संकलनकर्ता :
मुहम्मद अमीन बाला दस्तियान
मुहम्मद महदी हाईरी पुर
महदी यूसुफ़ियान
अनुवादक : सैयद क़मर ग़ाज़ी
प्रस्तावना
بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ الحمد لله رب العالمین و بہ نستعین و صلی الله علٰی محمد و آلہ الطیبین الطاھرین۔
इमामे ज़माना पर बहस की ज़रुरत
शायद कुछ लोग यह सोचें कि बहुत सी कल्चरल और आधारभूत ज़रुरतों के होते हुए हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फ़रजहू शरीफ़) के बारे में बहस करने की क्या ज़रुरत है? क्या इस बारे में काफ़ी हद तक बहस नही हो चुकी है? क्या इस बारे में किताबें और लेख नहीं लिखे गए हैं?
तो इसके जवाब में हम यह कहते हैं कि महदवियत एक ऐसा विषय है जो इंसान की ज़िन्दगी में एक महत्व पूर्ण स्थान रखता है और इसका इंसानी ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं से सीधा सम्बन्ध है। अतः इस बारे में जो लिखा जा चुका है उसके बावजूद भी इस विषय पर लिखने व कहने के लिए बहुत कुछ बाक़ी है। इस लिए हमारे उलमा ए कराम व बुद्धिजीवी लोगों को चाहिए कि वह इस बारे में और ज़्यादा लिखें।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे में बहस करने की ज़रुरत को अत्यधिक स्पष्ट करने के लिए यहाँ कुछ चीज़ों की तरफ़ इशारा किया जा रहा है।
1. हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का विषय, इमामत के उस आधार भूत मसले की तरफ़ पलटता है जो शिओं के एतेक़ादी (आस्था संबंधी) उसूल में से है। इस पर बहुत अधिक ज़ोर दिया गया है और इसे कुरआने करीम और इस्लामी रिवायतों में बहुत अधिक महत्व प्राप्त है। शिया और सुन्नी दोनों सम्प्रदायों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से यह रिवायत नक्ल की है।
”مَنْ مَاتَ وَ لَمْ یَعْرِفْ اِمَامَ زَمَانِہِ مَاتَ مِیْتَةً جَاہِلِیَةً۔“
जो इंसान इस हालत में मर जाये कि अपने ज़माने के इमाम को न पहचानता हो तो उसकी मौत जाहिलियत (कुफ़्र) की मौत होगी। (अर्थात उसने इस्लाम से कोई फायदा नहीं उठाया है।).
वास्तव में यह एक ऐसा विषय है जो इंसान के आध्यात्मिक जीवन से संबंधित है अतः इस मसले पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यक्ता है।
2. हज़रत इमाम महदी (अ.स.), इमामत की उस पवित्र श्रंखला की बारहवीं कड़ी हैं, जो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की दो निशानियों में से एक है। शिया और सुन्नी दोनों ही सम्प्रदायों ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से यह रिवायत नक्ल की हैः
”اِنِّی تَارِکٌ فِیْکُمُ الثَّقَلَیْنِ کَتَابَ اللهِ وَ عِتْرَتِی؛ مَا اِنْ تَمَسَّکْتُمْ بِہِمَا لَنْ تَضِلُّوْا بَعْدِی اَبَداً
बेशक़ मैं तुम्हारे बीच दो महत्वपूर्ण चीज़ें छोड़े जा रहा हूँ, एक अल्लाह की किताब और दूसरे मेरी इतरत (वंश), जब तक तुम इन दोनों के संपर्क में रहोगे मेरे बाद कदापि गुमराह नहीं हो सकते।
इस आधार पर कुरआने क़रीम के बाद जो कि अल्लाह का कलाम है, कौनसा रास्ता इमाम (अ.स.) के रास्ते से ज़्यादा रौशन और हिदायत करने वाला है। क्या बुनियादी तौर पर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के सच्चे जानशीन के अलावा अन्य कोई कुरआने करीम की जो कि अल्लाह का कलाम है, तफ़सीर कर सकता है।
3. हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ज़िन्दा व मौजूद हैं और उनके बारे में नौजवानों और जवानों के ज़हनों में बहुत से सवाल पैदा होते रहते हैं। यद्यपि पिछले ज़माने के आलिमों ने अपनी अपनी किताबों में बहुत से सवालों के जवाब दिये हैं, लेकिन फिर भी बहुत से शक व शुब्हे बाकी हैं और कुछ पुराने जवाब आज कल के ज़माने के अनुरूप नही हैं।
4. इमामत के महत्व और उसकी केन्द्रीय हैसियत की वजह से दुश्मनों ने हमेशा ही शिओं को फिक़्री और इल्मी लिहाज़ से निशाना बनाया है ताकि इमाम महदी (अ.स.) के बारे में विभिन्न प्रकार के शुब्हे व एतेराज़ उत्पन्न कर के उनके मानने वालों को शक में डाल दिया जाये। जैसे उनकी लम्बी उम्र को एक असंभव और बुद्धि में न आने वाली बात घोषित करना, या उनकी ग़ैबत को एक तर्क विहीन चीज़ बताना या इसी तरह के अन्य बहुत से एतेराज़। इसके अलावा अहलेबैत (अ.स.) की तालीमात को न जानने वाले कुछ लोग महदवियत के बारे में कुछ ग़लत और बेबुनियाद बातें बयान कर देते हैं और उनसे कुछ लोग गुमराह हो जाते हैं या उन को गुमराह कर दिया जाता है। मिसाल को तौर पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का इन्तेज़ार, उनका ख़ूनी क़ियाम, उनकी ग़ैबत के ज़माने में उनसे मुलाक़ात की संभावना आदि के बारे में बहुत से गलत और रिवायतों के मुखालिफ़ मतलब बयान कर देते हैं। अतः महदवियत के बारे में इस तरह की ग़लत बातों की सही तहक़ीक़ की जाये और उन एतेराज़ों का बुद्धि पर आधारित तर्क पूर्ण जवाब दिया जाये।
इन्हीँ बातों को आधार बना कर यह कोशिश की गई है कि इस किताब में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की नूरानी ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं को बयान किया जाये और उन के बारे में जवानों के ज़ेहनों में जो सवाल मौजूद उनका जवाब दिया जाये और इसी तरह इमाम के ज़माने से संबंधित सवालों का भी जवाब दिया जाये। इसके अलावा इस किताब में महदवियत के अक़ीदे के लिए नुक्सान देह चीज़ों और कुछ ग़लत फिक्रों के जवाब भी दिये गए हैं, ताकि तमाम इंसान अल्लाह की आख़िरी हुज्जत हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की मारेफ़त के रास्ते में सही एक क़दम उठा सकें।
इमामत
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की शहादत के बाद इस्लामी समाज में पैग़म्बर (स.) के जानशीन (उत्तराधिकारी) और खिलाफ़त का मसला सब से ज़्यादा महत्वपूर्ण था। एक गिरोह ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के कुछ असहाब के कहने पर हज़रत अबू बकर को पैग़म्बर (स.) का ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) चुन लिया, लेकिन दूसरा गिरोह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के हुक्म के अनुसार हज़रत अली (अ.स.) की खिलाफ़त के ईमान पर अटल रहा। एक लम्बा समय बीतने के बाद पहला गिरोह अहले सुन्नत व अल- जमाअत के नाम से और दूसरा गिरोह शिया के नाम से मशहूर हुआ।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि शिया व सुन्नी के बीच जो अन्तर पाया जाता है वह सिर्फ पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के जानशीन के आधार पर नहीं है, बल्कि इमाम के मअना व मफ़हूम के बारे में भी दोनों मज़हबो (सम्प्रदायों) के दृष्टिकोणों में बहुत ज़्यादा फर्क पाया जाता है। अतः इसी आधार पर दोनों मज़हब एक दूसरे से अलग हो गये हैं।
हम यहाँ पर इस बात की वज़ाहत (व्याख़्या) के लिए (इमाम और इमामत) के मअना की तहक़ीक़ करते हैं ताकि दोनों के नज़रिये स्पष्ट हो जायें।
शाब्दिक आधार पर इमामत का अर्थ व मअना नेतृत्व व रहबरी हैं और एक निश्चित मार्ग में किसी गिरोह की सर परस्ती करने वाले ज़िम्मेदार को इमाम कहा जाता है। मगर दीन की इस्तलाह (धार्मिक व्याख़यानो व लेखों में प्रयोग होने वाले विशेष शब्दों को इस्तलाह कहा जाता है) में इमामत के विभिन्न अर्थ व मअना उल्लेख हुए हैं।
सुन्नी मुसलमानों के नज़रिये के अनुसार इमामत दुनिया की बादशाही का नाम है और इस के द्वारा इस्लामी समाज का नेतृत्व किया जाता है। अतः जिस तरह हर समाज को एक रहबर व उच्च नेतृत्व की ज़रुरत होती है और उसमें रहने वाले लोग अपने लिए एक रहबर को चुनते हैं, इसी तरह इस्लामी समाज के लिए भी ज़रुरी है कि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बाद अपने लिए एक रहबर का चुनाव करे, और चूँकि इस्लाम धर्म में इस चुनाव के लिए कोई खास तरीका निश्चित नहीं किया गया है इस लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के जानशीन (उत्तराधिकारी) के चुनाव के लिए विभिन्न तरीकों को अपनाया जा सकता है। जैसे- जिसे पब्लिक या बुज़ुर्गों का अधिक समर्थन मिल जाये या जिसके लिए पहला जानशीन वसीयत करदे या जो बगावत कर के या फौजी ताक़त का प्रयोग कर के हुकूमत पर क़ब्ज़ा कर ले।
लेकिन शिया मुसलमानों का मत है कि हज़रत मुहम्मद (स.) अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर थे और उनके बाद पैग़म्बरी ख़त्म हो गई। उनके बाद पैग़म्बरी की जगह इमामत ने लेली अर्थात अल्लाह ने इंसानों की हिदायत के लिए पैग़म्बर के स्थान पर इमाम भेजने शुरू कर दिये। इमाम मखलूक के बीच अल्लाह की हुज्जत और उसके फ़ैज़ का वास्ता होता है। अतः शिया इस बात पर यक़ीन व ईमान रखते हैं कि इमाम को सिर्फ अल्लाह निश्चित व नियुक्त करता है और उसे पैग़म्बर, वही का पैग़ाम लाने वाले के द्वारा पहचनवाता है। यह नज़रिया इमामत की अज़मत और बलन्दी (महानता) के साथ शिया फ़िक्र में पाया जाता है। इस नज़रिये के अनुसार इमाम का कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक है वह इस्लामी समाज का सरपरस्त होता है और अल्लाह के अहकाम को बयान करता है, क़ुरआन का मुफ़स्सिर होता है और इंसानों को राहे सआदत (कल्याण व निजात) की हिदायत करता हैं। बल्कि इससे भी अधिक स्पष्ट शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शिया संस्कृति में “इमाम” पब्लिक की दीन और दुनिया की मुश्किलों को हल करने वाले व्यक्तित्व का नाम है। इसके विपरीत अहले सुन्नत का मानना यह है कि खलीफ़ा या इमाम की ज़िम्मेदारी सिर्फ दुनिया से संबंधित कामों में हुकूमत करना है।
इमाम की ज़रुरत
इन नज़रीयों के उल्लेख के बाद अब इस सवाल का जवाब देना उचित है कि कुरआने करीम और सुन्नते पैग़म्बर (स.) के बावजूद इमाम की क्या ज़रुरत है? इमाम की ज़रुरत के लिए बहुत से दलीलें पेश की गई हैं लेकिन हम यहाँ पर उन में से सिर्फ़ एक को अपने सादे शब्दों में पेश कर रहे हैं।
जिस दलील के द्वारा नबियों (अ.स.) की ज़रुरत साबित होती है, वही दलील इमाम की ज़रुरत को भी साबित करती है। एक बात तो यह कि क्यों कि इस्लाम आखरी दीन है और हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.) अल्लाह की तरफ़ से आने वाले आखरी पैग़म्बर हैं, अतः ज़रूरी है कि इस्लाम में इतनी व्यापकता हो कि वह क़ियामत तक की इंसानों की सारी ज़रुरतों को पूरा कर सके। दूसरी बात यह कि कुरआने करीम में इस्लाम के उसूल (आधारभूत सिद्धान्त), अहकाम (आदेश) और इलाही तालीमों (शिक्षाओं) को आम व आंशिक रूप में उल्लेख किया गया हैं और उनकी तफ़्सीर व व्याख़्या पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़िम्मे है। यह बात स्पष्ट है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने मुसलमानों के हादी और रहबर के रूप में ज़माने की ज़रुरतों के अनुसार और अपने ज़माने के इस्लामी समाज की योग्यता के अनुरूप अल्लाह की आयतों को बयान किया अतः पैग़म्बर इस्लाम (स.) के लिए आवश्यक है कि अपने बाद वाले ज़माने के लिए कुछ ऐसे लायक जानशीनों को छोड़ें जो ख़ुदा वन्दे आलम के ला महदूद (अपार व असीमित) इल्म के दरिया से संबंधित हो ताकि जिन चीज़ों को पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने बयान नहीं किया, वह उनको बयान करें और हर ज़माने में इस्लामी समाज की ज़रूरतों को पूरा करते रहें ।
इसी लिए इमाम (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की छोड़ी हुई मिरास के मुहाफिज़ (रक्षा करने वाले), कुरआने करीम के सच्चे मुफ़स्सिर और उस के सही मअना बयान करने वाले हैं, ताकि अल्लाह का दीन स्वार्थी दुशमनों के द्वारा तहरीफ (परिवर्तन) का शिकार न हो और यह पाक व पाक़ीज़ा दीन क़ियामत तक बाकी रहे।
इसके अलावा, इमाम इंसाने कामिल (पूर्ण रूप से विकसित इन्सान) के रूप में इन्सानियत के तमाम पहलुओं में नमूनए अमल (आदर्श) है। क्यों कि इन्सानियत को एक ऐसे नमूने की सख्त ज़रुरत है जिसकी मदद और हिदायत के द्वारा इंसानी सामर्थ्य के अनुसार तरबियत (प्रशिक्षण) पा सके और इन आसमानी प्रशिक्षकों के आधीन रह कर भटकाव व अपने नफ्स की इच्छाओं के जाल और बाहरी शैतानों से सुरक्षित रह सके।
उपरोक्त विवरण से ये बात स्पष्ट हो जाती है कि जनता को इमाम की बहुत ज़रुरत है और इमाम की ज़िम्मेदारियाँ निमन लिखित हैं।
o समाज का नेतृत्व व समाजी मुश्किलों का समाधान करना अर्थात हुकूमत की की स्थापना।
o पैग़म्बरे इस्लाम के दीन को तहरीफ़ (परिवर्तन) से बचाना और कुरआन के सही मअनी बयान करना।
o लोगों के दिलों का तज़किया करना अर्थात उन्हें पवित्र बनाना और उन की हिदायत करना।
इमाम की विशेषताएं
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का जानशीन अर्थात इमाम, दीन को ज़िन्दा रखता और इंसानी समाज की ज़रुरतों को पूरा करता है। इमाम के व्यक्तित्व में इमामत के महान पद के कारण कुछ विशेषताएं पाई जाती हैं जिन में से कुछ मुख़्य विशेषताएं निम्न लिखित हैं।
इमाम, मुत्तक़ी, परहेज़गार और मासूम होता है, जिसकी वजह से उससे एक छोटा गुनाह भी नहीं हो सकता।
इमाम के इल्म का आधार पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का इल्म होता है और वह अल्लाह के इल्म से संपर्क में रहता है, अतः वह भौतिक व आध्यात्मिक, दीन और दुनिया की तमाम मुश्किलों के हल का ज़िम्मेदार होता है।
इमाम में तमाम फ़ज़ायल (सदगुण) मौजूद होते हैं और वह उच्च अख़लाक़ का मालिक होता है।
दीन के आधार पर इंसानी समाज को सही रास्ते पर चलाने की योग्यता रखता है।
उरोक्त वर्णित विशेषताओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि इमाम का चुनाव जनता के बस से बाहर है। अतः सिर्फ़ ख़ुदा वन्दे आलम ही अपने असीम इल्म के आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के जानशीन (इमाम) का चुनाव कर सकता है। अतः इमाम की विशेषताओं में सब से बड़ी व मुख्य विशेषता उसका ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से मन्सूब नियुक्त) होना है।
प्रियः पाठको इमाम की इन विशेषताओं के महत्व को ध्यान में रखते हुए हम यहाँ पर इन में से हर विशेषता के बारे में संक्षेप में लिख रहे
हैं।
इमाम का इल्म
इमाम, जिस पर लोगों की हिदायत और रहबरी की ज़िम्मेदारी होती है, उसके लिए ज़रुरी है कि दीन के तमाम पहलुओं को पहचानता हो और उसके क़ानूनों से पूर्ण रूप से परिचित हो। कुरआने करीम की तफ़्सीर को जानता हो और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की सुन्नत को भी पूरी तरह से जानता हो ताकि अल्लाह को पहचनवाने वाली चीज़ों और दीन की शिक्षाओं को भली भाँती स्पष्ट रूप से बयान करे और जनता के विभिन्न सवालों के जवाब दे तथा उनका बेहतरीन तरीके से मार्गदर्शन करे। स्पष्ट है कि ऐसी ही इल्म रखने वाले इंसान पर लोगों को विश्वास हो सकता है, और ऐसा इल्म सिर्फ़ ख़ुदा वन्दे आलम के असीम इल्म से संमपर्क रहने की सूरत में ही मुम्किन है। इसी वजह से शिया इस बात पर यक़ीन रखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के जानशीन (इमाम) का इल्म ख़ुदा के असीम इल्म से संबंधित होता है।
हज़रत इमाम अली (अ.स.) सच्चे इमाम की निशानियों के बारे में फरमाते हैं।
“इमाम, अल्लाह के द्वारा हलाल व हराम किये गये कामों, विभिन्न आदेशों, अल्लाह के अम्र व नही और लोगों की ज़रुरतों का सब से ज़्यादा जानने वाला होता है।”
इमाम की इस्मत
इमाम की महत्वपूर्ण विशेषताओं और इमामत की आधारभूत शर्तों में से एक शर्त इस्मत है। (इस्मत यानी इमाम का मासूम होना) इस्मत एक ऐसा मल्का है जो हक़ीक़त के इल्म और मज़बूत इरादे से वजूद में आता है। चूँकि इमाम में ये दोनों चीज़ें पाई जाती हैं इस लिए वह हर गुनाह और खता से दूर रहता है। इमाम भी दीन की शिक्षाओं को जानने, उन्हें बयान करने, उन पर अमल करने और इस्लामी समाज की अच्छाईयों और बुराईयों की पहचान के बारे में ख़ता व ग़लती से महफूज़ रहता है।
इमाम की इस्मत के लिए कुरआन, सुन्नत और अक्ल से बहुत सी दलीलें पेश की गई हैं। उन में से कुछ महत्वपूर्ण दलीलें निम्न लिखित हैं हैं।
1. दीन और दीनदारी की हिफाज़त इमाम की इस्मत पर आधारित है। क्यों कि इमाम पर लोगों को दीन की तरफ़ हिदायत करने और दीन को तहरीफ़ (परिवर्तन) से बचाये रखने की ज़िम्मेदारी होती है। इमाम का कलाम (प्रवचन), उनका व्यवहार और उनके द्वारा अन्य लोगों के कामों का समर्थन या खंडन करना समाज के लिए प्रभावी होता हैं। अतः इमाम दीन को समझने और उस पर अमल करने (क्रियान्वित होने) में हर ख़ता व ग़लती से सुरक्षित होना चाहिए ताकि अपने मानने वालों को सही तरीके से हिदायत कर सके।
2. समाज को इमाम की ज़रुरत की एक दलील यह भी है कि जनता दीन, दीन के अहकाम और शरियत के क़ानूनों को समझने में खता व गलती से ख़ाली नहीं हैं। अतः अगर उनका रहबर, इमाम या हादी भी उन्हीँ की तरह हो तो फिर उस इमाम पर किस तरह से भरोसा किया जा सकता है? दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि अगर इमाम मासूम न हो तो जनता उसका अनुसरन करने और उसके हुक्म पर चलने में शक व संकोच करेगी।
इमाम की इस्मत पर कुरआने करीम की आयतें भी दलालत करती हैं जिन में सूरह ए बकरा की 124 वीं आयत है, इस आयते शरीफ़ा में बयान हुआ है कि जब ख़ुदा वन्दे आलम ने जनाबे इब्राहीम (अ.स.) को नबूवत के बाद इमामत का बलन्द (उच्च) दर्जा दिया तो उस मौक़े पर हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ने ख़ुदा वन्दे आलम की बारगाह में दुआ की कि इस ओहदे को मेरी नस्ल में भी बाक़ी रखना, जनाबे इब्राहीम (अ.स.) की इस दुआ पर ख़ुदा वन्दे आलम ने फरमायाः
यह मेरा ओहदा (इमामत) ज़ालिमों और सितमगरों तक नहीं पहुच सकता, यानी इमामत का यह ओहदा हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल में उन लोगों तक पहुंचेगा जो ज़ालिम नही होंगे।
हालांकि कुरआने करीम ने ख़ुदा वन्दे आलम के साथ शिर्क को अज़ीम ज़ुल्म क़रार दिया है और अल्लाह के हुक्म के विपरीत काम करने को अपने नफ़्स (आत्मा) पर ज़ुल्म माना है और यह गुनाह है। यानी जिस इंसान ने अपनी ज़िन्दगी के किसी भी हिस्से में कोई गुनाह किया है, वह ज़ालिम है अतः वह किसी भी हालत में इमामत के ओहदे के योग्य नहीं हो सकता है।
दूसरे शब्दो में यह कह सकते हैं कि इस बात में कोई शक नहीं है कि जनाबे इब्राहीम (अ.स.) ने इमामत को अपनी नस्ल में से उन लोगों के लिए नहीं मांगा था, जिन की पूरी उम्र गुनाहों में गुज़रे या जो पहले नेक हों और बाद में बदकार हो जायें। अगर इस बात को आधार मान कर चलें तो सिर्फ दो किस्म के लोग बाक़ी रह जाते हैं।
1. वह लोग जो शुरु में गुनहगार थे, लेकिन बाद में तौबा कर के नेक हो गए।
2. वह लोग जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में कोई गुनाह न किया हो।
3. ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने कलाम में पहली किस्म को अलग कर दिया, यानी पहले गिरोह को (वह लोग जो शुरु में गुनहगार थे, लेकिन बाद में तौबा कर के नेक हो गए।) इमामत नहीं मिलेगी इस का नतीजा यह निकलता है कि इमामत का ओहदा सिर्फ़ दूसरे गिरोह से मख्सूस हैं, यानी उन लोगों से जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में कोई गुनाह न किया हो।
इमाम, समाज को व्यवस्थित करने वाला होता है
चूँकि इंसान एक समाजिक प्राणी है और समाज इसके दिल व जान और व्यवहार को बहुत ज़्यादा प्रभावित करता है, अतः इंसान की सही तरबियत और अल्लाह की तरफ़ बढ़ने के लिए समाजिक रास्ता हमवार होना चाहिए और यह चीज़ इलाही और दीनी हुकूमत के द्वारा ही मुम्किन हो सकती है। अतः ज़रूरी है कि लोगों का इमाम व हादी ऐसा होना चाहिए जिसमें समाज को चलाने व उसे दिशा देने की योग्यता पाई जाती हो और वह कुरआन की शिक्षाओं और नबी की सुन्नत (कार्य शैली) का सहारा लेते हुए बेहतरीन तरीके से इस्लामी हुकूमत की बुनियाद डाल सके।
इमाम का अख़लाक बहुत अच्छा होता है
इमाम चूँकि पूरे इंसानी समाज का हादी (मार्गदर्शक) होता है अतः उसके लिए ज़रूरी है कि वह तमाम बुराईयों से पाक हो और उसके अन्दर बेहतरीन अख़लाक पाया जाता हो, क्यों कि वह अपने मानने वालों के लिए इंसाने कामिल का बेहतरीन नमूना माना जाता है।
हज़रत इमामे रिज़ा (अ.स.) फरमाते हैं कि :
इमाम की कुछ निशानियां होती हैं, जैसे, वह सब से बड़ा आलिम, सब से ज़्यादा नेक, सब से ज़्यादा हलीम (बर्दाश्त करने वाला), सब से ज़्यादा बहादुर, सब से ज़्यादा सखी (दानी) और सब से ज़्यादा इबादत करने वाला होता है।
इसके अलावा चूँकि इमाम, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का जानशीन (उत्तराधिकारी) होता है, और वह हर वक़्त इंसानों की तालीम व तरबियत की कोशिश करता रहता है अतः उसके लिए ज़रूरी है कि वह अख़लाक़ के मैदान में दूसरों से ज़्यादा से सुसज्जित हो।
हज़रत इमाम अली (अ.स.) फरमाते हैं कि :
जो इंसान (अल्लाह के हुक्मे) ख़ुद को लोगों का इमाम बना ले उसके लिए ज़रुरी है कि दूसरों को तालीम देने से पहले ख़ुद अपनी तालीम के लिए कोशिश करे, और ज़बान के द्वारा लोगों की तरबियत करने से पहले, अपने व्यवहार व किरदार से दूसरों की तरबियत करे।
इमाम ख़ुदा की तरफ़ से मंसूब (नियुक्त) होता है
शिया मतानुसार पैग़म्बर (स.) का जानशीन (इमाम) सिर्फ अल्लाह के हुक्म से चुना जाता है और वही इमाम को मंसूब (नियुक्त) करता है। जब अल्लाह किसी को इमाम बना देता है तो पैग़म्बर (स.) उसे इमाम के रूप में पहचनवाते हैं। अतः इस मसले में किसी भी इंसान या गिरोह को हस्तक्षेप का हक़ नहीं है।
इमाम के अल्लाह की तरफ़ से मंसूब होने पर बहुत सी दलीलें है, उनमें से कुछ निमन लिखित हैं।
1. कुरआने करीम के अनुसार ख़ुदा वन्दे आलम तमाम चीज़ों पर हाकिमे मुतलक़ (जो समस्त चीज़ों को हुक्म देता है या जिसका हुक्म हर चीज़ पर लागू होता है, उसे हाकिमे मुतलक़ कहते हैं।) है और उसकी इताअत (अज्ञा पालन) सब के लिए ज़रुरी है। ज़ाहिर है कि यह हाकमियत ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से (इसकी योग्यता रखने वाले) किसी भी इंसान को दी जा सकती है। अतः जिस तरह नबी और पैग़म्बर (अ.स.) ख़ुदा की तरफ़ से नियुक्त होते हैं, उसी तरह इमाम को भी ख़ुदा नियुक्त करता है और इमाम लोगों पर विलायत रखता है यानी उसे समस्त लोगों पर पूर्ण अधिकार होता है।
2. इस से पहले (ऊपर) इमाम के लिए कुछ खास विशेषताएं लिखी गई हैं जैसे इस्मत, इल्म आदि...., और यह बात स्पष्ट है कि इन ऐसी विशेषताएं रखने वाले इंसान की पहचान सिर्फ़ ख़ुदा वन्दे आलम ही करा सकता है, क्यों कि वही इंसान के ज़ाहिर व बातिन (प्रत्यक्ष व परोक्ष) से आगाह है, जैसा कि ख़ुदा वन्दे आलम कुरआने मजीद में जनाबे इब्राहीम (अ.स.) को संबोधित करते हुए फरमाता हैः
हम ने, तुम को लोगों का इमाम बनाया।
सबसे अच्छी बात
अपनी बात के इस आखरी हिस्से में हम उचित समझते हैं कि आठवें इमाम हज़रत अली रिज़ा (अ.स.) की वह हदीस बयान करें जिसमें इमाम (अ.स.) इमाम की विशेषताओं का वर्णन किया है।
इमाम (अ.स.) ने कहा कि : जिन्होंने इमामत के बारे में मत भेद किया और यह समझ बैठे कि इमामत एक चुनाव पर आधारित मसला है, उन्होंने अपनी अज्ञानता का सबूत दिया।....... क्या जनता जानती है कि उम्मत के बीच इमामत की क्या गरीमा है, जो वह मिल बैठ कर इमाम का चुनाव कर ले।
इसमें कोई शक नही है कि इमामत का ओहदा बहुत बुलन्द, उच्च व महत्वपूर्ण है और उस की गहराई इतनी ज़्यादा है कि लोगों की अक्ल उस तक नहीं पहुँच पाती है या वह अपनी राय के द्वारा उस तक नहीं पहुँच सकते हैं।
बेशक इमामत वह ओहदा है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने जनाबे इब्राहीम (अ.स.) को नबूवत व खिल्लत देने के बाद तीसरे दर्जे पर इमामत दी है। इमामत अल्लाह व रसूल (स.) की ख़िलाफ़त और हज़रत अमीरुल मोमेनीन अली (अ.स.) व हज़रत इमाम हसन व हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की मीरास है।
सच्चाई तो यह है कि इमामत, दीन की बाग ड़ोर, मुसलमानों के कामों की व्यवस्था की बुनियाद, मोमिनीन की इज़्ज़त, दुनिया की खैरो भलाई का ज़रिया है और नमाज़, रोज़ा, हज, जिहाद, के कामिल होने का साधन है।, इमाम के ज़रिये ही (उस की विलायत को क़बूल करने की हालत में) सरहदों की हिफ़ाज़त होती है।
इमाम अल्लाह की तरफ़ से हलाल कामों को हलाल और उसकी तरफ़ से हराम किये गये कामों को हराम करता है। वह ख़ुदा वन्दे आलम के हक़ीक़ी हुक्म के अनुसार हुक्म करता है) हुदूदे उलाही को क़ायम करता है, ख़ुदा के दीन की हिमायत करता है, और हिकमत व अच्छे वाज़ व नसीहत के ज़रिये, बेहतरीन दलीलों के साथ लोगों को ख़ुदा की तरफ़ बुलाता है।
इमाम सूरज की तरह उदय होता है और उस की रौशनी पूरी दुनिया को प्रकाशित कर देती है, और वह ख़ुद उफ़क़ (अक्षय) में इस तरह से रहता है कि उस तक हाथ और आँखें नहीं पहुँच पाते। इमाम चमकता हुआ चाँद, रौशन चिराग, चमकने वाला नूर, अंधेरों, शहरो व जंगलों और दरियाओं के रास्तों में रहनुमाई (मार्गदर्शन) करने वाला सितारा है, और लड़ाई झगड़ों व जिहालत से छुटकारा दिलाने वाला है।
इमाम हमदर्द दोस्त, मेहरबान बाप, सच्चा भाई, अपने छोटे बच्चों से प्यार करने वाली माँ जैसा और बड़ी - बड़ी मुसीबतों में लोगों के लिए पनाह गाह होता है। इमाम गुनाहों और बुराईयों से पाक करने वाला होता है। वह मख़सूस बुर्दबारी और हिल्म (धैर्य) की निशानी रखता है। इमाम अपने ज़माने का तन्हा इंसान होता है और ऐसा इंसान होता है, जिसकी अज़मत व उच्चता के न कोई क़रीब जा सकता है और न कोई आलिम उस की बराबरी कर सकता है, न कोई उस की जगह ले सकता है और न ही कोई उस जैसा दूसरा मिल सकता है।
अतः इमाम की पहचान कौन कर सकता है? या कौन इमाम का चुनाव कर सकता? यहाँ पर अक़्ल हैरान रह जाती है, आँखें बे नूर, बड़े छोटे और बुद्दीजीवी दाँतों तले ऊँगलियाँ दबाते हैं, खुतबा (वक्ता) लाचार हो जाते हैं और उन में इमाम का क्षेष्ठ कामों की तारीफ़ करने की ताक़त नहीं रहती और वह सभी अपनी लाचारी का इक़रार करते हैं।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की शनाख़्त
पहला हिस्सा
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी पर एक नज़र
शियों के आखरी इमाम और रसूले इस्लाम (स.) के बारहवें जानशीन 15 शाबान सन् 255 हिजरी क़मरी व सन् 868 ई. में जुमे के दिन सुबह के वक़्त इराक के शहर (सामर्रा) में पैदा हुए।
उन के पिता शियों के ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन अस्करी (अ.स.) और उन की माता जनाबे नर्जिस ख़ातून थीं। उनकी माता की क़ौम के बारे में रिवायतों में मत भेद पाया जाता हैं। एक रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून, रोम के बादशाह यशूअ की बेटी थीं और उन की माँ, हज़रत ईसा (अ.स.) के वसी जनाबे शमऊन की नस्ल से थीं। एक रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून एक ख्वाब के नतीजे में मुसलमान हुईं और इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की हिदायत (मार्गदर्शन) की वजह से मुसलमानों से जंग करने वाली रोम की फ़ौज के साथ रहीं और जब उस जंग में मुसलमानों को सफलता मिली तो वह भी अन्य बहुत से लोगों के साथ इस्लामी फ़ौज के द्वारा क़ैदी बना ली गईं। हज़रत इमाम अली नकी (अ.स.) ने एक इंसान को वहाँ भेजा ताकि वह उन्हें खरीद कर सामर्रा ले आये।
इस बारे में अन्य रिवायतें भी मिलती हैं लेकिन महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य बात यह है कि हज़रत नर्जिस खातून एक मुद्दत तक हक़ीमा खातून (इमाम अली नक़ी (अ.स.) की बहन) के घर में रहीं और उन्होंने ही जनाबे नर्जिस ख़ातून की तरबियत की, जिस की वजह से जनाबे हकीमा खातून उन का बहुत ज़्यादा एहतिराम किया करती थीं।
जनाबे नर्जिस खातून (अ.स.) वह बीबी हैं जिनकी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) और हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने बहुत ज़्यादा तारीफ़ की है और उन को क़नीज़ों में बेहतरीन क़नीज़ और क़नीज़ों की सरदार कहा है।
यह बात बताना भी ज़रूरी है कि हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की आदरनीय माता को दूसरे नामों से भी पुकारा जाता था, जैसे- सोसन, रिहाना, मलीका, और सैक़ल व सक़ील।
इमामे ज़माना का नाम कुन्नियत और अलक़ाब
हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) का नाम और क़ुन्नियत पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का नाम और कुन्नियत है। कुछ रिवायतों में उनके ज़हूर तक उनका नाम लेने से मना किया गया है।
उन के मशहूर अल्काब इस तरह हैं, महदी, क़ाइम, मुन्तज़िर, बक़ीयतुल्लाह, हुज्जत, ख़लफे सालेह, मंसूर, साहिबुल अम्र, साहिबुज़्ज़मान, और वली अस्र, इन में महदी लक़ब सब से ज़्यादा मशहूर है।
इमाम (अ.स.) का हर लक़ब उनके बारे में एक मख़सूस पैग़ाम रखता है।
खूबियों के इमाम को (महदी) कहा गया है, क्यों कि वह ऐसे हिदायत याफ्ता हैं जो लोगों को हक़ की तरफ़ बुलायें गे और उन को क़ाइम इस लिए कहा गया है क्यों कि वह हक़ के लिए क़ियाम करेंगे और उन को मुन्तज़िर इस लिए कहा गया है क्यों कि सभी उन के आने का इन्तेज़ार कर रहे हैं। उन्हें ब़कीयतुल्लाह लक़ब इस वजह से दिया गया है क्यों कि वह ख़ुदा की हुज्जतों में से बाक़ी हुज्जत हैं और वही अल्लाह का आख़िरी ज़ख़ीर हैं।
(हुज्जत) का अर्थ मखलूक पर ख़ुदा के गवाह, और ख़लफ़े सालेह का अर्थ अल्लाह के नेक जानशीन है। उनको मंसूर इस वजह से कहा गया है कि ख़ुदा की तरफ़ से उनकी मदद होगी। वह साहबे अम्र इस वजह से कहलाये जाते हैं कि अदले इलाही की हुकूमत क़ायम करना उन्हीं की ज़िम्मेदारी है। साहिबुज़्ज़मान और वली अस्र भी इसी अर्थ में हैं कि वह अपने ज़माने के तन्हा हाकिम होंगे।
जन्म की स्थिति
बहुत सी रिवायतों में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से नक्ल हुआ है कि मेरी नस्ल से महदी नाम का इंसान क़याम करेगा, जो ज़ुल्मो सितम की बुनियादों को खोखला कर देगा।
बनी अब्बास के ज़ालिम व सितमगर बादशाहों ने इन रिवायत को सुन कर यह तय कर लिया था कि इमाम महदी (अ.स.) को जन्म के समय ही क़त्ल कर दिया जाये। इसी वजह से इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.) के ज़माने से ही अइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) पर बहुत ज़्यादा सख्तियाँ की गईं और इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के ज़माने में यह सख्तियां अपनी आख़िरी हद तक पहुँच गईं। हालत यह थी कि अगर कोई हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के घर पर जाता था तो उसका आना जाना उस वक़्त की हुकूमत की नज़रों से छुपा नहीं था। ज़ाहिर है कि ऐसे माहौल में अल्लाह की आखरी हुज्जत का जन्म गोपनीय तरीके से होना चाहिए था। इसी दलील की वजह से इमाम के जन्म को इतना छुपा कर रखा गया कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के नज़दीकी साथी भी हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के जन्म से बे खबर थे। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के जन्म से कुछ घण्टे पहले तक भी उनकी माँ जनाबे नर्जिस खातून के जिस्म में किसी बच्चे को जन्म देने की निशानियाँ नही पाई जाती थीं।
जनाबे हकीमा खातून जो कि हज़रत इमाम मुहम्मद तकी (अ.स.) की बेटी हैं, हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के जन्म के बारे में इस तरह विवरण देती हैं।
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने मुझे बुलाया और कहा : ऐ फुफी जान आज आप हमारे यहाँ इफ़्तार करना, क्यों कि आज पन्द्रहवीं शाबान की रात है और ख़ुदा वन्दे आलम इस रात में अपनी आख़री हुज्जत को ज़मीन पर ज़ाहिर करने वाला है। मैं ने सवाल किया उसकी माँ कौन है? इमाम (अ.स.) ने जवाब दिया कि नर्जिस खातून। मैं ने कहा कि मैं आप पर कुर्बान, उन में तो हम्ल (गर्भ) की कोई भी निशानी नही दिखाई दे रही हैं। इमाम (अ.स.) ने फरमाया : बात वही है जो मैं ने कही है। इस के बाद मैं नर्जिस ख़ातून के पास गई और सलाम कर के उन के पास बैठ गई। वह मेरी जूतियाँ उतारने के लिए मेरे पास आईं और मुझ से कहा कि ऐ मेरी मलका, आपका क्या हाल है? मैं ने कहा कि नहीं आप ही मेरी और मेरे खानदान की मलीका हैं। उन्हों ने मेरी बात को नही माना और कहा फुफी जान आप क्या फरमाती हैं? मैं ने कहा, आज की रात ख़ुदा वन्दे आलम तुम को एक बेटा ऐसा बेटा देगा जो दुनिया और आखिरत का सरदार होगा। वह यह सुन कर शर्मा गईं।
हक़ीमा खातून कहती हैं कि मैं ने इशा की नमाज़ के बाद इफ़्तार किया और उस के बाद आराम के लिए अपने बिस्तर पर लेट गई। आधी रात बीतने के बाद मैं नमाज़े शब पढ़ने के लिए उठी और नमाज़ पढ़ कर नर्जिस की तरफ़ देखा तो वह उस वक़्त तक आराम से ऐसे सोई हुई थीं, जैसे उनके सामने कोई मुश्किल न हो। मैं नमाज़ की ताक़िबात (नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली दुआओं को ताक़ीबात कहते हैं) के बाद फिर पलटी और नर्जिस खातून की तरफ़ देखा तो वह उसी तरह सोई हुई थीं। थोड़ी देर के बाद वह नींद से जागी और नमाज़े शब पढ़ कर दो बारा सो गईं।
हकीमा खातून का कहना है कि मैं सहन में आई ताकि देखूं कि सुब्हे सादिक (सुब्ह की नमाज़ के वक़्त को सुब्हे सादिक़ कहते हैं) हुई या नहीं, मैं ने देखा कि अभी सुब्हे काज़िब (रात का वह आख़िरी हिस्सा जिस में ऐसा लगता है कि सुब्ह हो गई है, लेकिन वास्तव में रात ही होती है उसे सुब्हे काज़िब कहते हैं) है। मैं जब यह देखने के बाद अन्दर आयी तो उस वक़्त तक भी नर्जिस खातून सोई हुई थीं। मुझे शक होने लगा ! अचानक हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपने बिस्तर से आवाज़ दी : ऐ फुफी जान जल्दी न करें बच्चे के जन्म का समय नज़दीक है। मैं ने सूरः ए सजदा और सूरः ए यासीन की तिलावत शुरु कर दी। तभी जनाबे नर्जिस परेशानी की हालत में नींद से जागीं, मैं जल्दी से उन के पास गई और कहा, ”اسم اللہ علیک“ (तुम से बला दूर हो) क्या तुम्हें किसी चीज़ का एहसास हो रहा है? उन्होंने कहा कि हाँ फुफी जान, मैं ने कहा कि अपने ऊपर कन्ट्रोल रखो, और अपने दिल को मज़बूत कर लो, यह वही वक़्त है जिस के बारे में मैं आपको पहले बता चुकी हूँ। इस मौके पर मुझे और नर्जिस खातून को कमज़ोरी का एहसास हुआ। इस के बाद मेरे सैय्यद व सरदार बच्चे की आवाज़ सुनाई दी। मैं ने उनके ऊपर से चादर हटाई तो उन को सजदे की हालत में देखा, मैं आगे बढ़ी और बच्चे को गोद में ले लिया। मैंने देखा कि बच्चा पूरी तरह से पाक व पाक़ीज़ा है।
उस मौक़े पर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने मुझ से फरमाया : ऐ फुफी जान मेरे बेटे को मेरे पास ले आइये। मैं उस को उनके पास ले गई, उन्होंने अपनी गोद में ले कर फरमायाः ऐ मेरे बेटे कुछ बोलो ! यह सुन कर वह बच्चा बोलने लगा और कहा कि اشھد ان لا الہ الا الله وحدہ لا شریک لہ و اشھد انّ محمداً رسول الله“, इस के बाद अमीरुल मोमिनीन और अन्य मासूम इमामों (अ.स.) पर दुरुद भेजा और अपने पिता का नाम लेने पर रुक गये। इमामे हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमायाः फुफी जान! इस बच्चे को इस की माँ के पास ले जाओ, ताकि यह उन्हें सलाम करे।
हकीमा खातून कहती हैं, कि दूसरे दिन जब में इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के यहाँ गई तो मैं ने इमाम (अ.स.) को सलाम किया, मैं ने अपने मौला व आक़ा (इमाम महदी) को देखने के लिए पर्दा उठाया, लेकिन वह दिखाई न दिये, अतः मैं ने उन के हज़रत इमाम हसन अस्करी से सवाल किया : मैं आप पर कुर्बान, क्या मेरे मौला व आक़ा के लिए कोई इत्तिफाक़ पेश आ गया है? इमाम (अ.स.) ने फरमायाः ऐ फुफी जान मैं ने उस को उस ख़ुदा के सुपुर्द कर दिया है जिस को जनाबे मूसा की माँ ने जनाबे मूसा को सिपुर्द किया था।
हकीमा खातून कहती हैं, जब सातवां दिन आया मैं फिर इमाम (अ.स.) के यहाँ गई और सलाम करके बैठ गई। इमाम (अ.स.) ने फरमायाः मेरे बेटे को मेरे पास लाओ, मैं अपने मौला व आक़ा को उन के पास ले गई, इमाम (अ.स.) ने फरमाया : ऐ मेरे बेटे कुछ बात करो, बच्चे ने ज़बान खोली और ख़ुदा वन्दे आलम की वहदानियत (एकेश्वरवाद) की गवाही देने और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) व अपने बाप दादाओं पर दुरुद व सलाम भेजने के बाद इन आयतों की तिलावत फरमाई।
और हम ये जानते हैं कि जिन लोगों को ज़मीन में कमज़ोर कर दिया गया है उन पर एहसान करें और उन्हें लोगों का इमाम और ज़मीन का वारीस बनायें और उन्हीं को ज़मीन पर हुकूमत दें और फिरौन व हामान और उनकी फ़ौजों को उन्हीँ कमज़ोरों के हाथों वह मंज़र दिखलायें जिस से ये डर रहे हैं।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विशेषताएं
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अहलेबैत (अ.स.) की रिवायतों में इमाम महदी (अ.स.) की शक्ल व सूरत और विशेषताओं का जो उल्लेख मिलता है, यहाँ पर उन में से कुछ की तरफ़ इशारा किया जा रहा है।
इमाम के चेहरे का रंग गेहूँआ, ऊँचा व चमकता हुआ माथ, भंवैं गोल और आँखें बड़ी बड़ी, नाक लम्बी और खूबसूरत, दाँत चौड़े और चमकदार, दाहिने गाल पर एक काले तिल का निशान, काँधे पर नबूवत जैसी एक निशानी, जिस्म मज़बूत और दिलरुबा है।
आपकी जो निशानियाँ व विशेषताएं मासूम इमामों (अ.स.) की हदीसों में बयान हुई हैं उन में से कुछ इस तरह हैं।
(हज़रत महदी अ. स.) बहुत इबादत करने वाले हैं और वह रात भर जाग कर इबादत करते हैं। वह ज़ाहिद और सादी ज़िन्दगी बसर करने वाले हैं। वह सब्र और बर्दाश्त करने वाले हैं। वह न्याय से काम करने वाले और नेक किरदार के मालिक हैं। वह इल्म के लिहाज़ से सब लोगों से उत्तम हैं और उनका मुबारक वजूद बरकत और पाकिज़गी का समुन्द्र है। वह जुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़े होंगे और जंग करेंगे। वह पूरी दुनिया के लोगों का नेतृत्व करेंगे और दुनिया में बहुत बड़ा इन्केलाब (परिवर्तन) लायेंगे। वह लोगों को निजात (मुक्ति) दिलाने वाले आख़िरी हादी होंगे और इंसानियत का सुधार करने वाले होंगे। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नस्ल से, हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) की औलाद हैं और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के नवें बेटे हैं। वह अपने ज़हूर के वक़्त खान- ए- काबा की दीवार के सहारे खड़े होंगे और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का परचम अपने हाथ में लिए होंगे। वह अपने क़ियाम से अल्लाह के दीन को ज़िन्दा करेंगे और अल्लाह के अहकाम (आदेशों) को पूरी दुनिया में लागू करेंगे। वह अपने ज़हूर के बाद दुनिया को अदल व इंसाफ (न्याय) और मुहब्बत से भर देंगे, जैसा कि वह उनके आने से पहले ज़ुल्म व अत्याचार से भरी होगी।
इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की ज़िन्दगी तीन हिस्सों में बटी हुई है-
1. मख़फ़ी ज़माना—जन्म के वक़्त से हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की शहादत तक आपकी ज़िन्दगी लोगों से मख़फ़ी (गुप्त) रही।
2. ग़ैबत का ज़माना- हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की शहादत के बाद से इमाम (अ.स.) की ग़ैबत का सिलसिला शुरु हुआ और जब तक ख़ुदा वन्दे आलम चाहेगा ये सिलसिला जारी रहेगा।
3. ज़हूर का ज़माना- ग़ैबत का वक़्त पूरा होने के बाद इमामे ज़माना (अ.स.) अल्लाह के हुक्म से ज़हूर फरमायेंगे और दुनिया को अदल व इन्साफ़ और नेकियों से भर देंगे। उनके ज़हूर का वक़्त कोई भी नहीं जानता और इमामे ज़माना (अ.स.) से रिवायत है कि जो लोग हमारे ज़हूर के लिए कोई ख़ास वक़्त निश्चित करें वह झूठे हैं।
दूसरा हिस्सा
जन्म के समय से हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) की शहादत तक
हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) की ज़न्दगी का यह ज़माना बहुत से महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर आधारित है जिन में से कुछ की तरफ यहाँ पर इशारा किया जाता है।
इमाम महदी (अ.स.) से शिओं का परिचय
चूँकि हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) का जन्म बहुत ही गुप्त रूप से हुआ था, इस वजह से यह डर था कि शिया आखरी इमाम की पहचान में ग़लत फ़हमी या भटकाव का शिकार हो सकतें हैं। इस लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की यह ज़िम्मेदारी थी कि वह बुज़ुर्ग और भरोसेमंद शिया लोगों को अपने बेटे के जन्म के बारे में बतायें और उनकी पहचान करायें ताकि वह इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) के जन्म की खबर को अहलेबैत (अ.स.) के शियों तक पहुँचा दें। इस सूरत में इमाम की शिनाख्त और पहचान भी हो जायेगी और उनके सामने कोई खतरा भी नहीं आयेगा।
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के एक खास शिया, अहमद इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि :
मैं एक बार हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के पास गया। मैं उन से यह सवाल पूछना चाहता था कि आपके बाद इमाम कौन होगा? लेकिन मेरे कहने से पहले ही इमाम (अ.स.) ने फरमाया : ऐ अहमद ! बेशक ख़ुदा वन्दे आलम ने जिस वक़्त से हज़रत आदम (अ.स.) को पैदा किया उस वक़्त से आज तक ज़मीन को कभी भी अपनी हुज्जत से खाली नहीं रखा और यह सिलसिला कयामत तक जारी रहेगा। अल्लाह अपनी हुज्जत के ज़रिये ज़मीन से बलाओं को दूर करता है और उसी के वजूद की बरकत से)रहमत की बारिश करता रहता है।
मैं ने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल के बेटे आपके बाद आपका जानशीन व इमाम कौन है?
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) फौरन अपने घर के अन्दर तशरीफ़ ले गए और एक तीन साल के बच्चे को अपनी गोद में ले कर वापस आये। उस बच्चे की सूरत चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रही थी। इमाम (अ.स.) ने फरमाया : ऐ अहमद बिन इस्हाक़ ! अगर तुम ख़ुदा वन्दे आलम और उसकी हुज्जतों के नज़दीक़ मोहतरम व आदरनीय न होते तो मैं अपको अपने इस बेटे को कभी न दिखाता। बेशक इस का नाम और कुन्नियत, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का नाम और कुन्नियत है और यह वही है जो ज़मीन को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जिस तरह वह इस से पहले ज़ुल्म व सितम से भरी होगी।
मैं ने अर्ज़ किया : ऐ मेरे मौला व आक़ा क्या कोई ऐसी निशानी है जिस से मेरे दिल को सकून हो जाये?
इस मौक़े पर उस बच्चे ने अपनी ज़बान को खोला और बेहतरीन अरबी में इस तरह बात की:
”اٴنَا بَقِیَّةُ اللهِ فِی اٴرْضِہِ وَ المُنتَقِمُ مِنْ اٴعْدَائِہِ۔۔۔“
मैं ज़मीन पर बक़ीयतुल्लाह हूँ और अल्लाह के दुश्मनों से बदला लेने वाला हूँ। ऐ अहमद इब्ने इस्हाक़ ! तुम ने अपनी आँखों से सब कुछ देख लिया है अतः अब किसी निशानी की ज़रुरत नहीं है।
अहमद इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि : मैं (यह बात सुनने के बाद) खुशी खुशी हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के मकान से बाहर आ गया...
इसी तरह मोहम्द इब्ने उस्मान और कुछ बुज़ुर्ग शिया नक्ल करते हैं कि :
हम चालीस लोग मिल कर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की खिदमत में गये। हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपने बेटे की ज़ियारत कराई और फरमाया : मेरे बाद यही बच्चा, मेरा जानशीन और तुम्हारा इमाम होगा। तुम लोग इसकी इताअत (आज्ञा पालन) करना, और मेरे बाद अपने दीन में बिखर न जाना वर्ना हलाक़ हो जाओगे और (जान लो कि) आज के बाद तुम इन को नहीं देख पाओगे...।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जन्म के बाद बच्चे का अक़ीका सुन्नत है और इसकी बहुत ताकीद भी की गई है। दीन के इस हुक्म के बारे में कहा गया है कि भेड़ बकरी ज़िब्ह कर के कुछ मोमेनीन को खाना खिलाये, इस की बरकत से बच्चे की उम्र लंबी होती है। अतः हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपने इस बेटे ( हज़रत इमाम महदी (अ. स).) के लिए अक़ीक़ा किया.. ताकि नबी (स.) की इस इबेहतरीन सुन्नत पर अमल करते हुए बहुत से शियों को बारहवें इमाम के जन्म से अवगत करायें।
मुहम्मद इब्ने इब्राहीम कहते हैं कि :
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अक़ीक़े में ज़िब्ह की गई भेड़ अपने एक शिया के पास भेजी और फरमाया : यह मेरे बेटे (मुहम्मद) के अक़ीक़े का गोश्त है....
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के मोजज़ें और करामतें
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी का एक हिस्सा, उनके बचपन का ज़माना है जिस में उनके ज़रिये बहुत से मोजज़ें और करामतें देखने को मिलीं हैं, जब कि अल्लाह की इस आख़री हुज्जत की ज़िन्दगी का यह हिस्सा हमारी ग़फ़लत का शिकार हुआ है। हम यहाँ पर उनकी करामतों में से सिर्फ़ एक नमूना पेश कर रहे हैं।
इब्राहीम इब्ने अहमद निशा पूरी कहते हैं कि :
जिस वक़्त अम्र बिन औफ़ ने (वह एक ज़ालिम और सितमगर बादशाह था और उसे शियों को क़त्ल करने का बहुत ज़्यादा शौक़ था) मुझे क़त्ल करने का इरादा किया, उस वक़्त मैं बहुत ज़्यादा डरा हुआ था। मेरा पूरा जिस्म डर से काँप रहा था। मैं अपने दोस्तों और परिवार वालों से ख़ुदा हाफ़िज़ी कर के हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के घर की तरफ़ रवाना हुआ ताकि उन से भी ख़ुदा हाफिज़ी कर लूँ। मेरा इरादा था कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) से मुलाक़ात के बाद कहीँ भाग जाऊँगा। जब मैं हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के मकान पर पहुँचा तो हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के पास एक बच्चे को देखा उसका चेहरा चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रहा था। मैं उस का नूर देख कर हैरान रह गया, और क़रीब था कि अपने इरादे (क़त्ल के डर से भागने का इरादा) को भूल जाऊँ।
उस मौक़े पर उस बच्चे ने मुझ से कहा कि ऐ इब्राहीम भागने की ज़रूरत नही है। अल्लाह बहुत जल्दी तुम्हें उसके ज़ुल्म से बचा लेगा।
यह सुन कर मेरी हैरानी और बढ़ गई, मैं ने हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) से कहा : मैं आप पर कुर्बान ये बच्चा कौन है, जो मेरे इरादों से जानता है? हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) ने फ़रमाया : ये मेरा बेटा है और मेरे बाद मेरा जानशीन है।
इब्राहीम कहते हैं कि : मैं हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के मकान से इस हालत में बाहर निकला कि मुझे ख़ुदा के लुत्फ़ व करम की उम्मीदवार थी और मैं ने जो बारहवें इमाम (अ.स.) से सुना था उस पर यक़ीन रखता था। अतः कुछ दिनों के बाद ही मेरे चचा ने मुझे अम्र बिन औफ़ के क़त्ल होने की खुश खबरी दी...
सवालों के जवाब
आसमाने इमामत के आख़री रौशन सितारे हज़रत इमाम महदी (अ.स.) अपनी ज़िन्दगी के शुरू से शियों को उनके सवालों के सही, ठोस और संतुष्ट करने वाले जवाब देते थे। उनके जवाबों को सुन कर शियों के दिलों में सकून व इत्मिनान पैदा होता था। हम यहाँ पर ऐसे ही सवालों व जवाबों से संबंधित एक रिवायत नमूने को तौर पर लिख रहे हैं।
सअद इब्ने अब्दुल्लाह क़ुम्मी (यह शियों में एक बहुत बड़ी शख्सीयत थे।), अहमद इब्ने इस्हाक़ क़ुम्मी (यह हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के वकील थे।) के साथ कुछ सवालों के जवाब मालूम करने के लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के पास गये, वापस आकर उन्होंने इस मुलाक़ात का विवरण इस तरह बताया :
जब मैं ने सवाल करना चाहा तो हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपने बेटे की तरफ़ इशारा करते हुए फरमाया : मेरे इस बेटे से सवाल करो। यह सुन कर बच्चे ने मेरी तरफ़ मुँह करके फरमाया : तुम जो सवाल भी पूछना चाहते हो पूछ सकते हो। मैं ने सवाल किया कुरआन के हुरुफ़ मुकत्तेआत में से ”کھیعص“ का क्या मक़सद है? इमाम (अ.स.) ने फरमाया : यu हुरुफ़ ग़ैब के मसाइल में से हैं। ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने बन्दे और पैग़म्बर जनाब ज़करिया को उनके बारे में बताया और फिर उनके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को दो बारा बताया।
वाक़िया यूं है कि हज़रत ज़करिया (अ.स.) ने ख़ुदा वन्दे आलम से दुआ की कि मुझे पंजतन (आले एबा) के नाम बता दे, ख़ुदा वन्दे आलम ने जनाबे जिब्रईल को नाज़िल किया और उन्होंने उनको पंजतन के नाम बताये। जैसे ही जनाबे ज़करीया ने इन मुकद्दस नामों हज़रत मुहम्मद (स.) हज़रत अली (अ.स.), हज़रत फातिमा (स. अ.) और हज़रत हसन (अ.स.) को अपनी ज़बान से लिया तो उनकी मुशकिलें दूर हो गईं और जब उनकी ज़बान पर हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का नाम आया तो उनका दिल भर आया और वह चकित हो कर रह गये। उन्होंने एक दिन अल्लाह की बारगाह में दुआ की कि ऐ अल्लाह ! जिस वक़्त मैं इन चार इंसानों के नामों को लेता हूँ तो मेरी परेशानियाँ और मुश्किलें दूर हो जाती हैं और दिल को सकून मिलता है, लेकिन जब मैं हुसैन (अ.स.) का नाम लेता हूँ तो मेरी आँखों से आँसू बहने लगते हैं और मेरे रोने की आवाज़ बुलन्द हो जाती है ! पालने वाले इस की क्या वजह है? ख़ुदा वन्दे आलम ने उनको हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का वाकिया सुनाया और फरमाया : ”کھیعص“ इसी वाकिये की तरफ़ इशारा है। इन हरफ़ों में ”کاف “ से मुराद वाकिया ए करबला, और ”ھا“ से उनके खानदान की हलाकत (शहादत) मुराद है और ”یا“ से यज़ीद के नाम की तरफ़ इशारा है, जो इमाम हुसैन (अ.स.) पर ज़ुल्मो सितम करने वाला है, और ”ع“ से इमाम हसन (अ.स.) की अतश और प्यास मुराद है, और ”صاد“ से हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का सब्र व मुराद है।
मैं ने सवाल किया : मेरे मौला व आक़ा लोगों को अपने लिए ख़ुद इमाम बनाने से क्यों रोका गया है?
इमाम (अ.स.) ने फरमाया : इमाम से तुम्हारा अभिप्रायः कौनसा इमाम है, बुराईयाँ फैलाने वाला इमाम या समाज को सुधारने वाला इमाम? मैं ने कहा : समाज को सुधारने वाला इमाम, इमाम (अ.स.) ने फरमाया : क्योंकि कोई भी किसी दूसरे के दिल की बातें नहीं जानता हैं कि वह नेकी व भलाई के बारे में सोचता है या बुराई के बारे में, इस सूरत में क्या इस बात की शंका नहीं पाई जाती कि जनता जिसे अपना इमाम चुने वह बुराईयाँ फैलाने वाला हो। मैं ने कहा : जी हाँ इस बात की शंका तो पाई जाती है। मेरे इस जवाब को सुनकर इमाम (अ.स.) ने फरमाया : बस यही वजह है... ...
उल्लेखनीय है कि इस रिवायत के अन्त में इमामे ज़माना (अ.स.) ने दूसरे कारणो का भी वर्णन किया हैं और दूसरे सवालों के जवाब भी दिये हैं, हम ने संक्षेप की वजह से पूरी रिवायत का उल्लेख नहीं किया है।
तोहफ़ें क़बूल करना
शिया लोग मासूम इमामों (अ.स.) के लिए तोहफे और माली वाजेबात (ख़ुम्स) ले जाया करते थे और मासूम इमाम इन को क़बूल कर के ग़रीब और मुहताज लोगों में बाँट दिया करते थे।
इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के वकील इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि :
मैं ने शियों की भेजी हुई कुछ रक़म हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की सेवा में प्रस्तुत की, उस समय इमाम (अ.स.) का एक छोटा बच्चा जिस का चेहरा चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रहा था, इमाम के पास मौजूद था। इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने उसकी तरफ़ मुँह कर के फरमाया : ऐ मेरे बेटे ! अपने शियों और दोस्तों के तोहफ़ों को खोलो, यह सुन कर उस बच्चे ने कहा : ऐ मेरे मौला व आक़ा, क्या यह बात उचित है कि मैं उन नापाक़ और तुच्छ तोहफ़ों की तरफ़ अपने पाक व पाक़ीज़ा हाथों को बढ़ाऊँ जो हलाल व हराम से मिले हुए हैं।
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : ऐ इब्ने इस्हाक़ ! इन सब तोहफ़ों व उपहारों को बाहर निकालो ताकि इन में से हलाल व हराम को अलग अलग किया जाये। इमाम के हुक्म पर मैं ने एक थैली बाहर निकाली तो उस बच्चे ने कहा : यह थैली क़ुम से उस मुहल्ले और उस इंसान की है (जिस इंसान ने वह थैली भेजी थी इमाम ने उस इंसान और उसके मुहल्ले का नाम लिया) इस थैली में 62 दीनार हैं इस में से 45 दीनार एक बंजर ज़मीन को बेच कर के कमाये गये है, और उसके मालिक को वह ज़मीन मीरास में मिली थी और इस में 14 दीनार 9 जोड़ी कपड़ो को बेच करके कमाये गये हैं, और बाक़ी तीन दीनार दुकान के किराये के हैं।
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : ऐ मेरे प्यारे बेटे आप ने सही फरमाया, अब इस मर्द की रहनुमाई (मार्गदर्शन) करो कि इस माल में कौन सा माल हराम है। यह सुन कर उस बच्चे ने भर पूर दिक्कत के साथ हराम सिक्कों को निश्चित किया और उनके हराम होने की वजह को स्पष्ट रूप में बताया।
मैं ने दूसरी थैली निकाली तो उस बच्चे ने उस के मालिक का नाम और पता बताने के बाद फरमाया : इस थैली में 50 दीनार हैं और उनको हाथ लगाना हमारे लिए जायज़ नहीं है। इस के बाद उस माल में से हर एक के हराम होने की वजह बताई।
उस मौके पर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : ऐ मेरे बेटे आप ने सही फरमाया। फिर इमाम (अ.स.) ने अहमद इब्ने इस्हाक़ की तरफ़ चेहरा करके फरमाया : इन सब को इन के मालिकों को वापस कर दो, और उन से कहना कि वह इन्हें उन के मालिकों को वापस कर दें, हमें इस माल की कोई ज़रुरत नहीं है....
अपने पिता की नमाज़े मैय्यत पढ़ाना
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत से पहले और मख्फ़ी (छुप कर) रहने के ज़माने का आखरी हिस्सा अपने पिता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाना है।
इस बारे में हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के ग़ुलाम अबुल अदियान का कहना है कि :
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने अपनी उम्र के आखरी दिनों में मुझे कुछ ख़त दिये और फरमाया : इन को मदाइन नामक शहर में पहुँचा दो, जब तुम इनको पहुँचा कर 15 दिन के बाद सामर्रा वापस पलटोगे तो मेरे घर से रोने पीटने की आवाज़ें सुनोगे और (मेरे बदन को) गुस्ल के तख्ते पर देखोगे। मैं ने इमाम अ. स. से पूछा ऐ मेरे मौला व आक़ा ! इस घटना के घटित होने के बाद आप का जानशीन और हमारा इमाम कौन होगा? इमाम (अ.स.) ने फरमाया : जो भी तुम से इन ख़त के जवाब माँगेगा वही मेरे बाद तुम्हारा इमाम होगा। मैं ने कहा उसकी कोई दूसरी निशानी बताईये, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : जो इंसान मेरी नमाज़े जनाज़ा पढ़ायेगा वही मेरे बाद तुम्हारा इमाम होगा। मैं ने कहा कुछ और निशानी बताईये, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : जो इंसान यह बता दे कि इस थैली में क्या है, वही तुम्हारा इमाम होगा। उस वक़्त मुझ पर इमाम (अ.स.) का ऐसा रोब छाया कि मैं यह सवाल न कर सका कि इस थैली में क्या है।
मैं इमाम (अ.स.) के उन खतों को ले कर मदाइन गया और उनका जवाब ले कर वापस आया। इमाम (अ.स.) ने जो फरमाया था वह सच हुआ, जब मैं 15 दिन के बाद सामर्रा वापस पलटा तो देखा कि हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) के घर से रोने पीटने की आवाज़ें आ रही हैं और हज़रत इमाम अस्करी (अ.स.) के मुबारक बदन को गुस्ल के लिए तख़्ते पर लिटा रखा है। मैं ने देखा कि इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के भाई जाफ़र दरवाज़े पर खड़े हैं और कुछ शिया उनको भाई की शहादत पर दिलासा दे रहे हैं और साथ ही साथ उन्हें इमामत की मुबारक बाद भी पेश कर रहे हैं। मैं ने अपने दिल में कहा कि अगर यह (जाफ़र) इमाम हो गए तो इमामत तबाह व बर्बाद हो जायेगी, क्यों कि मैं उसको पहचानता था व शराबी और जुवारी इंसान था। लेकिन चूँकि मैं निशानियों की तलाश में था इस लिए मैं भी आगे बढ़ा और मैं ने भी दूसरों की तरह दिलासा देते हुए मुबारक़ बाद पेश की, लेकिन उसने मुझ से किसी भी चीज़ (अर्थात खतों के जवाबों व अन्य चीज़ों) के बारे में सवाल नही किया। उसी वक़्त इमाम के घर का नौकर अक़ीद घर से बाहर आया और उसने जाफ़र को संबोधित करते हुए कहा : ऐ मेरे मौला व आक़ा ! आप के भाई हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) को कफ़न दिया जा चुका है, अब चल कर उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ा दीजिये। जब मैं दूसरे शियों के साथ इमाम के घर में दाखिल हुआ तो मैं ने देखा कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के जनाज़े को क़फ़न दे कर ताबूत में रखा जा चुका है। जाफ़र अपने भाई की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन जैसे ही उन्होंने तक़बीर कहनी चाही तभी एक गेहूँवे रंग, घुंघराले बाल और चमकदार व आपस में मिले हुए दाँतों वाला बच्चा आगे बढ़ा और जाफ़र का दामन पकड़ कर कहा : ऐ चचा आप पीछे हटें, मैं अपने बाप के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ने का ज़्यादा हक़दार हूँ। जाफ़र के चेहरे का रंग बदल गया और वह शर्मिन्दा हो कर पीछे हट गये। वह बच्चा आगे बढ़ा और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ी। उस के बाद मुझ से फरमाया : तुम्हारे पास खतों के जो जवाब हैं वह मुझे दे दो। मैं ने वह खत उनको दिये और अपने दिल ही दिल में कहा कि मुझे इस बच्चे की इमामत पर दो निशानियाँ मिल गई हैं और अब सिर्फ़ थैली वाली बात बाक़ी रह गई है। मैं जाफ़र के पास गया तो देखा कि वह आहे भर रहे हैं, किसी शिया ने उन से सवाल किया यह बच्चा कौन है?
जाफ़र ने कहा : ख़ुदा की क़सम मैं ने इस को अभी तक नहीं देखा था और न ही मैं इस को पहचानता हूँ।
अबूल अदियान कहते हैं कि हम बैठे हुए थे कि कुछ लोग क़ुम से आये और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के बारे में सवाल करने लगे। जब उनको मालूम हुआ कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की शहादत हो चुकी है तो कहने लगे कि अब हम किस के पास अफ़सोस के लिए जायें तो लोगों ने जाफ़र की तरफ़ इशारा किया, वह आगे बढ़े और उन्होंने जाफ़र को सलाम करने के बाद इमाम की शहादत पर दिलासा देते हुए इमामत की मुबारकबाद पेश की और फिर उन्होंने जाफ़र को संबोधित कर के कहा : हमारे पास कुछ ख़त और कुछ रक़म हैं, आप सिर्फ़ यह बता दीजिये कि यह ख़त किस के हैं और रक़म कितनी है।
जाफ़र नाराज़ हो कर अपनी जगह से उठे और कहने लगे : क्या हमारे पास गैब का इल्म हैं। इसी वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का एक ग़ुलाम बाहर निकला और उसने कहा : यह ख़त उस उस इंसान के हैं (ख़त भेजने वालों के नाम व पते बताये) और तुम्हारे पास एक थैली है जिस में एक हज़ार दिनार है उस में से दस दिनारों की तस्वीर मिट चुकी है। यह सुनकर उन लोगों ने वह ख़त और रक़म उसको दे दी और कहा : जिस ने तुम्हें यह चीज़ें लेने के लिए भेजा है वही इमाम हैं.....।
तीसरा हिस्सा
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) कुरआन व हदीस की रौशनी में
कुरआने क़रीम की रौशनी में
कुरआने करीम अल्लाह को पहचनवाने वाला, हमेशा बाकी रहने वाला और इंसानों के लिए ज़रुरी इल्म का बहता हुआ दरिया है। यह एक ऐसी किताब है जिस में पूरी सच्चाई पाई जाती है। इस में पूर्व में घटित घटनाओ और आगे घटित होने वाली घटनाओं आदि का उल्लेख मिलता है। अल्लाह ने इस किताब में किसी भी हक़ीक़त को वर्णन किये बग़ैर नहीं छोड़ा है। यह बात स्पष्ट है कि दुनिया की बहुत सी हक़ीक़तें अल्लाह की इन आयतों में छुपी हुई हैं और उन हक़ीक़तों तक सिर्फ़ वही लोग पहुँच पाते हैं जो कुरआन की गहराई तक पहुँच जाते हैं। कुरआने करीम के सच्चे मुफ़स्सिर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और उनकी पाक औलाद है।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का कियाम (आन्दोलन) और इन्क़ेलाब (क्रान्ति) इस दुनिया की सब से बड़ी हक़ीक़त है जिस के बारे में कुरआने करीम की कुछ आयतों और उन आयतों की तफ़्सीर से संबंधित बहुत सी रिवायत में इशारा हुआ है। हम यहाँ पर इसके कुछ नमूने पेश कर रहे हैं।
सूरः ए नबियों की आयत न. 105 में वर्णन होता है :
<وَلَقَدْ کَتَبْنَا فِی الزَّبُورِ مِنْ بَعْدِ الذِّکْرِ اٴَنَّ الْاٴَرْضَ یَرِثُہَا عِبَادِی الصَّالِحُونَ۔>
और हम ने ज़िक्र के बाद ज़बूर में भी लिख दिया है कि हमारी ज़मीन के वारीस हमारे नेक बन्दे ही होंगे।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :
ज़मीन को विरासत में लेने वालों से अभिप्रायः अल्लाह के वह नेक बन्दे हैं जो हज़रत इमाम महदी (अ.स.) मददगार हैं....
इसी तरह सूरः ए क़िसस में वर्णन होता है :
وَنُرِیدُ اٴَنْ نَمُنَّ عَلَی الَّذِینَ اسْتُضْعِفُوا فِی الْاٴَرْضِ وَنَجْعَلَہُمْ اٴَئِمَّةً وَنَجْعَلَہُمْ الْوَارِثِینَ
और हम यह चाहते हैं कि जिन लोगों को ज़मीन में कमज़ोर बना दिया गया है ( अर्थात जिनका शोषण किया गया) हम उन पर एहसान करें और उन्हें लोगों का इमाम बनाये और उन्हीँ को ज़मीन के वारिस भी बनायें।
हज़रत इमाम अली (अ.स.) फरमाते हैं कि :
यहाँ पर शोषित वर्ग से अभिप्रायः पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की औलाद है, ख़ुदा वन्दे आलम इस खानदान की परेशानियों के बाद (महदी) के ज़रिये एक इन्क़ेलाब को कामयाब बनायेगा और उनकी हुकूमत को आख़िरी हद तक पहुँचा देगा और उनके दुशमनों को ज़लील कर देगा....
इसी तरह सूरः ए हूद आयत 86 में वर्णन हुआ है :
بَقِیَّةُ اللهِ خَیْرٌ لَکُمْ إِنْ کُنتُمْ مُؤْمِنِینَ
अगर तुम मोमिन हो तो अल्लाह की तरफ़ का ज़ख़ीरा तुम्हारे हक़ में बहुत बेहतर है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :
जिस वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे खाना ए काबा की दीवार से टेक लगायेंगे और सब से पहले इसी आयत की तिलावत करेंगे और उस के बाद कहेंगे : اَنَا بَقِیَّةُ اللهِ فی اٴَرْضِہِ وَ خَلِیفَتُہُ وَ حُجَّتُہُ عَلَیکُمْ“ मैं ज़मीन पर बक़ीयतुल्लाह, अल्लाह का ख़लीफ़ा और तुम पर उस की हुज्जत हूँ।
इसके बाद जो इंसान भी इमाम (अ.स.) को सलाम करेगा वह इस तरह कहेगा :
اَلسّلامُ عَلَیکَ یَا بَقِیَّةَ اللهِ فی اٴَرْضِہِ “ .
और सूरः ए हदीद की आयत न. 17 में वर्णन होता है :
اعْلَمُوا اٴَنَّ اللهَ یُحْیِ الْاٴَرْضَ بَعْدَ مَوْتِہَا قَدْ بَیَّنَّا لَکُمْ الْآیَاتِ لَعَلَّکُمْ تَعْقِلُونَ۔
याद रखो कि ख़ुदा मुर्दा ज़मीनों को ज़िन्दा करने वाला है और हम ने तमाम निशानियों का स्पष्ट रूप में वर्णन कर दिया है ताकि तुम अक्ल से काम ले सको।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :
अभिप्रायः यह है कि ख़ुदा वन्दे आलम ज़मीन को हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर के वक़्त उनकी अदालत के ज़रिये ज़िन्दा करेगा जो ज़ालिम बादशाहों के ज़ुल्मो सितम की वजह से मुर्दा हो चुकी होगी....
रिवायत की रौशनी में
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के बारे में हमारे पास बहुत सी रिवायतें मौजूद हैं और इन रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं को मासूम इमामों (अ.स.) ने अलग अलग बयान किया है, जैसे इमाम का जन्म, बच्पन का ज़माना, ग़ैबते सुग़रा, ग़ैबते कुबरा, ज़हूर की निशानियां, ज़हूर का ज़माना, विश्व व्यापी हुकूमत आदि आदि। अतः इमाम महदी (अ.स.) की ज़ाहिरी और अख़लाक़ी विशेषताओं, ग़ैबत के ज़माने और उन के ज़हूर के मुन्तज़िरों (प्रतिक्षा करने वालों) के सवाब के बारे में बहुत महत्वपूर्ण रिवायतें मौजूद हैं। यह बात उल्लेखनीय है कि उन में से कुछ रिवायतें ऐसी हैं जो शिया और अहले सुन्नत दोनों की क़िताबों में मौजूद हैं। इमाम महदी (अ.स.) के बारे में बहुत ज़्यादा रिवायत मुतावातिर हैं।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि सब ही मासूम इमामों (अ.स.) ने उनके बारे में बेहतरीन हदीसें बयान की हैं जो वास्तव में इल्म पर ही आधारित हैं। उन में समानता व न्याय फैलाने वाले इस इमाम के क़ियाम व इंकिलाब (आन्दोलन) का वर्णन है। हम यहाँ पर हर मासूम से एक एक हदीस बयान करना बेहतर समझते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
खुश नसीब हैं वह लोग जो महदी (अ.स.) की ज़ियारत करेंगे और खुश नसीब है वह इंसान जो उन से मुहब्बत करता होगा, और खुश नसीब है वह इंसान जो उन की इमामत को मानता होगा....
हज़रत अली (अ.स.) ने फरमाया :
(आले मुहम्मद) के ज़हूर के मुंतज़िर रहो, और ख़ुदा की रहमत से मायूस न होना, बेशक ख़ुदा वन्दे आलम के नज़दीक सब से अच्छा काम ज़हूर का इन्तेज़ार करना है..
हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के लोह.. में वर्णन हुआ है :
इस के बाद अपनी रहमत की वजह से वसी का सिलसिला इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के बेटे पर पूरा कर दूंगा, जो मूसा का कमाल, ईसा का शिकोह, और जनाबे अय्यूब का सब्र रखाता होगा...
हज़रत इमाम हसन मुजतबा (अ.स.) एक रिवायत में रसूले ख़ुदा (स.) के बाद घटित होने वाली घटनाओं का वर्णन करते हुए फरमाते हैं कि :
ख़ुदा वन्दे आलम अख़िरी ज़माने में एक क़ाइम को भेजेगा...और अपने फ़रिश्तों के ज़रिये उनकी मदद करेगा, और उनके मददगारों की हिफ़ाज़त करेगा...और उनको तमाम ज़मीन पर रहने वालों पर विजयी बनायेगा...वह ज़मीन को अदालत, नूर और स्पष्ट दलीलों से भर देंगे...खुश नसीब हैं वह इंसान जो उस ज़माने में होंगे और उन की इताअत (आज्ञा पालन) करेंगे...
हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने फरमाया :
ख़ुदा वन्दे आलम उनके ( हज़रत इमाम महदी अ. स.) ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा और आबाद कर देगा, और उनके ज़रिये दीने हक़ को अन्य सब दीनों पर गालिब कर देगा, चाहे यह बात मुशरिकों को अच्छी न लगे, वह ग़ैबत को अपनायेंगे जिसकी वजह से एक गिरोह दीन से गुमराह हो जायेगा और एक गिरोह दीने हक़ पर क़ायम रहेगा...बेशक जो इंसान उनकी ग़ैबत के ज़माने में परेशानियों और झुटलाये जाने पर सब्र करेगा वह उस इंसान की तरह होगा जिस ने रसूले ख़ुदा (स.) के साथ रह कर तलवार से जिहाद किया हो....
हज़रत इमाम सज्जाद (अ.स.) ने फरमाया :
जो इंसान क़ाइमे आले मुहम्मद के ज़माने में हमारी मुहब्बत और दोस्ती पर साबित क़दम रहेगा ख़ुदा वन्दे आलम उसे बदर व ओहद के हज़ार शहीदों के बराबर सवाब देगा...
इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया:
एक ज़माना वह आयेगा कि जब लोगों का इमाम ग़ायब होगा, ख़ुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारी दोस्ती पर साबित क़दम रहे...
हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने फरमाया:
काइमे आले मुहम्मद के लिए दो ग़ैबतें होंगी एक ग़ैबते सुग़रा दूसरी ग़ैबते कुबरा होगी...
हज़रत मूसा क़ाज़िम (अ.स.) ने फरमाया :
इमाम महदी अ. स. लोगों की नज़रों से छिपे रहेंगे, लेकिन मोमिनों के दिलों में उन की याद ताज़ा रहेगी...
हज़रत इमामे रिज़ा (अ.स.) ने फरमाया :
जब (इमाम महदी अ. स.) क़ियाम करेंगे उस वक़्त उनके वजूद के नूर से ज़मीन रौशन हो जायेगी और वह लोगों के बीच हक़ व अदालत की तराज़ू स्थापित करेंगे और उस ज़माने में कोई किसी पर ज़ुल्म व सितम नहीं करेगा...
हज़रत इमाम मुहम्मद तकी (अ.स.) ने फरमाया :
क़ाइमे आले मुहम्मद की ग़ैबत के ज़माने में मोमिनों को उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करना चाहिए और जब उनका ज़हूर हो जाये और वह क़ियाम करें तो उनकी इताअत (आज्ञा पालन) करनी चाहिए...
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने फरमाया :
मेरे बाद मेरा बेटा हसन (अस्करी) इमाम होगा और उनके बाद उनका बेटा (क़ाइम) इमाम होगा, वह ज़मीन को अदल व इन्साफ़ (न्याय व समानता) से उसी तरह भर देंगे जैसे वह ज़ुल्म व जौर (अत्याचार व भेद भाव) से भरी होगी....
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया :
उस अल्लाह का शुक्र है जिसका कोई शरीक नही है, जिस ने मेरी ज़िन्दगी में मुझे जानशीन (उत्तराधिकारी) दे दिया है, वह शक्ल, सूरत और अख़लाक़ में रसूले ख़ुदा (स.) से सब से ज़्यादा मिलता है...
चौथा हिस्सा
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ग़ैरों की नज़र में
خوشتر آن باشد کہ سرّ دلبران -- گفتہ آید در حدیث دیگران
अर्थात सच्चाई वह है जिसका इक़रार दुशमन भी करे।
इमाम महदी (अ.स.) के विश्वव्यापी आंदोलन का उल्लेख सिर्फ़ शिया किताबों में ही नही बल्कि दूसरे इस्लामी फिरकों की एतेक़ादी किताबों में भी मिलता है और इन किताबों में उनके बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है। वह लोग भी मानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नस्ल और हज़रत फातिमा ज़हरा (स. अ.) की औलाद से महदी ज़हूर करेंगे। इमाम महदी (अ.स.) के बारे में अहले सुन्नत के अक़ीदे को जानने के लिए अहले सुन्नत के बड़े आलिमों की किताबों को पढ़ना चाहिए। सुन्नी मुफ़स्सिरों ने अपनी तफ़सीरों में इस बात को स्पष्ट किया है कि क़ुरआने मजीद की कुछ आयतें, आखरी ज़माने में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर की तरफ़ इशारा करती हैं, जैसे फख़रुद्दीन राज़ी.. और अल्लामा क़ुरतुबी..
इसी तरह अहले सुन्नत के अधिकतर मुहद्दिसों (हदीस का वर्णन करने वालों व लिखने वालों को मुहद्दिस कहते हैं) ने इमाम महदी (अ.स.) के संबंध में वर्णित हदीसों को अपनी किताबों में नक्ल किया है और इन में अहले सुन्नत की मोतबर किताबें भी शामिल हैं, जैसे सहाहे सित्ता.. और मुसनदे अहमद इब्ने हंबल (हंबली फिरक़े के स्संथापक))
अहले सुन्नत के कुछ इस ज़माने और कुछ पिछले ज़माने के आलिमों ने इमाम महदी (अ.स.) के बारे में किताबें भी लिखी हैं, जैसे अबू नईम इस्फ़हानी ने (मजमूअतुल अरबईन) चालीस हदीस और सुयूती ने किताब (अलउरफ़ुल वरदी फि अखबारिल महदी (अ.स.)।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि अहले सुन्नत के कुछ आलिमों ने महदवीयत के अक़ीदे के पक्ष में और इस अक़ीदे को न मानने वालों की रद में भी किताबें और लेख लिखे हैं। उन्होंने इल्मी बयानों और हदीसों की रौशनी में इमाम महदी (अ.स.) के वाकिये को यक़ीनी माना है और इस वाक़िये को उन मसाइल में रखा है जिनसे इंकार नही किया जा सकता, जैसे मुहम्मद सिद्दीक मग़रिबी इन्हों ने इब्ने ख़ल्दून की रद में एक किताब लिखी है और उसकी बातों का मुँह तोड़ जवाब दिया है...
प्रियः पाठकों हम यहाँ पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के बारे में अहले सुन्नत के अक़ीदे के बारे में कुछ नमूने पेश कर रहे हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया :
अगर दुनिया की उम्र का सिर्फ़ एक दिन भी बाक़ी रह जायेगा तो बेशक ख़ुदा वन्दे आलम उस दिन को इतना लंबा बना देगा कि मेरी नस्ल से मेरा हम नाम एक इंसान क़ियाम करेगा...
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
मेरी नस्ल से एक इंसान क़ियाम करेगा, जिस का नाम और सीरत मुझसे मिलती जुलती होगी, वह दुनिया को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जैसा कि वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी...
यह बात भी उल्लेखनीय है कि यह सब लोग मानते हैं कि आख़िरी ज़माने में इंसानों को निजात दिलाने और इस दुनिया में अदल व इन्साफ़ फैलाने वाला एक इंसान ज़रूर आयेगा। यह अक़ीदा विश्वव्यापी है और इसे सभी लोग क़बूल करते हैं। यह बात भी सच है कि आसमानी धर्मों के मानने वाले सभी लोग अपनी अपनी किताबों की शिक्षाओं के आधार पर उस क़ाइम का इन्तेज़ार कर रहे हैं। मुकद्दस किताब ज़बूर, तौरैत, इनजील और हिन्दुओं व पारसियों की किताबों में भी मानवता को मुक्ति देने वाले एक इंसान के ज़हूर की तरफ़ इशारा हुआ है। यह बात अलग है कि हर क़ौम ने उसे अलग अलग नामों से याद किया है। पारसियों ने उसे सोशियान्स यानी दुनिया को नेजात देने वाला, और ईसाईयों ने उसे मसीहे मौऊद और यहूदीयों ने सरुरे मीकाइली के नाम से याद किया है।
पारसियों की मुकद्दस किताब "जामा सब नामे" में इस तरह उल्लेख हुआ है।
अरब का पैग़म्बर आखरी पैग़म्बर होगा, जो मक्का के पहाड़ों के बीच पैदा होगा, वह गुलामों के साथ मुहब्बत करेगा और गुलामों की तरह रहे सहेगा, उसका दीन सभी दीनों से बेहतर होगा, उसकी किताब तमाम किताबों को बातिल (निष्क्रिय) करने वाली होगी। उस पैग़म्बर की बेटी जिसका नाम खुरशीद जहां और शाहे ज़मां होगा उसकी नस्ल से ख़ुदा के हुक्म से इस दुनिया में एक ऐसा बादशाह होगा जो इस पैग़म्बर का आखरी जानशीन (उत्तराधिकारी) होगा और उसकी हुकूमत क़ियामत से मिल जायेगी...
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का इन्तेज़ार
पहला हिस्सा
ग़ैबत
प्रियः पाठकों ! अब जबकि आप इंसानों को निजात व मुक्ति देने वाले और हज़रत आदम (अ.स.) से लेकर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) तक सभी नबियों (स.) के मक़सद को पूरा करने वाले, अल्लाह के आख़िरी वली हज़रत इमाम महदी (अ.स.) से परिचित हो गये हैं तो हम चाहते हैं कि उनकी ग़ैबत के बारे में कुछ बातें करें क्योंकि ग़ैबत उनकी ज़िन्दगी का एक महत्वपूर्म हिस्सा है।
ग़ैबत का अर्थ
सबसे पहली, उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण बात यह है कि ग़ैबत का अर्थ “ किसी चीज़ का आँखों से छुपा रहना ” है, उसका अनुपस्थित होना नही है। अतः इस हिस्से में उस ज़माने की बातें है जब इमाम महदी (अ.स.) लोगों की नज़रों से छिपे थे। यानी लोग आप को नहीं देख पाते थे जब कि आप लोगों के बीच में ही रहते थे, और उन्हीं के बीच ज़िन्दगी बसर किया करते थे। इस वास्तविक्ता का वर्णन मासूम इमामों (अ.स.) की हदीसों व रिवायतों में विभिन्न तरीकों से हुआ है।
हज़रत इमाम अली (अ.स.) फरमाते हैं :
अल्लाह की क़सम ! अल्लाह की हुज्जत लोगों के बीच रहती है, रास्तों गलियों व बाज़ारों में मौजूद होती है, लोगों के घरों में आती जाती है, पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरी ज़मीन का भ्रमण करती है, लोगों की बातों का सुनती है और उन पर सलाम भेजती है, वह सबको देखती है लेकिन लोगों की आँखें उसे उस वक़्त तक नहीं देख सकतीं जब तक ख़ुदा की मर्ज़ी और उस का वादा पूरा न हो जाये...
इमाम महदी (अ.स.) के लिए ग़ैबत की एक दूसरी किस्म भी बयान हुई है। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के दूसरे ख़ास नायब बयान फरमाते है :
इमाम महदी (अ.स.) हज के दिनों में हर साल हाज़िर होते हैं, वह लोगों को देखते हैं और उनको पहचानते हैं। लोग उनको देखते हैं लेकिन नही पहचानते ...।.
इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत दो प्रकार की हैः वह कुछ जगहों पर लोगों की नज़रों से छिपे रहते हैं और कुछ जगहों पर लोगों को दिखाई देते हैं, लेकिन उनकी पहचान नहीं हो पाती है, जो भी हो यह तय है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) लोगों के बीच मौजूद रहते हैं।
ग़ैबत का इतिहास
ग़ैबत में और छुपकर ज़िन्दगी व्यतीत करना कोई ऐसी बात नहीं है जो सिर्फ़ हज़रत इमाम महदी (अ.स.) से ही संबंधित हो, बल्कि कुछ रिवायतों से ये नतीजा निकलता है कि बहुत से नबियों (अ.स.) की ज़िन्दगी का एक हिस्सा ग़ैबत में गुज़रा है और उन्होंने एक समय तक छुपकर जीवन व्यतीत किया है और यह चीज़ ख़ुदा वन्दे आलम की मर्ज़ी के अनुसार थी किसी ज़ाती और खानदानी हित के लिए नही।
ग़ैबत, अल्लाह की एक सुन्नत है.. जो बहुत से नबियों (अ.स.) की ज़िन्दगी में देखी गई है, जैसे जनाबे इदरीस, जनाबे नूह, जनाबे सालेह, जनाबे इब्राहीम, जनाबे यूसुफ़ जनाबे मूसा, जनाबे शुऐब, जनाबे इल्यास, जनाबे सुलेमान, जनाबे दानियाल और जनाबे ईसा (अ.स.) और विभिन्न हालतों के कारण इन सब नबियों (अ.स.) का जीवन कई सालों तक ग़ैबत में लोगों की नज़रों से छुपकर व्यतीत हुआ है..।
इसी वजह से हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत की रिवायतों में (ग़ैबत) को नबियों (अ.स.) की सुन्नत के रूप में याद किया गया है और हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी में नबियों (अ.स.) की सुन्नत का जारी होना ग़ैबत की दलीलों में माना गया है।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :
बेशक हमारे क़ाइम (इमाम महदी (अ.स.) के लिए ग़ैबत होगी और उसकी मुद्दत बहुत लंबी होगी। जब रावी ने पूछा कि ऐ रसूल के बेटे ग़ैबत की वजह क्या है तो हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया : ख़ुदा वन्दे आलम का इरादा यह है कि ग़ैबत की जो सुन्नत उसने नबियों (अ.स.) के लिए रखी है वह सुन्नत उनके बारे में भी जारी रहे..।
प्रियः पाठकों ! उपरोक्त विवरण से ये बात भी स्पष्ट हो जाती है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के पैदा होने से वर्षों पहले से उनकी ग़ैबत का मसला बयान होता रहा है और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से लेकर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) तक सब इमामों ने उनकी ग़ैबत, उनके ज़माने में घटित होने वाली घटनाओ और उनकी विशेषताओं का भी वर्णन किया है। यह ही नही बल्कि ग़ैबत के ज़माने में मोमिनों की ज़िम्मेदारियों का भी वर्णन किया हैं..।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
महदी (अ.स.) मेरी ही नस्ल से होगा... और वह ग़ैबत में रहेगा, लोगों की हैरानी व परेशानी इस हद तक बढ़ जायेगी कि लोग दीन से गुमराह हो जायेंगे और फिर जब अल्लाह का हुक्म होगा तो वह चमकते हुए सितारे की तरह ज़हूर करेगा और ज़मीन को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जिस तरह वह ज़ुल्म व जौर (अत्याचार) से भरी होगी...
ग़ैबत की वजह
हमारे बारहवें इमाम और अल्लाह की आख़िरी हुज्जत हज़रत इमाम महदी (अ.स.) क्यों ग़ैबत का जीवन व्यतीत कर रहे हैं और क्या वजह है कि हम इमाम के ज़हूर की बरकतों से महरुम (वंचित) हैं?
प्रियः पाठकों ! इस बारे में बहुत ज़्यादा बात चीत होती है और इस से संबंधित बहुत सी रिवायतें भी मौजूद हैं, लेकिन हम यहाँ इस सवाल का जवाब देने से पहले एक बात की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।
हम इस बात पर ईमान रखते हैं कि ख़ुदा वन्दे आलम का झोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम हिकमत व मसलेहत (अक़्लमंदी और भलाई व हित) से खाली नहीं होता है, चाहे हम उन हितों को जानते हों या न जानते हों और इस संसार की हर छोटी बड़ी घटना ख़ुदा वन्दे आलम की युक्ति और उसी के इरादे से घटित होती है। उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण घटना हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत भी है। अतः उनकी ग़ैबत भी हिकमत व मसलेहत के अनुसार है अगरचे हम उसके मूल कारण को न जानते हों।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :
बेशक साहिबुल अस्र (हज़रत इमाम महदी (अ.स.)) के लिए ऐसी ग़ैबत होगी जिस में बातिल का का हर पुजारी शक व शुब्हे का शिकार हो जायेगा।
जब रावी ने इमाम की ग़ैबत की वजह मालूम की तो इमाम (अ.स.) ने फरमाया :
ग़ैबत की वजह एक ऐसी चीज़ है जिस को हम तुम्हारे सामने बयान नहीं कर सकते, ग़ैबत अल्लाह के राज़ों में से एक राज़ है। लेकिन चूँकि हम जानते हैं कि ख़ुदा वन्दे आलम हिकमत वाला है और उसके सब काम हिकमत के आधार होते हैं, चाहे हम उनकी वजह न जानते हो..
इंसान अधिकाँश अवसरों पर ख़ुदा वन्दे आलम के कामों को हिकमत के अनुसार मानते हुए उनके सामने अपना सर झुका देता है, लेकिन फिर भी कुछ चीज़ों के राज़ों को जानने की कोशिश करता है ताकि उनकी हक़ीक़त को जान कर उसे और अधिक इत्मिनान हो जाये। अतः इसी इत्मिनान के लिए हम इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत की हिकमत और उसके असर की तहक़ीक शुरु करते हैं और इस बारे में बयान होने वाली रिवायतों की तरफ़ इशारा करते हैं।
जनता को अदब सिखाना
जब उम्मत अपने नबी या इमाम की क़दर न करे और अपनी ज़िम्मेदारियों को न निभाये, बल्कि इसके विपरीत उसकी अवज्ञा करे तो ख़ुदा वन्दे आलम के लिए यह बात उचित है कि उनके रहबर, हादी या इमाम को उन से अलग कर दे, ताकि वह उस से अलग रह कर अपने गरेबान में झाँके और उस के वजूद की कद्र व क़ीमत और बरकत को पहचान लें। अतः इस सूरत में इमाम की ग़ैबत उम्मत की भलाई में है चाहे उम्मत को यह बात मालूम न हो और वह इस बात को न समझ सकती हो।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) से रिवायत है :
जब ख़ुदा वन्दे आलम किसी क़ौम में हमारे वजूद से खुश नही होता तो हमें उन से अलग कर लेता है...।
लोगों से अनुबंध किये बग़ैर काम करना
जो लोग किसी जगह इंकेलाब (परिवर्तन) लाना चाहते हैं, वह अपने इंकेलाब के शुरू में अपने मुखालिफ़ों से कुछ समझौते करते हैं ताकि अपने मक़सद में कामयाब हो जायें, लेकिन हज़रत इमाम महदी (अ.स.) वह महान सुधारक व उद्धारक हैं जो अपने इंकेलाब और न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत स्थापित करने के लिए किसी भी ज़ालिम व अत्याचारी से किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करेंगे। क्यों कि बहुत सी रिवायतों में मिलता है कि उनको सभी ज़ालिमों से खुले आम मुक़ाबेला करने का हुक्म है। इसी वजह से जब तक इस इंक़ेलाब का रास्ता हमवार नहीं हो जाता उस वक़्त तक वह ग़ैबत में रहेंगे ताकि उन्हें अल्लाह के दुश्मनों से को ई समझौता न करना पड़े।
ग़ैबत की वजह के बारे में हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) से मन्कूल हैः
उस वक़्त जब कि इमाम महदी (अ.स.) तलवार के ज़रिये क़ियाम फरमायेगे तो आप का किसी के साथ अहदो पैमान न होगा...
लोगों का इम्तेहान
ख़ुदा वन्दे आलम की एक सुन्नत लोगों का इम्तेहान करना भी है। वह अपने बन्दों को विभिन्न तरीक़ों से आज़माता है ताक़ि हक़ के रास्ते में उनका अडिग व अटल रहना स्पष्ट हो सके। जबकि वास्तविक्ता यह है कि उस इम्तेहान का नतीजा ख़ुदा वन्दे आलम को पहले से मालूम होता है लेकिन इम्तेहान की इस भट्टी में तपने के बाद बन्दों की हक़ीक़त स्पष्ट हो जाती है और वह अपने वजूद (अस्तित्व) के जौहर को पहचान लेते हैं।
हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम (अ.स.) ने फरमाया :
जब मेरा पाँचवां बेटा गायब हो जाये तो तुम लोग अपने दीन की हिफ़ाज़त करना ताकि कोई तुम्हें तुम्हारे दीन से विचलित न कर सके, क्यों कि साहिबे अम्र (हज़रत इमाम महदी (अ.स.)) के लिए ग़ैबत होगी जिस में उनके मानने वाले अपने अक़ीदे से फिर जायेगे और उस ग़ैबत के ज़रिये ख़ुदा वन्दे आलम अपने बन्दों का इम्तेहान करेगा..
इमाम की हिफ़ाज़त
नबियों (अ.स.) के अपनी क़ौम से अलग होने की एक वजह अपनी जान की हिफ़ाज़त भी है। नबी (अ.स.) अपनी जान बचाने के लिए कुछ खतरनाक मौक़ों पर लोगों की नज़रों से छुप जाते थे ताकि किसी उचित मौक़े पर अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करें और अल्लाह के पैग़ाम को पहुँचायें। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) मक्क ए मोज़्ज़मा से निकल कर एक गार में छुप गये थे। लेकिन हमेशा याद रखना चाहिए कि यह सब ख़ुदा वन्दे आलम के हुक्म और इरादे से होता था।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) और उनकी ग़ैबत के बारे में भी कुछ रिवायतों में यही बात बयान हुई है। हम यहाँ पर उनमें से कुछ रिवायतों को नमूने के तौर पर लिख रहे हैं। जैसे ----
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :
इमामे मुन्तज़र (जिसका इन्तेज़ार किया जाता है उसे मुन्तज़र कहते हैं) अपने क़ियाम (आन्दोलन) से पहले एक लंबे समय तक लोगों की नज़रों से गयायब रहेंगे।
जब इमाम (अ.स.) से ग़ैबत की वजह मालूम की गई तो उन्होंने फरमाया :
उन्हें अपनी जान का खतरा होगा..।
शहादत की तमन्ना अल्लाह के सभी नेक बन्दों के दिलों में होती है, लेकिन ऐसी शहादत जो दीन, समाज सुधार और अपनी ज़िम्मेदारियों निभाते हुए हो। इसके विपरीत अगर किसी का क़त्ल होना उसके मक्सद के ख़त्म हो जाने का कारण बने तो ऐसे मौक़े पर क़त्ल होने से डरना और बचना अक़्लमन्दी का काम है। अल्लाह के आख़िरी ज़ख़ीरे यानी बारहवें इमाम हज़रत महदी के क़त्ल होने का मतलब यह हैं कि खाना ए काबा गिर जाये सारे नबियों और वलियों (अ.स.) की तमन्नाओं पर पानी फिर जाये और न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत की स्थापना के बारे में ख़ुदा का वादा पूरा न हो।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि कुछ रिवायतों में ग़ैबत के कुछ अन्य कारणों का भी वर्णन हुआ हैं, परन्तु हम संक्षिप्तता को ध्यान में रख कर और विस्तार से बचने के लिए यहाँ उनका उल्लेख नहीं कर रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ग़ैबत अल्लाह के राज़ों में से एक राज़ है और इस की असली व आधारभूत वजह इमाम (अ.स.) के ज़हूर के बाद ही स्पष्ट होगी। हम ने हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत के कारणों के बारे में जिन चीज़ों का वर्णन किया है, उन चीज़ों का इमाम (अ.स.) की ग़ैबत में असर रहा है।
दूसरा हिस्सा
ग़ैबत की क़िस्में
प्रियः पाठकों ! उपरोक्त विवरण के आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत ज़रुरी व अनिवार्य हो जाती है। लेकिन चूँकि हमारे हादियों के सब काम और कारनामे लोगों के ईमान व अक़ीदों को मज़बूत बनाने के लिए होते थे, अतः इस बात का डर था कि अल्लाह की इस आख़री हुज्जत की ग़ैबत की वजह से मुसलमानों की दीनदारी को नुक्सानात पहुंचेंगे, इसी लिए ग़ैबत का ज़माना बहुत ही हिसाब और किताब के साथ शुरू हुआ जो आज तक चल रहा है।
इमाम महदी (अ.स.) के जन्म से वर्षों पहले से उनकी ग़ैबत और उसकी ज़रुरत के बारे में बात चीत हो रही थी और मासूम इमामों (अ.स.) व उन के असहाब की महफिलों में इस पर चर्चा होती थी। इसी तरह हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) लोगों से एक नए अन्दाज़ और खास हालात में ही मिलते थे। अहले बैत अलैहिमु अस्सलाम के शिया भी आहिस्ता आहिस्ता यह जान गये थे कि वह दीन और दुनिया की बहुत सी ज़रुरतों में इमाम मासूम (अ.स.) से मुलाक़ात पर मजबूर नहीं हैं, बल्कि इमामों (अ.स.) की तरफ़ से नियुक्त वकीलों और भरोसेमंद लोगों के ज़रिये भी अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा किया जा सकता है। हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की शहादत और हज़रत हुज्जत इब्नुल हसन (अ.स.) की ग़ैबते सुग़रा के शुरू होने से इमाम और उम्मत के बीच राब्ता (संबंध) ख़त्म नही हुआ था, बल्कि मोमेनीन अपने मौला व इमाम के नायबों के ज़रिये इमाम से राब्ता किया करते थे। यही ज़माना था जिस में शियों को दीनी आलिमों से बड़े पैमाने पर राब्ते की आदत हुई और इसी राब्ते की वजह से हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत के ज़माने में भी दीनी फ़राइज़ की पहचान का रास्ता बन्द नहीं हुआ। इसी मौक़े पर उचित था कि बक़ीयतुल्लाह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबते कुबरा शुरू हो और इमाम (अ.स.) व शियों के बीच पिछले ज़माने में प्रचलित आम राब्ते का सिलसिला बन्द हो जाये।
प्रियः पाठकों ! हम यहाँ ग़ैबते सुग़रा और ग़ैबते क़ुबरा की कुछ विशेषताओं का उल्लेख कर रहे हैं।
ग़ैबते सुग़रा (अल्पकालीन ग़ैबत)
सन् 260 हिजरी क़मरी में हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की शहादत के फ़ौरन बाद हमारे बारहवें इमाम हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की इमामत शुरू हुई और उसी वक़्त से उनकी गैबते सुग़रा भी शुरू हो गई और यह ग़ैबत सन् 320 हिजरी क़मरी तक (लग भग 60 साल) रही।
ग़ैबते सुग़रा की सब से बड़ी विशेषता यह थी कि इस में मोमेनीन हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ख़ास नायबो के ज़रिये, इमाम से राब्ता किया करते थे और उनके ज़रिये ही अपने सवालात हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के पास भेजते थे और इमाम (अ.स.) के जवाब व पैग़ाम प्रप्त करते थे ...
कभी कभी हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के इन्हीँ नायबों के ज़रिये ही इमाम (अ.स.) की ज़ियारत का शरफ़ भी हासिल हो जाता था।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबते सुग़रा में उनके चार ख़ास नायब हुए हैं और उन्हें नव्वाबे अर्बा कहा जाता हैं। वह अपने ज़माने के बड़े शिया आलिम थे और हज़रत इमाम महदी (अ.स.) उन्हें ख़ुद अपनी नियाबत के लिए चुनते थे। उनके नाम नियाबत के क्रमानुसार निम्न लिखित हैं।
1. उस्मान पुत्र सईद अमरी, यह इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत के शुरू से ही इमाम की नियाबत करते थे, इनकी मृत्यु सन् 265 हिजरी क़मरी में हुई। यह बात भी उल्लेखनीय है कि यह हज़रत इमाम अली नकी (अ.स.) और हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के भी वक़ील थे।
2. मुहम्मद पुत्र उस्मान अमरी, यह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के पहले नायब के बेटे थे और अपने पिता की मृत्यु के बाद इमाम (अ.स.) के नायब बने। इनकी मृत्यु सन् 305 हिजरी क़मरी में हुई।
3. हुसैन पुत्र रौह नौ बख्ती, यह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के 21 साल तक नायब रहे। इनकी मृत्यु सन् 326 हिजरी क़मरी में हुई।
4. अली पुत्र मुहम्मद समरी, यह हज़रत इमाम महदी (अ. स. ) के चौथे व आख़िरी नायब थे। इनकी मृत्यु सन् 329 हिजरी क़मरी में हुई और उनके देहान्त के बाद ग़ैबते सुग़रा का ज़माना ख़त्म हो गया।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के खास नायब हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ स.) और ख़ुद हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़रिये चुने जाते थे और लोगों में पहचनवाए जाते थे। शेख तूसी अलैहिर्रहमा अपनी किताब (अल ग़ैबत) में इस रिवायत का उल्लेख करते हैं कि एक दिन हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के पहले नायब उस्मान पुत्र सईद के साथ चालीस मोमेनीन हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के पास पहुँचे इमाम (अ.स.) ने उन्हें अपने बेटे की ज़ियारत कराई और फरमाया :
मेरे बाद यही बच्चा मेरा जानशीन (उत्तराधिकारी) और तुम्हारा इमाम होगा, तुम लोग इसकी इताअत (आज्ञापालन) करना और यह भी जान लो कि आज के बाद तुम इसे नहीं देख पाओगे, यहाँ तक कि इसकी उम्र पूरी हो जाये। अतः इस की ग़ैबत के ज़माने में उस्मान पुत्र सईद जो कुछ कहें उसे क़बूल करना और उनकी इताअत करना क्योंकि वह तुम्हारे इमाम के जानशीन हैं और तमाम कामों की ज़िम्मेदारी इन्हीँ की है...
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की दूसरी रिवायत में मुहम्मद पुत्र उस्मान को इमाम महदी (अ.स.) के दूसरे नायब के रूप में याद किया है।
शेख तूसी अलैहिर्रहमा उल्लेख करते हैं :
उस्मान पुत्र सईद ने एक बार हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के हुक्म से यमन के शियों द्वारा लाया गया माल अपने क़ब्ज़े में लिया, उस वक़्त वहाँ मौजूद कुछ मोमेनीन जो इस घटना को देख रहे थे, उन्होंने इमाम (अ.स.) से कहा : ख़ुदा की क़सम उस्मान आपके बेहतरीन शियों में से हैं, लेकिन आपके नज़दीक उनका क्या मक़ाम है यह हम पर इस काम से स्पष्ट हो गया है।
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने फरमाया : जी हाँ ! तुम लोग गवाह रहना कि उस्मान पुत्र सईद उमरी मेरे वक़ील हैं और इसका बेटा मुहम्मद मेरे बेटे महदी का वक़ील होगा..।
यह सब घटनाएं हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत से पहली हैं, ग़ैबते सुग़रा में भी इमाम का हर नायब अपनी मृत्यु से पहले हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की तरफ़ से चुने जाने वाले नये नायब की पहचान करा देता था।
यह महान व्यक्ति चूँकि उच्च गुणों व सिफ़तों के मालिक़ थे इस लिए उनके अन्दर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का नायब बनने की योग्यता पैदा हुई। इन महानुभावों की कुछ मुख्य सिफ़तें इस प्रकार थीं, अमानतदारी, पाकीज़गी, व्यवहार में न्याय, राज़दारी और हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़माने के मख़सूस हालात में अहले बैत (अ.स.) के राज़ों को छुपाये रखना आदि। यह महानुभव हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के भरोसेमंद साथी थे और इनकी तरबियत अहले बैत के द्वारा हुई थी। उन्होंने पक्के व सच्चे ईमान के साये में इल्म की दौलत प्राप्त की थी। उनका नेक नाम मोमिनों की ज़बान पर आम था। सख्तियों और परेशानियों में सब्र व बुर्दबारी की यह हालत थी कि वह सख्त से सख्त हालत में भी अपने इमाम (अ.स.) की पूर्ण रूप से आज्ञापालन किया करते थे। इन सब अच्छी सिफ़तों के साथ उनमें शियों का नेतृत्व करने की भी योग्यता पाई जाती थी। वह अपनी योग्यताओं के आधार पर ज़माने की चाल ढाल को देख व परख कर और अपने पास मौजूद साधनों के ज़रिये शिया समाज की सिराते मुस्तक़ीम की तरफ़ हिदायत भी करते थे। इसी आधार पर उन्होंने अल्लाह की मदद से मोमिनो को ग़ैबते सुग़रा से सही व सालीम ग़ुज़ार दिया।
ग़ैबते सुग़रा में इमाम और उम्मत के बीच संबंध स्थापित करने में नव्वाबे अर्बा की भूमिका का गहरा अध्ययन हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी के उस हिस्से के महत्व को स्पष्ट कर देता है। इस संबंध का वजूद और ग़ैबते सुग़रा में कुछ शिओं का इमाम महदी (अ.स.) की ज़ियारत करना, बारहवें इमाम और अल्लाह की इस आख़री आख़री हुज्जत के जन्म को सिद्ध व साबित करने में बहुत प्रभावी रहा है। यह महत्वपूर्ण नतीजे उस समय में प्राप्त हुए जब दुशमन यह कोशिश कर रहे थे कि शिओं को हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के बेटे के जन्म के संबंध में शक व शुब्हे में डाल दिया जाये। इसके अलावा ग़ैबते सुग़रा का यह ज़माना, उस ग़ैबते कुबरा के लिए रास्ता हमवार कर रहा था जिस में मोमेनीन अपने इमाम से राब्ता नहीं कर सकते थे। लेकिन ग़ैबते सुग़रा की वजह से वह अपने इमाम (अ.स.) के वजूद और उनकी बरकतों से लाभान्वित होते हुए ग़ैबते कुबरा के ज़माने में दाखिल हो गए।
ग़ैबते कुबरा
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ने अपने चौथे नायब की ज़िन्दगी के आख़री दिनों में उनके नाम एक ख़त लिखा जिसका विषय निम्न लिखित था।
ऐ अली पुत्र मुहम्मद समरी ! ख़ुदा वन्दे आलम आपकी मृत्यु पर आपके दीनी भाइयों को सब्र दे, क्योंकि आप छः दिन के बाद आलमे बक़ा (परलोक) की तरफ़ कूच कर जाओगे, इस लिए अपने कामों को खूब देख भाल लो और अपने बाद किसी को अपना नायब न बनाओ, क्यों कि लंबी ग़ैबत का ज़माना शुरू होने वाला है, जब तक ख़ुदा का हुक्म नहीं होगा तुम मुझे नहीं देख पाओगे, इस के बाद एक लंबी समय सीमा होगी जिस में दिल सख्त हो जायेंगे और ज़मीन ज़ुल्म व सितम से भर जायेगी..
इस आधार पर बारहवें इमाम के आखरी नायब की मृत्यु के बाद सन् 329 हिजरी क़मरी से गैबते कुबरा शुरू हो गई और इस ग़ैबत का यह सिलसिला आज तक जारी है और इसी तरह जारी रहेगा जब तक ख़ुदा की मर्ज़ी से ग़ैबत के बादल न छट जायें। जब अल्लाह का हुक्म होगा तब यह दुनिया विलायत के चमकते हुए सूरज से प्रकाशित होगी।
जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है कि ग़ैबते सुग़रा में शिया व मोमेनीन, इमाम (अ.स.) के मखसूस नायब के ज़रिये अपने इमाम से राब्ता रखते थे और अपने दीन के फ़राइज़ से परिचित होते थे। लेकिन ग़ैबते कुबरा में इस राब्ते का सिलसिला ख़त्म हो गया। अब मोमेनीन को चाहिए कि अपने दीन के फ़राइज़ को जानने लिए इमाम (अ.स.) के आम नायबों (जो कि आलिमे दीन व मराजा ए तक़लीद हैं) से राब्ता करें और यह वह स्पष्ट रास्ता है जो हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ने अपने एक भरोसेमंद आलिमे दीन के सामने पेश किया है, हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के दूसरे ख़ास नायब के ज़रिये पहुँचे हुए एक ख़त में इस तरह लिखा है :
”وَ اٴمَّا الحَوَادِثُ الوَاقِعَةُ فَارْجعوا إلیٰ رُواةِ حَدیثنَا فَإنّہُمْ حُجَّتِي عَلَیْکُم وَ اٴَنَا حُجَّةُ اللهِ عَلَیْہِمْ“
और आगे घटित होने वाली घटनाओं व परिस्थितियों में (अपनी शरई ज़िम्मेदारियों को जानने के लिए) हमारी हदीसों के रावियों(फ़ोकहा) से संबंध स्थापित करना क्यों कि वह तुम पर हमारी हुज्जत हैं और हम उन पर ख़ुदा की हिज्जत हैं।
दीनी सवालों के जवाब और शिओं की नीजी व सामाजिक ज़िम्मेदारियों की पहचान के लिए यह नया तरीका इस हक़ीक़त को स्पष्ट करता है कि शिया तहज़ीब में इमामत का निज़ाम, एक बेहतरीन और ज़िन्दा निज़ाम है। इस निज़ाम के अन्तर्गत विभिन्न परिस्थितियों में मोमिनों की हिदायत बहुत अच्छे ढंग से की जाती है और इस निज़ाम को मानने वालों को किसी भी ज़माने में हिदायत के सर चश्मे के बग़ैर नहीं छोड़ा गया है। बल्कि उनकी नीजी व समाजिक ज़िन्दगी के विभिन्न मसाइल को दीनी आलिमों और पर्हेज़गार मुजतहिदों के सिपुर्द कर दिया गया है और वह मोमेनीन के दीन और दुनिया के अमानतदार हैं, ताकि इस्लामी समाज की किश्ती तूफ़ान और दरिया के उतार चढ़ाव व साम्राज्वाद की गन्दी सियासत के दलदल में फ़ंसने से बची रहे और शिया अक़ाइद की सरहदों की हिफ़ाज़त होती रहे।
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ग़ैबत के ज़माने में दीन के आलिमों की बूमिका को बयान करते हुए फरमाते हैं :
अगर ऐसे आलिम न होते जो इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत के ज़माने में लोगों को उनकी तरफ बुलाते हैं और उनको अपने इमाम की तरफ़ हिदायत करते हैं, अल्लाह की हुज्जतों और ख़ुदा वन्दे आलम के दीन की मज़बूत दलीलों की हिमायत करते हैं, और अगर ऐसे बुद्धीमान व सूज बूझ आलिमे दीन न होते जो ख़ुदा के बन्दों को शैतान व शैतान सिफत लोगों और अहलेबैत (अ.स.) के दुशमनों की दुशमनी के जाल से न बचाते तो फिर कोई भी अल्लाह के दीन पर बाक़ी न रहता!! (और सब दीन से बाहर निकल चुके होते) लेकिन उन्होंने शिओं के अक़ीदों व फ़िक्रों को अपने हाथों में ले लिया जैसे किश्ती का ना ख़ुदा कश्ती में सवार मुसाफिरों को अपने हाथों में ले लेता है। यह आलिम ख़ुदा वन्दे आलम के नज़दीक सब से बेहतरीन (बन्दे) हैं..
यह बात ध्यान देने योग्य है कि समाज की इमामत के लिए कुछ ख़ास सिफ़तों व कमालों की ज़रूरत होती है। क्योंकि मोमेनीन के दीन व दुनिया के सब कामों को उन इंसान के हाथों में दे दिया जाता है जो इस महान ज़िम्मेदारी के ओहदेदार होते हैं अतः उनका बुद्धिमान होना और सही मौक़े पर सही फ़ैसला लेने की योग्यता रखना ज़रुरी है। इसी वजह से मासूम इमामों (अ.स.) ने मुराजा ए दीनी और उन से बढ़ कर वली ए अम्रे मुस्लेमीन (वलीए फ़कीह) की कुछ ख़ास शर्तें बयान की हैं।
हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने फरमाया :
दीनी आलिमों व फ़कीहों में जो इंसान, छोटे व बड़े गुनाहों के मुक़ाबले में अपने को बचाये रखे, दीन व मोमेनीन के अक़ाइद का मुहाफिज़ हो, अपने नफ्स व इच्छाओं की मुख़ालेफ़त करता हो और अपने ज़माने के मौला व आक़ा (इमाम) की इताअत (आज्ञापालन) करता हो तो मोमेनीन पर वाजिब है कि उसकी पैरवी करें। यह भी याद रहे कि सिर्फ़ कुछ शिया फ़क़ीह ही ऐसे होंगे न कि सब लोग..
तीसरा हिस्सा
ग़ायब इमाम के फ़ायदे
इंसानी समाज, सैंकड़ों साल से अल्लाह की हुज्जत के ज़हूर के फ़ायदों से वंचित है और इस्लामी समाज उस आसमानी व मासूम इमाम के पास जाने में असमर्थ है। इस स्थिति से यह सवाल यह उठता है कि उनके ग़ायब होने और लोगों की नज़रों व पहुँच से दूर, छुप कर जीवन व्यतीत करने से इस दुनिया व दुनिया वासियों को क्या फ़ायदे हैं? क्या यह नहीं हो सकता था कि ज़हूर के ज़माने के नज़दीक उनका जन्म होता जिससे उनकी ग़ैबत के सख्त ज़माने को उनके शिया न देखते?
यह सवाल और इसी तरह के अन्य सवाल इमाम और अल्लाह की हुज्जत की सही पहचान न होने की वजह से पैदा होते हैं।
इस संसार में इमाम का मर्तबा क्या है? क्या उन के वजूद के सब फ़ायदे उन के ज़हूर पर ही आधारित हैं? और क्या वह सिर्फ़ लोगों की हिदायत के लिए है, या उन का वजूद अल्लाह की पूरी मखलूक़ के लिए फ़ायदे व बरकत का कारण है?
इमाम संसार का केन्द्र होता है
धार्मिक शिक्षाओं के आधार पर शियों का यह मत है कि इस संसार में मौजूद हर चीज़ के पास अल्लाह का फ़ैज़ इमाम के वास्ता से ही पहुँचता है। इस संसार के निज़ाम में इमाम एक ध्रुव व केन्द्र के समान है तथा संसार का पूरा निज़ाम उसी के चारों ओर घूमता है। उस के वजूद के बग़ैर इस संसार में इंसानों, जिन्नों, फ़रिश्तों और संक्षेप में यह कि किसी भी जानदार व बेजान चीज़ का नाम व निशान बाक़ी न रहता।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) से सवाल पूछा गया कि क्या ज़मीन इमाम के बग़ैर बाक़ी रह सकती है? इमाम (अ.स.) ने जवाब में कहा कि
अगर ज़मीन पर इमाम का वजूद न हो तो वह उसी वक़्त फ़ना हो जाये अर्थात उसका विनाश हो जाये...।
चूँकि वह लोगों तक ख़ुदा के पैगाम को पहुँचाने और लोगों को इंसानी कमालों की ओर की हिदायत करने में वास्ता होता हैं और इस संसार में मौजूद हर चीज़ तक हर तरह का फ़ैज़ व करम उसी के वजूद के ज़रिये पहुँचता है। यह बात स्पष्ट है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने इंसानी समाज की हिदायत शुरु में नबियों (अ.स.) के जरिये और बाद में उन के जानशीनों (इमामों) के ज़रिये की है। लेकिन मासूम इमामों (अ.स.) के कलाम (प्रवचनों) से यह नतीजा निकलता है कि इस संसार में ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से हर छोटे व बड़े वजूद तक जो नेमत और फ़ैज़ पहुँचता है उस में इमाम ही वास्ता बनता है। इससे भी अधिक स्पष्ट रूप में यह कहा जा सकता है कि इस संसार में मौजूद प्रत्येक चीज़ ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से जो कुछ भी प्राप्त करती है वह इमाम के ज़रिये ही उस तक पहुँचती है। यही नही बल्कि उन का ख़ुद का वजूद भी इमाम के ही कारण है और वह अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी प्राप्त करते हैं उस में भी इमाम की ज़ात ही वास्ता (माध्यम) बनती है।
ज़ियारते जामेआ (जो कि हक़ीक़त में इमाम की पहचान के लिए एक अच्छी किताब है) के एक वाक्य में इस तरह से वर्णन हुआ है कि :
”بِکُمْ فَتَحَ اللهُ وَ بِکُمْ یَخْتِمُ وَ بِکُمْ یُنَزِّلُ الغَیْثَ وَ بِکُمْ یُمسِکُ السَّمَاءَ اٴنْ تَقَعَ عَلَی الاٴرضِ إلاَّ بِإذْنِہِ..... ।
ऐ मासूम इमामों ! ख़ुदा वन्दे आलम ने इस संसार का ारम्भ तुम्हारी ही वजह से किया है और वह तुम्हारी ही वजह से उसे आख़िर तक पहुँचाएगा और तुम्हारे ही वजूद की वजह से रहमत की बारिश करता है और तुम्हारे ही वजूद की बरकत से ज़मीन पर आसमान को गिरने से बचाये हुए है, यह सब उसके के इरादे से है।
अतः यह नही कहा जा सकता कि इमाम (अ.स.) के वजूद के असर सिर्फ उन के ज़हूर की सूरत में ही हैं। इसके विपरीत वास्तविक्ता यह है कि उनका वजूद संसार में (यहाँ तक कि उनकी ग़ैबत के ज़माने में भी) अल्लाह की पूरी मख़लूक़ के बीच जीवन का स्रोत है। ख़ुद ख़ुदा वन्दे आलम की मर्ज़ी भी है कि सब से उत्तम व महान और हर प्रकार से पूर्ण वजूद (अर्थात इमाम) अल्लाह की अनुकम्पा को अल्लाह से प्राप्त कर के उसे उसकी अन्य मखलूक़ तक पहुँचाने में वास्ता बने, अतः इस आधार पर इमाम के ग़ायब या ज़ाहिर रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
जी हाँ ! सभी, इमाम (अ.स.) के वजूद के असर से लाभान्वित होते हैं और इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत इस बारे में कोई रुकावट नहीं है। ध्यान देने योग्य बात ये है कि जब हज़रत इमाम महदी (अ.स.) से उनकी ग़ैबत के ज़माने में उनसे लाभान्वित होने के तरीके के बारे में पूछा गया तो उन्होंने फरमाया :
”وَ اٴمَّا وَجہُ الإنْتِفَاعِ بِی فِی غَیْبَتِی فَکا الإنْتِفَاعِ بِالشَّمْسِ إذَا غَیَّبَتْہَا عَنِ الاٴبْصَارِ السَّحَابَ“ ....
मेरी ग़ैबत के ज़माने में मुझ से उसी तरह फ़ायदा होगा, जिस तरह बादलों के पीछे छिपे सूरज से फायदा उठाया जाता है।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ने अपनी मिसाल सूरज से और अपनी ग़ैबत की मिसाल बादल के पीछे छिपे सूरज की सी दी है। इस मिसाल में बहुत से रहस्य पाये जाते हैं, अतः हम यहाँ पर उन में से कुछ की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।
सौर मंडल (सोलर सिस्टम) में सूरज एक केन्द्र का काम करता है और अन्य सब ग्रह उसी के चारों ओर घूमते हैं, इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का वजूद भी इस संसार के निज़ाम व व्यवस्था में ध्रुवीय स्थान रखता है।
”بِبَقَائِہِ بَقِیَتِ الدُّنْیَا وَ بِیُمْنِہِ رُزِقَ الوَریٰ وَ بِوُجُوْدِہِ ثَبَتَتِ الاٴرْضُ وَ السَّمَاءُ“
उस (इमाम) के बाक़ी रहने की वजह से ही दुनिया बाकी है और उस के वजूद की बरकत से संसार के हर मौजूद को रोज़ी मिलती है और उस के वजूद की वजह से ही ज़मीन और आसमान बाक़ी हैं।
सूरज एक पल के लिए भी अपने प्रकाश की किरणें फैलाने में कंजूसी नहीं करता और हर चीज़ अपनी आवश्यक्ता अनुसार सूरज के प्रकाश से लाभान्वित होती है। इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का वजूद भी समस्त भौतिक व आध्यात्मिक नेमतों को प्राप्त करने का माध्यम है। हर इंसान कमालों के उस केन्द्र से अपने संबंध के अनुसार लाभान्वित होता है।
अगर यह सूरज बादलों के पीछे भी न रहे तो इस इतनी अधिक ठंड हो जायेगी और अंधेरा फैल जायेगा कि कोई भी जानदार ज़मीन पर नहीं रह सकेगा। इसी तरह अगर यह संसार इमाम (अ.स.) के वजूद से वंचित हो जाये (वह ग़ैबत में भी न रहे) तो मुश्किलें, परेशानियाँ, कठिनाईयाँ और विपत्तियाँ इतनी बढ़ जायेंगी कि इंसानी ज़िन्दगी आगे बढ़ने से रुक जायेगी और समस्त प्राणियों का अन्त हो जायेगा।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ने शेख मुफीद अलैहिर्रहमा को एक ख़त लिखा, जिस में उन्होंने अपने शिओं के लिए निमन लिखित पैग़ाम लिखा था।
”اِنَّا غَیْرُ مُہْمِلِیْنَ لِمُرَاعَاتِکُمْ وَ لاٰ نَاسِیْنَ لِذِکْرِکُمْ وَ لَولٰا ذَلِکَ لَنَزَلَ بِکُمُ اللاَّوَاءُ وَ اصْطَلَمَکُمُ الاٴعْدَاءُ
न हम तुम्हें कभी तुम्हारे हाल पर छोडते हैं और न कभी तुम्हें भूलते हैं, अगर तुम पर हमेशा हमारी तवज्जोह न होती तो तुम पर बहुत सी विपत्तियाँ और बलायें नाज़िल होतीं और दुश्मन तुम को मिटा कर रख देते।
अतः इमाम (अ.स.) के वजूद का सूरज पूरे संसार पर चमकता है और संसार में मौजूद हर चीज़ को लाभ पहुँचता है और उन समस्त प्राणियों के बीच इंसानों को और इंसानों में इस्लामी समाज को और इस्लामी समाज में मुख्यः रूप से शिओं को विशेष ख़ैर व बरकत पहुँचाता है। हम यहाँ पर इस के कुछ नमूने आप की सेवा में पेश कर रहे हैं।
उम्मीद की किरण
इंसान की ज़िन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण धन उम्मीद होती है, उम्मीद ही इंसान की ज़िन्दगी में जीवन का आधार और खुशी का कारण बनती है। इंसान के क्रिया कलापों का आधार उम्मीद ही होती है। इस संसार में इमाम (अ.स.) का वजूद उज्जवल भविषय और ख़ुशी की उम्मीद का आधार है। शिया अपने चौदह सौ साल के इतिहास में हमेशा ही विभिन्न मुश्किलों और परेशानियों में घिरे रहे हैं। जिस चीज़ ने हमें ज़ुल्म व अत्याचार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने की ताक़त दी और ज़ालिम व अत्याचारियों के सामने न झुकने दिया वह अच्छे व उज्जवल भविषय की उम्मीद थी। ऐसा उज्जवल भविषय काल्पनिक और मन गड़त नहीं, बल्कि वास्तविक्ता रखता है और नज़दीक है और बहुत नज़दीक भी हो सकता है, क्यों कि जो इंसान विश्वव्यापी आन्दोलन और इंकेलाब के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाले हुए है, वह ज़िन्दा है और हर वक़्त तैयार है। यह तो हम हैं जिन्हें तैयार होने की ज़रूरत है।
विचार धारा की मज़बूती
हर समाज को अपनी सुरक्षा और अपने निश्चित उद्देशयों को पाने के लिए एक माहिर नेतृत्व की ज़रुरत होती है, ताकि वह समाज उसकी हिदायत (मार्गदर्शन) के अनुसार सही रास्ते पर क़दम बढ़ाये। किसी भी समाज के लिए इमाम और हादी का वजूद बहुत ही आवश्यक है ताकि वह समाज एक बेहतरीन निज़ाम व व्यवस्था के अन्तर्गत अपने अस्तित्व को बाकी रख सके और भविषय के परोग्रामों व योजनाओं को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अपनी कमर कस कर बाँध ले। ज़िन्दा और अच्छा रहबर अगर लोगों के बीच न रहे तब भी आधारभूत विषयों और काम करने के उपायों को बताने में लापरवाई नहीं करता और भटकाने वाले रास्तों से विभिन्न तरीकों से होशियार करता रहता है।
हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ग़ैबत में हैं लेकिन उनका वजूद शिया मज़हब की सुरक्षा का सबसे अच्छा साधन है। वह पूर्ण जानकारी के साथ शिया अक़ीदों को दुश्मनों की साज़िशों से विभिन्न तरीक़ों से बचाते हैं और जब मक्कार दुश्मन विभिन्न चालों के ज़रिये शिया मज़हब के उसूल (आधारभूत सिद्धान्तों) और एतेक़ादों को निशाना बनाता है तो उस वक़्त वह (अ.स.) कुछ ख़ास लोगों व आलिमों की हिदायत कर के दुश्मन के मक्सद को नाकाम बना देते हैं।
नमूने के तौर पर बहरैन के शिओं के संबंध में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की मेहरबानी और तवज्जोह को अल्लामा मजलिसी अलैहिर्रहमा की ज़बानी सुनते हैं। यह घटना निम्न लिखित है---
पिछले ज़माने में बहरैन में एक नासबी की हुकूमत थी और उसका वज़ीर वहाँ के शिओं से बहुत ज़्यादा दुशमनी रखता था। एक दिन वज़ीर बादशाह के पास एक अनार लेकर पहुँचा। उस अनार पर क़ुदरती तौर पर यह वाक्य लिखा हुआ था :
”لا الہ الا الله محمد رسول الله، و ابوبکر و عمر و عثمان و علی خلفاء
رسول الله“
ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह व अबू बकर व उमर व उस्मान व अली ख़ुलफ़ा ए रसूलुल्लाह। बादशाह उस अनार को देख कर ताज्जुब में पड़ गया और उस ने अपने वज़ीर से कहा : यह तो शिया मज़हब के बातिल (असत्य) होने की स्पष्ट व खुली दलील है। बादशाह ने वज़ीर से पूछा कि बहरैन के शिओं को बारे में तुम्हारा क्या ख़्याल है?! वज़ीर ने जवाब दिया : मेरी राय के अनुसार उन को हाज़िर किया जाये और उन्हें यह निशानी दिखाई जाये, अगर उन लोगों ने मान लिया तो उन को अपना मज़हब छोड़ना होगा, वर्ना तीन चीज़ों में से एक को ज़रुर मानना होगा! या तो वह संतुष्ट करने वाला जवाब ले कर आयें या जज़िया.. दिया करें, या उनके मर्दों को क़त्ल कर के उनके बीवी बच्चों को क़ैदी बना लें और उनके माल व दौलत को ग़नीमत का माल मानते हुए अपने माल में मिला लें।
बादशाह ने उसकी राय को मान लिया और शिया आलिमों को अपने पास बुला भेजा। जब शिया आलिम उसके पास पहुँचे तो उसने उन्हें वह अनार दिखाया और कहा कि अगर तुम इस बारे में कोई सबूत न पेश कर सके तो मैं तुम्हे क़त्ल कर दूँगा और तुम्हारे बीवी बच्चों को क़ैदी बना लूँगा या फिर तुम्हें जज़िया देना होगा। यह सुन कर शिया आलिमों ने उस से तीन दिन की मोहलत मांगी। इसके बाद उन आलिमों ने आपस में राय मशवरा करने के बाद यह तय किया कि अपने बीच से बहरैन के दस नेक और पर्हेज़गार आलिमों को चुना जाये और वह दस आलिम अपने बीच से तीन आलिमों को चुने और वह इमामे ज़माना से इस मसले का हल मालूम करें। जब वह तीन आलिम चुन लिये गये तो उन्होंने उन में से एक आलीम से कहा : आप आज जंगल में निकल जाइये और इमामे ज़माना (अ.स.) से फ़रियाद कर के उनसे इस मुसीबत से छुटकारे का रास्ता मालूम कीजिये, क्यों कि वही हमारे इमाम और हमारे मालिक हैं। उन साहब ने जंगल में जा कर इमामे ज़माना को पुकारना शुरू किया, लेकिन इमामे ज़माना (अ.स.) से मुलाक़ात न हो सकी। दूसरी रात दूसरे इंसान को भेजा गया, लेकिन उनको भी कोई जवाब न मिल सका। आख़िरी रात तीसरे आलिम मुहम्मद पुत्र ईसा को भेजा गया। वह भी जंगल में गये और उन्होंने रोते हुए इमाम (अ.स.) से मदद गुहार की, जब रात अपनी आखरी मंज़िल पर पहुंची तो उन्होंने सुना कि कोई इंसान उनसे संबोधित हो कर कह रहा है कि ऐ मुहम्मद पित्र ईसा! मैं तुम्हें इस हालत में क्यों देख रहा हूँ?! और तुम इस जंगल में परेशान क्यों घूम रहे हो?! मोहम्द पुत्र ईसा ने कहा कि आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये, उन्होंने फरमाया : ऐ मुहम्मद पुत्र ईसा ! मैं तुम्हारे ज़माने का इमाम हूँ। तुम अपनी परेशानी बयान करो। मुहम्मद पुत्र ईसा ने कहा : अगर आप मेरे ज़माने के इमाम हैं तो मेरी परेशानी भी जानते हैं मुझे बताने की क्या ज़रुरत है?! फरमाया : तुम सही कहते हो। तुम अपनी मुसीबत की वजह से यहाँ आये हो। उन्होंने कहा : जी हाँ आप जानते हैं कि हम पर क्या मुसीबत पड़ी है। आप ही हमारे इमाम और हमारी पनाहगाह हैं।
यह सुनने के बाद इमाम (अ.स.) ने फरमाया : ऐ मुहम्मद पुत्र ईसा ! उस वज़ीर (लाअनतुल्लाह अलैह) के यहाँ एक अनार का दरख्त है जिस वक़्त उस दरख्त पर अनार लगना शुरु हुए तो उसने मिट्टी का एक साँचा बनवाया और उस पर यह वाक्य लिख कर एक छोटे अनार पर उस सांचे को बांध दिया। जैसे जैसे वह अनार बड़ा होता गया उसके छिलके पर उस वाक्य के शब्द अंकित होते गये। तुम उस बादशाह के पास जाना और उस से कहना कि मैं तुम्हारा जवाब वज़ीर के घर जा कर दूँगा। जब तुम उसके साथ वज़ीर के घर पहुँच जाओ तो वज़ीर से पहले फलां कमरे में जाना, वहाँ तुम्हें एक सफ़ैद थैला मिलेगा उसी थैले में वह मिट्टी का साँचा रखा हुआ है, उस को निकाल कर बादशाह को दिखाना। दूसरी निशानी यह है कि बादशाह से कहना कि हमारा दूसरा मोजज़ा यह है कि जब अनार के दो हिस्से करोगे तो अनार के अन्दर से मिट्टी और धुँऐं के अलावा कोई चीज़ नही निकलेगी।
मुहम्मद पुत्र ईसा, इमाम (अ.स.) के इस जवाब से बहुत खुश हुऐ और शिया आलिमों के पास लौट आये। अगले दिन वह सब बादशाह के पास पहुँचे और जो इमाम (अ.स.) ने जो फरमाया था उसको बादशाह के सामने पेश कर दिया।
बहरैन के बादशाह ने इस मोजज़े को देखा तो शिया मज़हब का आशिक़ हो गया और हुक्म दिया कि इस मक्कार वज़ीर को क़त्ल कर दिया जाये...
तरबियत
कुरआने करीम में वर्णन होता है :
< وَقُلْ اعْمَلُوا فَسَیَرَی اللهُ عَمَلَکُمْ وَرَسُولُہُ وَالْمُؤْمِنُون۔۔۔>
और (ऐ पैग़म्बर) आप कह दीजिये कि तुम लोग अमल (कार्य) करते रहो, तुम्हारे अमल को अल्लाह, रसूल और मोमेनीन देख रहे हैं।
रिवायतों में उल्लेख मिलता है कि इस आयत में मोमेनीन अइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) को कहा गया हैं..। इस आधार पर मोमेनीन के आमाल (अच्छे व बुरे सब कार्य) इमामे ज़माना (अ.स.) की नज़रों के सामने होते हैं और वह ग़ैबत में रहते हुए भी हमारे क्रिया कलापों पर नज़र रखे हुए हैं। यह बात तरबियत के दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्वपूर्ण है और शिओं को अपने इक्रया कलापों को सुधारने की प्रेरणा देती है। यही बात शियों को अल्लाह की हुज्जत और मोमिनों के इमाम के सामने बुराइयों और गुनाहों में लिप्त होने से रोकती है। यह बात पूर्ण रूप से स्वीकारीय है कि इंसान उस पाक़ और साफ़ ज़ात पर जितना अधिक ध्यान देगा, उस के दिल का आइना उतनी ही पाक़ीज़गी और सफ़ाई उसकी रुह में भर देगा और फिर यह प्रकाश उसकी बात चीत व व्यवहार में झलकने लगेगा।
जारी है......
किताब पूरी पढ़ने के लिऐ लिंक पर क्लीक करे।
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