तरजुमा कुरआने करीम (मौलाना फरमान अली) पारा-17

कुरआन मजीद
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लोगों के पास उन का हिसाब (उसका वक़्त) आ पहुंचा और वह है कि ग़फ़लत में पड़े मुंह मोज़े ही जाते हैं जब उनके परवरदिगार की तरफ़ से उन के पास कोई नया(2) हुक्म आता है तो उसे बस सिर्फ़ कान लगा कर सुन लेते हैं और (फिर उसका) हंसी खेल उ़ड़ाते हैं उनके दिल (आख़ेरत के ख़याल से) बिल्कुल बेख़बर हैं और यह ज़ालिम चुपके चुपके काना फूंसी करते हैं कि ये शख़्स (मुहम्मद कुछ भी नहीं) बस तुम्हारा ही सा आदमी है तो क्या तुम दीदा व दानस्ता जादू में फ़सते हो (तो उस पर) रसूल स0 ने कहा कि मेरा परवरदिगार जितनी बातें आसमान और ज़मीन में होती हैं खूब जानता है (फिर क्या काना फूसी करते हो) और वह तो ब़ड़ा सुनने वाला वाक़िफ़दार है
(उस पर भी उन लोगों ने इकतेफ़ा न की) बल्कि कहने लगे (यह कुरआन तो) ख़्ताबहाए परेशान का मजमूआ है बल्कि उसने खुद अपने जी से झूट मूठ गढ़ लिया है बल्कि यह शख़्स शायर है (और अगर हकी़क़तन रसूल है) तो जिस तरह अगले पैग़म्बर (मोजिज़ो के साथ) भेजे गए थे उसी तरह यह भी कोई मोजिज़ा (जैसा हम कहें) हमारे पास भला लाए तो सहीं उन से पहले जिन बस्तियों को तबाह कर डाला (मोजिज़ा भी देख कर तो) ईमान न लाए तो क्या ये लोग ईमान लाएंगे और (ऐ रसूल) हमने तुम से पहले भी आदमियों ही को (रसूल बना कर) भेजा था कि उनके पास वही भेजा करते थे तो अगर तुम लोग खुद नहीं जानते हो तो आलिमों(1) से पूछ कर देखो और हमने उन (पैग़म्बरों) के बदन ऐसे नहीं बनाए थे कि वह खाना न खांए और न वह (वह दुनिया में) हमेशा रहने-सहने वाले थे फिर हमने उन्हें (अपना अज़ाब का) वादा सच्चा कर दिखाया (और जब अज़ाब आ पुहंचा) तो हमने उन पैग़म्बरों और जिस-जिस को चारा छुटकारा दिया और हद से बढ़ जाने वोलों को हलाक कर डाला हमने तो तुम लोगों के पास वह किताब (कुरआन) नाज़िल की है जिसमें तुम्हारा (भी) जिक्र (ख़ैर) है तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं समझते और हमने कितनी बस्तियों को जिन के रहने वाले सरकश थे बरबाद कर दिया और उनके बाद दूसरे लोगों को पैदा किया तो जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब की आहट पाई तो एकाएक ही भागने लगे (हमने कहा) भागों नहीं और उन्ही बस्तियों और घरों में लौट जाओ जिनमें तुम चैन करते थे ताकि तुमसे कुछ गछ की जाए वह लोग कहने लगे हाए हमारी शामत बेशक हम सरकश तो ज़रुर थे ग़रज़ वह बराबर यहीं पड़े पुकारा किए यहां तक कि हमने उन्हें कटी हुई खेती की तरह बिछा के ठंडा करके ढेर कर दिया
और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ उन दोनों के दरमियान मे हे बेकर लगो नहीं पैदा किया अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो बेशक हम उसे अपनी तजवीज़ से बना लेते(1) अगर हमको करना होतो (मगर हमें शायान भी न था) बल्कि हम तो हक़ को नाहक़ (के सर) पर खींच मारते हैं तो वह बातिल के सर को कुचल देता है फिर वह उसी वक़्त नेस्त वा नाबूद हो जाता है और तुम पर अफ़्सोस है कि ऐसी-ऐसी नाहक़ बाते बनाया करते हो हालांकि जो लोग (फ़रिश्ते) आसमान और ज़मीन में (सब) उसी के (बन्दें) हैं और जो (फ़रिश्ते) उस सरकार में हैं न तो वह उसकी इबादत की शेख़ी करते हैं और न थकते हैं रात और दिन उसकी तस्बीह किया करते हैं (और) कभी काहिली नहीं करते उन लोगों जो माबूद जमीन में बना रखे हैं क्या वही (लोगों को ज़िन्दा करेंगे)(2) (बा ग़रज़ मुहाल) ज़मीन व आसमान में ख़ुदा के सिवा चन्द माबूद होते तो दोनों कब के बरबाद हो गए होते तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके बारे में) बनाया करते हैं ख़ुदा जो अर्श का मालिक है उन तमाम ऐबों से पाक व पाकीज़ा है जो कुच वह करता है उसकी पूंछ गछ नहीं(1) हो सकती (हां) और माबूद बना रखे हैं
(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो जो मेरे (ज़माने में) साथ है उनकी किताब (कुरआन) और जो लोग मुझसे पहले थे उनकी किताबें (तौरैत वग़ैरह) ये (मौजूद ) हैं (उन में ख़ुदा का शरीक बता दो) बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को जानते ही नहीं तो (जब हक़ का ज़िक्र आता है तो) ये लोग मुंह फेर लेते हैं (ऐ रसूल) हमने तुम से पहले जब कोई रसूल भेजा तो उसके पास वही भेजते रहे कि बस हमारे सिवा कोई माबूद क़ाबिल इबादत नहीं तो मेरी इबादत किया करो और (अहले मक्के) कहते हैं कि ख़ुदा ने (फ़रिश्तों को) अपनी औलाद (बेटियां) बना रखा है (हालांकि) वह उससे पाक व पाकीज़ा है बल्कि (वह फ़रिश्ते ख़ुदा के) मोअजिज़ बन्द हैं ये लोग उसके सामने बढ़ कर बोल नहीं सकते और ये लोग उसी के हुक्म पर चलते हैं जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वह (ख़ुदा) जानता है और ये लोग उस शख़्स के सिवा जिससे ख़ुदा राज़ी हो किसी की सिफ़ारिश भी नहीं करते और ये लोग ख़ुद उसे ख़ौफ़ से (हर वक़्त) डरते रहते हैं और उनमें से जो कोई ये कह दे कि ख़ुदा उन्हें (बल्कि) मैं माबूद हूं तो वह (मरदूद बारगाह हुआ) हम जहन्नुम के सज़ा देंगे और सरकशों को हम ऐसा ही सज़ा देते हैं जो लोग का़फ़िर हो बैठे क्या उन लोगों ने उस बात पर ग़ौर नहीं किया कि आसमान और ज़मीन दोनों बस्ता (बंद) थे तो हमने दोनों को(1) शुग़ाफ़्ता किया (खोल दिया) और हम ही ने हर जानदार चीज़ को पानी से पैदा किया उस पर भी यह लोग र्ईमान न लाए गये और हम ही ने ज़मीन पर भारी बोझल पहाड़ बनाए ताकि ज़मीन उन लोगों को लेकर किसी तरफ़ झुक न प़े और हम ही ने उसमें लम्बे चीड़े रास्ते बनाए ताकि यह लोग अपने अपने मंज़िले मक़सूद को पहुंचे और हम ही ने आसमान को छत बनाया जो हर तरह महफूज़ है और यह लोग उस की आसमानी निशानियों से मुंह फेर रहे हैं- और वही वह (क़ादिर मुतलक) है जिसने रात और दिन और आफ़ताब और महताब को पैदा किया सब के सब एक (एक) आसमान(2) में पैर (कर चक्कर लगा) रहे हैं
और (ऐ रसूल) हम ने तुमसे पहले भी किसी फ़र्द व बशर को सदा की ज़िन्दग़ी नहीं दी तो अगर तुम मर जाओगे तो यह लोग हमशा जिया ही करेंगे (हर शख़्स एक न एक दिन) मौत का मज़ा चख़ने वाला है और हम तुम्हें मुसीबत व राहत में इम्तेहान की ग़रज़ से आज़माते हैं और (आख़िर कार) हमारी ही तरफ़ लौटाए जाओगे और (ऐ रसूल) जब तुम्हें कुफ़्फ़ार देखते हैं तो बस तुम से मसख़रा पन करते हैं कि क्या यही हज़रत है जो तुम्हारे माबूद को (बुरी तरह) याद करते हैं हालांकि यह लोग ख़ुदा ख़ुदा की याद से उनकार करते हैं (तो उन की बेवकूफी पर हंसना चाहिए) आदमी तो बड़ा जल्द बाज़ पैदा किया गया है मैं अनक़रीब ही तुम्हें अपनी (क़ुदरत की) निशानियां दिखाऊँगा तो तुम मुझसे जल्दी की (घूम) न मचाओ और (लुत्फ़ यह है कि) अगर सच्चे हो तो ये (क़यामत का वादा कब पूरा) होगा और जो लोग काफ़िर हो बैठे काश उस वक़्त के हालत से आगह होते (कि जहन्नुम की आग में खड़े होंगे) और न अपने चहरों पर से आग को हटा सकेंगे और न उपनी पीठ से और न उन की मदद की जाएगी (क़यामत कुछ जता कर तो आने से रही) बल्कि वह तो अचानक उन पर आ पड़ेगी और उन्हें हक्का बक्का कर देगी फिर उस वक़्त उसमें न उसके हटाने की मजाल होगी और न उन्हें ही दी जाएगी और (ऐ रसूल) कुछ तुम ही नहीं तुमसे पहले पैग़म्बर के साथ मसखरापन किया जा चुका है तो उन पैग़म्बरों से मसख़रापन करने वालों को उस वक़्त अज़ाब ने आ घेरा जिस की वह हंसी उड़ाया करते थे
(ऐ रसूल) तुम उन से पूछो तो कि ख़ुदा (जो अज़ाब) से (बचाने में) रात को या दिन को तुम्हारा क़ौन पहरा दे सकता है (उस पर डरना तो दरकिनार) बल्कि यह लोग अपने परवरदिगार की याद से मुंह फ़ेरते हैं क्या हमारे सिवा उन के कुछ और परवरदिगार हैं के जो उनक को (हमारे अजाब से) बचा सकते हैं (वह क्या बचाएंगे) वह लोग ख़ुद अपनी आप तो मदद कर ही नहीं सकते और न हमारे अज़ाब से उन्हें पनाह दी जाएगी बल्कि हम ही ने उन को और उनके बुजुर्गों को आराम व चैन रहा यहां तक कि उन की उम्रें बढ़ गयी तो फिर क्या यह लोग नहीं देखते कि हम रूऐ ज़मीन को चारों तरफ़ से क़ब्ज़ा करते और उसको फ़तह करते चले आते हैं तो क्या अब भी यही लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) ग़ालिब और क़द हैं
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस तुम लोगों को वही के मुताबिक़ (अज़ाब से) डराता हूं (मगर तुम लोग गोया बहरे हो) और बहरों को जब डराया जाता है तो वह पुकारने ही को नहीं(2) सुनते (डरे क्या ख़ाक)
और (ऐ रसूल) अगर कहीं उनको तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब की ज़रा सी हवा भी लग गई तो बेसाख़्ता बोल उठे हाए अफ़सोस वाक़ई हम ही ज़ालिम थे और क़यामत के दिन तो हम (बंदों के भले बुरे आमाल तोलने के लिए) इन्साफ़ की तराजू में(2) ख़ड़ी कर देंगे तो फिर किसी शख़्स पर कुछ भी जुल्म न किया जाएगा और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का (अमल) होगा तो हम उसे ला हाज़िर करेंगे और हम हिसाब करने के वास्ते बहुत काफी हैं और हम ही ने यक़ीनन मूसा और हारून को (हक़ व बातिल की) जुदा करने वाली किताब (तौरैते) और परहेज़गारों के लिए मज़सरतापा नूर और नसीहत अता की जो बे देखे अपने परवरदिगार से ख़ौफ़ खाते हैं(1) और ये लोग रोज़े क़यामत से भी डरते हैं
और ये (कुरआन भी) एक बा बरकत तज़किरा है जिसको हमने उतारा है तो कया तुम लोग उसको नहीं मानते और उसमें भी शक नहीं कि हमने इब्राहीम को पहले ही से फ़हम सलीम अता की थी और हम उन (की हालत) से ख़ूब वाक़िफ़ थे जब उन्होंने अपने (मुंह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा ये मूरतें(2) जिनकी तुम लोग मुजाविरी करते हो आख़िर क्या (बला) है वह लोग बोले (और तो कुछ नहीं जानते मगर) अपने बूढे-बूढ़े को उन्हीं की इबादत करते देखा है इब्राहीम ने कहा तुम भी और तुम्हारे बुजुर्ग भी खुली हुई गुम्राही में पड़े हुए थे वह लोग कहने लगे तो क्या तुम हमारे पास हक़ बात लेकर आए हो या तुम भी (यूं ही) दिल्लगी करते हो इब्राहीम ने कहा मज़ाक़ नहीं ठीक कहता हूं कि तुम्हारे माबूद बुत नहीं (बल्कि तुम्हारा परवरदिगार आसमान व ज़मीन का) मालिक है जिसने उनको पैदा किया और मैं ख़ुद उस बात को तुम्हारे सामने गवाह हूं और (अपने जी में कहा) ख़ुदा की क़सम तुम्हारे पीठ फ़ेरने के बाद मैं तुम्हारे बुतों के साथ एक चाल चलूंगा चुनांचे इब्राहीम ने उन बुतों को (तोड़ कर) चकनाचूर कर डाला मगर उनके बड़े बुत को (उस लिए रहने दिया) ताकि वे लोग (ईद से पलट कर) उसकी तरफ़ रुजू करें (जब कुफ़्फ़ार को मालूम हुआ) तो कहने लगे जिसने ये गुस्ताक़ी हमारे माबूदों के साथ की ही उसने यक़ीनी बड़ा जुल्म किया (कुछ लोग) कहने लगे हमने एक को जिसको लोग इब्राहीम कहते हैं उन बुतों का (बुरी तरह) जि़क्र करते सुना था लोगों ने कहा तो अच्छा उसको सब लोगों के सामने (ग़िरफ़्तार करके) ले आओ ताकि वह (जो कुछ कहे) लोग उसके गवाह रहें (ग़रज़ इब्राहीम आए) और लोगों ने उनसे पूछा कि क्यों इब्राहीम क्या तुमने हमारे माबूदों के साथ ये हरकत की है इब्राहीम(1) ने कहा बल्कि ये हरकत उन बुतों (ख़ुदाओं) के ब़़ड़े (ख़ुदा) ने की है तो अगर ये बुत बोल सकते हों तो उन्हीं से पूछ देखो उस पर उन लोगों ने अपनी जी में सोचा तो (एक दूसरे से) कहने लगे बेशक तुम ही लोग ख़ुद बसर नाहक़ हो फिर उन लोगों के सर (उसी गुम्राही मे) झुका दिए गए (और तो कुछ बन न प़ड़ा मगर ये बोले) तुमको तो अच्छी तरह मालूम है कि ये बुत बोला नहीं करते (फिर उस ने क्या पूंछे) इब्राहीम ने कहा तो क्या तुम लोग ख़ुदा को छोड़कर ऐसी चीज़ों की इबादत करते हो जो न तुम्हें कुछ नफ़ा ही पहुंचा सकती है और न तुम्हारा कुछ नुक़सान ही कर सकती है तुफ़ है तुम पर और उस चीज़ पर जिसे तुम ख़ुदा के सिवा पूजते हो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते (आख़िर) वह लोग (बाहम) कहने लगे कि अगर तुम कुछ कर सकते हो तो इब्राहीम को आग में जला दो(1) और अपने ख़ुदाओ की मदद करो (ग़रज़ उन लोगों ने इब्राहीम को आग में डाल दिया तो) हमने फ़रमाया ऐ आग तू इब्राहीम पर बिल्कुल ठंड़ी और सलामती का बाएस हो जा (कि उनको कोई तकलीफ़ न पहुंचे) और उन लोगों ने इब्राहीम के साथ चालबाज़ी करनी चाही थी तो हमने उन सबको नाक़ाम कर दिया और हमने ही इब्राहीम और लूत को (सरकशी से) सही व सालिम निकाल कर उस सर ज़मीन ((शाम) बेतुल मुकद्दस) में जा पहुंचाया जिसमें हमने सारे जहान के लिए तरह-तरह की बरकत अता की थी और हमने इब्राहीम को उनाम में इसहाक़ (जैसा बेटा) और याकूब (जैसा पोता) अनायत फ़रमाया हमने सब को नेक बख़्त बनाया और उन सब को (लोगों का) पेश्वा बनाया कि हमारे हुक्म से (उनकी) हिदायत करते थे
और हमने उनके पास नेक काम करने और नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने की वही भेजी थी और ये सब के सब हमारी ही इबादत किया करते थे- और लूत को भी हम ही ने फ़हम सलीम और नबूवत अता की और हम ही ने उस बसती से जहां के लोग बदकारियां करते थे निजात दी उस में शक नहीं कि लोग बड़े बदकार आदमी थे और हम ने लूत को अपनी रहमत में दाख़िल कर लिया उस में शक नहीं कि वह नेकोकार बन्दों में से थे और (ऐ रसूल लूत से भी) पहले (हम ने) नूह (को नबूवत पर फ़ाएज़ किया) जब उन्होंने (हम को) आवाज़ दी तो हम ने उन की (दुआ) सुन ली फिर उन को और उन के साथियों को (तूफ़ान की) बड़ी सख़्त मुसीबत से निजात दी
और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उन के मुक़ाबले में उन की मदद की बेशक ये लोग (भी) बहुत बड़े लोग थे तो हम ने उन सब को डुबा मारा और (ऐ रसूल उन को) दाऊद और सुलैमान का (वाक़या याद दिलाओ) जब ये दोनों एक खेती के बारे में जिस में रात के वक़्त कुछ लोगों की बकरियां (घुस कर) चर गई थीं फ़ैसला करने बैठे और हम उन लोगों के क़िस्से को देख रहे थे (कि बाहम इख़्तेलाफ़ हुवा) तो हम ने सुलैमान को उस का सही(1) फ़ैसला समझा दिया और (यूं तो) सब को हम ही ने फ़हम सलीम और इल्म अता किया
और हम ही ने पहाड़ों को दाऊद का ताबा बना दिया था कि उनके साथ (ख़ुदा की) तसबीह किया करते थे और परिन्दों को (भी ताबा कर दिया था) और हम ही (यह अज़ाब) किया करते थे औह हम ही ने उन को तुम्हारी जंगी इबादत (ज़रेह) का बनाना सिखा दिया ताकि तुम्हें (एक दूसरे के) वार से बचाए तो क्या तुम (अब भी) उस के शुक्र गुज़ार बनोगे और (हम ही ने) बड़े ज़ोरों की हवा को सुलेमान(1) का (तालिज कर दिया था) कि वह उनके हुक्म से उस सर ज़मीन (बैतुल मुक़द्दस) की तरफ़ चला करती थी जिस में हम ने तरह तरह की बरकते अता की थई और हम तो हर चीज़ से खूब वाकिफ़ (थे और) हैं और जिन्नात में से जो लोग (समन्दर में) ग़ौता लगा कर (जवाहारात निकाल) ने वाले थे और उस के अलावा और काम भी करते थे (सुलेमान का ताबा कर दिया था) और हम ही उनके निगेहबान थे (के भाग न जाए)
और (ऐ रसूल) अय्यूब(1) (का क़िस्सा याद करो) जब उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ कि के (ख़ुदा वन्दा) बिमारी तो मेरे (पीछे) लग गई है और तू तो सब रहम करने वालों से (बढ़ के हैं मुझ पर तरस खा) तो हमने उनकी दुआ कुबूल की तो हमने उनका जो कुछ दर्द दुख था रफ़ा दकर कर दिया और उन्हें उनके लड़के बाले बल्कि उनके साथ इतनी ही और भी महज़ अपनी ख़ास मेहरबानी से और इबादत करने वालों की इबरत के वास्ते अता किये और (ऐ रसूल) उसमाईल और इदरीस और जुलकफ़ल (के वाक़यात याद करो) ये सब साबर बंदे थे और हम ने उन सब को अपनी (ख़ास) रहमत में दाख़िल कर लिया बेशक ये लोग नेक बन्दे थे
और ज़ुन्नून (यूनुस को याद करो) जब कि गुस्से में आकर चले और ये ख़्याल किया कि हम उन पर रोज़ी तंग न करेंगे (तो हमने उन्हें मछली के पेट में पहुंचा दिया) तो (घटा टोप) अंधेरे में (घबरा कर) चिल्ला उठा कि (परवरदिगार) तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू (हर ऐब से) पाक पाकीज़ा है बेशक मैं क़सूरवार(1) हूं तो हमने उन की दुआ क़बूल की और उन्हें रंज से निजात दी और हम तो ईमानदारों को यूं ही निजात दिया करते हैं
और ज़करिया (को याद करो) जब उन्होंने (मायूसी की हालत में) उपने परवरदिगार से दुआ की ऐ मेरे पालनवे वाले मुझे तन्हा (बे औलाद) न छोड़ और तू तो सब वारिसों से बेहतर है तो हमने उन की दुआ सुन ली और उन्हें यहिया से बेटा अता किया और हमने उन के लिए उन क बवबी को अच्छी बना दिया उस में शक नहीं किये सब लोग लेक कामों में जल्दी करते थे और हम को बड़ी रग़बत और ख़ौफ़ के साथ पुकारा करते थे और हमारे आगे गिड़गिड़ाया करते थे और (ऐ रसूल) उस बीबी को (याद करो) जिस ने अपनी इफ़्फ़त की हिफ़ाज़त की तो हमने उन (के पेट) में अपनी तरफ़ से रूह फूंक दी और उन को और उनके बेटे (ईसा) को सारे जहां के वास्ते (अपनी कुदरत को) निशानी बनाया
बेशक ये तुम्हारा दीन (इस्लाम) एक ही दीन है और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूं तो मेरी ही इबादत करो और लोगों ने बहम (इख़्तेलाफ़ करके) अपने दीन को टुकड़े-टुकड़े कर डाला (हालांकि) वह सब के सब हिर फिर के हमारे ही पास आने वाले हैं (उस वक़्त फ़ैसला हो जाएगा कि) तू जो शख़्स अच्छे-अच्छे काम करगेा और वह ईमानदार भी हो तो उस की कोशिश अकारत न जाएगी और हम उस के आमाल लिखते जाते हैं और जिस बस्ती को हमने तबाह कर डाला मुम्किन नहीं कि वह लोग (क़यामत के दिन हिर फिर के हमारे पास) न लौटें बस इतना (तौक़फ़ तो ज़रुर होगा) कि जब याजूज माजूज (सद्दे सिकन्दरी) की क़ैद से खोल दिए जाऐ और ये लोग (ज़मीन की) हर बुलन्दी से दौड़ते हुए निकल पड़ें और (क़यामत का) सच्चा वादा नज़दीक आ जाए तो फिर काफिरों की आंखें एक दम से पथरा ही जाए (और कहने ही लगें) हाए हमारी शामत कि हम तो उस (दिन) से ग़फ़लत ही में (पड़ें) रहे बल्कि (सच तो यूं है कि अपने ऊपर) हम आप ज़ालिम थे
उस दिन कहा जाएगा कि एक कुफ़्फ़ार तुम और जिस चीज़ की तुम ख़ुदा के सिवा इबादत करते थे यक़ीनन जहन्नुम की ईंधऩ (जलावन) होंगे (और) तुम सब को उस में उतरना प़ड़ेगा अगर ये (सच्चे) माबूद होते तो उन्हें दोज़ख़ में न जाना पड़ता और (अब तो) सब के सब उसी में हमेशा रहेंगे उन लोगों की दोज़ख़ में चिंघाड़ होगी (अपने शोर व गुल में) किसी की बात भी न सुन सकेंगे ज़बान अलबत्ता जिन(1) लोगों के वास्ते हमारी तरफ़ से पहले ही से भलाई (तक़दीर में लिखी जा चुकी) है वह लोग दोज़ख़ से दूर ही दूर रखे जाएंगे (यहां तक) कि ये लोग उस की भनक भी न सुनेंगे और यह लोग हमेशा अपनी मन मानी मुरादों में (चैन से) रहेंगे और उनको (क़यामत का) बड़े से बड़ा ख़ौफ़ भी दहशत में न लाएगा और फ़रिश्ते उनसे खुशी-खुशी मुलक़ात करेंगे और ये ख़ुशख़बरी देंगे कि यही वह तुम्हारा (ख़ुशी का) दिन है जिसका (दुनियां में) तुमसे वादा किया जाता था (ये) वह दिन (होगा) जब हम आसमान को उस तरह लपेटेंगे जिस तरह ख़ेतों का तूराम लपेटा जाता है जिस तरह हमने (मख़लूकात को) पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) दोबारा (पैदा) कर छोड़ेंगे (ये वह) वादा है जिसका करना हम पर (लाज़िम) है और हम उसे ज़रुर करके रहेंगे
और हमने तो नसीहत (तौरैत) के बाद यक़ीनन ज़बूर में लिख ही दिया था कि रूए ज़मीन के(2) वारिस हमारे नेक बन्दे होंगे उसमें शक नहीं कि उसमें इबादत करने वालों के लिए (अहकाम ख़ुदा की) तबलीग़ है और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनियां जहान के लोगों के हक़ में अज़रसतापा रहमत बना कर भेजा तुम कह दो कि मेरे पास तो बस यही वही आयी है कि तुम लोगो का माबूद बस यकता ख़ुदा है तो क्या तुम (उसके) फ़रमाबरदार बन्दे बनते हो फिर अगर ये लोग (उन पर भी) मुंह फेरे तो तुम कह दो कि मैंने तुमको सबको यकसा ख़बर कर दी है और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वादा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है उस में शक नहीं कि वह उस बात को भी जानता हैा जो पुकार कर कही जाती है और जिसे तुम लोगो छुपाते हो उससे भी खूब वाक़िफ़ हैं और मैं ये भी नहीं(1) जानता कि शायद ये (ताक़ीर ऐ अज़ाब) तुम्हारे वास्ते इम्तेहान हो और एक मुअय्यन मुद्दत तक (तु्म्हारे लिए) चैन हो
(आखिर) रसूल ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले तू ठीक-ठीक (मेरे और काफिरों के दरमियान) फ़ैसला कर दे और हमारा परवरदिगार बड़ा मेहरबान है कि उसी से उन बातों में मदद मांगी जाती है जो तुम लोग बयान करते हो।

सूरः हज

सूरः हज मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 78 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।
ऐ लोगों अपने परवरदिगार से डरते रहो (क्योंकि) क़यामत का ज़लज़ला (कोई मामूली नहीं) एक बड़ी (सख़्त) चीज़ है जिस दिन तुम उसे देख लोगो तो हर दूध पिलाने वाली (डर के मारे) अपने दूध पीते (बच्चे) को भूल जाएगी और सारी हामेला औरतें अपने-अपने हमल (दहशत से) गिरा देंगी और (घबराहट में) लोग तुझे मतवाले मालूम होंगे हालांकि वह मतवाले नहीं बल्कि ख़ुदा का अजा़ब बहुत सख़्त है (कि लोग बदहवास हो रहे हैं)
और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बड़े जाने ख़ुदा के बारे में (ख़्वाहम ख़्वाह) झगड़ते हैं और हर सरकश शैतान कि पीछे हो लेते हैं जिन (की पेशानी) के ऊपर (ख़त ऐ तक़दीर से) लिखा जा चुका है कि जिसने उससे दोस्ती की तो ये यक़ीनन उसे गुम्राह करके छोड़ेगा और दोज़ख के अज़ाब तक पुहंचा देगा लोगों अगर तुमको (मरने के बाद) दोबारा जी उडने में किसी तरह का शक है तो उसमें शक नहीं कि हमने तुम्हें शुरू-शुरू मिट्टी से(1) उसके बाद नुत्फ़े से उसके बाद जमे हुए ख़ून से फिर उस लौथड़े से जो पूरा (सुडौल) हो या अधूरा हो पैदा किया ताकि तुम पर (अपनी कुदरत) ज़ाहिर करें (फिर तुम्हारा दोबारा ज़िन्दा करना क्या मुश्किल है)
और हम औरतों के पेट में जिस (नुत्फ़े) को चाहते हैं एक मुद्दते मुअय्यन तक ठहरा रखते हैं फिर तुमको बच्चा बना कर निकालते हैं फिर (तुम्हे पालते हैं) ताक तुम अपनी जवानी को पहुंचों और तुम में से कुछ लोग तो ऐसे हैं जो (क़ब्ल बुढ़ापे के) मर जाते हैं और तुम में से कुछ लोग ऐसे हैं जो नाकारा(2) ज़िन्दगी (बुढ़ापे) तक फेर लाए जाते हैं ताकि समझने के बाद सठिया के कुछ भी (ख़ाक़) ना समझ सके और तू ज़मीन को मुर्दा (बेकार उफ़्तादाह) देख रहा है फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने और उभने लगती है और हर तरफ़ की खुश्नुमा चीज़ें उगाती हैं तो ये (कुदरत के तमाशे इसलिए दिखाते हैं ताकि तुम जानों) कि बेशक ख़ुदा बरहक़ है और (ये भी की) बेशक वही मुर्दों को जिलाता है और वह यक़ीनन हर चीज़ पर क़ादिर है और क़यामत यक़ीनन आने वाली है और उसमें कोई शक नहीं
और बेशक जो लोग क़ब्रों में हैं उनको ख़ुदा दोबारा जिन्दा करेगा और लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो बे जाने बूझे हिदायत पाए बग़ैर रौशन किताब के (जो उस राह बताए) ख़ुदा की आयतों से मुंह(1) मोड़़े (ख़्वाह मख़्वाह) ख़ुदा के बारे में लड़ने मरने पर तैयार हैं ताकि (लोगों को) ख़ुदा की राह से बहका दें ऐसे (ना बुकार) के लिए दुनियां में (भी) रूसवाई है और क़यामत के दिन (भी) हम उसे जहन्नुम के अझ़ाब (का मज़ा) चखाएंगे और (उस वक़्त उससे कहा जाएगा कि) ये उन आमाल की सज़ा है जो तेरे हाथों ने पहले से किए हैं और बेशक ख़ुदा बन्दों पर हरगिज़ जुल्म नहीं करता और लोगों(2) में से कुछ ऐसे भी हैं जो एख किनारे पर (ख़ड़ा होकर) ख़ुदा की इबादत करता है तो अगर उसको कोई फ़ायदा पहुंच गया तो उसकी वजह से मुतमईन हो गया और अगर (कहीं) उस को कोई मुसीबत छी भी गई तो (फ़ौरन) मुंह फेर के (कुफ्र की तरफ़) पलट पड़ा उस ने दुनियां और आख़ेरत (दोनों) का घाटा उठाया सरीही घाटा है ख़ुदा को छोड़ कर उन चीज़ों को (हाजत के वक़्त) बुलाता है जो उन उस को नुक़सान ही पहुंचा सकते हैं और न कुछ नफ़ा ही पहुंचा सकते हैं यही तो पहले दर्जे की गुमराही है
और उस को (अपनी हाजत रवाई के लिए) पुकारता है जिस का नुक़सान उस को नफ़ा से ज़्यादा क़रीब है(1) बेशक ऐसा मालिक भी बुरा और ऐसा रफ़ीक़ भी बुरा बेशक जिन लोगों ने ईमान कबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए (उनका बेहिश्त के) उन (हरे भरे) बाग़ात में ले जाकर दाख़िल करेगा जिन के नीचे नहरे जारी होंगी बेशक ख़ुदा जो(2) चाहता है करता है जो शख़्स (गुस्से में) ये बदगुमानी करता है कि दुनिया और आख़ेरत में ख़ुदा उस की हरगिज़ मदद कन करेगा (और अपने गले में फ़ासी डाल दें) फिर उसे काट दें (ताकि घाट मर जाए) फिर देखिए कि जो चीज़ उसे गुस्से में ला रही थी उसे उसकी तद्बीर दूर दफ़ा कर देती है (या नहीं) और हमने उस (कुरआन) को यूं ही वाज़ेह व रौशन निशानियां (बना कर) नाज़िल किया बेशक ख़ुदा जिस को चाहता है हिदायत करता है
उस में शक नहीं कि जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया (मुसलमानों) और यहूदी और ला मज़हब लोग और नसारा और मजूसी (आतिश परस्त) और मुश्रकीन (कुफ़्फार) यक़ीनन खु़दा उन लोगो के दरम्यान क़डयामत के दिन (ठीक ठीक) फ़ैसला कर देगा उस में शक नहीं कि ख़ुदा हर चीज़ को देख रहा है क्या तुम ने उस को भी नहीं देखा कि जो लोग आसमानों में है और जो लोग ज़मीन में हैं और आफ़ताब और माहताब और सितारे और पहाड़ और दरख़्त और चारपाए (ग़रज़ कुल मुख़लूक़ात) और आदमियों में से बहुत से लोग सब ख़ुदा ही को सजदा करते हैं और बहुतेरे ऐसे भी हैं जिन पर (नाफ़रमानी की वजह से) अज़ाब (का आना) लाज़िम हो चुका है और जिस को ख़ुदा ज़लील करे फिर उसका कोई इज़्ज़त देने वाला नहीं कुछ शक नहीं कि ख़ुदा जो चाहता है करता है
ये दोनों (मोमिन काफ़िर) दो फ़रीक़(1) आपस में अपने परवरदिगार के बारे में लड़़ते हैं ग़रज़ जो लोग काफिर हो बैठे उन के लिये तो आग के कपड़े बनाऐ गये हैं (वह उन्हें पहनाए जाएंगे और) उन के सरों पर खौलता हुवा पानी उंड़ेला जाएगा जिस (की गरमी) से जो कुछ उन के पेड में है (आंते वग़ैरह) और खाले सब गल जाएगी और उन के (मारने के) लिये लोहे के गुर्ज़ होंगे कि जब सदमें के मारे चाहेंगे कि दोज़ख़ से निकल भागे तो (गुर्ज़ मार के) फिर उसी के अंदर ढ़केल दिए जाएंगे और (उन से कहा जाएगा कि) जलाने वाले अज़ाब के मज़े चखो जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम भी किये उन को ख़ुदा बेहिश्त के ऐसे हरे भरे बागों में दाख़िल फ़रमाएगा जिन के नीचे नहरे जारी होंगी उन्हें वहां सोने के कंगन और मोती (के हार) से संवारा जाएगा और उन का लिबास वहा रेशमी होगा और (यह उस वजह से कि दुनिया में) उन्हें अच्छी बात (कलमा ऐ तौहीद) की हिदायत की गयी और उन्हें सज़ावार हम्द (ख़ुदा) का रास्ता दिखाया गया बेशक जो लोग काफिर हो बैठे और ख़ुदा की राह से और मस्जिद मोहतरम (ख़ाना ऐ क़ाबा) से जिसे हम ने सब लोगों के लिये (मईद) बनाया है (और) उस में शहरी और बैरूनी सब का हक़ बराबर है (लोगों को) रोकते हैं (उनको) और जो शख़्स उसमें शरारत से गुमराही करे उस को हम दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखा देंगे
और (ऐ रसूल वह वक़्त याद करो) जह हमने (इब्राहीम के ज़रिये से) इब्राहीम के वास्ते ख़ाने काबा की जगह(1) ज़ाहिर कर दी (और उन से कहा कि) मेरा किसी चीज़ को शरीक न बनाना और मेरे घर को तवाफ़ और क़याम और रुकूअ सजूद करने वालों के वास्ते साफ़ सुथरा रखना और लोगों को हज(2) की ख़बर कर दी कि लोग तुम्हारे पास (जोक़ जोक़ प्यादा और हर तरह की दुबली सवारियों) पर जो राह दूर दराज़ त कर के आई होंगी (चढ़ चढ़ के) आ पहुंचेगी ताकि अपने (दुनिया व आख़ेरत के) फ़ाएदों पर फ़ाएज़ हों और ख़ुदा जो जानवर चारपाए उन्हें अता फ़रमाए उन पर (ज़िबह के वक़्त) चंद मुअय्यन दिनों में ख़ुदा का नाम लें तो तुम लोग (कुरबानी के गोश्त) ख़ुद भी खाओ और भूखे मोहताज को भी खिलाओ फिर लोगों को चाहिए कि अपनी अपनी (बदन की) कशाफ़्त दूर करे और अपनी नज़रे पूरी करे और क़दीम (इबादत) ख़ाना (काबे) का तवाफ़ करें यही (हुक्म) है और (उसके अलावा) जो शख़्स ख़ुदा की हुरमत वाली चीज़ों को ताज़ीम करेगा तो ये उस के परवरदिगार के यहां उसके हक़ में बेहतर हैं
और उन जानवरों के अलावा जो तुम से बयान किये जाएंगे कुल चारपाऐ तुम्हारे वास्ते हलाल किये गये तो तुम नापाक बुतों से बचे रहो और लगो बातें(3) गाने वग़ैरह से बचे रहो निरे ख़ुरे अल्लाह के होकर (रहो) उस का किसी को शरीक न बनाओ और जिस शख़्स ने (किसी को) ख़ुदा का शरीक बनाया तो गोया कि वह आसमान से गिर प़ड़ा फिर उस को (या तो दर्मयान ही से) कोई (मरदार ख़्वार) चिड़िया उचक ले गयी या उसे हवा के झोंके ने बहुत दूर जा फेंका ये (याद रखो) और जिस शख्स ने ख़ुदा की निशानियों की ताज़ीम की तो कुछ शक नहीं कि ये भी दिलों की परहेज़गारी से हासिल होती है और उन चार पायों में एक मईन मुद्दत तक तुम्हारे लिये बहुत फ़ाएदें हैं फिर उन के ज़बह होने की जगह क़दीम (इबादत) ख़ाने (काबा) है
और हम ने तो हर उम्मत के वास्ते कुरबानी का तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है ताकि जो मवेशी चार पाए ख़ुदा ने उन्हें अता किये हैं उन पर (ज़बह के वक़्त) ख़ुदा का नाम लें ग़रज़ तुम लोगों का माबूद (वही) यक्ता ख़ुदा है तो उसी के फ़रमाबरदार बन जाओ
और (ऐ रसूल हमारे) गिड़गिड़ाने(1) वाले बन्दों को (बेहिश्त की) खुशख़बरी दे दो ये वह हैं कि जब (उन के सामने) ख़ुदा का नाम लिया जाता है तो उन के दिल सहम जाते हैं और जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़े तो सब्र करते हैं और नमाज़ पाबन्दी से अता करते हैं और जो कुछ हम ने उन्हें दे रखा है उस में से (राह खु़दा में) खर्च करते हैं और कुरबानी (मोटे गदबदे) ऊँट भी हम ने तुम्हारे वास्ते ख़ुदा की निशानियों में से क़रार दिया है उस में तुम्हारी बहुत सी भलाइयां(2) हैं फिर उनका तांते का तांता बांध कर तो हज करो और उस वक़्त उन पर ख़ुदा का नाम लो फिर जब उनके दस्त बाजू (कट कर) गिर पड़ें तो उन्हीं से तुम खुद भी खाओ और क़नाअत पेशा फ़क़ीरों और मांगने वालों मोहताजों (दोनो) को भी खाओ हमने यूं उन जानवरों को तुम्हारा ताबेअ कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो ख़ुदा तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुंचेंगे और उनके ख़ून मगर (हा) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुंचेगी ख़ुदा ने जानवरों को (उस लिए) यूं तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हें बताया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो(1)
और (ऐ रसूल) नेकी करने वालों को (बेहिश्त की) ख़ुशख़बरी दे दो उसमें शक नहीं कि ख़ुदा ईमानदारों से (कुफ़्फ़ार को) दूर दफ़ा करता रहता है ख़ुदा किसी बद यानत नशुक्रों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता जिन (मुसलमानों का) से (कुफ़्फ़ार) लड़ते थे चूंकि वह (बहुत) सताये गए उस वजह से उन्हें(2) भी (जिहाद) की इजाज़त दे दी गई और ख़ुदा तो उन लोगों की मदद पर यक़ीनन क़ादिर (व तवाना) है ये वह (मालूम है जो बेचारे) सिर्फ़ इतनी बात कहने पर कि हमारा परवरदिगार ख़ुदा है (नाहक़) अपने-अपने घरों से निकाल दिए गए और अगर ख़ुदा लोगों को एक को दूसरे से दूर दफ़ा न करता रहता तो गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने मजूस के इबादत ख़ाने और मस्जिदें जिनमें हसरत से ख़ुदा का नाम लिया जाता है सब के सब ढाह दिए गए होते और जो शख़्स ख़ुदा की मदद करेगा ख़ुदा भी अलबत्ता उसकी मदद ज़रुर करेगा बेशक ख़ुदा ज़रुर ज़बरदस्त ग़ालिब है ये वह लोग हैं कि अगर हम उन्हें रूए ज़मीन पर क़ाबू दैं दें तो (भी) ये लोग पाबंदी से नमाज़े अदा करेंगे और ज़कात देंगे और अच्छे-अच्छे काम का हुक्म करेंगे
और बुरी बातों से (लोगों को) रोकेंगे और (यूं तो) सब कामों का अंजाम ख़ुदा ही के इख़्तेयार में है (ऐ रसूल) अगर ये (कुफ़्फ़ार) तुम को झुठलातें हैं तो (कोई ताज्जुब की बात नहीं) उन से पहले नूह की क़ौम और (क़ौम) आद समूद और इब्राहीम की क़ौम और लूत की क़ौम और मदीन के रहने वाले (अपने-अपने पैग़म्बरों को) झुठला चुके हैं और मूसा (भी) झुठलाए जा चुके हैं ने काफिरों को चन्दे डील दे दी फिर (आख़िर) उन्हें ले डाला तो तुमने देखा मेरा अज़ाब क्या था ग़रज़ कितनी बस्तियां हैं कि हमने उन्हें बरबाद कर दिया और वह सरकश थी पस वह अपनी छतों(1) पर ढई पड़ीं हैं और (कितने बेकार) उजडे कुएं (किने) मज़बूत बड़े-बड़े ऊंचे महल (वीरान हो गए) क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरें नहीं ताकि उनके ऐसे दिल होते जैसे (हक़ बातों को समझते) या उनके ऐसे कान होते जिनके ज़रिए से (सच्ची बातों को) सुनते क्योंकि आंखे अंधी नहीं हुआ करतीं बल्कि दिल जो सीने में है वही अंधे हो जाया करते हैं
और (ऐ रसूल) तुम से ये लोग अज़ाब के जल्द आने की तमन्ना रखते हैं और ख़ुदा तो हरगिज़ अपन वादे के ख़िलाफ़ नहीं करेगा और बेशक (क़यामत का) एक दिन तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारी गिन्ती के हिसाब से एक हज़ार बरस के बराबर है और कितनी बस्तियां हैं के मैंने उन्हें (चन्दे) मोहलत दी हालांकि वह सरकश थीं फिर (आख़िर) मैंने उन्हें ले डाला और (सब को) मेरी ही तरफ़ लौटना है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि लोगों मैं तो सिर्फ़ तुम को खुल्लम खुल्ला (अज़ाब से) डराने वाला हूं पस जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए (आख़ेरत में) उनके लिए बख़शिश है (बहिश्त की) बहुत उम्दा रोज़ा और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के झुठलाने) में (हमारे) आजिज़ करने के वास्ते कोशिश की यही लोग तो जहन्नुमी हैं और (ऐ रसूल) हमने तो तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल और नबी भेजा तो ये ज़रुर हुआ की जिस वक़्त उसने (तबलीक़ एहकाम की) आरजी की तो शैतान ने उसकी आरजू में (लोगों को बहका कर) क़़लल(1) डाल दिया फिर जो वस्वसे शैतान डालता है ख़ुदा उसे मीटा देता है फिर अपने अहक़ाम को मज़बूत करता है और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफ़दार दाना है और शैतान जो (वस्वसा) डालता है (भी) तो उस लिए ताकि ख़ुदा उसे उन लोगों के आज़माईश (का ज़रिया) क़रार दे जिनके दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ है और जिनके दिल सख़्त है बेशक (ये) ज़ालिम (मुश्रक़ीन) पल्ले दर्जे की मुक़ालिफ़त में (पड़े) हैं (उस लिए भी) ताकि जिन लोगों को (कुतुब समादी का) इल्म अता हुआ है वह जान ले कि (वही) बेशक तुम्हारे पवरदिगार की तरफ़ से ठीक-ठीक (नाज़िल) हुई है (ये खयाल करके) उस पर वह लोग ईमान लाएं फिर उनके दिल ख़ुदा के सामने आजिज़ों करें और उसमें तो शक नहीं कि जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया उनको ख़ुदा सीधी राह तक पुहंचा देता है और जो लोग काफिर हो गए थे वह तो कुरआन की तरफ़ से हमेशा शक ही में प़ड़े रहेंगे यहां तक कि क़यामत उनके सर पर आ मौजूद हो या (यूं कहो कि) उन पर एक सख़्त मन्हूस(2) दिन का अज़ाब नाज़िल हुआ उस दिन को हुकूमत तो ख़ास खुदा ही की होगी वह लोग (के बाहमी इख़्तेलाफ़) का फ़ैसला कर देगा तो जिन लोगों ने ईमान क़बूल किया और अच्छे काम किए हैं वह नेमतों के (भरे हुए बाग़ात बेहिश्त) में रहेंगे
और जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो यही वह (कम्बख़त) लोग हैं जिन के लिए ज़ील करने वाला अज़ाब है और जिन लोगों ने ख़ुदा का राह में अपने देस छोड़े फ़िर वह शहीद किए गए या (या अपनी मौत से) मर गए ख़ुदा उन्हें (आख़ेरत में) ज़रुर उम्दा रोज़ी अतः फ़रमाएगा बेशक तमाम रोज़ी देने वालों मे ख़ुदा ही सबसे बेहतर है वह उन्हें ज़रुर ऐसी जगह (बेहिश्त) पहुंचा देगा जिस से वह निहाल हो जाएंगे और ख़ुदा तो बेशक बड़ा वाक़िफ़ कार बुर्दबार है यही (ठीक) है और(1) जो शख़्स (अपने दुश्मनों को) इतना ही सताए जितना ये उस के हाथों से सताया गया था उस के बाद फिर (दोबारा दुश्मन दोबारा फिर दुश्मन की तरफ़ से) उस पर ज़्यादती की जाए तो ख़ुदा उस मज़लूम की ज़रुर मदद करेगा बेशक ख़ुदा बड़ा माफ़ करने वाला बखश्ने वाला है ये (दो) उस वजह से दी जाएगी कि ख़ुदा (बड़ा क़ादिर है वही) तो रात को दिन में दाख़िल करता है और दिन को रात में दाख़िल करता है और उस में भी शक नहीं के ख़ुदा (सब कुछ) जानता है (और) उस वजह से (कभी) कि यक़ीनन ख़ुदा ही बरहक़ है, और उस के सिवा जिन को लोग (वक़्त मुसीबत) पुकारा करते हैं (सब के सब) बातिल हैं और (यह भी) यक़ीनी (है कि) खुदा (सब से) बुलन्द रुतबा बुजुर्ग है अरे क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि ख़ुदा ही आसमान से पानी बरसाता है तो ज़मीन सरसब्ज़ (व शादाब) हो जाती है
बेशक ख़ुदा (बन्दों के हाल पर) बड़ा मेहरबान वाक़िफ़ कार है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीनमें है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और उस में तो शक ही नहीं कि ख़ुदा (सब से) बे परवा (और) सज़ावार हम्द है क्या तूने उस पर भी नज़र ऩ डाली कि जो कुछ रूए ज़मीन में है सब को ख़ुदा ही ने तुम्हारे काबू में कर दिया है और कश्ती को (भी) जो उसी के हुक्म से दरया में चलती है और वही तो आसमान को रोके हुए है कि ज़मीन पर न गिर पड़े मगर (जब) उस का हुक्म होगा (तो गिर पड़ेगा) उस में शक नही कि ख़ुदा लोगों पर बड़ा मेहरबान रहम वाला है और वही तो क़ादिर मुतलक़ है जिस ने तुम को (पहली बार मं के पेट में) जिला उठाया फिर वही तुम को मार डालेगा फिर वही तुमको दोबारा ज़िन्दग़ी करेगा उसमें शक नहीं कि इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (ऐ रसूल) हम ने हर उम्मत के वास्ते एख तरीक़ा(1) मुक़र्रर कर दिया कि वह उस पर चलते हैं फिर तो उन्हें उस दीन (इसलाम) में तुम से झगड़ा करना चाहिए और तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की तरफ़ बुलाए जाओ बेशक तुम सीधे रास्ते पर हो और अगर (उस में भी) लोग तुम से झगड़ा करते थे क़यामत के दिन ख़ुदा तुम लोगों के दरम्यान (ठीक ठीक) फ़ैसला कर देगा (ऐ रसूल) क्या तुम नहीं जानते कि जो कुछ आसमान और ज़मीन में है ख़ुदा यक़ीनन जानता है उम में तो शक नहीं कि यह सब (बातें) किताब (लौह महफूज़) में (लिखी हुई मौजूद) हैं बेशक ये (सब कुछ) ख़ुदा पर आसान है और ये लोग ख़ुदा को छोड़ कर उन लोगों की इबादत करते हैं जिन के लिये न तो ख़ुदा ही ने कोई सनद नाज़िल की है और न उस (के हक़ होने) का ख़ुद उन्हें इल्म है और क़यामत के ज़ालिमों का कोई मददगार भी नहीं होगा
और (ऐ रसूल) जब हमारी वज़ेह व रौशन आयतें उन के सामने पढ़ कर सुनाई जाती हैं तो तुम (उन) काफिरों के चेहरों पर नाख़ुशी के (आसार) देखते हो (यहां तक कि) क़रीब होता है कि जो लोग उन को हमारी आयतें पढ़ कर सुनाते हैं उन पर ये लोग हमला कर बैठे (ऐ रसूल) तुम कह दो (कि) तो क्या मैं तुम्हें उससे भी कहीं बदतर चीज़ बता दूं (अच्छा तो सुन लो वह) जहन्नुम है जिस (में छोकने) का वादा खुदा ने काफ़िरों से किया है और वह (क्या) बुरा ठिकाना है लोगों एक मस्ल बयान की जाती है तो उसे कान लगा कर सुनो कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन लोगों को तुम पुकारते हो वह लोग अगरचे सब(1) के सब उस काम के लिये इकट्ठे भी हो जाए तो भी एक मक्खी तक पैदा नहीं कर सकते और अगर कहीं मक़्खी कुछ उन से छीन ले जाए तो उससे उस को छुड़ा नहीं सकते (अजब लुत्फ़ है) कि मांगने वाला (आबिद) और जिस से मांगा गया (माबूद दोनों) कमज़ोर हैं ख़ुदा की जैसी क़दर करनी चाहिए उन लोगों ने न की उस में शक नहीं कि ख़ुदा तो बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है ख़ुदा फ़रिश्तों में से बाज़ को अपने अहकाम पहुंचाने के ऱमुनतख़िब कर लेता है और (उसी तरह) आदमियों में से भी बेशक खु़दा (सब की) सुनता देखता है जो कुछ उन के सामने है और जो कुछ उन के पीछे (हो चुका है) है (ख़ुदा सब कुछ) जानता है और तमाम उमूर की रजूअ ख़ुदा ही की तरफ़ से होती है
ऐ ईमानदारों रूकूअ करो और सजदे करो और अपने परवरदिगार की इबादत करो और नेकी करो ताकि तुम कामयाब हो और हक़ जिहाद करने का है ख़ुदा की राह में जिहाद करो(1) उसी ने तुम को बरगुज़ीदा किया और ओमूर दीन में तुम पर किसी तरह की सख़्ती नहीं कि तुम्हारे बाप इब्राहीम के मज़हब को (तुम्हार मज़हब बता दिया है) उसी (ख़ुदा) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फ़रमाबरदार बंदे) नाम रखा और कुरआन में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम लोगों के मुक़ाबले में गवाह बनो और तुम पाबंदी से नमाज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा ही (की अहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तो क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार है।

सूरः मुअमिनून

सूरः मुअमिनून मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी 118 आयतें हैं
(ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूं) जो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं।

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