अर्ज़े नाशिर
हिन्दुस्तानी मुस्लिम ब्रादरी और ख़ुसूसी तौर पर शिया मुस्लिम समाज में तारीख़े इस्लाम पर मबनी कोई ऐसी जामेय और मुफ़स्सिल किताब मेरी नज़रों से नहीं गुज़री थी कि जिसकी सिर्फ़ एक ही जिल्द में किसी मुसन्निफ़ या मोअल्लिफ़ ने इब्तेदाये आफरीनिश से खि़लख़ते आदम (अ.स.) तक और खि़लख़त हज़रत आदम (अ.स.) से ख़ातेमुल अम्बिया तक तमाम अम्बिया व मुरसलीन (अ.स.) नीज़ हज़रत अली (अ.स.) इब्ने अबु तालिब (अ.स.) से इमामुल अस्र वल ज़मां अजल्लाह फ़रजह तक तमाम आइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) के तारीख़ी व तफ़सीली और मुस्तनद व मोतबर हालात मुजतमा किये हों। लेहाज़ा मेरी दिली ख़्वाहिश व कोशिश यह थी कि उर्दू ज़बान में कोई ऐसी किताब मंज़रे आम पर लायी जाये जिसकी एक ही जिल्द मौजूदा इस्लामी तक़ाज़ों और वक़्त की इस अहम ज़रूरत को पूरा कर सके।
ख़ुदा का शुक्र है कि मोहक़िक़ बसीर जनबा फ़रोग़ काज़मी ने मेरे इस कर्ब को महसूस किया और इन्तेहाई मेहनत, लगन, तहक़ीक़ व जुस्तजू के बाद तफ़सीरे इस्लाम के उनवान से यह किताब मुकम्मल कर के मेरे ख़्वाब को ताबीर से हमकिनार कर दिया।
तक़रीबन नौ सौ सफ़हात पर मुश्तमिल यह ज़ख़ीम किताब यक़ीनन जनाब फ़रोग़ काज़मी का इन्फ़ेरादी कारनामा है जिसके दामन में इस्लामी तारीख़ से मुतअल्लिक़ सब कुछ है।
मुझे मसर्रत है कि मैं इस गिरां क़द्र किताब की अशाअत का शरफ़ हासिल कर रहा हूं और इसके साथ ही दुआगो हूं कि परवरदिगारे आलम इसकी मक़बूलियत व कामयाबी को दोश बदोश मोहतरम फ़रोग़ काज़मी की तौफ़िक़ात में भी इज़ाफ़ा फ़रमाये।
वाज़ेह हो कि हमने हिन्दीदां तबक़े के लिये इसको तीन भागों में विभाजित कर दिया है। पहला भाग नबियों के हालात पर आधारित है, दूसरे भाग में हज़रते मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) के हालात और तीसरे भाग में खि़लाफ़त और इमामत की तफ़सीलात और ज़हूरे इमाम तक की तफ़सीलात हैं। हमें उम्मीद है कि हिन्दीदां हज़रात हमारी कोशिश को सराहेंगे।
वस्सलाम
सै0 अली अब्बास तबातबाई
अज़
हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन मौलाना सैय्यद ज़ाहिद अहमद साहब क़िब्ला रिज़वी अलनजफ़ी।
सुल्तान बहादुर रोड, काज़मैन लखनऊ
इस्लाम वह इलाही अक़ीदा है जिसके लिये खुदा ने चाहा कि यह मेरे रसूल (स.अ.व.व.) और इताअत गुज़ारों का दीन हो। यह इन्सानी हुकू़क़ का वह कामिल मजमूआ है जिसकी वही खुदा ने अपने नबी पर की और नबी ने उसको अपनी उम्मत तक पहुँचाया। जिन लोगों ने नबीऐ मुरसल (स.अ.व.व.) की दावत पर लब्बैक कही और जिन्होंने इस दीन की पैरवी की वह हज़रात दीन के पैरू हैं खुद दीन नहीं है।
इस्लाम अज़ली भी है और अबदी भी। यह दीन हज़रत आदम (अ.स.) के दौर में भी था और क़यामत तक बाक़ी रहेगा। यह और बात है कि हज़रत आदम (अ.स.) के ज़माने में इस्लाम के मौजूदा ख़दो खाल नहीं थे। उसूल व ज़वाबित मोअय्यन नहीं थे और न कोई बाक़ायदा निज़ामे हयात था। इस लिये क़ुरआने मजीद ने इस्लाम का तज़किरा सबसे पहले हज़रत नूह (अ.स.) की ज़बान से किया। चुनान्चे इरशाद हुआ :- फ़ा इन तवल्लैतुम फ़मा साअलतोकुम मिन अजरे इन अजरी इल्ला अल्लाहो व ओमिरतो अन अकूना मिनल मुस्लेमीन (यूनुस आयात 72) ‘‘ तुम ने (मेरी नसीहत से) मुंह मोड़ लिया हालांकि मैने तुम से कोई उजरत नहीं मांगी थी, मेरी उजरत तो अल्लाह पर है और मुझे हुक्म है कि मैं उसके फ़रमाबरदारों में शामिल हों जाऊं। ’’
आयाए मज़कूरा में लफ़्ज़े मिनल मुस्लेमीना से साफ़ तौर पर ज़ाहिर है कि इस्लाम का सिलसिला हज़रत नूह (अ.स.) से पहले भी था और वह ख़ुद इस सिलसिले की एक कड़ी थे।
इसके बाद हर दौर हर ज़माने में इस्लाम का ज़िक्र ‘‘ तकरार ’’ के साथ होता रहा ताकि यह अम्र भी वाज़ेह हो जाए कि शरिअतों के बदल जाने से शरिअत की ‘‘ रूह ’’ की रूह पर कोई असर नहीं पड़ता। नीज़ यह भी आशकार हो जाए कि इस्लाम दर हक़ीक़त वही दीने इलाही है जो इन्सानी ज़िन्दगी के लिये ज़ाबते के तौर पर वज़ा हुआ था और जिसकी हमागीर तालीमात में इन्सान की फ़लाह व निजात के इसरार व रमूज़ पोशीदा हैं।
जब हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ख़लील उल्लाह का दौर आया तो उन्होंने भी अपनी शरीयत को इस्लाम से ताबीर किया। जैसा कि क़ुरआने मजीद का बयान है :- व वसी बेहा इब्राहीमो बैनही व याक़ूब या बुनैय्या इन्नल लहा इस्तफ़ालकुमुद्दीना फला तमूतुन्ना इल्ला व अनतुम मुस्लेमून (बक़रा आयत 132)
‘‘ इब्राहीम (अ.स.) व याक़ूब (अ.स.) ने अपने फ़र्ज़न्दों को वसीयत की कि अल्लाह ने तुम्हारे लिये इस्लाम को पसन्द किया है लेहाज़ा जब दुनिया से तुम उठना तो मुस्लमान उठना। ’’
हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और हज़रत याक़ूब (अ.स.) की यही वसीयत जब जनाबे यूसुफ़ (अ.स.) की तरफ़ मुन्तक़िल हुई तो उन्होंने फ़रमाया :- रब्बे क़द आतैनी मिनल मुल्के व अल्लम तनी मिन तावीलिल अहदीस फातेरस समावाते वल अर्ज़े अन्ता वलीये फिद दुनिया वल आख़ेरत तवफ़्फ़नी मुस्लेमन व अलहक़्क़ेनीबिल सालेहीन (यूसुफ़ आयत 101)
‘‘ परवर दिगार ! तूने मुझे मुल्क दिया है और हदीसों की तावील का इल्म भी अता किया है, तू ही ज़मीन व आसमान का ख़ालिक और दुनिया व आख़ेरत में मेरा वली व सरपरस्त है। मेरे मालिक ! मुझे इस दुनिया से मुसलमान उठाना और सालेहीन से मुलहक़ कर देना। ’’
इस आया ए करीमा में हज़रत यूसुफ़ (अ.स.) की तरफ़ से अपने पदरे बुज़ुर्गवार की वसीयत के मुतालिक़ जादये इस्लाम पर गामज़न रहने दुनिया से मुस्लमान उठने और ‘‘ सालेहीन ’’ से इल्हाक़ की ख़्वाहिश का इज़हार है और इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि सिर्फ़ इस्लाम ही वह मज़हब है जो दुनिया व आख़ेरत दोनों जगह इन्सान के काम आता है।
मालूम हुआ कि हज़रत नूह (अ.स.) की तरह हज़रत यूसुफ़ (अ.स.) की नज़रों में भी अल्लाह के कुछ मख़्सूस और सालेह बन्दे ऐसे थे जिनकी ज़वाते मुक़द्देसा ग़ायबाना तमस्सुक ज़रूरी था। वह ‘‘ सालेहीन ’’ कौन थे? यह वह बन्दे थे जिनके बारे में क़ुरआन का इरशाद है :-
यह वह ‘‘ सालेहीन ’’ हैं कि जिनके बारे में रसूल (स.अ.व.व.) ने फ़रमाया :- ‘‘ मेरे अहले बैत की मिसाल किश्ती ए नूह (अ.स.) की सी है। जो इस पर सवार हुआ वह निजात पा गया और जो इससे किनारा कश रहा वह ग़र्क़ हो गया। ’’
एक और मौक़े पर फ़रमाया :- ‘‘ मैं तुम्हारे दरमियान दो गरांक़द्र चीज़ें छोड़े जा रहा हूँ एक क़ुरआन है और दूसरे मेरे अहले बैत हैं। यह दोनों अज़मत में मसावी हैं और एक दूसरे से उस वक़्त तक जुदा न होंगे जब तक (क़यामत के दिन) हौज़े कौसर पर मेरे पास वारिद न हों। अगर तुम उनसे तमस्सुक रखोगे और उनका दामन थामे रहोगे तो मेरे बाद कभी गुमराह न होगे। ’’
कुरआने मजीद ने जहां जहां पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) का ज़िक्र किया है वहां वहां ‘‘इस्लाम’’ का तज़किरा भी इस अन्दाज़ में किया है कि गोया ‘‘ दीने इस्लाम ’’ सिर्फ़ आप ही का दीन है और अल्लाह की तरफ़ से पहले पहल आप ही को अता हुआ है।
हक़ीकत भी यही है क्यों कि अम्बियाये साबेक़ीन में से हर नबी ने अपने इस्लाम से पहले किसी ‘‘ साहबे इस्लाम ’’ के ‘‘ इस्लाम ’’ का एतराफ़ किया है लेहाज़ा यह देखना चाहिये कि वह साहबे इस्लाम कौन है?
क़ुरआन मजीद जवाब देगा :- ‘‘ क़ुल इन्ना सलाती व नासोकी व मोहयाया व ममाती लिल्लाहे रब्बिल आलामीना ला शरीका लहू व बेज़ालेका ओमिरतो व अना अव्वुलल मुस्लेमीन (इन्आम आयत 163 व 164) ’’
‘‘ ऐ रसूल (स.अ.व.व.) ! कह दो कि मेरी नमाज़, इबादत़ ज़िन्दगी और मौत सब उस अल्लाह के लिये है जो आलेमीन का रब और लाशरीक है और मैं पहला मुसलमान हूँ। ’’
क़ुरआने करीम ने यह वाज़ेह कर दिया कि अल्लाह का आखि़री रसूल मुहम्मद (स.अ.व.व.) पहला मुसलमान और ‘‘ साहबे इस्लाम ’’ है और रसूले अकरम (स.अ.व.व.) ने भी अपनी बेअसत के बाद मुसलसल तेईस साल तक उम्मत को इस्लाम ही की तालीम दी मगर रसूल (स.अ.व.व.) के इस्लाम और उम्मत के इस्लाम में एक नुमाया फ़र्क़ यह है कि रसूल (स.अ.व.व.) का इस्लाम अज़ली है और उम्मत का इस्लाम उसके वजूद में आने के बाद शुरू हुआ है। रसूल (स.अ.व.व.) के इस्लाम के मुताअल्लिक़ अव्वलो मन असलमा और अव्वलुल मुसलेमीना की लफ़ज़े इस्तेमाल हुई हैं। इन लफ़्ज़ों का मतलब ही यह है कि जब से इस्लाम का सिलसिला शुरू हुआ है पैग़म्बर (स.अ.व.व.) का इस्लाम तमाम अम्बिया ए कराम व अहले इस्लाम के इस्लाम पर मुक़द्दम रहा है। दूसरा वाज़ेह फ़र्क़ यह है कि उम्मत का इस्लाम पैग़म्बर (स.अ.व.व.) के दस्ते मुबारक पर कलमे का मरहूने मिन्नत है जब कि ख़ुद पैग़म्बरे (स.अ.व.व.) ने किसी से इस्लाम का दर्स नहीं लिया।
इसमें कोई शक नहीं कि क़ुरआन मजीद ने साहेबाने इस्लाम की फेहरिस्त में नूह (अ.स.), इब्राहीम (अ.स.), जु़र्रिय्यते इब्राहीम (अ.स.), याक़ूब (अ.स.) यूसुफ़ (अ.स.) यहां तक कि कायनात अरज़ो समा को भी शामिल किया है लेकिन इसके साथ साथ यह भी ऐलान कर दिया है कि सरकारे ख़़तमी मरतबत अव्वल मुस्लेमीन हैं। आप उस वक़्त भी साहबे इस्लाम थे जब इस कायनात का वजूद भी न था।
लेकिन इन तमाम बातों के बवजूद इस्लाम और इस्लामी तारीख़ का सबसे बड़ा अलमिया यह है कि दुनिया परस्तां ने मुरसले आज़म (स.अ.व.व.) की वफ़ात के बाद अपने मुफ़ाद की ख़ातिर इस्लाम को तहस नहस करने और शरियते मुहम्मदी को तबाह व बरबाद करने में कोई दक़ीक़ा उठा नहीं रखा। यहां तक कि इस्लामी तारीख़े नवीसी के फ़न पर भी बड़ी बड़ी ज़ालिब व जाबिर हुकूमतों की मोहरें लगी हुई हैं और उसकी नशो नुमां दौलत व इक़्तेदार के साये में हुई है। इस्लाम की तारीख़े मुखालेफ़ीन व मुनाफे़क़ीन के घरों में पली है और उन्हीं की आग़ोश मुनाफ़ेक़त में परवान चढ़ी हैं। इन अलल व असबाब के बावजूद अगर इस्लामी तारीख़ के दामन में हमारे मतलब की कोई बात मिल जाती है तो यह इस अमर की दलील है कि वह हक़ीक़त इतनी वाज़ेह और रौशन थी कि मोअर्रिख़ीन के बिके हुए क़लम भी इसकी परदा पोशी न कर सके और न ह ीवह हक़ीक़त तौज़िह व तावील की नज़र हो सकी।
इस्लाम की इब्तेदाई दौर में अहादीस, रवायात या वाक़ियात के बयान करने का जो तरीक़ा राएज था वह ज़बानी था। तसनीफ़ व तालीफ़ का सिलसिला अहदे माविया में शुरू हुआ जब उसने अबीद बिन शरिया को (जो ज़बानी हदीसो का रावी था) सनआ से बुला कर किताबों और मोअर्रिखों के ज़रिये उसकी बयान की हुई हदीसों को क़लम बन्द कराया जिसके नतीजे में मुत्ताइद किताबें आलमे वजूद में आयीं। उनमें से एक किताब का नाम ‘‘ किताबुल मुलूक व इख़बारूल मज़ाईन ’’ है।
किताबों में ग़ालेबन यह पहली किताब है जो मुआविया के हुक्म से लिखी गई। इसके बाद ‘‘ अवाना बिनुल हकीम ’’ का नाम क़ाबिले ज़िक्र है जो एख़बार व अन्साब का माहिर था और जिसने आम किताबों के अलावा ख़ास बनी उमय्या और मुआविया के हालात पर एक किताब लिखी जो पहलवी ज़बान में थी। उसका तर्जुमा अरबी ज़बान में हिश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म से सन् 117 में और फ़ारसी ज़बान में 1260 में ईरान से हुआ।
143 हिजरी में जब तफ़सीर व फ़िक़ा और हदीसों की तदवीन का बाज़ाबता काम शुरू हुआ तो दीगर उलूम की किताबों के साथ तारीख़ व रिजाल में भी किताबे लिखी गईं। चुनान्चे मोहम्मद बिन इस्हाक़ (अल मतूनी 151 हिजरी) ने सीरते नबवी पर एक किताब मन्सूर अब्बासी की तहरीक पर लिखी जो मेरे ख़्याल से फ़ने तारीख़ की पहली किताब है।
इसके बाद तारीख़ बतदरीज तरक़्क़ी की मंज़िलें तय करती रही और बड़े बड़े नामवर मुवर्रिख़ पैदा होते रहे। इन मोअर्रेख़ीन में नज़र बिन मुज़ाहम कूफ़ी, सैफ़ बिन अमरूल असदी, मोअम्मिर बिन राशिद कूफ़ी, अब्दुल्लाह बिन साअद ज़हरी, अबुल हसन अली बिन मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह मदायनी, अहमद बिन हारिस ख़ज़ार (मदायनी का शार्गिद), अब्दुल रहमान बिन अबीदा और उमर बिन अलशबा वग़ैरा ख़ास तौर पर क़ाबिले ज़िक्र हैं।
अगर चे मुसन्नेफ़ीन की किताबें अब ना पैद हो चुकी हैं लेकिन दीगर किताबें जो इससे क़रीब तर ज़माने में लिखी गईं है उनमें बहुत कुछ सरमाया उन मुसन्नेफ़ीन की किताबों का मौजूद व महफ़ूज़ हैं। मसलन अब्दुल मलिक बिन हिशाम (अल मतूनी 213 हिजरी) की किताब सीरते इब्ने हश्शाम, मुहम्मद बिन सईद बसरी (अल मतूफ़ी 230 हिजरी) की किताब तबक़ात, अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम बिन क़तीबा (अल मतूफ़ी 270 हिजरी) की किताब अल इमामत व अल सियासत, अहमद बिन दाऊद (अल मतूफ़ी 282 हिजरी) की किताब एख़बारूल तवाल, मुहम्मद बिन जरीर तबरी (अल मतूफ़ी 300 हिजरी) की किताब तारीख़े तबरी, मरूजुज़ ज़हब और किताबुल अशराफ़ुल तबनिया वग़ैरा। यह तसानीफ़ जिस दौर की हैं वह मुतक़देमीन का दौर कहलाता है।
पांचवी सदी हिजरी के आग़ाज़ से मुतवस्तीन का दौर शुरू है। इस दौर में इब्ने असीर, समआनी, ज़हबी, अबुल फ़िदा, नवेरी और सियुती वग़ैरा ने नाम पैदा किया लेकिन उन लोगों में ख़ास कमी यह थी कि तारीख़ में इज़ाफ़ा के बजाय उन्होंने जो तरीक़ इख़्तेयार किया वह यह था कि मुतक़देमीन में से किसी की तसनीफ़ सामने रख ली और उसमें तग़य्युरात पैदा करके उसकी हैयत बदल दी लेकिन इसके बावजूद उन किताबों को अवामी हलके में ख़ातिर ख़्वाह मक़बूलियत हासिल हुई। तारीख़ इब्ने असीर और तारीख़े तबरी ने तो यह शोहरत और मक़बूलियत हासिल की कि अकसर कुदमा की किताबें नापैद हो गईं। इब्ने असीर और तबरी के बाद जो मोअर्रेख़ीन पैदा हुए उन्होंने भी अपनी किताबों का माखि़ज़ इब्ने असीर और तबरी की किताबों को क़रार दिया। इस फ़ेहरिस्त में इब्ने ख़ल्दून का नाम शामिल नहीं किया जा सकता इस लिये कि इसका अन्दाज़े तहरीर सबसे अलग है।
मुख़्तसर यह कि उमवी और अब्बासी दौर में तसनीफ़ात व तालीफ़ात का काम बकसरत हुआ और झूठी अहादीस, मोहमल रिवायत और ग़लत वाक़ियात की बुनियाद पर ख़ूब किताबे लिखी गईं और चूंकि उमवी और अब्बासी हुक्मरानों ने दौलत और ताक़त का इस्तेमाल कर के ख़ुसूसी तवज्जो और दिल चस्पी के साथ किताबें लिखवाईं लेहाज़ा ज़ाहिर है कि तारीख़ का तदवीनी मरहला उन्हीं की निगरानी में तय हुआ और उन्हीं की मरज़ी के मुताबिक़ तारीख़ी वाक़ियात किताबों में मरक़ूम किये गए। इस काम में मुलूकियत, इमारत, डिक्टेटर शिप, शाही और शहनशाही के साथ उसके नाजायज़ टुकड़ों पर पलने वाले ख़ुशामदी, दरबारी, जागीरदार, ओहदेदार, क़ाज़ी, मुल्ला, मुफ़ती, रावी, ज़मीर फ़रोश ओलमा और इमान फ़रोश मोअर्रेख़ीन सभी शामिल थे। जिन्होंने मिल कर इस्लामी तारीख़ को मसख़ करने में अपनी साज़िशी कोशिशे सरफ़ रक दीं जिसका नतीजा यह हुआ कि हज़ारों की तादाद में जाली हदीसे, फ़र्ज़ी रवायतें और ग़लत व मोहमल वाक़ियात क़लम के ज़रिये इस्तेहकाम पा गये।
यह भी एक तारीख़ी हक़ीक़त है कि मुआविया और उसके बाद के इस्तेबदादी दौर में यह ना मुम्किन था कि कोई शख़्स ज़बानी या तरीरी तौर पर आले मोहम्मद (स.अ.व.व.) के फ़ज़ाएल व मुनाक़िब बयान करता। अगर वह ऐसा करने की सई करता भी तो उसकी ज़बान गुद्दी से ख़ींच ली जाती उसके हाथ पाओं काट दिये जाते और उसकी आंखों में लोहे की गर्म सलाख़ें चला दी जाती। यही सबब है कि इस दौर में सच्चाई ख़ामोश रही और तारीख़ का दामन झूटी हदीसों, जाली रवायतों और ग़लत वाक़ियात से छलक पड़ा। चुनान्चे शेख़ मुफ़ीद अलह रहमा ने जब अपनी किताब इरशाद के लिये क़लम उठाया तो वाक़ेयाते करबला को दर्ज करते हुए इब्तेदा ही में उन्होंने यह वज़ाहत कर दी कि इन बयानात का तअल्लुक़ तमाम तर अरबाबे तारीख़ व सियर से है, मैंने सिर्फ़ इस मुक़ाम पर नक़ल कर दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि शेख़ मुफ़ीद अलैह रहमा ने तारीख़ की तहक़ीक़ व सेहत का काम अपने बाद के मोहक़्क़ेक़ीन व मोअर्रेख़ीन पर छोड़ दिया।
तारीख़ का एक इम्तेयाज़ यह भी है कि शरियत के अलूम व फ़ुनून का ताल्लुक़ फ़ने तारीख़ से नहीं बल्कि एक मक़सूस व महदूद दुनिया से है और इससे इन्सान के अक़ाएदी जज़बात वाबस्ता होते हैं और ताअस्सुब व तंग नज़री के इमकानात भी पाये जाते हैं। तारीख़ के मसाएल इससे बिल्कुल मुख़्तलिफ़ हैं। इससे अमूमन जज़बात व एहसासात का राबता नहीं होता और यह कहने की गुजांइश बाक़ी रहती है कि मोअर्रिक़ ने दयानत दारी व ग़ैर जानिबदारी से काम लिया है। चुनान्चे यही वह रास्ता है जिस पर मोहक़िक़ बसीर जनाबे फ़रोग़ काज़मी मौजूदा दौर में गामज़न हैं और तहक़ीक़ व हक़ाएक़ की रौशनी में दीनी खि़दमात अन्जाम दे रहे हैं।
मौसूफ़ का हक़ आशना व हक़ीक़त निगार क़लम इस्लामी दुनिया में मोहताजे तारूफ़ नहीं है। उनकी किताबों में अल ख़ोलफ़ा, तफ़सीरे करबला, हज़रत आयशा की तारीखी़ हैसियत, जदीद शरीयत और सैय्यदा सकीना (अ.स.) वग़ैरा वह माया नाज़ किताबें हैं जो मक़बूलियत के दर्जे पर फ़ायज़ हो कर अवाम से खि़राजे तहसीन हासिल कर चुकि हैं यहां तक कि बाज़ किताबों का तर्जुमा भी दूसरी ज़बानों में हो रहा है जो इन्शाअल्लाह जल्दी ही मंज़रे आम पर आजायेगा।
ज़ेरे नज़र किताब तफ़सीरे इस्लाम ख़ुसूसी इम्तेयाज़ात निगारिश की िंबना पर ब्रादरम फ़रोग़ काज़मी की क़लमी काविशों का वह तारीख़ी सहीफ़ा है जिसके दामन में इस्लाम व तौहीद और इब्तेदाये आफ़रेनश की झलकियों के साथ साथ आदम (अ.स.) शीश (अ.स.) इदरीस (अ.स.) नूह (अ.स.) हूद (अ.स.) सालेह (अ.स.) इब्राहीम (अ.स.) इस्माईल (अ.स.) इस्हाक़ (अ.स.) लूत (अ.स.) ज़ुलक़रनैन (अ.स.) याक़ूब (अ.स.) यूसुफ़ (अ.स.) अय्यूब (अ.स.) शुऐब (अ.स.) मूसा (अ.स.) हिज़खि़़ल (अ.स.) यूशा बिन नून (अ.स.) इलयास (अ.स.) लुक़मान (अ.स.) दाऊद (अ.स.) सुलेमान (अ.स.) शेया (अ.स.) हैक़ूक़ (अ.स.) ज़करिया (अ.स.) यहीया (अ.स.) अरनिया (अ.स.) दानियाल (अ.स.) अज़ीर (अ.स.) ईसा (अ.स.) और खि़ज़र (अ.स.) वग़ैरा के मोतबर व मुस्तिनिद हालात और उनके दौर के वाक़ियात पूरी तफ़सील के साथ जलवा गर हैं। ख़ास बात यह है कि तारीख़ की दीगर किताबों की तरह जनाबे फ़रोग़ काज़मी की यह किताब सिर्फ़ पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) के हालात व वाक़ियात तक ही महदूद नहीं है बल्कि यह तमाम आइम्मा ए अतहार (अ.स.) के हालात से गुज़र कर हज़रत वलीउल अस्र अज्जलल्लाह फ़राजा के वाक़ियात पर तमाम हुई है। इस तरह कारेईने कराम को एक ही किताब में आदम (अ.स.) से इमामे अस्र (अ.स.) तक तमाम हालात मिल जायेंगे।
दर हक़ीक़त मोहक़िक़े बसीर जनाब फ़रोग़ काज़मी का यह वह कलमी कारनामा है जो मिल्लते इस्लामिया के लिये बहुत ज़रूरी था। तफ़सीरे इस्लाम के उन्वान से यह किताब यक़ीनन क़ौम के अहम तक़ाज़ों को किसी हद तक पूरा कर सकेगी और मोअल्लिफ़ की तरफ़ से आलमे इस्लाम ख़ुसूसन मिल्लते जाफ़रिया के लिये एक गिरां क़द्र तोहफ़ा साबित होगी। मेरी दुआ है कि परवरदिगारे आलम मौलूफ़ मौसूफ़ की इस मेहनत को क़ुबूल फ़रमाये और उन्हें अजरे अज़ीम अता करे। मेरी नज़र में जनाबे फ़रोग़ काज़मी मुबारकबाद के साथ मुकम्मल तौर पर हौसला अफ़ज़यी के भी मुस्तहक़ हैं। अल्लाह करे ज़़ोरे क़लम और ज़्यादा। फ़क़ीर दरे आले मोहम्मद (अ.स.) (सैय्यद ज़ाहेद अहमद रिज़वी)
बिस्मिल्लाहिर्रहमार्निरहीम
अल्हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन वस सलातो वस्सलामो अला सय्यदिल अम्बिया ए वल मुरसलीन मोहम्मदिंव व आलहित तय्येबीनत ताहेरीन
इस्लाम और तौहीद
अमीरूल मोमेनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) ने फ़रमाया तमाम हम्द उस ख़ुदा के लिये है जिसकी मदह तक बोलने वालों की रसाई नहीं जिसकी नियामतों को गिनने वाले गिन नहीं सकते न कोशिश करने वाले उस का हक़ अदा कर सकते है न बलन्द परवाज़ उसे पा सकते हैं न अक़लो फ़हम की गहराईयां उस की तह तक पहुँच सकती है उसके कमालो ज़ात की कोई हद मुअय्यन नहीं न उसके लिये तौसीफ़ी अल्फ़ाज़ है न उसकी इब्तेदा के लिये कोई वक्त है जिसे शुमार में लाया जा सके न उसकी कोई मुद्दत है जो कहीं पर ख़त्म हो सके।
‘‘ दीन की इब्तेदा उसकी मारेफ़त है कमाले मारेफ़त उसकी तस्दीक़ है कमाले तस्दीक़ तौहीद है कमाले तौहीद तनज़ियाओ एख़लास है और कमाले तनज़ियाओ एख़लास यह है कि उस से सिफ़तों की नफ़ी की जाए क्यों कि हर सिफ़त शाहिद है कि वह अपने मौसूफ़ की ग़ैर है और हर मौसूफ़ शाहिद है कि वह सिफ़त के अलावा कोई चीज़ है लिहाज़ा जिसने ज़ाते इलाही के अलावा सिफ़ात माने उसने ज़ात का एक दूसरा साथी मान लिया और जिसने ज़ात का दूसरा साथी माना उसने दुई पैदा की, जिसने दुई पैदा की उसने जुज बना डाला और जो उसके लिये अजज़ा का क़ायल हुआ वह उससे बे ख़बर रहा। ’’
इस्लाम क्या है?
‘‘ इस्लाम एक ऐसा दीन है जिसकी असासा ओ बुनियाद हक़ व सदाक़त पर क़ायम है यह उलूम और मारेफ़त का एक ऐसा चश्मा है जो अक़्लों दानिश के दरियाओं को ज़ौलानियां अता करता है ऐसा चिराग़ जिससे मोताद्दिद चिराग़ रौशन होते हैं एक ऐसा मनारा ए नूर है जो अल्लाह की राह को रौशन व मुनव्वर करता है। यह उसूलों और अक़ाएद का ऐसा मजमूआ है जो हक़ व सदाक़त के हर मुतलाशी को सुकून और इतमिनान बख़्शता है अल्लाह ने इस्लाम को ही अपनी ख़ुश्नूदी का ज़रिया और एताअत व इबादत का बलन्द तरीन मेयार क़रार दिया है। इस्लाम ने तमाम मुसलमानों को बिला तफ़रीक़ आला एहकाम, बलन्द उसूलों मोहकम दलायल और नाक़ाबिल और नाक़ाबिले तरदीद तफव्वुक़ से नवाज़ा है। अब मुसलमानों का फ़र्ज़ है कि शानो अज़मत को क़ायम रखे उस पर पुरख़ुलूस दिल से अमल करें उसके मोतक़ेदात से इन्साफ़ करें इसके अहकाम की सही तौर पर तामील करें और अपनी ज़िन्दगियों में इसे मुनासिब मुक़ाम दे। ’’
इस्लाम
इस्लाम इन्सान को एताअत एबादत और ख़ुदा शिनासी की दावत देता है अगर ज़हने इन्सान किसी माबूद के तसव्वुर से ख़ाली हो तो न एताअत का सवाल होता है न एबादत ओ रेयाज़त का और न किसी आईन (शरिअत) की पाबन्दी का क्यों कि जब कोई मंज़िल ही सामने न होगी तो मन्ज़िल की तरफ़ बढ़ने के क्या माअनी? और जब कोई मक़सद ही पेशे नज़र न होगा तो उसके लिये दग व दौ करने का क्या मतलब? अल बत्ता जब इन्सान की अक़्ल व फ़ितरत उसका रिश्ता किसी माफ़ौक़ुल फ़ितरत ताक़त से जोड़ देती है और उसके ज़ौके परसतारी व जज़्बाए उबूदियत उसको किसी माबूद की तरफ़ झुका देता है तो वह मनमानी करने के बजाए अपनी ज़िन्दगी को मुख़्तलिफ़ क़िस्मों की पाबन्दियों की ज़न्जीरों में जकड़ा हुआ महसूस करने लगता है। इन्ही पाबन्दियों का नाम दीन है जिसका आग़ाज़ ख़ुदा की मारेफ़त और उसका एतराफ़ है और इसके भी मुख़्तलिफ़ मदारिज हैं।
पहला दरजा
यह है कि फ़ितरत के विजदानी एहसास और ज़मीर की रहनुमाइ से या एहले मज़हब और उलेमा की ज़बान से सुनकर इस अन देखी हस्ती का तसव्वुर ज़हन में पैदा हो जाए जो ख़ुदा कही जाती है। यह तसव्वुर दर हक़ीक़त फिकरो नज़र की ज़िम्मेदारी और तहसीली मारेफ़त का हुक्म आयद होने का अक़लन पेश ख़ेमा है लेकिन तसाहुल पसन्द और माहौल के दबाव में असीर हसतियां इस तसव्वुर के पैदा होने के बावजूद तलब की ज़हमत गवारा नहीं करती इस लिये वह तसव्वुर तस्दीक़ की शक्ल एख़्तेयार नहीं करता और वह मारेफ़त से महरूम हो जाती है और इस महरूमी पर वह मवाख़ज़ा की मुस्तेहक़ हो जाती है लेकिन जो शख़्स इस तसव्वुर की तहरीक से मुतास्सिर हो कर क़दम आगे बढ़ाता है और उस पर ग़ौरो फ़िक्र ज़रूरी समझता है इस लिये दूसरी मंज़िल फ़हमो इदराक की होती है।
दूसरा दरजा
इदराक और फ़हम का यह है कि मख़लूक़ात मसनूआत और कायनात की नैरंगियों से खल्लाक़े आलम का पता लगाया जाय क्यों कि हर नक्श नक्काश के वजूद पर और हर असर मोअस्सिर की कारफ़रमाइ पर एक ठोस और बेलचक दलील है चुनान्चे इन्सान जब अपने गिर्दों पेश का जायज़ा लेता है तो उसे कोई ऐसी चीज़ दिखाई नहीं देती जो किसी साने की कारफ़रमाइ के बग़ैर आलामे वजूद में आ गई हो यहां तक कि कोई नक़्शे क़दम बग़ैर राहरू के और कोई इमारत बग़ैर मेमार के ख़ड़ी होते नहीं देखता तो वह क्यों कर यह बावर कर सकता है कि यह नीलगूं आसमान और इसकी पहनाइयों में आफ़ताब व महताब की तजल्लियां और यह ज़मीन और उसकी वसअतों में सबज़ा व गुल की रानाईयां बग़ैर किसी साने की सनअत तराज़ी के मौजूद हो गई होगी लेहाज़ा मौजूदाते आलम और नज़मो कायनात के देखने के बाद कोई इन्सान इस नतीजे तक पहुँचने से अपने दिल और दिमाग़ को नहीं रोक सकता कि इस जहाने रंग और बूका कोई बनाने और सवारने वाला है।
तीसरा दरजा
यह कि इस माबूद का इक़रार वहदत के एतराफ़ के साथ हो बग़ैर इसके ख़ुदा की तस्दीक़ मुकम्मल नहीं हो सकती क्यों कि जिस ख़ुदा के साथ और भी ख़ुदा माने जायेंगे वह एक नहीं होगा और ख़ुदा के लिये एक होना ज़रूरी है क्यों कि एक से ज़्यादा होने पर यह सवाल पैदा होगा कि इस कायनात को एक ने ख़ल्क़ किया है या कई ख़ुदाओं ने मिलकर पैदा किया है और अगर एक ही ने ख़ल्क़ किया है तो उसमें कोई ख़ुसूसियत होना चाहिये वरना इस एक को बवजह तरजी होगी जो अक़्लन बातिल है और अगर मुख़्तलिफ़ ख़ुदाओं ने मिल कर बनाया है तो दो हाल से ख़ाली नहीं या तो वह दूसरों की मदद के बग़ैर अपने उमूर की अन्जाम देही न कर सकता होगा या उसकी शिरकत व तावुन से बेनियाज़ होगा पहली सूरत में उसका मोहताज व दस्त नगर होना और दूसरी सूरत में एक फेल के लिये कई मुस्तक़िल फ़ाएलों का कारफ़रमा होना लाज़िम आयगा और यह दोनों सूरतें अपने मुक़ाम पर बातिल की जा चुकी हैं और अगर यह फ़रज़ किया जाए कि सारे ख़ुदाओं ने तमाम मौजूदात को आपस में बांट कर बक़दरे हिस्सा व बक़दरे जुस्सा ईजाद किया है तो इस सूरत में तमाम मम्लूकात के हर वाजिबुल वजूद से यक्सा निस्बत न रहेंगी बल्कि अपने सिर्फ़ बनाने वाले से ही निस्बत होगी हालांकि हर वाजिब को हर मुम्किन से और हर मुम्किन को हर वाजिब से यकसां निस्बत होना चाहिये क्यों कि तमाम मुम्किनात असरपज़ीरी में और तमाम वाजिबुल वजूद असर अन्दाज़ी में एक से माने गये हैं तो अब उसे एक माने बग़ैर कोई चारा नहीं है क्यों कि मुताअदिद ख़ालिक़ों के मानने की सूरत में किसी चीज़ के मौजूद होने की गुंजाइश ही बाक़ी नहीं रहती और ज़मीन और आसमान नीज़ कायनात की हर शै की तबाही बरबादी ज़रूरी क़रार पाती है। ख़ुदा वन्दे आलम ने इस दलील को क़ुरआने मजीद में इन लफ़्ज़ों में पेश किया है :- ‘‘ लव काना फी हेमा इलाहातो इल्लाहे ले फ़सादता ’’ अगर ज़मीनों आसमान में अल्लाह के अलावा और भी ख़ुदा होते तो यह ज़मीनों आसमान दानों तबाह और बरबाद हो जाते।
चौथा दरजा
यह है कि ख़ुदा को हर नुक्साओ ऐब से पाक समझा जाए और जिस्मो जिस्मानियात, शक्ल व सूरत तमसीलो तशबीह मकान व ज़मान हरकत व सुकून और इज्ज़ व जेहेल से मुनज़्ज़ा माना जाए क्यों कि इस बाकमाल व बे ऐब ज़ात में न किसी नुक़्स का गुज़र हो सकता है न उसके दामन पर किसी ऐब का धब्बा उभर सकता है और उसको न किसी के मिस्ल व मानिन्द ठहराया जा सकता है क्यों कि यह तमाम चीज़े वुजूब की बलन्दियों से उतार कर मकान की पस्तियां में आने वाले हैं चुनान्चे क़ुदरत ने तौहीद के पहलू ब पहलू अपनी तनज़ीह ओ तकदीस को जगह दी है।
1. क़़ुल होवल्लाहो अहद अल्ला हुस्समद लम यलिद वल यूलद वलम या कुल्लहू कोफ़ोवन आहद।
कह दो अल्लाह यगाना है, उसकी ज़ात बे नियाज़ है, न उसकी कोई औलाद है न वह किसी की औलाद है, और न उसका कोई हम पल्ला है।
2. उसको निगाहें देख नहीं सकती अलबत्ता वह निगाहों को देख रहा है और वह हर शै से आगाह और बा ख़बर है।
3. अल्लाह के लिये मिसाले न गढ़ो बे शक अस्ल हक़ीक़त को अल्लाह जानता है।
4. लैसा कमिस्लेही व हुआ समीउल बसीर।
कोई चीज़ उसके मानिन्द नहीं है वह सुनता भी है और देखता भी है।
पांचवा दरजा
वह है जिससे मारेफ़त मुकम्मिल होती है कि उसकी ज़ात में सिफ़ात को अलग से न सिमोया जाए कि ज़ाते अहदियत में दोइ की झलक पैदा हो जाए और तौहीद अपने सही मफ़हूम को खो कर एक तीन और तीन एक के चक्कर में पड़ जाए क्यों कि उसकी ज़ात जौहर ओ अर्ज़ का मजमुआ नहीं कि उसमें सनअतें इस तरह क़ायम हो जिस तरह फूल में ख़ुश्बू और सितारों में चमक बल्कि उसकी ज़ात ख़ुद तमाम सिफ़तों का सर चश्मा है और वह अपने कमालो ज़ात के इज़हार के लिये किसी तवस्सुत की मोहताज नहीं अगर उसे आलिम कहा जाता है तो इस बिना पर कि उसके इल्म के आसार नुमाया हैं और अगर उसे क़ादिर कहा जाता है तो इस लिये कि कायनात का हर ज़र्रा उसकी क़ुदरत व कारफ़रमाई का पता दे रहा है और समी व बसीर कहा जाता है तो इस वजह से कि कायनात की शिराज़ा बन्दी और मख़लूक़ात की चारासाज़ी देखे और सुने बग़ैर नहीं हो सकती मगर उन सिफ़तो की नमूद उसकी ज़ात में इस तरह नहीं ठहराई जा सकती जिस तरह मुम्किनात में है कि उसमें इल्म आए तो आलिम हो हाथ पैरों में तवानाई आए तो वह क़ादिर व तवाना हो क्यों कि सिफ़त को ज़ात से अलग मानने का लाज़मी नतीजा दुइ है और जहां दुई का तसव्वुर हुआ तो तौहीद का अक़ीदा रूख़्सत हुआ।
इस लिये अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ने ज़ाएद बरज़ात सिफ़ात की नफ़ी फ़रमा कर तौहीद के ख़द व खाल से आशना फ़रमाया है और दामने वहदत को कसरत के धब्बों से बदनुमा नहीं होने दिया इससे यह मुराद नहीं कि उसके लिये कोई सिफ़त तजवीज़ ही नहीं की जा सकती कि उन लोगों की मसलक की ताइद हो जो सुलबी तसवुरात तसवीरात के भयानक अंधेरो में ठोकर खा रहे हैं हालांकि कायनात का गोशा गोशा उसकी सिफ़तों के आसार से छलक रहा है और मख़्लूक़ात का ज़र्रा ज़र्रा गवाही दे रहा है कि वह जानने वाला है क़ुदरत वाला है सुनने और देखने वाला है और अपने दामने रूबूवियत में पालने वाला और साया ए रहमत में परवान चढ़ाने वाला है मक़सद यह है कि उसकी ज़ात में अलग से कोई चीज़ तजवीज़ नहीं की जा सकती कि उसे सिफ़त से ताबीर करना सही हो क्यों कि जो ज़ात है वही सिफ़ात है और जो सिफ़ात है वहीं ज़ात है इसी मतलब को इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की ज़बान फ़ैज़ तरजुमान से सुनिये और फिर मज़ाहिबे आलम के अक़ीदा ए तौहीद को इसकी रौशनी में देखिये और परखिये कि तौहीद के सही मफ़हूम से रूशिनास करने वाली शख़्सियत कौन थे? आप फ़रमाते हैं :-
हमारा ख़ुदा ए बुज़ुर्ग हमेशा से इल्म आलिम रहा हालांकि मालूम अभी अदम के परदे में था और ऐन समी व बसीर रहा लाहांकि किसी आवाज़ की गूंज बलन्द थी न कोई दिखाई देने वाली चीज़ थी और ऐन क़ादिर रहा हालांकि क़ुदरत के असरात को क़ुबूल करने वाली कोई शै न थी फिर जब उसने उन चिज़ों को पैदा किया और मालूम का वजूद हुआ तो उसका इलम मालूमात पर पूरी तरह मुनतबिक़ हुआ और मक़दूर के ताआलुक से उसकी क़ुदरत नुमायां हुई।
यह वह अक़ीदा है जिस पर आईमा ए अहलेबैत का इजमा है मगर सवादे आज़म ने इसके खि़लाफ़ दूसरा रास्ता इख़्तेयार किया है और ज़ात व सिफ़ात में आलहेदगी का तसव्वुर पैदा कर दिया है चुनान्चे शहरिस्तानी तहरीर फ़रमाते हैं :- अबूल हसन अश्तरी कहते हैं कि अल्लाह क़ुदरत, हयात, इरादा, कलाम और समाओ बसर के ज़रिये आलिम, क़ादिर, ज़िन्दा मुरीद, मुताकल्लिम और समी व बसीर है।
अगर सिफ़तों को इस तरह ज़ाएद बरज़ात माना जाएगा तो दो उमूर से ख़ाली नहीं या तो यह सिफ़तें हमेशा से उसमें होगी या बाद में तारी हुई होगी। पहली सूरत में जितनी इसकी सिफ़तें मानी जायेंगी उतने ही क़दीम और मानना पड़ेंगें जो क़दामत में उसी के शरीक होगी और दूसरी सूरत में उसकी ज़ात को महले हवादिस क़रार देने के अलावा यह लाज़िम आएगा कि वह इन सिफ़तों के पैदा होने से पहले न आलिम हो न क़ादिर हो न समी हो और न बसीर। यह अक़ीदा बुनियादी तौर पर इस्लाम के खि़लाफ़ है।
अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ने एक दूसरे ख़ुत्बे में मिल्लतें मुसलेमा को नसीहत करते हुए इस्लाम और तौहीद के बारे में इरशाद फ़रमाया :-
मैं तुम्हें उस अल्लाह से डरने की नसीहत करता हूं कि जिसने तुम्हें पैदा किया और जिसकी तरफ़ तुम्हें पलटना है वही तुम्हारा कामरानियों का ज़रिया और तुम्हारी आरज़ुओं की आख़री मंज़िल है तुम्हारी राहे हक़ उसी से वाबस्ता है और वही ख़ौफ़ व हिरास के लिये तुम्हारे लिये पनाहगाह है।
दिल में अल्लाह को ख़ौफ़ रखो क्यां कि यह तुम्हारे दिलों के रोग का चारा फ़िक्र व शऊर की तारीकियों के लिये उजाला है जिसमों की बिमारी के लिये शिफ़ा सीनों की तबाहकारियों के लिये इस्लाह नफ़्स की कसाफ़तों के लिये पाकीज़गी आंखों की तीरगी के लिये नूर दहशत के लिये ढारस और जिहालत के अंधेरों के लिये रोशनी है। सिर्फ़ ज़ाहिरी तौर पर अल्लाह की इताअत का जामा न ओढ़ो बल्कि उसे अपना अन्दरूनी पहनावा बनाओ न सिर्फ़ अन्दूरूनी पहनावा बल्कि ऐसा करो कि वह तुम्हारे बातिन में उतर जाए और दिल में रच बस जाए और उसे अपने मामलात पर हुक्मरान हश्र पर वारिद होने के बाद मन्ज़िले मक़सूद तक पहुँचने का वसीला, ख़ौफ़ के दिन के लिये सिपर, क़ब्र के लिये चिराग़, तनहाई की तवील वहशत के लिये हमनवा व दमसाज़ और मंज़िल की अन्दोहनाकियों से रिहाई का ज़रिया क़रार दो क्यों कि ख़ुदा की इताअत, मसाअबो आलाम, ख़ौफ़ो दहशत और भड़कती हुई आग के शोलों से बचाती है। जो तक़वा को मज़बूती से पकड़ लेता है तो मुसीबतें उसके क़रीब होते हुए भी दूर हो जाती हैं। तमाम उमूर तल्ख़ी व बदमज़गी के बावजूद शीरी हो जाते हैं। तबाही व हलाकत की मौजें हुजूम करने के बाद छट जाती हैं और दुश्वारियां सख़तियों में मुबतेला करने के बाद आसान हो जाती हैं। क़हत और नायाबी के बाद लुत्फ़ व करम की झड़ी लग जाती है, रहमत बरगशता होने के बाद फिर झुक पड़ती है।
‘‘ उस ख़ुदा से डरो, कि जिसने पन्दोमोआज़ेमत से तुम्हें फ़ाएदा पहुँचाया, अपने पैग़ाम के ज़रियें वाज़ो नसीहत की, अपनी नेअमतों से तुम पर लुत्फ़ व एहसान किया उसकी बन्दगी और नियाज़मन्दी के लिये अपने नफ़्सो को पाक करो, उसकी फ़रमाबरदारी का पूरा पूरा हक़ अदा करो। ’’
‘‘ इस्लाम ही वह दीन है जिसे अल्लाह ने अपने पहचनवाने के लिये पसन्द किया, अपनी नज़रों के सामने उसकी देख भाल की, उसकी तबलीग़ के वास्ते बेहतरीन ख़लाएक को अन्जाम फ़रमाया, अपनी मोहब्बत पर उसके सुतून खड़े किये, उसकी बरतरी की वजह से तमाम दीनों को सरनिगू किया और उसकी बलन्दी के सामने सब मिल्लतों को पस्त किया। उसकी इज़्ज़त, अज़मत और बुज़ुर्गी के ज़रिये दुश्मनों को ज़लील और उसकी नुसरत और ताईद से मुखालेफ़ीन को रूसवा किया, उसके सुतून से गुमराही के खम्बों के गिरा दिया। प्यासों को उसी के दरियाओं से सेराब किया और पानी उलचने वालों के ज़रिये हौज़ों को भर दिया फिर उसे इस तरह मज़बूत किया कि इसके बन्धनों से शिकस्तो रेख़्त नहीं न उसके हुक़ूक़ की कड़ियां एक दूसरे से अलग हो सकती हैं न उसके क़वानीन महो हो सकते हैं, न उसके सफ़ेद दामन पर स्याही का धब्बा उभर सकता है, न उसकी इस्तेक़ामत में पेंचोख़म पैदा हो सकते हैं न उसकी कुशादा राहों में कोई दुश्वारियां हैं, न उसके चिराग़ गुल हो सकते हैं, न उसकी ख़ुशगवारियों में तल्खि़ का गुज़र होता है इस्लाम ऐसे सुतूनों पर हावी है जिसके पाए अल्लाह ने हक़ की सरज़मीन पर क़ायम किये हैं और उनकी असासा व बुनियाद को इस्तेहक़म बख़्श है। अल्लाह ने इस्लाम में अपनी इन्तेहाइ रज़ामन्दी, बलन्दतरीन अरकान अपनी एताअत की ऊंची सतह को क़रार दिया है चुनान्चे अल्लाह के नज़दीक इसके सुतून मुस्तहकम, उसकी इमारत सरबलन्द, उसकी दलील रौशन, उसकी ज़ियाए नूरपाश और उसकी सलतनत ग़ालिब है जिसकी बीख़कनी दुश्वार है, उसकी इज़्ज़त व विक़ार को बाक़ी रखो, उसके एहकाम की पैरवी करो, उसके हुक़ूक़ अदा करो और उसके हर हुक्म को उसकी जगह पर क़ायम करो। ’’ (माख़ुज़ अज़ नहजुल बलाग़ा)
अमीरूल मोमेनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के अक़वाल व नसायह की रौशनी में तौहीद का जो हक़ीक़ी तसव्वुर निगाहे इन्सानी में उभरता है वह यह कि ख़ुदा क़दीम है यानि हमेशा से है और हमेशा रहेगा। ख़ुदा क़ादिर है यानि हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है। ख़ुदा आलिम है यानि हर चीज़ का जानने वाला है। ख़ुदा बसीर है यानि कोई ज़ाहिर व बातिन उससे मख़फ़ी नहीं है हालांकि वह आंख व कान वग़ैरा नहीं रखता, ख़ुदा मुताकल्लिम है यानि जिस चीज़ में चाहे क़ुव्वते गोयाई पैदा कर दे जैसे कि उसने दरख़्त मकें आवाज़ पैदा कर दी जो मूसा (अ.स.) से बातें करता था या पत्थर के संग रेज़ों से तकल्लुम पैदा कर दिया जो रसूल (स.अ.व.व.) की रिसालत की गवाही देने लगे। ख़ुदा सादिक़ है यानि उसका कलाम सच्चा और दुरूस्त है। ख़ुदा लाशरीक है वह अपनी ज़ात में किसी को शरीक नहीं करता। ख़ुदा मुरक्क़़ब नहीं यानि वह जिस्म व अरज़ और जौहर से नहीं बना। ख़ुदा ला मकान है यानि वह कोई मकान व मुक़ाम नहीं रखता बल्कि अपनी क़ुदरते कामिला से हर जगह और हर शै में मौजूद है ख़ुदा की ज़ात में हुलूल नहीं ख़ुदा हर ऐब से बरी और पाक व साफ़ है ख़ुदा को कोई देख नहीं सकता न दुनियां में और न उक़बा में। ख़़ुदा बड़ा आदिल और इंसाफ़ करने वाला है और वह किसी उमूर में किसी का मोहताज नहीं है। ख़ुदा ज़ालिम व जाबिर नहीं है यानि वह अपने बन्दों पर ज़ुल्म व जब्र नहीं करता और ख़ुदा जिस्मो जिस्मानियत से मुबर्रा है।
क़ुरआन भी कहता है कि ख़ुदा शक्ल व सूरत, जिन्स व जिस्म और तशबीह व हदबन्दी के तसव्वुर से पाक है आखें उसे देख नहीं सकतीं1 चुनान्चे मूसा (अ.स.) ने जब दीदार की ख़्वाहिश ज़ाहिर की तो इरशाद हुआ कि तुम मुझे देख नहीं सकते।
अफ़सोस है कि अमवी दौर के इक़तेदार परस्त उलेमा के एक मख़सूस गिरोह ने अली (अ.स.) की दुश्मनी और अदावत में वहदानियत के इस हक़ीक़ी तसव्वुर को यह कर पामाल कर दिया कि ख़ुदावन्दे आलम अपनी मख़लूक के सामने जलवा अफ़रोज़ होगा और लोग उसे चौदहवी के चांद की तरह देखेंगे3। ख़ुदा हर शबे जुमा आसमान से ज़मीन पर उतरता है और दुनियां की सैर करता है4। ख़ुदा (हश्र के दिन) जहन्नुम में अपना पैर डाल देगा और वह भर जाएगा5। वह अपनी पिन्डली खोल कर देखेगा ताकि मोमेनीन इसे पहचान लें। वह हंसता है तो ख़ुद हैरत में पड़ जाता है। ख़ुदा के दो हाथ दो पैर और पांच उंगलियां हैं पहली उंगली आसमानों पर, दूसरी ज़मीनों पर, तीसरी दरख़्तों पर चौथी पानी पर, और पांचवी तमाम मख़्लूक़ात पर रखी हुई है। ख़ुदा अर्श पर बैठा हुआ है और उसका जिस्म चार चार उंगल अर्श से बाहर निकला हुआ है और वह इस क़दर भारी व भरकम है कि उसके बोझ से अर्श चुर चुर करता है। हज़रत अबू बक्र बिन कहाफ़ा का क़ौल है कि ख़ुदा के ही हुक्म से इंसान ज़िना का मुरतकिब होता है। मौलवी शिब्ली नौमानी ने भी अपनी किताब इल्मे अहकाम में तहरीर फ़रमाया है कि इंसान को अपने अफ़आल पर क़ुदरत नहीं है ख़ुदा ही इंसान से नेकी भी कराता है और बदी की तरगीब भी देता है।
यही वह इक़वाल व हदीसें हैं जिन से बिरादराने अहले सुन्नत ख़ुदा की रोयेत पर इस्तेदलाल करते हैं और उन अक़वाल व हदीसों की हक़ीक़त यह है कि उन्हें सहाबा के दौर में गढ़ा गया है। काबुल एहबार जो यहूदी था और उमर बिने खत्ताब के अहद में मुसलमान हुआ उसने यहूदी मोतेकादात को बाज़ मफ़कूदुल अक़्ल रवायतों मसलन अबू हुरैरा और वहब बिने मबता के ज़रिये से इस्लाम में दाखि़ल कर दिया।
बुख़ारी व मुस्लिम में ज़्यादातर रवायतें अबू हुरैरा से मरवी हैं जो हदीसे नबवी और काबुल अहबार की हदीसों में तमीज़ नहीं रख पाते थे चुनान्चे उन्हें एक मरतबा उमर बिने ख़त्ताब ने महज़ इसी बात पर मारा कि वह यह हदीस बयान किया करते थे कि ज़मीन और आसमान को अल्लाह ने सात रोज़ में ख़ल्क किया है।
यक़ीनन वहदहू ला शरीक से मुताअल्लिक़ यह मज़हक़ खे़ज़ तसव्वुर ख़ुदा की वहदानियत अज़मत व जलालत का मज़ाक उड़ाने के मुत रादिफ़ है। इस ग़लत और बातिल अक़ीदे से मुसलमानों को गुरेज़ करना चाहिये ताकि आख़ेरत में शरमिन्दगी और निदामत का सामना न हो और उस ख़ुदा पर ईमान रखना चाहिये जो मख़लूक़ात की मुशाबेहत से बालातर, तौसीफ़ करने वालों के तौसीफ़ी कलेमात से बलन्दतर, अपने अजीब नजमो नस्क की बदौलत देखने वालों के लिये सामने आशकारा और अपने जलालो अज़मत की वजह से वहमो गुमान और फ़िक्रो आहाम की नज़रो से पोशीदा है। जो आलिम है बग़ैर उसके कि किसी से कुछ मालूम करे जो हर चीज़ जानने वाला है बग़ैर उसके किसी से कुछ पूछे न उसपे रात की तारीकियां मुहीत होती है और न वह दिन की रौशनी से क़स्बे ज़िया करता है।
इब्तेदाए आफ़रीनश और अहदे मिसाक़
न ज़मीन का ख़ाकी फ़र्श था न आसमान का नीलगू शामियाना न आफ़ताब की ज़िया बारियां थी न माहो अन्जुम की नूर पाशिया न फ़िज़ाओं की सर गोशियां थीं न हवाओं की सर मस्तियां न पहाड़ों की सर बलन्दियां थीं न सर सब्ज़ाओं शादाब घाटियां न ठहरे हुए समन्दर थे न बहते हुए दरिया न तायरों की ख़ुशनवाइयां थीं न दरिन्दों की बज़्म आराइयां, न दिन का उजाला था न रात का अन्धेरा गर्ज़ के कुछ न था फ़क़त एक ख़ुदा की ज़ात थी जो बेनियाज़ी के आलम में अपने अनवारे समदिया से अपने कमाल और जमाल का मुशाहेदा कर रही थी।
फिरएएरादए क़ुदरत से एक जौहरे नूर पैदा हुआ जिसके हिसार मे अनवार के तेरह मुरक्क़े और चमक रहे थे। इन्हीं अनवारे ताहिरा की बदौलत आदम की हमागीर ज़ुलमते वुजूद की सलाहियतो से जगमगा उठी।
अल्लमाए कुस्तेलानी का कहना है कि जब परवरदिगारे मखलूक़ात की ईजाद का इरादा किया तो नूरे मौहोम्मदी को अपने अनवारे समदियां से खल्क़ फरमाया ऐ जाबिर इब्ने अन्सारी से रिवायत है कि मैने हज़रत रसुलल्लाह से पूछा कि या रसुल्लाह सबसे पहले खुदा ने किस चीज़ को ख़ल्क़ फरमाया। हज़रत ने जवाब दिया कि सबसे पहले ख़ुदा ने तेरे नबी के नूर को अपने नूर से ख़ल्क़ फ़रमाया। अल्लामा मसूदी ने मुरव्वजुज़ जंहब मे हज़रत अली ;अण्सद्ध से रिवायत की हैं कि जब अल्लाह ने तक़दीरे मख़्लूक़ात और आफ़रीनश की खि़लक़त का इरादा किया तो आसमान और ज़मीन की पैदाइश से क़ब्ल अपने नूर से एक शोलाए नूर को पैदा किया जो हमारे रसूल हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व.) की शक्ल में पैदा हुआ।
यनाबेउल मोअद्दत और कोकबदुर्री वग़ैरा में हज़रत रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व.) से मरवी है कि मेरा और अली का नूर एक था जो खिलक़ते आदम (अ.स.) से चौदह हज़ार साल क़ब्ल ख़ुदा की बारगाह में ताअत व तक़दीस करता था यहां तक कि आदम की खि़लक़त हुई और ख़ल्लाके कायनात ने इस नूर को उनके सुल्ब में रखा फिर वही नूर एक नबी के सुल्ब से दूसरे नबी के सुल्ब में मुन्तक़िल होता हुआ अब्दुल मुत्तलिब के सुल्ब में आया उसके बाद ख़ुदा ने इस नूर को दो हिस्सों में तक़सीम कर दिया, इस तरह कि मेरा हिस्सा अब्दुल्लाह के सुल्ब में और अली का हिस्सा अबू तालिब के सुल्ब में ठहरा पस अली मुझसे और मैं अली से हूँ। हज़रत अली (अ.स.) से भी यही रिवायत है कि ख़ुदा ने हम अहलेबैत के नूर को हज़रत आदम से चौदह हज़ार साल क़ब्ल ख़ल्क़ फ़रमाया।
बहरहाल यह ख़ल्लाक़े कायनात की पहली तखलीक़ थी कि उसने अपने नूर से अपने हबीब (स.अ.) और उसके वसी के नूर को ख़ल्क़ फ़रमाया। उसूले काफ़ी में है कि ख़ुदा ने अपने नूर से मोहम्मद (स.अ.व.व.) अली (अ.स.) और फ़ातिमा (स.अ.) के नूर को पैदा किया फिर यह लोग हज़ारों किरन ठहरे रहे, उसके बाद अल्लाह ने दुनियां की तमाम चीज़ों को ख़ल्क किया, फिर इन मख़्लूक़ात की तखलीक पर अम्बिया को शाहिद बनाया और एताअत और फ़रमाबरदारी इन (अम्बिया) पर फ़र्ज़ की।
हज़रत उस्मान बिने अफ़ान ने हज़रत उमर बिने ख़त्ताब से रिवायत की है कि अल्लाह तआला ने अपने फ़रिश्तो को हज़रत अली इब्ने अबि तालिब (अ.स.) के नूरे दहन से पैदा किया है। क़ुरआन मजीद का इरशाद है कि यह मशियते खुदा है इनका कोई क़ौल या अमल ख़ुदा के हुक्म के बग़ैर नहीं होता यह वही करते हैं जो खु़दा चाहता है।
इसके बाद मशियते परवरदिगार ने क़यामत तक पैदा होने वाली मख़लूक़ की रूहों को ख़ल्क फ़रमाया और इन रूहों में से जुमला अम्बिया व मुरसलीन की अरवाहे मुक़द्देसा को एक मरकज़ पर जमा कर के उनसे अपनी रूबूबियत और पैग़म्बरे आख़ेरूज़्ज़मा की नबूवत पर इमान का अहद लिया। क़ुरआन में यह वाक़िया यूं मज़कूर है :-
तरजुमा :- ख़ुदा ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि मैं तुम्हें जो किताब और हिक्मत दूं उस पर अमल करना और अगर (तुम्हारी ज़िन्दगी में) तुम्हारे पास हमारा रसूल (मोहम्मद (स.अ.व.व.)) आए और वह तुम्हारी किताबों (और नबूवत) की तसदीक़ करे तो तुम उस पर ईमान ले आना और उसकी मदद करना। फिर दरयाफ़्त किया कि क्या तुम ने इक़रार कर लिया और मेरे अहद का बोझ उठा लिया? सब ने कहा हां ! हमने इक़रार कर लिया, तो इरशाद हुआ कि अब तुम इस क़ौलो क़रार पर एक दूसरे के गवाह हो जाओ और देखो मैं भी तुम्हारे साथ गवाह हुआ जाता हूँ।
मुफ़स्सेरीन ने क़ुरआन की आयत के बारे में अलग अलग तफ़्सीरें की हैं जिनका खुलासा यह है कि जन्नत से निकलने के 300 बरस बाद जब हज़रत आदम की तौबा क़ुबूल हुई तो उनकी पुश्त से तमाम रूहें निकाली गईं और उन से तीन तरह का वादा लिया गया। पहला यह कि तमाम इंसानों से कहा गया कि क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ? सब ने जवाब दिया, बेशक तू हमारा रब है। दूसरा वादा आलिमों से लिया गया कि तुम अल्लाह के हुक्म की तबलीग़ करना और तीसरा वादा नबियों से लिया गया जिसका बयान ऊपर लिखी क़ुरआन की आयत में है। इस वादे और इक़रार की तफ़्सीर में ंहैं कि ख़ुदा ने अम्बिया से फ़रमाया कि अगर मैं तुम्हें किताब दे कर नबूवत का ताज तुम्हारे सर पर रख दूं और मेरे बन्दे तुम्हारे उम्मती बन जायें और तुम्हारी नबूवत का आफ़ताब पूरी तरह चमक रहा हो और उस वक़्त मेरा हबीब तुम्हारे बीच में जलवा अफ़रोज़ हो तो तुम्हारा फ़र्ज़ होगा कि तुम उस पर इमान ले जाओ क्यों कि उसके आते ही तुम्हारे दीन और किताबें मन्सूख़ हो जायेंगी। बोलो क्या तुम्हें मन्ज़ूर है? जब तमाम नबियों ने इक़रार कर लिया तो हुक्म हुआ कि अब तुम इस पर एक दूसरे के गवाह बन जाओ और देखो मैं भी तुम्हारे साथ गवाह बन जाता हूँ।
यह बात ग़ौर करने की है कि ख़ुदा ने अपनी रूबूबियत और नबी की नुबूवत पर इमान का वादा लेते वक़्त, पैग़म्बरों के अलावा किसी को एक दूसरे का गवाह नहीं बनाया और न वह ख़ुद किसी की गवाही में शामिल हुआ, आखि़र इसकी वजह क्या थी? इसे बस खुदा ही जाने, लेकिन यह कहना ग़लत न होगा कि परवरदिगारे आलम मुतलक़ है और उसके इल्म में यह बात थी कि आं हज़रत का ज़माना कोई नबी न पाऐगा उसके बावजूद इक़रार लिया जाना इस बात की दलील है कि यह वादा अम्बिया के गिरोह के लिये नबियों के गिरोह के लिये आखि़री पैग़म्बर पर इमान की अलामत बन जाए। चुनान्चे हर नबी अपने इस अहद पर क़ायम रहा और शबे मेराज बैतुल मुक़द्दस में रसूल अल्लाह के पीछे नमाज़ पढ़ कर इस वायदे को पूरा और सच कर दिखाया। जैसा कि अबू हुरैरा से रिवायत है कि रसूलल्लाह ने फ़रमाया कि मेराज की शब हज़रत मूसा (अ.स.), इब्राहीम (अ.स.), ईसा (अ.स.) के साथ तमाम अम्बिया बैतुल मुक़द्दस में जमा हो गए यहां तक कि नमाज़ का वक़्त आया और मैं उनका इमाम हुआ।
पैग़म्बर ने फ़रमाया कि अल्लाह ने मुझसे कहा कि एै मोहम्मद मैनें तमाम नबियों से अपनी रुबूबियत तेरी नबूवत और अली कि विलायत का इक़रार लिया है। इमाम बाकिर (अ.स) ने फरमाया कि परवरदीगार ने हमारे शियों से अपनी रुबूबियत, रसूले खुदा की रिसालत और हमारी विलायत का इकरार लिया है। हज़रत अली का इरशाद कि खुदा ने कलमए कुन से एक नूर पैदा किया और उस नूर से मेरे भाई मोहम्मद को और मुझे, और मेरी जुर्रियत को खल्क़ फरमाया बस हमी नुरुल्लाह है. हमी रुहुल्लाह हैं और हम ही कलमतुल्लाह है। खुदा को मखलूक़ देख नही सकती मगर हमारी वजह से उसकी ज़ात व सिफात को समझ सकती है. फिर खुदा ने सारी अहद मेरे अहद मेरे भाई रसूले खुदा के साथ इस तरह लिया है कि हम एक दुसरे की मदद और नुसरत करते रहें, इसलिए मेनें आपकी मदद और नुसरत मे कोताही नही की, कदम कदम पर आप के साथ रहा आप के दुश्मनों से जिहाद किया और उन्को क़त्ल किया। उस्मान बिन अफ़ान हज़रत उमर इब्नें ख़त्ताब से रवायत करते है कि अल्लाह ने अपने मलाएका और फरिशतों को अली इब्ने अबितालिब के नूर से ख़ल्क़ फरमाया है।
ऐसी सूरत में यह कहना ग़लत नही होगा की जिस वक्त अम्बिया और मूरसलीन से अहद लिया जा रहा था उस वक्त उन के साथ उन के अहलेबैत भी हिजाब व अनवार के परदों मे थें। और जिस वक्त आदम आबों-गिल के दरमियांन थें उस वक्त भी ये पाक हस्तियाँ इल्में लदुन्नी की मालिक थी और शायद यही वजह थी कि हज़रत अली ने दावा किया कि अगर मेरे लिए मसनदें कज़ा बिछ़ा दी जाये और मैं उस पर बैठ जाऊँ तो तौरेत वालों के लिए तौरेत से, इन्जील वालो के लिए इन्जील से, ज़बूर वालो के लिए ज़बूर से और कुरान वालो के लिए कुरान से फैसला करुगा-। और शायद इसीलिए आप ने मिम्बर से एलान किया ऐ लोगों, जो पुंछना चाहो पुछ़ लो इससे पहले कि मै तुम्हारे बीच से उठ जाऊँ, खुदा की कसम मै जमीन के रास्तों से ज्यादा आसमान के रास्तों को जानता हूँ, मेरे अन्दर तमाम इल्म बहरे ज़ख्खार की तरह मौज़े मार रहें है मैं इस्रारे नबूवत का खजाना हूँ मै ग़ूज़रे हुए लोगों के हालात जानता हूँ, और उन बातों को भी जानता हुँ, जो आइन्दा पेश आने वाली हैं, मुझसे किलाबे खुदा के बारे में सवाल करो खुदा की कसम कोई आयत ऐसी नही जिसके बारे मे मुझे इल्म न हो कि दिन के उजाले मे नाज़िल हुई या राल के अन्धेरे में पहाड़ पर नाज़िल हुई या मैदान मैं।
इन अक़वाल रवायात और आयात से ज़ाहिर होता है कि रोज़े अजल परवरदिगार ने अम्बिया से अपनी वहदानियत, ऩबी-ए-मुरसल की नबूवत और अली कि विलायत का इक़रार लिया और जब वह इस इक़रार की मन्ज़िल से ग़ुज़र चुके तो उनके लिए मन्सबे नबूवत का इन्तेखाब हूआ, इस से ज़ाहिर है कि अम्बिया के ईमान की अलामत की बूनियाद, अल्लाह की रुबूबियत, नबी की नबूवत, और अली की वलायत का इक़रार है, इसमें कमी की कोई गुंजाईश नही है। अब मुस्लमानो को ये समझ लेना चाहिए कि इन तीनों चीज़ो मे से किसी एक में भी कमी आ गयी तो ईमान नही रह सकता, और मुसलमान, मुसलमान नही रह सकता।
रुहों की ख़िलकत और अहद व पैमान के बाद माअद्दों की सूरतगरी हुई और इसके साथ ही खुदा वनदेआलम ने अपने इरादा-ए-क़ुदरत से कुशादा फैजाओं ख़लाई वसअतों की ख़ल्क़ फरमाया और उन्हे हवा और पानी से भर दिया नीचें पानी की तुफानी लहरें थी और ऊपर हवा के तेज़ व तुन्द झोकें, फिर यही हवा पानी के अन्दर चली और उसके सख्त थपेड़ो ने पानी को इल तरह मंथ दिया कि जौसे दही मथा जाता है इससे झाग और बुखारात पैदा हुए फिर यही झाग और बुखारात हवा के दोश पर वलन्द होकर फज़ाओं में मुहीत व मुन्जमिद हो गये जिन से सात आसमानों की तख़लीक हुई। परवरदिगार ने आसमान के नीचले तबक़े को इस अन्दाज़ से ठहराया कि न सुतूनों की ज़रुरत पड़ी और न बन्धों की। फिर चाँद,सूरज, और सितारो की चमक दमक से उसे अरासता किया और सातों आसमानो के दरमियांन ख़ला पैदा करके उन्हे मलायक के वजूद से भर दिया।
यह मलायक तमाम माद्दी कसाफतो से पाक और आलाइशों से बरी है। उन का काम सिर्फ अल्लाह की इबादत व इताअत हैं चुनानचें उनमें जो मलाएक सर ब सजूद वह सजदे से सर नही उठाते, जो रुकू में है वह सीधे खड़े नही होते और जो क़याम में है वह अपनी जगह नही छ़ोड़ते। न उन पर नींद तारी होती है न सुस्ती व काहिली का ग़लबा होता है. न उनमें भूल- चूक पैदा होती है और न यह सहो व निसयात का शिकार होते हैं उनमें कुछ वही-ए-इलाही के अमीन है जो अल्लाह का पैग़ाम ले कर रसूल की तरफ आते जाते है कुछ़ बन्देगाने खूदा के निगेहबान और जन्नत के पासबान हैं और कुछ वह हैं जिनके क़दम मज़बूती से ज़मीन की तहों में जमें हुए हैं और उनकी निगाहें जलाले किबरियाई के सामने झुकी हुई है।
इन उमूर से फ़राग़त के बाद, इरादाए क़ुदरत से मौजें मारते हुए पानी की सतह पर उसी के झाग से बालाई की तरह एक मोटी सी तह जमना शुरु हुई जिसने ज़मीन की शक्ल इख्तेयार की और जहां से यह तह जमना शुरु हुई उसका नाम मक्का है मगर चुँकि ज़मीन के नीचे पानी ही पानी था जो थपेड़ो पर थपेड़े मार रहा था इसी लिए वह मताहरिंक थी उसे रोकने और मुनजमिद करने के लिए ख़ुदा ने पहाड़ो को पैदा किया जिन की मेख़े ज़मीन के सीनों में पैवस्त हो गयीं ताकि वह अपनी जगह से वह जुम्बिश न कर सकें। इन पहाड़ो से फिर पानी के चश्में फूटें जिन्हो ने आईन्दा खूश्क ज़मीनों की सेराबी का इन्तेज़ाम किया और जहां चश्मों का पानी नही पहुँच सकता था वहा के लिए बादल पैदा हुए जो पानी के ज़खीरे अपने साथ लेकर सफर करते हैं और ख़ुश्क मक़ामात को सेराब करते है।
चश्मो की आबयारी और बादलों की आबबारी से ज़मीन में नमूं की कूव्वत पैदा हूई और फर्शे गेती पर सब्ज़ा लहलहाने लगा, सरसब्ज़ व शादाब दरख्त झुमने लगें अब आलम में रंग बू की कमी न थी मगर दरियाओं की रवानी, समन्दरों का शोर और बादलों की गरज के अलावा इस दुनिया में कोई आवाज़ न थी। इस भयानक सन्नाटे को चहल पहल में बदलनें के लिए कुदरत ने हैवानात को ख़ल्क़ किया, यहां तक की चरीन्दों,परिन्दो,और दरिन्दों का जमघटा लग गया, लेकिन इस मख़लूक में नज्म व ज़ब्त का कोई शऊर न था और पुरी कारगाह डहकते शोलों और गरजते हुए दरिन्दो,और ख़ौफ नाक भेड़ियों व अजदहों से महशरिस्तान बनी हुई थी। ख़ुदा वन्दे आलम ने इसकी तन्जीमकारी के लिए आग से बनी हुई मखलूक़ जिनों को खल्क़ फरमाया लेकिन इस मख़लूक ने नज़्मों ज़ब्त क़ायम करने के बजाए अपनी शोला मिजाज़ी की बदौलत रुए ज़मीन पर ग़ैज़ो ग़ज़ब की आग भड़का दी और ख़ुद ही बाहेमी ख़ूरेंज़ी और जंग और जिदल में मस्रुफ़ हो गये और परवरदिगार की इताअत से मुहँ मोड़ कर उसके एहकामात की खिलाफ़वर्जी पर उतर आए। आखिर कार यह पूरी कौम क़हरे इलाही का शिकार होकर फेना के घाट उतर गयी, बस वही रह गये जो अल्लाह की नज़र में रहमो करम के मुस्तहक़ थे, उनमें से एक जो इन्तेहाई इबादत ग़ूज़ार था अपनी इबादत और रियाज़त के नतीजे में इस तरह बचा कि उसे मलाएका की सफ़ों में जगह दे दी गयी उसका नाम इज़राइल था। जो बाद मे इबलीस और शैतान के नाम से मशहूर हुआ।
अबुल बशर हज़रत आदम अ0.
बनी जान (कौमें जिन) की तबाही और बरबादी के बाद, एक रवायत और कौलें मुरसल के मुताबिक़ इस दुनिया की सरज़मीन 4000 साल तक सुन्सान, वीरान और गैर आबाद पड़ी रही। फिर मशियत की तरफ से मलाएका की सफों मे यह एलान हुआ कि मैं ज़मीन पर अपना एक खलिफ़ा (नायब) मुक़र्रर करने वाला हूँ। फरिशतें, जो जिन्नात का बाहमी कुशतों ख़ुन व इवरतनाक अन्जाम देख चुके थे, कहने लगे, माबूद क्या तू ऐसे को अपना खलीफा मुकर्रर करेगा जो ज़मान पर ख़ुरेंज़ी और फसाद बरपा करें हांलाकि हम तेरी तसबीह और तक़दीस करते हैं। जवाब मिला कि मेरी सारी हिक्कमते राज़ में है और जो कुछ़ मैं जानता हुँ वह तुम नही जानते। फ़रिश्ते ख़ामोश हो गये।
दुबारा फिर एलान हुआ कि मैं मिट्टी से एक मक़सुस मख़लूक़ (इन्सान) को पैदा करने वाला हूँ,और देखों जब में इसका पुतला तैयार कर के इसमें रुह दाखिल करु तो तुम उसके सामने अपनी अपनी पेशानियां सजदें में रख देना। इस ऐलान को भी तमाम मलाएका ने सुना और किसी ने इन्कार नहीं किया।
अब ख़ालिक़ ने अपनी क़ुदरते खास के इन्तेज़ाम से नरम और सख्त शिरीं और शोराज़ार, हमवार व नाहमवार ज़मीन से मिट्टी जमा की और उसे पानी में इतना भिगोया कि वह साफ हो कर ऩिथर गयी, और तरी से इतना गूँधा की उसमें लस पैदा हो गया, और उससे एक ऐसा पैकर बनाया जिसमें जोड़ है, मोड़ है, आज़ा है, और मुख्तलिफ हिस्से हैं, फिर उसे यहां तक सुखाया कि थम सकें और उसे यहा तक सुखाया कि वह ख़न्ख़नाने लगें। फिर एक वक्तें मुअय्यन और मुददतें मुकर्ररा तक उसे युहीं रहनें दिया, फिर उसमे रुह फूंकी तो वह ऐसे इन्सान की सूरत में उठ खड़ा हो गया जो कवाए ज़ेहनी तो हरकत देने वाला, फिकरी जौलानियों को बरुए कार लानें वाला, आज़ा व जवारे से खिदमत लेने वाला, हाथो और पैरों को चलाने वाला, और एसी शिलाख्त का मालिक है जिसके ज़रियें वह हक़ व बातिल में तमीज़ कर सकें.।
मुल्ला बाकिर मजलिसी अलैहिर्रहमा ने सै0 इब्ने ताऊस और उन्होने मुसफे इदरीस के हवाले से तहरीर फरमाया है कि यक शम्बें की सुबह को अल्लाह ताआला कि वह तीनतें आदम के अजज़ा को बाहम मख़लूत करके ख़मीर करे, चुनांचें इस फरिश्ते नें 40 साल तक उस मिट्टी को गुँधा, फिर 40 साल में वह लसदार हुई, उसके बाद 40 साल ही हज़रत आदम का पुतला तैयार हुआ।
मज़कूरा रवायत से पता चलता है कि इन्सान के पैकरे ख़ाक़ी मुद्दते तख़लीक़ 120 बरस है। अब इस सजदे की मन्ज़िल मलाएका के सामने थी। जिसके लिए हज़रत आदम की खिलकत से कल्ब परवरदिगारे आलम की तरफ से ऐलान हो चुका था। चुनांचे बरोज़े जुमा ख़ल्लाके आलम ने हज़रत आदम के पैकरे ख़ाकी में अपनी पसन्दीदा रुह उन्हें एक जीते जागते और ब शऊर इन्सान की शक्ल में फरिश्तों के सामने पैश कर दिया। हुक्में खालिक़ के मुताबिक़ मलायका ने अपनी पेशानियाँ सजदें में रख दी लेकिन इबलिस नें यह कह कर इन्कार कर दिया कि मैं इस मख़लूक़ को सजदा नहीं करुंगा, इस लिए की इसकी ख़िलक़त मिट्टी से हुई है और मेरी ख़िलक़त आग से, जो मिट्टी से बहरहाल अफ़ज़ल है, इबलिस का यह इस्तेकबार,यह ग़ुरूर और यह इन्कार ग़ज़बे इलाही का सबब बना और परवरदिगार ने उसे अपनी जवारे रहमत से और मलाएका की सफों से निकाल कर मरदूदें बारगाह करार दे दिया, जिसका नतीजा यह हुआ कि उसकी 4000 साल की इबादत व रियाज़त खाक़ में मिल गयी। इब्लिस मलाएका की सफ़ो से बाहर तो हो गया लेकिन उसने हिम्मत नही हारी, बल्कि परवरदिगार से उसने इन्सान की अज़मत और बरतरी को शिकस्त देने के लिए कयामत तक की ज़िन्दगी और मोहलत लेली और कहा कि मैं तेरी इस मखलूक़ और उसकी नसलों को गूमराह करके यह साबित कर दूगा कि यह अज़मत और बलन्दी का मुस्तहक नही है जो तेरी तरफ़ से उसे अता की गयी है। परवरदिगार ने भी उसे यह कह कर उसे ज़िन्दगी और मोहलत दे दी कि उस मख़लूक़ की नस्ल में मेरे कुछ़ ऐसे भी होंगे जो नेकी और बशरीयत की उस मन्ज़िले कमाल पर फ़ायज़ होंगे जहाँ तक तेरी रसाई ग़ैर मुम्किन है।
हज़रत आदम को आदम इसलिए कहा जाता हैं कि वह अदीमुल अर्ज़ यानी ज़मीन की मिटटी से ख़ल्क़ हुए चुँकि उनकी खिलक़त में नर्म और सख्त, शीरी व शोर, हमवार व नाहमवार ज़मीन की मिटटी इस्तेमाल हुई है इसलिए इन्सानों मे मुखतलिफ़ रंग और मुख़तलिफ मिजाज़ के इन्सान पाए जाते है। सिनफे निसवां की पहली फर्द, हवा की खिलकत उस मिटटी से हुई जो हज़रत के पहलू और पसलियां बनाने से बच गयी थी। हज़रत हव्वा को हज़रत आदम अ0 का शरीके जिन्दगी क़रार दिया और अर्श पर दोनो का निकाह हुआ।
परवरदिगार ने इन दोनों को सुकूनत का हक़ दिया और तमाम अनवाओ अक़साम के फल और मेवे जात खाने की इजाज़त दी, लेकिन एक मखसूस दरख्त के बारे में मना कर दिया कि इस के नज़दीक न जाना।
इबलीस चूँकी हज़रत आदम अ0 ही की बदौलत मरदूदे बारगाहे इलाही क़रार पाया था इसलिए वह इनका दुश्मन था और उससे हर वक्त यह फिक्र दामनगीर रहती थी कि उन्हे किस तरह जन्नत से निकलवाया जाए। आख़िर कार हव्वा के ज़रिये वह हज़रत आदम को समझाने में कामयाब हो गया कि ममनुआ दरख्त के नज़दीक गये बग़ैर वह अगर उसका फल खाए तो कोई मुज़ाएका नही है, चुनांचें आदम बीवी के कहने पर अमल कर बैठें और इबलिस अपने मक़सद में कामयाब हो गया।
इस ममनुआ दरख्त का चखना था कि जन्नत के लिबास आदम व हव्वा के जिस्मों से उतर गये और वह आसमान की बलन्दी से बेदख़ली के बाद ज़मीन की पसती में फेक दिये गये।
आदम व हव्वा ने जन्नत से निकल कर दुनिया के जिस मुकाम पर पहले पहल अपने कदमों को रखा वह सरज़मीनें हिन्द की वादी सरानदीप है, यहां से दोनों ने मक्के की तरफ हिजरत की। आदम कोहे सफा पर पहुँचे और हव्वा कोहे मरवा पर पहुँची। यहाँ पहुच कर आदम और हव्वा ने अपने उस फेल पर जो शैतान के कहने से जन्नत में सरज़द हुआ था, तौबा व अस्तग़फार और गिरीयाज़ारी शुरु की, जिसे ख़ुदा ने 300 बरस के बाद पंजतन अ0 के नामों की बरकत से कुबूल फरमाया और जिबराईल को हुक्म दिया की वह एक ख़ैमा जन्नत से ले जाएं और उसे ज़मीन पर नसब कर दें जो खानाए काबा के लिए मखसुस की गयी है। जिबराईल आये उन्होने ख़ैमा नसब किया और उसके हाथ ही उन्होने हुदुदे काबा के चारों कोनों पर पत्थर नसब कर के हद बन्दी कर दी। हुक्में इलाही के मुताबिक़ जिबराईल ने उन पत्थरों में से एक कोहे मरवा, एक कोहे सफा एक कोहे तूर और एक को, जबलूस सलाम (नजफ़े अशरफ़) से लिया। फिर उन्होने हजरे असवद को नसब किया जो जन्नत से आया था और कोहअहुक़बीस पर बतौरे अमानत रखा हुआ था। इस पत्थर के बारे में बाज़ मोअर्रेखीन का बयान है कि यह एक फ़रिश्ता था जो अहदे मीसाक़ का अमीन था, चुनाँचें ख़ुदा ने चाहा की यह अहद ज़मीन पर जारी हो लिहीज़ा उसने फरिश्ते को हजरे असवद की शक्ल में तबदील कर दिया और खाना-ए-काबा के लिए मख़सूस कर दिया कि लोग अपनें अहद व पैमान को इसके ज़रिये याद करते रहें।
हज़रत आदम ने जिबराईल के साथ हुदूदें हरम का तवाफ़ किया और बाद में चारों कोनों पर नस्ब करदीं। पत्थरों की बुनियाद पर काबा की दीवारों को बलन्द किया। अल्लाह ने अपने इस पहले नब को जरुरियाते ज़िन्दगी की हर शै के इल्म से आरासता करके दुनिया में भाजा था लिहाज़ा वह मुतमईन थे। लेकिन सबसे बड़ा मसला उनके सामने अफ़जा़इशे नस्ल का था। क्योकिं नवये बशर में सगे बहन और भाई के दरमियान सुन्नते तजवीज़ का जारी होना दुरूस्त न था, इस मुशकिल को खुदा ने हुरों के ज़रिये आसान कर दिया जैसा कि तारीख़ बताती है कि हज़रत आदम के फ़रज़न्द हज़रत शीस का नीकाह नज़ला नामी एक हूर से हूआ था और दुसरे बेटें आसिफ़ का निकाह मन्ज़ला से हूआ था और वह भी हूर थी। इस तरह हज़रत आदम की नस्ल आगें बढ़ी और फली फूली।
हज़रत आदम अ0 के यूं तो बहुत से बेटे थे मगर हज़रत शीस अपने बाप के कमालात के हामिल थे लिहाज़ा वही उनके वसी और जानशीन क़रार पाए. उनके अलावा दुसरे बेटों में दो भाई हाबील व क़ाबील थे जो सिफ़ात और किरदार में एक दुसरे के मुखालिफ थे यानि हाबील इन्तेहाई नेक ख़सलत थे और क़ाबील इन्तेहाई बद तीनत। नेकियों की बिना पर बाप की चश्मे इल्तेफ़ात हाबील पर ज़्यादा रहती थी इस लिए क़ाबील उनके लिए अपने दिल में बुग़ज़ो हसद रखता था।
एक रवायत में यह है कि हज़रत आदम ने हाबील को अपना वसी बनाने का इरादा ज़ाहिर किया था, इस पर क़ाबील बेहद नाराज़ हुआ और उसने ये ख्वाहीश ज़ाहिर की कि मुझे वसी बनाया जाए। इस पर हज़रत आदम ने फैसला किया कि तुम दोनों भाई ख़ुदा की राह में अपनी अपनी क़ुबानियां पेश करो, जिस की क़ुरबानी क़ुबूल हो जाएगी वही मेरा वसी होगा।
इस वक्त शरफे क़ुबूलियत का मेयार यह था कि आसमान से एक आग का शोला उतरा था और वह क़ुरबानी को जलाकर खाक़ कर देता था। चुनांचे दोनो भाईयों ने अपनी अपनी क़ुरबानियों को बारगाहे इलाही में पेश की। ख़ुदा ने हाबील की क़ुरबानी क़ुबूल कर ली और क़ाबील की कफे अफसोस मल कर रह गया। उसी वक्त से क़ाबील हाबील का जानी दुश्मन बन गया। एक दिन जब हाबील जंगल में अपनी बकरीयां चरा रहे था तो क़ाबील ने मौक़ा पाकर क़तल कर दिया। यह पहला इन्सानी ख़ुन था जो ज़मीन पर बहाया गया।
इस इरतेकाबे क़त्ल के बाद क़ाबील को यह फिक्र दामनगीर हो गयी की अब लाश को क्या किया जाए। इतने में दो कव्वे लड़ते हुए ज़मीन पर गिरे और उनमें एक ने दुसरे को हलाक़ कर दिया। फिर उसने अपनी चोँच और पंजों से ज़मीन में एक गडठा खोदा और मरे हुए कव्वे को उसी में रख कर दफ़न कर दिया। क़ाबील यह माजरा देख रहा था चुनांचे उसने भी यही तरीक़ा अपनाया और एक गडठा खोद कर हाबील की मय्यत को उसमें दफ़न कर दिया।
जब हज़रत आदम को यह पता चला कि क़ाबील ने हाबील को क़त्ल कर दिया तो वह इस क़दर रोए कि ज़मीन आसुओं से तर हो गयी। तबरी व क़ामिल वग़ैरह में है कि इस सानिहे ग़म पर आदम ने गिरया भी किया और चन्द अशआर नज़म करके नौहा भी पढ़ा।
तारीख़ की किताबों मे ये भी मिलता है कि आग ने जब क़ाबील की क़ुरबानी को ठुकरा दिया और हाबील क़त्ल हो गये तो क़ाबील ने एक आतिश कदे की दाग़ बेल रखी और वहीं से आतिश परसती का आग़ाज़ हूआ जो आज भी जारी है।
हज़रत आदम की उम्र जब 230 बरस की हुई तो हज़रत शीस पैदा हुए और जब 636 बरस की उम्र मे दुनिया से रेहलत हुई तो उस वक़्त आप की ओंलादों में(पोते, परपोते) की तादाद 40000 तक पहुँच गई थी मगर आप ने उन लोंगो को बग़ैर अपने ख़लीफा के नही छ़ोड़ा और न उनको मौक़ा दिया कि वह अपना सरदार ख़ुद मुक़र्रर करें चुनांचे अपनी वफात से क़ब्ल उन्होने अपने फरज़्नद शीस को बूला कर तहरीरी तौर पर अपना वली-ए-अहद मुकर्रर कर दिया। और उन्होने यह वसीयत कर दी कि क़ाबील और उनकी अवलादों से पोशीदा रखें।
जिस तरह खुदा ने आदम की ख़िलकत के मामले में खलीफ़ा मुनतखब करने का एख़तेयार फरिश्तों को नही दिया उसी तरह खिलाफ़त के बारे में हज़रत आदम ने किसी इन्तेखाब का इख्तेयार अपनी अवलादों को नही दिया और तहरीर लिख कर यह सराहत फ़रमादी कि हर नबी ज़बानी या तहरीरी तौर पर अपना ख़लीफा व जानाशीन मुक़र्रर कर सकता है। अब इसके बाद कोई जमाअत अपने इन्तेखाब, शुरा या इस्तेख़लाफ़ की बुनयाद पर किसी को ख़लीफ़ा बनाती है या किसी नबी को तहरीरी वसीअत में माआने होती है तो उसका यह फेल क़तई तौर पर सीरते आदम के ख़िलाफ़ है।
मोअर्रिख अबुलफ़ेदा का कहना है कि हज़रत आदम 6216 बरस क़बल हिजरत नबवी दुनिया में वारिद हुए थे और 636 बरस की उम्र में आप का इन्तेक़ाल हुआ। दीगर किताबों में है कि हज़रत ने 630 बरस की उम्र में जुमें के दिन इस दुनिया से रेहलत की। जिबराईल और उनके साथ कुछ़ मलाएका ने उन्हें ग़ुस्ल व कफ़न दिया, हज़रत शीस ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और उनके जसदे ख़ाकी को एक ताबुत में रखकर मक्का की सरज़मीन पर दफन कर दिया। हज़रत आदम के एक बरस के बाद हज़रत हव्वा का इन्तेका़ल हुआ। और वह भी अपने शौहर के पहलू में दफन हुई। जब तुफाने नुह आया तो हज़रत आदम के ताबूत को निकाल कर नूह अ0 ने अपनी कश्ती मे रख लिया था। तुफान ख़त्म हुआ तो वह ताबूत नजफ में अमीरुल मोमनीन हज़रत अली अ0 के मजारे मोक़ददस के क़रीब दफ़न किया गया। कहा जाता है कि हज़रत आदम का क़द पैंतीस 35 गज सत्तर हाथ था। नव्यैते सजदा।
मलायका ने हज़रत आदम अ0 को जो सजदा किया उसके बारे में उल्माए फ़रीक़ैन का इत्तेफाक़ है कि वह सजदा ताज़ीमी था। बैज़ावी रक़म तराज़ है कि परवरदिगार ने इसलिए फरिश्तो को आदम के सजदे का हुक्म दिया कि वह फज़िलते आदम के अमलन मुतारिफ हो जाए और उन्हें इस बात का यक़ीन हो जाए कि हम ने आदम के बारे मे जो कहा था वह दुरुस्त न था। शरई नुक्ते नज़र से सजदा दर अस्ल ख़ुदा के लिए था और आदम की हैसियत उस वक्त क़िबले जैसी थी, यानि आदम को सजदा ताज़ीमी था कि यूसुफ़ के भाईयो ने यूसुफ़ को सजदा मिस्र में किया।
तफ़सीरे साफ़ी मे है कि चूंकि हज़रत आदम अ0 के सुल्ब मे मोहम्मद व आले मोहम्मद का नूर था जो तमाम मखलूक़ात से यक़ीनन अफज़ल है लिहाज़ा खुदा ने मलायका को सजदे का हुक्म दे कर उनकी अज़मत को ज़ाहिर किया, यानि जो सजदा किया गया वह इस नूर के लिए ताज़ीमन इकरामन ख़ुदा के लिए अबुदियतत और आदम के लिए एताअतन था। तबरी में है कि आदम के लिए फरिश्तों का सजदा ताज़ीमी था क्योकि सजदा अल्लाह के सिवा और किसी को नही किया जो सकता और उस वक़्त आदम को उसी तरह क़िबले की हैसियत हासिल थी जिस तरह हमारे लिए खानें काबा है, काबे का शरफ़ ज़ाहिर करने के लिए हमारी पेशानियां काबे की तरफ झुकाई जाती है। आदम का शरफ़ ज़ाहिर करने के लिए मलाएका की पेशानियां उनकी तरफ झुकाई गयी। शेख अलहिन्द मौलाना मोहम्मद हसन देव बन्दी लिखते है कि जब हज़रत आदम का खलीफा होना मुसल्लम हो चुका तो फरिश्तों को और उनके साथ जिन्नातों को हुक्म हुआ कि हज़रत आदम की तरफ सजदा करें और उन को सजदए माबूद का क़िबला बनाए जैसा कि सलातीन अव्वलन अपना वली अहेद मुक़र्रर करते है फिर रियाया को नज़रें पेश करने का हुक्म देते है ताकि किसी को सरताबी की गुन्जाइश न रहें।
अजाएबुल क़सम मे है कि फरिश्तो ने हुक्में सजदा की मोकम्मल तामील की और सौ साल बरायतें पाँच सौ साल सजदे में पड़े रहे जब सजदे से सर उठाया तो देखा कि इबलीस सामने खड़ा है और उसकी शक्ल व सूरत बदल गयी है, यानि वह मलक के बजाए देव की सूरत में कर दिया गया है यह देख कर मलाएका कमाले इताअते बारी और शुक्रे ख़ुदा वन्दी में फिर चले गये, मलाएका के इन्ही दोनों सजदों की वजह से नमाज़ की हर रकत में दो सजदे क़रार दिये गये है।
हज़रत शीश अ0
हज़रत शीस की विलादत का वाक़िया तारीखों मे यूं मिलता है कि एक दिन हज़रत आदम और हव्वा एक पाकीजा मकाम पर बैठे हुए महवे गुफ़तगू थे। कि जन्नत से एक जू-ए-आब जारी होकर दोनो के करीब पहुचां और इसी के साथ साथ जिबराईले अमी भी कुछ फरिश्तो को लिए हुए वारिद हुए, उन्होने आकर हज़रत आदम को सलाम किया, आदम ने जवाबे सलाम दिया उसके बाद जिबरईल ने आदम के सामने जन्नती मेवों का एक तबक पेश किया और कहा कि इसे नोश कीजिये और आप आबे बेहिशत से गुल्ल करके हव्वा के पास जाइये क्योकि आज नूरे मोहम्मदी तुम्हारे सुल्ब से रहमे हव्वा मे मुन्तिकि़ल किया जाएगा और तुम्हरी वही की बुन्याद पड़ेगी।
हज़रत आदम ने इस हुक्मे इलाही की तामील की और हज़रत हव्वा इसी शब हामेला हुई। मोद्दते हमल गुजरने के बाद एक फरजन्द की विलादत हुई जिसका नाम शीस रखा गया।
तारीखे़ ख़मीस मे है कि चूंकि नूरे मोहम्मदी को हज़रत आदम के सुल्ब से मुन्तकि़ल होकर हज़रत शीस के सुल्ब मे आना था इसीलिए उनकी विलादत मे खास एहतेमाम किया गया।
अजाएबुल क़सस और हयातुल कु़लूब मे है कि जब हज़रत शीस सिने बुलूग़ पर पहुचें तो जिबराईल नाज़िल हुए है और आदम से कहा कि ए आदम तुम फलां मकाम पर कल शीस को लेकर पहुँच जाओ और मै भी फरिश्तों को लेकर वहाँ आ जाऊगा। आदम ने इस इजतेमा का सब्ब दरयाफ्त किया तो जिबराईल ने कहा कि शीस से नूरे मोहम्मदी के मोताल्लिक़ एहदो मीसाक लेना है। दूसरे दिन हजरत आदम मकामे मोइयना पर पहुँच गये, हजरत जिबरईल भी हजारो फरिशतो को लेकर वहां आ गये, और हजरत शीस से अहदे मीसाक़ लिया गया और उन्हे कुछ हिदायें
जिस वक्त हज़रत शीस मोतावल्लिद हुए उस वक्त हज़रत आदम की उम्र 230 बरस की थी। आप की नस्ल हज़रत शीस से ही चली। और हज़रत शीस के अहद मे अवलादे आदम दो गिरोह मे तक़सीम हुई एक क़ाबील की पैरव, जो आतश परस्त हुई दूसरी हज़रत शीस की पैरव जो खुदा परस्त रही।
हज़रत शीस अवलादे आदम मे इन्तेहाइ मोहतरम बुजुर्ग अपने वालिद से मुशाबेह और खू़बसूरत थे। इन पर 50 सहीफे नाजिल हुए। और जब इनकी उम्र 612 बरस की हुई तो इन्तेक़ाल हुआ। इन्तेक़ाल से क़ब्ल इन्होने अपना वसी अनूश को मोकर्रर किया और अनूश ने क़ीनान को क़ीनान ने महलाईल को और महलाईल ने यारो को यारो ने अख़नूख़ को अपना वसी और जानाशीन मोक़र्रर किया जो हजरत इदरीस कहलाए।
हज़रत इदरीस अ0
आप को इदरीस इसलिए कहा जाता है कि आप अपनी क़ौम के लोंगों को, अल्लाह की रुबूबियत, मआरेफत, इबादत, इताअत और इन्सानी ज़ाबताए हयात का दरस दिया करते थे। आप हज़रत आदम की सातवीं पुश्त में मोतावल्लिद हुए, अंग्रेज़ मोहक़्कि ने आप और हज़रत आदम का दरमियानी वक़्फ़ा 622 बरस बताया है।
आप लहीम शहीम, फरबे और वलन्द क़ामत थे, नर्म आवाज़ से आहिस्ता आरिस्ता बाते करते थे। अल्लामा अब्दुल वाहिद हनफी देवबन्दी का कहना कि ख़ुदा ने आप को दस चीज़ो से मुम्ताज़ और मुन्फरिद किया था
आप नबीये मुरसल थे
आप पर 30 सहीफे नाज़िल हुए
इल्में नुजूम जानते थे
क़ल्म से लिखने की इबतेदा की
कपड़ा इजाद किया
जंगी अस्लहे इजाद किया
जेहाद क़ायम किया
काफ़िरों और उनकी गिरफ्तारी का तरिक़ा इजाद किया
लोगों को लिबास पहन्ना बताया
ख़ुदा ने आपको ज़िन्दा आसमान पर उठाया
कुछ़ मोअर्रिख़ों का कहना है आपने तक़रीबन 100 शहर आबाद किये। अल्लामा मजलिसी अलैहिर्रहमा का बयान है कि आप मस्जिदे सहला मे दर्स देने के अलावा ख़याती का काम भी करते थे और वहीं रहते भी थे कशफुल ग़म्मा में है। आप को 72 ज़बानों पर क़ुदरत हासिल थी और आप हर ज़बान मे तबलीग़ का काम अन्जाम देते थे। रौज़ा तुल सफा में है कि आप ही ने बुर्जो में आफताब की मुन्तक़ाली से लोगों को आगाह किया और रुय ते हिलाल के बारे में बताया बुर्जो के नाम तजवीज़ किये नुजूम कि इसतेलाहें का़यम की और अपने इल्म से अम्बिया की तादाद बताई।
दुनिया मे आप ने 365 साल तक कारे तबलीग़ अन्जाम दिया इसके बाद अल्लाह ने आप को जिन्दा आसमान पर उठा लिया। आसमान पर उठाये जाने से पहले आप ने उमुरे दीनी अपने साहबज़ादे मुतवशलख़ को अपना जानशीन बनाया। मुतवशलख़ ने वक्ते आखिर अपने फ़रज़न्द लमकया लामख़ को जानशीन मोकर्रर किया। और उनसे वह वसीयते की जो आप के बुज़ूर्गों ने आप से की थी। लमकया लामिख की उम्र 800 बरस की हूई और उनकी वफात तुफाने नूह से 620 साल पहले बताई जाती है। उन्ही लमक के साहबज़ादे हज़रत नूह थे।
हज़रत नूह अ0
आप को नूह इस लिए कहा जाता है कि आप ने अपनी गुमराह क़ौम की सरकशी, और अज़ीयत रसानी पर 650 बरस तक नौहा. किया। मुखतलीफ हदीसों और रवायतों मे आप का नाम अब्दुल आला, अब्दुल मलक, अब्दुल शकूर, अब्दुल ग़फ़्फ़ार और सकन बताया गया है। आप गुदाज़ जिस्म बलन्द व बाला क़द के इन्सान थे. चेहरा पतला कदरे लम्बा, आँखें बड़ी और दाढ़ी घनी थी। खुदा ने आप को 2500 साल की ज़िन्दगी अता की लेकिन इस उम्र में मोअर्रेखीन के दरमियान इखतेलाफ है कि कब आप मनसबे नबूअत पर फायज़ हुए, किसी रवायत में 850 बरस, किसी रवायत में 840 बरस, किसी में 860 बरस, किसी में 400 बरस, किसी में 250 बरस तहरीर किया है तबरी मे सिर्फ 50 साल तहरीर है जो मेरे ख़याल मे किताबत की ग़लती का शाखसाना है।
मोअर्रेखीन इस बात पर मोत्ताफिक है कि आप ने 650 साल तक तबलीग़ी ख़िदमत अन्ज़ाम दी लेकिन चूंकि आप क़ाबील की अवलादों पर मबउस हुए थे जो इब्तेदा ही से गुमराह, सरकश, आतिश परस्त, ज़िनाकार, जराएम पेशा और नाफरमान थी इसलिए आप की तबलीग़ी कोशिशों का कोई खास नतीजा बरामद न हुआ और आप के मोतक़दीन की तादाद 80 से ज़्यादा न हो सकी।
आप पर कोई सहीफ़ा नाज़िल नही हुआ। क़बले नुबूवत भी आप अपने बाप दादा के मज़हब पर थे और इन्तेहाई इबादत ग़ुज़ार, मुत्तकी, परहेज़गार, मोवारिद और खुदा परस्त थे। अपनी क़ौम की इज़ा रसानियों से परेशान होकर आप ने उनसे अलाहेदजी इखतेयार करली थी और कुफ़े के क़रीब सिम्त फ़ुरात के किनारे एक ग़ैर आबाद मुकाम पर रहते थे और वहीं हमा वक्त खुदा की इबादत में मस्रुफ रहते थे।
अल्लामा मजलिसी इब्ने ताउस के हवाले से रक़म तराज़ हैं कि जब आप की उम्र का एक तवील हिस्सा गुज़र गया तो आप की ख़िदमत में जिबरईल आयें और उन्होने कहा कि ऐ नूह तुम ग़ोशो नशीन क्यो हो तुम बाहर निकलो और भटकी हुई क़ौम को राहे रास्त पर लाने की कोशिश करो, आप ने फरमाया, यह क़ौम बड़ी बेकार है, न मेरी सुनती है न मेरी तरफ रुख करती है और न मुझे पहचानती है। जिबरईल ने फरमाया अगर ये लोग नरमी से राहे रास्त पर आने को तैयार नही है तो उनसे जिहाद करों। आप ने फरमाया, मैं उनके मुक़ाबले मे जिहाद की ताक़त व तवानाई नही रखता। जिबरईल ने कहा अगर खुदा ताक़त व तवनाई अता कर दे तो।
जिहाद करोगे। आप ने फरमाया यक़ीनन मे जिहाद करुगाँ। इस पर जिबरईल ने कहा ऐ नूह मैं खुदा की तरफ से भेजा गया फरिश्ता हुँ, इस वक्त अल्लाह ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है बाद सलाम के कहा है कि मैने तुम्हे ताक़त व तवनाई दे कर नबूवत के मन्सब पर फायज़ कर दिया है अब तुम तबलीग़ के लिए गोशा छ़ोड़ कर मैदान में निकलों और फरीज़ाए नबूवत अदा करो, खुदा तुम्हारे साथ है वह तुम्हारी मदद करेगा। यह सुनना था कि नूह अ0 अज्म व हिम्मत के साथ एक सफेद असा लेकर उठ खड़े हुए और खुदाई ताक़तों को समेट कर तबलीग़ की ग़रज़ से एक ऐसी बस्ती में दाखिल हुए जहाँ लोग ईद की खुशियाँ मना रहे थे, अतिश परस्ति में मशग़ूल थे और आग भड़क रही थी, नाराए तौहीद बलन्द किया और फरमाया। ऐ ग़ुमराह क़ौम के लोगों आगाह हो जाओ कि तुमनें शैतानी जामा पहन रखा है, हक़ीकी खुदा से मुन्हरिफ होकर, आग और बुतों की परसति कर रहे हो जो तुम्हे जहन्नुम की तरफ ले जाने वाली हैं अगर तुम्हे जहन्नुम की आग से बचना है तो ख़ुदाए वहदहू लाशरीक की इताअत करो, मैं तुम्से यही एक़रार लेने आया हुँ क्योकि अल्लाह ने मुझे तुम पर नबी मोक़र्रर किया हैं। मगर बदबख़तो ने एक न सुनी, हालांकि उन पर हैबत तारी हुई और उनका आतिश कदा गुल हो गया।
आतिश कदा के गूल होने और हज़रत नूह की इस दिलेराना गुफ़तग़ु से एक तरफ तो आतिश परसतों पर खौफ व हिरास और सरासीमगी के आसार तारी थे और दुसरी तरफ अमुरा बिन्ते हमरान नामी एक हसीन व जमील दोशीज़ा पर उन कलमात का यह असर हुआ की वह उसी वक्त ईमान ले आयी, उसका ईमान लाना था कि पुरी कौम, पुरी बस्ती,बल्कि गिरदो नवाह मे एक तहेलका मच गया। अमुरा का ख़ौफ ज़दा बाप, उस पर इस कदर बेरहम हुआ की उसने बेटी को कैद कर के एक कमरे में बन्द कर दिया कि जब तक वह अपने इस फैल पर तौबा नही करेगी उस का खाना पानी बन्द रहेगा। वह ज़िन्दा रहे ख्वाह मर जाए, रफता रफता अमुरा का एक साल का अर्सा ग़ुज़र गया। और जब दरवाज़ा खोल कर देखा गया तो वह पहले से बहतर हालात में थी, और उसकी पेशानी मे एक नूर चमक रहा था। लोगो ने इस्तेजाबाना लहज़े में उससे पुछा कि वे साल भर तक बग़ैर खाने और पानी के क्यों कर जिन्दा रही, उसने कहा कि जब भुख और प्यास से मेरी जान लबों पर आ गयी तो जिन्दगी की कोई उम्मीद बाक़ी न रही तो मैने नूह के परवरदिगार से दुआ की और मुझे बेहतर से बेहतर खाना व पानी मिलने लगा। बा एजाज़ हज़रत नूह अ0 मेरे कमरे में आते थे और मुझे सेरो सेराब करके चले जाते थे, इसलिए मै तनोमन्द और तन्दुरुसत हूँ, यही अमुरा बाद में हज़रत नूह की ज़ोजियत मे दाखिल हुई और उनके बत्न से साम की विलादत अमल में आयी।
बहर हाल अमूरा बिन्ते हमरान के यह मोजिज़ा नुमा वाक़ियात भी क़ाबील की अवलादों पर असर अन्दाज़ न हुए क्योकि यह पूरी क़ौम इब्तेदा ही से आतिश परस्त व बुत परस्त थी, मुस्तजाद यह कि उनसे हज़रत शीस की क़ौम के लोगों ने भी इख्तेलाफ़ कर लिया था और उनके साथ भी इन्सानियत सोज़ हरकतों और बुराईयों की तरफ़ मायल हो गये थे, आतिश परस्ती, बुत परस्ती, ज़िनाकारी, आबरु रेज़ी, शराब खोरी और बद अमली उनका मोकद्दर बन चुकी थी, फिर शैतान भी उनकी बद कारियों में उनका मोईन व मददगार था, इसलिए उस वक्त का पूरा इन्सानी मोअशरा बुराईयों और बद आमालियों के समन्दर में ग़रक़ हो चुका था।
हज़रत नूह 650 साल तक इस क़ौम की इस्लाह के लिए सरगरदां व परेशान रहे और जब ज़मीन पर उस क़ौम के गुनाहों और मासियत का बोझ ज़रुरत से ज़्यादा बढ़ गया और कोई ख़ातिर खवाह नतीजा बर आमद न हो सका तो आप ने ख़ुदा की बारगाह में बद्दुआ के लिए हाथ बलन्द किये और फरयाद की कि परवरदिगार इस क़ौम पर अपना अज़ाब नाज़िल फरमा और उन्हे नेस्त व नाबूद कर दे।
अल्लाह ने नूह अ0 की यह फरयाद सुन ली, लेकिन उसके साथ ही जिबरईल के ज़रिये यह पैग़ाम भी दिया कि ऐ नूह अ0 तुम अपनी क़ौम को मेरे अज़ाब की ख़बर भी देते रहो और उन्हे राहे रास्त पर आने का मौक़ा भी फ़राहम करते रहों। इस पर नूह अ0 ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर कि की फ़िलहाल औरतों को अक़ीमा कर दिया जाय ताकि ताकि वक्ते अज़ाब बच्चे महफ़ूज़ रह सके। खुदा ने नूह अ0 की यह ख्वाहिश पूरी की, औरतों को अक़ीमा कर दिया और उनका बच्चा जनना बन्द हो गया। इसके बाद हुक्में इलाही के मोताबिक़ हज़रत नूह अ0 अपनी क़ौम को अजाबे इलाही के बारे मे मुत्तला करते रहे यहां तक कि एक ज़माना ग़ुज़र गया और ख़ुदा ने उन्हे कश्ती की तैयारी का हु्क्म दिया।
कश्ती की तैयारी
रवायतों में है कि जिबरईल आसमान से कुछ़ दरख्तों के पौधे लेकर आये थे जिन्हे हज़रत नूह ने लगाया, उनकी देख भाल और आबयारी की और जब 40 साल में दरख्त तैयार हुए तो उन्हें काट कर यकजा किया गया और एक सौ बीस बरस में यह अमल तीन बार दोहराया गया कि हज़रत नूह अ0 इन दरख्तों के बीज बोते रहे और तैयारी पर चालीस साल के बाद उन्हें काटते रहे। आखिर कार खुदा का हुक्म हुआ कि ऐ नूह अ0 इन दरख्तों से एक लाख चौबीस हज़ार तख्तें तैयार कराओ।इस हुक्में रब्बानी पर नूह अमल पैरा हुए और तक़रीबन निस्फ सदी की मेहनत और जाफिशानी के बाद जब तखतों की तादाद मोकम्मल हो गयी तो फिर हुक्म हुआ कि इन तख़तों पर तमाम अम्बियाओं के नाम लिख दिये जाए। यह काम जिबरईल की मदद से शुरु हुआ और अम्बियाओं के इस्मा ग्रामी लिखे जाने लगें, लेकिन दुसरे दिन हज़रत नूह अ0 ने देखा कि पहले दिन जो नाम तख्तों पर लिखे जा चुके थें वह महो हो चुके है वह हैरान और परेशान हुए और दुबारा उन नामों को फिर लिखा। तीसरे दीन फिर मिट गये, यह माजरा देख कर हज़रत नूह अ0 सख्त फिक्रमन्द थे। वही आयी ऐ नूह, तुम अम्बियाओं के नामों को लिखने का आग़ाज़ मेरे नाम से करो और मेरे हबीब (मोहम्मद) के नाम पर खत्म करों। चुनांचें इस ग़ैबी तालीम की रौशनी में जनाबें नूह अ0 ने इबतेदा की और जब तमाम अम्बिया के अस्मा तख्तों पर लिख चुके तो आसमान से एक निदा आयी की अब कश्ती का आग़ाज़ करो। कश्ती के तमाम तख्ते जोड़ दिये गये लेकिन आखिर मे चार तख्तों की जगह फिर रह गयी। फिर जनाबे नूह अ0 ने जिबरईल से पुछ़ा की इन चार तख्तों पर क्यो लिखा जाए जिबरईल ने फरमाया कि अम्बिया के इन तमाम अस्मा के साथ साथ जब तक अली अ0, फातिमा अ0, हसन अ0, हुसैन अ0 का अस्माए मुबारक शामिल न होगा, उस वक़्त तक कश्ती की तकमील नामुम्किन है. क्योकि तमाम अस्माए मुबारक में खुदा और उसके हबीब के नामों के अलावा यही नाम ऐसे है जो उस कश्ती को जुमला आफ़ते अर्ज़ी व समावी से महफ़ुज़ रख सकते है और उन्ही नामों की बरकत से पैग़म्बरों को अज़मत बख्शी गयी है। जनाबे नूह अ0 ने बराए एहतराम तख्तों पर उन नामों को भी लिखा और जब चारों तख्ते कश्ती में लग गये तो परवरदिगार ने फरमाया कि ऐ नूह अ0 अब कश्ती मुक़म्मल हो गयी।
अल्लामा मजलिसी का बयान है कि तख्तों की तराशकारी और कश्ती की तैयारी में काफी आदमीयों की ज़रुरत थी,चुनांचे इसके लिए हज़रत नूह अ0 ने खुदा की बारगाह में दुआ की ऐ पालने वाले मुझे कुछ़ मददगार मोहय्या कर, हुक्म हुआ कि ऐ नूह अ0 यह ऐलान करदे की जो शख्स मेरे काम मे मदद करेगा उसके लिए मेरा परवरदिगार, लकड़ी का बूरादा सोने चाँदी में तबदील कर देगा। इस एलान के बाद लालच मे कुछ़ लोग आने लगें और कश्ती खुदा की निगरानी में जिबरईल की हिदायत के मुताबिक तैय्यार होना शुरु हो गयी।
अल्लामा जज़ाएरी बहवलए किताबुल खेराज में तहरीर फरमाते है कि रसूलल्लाह ने फरमायाः
जब हज़रत नूह अ0 कश्ती की तैय्यारी मे मसरुफ हुए तो जिबरईल ने उन्हे कीले मोहय्या की जिनकी तादात एक लाख उनतीस हज़ार थी। हज़रत नूह अ0 जिबरईल की हिदायत के मोताबिक उन कीलों को कश्ती के तख्तों मे पेवस्त करते रहे यहाँ तक की जब आखरी पाँच कीले रह गयी और नूह अ0 ने उनकी तरफ हाथ बढ़ाना चाहा तो वह नूरानी हो गयी और उनसें शुआएं फूटने लगी। यह माजरा देख कर हज़रत नूह अ0 हैरान हुए तो जिबरईल ने फरमाया कि इन कीलों से पंजतन का नाम वाबस्ता है यानी यह कीलें मोहम्मद स0, अली अ0, फातेमा स0,हसन अ0, हुसैन अ0, के नामों से मन्सूब है लिहाज़ा ऐ नूह अ0 पहली कील को कश्ती की दाहिनी तरफ, दुसरी को बाई तरफ, तसरी को दरमियान में, चौथी को बाई तरफ वाली कील के नीचे और पाँचवी को दाहिनी तरफ वाली कील के नीचे ठोंक दो नूह अ0 ने ऐसा ही किया लेकिन जब आखरी कील लगाने लगें तो उनहे इस तख्ते पर खुन की तरी नज़र आई, उन्होने घबरा कर जिबरईल से पुछा कि क्या माजरा हैं जिबरईल ने वाक्या बताया जिस पर वह बहुत रोए और का़तिलाने हुसैन पर लानत की।
मोअर्ररेखीन का बयान है कि इस कश्ती की तैय्यारी मे 250 साल लगे। इस कश्ती की लम्बाई, चौड़ाई, और ऊचाँई में मोहक़्क़ेक़ीन के दरमियान इख्तेलाफ़ है। य़ाक़ूब ने तीन सौ हाथ लम्बाई और पचास हाथ चौड़ाई तहरीर की है, अल्लामा मजलिसी का कहना है कि लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई 250 हाथ और ऊचांई 33 हाथ थी। तबरी ने 1200 गज लम्बाई और 40 गज चौड़ाई बतायी गयी है। लेकिन ये दुरुस्त इसलिए नही है कि इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 का कौल है कि 1200 एक हज़ार दो सौ हाथ, चौड़ाई 800 आठ सौ हाथ और ऊचांई 80 अस्सी हाथ थी।
हज़रत ईसा अ0 के अहद में उनके हुाएरीन ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की कि जो तुफाने नूह का हाल बयान कर सके। जनाबे ईसा ने ज़मीन से एक मुट्ठी ख़ाक उठाई और क़ाब बिन साम बिन नूह की रुह को उसमें समों कर उससे तूफ़ाने नूह का वाक़या दरयाफत किया, हज़रत ईसा ने कशती की लम्बाई पुछ़ी तो उसने बताया कि 1200 हाथ लम्बी थी और उस पर सर पोश भी था ताकि उसमें सवार होने वाला बारिश से महफ़ूज़ रह सकें।
(अजाएबुल क़सस)
तूफ़ान
उलेमा और मोअर्रेखीन ने तूफ़ान के जो वाक़यात बयान किये हैं उनका खुलासा यह है कि हज़रत नूह अ0 की बीवि कूफें में अहानी तन्दूर में रोटियां तैयार कर रही थी जो हज़रत आदम अ0 की बीवी हव्वा की मिलकीयत में था। चंद औरतें भी यहाँ मौजुद थी जो कश्ती और तूफ़ान का तज़किरा कर के हज़रत नूह अ0 का मज़ाक़ उड़ा रही थीं कि अचानक तन्दूर के अन्दर एत ज़ोरदार धमाका हुआ और ज़़मीन के सीने से पानी का धारा उबल पड़ा। जो औरतें मज़ाक़ उड़ा रही थी वह यह कहती हुई भागीं की हमें जिस अज़ाब की ख़बर थी वह नाज़िल हो गया। नूह की बीवी रोटियां छ़ोड़ कर नूह की तरफ भागी और उनसे सारा वाक्या दरयाफ्त किया, वह भी दौड़ते हुए तन्दूर के पास आये और इस ख्याल से की अपने एहलो अयाल को महफ़ूज़ करले, उन्होने तन्दूर का दहाना एक बड़े पत्थर से ढ़क दिया और हुक्में इलाही का इन्तेज़ार करनें लगें। फ़ौरन हुक्म हुआ कि जिस क़दर हो सके अपने एहलो अयाल और बाईमानको लोंगों को लेकर कश्ती में सवार हो जाओ और अपने हमराह जुमला मख़लूकात का एक एक जोड़ा भी लेलो। नूह ने कहा पालने वाले इस उजलत में दुनिया भर के जानवरों और परिन्दों को कैसे जमा करु, इरशाद हुआ कि वह मेरे हुक्म से खुद तुम्हारे पास पहुचं रहे है। चुनांचे दुनिया भर के मख़लूक़ एक हवा के झोकें से हज़रत नूह अ0 तक पहुंच गये। उन्होने सब को इस तरह सवार किया कश्ती के नीचले हिस्से में दरिन्दों को, परिन्दों को और दीगर चौपायों को रखा। दरमियानी हिस्से मे खुर्रद्दनी आशया और दीगर ज़रुरयात का सामान रखा और बालायी हिस्सें में अपने अहलो अयाल और दीगर बाईमान लोगों की एक मुखतसर सी जमाअत को ठहराया। जानवरों मे चीटी, चुंकि सबसे छोटी और उसके पायमाल हो जाने का अन्देशा था, इसलिए उसको बलायी हिस्से में रखा। एक रवायत में है कि कश्ती में जब सब जानवरों और परिन्दों को सवार किया जाने लगा तो तीतर सबसे पहले सवार हुआ। अल्लामा इसमाईल सब ज़ावारी का कहना है कि चुंकि तीतर मोहिब्बें एहलेबैत होता है। इस लिए हज़रत नूह अ0 ने उसे सबसे पहले सवार किया।
क़ुरानी सराहत के साथ जुमला मोअर्रेख़ीन और मोहद्दसीन का बयान है कि जब तन्दूर से पानी उबलना शुरु हुआ तो हजरत नूह ने अपनी ज़ुर्रियत से फ़रमाया कि वक्त बहुत कम है लिहाज़ा तमाम लोग बउजलत कश्ती मे सवार हो जाएं इस हुक्म की तमील नूह के बेटों साम, हाम और याफिस,नीज़, बीवी उमूरा के साथ दीगर ने भी की जो बाईमान और मोमिन थे, लेकिन उनका एक बेटा केनान, जो नाफ़रमान और सरकश था और एक बीवी जिसका नाम दामेला था, इस हुक्म से बरी उज़जिम्मा रहे, उन्होने नाफ़रमानी सरताबी की और कहा कि यह कश्ती आप ही को मुबारक हो, हमारे लिए बुलन्द और बाला पहाड़ो की चोटियां काफी है। शायद यही केनानी सीरत थी जिस पर अमल करते हुए हजरत उमर ने रसूलल्लाह से फरमाया था कि हमारे लिए कुर्आन काफी है।
इमाम जाफ़रे सादिक़ अ0 फ़रमाते है कि नूह के बेटे किनान ने जिस पहाड़ पर भरोसा किया था वह कोहे नजफ था जिसकी चोटियां बड़ी सर बलन्द थीं केनान का भरम खाक मे मिलाने के लिए खुदा वन्दे आलम ने इस पहाड़ को ज़र्रो मे तबदील करके हवा मे उड़ा दिया और इसकी जगह एक दरिया बहने लगा जिसका नाम “नै”हुआ फिर वह दरिया खुश्क हो गया, और किसी शय के खुश्क होजाने को अरबी जबान मे “जफ़” कहते है इसीलिए इस मकाम को “जफ़” कहा जाने लगा। फिर कसरते इस्तेमाल की बिना पर “नैजफ़” रफता रफता नजफ हो गया और यह वही जगह है जहां हज़रत आदम हज़रत अली- ए- मुर्तुज़ा और नूह अ0 की क़ब्रें हैं।
हजरत आदम के बारे मे तारीखें यह बताती है कि वह मक्के में दफन हुए थे, लेकिन तूफान के मौके पर हज़रत नूह ने उनके ताबूत को अपनी कशती मे रख लिया था, और एक रवायत मे यह है कि आप का ताबूत लहद से बुलन्द होकर पानी की सतह पर आ गया था जिसे नूह अ0 ने अपनी कशती मे ले लिया था और तूफान खत्म होने के बाद उन्हे ऩजफ मे दफन कर दिया।
अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अ0 की क़ब्र के बारे मे यह रवायत है कि इसे हज़रत नूह ने बादस्तेखुद तय्यार की थी और सियानी ज़बान मे एक तख्ती लिख कर इसमें रख दी थी कि इस क़ब्र को नूह पैग़म्बर ने आखि़रुज़ जमा के वसी हज़रत अली अ0 के लिए तैयार किया है। चुनाचें हस्नैन अ0 ने अमीरुल मोमेनीन को दफ़न किया।
मुख्तार यह है कि जब सब लोग कश्ती मे इत्मेनान से सवार हो गये तो हज़रत नूह अ0 ने तन्दूर का दहाना खोल दिया और खुद भी दौड़ कर कश्ती में सवार हो गये। तन्दूर के मुंह का खुलना था कि ज़मीन का पानी आसमान से बाते करने लगा और आसमान का पानी जमीन के ग़रक़ाब करने लगा। देखते ही देखते कायनात ठाटें मारते हुए समन्दरो की आमाज गाह नज़र आने लगी। फिर आफताब को गहन लगा और दुनिया की रौशनी पर एक भयानक अन्धेरा मोहित हो गया। हज़रत नूह अ0 इस अन्धेरे को देख कर फिक्रमन्द और परेशान हुए चुनांचे खुदा ने जिबराईल के ज़रिये अपने नबी की खिदमत मे दो मोती भेजे। उनमे एक दिन मे अपनी चमक से कश्ती मे उजाला करता था और दुसरा दिन में, जिससे दिन और रात का फर्क मालूम होता था और नमाज़ का वक्त पता चलता था।
तूफान का आगाज होते ही जनाबे नूह अ0 ने कश्ती के बादबान खोल दिये थे और वह पानी की सतह के साथ साथ ज़मीन छोड़ कर आसमेन की तरफ बुलन्द हो गयी थी कि तुन्दो तेज हवाओ के झोकों ने उसे कुव्वते रफ्तार अता की और वह एक सिम्त चल पड़ी। उसने पहले दो दुनिया का एक चक्कर लगाया फिर पानी से खेलती हुई खानोए काबा के क़रीब आयी और सात मरतबा इसका तवाफ करके जिधर हवा का रुख था उधर रवाना हुई।
रवायतों से ये साबित होता है कि ख़ानए काबा तूफानें नूह में ग़रके आब नही हुआ बल्कि पानी की सतह के साथ साथ वह भी आसमान की तरफ बुलन्द होता रहा, इसलिए इसे बैतुलअतीक़ कहा जाता है।
कश्ती पूरी कूव्वत के साथ रवां दवां थी मौजों के थपड़े बुलन्द होकर गुनाहों की दुनिया और इस आसी मख़लुक की ग़रक़ आबी का तमाशा देख रहे थे कि एक मुक़ाम पर कोई इनसानी सर पानी से उभरा और दर्द नाक चीख के साथ आवाज़ आई कि अब्बा जान मुझे बचा लीजिए, शफक़ते पिदारी ग़ालिब आइ नूह ने बेटे का बाज़ु पकड़े के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि हुक्में इलाही ने वही रोक दिया। नूह अ0 ने फरमाया कि परवरदिगार, तेरा वादा है कि तु मेरे एहल को बचाएगा, हुक्म हुआ की ये तेरे अहल से नही है तेरे अहल से वही है जो इबादत और इताअत ग़ुज़ार है और तेरे साथ कश्ती में है। मालुम हुआ कि ग़ैर सालेह अमाल की बिना पर अवलाद, अहल से खारिज हो जाती है। चुनांचे नूह अ0 का बेटा ड़ुब गया और नूह अ0 हुक्में इलाही के सामने कुछ़ न कर सकें। अलबत्ता मशीअत ने नूह अ0 और उनके बेटे के दरमियान एक मौज हायल कर दी थी ताकि हज़रत नूह अ0 अपने बेटे को डूबते हुए न देख सके।
मोअर्ररेख़ीन का कहना है कि हज़रत नूह की कश्ती करबला की सरज़मीन पर पहूंची तो गिरबाद (भंवर) में फंस गयी और ज़रे ओ ज़बर होने लगी, अन्देशा था की कही ग़रक़ न हो जाए यह कैफियत देख कर हज़रत नूह अ0 घबरा गये और उन्होने खुदा की बारगाह में अर्ज़ किया कि परवरदिगार यह क्या माजरा है. क्या हम सब ग़रक़ हो जाएगें, निदा आयी आले मोहम्मद को अपनी नियात का ज़रिया क़रार दो और उनके वसीले से दुआ मांगो, नूह ने दुआ मागीं और कश्ती पर जब कुछ ठहराव के आसार मुरत्तब हुए तो फरमाया मेरे माबूद ये कौन सी जगह है जहाँ मेरी कश्ती भी हिचकोले खा रही है और मेरा दिल भी ड़ुब रहा है। इरशाद हुआ की ऐ नूह अ0 ये करबला है जहां आले मोहम्मद की कश्ती खुन में ग़रक़ होगी और एक दुसरी रवायत में है जब नूह अ0 की कश्ती क़ैद खानाए शाम के सर के ऊपर से ग़ूजरी तो उस वक्त भी वह मुतज़लज़िल व मुतलातिम हुई और नूह अ0 ने इस मक़ाम के बारे में भी परवरदिगार से पुछा तो उन्हे जवाब मिला कि ये क़ैद खानएं शाम है। जहां ज़ुर्रियते रसूल मोक़य्यद की जाएगी।
अल्लामा मजलिसी अलैहिर रहमा का बयान है कि चलते चलते जनाबे नूह अ0 की कश्ती का सीना जब कोहे जूदी से टकराया तो एक हैबतनाक आवाज़ बलन्द हुई और ये उस वक्त ख़त्म हुई जब जनाबे नूह अ0 ने आले मोहम्मद को सुकून व क़रार का वसीला बनाया।
इन तमाम वाक़्यात का तसल्सुल यह बताता है कि ज़ाते इलाही के अलावा हज़रत नूह अ0 की कश्ती के हक़ीक़ी पासबान व निगेहबान मोहम्मद अ0 अली अ0, फातमा स0, हसन अ0, हुसैन अ0 थे। किसी की मजाल नही कि नुकूसे क़ुदसिया ख़मसा के रौशन चिराग़ो को बुझा सके।
हज़रत नूह अ0 की कश्ती 10 रजबूल मोरज्जब को कूफ़े से रवाना हुई छः माह ज़ेरे आसमान सफर करने के बाद कोहे जूदी पर ठहरी। अहलैबेत की कश्ती भी छः माह ज़मीन पर चलती रही। नूह की कश्ती कूफे से चल कर करबला पर गिरदाब पर मुबतिला हुई और कश्तीये अहलैबेत मदीने से चलकर करबला मे नज़रे तुफाने सितम हुई, शायद इसलिए रसूल ने फरमाया हो कि मेरे अहलैबेत की मिसाल कश्तिये नूह के मानिनद है जो इसमे सवार हुआ वह निजात पा गया, और जिस ने इसे छोड़ दिया वह ग़रक हो गया।
चालीस शबाना रोज़ पानी बरसता रहा और ज़मीन से पानी उबलता रहा। जब कौमे नूह ग़रकाब होकर अपना वजूद खो बैठी तो परवरदिगार ने अजाब का सिलसिला खत्म करके तूफान के इख्तेताम का फैसला किया चुनांचे फिर ज़मीन को हुक्म हुआ कि पानी पीजा, आसमान को फरमान जारी हुआ की वह बारिश रोक दे, बस इस हुक्म के बाद ही पानी घटना शुरु हो गया कश्ती अहिस्ता अहिस्ता आसमान की बुलन्दी से नीचे उतरने लगी। क़ौस व क़जह ने ज़ाहिर होकर जब अम्न का पैग़ाम दिया तो हज़रत नूह अ0 ने सजदाए शुक्र मे अपनी पेशानी रख दी। इस तूफान में ख़ुदा की मखलूकात मे से वही बचे जो कश्ती में सवार थे बाकी सब कुछ खत्म हो गया।
बेशतर मोअर्रेख़ीन का ख्याल है कि कोहे जूदी मूसल मे वाक़ा है लेकिन जदीद माहैरीन आसारे क़दीमा और मोहक़्क़ेक़ीन ने दलीलों की रोशनी मे यह वाज़े किया है कि मशहूर तसव्वुराती परसतान वाला कोहकाफ जो रुस में वाके है उसी का एक बुलन्द तरीन हिस्सा कोहे जूदी कहलाता है और उसकी तफसील मोतादिद कुतुबे तारीख मे भी मज़कूर है।
हज़रत नूह अ0 तक़रीबन दो माह कोहे जूदी पर क़याम फ़रमा रहे और जब ज़मीन का पानी कद्रे ख़ुश्क हुआ तो वह कश्ती से उतरे और उन्हे भी उतारा जो उनके साथ इस कश्ती में सवार हुए थे।
मोअर्रेख़ीन की एक जमाअत का कहना है कि चरिन्द, परिन्दों के अलावा इस कश्ती मे इन्सानों की तादाद 80 थी जो औरतों और द कुलव मर्दों पर मुशतमिल थी लेकिन मेरा तहक़ीक़ी नज़रिया है कि यह तादाद कूल 72 नुफूस पर मुशतमिल थी जिसकी मुनासेबत करबला के उन शहीदों से है जो अपनी मिसाल आप थे मेरे इस नज़रिये को अल्लामा जलालुद्दीन सिवती के इस कौल से भरपूर तक़वियत हासिल होती है जिसमें मौसूफ़ ने इशारा किया है कि कश्तीये नूह अ0 में बेहतरीन मोमिन सवार थे।
हज़रत नूह अ0 से शैतान की गुफ्तगू
मोतबर रवायत मे है कि नूह अ0 जब कश्ती से उतरे और उन्होने इतमेनान की सांस ली तो उन्हें इब्लीस उनकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ और उसने कहा ऐ नूह अ0 आप का मुझ पर बहुत बड़ा एहसान है। नूह अ0 ने फरमाया, आखिर मेरा वह कौन सा अमल है जो तेरे नज़दीक एहसान का सबब बना. इबलिस ने जवाब दिया कि अल्लाह के नबी आप ने खुदा से अपनी क़ौम के लिए बद-दुआ करके तमाम काफिरों को एक साथ अज़ाब की आग में झोंक दिया और वह इस आग में फना होकर सीधे जहन्नुम की आग में चले गये और दर हक़ीक़त मेरा यही दिली मक़सद था। अगर ऐसा न होता तो मुझे ख़ौफ़ लाहक़ रहता कि आप की तबलीग़ कहीं इन पर असर अन्दाज़ न हो जाए और वह कहीं इमान न क़बूल कर लें। ऐ नूह अ0 आप का यह एहसान मुझ पर कम नही है कि आप ने मुझे उऩके बहकाने से निजात दे दी। चुनांचे इस एहसान के बदले में मैं आप को यह बताना चाहता हूँ की वह मवाके कौन कौन से है कि जिन मौक़ो पर मैं इन्सान पर क़ाबू हासिल करके उसे ज़ेर करता हूँ। हज़रत नूह अ0 ने फ़रमाया कि जल्द बता कि तेरी क़ुरबत से मुझे छुटकारा मिलें। इबलिस ने संजीदगी से बताना शुरु किया कि पहला मौक़ा तो वह है कि जब इन्सान गुस्से की हालत में होता हैं, दुसरा मौक़ा तो वह है कि जब दो अजनबी मर्द और औरत तन्हाई मे होते हैं और तीसरा मौक़ा वह है कि जब कोई शख्स दो आदमियों के दरमियान फैसला करता तो में फैसला करने वाले शख्स से इनतेहाई क़रीब होता हूँ। फिर इबलिस ने कहा कि ऐ नूह मेरी दो बातें और सुन लिजिए अव्वल यह कि हसद और ग़ुरुर से हर आदमी को बचना चाहिए क्योंकि इसी हसद और गुरुर की वजह से में मलउन और मतऊन क़रार दिया गया, दूसरे यह कि इन्सान को हिर्स और तमा से दूर रहना चाहियें क्योंकि हिर्स और तमा ही की बदौलत हज़रत आदम जन्नत से निकाले गये। यह कह कर इबलीस हज़रत नूह अ0 की निगाहों से ओझल हो गया।
हज़रत नूह अ0 की रहलत
मुअर्रेख़ीन का कहना है कि जब हज़रत नूह अ0 की रेहलत का वक्त आया, उस आप धूप मे बैठें थे कि मलाकुल मौत का वरुद हुआ आप ने ख़न्दापेशानी से उनका इस्तेक़बाल करते हुए फ़रमाया कि क्या इतनी इजाज़त है कि मै धूप से उठ कर साए मे आये और बैठ जाऊँ. कहा, हा इजाज़त है, चुनांचे जब हज़रत नूह अ0 साए में आये मलकुल मौत ने अपना काम शुरु किया तो आप से पुछा कि ऐ अल्लाह के नबी आप ने बड़ी तवील उम्र गुज़ारी है, अब यह बताइये कि आप की नज़र मे मुद्दते हयात क्या मायने रखती है. फ़रमाया, बस इतनी की धूप से उठ कर साए मे आ गया हूँ। इसके बाद मलकुल मौत ने रुह क़ब्ज़ की और अल्लाह का यह नबी हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो गया।
अबू मोअन्निफ लूत बिन यहया खज़ाई अपनी तहक़ीकी किताब कंजूल निसाब में हज़रत नूह आ0 की रेहलत के बारे में लिखते है कि हज़रत नूह अ0 कही जा रहे थे कि रास्ते में उन्होने देखा कि चार आदमी एक कब्र की तैयारी में मसरुफ़ है, नूह ने उन्से पुछा कि यह क़ब्र किसकी है. जवाब मिला की एक बन्दाए ख़ुदा की है, फरमाया मेरी कोई ख़िदमत दरकार है. कहा कि आप इस क़ब्र मे लेट जाए तो हम इस बन्दाए ख़ुदा के तुलो अर्ज़ का अन्दाज़ा कर ले। हज़रत नूह अ0 इस कब्र में लेट गये और वहीं उन्की रुह क़ब्ज़ कर ली गयी। अबू मोअन्निफ़ कहते है कि वह चारों अशखास, जिबराईल अलैहिस्सलाम है मिकाईल अ0 इसराफ़ील अ0 और इज़राईल अ0 थे।
रवायतो में यह भी है कि हज़रत नूह अ0 को उस मुकाम पर दफ़न किया गया जहाँ उन्होने तूफान के बाद हज़रत आदम के ताबूत को दफ़न किया था। या जहाँ बाद में अमीरुल मोमनीन हज़रत अली अ0 दफ़न हुए।
अल्लामा मजलिसी अलैहिर्रहमा मोतबर रवायतो के हवाले से रक़म तराज़ है कि हज़रत अली अ0 ने वक़्ते शहादत अपने फ़रज़न्दों इमामे हसन अ0 और इमामें हुसैन अ0 से यह फरमाया था कि मेरे जनाज़े के अगली सिम्त तुम लोग हाथ न लगाना जिस तरफ भी वह जाए उसे जाने देना और जहां ठहर जाए वहां रखकर ज़मीन से मिट्टी हटाना एक क़ब्र बरामद होगी उसमें मेरे जनाज़े को दफ़न कर देना। चुनांचे अमीरुल मोमनीन का जनाज़ा चलते चलते एक मुकाम पर रुक गया और वहा की मिट्टी हटायी गयी तो एक क़ब्र बरामद हुई जिसके अन्दर एक क़तबा भी रखा हुआ था और उसमें सरबानी ज़बान में तेहरीर था कि इस कब्र को हज़रत नूह अ0 ने वसी ए मुस्तेफा हज़रत अली अ0 इब्ने अबुतालिब के लिए तूफाने नूह अ0 से सात सौ साल पहले तैयार किया है। मुस्तानद रवायतों से यह साबित है कि हज़रत अली अ0 नज़्फ़े अशरफ में दफ़न है और आप के सरे मुबारक से मुलहक़ हज़रत नूह अ0 और हज़रत आदम अ0 की क़ब्रे हैं.
इमामे जाफ़रे सादिक़ अ0 फ़रमाते है कि हज़रत नूह आ0 850 बरस की उम्र में मबऊस हुए, 650 साल उन्होने कारे तबलीग़ अन्जाम दिया, 200 बरस कश्ती तैयार की और तूफान के बाद 500 बक़िया हयात रहे। इस तरह हज़रत नूह अ0 की उम्र 2500 बरस की हुई है।
हज़रत जाफ़रे सादिक़ अ0 से यह रवायत भी है कि खुदा ने हज़रत नूह अ0 को बज़रियाए वही इस अम्र से मुत्तला फरमां दिया था कि आप के बाद ज़ालिम व जाबिर सलातीन बर सरे इक़्तेदार आएगें और जब्र व तशद्दुद और ज़ुल्म व जौर का ग़लबा होगा लिहाज़ा आप अपने फ़रज़न्द साम को जब अपना वसी मुक़र्रर करें तो यह ताकीद भी फरमा दें कि जब तक तुम में हूद नामी एक शक्स ज़ाहिर न हो सबरो जब्त के साथ ज़िन्दगी बसर करना चुनांचे हज़रत नूह अ0 ने उस अमरे इलाही से अपने बेटे साम को मुत्तला किया और साम ने अपनी क़ौम को बाख़बर किया।
तहक़ीकात व इन्कशाफ़ात
पाकिस्तानी मोहक्किफ हकीम सैय्यद महमूद गिलानी अपने तहक़ीक़ी मक़ाले में तहरीर फरमाते है कि 1651 ईसवी की जुलाई में रुसी महरीन आसार क़दीमा की एक टोली बादी ए क़ाफ़ में देखभाल कर रही थीं और ग़ालेबन किसी नई कान की तलाश में मसरुफ़ थी। कि एक मुक़ाम पर उसे लकड़ी के कुछ बोसिदा टुकड़े नज़र आये ग्रुप आफिसर ने उस जगह को कुरेदना शुरु किया तो मालूम हुआ कि बहुत सी लकड़ीया संगलाख ज़मीन में दबी हुई हैं। माहरीन ने चन्द सतही अलामत से अन्दाजडा कि यह लकड़ीया कोई ग़ैर मामूली और पोशीदा राज़ अपनें अन्दर रखती है। उन्होने उस मक़ाम की खुदाई निहायत तवज्जो से कराई, बहुत सी लकड़ीया और दीगर अशिया बरामद हुई, लकड़ी की एक मुस्तातील तावीज़ नुमा तख्ती भी बोसीदगी और कुहन्गी इख्तेयार कर चुकी है लेकिन चौदाह इन्च तूल और दस इन्च अर्ज़ रखनें वाली यह तख़्ती इक़तादी तग़ैसात से महफ़ुज़ है। 1652 ईसवी के आख़िर मे माहेरीन ने अपनी तहक़ीकात को लिबासे तकमील पहनाकर यह इन्केशाफ़ किया कि मज़कुरा लकड़ी हज़रत नूह अ0 की उस मारुफ़ कश्ती से ताल्लुक़ रखती है। जो कोह क़ाफ़ की एक चोटी (जूदी) पर आकर ठहरी थी जिस पर किसी कदीम ज़बान मे चन्द हुरुफ कन्दा है उसी में लगी थी।
जब यह तहक़ीक हो चुकी की काफ़ से बरामद होने वाली लकड़ीयां वाक़ई कश्तीए नूह अ0 की है तो अब यह अम्र तशना रह गया कि पुरअस्रार चूबी तख्ती और उसपर लिखे हुए हुरुफ की हक़ीक़त क्या है।
रुस की सोतियत हुकूमत के ज़ेरे एहतेमाम इसके रिसंर्चिग डिपार्टमेन्ट नें मज़कूरा कशती की तहकीक के लिये माहेरीने आसारे क़दीमा का एक बोर्ड क़ायम किया, जिसने 27 फरवरी 1653 से अपना काम शुरु कर दिया इस बोर्ड के अराकीन मुन्दरजाज़ील थें।
1 सौले नौफ प्रोफेसर शोबाए लिसानियात मासको युनिवर्सिटी (2) ईफहाने खीनू, माहिरे सनेसे सने क़दीमा, लूलूहान कालेज चाइना (3) मीशाइन, लव फ़ाजिग आफीसर आला आसारे क़दीमा, (4) तानमोल गौरफ, उसतादे लिसानियात कैफरद कालेज (5) डीराकीन, माहिर आसारे क़दीमा लाएनन इन्सिटयूट (6) एम एहमद कोलार्ड, नाज़िम जिटकोमन रिसर्च एसोसिएशन (7) मेजर कोलोफ, निगरा दफतर तहक़ीक़ात मोताल्लिका एसटालिन कालेज।
इन, सातों माहेरीन ने अपनी तहक़ीक़ात पर पूरे आठ महीने सर्फ करनें के बाद पुरइसरार तख्ती से मोताल्लिक यह इनकेशाफ किया कि जिस लकड़ी सें नूह अ0 की कश्ती तैयार हुई थी, उस लकड़ी से यह तख्ती भी बनाई गई है और नूह अ0 ने इसको अपनी कश्ती मे तबर्रुक और तक़द्दुस के तौर पर हुसूले अम्नो आफियत और अज़दियाद बरकत व रहमत के लिए लगाया था।
इस तख्ती पर कन्दा हूरुफ़ को रुसी माहेरीन ने आठ माह की मग़जमारी और दिमागी काविशो से बमुशकिल तमाम पढ़ा और रुसी ज़बान में इसका तर्जुमा किया। फिर मिस्टर एन एफ माकिस माहिरे अलसने क़दीमा बरतानिया (मानचिस्टर इंग्लैड़) ने इस रुसी ज़बान के तर्जुमे को अंग्रेज़ी ज़बान में मुन्तकिल किया और उसका उर्दू तर्जुमा यूं है कि (ऐ मेरे खुदा, मेरे मददगार अपने मक़द्दस नुफूस के तुफैल में अपने रहमो करम से मेरा हाथ पकड़, मोहम्मद अ0 अली अ0, फातेमा अ0 हसन अ0 हुसैन अ0 अज़ीम तरीन और वाजिबुल एहतेराम है तमाम दुनिया इन्ही के लिए क़ायम की गयी है इन नामों की बदौलत मेरी मदद कर तू सिराते मुस्तक़ीम की तरफ रहबरी करनें वाला है।)
गैलानी मौसूफ़ लिखते है कि जिस वक़्त यह इबारत मन्ज़रे आम पर आयी तो मोलाहदा ज़नादेका और कुफ्फारों मुन्केरीन की आँखें खुल गयी और उन्हे शदीद हैरत मे मुब्तेला इस बात ने किया कि कश्ती की तमाम लकड़िया तो खुर्दा और बोसीदा हालत में बरामद हुई मगर नुफ़ूसे खमसा के अस्माए गिरामी वाली यह तख्ती हज़ारहा साल गुज़रने पर भी मुकम्मिल महफ़ूज़ रही और तग़य्यूरात उसको कोई गज़न्द न पहुंचा सके। यह तख्ती (आज भी) रुस के मरकज़े आसारो तहक़ीकात (मासको) में हिफ़ाज़त से रखी हुई है।
हज़रत हूद अ0
हज़रत हूद अ0 हज़रत नूह अ0 की सातवीं पुश्त में मुतावल्लिद हुए। इनका शजराए नसब हूद बिने रियाह बिने जादब बिने आद बिने साम बिनें नूह अ0 पर तमाम होता है। तबरी ने वालिद का नाम शालिख़ बताया है, मुम्किन है कि अब्दुल्लाह का दुसरा नाम शालिख़ रहा हो।
जनाबे हूद अ0 खसलत और आदत और शक्ल और सूरत मे अपने जद हज़रत आदम से बहुत मुशाबेह थे। यह नूरानी चेहरा, खूबसूरत ख़दोखाल सिड़ौल जिस्म और बलन्द और बाला क़दोक़ामत के मलिक थे, दाढ़ी घनी और दराज़ थी।
ख़ुदा ने उन्हे क़ौमे आद (जो मुल्के यमन और किजडरे मौत में इलाक़ाए एहकडाफ की तरफ बकसरत आबाद थी) की हिदा.त के लिए बी की हैसियत से दुनिया में भेजा।
इस क़ौम के लोग इन्तेहाई तनों मन्द जसीम, ताकतवर, सरकश मग़रुर बदतीनत, बदकिरदार और माफरमान थे। बुत परस्ती और बातिल परस्ती उनका बुनियादी अक़ीदा था और उसी को वह दीन, ईमान और मज़हब समझते थे। उनके क़द चालीस चालीस पचास पचास गज़ के होते थे और उनके सीने दस दस गज चौड़े होते ते यह ज़मीन पर ख़ड़े होकर ऊंचे ऊंचे पहाड़ो की बड़ी बड़ी चट्टानों को अपनी जगह से खिसका देते थे। यह लोग बड़ी बड़ी ज़मीनो के मालिक थे। इनका पेशा ज़िराअत और बाग़बानी था। इनके बाग़ात इन्तेहाई खुबसूरत और सरसब्ज़ और शादाब होते थे और उसमे खजूर व दीगर मेवें जात की पैदावार बकसरत होती थी। उनका रहन सहन शाहाना था। उनके मकान पत्थरों के बने हुए सेह मन्ज़िला और चहार मन्ज़िला होते थे।
हज़रत हूद अ0 ने जब अपनी उम्र की चालीसवीं मन्ज़िल में क़दम रखा तो खुदा ने उनहे, इसी गुमराह व बरगशता क़ौम पर मबूस किया और उसके साथ ही हज़रत हूद अ0 ने अपनी मन्सबी ज़िम्मेदारीयों के तहत कारे तबलीग़ की इब्तेदा की, उन्होने कौमे आद के लोगो को समझाया कि तुम लोग उस खुदा की इबादत करो जिसने तुम्हें पैदा किया है और जिसकी तरफ तुम्हें पलट के जाना है। उस खुदा की इताअत करो जो तुमहारी कामरानियों को ज़रिया और आरजुओं की मन्ज़िल है, उस खुदा के सामनें सरे जियाज़ खम करो जो तुम्हारे मालो दौलत मे इजाफा करने वाला है। ऐसे खुदाओं की परस्तिश से क्या फ़ायदा, जो न तुम्हें कुछ दे सकते है और न तुम्हारे किसी काम आ सकते है।
यह पहला मौक़ा था कि अपने ख़ुदाओं के बारे मे हज़रत हुद की ज़बान से खिलाफे उम्मीद इस किस्म के कलमात सुन कर बुत परस्तों के बातिल अक़ीदो पर एक कारी ज़र्ब लगी जिससे ख़िजिल होकर उन लोगों ने जनाबे हूद अ0 का मज़ाक उड़ाया और उन्हे बुरा भला कहा।
इसके बाद एक दूसरे मौक़े पर जब कौमे आद के बहुत से सरदार एक जगह इकठ्ठा थे तो हज़रत हूद आ0 भी वहां जा पहुंचे और उन्हें दावते हक़ दी सरदारों ने कहा ऐ हूद अ0 पहले तुम अच्छे भले थे अब तुम्हे यह क्या हो गया है, जनाबे हूद अ0 ने फ़रमाया अल्लाह ने मुझें मन्सबे नबूवत पर फायज़ करके तुम्हारी इस्लाह के लिए मुक़र्रर किया है। बस यह सुन्ना था कि वह लोग उन पर झपट पडे उन्हे जदो कोब किया और इस बेदर्दी से गला घोटा कि जनाबे हूद अ0 बेहोश हो गये। एक दिन एक रात की मुसल्सल बेहोशी के बाद जब उन्हे होश आया तो उन्होने खुदा की बारगाह में फरयाद की और कहा। पालने वाले तूने देखा कि इन बदबख्तों ने मेरे साथ क्या ज़ुल्म किया है। हुक्म हुआ कि ऐ हूद अ0 तुम मलूल और रंजीदा न हो और मोहकम इरादों के साथ इसी तरह कारे तबलीग़ जारी रखो आज से मैने तुम्हें वह रोब, वह दबदबा,वह क़ुव्वत और वह हैबत अता करदी है कि आइन्दा यह लोग तुम्हारी तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत भी नही कर सकतें। हज़रत हूद अ0 को अपने खुदा की इन बातों पर पुरा पुरा एतमाद और भरोसा था इसलिए वह फिर बेखौफ़ व ख़तर उन काफ़िरों के दरमियान गये और उन्हों राहे हक़ की दावत दी। लोगों ने कहा, ऐ हूद अ0 पहली मार में तुम बच गये लेकिन इस बार तु्म्हे ख़त्म करके ही दम लेगें, वरना अपनी इस तबलीग़ से बाज़ आ जाओं। हूद अ0 ने फरमाया कि यह तुम्हारे हक़ में बेहत्तर होगा कि तुम अपने साब़िक़ा गुनाहों की तौबा कर लो और सीधे रास्ते पर आ जाओ वरना मेरा खुदा जहां रहीम व करीम है वहां क़हार व जब्बार भी है। हज़रत हूद अ0 की इस गुफ़त्गू में वह एतमिनान व दबदबा था कि मुलहदीन के दिलों में वह खोफ पैदा उआ कि वह वहां से भाग खड़े हुए और अपनी क़ौम के सरदारों से मारा माजरा बयान किया, चुनांचे एक दिन पूरी क़ौम एक मरकज पर जमा हुई और यह तय पाया कि सब लोग एक साथ मिल कर हूद अ0 को क़त्ल करदें चुनांचे इस इरादे से वह लोग हूद अ0 के पास पहुंचे और चाहा कि हमला करके उन्हे क़त्ल कर दें, हज़रत हूद अ0 ने हालात की नज़ाकत को महसूस किया और एक ऐसा नारा बलन्द किया कि सब के सब दहशत ज़दा होकर मुंह के बल ज़मीन पर गिर पड़े।
इन वाक़ियात को मोतबर रावियों के ज़रिये बहुत से उलेमा और मोअर्रेखीन ने लिखा है। बहरहाल हज़रत हूद अ0 की तबलीग़ इधर जारी रही और उधर उसके रददे अम्ल में क़ौमे आद के लोगों की सरकशी और नाफ़रमानी बढ़ती गयी चंन्द अफराद के अलावा किसी ने इमान कु़बूल नही किया हांलांकि जनाबे हूद अ0 इस कौम को हर मन्जिल में मोहकम दलीलों के ज़रिए इस कौम के लोगों को बराबर शिकस्त देते रहें और शिकस्त के नतीजे में यह लोग हज़रत हूद अ0 को साहिर जादुगर और न जाने क्या क्या कहते रहें।
जह हज़रत हूद अ0 ने 760 साल तक तवील तबलीग़ी कोशिशों के ज़रिये हुज्जत तमाम कर ली और पानी सर से ऊंचा हो गया तो आपने परवरदीगार से इनपर अज़ाब नाज़िल करने की इस्तेदुआ की।
चुनांचे सबसे पहले ख़ुदा ने इस कौम के लोगों पर चीटियों तो मुसल्लत किया जो इनकी नाक व कान के ज़रिये हलक़ के अन्दर उतर जाती थी और काट काट कर इनहें मौत के हमकिनार कर देती थीं। आखिर कार तंग आ कर इन लोगों ने शहरों की सुकूनत तर्क कर दी और अपनी जान बचाने की गरज़ से माल व पता छोड़ कर दुसरे इलाकों में चले गयें। इस आफत नागहानी के बाद भी जब लोगों की आँखे न खुल सकीं और वह वदस्तूर अपने मसलक पर अड़े रहे तो खुदा ने इन्हें कहत मे मुबतेला किया क्योंकि इनकी ज़िन्दगीयों और ऐश, कोशिशयों का सारा दामोदार ज़राअत पर था। कहत ने जब इन्हे फाका कशी के दहाने पर ला कर खड़ा कर दिया और वह भुखों मरने लगे तो क़ौम के सरदारों ने एक वफ़द मर्सद बिन साद बिन अफीर की क़यादत में हज़रत हूर के पास रवाना किया कि वह इनसे मिलकर बारिश के लिए दुआ का तालिब हों चुनांचे वफ़द हज़रत हूर की खिदमत में हाज़िर हुआ और इन्की गुफ्तगू से मुतास्सिर हो कर पहले अल्लाह की वहदानियत और हूद की नबूवत पर ईमान लाया फिर उसने कहा कि ऐ अल्लाह के नबी आप ख़़ुदा से दुआ कीजिए कि वह हमें इस क़हत से निजात से निजात दे।
हज़रते हूद ने बारिश के लिए दुआ की, और फरंमाया कि परवरदिगार इस गुमराह कौम को एक मौक़ा और दे जवाब मिला कि एै हूद इनसे कह दो कि बस यह आख़री मौक़ा और हैं। ग़रज़ यह कि हज़रत हूद ने इनको हुकमें इलाही से आगाह किया और यह मुजदा सुनाया कि जाओ तुम्हारे शहरों में बारिश होगी। चुनांचे जब वफ़द वापस गया तो उनके शहरों में ऐसी बारिश हुई कि ख़ुश्क ज़मीनें सेराब हो गयीं और सुखी हुई खेती फिर लहलहाने लगी। बाग़ात सरसब्ज़ो शादाब हो गये। लेकिन इस एहसान फरामोश क़ौम के दिल में न हज़रते हूद के लिए कोई जज़बा पैदा हुआ और न उनके तरज़े अमल में कोई तबदीली वाके हुई। बल्कि खुदाए वहदहू लाशरीक के मुक़बिलमें उसकी नाफरमानियां जुरअतें जसारतें और हिम्मतें कुछ और बढ़ गयी लेकिन परवरदिगार इन्हे मोहलत देता रहा और जब यह क़ौम किसी सूरत से राहे रास्त पर न आयी तो मशीयते इलाही को जलाल आ गया और हज़रते हूद को यह हुक्म हुआ कि इन्हें मुकम्मल आज़ाब की खबर दे दो।
इस आख़री अज़ाब की इब्तेदा यूं हुई कि ख़ुदा वन्दे आलम ने इस क़ौम के चारो तरफ रेत व बालू के बुलंद व बाला दीवारें खड़ी करके इसके अंदर इनहें महसुर कर दिया ताकि कोई शख्स राहे फरार इकतेयार न कर सके। अल्लामा मजलिसी अर0 तहरीर फरमाते हैं कि इस क़ौम के अफराद रेत व बालू के टीलों को हटाते थे मगर वह फिर इनके गिर्द और ऊंचे हो जाते थे और इन टीलों से यह आवाज़े आती थीं ऐ हूद तुम फिक्र न करो यह टीले इनके लिए अज़ाब बन जायेंगे। फिर खुदा ने हवाओ को हुक्म दिया कि वह इस कौम का काम तमाम कर दें। चुनांचे ऐसी तेज़ व तुन्द हवायें चलीं कि जिसने दरख्तों को जड़ो से उखाड़ फेका, पहाड़ो से बड़े बड़े पत्थर आसमान की तरफ बलन्द होते और ज़मीन के सीनों में धंस जाते थें। लेकिन चुंकि हवा इन्तेहाई तेज़ी व शिद्दत के साथ ज़मीन के अन्दर से निकल रही थी। लिहाज़ा वह इन पत्थरों को गेंद की तरह फिर आसमान की तरफ उछाल देती थी। मोअर्रेखीन का बयान है कि यह हवा जो अज़ाब की शक़्ल में क़ौमे आद पर मुसल्लत हुई थी एक हफता रात व दिन चलती रही। यहां तक की पुरी क़ौम नेस्तोनाबुद हो गयी। इनके बाग़ात व मकानात सब खा़क में मिल गये। और पत्थरों के बड़े बड़े किले रेत की शक्ल में तब्दील हो गये बाज़ रवायतों में है कि यह हवा क़ौमें आद के लोगों को ज़मीन व आसमान के बीच बुलन्द करती थी और ऊपर से इस तरह पटकती थी कि इनके जिस्मों की हड्डियां रेज़ा रेज़ा हो जाती थी।
अल्लामा मजलिसी का कहना है कि ज़मीन अहक़ाफ में अब भी क़ौमे आद के मकानात और इनकी हड्डियों के ढांचे रेज़ो की शक्ल में मौजूद हैं। इस हवा का नाम बादे अक़ीम है जो इन्तेहाई तेज़ व तुन्द होती है और जब यह चलती है तो तमाम नबातात को जला कर खाक कर देती है। क़ौमे आद को जडातुल आमाद भी कहा जोता है। क्योंकि इन्होंने पहाड़ो से बड़े बड़े सुतून तराश कर अपने बुलंद मकानों में लगाये थे। इस क़ौम की आबादी वाले इलाकों को एहकाफ़ इसलिए कहा जाता है कि यह ख़ित्ता रेगिस्तानी था और अहक़ाफ के माने रेत हैं और यह अज़ाब क़ौमे आद पर चुंकि चहार शम्बा को नाज़िल हुआ था। इसलिए ख़ुदा ने इसको रोज़े नहस मुसतमिर किया है। जब मोतसिम का दौर आया तो उसने इस एलाक़े के एक मक़ाम बर्तानिया में एक कुंआ खुदवाया मगर 300 गज़ खुदवाई के बावजुद इसमें पानी न निकला आखिर तंग आकर इसने खुदाई बन्द कर दी। और अपना इरादा तर्क कर दिया फिर जब मुतावक्किल का ज़माना आया तो इसने इस कुऐं की अस्सरे नौ ख़ुदाई शुरु करायी।
चुनांचे ख़ुदाई करते करते एक पत्थर की चट्टान नज़र आयी और जब इसको तोड़ा गया तो इसके अंदर से हवाएं सर्द का झोंका बाहर आया जिसने तमाम लोगों को हलाक कर दिया और जितने भी इस कुऐं के आस पास थे सब के सब मौत के घाट उतर गये। जब यह ख़बर मुतवक्किल को मालूम हुई तो वह सख्त हैरान हुआ और उसने तमाम उलमा को जमा करके उइनसे इसके बारे में दरियाफत किया लेकिन कोई कुछ न बता सका। आखिर कार इमामे अली नक़ी को सारे हालात से आगाह किया तो आपने तहरीर फरमाया कि यह जगह कौमे आद के शहरों की है। जो हवाएं तुन्द से हलाक हो गये इसलिए कि जब खुदा ने हज़रत हूद अ0 को उनकी तरफ भेजा तो उन्होने तकज़ीब की और ख़ुदा की नाफरमानी करते रहे तो खुदा ने उन पर हवा का अज़ाब मुसल्लत किया जिसने उनकी पूरी क़ौम को हलाक कर दिया। हज़रते हूद अ0 के साथ वही लोग इस अजाब से महफूज़ रहे जो ईमान कुबूल कर चुके थे।
रवायतो से यह पता भी चलता है कि वक्ते अज़ाब हज़रते हूद ने परवरदिगार के हु्क्म से एक बहूत बड़ा हेसार खैंचा था और जो लोग अल्लाह की वहदानियत पर ईमान ला चुके थे इन्हे लेकर वह इसी हिसार में दाखिल हो गये थे। हज़रते इमामे अली अ0 का कौल है कि हवा की पाँच किस्में है जिनमें से एक का नाम बादे अक़ीम और मे इस की शर से ख़ुदा की पनाह तलब करता हुँ तारीखों की किताबों से यह पता तो चलता है कि हज़रते हूद अ0 ने 760 सालों तक कारे तब्लीग़ अन्जाम दिया लेकिन यह पता नही चलता कि आपकी वफात के वक्त आप की मजमुई उम्र क्या थी और मुफस्सेरिन व मोअर्रेखीन के दरमियान इस अम्र मे इखतेलाफ है कि आप कहा दफन हुए बाज़ का बयान है कि हज़रे मौत के किसी ग़ार में है। बाज़ का कहना है कि मक्के में हजरे इसमाइल के आस पास मदफुन है।
हज़रत इमामे हसन अ0 का क़ौल है कि मेरे वालिद हज़रत अली अ0 ने बादे अज्ज़रबत मुझसे फरमाया था कि मुझको नजफ में मेरे भाईयों हूद और सालेह के दरमियान दफन करना।
इरमें ज़ातुल - एमाद की हक़ीक़त
शेख तुसी और इब्ने बाबुबिया का बयान है कि एक शख्स अब्दुल्ला बिन कलाबा का उँट खो गया था। वह इस अदन के सहराओं और बयाबानो मे तलाश करता फिर रहा था कि अचानक उसकी नज़र एक शहर पर पड़ी जो खुबसुरती में अपनी मिसाल आप था। इस शहर के चारो तरफ एक फसील थी जो बेश कीमत जवाहेरात से मुज़ैयन थी। इस फसील के अन्दर बहुत से कस्र बने थे और उन कस्रो पर उंचे उंच परचम लहरा रहे थे।
अब्दुल्ला बिन क़लाबा शहर के क़रीब आया और फ़सील के साये में मुक़ीम हो गया। वह तीन रोज़ तक वहां क़याम पज़ीर रहा लेकिन उसने न तो किसी को शहर के अन्दर जाते देखा और न शहर के बाहर आते देखा। चुनांचे उसको यह जुस्तु जु हुई कि आखिर यह माजरा क्या है और इस शहर की खामोशी का राज़ क्या है। इसने शहर मे दाखिल होने का इरादा किया और तलवार नियाम से बाहर निकालकर फ़सील के किनारे किनारे एक तरफ चल पड़ा। थोड़ी दुर चलने के बाद इसे दो बुलन्द क़ामत दरवाज़े नज़र आये जो इन्तेहायी खुश्बुदार लकड़ी से बने थे। और इन्हे ज़र्द और सुर्ख रंग के याकूत से मुरस्सकिया गया था। अब्दुल्ला यह हाल देखकर हैरत व इस्तेजाब के आलम में कुछ देर चुप चाप खड़ा रहा। फिर एक दरवाज़ा खोलकर अन्दर दाखिल हो गया था। यह देख कर सख्त तअज्जुब में मुब्तेला हुआ वहां जितनी भी इमारतें है सब की सब याकूत के सुतूनों पर क़ायम है और हर इमारत पर एक बाला खाना है। जो तेला व नुक़रा मखारीद याकूत व ज़मर्रुद से बनाया गया है और इमारतका फर्श मुश्कओ अम्बर से बना है लेकिन किसी मतानफ़िस का दूर दूर तक पता नहीं है। वह यह वीरानी देख कर कुछ खौफ़ ज़दा हुआ फिर इसने इन इमारतों के अतराफ में नज़र डाली बहुत से चमन व खुबसुरत बाग़ात दिखायी दिये। जो फूलों और फलों से लदे हुए थे और जां बजां दूध की तरह साफ व शफ्फाफ नहरे जारी थी। ग़र्ज़ कि मोतियों और ज़ाफरान व मुशको अम्बर से अपना दामन भरा और खामोशी से बाहर आ गया। दुसरे रोज़ वह अपने नाक़े पर सवार हुआ और जिधर से आया था। उधर रवाना हो गया।
जब अब्दुल्ला अपने घर पर पहुंचा तो उसने सारा माजरा लोगों से बयान किया जिसे सुनकर लोग हैरत ज़दा हो गयें। रफता रफता यह ख़बर माविया तक पहुंची। तो इसने हाकिमे सनआ के पास अपना एक क़ासिद रवाना किया और अब्दुल्ला बिन क़लाबा को तलब किया जब वह आया तो माविया ने ख़लवत में इससे सारा हाल मालूम किया अब्दुल्ला ने जो कुछ अपनी आंखो से देखा था बयान कर दिया। फिर माविया ने क़ाबुल अहवार नामी एक शख्स को तलब किया जो साबेका बातों का इल्म रखता था। जब का़ब आया तो माविया ने इससे पूछा कि क्या तुमने ऐसे किसी शहर का हाल किसी से सुना या किताबों में पढ़ा है जो सोने और चाँदी और जवाहरात से बना हो और इसकी इमारतें याकूत व ज़र्मरुद के सुतूनों पर क़ायम हो और इसके अन्दर दूध की तरह साफ व शफ़फ़ाफ नहरे जारी हों। काब नें कहा हां इस शहर को शद्दाद पिसरे आद ने बनाया था और इरमें ज़ातुल माद यही है जिसका तज़केरा ख़ुदा ने कुराने मजीद में किया है और इसके वस्फ़ में कहा है कि लम युख़लोको मिसलोहा फिल बेलाद यानी इस शहर का मिस्ल और कोई शहर नही है। माविया ने कहा कि इसका मुफस्सल हाल बयान करो। इसने कहा कि आद क़ौमे हूद से था। इसके दो बेटे थे। एक का नाम शदीद था और दुसरे का नाम शद्दाद था जब आद ने रेहलत की तो शद्दाद बादशाह हुआ और ख़ुदा ने सल्तनते अज़ीम इसको अता की।
शद्दाद को किताबों के मुतालेआ का बेहद शौक था चुनानंचे जब इसने बहिश्त का ज़िक्र पढ़ा और इसकी इमारतों के कसरों के हालात से आगाह हुआ तो इसने हुक्म दिया कि खुदा की बेहिश्त के मुका़बले में वैसी ही बेहिश्त मेरे लिये दुनिया में तैयार की जाये। सौ आदमी इसके बनाने पर मामूर हुए और हर आदमी को उसके हज़ार मद्दगार मोहय्या किये गये। लोगों ने कहा कि इतना सोना चांदी और जवाहेरात कहां से मोहय्या होगा। शद्दाद ने कहा कि क्या तुम नहीं जाते कि सारी दुनिया मेरे कब्ज़े में है। कहा जानते हैं। शद्दाद ने कहा कि सोने चांदी और जवाहेरात कि कानों में अपने आदमी मुक़र्रर करो जो इन आशिया की फ़राहमी करें। इसने इन तमाम सलातीने ममलेकत के नाम फरमान जारी किये दस बरस में सोना, चांदी और जवाहेरात जमा किये गये। और तीन सौ बरस में जन्नते शद्दाद बन कर तैयार हुयी।
जब शद्दाद को यह इत्तेला दी गयी कि तेरे हुक्म के मुताबिक़ बेहिश्ते अर्ज़ी बनकर तैयार हो चुका है। तो शद्दाद अपने लशकर और अहले ममलेकत के हमराह इसका मोआयना करने की गरज़ से रवाना हुआ और जब वह बेहिश्त के क़रीब पहुंचा तो हक्क़े तआला ने इस पर और इसके तमाम हमराहियों पर एक ऐसी सदा आसमान से नाज़िल की कि वह सब के सब हलाक हो गये। न शद्दाद खुद इस बेहिश्त में दाखिल हो सका न ही उसके साथियों को इसमें दाखिला होना नसीब हुआ। जिसका नाम इरमें जातुल आमाद है। अल्लामा मजलिसी का बयान है कि इस वक्त शद्दाद की उम्र नौ सौ साल की थी।
हालाते हज़रते सालेह अ0
हज़रते सालेह बिन अबीद बिन आसिफ बिन रासिख़ बिन अबीद बिन आमिर बिन समूद निन इरम बिन साम बिन नूह अ0 हज़रते नूह की दसवीं पुश्त में मुतवल्लिद हुए। जब तक आप हयात रहे अपने लिए कोई घर नहीं बनवाया। आप का हुलिया मुख़तलिफ़ किताबों में अलग-अलग अन्दाज़ में मोअर्रेख़ीन ने तहरीर किया है। जिसकी मजमुयी सूरत यह है कि आप का क़द लम्बा चेहरा बेज़ावी पेशानी कुशादा आंखें बड़ी जिस्म फ़रबे और रंग गोरा था। और आप हमेशां बरहेना पैर रहते थे।
आप बचपन ही से बड़े ज़ाहिद व मुत्तकी व परहेज़गार और इबादत गुज़ार थे परवरदिगार ने सोलह बरस की उम्र में सन्सबे नबूवत पर फाएज़ कर दिया और उसी वक्त से आप कारे तबलीग़ की अन्जाम देही में मसरुफ़ हो गये। जिसका सिलसिला 120 साल तक जारी रहा। खुदा ने आपको क़ौमें समूद पर मबऊस फरमाया था। जो वादियेक़रा से तेरह किलो मीटर की दूरी पर हजर नामी एक मक़ाम पर आबाद थीं और इसका हल्क़ए मस्कन न सिर्फ हजर बल्कि दूर दराज़ तक फैला हुआ था।
यह क़ौम बुत परस्त थी और 70 बुतों को अपना ख़ुदा तस्लीम करती थी। जब सालेह इस क़ौम को मुद्दतों बुतपरस्ती से मना करते रहे और समझाते रहे कि तुम लोग उस खुदा की इबादत करो जो याफ्ता व लाशरीक है। और जिसके सिवा कोई माबूद नहीं है। लेकिन जब यह लोग न मानें और हज़रते सालेह इनके जाहिलाना अफ़आल से आजिज़ आ गये तो उन्होंने पूरी क़ौम के सरदारों को जमा किया और फरमाया कि मैं तुम लोगों जिहालत से तंग आ चुका हूं। अब सिर्फ यह सूरत रह गयी है कि हमारे तुम्हारे दरमियान अमली मुनाज़ेरा हो। यानी तुम लोग हमसे सवाल करो और इस सवाल को हम अपने ख़ुदा से पूरा करा दें तो तुम लोग ईमान ले आओ या फिर हमें इजाज़त दो कि हम तुम्हारे ख़ुदाओं से सवाल करें और वह उसे पूरा कर दें। तो हम अपने चंद साथियों के साथ तुम लोगों से किनारा कश हों जायें। और किसी दूसरी जगह चले जायेंगे। लोगों ने कहा कि तुम्हारी यह बात दुरूस्त है। मुनासिब होगा कि ईद के मौक़े पर यह मारका आराई हो जाये।
चुनांचे जब ईद का मौक़ा आया तो क़ौमे समूद की सरबरआवुरदा अफ़राद अपने बुतों को नहला धुला कर एक जंगल में ले गये। और इनके साथ ही वह लोग खाने पीने का सामन भी ले गये। और जब ईद की खुशियां मना चुके तो हज़रते सालेह को बुलवाया और उनसे कहा कि वह उनके ख़ुदाओं से सवाल करें इन्हें पूरा यक़ीन था कि सालेह का हर सवाल पूरा होगा। क्योंकि इनके ख़ुदाओं में अकसर शैतान हुलूल कर जाता था। जो इन बुत परस्तों को गुमराही के रास्ते पर कायम रखने के लिए इनसे बातें किया करता था। और इन्हें तरह तरह की झूठी तसल्ली दिया करता था। मगर अल्लाह के नबी के सामने शैतान की क्या मजाल थी कि वह उन बुतों में हुलूल करता। या इनकी ज़बान में बातें करता।
ग़र्ज़ कि हज़रते सालेह इन बुत परस्तों के बड़े बुत के पास गये और इसके नाम से इसे आवाज़ दी। लेकिन कोई जवाब न मिला फिर लोगों ने कहा कि दूसरे बुत को पुकारों आपने इसे भी आवाज़ दी वह भी खामोश रहा यहां तक कि जनाबे सालेह ने उन्होने एक एक कर के देकर बुतों को मुख़ातिब करना चाहा मगर कोई न बोला तब आपने फरमाया कि तुम्हारे यह खुदा गूंगे हैं, बहरे हैं, बेजान हैं और मजबूर हैं। जब यह मेरी आवाज़ पर बोल नहीं सकते हैं तो यह मेरा सवाल कैसे पूरा कर सकते हैं। फिर आपने फरमाया कि अब तुम सब लोग मुझसे मिल कर अपनी ख्वाहिशों को ज़ाहिर करो मैं इन्शाअल्लाह अपने खुदा से ज़रूर पूरी करा दूंगा। इस पर लोगों ने कहा कि ऐ सालेह इस वक्त हमारे खुदाओं को न जाने क्या हो गया जो ख़ामोश हैं तुम हमें एक मौक़ा और दो ताकि हम इन्हें राज़ी कर लें। चुनान्चे हज़रते सालेह ने इन्हें मोहलत दी और वापस चले आये। चन्द दिनों के बाद फिर पूरी कौम इकट्ठा हुई बुतों के सामने फर्श बिछाया गया और सब के सब इस पर लोटने लगे। जब लोटते लोटते थक कर बेहाल हो गये तो उन लोगों ने फरियाद ओ ज़ारी शुरू की और कहा कि ए हमारे ख़ुदाओं हमें ज़लील और रूसवा न करो। सालेह को जवाब दो वरना हम मुंह दिखाने के क़ाबिल न रहेंगे। इतने में किसी बुत के अन्दर छिपे हुए शैतान ने ज़ोरदार क़हक़हा बुलन्द किया जिसका मतलब लोग यह समझे कि इनके खुदाओँ ने अपनी रज़ा मन्दी ज़ाहिर की है। उन्होंने फौरन हज़रते सालेह को बुलवाया और कहा कि हमारे खुदा हमसे राज़ी हो गये हैं। अब आप इनके सामने अपनी ख़वाहिश बयान करें। हज़रते सालेह ने साबेक़ा अन्दाज़ से फिर बुतों को मुख़ातिब करना शुरू किया। मगर नतीजा कुछ न निकला और सिवाये खामोशी के कोई जवाब न मिला। तो हज़रते सालेह ने फलमाया की मेरी हुज्जत तमाम हो चुकी है। अब तुम लोगों को चाहिए कि तुम अपनी ख्वाहिश बयान करो और मैं अपने खुदा से पूरी करा दूं मगर शर्त यह कि अगर तुम्हारी ख्वाहिश पूरी हो जाये तो तुम्हें मेरे खुदा पर ईमान लाना होगा।
चुनान्चें अरबाबे समूद ने अपनी क़ौम के बुजुर्ग व मोअतबर 70 आदमी इस बात के लिए मुन्तखब किए कि वह हज़रते सालेह से सावाल करें और अगर वह पूरा हो जाये तो पूरी क़ौम इनका मसलक कुबूल कर ले। ग़्रज कि वह 70 अफराद हज़रते सालेह को एक पहाड़ की तरफ ले गये और वहां उनसे कहा कि अपने खुदा से कहो कि इस पहाड़ी से एक सुर्ख़ रंग की उटनी पैदा करे। जो दस माह की हामला हो। और जिसकी लम्बाई एक मील की हो।
हज़रते सालेह ने फरमाया कि यह काम मेरे लिए मुश्किल और दुशवार हो सकता है लेकिन मेरे परवरदिगार के लिए बहुत आसान है फिर आपने दुआ के लिए हाथ बलन्द किये और पहाड़ की तरफ इशारा किया अभी दुआ तमाम न हुई थी कि पहाड़ पर एक ज़लज़ला तारी हुआ और के मुहीब आवाज़ के साथ उसमें शिगाफ पैदा हुआ जिससे ऊटनी का सर बाहर निकला देखते ही देखते एक चीख के साथ वह बाहर आ गयी।क़ुतरत का यह करिशमा देखकर सब लोग हैरान रह गये और हज़रत सालेह से कहने लगे कि तुम्हारे परदिगार ने बेशक हमारी बात मान ली। और महारी ख्वाहिश पूरी हुई। अब इससे कहो कि वह हमें इस ऊटनी के शिकम से बच्चा पैदा कर के भी दिखाये। हज़रते सालेह ने फिर दुआ कि और उसी वक्त इसके शिकम से बच्चा पैदा हुआ।
इसके बाद जनाबे सालेह ने क़ौम समूद के लोगों से फरमाया कि अगर और कोई ख्वाहिश है तो उसे भी बयान करो उन्होंने कहा कि नहीं हम मुतमइन हो गये। बेशक तुम्हारा खुदा सच्चा और इबादत व इताअत का मुसतहक़ है अब तुम इस ऊटनी को लेकर हमारी क़ौम के पास चलो ताकि जो कुछ हमने देखा है वह और लोगों से बयान करें और इन्हें तरग़ीब दें कि वह लोग भी ईमान ले आयें हज़रते सालेह अपने नाक़े के हमराह इनके साथ चल पड़े लेकिन रास्ते ही में 70 आदमियों के दरमियान इख़तेलाफ पैदा हुआ और 64 अफराद फिर मुतद हो गये और इस करिश्मये कुदरत को हज़रत सालेह के सेहरओ जादू से ताबीर करने लगे सिर्फ 6 आदमी बाक़ी रहे लेकिन बाद में इनमें से भी एक शख्स शक व शुब्हे में मुब्तेला होकर इमान से फिर गया।
इस बाहमी इखतेलाफ का नतीजा यह हुआ कि क़ौमे समूद में से चंद लोग ईमान लाये बाक़ी लोगों ने यह कह दिया कि यह सब जादू है। हम अपने खुदाओं को नही छ़ोड़ सकते हैं।
नाकेय सालेह का अन्जाम और अज़ाब
हज़रते सालेह ने हुक्मे इलाही के मुताबिक़ अहले समूद के दरमियान यह एलान कर दिया था कि तुम्हारी वादी का पानी एक रोज़ मेरा नाक़ा पियेगा और दूसरे दिन तुम्हारे जानवर सेराब हुआ करेंगे। मोअर्ख़ीन का बयान है कि नाक़ा अपनी बारी पर सारी वादी का पानी पी जाता था और इस क़द्र दुध देता था कि पूरी क़ौम इससे सेराब होती थी। फिर कुछ सरकशों ने बाहम यह मशवेरा किया कि इस ऊंटनी को ख़त्म कर देना चाहिए। क्योंकि इसकी वजह से हमारे जानवरों को दीसरे दिन पानी मिल पाता है और जब तक यह ज़िन्दा रहेगी उस वक्त तक यही होता रहेगा। बाज़ मोअर्रेख़ीन का कहना है कि इस काम के लिए क़ौमे समूद के सरदारों ने कुछ इनाम भी मुकर्रर किया।
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