आले मोहम्मद और वाअज़ व नसीहतें मोमिनो के लिये हों। पहले ख़ुत्बे को किसी मुख़तसर सूरतों या आयात के साथ ख़त्म करें नमाज़ी इन ख़ुत्बों को ज़रूर सुने।

इस नमाज़ में दो क़ुनूत सुन्नत हैं। एक पहली रकअत में रूकूउ से पहले और दूसरी रकअत में रूकुउ के बाद। दोनों क़ुनूत में जो दुआ याद हो पढ़ें बाक़ी उमूर के लिये मुजताहिद की तरफ़ जिसकी तक़लीद में हैं रूजूअ करें।

नोट- नमाज़े जुमा एक फ़रस्ख़ यानी साढ़े पाँच कि0मी0 के अन्दर दो जगह नहीं हो सकती। अगर एक मक़ाम पर दो नमाज़े पढ़ी जायेंगी जो पहले पढ़ी जाऐगी वो दुरूस्त हैं और दूसरी बातिल और अगर दोनों एक वक़्त में पढ़ी गईं हो तो दोनों बातिल हैं।


रोज़ा

माहे रमज़ान के पूरे महिने के रोज़े हर मर्द और औरत पर वाजिब हैं जबकि बालिग़ व आक़िल हो, औरत नौ बरस और मर्द पनद्रह बरस में बालिग़ होता है। रोज़ा सुबह सादिक़ से अव्वल वक़्त मग़रिब तक यानी शाम को मशरिक़ की तरफ़ सुर्ख़ी जाती रहे और सियाही मशरिक़ से बलन्द होकर सिर से गुज़र जाये।

रोज़े की नीयत

पहली शब तमाम महीने की इस तरह नीयत करें की रोज़ा रख़ूगां तमाम माहे रमज़ान का वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह मगर बेहतर है कि हर शब नियत कर लिया करे। और गरम पानी से इफ़्तार करना बेहतर है, बाद सुरा हम्द व इन्नाअन्ज़लनाहो कहे यह दुआ पढ़े।

दुआ-ए-इफ़तार

अल्ला हुम्मा लका सुमतो व अलारिज़्के का अफ़तरतो व अलैका तवक्कलतो।

 

 

अहकामे ज़िबह

जानवर को मुसलमान ज़िब्हा करे, मर्द हो या औरत, बालिग़ हो या ना बालिग़, ताहिर हो या नजिस, क़िब्ला रूख़ लोहे की तेज़ धार से ज़िब्हा करते वक़्त बिस्मिल्लाह वल्लाह अकबर तीन बार कहे बल्कि जब तक रंग ना कटे उस वक़्त तक पढ़ता रहे।

 

 

तरीक़ा-ए-फातेहा

अव्वल व आख़ीर तीन बार दुरूद व सूरा पढ़कर इस तरह कहे कि इसका सवाब फलां इमाम (अ0) को हदिया किया, और इसके एवज़ में जो सवाब हासिल हुआ उसको मैंने फला की रूह को बख़्श दिया। सिवाये मोमिन के ग़ैर की फ़ातेहा मसलन शेख़ सददू वग़ैरा बिदअत और ना जायेज़ हैं।

शक्कियाते नमाज़

अगर दो रकअती नमाज़ मस्लन सुबह या तीन रकअती नमाज़ मस्लन मग़रीब या चार रकअती नमाज़ की अव्वल दो रकअतो के दरमियान शक हो और ज़रा ताम्मुल से शक रफ़ा ना हो तो नमाज़ बातिल है और नये सिरे से नमाज़ पढ़ना लाज़िम है, और अगर चार रकअती में रूकुउ से पहले या दोनो सजदों के कामिल करने से पहले यह शक हो की दुसरी रकअत हो या तीसरी तो भी हर सूरत में नमाज़ बातिल है अगर यही शक सजते कामिल करने के बाद हो तो इस सूरत में नमाज़ी सही है। और इसको तीसरी रकअत समझ कर नमाज़ ख़त्म करे, बाद अज़ा दो रकअत बैठ कर या एक रकअत खङे होकर पढ़े और नीयत करे कि नमाज़े एहतियात पढ़ता हूँ क़ुर्बतनइलल्लाह इस नमाज़ में सिर्फ़ सूराए हम्द आहिस्ता पढ़ी जाती है। दुसरे सूरे और क़ुनूत कुछ नहीं, बाक़ी सब अमल बादसतूर हैं। अगर क़ब्ले रूकूउ या क़ब्ले अकमाले सजदा तीन दो और चार में शक हो तो भी नमाज़ बातिल है, और सजदों की तकमील के बाद यह सूरत वाक़ेअ हो तो चार पर बिना रखे यानी चौथी रकअत समझ कर नमाज़ तमाम करे, फ़िर दो रकअत नमाज़े एहतियात सिर्फ़ सूरा हम्द के साथ बग़ैर क़ुनूत खङा होकर पढ़े, अगर तीन या चार के दरमियान शक हो ख्वाह किसी हालत में हो चार पर बिना रख कर नमाज़ ख़त्म करे। फिर दो रकअत नमाज़े एहतेयात मज़कूर बैठ कर या एक रकअत खङे होकर पढ़े, सूरत अव्वल बेहतर है, और अगर चार पाँच के दरमियान शक हो, अगर रूकू से पहले है तो उसी वक़्त बैठ जायें और तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ ख़त्म करें, एक रकअत खङे होकर या दो रकअत बैठ कर नमाज़े एहतेयात बजा लायें और दो सजदे सहो के भी बजा लायें, और अगर शक वक़्ते तस्बीहाते अरबअ सूर-ए-हम्द शुरू कर चुका हो तो दो सजदे सहो और भी करे, और अगर रूकूउ के बाद और सजदो से पहले या सजदों के दरमियान चार पाँच में शक हो तो चार पर बिना रख कर नमाज़ ख़त्म करे, बाद अज़ा दो सजदे करे और फिर एहतेयातन नमाज़ को अदा भी करे, अगर सजदे के बाद चार और पाँच में शक हो तो इसी तरह बैठा रहे और तशहुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे और दो सजदे सहो के बजा लाये नमाज़ सही है, और दूबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं है।

 

शक के अहकाम

शक की चन्द क़िस्में हैं-

1.तहारत के सहो (शक) हो, मस्लन एक शख़्स अपने आपको बा वुज़ू ख़्याल करके नमाज़ पढ़ने लगे और असनाए नमाज़ में याद आजाये की वुज़ू न था तो उसकी नमाज़ बातिल है और ग़ुस्लो तयम्मुम का भी हुक्म है।

 

2.नजासत के दूर करने में सहो हो, मस्लन मेरा बदन और लिबास नजिस था, नमाज़ बातिल है।

 

3.क़िब्ले में सहो हो, अगर नमाज़ पढ़ते हुए तहक़ीक़ हो जाये कि जितनी नमाज़ पढ़ी है वो पुश्त बा क़िब्ला या उससे दायें या बायें रूख़ करके नमाज़ पढ़ी है, नमाज़ बातिल है।

 

4.मकान में सहो हो, मस्लन एक जगह को मुबाह समझ कर नमाज़ शुरू की, असनाऐं नमाज़ में मालूम हुआ कि वह जगह ग़स्बी है, इस हालत में अगर कोई अमर मुब्तले नमाज़ को बजा लाये बग़ैर मकाने मुबाह में जा सकता हो तो वहाँ चला जाये और बाक़ी नमाज़ वहाँ जाकर तमाम करे और अगर मुमकिन ना हो तो नमाज़ तोड़ दे और मुबाह मकान में जाकर शुरू से नमाज़ पढ़ें।

 

5.लिबास में सहो हो, अगर असनाऐ नमाज़ में मालूम हो जाये की लिबास ऐसी चीज़ का बना हुआ है कि जिसमें नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है, और इसके पहले ख़बर ना थी, अब अगर वह मुब्तले नमाज़ को बजा लाये हुये बग़ैर, उस नमाज़ उतार सकता है तो उतार कर बाक़ी नमाज़ तमाम करे, और अगर ना उतार सकता हो तो नमाज़ क़ता करके अज़ सरे नौ बे ऐब लिबास पहन कर नमाज़ शुरू करे।

अगर सहवन नमाज़ में कमी हो जाये और बाद में याद आये अगर वह रूकन है और वह अभी दुसरे रूकन में दाख़िल नहीं हुआ तो वापस होकर उस रूकन को बजा लाये, और अगर दूसरे रूकन में दाख़िल हो चुका है तो नमाज़ बातिल है और अगर वह कम शुदा जुज़वे रूकन नहीं है और अभी उसके बजा लाने का मौक़ा है तो उसको बजा लाये, और अगर मौक़ा गुज़र गया तो कुछ हर्ज नहीं है, अगर ज़्यादती हो जाये और वह ज़्यादती रूकन है तो नमाज़ बातिल है, और अगर रूकन नहीं है तो नमाज़ बातिल नहीं है, बाद नमाज़ दो सजदे सहो के करें।

सजदे सहो

अव्वल नियत करें की सजदे सहो करता हूँ बवजह फ़लां शक के क़ुर्बतन इलल्लाह। फिर अल्लाहो अकबर कहें और दो सजदे नमाज़ की तरह बजा लायें मगर मजदे में ज़िक्र करें बिस्मिल्लाहे व बिल्लाहे सलल्लाहो अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मद दोनों सजदें करकें बैठे और तशहुद पढ़ें और सलाम में सिर्फ़ आख़री सलाम यानी अस्सलामों अलैकुम व रहमुल्लाहे व बराकातूह।


ग़ुस्ले जनाबत

उसकी दो सूरतें हैं (1).सोते जागते में मनी का निकलना। (2).जिमा करना, ख़्वाह इन्जाल हो या ना हो, इन दोनो सूरतों में नहाना वाजिब है, इस नहाने को ग़ुस्ले जनाबत कहते हैं, इस ग़ुस्ल के बाद नमाज़ वग़ैरा के लिये वुज़ू की ज़रूरत नहीं हैं, इस ग़ुस्ल के दो तरीक़े हैं- (1). तरतीबी, (2). इरतेमासी।

ग़ुस्ले जनाबत तरतीबी

पहले बदन को नजासत से पाक करें, बाद इसके नियत करें कि ग़ुस्ले जनाबत करता हूँ वास्ते दूर होने हदस और मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह इसके बाद सर पर पानी डाले और सर व गर्दन को इस तरह धोयें कि कान और बालों की जङ तक पानी पहुँच जायें फिर दाहिने जानिब गर्दन से पैर की उंगलियों तक मये तलवा। इसी तरह बायें जानिब को धोयें, और बेहतर यह है कि दाहिनें तरफ़ धोते वक़्त कुछ हिस्सा बायें तरफ़ धोते वक़्त कुछ हिस्सा दाहिने तरफ़ का भी ले।

ग़ुस्ले जनाबत इरतेमासी

पहले बदन को नजासत से पाक करें, इसके बाद नियत करें ग़ुस्ले जनाबत इरतेमासी करता हूँ वास्ते दूर होने हदस और मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह और फ़ौरन ग़ोता लगायें।

 

औरतों के ग़ुस्ल

औरतों को ग़ुस्ले जनाबत के अलावा और तीन ग़ुस्ल इस तरीक़े से वाजिब हैं मगर इन ग़ुस्लों के साथ नमाज़ वग़ैरा के लिये वुज़ू ज़रूरी है, (हैज़, निफ़ास, इसतहाज़ा)।

हैज़

औरतों को बालिग़ होने के बाद हर महिने में ख़ून अक्सर सियाह गर्मी के साथ उछल कर तीन दिन से कम और दस दिन से ज़्यादा नहीं आता, इसको ख़ूने हैज़ कहते हैं इसके बन्द होने के बाद ग़ुस्ल वाजिब है।

निफ़ास

बच्चा पैदा होने के बाद एक या दो इन्तेहा दस दिन तक ख़ून आता है वह निफ़ास है। जब बन्द हो जाये फ़ौरन ग़ुस्ल वाजिब है। इसके बाद नमाज़ व रोज़े पर अमल करना चाहिये, छठी चिल्ले का इन्तेज़ार करना और औरतों को ख़वाम ख़ाह नजिस फ़र्ज़ करना ग़लत है। हैज़ व निफ़ास के ज़माने तक नमाज़ माफ़ है मगर पाक होने के बाद रोज़े की क़ज़ा लाज़िम है।

इस्तेहाज़ा

जो ख़ून हैज़ व निफ़ास के अलावा बिमारी के तौर पर अक्सर ज़र्दी माइल ठंठा रक़ीक़ ग़ैरे- मुतअय्यन ज़माने तक आया करे इस को इसतेहाज़ा कहते हैं। इसकी तीन हालतें हैं-

(1). कलीला, (2).मुतवास्सिता, (3), कसीरा।

(1). कलीला- जब ख़ून से रूई न भरे तो नमाज़ के पाँचो वक़्त रूई बदलना, तहारत करना और वुज़ू करना लाज़िम है।

(2). मुतवस्सिता- जब ख़ून से पूरी रूई भर जाये तो पाँचो वक़्त रूई बदलना, तहारत करना, वुज़ू करना, नमाज़े सुब्हा के वक़्त ग़ुस्ल करना वाजिब है। और अगर रोज़ा रखना हो तो इसी ग़ुस्ल को क़ब्ल सुबह सादिक़ करना चाहिये।

(3). कसीरा- जब ख़ून इतना आये की रूई भर कर बाहर निकल जाये तो अलावा पाँचो वुज़ू के रूई बदलना, तहारत करना, ग़ुस्ले नमाज़े सुबह और ग़ुस्ले नमाज़े ज़ोहरैन और ग़ुस्ले मग़रबैन के वास्ते वाजिब हैं, इसतेहाज़ा की हालत में नमाज़ रोज़ा तर्क करना जायज़ नहीं है, हाँ अगर रोज़ाना ग़ुस्ल नुकसान करे तो तयम्मुम कर लिया करे।


 

असबाबे नहूसत व ग़ुरबत

(1)    ख़ङे होकर पेशाब करना।

(2)    रात को झाङू देना।

(3)    जल्दी नमाज़ पढ़ना।

(4)    पेशाब करने की जगह वुज़ू करना।

(5)    मुंह से चिराग़ बुझाना।

(6)    दामन या आस्तीन से मुंह पोछना।

(7)    हक़ीर जानकर रिज़्क़ की मंज़िलत ना करना।

(8)    हमाम में पेशाब करना या मिस्वाक करना।

(9)    लहसुन प्याज़ के छिलके जलाना।

(10) क़ब्र पर ज़्यादा बैठना।

(11) चौखट पर बैठना।

(12) बकरियों के दरमियान से निकलना।

(13) दांत से नाख़ून काटना।

(14) इज़्हारे हिरस करना।

(15) फ़कीरों से बे तवज्जीह करना।

(16) क़लम के छिलको पर पाँव रखना।

(17) मकङी का जाला घर में रखना।

(18) हालते जनाबत में खाना पीना।

(19) खङे होकर कंघी करना।

(20) कूङा घर में रखना।

(21) झूठी क़समें खाना।

(22) ज़िना करना।

(23) दरमियान मग़राबैन और क़ब्ले तुलू आफ़ताब सोना।

(24) गाना बजाना।

(25) अज़ीज़ो से बदकारी करना।

(26) पानी रात को खुला रखना।

 

 

असबाबे ख़ैरो बरकत

(1)    दस्तरख़ान का दाना चुन कर अदब से खाना।

(2)    ख़ुदा का शुक्र करना।

(3)    सच बोलना।

(4)    बा वुज़ू होना।

(5)    ख़्यानत से बचना।

(6)    बहुत अस्तग़फ़ार करना।

(7)    रोज़ी की तलाश में सुबह जाना।

(8)    मोमिन की हाजत रवाई करना।

(9)    घर साफ़ करना।

(10) सफाई से रहना।

(11) बाद नमाज़ दुआऐ पढ़ना।

(12) अज़ीज़ो और वालेदैन के साथ एहसान करना।

(13) तिलावते क़ुरआन करना।

(14) बा तहारत रहना।

(15) सुबह को सूराऐ यासीन और तबारकल्लज़ी और एशा के वक़्त सुराऐ वाक़ेआ पढ़ना।

(16) नमाज़ पंजगाना बा ख़ुज़ू व ख़ुशू पढ़ना।

(17) क़ब्ले ग़ोरूब चिराग़ जलाना।

(18) मस्जिद में अज़ान देना।

(19) मस्जिद में झाङू देना रौशनी करना।

(20) बहुत सवेरे उठना।

(21) याक़ूत या फ़िरोज़े की अंगूठी पहनना।

(22) खाने के क़ब्ल और खाने के बाद हाथ धोना।

(23) मोमिन ज़िन्दा और मुर्दा के लिये दुआ करना।

(24) ज़कात देना।

(25) मजलिसें अज़ा और कारे ख़ैर में सर्फ़ करना।

 

 

ज़ियारते हज़रत रसूले ख़ुदा (स.)

अस्सलामो अलैका या नबीयल्लाह अस्सलामो अलैका या रसूलुल्लाह अस्सलामो अलैका या हुज्जतुल्लाह अस्सलामो अलैका या बाएसलहुदा अस्सलामो अलैका या हबीबल्लाह अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

 

ज़िरारते हज़रत इमाम अली रिज़ा (अ.)

अस्सलामो अलैका या ग़रीबल ग़ोरबा अस्सलामो अलैका या मोईनज़ ज़ोअफ़ा-ए अस्सलामो अलैका या शमसश शोमूस अस्सलामो अलैका या अनीसन नोफ़ूस अस्सलामो अलैका अय्योहल मदफ़ूने बेअरज़े तूस अस्सलामो अलैका या मोग़ीशस शीअते वज़्ज़वारे फ़ी यौमिल जज़ा अस्सलामो अलैका या सुलतानल अरबे वल अजम अस्सलामो अलैका या अबल हसन अली इब्ने मुसर रिज़ा व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

 

 

ज़ियारते हज़रत इमाम हुसैन (अ.)

अस्सलामो अलैका या अबा अबदिल्लाह, अस्सलामो अलैका वा अला जद्देका व अबीक, अस्सलामो अलैका व अला उम्मेका व अख़ीक, अस्सलामो अलैका व अलल आइम्मते मिन्म बनीक, अस्सलामो अलैका या साहेबद दम अतिस साकेबा, अस्सलामो अलैका या साहेबल मसीवतिर रातेबते लक़द असबह केताबुल्लाहे फ़ीक़ा मह ज़ूरन व रसूलुल्लाहे फ़ीक़ा मौतूरा, अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

 

 

ज़ियारते हज़रत इमामे ज़माना (अ.)

अस्सलामो अलैका या साहेबल असरे वज़-ज़मान, अस्सलामो अलैका या ख़लीफ़ातर रहमान, अस्सलामो अलैका या इमामल इन्से वल जान, अस्सलामो अलैका या मज़हरल ईमान, अस्सलामो अलैका या शरीकल क़ुरआन, अस्सलामो अलैका या इमामे ज़मानेना हाज़ा अज्जलल्लाहो फ़रजक व सहलल्लाहो मख़राजक, अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

 

 

दुआ बराए क़ुबुले हाजत

या अबा अबदिल्लाहे अशहदो अन्नक तशहदो मक़ामी व तसअमो कलामी व अन्नक हय्युन इन्द रब्बेका तुरज़क़ो फ़स अल रब्बेका व रब्बी फ़ी क़ज़ा-ए- हवा-ए-ज़ी।

 

 

नमाज़े शब

हज़रत रसूले अकरम (स.) और आप के अहलेबैत (अ.) से नमाज़े शब की फ़ज़ीलत में मोतादिद रवायत मर्वी है जिन में इस नमाज़ के अज्र व सवाब का ज़िक्र किया गया है।

यह ग्यारह रकअत नमाज़ है जिसमें आठ रकअत नमाज़े शब, दो रकअत नमाज़े शिफ़ा और एक रकअत नमाज़े वित्र कहलाती है। इसका वक़्त आधी रात से सुबह सादिक़ तक है। इसके लिये अफ़ज़ल सहर का वक़्त है। पहले दो-दो रकअत करके चार नमाज़ बिल्कुल नमाज़े सुब्हा कि तरह अदा करें और इसकी नियत यह होगी, दो रकअत नमाज़ शब पढ़ता/पढ़ती हूँ क़ुर्बतन इलल्लाह, आठ रकअत ख़त्म करने के बाद यह दुआ करना ख़ूब है। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद वरहमनी व सबबितनी अला दीनके व दीने नबीयेका वला तेज़िग़ क़ल्बी बाद इज़ हदयतनी व हबली मिललदुनका रहमतन इन्नक अन्तल वहाब।

इसके बाद दो रकअत नमाज़े शिफ़ा बिल्कुल नमाज़े सुबह ही की तरह अदा करें, इसकी नियत यह होगी, दो रकअत नमाज़ शिफ़ा पढ़ता/पढ़ती हूँ क़ुर्बतन इलल्लाह याद रहे की इस नमाज़ में दुआए क़ुनूत नहीं है। इसके बाद एक रकअत की आख़री नमाज़ पढ़ें। इसकी नियत यह होगी एक रकअत नमाज़े वित्र पढ़ता/ पढ़ती हूँ कुर्बतन इलल्लाह फिर तकबीरातुल एहराम अल्लाहो अकबर कह कर नमाज़ शुरू करें, सूराऐ हम्द के बाद सूराऐ क़ुल हो वल्लाहो अहद या जो सूरा चाहें पढ़ें, फिर क़ुनूत पढ़ें दुआए कशायश से शुरू करें जो यह है- ला इलाहा इलल्लाहुल हलीमुल करीम ला इलाहा इलल्लाहुल अलीयुल अज़ीम सुब्हानल्लाहे रब्बीस समावातिस सबऐ व रब्बील अरज़ीन्स सबए व मा फीहिन्ना व मा बैनाहुन्न व रब्बिल अरशील अज़ीम वलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन। इसके बाद रूकूउ करके दो सजदे बजा लायें और फिर तशहुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ ख़त्म करें, इस तरह कुल ग्यारह रकअत नमाज़े तहज्जुद अदा हो गई। नमाज़ के बाद तसबीहे फ़ात्मा ज़हरा (स. अ.) पढ़ें, सजदा शुक्र बजा लायें और जो चाहें दुआ माँगे की अख़री शब की दुआ क़ुबूल होती है।

 

 

 

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सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी 01:05:2015]]


फेहरीस्त

दीनियात और नमाज़ 1

मुक़्द्देमा. 2

उसूल-ए-दीन 2

यानी दीन की जड़े पाँच हैं. 2

इमाम बारह हैं 4

चौदह मासूम.. 5

सिफ़ात-ए-सुबूतिया. 5

सिफ़ात-ए-सलबिया. 5

नाम-ए-आमाल.. 6

सवाल मुनकिर व नकीर. 6

सवाल                              जवाब.. 7

हिसाब 8

मीज़ान 8

सिरात 8

बहिश्त. 9

दोज़ख़ 9

शिफ़ाअत 9

कलमा. 10

दुरूद 10

फ़ुरू-ए-दीन 10

औक़ाते नमाज़ 11

वुज़ू की तरकीब 11

तयम्मुम 12

अज़ान 13

अक़ामत 14

तरकीब नमाज़ 15

नमाज़ जमाअत 20

शराऐते पेश नमाज़ 22

तरीक़ा-ए-नमाज़े जमाअत 22

नमाज़ जमात के चन्द ज़रूरी मसाएल 23

नमाज़े जुमा. 24

नमाज़े जुमा वाजिब होने की शर्ते 25

रोज़ा. 27

रोज़े की नीयत.. 27

दुआ-ए-इफ़तार. 27

अहकामे ज़िबह 27

तरीक़ा-ए-फातेहा 28

शक्कियाते नमाज़ 28

शक के अहकाम 30

सजदे सहो 32

ग़ुस्ले जनाबत 33

ग़ुस्ले जनाबत तरतीबी... 33

ग़ुस्ले जनाबत इरतेमासी... 33

औरतों के ग़ुस्ल. 34

हैज़.. 34

निफ़ास.. 34

इस्तेहाज़ा... 35

असबाबे नहूसत व ग़ुरबत 36

असबाबे ख़ैरो बरकत 37

ज़ियारते हज़रत रसूले ख़ुदा (स.) 39

ज़िरारते हज़रत इमाम अली रिज़ा (अ.) 39

ज़ियारते हज़रत इमाम हुसैन (अ.) 40

ज़ियारते हज़रत इमामे ज़माना (अ.) 40

दुआ बराए क़ुबुले हाजत 41

नमाज़े शब 41

फेहरीस्त. 44

 

 

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